Thursday, April 9

" मनपसंद विषय लेखन"08अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-704

विषय मन पसंद लेखन
शीर्षक स्वास्थ्य कर्मी

विधा काव्य
8अप्रेल 2020,बुधवार

सब सेवा से बढ़कर सेवा
होती जग रोगी की सेवा।
दीनहीन असहाय मर्ज का
बस एक चिकित्सक देवा।

संक्रमण से दूर रहते सब
स्वास्थ्य कर्मी बनते साथी।
घावों पर मरहम भरते नित
स्वजीवन है अति परमार्थी।

आपदा प्रबंधन के वे रक्षक
करें अंग भंग शल्य क्रिया।
कोई नहीं होता है जीवन में
होता एक चिकित्सक दीया।

अचेतन को नित देवे चेतना
अंधे को देते हैं नयन सुख।
जिसका कोई नही सहायक
हरते नित रोगी के सब दुःख।

स्वास्थ्यकर्मी भाईबहिन से
सेवा करते नित रोगी की।
भूख प्यास सदा भुलाकर
वे सेवाएं देते हैं योगी सी।

वह जिंदा भगवान जग का
पालनहारा नित सेवा देता।
दीनबंधु है वह रक्षक जग
दीन दयालु मर्ज हर लेता।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय स्वैच्छिक
विधा कविता

दिनाँक 8.4.2020
दिन बुधवार

हनुमते नमः
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

हनुमान! तुम उदाहरण हो अपनत्व के,
स्वर्णिम हस्ताक्षर हो सशक्त भक्त के,
तुम ज्ञाता हो रामतत्व के,
तुम प्राप्तकर्ता हो अमरत्व के।

आज तुम्हारा जन्मोत्सव,
जगमग रहता तुमसे भव,
मुझमे भर दो चेतना नव,
डालो अपना मुझ में अवयव।

मेरे साष्टांग मेरे नमन,
मेरे पापों का करो शमन,
राम भक्ति से करवा दो,
मेरा भी थोड़ा आचमन।

तुम ही कर सकते यह काम,
मिलवा सकते मुझसे राम,
इस जीवन की अब हो गई शाम,
मिला नहीं अब तक विश्राम।

आपके जन्म दिवस पर कुछ हो जाये,
मेरा मन आपमें ही बस खो जाये।

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु सँकट होय हमारो

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर

8 अप्रैल 2020
आज हनुमान जयंती है श्री कपीश के चरणों में प्रणाम करते हुए कुछ हाइकु लिखने का प्रयास

तव चरणे
प्रणमामि अहम
अंजनी सुत 🙏

अमर सत्य
शाश्वत विचरण
मारुति नंद

लंका जलाई
पूछ आग लगाई
राम भक्त

जय श्री राम
विपदा ऐसी आई
दिवाली लाई

मानस कथा
हनुमंत विराजे
अक्षय वट

लक्ष्मण प्राण
संजीवनी औषध
पर्वत लाए


8 अप्रैल 2020
स्वतंत्र रचना


उषा की नवकिरणे
नव उल्लास लाएंगी
यह जो वीरानी छाई है
शीघ्र बहाल हो जाएगी।

एक छोटी सी चिड़िया
रानी प्रतिदिन दस्तक देती है
दाना पानी चुग-चुग कर
पुनः नीड़ चल देती है।

नन्ही गिलहरी चुगती दाना
देख हमें सहमति है
पुनः सुरक्षित स्व को पाकर
निज काज लग जाती है।

हम दो प्राणी सुबह सांय
ऊपर जाते नीचे आते
कभी बगीचे कभी वरांडे
समय व्यतीत करते हैं।

छोटे-मोटे जीव-जंतु
पक्षी विचरण करते हैं
खिला पिलाकर दाना चुग्गा
हम हर्षित जीवन जीते हैं।

लोक डाउन में हालत
लगभग सब की ऐसी है
न घबराएं सब इससे
उषा की नवरश्मि
नव उल्लास लाएगी।


स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद (राजस्थान)

🙏🌹जय श्री राम 🌹🙏
🙏🌹
य हनुमान 🌹🙏

कृपा करो हनुमत बलशाली ।
राम की विपदा तुमने टाली ।।

बूटी लाय जान पर खेले ।
भक्त शिरोमणी तुम अलबेले ।।

अंजनि माँ के राजदुलारे ।
भक्तन के तुम काज सँवारे ।।

आज संकट बड़ा है भारी ।
विपदा में दुनिया है सारी ।।

भारत से क्यों प्रीत विसारी ।
दूर करो भीषण महामारी ।।

भूल हुई जो उसे विसारो ।
डूबती नैया को सँवारो ।।

तुमसा नही कोई हितकारी ।
दूर करो कॅरोना बीमारी ।।

नाम तुम्हारा संकटहारी ।
दूर करो जग की लाचारी ।।

'शिवम' है विनती बारम्बार ।
हर दो संकट अब की बार ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 08/04/2020

दिनांक -08/04/2020
विषय- पूर्णिमा ,चैत्र


गुजरी रात चैत्र की पूर्णिमा की
जब पूनम आने वाली थी
सिंदूर लगाकर श्रृंगार किया
क्या थी ऐसी अथाह वेदना
क्यों तूने मेरा तिरस्कार किया

सानिध्य की थी मैं प्यासी तेरी
मृगनयनो की तासी थी मैं तेरी
हर्ष हमारा क्यों छीना तुने
प्रेम संसर्ग को क्यों बेधा तूने
एक ठिठोली खिलती थी
स्पर्श तुम्हारा रंगीली थी
अखियां मेरी छबीली थी
बैरन रतिया नशीली थी

प्रत्येक पहर मेरे रैना बिन तेरे कैसे रहेंगे
मधुयामिनी की बैरन स्मृतियां कैसे सहेंगे
प्रथम मिलन की मधुर स्मृति थी
कैसी तेरी निष्ठुर ठिठुर कृति थी

बिस्तर की हर सिलवट पर महक तुम्हारी आती थी
विरह वेदना का आघात मुझे तेरी तड़पाती थी
क्यों तुम छोड़ गए मुझे वृद्धावस्था के यौवन पे
निर्जीव देह रह गई मात्र श्वासों के ऋण तन पे

स्वरचित....

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
हनुमान जयंती
मैं रुद्रावतार बजरंग वीर , कहते हैं मुझको हनूमान।
जन्म लिया श्रीराम कार्य हित, गाता हूँ श्री रघुवर गान॥

मैं मारुत सुत अंजनीलाल, भक्तों का हूँ मैं महावीर।
उनको भय से अभय करूँ,हरता उनकी सभी पीर॥

अपना रक्षक समझ मुझे, सब करते हैं मेरा पूजन।
उनकी आस्था का केंद्रविंदु,करते मेरा वंदन-अर्चन॥
बाल व्रह्मचारी हूँ मैं, श्रीराम कार्य में सदा निरत।
अजर-अमर का वरदानी,असुर वृत्ति का हूँ नाशक॥

रामदूत हूँ राम कृपा का, रहता सदा आकांक्षी।
समता-मानवता से पूरित , रामराज्य का साक्षी॥
अनुगामी हूँ श्री चरणों का, प्रतिपल मंगलकारी।
राजनीति से दूर सदा, मैं प्रभु का आज्ञाकारी॥

त्रेता युग से द्वापर युग तक, फिर कलयुग में आए।
तप्तजनों का दुख हरने,घन बन धरती पर छाए॥
जहाँ भेद मैं वहाँ न रहता, मैं अनेक नहीं ,एक।
सदा न्याय के साथ रहूँ मैं, ले सत्य-धर्म की टेक॥

भारतवासी सभी युवाजन, हैं मेरे ही प्रतिरूप ।
राष्ट्र भक्ति में लगे हुए हैं, देखें खुद को राष्ट्र रूप॥
युवा शक्ति सब मिलकर, राष्ट्रोद्यान सजाएंगे।
एक बार वे फिर भारत में, रामराज्य सरसाएंगे॥

कोई माया नहीं चलेगी, असुर शक्तियाँ भले प्रबल।
आत्मशक्ति के व्रह्मवाण से ,वे कर देंगे सभी विफल॥
भारत का अतीत गौरवमय,भारत का भविष्य उज्ज्वल।
भारत के सारथी युवा, भारत रथ ले बढ़ चले प्रबल॥
फूलचंद्र विश्वकर्मा

नमनमंच संचालक।
भावों के मोती।
सर्वप्रथम सभी को हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

विषय-मनपसन्द लेखन।
हाइकु
====

गुनसागर
कृपानिधान तुम
अंजनी पुत्र।

पवनपुत्र
कहलाते हो तुम
संकटहारी।

परमप्रिय
राम को लक्ष्मण से
नित सेवा में।

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
08/04/2020


दिनांक - 8,4,2020
दिन - बुधवार

विषय - हनुमान जयंती

पवन पुत्र जी श्री हनुमान,
हमें दीजिए भिक्षा ज्ञान ।
करें दूर प्रभु सब अज्ञान ,
गाये कलम आपके गान।

सुर हित लिया आपने जन्म ,
जानें सभी आपका मर्म।
जग ने जानी सेवक रीत ,
नहीं आपसा कोई मीत ।

भक्तों को देते वरदान ,
रखा सदा ही सबका मान।
नमन आपको बारम्बार ,
हाथ जोड़ करते जयकार।

करें विनय आपसे सविनय,
दोष न रखें हमारे हृदय।
निरोग सुखी रहें सब देश ,
सभी के हनुमान हृदयेश।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

।। शक्ति बाण ।।

शक्ति बाण लगा लक्ष्मण को

राम हुए होंगे बड़े व्याकुल,
मूर्च्छित अवस्था मे देख
भाई-भाई करते रोते
विलाप करते होंगे
राम है व्याकुल,
समाधान
ढूंढते हनुमान
जब निकले होंगे
विभीषण के कहे पर
लाए होंगे वैद्य सुषेण को,
सुषेण ने संजीवनी मंगवाई
महाबली चले संजीवनी ढूंढने को।

संजीवनी संजीवनी पर ढूंढते हुए
कालनेमि पिशाच ने रोका होगा
मार आगे बढ़ते चले होंगे,
संजीवनी न मिलने पर
श्री राम का नाम ले
संजीवनी उठा
महाबली
चल पड़े होंगे,
लक्ष्मण की मूर्च्छा
भंग करने के लिए ही,
संजीवनी ले पहुँचे होंगे लंका
चारों ओर खुशी की लहर छाई होगी,
प्रसन्नतापूर्वक राम-हनुमान गले मिले होंगे।

भाविक भावी
दिनांक - 08/04/2020
दिन - बुधवार

विषय - आज कुछ श्रृंगार
प्रकरण - वो हीर है मेरी

पटियाला सूट पहन सिर्फ एक तरफ दुपट्टा डालती हैं
आँखों में काजल माथे पर छोटी सी बिंदी लगाती हैं।

आँखें उसकी खुला महकाना है जिसमें जाम छलकते हैं
करना चाहता हूँ मैं नशा उनका लेकिन उसके चश्मे पहरेदारी करते हैं।

बाल उसके लम्बें घने हैं लेकिन खुले नहीं रखती हैं वो
चोटी बाँध जब चलती है नागिन सी बलखाती हैं वो।

मुझे पसंद है सिर्फ इसलिए कानों में झुमके पहनती हैं
उसके आने की खबर पहले पहुँच जाए पैरों में पायल भी पहनती हैं।

लम्बाई कम हैं उसकी हाई हील्स पहनने की जिद्ध करती हैं
तुम छोटी बहुत प्यारी लगती हो ये सून फिर जिद्ध छोड़ती हैं।

चेहरे से मासुमियत झलकती है लेकिन गरम मिज़ाज है उसका
लेकिन मुझे गले मिलकर भूल जाया करती हैं गुस्सा उसका।

उसकी मुस्कराहट बिना हथियार कत्लेआम कर देती हैं
हम दोनों की जोड़ी हीर और रांझा सी लगती हैं ।

मैं कवि वो शायर इससे हमें फर्क नहीं पड़ता हैं
मैं हिंदू का बेटा वो मुस्लिम की बेटी इस बात से डर लगता हैं।

स्वरचित रचना
- प्रतिक सिंघल
विषय:-स्वैच्छिक
विधा:-गीत

दि०8-4-2020

भजन करो हनुमानसरीखा,
अजर, अमर हो जाओगे|
जन्म मरण का भय छूटेगा
देव लोक को पाओगे|

सद्गुरु हनुमतकेश्रीचरणों|
में लीन रहो नितध्यान करो|
जै श्री राम का जाप करो|
नाम जपो प्रभुभजन करो|
स्वर्ग से कबीर गये,
तुम भी बैकुंठ में जाओगे|

तुलसी ने हनुमानको पूजा,
प्रभु दर्शन करसद्गति पायी|
भीम ने की हनुमान वंदना,
महाभारत में सहायता पाई|
पवन पुत्र का भजन करो,
मन वांछित फल पाओगे|

सतयुग द्वापर,त्रेता में भी,
श्री हनुमान जी सदेह रहे|
कलियुग में उन्हें दर्शन देते,
जो श्री राम में लीन रहे|
चारों युग के देव हैं ये,
इनकी भक्ति में जाओगे,
जय हनुमान की शरण गहो
भव बाधा से मुक्त हो जाओगे|

मैं प्रमाणित करता हूँ कि
यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
बस्ती

मन पसंद विषय लेखन
सादर मंच को समर्पित -


🍏☀️🇮🇳 गीतिका 🇮🇳☀️🍏
*************************
मिटेंगे आन पर 
🏵 छंद - विधाता 🏵
मापनी-1222 , 1222 , 1222 , 1222
समांत- आन , पदांत- रखते हैं
🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺

हमारी भारती माँ है , यही पहचान रखते हैं ।
मिटेंगे आन पर इसकी यही अरमान रखते हैं ।।

पले हैं इस जमीं पर ही सदा ही चूम कर माटी ,
यही चन्दन,यही पूजा , इसी का मान रखते हैं ।

हुये हैं वीर सेनानी , मिटे हैं मातृ-भू के हित ,
रही है वीरता रण में, सदा सम्मान रखते हैं ।

सदा है विश्व गुरु भारत ,सनातन सभ्यता के बल ,
विवेकानन्द ने गाया , वही यशगान रखते हैं ।

पता है शौर्य का सब को, पताका विश्व में फहरी ,
लड़ें जाँबाज सीमा पर , दिलों में जान रखते हैं ।

यहाँ दुश्मन विदेशी कुछ , सदा आतंक फैलाते ,
मिटाने मूल से उनको , बड़ा रण भान रखते हैं ।

पुनीता राष्ट्रवादी भक्ति की यश कीर्ति है फैली,
वही गाथा हृदय में , भारती की शान रखते हैं ।।

🍎🌴🌻☀️🌸🍏

🏆🌹🍀**....रवीन्द्र वर्मा आगरा

स्वतंत्र
8/4/2020
*
***********

आज जी करके मर गया हूँ मैं
साथ छूटा सिहर गया हूँ मैं।।

रोग दिल का बड़ा पुराना है
याद तेरी से तर गया हूँ मैं।।

आज कातिल निगाह डाली थी
तिरछे काजल से मर गया हूँ मैं।।

सिरफिरी दर ब दर भटकती थी
पा के तुझको निखर गया हूँ मैं।।

दिन में डाला जो तूने सुरमा यूं
देख कर खुद सँवर गया हूँ मैं।।

रात नागिन बनी सी डसती है
रोज ही पी जहर गया हूँ मैं।।

स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ

दिन -बुधवार
दिनांक 07/04/2019

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जय जय बजरंग बली,
तुम नाथ हो प्रभु हमारे।
संकट मोचन कहलाते,
प्रभु रघुवर के तुम प्यारे।।...
लाज निभाते भक्तजनों की,
हनुमत दुष्ट जनों को मारे।
राम नाम का वंदन करते,
जपते तुमको सारे।।
जय जय बजरंग बली,
तुम नाथ हो प्रभु हमारे।
संकट मोचन कहलाते,
प्रभु रघुवर के तुम प्यारे।।.....
मातु सिय तुम खोज के लाये,
माता प्रभु मुद्रिका पाई।
सभा में पग कोई उठा न पाया,
तब प्रभु की पूँछ जलाई।।
बाग उजारे लंका में तुम,
विभिषण कहना माने।
असुर दल संग रावण मारा,
राम नाम जग जाने ।।
संजीवनी हनुमत ले आये,
तब असुरों को संहारे ।
विजय पताका प्रभु फहराये,
रावण दल सब तब मारे।।
जय जय बजरंग बली,
तुम नाथ हो प्रभु हमारे।
संकट मोचन कहलाते,
प्रभु रघुवर के तुम प्यारे।।...
...भुवन बिष्ट रानीखेत(अल्मोडा़), उत्तराखंड
(मौलिक /स्वरचित रचना)
8/4/2020
अष्ट सिद्दी नव निधि के दाता हनुमान तुम्हारी जय. होवे

तुम ही हो मेरे भाग्य बिधाता हनुमान तुम्हारी जय होवे
तुम्हारे जैसा नहीं कोई ज्ञानी
तुम्हारे जैसा नहीं कोई ध्यानी
संकट मोचन नाम तुम्हारा
राम नाम तुमको प्यारा
दौड़े चले आते जो भी बुलाता /हनुमान तुम्हारी जय होवे
क्षण भर में समुद्र लांघ लिया था
माँ सीता का पता तुम्ही ने किया था
सोने की लंका जलाई तुमने
विभीषण की कुटिया बचाई तुमने
देतीं हैं वरदान तुम्हें सीता माता/हनुमान तुम्हारी जय होवे
सिया राम को हृदय में बसाया था तुमने
सीना चीर दिखाया था तुमने
राम नाम का अलख जगाया था तुमने
अमर तत्व पाया था तुमने
राम नाम के सिवाय और कुछ न सुनता /हनुमान तुम्हारी जय होवे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार

जग के तारणहार बने किये कारज बडे महान।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।


ग्यारह वे अवतार रुद्र के हे बली महा बलवान ।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।

गुणी ज्ञान के सागर प्रभु तुम हो दया निधान ।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।

प्रतापी सब भक्ततन पर भक्ति रस की खान ।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।

अष्ट सिद्धि नवनिध के दाता हम करे गुणगान।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।

प्राणों में प्रभु रमें रहो सदा रहे तुम्हारा ध्यान।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।

बल, बुद्धि, विद्या का हे प्रभु दियो हमे वरदान।
जय पवनपुत्र हनुमान, जय पवन पुत्र हनुमान।

विपिन सोहल


तिथि-08/04/2020
विषय- मनपसंद


हे श्री राम के दूत हनुमान
तुम ही हो सबसे बलवान
हम तेरे चरणों में शीश नवाते हैं
हम श्रदा सुमन अर्पित करते है।

तुम ही हो दयानिधान
तुम हो प्रेम के सागर
हे करुणानिधान
हम तेरे चरणों में शीश नवाते हैं।

तुझको जो भजे जीवन में
मुक्त हो जाये हर भय से
लड़ जाये मुश्किलों से
हम तेरे चरणों में शीश नवाते हैं।

अनिता निधि

8/4/2020/बुधवार
*देशहित*काव्य

हमें देशहित सर्वोपरि होना चाहिए।
देशहित में सदा तत्पर रहना चाहिए।
तभी हम राष्ट्र गौरव ‌ कहलाऐंगे,
स्वदेश के लिए तैयार रहना चाहिए।

क्या नहीं मिलता हमें अपने ‌देश से।
बताऐं क्या सनातनी मिला विदेश से।
ज्ञान इस भारत ने दिया संसार को,
प्रेमप्रीत सभी तो मिला स्वदेश से।

हो हमारी सेवा समर्पण भावना।
देशहित की करते रहें हम कामना।
रखें संवेदनाऐं मानवता के प्रति,
जीवित रहें हमेशा राष्ट्रभावना।

वलिदान सभी भारत माता को करें।
नहीं अवमानना मातृभूमि की करें।
हमें मरना देशहित जीना देशहित,
सर्वस्व न्योछावर वसुंधरा को करें।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
विषय -मन पसन्द
(मारुति नन्दन)

दिनांक -८.४.२०२०
विधा --दोहे
१.
चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा,अंजनि सुत अवतार।
राम सिया को हृदय का, बना लिया आधार।।
२.
शंभु स्वयं भे अवतरित ,पवन तनय हनुमान।
राम भक्त के रूप में, पाया घर घर मान।।
३.
वज्र अंग बल पवन सम,अंजनि पुत्र महान।
केशरिनन्दन का सतत,होता है गुणगान।।
४.
मंगल शनिचर को सभी,पूजें श्री हनुमान।
सारे संकट दूर हों, हो जग में सम्मान।।
५.
साढ़ेसाती अढ़इया, एक मात्र है तोड़।
पवनतनय हनुमान से,अपना नाता जोड़।।

*******स्वरचित**********
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)४५१५५१

दिनाँक-08/04/2020
विष
य:-"हनुमान"
विधा-हाइकु(5/7/5)
(1)
सेवक, प्राण
हनुमान के बिना
अधूरे राम
(2)
संकटहर्ता
हनुमान का जाप
भूत भागता
(3)
कर्तव्य पूजे
हनुमान संकल्प
समुद्र लांघे
(4)
अद्भुत कपि
फल समझ कर
निगले रवि
(5)
राम को पूजा
हनुमान सरीखा
भक्त न दूजा
(6)
विजितेन्द्रिय
रामायण नायक
महातपसी
(7)
अंजनि सुत
कर्तव्यपरायण
राम के दूत
(8)
शक्ति आह्वान
हनुमान की लीला
सुंदरकांड
(9)
जै हनुमान
रामायण घटना
अमर पात्र

स्वरचित
ऋतुराज दवे

जय बजरंग बली
🌹🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹
माँ अंजनी के राज दुलारे,श्री राम के प्यारे।
भीड़ जब भक्तों पडी़, तारणहार कहलाते।

जब मैया हरण,श्री राम याद तुम्हें करते।
पता लगा मैया का ,मार्ग तुम्ही दिखलाते।

अहम लंका जला,अहम जन हृदय मिटाते।
लाय सजीवन बूटी,लक्ष्मण आप ही बचाते।

आओ पवन पुत्र,आज हम सब तुम्हें बुलाते।
अब दर्शन दो प्रभु,निराश मन आश जगाते।

राम नाम बखान,आप श्री मुख सदा करते।
पर्वत जैसी निश्चलता, दीन दुखी दुख हरते।

भीड़ पड़ी भक्तों पर,बजरंगबली ही आते।
हे महावीर अर्ज सुनो,विपदा तुम ही बचाते।

रामभक्त अंजनी लाल, जन्मोत्सव मनाते।
पूरी मनोकामना ,खुश रहो आशीष पाते।


वीणा वैष्णव
कांकरोली


दिन -बुधवार
दिनांक - 08/04/2020

विषय - मनपसंद लेखन

"तेरी यादें"

तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं
लेकिन ये जख़्म अभी गहरा तो नहीं
ठंडी हवा का झोंका तेरा पैगाम ले आया
रोने का मन था फिर भी मुझे हंसाया
तुम्हारे कमी का एहसास अभी पूरा तो नहीं ,
फिर भी तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं ।

तुम मेरे साथ हो कहती हैं बहारें
जीती हूं मैं तो बस तेरी यादों के सहारे
देखती हूं जो ख्वाब वो सुनहरा तो नहीं ,
फिर भी तेरी यादें पे कोई पहरा तो नहीं ।

मेरी दामन में खुशियों के दो फूल खिलाते
दर्द गम को भूलकर मेरे होंठ भी मुस्काते
शायद मेरे बिना तेरा जीवन अधूरा तो नहीं ,
फिर भी तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं ।
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दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
#स्वरचित


8/4/2020
हनुमान जयंती पर
*
**************
ये
हनु
कपीश
विध्नहर्ता
मंगलकर्ता
अंजनी दुलारे
प्रभु राम सहारे।।

है
मित्र
रक्षक
नारी दूरी
तन सिंदूरी
नव निधि दाता
प्रभु राम से नाता।।

स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ



दिनांक-8-4-2020
विषय-मनपसंद लेखन


"हनुमान जयंती पर विशेष "


हनुमत तोड़ेंगे दुश्मन का दंभ अभिमान
अपने प्रिय भक्तों का रखेंगे सदा ही मान
हे कपीश तुम दया दृष्टि बनाये रखना
है हमे विश्वास कि संकट हरेंगे हनुमान।

हे हनुमत मैं आई हूँ शरण तिहारी
तेरी सूरत पर मैं जाऊं बलिहारी
पूरी तुम मेरी हर एक आस करना
मेरे बाबा तुम रखना लाज हमारी।

तेरी भक्ति से आत्म को मिले आराम
जपूं मन्त्र मैं जय हनुमान जय श्री राम
मारुति नंदन तुम हो सुख शांति के दाता
संकट में सब पुकारें बस तेरा नाम।

प्रभु तेरे पूजन से हर काम होता है
राम के चरणों में तेरा ध्यान होता है
दर पर तेरे आने से दूर हो बाधाएं
विकट संकट में नर धीर न खोता है।

सूरज को पल में निगले अंजनि के लाल
दर्शन मात्र से तेरे भाग जाता है काल
सिय राम के काज तुम बिन कौन सँवारे
हे कपीश तेरे तीव्र प्रताप का प्रबल कमाल।

हे महावीर हम पानी और तुम हो चन्दन
हे बजरंगी तुमको कहते हैं दु ख-भंजन
इस जगत के सब नर नारी शीश झुकाएं
मनहर रूप तुम्हारा यूँ दमके ज्यूँ कुंदन।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
8/4/20


प्रेम से बढ़कर न कोई शस्त्र देखा है।
खुदा से बढ़कर न कोई साथ देखा है।

दिया न साथ दुनिया ने जिसे अपना समझती थी।
हुई क्या भूल मुझसे यह खुदा का न समझती थी।

चुभाए जो तुझे कांटा उसे तू दे फूल बदले में।
सताए जो कभी तुझको उसे दे प्यार बदले में।

करे जितना परिग्रह तू फसे उतना ही उलझन में।
करे संयम उठे लहरे यही आनंद हो मन मे ।

स्वरचित
मीना तिवारी
खुबसुरत

मैंने पूछा जिंदगी से कौन हो तुम

उसने कहा जो तू जी रहा है वही तो हूं मैं
तेरी सांसों में बसती हूं तेरे साथ ही तो चलती हूं
कभी शांत नदी सी बन जाती हूं
कभी चंचल झरनों सा बह जाती हूं
रहती हूं किसी के दिल में और
धड़कती हूं किसी के दिल में
कभी खुशी, कभी गम दे जाती हूं
कभी किसी के सांसों से चली जाती हूं
कभी किसी के सांसों से बंध जाती हूं
सभी के सुख-दुःख का साथी हूं
मानो तो सब से खूबसूरत हूं
माना कभी थक सी जाती हूं
पर सब्र रखो तो रूक भी जाती हूं
मर मर कर जीना नहीं तुम
जीवन है कोई खेल नहीं
कभी बहता दरिया भी बन जाती हूं
कभी छांव भी दे जाती हूं
वक्त की ठोकर से घबरा मत
जिंदगी है ये इम्तिहान लेती है
विश्वास और संबल से जीत मिल ही जाती है
मौलिक रचना
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई


दिनांक- 8/4/20
वार- बुधवार

विषय-मनपसंद लेखन
हनुमान जयंती पर विशेष
सबके संकट हरें हनुमान
चैत्र शुक्ल एकादशी
मधा नक्षत्र जन्में हनुमान
भक्त शिरोमणि है हनुमान

सबके संकट हरें हनुमान
शिव के ग़्यारहवे है अवतार
नहीं भक्तों को करते निराश
मंत्र है इनका जय श्रीराम

सबके संकट हरें हनुमान
दु:ख भंजन सब इनको माने
जो शरण में जायें अपना जाने
ये शक्ति भक्ति का है प्रमाण
सबके संकट हरें हनुमान!!
सीमा मिश्रा
सागर मध्यप्रदेश
198. संकट हरेगें हनुमान
संकट हरेगें हनुमान, जो है बल बुद्धि के निधान.
द्रुति कार्यकर्ता सब बिघ्नहर्ता, मंगल कारक है कपि हनुमान.

शंकर सुवन केशरी नंदन, हम सब करते आपका वंदन.
तीनों लोको मे डंका बाजत, जो सुमिरे हनुमत गुण आगर.
राम कार्य में सबसे आगे, आप को देख भूत प्रेत सब भागें.
अंजनी के ये लाल बड़ो है, करते ये तो कमाल बड़ो बड़ो है.
आप तो है गुण ज्ञान के सागर, सबके मनोकामना के भरते गागर.
अतुलित बल वाले राम दूत है, आप तो केशरी अंजनी सूत है.
प्रभु चरित्र सुनने में मन लगावें, राम भक्ति बड़े मन से गावै.
श्रीराम ने बहुत बड़ाई किया है, भरत जैसा आपको भाई कहा है.

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन' उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239


विधा- गीत
आधार छंद-सार छंद (सममात्रिक)

"कोरोना के ‌योद्धा"

हे!कोरोना के योद्धाओं,
तुमको नमन हमारा।
इस भीषण आपात काल में,तुम ही मात्र सहारा।

फैल रही है यह छूने‌ से,
छुआ-छूत बीमारी।
जल्दी ही इसकी आमद में,
आयी दुनिया सारी।
हाहाकार मचा रक्खा है,
मुश्किल में है दुनिया।
क्या चच्चा क्या माता बहनें,
क्या राजू, क्या मुनिया।

दूजों की छोड़ो अपनों से,
अपने करें ‌‌किनारा।
इस भीषण आपात काल में,तुम ही मात्र सहारा।

नर्स,चिकित्सक,पुलिस लगे हैं,
द्वार छोड़कर अपना।
शुरू किया पंडित मुल्लों ने,
मित्रों‌ माला जपना।
जान डाल अपनी जोखिम में,
लगे हुए हैं सारे।
'जीवनदाता, धरा विधाता',
उन्हें समर्पित नारे।

आग लगी कोरोना रूपी,
झुलस रहा जग सारा।
इस भीषण आपात काल में,तुम ही मात्र सहारा।

लगे सभी सेवा कर्मों में,
भूलें खाना पीना।
दूजो को जीवन देने में,
भूले खुद ही जीना।
नींद नहीं आँखों में उनकी,
रात-रात भर जागे।
लाश हजारों देखीं लेकिन,
कर्मों से ना भागे।

आयी जो भी मुश्किल उनको,
उत्तर दिया करारा।
इस भीषण आपात काल में,तुम ही मात्र सहारा।

मार रहे हैं पत्थर उन पर,
कुछ रिपु मानवता के।
धूक रहे हैं कुछ तो उन पर,
लक्षण दानवता के।
डण्डों से पीटे हैं उनको,
बाट रहें जो जीवन।
छेद कर रहें उस थाली में,
जिसमें खाते भोजन।

लगे हुए हैं ‌फिर भी डटकर,
तनिक न धीरज हारा।
इस भीषण आपात काल में,तुम ही मात्र सहारा।

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)

भावों के मोती
आयोजन-मनपसंद विषय लेखन

दिनांक-08/04/ 2020
दिन-बुधवार
शीर्षक-छोड़ कर जा रही हो अकेला
विधा-कविता
*************************************
छोड़ कर जा रही हो अकेला
सूना करके अपना बसेरा
संग जा रही हैं आज तुम्हारे
मेरी खुशियां भी सारी
तुम बिन कैसे होगी अब
मेरी रंग भरी होली
और जगमग दिवाली
काश तुम साथ मेरा
जीवन भर निभाती
और मेरे बाद तुम जाती
काश तुम्हारे साथ कुछ पल
और बिता पाता
खुशियां थोड़ी-सी और पा जाता
पर नहीं, तुमको तो जैसे जाने की जल्दी थी
खुशियां हमारी तुमको खलती थी
ठीक है तुमने अपने मन की तो कर ली
खुशियां हमारी सब हर ली
पर बसेरा अपना ये भूल न जाना
दूर से ही सही पर स्नेह सदा बरसाना।।

स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच, उत्तर प्रदेश।

दिनांक 8 अप्रैल 2020
विषय स्वतंत्र


देखता हूँ तस्वीर तेरी, ठहर जाती जिंदगी
अपने को खोकर भला क्या पाती जिंदगी

सब्र और संतोष की भी एक सीमा होती है
दिल मे दर्द रखकर कैसे मुस्कराती जिंदगी

वो जीत गया और जीतकर निकल गया
हारने वाले की कब किस्मत बनाती जिंदगी

बातों, यादों मे गुजरेंगे भला ये कितने दिन
जिस जगह जाऊं दर्द जगा जाती जिंदगी

तेरा लौट आना भी अब मुमकिन तो नही
तेरे बिना यहां सुकून कहां पर पाती जिंदगी

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

8/4/2020
बुधवार

पूर्णिमा
विषय - मनपसंद

2122 1212 22
"क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा,"
बेवजह फ़िक्र से भी क्या होगा।

वो किसी पर करे यकीं क्यों कर,
जो किसी से कभी छला होगा।

जीतना भी तो उसके हक में है,
वक़्त के तौर जो ढला होगा।

बोलने में नहीं झिझकता है,
फ़लसफ़ा वो बहुत पढ़ा होगा।

चेहरा उसका खिला सा लगता है,
क्या सुना जिक्र मीत का होगा।

स्वरचित
शिल्पी पचौरी


स्वैच्छिक लेखन
प्रदत्त छंदः विधाता

मात्राएँ:1222,1222,1222,1222.

गीतिकाः
*
निरंतर मिल रहे हमको, समर के ही निमंत्रण हैं।
उपासक शान्ति ही की, साधना,के हम सनातन हैं।

अरे ! तुम तक्षकी फण रोज ही,फैला गरजते हो,
तुम्हारे कृत्य तो अक्षम्य ,नरता-शीश-कर्तन हैं।

जहाँ इंसानियत के शत्रु ,दहशतगर्द पलते हों,
बहा मासूम का शोणित,पुलकते प्राण-तन-मन हैं।

वहाँ पर शान्ति-खुशहाली,हवा क्या बह सकेगी भी ?
विचारो हाथ धर उर पर, न मिटते दंश के व्रण हैं।

अभी भी चेत जाओ,हित तुम्हारा भी ,हमारा भी,
नहीं तो,ध्वंस के बादल,समुद्यत रक्त - वर्षण हैं।।

--डा.उमाशंकर शुक्ल'शितिकंठ'

8.4.2020
बुधवार

मनपसंद विषय लेखन
शीर्षक -देशहित
विधा -मुक्तक

देशहित

(1)
#देशहित हर बात हो,आग़ाज़ हो हर काम का
हर काम हो बस देशहित,
अंजाम भी सब काम का
व्यक्ति का उत्कर्ष भी,है देशहित में ही छुपा
देशहित संकल्प हो,संदेश हर पैग़ाम का ।।

(2)
हम अपने प्राण-पण से,हर घड़ी संकल्प लें अब देशहित
हो अपना देश उन्नत और हो उद्देश्य भी सब देशहित
सबक यह एकता का हर घड़ी दोहराएँगे हम सब
हमारा देश सर्वोपरि हमारे काम हों सब देशहित ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘


दिनांक -8/4/2020
विषय- हनुमान जयंती

जय हनुमान गुणों की खान
रखते हो भक्तों की शान।
तुम तो हो अतुलित बलशाली
तेरे दर से न जाए कोई खाली ।
कोई कार्य न ऐसा होता
जो तुमसे न पूरण होता ।
सबके तुमने काज सवारे
बडे़ -बडे़ आए तेरे द्वारे ।
हम तो हैं तुम्हरे ही दासा
सब विपदाओं का करो तुम नाशा ।
तुमको भजे राम को पाता
जुड़ जाता है दोहरा नाता ।
कलयुग के तुम देव अधारा
सुमिरि -सुमिरि नर उतरहिं पारा ।
तुमने ही गढ़ लंका जारा
सिया मातु को दिया सहारा।
तुम ही तो संजीवनि लाए
लक्ष्मण जी के प्राण बचाए ।
आज पड़ा संकट हम सब पर
तुम बिन उससे कौन बचाए ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय

दिनांक ८/४/२०२०

हनुमान जयंती

राम काज को जन्म लिये
किये जगत में बड़े काम
सीता की सुध लाये
किये राम पर उपकार।

स्वर्ण नगरी लंका में
क्षण में लगाई आग
संजीवनी बूटी उखाड़ लाये
लक्ष्मन के बचाये प्राण
देने को अपनी भक्ति परीक्षा
चीर दिये तुम सीना

देखा तब जग ने
सीया राम थे बिराजमान।
राम ने दिया उन्हें
भक्त शिरोमणि नाम।

हम है आपके भरोसे,
पार लगाओ भगवान।
अब तक तो पार लगाओ
आगे भी पार लगाओ
बड़ी आस लेकर आई प्रभु
कर दो बेड़ा पार।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।


जिंदगी मेरी किताब-सी है।

एक रोज कहानी जुड़ रही

जहाँ-जहाँ दिशाएं मुड़ रही।
काँटे अधिक है हर राह पर
फिर भी वह निरंतर उड़ रही।
छूने को फिर एक अध्याय
पाने को निज एक पर्याय
करती कर्म बेहिसाब-सी है
जिंदगी मेरी किताब- सी है।

मधुमास अभी तो आया है
क्यों विराट जग पर छाया है?
क्या नई अनुभूति भरने को?
संदेशा कोई लाया है?
मैं क्या जानूँ,यह जग जाने
मैं कहूँ न,मुझको पहचाने
ढ़के हुए जग के मुखड़े पर
अब तो बस एक नकाब-सी है
जिंदगी मेरी किताब- सी है।

यदि चाहते हो? फिर जान लो
मुझे निज शब्दों में छान लो!
मैं हूँ इक उपासक काव्य का
मुझको कथा-प्रेमी मान लो।
मुझे मान लो तुम छंदकार
मुझे जान लो तुम गीतकार
मैं हूँ इक कहानीकार भी
मैं हूँ इक प्रेम आधार भी
कारण इन्हीं अनुभवों के
हँसती - खेलती जिंदगी यह
हुकूमत करते नवाब-सी है।
जिंदगी मेरी किताब-सी है।।

~ परमार प्रकाश
विषय: स्वतंत्र लेखन (लघुकथा)
दिनांक: 08/04/2020





बात उस समय की है जब मैं अपने दोस्तों के साथ शिमला घूमने गया था। इसी दौरान मेरे पास फोन आया कि "शिवम, तेरी अम्मा शहर के सरकारी अस्पताल में है" इतना सुन मेरे पैरों तले से जमीन निकल गयी।

मैं इसी शाम घर के लिए निकल पड़ा। मैं सीधा अस्तपताल पहुंचा माँ के वार्ड में। तब माँ को ठीक हालत में देखकर मेरे सांस में सांस आया।

मैंने कहा, " माँ अपना ध्यान रखा कर"

मेरी बुजुर्ग माँ बोली, "बेटा मेरी बात सुन, जितना ध्यान रखना था हम रख चुके अब आपकी बारी है ध्यान रखने की"

मतलब? मैंने माँ से पूछा।

बेटा जिस प्रकार तु बचपन मे अपना ध्यान रखने के लायक नहीं था तब मैंने तुम्हारा ध्यान रखा और आज मैं अपना ध्यान रखने लायक नही हूँ तो तुम्हारा भी फर्ज बनता है कि मेरा ध्यान रखे।

मैं मेरी माँ की कही बात से काफी प्रभावित हुआ और निर्णय लिया कि कभी माँ से अलग नहीं होऊंगा, उनका ध्यान हमेशा रखूंगा ।

लेखक कथन

ये सीख केवल मेरी माँ की ही नही बल्कि पूरे बुजुर्ग समाज की सीख है।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा

८.४.२०२०
विषय -- मन पसंद

******************
मारूत नंदन करूं मैं बंदन,
प्रभु मेरे आप पधारो आज,
निवेदन कर लो आप स्वीकार।

दीन ,दुखी हम सब हैं यहां ,
विपदा आन पड़ी है आज,
महाबली कर जोड़े संसार।

लक्ष्मण को दिया प्राण दान ,
संजीवनी बूटी की आन पड़ी ,
फिर पर्वत लाओ उखाड़ ।

आज है लंका पूरा भारत,
एक दशानन कोरोना मारत,
रक्षा करो राम दूत हनुमान।
**********************
स्वरचित -- निवेदिता श्रीवास्तव
8/04/2020::बुधवार
हनुमान जयंती


सहज मन, नमन करो हनुमान।
पवन पुत्र अंजनि कै लाला, सकल गुणन की खान।
समझहिं कंद मूल सूरज कै, खाय लियो अनजान।
बलशाली हनुमान कहाते, बालक इक नादान
लालहिं चोला बहुत सुहावै, मनभावन परिधान।
सेवक बनकर राम लला कै, चरण शरण स्थान।
चुटकी भर सिंदूर देखि जब, पूछत प्रश्न सुजान।
काहे धरौ यह माथ बतावौ, सीसहिं नवल विहान।
कहत सिया हँसि कै सुत मोरे, भावै कृपा निधान ।
पोत लियो फिर सकल सरीरा, नाचें मगन महान।
जन्मदिवस है आजु तुम्हारा, कुल जग के अभिमान।।
करि जोड़ै करती है रजनी, हिय से अब गुणगान।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

















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