Monday, April 13

" मनपसंद विषय लेखन"13अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-708
विषय - मनपसंद

।। कोरोना ।।

जेल घरों में दी जाती
कुदरत ने ये सिखा दिया।
गलती का अन्जाम गलत
यह सबक हमें बता दिया।

गलती इंसान ने ही की
इंसान ही है घर के अन्दर।
और नही कोई भी अन्दर
हो पक्षी या भालू बन्दर।

बोलती नही कहती है
सुनो उसे या बनो बहरे।
मगर भूल से नही भूलो
कुदरत के हम पर पहरे।

माफ नही करेगी कुदरत
कुदरत जब ये रूठेगी।
रूठना ही है उसका ये
कल कौन कहर बन टूटेगी।

अभी नही गर जो सँभले
घर में भी न बच पायेंगे।
आज कॅरोना की सजा
कल कौन सजा में आयेंगे।

कितना न खिलवाड़ किया है
हमने आज कुदरत के संग।
कुदरत ने भी शुरू किया है
आज 'शिवम' ऐलान-ए-जंग।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 13/04/2020
दिनांक 13 / 4 / 2020
विषय मनपसंद


* नव सृजन *

हर्ष के कुछ पल भरे
आओ नवसृजन करे

चुन लाए शब्दसुमन
नूतन कुछ भाव भरे

बनाए नूतन रेखाएं
इन्दथनुषी रंग भरे

द्वार सूना सा घर का
सप्तरंग रंगोली भरे

छाई खामोशी कब से
मधूरम नवीन सुर भरे

दुख की वेला लंबी
कुछ सुकून पल भरे

कोई पाकर खुश हो
ऐसा कुछ सृजन करे

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय मन पसन्द लेखन
विधा काव्य

13 अप्रेल 2020,सोमवार

विश्व मङ्गल करें कामना
काले बादल छट जावेंगे।
समूचा विश्व निरोगी होगा
नया सवेरा फिर जागेगा।

रोग शौक मिटे कालिमा
मुख मुरझाए पुनः खिलेंगे।
आविर्भाव शुभ मङ्गल का
सभी परस्पर गले मिलेंगे।

मानव मिलकर ही चलता
कभी दूरियां नहीं बड़ी हैं।
स्वर्गीम पावन देश हमारा
भारत माता सदा खड़ी है।

सुख शांति की करें कामना
सुख कल्याण हो भावना।
कलुषित रोग मिटे सदा ही
हो परस्पर आपदा सामना।

परमपिता ने जन्म दिया है
खुद जीवन के हैं संचालक।
वे नायक हैं जन सहायक
सकल विश्व के वे हैं पालक।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक, 13,4,2020
दिन, सोमवार

विषय, मन पसंद लेखन
दोहे-

कठिन बहुत जीना हुआ, हर कोई लाचार।
बैठे - बैठे लग रहा, जीवन है बीमार।।

ठहरा जल दुर्गंध दे, बुझे नहीं है प्यास।
बहती नदिया धार की रहती सबको आस।।

ममता की मारी हुई, सहने को मजबूर।
पूत दिखाता आँख है,जाने कौन कसूर।।

आँधी पानी ले गया, उसका चैन सुकून,
विवश आज वो खा रहा, केवल रोटी नून।।

करने को मजबूर हैं, वो बेटी का दान।
पोध न रोपो जब तलक,फले नहीं हैं धान।।

विधना विनती आपसे, देना सबको प्यार।
पेट रूह सब तृप्त हों, करना मत लाचार।।

स्वरचित , मधु शुक्ला.
सतना, मध्यप्रदेश 
खुबसुरत

मैंने पूछा जिंदगी से कौन हो तुम
उसने कहा जो तू जी रहा है वही तो हूं मैं
तेरी सांसों में बसती हूं तेरे साथ ही तो चलती हूं
कभी शांत नदी सी बन जाती हूं
कभी चंचल झरनों सा बह जाती हूं
रहती हूं किसी के दिल में और
धड़कती हूं किसी के दिल में
कभी खुशी, कभी गम दे जाती हूं
कभी किसी के सांसों से चली जाती हूं
कभी किसी के सांसों से बंध जाती हूं
सभी के सुख-दुःख का साथी हूं
मानो तो सब से खूबसूरत हूं
माना कभी थक सी जाती हूं
पर सब्र रखो तो रूक भी जाती हूं
मर मर कर जीना नहीं तुम
जीवन है कोई खेल नहीं
कभी बहता दरिया भी बन जाती हूं
कभी छांव भी दे जाती हूं
वक्त की ठोकर से घबरा मत
जिंदगी है ये इम्तिहान लेती है
विश्वास और संबल से जीत मिल ही जाती है
मौलिक रचना
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
*वैशाखी*छंदमुक्त

पर्व आज वैशाखी आया।
मन मुस्कित प्रफुल्लित बच्चे
हर जन का सिरा हुलसाया।
पतझड़ गया मौसम बासंती कुछ तपती धरती।
फसल आईं घर आंगन में।
सभी किसान प्रसन्नचित हरसाऐ।
अन्नपूर्णा भंडार भरे हैं।
ढोल नगाड़े आज बजेंगे
नर्तन सब जन यहां करेंगे।
खुशियां मनाऐं मिलजुलकर साथी
वैशाखी पूर्णिमा चमके।
गली गली और गांव गांव में
पावन पर्व आज मनाऐं
नाचें गाऐ मौज मनाऐं
झूम झूमकर उछलें कूदें
आओ हम सब शामिल हो जाऐं
वैशाखी हिलमिलकर
मनविऐं।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

दिनांक 13।4।2020 दिन सोमवार
बैसाखी की हार्दिक शुभकामनाएं


बैसाखी बैसाख की,अनुपम सिख नववर्ष।
कृषक जनों में व्याप्त है, फसल देखकर हर्ष।।

सरसों गेहूँ स्वर्ण सम,भरते गृह भंडार।
दिया ईश ने कर्म फल, मिला अन्न उपहार।।

जन का मन हर्षित हुआ,नाचे मत्त मयूर।
रंग बिरंगी प्रकृति भी,आनंदित भरपूर।।

दसवें गुरु गोविंद सिंह ने,दिया खालसा पंथ।
दीक्षा दे पंच प्यारों को,किया मान्य गुरु ग्रंथ।।

तेरह अप्रैल को मने,बैसाखी हर साल।
परम्परागत नृत्य से,मन को करें निहाल।।

गुरुद्वारों में सिख जुट,करते हैं अरदास।
नगर कीर्तन शबद से,व्यक्त करें उल्लास।।

जीवन में आती रहे, बैसाखी हर रोज।
सुख समृद्धि विभव से,भरा रहे मन ओज।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा'सौरभ

तिथि -13/04/2020
वार-सोमवार

विषय- स्वतंत्र
विधा- मुक्त

"मेरा देश महान"

देश हमारा सबसे प्यारा
सब देशों से महान
सतत बढ़ायेंगे हम
अपने देश की शान।

भारत भूमि सोना उगले
गाते हम इसके गुणगान
हमारा देश शक्ति से भरपूर
करें देश का हम सम्मान।

सीमा के प्रहरी हमारे वीर जवान
इधर ताक ना पाये दुश्मन
कुचल देंगे उनके उठे हुए सिर
गिरने ना देंगे देश का मान।

करें हम अपने देश का वंदन
करें नमन और अभिनंदन
जिसकी सभ्यता-संस्कृति उज्जवल
विश्वगुरु है भारत,गायें हम इसके गान।

स्वरचित

अनिता निधि
न्यू बाराद्वारी,साक्ची
जमशेदपुर

दिनांक-13/04/2020
स्वतंत्र सृजन



क्षितिज के छोर पर कोई तो है
जो हमें प्रेम पत्र भेजता है।
वह मेरे अनावृत प्यास को
तीव्र तपन का पुरजोर समझता है।।

है मेरे जन्मों का वह साथी
लिखता वह अनुराग की ताँती।
जटिल जीवन की इस नैया को
पास बहुओं की डोर समझता है।।

लिखता प्रेम लिपि की यंत्रणा
बांचते हैं अकुल नयन मंत्रणा
गिरते अश्रु लड़ियों की धारा को
अश्कों को चित् चोर समझता है।।

प्रेम पत्र की अपरिचित इस पीड़ा को
अग्नीकण है व्यथित उन्मादिनी
मेरे अकुलाते नयनों का
विरह वेदना का शोर समझता है।।

द्वय हृदय हैं, एक है धड़कन
पत्रों का है स्वर् बधिर
मोद आमोद के प्रेम पलाप को
मेरे वेदना को घनघोर समझता है

हम दोनों हैं व्यस्त मदमस्त
अपने अपने कामों में।
तक्षशिला का वक्ष बनकर
प्यासी नदी के छोर को समझता है।।

सूखे अधरों की है अब लाली
पढ़ते निलय प्रीति की कालीमा काली।
कंठ में अटके हैं मेरे श्वांस
अंग प्रत्यय है बदहवास
................वह हमें मदहोश समझता है

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

🌹भावों के मोती🌹

13/4
/2020
"बुद्धि"
********
पिरामिड
********
1)
ये
बुद्धि
कुबुद्धि
सर्वनाशी
कुलबुलाती
हिय सुलगाती
लूम लपेट जाल।।

2)
ये
बुद्धि
छिछोरी
अहंकारी
अतर्कपूर्ण
सुख चैन खाती
कंटक पगडंडी।।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ

13/4 /2020
बिषय, स्वतंत्र लेखन

वर्तमान में हर शख्स लाचार नजर आता है
नहीं किसी का कोई झूठा जग का नाता है
जरा सी सर्दी खांसी में अपने ही किनारा करने लगे
हम आज अपनों से ही डरने लगे
कौन अपना कौन पराया वक्त ने सिखला दिया
स्वयं जागरूक हों हमको ऐ बतला दिया
जरा सी लापरवाही दुख का कारण बन सकती है
हमारी सावधानी से ए बला टल सकतीहै
सजग रहें स्वस्थ रहें फिर मिलते मिलाते रहेंगे
सबके संकल्पों के गीत गुनगुनाते रहेंगे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
०००००००००००००
13 - 04 - 2020

मन पसंद विषय लेखन
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दोहा
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दो से दो का कर गुणा, आएंगे नित चार।
गणित यही सिखला रही, करो हजारों बार।।

चार गुणा जब चार हो, उत्तर सोलह मित्र।
सहज सरल सी बात है, कुछ भी नहीं विचित्र।।

दस अरु दस के जोड़ का, फल आता है बीस।
नियम गणित के हैं सरल, तथ्य धरो यह शीश।।


गणित सीखना है सरल, नियमों पर दो ध्यान।
शिक्षक सब समझा रहे, बनो सहज गुणगान।।

एक एक ग्यारह कहें, ज्ञानी देते ज्ञान।
बात पते की है सखा, लो इसको सब मान।।

तीन-पाँच करना नहीं, मिल कर रहना एक।
मानो सब इस बात को,सुंदर सुखद विवेक।।

नौ-दो-ग्यारह हो गये, क्यों ये सारे लोग।
गलत कदम इनका रहा,बहुत बड़ा दुर्योग।।

~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

सोमवार
मन पसंद विषय लेखन

सादर मंच को समर्पित -

🏵🌻 गीतिका 🌻🏵
****************************
मापनी - 122 , 122 , 122 , 12
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

नये वक्त के राग गाने बढ़ें ।
नयी सोच से दिल मिलाने बढ़ें ।।

उठो जाग जाओ, नवल भोर है ,
चलें राह नव लक्ष्य पाने बढ़ें ।

नहीं गैर कोई मनुज, बन्धु सब ,
सभी को मिला फिर हँसाने बढ़ें ।

गया बीत जो वक्त आता नहीं ,
समय को अभी जीत जाने बढ़ें ।

हमें है भरोसा जवानी उठे ,
अटल जोश हिम्मत दिखाने बढ़ें ।

न हिंसा ,न अलगाव पनपे वतन ,
अमन , चैन गंगा बहाने बढ़ें ।

यही है जरुरत , रहें प्यार से ,
अमर भारती को बढ़ाने बढ़ें ।।

🌹🍀🏵🌻🦃

🌹🍎🍀**...रवीन्द्र वर्मा आगरा


विषय : मनपसंद विषय लेखन
विधा : कविता

तिथि : 13. 4. 2020

वर्षगांठ
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आज शादी की है वर्षगांठ
आ खोलें रिश्ते की हर गांठ।

पलकों पर जो बनी हैं बांध
दर्द से जिनकी है सांठ गांठ
ऐसी गांठों को खोल कर -
आजा रिश्ते में प्यार दे बांट।

आज शादी की है वर्षगांठ
आओ खोलें रिश्ते की हर गांठ।

आज भी हिली नहीं वो पांत
भीतर से जो करती अशांत
भीतर का सारा दर्द बहा कर
कर भी दे सारी पीड़ा शांत ।

आज शादी की है वर्षगांठ
आओ खोलें रिश्ते की हर गांठ।

अंतर में छिपे जो विचार भ्रांत
वही तो करते हैं जीवन क्लांत
आज सारी भ्रांतियां मिटा कर
आ जा रिश्ते को बनाएं कांत ।

आज शादी की है वर्षगांठ
आओ खोलें रिश्ते की हर गांठ।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
दिनांक -13/04/ 2020
दिन सोमवार

विषय -परोपकार

जीवन में परोपकार करो
खुद का भी उद्धार करो ।
मानव ,मानव के आए काम
ऐसा भी कोई काम करो।

प्रेम ,दया ,करुणा का भाव ,
उद्देलित करती है मन को ।
भलाई और नेकी जीवन की,
उज्जवल करती है तन को।

परोपकार मानव का गहना
जीवन को सफल बनाता है ।
दीन -दुखियों की सेवा करना
जन्म को सार्थक करता है ।

स्वार्थ वृत्ति का करें त्याग,
जनमानस का रखें ध्यान ।
इंसान कोई ना भूखा सोए
परमारथ का करें काम।

भूखे को भोजन ,प्यासे को पानी,
मानवता का धर्म निभाएं ।
असहायों का सहयोग कर,
परोपकार नित करते जाएं।

नियति ने चली है ऐसी चाल
इस समय ,समय की यही चाह।
किसी के बच्चे रोटी को न तरसें
मानव, मानव का रखें ख्याल।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
13/04/2020
मन पसंद लेखन
ये
तन
नश्वर
मायाजाल
बन्द पिटारा
सिमसिम भाँति
माटी सम जीवन।1।

क्यों
नैत्र
पलक
कजरारे
सुदृष्टिरत
सुन्दर जगत
निहार अविचल।2।

है
माह
वैशाख
ध्वजा धर्म
स्नान व ध्यान
स्व घर स्व पग
कोरोना महामारी।3।

स्वरचित
आशा पालीवाल पुरोहित राजसमन्द

सोमवार/13अप्रैल/2020
विषय - मन पसंद लेखन

विधा- क्षणिका

1. घमंड किस बात की करूँ।
मिट्टी की काया, एक दिन
मिट्टी में मिल जाएगी !!

2.प्यार में इस्तेमाल की
कोई गुंजाइश नहीं !
ये तो वो शब्द है जिसके हम
मुसाफिर हैं!!

रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद- झारखंड
🌹कुछ लम्हे तेरी यादों के🌹
कुछ लम्हे तेरी यादों के,मैं ना बयां कर पाऊंगी।
जब भी रहूंगी तन्हा,उन्हें याद कर मुस्कुराऊंगी।

बहुत याद आते वह लम्हे,उन्हे ना दोहरा पाऊंगी।
वक्त ए दौर गुजरता मस्त रहो,यही मैं सिखाऊंगी।

ना हो तुम साथ मेरे,यादों करीब सदा मैं पाऊंगी।
लोग सोचेंगे मैं तन्हा,पर उन्हें ना कुछ बताऊंगी।

दिल में तुम्हें बसाया, जहां बुरी नजर बचाऊंगी।
आईना हमराज बना,तुमसे रूबरू हो जाऊंगी।

कुछ लफ्ज़ यादों के ,जिंदगी जन्नत बनाऊंगी।
दिलो-दिमाग छाए ऐसे,कैसे तुम्हें बिसराऊंगी।

रहे दूरियां कोई बात नहीं,अगले जन्म पाऊंगी।
अपनी खुशी खातिर,बस दिल ना मैं दुखाऊंगी।

वीणा वैष्णव"रागिनी"
कांकरोली
दिनांक:-13-4-2020
विषय:- मनपसंद लेखन

विधा:-काव्य

ज़िन्दगी की मेरी मौलिक,
कहानी हो तुम|
प्यार की मूल रचना पुरानी,
हो तुम|
कोई तुमसा नहीं है ,
हमारे लिए|
प्यार की प्यारी मूरत ,
रुहानी हो तुम|

एक कथानक है या,
तिलिस्म है प्यार का|
प्यार की नाव का,
एक पतवार का|
कल्पना की वो पावन,
निशानी हो तुम|

भावना, साधना तुम,
ही हो साध हो|
गीत भी राग भी तुम ही सुर, साज़ हो|
जिससे है शुरू जिसपे,
है खत्म |
मेरी सुख दुःख भरी, जिन्दगानी हो तुम|

जब तलक है धरा,
जब तलक है गगन |
सूर्य है चांद है अग्नि,
चलती है ये पवन|
जब तलक प्यार जिन्दा,
है संसार में|
तब तलक हम तुम्हारे,
हमारे हो तुम|
मौत कब तक जुदा ,
हम को कर पायेगी|
जन्म जन्मो से,
हम तुम्हारे हमारे हो तुम|


मैं प्रमाणित करता हूँ कि
यह मेरी मौलिक रचना है

विजय श्रीवास्तव
बस्ती

दिनांक-13-4-2020
विषय-मनपसंद


"आई बैसाखी"

धूम मचाती बैसाखी आई।
जन जन के घरों में रौनक लाई।।

स्थापन हुआ था आज खालसा पंथ।
सिखों का सच्चा पावन गुरुग्रंथ।।

अमृत चखा था पंच प्यारों ने।
शुभ दिवस है ये सभी वारों में।।

नई फसलें कट कर घर आतीं।
हर मन में हैं खुशियाँ आतीं।।

भंगड़ा गिद्दा नर नारी पाते।
घर गुरुद्वारे रोशन हो जाते।।

तमिलनाडु में पुत्तांडु’ मनायें ।
पूरम विशु’केरल में कहलाये।।

आसाम में होता‘रंगाली बीहू’ ।
बाग में गाये ज्यूँ श्यामल पीहू।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
नई दिल्ली

सभी को वैसाखी की हार्दिक शुभकामनाएं। 💐💐
वि
षय - मुक्तसृजन।
शीर्षक - डाकिया।

आज भी याद आते हैं वो दिन
जब आता था डाकिया।
रहती थी प्रतीक्षा घर-घर
उसके आने की और
किसी अपने का पैग़ाम पाने की।।

लाल रंग का वो डिब्बा
सबको आस पुजाता था
आते जाते डालते पत्र
भावनाओं का वाहक बन जाता था।।

दसवीं क्लास में इंग्लिश का
'ऐसे'खूब रटा ही जाता था।
डोरवैल बजती है, से शुरू होकर
समाज में महत्व को समझाया जाता था।।

साइकिल की घंटी जोर जोर से
खूब बजाता था।
डाकिया डाक लाया,डाकिया डाक लाया
जोर से आवाज लगाता था।।

अब कहां वह दिन...
यादों में बस रह गए।
चिट्ठियों के अफसाने
तकनीकी दुनिया में बह गए।।

वह इंतजार, वह चाहत, वह तड़प
हर पन्ने पर दिल का हाल लिखा होता था।
रिश्तों का,प्यार का साक्षात प्रमाण होता था।।

संभाल रखी हैं आज भी बहुत सी
बहन-भाइयों,सखि-सहेलियों
मां की कुछ चिट्ठियां
जब भी मन करता है पढ़ लेती हूं।
मां ना सही सशरीर आज
लिखावट में ही महसूस कर लेती हूं।
लिखावट में ही महसूस कर लेती हूं।।
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
13/04 /2020
13/4/20



जब जलेगी दीप मालाएं।
मिट जाएगा अंधेरा।
जाग जाएगा उजाला।
मुस्करा उठेगी धरा।

रोशनी के पुंज खिलेंगे।
लौ जलेगी दीपकों की।
प्रकाश का बन दूत।
मिट जाएगी सारी बाधाये।

खिल उठेगी बसुंधरा।
टिमटिमाते दीप प्रभा।
जब जब बढेगा अंधेरा।
तम को ही मिटना पड़ा।

दीप है अवतार रवि का।
किरण बन फैलाती उजाला।
अंगार बन तम जला।
होता आया है सदा।

वक्त फिर आया जगत में।
लेकर तम की दुष्प्रभाव।
लेकर दीप की प्रकाश ज्वाला।
आओ मिटाना रोगग्रस्तता।

नमन है महानायक को।
और उनकी दूरदर्शीता।
नासमझ जनता भ्रमित है।
अदृश्य पूर्ण पार दर्शिता।

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय - मनपसंद

🌹एक गज़ल का प्रयास 🌹

मुहब्बत छुपाना मुहब्बत है यार
क्यों करते पर्दा ओ मेरे दिलदार ।।

सही नही जाय अब बेरूखी सनम
इशारों से करदो अब तो इज़हार ।।

माना कि उल्फत में दूरी जरूरी
मार ही न डाले कहीं आती बहार ।।

सपनों कि दुनिया में सोए हैं बहुत
हकीकती दुनिया का कर लो क़रार ।।

ये बदलती हवायें डरायें 'शिवम'
सांसें भी अब तो बचीं हैं दो चार ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 13/04/2020
दिनांक -१३.४.२०२०
विधा ---दोहे

1.

सत्य न जीवन में रहा,नहीं किसी का मान।
कलयुग के इस समय में, पैसा बना महान ।

2.

बड़ा धर्म इंसानियत, हो उसका सम्मान।
भाईचारा हो खरा,शांति भरा ईमान।।

3.

चींटी सी हो एकता, होय साँप भी पस्त।
इस दुनिया में एकता, सबसे बड़ा अस्त्र।।

4.

युवा समृद्धि चाहते, मिले अभी तत्काल।
केवल सपने देखकर, हारे कितने लाल।।

5.

साहस दिल में शिष्य के, जो कर सके प्रसूत।
सच्चा शिक्षक है वही , वही ईश का दूत ।।

6.

करते नियमित रूप से, जो श्रम या व्यायाम।
उनको औषध लेन का, पड़ता कभी न काम।।

7.

सब कुछ घर में हो भरा, सोना,चांदी नोट।
मिले न रोटी एक तो, मन में आती खोट ।।

8-

हिन्दी में है बात जो, नहीं किसी में और।
चर्चा हिन्दी में अगर, मुस्काता हर दौर ।।
***************************

प्रबोध मिश्र ' हितैषी '

बड़वानी( म.प्र.)451551

दिनांकः-13-4-2020
वारः-सोमवार

विधाः-छन्द मुक्त


शीर्षकः- पूज्य पिताजी का दीदार उनका प्यार


हुआ स्वप्न में मुझको, पूज्य पिताजी का दीदार ।
आये थे परलोक से, होकर श्वेत अश्व पर सवार ।।


था नहीं सम्भव, आया हूँ फिर भी मिलने तुमसे ।
तरस गया देखने को तुमको, मैं बहुत दिनों से ।।


फिराया हाथ प्यार से भरा, उन्होंने मेरे सिर पर ।
बोले करते थे हम तो तुमसे बहुत ज़्यादा प्यार।।


थे तुम तो पहले बड़े मोटे गोल मटोल ही यार।
हो गये हो दुबले बहुत तुम तो, अब बरखुरदार ।।


करी है प्राप्त सफलता, कितनी तुमने अब तक ।
थी आपकी ही तो आशीष, बना जो चिकित्सक ।।


करके सेवा जनता की बना गया था मैं विधायक ।
किया नहीं अनुसरण राह का मेरी,तुमने अब तक ।।


मेरे राजनैतिक ज्ञान से बनना चाहिये तुम्हे मन्त्री ।
लगता है कि बने नहीं हो,तुम तो अब तक सन्त्री ।।


सकुचा कर दिया उत्तर मैंने उनको, होकर भयभीत ।
बदल गयी है पिताजी देश में, अब चुनाव की रीत ।।


थे आप एक निडर शेर,चुनाव चिन्ह भी था शेर ।
लड़कर चुनाव साईकिलों से ही, किये विपक्षी ढ़ेर ।। ,


मिल जाता थी मेवा तब, करने से जनता की सेवा ।
अब तो केवल नेता की सेवा से, मिल पाती है मेवा ।।


डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी
स्वरचित

13/4/2020/सोमवार
*राम नाम*

मुक्तक

राम जी के नाम से भव सागर उतर जाऐं।
रामजी के नाम से पत्थर सभी तर जाऐं।
रामजी की राह पर जरा चलकर तो देखें,
रामजी के नाम बताऐं जो ना कर पाऐं।

राम के आदर्श पर हम चलकर तो देखें।
रामनाम थोड़ा बहुत हम भजकर तो देखें।
रामजी की माया सबको अनबूझ पहेली,
रामनाम को मनमंदिर में बसाकर तो देखें।

सच केवल प्रवचन से कोई बात नहीं बनती।
दिखावे से ही कोई सौगात नहीं मिलती।
इस संसार में बढ़ गये अनेक कथावाचक,
प्रवचन से श्रोता को अब रोटी नहीं दिखती।

आस्था बिना हमें कहीं राम नहीं मिलेंगे।
निष्ठा बिना कहीं राधे श्याम नहीं मिलेंगे।
कुछ पाना अगर तो यहां समर्पण जरूरी,
बिन भक्तिभाव कभी हमें राम नहीं मिलेंगे।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
आयोजन - मनपसंद लेखन
13/04/20

सोमवार
गज़ल

आज के दौर को हुआ क्या है,
रोग यह बढ़ रहा मुआ क्या है।

सभी अपने में मगन रहते है,
सोच ने उनकी अब छुआ क्या है।

लोग पैसे के लिए लड़ते हैं,
वे नहीं जानते दुआ क्या है।

काम सब छल- कपट से होते हैं,
समझ न आए यह जुआ क्या है।

खो रहे मूल्य आज जीवन के,
मन की धरती में अब बुआ क्या है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक-१३/४/२०२०
मनपसंद लेखन


कल शाम मैं खिड़की के पास
खड़ी थी उदास चुपचाप
तभी हवा का एक झोंका आया
सरसराया और फ़रमाया,
"अरि ओ"
सुन मेरी बात,क्यो हो उदास?
बन जा बादल तू आज
आ चल मेरे साथ।

मैंने गौर फ़रमाया
और उसे सही पाया
फिर बन बादल मैं आज
उड़ चली आकाश

अब मैं ऊपर, नीचे मेरा पूरा जहां
उड़ते उड़ते मैंने गौर फरमाया
इतनी ऊपर आ गई हूं। मैं आज
बिन अपनो के साथ
सब है बेकार,बेस्वाद
बिन अपनों के साथ
मैं तो अपनों के साथ
जमीन पर थी खुशहाल
फिर क्यों उड़ चली आकाश?

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय - मनपसंद लेखन
विधा - ग़ज़ल

बह्र - २१२२ २१२२ २१२२
काफ़िया - ओ
रदीफ़ - गया

था शहर मेरा अब कहाँ पर खो गया।
गुलजार था सुनसान सा ये हो गया।

कैसा हवा में है ज़हर यह तो घुला।
आवाम अब बेकाम सा ही हो गया।

बेख़ौफ़ अब तो बेज़ुबां घुमते यहाँ।
उनका सड़क ही आशियाना हो गया।

तब कहकहों में रात थी जाती गुज़र।
गुमसुम बना हर शाम लो अब सो गया।

ना बेवफ़ा है वो कहे अंजान भी।
पर फेर कर नज़रें यहाँ से वो गया।


स्वरचित
बरनवाल मनोज अंजान
धनबाद, झारखंड
दिनाँक-13-4-2020
विषय-मनपसंद

विधा-माहिया छंद
मात्रा 12/10


पनघट पर आ जाना
दर्शन की चाहत
मृदु नीर पिला जाना।

पनघट क्यों आना है
ताने देंगे सब
बेदर्द जमाना है।

जग ये गोरी सारा
रोक सकेगा क्या
ये बंधन की कारा।

डोली लेकर आना
घर तेरे आऊँ
वादा करके जाना।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक - 13-4-2020
विषय - स्वतंत्र



किसी की हार होती है
किसी की जीत होती है
जो न संभलता गिर जाता
कोई गिरकर संभल जाता आखिरकार.....
हौसलों की भी जीत होती है ।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कोई रोता रहता
कोई शोक मनाता
आँसू स्वयं कोई पोंछ लेता
कोई खुद के छिपा
दूसरों के पोंछ देता
आखिरकार .......
वेदना संवेदना में प्रीत होती है।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कभी सुख हर्षाता
कभी दुख रुला जाता
कभी आशा की धूप
कभी निराशा की छाया आखिरकार ...........
जिंदगी की यही रीत होती है ।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कह दो किसी से
जो अपना -सा लगे
हृदय की वेदना मिटे
समरसता को गुनगुनाओ
आखिरकार.................
जिंदगी खुद एक गीत होती है।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
जब शब्द हों मौन
अर्थ हों जाएँ गौण
विवेक का दामन थाम
चिंतन-मनन जरूरी है
आखिरकार ..........
अभिव्यक्ति भी मीत होती हैं ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
दिनांक -१३/४/२०२०
विषय- मुक्त सृजन

विधा - मुक्तक
******************

नदी के तट हैं , हम मिलते नहीं ।
साथ चलते हैं , पर खिलते नहीं ।।
पूछता सागर , आखिर बात क्या,
हो साथ मुझमें , पर गिरते नहीं ।।
*************************

सैनिक देश का , बहुत महान है।
हम सबके लिए , वही जहान है ।।
राष्ट्र पर जान , अपनी छिड़कता ,
गर्व है उस पर , एक मिसाल है ।।

तनुजा दत्ता (स्वरचित)
 कुछ दोहे
1
पाँच साल सोते रहे , खूब किया आराम।

अब बारी आवाम की,भुगतो तुमअंजाम।।

2--
बातें करते हवा में ,गिन गुठली के दाम ।
पलँग तोड़ सोते रहें, वहीं आलसी राम।।

3
राजनीति प्यादे चले, चुनकर ऐसी चाल।
तहस-नहस वह सब करें, रच दे वही बवाल।।

4
--वोटर चरणों में मिले, सारे तीरथ धाम।
उनके ही आशीष से, बनते बिगड़े काम।।

5
श्रम की राहें जो चला , चढ़ता है सोपान ।
नम्र व्यवहार जो रखे , पाता है सम्मान।।

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित


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