Monday, April 13

" मनपसंद विषय लेखन"10अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-706
II मनपसंद लेखन II नमन भावों के मोती...

विधा: ग़ज़ल - ग़मों की ज़िन्दगी में तो.....


ग़मों की ज़िन्दगी में तो कभी मकसद नहीं होते...
अगर जो ठान ले तो ग़म ख़ुशी सरहद नहीं होते...

दफ़न नफरत हमेशा ही हुई है वक़्त-ए-दरिया में....
मगर इस इश्क़ के हरगिज़ कभी कम कद नहीं होते....

छुपा कर रख लिया खंजर बड़े इत्मिनान से मैंने....
जुबां के अस्त्र शस्त्र भी तो कभी बेहद नहीं होते...

कभी मैं भी चला आता कदे तेरे को सुन साकी...
खुदा के नूर मेरी रूह की गर हद नहीं होते...

ज़माना लाख चाहे भी बुरा 'चन्दर' नहीं बनता....
महब्बत करने वाले तो कभी भी बद नहीं होते....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१०.०४.२०२०
विषय मन पसंद लेखन
विधा काव्य

शीर्षक विश्व मङ्गल
10 अप्रेल 2020,शुक्रवार

विकृत बुद्धि का परिणाम
विषाणु स्व जन्म दिया है।
स्वयं गरल कर मे लेकर
आज नर ने स्वयं पिया है।

जग नियन्ता पालन कर्ता
विश्वपटल कोहराम मचा है।
कब कँहा पर क्या हो जावे
अद्भुत मायाजाल रचा है?

नहीं देखा था नहीं सुना था
भारी विपदा आज पड़ी है।
जग के हर कोने कोने में
मृत्यु खुद मुंह फाड़ खड़ी है।

हाहाकारा है सकल जगत में
कैसी दुःखद विपदा ये आई।
समूचा विश्व गृह कारागार में
है अति विकट मुसीबत छाई।

जन्म मृत्यु के परम् नियन्ता
कैसी भूल हो गई मानव से
विश्व शांति कँहा पर खो गई?
दुःख शौक छाया मानस में।

विश्व मङ्गल करें कामना प्रभु
जन अकाल मृत्यु है भव पर।
आओ प्रभु तुम आज बचाओ
बरसाओ कृपा दृष्टि मानव पर।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

शेर की कविताए...
***************


बिखरी हुई सी जिन्दगी अब, बिखरे हुए से लोग।
सिमट गए है घर मे लेकिन,दिल की कुण्डी खोल॥

सूनी सडके सूनी बस्ती, सूनी हर आँखों का कोर।
मन में लेकिन हलचल इतना,जाने क्यों चितचोर॥

बार-बार चौखट पे आकर, राह निहारू हर ओर।
शायद कोई सुखद खबर, ले आये कोई और॥

दुख सुख तो आनी जानी पर, इसने दी झकझोर।
जानें क्या हरि की इच्छा है, जीवन बन गया मोर॥

अन्त अनन्त दिखे अब ऐसे,ढीली सी जीवन डोर।
शेर हृदय तडपन लगे, हो अब भाव विभोर॥

शेर सिंह सर्राफ

 शेर की कविताए...
***************


बिखरी हुई सी जिन्दगी अब, बिखरे हुए से लोग।
सिमट गए है घर मे लेकिन,दिल की कुण्डी खोल॥

सूनी सडके सूनी बस्ती, सूनी हर आँखों का कोर।
मन में लेकिन हलचल इतना,जाने क्यों चितचोर॥

बार-बार चौखट पे आकर, राह निहारू हर ओर।
शायद कोई सुखद खबर, ले आये कोई और॥

दुख सुख तो आनी जानी पर, इसने दी झकझोर।
जानें क्या हरि की इच्छा है, जीवन बन गया मोर॥

अन्त अनन्त दिखे अब ऐसे,ढीली सी जीवन डोर।
शेर हृदय तडपन लगे, हो अब भाव विभोर॥

शेर सिंह सर्राफ
*मसीहा*
क्षणिका

1//
मैं मसीहा बन रहा हूं
और जिन्नों को‌ भारत के टुकड़े दे रहा हूं।
देश बहुत बड़ा और बुरा लगता है
इसलिए मैं महात्मा बन रहा हूं।

2//
कल से मेरे बच्चे
मुझे वापू कहेंगे
मेरी प्रतिमाऐं गढ़ेंगे
मुझे अपना शांति दूत
अहिंसा पुजारी और
जन-जन का मसीहा कहेंगे।
अब हम और टुकड़े करेंगे।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

*मसीहा*क्षणिका
10/4/2020/शुक्रवार
विषय:-मन पसंद
दिनांक :-10-4-2020

विधा:- कविता

जिस दिन तुम पैदा हुएउसी
दिन मैंने ये पेंड़ लगाये थे|
तेरे पंख के साथ ही इनके, भी हरे भरे दिन आये थे|

तेरी जवानी की तरह,
इनके भी दिन आये थे|
तुम मेरे जिगर के टुकड़े थे,
ये कहने को पराये थे|

कर परवाज़ उड़ गये तुम,
पर ये मेंरे साथ रहे|
बाट जोहते जोहते तेरी,
हम इनकी छायामें पड़ेरहे|

अन्तिम सांसों में हमने,
तड़प तड़प तुम्हें यादकिया
तुम्हें न आना था ना आये,
इन्होंने हमारा साथ दिया

तपती दोपहरी में हमको,
इन्होंने शीतल छांव दिया|
हमारी घुटती सांसों को,
स्वच्छ इन्होंने वायु दिया |

एक प्रार्थना है तुमसे,
मेंरी सारी सम्पत्ति ले लेना|
पर मेंरे इन हरे भरे,
पेड़ों को नहीं कटने देना|

मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह
मेंरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक 10 अप्रैल 2020
विषय मनपसंद


मेरी जन्मभूमि राजसमंद के स्थापना दिवस पर कुछ पंक्तियां

इस धरती का कण कण प्यारा
नित नित झुकाता हूं मै शीश रे
जनम मिले तो यहीं मिले फिर
जहां बिराजते द्वारिकाधीश रे

छटा निराली मेरे राजसमंद की
चहुं ओर है कितने ही तीर्थ रे
कृपा बरसाते चारभुजानाथ जी
सिर पे श्रीनाथजी का आशीष रे

निर्मल पावन गोमती गंगा बहती
जिसके घाट घाट मनोहर तीर है
दिव्य छटा हमारी नौ चोकी की
अंकित इतिहास हर प्राचीर रे

दयालशाह जी किला सुगढ है
जैनधर्म का अनुपम यह तीर्थ रे
मौन तपस्वी सा साधना शिखर
हर लेता हर एक मन की पीर है

जिस माटी को सिर पे लगाकर
गुण गाते हम सब स्वाभिमान से
हल्दीघाटी परम पावन धरा यह
महाराणा प्रताप प्रात:स्मरणीय रे

कुंभलगढ है विश्वप्रसिद्ध यहां पे
राज किये जहां कई रणवीर रे
इतिहास सहेजे कई युद्धो का ये
बहुत लंबी है इसकी प्राचीर रे

रुपनारायण, सैवंत्री तीर्थ पावन
रोकडिया हनुमान जी दर्शनीय रे
महादेव रामेश्वर, कुंतेश्वर बिराजे
गूंजता नित ऊँ जय जगदीश रे

होली, दिवाली, ईद, गणगौर
प्रेम मे मनाते है कई त्योहार रे
तरह तरह के सुंदर मनोरथ
होते रहते है हर एक मंदिर रे

अरावली की दिव्य छटा में
बिराजते परशुराम महादेव रे
दिवेर की घाटी याद दिलाती
पग पग पर रहते रणवीर रे

कला साहित्य संगीत खेल मे
आगे रहता सदा राजसमंद रे
हर क्षैत्र मे पहचान बनाते है
इस राजसमंद के कर्मवीर रे

करता कामना नित नित मन
प्रभु देना इतना आशीष रे
मिले जनम फिर राजसमंद मे
जहां बिराजते द्वारिकाधीश रे

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक-10/04/2020
विषय- स्वतंत्र लेखन


दुल्हन की की सिसिकियां ........
कौन-कौन जाने

रातों का ढलना सितारों से पूछो
लहरों का उठना किनारों से पूछो
दुल्हन की सिसकियां बरतिया क्या जाने
उनका सिसकना कहारों से पूछो




जब मैं पहुंची पिया के आंगन
मन को आग लगाये बैरी सावन
मैं तड़पू बिन पिया के
जैसे जल बिन कोई मछली
मीत के तार उलझे- उलझे
जैसे बाबरी कोई पगली
अंग -अंग में कसक भरी है
बहियां मोरी तंग पड़ी है
पपीहा रोये प्यार के आंसू
हूक दबी है अधरो में
ऐसा लगता.............

फूल आख़िरी ये बसंत के
गिरे ग्रीष्म के उष्म करो में
मेरा मनवा पागल नाचै
खुल के आ जा मेरी नजरों में
कामदेव की हूं मैं रति प्यारी
बिरह नायिका जस बिरहन
अपने पिया की प्रीति प्यारी
हृदय में बसी मैं चितवन
सूनी पड़ी है सेज सुहागन
ख्वाबों को सिरहाने देखा
तन्हाई उम्मीदों की सिसकियां
बेदर्द जमाने को ..।।।.।।।।।।

स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह इलाहाबाद
दिनांक 10।4।2020 दिन शुक्रवार
विषय स्वतंत्र लेखन

------------नया सवेरा---------

हर अंधेरी रात के बाद आता है एक नया सवेरा।
लाता है एक नया पैग़ाम,
नव ऊर्जा से परिपूर्ण, आगे बढ़ने का।
भूलकर पिछली रजनी की कटु स्मृतियों को,
कुछ नया होने की प्रतीक्षा में एक नया सवेरा।
भूल जा कि बीती रात ने तुझे बहुत तड़पाया है,
दुख दिया,काँटे बोए तुम्हारे मग में,
पर,अब गहन तम का हो चुका अवसान,
एक नए सूर्योदय के साथ।
घोर तम का अंत ही नव प्रभात का प्रारंभ,
अम्बर में सूर्य रश्मि का आगमन संकेत है,
कि अब निशा न बिगाड़ सकेगी कुछ तुम्हारा।
आगे बढ़ और प्राप्त कर अपना लक्ष्य, हे राही!
स्वागत में खड़ा है तुम्हारे, एक सुखद सवेरा।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा
आज का कार्यक्रम :--
मन पसंद विषय लेखन
******************
यक्ष - प्रश्न
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सरसी छंद आधारित रचना
*********************

प्रश्न जटिल है, सुनो साथियो,
बैठो मत चुपचाप।
छोड़ो अब गफलत में जीना,
सहो नहीं अभिशाप।।

सच को सच कहने से डरना,
बहुत बड़ा है पाप।
युगों युगों से झेल रहे हम,
इसका ही संताप।।

आओ हम सब खुद से पूछें,
कहाँ गया वह जोश।
पेट और परिवार पालने,
में रहते मदहोश।।

बात समझना हुआ जरूरी,
दोषी इसका कौन।
अचरज की यह बात साथियो,
सब बैठे क्यों मौन।।

~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
१०/०४/२०२०
मन पसंद लेखन



"अहंकार है ध्वस्त हुआ"

पहली बार दिखा है मानव, बंद आज प्राचीरों में।
व्याप्त हुआ है भय मन में, है किया कैद प्राचीरों में

जो नित करता था मनमानी , है आज वही हैरान हुआ।
जरा नजर उठा के देखो तो, मानव कैसे निढाल हुआ।।

अपनी मनमानी के आगे, जिसने सबको था दुतकारा।
बना आज बंधक घर में,जिसने था प्रकृति को ललकारा।।

बन्द हुई है मनमानी, ध्यान लगा है ईश्वर में।
जो करता था नित मनमानी, वही लीन हुआ है भक्ति में।।

यद्यपि मानव अपने बल पर, सागर को चीर डालता है।
लेकिन भय से हो ग्रस्त वही, निज रक्षा को चिल्लाता है।।

देख प्रकृति का कुपित रूप , वह आज समर्पण करता है।
घातक मंजर को देख-देख ,दिल उसका आज लरजता है।।

अहंकार है ध्वस्त हुआ, नतमस्तक आज सभी जन हैं।
जो कल तक आँख दिखाते थे,बिलख रहे उनके मन हैं।।

चलो प्रतिज्ञा करें अभी, अब और न होगी बदनामी।
हर पल मान रखेंगे सबका, कभी न होगी मनमानी।।
(अशोक राय वत्स)©® स्वरचित
रैनी ,मऊ , उत्तरप्रदेश
दिनांक 10 अप्रैल 2020
विषय मनपसंद


तपती दुपहरी मे,तुम छाँव बनकर आई हो
जलने लगा शहर, तुम गाँव बनकर आई हो

जब थकने लगा मै, तेरी ओर चला आया
सुकून देती है जो,तुम शाम बनकर आई हो

मेरी खामोशी भी आवाज बन गई उस दिन
सूने इस वन में, तुम राम बनकर आई हो

भूलने लगा था वक्त, भूलने लगे थे सब
गुमनाम हो रहा था, तुम नाम बनकर आई हो

जब नही था कोई ,मेरी बात सुनने के लिए
तुम ही रजा मेरी, तुम कलाम बनकर आई हो

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक -10/04/2020
विषय -मन पसंद लेखन


बदलता परिवेश "

क्षितिज के कोने में छिपा चांद,
देख रहा बदलते परिवेश को।
कौतूहल चांद निहार रहा ,
समुद्र की उठती तरंगों को ।

समुद्र की चंचल लहरें।
उन्मुक्त उड़ाने भर रही ।
उठ- उठ कर गिरती ,
गहराई को नाप रही ।

कर रही प्रकृति अपना कार्य ,
बड़े ही निश्छल भावों से ।
मानव मन धिक्कार रहा ,
अपने ही निज कर्मों से।

तेजी से बदला परिवेश ,
लौटे सब गांवो की ओर ।
सड़के सूनी गलियां सूनी ,
छा गई शांति चहूं ओर ।

प्रकृति बंध को गिन -गिन काटा
महलों का निर्माण किया।
कोई एक उपाय न छोड़ा ,
वसुधा के अंगों पर वार किया।

समय ने रचा ऐसा कुचक्र ,
परिवेश बदल के रख दिया।
नौनिहाल बच्चों का भविष्य ,
घरों में लाकर कैद किया ।

बदला परिवेश कम हुआ प्रदूषण ,
धुआं रहित हुई शहरों की हवाएं।
वसुधा ने ली चैन की सांस ,
उन्मुक्त हो गई दसों दिशाएं ।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

सँयम ही करेगा आगे तय
कोरोना से रहें कैसे निर्भय
💘💘💘💘💘💘💘

इस को
रोना ने सबको बुरी तरह झकझोरा है
हमारे विकास की बाँहों को बेदर्दी से मरोडा़ है
कोड़ में खाज़ बन जाते ये घर में बैठे दुश्मन
तालेबन्दी के ताले को इन्होंने कुत्सित भावों से तोडा़ है।

अनिश्चितता में निश्चितता अब झाँके कैसे
लोग डालते अपने नाके भी कैसे कैसे
क्या मान लिया जाये अन्त में यह कि
जि़न्दगी ही तो है बस कट जायेगी जैसे तैसे।

बहुजन हिताय में यदि नहीं निर्णय होता
तो सबका ही एक साथ में क्षय होता
अच्छे भले उपवन का सौन्दर्य भी तब तक रहता
जब दुर्भावना भरे चेहरों पर रक्षकों का भय रहता।

हमारा देश भी है सुन्दर सुन्दर एक उपवन
गूँजती रहे इसमें राष्ट्रभाव की अनुपम सरगम
विश्व बन्धुत्व की लौ भी यही जलाता है
तो क्यों न हो इसकी विपदा में हमारी आँखें पुरनम।

10/4/2020
बिषय, स्वतंत्र लेखन

कहाँ जा छिपे हो कुंवर कन्हैया
एक बार तो आ जाओ यशुमति जी के छैया
भारत पर विपदा बड़ी भारी
आन पड़ी विकराल बीमारी
अब तेरे बिना नहीं कोई बचैया
नदिया गहरी नाव पुरानी
ऊपर से भर गया मोहन पानी
तुम्हारे बिन कौन खिवैया
कैद हैं जैसे अपने ही घर में
वीरानी सी छाई शहर में
नहीं कोई बात का करैया
तुम्हारा क्या जाएगा जो इधर देख लोगे
करुणा कर नजर भर देख लोगे
कुछ तो करो गउओं के चरैया
गर तेरी वंशी जो बज जाएगी
देश की हालत संवर जाएगी
वह तान सुना दो वंशी के बजैया
आरतजन तुम्हे पुकार रहे हैं
तेरे आने की बाट निहार रहे हैं
महामारी भगाओ संकट के कटैया
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
स्वतंत्र
10/4/2020
*
********************
हादसों को अगर भूल जाऊँगा मैं
याद कैसे तेरी दिल मे लाऊँगा मैं।

डगमगाती दिखी जब मुहब्बत कभी
बन के कश्ती तेरा साथ पाऊंगा मैं।

गा़यबाना न पर्दा गिराया करो
बिन मुहब्बत तेरी जी न पाउंगा मैं।

ताश पत्तो सी उड़ती रही जिंदगी
उड़ते उड़ते उसे जीत जाऊंगा मै।

देश मेरा लड़े जंग मझधार में
साथ उसका निभा लौट आऊंगा मैं।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ

तिथि-10/04/2020
विषय - मनपसंद


हमसफर

जिन्दगी के सफर में हम चले हैं बहुत दूर तक,
आओ थोड़ा सुस्ता ले तेरे आंचल की छाँव में।
अभी और है चलना गर बना रहे ये साथ तुम्हारा,
हँसते हँसते कट जायेगा ये जीवन का सफर हमारा।
तुमने निभाया है साथ हर दुख और सुख में,
हो तुम मेरा मजबूत संबल अब इस बुढ़ापे में।
देख हम दोनों का प्यार मौत भी हमसे दूर भागे,
चलो प्रिय यूँही ऐसे ही चलते चलो सुगम है हमारी राहें।

अनिता निधि
जमशेदपुर
विषय : मनपसंद विषय लेखन
विधा : कविता

तिथि : 10.4.2020

अंतर तेरा सब पहचानता है
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मान न मान, पर तूं जानता है
अंतर तेरा सब पहचानता है।

कब किसका दिल दुखाया
कब किसको चोट पहुंचाया
कुकृत्य पर करकेअभिमान
अब निगाहें क्यों चुराता है?

मान न मान, पर तूं जानता है
अंतर तेरा सब पहचानता है।

कब कहां तूने गलत किया
कब किसको तूने दुख दिया
जान न जान, बन अनजान
भीतर कहीं कुछ टालता है।

मान न मान, पर तूं जानता है
अंतर तेरा सब पहचानता है।

कब कब धर्म को झुठलाया
कब कब आस्था को बहलाया
निज स्वार्थ को किया आश्वस्त
पर अनैतिक हुआ, मानता है।

मान न मान, पर तूं जानता है
अंतर तेरा सब पहचानता है।

निज ग्लानि की कर पहचान
निज अंतर से निज दोष मान
विष को तूं अमृत बना डाल
यही है सही तूं जानता है।

मान न मान, पर तूं जानता है
अंतर तेरा सब पहचानता है।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
दिनांक, १०,४,२०२०
विषय, मन पसंद

विधा , दोहा गीत
* संसार *

कुछ नियमों को मानकर,
खुश दिखता संसार।
दिल की नगरी भी रहे,
बना रहे व्यापार।

हाँ जी हाँ जी बस करो ,
पाओ सबसे प्यार ।
जीवन के जंजाल को,
हल्का रखना यार।
सारी दुनियाँ खुश रहे,
बसा रहे घर द्वार।
दिल की नगरी भी रहे,
बना रहे व्यापार।..........

मीठी वाणीं बोलिए ,
है जीवन का सार।
काम सभी कर लीजिए,
नहीं रहेगा भार ।
मंजिल मिलना तय रहे,
हटा रहे हर खार।
दिल की नगरी भी रहे,
बना रहे व्यापार।......

छोटी सी ये जिंदगी,
दिन केवल हैं चार।
छोड़ो सब पर थोपना,
तुम अपने उदगार।
सबकी मर्जी भी रहे,
रहे दूर हर हार।
दिल की नगरी भी रहे,
बना रहे व्यापार।.........

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .

भावों के मोती।
विषय-मनपसंद लेखन ।

स्वरचित ।
शीर्षक - उम्मीद की किरण।

उम्मीद की किरण मेरे मन में,
कुछ जग तो रही है।
सभी के दिलों में बदलाव की
बयार बह तो रही है।।

भाईचारे की भावना पग रही है।
करुणा दया की नदी उमड़ रही है।
दीनों पर कुछ दया हो तो रही है।
अमीरों की नजर पड़ तो रही है।।

मंदिर गुरुद्वारों में गरीबों की
पहुंच हो तो रही है और
अभी भी बाकी हैं कुछ राक्षस
दैत्य दुष्ट समाज में
लगता है उनकी उम्र अभी बढ़ रही है।।

इस समय अहंकार से मुक्त
हृदय कुछ हो तो रहे हैं।
सदाचार सहृदयता से युक्त
मानव मन हो तो रहे हैं।।
स्वार्थ लोभ-लालच कुछ
सिमट तो रहे हैं।
मिलजुल कर छोटे-बड़े
हंस मुस्का तो रहे हैं।
मानो या ना मानो घर परिवार में
रामराज्य से कुछ लक्षण आ तो रहे हैं।।

अस्पतालों में भगवान सांसे
बढ़ाते तो जा रहे हैं।
सभी देवता अपने-अपने कर्तव्य पथ पर
निरंतर लग तो रहे हैं।
घर बैठे भक्त उन्हें नमन कर
दिन-रात ध्या तो रहे हैं।।

समाज में भी हिंसा-अराजकता
कुछ कम तो हुई है।
लोभ लालच की मुट्ठी
कुछ बंद तो हुई है।।

आओ करें हम सब मिल कामना
रामराज्य का हो प्रसार
और दुष्टों पतितों का हो जाए
इस युद्ध में संघार।।

उम्मीद की किरण मेरे मन में
कुछ जग तो रही है।
रामराज्य की प्रकल्पना ऐसा लगता है
सच हो तो रही है।।
***
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
10/04 /2020

🙏इंसान है इंसान बन🙏
है हौसला तो मुकाबला कर,
वरना यूं डर डर मर जाएंगे।

रहना है तो नि:स्वार्थ तू रह,
वरना तन्हा कैसे जी पाएंगे।

बड़े बुजुर्ग आशीष सदा ले,
शायद हम सब तर जाएंगे।

अपने अहंकार तू रहा तो,
यूं बहती गंगा हम जाएंगे।

कौवा गिद्ध जैसे नौंच रहा,
शायद हम भी नोंचे जाएंगे।

कौवा कोयल बैठे एक डाल,
सावन ही वो पहचाने जाएंगे।

एक रंग कोई कब तक बचेगा,
कर्मों से सब पहचाने जाएंगे ।

पत्थर शहर उम्मीद रखी तो।
देख वो सदा ही पछताएंगे।

सीख ले तू जीने का सलीका,
वरना छुप छुप अश्रु बहाएंगे।

थोड़ा मशहूर हो जी जिंदगी,
काफिले तो स्वतःबन जाएंगे।

स्वार्थी है देख यहाँ दुनिया सारी,
स्वार्थ में सब ही करीब आएंगे।

पारखी नजर रख पहचान,
अपने हीरे से चमक जाएंगे।

इंसान हैं और जो इंसान बना,
वहीं पुनः धरा पर आ पाएंगे।



वीणा वैष्णव
कांकरोली

दिनांक १०/४/२०२०
मनपंसद लेखन

गजल।
मिसरा-मुहब्बत के नाजो नियम याद आये।
वजन-,१२२,१२२,१२२,१२२

निभाते रहे हम वफा जो तुम्हारी
मुहब्बत के नाजो नियम याद आये।

चुराते रहे तुम नजर हमी से
कभी तो बताये कि हम याद आये।

अदाए जो तुम दिखाते हो हरदम
सजाये है हम उसे दिल में बैठाये।

छुपाये जो दर्द तुम हमी से
उसी को हम दवाएं बनाये।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

दिनांक- १०/०४/२०२०
विषय-मनपसन्द लेखन के तहत

शीर्षक- मसीहा
विधा-क्षणिका
======================
हुई अवतरित यह बीमारी
जग भर में व्यापक है सक्रिय
काल-कवल हो गए हज़ारों इतनी घातक
छू लेने से बढ़ जाती है या कि छींक से
नाम नहीं लेती मिटने का
मानव सृष्टि बहुत है आकुल
लोग छिपे हैं निज-निज घर में
भयाक्रान्त हैं
कैसे इस पर पार बसायें?
कोई बने मसीहा !
=======================
''अ़क्स' दौनेरिया
१०/४/२०२०
ज़माना है हमारा

ज़िंदा दिली से बन गये उनका सहारा,
मुस्कुरा दो ना ज़माना बस तुम्हारा।
खामोशियों की भी सदा सुनते रहे तुम,
ज्जबात में बहते गये पाकर इशारा ।

अफ़सोस यूँ तोहमत लगा बैठे अभी तो,
हारकर ही जीत पाया दिल तुम्हारा ।
जन्नत की चाह कोई भी माने न रखती,
साथ तुम हो ,बाँहों में आकाश सारा।
सेज अरमानों की यूँ सजायी मैंने ,
दी शिकस्त काँटों को,महका बाग सारा।

क्या कहूँ मुद्दत से पेश चलती थी ना,
ख़्वाब पूरे हो गये ,पाया किनारा ।
रूह मेरी है अमानत बस तुम्हारी ,
जी उठे हम तो, ज़माना है हमारा ।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका
दिनांक-10/4/2020
विषय - स्वतंत्र


यह विराम भी अभिराम है
बस धीरज थोड़ा तुम धरो
माँ शारदे का वरदहस्त है
संदेह तनिक ना तुम करो ।

अभी आस है और उल्लास है
हँसी मखौल मत यूँ तुम करो
कह देना सब मुनासिब नहीं
वक्त सही का इंतजार करो ।

भाव.मन के सच्चे मनके होते हैं
विवेकी बनकर तुम विचार करो
बदले में तुम कुछ पा जाओगे..
दीप प्रज्वलित मन का करो .।

मन में है जो ,कहना चाहिए स्पष्टवादिता स्वीकार करो कथनी करनी के दो पलड़े हैं
न्याय संतुलन सदा रखा करो

वाद और प्रतिवाद के मुद्दों को
सोच समझकर ही चुना करो
कागज - कलम हथियार बना
कभी शीत युद्ध मत किया करो

कर झूठी किसी की वाहवाही चापलूसी मत सिखाया करो
चादर स्वार्थ की होती झीनी इतनी खींचतान ना किया करो

साहित्य साधना है मंगलकारी
मन अपना संयमित किया करो
देश काल का आईना बनकर यथार्थ को दिखलाया करो ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
शुक्रवार/10अप्रैल/2020
विषय- मन पसंद

विधा - बेबह् गज़ल
**********************
हँस हँस के दर्द को छुपाया हमने ।
उम्मीद का चिराग जलाया हमने ।।

दिल की बात जुबां पे आए ।
इससे पहले उसे मिटाया हमने।।

पी कर जज़्बातों का घुटन ।
महफ़िल को सजाया हमने। ।

वाकिफ़ है इससे ज़िन्दगी ।
खो दिया उसे न भुलाया हमने।।

"रत्ना" शिकायत न खत्म हुई कभी।
काफ़िला हसरतों का लुटाया हमने।।

रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद-झारखंड
भावों के मोती
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन

दिनांक 10/04/ 2020
दिन- शुक्रवार
शीर्षक- प्यार में दर्द मिलता है
विधा- कविता
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दर्द देकर मुझको जो हंसता है
सुना है तन्हा अक्सर वो भी रोता है
जब भी मिलता है, कहता है
भूल जाओ तुम मुझको
अरे वही जो मेरी तस्वीर को
सीने से लगाकर रखता है।
लोग कहते हैं,तुम भी भुला दूं उसको
आखिर कौन वो तेरा लगता है
पर कैसे भुला दूं मैं उसको
जो मेरी रग-रग में बसता है।
मैं कभी न करती ये इश्क- मोहब्बत
अगर पहले ही जान जाती
इस प्यार में इतना दर्द मिलता है।

प्रस्तुति- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश

साकी! इस ओर आना नहीं।

क्लेश मन में छाया हुआ है,

करेगी क्या तुम्हारी हाला!
अरे! भरभर के देता जाम,
किंतु मिटा कब मन का छाला?
अब और मुझे पिलाना नहीं,
साकी! इस ओर...(१)

भरभरा गया यह तन मेरा,
अब मदिरा जहरी लगती है।
पीड़ाओं में जलती आत्मा,
काया पर कहरी लगती है।
सच से मुझे भरमाना नहीं,
साकी! इस ओर...(२)

क्रमशः

~ परमार प्रकाश

10/04/20
दीप

दोहावली
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दीप जलाओ प्रेम का,लड़ना भीषण युद्ध ।
ऊर्जा का संचार हो ,अंतस होगा शुद्ध ।।
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मानवता के दीप को,शत शत करें प्रणाम।
विकट काल में वीर ये,करते उत्तम काम ।।
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अंतस की बाती बना,तेल समर्पण डाल ।
दीपक बन कर हम जलें,उत्तम होगा काल।।
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दीप जला कर ज्ञान का,करें तमस का नाश।
ध्वजवाहक अब आप हो,फैले सत्य प्रकाश।।
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विकट काल है विश्व में,भारत जगमग देश ।
जले दीप से दीप जो,बना नया परिवेश ।।

अनिता सुधीर

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