Monday, April 20

" मनपसंद विषय लेखन"17अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-712
विषय मन पसंद लेखन
विधा काव्य

17 अप्रेल 2020,शुक्रवार

हरपल जीवन एक परीक्षा
मत लो शिक्षा से तुम दीक्षा।
दिव्य शक्ति मिले हर क्षण
समय करता है सदा समीक्षा।

जीवन सहज सरल नहीं है
विपदाएँ आती और जाती।
नर जो साहस धैर्य रखता
उन्हें विपदा सीख सिखाती।

पुष्प बिछोना नहीं है जीवन
जीवन कंटक राह बिछी है।
मेहंदी पीसन पीड़ा सहकर
कर मध्य वह अति सजी है।

हिमगिरी की उत्तुंग शिला पे
सदा बैठ आराधना करते हैं।
मनोवांछित ऋषि वर पाकर
सकल विश्व अमङ्गल हरते हैं।

कृष तन कृषक खेत साधना
हर पीड़ा को वह नित सहता।
वह देता नित, लेता कुछ नहीं
सबक सीखा वह आगे बढ़ता।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा ,राजस्थान।
विषय -- मनपसंद

अब न मन करता मिलने का
समय हो गया है चलने का!
कहता दिखा हर एक कभी
अब आया वक्त बदलने का!

उस ईश्वर में जिसने भेजा
सच में उसमें ढलने का!
गया वक्त अब दुनिया के
रंगीन ख्वाब में पलने का!

साँचा नाम उसी का बंदे
करनी सब ही सुधरने का!
अब नही विचरो माया में
वक्त गया वो विचरने का!

भजो राम या श्याम 'शिवम'
इक मंत्र बनने सँवरने का!
यम का डर न फिर सताए
ये नाम है भय हरने का!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 17/04/2020
दिनांक-17/04/2020
विषय-मनपसंद

विधा-कुंडलिनी

"माता"

माता मूरत प्रेम की , रखे सदा ही ध्यान।
कष्ट बड़ा ही झेलती , सदा लुटाती जान।
सदा लुटाती जान,इष्ट भी शीश झुकाता।
हो भवसागर पार , सदा पूजे जो माता।

२.
वंदन करुँ माता तुझे,सदा झुकाऊँ शीश।
साथ रहे नित आपका , देना तू आशीष।
देना तू आशीष , बने तू माथा चंदन।
गहना है अनमोल ,तुझे करुँ माता वंदन।

३.
माता तेरी शान में , लगा रहूँ दिन - रात।
चहुं ओर जयकार हो,जय-जय भारत मात।
जय-जय भारत मात,रहूँ नित मान बढाता।
शांति हर्ष का सार , विश्व को समझा माता।

राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालिया खेड़ा,सिरसा
हरियाणा
दिनांक 17।4।2020 दिन शुक्रवार
विषय में पसंद रचना


वृद्धावस्था

जिंदगी में वृद्धावस्था भी कितनी अजीब है।
सब कुछ परिवार को समर्पित कर देने के बावजूद,
परिवार के लिए ठूंठ सा बन जाता है।
पत्र,पुष्प,फल सब यौवन है जिन्दगीका,
एक दिन झड़ जाना है,
क्योंकि समय सदा एक सा नहीं रहता।
इस नाशवान संसार में कुछ अच्छे कर्म ही,
जीवन को बना देते हैं सार्थक।
याद रह जाते हैं कुछ अच्छे काम,
जो परिवार और समाज के लिए किए हैं।
एक ठूंठ और वृद्ध में अंतर नहीं है कुछ,
दोनों सब कुछ न्यौछावर कर,
हो जाते हैं रिक्त,
और रह जाते हैं शो पीस की तरह ,
दिखावा मात्र के लिए।



फूलचंद्र विश्वकर्मा
दिनांक - 17,4,2020
दिन - शुक्रवार

मन पसंद लेखन
विषय - कोविड - 19

कोविड उन्नीस बन गया , घातक अस्त्र प्रहार ,
सारी दुनियाँ में हो रहा, बहुत ही हाहाकार ।

स्वार्थी तत्व सक्रिय हुए, पड़ रही दौहरी मार,
करें लक्ष्मण रेखा काट के, विवेकहीन व्यवहार ।

ये रक्षक के दुश्मन हुए हैं ,और करते हैं पथराव ,
अवरोध विकास में करने का, इन्हें बहुत है चाव।

सहयोग हमेशा लाजिमी,यही देशभक्त का शौक,
असामाजिक गतिविधियों पें, लगानी होगी रोक।

परिधि में सब अपनी रहें, हम ओरों को दें सीख,
अब तो बेवफा को दया की, हम देना छोड़ें भीख।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

दिनांक-17/04/2020
स्वतंत्र सृजन -यादें

गहरी है अंतर्मन की यादें
सूनी रतियां कैसे काटे
मन निर्मोही मन की बातें
धूप सखी की लडियां ताके।।
मन निर्मोही मन की यादें............

हेम रात्रि की कंपित कंपन
रूप छिपाए मादक यौवन
रात्रि स्तब्ध पड़ी हुई ......
विह्वल मन घन -घन नाचे।।
मन निर्मोही मन की यादें.........

रिश्ते रह गये बाजीगर के वादे
मन के पन्ने रह गए कोरे सादे
हे निर्मम चांद , प्रिय तू लौटा दे
स्वर्णिम रश्मियों से द्वार सजा दे।।
मन निर्मोही मन की यादें.............

अर्धरात्रि के मध्य बिंदु में
स्वप्न सजोयें विमल इंदु
मध्य निशा का मैं अभागा
तेरे प्रेम का मैं हूँ त्याजा
यादों की बारात सजा दे..............
मन निर्मोही मन की यादें

सूखी अधरे तीव्र तपन से
प्यासी राही को नीर पिला दे
बरखानो के भटके राही को
पथ का उजाला तू बता दे।।
मन निर्मोही मन की यादें.............

स्मृतियों की बाहों में
यामिनी व्याकुल खड़ी सी
मौन रजनी के अंगों पर
चिलमन से तू अपने मुझे सुला दे।।
मन निर्मोही मन की यादें.............

बसता हूं मैं तेरे ह्रदय द्वार के मंदिर में
प्रेम के दीपक, नेह के बाती तू जला दे
मेरी पुलकित प्राणों में खोया यौवन तू लौटा दे।।
मन निर्मोही मन की यादें.......

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

शीर्षक –‘दिल के कोने में एक कोना तो खाली होगा '

“तेरे दिल के एक कोने में ,एक कोना तो खाली होगा

ना जाने कितने लोग बसे होंगे उसमें
ना जाने कितने सपने देखे होंगे तुमने
ना जाने कितने सुविचार बने होंगे उसमें
किंतु दिल के एक कोने में एक कोना तो खाली होगा ।।

चाहे अनचाहे ना जाने कितने बेगैरत आए होंगे
जाने अनजाने ना जाने कितने बेगाने आए होंगे
इन सारे आपाथापी में एक कोना तो खाली होगा
तेरे ह्रदय के अंतर्मन में एक कोना तो खाली होगा ।।

कोलाहल के घोर नाद में कुछ तो खाली होगा
आत्मा के गहन अंधकार में कुछ तो खाली होगा
जिस अंतर्मन में तूने ख्वाब बुने होंगे
उस दिल के एक कोने में, एक कोना तो खाली होगा ।।

जहां राधिका राम बसे होंगे
जहां तेरा ध्यान टीका होगा
उस अल्हड़पन की दुनिया में ,एक कोना तो खाली होगा
तेरे दिल के एक कोने में, एक होना तो खाली होगा ।।

रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

आदरणीय जनों को
🙏🙏
मन🙏🙏
विषय मनपसंद
दिनांक 17/04/2020

चक्र पृथ्वी का
बदल रहा.........
कोरोना मानव को
निगल रहा ।

माँ की हुई फिर
गोद सूनी...........
अर्थी भी अब न
हाथ छूनी.........
पाषाण हृदय भी आज
पिघल रहा.............
कोरोना मानव को
निगल रहा।।

बदल रही प्रकृति
प्रतिक्षण..........
कोरोना कर रहा मानव
भक्षण............
बेबस है इंसान लहू
उबल रहा.............
कोरोना मानव को
निगल रहा।।

इंसानी भूख इंसान को
खा रही............
पृथ्वी रसातल में
समा रही.............
दानव रोग इंसान को
मसल रहा...........
कोरोना मानव को
निगल रहा।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)

मन पसंद विषय लेखन

*गरल सरल*
महलक्ष्मी छंद
212,212,212

आप जब बात हमसे करें।
साथ हम घात किससे करें।
प्रीत ही जब कहीं साथ है।
मान लें सच ईश साथ है।

राम का नाम लेते चलें।
ध्यान एक यही धरते चलें।
कौन कुछ हमारा कर सके।
राम जो अकेले कर सके।

जीत भी मिलेगी मान लें।
हार क्यों थमेगी जान लें।
छोड़कर हाथ हम क्या करें।
राम जब साथ दम क्या भरें।

भोर हो तभी ये रवि दिखे।
प्यार हो कही वह छवि दिखे।
गरल से नहीं बचते कहीं।
सरल जो वहीं रहते सही।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
मन पसंद विषय लेख
इंद्रजीत के वध पर लिखी कुछ पक्तियाँ


कर्म पथ पर आगे बढ़ा
मातृ भूभि का कर्ज़ उसने चुकाया था
माना की मौत निश्चित थी
पर उसने हस्ते हुए मृत्यु को गले लगाया था

आगाह किया था लंकेश को उसने
पहचान गया था वह श्री हरि को
पर पिता का वचन निभाने के लिए
रण क्षेत्र में जाकर उसने
श्री हरि को ललकारा था

मेघ सी गर्जना थी उसकी
युद्ध कौशल में था निपुर्ण वह
इंद्रजीत नाम उसका
युही न कहलाया था

अभिनव झा
न्यू कालोनी कुशालपुर
रायपुर छत्तीसगढ़

🙏मेरे कुछ प्रतिनिधि हाइकु🙏
🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄

(१)
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
सरल होना
बहुत ही कठिन
लगे आसान
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
(२)
ईमानदार
बेईमानी से रहे
खबरदार
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
(३)
बंधक पड़ी
हरेक की आजादी
आरामजादी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(४)
हाथ में डोर
कटी पतंग अब
लगा ले जोर
🏆🏆🏆🏆🏆🏆🏆🏆
(५)
पानी के लिए
पानी न बचा सके
पानीदार भी
💐💐💐💐💐💐💐💐
(६)
झिंगुर बोलें
भरी दोपहरी में
सन्नाटा घोलें
🤡🤡🤡🤡🤡🤡🤡🤡(७)
ज्यों मिला हक़
बदल जाती भाषा
बोलचाल की
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
(८)
बोया बबूल
उग आए हैं काँटे
जैसे को तैसे
💟💟💟💟💟💟💟💟
(९)
भूल से कभी
भूल नहीं करना
भूलकर भी
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
(१०)
माँ एक शब्द
जिसमें है समाया
सारा ब्रह्माण्ड
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
(११)
पंछी पढ़ाते
मुक्ति मन्त्र का पाठ
बन्दी मानव
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🎖️श्रीराम साहू बसना36गढ़
दिनांक 17 / 4 / 2020
विषय मनपसंद


कोई चलता मौन रख, कोई जोर जोर से कहता है
कोई लिखता अपने मन की, अपने मन की कहता है

चांद सितारो की चाहत में नजरे उठती नभ की ओर
पंखों मे ताकत है जिसके वह चुपचाप ऊपर उठता है

तस्वीरों का शौक नहीं था, न ही चाह खबरो मे आना
अजंता की गुफाओं मे भी वो कृतियां अनुपम गढता है

कर आता कोई कर्ण बनकर चुपचाप सर्वस्व न्यौछावर
अभागा है वो जो चर्चा के लिए इधर उधर फिरता है

एक शिला तुम भी रख लो चुपचाप इस सेतुनिर्माण मे
राम प्रभु का स्नेह तो सब जीवो पर एक सा रहता है

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
मन पसंद विषय लेखन
सादर मंच को समर्पित -


🌹🌻 गीतिका 🌻🌹
****************************
🌹न रिश्ते मिटेंगे 🌹
मापनी-122 , 122 , 122 , 122
समान्त -आर , पदांत - होगी
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️


न रिश्ते मिटेंगे , न हित मार होगी ।
रहें प्यार से तो , न तकरार होगी ।।

रखें अहं को दूर यदि हम सभी तो ,
न अलगाव होगा , न हद पार होगी ।

जहाँ शर्म रहती सदा आँख पानी ,
न परिवार टूटे , न दीवार होगी ।

सदा पूर्ण सम्मान दें यदि सभी को ,
न कोई लड़ेगा , न नित रार होगी ।

कभी भी न संवेदना शून्य हम हों ,
चलें एक होकर न फिर हार होगी ।।

🍓🌻☀️🌹🌴🌺


🌲🌷🍊**...रवीन्द्र वर्मा आगरा

17/4/2020
बिषय, स्वतंत्र लेखन

वीरान सा हो गया है मेरा ए देश
आतताइयों का हो गया समावेश
सूनी शहर की गलियां बाजार भी सूने हैं
सूने हैं घर के आंगन मुख्य द्वार भी सूने
सुनाई नहीं देतीं बच्चों की किलकारी
कठिन परिस्थिति ऐसी ए महामारी
सब्जी बाले की टेर सुनाई नहीं देती
कैसा अंधेर चिड़िया भी दिखाई नहीं देती
अपनी करनी का फल हम स्वयं भुगत रहे हैं
पड़ोसी से दो शब्द बोलने को तरस रहे हैं
फिर भी दल में आस लिए बैठे हैं
पतझड़ के बाद मधुमास की तलाश लिए बैठे हैं
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
रात के तीन बजे

रात की तन्हाई
रोज आधी रात
कोई देता है दस्तक
दिल के दरवाजे पर और
आकर बैठ जाता है
मेरी पलकों पर
आता है ख्वाब कुछ अजीब सा
कोई चलता है मुझसे आगे
मुड़ -मुड़ के कहता है
पीछे आने को
और फिर
खड़ा कर देता है ले जाकर
किसी वीरान बस्ती में
कभी तेज भागती
ट्रेन में चढ़ा देता है
जहाँ सिर्फ मैं तन्हा
घबराई सी
आगे पीछे भागती हूँ
पर कोई नहीं दिखता
कभी ले जाता है
ऊँचे पहाड़ पर
इशारा करता है
नीचे कूदने का
और डर से
रोज रात तीन बजे
खुल जाती है मेरी नींद
सामने खिड़की से चिपका
एक साया घूरता नजर आता है
और मैं डर कर
फिर आँख मींच लेती हूँ
धीरे से आँख खोल दोबारा
खिड़की पर देखती
उसे न पा
दो घूँट पानी से
गला तर कर
सोने की कोशिश में
काला आसमान
सुरमई सा होने लगता है
कैसे हैं ये ख्वाब
रोज रात सिरहाने बैठ जाते हैं
और जगा देते है मुझे
रोज रात तीन बजे

सरिता गर्ग
17/04/20
प्रेम

रोला छन्द
**
1)
जला ज्ञान का दीप,भरें जग में उजियारा।
प्रेम त्याग अनुराग,मिटाता जग अँधियारा।।
मध्य प्रेम विश्वास ,रहा जीवन का गहना ।
छोड़ें कड़वी बात,यही कहती है बहना।।
2)
मोर मुकुट धर शीश,अधर पर बंसी रहती।
प्रेम राधिका नाम,किशन की बंसी कहती।।
कर्म जगत आधार ,सिखाती आयी गीता ।
जीवन हो निष्काम,भरे अब घट यह रीता।।
3)
मातु पिता का प्रेम,भरे अनमोल खजाना।
मिले सदा आशीष,प्रभो उनको ही माना ।।
देकर उत्तम सीख ,सफल वो जीवन करते ।
पहले शिक्षक आप ,खुशी से अंतस भरते।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय-मनपसंदस्वरचित ।
शीर्षक - खामोशी।
पसरा जब भी खामोशी का आलम
मेरे तुम्हारे बीच।
समझो कई अनकही अभिव्यक्तियां
हो गई व्यक्त।।

शुरू से लेकर आखिर तक कब,क्या कहा था?
गूंजने लगा जोर-शोर से।
और सिर्फ रह गईं कुछ बद्जुबानियां
याद उस वक्त।।

कितनी-कितनी बातें एक साथ चलने लगीं
दिलो-दिमाग में,
हाय कहां फंस गई,कहां ब्याह दी मां बाप ने,
कैसा है बेदर्द??

फिर... ख़ामोशी के आलम में कुछ घंटे सोचते
यादों के बीते,
देखकर तुम्हारी सूरत हैरान-परेशान पिघला हाय!
ये दिल कमबख्त!!

खामोशी के आलम में आंखों की नमी ने धो डाला
दिल का मैल।
जिससे थी शिकायत,लग गई उसी के गले लिपटे
इर्द-गिर्द दो दरख़्त।।

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

दिनांक-17/04/2020
विषय-मनपसंद (गीत)

शीर्षक-मैं सृजनकर्ता हूँ..

***********************
कितनी हो बाधाएं बेशक ,पथ में मेरे,
मैं सृजनकर्ता हूं ,रुक सकता नही मैं |

जोर अपना ध्वंस तू भी, आजमा ले,
पर सृजन मेरा तो ,नित चलता रहेगा |
यह तपस्या आस्था की, है भयंकर,
कामना का दीप तो, जलता रहेगा |
छल-कपट से लाख ,मुझको आजमा ले,
यातनाओं से तनिक ,डरता नही मै |
मैं सृजनकर्ता हूँ ,रुक सकता नही मैं |

कितना ही तूफान आये ,थामने को,
रोक सकता है नही, क़दमों को मेरे,
कामनाएं संगिनी ,बनकर चली है,
फिर कोई क्या बांध लें, यत्नों को मेरे |
है हिमालय से भी ऊंचा ,प्रण ये मेरा,
है शिखर पर सिर ,झुका सकता नही मैं |
मैं सृजनकर्ता हूँ, रुक सकता नही मैं |

चाहे कितनी वेदना के ,शूल बरसें,
लालसा मेरी यहां ,सब कुछ सहेगी,
वज्र टूटे या धरा ,डोले ये सारी,
प्राण सिंचित साधना, मेरी रहेगी |
मैं अंधेरे को बदल दूं ,रोशनी में,
स्वप्न के संग में कभी ,चलता नही मैं |

रचना:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
17/04/2020
17/04/2020
िषय:-"तुम जो ठहरे तो..."

तुम जो ठहरे तो...
प्रकृति चहक पड़ी
लौटी तारों की चमक
हवा भी महकने लगी l

तुम जो ठहरे तो...
जिंदगी से हुई बात
फिर शौक जिंदा हुए
खुद से हुई मुलाक़ात l

तुम जो ठहरे तो...
घर रामायण हुआ
वो मिलके हाथ बंटाना
रिश्ते सहेजना हुआ l

तुम जो ठहरे तो....
यादेंआ बैठी पास
दौड़ आया बचपन
ले कैरम,लूडो,ताश l

तुम जो ठहरे तो....
सेवा आई काम
काल की पहचान में
काम न आया नाम l

तुम जो ठहरे तो....
ये माया हुई उदास
जरुरत बहुत थोड़ी है
जीवन तो एक प्यास l

तुम जो ठहरे तो....

स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय : मनपसंद विषय लेखन
विधा : कविता

तिथि : 17.4.2020

जीवनमीत
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मेरा गीत
क्या गाओ गे तुम?
भाव मेरा
क्या अपनाओ गे तुम?

आओ न
मिलजुल कर
मधुर संगीत बनाते हैं,
इक दूजे के दिल में
अपना घर बनाते हैं।

घर में हम खिलाएंगे फूल
उगने न देंगे कोई शूल,
क्या मेरे संग ऐसा
आशियाना बनाओगे-
क्या मेरे संग
ऐसा सपना सजाओ गे!

क्या गाओ गे
तुम मेरा गीत
क्या साथ दोगे
पाने में जीत।

यदि अपना लो तुम मेरा भाव
मिटा लेंगे मिल कर सारे अभाव।
शाश्वत संगम यह भाव और गीत-
बना देगा हमें जीवन मीत।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विषय-मनपसन्द लेख



सच बताऊ मुझे तुमसे प्यार हो गया।
तुम्हे हुआ या नही मेरा दिल खो गया।

अल्पक नजरो से निहारती हूं तुम्हे।
क्या बताऊँ सारा जहाँ नजर आता है।

कुछ अनोखे प्रतिबिंब नजर आते है
और हम उन रूँगीन ख्वाबो में खो जाते।

अनेको दृश्य दिखाई पड़ने लगते
उन दृश्य में हम चित्र आपका ढूढ़ने लगते।

घंटो हो जाते है हमे खो जाते हुए।
बड़ा मजा आता हमे इनमें डूबे हुए।

वर्षो हो गए हमे लुकाछिपी के खेल में।
औऱ अच्छा लगता हमे इस इश्कबाजी में।

एकदिन तो जरूर नजरो में समा लूगी तुम्हे ।
तू प्रभू चाहे कितनीं कोशिश कर ले न जाने दूँगी तुम्हे।

स्वरचित मीना तिवारी
मनहरण घनाक्षरी छंद
8+8+8+7

कुल की ताज है बेटी,
घर की भी लाज बेटी,
जिस घर रहे वहाँ,
लक्ष्मी का भी वास है।

माता की तो जान है ये,
मधुर सा गान ये है,
आन-बान, शान-मान
नहीं परिहास है।

पति की संगिनी बन,
रहती है साथ सदा,
कभी बहू बन कर,
करती निवास है।

अबला ये नहीं रही,
कुलछिनी कहो नहीं,
तेज बल बुद्धि सब,
इसके भी पास है।

भाविक भावी
दिनांक -17/04 /2020
विषय -स्वतंत्र लेखन


खामोश तेरे लब हैं ,
ये खामोश है निगाहें ।
खामोश तेरी रंगत,
खामोश है फिजाएं ।

खामोशी बयां कर रही है ,
तेरे दर्दे दिल का हाल
सुर्ख हो गए हैं ..............
तेरे ये गुलाबी गाल ।

आ मेरे पास बैठ तू ,
हाल -ए- दिल सुना दे ।
भूल कर सारे गमों को,
तू अपने आंसू पोंछ दें ।

खामोश तेरी आंखें?
प्रियतम को ढूंढती हैं ।
खामोश तेरे लब भी,
प्रियतम को ही पूछती हैं ।

मैं संदेशा पहुंचाऊंगी,
ये वादा रहा हमारा..... ।
हाल -ए- दिल का सुनाऊंगी,
जहां प्रियतम होगा तुम्हारा ।

मैं हवा हूं निराली .. ......
पहुंचती हूं हर गली तक
हवा हूं मैं मस्तानी. . . ......
पहुंचती हूं हर झरोखे तक।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
दिनांक_१७/४/२०२०

लघुकथा-प्रारब्ध

अरि ओ पिंकी "सुना है कि तेरे पड़ोस में रहने दमंयती की दोनों बेटियों की शादी बहुत सम्पन्न घर में हो गई,ये कैसे संभव हुआ? उसके पास तो खाने के भी पैसे नहीं थे, फिर धन कहां से आया?"
पिंकी ने अपनी सहेली नेहा को फोन कर सवालो की बौछार कर दी।तब नेहा ने बहुत ही शांत मन से बताया"जैसा कि तुम्हें पता है कि दमयंती के पति का कम्पनी बंद होने के बाद, अपनी पत्नी और दोनो बेटियों को छोड़कर भाग गया,ऐसे में उनको खाने के लाले पड़ गये,तब दमंयती ने अपनी बड़ी बेटी को अपनी अमीर बड़ी बहन के घर भेज दिया और वह छोटी बेटी निक्की के साथ दूसरे घर में झाड़ू पोंछा कर अपना जीवन यापन करने लगी, उसकी बेटी निक्की जिस घर में काम करती थी उस घर की बेटी को विदेश से एक लड़का सपरिवार उसे शादी के लिए देखने आया, लड़की पसंद नही आने पर वह खाली हाथ लौट कर नही जाना चाहता था,और निक्की उसे बहुत पसंद आई और उससे शादी कर ली।
उधर उसकी दीदी की लड़की के शादी के लिए जो लड़का बारात लेकर आया था,उससे दीदी की लड़की शादी करना नही चाहती थी, ऐसे में दीदी उस लड़के को समझा बुझाकर शांत मन से दमयंती की बड़ी बेटी से उस लड़के की शादी करा दी। इस तरह से धन के अभाव में उसकी दोनों बेटियों की शादी एक सम्पन्न परिवार में हो गई।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक_१७/४/२०२०

लघुकथा-प्रारब्ध

अरि ओ पिंकी "सुना है कि तेरे पड़ोस में रहने दमंयती की दोनों बेटियों की शादी बहुत सम्पन्न घर में हो गई,ये कैसे संभव हुआ? उसके पास तो खाने के भी पैसे नहीं थे, फिर धन कहां से आया?"
पिंकी ने अपनी सहेली नेहा को फोन कर सवालो की बौछार कर दी।तब नेहा ने बहुत ही शांत मन से बताया"जैसा कि तुम्हें पता है कि दमयंती के पति का कम्पनी बंद होने के बाद, अपनी पत्नी और दोनो बेटियों को छोड़कर भाग गया,ऐसे में उनको खाने के लाले पड़ गये,तब दमंयती ने अपनी बड़ी बेटी को अपनी अमीर बड़ी बहन के घर भेज दिया और वह छोटी बेटी निक्की के साथ दूसरे घर में झाड़ू पोंछा कर अपना जीवन यापन करने लगी, उसकी बेटी निक्की जिस घर में काम करती थी उस घर की बेटी को विदेश से एक लड़का सपरिवार उसे शादी के लिए देखने आया, लड़की पसंद नही आने पर वह खाली हाथ लौट कर नही जाना चाहता था,और निक्की उसे बहुत पसंद आई और उससे शादी कर ली।
उधर उसकी दीदी की लड़की के शादी के लिए जो लड़का बारात लेकर आया था,उससे दीदी की लड़की शादी करना नही चाहती थी, ऐसे में दीदी उस लड़के को समझा बुझाकर शांत मन से दमयंती की बड़ी बेटी से उस लड़के की शादी करा दी। इस तरह से धन के अभाव में उसकी दोनों बेटियों की शादी एक सम्पन्न परिवार में हो गई।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

II मनपसंद विषय लेखन II नमन भावों के मोती....

विधा : ग़ज़ल - नाम कर दूँ इश्क़ सुहबत...


मौत बन के चारागर आ जाए तो...
उनके मिलने की ख़बर आ जाए तो...

इश्क़ जुनूँ अंजाम पे आ जाएगा...
शै हरिक में वो नज़र आ जाए तो...

मर चुकी इंसानियत लौट आएगी...
अक्ल आईना देख कर आ जाए तो...

दूध में पानी मिला दिखता कहाँ...
काग रूप मराल धर आ जाए तो...

नाम कर दूँ इश्क़ सुहबत दर्द सब...
कोई 'चन्दर' दीदावर आ जाए तो...

मराल = हंस

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
😊 17/4/2020
****************
हुस्न पे दाम का कहर आया
खु
दकुशी आज इश्क कर आया।।

चाँदनी रात में वो अँगड़ाई
नाजनी चारसू कहर आया।।

मुद्दतों बाद वो मिली ऐसे
ख़्वाब में चाँद जो उतर आया।।

डूब कर आज मैं मगन बहकी
प्रेम सैलाब जो उतर आया।।

जुगनुओं की बड़ी महरबानी
रात में दिन मेरा सँवर आया।।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ
विषय - मनपसंद लेखन
17/04/20

शुक्रवार
छंद मुक्त कविता

लाकडाउन से सडकों पर पसरा सन्नाटा
पर घरों में गूँज रहा हँसी और ठहाका
आज घर में सभी एक दूसरे के निकट आ रहे हैं
आपस में सब गिले- शिकवे निपटाए जा रहे हैं
बच्चे दादा-दादी से सुन रहे हैं किस्से और कहानियां
और कोरोना से बचने के लिए बरत रहे हैं सावधानियाँ
नियति आज मानव को ऐसी स्थिति में ले आई है
कि बरसों बाद परदेसियों को घर की याद आई है
सुख- वैभव की चाह ने उन्हें पहले इतना स्वार्थी बना डाला था महानगरों की चकाचौंध में उन्होंने माता-पिता का हर अनुरोध टाला था
आज उनके सारे सुख- वैभव ताक पर रखे हैं
आज वे माँ-बाप की छत्रछाया पाने के लिए तरस रहे हैं
इस लाकडाउन ने निश्चित ही मानव को आइना दिखाया है
नियति के सामने उसको बौना बताया है
इसलिए भविष्य में उसे सावधान रहना है
और प्रकृति का मनमाना दोहन नहीं करना है

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय - नव विहान
🙏🌹🌹

माना घना अंधेरा है
निराशा ने आ घेरा है
है मुझको यकीन
नव विहान फिर आयेगा
युवा सूरज फिर मुस्काएगा
है मुझको यकीन
विश्व विजयी मेरा भारत होगा
भारत होगा, भारत होगा ।

हारेगी भौतिकता अध्यात्म जागेगा
माना घना अंधेरा है
निराशा ने आ घेरा है ।
सूर्य रश्मियां नाचेंगी, तम हारेगा
तम हारेगा, तम हारेगा ।
है मुझको यकीन
रोग, शोक सब भागेगा ।

नव विहान फिर आयेगा
युवा सूरज मुस्काएगा ।

स्वर्णिम सबेरा अपना है
अपना है अपना है ।
ये कोरोना कुछ पल का सपना है
सपना है, सपना है ।
माना घना अंधेरा है
निराशा ने आ घेरा है ।

खिलेगी कली , कली मुरझाई
महकेगा पुष्प ,बगिया हर्षाएगी ।
आज घटा घनघोर है छायी,
कल सुख सौभाग्य बरसेगा
बरसेगा, बरसेगा ।
है मुझको यकीन
है मुझको यकीन ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
भावों के मोती
दिनांक- 17/04/ 2020

दिन- शुक्रवार
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन एवं श्रव्य दृश्य प्रस्तुति
शीर्षक-खुशी ढूंढ लेते हैं
विधा- कविता
*************************************
चलो अपनों संग जी भर जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं
जिंदगी के सारे गम मिलकर दूर कर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
इस भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में
फुरसत के पल कहां मिलते हैं यारों
आज मिले हैं जो पल इन्हें जी भर जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
फुरसत में अक्सर याद आते थे हमें
बचपन के वो सुहाने दिन
चलो आज एक बार फिर
बचपन को जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
ख्वाहिशें जो कभी रह गई थी अधूरी
आज पूरी उन्हें कर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
शिकायत अक्सर रहती थी उनको हमसे
कहां देते हो मेरे हिस्से का समय तुम हमको
चलो शिकायत उनकी ये भी दूर कर देते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
एक अरसा हुआ आगोस में उनकी खोए हुए हमको
चलो आज फिर उन्हें बाहों में भर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।

स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
दिनांक 17-04-2020
मनपसंद लेखन


रे मन!
छोड़ निराशा में जीना...

जो मिला नहीं उसका स्मरण
यह व्यथा वृथा कर दे विस्मरण
कब-तक तृष्णा को ढ़ोयेगा
कब-तक पाया सुख खोयेगा
है ठीक नहीं सच को ढ़ककर
सपनों का झूठा विष पीना
रे मन!
छोड़ निराशा में जीना......

तू नहीं अकेला है जग में
जिसके बिखरे मोती मग में
फिर शुक्र मना कुछ तो पाया
आखिर इतना क्यों घबराया?
हँसकर जी ले या फिर रो ले
जीवन का दुख है ही सीना
रे मन!
छोड़ निराशा में जीना....

इससे कुछ हासिल न होना
उठ, देख नहीं अब है सोना
क्या हुआ गई वह बात बीत
गाना मुझको है नवल गीत
धरती का कण-कण उत्साहित
सीधा कर ले तू भी सीना
रे मन!
छोड़ निराशा में जीना....

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
17.4.2020
शुक्रवार
मनपसंद लेखन

प्रस्तुत हैं कुछ दोहे

(१)
जीवन भर का साथ है,अब यह रचना धर्म
यही दिलाए ज़िन्दगी,यही कर्म का मर्म ।।

(२)
काम,क्रोध,मद,लोभ,सब,यही नरक के द्वार
जीवन उलझाते रहे,छलते मनुज विचार।।

(३)
क्रोध न मन उपजाइए,क्रोध नाश का मूल
क्रोधहिं विकसित वैर सब, मित्र भाव सब भूल ।।

(४)
नारी सबल समर्थ है,है ममता की खान
सदा समर्पित देश हित,बनता देश महान।।

(५)
कहते जो करते नहीं,करें कहा ना जाय
धन आए बौरा रहे.धन जाए बौराय।।

(६)
चतुर और चालाक है,नवयुग का इंसान
अब नेता की भाँति ही,वोटर बना सुजान ।।

(७)
दिल के निकट रहें सदा, दूर रहें या पास
सुख-दु:ख सब साँझा करें,रिश्ते वे ही ख़ास ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
आया कोरोना गाँव में

'अरे! भूरा,भीखा,बनवारी सब सुनो,हमारे गाँव में कोरोना आ गया है।सब घरों में ही रहना।अब बाहर तनिक भी मत निकलना।' काना भाई जोर से पुकारते हुए,हाथ में दूध की बरनी पकड़े हुए चले जा रहे थे।

तभी भूरा अपने घर के बारने पर आ गया।काना भाई रुक गए।

'क्या कह रहे काना भाई?कोरोना से आपकी मुठभेड़ हो गई क्या? ' भूरा ने हँसते हुए अंदाज में कहा।

भीखा भी आ गया था।उसने भूरा की बात को ताल देते हुए कहा- 'मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है।'

'मजाक नहीं कर रहा हूँ।पता नहीं आप लोगों को कोरोना से सम्बंधित हर बात मज़ाकिया क्यों लगती है।कुछ सुनो तो सही!' फिर वाणी में सख़्ती लेते हुए बोले- हमारे पास ही के गांव के मुंशी का बेटा दिल्ली से घर आया है।मुंशी जी ने और उनके परिवार ने बेचारे को घर में घुसने नहीं दिया।अब गाँव वाले भला क्यों उसपर दया करते?उन्होंने भी लताड़ दिया।वो बेचारा कोरोना टेस्ट करवा के आया था।फिर भी उसे गांव वालो ने शरण नहीं दी।जब परिवार बेगाना बन जाए,तो गांव वाले कब अपने बनते?

अब ध्यान लगा कर सुनो- "वह इधर-उधर घूम रहा है।उसे कोई शरण नहीं दे रहा।सुनने में खबर आ रही है कि वह हमारे गांव में भी देखा गया है।कुछ लोग कह रहे थे-वह टेस्ट करवा कर नहीं आया था,अस्पताल से भाग आया था।तभी उसे अपने परिवार और गाँव वालो ने निकाल दिया है।कुछ लोग कह रहे थे- उसे खाँसते हुए भी हमने देखा है।अब यह बातें सत्य भी हो सकती है न?इसलिए सबसे हिदायत है बाहर मत निकलिए।कहीं उसके चपेट में आ गए तो राम नाम सत्य!"

काना भाई ने बात खत्म ही नही की थी कि बनवारी भी आ गया।
"किसका राम नाम सत्य कर रहे काना भाई?" बनवारी ने कहा।

"अरे बनवारी भाई,इस मुए कोरोना का।अब तो और तेजी से फैल रहा है।उसी विषय में बात कर रहा था।"फिर कहा- वैसे आप कहाँ से आ रहे है?"

बनवारी- "मैं तो तनिक खेत की ओर गया था।"

काना- "अच्छा! पर अब आप भी कम आवाजाही करिये।मैं तो कहता हूँ,घर पर ही रहिये।मैं भी अब दूध भरवाने नहीं जाया करूँगा।"

भूरा बोला- काना भाई,आप सही कह रहे है।मैंने कुछ देर पहले ही न्यूज़ में सुना है।कोरोना तेजी से बढ़ रहा है।पर अभी गाँव में तो फिर भी ठीक है स्थिति।

भीखा- हां! काना भाई,भूरा भाई!

काना भाई- अरे! हम एहतियात बरतेंगे तो हम भी बचेंगे।वरना हम भी इसके चपेट आ जाएंगे।अब जब सन्देह है कि कोरोना ग्रस्त कुछ यहीं कहीँ घूम रहे है तो हमें सतर्क हो जाना चाहिए।क्या कहते है बनवारी?

बनवारी- सही कह रहे काना भाई।पर कौन घूम रहा है?

भूरा- हमारे पड़ोसी गाँव का ही एक है।लोग उसे कोरोना से ग्रस्त बता रहे है।

बनवारी- ओह! तब तो मैं चला घर की ओर।

भूरा और भीखा ने भी कहा- हां! अब घर में चला जाना चाहिए ।बाहर उभा रहना ठीक नहीं।चलिए,चलिए घर में।

सब अपने-अपने घर में चले गए।
काना भाई भी दूध की बरनी हिलाते हुये,मस्ती की चाल में झूमते हुए अपने घर की ओर चल पड़े थे।


~परमार प्रकाश
 २१२२ २१२२ २१२२ २१२२

जीस्त पाई आदमी की जन्तु सी इसको करो ना

संस्कारी मौत हो तुम श्वान जैसी तो मरो ना

हिज्र पल दो पल रखो तुम कट चलो सारे जहां से
सुब्ह फिर खिल कर मिलेगी बेवजह तुम यूं डरो ना

आग जैसे फैलती है जंगलों के दामनों में
मर्ज भी यूं फैलता ये नाम है जिसका कुरोना

छोड़कर आवारगी को सादगी रख साध खुद को
सांस की अनमोल डोरी मौत मोती तुम पिरो ना
17/04/2020
मनपसंद लेखन


वक्त मिला है
स्वयं को जानने के लिए
हम दोनों ने एक दूजे को
भली-भांति और भी जाना है।

वक्त मिला है
ब्याहे बाद नहीं मिला इतना
अतीत की बातें,
सहेजे पत्र वाचन
ताजा हुई पुरानी यादें ।

वक्त मिला है
दिन का हर पल हमारा
ना कहीं आना-जाना
ना बच्चों की चहल- पहल
ना कोई मांग ना कोई आवाज ।

वक्त मिला है
अभ्यास अच्छा हो गया है
सेवानिवृत्त से पूर्व
घर में कैसे रहना
एक दूजे के संग।

स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय -मनपसंद
विधा- दोहा



1-अर्चन
करती अर्चन आपका, सुन लो मेरे नाथ।
शरण गही है आपकी, रखो शीश पर हाथ।।

2-अर्पण
जीवन हो अर्पण वहाँ,जहाँ ईश का धाम।
चरणों में मस्तक रहे,मुख में हो बस राम।।

3-नर्तन
मन-मयूर नर्तन करे,सुनकर प्रभु के छंद।
मन निर्मल होता मगन, खुलें द्वार मन बंद।।

4-गर्जन
रण में गर्जन गूँजता ,वीरों का अति जोर।
ऐसी ध्वनि सुन हो रहा,युद्ध बड़ा घनघोर।।

5-प्रखर
प्रखर बुद्धि कर दीजिए,दे दो माँ वरदान।
नित्य नवल रचना करूँ, बढ़ जाये यश मान।।

6-नश्वर
नश्वर यह संसार है, कच्चे घट की भांँति।
पल में टूटे वायु से,ज्यों नरकुल की पांँति।।

7-ईश्वर
कृपा करें ईश्वर यहांँ, और नहीं कुछ साथ।
सुबह-शाम अर्चन करूंँ, चरण नवाऊँ माथ।।

8-स्वर
सुर- सरिता में डूब कर, रचे गीत अनमोल।
मधुरिम स्वर में लग रहे ,मीठे मीठे बोल।।

9-निर्झर
तृप्त तृषित को कर रहा, निर्झर का मृदु नीर।
ऐसे ही सज्जन मनुज, हरते जग की पीर।।

10-निर्विकार
निर्विकार प्रभु आपसे, विनती है करजोर।
आफत जग की फूँक दो,करो शांति सब ओर।।


आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
शुक्रवार

"भूख "

दास्ताँ जिंदगी की
आसान नहीं है
खाने को तरसते हैं
कुछ मासूम तो
कही लोग जूठन
छोड़ना शान
समझते हैं..............

मासूम की खामोशियाँ
हमें एहसास
करा देती है
दूसरों का दर्द भी
अपनी आँखों में
जगा देती है..........

ये भूख भी
किसी श्राप से
कम नहीं,
असहनीय
दर्द जिंदगी में
बहुत देती है
छुटकारा नहीं
गरीबी से
सजा देती है.....

चलो हम पहल
आज से करते हैं
किसी मासूम की
भूख से लड़ते हैं
सक्षम हुए तो
उसका पेट भरते है
या फिर अपने खाने के
दो हिस्से करते हैं.....

श्रीमती सीमा मिश्रा
सागर मध्यप्रदेश




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