Thursday, April 2

" मनपसंद विषय लेखन"01अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-698
भावों के मोती
दिनांक-01/04/ 2020

दिन- बुधवार
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन
शीर्षक-खुशी ढूंढ लेते हैं
विधा- कविता
*************************************
चलो अपनों संग जी भर जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं
जिंदगी के सारे गम मिलकर दूर कर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में
सुकून के पल कहां मिलते हैं यारों
आज मिले हैं जो पल इन्हें जी भर जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
फुरसत में अक्सर याद आते थे
बचपन के वो सुहाने दिन
चलो आज एक बार फिर
बचपन को जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
ख्वाहिशें जो कभी रह गई थी अधूरी
आज पूरी उन्हें कर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
मेरे हिस्से का समय कहां देते हो तुम हमको
शिकायत अक्सर उनको रहती थी हमसे
चलो शिकायत उनकी ये भी दूर कर देते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
अरसा हुए आगोस में उनकी खोए हुए मुझको
चलो आज फिर उन्हें बाहों में भर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।

स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश
दिनांक-01/04/2020
दिन- बुधवार
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन
शीर्षक-पलायन
विधा- कविता
************************************
विपदा कैसी येआन पड़ी है
पलायन को जनता अड़ी है
माना संकट की ये घड़ी है
पर पलायन इसका हल नही है
जहां अभी हो वहीं तुम ठहरो
दुख- संकट थोड़ा सह लो
परीक्षा की तुम्हारे ये घड़ी है
खुशियां तुम्हारे पीछे खड़ी हैं
सोचो थोड़ा तुम भी सोचो
बढ़ते कदम अपने तुम रोको
अपने ठिकाने को वापस लौटो
नहीं तो जीती जंग हार जाओगे
गलती पर अपनी पछताओगे
समय बहुत कम है जल्दी चेतो
इस विपदा का हल तो सोचो
चूक तुम्हारी पड़ेगी भारी
गम में बदलेंगी खुशियां सारी
ईश्वर का है तुमको वास्ता
पलायन का बदलो अब रास्ता
खुशियां सबकी हैं तुम्हारे हाथ
पलायन की न करो अब बात।

प्रस्तुति-सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।

विधा काव्य
01 अप्रैल 2020,बुधवार

जबभी भीर पड़ी जगत में
पीर हरण निज प्रभु पधारे।
दुःखी दिन असहाय निर्बल
दीन दयालु ही बने सहारे।

कभी न देखा कभी न सोचा
ऐसा समय भी जग देखेगा।
स्वयम बंद निज गृह अंदर
मानव कैदी बनकर रहेगा।

स्व वतन से पलायन होगा।
जन से जन ही दूर भगेगा।
बोलो आखिर इस विश्व की
पीड़ा आकर कौन हरेगा?

अगणित मृत्यु प्रतिदिन होती
कराह रही है माँ की छाती।
वह सुबहा अब कब आवेगी ?
गीत खुशी प्रिय वसुधा गाती।

सब लाचारी कौन सुखी है?
सब स्वतंत्र परतंत्र हो गये।
सूखी प्यासी इन आँखों मे
आँसू बह बह कर सूख गये।

स्वरचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनाँक 1.4.2020
दिन बुधवार

नहीं कोई दुर्भावना नहीं कोई स्वाँग
आपस में दूरी रखना हैआज की माँग
💘💘💘💘💘💘💘💘💘

यह नहीं दूरी अपने मन की
यह तो दूरी है बस तन की
नहीं मिलने में ही भलाई है
कोरोना ने कुदृष्टि ज़माई है।

वार्ता के हमारे पास साधन हैं
इसमें सारें ही अभिवादन हैं
टैक्नोलोजी में भी वन्दन हैं
अभिनन्दन हैं और स्पन्दन हैं।

अभी सूनी रहें सड़कें कोई बात नहीं
पर करनी है कोई भी मुलाकात नहीं
कोरोना ताड़का सी छाई है सब ओर
यह कोई छोटी मोटी घात नहीं।

हम आज रहे तो कल मिल लेंगे
दिल की बातें दिल से कर लेंगे
पर अभी सारे परहेज़ निभाने हैं
हमारी सुरक्षा में एक से एक दीवाने हैं।

अस्पताल के सारे धनवन्तरी हैं
सेवा सुविधा में लगे हुए प्रहरी हैं
बैंक हैं,जल निगम हैं,विध्युत विभाग है
मीडिया है, पुलिस है,सफा़ई का रौशन चिराग है।

यह देश इसलिये ही नहीं इतना बडा़ है
यह देश वसुदेव कुटुम्बकम की मान्यता पे खडा़ है
कोरोना की धूप कुछ नहीं कर पायेगी
यहाँ मृत्युँजयी जाप का छत्र लिये हर कोई खडा़ है।
नमन मंच
शीर्षक - *परोपकार*


जिन्दगी के दिन दो चार
करले बन्दे परोपकार ।।
कहाँ शाम हो जाये कब
साथ जायें ये पुन्य हमार ।।

कोई न साथी कोई न मीत
पुन्य ही हमें दिलायें जीत ।।
लोक परलोक इससे बने
परमार्थ से करले प्रीत ।।

माँगे यहाँ न कुछ मिला
सोच का अंकुर ही खिला ।।
सोच सुधार सदा ''शिवम"
पुन्य का जड़ पाताल चला ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/04/2020

देवदारु के सघन सरल तरु
शीतल छाया, मन्द पवन गति

बोझिल उर को थपकी देती
स्नेहिल नीरवता है,
प्राणों को बल मिलता है।

सजल मेघ आच्छादित अम्बर
जल धारा में घुले अश्रु कण
मन भावों को चंचल करती,
शुभ्र कांति चपला है,
प्राणों को बल मिलता है।

निर्जन एकाकी यह कानन,
एकाकी यह तन मन जीवन,
श्वासों में नवजीवन भरती,
विजन शांति सुखदा है,
प्राणों को बल मिलता है।

मन स्वच्छंद है,खुली दिशाएं,
ना कोई बंधन, ना चिंताएं,
निश्छलता से सिर सहलाती
प्रकृति की कोमलता है
प्राणों को बल मिलता है।

शीतल सुरभित मन्द समीरण,
अश्रुत संदेशों को लाकर,
गूढ़ तुझे अभिव्यंजित करती,
तू कोमलहृदया है,
प्राणों को बल मिलता है।।
स्वरचित - महेश भट्ट ' पथिक

दिनांक-01-04-2020
विषय - नया सवेरा

स्वतंत्र सृजन

पथ पर चला पंथी अकेला
संग लेकर स्वर्णिम रश्मियों का मेला।
भास्कर का दो उदय हुआ
ढूंढ रहा है नई ताजगी, नया सवेरा।।
व्यथित था रजनी के अंगों पर
दिग्भ्रमित होकर अपने दर्द को उकेरा।
कंटक राहों पर चलकर
पथिक ढूंढ रहा है जीवन का नया सवेरा।।
स्मृतियों की बांहों में यामिनी
व्यथित व्याकुल खड़ी थी।
दृग में अश्रु छलके उषाकाल की बेला।।
उत्कर्ष हर्ष का लिए किरन अंबर में
पथिक ढूंढे जीवन का नया सवेरा।

मौलिक रचना

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज 

मृत्यु गीत
कर चलने की तैयारी।


कर चलने की तैयारी।
अब आई तेरी बारी।
ईश्वर ने तुझे बुलाया
यम तुझको लेने आया।
यह हुई जिंदगी पूरी
इच्छाएँ रहीं अधूरी।
पड़कर,तृष्णा,लालच में
दी गँवा जिंदगी सारी।
कर चलने की तैयारी।
अब आई तेरी बारी।।

अब जाना तुझे वहाँ पर
सब प्राणी गये जहाँ पर।
उस ईश्वर के घर चलना
बस चोला पड़े बदलना।
तज ठाठ-कमण्डल सारा
तज कर सब दुनियादारी।
कर चलने की तैयारी।
अब आई तेरी बारी।

तू भूल गया था उसको।
जो जन्म दिया था,तुझको।
यह जीवन व्यर्थ गँवाया
क्यों याद नहीं, प्रभु आया?
क्यों रोता जारी-जारी?
कर चलने की तैयारी।
अब आई तेरी बारी।।

तू लेकर था, क्या आया?
क्या तूने यहाँ कमाया?
तू छोड़ यहीं सब भाई!
जो अब तक करी कमाई।
काम,क्रोध,औ" लोभ मोह-
की, सिर पर गठरी भारी।
कर चलने की तैयारी।
अब आई तेरी बारी।।
अमरनाथ

1/4/2020/बुधवार
*सहयोग प्रशासन का*काव्य

सहयोग करें हम एक दूजे का,
मिलकर इस महामारी से लडें।
नहीं निकलें सभी घरों से बाहर,
सहयोग कर बीमारी से भिडें।

चिपका है जबतक ये कोरोना,
सबको सावधान रहना होगा।
मिलजुलके हमसब भारतवासी,
कहीं दूर विपदा करना होगा।

कोई विशेष बात नहीं केवल,
आपस में हम कुछ दूरी बढाऐं।
करते आवाहन एकजुट रहने,
पुलिस प्रशासन सहयोग कराऐं।

अफवाहों से सावधान रहकर,
हम सामाजिक दायित्व निभाऐं।
जो भी करें निराधार की बातें,
उन्हें सभी अच्छे से समझाऐं।

तोडें विषाणु श्रृंखला कोरोना,
नहीं बढ़ पाऐगा ये फिर कहीं।
जीत पाऐंगे समर सभी यहां,
वरना मर जाऐंगे खड़े यहीं।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

कलंकृत

मेरा जीवन मुझें अनायास
सा लगता है, जब तुम पर
अधिकार की अपेक्षा करती हूँ।
तब केनवास के समक्ष कर देती हूँ
प्रस्तुत तमाम अभिलाषाओं को तब प्रत्येक चित्रण बिगड़ जाता है, मुझसे
क्योंकि मुझें केवल प्रेम करना आता है
तब एक प्रयास कागज़ के प्रत्यक्ष कर
गढ़ आती हूँ, तमाम ख्वाहिशों को
फिर कभी ज़िक्र नहीं करती की
मैंने तुम्हें अंनत-आजीवन प्रेम करने
का संकल्प लिया है।
कभी-कभी लगता है
मैं तुम्हारे जीवन में किसी
अमावस्या से कम नहीं
जैसे किसी होनी-अनहोनी के संदेह
में भृमित वह रात किसी काल
समान लगती और तुम्हें मुझसे
भय रहता कि प्रेम से परे
मैं तुम्हारे जीवन में अनेछिक
इतिहास न मढ़ दूँ
कभी कभी लगता है
मैं तुम्हारे जीवन में किसी
चन्द्रग्रहण से अल्प नहीं
जैसे सूर्य उस रात चाँद को
स्वयं में अवशोषित कर ग्रहण कर जाता है।
वैसे ही जैसे तुम्हारी अपारदर्शी छवि
बनाकर, मैंने तुम्हें संज्ञान के आवरण
और स्वयं में स्थापित कर लिया है
ओर तुम सदुपदेश अज्ञात रहो
की मैंने ख़ुद को अभिशाप समझा है
तुम्हारे समक्ष,
जैसे मेरे सूक्ष्म अनधिकृत प्रवेश से
तुम्हारे जीवन कि लक्ष्मण रेखा भंग हो गई हो
जैसे चन्द्रग्रहण को विराम देना असम्भव हो
वैसे ही मेरा, तुम्हारे जीवन मे गमन रोकना असंभव हो
क्योंकि प्रेम किसी अभिशाप, चन्द्रग्रहण, या
अमावस्या से सदैव परे हैं।
मैं सदैव कालरात्रि की तरह तुम्हारे जीवन के
कलेस को खुद में समेटती रहूँगी
फिर मेरी आत्मा को शायद ही मुक्ति मिले
मैं तम्हारे जीवन में किसी वनवास से अभिज्ञ नहीं।
तुमने मुझें कलंकृत जीवन दिया,
अभिशापित हूँ मैं, तुम्हारे प्रेम में....

कंचन झारखण्डे
दिनांक- 01/04/2020

नया सवेरा"

कब आएगा नया सवेरा ,
अधरों पर मुस्कान सजेंगी।
कब छंटेगा घना अंधेरा,
प्रकृति कब श्रृंगार करेगी।

प्राची जाग उठी उषा में,
अंधकार के जाने से ....
अंधकार के बाद उजाला
नई भोर के आने से.....।

सूरज की हर एक किरण,
नया संदेशा लाई है......
घनघोर घटा को चीरकर,
किरण धरा पर आई है।

झंकृत हो उठे वीणा के तार,
विहंगम के आ जाने से ।
प्रकृति नया स्वर सजाती ,
खग -दल के कोलाहल से ।

नई कोपलें फूटने लगी ,
शक्ति का संचार हुआ।
पुष्प विकसित होने लगे,
नवजीवन का विहान हुआ।

प्रकृति आज परिहास कर रही ,
कल नया सवेरा आएगा ।
नया स्पर्श, नई चेतना ,
नया उत्साह जगाएगा।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

विषय-मनपसंद
दिनाँक-01/04/2020


जनता कर्फ्यू जब लगा, सख्ती थी अति जोर।
बंदे तब अल्लाह के ,मुल्ला रहे बटोर।

जमा हजारों हो गए,धूल आंँख में झोंक।
नेक काम यह तब हुआ,थी जब दस पर रोक।।

कैदी जनता हो गई ,मियाँ न समझें बात।
कोरोना को बाँट कर ,खूनी बनी जमात।।

मुल्लाजी ने कर दिया,बड़ा कुटिल ये काम।
कोरोना फैला दिया,ले मजहब का नाम।।

तेजी से अब बढ़ गया, कोरोना का ग्राफ।
छह मुल्लाजी हो गए,इस चक्कर में साफ।।

नहीं किसी को छोड़ता ,ये कोरोना काल।
मियाँ तोड़कर नियम को,किया बुरा ये हाल।।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

वि पर :-मनपसन्द रचना
दि०1-4-2020


हमने तो अपने दर्द का
उनवान सुनाया था|
सबने इसे ग़ज़ल का
मतला समझ लिया|

जो हमपे गुजरी हमने वो
दास्तान सुनाई थी,
सबने उसे एक दर्द
भरी कविता समझ लिया|

अनुभूतियों को अपनी
मैने बयां किया था,
और आपने उसे मेरी
रचना समझ लिया|

सच्चाई का प्रतिबिम्ब ही
गीतों में ढला होता
सबने उसे मगर कवि की
कल्पना समझ लिया|

जब जब यथार्थ ने एहसास को झिंझोड़ा
तब तब कलम ने उसको
कविता बना दिया|प्रमाणित किया कि यह
मेरी मौलिक रचना है|

विजय श्रीवास्तव
बस्ती

दिनांक - 01/04/2020
मनपसंद विषय लेखन

विषय - " राजसमंद के अल्फाज "

मैं हूँ राजसमंद !
मेरे राजनगर में राजसमंद झील है
तो कांकरोली में इरीगेशन पार्क भी हैं ।

हिंदू की मनोकामना पुरी करता द्वारिकाधीश जी का मंदिर है तो मुस्लिम की दुआ कबूल करती मामाभाणेज दरगाह भी है।

देखना चाहते हो तुम अगर मुझे पुरा तो दयालशाह का किला पर चढ़ जाना
भक्त हो तुम अगर महादेव के तो महाशिवरात्री पर रामेश्वर महादेव मैले में घूम आना ।

अपना स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए घूमते हो तुम अगर सुबह शाम तो मेरे जे. के. पार्क में आ जाओ
जानना चाहते हो तुम अगर मेरे अमर शहीदों के बारे में तो मेरे अमर जवान में आ जाओ।

यु मत समझना मैं सिर्फ घूमने के लिए हूँ यहाँ
खाने के लिए भी बहुत कुछ है मेरे यहाँ।

चटपटा खाना चाहते हो तुम अगर तो डुंगा बा के समोसे खा आओ
शौकीन हो तुम अगर दही बडे के तो बजरंग चाट पर आ जाओ।

मोमोज, मंचुरियन, चाऊमीन लंगोट चौराहे पर खा लेना तुम
डांडिया खेलना चाहते हो तो नवरात्रि में द्वारकेश वाटिका में आ जाना तुम।

अरे सुनो! मेरी गणगौर की सवारी और रात्रि कार्यक्रम को मत भूल जाना
इस बार गणपति महोत्सव और उसके कवि सम्मेलन में मैं तुम जरूर आना।

यही है मेरी धरोहर यही है मेरी शान
यही है राजसमंद यही है मेरी पहचान।

- प्रतिक सिंघल
1/4/2020
बिषय स्वतंत्र लेखन

सखि आमों पर कोयलिया गाने लगी
प्रीत की रीति सबको सिखाने लगी
कुहू कुहू कर कुछ कहती है ए
क्या साजन के विरह व्यथा वेदना सहती है
क्या प्रियतम को अपने बुलाने लगी
जिनके प्रियतम हैं पास वो खुशनसीब हैं
सारे जहां की खुशियाँ उनके करीब हैं
देख देख कर वो भी मुश्कराने लगी
प्यार इतना करो कि कभी न हो कम
पलकों में बसे हों मनमीत सनम
मुंह से अनुराग वरसाने लगी
प्रिय का संदेश ले प्रेम की ऋतु आई
बौराई पवन ने ली है अंगड़ाई
सोए हुए प्रेम स्त्रोत वो जगाने लगी
स्वरचित सुषमा ब्यौहार

विषय-स्वतंत्र
दिनांक 1-4-2020


🙏जोड़ विनती करु🙏


हाथ जोड़ विनती करूं,कर कुछ अच्छा काम।
दीन दुखी मदद कर,तो ही होगा जग तेरा नाम।

लेखन सहानुभूति,नहीं मिलता कभी आराम।
भूखे को भोजन जरूरत,बन तू कृपा निधान।

दीन विनय जो सुनिए ,एक वो ही दीनदयाल।
सुन दीन दुखी विनती, दुख उसके है अपार।

बन सहायक दुखिन का,बन जा तू दीनानाथ।
कैसे नजर मिलाएगा,जो प्रभु होगी मुलाकात।

दीन दुखी यह कुनबा,बस कुछ दिन की बात।
दीन आर्तनाद सुन भी,ना पसीजा क्या इंसान।

कहे वीणा मान जा,नहीं मिले यह सौभाग्य।
आँख अंधा बन बैठा, क्या ले जाएगा साथ।



वीणा वैष्णव
कांकरोली
बुधाष्टमी 01-04-2020
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शक्ति आराधन
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हे आद्या जग स्थितिकारिणी
तेरा मां मैं ध्यान धरूं।
हे दूर्गे भव दुर्गतिहारिणि
तेरा वैभव गान करूं।
मैं जगति माया से मोहित
मन पूर्वक आव्हान करूं।

हे गुणातीता गुणनिधि आर्द्रा
त्रिगुण वेग से पार करो।
मैं अबोध भ्रमित गतिभ्रष्ट जीव
मां दिशा दशा संचार करो।
निज अस्तित्व संज्ञान नहीं कुछ
स्थिति हेतु पद प्रसार करो।

हे पूर्णा पूर्णतरा विश्वरूपा
भगवती विश्वप्रणेता तुम।
अचलअडिग अनंतस्वरूपा
सर्वश्रेष्ठ सर्वाकर्षा तुम।
तेजपुंज तेजस्वी तमहर्ती
सकल सृष्टि नियामिका तुम।

मां तुम तन मन में मेरे
शक्ति तत्व बन वास करो।
शुभ कर्मों की प्रेरक बन तुम
हर क्षण मन उल्लास भरो।
आत्मचक्षु साक्षात करूं मां
शुभ संकल्प विश्वास भरो ।

मैं मन में शिशुभाव धरुं मां
तुम वात्सल्य उपकार करो।
चंडमुंड सम मनोवेगों को
तत्क्षण तुम संहार करो।
आगम निगम आलोक करो
मां बोधगम्यता दान करो।

नवरात्रों में गर्भ जीव सम
प्रतिपल पोषण तुम करना।
नो दिन बीते नो महिनों सम
वात्सल्य भाव तुम धरना।
हरक्षण तेरा ध्यान रहे मां
अस्तित्व में वास तुम करना।
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गोविंद व्यास रेलमगरा
नवरात्रि

तिथि -1/4/20

शादी का लड्डू


बहुत खुश थे
अब होगी शादी
नहीं जानते थे
होगी बर्बादी
सोचा था दिन होंगे
अपने सुनहले
आंखों में सपने होंगे
दिन होंगे रुपहले
शमा तब जलेगी
रातें होंगी रँगीली
अब उजड़ा चमन है
अंखियाँ हैं गीली
सुबह -सुबह पत्नी
आवाज लगाती है
आलसी से पड़े हो
हम पर चिल्लाती है
सिर में दर्द है
चाय बना लाओ
साथ में थोड़े
पकौड़े भी तल लाओ
महरी की छुट्टी है
कपड़ों और बर्तनों का ढेर है
खाने में अभी देर है
मुन्ना सम्भालो
भूख हो तो तुम भी
थोड़े पकौड़े खा लो
अब थोड़ा मैं आराम करूँगी
उठ पाई अगर मैं
तभी कुछ काम करूँगी
वरना शाम तक
आराम करूँगी
मरते क्या न करते
कपड़े ,बर्तन धो रहे है
किस्मत को कोसते
सौ-सौ आँसू रो रहे हैं
जिन्होंने ये लड्डू खाया था
हमें बहुत समझाया था
हमने त्रिनेत्र खोले थे
लाल पीले होकर
उनसे बोले थे
खुद लडडू चख चुके हो
हमें मना करते हो
हम भी तो खाकर देखें
जरा स्वाद चख कर देखें
अब लड्डू लगने लगा
हमको बेस्वाद
भूलते जा रहे
जिन्दगी का स्वाद
अब जिसको भी हम समझाते है
सब हमारी ही
बात दोहराते है
हम उनसे कहते है
लड्डू चख कर ही मानोगे
हाथ जलाकर ही जानोगे
कुंआरेपन की दहलीज
अब जाओ लांघ
जाओ मरो तुम भी
लगा दो कुँए में छलांग
अब तो भाई मेरे
राम नाम जपना है
सच कहते हैं
शादी सुहाना सपना है।।

सरिता गर्ग

विषय-मनपसन्द लेखन।
शीर्षक-मां दुर्गे गौरी वन्दन।
स्वरचित।
मां दुर्गे मां वरदान दे,
मां गौरी मां वरदान दे।
मां दुर्गे मां वरदान दे,
मां गौरी मां वरदान दे।।

बलिदान भाव महान हो
मां कामना साकार दे।
बलिदान भाव महान हो
मां कामना साकार दे
हर रूप में देखूं तुझे
हर वेश में जानूं तुझे।
हर रूप में देखूं तुझे
हर वेश में जानूं तुझे।
मां भावना निराकार दे।।
मां दुर्गे मां वरदान दे,
मां गौरी मां वरदान दे।....

ना तीर से तलवार से
मृदुवाणी और प्रेमभाव से।
ना तीर से तलवार से
मृदुवाणी और प्रेमभाव से।
सबके हृदय में जा बसें
सबके मनों को भा सकें।
सबके हृदय में जा बसें
सबके मनों को भा सकें
ऐसा मुझे अधिकार दे।।
मां दुर्गे मां वरदान दे
मां गौरी मां वरदान दे।।...

मुझको बस तेरी लगन
तुझमें रहूं मैं सदा मगन।
मुझको बस तेरी लगन
तुझमें रहूं मैं सदा मगन।
तेरी ही भक्ति में रत हो मन
तेरा ही तुझको करूं अर्पन।
तेरी ही भक्ति में रत हो मन
तेरा ही तुझको करूं अर्पन।
ऐसा मेरा दिल धार दे।।
मां दुर्गे मां वरदान दे
मां गौरी मां वरदान दे।।
*****
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
01/04/2020
दिनांक-01/04/ 2020
दिन- बुधवार
विधा- कविता
शीर्षक- मोबाइल जेनरेसन
*************************************
एक छोटे से खिलौने ने
देखो क्या गजब कर डाला
दूरियां सारे जहान की
पल भर में तय कर डाला।
लगता था जो कभी सपना
सच उसको कर डाला
सात समंदर पार लोगों को भी
साक्षात दिखा डाला
एक छोटे से खिलौने ने
देखो क्या गजब कर डाला।
पर एक बात है सोचने वाली
दूरियां मीलों की इसने
बेशक है कम कर डाली
पर दूरियां दिलों की
इसने बढ़ा डाली।
छोटे से इस खिलौने ने
सबको अपना ऐसा आदी बनाया
बगल बैठा अपना भी
मीलों दूर है नजर आया
हाथों में आते ही हमारे
मन मस्तिष्क को तो कर देता है ये गतिशील
पर शेष शरीर को बना देता है गतिहीन
क्या कभी हमने सोचा है
छोटा सा खिलौना ये
जब हाथों में हमारे होता है
दिल हमारा अपनों के
नजदीक कितना होता है ?
आज हमें यह सोचना होगा
सीमित उपयोग इन खिलौनों का करना होगा
तभी मानवीय संवेदनाएं जीवित बच पाएंगी
नही तो दूरियां दिलों की बढ़ती ही जाएंगी।।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।

दिनांक :-01.04.2020

भूख बड़ी या दर्द

किसी घायल
बीमार इंसान को
दवा ,दुआ और दिलासा
सुकून प्रदान करते हैं
आराम देते हैं
पर ...
सभी को नहीं
किसी - किसी को

मैं बात कर रहा हूँ
दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप के
कांगो देश की
जहाँ पर
भूखमरी के साथ-साथ
आपसी अशांति के कारण
अक्सर खून खराबा होना
वहाँ की
दैनिक दिनचर्या का
एक हिस्सा है

संयुक्त राष्ट्र संघ
शांति सेना के तहत
मुझे वहाँ पर
सेवा का अवसर मिला
तब ...उस दौरान
मैंने जो वहाँ दृश्य देखा
वह ...
वास्तव में
मानवता के लिए
बहुत ही शर्मनाक था

एक कांगोली घायल सैनिक
जो....
बुरी तरह से जख्मी
और लहूलुहान
दर्द के मारे
जोर - जोर से चिल्ला रहा था
शांति सेना के द्वारा
प्राथमिक उपचार केंद्र पर
दवा ,दिलासा देने पर भी
उसे कोई आराम नहीं मिला

मैंने अपने पिट्ठू से
एक बिस्कुट का पैकेट निकाला
और उसे थमा दिया
अब वह बिल्कुल शांत
और आराम महसूस कर रहा था
जैसे रोते बच्चे को
माँ का दूध मिल गया हो
उसने खाते-खाते
मुझे अंगूठा दिखाया
और कहा...
थैंक्स सर
क्योंकि ....
वह दर्द से कम
और भूख से अधिक घायल था

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
दि0= 01/04/2020
विषय = मन पसंद लेखन

ग़ज़ल
आज कोरोनावायरस पर

रूक जा ओ इब्ने आदम ,तेरा भी परिवार
गफलत में क्यो पड़ा हुआ,क्या होना बिमार।

ये ऐसी बिमारी , जिसकी दवा नही बन पाई
क्यो न सुनता समाचार,क्यो न पढ़ें अखबार।

बे वजह जो घर से निकले, फालतू टहलेगा
सक्ती वरते प्रशासन,पुलिस की पड़ेगी मार।

देश रोक कर क्यो रखा,क्यो न तू समझता है
कोरोना को हराने के लिए,हम सब है तैयार।

कोरोना कोई खेल नहीं,तू इसे न खेल समझ
सारा परिवार देखें तुझको, तू उनका आधार।

स्वास्थ सेवक,सफाईकर्मीयो का करो सम्मान
हामिद सुनो देश पर है, उनका बड़ा उपकार।

हामिद सन्दलपुरी

दिनांक १/४/२०२०
मनपसंद लेखन


नवविहान

रो रहा देश जार जार
माँ भारती करें पुकार
जागो मेरे वीर पुत्रों
रखो संयम अपार।

धर्य मत खोओ लाल मेरे
रखो भरोसा आप
नव सवेरा फिर लायेगा
लेकर नया विहान।

अन्तःकरण है साथी तुम्हारा
सृजन करो नव भारत का
विश्व गुरु बन के उभरे
देश अपना बने महान।

देखो ध्यान से सूर्य की किरणे।
दे रही नई संदेश
संयम से डिगो नही तुम
चाहे आये कितने क्लेश।

नया उत्साह,नई उमंग
जगाओ अपने देश
होगा फिर नया सवेरा
स्वच्छ रखो परिवेश।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

दिनाँक-01/04/2020

आगोश में हूँ स्वप्न के,ये द्वंद्व निज के बंद है ,
काव्य लिखता हूँ कोई,निर्विघ्न कोई छंद है |
आगोश में हूँ स्वप्न के,ये द्वंद्व निज के बंद है |

विचर रही है कल्पना,
निश्छल फिरे यहां-वहां,
अचेत सा ये मन हुआ,
अनंत सा दिखे जहां!
अर्चित सी रश्मि पूंज है,ये शब्द-शब्द वृंद है |
आगोश में हूँ स्वप्न के,ये द्वंद्व निज के बंद है |

रजत हुई है चंद्रिका,
शशि हुई स्वर्ण की,
महलो से भी अतुल लगे,
कुटी मेरी ये पर्ण की |
संतृप्त मेरी कामना,और वेदनाएं मंद है |
आगोश में हूँ स्वप्न के,ये द्वंद्व निज के बंद है |

सृजन है राग-रंग का,
ये मदभरी बहार है,
मंजुल लगे है हंसिनी,
मनोहरी शृंगार है |
अनुरक्त है तृषा ये मन,खुला-खुला पाबंद है |
आगोश में हूँ स्वप्न के,ये द्वंद्व निज के बंद है |

शहनाइयों की गूंज है,
रागों से अनुबंध है,
ये प्यास पावनी बनी,
ज्ञान कल्पना की गंध है |
उर चेतना विलय हुआ,विचारो का आनंद है |
आगोश में हूँ स्वप्न के,ये द्वंद्व निज के बंद है |


रचना:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट (मध्यप्रदेश

विषय - कोरोना
विधा - छंदमुक्त कविता

--------🌹सुप्रभात🌹-------

----महामारी कोरोना------

आई कैसी ये महामारी,
थम सी गई दुनिया सारी,
पहली बार ऐसा देखा,
खींची गई लक्ष्मण रेखा,
घर से बाहर जो निकला,
मानो जिंदगी से वो फिसला,
हाथ मिलाने से सब डरते,
मिलने का भी परहेज करते,
बंद पड़े हैं सब बाजार,
खोई लोगों की भरमार,
दुबके बैठे घर में सारे,
कोरोना से सभी हारे,
बना नया ये इतिहास,
नहीं किसी को है विश्वास,
जीना है तो घर में रहो,
यही बात सभी से कहो,
पेट भरने को करते काम,
वही घर में करें आराम,
कैसे चक्का हुआ जाम,
बाहर निकले काम तमाम,
जन-जन को बात बतानी है,
सामाजिक दूरी बनानी है,
जीना है तो घर में रहो,
भूख-प्यास भी चाहे सहो,
बार - बार तुम धोना हाथ,
मुँह पर कपड़ा रखना साथ,
प्रशासन का करो सहयोग,
यदि रहना हमको निरोग,
चिकित्सकों को करो सलाम,
जो बीच मौत के करते काम,
पहरा देती पुलिस महान,
लगे सेना के वीर जवान,
स्थिति बड़ी है गम्भीर,
धरो हृदय में कुछ तो धीर,
विश्व में तुम देखो हाल,
मौत नाचती बनकर काल,
अब तो बंदे छोड़ नादानी,
तुमने गर ये बात न मानी,
जाएगा कोरोना जीत,
जिंदगी तबाह होगी मीत,
मिलकर सारे करें प्रहार,
विनती सबसे बारम्बार,
कोरोना को अगर टालना,
लोक डाउन की करो पालना,

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा "वागीश"
सिरसा (हरियाणा)




दिनांक १/४/२०२०
कविता : शीर्षक : फूल खिले हैं गुलशन गुलशन

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अंबर से उतर आई धरा पर एक किरण
चमक उठा जगती का कण कण
नवोदित सूरज की लालिमा कर गई लाल गगन
हवा के पैरों में पायल की थिरकन
स्नेह सुधा से भीगे तन मन
मधुर प्रणय की बेला सजा गये सुंदर सपन
पात पात चमकता ओस कण
सोलह सिंगार किये वसुंधरा का समर्पण
सुगंधित शीतल बयार का आलिंगन
स्नेह दीप से प्रज्वलित दो नयन
भौंरों का गुंजन,अधरों पर चुंबन
शर्म से लाल हुआ दरपन
पनघट पर इठलाती डोलती पनिहारिन
ढोलकी की थाप पर करतीं नर्तन
दिशी दिशी कोयल की गुंजन
बंदनवार सजाए प्रकृति का मौन अभिनंदन
हर्षोल्लास से अतिरेक सरस जीवन
नदी की चंचल धारा का सागर से सौहार्द मिलन
देख छटा निराली मुदित हुआ सबका मन
महका उठा हर घर ,हर आँगन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन !
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित(C)भार्गवी रविन्द्र
दिनांक-०१/०४/२०२०
विषय-स्वछन्द लेखन के तहत ।

विधा- ग़ज़ल
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रात मैं आऊँगा विश्वास जगाए रखना।
घर की दहलीज पै इक दीप जलाए रखना।।

रम्ज़ की बात है जो प्यार बसाया दिल में,
दर्द बढ़ता है तो दिल में ही बसाए रखना।।

आस टूटे न कभी प्यार में दिलदारों की,
महरबानी ये करो आस बँधाए रखना।।

शाखसारों पै खिले फूल न तोड़े जाएँ,
महक उड़ जायगी यह सबको बताए रखना।।

शग़्ल अच्छा नहीं यह प्यार को ज़ाहिर करना,
इसलिए कहता हूँ दिल में ही सुलाए रखना।।
==========================
'अ़क्स' दौनेरिया

विषय - मनपसंद लेखन

मीत में जो खुदा नज़र आये
सर अदब से वही झुका देना
गिरह

तीरगी बस हमें सुहाती हैं
तुम उजाले भले छुपा देना

आ गयी है मुझे खुशी मिलने
तुम ग़मो को ज़रा बता देना

चांद लाना नहीं जमीं पे तुम
फूल जूडे में बस सजा देना

गर कभी तुम ग़ज़ल बनाओ तो
क़ाफिया तुम मुझे बना देना

आशा पंवार


1/4/20


खयालो में मेरी जब भी तुम आये।
मुहब्बत के नाजो नियम याद आये।

सपनो में आना चुपके से जगाना।
मीठी शरारत की वो हदे याद आये।

नजरो से नजरो की दीदारे कहानी।
प्यार के पैगाम की अदा याद आये।

अभी तो यही थे अभी तो वहाँ थे।
छुपे रुस्तमगी में तुम बहुत याद आये।

वो तिरछे से नैना मुरलिया खिलौना।
गए लूट दिल को अजी याद आये।

तुम्हे बस कसम है ओ मेरे कन्हाई।
भुलाना न हमको जब हम याद आये।

स्वरचित
मीना तिवारी

1-4-2020
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आज के अष्टमी पर दुर्गा माँ की प्रार्थना ,,,,,,,,,
गीत-"गीतिका"
भुजंग प्रयात छंद में ,,,( सीमांत रहित)
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
122 122 122 122 ( मात्रिक मापनी )
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सभी पर कृपा मातु बरसे तुम्हारी !
सदा ही दया दृष्टि ,,,सरसे तुम्हारी !!
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सुमंगल दिवस आज नौरात्र-की है,
करूँ वंदना,,,अर्चना मैं तुम्हारी !!
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तुम्ही शक्तिरूपा,,,तुम्ही दुर्गमा हो,
सितारों जड़ी,,,लाल चूनर तुम्हारी!!
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बसी पर्वतों पे ,,,,,भवानी दयानी,
सजी आज दरबार-चौकी तुम्हारी!!
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शिवे मंगले,,,,साधिके,मातु गौरा,
यही प्रार्थना,,बस कृपा हो तुम्हारी !!
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बजी आज"वीणा"तुम्हारे लिए है,
दया दृष्टि रखना,शरण मैं तुम्हारी ।।
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***************************
🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित ( गाजियाबाद)


तिथि : 1.4.2020

रुक गया है जो जीवन, कर दे संभव कुछ सीवन!

वायरस-कोप या प्रकृति-कोप
हलचल सब हो गई है लोप,
लॉकआउट में विराम जीवन
बनादे लोगों को बुद्धि प्रवीनम।

रुक गया है जो जीवन, कर दे संभव कुछ सीवन!

कोरोना की कटु नकारात्मकता
बने लगावों की सकारात्मकता,
अलगावों का विराम - जीवन
बना दे रिश्तों में संबंध नवीनम।

रुक गया है जो जीवन, कर दे संभव कुछ सीवन!

लॉकडाउन ने यह किया कमाल
कम हो गया प्रदूषण- धमाल,
प्रकृति जो हो चुकी थी बदहाल
वातावरण है बन गया संजीवन।

रुक गया है जो जीवन, कर दे संभव कुछ सीवन!

हर हाल में आशा ही है जीवन-
बुद्धि -प्रवीनम , रिश्ते -नवीनम,
आशा,प्रयास न छूटे आजीवन
संभव ही संभव सदा है सीवन।

रुक गया है जो जीवन, कर दे संभव कुछ सीवन!

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित

01/04/20
चौपाई छन्द

वृद्धजन

परम धर्म सेवा ही जानें ।
उत्तम पूजा इसको मानें।।
प्रेम भाव से मिल कर रहिये।
वृद्धजनों का आदर करिये।।
अनुभव का ये रखें खजाना ।
उन्हीं मार्ग पर कदम बढ़ाना ।।
इन चरणों में जीवन का सुख ।
पास न फटके तब कोई दुख।।
ये घर में जब सुख से सोते ।
रोम रोम तब पुलकित होते।।
आशीषों से झोली भरती ।
जीवन का ये संबल बनती ।।
नींव संस्कार की ये भरते ।
आधार स्तंभ बन कर रहते ।।
यही संकल्प हमको करना।
छाया से उजियारा भरना।।

अनिता सुधीर आख्या

विधा-स्वतंत्र
दिनांक-01 /04 /2020

मान स्वयं को सीता ओ' लखन
खींच लो रेख सुरक्षा की
कोरोना से लड़ रहे राम
सरीखी सरकार

है मांग समय की कर लो अपने आप को थोड़े दिन अपने लोगों के लिए ही अपने घर में बंद

ये कलियुगी रावण नहीं
कोरोना अदृश्य,असूर
निशाचर है
कर रहा है अपने ही लोगों
में ही छिप -छिप कर वार वो

देव भी आ गये धरा पर
पहन सुरक्षा-कवच
करने सुरक्षा अपनी धरा की
देवघरों के करके पट बंद

आ गये सब धरती पर
पहन के वरदियां कर्म की
साथ ही लगे हुए हैं
अन्य गण भी अपने-अपने करम में मुस्तैद

पर उनकी भी अपनी हद है
हमको भी करने होंगे कुछ
जतन
खेंच के लक्ष्मण रेखा अपने
-आप को कर लें उसमें बंद।

डा.नीलम

बिछड़ तो गए हो..................................

बिछड़ तो गए हो मेरी जान तुम, लेकिन बिछड़ कर बहुत याद आए

जुदाई का मतलब है आया समझ, जमाना हुआ है हमें मुस्कुराए
बिछड़ तो गए हो……………………………………

खामोशियों का मतलब न जाना, मुहब्बत में इतनी खता है हमारी
दिल की लगी थी या फकत दिल्लगी, समझते भी कैसे बिन बताए
बिछड़ तो गए हो……………………………………

बड़ा जश्न था मुझको मालूम है, कुछ दोस्तों से शिकायत यही है
मुझे क्या यही सोचकर ना बुलाया, खुदा दिलजलों की नजर से बचाए
बिछड़ तो गए हो……………………………………

माज़ी का इस दौर क्या वास्ता है, जुदा अपनी मंजिल जुदा रास्ता है।
सलामत रहो तुम यही इक दुआ है, मेरे साथ है तो है मेरी खताएं
बिछड़ तो गए हो……………………………………

मेरी कोशिशें तो फलती नहीं है, लकीरें सितारों से मिलती नहीं है
शिद्दत से हैं हम तेरे मुन्तजिर ,मिलेंगे कभी जो खुदा गर मिलाए
बिछड़ तो गए हो…………………………………….

बड़ी बेखुदी में पिये जा रहा था, मैं खामखां ही जिये जा रहा था
मुझे माफ़ करना इससे पहले, कहीं जिंदगी की शमा बुझ न जाए
बिछड़ तो गए हो……………………………………

विपिन सोहल

नमन मंच
1.4.2020

बुधवार
मनपसंद विषय लेखन
विधा - मुक्तक
विषय -हौसला

(1)
डूबते सूरज को ,उगने दो ज़रा #हौसले से,जीवन को बढ़ने दो ज़रा
आओ पल भर बैठ कर चर्चा करें
कल नया सूरज निकलने दो ज़रा।।

(2)
छू ले आसमान तू,ज़मीन को तलाश मत
तू है भाग्यवान,अपने भाग्य को तराश मत
#हौसले से जिस जगह,
कदम भी तू बढ़ाएगा
झुकेगा आसमान भी,तू हो कभी हताश मत ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘


विषय - मनपसंद
01/04/20

बुधवार
माँ दुर्गा
गीत


माँ की महिमा अपरंपार
भक्त कर रहे जय-जयकार,
सजा हुआ माँ का दरबार
शीश झुकें सब बारम्बार।

लाल है लहंगा चूनर लाल
चंद्रवदन पर नेत्र विशाल,
अद्भुत है माँ का श्रृंगार
शीश झुकें सब बारम्बार .....

शक्तिरूप तू , ज्ञानरूप तू
श्रद्धा और समृद्धि रूप तू,
करुणा की तू है आगार,
शीश झुकें सब बारम्बार ....

सबको मनवांछित फल देती
कष्ट सभी के तू हर लेती,
दीनों का करती उद्धार
शीश झुकें सब बारम्बार .....

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर


दिनांक 1 अप्रैल 2020
विषय मनपसंद


नई कविता
कल लिखी जाएगी
कुछ पुरानी पढ लो

जो कैद है
किताबों मे कहीं
किसी ताक मे पडी
संग्रहालय का हिस्सा बन
जो नही याद की जाती
न ही गुनगुनाई जाती
कभी किसी मैगजीन के
या अखबार के पृष्ठ पे थी
आज वो तन्हा है कहीं

तन्हाई मे जन्म ले फिर तन्हा
क्या यही कविता का जीवन
कभी पहचान बनी थी
किसी के व्यक्तित्व की
किसी अनजान को
एक नया नाम दे गई
आज वो गुमनामी मे फिर

कविता वो
जो रहे होंठो पर
और गुनगुनाई जाए निरंतर
कोई तो भूल जाता है
अपनी लिखी कविता को भी
कविता फिर भी मुखर
जब भी आएगी
किसी नयनपटल पर
बोलेगी वो बिंदास होकर
कहेगी अपना सच बन निडर

कविता की घुटन
बाजार मे आ फँसी
सामान की तरह बिकी
संपादको का व्यापार
प्रकाशको की मनमर्जी
कविता बेबस सी रही
कभी बडे नामों से दबी
पर बाहर आएगी कविता
प्रखर लेखनी से निरंतर
लिखी जाएगी कविता
सृष्टि के रहने तक निरंतर
नए युग का निर्माण करेगी
कविता सबकी आवाज बनेगी
कविता सबकी आवाज बनेगी

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

विधा :- चौपाई
🌺
भक्त कहें तुम्हें महा माया ।
अंत नहीं है तेरा पाया ।।
चहुँदिशि फैली भय की छाया ।
सिकुड़ रही है डर से काया ।।
🌺
मन विह्वल चैन नहीं पाता ।
अंतस से चित बाहर आता ।।
आस्था डोल रही है मेरी ।
आकर पकड़ो अँगुली मेरी ।।
🌺
जहाँ देखती संकट दिखता ।
मृत्यु देव दिखता कुछ लिखता।
लिखता पाप पुण्य का लेखा ।
खींचे जन्म मरण की रेखा ।।
🌺
उसके संग घूमती सुरसा ।
रहे धरा से ऊपर पुरसा ।।
छोड़े विषाणु लेकर कर से ।
बैठे अंदर उसके डर से ।।
🌺
कालरात्रि देखो लाचारी ।
करो नष्ट मात महा मारी ।।
दुनिया इसके आगे हारी ।
भक्तों की माँ तू रखवाली ।।
🌺
स्वरचित:-
ऊषा सेठी कमाल
सिरसा

दिनांक - 1/4/2020
विषय - स्वतंत्र


(सहयोग)

इंसान को इंसानियत की
सदा हद में रहना चाहिए
मूल्यवान इस जीवन को
परिभाषित करना चाहिए ।

इस प्रकृति के रंग-ढंग में
ख़ुद से ढल जाना चाहिए
छिपा हुआ भरपूर ख़ज़ाना
ना दुरुपयोग करना चाहिए ।

इसमें बसते हैं जीव अनेक
ख़्याल उनका रखना चाहिए
दया ही धर्म का मूल मंत्र है
ना इसे कभी भूलना चाहिए ।

यहाँ दीन-दुखी बहुतेरे बंधु
हाल उनका जानना चाहिए
उनके कंधे से कंधा मिलाकर
उनके संग खड़ा होना चाहिए ।

सामर्थ्य है हम सबका जितना
सहारा उनको मिलना चाहिए
जिस धरती पर जन्म लिया है
हमें उसका मान बढ़ाना चाहिए ।

पावन माटी का तिलक लगाकर
भाल पर ललाट दिखाना चाहिए
किसी संकट से जब देश घिरा हो
जन-जन को आगे आना चाहिए ।

तन-मन,धन समर्पण भाव हमारा
हमें आपसी सहयोग करना चाहिए
जाति-धर्म की तजकर संकीर्णता
धमनियों का रक्त जानना चाहिए।

विधि- विधान का ना हो उल्लंघन
लोकतंत्र हमें मज़बूत करना चाहिए
पग-पग पर निज सहयोग देने का
हमें सुदृढ़ निश्चय करना चाहिए ।

✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति

1/04/2020

फूल पारिजात के'

एक सर्द,एकान्त,शुभ्र सुबह जब हम
खड़े थे पारिजात पेड़ के नीचे
भर दिये थे तुमने मेरी अँजुरी
ढ़ेर सारे फूल पारिजात से
मल दिये थे तुमने मेरे गालों पर
उसके रंग केसर से
नर्म,कोमल,स्निग्ध तुम्हारी स्पर्शानुभूति
सिहरन भरी चिहुँक से भर उठी थी मैं।
कुछ भी नहीं भूली हूँ मैं
आज भी झर झर झरता है
तेरा प्यार हरसिंगार सा
मेरे हृदय के उपवन में
उस समर्पणमय प्यार को याद करना
अच्छा लगता है हर पल,हर क्षण
तुम्हारे प्यार के स्पर्शानुभूति के अहसास से
हरसिंगार सा महक उठता है मेरा तन मन!

अनिता निधि

दिनांक -1/04/2020
शीर्षक -नया सवेरा

सवेरा प्रतीक है आशा और विश्वास का ।
एक नई स्फूर्ति ,ताजगी एक नई शुरुआत का ।
नया सवेरा भरता है मन में नई उमंगे ।
काम करने के लिए जुटता है मन लेकर नई तरंगे।
पर असली नया सवेरा तब आएगा
जब मानव अपनी आँखों से हटाएगा;
चश्मा, धर्म जाति का, ऊँच नीच का
अमीर- गरीब का, छूत-अछूत का
जब मानव के मन में मानवता जागेगी
जब मानव में संग्रह नहीं त्याग की भावना जागेगी।
जब संवेदना का भाव जागेगा
जब अपने पराए का भेद हटेगा।
जब नहीं कुचले जाएँगे लोगों के अधिकार ।
जब सबको मिलेंगे उनके मूलाधिकार।
जब कोई भूखा पेट नही सोएगा
जब कोई फुटपाथ पर नहीं सोएगा
जब कोई मासूम मालिक के डंडे नही खाएगा
न कोई मासूम बर्तन धोते -धोते जूठन खाकर सो जाएगा ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय


विषय:-मनपसन्द रचना
लिए 1-4-2020

राहे ज़िन्दगी अब क्यूँ,
हर तरह सताती है|
मेरी ही परछाइयाँ,
मुझको अब चिढ़ाती है

ये मेरा वजूद जो कल,
शक्ति मान लगता था|
आज ढलती शाम इसपे,
क्यों दया मुझको आती है|

आइनों के तेवर भी अब,
बदले बदले से लगते हैं
इनमें मेरी अक्स अब तो,
बेनूर नज़र आती है|

कौन ख़ुद मुख़्तार है यहाँ,
वक्त के सभी गुलाम हैं|
घटते, बढते चांद की तरह
सबकी ही कहानी है|

हम सशक्त से कैसे,
अब अशक्त हो बैठे|
ज़िन्दगी के ढलान की
कैसी ये कहानी है|

मैं प्रमाणित करता हूँ कि
यह मेरी मौलिक रचना है|

विजय श्रीवास्तव
बस्ती


दुर्गा की भेट
. "जगराता"
~~~~
. महामाई अष्टम महागौरी का लाल दरवार

आइये गाते हैं मां का लाल श्रंगार:
मेरी रचित प्रिय मां की भेट मां का लाल श्रंगार
+++++++

लाल लाल चहुं दिश लगे कर रंग लाल कमाल।
लाल लाल जोगिन लगे लांगुर भी है लाल।

लाल ज्योति पर्वत पर जल रही लाल लगौ
दरबार।
लाल भवन में लाल जोगिनी लाल कियौ
श्रंगार।
ये लाल ही लाल दिखावै धुजा भी लाल ही
फैरावै।

ये लाल सिंदूर मांग में और लाल भाल पै
टीका।
शुचि स्वर्ण मुकट में लाल ही लालन कौ
घेरा नीका।
लाल लाल दोउ नैना मां के मुख को रहे
निखार।।लाल ही लाल0।।

लाल लाल सुमन की माला दुर्गा के कण्ठ
विराजे।
ये लाल लाल रक्ताम्बर मां के तन
साजे।
महंदी लाल लाल हाथन में चूड़ी लाल लीं
धार।।लाल ही लाल0।।

लाल लाल चुनरिया सर पर मां के शुभ
सोती।
दौनौं लाल लाल होटन पर लाल नथ कौ
मोती।
लाल घंघरिया लाल रंग की पेटी है नग-
दार।।लाल ही0।।

मां ने लाल लाल महावर से एड़ी लाल
रचाई।
और हाथ और पैर के नख नाखूनी लाल
लगाई।
चप्पल लाल लाल तरवन के नीचे जड़ीं
सितार।।लाल ही लाल0।।

झूल सिंह की लाल ही मुख लाल फार दर-
साया।
"महावीर" ने मां का लाल ये रच श्रंगार
रचाया।
मां भतौं ने लाल लाल रंग चहुं दिश दीया
डार।।लाल ही लाल0।।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)


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"अंदाज"05मई2020

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