Thursday, April 9

" कलम"07अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-703
भावों के मोती
दिनांक-07/04/2020

दिन-मंगलवार
आज का शीर्षक-कलम
*************************************
मन में बिखरे भावों को
शब्दों का रूप देती है
कलम जब बोलती है।
जो कह न पाते हम लबों से
बात वो भी कह देती है
कलम जब बोलती है।
जो कुछ होता अंतर्मन में
उजागर उसे कर देती है
कलम जब बोलती है।
मनोभावों को हमारे
दे शब्दों का सुंदर रूप
साहित्य सृजन भी कर देती है
कलम जब बोलती है।
भूत-भविष्य- वर्तमान के
राज सभी खोलती है
कलम जब बोलती है।
कभी-कभी तो ये प्रहार
तलवार से भी तेज करती है
और कभी-कभी प्रहार
तलवार का रोक देती है
कलम जब बोलती है।
*************************************
स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच, उत्तर प्रदेश।
विषय कलम
विधा काव्य

7 अप्रैल 2020,मंगलवार

शक्ति भक्ति कलम पक्षधर
कलम काव्य की रचयिता।
वेद उपनिषद ज्ञान इसी पर
जग प्रकाशनी कवि कविता।

अंतरिक्ष भूगोल खगोल नभ
कलम खोजती सागर मोती।
संत ऋषि महाज्ञानी लेखक
सदा भरें तिमिर ज्ञान ज्योति।

विद्वजनों का साधन कलम है
नव ज्ञान जग करें आलोकित।
जँहा कलम चलती ज्योतिर्मय
हो अंधकार अज्ञान विलोपित।

प्रकाश पुंज है यह दुनिया का
पकड़ छात्र प्रिय बढ़ते आगे।
ज्ञान पिपासु कलम चलाकर
लक्ष्य प्राप्त हित वे सुख त्यागे।

कलम विकास करे विश्व का
विधि निर्माण धन कुबेर का।
लोककल्याणी सब सरकारें
राह देखती कलम सुमेर का।

मृदु कंठी वाल्मीकि कलम से
प्रथम शब्द बना श्री राम का।
जग मनोरथ कलम पूर्ण करे
ज्ञान विकास रूप श्याम का।

कलम अर्चना वंदनीय जीवन
कलम बिना जग सारा सूना।
कलम शक्ति भक्ति जीवन है
श्री कलम सुख देती जग दूना।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक - कलम

जब से हुई कलम से यारी मत पूछो क्या हाल है
चलते फिरते उठते बैठते करती ये सवाल है ।।

कभी लगाये गुणा भाग कभी जिन्दगी का ख्याल है
वर्तमान की मुश्किलों से हो जावे ये बेहाल है ।।

कभी वादियों में घुमाये दिल को करे निहाल है
दर्शन हो या राजनीत सब पर बुनती जाल है ।।

बड़ी अनोखी बड़ी घुमक्कड़ मानो इसकी चाल है
कभी उबाऊ जीवन में भी करती ये धमाल है

प्रेमिका को ऐसे ढूढ़े ज्यों उम्र सोला साल है
सबने साथ छोड़ा''शिवम" ये यारी बेमिसाल है ।।

हरि शंकर चाैरसिया 'शिवम'
स्वरचित 07/04/2020

विषय - कलम
द्वितीय प्रस्तुति


हम ये यूँ नही लिखते हैं
हम ये यूँ नही हँसते हैं ।।

कुछ तो तार जुड़े हुए हैं
क्यों नही आप समझते हैं ।।

राजदार इस दिल को समझो
खुद दिल में क्यों न उतरते हैं ।।

दो शब्द लिखकर के देखो
ये शब्द यूँ न निकरते हैं ।।

जादु कर गयी सूरत कोई
उस सूरत पर हम मरते हैं ।।

जब भी रहें अकेले में हम
काव्य की गागर भरते हैं ।।

उनसे मिले बरसों बीते
आज भी उन्हें तड़फते हैं ।।

कुछ तो इश्क में है 'शिवम'
आज हम यह परखते हैं ।।

कलम ने हमको समझा है
कलम को हम समझते हैं ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 07/04/2020

दिनांक 7।4।2020 दिन मंगलवार
विषय कलम


हे कलम तूं लिख नया,जिससे कि कुछ बदलाव आए।
गीत फूटे क्रान्ति के मग में ज़रा ठहराव आए।।
लूट हिंसा और कपट का हर तरफ है बोलबाला।
झूठ मक्कारी बढ़ी पाखंड आडम्बर निराला।
विवश मानवता विकल बेचारगी का राज है।
छिन रहा बचपन जवानी पर नशे का ताज है।
गीत लिख जिससे कि मानव में नहीं बिखराव आए।।
जो धनी हैं आज जग में उन्हीं सब का राज्य है।
न्याय मिलता है नहीं अन्याय का साम्राज्य है।
चंद रुपयों के लिए ईमान बिकते हैं यहाँ।
धर्म पर धन के हथौड़े चोट करते हैं यहाँ।
ऐसा लिख जिससे कि निर्धन भी यहाँ इंसाफ पाए।।
एक दूजे से आगे जाने की मची घुड़दौड़ है।
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नहीं प्रतियोगिता पर जोर है।
स्वार्थ वृत्ति बढ़ गई संबंध में दूरी बनी।
अपनत्व स्नेह भ्रातृभाव सब कपट धूलि सनी।
लिख सभी सद्बुद्धि पाएं न कहीं दुहराव आए।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा
मंगलवार/07अप्रैल/2020
विषय - कलम

विधा- कविता
" अगर मैं होती कलम "
अगर मैं होती कलम,
तो मेरी यह उत्कंठा होती...
किसी गरीब बच्चे की कलम बनूं
जो उसे श्रेष्ठ बना सकें!!

अगर मैं होती कलम,
लिखती होली के रंग ।
बिखरते सिमटते रिशतों का
लचीलापन!!

अगर मैं होती कलम,
तो लिख पाती उन
श्रमिक की मेहनत
उनकी भूख जो
मेहनत कर के भी
भूखे रह जाते हैं!!

अगर मैं होती कलम
तो जज़्बाती हंगामो को
देती सुकून ...न्याय पक्ष
को सिखाती सत्य!!

रत्नावर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद-झारखंड
07/04/2020
विधा - तांका

शीर्षक - कलम

1-
हाँ, मैं कलम !
सच्चाई करूँ बयां,
अचूक वार,
दोधारी तलवार,
जाने ये सारा जहां ।

2-
मानव मन
भावों का समुंदर,
स्वर्णिम यादें
पन्नों की धरोहर
समेटती कलम ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
क़लम

गिरा बडा है वकार, जब जब झुकी कलम है।

कहाँ बचा है मयार, जब जब बिकी कलम है।

हौसलो के हर्फो में, हिम्मत की लिखावट है।
थके थके हम यार, जब जब थकी कलम है।

तहरीर ने लिखे है यहां, तहरीक के अन्जाम।
रुके हैं सिलसिले के जब जब रुकी कलम है।

लिखे हैं दर्द भरे जाने, ये कितने ही अफसाने।
हंसी की बरसात हुई ,जब जब हंसी कलम है।

इसकी कुर्बानियों के सिलसिलो की हद नहीं।
फूंक दी जान वतन मे जब जब फुंकी कलम है।

विपिन सोहल
दिनांक-07/04/2020
विषय-कलम




कलम क्या क्या करूं मैं श्रृंगार
स्याही क्या जाने दर्द का प्यार।
हौसले और पौरूष बड़े इस कदर
धरती पर होती है कलम की वार।।




दर्द के गीत प्यार की बातें
कसमसाती हुई तनहा रातें।
लेखनी लिखती कयामत के लम्हे
सियासत से भरे हैं रिश्ते नाते।।

मौलिक रचना सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक 07-04-2020
विषय-कलम


कलम तलवार से भी शक्तिशाली होती है,
कलम न कभी थकती है और न सोती है l
एक कलम ही एक ऐसी ताकत धरा पर,
जिसमे सुंदर भाव सम्प्रेषण अक्षर मोती है।

कलम मनुज अंतस की सोच बयाँ करती है,
कलम भावना के भी विचार बयां करती हैl
कलम ही भूत वर्तमान और भविष्य लेखी ,
कलम युगान्तरों की कथाएँ बयां करती है l

कलम ही पूरे ब्रह्मांड को पराजित करती है,
ज्ञानी शिक्षित जन के हाथों में ही सजती है l
कलम ही कल्पना यथार्थ की साक्षी होती,
कलम ही वेद उपनिषद ग्रंथ पुराण रचती है l

कलम ही इतिहास व वर्तमान भेद बताती है
कलम भाव व्यंजना को अक्षरों से सजाती है।
खुशी,पीड़ा,उल्लास,विषाद की साथी है यह,
पर कलम कभी भी नहीं खुद पर इतराती है।

कलम साक्षर व निरक्षर का अंतर कराती है,
एक कलम ही जज्बातों का मर्म सुनाती है।
वाणी नश्तर हो सकती है पर कलम नहीं,
कलम जीवन को हर पल जीवंत बनाती है l

प्यार नफ़रत ईर्ष्या द्वेष का भेद बताती है,
बिन कहे अंतर्मन से अंतर्मन पहुँच जाती है l
माँ सरस्वती का शाश्वत श्रेष्ठ वरदान है यह,
साधारण मनुष्य को भी महान बना जाती है l

स्वरचित मौलिक

कुसुम लता 'कुसुम'
आर के पुरम
नई दिल्ली

बिषय - कलम

मैं सुंदर शब्दों का राही हूँ
मैं कलम का सिपाही हूँ
साहित्य से मेरा गहरा नाता
डायरी का प्यारा भाई हूँ
बड़े-बड़े विद्वान लोग सदा
कलम अपने साथ रखते है
कब कहाँ किस वक़्त काम
आये दिल के पास रखते हैं
बिन थके अनवरत चले
ये लिखती मतवाली है
कलम से गहरा नाता मेरा
इसकी चाल अजब निराली है
आत्मविश्वास मन में जगाए
कविता लिख डाली है
कलम से अटूट रिश्ता मेरा
होठो पर सुर्ख लाली है
कुछ वेदना संवेदना
भावनाओं को लिख देती हूँ
मन के बिखरे भावों को
कागज के पन्नों पे लिख देती हूँ
ये हर वक़्त आती मेरे काम
मेरी कलम सबसे प्यारी है
हर क्षण दिखाती सच्ची राह
मेरी सखा राजदुलारी है
कलम पास न हो अगर
जैसे पुरुष बिना घरवाली है
सदैव संग रहती वो मेरे
मन को देती खुशहाली है।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
७,४,२०२०
मंगलवार

विषय, कलम

स्पर्श कलम का कर देता है ,
प्रकाशित जीवन धाम है ।
मन मंदिर में मूरत बसती है,
सत्य की आठों याम है ।

जग की हर इक शय से बातें करते हैं ,
हरदम भावों पर रहता उफान है।
जहाँ पर सूर्य चंद्र नहीं पहुँच पाते हैं,
पहुँच जाती कवि मन की वहाँ उड़ान है।

कर्तव्य कलम के जो समझा करते हैं ,
उन साधकों के लिए ये भगवान है।
मानवीय संवेदनाओं से वो नाता रखते हैं,
प्राणियों के दुख दर्द की उन्हें पहचान है।

सैनिक कलम के सदा दीवाने होते हैं,
उनको होता नहीं कभी गुमान है।
अपने भावों को जो यहाँ बेंचा करते हैं ,
उनको कलम नहीं माफ करती है।

तलवार से ज्यादा युद्ध कलम ने जीते हैं,
सोई इंसानियत को इसी ने जगाया है।
जो समृद्ध साहित्य को किया करते हैं,
जग में वे कालजयी बन कर रहते हैं।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश.
कलम 
कलम आज बिकाऊ हो गई है।
कलम आज कमाऊ हो गई है।

जिससे कभी क्रांतियों की सर्जना होती थी।
वही आज चमकाऊ हो गयी है।
आज तो कलमें कसीदा लिखती है।
आज कलमें प्रेम गीत रचा करती है।
अब कलमकार क्रांति का सिंहनाद नहीं करता।
अब वो अपनी कलम की बोलियाँ लगाता है।
अब वो समाज का आईना नहीं रह गया।
अब वो कलम का सफल व्यवसायी है।
अब वह अपनी पार्टी लिए लिखा करता है।
चाहे जायज़ या नाजायज लिखा करता है।
अब कलम से किसको गुहारें हम जबकि वो घटिया और बिकाऊ है, अनुपयोगी और उबाऊ है।

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239

विषय-कलम।
स्वरचित।

कलम स्वयं
चुप रहती है,
कुछ नहीं कहती है।
वो बोलती है तब जब
हम स्वयं सोचते-समझते हैं,
भावनाओं के भंवर में डूबते, उतरते हैं।।

कलम हथियार
बुद्धि का,विचार का।
करती घाव भयंकर,दिलो-दिमाग पर
जब आती है खुद पर,छा जाती जग पर।
हम जो बनते हैं खुद में बुद्धि जीवी।
हमें बनाया है विधाता ने
अपनी कलम से लिख दिया
हमारा भूत,वर्तमान,भविष्य सब।।

हमारी कलम का क्या?
खोखली है,जब मर्जी
बन्द,कुंद हो जाती है।
जब तक ना पढ़े कोई,
बेअसर ही रह जाती है।

पर ऊपर वाले की कलम
लिखती है भाग्य हर जीव का।
बड़ा मुश्किल बदलना इसका है।
लेखा-जोखा रखती है हर प्राणी का
भुगताती है हर कर्म आगे-पीछे किये का।।

हमारी कलम में तो जंग भी लग जाती है
कई तरह की,धन-बल की या
सोच-विचार, दुनियादारी की।
पर निरन्तर चलती, बिन विघ्नबाधा,
उसकी ईमानदार कलम बिन भेदभाव।।

तो हे प्राणी!
डरो तुम ऊपरवाले की कलम से।
निगाह रखो अपने कर्मों पर।
भटक ना जाये राह चंचल मन।
तुम्हारा हिसाब-किताब होगा बराबर।
ना हो पश्चाताप फिर अन्तिम डगर
****

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
विषय-कलम
दिनाँक-07/04/2020

विधा-दोहा

शक्ति कलम की है बड़ी,जैसे हो तलवार।
रक्तपात करती नहीं,देती दुश्मन मार।।

विनती मनसा से यही, दें मुझको वरदान।
उनकी महिमा के ललित, लिखे कलम मृदु गान।।

चले सर्वदा ये कलम, रचूँ नित्य नव छंद।
शाश्वत प्रकृति सौंदर्य को,करूँ छंद में बंद।।

समस्त जग व्यवहार को,कलम करे लिपिबद्ध।
रच नवीन इतिहास को,करे महत्व निज सिद्ध।।

कृपा कलम की ही हुई,रचा विपुल साहित्य।
इस गंगा में डूबकर, होते पावन नित्य।।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय क़लम


उदासियो के
जाल में
उलझकर रह
जाती हूं
दर्द और टीस
उठती है
गहरे अंतस
तक
आंसू छलकते हैं
और
मैं हो जाती हूं मौन
और मेरे लफ्ज़ भी
खामोश
" क़लम "भी खामोश
न कोई
नज़्म न ग़ज़ल
सिर्फ और सिर्फ
खामोशियां

आशा पंवार
दिनांक -07/04 /2020
विषय -कलम


दो में तुमको कौन चाहिए
कलम चाहिए या तलवार
तलवारे जब असफल होती
बनती कलम महा हथियार ।

कलम दिलों में ज्वाला भरती
लिखती है इतिहास ......... ।
तलवारों की त्रासद गाथा
लाती है परिहास ............।

लिखने को लिख सकती हूं
अर्चन -वंदन अभिनंदन ...
लेकिन जब घर आग लगी हो
कैसे लूं रोली चंदन ......... ।

जब पीड़ा पाती है कलम
तब व्यथा शब्द में बंधती है ।
जब नैनो से अश्रु टपकते
आह कसकती कहती है।

जब अपनों की चाह व्यथित
उद्वेलित करती है मन को ।
तब कोई एक उपाय नहीं
कलम ही महकाती तन को ।

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

7//4/2020
बिषय, कलम

मेरी कलम खरा खरा बोलती है
जो दिखाई दे रहा वही राज खोलती है
कहीं धोखा कहीं कपट कहीं झूठ का बोलबाला
कैसे लगा लूं अपनी लेखनी पर ताला
हो सकता है किसी को नकारात्मक लगेगा
अंतर्रात्मा जो देखेगी वही पटल पर सजेगा
सच्चाई वयां करती हूँ मन का विकार नहीं
मुझे गलत जरा भी स्वीकार नहीं
लपेटने की मेरी आदत में शुमार नहीं
किसी की भावनाओं से खेलना भी मेरा अधिकार नहीं
देखे भी नहीं जाते दुनियाँ के अजीब रंग
देखते ही उड़ने लगती है मेरी कलम की पतंग
न शाबाशी न सम्मान की चाह है
भले ही कठिन पर पकड़ूं सही राह है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
दि०7-4-2020
शीर्षक:-कलम


कलम के पुजारी हैं हम
तो युगों से,
कलम केआभारी सभी
हैं युगों से,
कलम ने लिखीं वेदऔर
रिचाएं युगों से,
कलम ने लिखी रामायण
और गीता,
है इतिहास सारे जहाँ का
कलम से,
ये कवियों की आत्मा,
लेखकों की ज़िन्दगानी,
साहित्यकारों का धर्म,
कलम कारों की निशानी,
कर्मकार कलम से हीरोटी, कमाते ,
अमीरों की भी है गरीबों की भी है|
जैसे हाथ होते हैं वैसे
चलती ये है|
यही हमको जीना सिखाती,
यही ज्ञान की ज्योति मन में
जलाती,
मोहब्बत की भी है,
अदावत की भी है,
इंकलाब की भीहै,
बगावत की भी है,
समय की रवानी की,
लिखाती कहानी,
वो मीरा के पद हों,
या कबीरा की बानी,
कलम के कदम में,
सभी सिर झुकाते|
ताकतें कोई भी हो ,
इससे सब हार जाते|

मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक रचना है

विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक 7 अप्रैल 2020
विषय कलम



बहती पवन सी
मचलती नदिया सी
तुम चलती जाना
कलम रूक न जाना
कही तुम रूक न जाना

उछलती हिरणी सी
महकती खुशबू सी
लहराती लहरों सी
तरंगित सरगम सी
तुम चलती जाना
कलम रूक न जाना
कही तुम रुक न जाना

घुमडते मेघ सी
धावक के वेग सी
भाग्य के रेख सी
एक लंबी रेस सी
तुम चलती जाना
कलम रूक न जाना
कहीं तुम रूक न जाना

लिखना हृदय उद्गार
हर एक मन के विचार
सत्य कथन और आचार
सुखमय भारत व संसार
तुम चलती जाना
कलम रुक न जाना
कही तुम रूक न जाना

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

कलम

मैं कलम हूँ। युगों से विभिन्न रूपों में मेरा प्रयोग होता आया है। मनुष्य ने सबसे पहले नुकीले पत्थरों से गुफाओं की दीवारों पर अपना जीवन उकेरना आरम्भ किया। महाऋषि वेदव्यास ने जब गणेश जी से महाभारत लिखने का अनुरोध किया किया तो उन्होंने अपना दाँत तोड़कर उसके नुकीले भाग से मेरा निर्माण किया। कागज के स्थान पर उस समय ताड़पत्र और भोजपत्र का प्रयोग होता था।
उसके बाद हंस के पंख और मोर पंख का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। हंस का पंख बहुत मजबूत माना जाता था। इसलिए इसका प्रयोग काफी समय तक चलता रहा और आदि ऋषियों ने मेरे इसी रूप से ताड़पत्र और भोजपत्रों पर अनेक महाकाव्यों की रचना की।
तत्पश्चात सरकंडे से मेरा रूप ढाला गया। सरकंडे की कलम का प्रयोग लकड़ी पर लिखने के लिए किया गया। आज भी गाँव, कस्बों में बच्चों को लकड़ी की तख्ती पर सरकंडे से वर्णमाला और गिनती लिखना सिखाया जाता है।
मेरा एक रूप सलेटी या चॉक भी है जिससे स्लेट या लकड़ी के बोर्ड पर लिखा जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी में फिर मेरा रूप बदला और निब का चलन हुआ। तभी चीन और मिस्र में पेपर का निर्माण शुरू हुआ और मेरा प्रयोग जोर-शोर से होने लगा। अब तक तक मुझे स्याही में डुबा-डुबा कर लिखा जाता था। उन्नीस सौ चालीस के आसपास मेरे
पिछले हिस्से यानी पेट में स्याही भर दी जाती थी और अगले हिस्से यानी निब से कागज पर लिखा जाता था। इसके बाद अनेक कम्पनियों ने मुझे अलग-अलग रूपों में ढाला। उन्नीस सौ साठ के बाद में बॉल -पैन के रूप में मेरा जन्म हुआ। उसके बाद तो मेरा विस्मयकारी जन्म की-बोर्ड के रूप में हुआ। टाइपराइटर, प्रिंटर,मोबाइल,लैपटॉप पर ही अब लिखा जाता है। मैं भी नहीं जानती आगे मेरा क्या रूप होगा। अपना स्वरूप बदल-बदल कर, एक लंबी यात्रा पर अनवरत चलती रही हूँ।
आज मेरा इतिहास लिखने के लिए भी मोबाइल का प्रयोग किया गया है। थकी हूँ,थोड़ा विश्राम कर लूँ। आपने धैर्य से ,संक्षेप में ही सही मेरी जीवन -गाथा तो सुनी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

सरिता गर्ग
विषय कलम

जब मनुष्य के जीवन में
अकस्मात कुछ घटनाएँ
आगमन करतीं हैं,
वे वेदनाएँ हो सकती हैं,
प्रेम,ईष्या,या कोई भी रस
प्रतिक्रियाऐं लेती हैं, जन्म
प्रभावित करतीं हैं, ह्रदय
प्रभावित करती हैं, मस्तिष्क
मस्तिष्क में बसी तंत्रिकाओं
व हृदय के भावों से
जन्म होता है, विचारों का
वे विचार सामान्य नहीं
वे होते हैं, किसी पीड़ा के प्रतीक
वे होते हैं, साक्षात भाव
वे होते हैं, प्रत्यक्ष के गवाह
जिनको किसी सफेद कागज़ पर
पिरो देती है, क़लम.....
वे कागज़ मिलकर निर्माण करते
भावों की पुस्तक
निरंतर, कुछ इस तरह
मैं, अपने मस्तिष्क में
पुस्तकालय का संग्रह रखती हूँ।


लेखिका

कंचन झारखण्डे
मध्यप्रदेश।।

स्वरचित

विषय-कलम
विधा-छंदमुक्त


अब तो चल पड़ी है मेरी कलम
अब न अधूरी रहेगी मेरी नज़्म
मुझे विश्वास है कि
एक नया इतिहास रचेगी अब मेरी कलम।

अब न अधूरा रहेगा कोई शब्द
मुखरित होगी कलम
न रहेगी अब निःशब्द
मुझे विश्वास है कि
कोई कमाल दिखाएगी अब मेरी कलम।

कभी ये ज़िद पर अड़ जाती है
कभी बेपरवाह भागती है
मुझे विश्वास है कि
समय संग परिपक्व हो जाएगी मेरी कलम।

इसके इशारे पर हम चलते हैं
पल पल इसके ढंग बदलते हैं
मुझे विश्वास है कि
कभी मेरा सिर न झुकने देगी मेरी कलम।

चाहे सारा जहाँ मुझे मंझधार में छोड़ दे
चाहे अपने मुझसे मुंह मोड़ लें
मुझे विश्वास है कि
कभी न साथ छोड़ेगी मेरी कलम।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय --कलम
दिनांक -7.4.2020

विधा --मुक्तक
1.
कलम नेह बरसा सके,कलम लगाती आग ।
कलम सत्य जब देखती,वो गाती है फाग ।
त्राहि त्राहि जल की मची,नई चाहिए सोच ---
परम्परा वो त्यागिए,सम्प्रति जो बेराग ।
2.
जन हित में उठती कलम, रचे साहित्य सार ।
समन्वयी सरिता बढ़े, बढ़े आपसी प्यार ।
कविता हो या गद्य हो, भरे उत्कृष्ट भाव--
देश प्रगति अरु रक्ष हित, जन गण हो तैयार ।

*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
तिथि-07/04/2020
विषय-क़लम


आंखों से गिरते आँसू
गरीब-बेबस के
पोंछती है
कलम।

जो अपना हक़ मांग नहीं
सकते उनका हक़
दिलाती है
कलम।

समाज की हर उन
अच्छाईयों को
उभारती है
कलम।

समाज की हर एक
बुराइयों पर अंगुली
रखती है
कलम।

जो मूक और मौन है
उनकी आवाज
बनती है
कलम।

अपने में तेज और ओज भर
कर लोगों में उर्जा
भरती है
कलम।

मेरे अहसासों और मेरी अनुभूतियों
को लफ्जों में
ढालती है
कलम।

अनिता निधि

7/4/20
विषय-कलम


वो ख्वाबो की
बेहतरीन दीवानगी थी।
रात भी,नींद भी,
एक कहानी थी।
दिल मे आहटों की
आहट जो थी।
हवा के झोको की
प्यारी सी दस्तक थी।
तुम आये तो नही
कही चुपके चुपके
नींद में जगने से
पलके भारी थी।
यू तो रोज का था।
तुम्हारा सताना।
प्रेम की कहानियों का
याद दिलाना।
शरारत की सारी
हदे पार करना।
अलसाई सी राते
महकते से ख्वाब
सितम के झमेले
लगते अलवेले
अजीब सी दीवानगी
रात सुहानी
लिखते कहानी
कल्पनाओं की दुनिया
थी कलम की यारी
नही सोने देती
चाहे पलके हो भारी

स्वरचित
मीना तिवारी


शब्दो की डोर ले
कलम की रंगत ले
कोरे कागज पर
गम की गाँठो को
लकीरों के माध्यम से
कल्पनाओं की उड़ान सङ्ग
कविता का रूप दे
यादो के समंदर में
खो जाया करती हूं
मूक भाषा से
मौन अभिव्यक्ति ले
मन मस्तिष्क की
चहल कदमी के
बीच भावो का बहाव
उतरता रहता है
अनकहे जज्बात
उकेरे जाते है
कोरे कागज पर
अपने अहसासों की
दुनिया मे
खो जाया करती हूं
कलम की मुहब्बत
तो देखो न यारो
हमेशा तैयार रखती
स्वयं को कागज पर
बहने के लिए
मिटाती है खुद को
और पाता है
वाह वाह
कवि....
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय : कलम
विधा : हाईकू

तिथि : 7. 4. 2020

कलम
---------

धार कलम
सु-उद्धार नमन
खिले चमन।

फैले अमन
सुकलम नमन
शत्रु दमन।

कलम शक्ति
साहित्य अभिव्यक्ति
दैवीय उक्ति।

कलम कला
शाश्वत निधि जमा
प्रकाश फैला।

कलम कवि
रचे अनोखी छवि
चमके रवि।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित

द्वितीय प्रस्तुति


पहली बार जब थामा था तुम्हें
प्यार से ऊंगलियों मे सजाया था ,
अपना नया दोस्त बना तुम्हें
चूम कर रिश्ते को सजाया था ।

मेरा दोस्त मेरी कलम अब
पल पल मेरे साथ रहे,
अहसासों को शब्दों की माला
में पिरो मन का रीतापन भरे ।

कोरे कागज को खूबसूरत रंगों
से सजा मन को अभिव्यक्त करे,
लेख मेरे ,लेखनी के माध्यम से
नित कल्पना की नई उड़ान भरे।

जब संवेदनशीलता शब्दों में ढले
कलम निर्भीक धाराप्रवाह चले,
स्वयं को स्वयं से परिचित करा
जीवन को नई दृष्टि नये लक्ष्य मिले।

लेखन से मिला विस्तार मुझे
सीखा नई विधाओं का अद्भुत संसार
आप सब ने पढ़ कर मुझे
दिया रिश्तों का अनुपम उपहार।

लेख,लेखनी से गहरा नाता है
दोस्त बिन रहा नही जाता है
एकाग्रता यूँ ही अब बनी रहे
कलम निष्पक्ष निडर चलती रहे।


अनिता सुधीर

7/4/2020
"कलम"
*
**********
1 कलम पुष्प
कागज़ में महकी
भावाभिव्यक्ति।।
2
कलम धार
सोई देशभक्ति में
जोश संचार।।
3
कलम ज्योति
कुबुद्धि विनाशक
सद्भुद्धि रही।।
4
ज्ञान सागर
कलम पतवार
शब्दों की धार।।

स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ

II कलम II नमन भावों के मोती....(एक पुरानी रचना सांझा कर रहा हूँ...)

कलम तेरी तो है बात निराली...

तू कब..कैसे...किसपे चल जाए...
कभी मधुर बजती बाँसुरिया सी...
कभी तलवार चमक दिखलाये...
तू कब..कैसे...किसपे चल जाए...

कभी चले ठुम्मक ठुम्मक...
पैंजनियां छनकाये...
तुलसी के छंदों में मीठी...
राम धुन सुनाये....
बच्चों की किलकारिओं सी...
मिश्री कर्ण घुल जाए....
कभी बारिश में भीगी...
कागज़ पे...
नाव चलती जाए....
बच्चों की हठखेलियों से तू...
सब मन मोह ले जाए......
बिलकुल नटखट बच्चे जैसे तू...
न जाने कब क्या कर जाए....
कलम तेरी है बात निराली...
कब...कैसे...किसपे चल जाए..

जवाँ दिलों की धड़कन में तू ...
धक् धक् कर रह जाए....
बन आवाज़ खामोश दिलों की...
दिल को दे समझाए....
कभी टूटे जो दिल किसी का....
मरहम दे है लगाए....
दर्द में जब कोई डूबे आशिक़...
तू सैलाब ले कर आये....
डुबोकर समंदर अश्कों में...
तू चमत्कार दिखलाये....

उड़े चुनरिया गोरी की तो...
पवन ठहर जाए....
गाल पे काला तिल गोरी का...
तू पहरेदार बनाये....
जब लहराए पवन मस्त सी, तू...
ज़ुल्फ़ गोरी की लहराए....
कंगना...बिंदिया चमकी जब...
तू बिजली बन गिर जाए...
कभी गाल गुलाबी बनाती...
कभी पंखुड़ी से होंठ बनाये...
कितने रूप हैं तेरे कलम जी....
कैसे कोई बतलाये....

आती जब ठहरे हाथों में, तो...
नया सृजन कर जाए....
ज़िन्दगी के हर सफ़े को तू....
खोल खोल समझाए.....
पर बेशर्म हाथों का खिलौना बन...
विध्वंस रचती जाए....
हर गली..मोड़..हर बाग़ में बैठी...
तू अपने गीत सुनाये....
कभी दुहाई देती उम्र..जज़्बात की...
कभी देह चिल्लाये....
पर नासमझ ये दुनिया ऐसी....
तेरी बोली समझ न आये....

जात पात न धर्म लिहाज तुझे है....
तू सबके ताज सजाये.....
गीत गोबिंद बने तुझसे, कभी...
गीता राह दिखलाये....
बन कबीर तू दिल को खोजा....
नहीं बहरा खुदा बतलाये....
पहुंची जब सूरदास हाथ में...
कान्हां की मूरत दे दिखलाये.....
जग दंग देख रह जाए.....
कभी रसखान कभी मीरा में...
तू प्रेम सुधा बरसाए...
जग प्रेममय हो जाए....

कभी बन लक्ष्मी बाई तू...
देश की आन बचाये....
कभी वीरों के चरण कमलों में....
तू फूल बन बिछ जाए.....
कभी हिमालय से ललकारे...
तो कभी सियाचिन जाए....
ज़िन्दगी और मौत का सच तू....
आँखों से देख दिखलाये....
जब माँ के जांबाज़ों के आगे...
कृतज्ञता से झुक जाए...
तेरे अश्रुओं से सब की ही...
रूह पिघल बह जाये.....
जब ललकारें देश के दुश्मन...
तू बन शमशीर चमक जाए....
किस विद करून मैं तेरा वर्णन....
मुझे समझ न आये....

जब मांगू मैं सुकून खुदा से...
तू माँ की लोरी सुनाये....
जब लगूं कभी मैं गिरने तो...
बाजू पिता की तू बन आये....

बन जीवन संगिनी मेरी तू....
हर मोड़ पे साथ निभाए....
जैसे भाव उमड़े मन में...
तू वैसे ही बहती जाए....

कलम तेरी तो है बात निराली...
तू कब...कैसे...किसपे चल जाए...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०७.०४.२०२०

कलम
नमन मंच भावों के मोती समूह। गुरुजनों, मित्रों।


कलम की ताकत को कौन नहीं जानता।
इसकी लिखावट कौन नहीं पहचानता।

इससे जमाने में ‌हुए कितने काम।
भेजते थे संदेश इसी से,जब थे हम गुलाम।

सबको एकजुट करके।
भड़काया खिलाफ अंग्रेजों के।

सबने जब ठान लिया लड़ने को।
जीते हम, जश्न मनाया आजादी का।

इससे हर हुए बड़े-बड़े मसले।
चाहे बड़े या छोटे हों मसले।

कलम हीं शान है कलमकार की।
यही एक पतवार है मंझधार की।

स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

विषय-कलम
दिनांक 7-4-2020






दुनिया हकीकत उजागर,कलम सदा मैंने किया।
अल्फाज बहुत चूभे सबको,पर ठहराव ना दिया।

बेजुबान जुबा बन कर सदा,सब बयां मैने किया।
द्वेष का सैलाब उमड़ा,उसे प्रेम से समझा दिया।

ख्वाब ना टूटे किसी के,ना गलत कुछ भी किया।
गलत जहां मुझे लगा,बस साफ साफ कह दिया।

नकाबपोश चेहरों को,बेनकाब सदा ही मैंने किया।
खामोश रही सदा,बस कलम कहर ही ढा दिया।

सच्चाई पाठ ऐसे,सब को सदा ही मैने पढ़ा दिया।
सद्भावना लाती कलम, इतिहास यूं दोहरा दिया।

कभी वक्त गलत मान ,खुद खामोश मैने किया।
बड़ों के सम्मान में सदा ,सर अपना झुका दिया।

अपनी मन वेदना को, कलम अंजाम मैंने दिया।
ना किया आहत किसी को, अपना काम दीया।

कहती वीणा, लेखनी फर्क मैने कभी ना किया।
सच झूठ का फर्क,बस हौंसला ए दम मैंने किया।


वीणा वैष्णव
कांकरोली

नमन "भावों के मोती"🙏
07/04/2020
ुरानी रचना
विषय:-"कलम"
(1)
कागज़ के केनवास पर
भरती कल्पनाओं के रंग
संवेदनाओं को स्पर्श कर
चित्रण कर देती है कलम...

शब्द साधना के पथ पर
अनुभवों की स्याही संग
भावों का आह्वान कर
स्वयं चल देती है कलम...

प्रेम-घृणा के दो छोर पर
विचलन करता जीवन
शब्दों में इन्हें बाँध कर
प्रकट कर देती है कलम...

साहित्य के गगन पर
विधाओं के इंद्रधनुष
मौसम को मुट्ठी में कर
मन बदल देती है कलम...

प्रेरणा फूँके लगाए पर
वंचितों और शोषितों की
चेतना जगा मशाल बन
राह दिखाती है कलम...

निशां रहते हैं दिल पर
कलमकार की यादों के
इतिहास को संजो कर
अमर कर देती है कलम...

(2)

"कलम"

सृजन भी साधना,
साधन है कलम,
माँ शारदेआह्वान,
भावों का आगमन l

अनुभव की स्याही,
जब भर लेता मन,
कागज के मंच पे,
खिलते जीवन रंग l

छलकते हैं मौसम,
झलकता जीवन,
इतिहास को संजों,
जिंदा रखती कलमl

भावों के गगन पे,
खिले इंद्रधनुषी रंग,
विचार धार लगाती,
शक्ति जगाती कलम l

सत्य पे अडिग रहे,
राह सुझाये सुगम,
न बिके न धर्मांध दिखे,
वही सच्ची कलम l

स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)


07/04/2020
चंद हाइकु आज के विषय "कलम"पर..
(
1)
साहित्यकार
कलम का पुजारी
एक चिंगारी
(2)
चेतना जगे
"कलम" मारे फूंक
कुर्सियां हिले
(3)
भाव देवता
"कलम" का पुजारी
शब्द साधना
(4)
साँझ पटल
सूरज की कलम
रंगती घन
(5)
कागज़ मंच
कलम ने दिखाये
जीवन रंग
(6)
आँसू की स्याही
"कलम"का आक्रोश
उकेरे दर्द
(7)
सत्य पे खड़ा
"कलम" का सिपाही
झूठ से लड़ा

स्वरचित
ऋतुराज दवे

विषय-कलम
विधा-स्वतंत्र

दिनांक-07/04/2020

कलम की नोक से
संवरते है जब
लफ्ज मेरे
तेरी तस्वीर
उभर आती है

चाँद सी टिकूली
चँद्रललाट चढ़
सितम ढाती हुई
छंद सी छा जाती है

गोरे चिकने गल पे
तिल जो लगा देती है
कलम मेरी,
बदनजर से बचा
तेरे नूर को नूरानी
बना गीत कोई गाती है

गुलाब की
पंखुड़ियों से
लब तेरे दुपट्टा दबा
लेते हैं
सच कसम से
कलम मेरी
थरथराती गजल
गुनगुनाने लगती है

तीखी तीती नासिका
में पिरामिड का
गुमां कर लेती है

कमलनाल-सी ग्रीवा
तल द्वैघट अलंकृत
नार के सज्जित
अलंकार हैं

पद्मिनी- सी कमनीय कमर
लचीली कचनार-सी
कविता में ढल
कलम की कल्पना को
तरंगित करती है

कलम की नोक से
जब संवरती
पद्मकमल नाल -सी
बाँह, आशुकविता में
मह मह महक
जाती है

अनजाने सफर,
अनजान डगर पर
डगमग-डगमग से
चरणकमल, यात्रा वृतान्त
रच जाते हैं

घने कारे कजरारे कुंतल
के अमृतरस में
डूबकर भी
कलम प्यासी की प्यासी है
कलम की ख्वाहिश
अभी अधूरी है।

डा.नीलम

 विषय-कलम
"कलम"
बचपन में मिल जाए तो ज्ञानवान,

के साथ, संस्कार भी देती है कलम!

मेहनत कर जो पसीना बहाते हैं,
उनको भविष्य का सबब सिखाती कलम!

हर तरफ नफरतों के मेले भले ही लगे हो,
ममता, प्रेम में सैलाब लाती है कलम!

लिखता है जब कोई कविता ओजपूर्ण ,तो,
देश के प्रति बलिदान हेतु प्रेरित करती कलम!

दुनिया में जो वंचित लोग मारे मारे फिरते हैं,
उन्हें सही न्याय की उम्मीद दिलाती हैं कलम!

बेबस कुछ इंसान जो घुट घुटकर मरते हैं,
उनके इरादे मजबूत कर आंसू पोछती हैं कलम!

हर वो इंसान जो परोपकार में जीता है,
नाम गर्व के साथ उसका इतिहास में दर्ज करती कलम!

सीमा मिश्रा
सागर मध्यप्रदेश

विषय निर्दिष्ट
विधा कविता
दिनाँक 7.4.2020
दिन बुधवार

कलम
💘💘💘

कलम वीर की अपनी महिमा है
कलम वीर की अपनी गरिमा है
कलम वीर शिलालेख लिखते हैं
कलम वीर सदा विशेष लिखते हैं।

यह कलम ही है कि तुलसी आज स्मरणीय हैं
यह कलम ही है कि कबीर आज वन्दनीय हैं
यह कलम ही है कि कालीदास का मेघदूत है
यह कलम ही है कि चन्द बरदाई कलम सपूत है।

कलम से ही सँस्कृति का दीप जलता
कलम से ही सभ्यता का पुष्प खिलता
हमारे वेद पुराण हमारी कलम के शिलालेख हैं
आज भी ये रखते अपना स्थान विशेष हैं।

कलम से सम्बन्ध निखर जाते
कलम से मतभेद सुधर जाते
कलम होती है निर्माण सेतु
कलम के लेख होते सबके हेतु।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर


दिनांक ७/४/२०२०
शीर्षक "कलम"

तुम हो मेरे एकांत के साथी
"कलम" तुम हो मेरे जीवन बाती।

है आकांक्षा दिखाओ राह सही
जो सही हो कर्म करूं मैं वही।

तुमसे जीवन में सरसता है आती
तुमसे करूं मैं दिन-रात बाती।

पहली बार जब मैं तुम्हें थी पकड़ी
अनेक भावों में तुमको ले उतरी।

तुम्ही से है पहचान मेरा
है एहसान मेरे पास तेरा

कल तक थी अपने से अनजान
तुमने दी मुझे मेरी पहचान।

करें सिर्फ हम सच्ची बातें
झूठी बातें कभी ना छापे।

अर्थ नही हो हमारा लक्ष्य
कर्म हमारा हो लिखना सत्य।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

" कलम"
अंहकार की ड़ोर से शब्दों को बाँध,
हे मानव न रख दिल के पास,
सुख- चैन सब खो जाएगा,
मिट जाएगें सब अहसास,
एकांत जब लगे भाने ,
उठे हृदय लहरों की धार,
लेकर सहारा कलम का,
लगाना सब भावों को पार,
बैठ कलम रूपी नैया में,
मन हिचकोले खाएगा,
जहाँ पहुँचना हो नामुमकिन,
हंस रूपी मन वहाँ पहुँच जाएगा।
***
स्वरचित- रेखा रविदत्त

विधा- मुक्तक
विषय-कलम


ले हृदय में सुख- दुख के अहसास,
जब ना हो अपने प्रियजन पास,
पन्नों पर लिख कर जज्बात,
कलम को देना ओहदा खास।

जब जब कलम बनी तलवार,
दीन दुखियों की बनी पतवार,
धन-दौलत सब हलकी पड़ी,
शब्दों में इसके इतना भार।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त

नमन मंच भावों के मोती
स्वरचित

कलम को पहनाकर अलग-अलग पोशाकें
अपने ही मन का करते हम सब
कभी पूछो उससे, के ख्वाहिश क्या उसकी
कुछ तो चलतीं नित,ना रुकतीं कभी
और कुछ बस शोकेस में सजी सी रही
कुछ बढ़ातीं लीबासों की खूबसूरती
ठाठ उनके देखते ही बनते
पर मर्ज़ी से चल नहीं पातीं,लिख नहीं पातीं
कुछ का ज्ञान बस विज्ञान
कुछ गीतों का करतीं ध्यान
कुछ परमात्मा के ध्यान में लीन
कुछ हिसाब-किताब में बड़ी विलीन
सब अपनी अपनी खूबियों में बेजोड़
कभी कुछ भी ना करें शोर
खूब ये करतब दिखलातीं हैं
जिस हुनर पे चढ़ जातीं हैं
नीली पीली लाल गुलाबी
रंगों का परचम लहरातीं
सबके अपने अलग इशारे
लाल है खुद को अलग निखारे
हम तो होते चित्रकार हैं
सब रंग हमको भाते हैं
सब खुश होके लहरातीं है
कागज़ पर फिर छा जातीं हैं
उक्सातीं फिर बलखातीं है
संवर-संवर वो जातीं हैं
बड़ा हुनर वो लातीं हैं
नखरा नहीं दिखातीं हैं
अलग कहानी कह जातीं हैं
चित्रों से जब भरमाती हैं
चलो नया एक सृजन करें
रंगों से ही भजन करें
डॉ. शिखा

विषय-कलम
विधा-स्वतंत्र

दिनांक-07/04/2020

कलम का उजियारा
--------------
पकड़ कर कलम हाथ में अपने,
रंग दो स्याही से कुछ ऐसा उजियारा,
ज्ञान का सागर बह जाये ह्रदय में,
दूर हो जाये मन का अंधियारा,

अपनी इस प्रतिभा को दो पंख ऐसे,
प्रेरणा की उड़ान भर विचरे गगन में,
कभी श्रृंगार बन बरसे,
कभी विरह-अग्नि में तरसे,
कभी भक्ति का हो गलियारा,
कभी ज्ञान का हो किनारा,

पर कलम के कदमों को सीमा में भी रखना,
भटके ना अनुचित मार्ग पर कभी भी,
ना अपमान करे किसी भी जन का,
ना असभ्य शब्दों को रचे कभी भी,
अन्याय को उत्तर सदैव दे करारा,
मातृभूमि का जो गाये जयकारा,

पकड़ कर कलम हाथ में अपने,
रंग दो स्याही से कुछ ऐसा उजियारा॥

-निधि सहगल 'विदिता'
आगरा (उ.प्र.)

विषय -- कलम
******************
मेरी गरिमा मेरी पहचान,
मेरी कलम मेरे शब्दों की धार,
अंतस में उठते जज्बातों का समाधान
जब सताई पीहर की याद,
कलम ने लिख डाले पैग़ाम
जब भी एकाकीपन ने सताया,
डायरी और कलम को
राजदार अपना बनाया,
खट्टी मीठी यादों को,
यादगार कलम ने बनाया ,
मेरी संगिनी मेरी कलम ,
मेरे हर नाजुक पल में ,
श्रोता और साधक बन रही
*********************
स्वरचित -- निवेदिता श्रीवास्तव















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