Friday, April 10

" कलम"09अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-705
9/4/2020
"सत्संग"
*
*********
प्रथम सीख सत्संग की,मिलती घर-परिवार।
मात-पिता परिजन यहाँ, ईश्वर का अवतार।।

महक उठा सत्संग से,भावों का संसार।
शांत,प्रेम,सद्भाव के,पहने मिलकर हार।।

सत्संगी का साथ ही,मन मे धरो विचार।
मानवता का है यही,सच्चा सा आधार।।

झूठ,दंभ और लूट से,रहना दो गज दूर।
सत्संगी के साथ से,फैले मन में नूर।।

घोर तिमिर है छा रहा,अब तो मानव जाग।
कर के सत्संग आज तू,तेरा-मेरा त्याग।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित

विषय सत्संग
विधा काव्य

9अप्रेल 2020 ,गुरुवार

सत्संग की प्रथम इकाई
माँ ममता का आँचल है।
वात्सल्य असीम खजाना
निर्मल स्नेह का दामन है।

सत्संग विकास विवेक दे
सत्संग ही ज्ञान खदान है।
सत्संग निखारे जीवन को
सत्संगी नर बने महान है।

जल संगत करे धूल का
वह कीचड़ ही कहलाता।
जल सत्संग करे सरयू से
पावन गङ्गा जल सुहाता।

प्रभु कृपा सत्संग मिलती
जीवन परिवर्तित करती।
तमअज्ञान विनाश करे वह
हिय दिव्य ज्योति भरती।

सत्संग पारस पत्थर सम
लोहे को नित कँचन करता।
रत्ना डाकू सत्संग के बल
वाल्मीकि रामायण लिखता।

दानव बन जाते जग मानव
सत्संग कल्पवृक्ष सम होती।
नर निखरता उज्जवल होता
वह पाता नित ज्ञान के मोती।

भक्तिशक्ति सत्संग से मिलती
प्रभु कृपा से मिले सद युक्ति।
दिव्य अद्भुत ज्ञान प्रकाश से
नर पाता जग जीवन मुक्ति।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक 9।4।2020 दिन गुरुवार
विषय सत्संग

महिमा निराली है जगत में देख लो सत्संग की।
लोहा भी कुंदन बन सके पारस पत्थर से संग की।।
बाढ़ का पानी नदी का मचा देता है तबाही।
रोककर बिजली बनाने से कराए वाहवाही।।
एक शिशु नादान रहता पाठशाला में पहुँचकर।
योग्य गुरु के पास से जब निकलता है ज्ञानी बनकर।।
रास्ते का एक पत्थर छेनी हथौड़ी चोट सहता।
योग्य शिल्पी के करों में ईश की प्रतिमा में ढलता।।
ढेर मिट्टी को कुशल कुम्हार अनेकों रूप देता।
मूल्य बढ़ जाता सुगढ़ जब विभिन्न रंग स्वरूप देता।।
इस तरह मानव भी जीवन में बहुत कुछ सीख जाता।
यदि करे सन्तों की संगति यश मान वैभव भी कमाता।।
एक गंधी कुछ न दे फिर भी सुगंधि विखेर देता।
सत्पुरुष भी ज्ञान से जीवन दिशा को मोड़ देता।।
भारत भू तो ज्ञानियों ऋषियों गुरुओं का देश है।
इनकी संगति में जो आया बन गया निःशेष है।
कर सदा अच्छों की संगति सफल जीवन मार्ग यह है।
तभी होगा हित सभी का सफलता का सार यह है।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा

विषय - सतसंग
प्रथम प्रस्तुति


सतसंगत करना सुखदाई ।
प्रभु कृपा सतसंगत पाई ।।

जहाँ मिले सतसंगत भाई ।
प्रभुता सारी वहीं समाई ।।

खेल खिलौने सारी दौलत ।
जिनसे हमने प्रीत लगाई ।।

असली सोना जहाँ भरा है ।
वहाँ न हमने नजर घुमाई ।।

रूठ गयी किस्मत कितनों की ।
सतसंगत जिसने विसराई ।।

सतसंगत को नहि विसराओ ।
ये ही सच्ची खरी कमाई ।।

'शिवम' सार्थक करलो जीवन ।
संतो ने महत्ता बतायी ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिव
9/4/2020/गुरुवार
*सत्संग*काव्य


सत्संग में सन्निहित सर्वगुण,
बस ग्रहण करने की देर है।
माता प्रथम गुरु हमारी,
ये कटु सत्य नहीं अंधेर है।

जिस वातावरण में रहेंगे।
वहां से जो भी मिले गहेंगे।
संस्कारी सनातन संस्कृति,
इसमें मात्र सद्गुण मिलेंगे।

सत्संग में समाविष्ट होकर,
कल्याणी जग निर्माण करें।
करें साधना स्वयं उपासना,
परिवार परिवेश सुदर्शन करें।

सत्संग मूल में ही समाऐ।
सुपरिवर्तन सुसंगति लाऐं।
यदि सत्संग बनें जीवनाधार,
इस सृष्टि में सर्व सुख लाऐ।

सत्संग से समझें स्वधर्म।
सत्संग में देखें राजधर्म।
अखिल वृह्मांड ही गुरु हमें,
सत्संग में समाहित राष्ट्रधर्म।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
 शेर की कविताए....
***************
शीर्षक.. सत्संग


वक्त और हालात का ऐसा अजब मंजर हुआ।
एक राजा रंक और इक रंक से राजा हुआ।
जिन्दगी से जंग था दोनो ही उससे लड रहे,
वक्त अब बतलाएगा देखो ये क्या मंजर हुआ।
**
धन व वैभव से अकडता देखो उसका क्या हुआ।
काल के हाथों मे आते ही बेचारा रो दिया।
जो गति अपनी रही उससे अलग ना वो रहा,
दंम्भ था दौलत का उसको, घुटनों पे ला रख दिया।
**
क्या करेगा मूर्ख इस दौलत का जो तू ना रहा।
नाम बदला दिल्ली का सतयुग से वो वैसे खडा।
कितने आये और गये, बस नाम ही बाकी रहा,
कर्म जो '' सत्संग '' से बनता है जो वो संग गया।
**
हर मनुज के साथ ही हर एक यति का भाग्य है।
देश की मर्यादा गौरव, और उसका भाग्य है।
कर्म बस करते रहो, तुम धर्म को धारण किये,
शेर की कविता पढो तुम राम को जपते हुए।
**
शेर सिंह सर्राफ
विषय निर्दिष्ट
विधा कविता
दिनाँक 9.4.2020
दिन गुरुवार

सत्संग
💘💘💘

बिनु सत्संग विवेक न होई,यह सच्चाई है
इसमें शान्ति की ,शीतल गहराई है
जहाँ सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना,बात सटीक है
हर युग के में यह जीवन्त और ठीक है।

सत्संग में व्यक्तित्व निर्माण होता है
सुविचारों से व्यक्ति अपने मन को धोता है
सत्संग का नाटक करने वाला
अपने सारे जीवन में रोता है।

सत्संग यानि अच्छे लोगों का संग
सत्संग यानि मन में उभरती अध्यात्म तरंग
सत्संग यानि जीवन का सन्तुलित ढंग
सत्संग यानि सर्वजन हिताय का रंग।

सत्संग !समभाव का मार्ग है
सत्संग! अंधेरे में चिराग है
सत्संग !शान्ति का बाग है
सत्संग! ओम् की दिव्य राग है।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनांक- ०९/०४/२०२०
प्रदत्त विषय-#सत्संग*
विधा-शब्द संचयन
==================
जड़ता मिटे करो सत्संग
उठे ज्ञान की तीव्र तरंग
सब ही सब का भला करें
मधुर प्रेम का डालें रंग।।

सत्य करें सम्भाषण मित्र
सब का मान उकेरें चित्र
स्वारथ लोलुपता न रहे
पर उपकारी छिड़कें इत्र।।

आपाधापी नहीं रहे
सदा न्याय की बात कहे
परम हितैषी बने समाज
उन्नति हित आपका बहे।।

प्रणय वात से थिरके दल
पुष्प खिले अभिराम अमल
बस इतनी लालसा अजेय
सत्संगति से मिले सुफल।।
=================
'अ़क्स' दौनेरिया
दिनांक, 9, 4, 2020
दिन, गुरुवार
विषय, सत्संग

जैसे तन को चाहिए , प्रतिदिन ही आहार।
मानव मन भी चाहता ,सत्संग और प्यार।।

मन की बगिया सींच कर, महकाये उदगार।
मात-पिता गुरुजन सभी, सत्संग बीज आकार।।

सेवा नम्रता सदभाव ही, विकिसित हुए अपार।
खिलें सत्संग में सदा , मन के सुमन हजार।।

सत्संग कठिन हो गया , माया का सब खेल ।
दिल दिमाग लड़ते रहें , मुश्किल होता मेल।।

दुर्लभ मानव देह का, करें सही उपयोग।
सत्संग सदुपयोग है , भूल मानना भोग।।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .


दिनांक-9/4/2020
विषय-सत्संग


सत्य सनातन कथन है ये
कि असर संग का होता है
जैसी संगत होती है
वैसा ही मानव बनता है

संग तथागत का पाया
तो..
अंगुलिमाल शरणागत हुआ
बुद्ध के वचनों से प्रेरित हो
शाश्वत सत्य से वो अवगत हुआ

अग्नि का संग पाकर
सोना जब तपता है
तो ..
स्वर्ण निखर कर
सुंदर आभूषण बनता है...!

सीख नारद की मिली
तो ..
रत्नाकर बाल्मीकि बना
बुद्धि प्रखर हुई तो
रामायण की हुई रचना...!

जड़ बुद्धि थे कालिदास कवि
पत्नी की नज़रों में नहीं थी
उनकी अच्छी छवि
सुन कटाक्ष,अंतर्निहित
प्रज्ञा जागी
तो..
वह महान कवि बना..!

संग केशव का पाकर
अर्जुन ने महा समर किया
मोह भरम से मुक्त हुए
दुष्ट 'स्वजनों' का संहार किया..!

सत संग पाकर ही
तो ..
मानुष 'नर से नारायण 'बनता है..!!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित

दिनांक-09/04/2020
विषय- सत्संग

रूठ गए आज नानक के छंद
छलछंदो के खूब रंग।
सत्कर्मो संग रहता सत्संग
कठिन तपस्या के संग ।।
राहु केतु के ग्रसन से
ऋषि मुनियों की कलयुगी जंग।।
व्यथित धरा है तीव्र तपन से
सत्संग हो जाता शूलों के संग।
कटु बाणी संग बिहँसे भुजंग
उद्गारो की शैतानी मस्त मलंग।।
विमुख हुई इस स्नेह की चादर
सब देख हैं आज क्यों हम दंग।
सत्कर्मो के संग कर्म घिनौना
समस्या की नए-नए हैं ढंग।।
मरुस्थल में जब पथिक चलता
रोम-रोम में में नादानी के व्यंग।
प्रेम रूपी गंगा है आज तंग।।

हम रहे युग प्रणेता नचिकेता के संग.....

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

9/4)/2020
बिषय सत्संग
सत्संग से हजारों दोष दूर होते
सत्संग से ही लोग मशहूर होते
आज हमारे देश में जो सतरंगी रंग है
वह हमारे ऋषि मुनियों का ही संग है
भगवान ने भी सत्संग किया था
बड़े बड़े महात्माओं ने आशीर्वचन दिया था
सत्संग से ही श्रीराम ने सीता जी को पाया था
सत्संग से ही लंकापति को हराया था
बड़ा ही अद्भुत है सत्संग की वाणी
सकारात्मक ऊर्जा देतीहै सुहानी
कृष्ण के सत्संग में अर्जुन ने विजय पाई थी
कुव्जा के सत्संग में भूली वंशी कन्हाई की
इसलिए नौनिहालों को सत्संग की अति आवश्यकता है
चूंकि सत्संग में मन स्थिर हो नहीं कहीं भटकता है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
सत्संग
सत्संग मूलाधार है, जीवन को समुन्नत बनाने का, जीवन को सुधारने का.
सत्संग की भूमिका, जीवन की उद्देश्य प्राप्ति में, होती है अत्यंत महत्वपूर्ण.
ईश्वर, जीव, प्रकृति है, सत्संग के अंग महत्वपूर्ण, सत्य हो जिसमें सम्पूर्ण.
जहाँ इसकी बात हो वही सत्संग निवास,
वही तो करता है मानो सत्संग मिठास.
श्रेष्ठ और सात्विक जनों का हो सदा संग,
धार्मिक पवित्र वातावरण व पुस्तक है अंग.
जितना भोजन शरीर के लिए आवश्यक,
उतना जीवन के महत्वपूर्ण है सत्संग.
भोजनादि जरूरी है मानव तन के लिए,
किन्तु आत्मा के संतुष्टि के लिए सत्संग.
सत्संग, स्वाध्याय, प्रार्थना है आत्मा का भोजन, होता पवित्र और निर्मल जीवन.
करता दूर पाप और मन के कुविचारों को.
सत्संग मूर्खता हर लेता इसे भर्तहरि ने लिखा, जीवन में सत्यता करे संचार.
चहूँमुखी होता है मान सम्मान विस्तार
चित्त में प्रसन्नता उमड़ता है अपार,
चारों दिशाओं में यश का होता प्रसार.
सत्संगति करता जन का चतुर्दिक कल्याण
जैसे दुग्ध करता चासनी मैल का परिष्कार
सत्संग जीवन कलुष को कर देता है दूर,
मानव सत्संग से सुधरता,बिगड़ता कुसंग से
कथन जैसा है संग वैसा ही चढ़ेगा रंग ढंग
मानसिक चिकित्सा श्रेष्ठ लोगों का सत्संग
जब उठे आँधियाँ वासनाओं की, मन में क्रोध, काम, लोभ, मत्सर हो रहा हो हावी.
बुझने लगे दीपक ज्ञान, प्रेम, सद्भावना का
औषधि का उत्तम कार्य करता है सत्संग.
सत्संग जगाता है विवेक, भला बुरा का हो भेद, सत्य असत्य ज्ञान पहचान करवाता.

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली ,सिवान बिहार
दिनांक-09/04/2020
विषय -सत्संग

सत्संग की है बात निराली
हृदय परिवर्तन कर देती है ।
डाकू अंगुलिमाल से ......
ऋषि वाल्मीकि बना देती है ।

कुछ ही पलों का सत्संग ,
काम गूढ़ कर जाती है ।
ज्ञान से परे अज्ञानियों को,
भी ज्ञानी बना जाती है।

गुरु का ज्ञान संतों का सत्संग
जीवन को बहुमूल्य बनाते हैं।
दूर कर हृदय का तम ........
ज्ञान का सागर भरते हैं........।

प्रथम सीख मिले माता से ,
मिले दूजी घर परिवार ।
घर -परिवार के सत्संग से
मिल जाए जग का सार ।

सत्संग संस्कार दिलाए ,
बनाए निज संस्कृतवान ।
सत्संग बिना जीवन अधूरा
यह मानव तन है बेजान।

परिवार की एकता ही
नया आयाम बनाती है ।
संस्कृति को देकर जन्म ,
जीवन सफल बनाती है।।

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
विषय सत्संग
विधा छंदमुक्त

सत्संग का अर्थ है
सत्य के संग
जो जीवन मे भरते
कितने सुंदर रंग
प्रभु की भक्ति के
प्रभु की शक्ति के
जो हमारे जीवन
से दूर करते अँधेरा
और भर देते खुशियों
का सबेरा
जिसमे कभी कभी
लग जाती है देर
पर इसका ये
अर्थ कदापि नहीं
की प्रभु के घर
है अँधेर..
सत्य की राह में
बढ़ते चलो
चुभ जाये जो
काँटे तो तुम न डरो
बस बढ़ते चलो
एक दिन सारी
दुनियाँ आपके कदमो
में होंगी


गरिमा कांसकार
डिंडोरी मध्यप्रदेश

दिनांक ९/४/२०२०
शीर्षक-सत्संग

हटे तम जब दर्प का
मिले हम सत्संग
अर्जुन को मिला कृष्ण संग
जीत लिये महाभारत जंग।

सत्संग है उनन्ति के द्वार
मिले सत्संग से ज्ञान
दुराचारी भी सदाचारी बन जाते
गर मिले उसे सत्संग।

अनुकूल नही हो गर परिस्थितियां
फिर भी छोड़े नहीं सत्संग
दुर्भाग्य भाग जायेंगे
सौभाग्य लायेंगे सत्संग।

सज्जन करें ना प्रशंसा अपनी
धर्म,धर्य व ईमान का रखते ख्याल
ऐसे सजज्न का साथ मिले जब
सत्कर्म हो जाये साकार।
9/4/20
विषय-सत्संग

जो सत्संग में रोज आता रहेगा।
ज्ञान की ज्योति को जगाता रहेगा।

ये जीवन को गतिशील बनाता रहेगा।
प्रभु से अपनी लौ को लगाता रहेगा।

नाग मैं का मन से मिटाता रहेगा।
गुरु वाणी को मन से निभाता रहेगा।

सुविचारों से कुविचार मिटाता रहेगा।
प्रेम सदभावना को जगाता रहेगा।

घर को मंदिर अपना बनाता रहेगा।
बड़ो का सम्मान सदा करता रहेगा।

सम्मान नारी का जिस घर मे होता रहेगा।
सत्य है वो ही सत्संग गामी रहेगा।

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय-सत्संग
दिनांक 9-4-2020

सतसंग रहने वाला ही ,सत्संग में सदा जाता है।
आत्म स्वरूप पहचान,आत्मिक आनंद पाता है।

मन छुपी आनंद अनुभूति,पहचान नहीं पाता है।
हीरा चमक समझ खोता,वो पत्थर सिद्ध होता।

नहीं मिलता स्थान,वो व्यथित थके ह्रदय रहता,
सत्संग जो जाता, वो ही इच्छित फल पाता है।

सत्संग तार देता,और कुसंग सदा डूबा देता है।
सद ग्रंथ अध्ययन ,चरित्र उज्जवल बनाता है।

जीवन सच्चे संत दर्शन ,कर स्पर्श हो पाता है।
संत दर्शन संत सेवा ,अमृतवाणी डूब जाता है।

एक घड़ी आधी घड़ी,जो सत्संग मिल जाता है।
उसके कोटि अपराध तो,पल हरण हो जाता है।

चुगली निंदा अपमान, करते जो ना थकता था।
आज अपने मुख से, प्रभु बखान वह करता है।

जैसी संगति बैठिए,चरितार्थ देखो ऐसे होता है।
कान सून विचार कर, जीवन सफल बनाता है।

कहती वीणा मनु जन्म कठिन,मान सत्संग कर,
मात पिता गुरु आशीष,पुन: धरा वही आता है।


वीणा वैष्णव
कांकरोली
9/4/20
सत्संग...
किये जाते हैं जाने कितने ही सितम... नित्य पद प्रतिष्ठा और दौलत का अहंकार....
सब को आगे निकलने की जिद..
बस किसी भी तरह से...
घर बाहर और समाज संस्थायें कुछ भी न अछूता...
पल पल रंग बदलते लोग...
न हया न शर्म.... कैसी ये दौड़...
स्वार्थ से जुड़े रिश्ते... जो हैं बड़े ही सस्ते....यकीन की डोर टूटती है रोज.... उपर खुद को सबसे माना...देख जरा अपनी औकात..
कैसा बेबस है इंसान... राजा से रंक
सब एक सामान....आज याद आते हैं प्रभु.... हाथ जोड़ करता तू विनती.... सत्संग मिलकर करे परिवार.... आज देता ईश्वर को आवाज.....कहता ये क्या किया भगवान... एक बार रख दिल पर हाथ.... और बता क्या सिखा तू...
जब जब अतिक्रमण कऱ हमने किया सीमाओं को पार.... विध्वंसक रूप दिखाया इसने अनेकों बार समझाया इसने...
बादल काले ये घिर आये.... विश्व सकल बैठा है निरुपाय.... ये देख प्रकोप की माया....निगल रही तुझको तेरी करनी की छाया..... अब भजन पूजन ईश्वर को करता याद ये कैसा सत्संग महान...
अहंकार के साये से बाहर...
अब तू सोच कितने पानी में है
आज हम सबका अभिमान...
लेकिन हर युग में ये होता आया सतयुग, त्रेता, द्वापर ने भी बहुत सिखाया ये तो है कलयुग की आवाज..... अंधकार में सारी ही दुनिया..... कुछ तो सोच मानव प्यारे.... भज गोविन्द भज राम का नाम.... करनी का तो भरना ही होगा.... लेकिन सोच बदलना होगा
पूजा नबीरा काटोल नागपुर

भावों के मोती।
विषय-सत्संग।
स्वरचित।

सत्संग कर ले बंदे,
ओ सत्संग करलें वन्दे।
ईशआराधना कर ले।
सत्संग.... बंदे...

कर्तव्य पथ से डिग ना तू
यही है सच्ची सेवा प्यार ।
सत्संग से ही खुलेंगे
मनअंतर के द्वार।।
सत्संग से ही झंकृत होंगे
मन वीणा के तार।।

सत्संग जगाये दिल में
भावों के सच्चे मोती।
सत्संग बहाए दिल में
करुणा की निर्झर झरनी।
सत्संग जलाए दिल में
ईश्वर की सच्ची ज्योति।
सत्संग बहाये भक्ति के
गहरे सागर में डुबकी।।

सत्संग से ही पाओगे सद्गति।
सत्संग से ही पाओगे तुम
परमात्मा की अनुभूति।
सत्संग से ही पाओगे तुम
परमात्मा की अनुभूति।।

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
09/04/2020
विषय : सत्संग
विधा : कविता
तिथि : 9. 4. 2020

सत्संग
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कर ले बंदे कर ले,अतरआत्मा से सत्संग
सारी दुविधाओं से खतम हो जाएगी जंग।

धन-धान्य खूब जोड़ लिया
गाड़ी बंगला भी ओड़ लिया
अब मन ढूंढे और नए रंग
इच्छाएं अभी भी करती तंग।

कर ले बंदे कर ले, संतुष्टि से तूं सत्संग
छोड़ देगा मन तेरा भटकना बन मलंग।

और और की होड़ सदा
जोड़ जोड़ की लोड़ सदा-
क्यों करती हृदय को दंग,
उड़े मन ऐसे जैसे पतंग!

स्वार्थ को दे छोड़ परा, परहित से कर सत्संग
लालच को छोड़ दे, बन जाएगा जीवन अनंग।

प्रकृति देती शांति अनूप
पुष्प हैं सब प्यार के दूत
हरियाली से तूं नेह लगा
जीवन में भर जाए लवंग।

कर ले बंदे कर ले तूं , अंतरज्ञान से सत्संग
जीवन अपना बना ले , सोंधी - सोंधी सुगंध।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित

सत्संग =
सत्संग के यूँ तो दो पहलू हैँ,
सकारात्मक व नकारात्मक l
अच्छी संगत मिलना जरुरी है,
संगत शब्द यूँ ही बदनाम है l
जबकि व्यक्ति ने बनाया है,
और व्यक्ति ने ही सहा है l
अच्छे लोग अच्छी संगत,
और बुरे लोग बुरी संगत l
संगत का बहुत प्रभाव है,
भली है तो भला नाम है l
संगत शुरू होती बचपन से,
शुरू हो हमेशा चलती है ये l
पर व्यक्ति के स्वयं के गुण,
ग्रहण करता है वह जो मूल l
पानी मे रंग डालो तो रंगीन,
कुछ होते हैँ जैसे गिरगिट l
चन्दन पर सर्प रहते हैँ,
चन्दन चन्दन ही रहते हैँ l
सर्प कभी नहीं होते चन्दन,
क्यूंकि प्रकृति इनकी विष l
सत्संग के दो पहलू हैँ,
सकारात्मक व नकारात्मक l
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विषय-सत्संग
दिनाँक-09/04/2020

मन की शुद्धता के लिए,
हम करते हैं नित सत्संग।
सदाचार सुविचार भी निज,
कुसंग कर देते हैं भंग।

मन को पावन विचारों से ,
जो सज्जन भरते हैं।
अतिशय ऋणी हैं उनके,
हम उनका अभिनंदन करते हैं ।

मिटी है अज्ञान की छाया,
आत्मा ज्ञान से भर ली है।
ज्ञानी सज्जनों की संगति,
अब तो मैंने कर ली है ।

सत्संग का यह प्रभाव रहा है,
बहे उर ज्ञान की निर्मल धारा ।
कामना यही है ईश्वर से,
सत्संग में बीते जीवन सारा।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक 9 अप्रेल 2020
विषय सत्संग

कुमति को दूर करे
निर्मल करे मन को
हृदय का संताप हरे
सत्संग महिमा महान

गुणों को प्रखारती
जीवन को संवारती
सत्पथ पे लेकर चले
सत्संग महिमा महान

काम क्रोध मोह लोभ
मद मात्सर्य दूर करे
सद्गुणो को बढाती
सत्संग महिमा महान

बुद्धि की जडता हरे
वाणी मे सत्यता भरे
सम्मान नित बढाती
सत्संग महिमा महान

जो चाहो जीवन पावन
हृदय सुख मनभावन
करो सहर्ष स्वीकार ये
सत्संग महिमा महान

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

सत्संग

आज है
महत्ता सत्संग की
लड़ रहा विश्व
एक लड़ाई
कोरोना है
उसका नाम
हैं जो
संस्कारी
सदाचारी
मान रहे
चिकित्सक
विशेषज्ञों
सरकार की बात
रह रहे घरों में
कर रहे सत्संग
ईश संग
वही उतरेंगे
भवसागर पार

करते जो
देश
समाज
परिवार से
प्यार
कठिन कदम
उठाने
सरकार को
करते नहीं
लाचार

है संकट
कुछ दिनों का
दो मानवता
का परिचय
बनों देशभक्त
बनों सहायक
रोकने महामारी

गर की यहाँ
गफ़लत
नहीं
छोड़ेगा
ये कोरोना
चेतो
संभलो
है
तकाजा
वक्त का
लड़ना है
करोना से
नहीं
डरना है
जीवन में
समझेगा
महत्व
जो मानव
इसका
वही योद्धा
कहलायेगा

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
भावों के मोती
आज का विषय- सत्संग
दिनांक-09/04/ 2020
दिन- गुरुवार
*************************************
बुद्धिमान की संगत करना
मूरख संग कभी न रहना
शिक्षित और गुणवान बनना
अपनी बड़ाई आप न करना
माता-पिता पिता की सेवा करना
कष्ट सदा तुम उनके हरना
काम गलत कोई न करना
प्रगति पथ पर सदा ही बढ़ना
बैर किसी से कभी न करना
मिलजुल कर सबसे रहना
दीन हीन का बल तुम बनना
पीड़ा सबकी सदा हरना
हर काम में निपुण बनना
उन्नति पथ पर सदा बढ़ना
क्षमाशील आज्ञाकारी बनना
लोकमंगल हितकारी बनना
जय मंगल हो जिससे सबका
काम सदा तुम ऐसे करना।

प्रस्तुति- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।

 'सत्संग'

धर्मसिंह के गृह में आज सत्संग थी।एक बड़े महंत आये थे।जिनका नाम गुनीलाल था।जब कथावाचन हो रहा था।तो एक प्रसंग आया- सत्संग का उद्देश्य क्या है? फिर आगे कहने लगे 'जीवन जब मोहपाश में जकड़ जाए।फिर उसे छुड़ाने का जो प्रयत्न किया जाता है,वही सत्संग का म
ुख्य प्रयोजन है।हरि के मार्ग का वह एक साधन है।हरि से डोर मिलाना ही उसका कर्म है।प्राणी को ईश्वर की राह दिखाने के लिए ही सत्संग को करवाया जाता है।उन्हें संसार के समस्त सुख-सुविधाओं से निर्लिप्त करके ईश्वर की सुगम एवं सत्त की राह पर ले जाने का एक प्रयत्न है।समस्त संसार को वह एक दिव्य एवं सफ़ल राह की ज्योत दिखलाता है।उन्हें अहंकार से कोसो दूर ले जाकर,लोभ का मर्दन कर ईश्वर में रमने को प्रेरित करता है।
यह सब बातें हो रही थी कि एक बालक जो करीब १३-१४ बरस का होगा।बीच में ही बोल पड़ा- साधु महाराज,यदि सत्संग का यही महत्व है।सत्संग ईश्वर को पाने का एक साधन मात्र ही है।तो फिर सब मनुष्य लोभ और तृषा में क्यों भटक रहे है? सत्संग में क्यों नहीं आकर बैठते? वे क्यों और सत्संगों का आयोजन न करते? और लोगों को उसमें बैठने और कीर्तन सुनने का आग्रह करते?
महंत उसकी बातें सुनकर कहने लगे- क्योंकि पुत्र! जो सत्संग का रस लेना चाहते है।वही बैठते है।जिन्हें संसार से मोह है,लोभ है,वे कभी नहीं सत्संग में आकर बैठते।

वो बालक फिर बोला- साधु महाराज,मनुष्य मोह में क्यों फँसता है?लोभ क्यों करता है?जबकि वह रहेगा ही नहीं एक दिन?
महंत- क्योंकि वह भटका हुआ है।उसे बस चाहत ही है कि वो ले लूं,वो खाऊँ,वो पाऊँ,वो हड़प लूँ।पर उसे उससे छुटकारा नहीं है।वह कभी भी ईश्वर को नहीं मिल पायेगा।ईश्वर उसे देख रहा है।
बालक बैठ गया। इन बातों से उसे तसल्ली नहीं हुई।उसके मन में अभी भी कई प्रश्न कौंध रहे थे।पर वह अब बोल नहीं पा रहा था।
कथावाचन जब पूरा हुआ तो महंत जी काशी जाने को रवाना हुए।उन्होंने अपनी एक रात की फीस ली।उन्हें जड़ी मख़मली चद्दर और कुछ वस्त्र भी भेंट किये गए।उन्होंने सहर्ष स्वीकार किये।कदाचित ईश्वर की राह बतलाने वाले महंत जी ही अब ईश्वर को भूल गए थे।

~परमार प्रकाश

विषय-सत्संग
विधा -कीर्तन/भजन
. चुनरिया सत्संगी
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मैं ओढ़ के जाऊं सत्संग में ऐसी रंग दे
चुनरिया रंगरेजा।

लाल हरी नहीं पीली काली।
रंग चुनरिया रंग मुनियौं बाली।

रंग दे तू भगवा रंग में।।ऐसी रंगदे0।।

काम क्रोध मद लोभ के नैकहू।
आइ नहीं जाय जापै छींटा एकहू।

ये होइ अनौखे ढंग में।।ऐसी0।।

भक्ति वैराग ज्ञान ओर तप के।
चमकैं फूल चुनरिया में छपके।

धर्म किनारी चारौं लंग में।।ऐसी0।।

ऐसी रंग दे जाकौ रंग नहीं छूटे।
"महावीर" चाहे मौंगरा ते कूटे।

चाहे धुलवाइ लेइ जाइ गंग में।।ऐसी 0।।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)

तिथि-- 09/04/2020
विषय--सत्संग

सत्संग

करो सत्संग
तो खुले चक्षु ज्ञान
रुप गुण के तरंग चढ़े गगन।

होवे व्यवहार परिष्कृत
करें हम बड़ों की सेवा और आदर
तने हम पर आशीष की चादर।

बढ़े सद्गुण
रहे सर्वथा बुराई से दूर
निर्मल हो तन मन और वचन।

सत्संग से हो
परमात्मा की हो अनुभूति
पायें हम जीवन की सदगति।

अनिता निधि
जमशेदपुर
प्रभु कैसी तेरी माया , खेल समझ न आया।
कितने पुतले रचे गये, कोई वापस न आया।

मेले में यूं मिले चिले, सब करें राग की बातें।
काटे दिन भूल सत्य , झूठे स्वप्नो की रातें।
कैसा बाग खिलाया , खेल समझ न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।

पृथ्वी और आकाश , मन हर्ष कभी निराश।
दिन और जैसे रात, जग सुख दुख की बात।
किस ने क्या न पाया, खेल समझ न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।

जी का रिश्ता न देखें , जीते जी के सौ सपने।
भेद हजार मन मे पनपे, लालच जानें कितने।
है अपना कौन पराया, खेल समझ न आया।
प्रभु कैसी तेरी माया, खेल समझ न आया।

विपिन सोहल

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