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ब्लॉग संख्या :-709
विषय - प्यास/प्यासा
प्रथम प्रस्तुति
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
इश्क तो ये प्यासा था प्यासा रहा
इक दिलासा सी थी दिलासा रहा ।।
इक बार तो मुड़ कर के आता वक्त
मै बदकिस्मती का नवासा रहा ।।
वक्त ने भी ऐसी करवट ली की
ताउम्र मिलन को रुआंसा रहा ।।
सोचा अब आएगी बहार मगर
इससे मानो दूर का नाता रहा ।।
पपीहे से पूछा क्या पाप तिरा
बरसात में प्यासा खासा रहा ।।
चकोर की तरह देखता ही रहा
मेरे हिस्से का सुख जाता रहा ।।
युँ तो हुस्न की गली से रोज गुजरा
पर दिल को वही हुस्न भाता रहा ।।
कहने को आज गज़ल बनाता हूँ
गज़ल उसी दिन से बनाता रहा ।।
दीदार की प्यास भी क्या प्यास है
निराधार खुशी में नहाता रहा ।।
क्या करता 'शिवम' गम भी कम न थे
यूँ समझो गम को मिटाता रहा ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 14/04/2020
प्रथम प्रस्तुति
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
इश्क तो ये प्यासा था प्यासा रहा
इक दिलासा सी थी दिलासा रहा ।।
इक बार तो मुड़ कर के आता वक्त
मै बदकिस्मती का नवासा रहा ।।
वक्त ने भी ऐसी करवट ली की
ताउम्र मिलन को रुआंसा रहा ।।
सोचा अब आएगी बहार मगर
इससे मानो दूर का नाता रहा ।।
पपीहे से पूछा क्या पाप तिरा
बरसात में प्यासा खासा रहा ।।
चकोर की तरह देखता ही रहा
मेरे हिस्से का सुख जाता रहा ।।
युँ तो हुस्न की गली से रोज गुजरा
पर दिल को वही हुस्न भाता रहा ।।
कहने को आज गज़ल बनाता हूँ
गज़ल उसी दिन से बनाता रहा ।।
दीदार की प्यास भी क्या प्यास है
निराधार खुशी में नहाता रहा ।।
क्या करता 'शिवम' गम भी कम न थे
यूँ समझो गम को मिटाता रहा ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 14/04/2020
विषय प्यास,प्यासे
विधा काव्य
14 नवम्बर 2020,मंगलवार
सकल जगत प्रेम का प्यासा
प्रेम नहीं तो क्या जीवन में?
दिव्य प्रेम आकर्षण दुनियां
स्नेह नीर से बहार उपवन में।
हम सब प्यासे दिव्य ज्ञान के
सकल प्रकृति हमें ज्ञान देती।
हर पीड़ा और विपदा जग में
ज्ञान रश्मियां संकट हर लेती।
मात पिता गुरु अतुल स्नेह से
हर मनुज रहै जीवन प्यासा।
भक्ति भाव में भक्त विव्हलित
प्रभु निवासित हिय में वासा।
प्यासी प्रकृति प्यासा जीवन
प्यास कभी जग मिटती नहीं।
प्यासे जग में पिपासु सारे हैं
जीवन संतोषी ,होता है सही ।
कर्म वीर की प्यास न बुझती
जीवन भर अनवरत जागना।
प्यासे बनकर करें काम नित
तृप्ति की तब बने सम्भावना।
प्यासा आता प्यासा जाता है
प्यास बुझाता बुझती नहीं है।
मरु मरीचिका नित तृष्णा रत
चाहत है जो रूकती नहीं है।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
14 नवम्बर 2020,मंगलवार
सकल जगत प्रेम का प्यासा
प्रेम नहीं तो क्या जीवन में?
दिव्य प्रेम आकर्षण दुनियां
स्नेह नीर से बहार उपवन में।
हम सब प्यासे दिव्य ज्ञान के
सकल प्रकृति हमें ज्ञान देती।
हर पीड़ा और विपदा जग में
ज्ञान रश्मियां संकट हर लेती।
मात पिता गुरु अतुल स्नेह से
हर मनुज रहै जीवन प्यासा।
भक्ति भाव में भक्त विव्हलित
प्रभु निवासित हिय में वासा।
प्यासी प्रकृति प्यासा जीवन
प्यास कभी जग मिटती नहीं।
प्यासे जग में पिपासु सारे हैं
जीवन संतोषी ,होता है सही ।
कर्म वीर की प्यास न बुझती
जीवन भर अनवरत जागना।
प्यासे बनकर करें काम नित
तृप्ति की तब बने सम्भावना।
प्यासा आता प्यासा जाता है
प्यास बुझाता बुझती नहीं है।
मरु मरीचिका नित तृष्णा रत
चाहत है जो रूकती नहीं है।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक 14।4।2020 दिन मंगलवार
विषय प्यास।प्यासा
मानव की प्यास
मानव ! तेरी प्यास ने, बहुत लगा दी आग।
सकल धरा बेहाल हैं, फिर भी खत्म न माँग।।
तेरी उच्चाकांक्षा, प्रकृति हुई मजबूर।
दंड दे रही भोग का,चोट बनी नासूर।।
ग्रह-नक्षत्र बस में किए,पर है बेबस आज।
निकल रही सब हेकड़ी,फिरे बना सरताज।।
अवसर तुझको दे रही,प्रकृति कहे कुछ मौन।
संभल अभी भी समय है, वरना रहेगा कौन।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
विषय प्यास।प्यासा
मानव की प्यास
मानव ! तेरी प्यास ने, बहुत लगा दी आग।
सकल धरा बेहाल हैं, फिर भी खत्म न माँग।।
तेरी उच्चाकांक्षा, प्रकृति हुई मजबूर।
दंड दे रही भोग का,चोट बनी नासूर।।
ग्रह-नक्षत्र बस में किए,पर है बेबस आज।
निकल रही सब हेकड़ी,फिरे बना सरताज।।
अवसर तुझको दे रही,प्रकृति कहे कुछ मौन।
संभल अभी भी समय है, वरना रहेगा कौन।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
""'''प्रेम की ज्योति जब जले, न बुझे मन की प्यास।
हरपल मिलने की बतिया और देखन की प्यास।।।।
अधीर हो जाता मन बढ़ जाती नैनों की प्यास।।।।
प्यासे रहते दोनो जितनी होती दूरियां
फिर मिलन की प्यास।
खत में लिख्ते एक दूजे के जज़्बात ।
खत से जी भरता नहीं अब चाहिये एक दूजे का साथ ।
माँ ने पकड लिया खत प्रेम भरा पहुँची पिता तक बात ।
जकड़ लिया बंधन मे न होगी अब तुमसे बात ।
मन तडफा तन तडफा विरहन भरी रात और साथ।
व्याही गई नव गंठबंधन में दूजे के हाथों
तडफ रहा था वो दो प्यासे थे नैना
अब बीतेगी सारी उमर तेरे बिन सजनिया।
अधूरे अधूरे से दो दिल प्यासे प्यासे रह गये ओ विरहनियां।""""
हरपल मिलने की बतिया और देखन की प्यास।।।।
अधीर हो जाता मन बढ़ जाती नैनों की प्यास।।।।
प्यासे रहते दोनो जितनी होती दूरियां
फिर मिलन की प्यास।
खत में लिख्ते एक दूजे के जज़्बात ।
खत से जी भरता नहीं अब चाहिये एक दूजे का साथ ।
माँ ने पकड लिया खत प्रेम भरा पहुँची पिता तक बात ।
जकड़ लिया बंधन मे न होगी अब तुमसे बात ।
मन तडफा तन तडफा विरहन भरी रात और साथ।
व्याही गई नव गंठबंधन में दूजे के हाथों
तडफ रहा था वो दो प्यासे थे नैना
अब बीतेगी सारी उमर तेरे बिन सजनिया।
अधूरे अधूरे से दो दिल प्यासे प्यासे रह गये ओ विरहनियां।""""
14/4/2020/मंगलवार
*प्यास /प्यासा*
काव्य
प्यास प्रेम प्रीत की
प्यास मनो रीति की
प्यास लालसा कामना,
प्यास सिर्फ़ जीत की।
प्यास मनोकांक्षा
प्यास मेरी महत्त्वाकांक्षा।
प्यास कब बुझ सकी
प्यास बड़ी आकांक्षा।
मृगतृष्णा ही प्यास है।
मानव बहुत उदास है।
फंसा इसी उधेड़बुन में,
ये वासनाओं का दास है।
प्रीत आपसी बढ़ती रहे,
प्रेम प्यास कभी पूरी न हो।
घटें ये वैर भाव दूरियां,
प्रेम सरिता कभी अधूरी न हो।
जीव का जीव से लगाव हो।
मानवीयता से सभी का जुड़ाव हो।
वासनाओं कामनाऐं भले न रहें,
मगर प्रेम से मनमुटाव न हो।
प्यासा रहे प्रेमी प्रेम से
इच्छाऐं सदा बलवती रहें।
जीवन जिऐं इसी में डूबकर,
प्रेमी कामनाएं बलवती रहें।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*प्यास /प्यासा*काव्य
14/4/2020/मंगलवार
*प्यास /प्यासा*
काव्य
प्यास प्रेम प्रीत की
प्यास मनो रीति की
प्यास लालसा कामना,
प्यास सिर्फ़ जीत की।
प्यास मनोकांक्षा
प्यास मेरी महत्त्वाकांक्षा।
प्यास कब बुझ सकी
प्यास बड़ी आकांक्षा।
मृगतृष्णा ही प्यास है।
मानव बहुत उदास है।
फंसा इसी उधेड़बुन में,
ये वासनाओं का दास है।
प्रीत आपसी बढ़ती रहे,
प्रेम प्यास कभी पूरी न हो।
घटें ये वैर भाव दूरियां,
प्रेम सरिता कभी अधूरी न हो।
जीव का जीव से लगाव हो।
मानवीयता से सभी का जुड़ाव हो।
वासनाओं कामनाऐं भले न रहें,
मगर प्रेम से मनमुटाव न हो।
प्यासा रहे प्रेमी प्रेम से
इच्छाऐं सदा बलवती रहें।
जीवन जिऐं इसी में डूबकर,
प्रेमी कामनाएं बलवती रहें।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*प्यास /प्यासा*काव्य
14/4/2020/मंगलवार
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया। कुछ और खास है बाकी ?
इक उम्र हुई तुमको । देखा नही इन आखो ने ।
नजरो मे नुमाया हो । फिर तलाश है क्या बाकी ?
दिल कयूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी?
चले आए तो हो महफिल मे । देखा नही मुडकर भी ।
तेरे दिल मे सितमगर । कोई फांस है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ?
वो एक वक्त तेरा था । और ये एक वक्त मेरा है ।
मुझे अब भी मुहब्बत है । तु उदास है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया । कुछ और खास है बाकी ?
विपिन सोहल
पी लिया आग का दरिया। कुछ और खास है बाकी ?
इक उम्र हुई तुमको । देखा नही इन आखो ने ।
नजरो मे नुमाया हो । फिर तलाश है क्या बाकी ?
दिल कयूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी?
चले आए तो हो महफिल मे । देखा नही मुडकर भी ।
तेरे दिल मे सितमगर । कोई फांस है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ?
वो एक वक्त तेरा था । और ये एक वक्त मेरा है ।
मुझे अब भी मुहब्बत है । तु उदास है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया । कुछ और खास है बाकी ?
विपिन सोहल
14,4,2020
मंगलवार
विषय, प्यास, प्यासा
उर में रहती प्यास, रहे शिकवा होठों में।
रूठ रही बेबात , सजन बैठे कोसों में ।।
बिगड़ रहे हालात, जीव का मुश्किल रहना।
उसे बुला लें पास , एक ही रहता सपना ।।
दुनियाँ एक सराय, नहीं मन माफिक मिलना।
मन पंछी घबराय , प्यास का तय है बढ़ना।।
बाँधी पिय से डोर,आस को जीवित रखना।
आयेगा संदेश , कभी तो मिलेंगे सजना।।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .
मंगलवार
विषय, प्यास, प्यासा
उर में रहती प्यास, रहे शिकवा होठों में।
रूठ रही बेबात , सजन बैठे कोसों में ।।
बिगड़ रहे हालात, जीव का मुश्किल रहना।
उसे बुला लें पास , एक ही रहता सपना ।।
दुनियाँ एक सराय, नहीं मन माफिक मिलना।
मन पंछी घबराय , प्यास का तय है बढ़ना।।
बाँधी पिय से डोर,आस को जीवित रखना।
आयेगा संदेश , कभी तो मिलेंगे सजना।।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .
दिनांक-14/03/2020
विषय- प्यास
दोनों का स्पर्श था मधुर
प्रज्वलित बादलो की श्रृंखला थी विकट।
रतिक्रिया में थे दोनों व्यस्त
मिलन की उष्मा आलिंगन थी निकट।।
मंजुल का आकर्षण था
उष्णता का था वह भाप।
आग्नेय का प्रतिवेश था
घनघोर दोनों का प्रेम प्रलाप।।
बूंद तो प्यासी स्वयं भी थी
तृप्ति कर रही थी हुक को।
मादक मन मदमस्त था
तृप्ति कर रही थी भूख को।।
नदी थी गहरी, गहरा सागर
अग्नि गई थी बुझ।
आलिंगन में झूम रहा था
प्रेम पुरुष का पुष्प।।
स्त्री भी जल रही थी
जलन की सुषमा रंगीन थाप ।
एक असिंचित पीड़ा थी
सांद्र मादकता का भीषण ताप।
द्वय हृदय थे, एक थी धड़कन
नेह का सागर ,नयनो का प्यास।
वेदना के स्वर् बधिर थे
विरह का तक्षण था उदास।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय- प्यास
दोनों का स्पर्श था मधुर
प्रज्वलित बादलो की श्रृंखला थी विकट।
रतिक्रिया में थे दोनों व्यस्त
मिलन की उष्मा आलिंगन थी निकट।।
मंजुल का आकर्षण था
उष्णता का था वह भाप।
आग्नेय का प्रतिवेश था
घनघोर दोनों का प्रेम प्रलाप।।
बूंद तो प्यासी स्वयं भी थी
तृप्ति कर रही थी हुक को।
मादक मन मदमस्त था
तृप्ति कर रही थी भूख को।।
नदी थी गहरी, गहरा सागर
अग्नि गई थी बुझ।
आलिंगन में झूम रहा था
प्रेम पुरुष का पुष्प।।
स्त्री भी जल रही थी
जलन की सुषमा रंगीन थाप ।
एक असिंचित पीड़ा थी
सांद्र मादकता का भीषण ताप।
द्वय हृदय थे, एक थी धड़कन
नेह का सागर ,नयनो का प्यास।
वेदना के स्वर् बधिर थे
विरह का तक्षण था उदास।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
शीर्षक- प्यास
सादर मंच को समर्पित -
🌺 🌻 गीत 🌻🌺
*********************
🌺 प्यास 🌺
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
सोंधी-सोंधी याद तुम्हारी ,
रह- रह कर तड़पा जाती है ।
बीते पल लम्हों की खुशुबू ,
जिय को फिर मचला जाती है।।
तुम आये तो नेहा जागा ,
कोमल मन में प्रीति समाई ।
अंकुर प्यारा जब उग आया ,
दिल ने बरबस ली अँगड़ाई ।।
बातों का फिर चला सिलसिला ,
लगा, वक्त सरपट भागा था ।
सूरज जाने कब ढल जाता ,
रात चाँदनी सब त्यागा था ।।
प्यासी आँख न आये निंदिया ,
बस सावन बरसा जाती है ।
बीते पल लम्हों की खुशुबू ,
जिय को फिर मचला जाती है ।।
जाने क्या था उन नैनों में ,
मन का पंछी डूब गया था ।
कैसा भोला अपनापन था ,
हक से दिल को लूट गया था ।।
पर दुनिया को रास न आया ,
पावन, निश्छल मिलन,सहारा ।
चंद खोखली जिद ने घोंटा ,
अरमानों का गला हमारा ।।
क्या गुजरी थी दुखते रग पर ,
तड़ित बली दहला जाती है ।
बीते पल लम्हों की खुशुबू ,
जिय को फिर मचला जाती है ।।
🌹🍀🌸🌷
🌻🍀🌹**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🌺 🌻 गीत 🌻🌺
*********************
🌺 प्यास 🌺
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
सोंधी-सोंधी याद तुम्हारी ,
रह- रह कर तड़पा जाती है ।
बीते पल लम्हों की खुशुबू ,
जिय को फिर मचला जाती है।।
तुम आये तो नेहा जागा ,
कोमल मन में प्रीति समाई ।
अंकुर प्यारा जब उग आया ,
दिल ने बरबस ली अँगड़ाई ।।
बातों का फिर चला सिलसिला ,
लगा, वक्त सरपट भागा था ।
सूरज जाने कब ढल जाता ,
रात चाँदनी सब त्यागा था ।।
प्यासी आँख न आये निंदिया ,
बस सावन बरसा जाती है ।
बीते पल लम्हों की खुशुबू ,
जिय को फिर मचला जाती है ।।
जाने क्या था उन नैनों में ,
मन का पंछी डूब गया था ।
कैसा भोला अपनापन था ,
हक से दिल को लूट गया था ।।
पर दुनिया को रास न आया ,
पावन, निश्छल मिलन,सहारा ।
चंद खोखली जिद ने घोंटा ,
अरमानों का गला हमारा ।।
क्या गुजरी थी दुखते रग पर ,
तड़ित बली दहला जाती है ।
बीते पल लम्हों की खुशुबू ,
जिय को फिर मचला जाती है ।।
🌹🍀🌸🌷
🌻🍀🌹**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय : प्यास
विधा : कविता
तिथि : 14.4.2020
प्यास
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ज्ञान का सागर, अतल और अनंत
ज्ञान - पिपासा भी है अतुल बेअंत,
असमाप्य सागर, असमाप्य भंडार
कितना पिऊं,कैसे पिऊं,बड़ा दंग।
जितना भी पिऊं, बड़ जाती प्यास
थोड़ा और पी लूं तो मिटा लूं आस,
न मिटती प्यास, न ही मिटती आस
पूरा जीवन भी, हो जाएग कम।
अपार क्षेत्र हैं ज्ञान के ----
अध्यात्म,साहित्य,विज्ञान और धर्म
और भी कई, समझाते हैं सब मर्म
कठिन बड़े, लौह चने चबवाते दंत।
पर मेरी सामर्थ्य की अयोग्यता
बड़ाए प्यास, पा लूं मैं योग्यता
बुझाने को यह अनंत प्यास-
दिल दिमाग मे चलती रहती जंग।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 14.4.2020
प्यास
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ज्ञान का सागर, अतल और अनंत
ज्ञान - पिपासा भी है अतुल बेअंत,
असमाप्य सागर, असमाप्य भंडार
कितना पिऊं,कैसे पिऊं,बड़ा दंग।
जितना भी पिऊं, बड़ जाती प्यास
थोड़ा और पी लूं तो मिटा लूं आस,
न मिटती प्यास, न ही मिटती आस
पूरा जीवन भी, हो जाएग कम।
अपार क्षेत्र हैं ज्ञान के ----
अध्यात्म,साहित्य,विज्ञान और धर्म
और भी कई, समझाते हैं सब मर्म
कठिन बड़े, लौह चने चबवाते दंत।
पर मेरी सामर्थ्य की अयोग्यता
बड़ाए प्यास, पा लूं मैं योग्यता
बुझाने को यह अनंत प्यास-
दिल दिमाग मे चलती रहती जंग।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
14/04/2020
विषय- प्यासा/प्यास
है
प्यासा
मानव
ललचाता
पूर्ण जीवन
कनक ढूंढता
इह लीला को प्राप्त।1।
ये
नैत्र
सुखद
निहारता
ईश चरण
संपूर्ण जीवन
फिर अधूरी प्यास।2।
विषय- प्यासा/प्यास
है
प्यासा
मानव
ललचाता
पूर्ण जीवन
कनक ढूंढता
इह लीला को प्राप्त।1।
ये
नैत्र
सुखद
निहारता
ईश चरण
संपूर्ण जीवन
फिर अधूरी प्यास।2।
विषय-प्यास/प्यासा
विधा-स्वतंत्र
मृगमरीचिका से जीवन की प्यास
कभी ना होगी पूरी ये आस
धरती दोहन वन का दोहन
रीती पड़ी नदियों का दोहन
यह मन मुआ ऐसा,,,,
कि बुझती नहीं प्यास।
विलासिता पूर्ण जीवन
निशि दिन नींद हरता है
जो है निकट वह पूर्ण नहीं
कामनाएं अति करता है
यह मन मुआ ऐसा,,,,
कि बुझती नहीं प्यास।
विधा-स्वतंत्र
मृगमरीचिका से जीवन की प्यास
कभी ना होगी पूरी ये आस
धरती दोहन वन का दोहन
रीती पड़ी नदियों का दोहन
यह मन मुआ ऐसा,,,,
कि बुझती नहीं प्यास।
विलासिता पूर्ण जीवन
निशि दिन नींद हरता है
जो है निकट वह पूर्ण नहीं
कामनाएं अति करता है
यह मन मुआ ऐसा,,,,
कि बुझती नहीं प्यास।
14/4/2020
बिषय, प्यास, प्यासा
अधूरी रही मेरे दिल की आस
बुझा ना सकी तमन्नाओं की प्यास
प्यासी हैं अंखियां मन भी प्यासा
दिनों दिन बढ़ती जाए पिपासा
नयन भी थक गए राह देखते
बैचनियों ने घेर लिया सोचते सोचते
इतने तो वो निर्दयी नहीं
क्या सताने के लिए केवल हमीं थे
जाने कितने पापियों को तारा है तुमने
शबरी अजामिल को पार उतारा है तुमने
अब मेरी वारी तो कहाँ छिप गए हो
बावरी हो गई मैं नहीं दिख रहे हो
मुझ जैसे अधम को जो पार न लगाओगे
तो दीनदयाल भी नहीं कहलाओगे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
बिषय, प्यास, प्यासा
अधूरी रही मेरे दिल की आस
बुझा ना सकी तमन्नाओं की प्यास
प्यासी हैं अंखियां मन भी प्यासा
दिनों दिन बढ़ती जाए पिपासा
नयन भी थक गए राह देखते
बैचनियों ने घेर लिया सोचते सोचते
इतने तो वो निर्दयी नहीं
क्या सताने के लिए केवल हमीं थे
जाने कितने पापियों को तारा है तुमने
शबरी अजामिल को पार उतारा है तुमने
अब मेरी वारी तो कहाँ छिप गए हो
बावरी हो गई मैं नहीं दिख रहे हो
मुझ जैसे अधम को जो पार न लगाओगे
तो दीनदयाल भी नहीं कहलाओगे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
विषय -प्यास/प्यासा
मंगल/14.4.2020
विधा --मुक्तक
1.
अपनी प्यास बुझाई हमने, पर धरती को भूल गए।
इसीलिए धरती के काँधे ,अनचाहे ही झूल गए।
प्यास केवल हमको न लगती,धरती को भी प्यास लगे--
धरती प्यासी अगर रही तो,समझो सभी समूल गए।
2.
प्यासी धरती प्यासा लोक, समय चूक पछताते लोग ।
हरे भरे पेड़ों की दुनियाँ अचरज क्यों न बसाते लोग ।
जंगल सब वीरान कर दिए,काट काट बना डाले ठूंठ---
यों पड़ोस का मटका खाली,आँगन को नहलाते लोग।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
मंगल/14.4.2020
विधा --मुक्तक
1.
अपनी प्यास बुझाई हमने, पर धरती को भूल गए।
इसीलिए धरती के काँधे ,अनचाहे ही झूल गए।
प्यास केवल हमको न लगती,धरती को भी प्यास लगे--
धरती प्यासी अगर रही तो,समझो सभी समूल गए।
2.
प्यासी धरती प्यासा लोक, समय चूक पछताते लोग ।
हरे भरे पेड़ों की दुनियाँ अचरज क्यों न बसाते लोग ।
जंगल सब वीरान कर दिए,काट काट बना डाले ठूंठ---
यों पड़ोस का मटका खाली,आँगन को नहलाते लोग।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक-14-4-2020
विषय-प्यास/प्यासा
शुष्क होष्ठ
सांस है अटकी
गर्मी से बेहाल
भाल पर श्रमजल छलके
तपती दुपहरी में
कतार में खड़ी एक नार
पानी की आस लगाए
सिर पर मटकी उठाये
गर्म रेत जलते चूल्हे की
आग सी लगे
लू के थपेड़े
बदन पर अंगार से लगें
कहाँ है पानी
कैसे जग की प्यास बुझे?
सूखी धरती,सूखे नयन
उजड़े पड़े हैं बस्ती कानन
स्वार्थ में लिप्त हुए सभी हैं
धरती की पुकार कौन सुने?
'जल ही जीवन है
जल है तो कल है
जल अमृत है'
ये बस हैं ज़ुबानी चर्चे
कागज़ी कार्यवाही में
कुआँ,नहर हैंडपंप सब दिखे
जन की प्यासी रूह
अब अनगिन परतों से झाँके
चेत जाओ बंधुओ!
अभी भी समय है
पुरखों का ऋण चुकाने का
यही उचित समय है
अपने वारिसों को
कुछ तो छोड़ के जाओगे
या इस पावन वसुंधरा को
शुष्क,शापित कुपित छोड़ जाओगे?
इतना
कि उसकी आत्मा भी
इंसान की तरह दर दर भटके..!!
**वंदना सोलंकी**,©स्वरचित
विषय-प्यास/प्यासा
शुष्क होष्ठ
सांस है अटकी
गर्मी से बेहाल
भाल पर श्रमजल छलके
तपती दुपहरी में
कतार में खड़ी एक नार
पानी की आस लगाए
सिर पर मटकी उठाये
गर्म रेत जलते चूल्हे की
आग सी लगे
लू के थपेड़े
बदन पर अंगार से लगें
कहाँ है पानी
कैसे जग की प्यास बुझे?
सूखी धरती,सूखे नयन
उजड़े पड़े हैं बस्ती कानन
स्वार्थ में लिप्त हुए सभी हैं
धरती की पुकार कौन सुने?
'जल ही जीवन है
जल है तो कल है
जल अमृत है'
ये बस हैं ज़ुबानी चर्चे
कागज़ी कार्यवाही में
कुआँ,नहर हैंडपंप सब दिखे
जन की प्यासी रूह
अब अनगिन परतों से झाँके
चेत जाओ बंधुओ!
अभी भी समय है
पुरखों का ऋण चुकाने का
यही उचित समय है
अपने वारिसों को
कुछ तो छोड़ के जाओगे
या इस पावन वसुंधरा को
शुष्क,शापित कुपित छोड़ जाओगे?
इतना
कि उसकी आत्मा भी
इंसान की तरह दर दर भटके..!!
**वंदना सोलंकी**,©स्वरचित
दिनांक 14-04-2020
विषय- प्यास
जिंदगी गुजर जाती है यूं,
प्यास के बोझिल साए में।
नेह ढूंढे फिरता है दिल,
अपनों में और पराए में।
बुझी न प्यास मेरे मन की,
समझौते खुद से किए मैंने।
प्यास बुझाई अंसुवन से,
जो घुट घुट कर पिए मैंने।
सफर मेरा प्यासा आकुल,
प्यासा सावन मधुमास रहा ।
प्यासे अरमां प्यासी रूह में
टूटी डोर सा विश्वास रहा।
बिखरी बोझिल रही जिंदगी,
हुई एकाकी तब सुध आई।
प्यास तो नीर बुझा ही लेता
प्यार की प्यास न बुझ पाई।
तन्हा तन्हा खंडित ये मन,
बारहमासा ही तृषित रहा।
जज्बातों के दरिया में यह,
स्नेहधारा से विस्मृत रहा।
प्यासी डगर सूनी ज़िन्दगी,
नामुराद नुमाइश सी हो गई ।
कहां प्यार मिलता है सबको,
जीने की ख्वाहिश सी हो गई।
कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय- प्यास
जिंदगी गुजर जाती है यूं,
प्यास के बोझिल साए में।
नेह ढूंढे फिरता है दिल,
अपनों में और पराए में।
बुझी न प्यास मेरे मन की,
समझौते खुद से किए मैंने।
प्यास बुझाई अंसुवन से,
जो घुट घुट कर पिए मैंने।
सफर मेरा प्यासा आकुल,
प्यासा सावन मधुमास रहा ।
प्यासे अरमां प्यासी रूह में
टूटी डोर सा विश्वास रहा।
बिखरी बोझिल रही जिंदगी,
हुई एकाकी तब सुध आई।
प्यास तो नीर बुझा ही लेता
प्यार की प्यास न बुझ पाई।
तन्हा तन्हा खंडित ये मन,
बारहमासा ही तृषित रहा।
जज्बातों के दरिया में यह,
स्नेहधारा से विस्मृत रहा।
प्यासी डगर सूनी ज़िन्दगी,
नामुराद नुमाइश सी हो गई ।
कहां प्यार मिलता है सबको,
जीने की ख्वाहिश सी हो गई।
कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली
दिनांक 14 अप्रैल 2020
विषय प्यास / प्यासा
एक प्रयास मंच को समर्पित
प्रश्न उठा
पूछा कुंभकार से
माटी को
कूट कूटकर
तू नित क्यो
घडे बनाता है
कौन खरीदे अब
तकनीक युग मे
फ्रीज ही काम आता है ,
चलते चाक पर
डालकर मिट्टी का ढेर
वो अंगुलियां फिराता है
धीरे धीरे मिट्टी का गोला
कोई आकार लेता जाता है ,
प्रश्न तो प्रश्न था ठहरा
बार बार मन से टकराता है ,
तनिक देखकर मेरी ओर
कुंभकार बोला होले से
बाबुजी तुम भी तो लिखते हो
गीत कविता कहानी गढते हो
युग तो आज इनका भी बदला
टीवी म्युजिक का रंग ढला
कौन सुनता पढता तुमको
फिर भी तो तुम लिखते हो
सोचा मैने क्या दूं प्रत्युत्तर
इतने मे वो बोला होकम
ना मदिरा न शरबत काम आता है
प्यासे की प्यास पानी ही बुझाता है
कहां सुकून मिलता फ्रीज की ठंडक मे
घडा माटी से जुडा
माटी की महक दिलाता है
उसके उत्तर मे मेरा उत्तर भी शायद
शायद इसीलिए मै लिखता हूं
थका हारा लौटे मन सब ओर से
माटी की महक याद दिलाता हूं
लिखता दिल की बात हरदम
प्यासे की प्यास मै बुझाता हूं
सबके दिल को सुकून पहुंचाता हूं
सबके दिल को सुकून पहुंचाता हूं
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय प्यास / प्यासा
एक प्रयास मंच को समर्पित
प्रश्न उठा
पूछा कुंभकार से
माटी को
कूट कूटकर
तू नित क्यो
घडे बनाता है
कौन खरीदे अब
तकनीक युग मे
फ्रीज ही काम आता है ,
चलते चाक पर
डालकर मिट्टी का ढेर
वो अंगुलियां फिराता है
धीरे धीरे मिट्टी का गोला
कोई आकार लेता जाता है ,
प्रश्न तो प्रश्न था ठहरा
बार बार मन से टकराता है ,
तनिक देखकर मेरी ओर
कुंभकार बोला होले से
बाबुजी तुम भी तो लिखते हो
गीत कविता कहानी गढते हो
युग तो आज इनका भी बदला
टीवी म्युजिक का रंग ढला
कौन सुनता पढता तुमको
फिर भी तो तुम लिखते हो
सोचा मैने क्या दूं प्रत्युत्तर
इतने मे वो बोला होकम
ना मदिरा न शरबत काम आता है
प्यासे की प्यास पानी ही बुझाता है
कहां सुकून मिलता फ्रीज की ठंडक मे
घडा माटी से जुडा
माटी की महक दिलाता है
उसके उत्तर मे मेरा उत्तर भी शायद
शायद इसीलिए मै लिखता हूं
थका हारा लौटे मन सब ओर से
माटी की महक याद दिलाता हूं
लिखता दिल की बात हरदम
प्यासे की प्यास मै बुझाता हूं
सबके दिल को सुकून पहुंचाता हूं
सबके दिल को सुकून पहुंचाता हूं
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
मंगलवार/13अप्रैल/2020
विषय - प्यास/प्यासा
विधा - गीत
*********************
जल मग्न हुए जब,
नैना हमारे -
पूछा काजल भींगा -
किस देश जाऊं ....
परदेश जाऊं ....
यहाँ कोई नहीं अपना सा !!
मन मीत नहीं ....
कोई गीत नहीं ....
लागे जीवन ....
सपना सा !!
अधर तड़पे.....
प्यासा सावन ......
सागर सब लगे ......
झूठा झूठा सा !!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद-झारखंड
विषय - प्यास/प्यासा
विधा - गीत
*********************
जल मग्न हुए जब,
नैना हमारे -
पूछा काजल भींगा -
किस देश जाऊं ....
परदेश जाऊं ....
यहाँ कोई नहीं अपना सा !!
मन मीत नहीं ....
कोई गीत नहीं ....
लागे जीवन ....
सपना सा !!
अधर तड़पे.....
प्यासा सावन ......
सागर सब लगे ......
झूठा झूठा सा !!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद-झारखंड
भावों के मोती।
विषय-प्यास /प्यासास्वरचित।
प्यास जगनी चाहिए
मन में भक्ति ज्ञान की।
आस जननी चाहिए
मन में प्रभु के धाम की।।
प्यासा होकर जो पुकारो
प्रभुजी दौड़े आएंगे।
विरह में आंसू बहाओ
करुना वो दर्शाएंगे।।
प्यास और प्यासे का संबंध
जिज्ञासा भक्ति और ज्ञान से।
जितना ज्यादा मुखरित होगी
निकट होगे प्रभु के साथ से।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
14/04 /2020
विषय-प्यास /प्यासास्वरचित।
प्यास जगनी चाहिए
मन में भक्ति ज्ञान की।
आस जननी चाहिए
मन में प्रभु के धाम की।।
प्यासा होकर जो पुकारो
प्रभुजी दौड़े आएंगे।
विरह में आंसू बहाओ
करुना वो दर्शाएंगे।।
प्यास और प्यासे का संबंध
जिज्ञासा भक्ति और ज्ञान से।
जितना ज्यादा मुखरित होगी
निकट होगे प्रभु के साथ से।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
14/04 /2020
विधा -क्षणिका
विषय -प्यास/प्यासा
******************
*प्यासा *
प्यासा नीर
तड़पता है एक बूँद को
अनायास ही खोल
देता अपना मुँह
आसमान में छाये
काले बादलो को देख
जैसे इंसान दौड़ पड़ता
निहारता उसी नजर से
उपाय नही करता
नीर आसमान से
भाग्य से भरता
विषय -प्यास/प्यासा
******************
*प्यासा *
प्यासा नीर
तड़पता है एक बूँद को
अनायास ही खोल
देता अपना मुँह
आसमान में छाये
काले बादलो को देख
जैसे इंसान दौड़ पड़ता
निहारता उसी नजर से
उपाय नही करता
नीर आसमान से
भाग्य से भरता
दिनांक- 14/03/2020
विषय -प्यास/ प्यासा
तूने जो पकड़ा हाथ पिया
प्यासी आंखों को चैन मिला ।
हर्षित बेला, हर्षित उपवन ,
हर्षित हर पल का साथ पिया।
सूर्य चंद्रमा बने साक्षी ,
तारों की बारात पिया ।
अगणित मोती भर जीवन में ,
मैं तो चली तेरे साथ पिया।
हाथों में लेकर हाथ पिया
आंखों की प्यास बुझाना है ।
अधरों पर मुस्कान लिए ,
जीवन भर साथ निभाना है।
कोमल मंजुल, नूतन किसलय ,
प्रीत में रीति निभाना पिया ।
पथ का साथी बन कर के ,
हर मार्ग में दीप जलाना पिया।
जीवन के हम दो राही ,
धूप में छांव बनेंगे पिया ।
प्यासे ये दो नैना........... ,
बन बादल बरसेंगे पिया।
उम्मीदों से पकड़ा हाथ तुम्हारा,
तन्हा छोड़ न जाना पिया ।
जीवन के लंबे सफर में ..........
हमसफर बन साथ निभाना पिया।।
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
विषय -प्यास/ प्यासा
तूने जो पकड़ा हाथ पिया
प्यासी आंखों को चैन मिला ।
हर्षित बेला, हर्षित उपवन ,
हर्षित हर पल का साथ पिया।
सूर्य चंद्रमा बने साक्षी ,
तारों की बारात पिया ।
अगणित मोती भर जीवन में ,
मैं तो चली तेरे साथ पिया।
हाथों में लेकर हाथ पिया
आंखों की प्यास बुझाना है ।
अधरों पर मुस्कान लिए ,
जीवन भर साथ निभाना है।
कोमल मंजुल, नूतन किसलय ,
प्रीत में रीति निभाना पिया ।
पथ का साथी बन कर के ,
हर मार्ग में दीप जलाना पिया।
जीवन के हम दो राही ,
धूप में छांव बनेंगे पिया ।
प्यासे ये दो नैना........... ,
बन बादल बरसेंगे पिया।
उम्मीदों से पकड़ा हाथ तुम्हारा,
तन्हा छोड़ न जाना पिया ।
जीवन के लंबे सफर में ..........
हमसफर बन साथ निभाना पिया।।
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
II प्यास / प्यासा II नमन भावों के मोती....
विधा: छंद - सरसी
प्रीत जगाई कैसी कान्हा, मन मांगे चितचोर....
आँखें सारी रात न भींचूं, आस मिलन में भोर...
भूख प्यास भी मुझसे भागी, मन की एकहि रीत....
मिल जाय मुझे श्याम सांवरा, जो मेरा मनमीत....
स्याम सलोना रूप मनोहर, बिसर न पाएं नैन...
अंतस रह रह कर तड़पे है, कहीं न पाए चैन...
प्यासे मन की यही कामना, श्याम चरण हो वास...
जन्मांतर मेरी फांस कटे, मिटे जन्म की प्यास....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
विधा: छंद - सरसी
प्रीत जगाई कैसी कान्हा, मन मांगे चितचोर....
आँखें सारी रात न भींचूं, आस मिलन में भोर...
भूख प्यास भी मुझसे भागी, मन की एकहि रीत....
मिल जाय मुझे श्याम सांवरा, जो मेरा मनमीत....
स्याम सलोना रूप मनोहर, बिसर न पाएं नैन...
अंतस रह रह कर तड़पे है, कहीं न पाए चैन...
प्यासे मन की यही कामना, श्याम चरण हो वास...
जन्मांतर मेरी फांस कटे, मिटे जन्म की प्यास....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
*प्यास*
प्यास उठी
अंर्तमन के तल से
नजर में हर जगह दिखता
नीर ,उठा गले मे पीर
हलक तक सूख गया
छटपटाहट बढ़ी
हाथ बढ़ जाता बरबस
खाली घड़े को
तल तक झुका देता
मिलता एक बूंद नही
बढ़ जाती प्यास
चल देता
घुमा कर नजरो को
बंद पड़े नल की
ओर।।।।।
छबिराम यादव छबि
लोटाढ मेजा प्रयागराज
विषय : प्यास
तिथि : 14/4/2020
स्वरचित
प्यास ना लागे ना भूख ही लागे
ये मौसम जो आया बड़ा ही सतावै
साजिश या क्या , कैसे पता लगावै
विदेशी कहर ये, सभी को जलावै
आओ चलो गुइयाँ , अपनापन फैलावै
हैं हम दूर तो क्या , दिलों को मिलावै
विचारों से अपने, सभी को जगावै
अपनी कहानी को, खुद ही तो गावै
कठिन इस समय में, समझ अच्छी लावै
जो ना समझे कोई, तो उसको समझावै
जो मन हो खराब, तो खुद को बहलावै
पहन-ओढ़ कर फिर, खुद को संवारे
ना धीरज को फिर हम, कभी भी गवाएं
हराएंगे इसको, कसम ये उठावै
समझदारी दिखा, देश का मान बढ़ावै
डॉ. शिखा
तिथि : 14/4/2020
स्वरचित
प्यास ना लागे ना भूख ही लागे
ये मौसम जो आया बड़ा ही सतावै
साजिश या क्या , कैसे पता लगावै
विदेशी कहर ये, सभी को जलावै
आओ चलो गुइयाँ , अपनापन फैलावै
हैं हम दूर तो क्या , दिलों को मिलावै
विचारों से अपने, सभी को जगावै
अपनी कहानी को, खुद ही तो गावै
कठिन इस समय में, समझ अच्छी लावै
जो ना समझे कोई, तो उसको समझावै
जो मन हो खराब, तो खुद को बहलावै
पहन-ओढ़ कर फिर, खुद को संवारे
ना धीरज को फिर हम, कभी भी गवाएं
हराएंगे इसको, कसम ये उठावै
समझदारी दिखा, देश का मान बढ़ावै
डॉ. शिखा
***प्यास***
प्यास मिलने की जगी
प्रिये!कर सके ना आगमन
आँसुओं से कर रही हूँ
प्रेम का मैं आचमन
जा चुकी है राह तकते
साँझ कितनी! तुम न आये...!
जोहने को बाट केवल
दीप कितने हीं जलाये
कर रही हूँ मैं प्रतीक्षा
याद लेकर!आह लेकर
प्यार के मधुमय डगर पर
हाय! प्रियतम तुम न आये...!
याद में तेरी युगों से हैं
दृगों में मेघ छाये
जिंदगी में भूल कर भी
प्रेम की संध्या न आये
आस जीवन भर बिलखते
रह गए पर! तुम न आये...!
एक निर्मम के लिए हैं
सेज पलकों के बिछाए
स्वर मिलाने को तुम्हीं से
गीत भी कितने न गाये
प्यार की पंकिल डगर पर
हाय!निष्ठुर तुम न आये...!
स्वरचित 'पथिक रचना'
प्यास मिलने की जगी
प्रिये!कर सके ना आगमन
आँसुओं से कर रही हूँ
प्रेम का मैं आचमन
जा चुकी है राह तकते
साँझ कितनी! तुम न आये...!
जोहने को बाट केवल
दीप कितने हीं जलाये
कर रही हूँ मैं प्रतीक्षा
याद लेकर!आह लेकर
प्यार के मधुमय डगर पर
हाय! प्रियतम तुम न आये...!
याद में तेरी युगों से हैं
दृगों में मेघ छाये
जिंदगी में भूल कर भी
प्रेम की संध्या न आये
आस जीवन भर बिलखते
रह गए पर! तुम न आये...!
एक निर्मम के लिए हैं
सेज पलकों के बिछाए
स्वर मिलाने को तुम्हीं से
गीत भी कितने न गाये
प्यार की पंकिल डगर पर
हाय!निष्ठुर तुम न आये...!
स्वरचित 'पथिक रचना'
दिनांक-14/04/2020
स्वरचित कविता-
शीर्षक- "प्यास"
पाखी खुश हैं अबआसपास-
नित नए जीवन की हुलास,
करते कुलबुल, भरते उड़ान-
दाना-पानी दूं उन्हें खास.
दिनभर पीते हैं चाय गरम-
घर में रहने का निभा धरम,
लस्सी,मट्ठा,तुलसी, काढ़ा-
रहे प्यास का शेष भरम.
कितना विशाल बंगला उसका-
परिवार सिमट आया छत पर,
ध्यान धरें सब नियमों का-
बातें करते दूरी रखकर.
जीने की प्यास बड़ी सबसे-
मिलने को न कोई तरसे,
ये वक्त हुआ है सख्त बड़ा-
खिसकें दुर्दिन,नेहा बरसे.
_____
स्वरचित कविता-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
स्वरचित कविता-
शीर्षक- "प्यास"
पाखी खुश हैं अबआसपास-
नित नए जीवन की हुलास,
करते कुलबुल, भरते उड़ान-
दाना-पानी दूं उन्हें खास.
दिनभर पीते हैं चाय गरम-
घर में रहने का निभा धरम,
लस्सी,मट्ठा,तुलसी, काढ़ा-
रहे प्यास का शेष भरम.
कितना विशाल बंगला उसका-
परिवार सिमट आया छत पर,
ध्यान धरें सब नियमों का-
बातें करते दूरी रखकर.
जीने की प्यास बड़ी सबसे-
मिलने को न कोई तरसे,
ये वक्त हुआ है सख्त बड़ा-
खिसकें दुर्दिन,नेहा बरसे.
_____
स्वरचित कविता-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
दिनांक-१४/४/२०२०
शीर्षक-प्यास/प्यासा
ज्ञान की प्यास रहे सदा
जागे रहे मन विश्वास
नीरस हो जाये जिंदगी
जो टटे मन विश्वास।
है आकांक्षा यही सदा
सदैव अर्जित करूं ज्ञान
करूं आराधना आपकी
करो कृपा वाणी आज।
हो कृपा और एक प्रभु
सावन जब आये
बरसे बदरा खूब
हर्षित हो जाये धरा
प्यास बुझा जाये खुद।
जीव जंतु सभी को
सताती है प्यास
पानी के अभाव में
टूट ना जाये सांस
पानी है अमोल धन
इसे बचाये आप
प्यास बुझाये पानी
रखे इसका ध्यान
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-प्यास/प्यासा
ज्ञान की प्यास रहे सदा
जागे रहे मन विश्वास
नीरस हो जाये जिंदगी
जो टटे मन विश्वास।
है आकांक्षा यही सदा
सदैव अर्जित करूं ज्ञान
करूं आराधना आपकी
करो कृपा वाणी आज।
हो कृपा और एक प्रभु
सावन जब आये
बरसे बदरा खूब
हर्षित हो जाये धरा
प्यास बुझा जाये खुद।
जीव जंतु सभी को
सताती है प्यास
पानी के अभाव में
टूट ना जाये सांस
पानी है अमोल धन
इसे बचाये आप
प्यास बुझाये पानी
रखे इसका ध्यान
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
१४/४/२०२०
बिषय-प्यास/प्यासा
तरणी तट प्रीत का प्यासा
हिमगिरि के हदय समाहित,
प्रलय के कण-कण गहनतम,
निहित है अभिसार सीमा,
शांत,निश्चल व अडिग तुम।
जागृत स्वप्निल मीमांसा,
तरणी तट प्रीत का प्यासा।
बादलों पे जड़ित विस्मित,
उन्मुख गगन का अरुण धन,
छूटता तारों का सम्बल,
गूंज उठा है विकल मन।
झाँकूँ क्षितिज पार ज़रा सा ,
तरणी तट प्रीत का प्यासा।
अभिनव बंधन से रच मन ,
तृप्त हो नव आस सृजित,
उमड़ी सागर की लहरें,
छूकर अंतस् को गहरे।
मानिनी प्यासी अभिलाषा,
तरणी तट प्रीत का प्या
बिषय-प्यास/प्यासा
तरणी तट प्रीत का प्यासा
हिमगिरि के हदय समाहित,
प्रलय के कण-कण गहनतम,
निहित है अभिसार सीमा,
शांत,निश्चल व अडिग तुम।
जागृत स्वप्निल मीमांसा,
तरणी तट प्रीत का प्यासा।
बादलों पे जड़ित विस्मित,
उन्मुख गगन का अरुण धन,
छूटता तारों का सम्बल,
गूंज उठा है विकल मन।
झाँकूँ क्षितिज पार ज़रा सा ,
तरणी तट प्रीत का प्यासा।
अभिनव बंधन से रच मन ,
तृप्त हो नव आस सृजित,
उमड़ी सागर की लहरें,
छूकर अंतस् को गहरे।
मानिनी प्यासी अभिलाषा,
तरणी तट प्रीत का प्या
नमन् भावों के मोती
14/04/2020
विषय:-प्यास/प्यासा
विधा:हाइकु
प्यासे नयन
प्रेम में हैं बेचैन
नवयौवन
यादों में बसा
प्रियतम चुम्बन
प्यासे अधर
ज्येष्ठ मध्यान्ह
सूखे सरोवर में
मृत सियार
सन्त कथा से
तृप्त आत्मा की प्यास
प्रभु भजन
मनीष श्री
14/04/2020
विषय:-प्यास/प्यासा
विधा:हाइकु
प्यासे नयन
प्रेम में हैं बेचैन
नवयौवन
यादों में बसा
प्रियतम चुम्बन
प्यासे अधर
ज्येष्ठ मध्यान्ह
सूखे सरोवर में
मृत सियार
सन्त कथा से
तृप्त आत्मा की प्यास
प्रभु भजन
मनीष श्री
हे प्रभु तुम्हारें मैं प्रेम का हूँ प्यासा,
आ दे दो दर्श पूरी करों अभिलाषा।
हृदय से रात दिन मै करता हूँ ध्यान,
आओ प्रभु मत दो मुझको निराशा।
हे नाथ मै हूँ अज्ञानी जानूँ ना भाषा।
हे प्रभु.................................
जानूं ना सेवा तुम्हारी पूजा विधान,
हे आकर दर्श दो प्रभु कृपानिधान।
तुम ही हो मेरे मात पिता गुरु महान,
आँखें हैं प्यासी करों इनका निदान।
तुम्ही हो सामाधान तुम्ही हो हताशा।
हे प्रभु..................................
शबरी से मिलें बनके वनवासी राम,
मै भी पुकारू तुम्हें नित सुबह शाम।
आकर दे दर्शन हे प्रभु नयनाभिराम,
आकर विराजो प्रभु मन मंदिर धाम।।
मेरे मन है एक बार दर्शन की आशा।
हे प्रभु..................................
आ दे दो दर्श पूरी करों अभिलाषा।
हृदय से रात दिन मै करता हूँ ध्यान,
आओ प्रभु मत दो मुझको निराशा।
हे नाथ मै हूँ अज्ञानी जानूँ ना भाषा।
हे प्रभु.................................
जानूं ना सेवा तुम्हारी पूजा विधान,
हे आकर दर्श दो प्रभु कृपानिधान।
तुम ही हो मेरे मात पिता गुरु महान,
आँखें हैं प्यासी करों इनका निदान।
तुम्ही हो सामाधान तुम्ही हो हताशा।
हे प्रभु..................................
शबरी से मिलें बनके वनवासी राम,
मै भी पुकारू तुम्हें नित सुबह शाम।
आकर दे दर्शन हे प्रभु नयनाभिराम,
आकर विराजो प्रभु मन मंदिर धाम।।
मेरे मन है एक बार दर्शन की आशा।
हे प्रभु..................................
विषय - प्यास/प्यासा
जिंदगी भर
तड़पता है इंसान
एक प्यास लिए जीता है
और प्यासा ही मर जाता है
प्यार की प्यास
मृगतृष्णा -सी
जीवन -भर
रहती है साथ
तरसती है कभी
ममता के लिए
कभी नेह के लिए
कभी तन की प्यास
बन जाती है
तृषित अधरों की प्यास
बलवती हो जाती है
कुछ पाने की प्यास
मन भटकता है
कंदराओं में जाता है
कमंडल ले हिमालय पर
ध्यान लगाता है
पर प्यास नहीं बुझती
शिखर छूने की प्यास
दौलत की प्यास
सोने नहीं देती
लूटती सुख चैन
मन का
क्यों तृप्त नहीं होती
रह जाती है
रूह प्यासी
कभी तन की प्यास
कभी मन की प्यास
प्रभु -दर्शन की प्यास
आत्मा परमात्मा के
मिलन की प्यास
प्यास,प्यास और प्यास
प्यासा रह जाता है इंसान
पर प्यास नहीं मिटती
उफ,यह प्यास
जीने नहीं देती।
सरिता गर्ग
जिंदगी भर
तड़पता है इंसान
एक प्यास लिए जीता है
और प्यासा ही मर जाता है
प्यार की प्यास
मृगतृष्णा -सी
जीवन -भर
रहती है साथ
तरसती है कभी
ममता के लिए
कभी नेह के लिए
कभी तन की प्यास
बन जाती है
तृषित अधरों की प्यास
बलवती हो जाती है
कुछ पाने की प्यास
मन भटकता है
कंदराओं में जाता है
कमंडल ले हिमालय पर
ध्यान लगाता है
पर प्यास नहीं बुझती
शिखर छूने की प्यास
दौलत की प्यास
सोने नहीं देती
लूटती सुख चैन
मन का
क्यों तृप्त नहीं होती
रह जाती है
रूह प्यासी
कभी तन की प्यास
कभी मन की प्यास
प्रभु -दर्शन की प्यास
आत्मा परमात्मा के
मिलन की प्यास
प्यास,प्यास और प्यास
प्यासा रह जाता है इंसान
पर प्यास नहीं मिटती
उफ,यह प्यास
जीने नहीं देती।
सरिता गर्ग
तिथि-14/04/2020
विषय-प्यास
स्वरचित
'मन की प्यास'
आज मेरा दिल बहुत उदास है
ना जाने ये कैसी अनबूझ प्यास है!
मैं गगन के चन्दा से पूछती हूँ
सितारों की कतारों से पूछती हूँ
आफताब भी बेनूर लगता है
मैं तुम्हें खोजती दर बदर फिरती हूँ।
चमन के फूलों से पूछती हूँ
जर्रे जर्रे में मैं तुम्हें ढूँढती हूँ
मन को सुकून मिले, तुम हो कहाँ?
पास आ जाओ प्रिये, हो तुम जहाँ!
तुम बिन जीवन में नहीं है मधुमास
हमारा मिलन हो,करो ऐसा प्रयास
मेरे मन की प्यास बढ़ती जाती है
मेरे प्यार का क्यूं नहीं है तुम्हें अहसास!
आज मेरा दिल बहुत उदास है
ना जाने ये कैसी अनबूझ प्यास है!
अनिता निधि
जमशेदपुर
पूर्वी सिंहभूम,झारखंड
विषय-प्यास
स्वरचित
'मन की प्यास'
आज मेरा दिल बहुत उदास है
ना जाने ये कैसी अनबूझ प्यास है!
मैं गगन के चन्दा से पूछती हूँ
सितारों की कतारों से पूछती हूँ
आफताब भी बेनूर लगता है
मैं तुम्हें खोजती दर बदर फिरती हूँ।
चमन के फूलों से पूछती हूँ
जर्रे जर्रे में मैं तुम्हें ढूँढती हूँ
मन को सुकून मिले, तुम हो कहाँ?
पास आ जाओ प्रिये, हो तुम जहाँ!
तुम बिन जीवन में नहीं है मधुमास
हमारा मिलन हो,करो ऐसा प्रयास
मेरे मन की प्यास बढ़ती जाती है
मेरे प्यार का क्यूं नहीं है तुम्हें अहसास!
आज मेरा दिल बहुत उदास है
ना जाने ये कैसी अनबूझ प्यास है!
अनिता निधि
जमशेदपुर
पूर्वी सिंहभूम,झारखंड
विषय -प्यास /प्यासा
विधा-कुंडलिनी
लुढ़की जीवन गागरी, बुझी न मन की प्यास।
ज्ञान-कूप अति दूर है, बुझती मन की आस।
बुझती मन की आस, नहीं खोली मन-खिड़की।
व्यथित अंत में प्राण, देख ये गागर लुढ़की।
प्यासा राही ढूंढता , मीठा शीतल नीर।
नहीं दूर तक दीखता , छूट रहा है धीर।
छूट रहा है धीर, टूटती मन की आशा।
जल मिल जाये काश,सोचता राही प्यासा।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तत्तरप्रदेश
विधा-कुंडलिनी
लुढ़की जीवन गागरी, बुझी न मन की प्यास।
ज्ञान-कूप अति दूर है, बुझती मन की आस।
बुझती मन की आस, नहीं खोली मन-खिड़की।
व्यथित अंत में प्राण, देख ये गागर लुढ़की।
प्यासा राही ढूंढता , मीठा शीतल नीर।
नहीं दूर तक दीखता , छूट रहा है धीर।
छूट रहा है धीर, टूटती मन की आशा।
जल मिल जाये काश,सोचता राही प्यासा।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तत्तरप्रदेश
14/4/20
एक एक बूंद मिलकर
सागर बन जाती है।
गर सीप मुख खुला होता
तो मोती बन जाती है।
पपीहे के मुख में जा
पपीहे की प्यास बुझाता है।
एक एक बूंद इकठ्ठा होकर
बादल बन जल बरसाता है।
एक एक बूंद जल बन जलधारा
जग की प्यास बुझाता है।
एक एक बूंद की आशा ही तो
कृषक के मन आस जगाता है।
जो न समझे इसकी महिमा
वो नासमझी में प्यासा रह जाता है।
प्यास की आस प्यासा ही जाने
काक बन कर ही इतराता है।
स्वरचित
एक एक बूंद मिलकर
सागर बन जाती है।
गर सीप मुख खुला होता
तो मोती बन जाती है।
पपीहे के मुख में जा
पपीहे की प्यास बुझाता है।
एक एक बूंद इकठ्ठा होकर
बादल बन जल बरसाता है।
एक एक बूंद जल बन जलधारा
जग की प्यास बुझाता है।
एक एक बूंद की आशा ही तो
कृषक के मन आस जगाता है।
जो न समझे इसकी महिमा
वो नासमझी में प्यासा रह जाता है।
प्यास की आस प्यासा ही जाने
काक बन कर ही इतराता है।
स्वरचित
दिनांक- 14/4/2020
विषय- "प्यास/प्यासा"
विधा- छंदमुक्त कविता
******************
जल से ही है जीवन ,
इसे बचाना चाहिए,
प्यासे की प्यास बुझे,
सुकून मिलना चाहिए |
गांव में बहती नहरे,
कल-कल करती लहरे,
खेतों की प्यास बुझाती,
तभी तो फसलें लहराती |
प्यासा सावन जब आता,
काली बदली भी छा जाती,
धरती की प्यास देखकर,
बारिश की बूँदे गिर जाती |
प्यासा कोई न रह जाये,
जल की अहमियत बताये,
आज इसका संरक्षण होगा,
कल सबका सुरक्षित होगा |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
विषय- "प्यास/प्यासा"
विधा- छंदमुक्त कविता
******************
जल से ही है जीवन ,
इसे बचाना चाहिए,
प्यासे की प्यास बुझे,
सुकून मिलना चाहिए |
गांव में बहती नहरे,
कल-कल करती लहरे,
खेतों की प्यास बुझाती,
तभी तो फसलें लहराती |
प्यासा सावन जब आता,
काली बदली भी छा जाती,
धरती की प्यास देखकर,
बारिश की बूँदे गिर जाती |
प्यासा कोई न रह जाये,
जल की अहमियत बताये,
आज इसका संरक्षण होगा,
कल सबका सुरक्षित होगा |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
दिनांक-14-4-2020
विषय- प्यास/ प्यासा
भौतिकता की अंधी दौड़
तेरी दौड़ हाँ,मेरी भी दौड़
विश्व स्तर पर लग गई हौड़।
दौड़ते -दौड़ते हाँफने लगे
अधरों पर अब पपड़ी उभरी
प्यास तेरी प्रचंड हो चली है ।
हठधर्मिता मानदंड तुम्हारा
पर जीवन ना तनिक विचारा
विवेक पर सब बलिहारा ।
भविष्य डरा सहमा सा बैठा
वर्तमान ने दिखा दिया ठेंगा
अब किसलिए तू मौन है !!
जल ,थल ,नभ विश्लेषण
उन्माद तेरा एक संश्लेषण
तेरी प्यास ही मनोविश्लेषण ।
इस प्यास को अब तृप्त करो
सारा का सारा खारापन हरो
अकाल मृत्यु ना तुम यूँ मरो ।
प्यासा खुद को मत बनाओ
इच्छाओं पर अंकुश लगाओ
जग नियंता का शुक्र मनाओ ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
विषय- प्यास/ प्यासा
भौतिकता की अंधी दौड़
तेरी दौड़ हाँ,मेरी भी दौड़
विश्व स्तर पर लग गई हौड़।
दौड़ते -दौड़ते हाँफने लगे
अधरों पर अब पपड़ी उभरी
प्यास तेरी प्रचंड हो चली है ।
हठधर्मिता मानदंड तुम्हारा
पर जीवन ना तनिक विचारा
विवेक पर सब बलिहारा ।
भविष्य डरा सहमा सा बैठा
वर्तमान ने दिखा दिया ठेंगा
अब किसलिए तू मौन है !!
जल ,थल ,नभ विश्लेषण
उन्माद तेरा एक संश्लेषण
तेरी प्यास ही मनोविश्लेषण ।
इस प्यास को अब तृप्त करो
सारा का सारा खारापन हरो
अकाल मृत्यु ना तुम यूँ मरो ।
प्यासा खुद को मत बनाओ
इच्छाओं पर अंकुश लगाओ
जग नियंता का शुक्र मनाओ ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
" प्यास/ प्यासा"
जीवन का तमस मिटाने के लिए,
यत्न के साथ जीवन का दीप भी जलाना पड़ता है।
दिशाएँ गलत नहीं होती
दिशाओं की पहचान गलत होती है।
इंसान गलत नहीं होता है
इंसान की मानसिकता गलत होती है।
जीवन का फलसफा ही कुछ अजीब है
यहाँ अंधे को अच्छा दिखता है।
बहरा भी अच्छा सुन लेता है
गूंगा बोलता बहुत है।
बेसुरा गाता बहुत है ।
जिसे सुर, लय, ताल का ज्ञान नहीं है,
वह भी यहाँ श्रेष्ठ संगीतज्ञ है।
मरीचिकाओं से प्यास नहीं बुझती है मित्र!
जुगनुओं से जीवन रौशन नहीं होता।
इस दुनिया के सत्य है अलग किस्म के
यहाँ का राग ही कुछ अलग है।
यहाँ की दोस्ती तो पूछों मत
यहाँ के इंसान ही नहीं
यहाँ के भगवान भी अलग है।
यहाँ के भगवान भी अलग है।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
जीवन का तमस मिटाने के लिए,
यत्न के साथ जीवन का दीप भी जलाना पड़ता है।
दिशाएँ गलत नहीं होती
दिशाओं की पहचान गलत होती है।
इंसान गलत नहीं होता है
इंसान की मानसिकता गलत होती है।
जीवन का फलसफा ही कुछ अजीब है
यहाँ अंधे को अच्छा दिखता है।
बहरा भी अच्छा सुन लेता है
गूंगा बोलता बहुत है।
बेसुरा गाता बहुत है ।
जिसे सुर, लय, ताल का ज्ञान नहीं है,
वह भी यहाँ श्रेष्ठ संगीतज्ञ है।
मरीचिकाओं से प्यास नहीं बुझती है मित्र!
जुगनुओं से जीवन रौशन नहीं होता।
इस दुनिया के सत्य है अलग किस्म के
यहाँ का राग ही कुछ अलग है।
यहाँ की दोस्ती तो पूछों मत
यहाँ के इंसान ही नहीं
यहाँ के भगवान भी अलग है।
यहाँ के भगवान भी अलग है।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
Madhuri Mishra14/4/2020
विषय _ प्यास
प्यास
तू नील गगन का पंछी है ।
इस छोर से उस छोर तक
खुले आसमान में उड़ता है
ताल तलैया सूख रहे है।
नदियों के पानी भी सुख गये
तु कैसे प्यास बुझायेगा ।
याद आता है पहाड़ के झरने
जंगल के सोतो का
तू वहां चला जाएगा।
आपनी प्यास बझाएगा
फिर यहां कभी नहीं आएगा।
।मेरे प्यारे पंछी
अच्छा हुआ तू प़ंछी है
तू नील गगन का प़ंछी है।
मानव का यह दुस्कर्म है तो
मानव ही फल पायेगा
वह रोयेगा पछतायेगा ।
जल संकट का मार वह झेलेगा
पर्यवरण विनाश का वह स्वयं ताडव देखेगा।।
माधुरी मिश्र जमशेदपुर
प्यास
तू नील गगन का पंछी है ।
इस छोर से उस छोर तक
खुले आसमान में उड़ता है
ताल तलैया सूख रहे है।
नदियों के पानी भी सुख गये
तु कैसे प्यास बुझायेगा ।
याद आता है पहाड़ के झरने
जंगल के सोतो का
तू वहां चला जाएगा।
आपनी प्यास बझाएगा
फिर यहां कभी नहीं आएगा।
।मेरे प्यारे पंछी
अच्छा हुआ तू प़ंछी है
तू नील गगन का प़ंछी है।
मानव का यह दुस्कर्म है तो
मानव ही फल पायेगा
वह रोयेगा पछतायेगा ।
जल संकट का मार वह झेलेगा
पर्यवरण विनाश का वह स्वयं ताडव देखेगा।।
माधुरी मिश्र जमशेदपुर
दिनांक 15-4-2020
विषय:- प्यास/प्यासा
मैं तो चिड़िया हूँ मेरी,
प्यास तो बुझ जायेगी|
मगर इंसानी प्यास क्या,
बुझ पायेगी?
सबसे महंगा है पानी,
बोतलों में बिकता है|
जब बूंद बूंद बिकेगा,
तो हाल क्या होगा?
इसलिए अभी से इसको,
समझना होगा|
प्यासे को प्यास कीकीमत,
को समझना होगा|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
विषय:- प्यास/प्यासा
मैं तो चिड़िया हूँ मेरी,
प्यास तो बुझ जायेगी|
मगर इंसानी प्यास क्या,
बुझ पायेगी?
सबसे महंगा है पानी,
बोतलों में बिकता है|
जब बूंद बूंद बिकेगा,
तो हाल क्या होगा?
इसलिए अभी से इसको,
समझना होगा|
प्यासे को प्यास कीकीमत,
को समझना होगा|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
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