Saturday, April 25

"भावों के मोती "22अप्रैल 2020

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ब्लॉग संख्या :-715
समूह की द्विवार्षिकी पर
विषय विशेष:-"भावों के मोती"
जहाँ साहित्य सागर है,
विधाएँ लहरों तैरती है,
हृदय की सीपी में रखे,
हाँ वो भावों के मोती है..... l

विषय पे मंथन होता है,
कलम पतवार चलती है,
काग़ज़ पे टपके सुख-दुःख,
हाँ वो भावों के मोती है.....l

शब्दों के फूल पिरोते है,
आँखे भी हँसती-रोती है,
कीमत जिनकी है अनमोल,
हाँ वो भावों के मोती है.....l

संस्कृतियों का संगम है,
अनुभवों का दमखम है,
स्नेह कसौटी खरे उतरते,
हाँ वो भावों के मोती है.....l

आँधी-तूफाँ भी आते हैं,
सबक सीखा के जाते हैं,
अंधेरों में भी चमका करे,
हाँ वो भावों के मोती है.....l

मन का विरेचन होता है,
गीत, सरगम भी होता है,
जीवन के जो रूप दिखाये
हाँ वो भावों के मोती है.....l

सभी मोतियों को सस्नेह नमन 💐🙏
स्वरचित
ऋतुराज दवे

22/4/2020
2 वर्ष सम्पूर्ण होने की आप सभी को बधाई👏🌹🎉
"भावों
 के मोती"
*************************
भावों के मोती खिले,महक गया संसार
दो वर्षों के साथ ने,जोड़े दिल के तार।।

बना सुखद परिवार ये,आदर से परिपूर्ण
चरण नमन हम कर रहे,द्वेष,दंभ हो चूर्ण।।

नटखट चंचल हैं यहाँ, कुछ भोले अनजान
भावों में दिखता नही,कहीं तनिक अभिमान।।

मन की आँखे खोलकर,देखो जग का हाल
भावों के मोती बिखर,जगत हुआ बेहाल।।

चाँदी सी झिलमिल कलम,चलती अपनी चाल
भावों के मोती सजे,चंदा उतरे भाल।।

"भावों के मोती" कहे,झूमे नाचे आज
छंदों की सुर ताल पर,भावों का हो साज।।

स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ

22 अप्रेल 2020,बुधवार

ऋतुराज पँचम तिथि पर
वीणापाणि जन्मोत्सव होता।
सप्त स्वरी सङ्गीत झंकृत
झूम झूम कर सुनता श्रोता।

भक्त वत्सला जननी शारदे
का सुप्रसाद भावों के मोती।
विश्व निरोगी स्वस्थ सदा रहे
सुमङ्गल की जलती ज्योति।

जन्मोत्सव आज मनावें
भारत माँ का मान बढावे।
प्रिय भावों के सुन्दर मोती
जयति जय तेरे गुण गाँवे।

गद्य पद्य सुन्दर सृजन हो
विश्वपटल नित मोती दमके।
अन्तःस्थल विचार जगे प्रिय
भावों के मोती नित चमके।

साधक बनकर की साधना
भूल त्रुटियां भी सम्भव है।
वीणावादिनी है वागेश्वरी माँ
रसदा ज्ञान तेरा सुसंचित है।

अहिंसा परमो धर्म जीवन
सुसत्यमेव जयते सन्देशा।
निर्मल नेह पावन भक्ति से
छल कपट न रहे अंदेशा।

एक लक्ष्य शुभ मंगल का
विश्व निरोगी और विकास।
कीर्ति पताका फहरे जग में
भूमि पर हो नित मधुमास।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - भावों के मोती
विधा-दोहे


भावों के मोती सजे,उच्च गगन पर आज।
संचालन जिसका करें,वीणा औ ऋतुराज।।

भोर भये हर दिन करें,सरस्वती आह्वान।
नित्य नये अन्दाज में,सृजन करें विद्वान।।

नए- नए गुल खिल रहे,इस बगिया में रोज।
नूतन विषयों की यहाँ,रहती सबको खोज।।

ममता की धारा बहे, कभी करुण रसधार।
कभी घृणा,उद्वेग है,कभी बरसता प्यार।।

अलंकार,रस,छन्द से,सजता कविता रूप।
कविता सजती पटल पे,जैसे खिलती धूप।।

गद्य-पद्य की हर विधा,इस आँगन की बेल।
प्रोत्साहन से सर्वदा , बढ़ती खेले खेल।।

यह समूह बढ़ता रहे, झुके कभी ना
शीश।
प्रभु से विनती है यही , दें अपना आशीष।।

सरिता गर्ग

।। भावों के मोती ।।

चार शब्द हम चुनकर लाए
चार शब्द वो चुनकर लाए ।।
माला एक बनायी प्यारी
भावों के मोती कहलाए ।।

दमखम अपना रोज दिखाये
भावों के नित कलश सजाये ।।
आलोकित कर दें जग को
ऐसे हम कुछ प्रण अपनाये ।।

जोश जुनून से भरे सारे
हर मोती अपने में न्यारे ।।
सभी की शोभा चमक न्यारी
सतत साधना के उजियारे ।।

प्रेम पूर्ण स्नेह के द्वारे
अनुशासित सभी पथ हमारे ।।
शीतल छाँव सा गाँव 'शिवम'
सुख पाए जो डेरा डारे ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 22/04/2020

नमन सम्मानित मंच 🙏
दिनांक--22/04/2020
समूह की द्विवार्षिकी पर
विषय विशेष:--"भावों के मोती"
************************
सहज सरस भावों के मोती।
आँखें देखतीं जागती सोती।
अनुपम सदा ही रस बरसाते,
जन-जन के..दुख-सुख गाते,
अबुध जनों को..विज्ञ बनाते,
बोल अमोल सदा ही होती।
सहज सरस भावों के मोती।
तम के बीच..प्रकाश यही है,
हत हृदय की...आस सही है,
ज्योति चतुर्दिक भास रही है,
रहे बने वटवृक्ष यही मनौती।
सहज सरस भावों के मोती।
हुआ परिचय जब से ही मेरा,
मनभाये यह तब से ही मेरा,
सच प्रिय मंच सब से ही मेरा,
संग सुबह साथ शाम होती।
सहज सरस भावों के मोती।

मंच के मोतियों को सस्नेह नमन 🙏
*********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार
स्वरचित एवं मौलिक
समूह के दो वर्ष पूर्ण होने की
हार्दिक बधाई
******💐
दिनांक-22/04/20
विषय- भावों के मोती
मन की कलियां
कभी हँसती कभी रोती
निस दिन काब्य से
पूरा संघर्ष है करती।
हिंदी काब्य की विधाये
पटल पर खेल खेलती
जैसे कह रहे कवि बच्चन
यू ही नही मिलते मोती
जीत हमेशा संघर्ष से मिलती
झरने से आज बना सरिता
बीजों से ही पेड़ की आभा होती
शब्दों के बार बार पिरोने से
प्रगट हुआ भावों के मोती।।
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
स्वतन्त्र --आज केवल अमूल्य
भावों के मोती,,,, के बारे में

सामाजिक सरोकार नहीं,
एक दूजे से अनजान सभी
भाईचारे का भाव यही
मोतियों का हार बना
भावों के मोती,,,,

कलम-धनी ऋतु और वीणा के संग
मानव मनसंतप्तव्यथितहर्षित
मंच पाकर तृप्त हुआ
भावों के मोती,,,,

तूलिका चलने लगी
शब्द माला सजने लगी
भावों की लड़ियां बनने लगीं
भावों के मोती,,,,

नव पल्लव का उदय
प्रिय संचालक ऋतु वीणा के संग
एक से दो जुड़े तीन से तेरह
भावों के मोती,,,,

कवि वैज्ञानिक इंजीनियर
शिक्षक गृहीणियाँ गुरुवृन्द
सम्मानित बुजुर्ग नाना भांति
भावों के मोती,,,,

नित नए आयाम मिले
नई-नई विधाएं ज्ञानी
मोतियों का जाल बना
भावों के मोती,,,,

विद्वत जन अपार समूह
गुणीजन गुनीजन सिद्धहस्त
लेखक विचारक
भावों के मोती,,,,

अदम्य सहनशील
ज्ञानी संस्थापक संचालक
समर्पित भाव मंच
भावों के मोती,,,,

अनुशासित पाबंद समरूपता
सहज रूप - प्रतिक्रिया
एक मंच अति सुंदर मेरा
भावों के मोती,,,,

शब्द-सागर विषय मंथन
कलम हथियार बन सजती पटल
ईश-कृपा बनी रहे चलती रहे बयार
ये है मेरा प्रिय,,,,,,

भावों के मोती,,,,
भावों के मोती,,,,
🙏भावों के मोती,,,,🙏

स्वरचित-आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
भावों के मोती
स्थापना दिवस

(दिनांक 22-04-2020)
आज का विषय- भावों के मोती
**************************************
उम्मीद से भी ज्यादा स्नेह-दुलार मिला
जब से हमें भावों के मोती परिवार मिला
नवोदित कलमकारों को
सृजन का अवसर अपार मिला
मृदुभाषी वीणा जी व ऋतुराज जी का
मार्गदर्शन हर बार मिला
जब से हमें भावों के मोती परिवार मिला।
मनोभावों को प्रस्फुटित होने का आधार मिला
लेखनी को हमारी नित्य नया सम्मान मिला
जब से हमें भावों के मोती परिवार मिला।
दूर रहकर भी अपनेपन का एहसास मिला
साहित्य के अनमोल नगीनों का साथ मिला
जब से हमें भावों के मोती परिवार मिला।
नमन है हमारा मंच के सभी मनीषियों को
साहित्य साधना हेतु जो इतना त्याग किया
मातृभाषा हिंदी को जगत में सम्मान दिया।
बस यही कामना है परमपिता परमेश्वर से
ऐसे ही बढ़ता रहे हमारा भावों के मोती परिवार
और स्थापित करता रहे सफलता के नित्य नए कीर्तिमान।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।


भावों के मोती
स्थापना दिवस (22/04/ 2020)

आज का विषय- भावों के मोती
शीर्षक- धरती माता
विधा- कविता
*************************************
धरती है हम सब की माता
हम इसकी संतान हैं
धरती से है अन्न-जल-जीवन
धरती से ही सकल जहान है।
कहीं नदी कहीं है झरना
कहीं पर्वत-वृक्ष विशाल हैं
धरती है हम सब की माता
हम इसकी संतान हैं।
पले-बढ़े हम इस धरती पर
इस धरती पर हमको नाज़ है
धरती है हम सब की माता
हम इसकी संतान हैं।
धरती अपनी करुणा का सागर
ममता की भंडार है
धरती अपनी स्वर्ग से सुंदर
महिमा इसकी अपरंपार है
धरती है हम सब की माता
हम इसकी संतान हैं।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच, उत्तर प्रदेश।

भावों के मोती के परिवार को द्वितीय स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आज पावन शुभ अवसर पर खुशियाँ मनाई।
भावों के मोती परिवार को लख-लख बधाई

शब्दों की माला पिरोकर कविता लिखना सिखाये,
कविता में शब्दों की त्रुटियाँ से अवगत कराये
सभी को समान मंच देकर हौंसला अफ़ज़ाई
भावों के मोती परिवार को लख-लख बधाई

ज्ञान की ज्योति जले तम का कभी न वास हो
सफलता मिले तुम्हें और मन में ये विश्वास हो
सदैव ऊँचाइयों को छू लेने की भावना दिखाई
भावों के मोती परिवार को लख-लख बधाई

पथ पर चाहे कांटे मिले या मिल जायें फूल
चाहे मुश्किल डगर हो न तोड़ना कभी उसूल
खुशियाँ भरी उमंगों की आज रंगोली सजाई
भावों के मोती परिवार को लख-लख बधाई

परेशान न होना कभी तुम मंजिलों के लिए
सदैव हौंसला बुलंद रखो कामयाबी के लिए
वो खुद तुम्हारे पास शुभकामना लेकर आई
भावों के मोती परिवार को लख-लख बधाई

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
**भावों के मोती**
द्वितीय वर्षगाँठ की हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌷🌷🌷🌷

निख
रे खूब कलम की धार।
भावों के मोती परिवार।।

मन मे भाव भरे पड़े हैं।
दुविधा में ठिठके खड़े हैं।।
पाये कहाँ कलम आधार।
भावों के मोती परिवार।।

सृजन विविध, विधा विविधा है।
निर्बन्ध मसि की सुविधा है।।
रचि-रचि रचते रचनाकार।
भावों के मोती परिवार।।

रितुराज उत्साह बढ़ाते।
मोह कर मुकेश हैं जाते।।
झनके वीणा की झंकार।
भावों के मोती परिवार।।

शारद-मंदिर की आरती।
वरदा संगीत सँवारती।।
चन्दर चरण चपल चहकार।
भावों के मोती परिवार।।

गिन-गिनकर अनगिन सीढ़ियाँ।
चढ़ ले पीढ़ी-दर-पीढ़ियाँ।।
बस यही तो नवल उद्गार।
भावों के मोती परिवार।।
-©नवल किशोर सिंह
22-04-2020

विषय - भावों के मोती
बोल-ऐ मानस के राजहंस

तू चुगना भावों के मोती।
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पथरीला पथ और कंटक भी हों
डगर डगर हो खड़ी चुनौती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती।

माना तम का शासन है
तू दीप जला तू कर ज्योति
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

जो तुझ में है जो मुझमें है
वह एक बीज सबमें बोती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

हे भाव प्रधान जगती सारी
भाव शून्यता नहीं होती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

माना कि सूरज डूब चुका
पथ भ्रांत पूरी दुनिया होती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

कुछ भी साश्वत नहीं जग में
हर रात ढले सुबहा होती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

हैं भाव प्रतिष्ठित सदा नर में
हत भाव मणि चमक खोती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

भगवंत बसे बस भावों में
वहां कीमत भावों की होती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।

मृदुभाव हंसाए दुनिया को
कटु भावों से दुनिया रोती
ऐ मानस के राजहंस
तू चुनना भावों के मोती ।
-------------------------------
गोविंद व्यास रेलमगरा
विधा - गीत


नमन मंच
आयोजन - भावों के मोती
दिनांक - २२/४/२०

☆☆☆★☆☆☆★☆☆☆★☆☆☆

आज नाच रहा मन मेरा आया हर्षित सवेरा।
चहुंओर छाया उल्लास है शुभ घड़ी शुभ वेला॥

हम बधाइयों की रचना कर लायें।
कलम भी अपनी तुझे भेट चढायें।
यह सृजन लगे जैसे पुष्प का हार।
आया है ये सब से बड़ा त्यौहार।(१)

आज नाच रहा मन मेरा आया हर्षित सवेरा।
चहुंओर छाया उल्लास है शुभ घड़ी शुभ वेला॥

तुझ से ही हमने सीखा समर्पण।
हम जैसे भी हैं, हैं तेरे दर्पण।
"भावों के मोती" मेरा श्रृंगार बना।
नहीं कोई तुझ सा सखा ना यार।(२)

आज नाच रहा मन मेरा आया हर्षित सवेरा।
चहुंओर छाया उल्लास है शुभ घड़ी शुभ वेला॥

माँ शारदे कृपा बनाये रखना।
सदैव करें हम तेरी वंदना।
रहे अनन्त मुझ पर तेरा प्यार।
ये दिन यूँ ही आये बार बार।(३)

आज नाच रहा मन मेरा आया हर्षित सवेरा।
चहुंओर छाया उल्लास है शुभ घड़ी शुभ वेला॥

मीनू@कॉपीराईट
राजकोट
भाव के मोती
स्थापना दिवस-22/04/2020

आज का विषय- भावों के मोती

कलम से लिख दूं आज अंगार
साहित्य का हूं मैं बागी।
अक्षर से ही चिंगारी बनते
कलम उगलती मेरी आग।।

स्याह नभ में सजी बारात
स्याही भी आज उदास।
कागज का दर्द किससे कहें
डरी- डरी कलम बेताब।।

साहित्य के सरहद पे खड़ी कलम
दर्द स्याही की पुकार रही।
कलम का स्पंदन पाकर
पावन परम पुनीत बन गयी।।
दिग् दिगंत में सुरभि बिखेरे
हारे मन की जीत बन गयी।
सत्य धरोहर हैं वर्तमान के
भावो के पल सीख बन गई।।

झंकृत तार में भावनाओं की
नाद वीणा की रीति बनी गयी।
दर्द छुपा है कलम में
जीवन की संगीत बन गयी।।

किसके सम्मोहन में पागल सुरभि
मदहोश आज आकाश है।
स्याही के संघर्षों की पृष्ठभूमि में
भावो की भूख का अब सन्यास है।।

आंखों में है सुर्ख शोले
तड़प लेखनी का सहवास है।
भावों का ध्यान मन में बसाये
मधुर- मधुर मकरंद का आगाज है।।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज


दिनांक 22/04/2020
विषय भावों के मोती
ावों के मोती परिवार को द्वितीय वर्षगाँठ की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं🌹🌹🌹


आ0 राठौर मुकेश जी
जब मंच पर आते हैं
सुंदर सुंदर लेख से
पटल पर छा जाते हैं।
आ0 शंभु सिंग रघुवंशी जी
किसी से कम नहीं
लेखनी है सबसे आगे
उनसे बढ़कर हम नहीं।
आ0 आरती श्रीवास्तव जी
सदा मुस्काती हैं........
कविता से झरते हैं फूल
जब लिखने पर आती हैं।
आ0 संगीता कुकरेते जी
भाव बिखेर देती हैं....
जब लिखती हैं जोश में
हकीकत उकेर देती हैं।
आ0 मधु शुक्ला जी
यदा कदा ही आती हैं
आते ही श्रेय लेख का
अकेले ही ले जाती हैं।
आ0 कुसुम कोठारी जी
नीम में मधु घोल देती हैं
समूचे काव्य में रस
श्रृंगार उड़ेल देती हैं
आ0 सी0एम0 शर्मा जी
गल्तियों से अवगत कराते हैं
लिखते हैं एकदम सटीक
नजर नहीं वो आते हैं
आ0 सुषमा ब्यौहार जी
हर रोज पटल पर आती हैं
बेहद ही बढ़िया लिखती हैं
उपस्थिति दर्ज करवाती हैं
आ0गौतम जी,आ0वंदना सोलंकी
आ0अनीता सुधीर,आ0 दमयंती जी
ऐसे अनेक मोती होते हैं
जो पटल की शोभा होते हैं
आ0 ऋतुराज दवे जी एवं
आ0 वीणा शर्मा वशिष्ट जी का
हर वक्त वरद हस्त होता है
जिसमें"भावों के मोती"परिवार
पल्लवित और स्वस्थ होता। है।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)
**भावों के मोती**
**************************
अपने प्रादुर्भाव को इस मंच ने मोती दिया
हम नवकलमों के भावों को भी अर्थ दिया
हम तो बस शब्द थे काव्य रच गए पता नहीं
हमारे भावों को मोती इस मंच ने दिया|

आज मंच मना रहा द्वितीय स्थापना दिवस
है सौभाग्य हमारा ये हम सब इसके अंग
मेरी शुभकामना आपको मंच फले फूले सदा
आपकी छाया मिले तो मैं रचूं साहित्य सदा|

युग युगान्त तक रचे साहित्य, सदा यह मंच
हमें सभी को नये- नये मोती दे यह मंच
मिले आशीष हम सभी को मंच का हरदम
सदा हमारे भावों को मोती दे यह मंच|

प्रस्तुति
संदीप कुमार मेहरोत्रा
गोलवा घाट लखनऊ रोड
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
दिनाँक-22-4-2020
दिन -बुधवार

विषय-पृथ्वी दिवस
विधा -गीत
पृथ्वी आज बचाओ भैया पृथ्वी आज बचाओ।
आज समय की माँग यही है,पृथ्वी आज बचाओ।
ध्वनि, मिट्टी,जल,वायु आदि सब पर्यावरण हमारे।
जीव जगत के मित्र सभी ये जीवन देते सारे।।
इनसे अपना नाता जोड़ो,इनको मित्र बनाओ।
पृथ्वी आज बचाओ भैया पृथ्वी आज बचाओ।।
तब तक जीव जगत में है,जब तक जग में पानी।
जब तक वायु शुद्ध रहती है,सोंधी मिट्टी रानी।।
तब तक मानव का जीवन है,यह सबको समझाओ।
पृथ्वी आज बचाओ भैया पृथ्वी आज बचाओ।
हरियाली की महिमा समझो,वृक्षों को पहचानो।
ये मानव के जीवन दाता,इनको अपना मानो।।
एक वृक्ष यदि कट जाये तो ग्यारह वृक्ष लगाओ।
पृथ्वी आज बचाओ भैया पृथ्वी आज बचाओ।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक' मथुरा
दिनांक-22-4-2020
विषय-भावों के मोती

विधा-हाइकु

हाइकु

1)

करूँ अर्पण
भाव-मोती दर्पण
खुशी का क्षण

2)

भावों के मोती
वसुंधरा हरषी
द्वि गुणी खुशी

3)

भावों के मोती
जले साहित्य ज्योति
माला पिरोती

4)

भावों के मोती
भाव भरी बधाई
खुशियां आईं

5)

भाव पटल
करता खिलखिल
मंच प्रबल

6)

भावों के मोती
बहु छंद प्रहरी
विधा लहरी

*वंदना सोलंकी"मेधा"*©स्वरचित

दो वर्ष का शिशु ।
जन्मदिन का शुभदिन ।
नाम है प्यारा प्यारा।
भावों के मोती ।
आशीर्वाद और नवसृजन।
फूलों और कलियों का सृजन।
नवधारा है इसमें ज्ञान की जीवन की।
प्राणसेतू है रचनाकारों की ।
एडमिन जी माँ बनकर
देती सबको दुलार
मान सम्मान ।
श्रेष्ठतम मंचासीन लेखकों को मान शान
जय हो भावों के मोती
पल पल बढे आपका नाम।
समृद्धि और विकसित हो
परिवार बना है एक संध नाम दिया
भावों के मोती
जन्मदिन की शुभकामनाऐ ।
🎂 🎂 🎂 🎂 🍫 💐 💐
पूनम कपरवान
स्वरचित ।
एक छोटा सा उपहार सृजन ।

आज विश्व पृथ्वी दिवस पर मन में कई प्नश्न कौंध रहै है ,जिनके जवाब अपेक्षित है|
वर्तमान प्नासंगिकता में पृथ्वी दिवस पर मेरी स्वरचित कविता समीचीन है-
"आज करे क्रन्दन यह वसुन्धरा,

रे मनुज तू करे जो मेरा आँचल मैला,
हरितिमा चुनरी जो,है मेरा परिधान,
बेज़ुबा दरख्त,निरीह प्नाणी भी,
है सुरक्षित मेंरे आश्रयस्थल मे,
स्वच्छ जल और स्वच्छ वायु,
स्वर्गानुभूति है वातावरण मे,
हूँ मानवता की भी मैं रहनुमा ,
हैतू जो सर्वश्रेष्ठ कृति तू ईश्वर की,
भोगलिप्सा,स्वार्थपन,,लापरवाही से,
की जो तू ने अंधाधूध वृक्ष कटाई,
दिया फिर न्यौता वैश्विकउष्णन को,
जलवायु परिवर्तन से भी अब तो,
जहर घुला मधुर जीवन में,
जो वसुधा उगलती है सोना,
हुई मजबूर आज वह भी रुदन को,
आज करे सुनील पुकार तुझसे,
वृक्षारोपण से संजोए धरा को,
हो संपोषणीय विकास ध्येय जीवन ,
संकल्प भी हो पर्यावरण संरक्षण,
और हो मूलमंत्र स्वच्छता का,
तभी सार्थकता होगी पृथ्वी दिवस की|
स्वरचित
सुनील चाष्टा
सलुम्बर (उदयपुर)

स्थापना दिवस - 22/04/2020
विषय- भावों के मोती।


द्विवर्षीय वर्षगांठ पर ,
हार्दिक बधाई भावों के मोती ।
नमन शत-शत नमन
बारंबार नमन भावों के मोती ।

भावों से ये भरा हुआ दिल ,
अर्पण करती हूं भावों के मोती।
रोली चंदन अभिनंदन ,
करती हूं मैं भावों के मोती।

शब्दों की माला पिरोकर,
कविता लिखना सिखलाया ।
मंच में सभी को सम्मान देकर ,
सबका नित उत्साह बढ़ाया ।

पुष्पों सा पल्लवित रहे ,
तुझसे मेरा यह रिश्ता ।
खुशबू बन जग में फैले,
चाह मेरी भावों के मोती।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

साथियों,
22/4/2020/बुधवार
*भावों के मोती*काव्य


मन में हों भावों के मोती,
मनका मनका फेरें।
निश्छल भाव वहें मानस में,
हमसब प्रेमपुष्प बिखेरें।

भाव भावना शुद्ध होेए सब,
मन मिलने को तरसें।
सृजन करें हम भक्ति भाव से,
प्रेम रसा ही बरसे।

भावों के मोती हों केवल,
और प्रीत रसधारी।
सृजन करें मग्नमन होकर,
महके ये फुलवारी।

मनपसंद मनभावन हो सब,
लिखें सुमंगलकारी।
मनमोही मनमोहन आऐं,
राधे संग गिरधारी।

मन सीपी से निकलें मोती,
माणिक मनोभाव से।
चमक-दमकते मुस्कित चेहरे,
हों विनम्र स्वभाव से।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

मनपसंद
*भावों के मोती*काव्य
22/4/2020/बुधवार

दूसरी वर्षगांठ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

हाइकु
१)
भावों के मोती
बधाई हो स्वीकार
है बर्षगाठं।

२)
भावों के मोती
एहसासों के संग
भावना जुड़े।

३)
भावों के मोती
करूं मैं इबादत
प्रत्येक दिन।

४)
भावों के मोती
सदा आगे ही बढ़े
होती आंकक्षा।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ
दिनाँक :- 22 अप्रैल 2020

विधा :- छंदमुक्त कविता
विषय :- भावों के मोती साहित्य सिपाही

भावों के मोती साहित्य सिपाही

जागरूकता की
ज्वाला को
जलाकर रखना

भटकते
युवाओं का
मार्गदर्शन करना

राष्ट्रीय भाषा
नारी एवं संस्कारों को
शक्ति प्रदान करना

हर नागरिक में
देशभक्ति का
संचार करना

अनैतिकता
अन्याय और अधर्म
के खिलाफ आवाज उठाना

शिक्षा
शिष्टाचार और नैतिकता
का प्रचार प्रसार करना

देश में राजनीतिक
और सामाजिक उत्थान के लिए
जनता को सकारात्मक दिशा देना

देश में बढ़ती
कुप्रथाओं, आडंबरों
वो अंधविश्वासों के विरुद्ध लड़ना

इन सब भूमिकाओं में
भावों के मोती हिंदी साहित्य परिवार
का योगदान अतुलनीय है

भावों के मोती साहित्य परिवार के
जन्मदिन पर सभी साहित्य सिपाहियों को
ढेर सारी शुभकामनाएँ

पेड़ लगाकर धरती बजाएँगे
साहित्य सेवा से
हिंदी, संस्कार ,व भाषा बचाएँगे

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक

वर्ण पिरामिड
१)
हो

सदा
सफल
रहे साथ
चमके जग
है सभी का प्यार
चले ये निरंतर।

२)
तू
मान
हमारा
है अमोल
गर्व है मुझे
हे भावों के मोती
उन्नति करो सदा।

नमन भावों के मोती..
सादर वन्दन एंव अभिनन्दन, भावों के मोती मंच के
स्थापना दिवस की वर्षगाठ पर शेर हृदय की

अनन्त शुभकामना एंव बधाई...
***************************************
🍁
भावों के मोती से मेरा, भाव अनन्त जुडा है।
इसी मंच से शेर के मन का, भाव सभी निकाला है।
🍁
शब्दों का निर्द्वंद समागम, इससे ही जाना है।
सुप्त हृदय का दिव्य धरातल इसको ही माना है।
🍁
भटक रहे इस भाव शून्य को इसने ज्ञान दिया है।
शेर के बोझिल से शब्दों को, इसने बाँध दिया है ।
🍁
दिव्य दिवस है आज की दिन ही,मंच मेरा जन्मा है।
शैने-शैने चला बढा तब आज यहाँ पहुचा है।
🍁
नमन मंच के सब कवियो का, वन्दन है अभिनन्दन है।
शेर के मन उल्लास भरा है, शब्द उसी की दर्पण है।
🍁
स्वरचित .. एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
देवरिया (उ0प्र0)

दिनांक- 22/4/2020
छंदमुक्त कविता
*
************
आज का दिन बड़ा ही खास,
समूह अवतरित हुआ था आज,
*भावों के मोती* दिया फिर नाम,
वीणा जी की गोद में जब आया,
रितुराज जी की मिली फिर छाया,
मोती चुन-चुन कर दोनों ही लाये,
माला में फिर उन्हें पिरोये |

जगह-जगह से गुणीजन जुड़े,
भाव अपने-अपने सब गढ़ने लगे,
वीणा जी ने दी मुझे आवाज,
संगीता एक उगुँली तुम थामों आज,
खुशी का मेरा नहीं था ठिकाना,
हाथ जोड़ प्रस्ताव किया स्वीकार |

पंत जी, शम्भू जी और शर्मा जी,
सबका आशीर्वाद था हमारे साथ,
रितुराज जी की कर्मठता भायी,
राठोर भाई को आवाज लगाई,
सरगम को मिल गई तब थाप,
राठोर भाई तुम्हें है प्रणाम |

आरती जी और वंदना सिंह जी,
दोनों का है सुन्दर व्यवहार,
समूह में सबको सम्मान वो देतीं,
रचनाओं से खूब मिठास घोलती,
आपको भी कोटि-कोटि प्रणाम,
आगे तक हम रहेंगे साथ |

हर एक मोती की अपनी पहचान,
भावों के मोती की सब हैं जान,
गोविंद जी, हरि शंकर मिश्र जी,
अशोक जी,, सत्यप्रकाश जी,
अनुराधा जी,सोलंकी जी,श्री राम जी,
सीमा जी, सबको है प्रणाम |

दिल और दिमाग में सब बसे हैं,
सबका मैं करती हूँ गुणगान,
आप सब हमारे समूह की शोभा,
यूँ ही रखना सब इसका मान,
हर साल समूह यूँही बढ़ता जाये,
भाव सबके मन के गढ़ता जाये,
सदस्यों को मेरा नमन... कोटिश कोटिश बधाई... आप सब को समर्पित करता हूँ... "प्यार"

II प्यार II


प्रेम - प्यार....
ढाई अक्षर....
कितने मीठे....
कितने सम्मोहक....

प्यार संवाद है....
अपने से...आप से..
हर किसी से...
पूरे विश्व से...ब्रह्माण्ड से...
भगवान् से....

ऐसी भाषा है....
जो बिना बोले समझी जा सकती है...
महसूस की जा सकती है...
बिना किसी माध्यम के...
बिना किसी भेद भाव के...
जब प्रेम संचार होता है...
प्रेम ही बात करता है...
बाकी सब रिश्ते गौण हो जाते हैं....
शब्द मौन हो जाते हैं...
और वही मौन....
मुखरित हो उठता है....
अकुंरित होता है...
फूटता है भीतर...
और फिर डुबो देता है...
सब कुछ...
गहरे...बहुत गहरे...

आप मुझे शब्दों में पढ़ नहीं रहे...
सुन रहे हैं...महसूस कर रहे हैं....
मैं आप के ह्रदय तक...और आप...
मुझ तक पहुँच रहे हैं...
संवाद हो रहा है...
दिल से दिल का...
न आप सामने हो...न मैं आपके सामने...
मैं आप को नहीं जानता...आप मुझे नहीं...
पर बात हो रही है...
एक रिश्ता बन रहा है...
आपका...मेरा...
आपके भीतर जो स्फुटित हो रहा है...
मेरी कलम से प्रफुटित हो रहा है...
आप सुन रहे हैं...महसूस कर रहे हैं...
मेरे शब्द जो आपके हैं...
और शब्दों में जो मौन छुपा है...
वो भी सुन रहे हैं...
जो नहीं कहा वो स्वतः..
महसूस कर रहे हैं...
एक अजीब सा आनंद...
भीतर ही भीतर सिंचित करता है...
यह आनंद...
और जब आप और मैं...
एक ही धारा में बहते हैं तो...
आँखों से भी लुढ़क आता है...
यह आनंद....
मोती की तरह कभी मोतियों की तरह...
फिर माला बन जाता है...
भावों की...
यही पहचान है...
मेरी...आपकी...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२२.०४.२०२०
२२/४/२०२०

भावों के मोती के स्थापना दिवस पर
सादर समर्पित
प्रिय भावों के मोती ।

नभ सारा है हदय समाहित,तारें भावों के मोती,
लेखनी बनी मृदु बयार,जीवंत दिव्य बातें होती ।
वृहत रस कोमल सृजन,कभी प्यार प्रेयसी का बन,
देश हित की ज्वाला बन ,अंगारों पे पूरा जीवन।

दे रही शहीदों को सलामी,सीमा पर क़ुर्बान हुए,
शब्द पलकों को ज्योतित कर,धड़कनों की पहचान हुए।
माला गुथी पन्नों पे बिखरी,श्वास महकी चंदन सी,
कविता मूक साध स्वप्न,अंतर में चहकी नंदन सी।

भावों के मोती अद्भुत,अनमोल धरा का आलिंगन,
दीपक की लौ का उजास,करें सृष्टि का आवाहन।
मानवता के भाव परस्पर,शांति,प्रेम गीत गुंजार,
सहिष्णुता से मधुमय कण-कण,उमंगित राग संचार।

पथ प्रशस्त हो अरमानों का,आधार भावों के मोती,
विस्तृत कल्पना को करती, साकार भावों के मोती ।

स्वरचित
चंदा प्रहलादका

स्थापना....

एक ऐसा पल जब व्यक्ति

एक सिद्धान्त लक्षित करें
एक ऐसा साहस जो
उन्नति की और बढ़े
एक ऐसा स्थापन जिससे
जुड़ती सभी की आशाएँ
एक ऐसा क्षण जब
प्रफुल गूँजती हवाएँ
नव कार्य जैसे नव जीवन
नवीन योजनाएँ
सुस्वागतम सुस्वागतम...
धरा ये गीत गाये...
हर्षित यह त्यौहार हमारा
स्थापना कहलाये.....

लेखिका@कंचन झारखण्डे
भोपाल मध्यप्रदेश।
22/4/20
स्थापना की द्वितिय वर्ष गांठ पर हार्दिक बधाई

सभी सदस्यों को आत्मीय शुभकामनाएं।
मंच मुखरित है और भी निखरे
जहां तक दृष्टि जाए भावों के मोती बिखरे।।

भावों के मोती चुन चुन कर
गूंथू सुंदर अवली
अविरल मंजुल भाव सजाऊं
हृदय की खिल जाय कली
लिख लिख कर कोरी पाती पर
पुष्पो की नव टोली
आज सजाऊं शुभ भावों से
गीतों की रंगोली।
कुसुम कोठारी' प्रज्ञा'
22/4/2020
बिषय, भावों के मोती

माँ शारदे कृपा वरदान रखना
कलम पर भावों के मोती सजाए रखना
तुम्हारी दया दृष्टि से चलती रहे कलम
काव्य संचरण में बढ़ते रहें कदम
इसी तरह पटल को सजाते रहें
मन के भावों को लुटाते रहें
राह के कांटों से बचाए रखना माँ
अपने बच्चों पर कृपा बनाए रखना माँ
बिन आपके पत्ता भी नहीं हिलता
तेरे ही इशारे पर सारा जग चलता
तेरे ही इशारे पर हवा हर दिशा बहे
तेरे ही इशारे पे सूरज चाँद चमकता रहे
तुझे मैं क्या दूं सब तुमने ही दिया
आज जो भी हूँ तुमने इस लायक है किया
क्षमता नहीं इतनी गुणगान गा सकूँ
हिम्मत नहीं तेरे समक्ष आ सकूँ
टूटी फूटी वाणी से जो आज लिख रही
इसमें भी तेरी दया माँ साफ दिख रही
इतना तो करना माँ कलम चलाती रहूँ मैं
चुनचुन भावों के मोती सजाती रहूँ मैं
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
भावों के मोती के सानिध्य में दो वर्ष
दे गये साहित्य सुमनों के मधुर स्पर्श
शीतल काव्यधारा सहज ही फूट पडी़
फैल गया बाँहें पसारे हर्ष ही हर्ष।

साहित्य की विविध धारायें बहीं
ऊपजाऊ होती रही मन की महीं
ऋतुराज और वीणा श्रम करते रहे
इनके मुँह से कभी न सुना अब और नहीं।

भावों के मोती में भाव ही भाव हैं
भावों के ही बस इसमें रहते बहाव हैं
सब विलक्षण सहयोग दे रहे अपना
अथाह प्रेम है न कोई अभाव हैं।

बहुत बहुत शुभकामनायें
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर

कृष्णम् शरणम् गच्छामि
🌹भावों के मोती🌹
दिनांक :- 22/04/2020
समूह के द्वितीय स्थापना दिवस पर समूह के सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं..
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
इस शुभ अवसर पर एक रचना आप सबको समर्पित करता हूँ... बेशक सारे सदस्यों को तो इस रचना में समाहित न कर सका..कृपया अन्यथा न ल़ें..
आप सभी की रचनात्मकता एवं सतत् उपस्थिति से आज यह समूह अपनी द्वितीय वर्षगांठ इतने हर्षोल्लास के साथ मना रहा... आप सभी की रचनात्मकता एवं साथ समूह के साथ यूँ ही बना रहे यही है आशा आपसे...
एक बार पुनः हार्दिक बधाई..
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

साहित्यिक आकाश का...
वो चमकदार सितारा है..
समूह "भावों के मोती"...
प्यारा परिवार हमारा है...
अथाह जलधि से छनकर...
भिन्न-भिन्न रत्न आए...
शब्द तुलिकाओं से जो...
नित यह पटल सजाए....
नमन पितामह श्री शंभू जी...
नमन आदरणीय श्री पंत..
नित स्तुत्य श्री गोविंद जी...
शर्मा जी के भाव अनंत..
ऋतु सँग स्वयं माँ वीणापाणि...
हैं धवलअश्व काव्यरथ के...
चुन लिए जिन्होंने सारे...
अज्ञान शूल मेरे पथ के...
अक्स जी के मुक्तक न्यारे...
चौरसिया जी के शब्द प्यारे...
श्री हितैषी जी के दोहे....
सदा ही मन को मोहे...
आरती जी की कलम सदा...
करती सृजन सबसे जुदा....
संगीता जी की बात निराली...
जैसे गाऐ कोयल मतवाली...
सुषमा जी की गजब कलम...
नित नवल विधान बताती..
शालिनी जी की शालीनता..
उनकी कलम छलकाती..
श्री शेर हृदय के उद्गार...
जाते सदा हृदय के पार...
अनुराधा जी के अनुरोध...
सदा होते निती अनुरूप...
ऊषा जी की लालिमा...
होती सदा ही समान..
कुसुम,सुमन सब एक ही नाम....
जिनसे पावन यह उद्यान..
हैं रागिनी सी यह ललिता....
सुंदर,सुरभित पावन पुनिता..
नित्य नव काव्यमोती जुड़ते....
भावों की यह माला गूँथते....
जय जय भावों के मोती....
उज्ज्वल रहे सदा ये ज्योति...

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

22 अप्रैल 2020
विषय भावों के मोती के स्थापना दिवस पर सादर समर्पित


कल्पनाओं को शब्दों मे बुन लो
‘भावों के मोती’ तुम कुछ चुन लो

देश देश से आते पथिक बहुत
विश्राम सुकून जहां पे पाते है
गाते है संगीत अपने मन का
जन जन के मन को हरषाते है
तुम भी आओ बैठो यहाँ पर
कुछ अपने मन की बातें गुन लो
‘भावों के मोती’ तुम कुछ चुन लो

एक सूत्र मे सब पिरोये चले है
स्वप्न नवीन सब सँजोये चले है
तुम भी अपने मन की कह दो
यहाँ पर सब हिलमिल चले है
मन मधुवन मनमोहक मधुरम
सबके मन की बातें सुन लो
‘भावों के मोती’ तुम कुछ चुन लो

कल्पनाओं को शब्दों मे बुन लो
‘भावों के मोती’ तुम कुछ चुन लो

स्वरचित
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
तिथि-22/04/2020
विषय- भावों के मोती

विधा- कविता

"भावों के मोती"

आज हुआ है दो वर्ष का
हमारा प्यारा भावों के मोती
बहुत-बहुत है मेरी शुभकामना
करती हूँ इसका मैं अभिनंदन

सागर से चुन चुन कर इन्होंने
किये हैं इकट्ठे ढ़ेर से मोती
फिर भावों की धागा में पिरो
बनाया एक सुन्दर माला की ज्योति।

भावों के मोती के गगन पर
चमक रहे है ये सितारे से
इनकी चमक हो ना धूमिल
लिखते रहें भावों की गहराई से।

मुझे दिया है आपने यह मान
वृहद भावों के मंच पर
प्रस्फुटित हुआ भाव शब्दों में
प्रगट करती हूँ मैं आभार।

अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
विषय : भावों के मोती
विधा : कविता

तिथि : 22.4.2020

भावों के मोती
----------------

भावों के मोती
समूह अनुपम ज्योति।
अडिग प्रकाश स्तम्भ
देता प्रेरणा अविलंब।

भावों के मोती
समूह भाव सागर
समोए नदियां गागर
आगोश ले तुरंत।

भावों के मोती
भांति भांति की विधाएं
शब्दों की कलाएं
पिर जातीं डोर संबंध।

भावों के मोती
मोतियों का ब्लॉग
सब के मन का राग
रचना सुरक्षा- उत्तम प्रबंध।

भावों के मोती
द्विवार्षिकी स्थापना दिवस बधाई
रितु जी,वीणा जी,मेहनत रंग लाई
अविरल बहे तरंग।

भावों के मोती
परिवार सहयोग बना रहे
अमर रहे सब का संग
निजि धन्यवाद करूं भर उमंग।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित

22.4.2020
बुधवार

पृथ्वी दिवस और स्थापना दिवस की अनेकानेक
शुभमंगलकामनाएँ

भावों के मोती
मुक्तक
(१)
भावों के मोती हैं ,भावों में बहने दो
शब्दों की माला को,मन का कुछ कहने दो
सृष्टि है सर्जन है ,भावों का अर्पण है
मन सागर में गहरे,मोती ये खिलने दो ।।

(२)
भावों के मोती, बहाएँ रस धार
महके ये मन , मंहकाएं संसार
पंखों पर उड़ते रहें,कल्पना के
सपने सभी के, बनाएँ साकार।।

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
सद्य:रचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार ‘
22/04/2020
विषय:भावों के मोती

विधा:नव गीत

भावों के मोती स्थापना दिवस पर सभी को हार्दिक बधाई🎂🎂🎂💐💐💐💐💐

भावों के मोती चुन-चुनकर,
शब्दों की माला हुई निर्मित।
शब्दों को फिर बुन- बुनकर,
काव्य माला हुई सुसज्जित।
कुछ मर्मज्ञ साहित्यकार,
कर रहे साहित्य बीज रोपित।
कुछ नवोद्भिद कलाकार,
गढ़ रहे नवल साहित्य रीति।
'भावों के मोती'का रूप निखर,
दिन-प्रतिदिन यूं ही हो पुष्पित।
'मनीष' स्वयं कड़ी बनकर,
कर रहा शब्द भाव सञ्चित।
'ऋतुराज जी'द्वारा रोपित होकर
साहित्य वृक्ष बढ़ रहा गर्वित।
जन्मदिवस पर हर्षित जी भर
झूम रहे हैं नवल गीत।

मनीष श्री
स्वरचित
भावों के मोती चुन-चुनकर
शब्दों के सुगंध में मथकर
रोज बनाये एक सुन्दर हार
करें उसी से कविता श्रृंगार ....
जिसमें हो अनुभूति हमारी
पाये जग अभिव्यक्ति सारी
हर्ष-विषाद सभी हो व्यक्त
मन हो जीवन में अनुरक्त....
खुशबू से महके हर ओर
भाये मन सबके बिन शोर
दे संदेश जगत को सुन्दर
दिखे कहीं न कोई असुन्दर ..
कण-कण को दे यह भाषा
सभी दिशाओं में हो आशा
बरसे मेघ सृजन का जन में
भावों का मोती हर मन में ...

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही

22/04/20
भावों के मोती


भावों के मोती चुन चुन कर,सृजन नया अब करते हैं,
नेह निमंत्रण मिला आपका,गीत अनोखा लिखते हैं

प्रभु चरणों में वंदना लिखूँ,मातु पिता का गान लिखूँ,
त्याग,समर्पण अरु प्रेम लिखूँ,या वो नव आवास लिखूँ...
दरवाजे पर टिकी निगाहें, वो वृद्धाश्रम में रहते हैं,
दृगजल की अब स्याही बनती, गीत अनोखा लिखते हैं
नेह निमंत्रण ....

पिंजर में कैद पंछी लिखूँ,बेड़ियों में जकड़ी लिखूँ,
नभ की स्वच्छंद उड़ान लिखूँ, नारी का उत्थान लिखूँ...
उस वेदना को कैसे लिखूँ,अपने ही छल करते हैं,
मर्यादा की मसि बनाकर,गीत अनोखा लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....


चराचर जगत का शोर लिखूँ,अंतस का मैं मौन लिखूँ,
लिप्त में निर्लिप्त भाव लिखूँ ,मोह में वैरागी लिखूँ,
स्वयं से पहचान करने का,मार्ग नया अब चुनते हैं,
अंतर्मन की शुचिता कर के,गीत अनोखा लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....

रवि किरणों की भोर लिखूँ या,धुंध से धूमिल नभ लिखूँ,
अविरल अविरामी गंग लिखूँ,प्रदूषित अब नाला लिखूँ,
शब्द तरसते शुद्ध हवा को ,कैसा फल हम चखते हैं,
अपनी विनाश लीला का अब,गीत अनोखा लिखते हैं।
नेह निमंत्रण ....

**
स्वरचित
अनिता सुधीर
नमन मंच।भावों के मोती।
आज दूसरे वर्ष के स्थापना दिवस पर मंच को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं प्रेषित करती हूं।


हम सब उस मंच के मोती है।
जहां सुशोभित मातु शारदे प्रज्वलित ज्ञान की ज्योति है।
अलग अलग विधाओं का होता है
रिमझिम सा बौछार
गीत लेख आलेख कवित से सजता भावों का संसार।

सबका सृजन अलग अलग है सभी पारंगत सभी विधा में
पारस बन छुआ जो हमको।आया मुझ पर दिव्य निखार।
शब्दों के मोती जुड़ जुड़ कर बन गया पारस मुक्ता हार।
मां शारदा का ज्ञान समाहित आलोकित बुद्धि भंडार
इंद्रधनुषी विविध रंग से सदा ही मंच चमकता।
एहसासों के फूल हैं खिलते मन का भाव महकता।
निज हृदय के भाव पिरोते।करते नित गीतें गुंजार।
मां वीणा का नेह समाहित
मिलता बहन वीणा का प्यार।
नव रत्नों से सदा सुशोभित
आलोकित मन का संसार।
इतना मिलता।प्रेम यहां पर अविरल बहता सबका प्यार।
वीणा पाणी बुद्धि दायिनी।
झंकृत करती मन का तार
सभी विधा के एक एक मोती
गूंथ गूंथ बन जाते हैं हार।
दूसरे वर्ष के स्थापना दिवस पर यही कामना करती हूं।
सदा नित निरंतर बढ़ता जाए
यही भावना रखती हूं।
#मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
दिनांक 22/04/2020
विषय:भावों के मोती

विधा:छंद मुक्त
सभी को सुप्रभात एवं मंच के दो वर्ष पूरे होने की हार्दिक बधाई।कविता लम्बी हो गई है जो भाव आए लिखने की कोशिश की है।🙏🙏
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जीवन की आज की शैली मे
फेसबुक के पैर जमे है हर घर मे।
नयी नयी जानकारी देकर
करता हम सबको आकृष्ट।
मेरे कई दोस्त सहभागी
लिखते इसमें रोज़ विशेष।
कोई तो पकवान बनाए इस पर
कोई कराये सैर देश विदेश।
कुछ खास दोस्त जो वैज्ञानिक है
लिखती इस पर नित नये लेख
उन पढ पढ कर लिखने की जिज्ञासा आई
ले जानकारी उन सबसे मैने पाया मैने
"भावो के मोती "समूह विशेष।
नाम नही यह पटल भरा है
भिन्न भिन्न भावो को समाहित
आज पटल की दूसरी वर्षगांठ पर
कोटि कोटि बधाई शुभकामना विषेश।
मेरा नमन उन सभी रचनाकारो को
लिखते जो नित नया नवीन
विशेष बधाई दवे जी व पूर्णिमा को
यह है हाइकू के ज्ञाता।
राठौर जी से बन गया नाता
जैसे हो वह घर के सदस्य।
इस पटल पर उनकी भूमिका विशेष
दमयन्ती दीदी है प्रेरणास्रोत
नफे के देश भक्ति के गीत विशेष।
सभी रचनाकार है हीरे मोती
जिनसे वही यह माला विशेष।
भावो का रसगान यू ही चलता रहे
भावो के मोती समूह पर प्रतिपल
ऐसी मेरी कामना माँ सरस्वती से
पुनः नमन सभी रचनाकारो को
भावो के मोती यूँ ही सजते रहे..
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
22-4-2020
विषय-भावों की मोती की स्थापना दिवस के अवसर पर।

शुभकामनाएं सभी को इस सुन्दर भावों की मोती की
रंग बिरंगी मोतियों से गुंथी यह भावों की माला।
एक मोती बन मैं भी इसमें गुंथ जाउंगी।
अति सुन्दर रचनाओं की बन जाती
यह बगिया
अपनी भावनाओं की सभी ने बांधी
इसमें डोर।
भावों की यह अद्भुत मोती चमकती रहे सदा।
विभा झा
रांची झारखंड
नमन-मंच
विषय- भावों के मोती


स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

माँ सरस्वती दे दो सुमति
दे दो हम सबको सद्बुद्धि
श्रद्धा' भाव से रहूँ समर्पित
दो सद्बुद्धि करुं ज्ञान अर्जित
अन्तर्मन वो ज्योति जगा दो
सत्असत् का भेद बता दो
निज शब्दों की मैं माला पिरोती
वही सहज भावों के मोती||

स्वरचित मौलिक
शिवानी शुक्ला श्रद्धा'
जौनपुर उत्तर प्रदेश

भावों के मोती समूह को जन्म दिवस पर बहुत बहुत बधाई
आज के शुभ अवसर पर मेरी प्रथम रचना।

"भावों के मोती"
हे ईश्वर कृपा दयालु,
सुन ले तू विनती हमारी,
रूक गई गति जीवन की,
ऐसी आई ये महामारी,
हृदय विदारक दृश्य देखा,
है भयभीत दुनियाँ सारी,
देख हाहाकार चारों ओर,
सुन ले ये अर्ज हमारी,
भावों के मोती पिरो कर आज,
आएँ हैं द्वार तेरे गिरधारी,
सदा महकती रहे प्रभू,
दुनियाँ की ये रंगीन क्यारी।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त

बुधवार/22अप्रैल/2020
विषय -"भावों के मोती "के स्थापना दिवस पर सादर समर्पित "उपहार "

**************************

माँ शारदे को करके नमन
रंग - रंग के शब्दों से
सजाता हर कोई, नित्य पटल।
शब्दों के भाव जब करते श्रृंगार
मन के भीतर पहुंच जाती हो तुम
वो ही तो भावों के मोती कहलाती हो!!

आज जन्मदिन तुम्हारा, क्या दूं मैं उपहार!
तुमने तो हमें दिया, विधा का भंडार!!
शब्दों के भावों को समझाती हो !
मात्रा भार सबको सिखलाती हो!
गध, पद, मुक्तक, दोहे विषय चित्र
पर आ जाती हो , इसलिए भावों के मोती कहलाती हो!!

पत्तियों की सरसराहट में तुम,
जीवन की हरियाली बन जोश
दिलाती हो,कालखंड से ताल
मिला कर विश्वास दिलाती हो !
वो ही तो भावों के मोती कहलाती हो!!

आज लिखने पे आऊँ भाव तुम्हारा,
पन्नें कम पड़ जाएंगे!
नदिया, सागर, धरती , आकाश
सारे बौनें पड़ जाएंगे .....
थोड़ा लिखा ज्यादा समझना ,
रखना ऊँगली थाम - मुबारक हो
जन्मदिन तुम्हारा ये रंगीन शाम !!

रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद-झारखंड
तिथि _22_4_2020
वार_बुधवार

विषय _भावो के मोती

दुख मे सुख का अहसास कराते
भावो के मोती
अनायास ही अधरों पे
मुस्कान ले आते
भावो के मोती
रुठे हुए को अपना बनाते
भावों के मोती
बिछुड़े को गले लगाते
भावों के मोती
अपनापन का अहसास कराते
भावों के मोती

सूफिया ज़ैदी

दिनांक-22-4-2020
विषय-"भावों के मोती "

स्वरचित कविता
(वीडियो सहित)-
समन्दर है ये गहरा
सीमाओं से घिरा
वीणा के तारों सी झंकृत
लहरों से निखरा- सुथरा
सीप कई अनमोल छिपे हैं
इन लहरों के अंदर
कलमकार बनकर छाए हैं
हर पाठक के मन पर
बरसों बरस बिताकर बूंदें
मोती बन पाती हैं
सीपी का मुख खोल तभी वे
हमको दिख पाती हैं

ऐसा ही कुछ हुआ यहाँ भी
साहित्यिक पटल पर
बहुमूल्य मोती चमके हैं
सीपों से उछल-उछलकर
ऋतुराज के आ जाने से
जैसे पंछी इतराते हैं
सुरभित परिवेशमें गुल से
वैसे ही हम खिल जाते हैं
आज बधाई देते हैं हम
"भावों के मोती"को
साहित्य-गगन में नित फैलाएं
अपनी जगमग ज्योति को.
स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
द्वितीय स्थापना दिवस पर सभी को हार्दिक बधाई

भावों के मोती ने दिया
लेखन को नया विस्तार
नई विधा,नये विषय, नित
मिलते नये आचार -विचार
आम से खास बनाकर
भावों के मोती ने दी
कलम को नई पहचान
वीणा दी माँ शारदे सम
करती नित नये सुधार
रितुराज सर के हाइकु
लाते नित नई बहार
सबसे सुन्दर सबसे न्यारा
हमारा यह परिवार

स्वरचित
शिल्पी पचौरी
पाकर भी तुमको पा न सकी।
न समझ सकी समझा न सकी।

तुमसे मिलकर मैं तृप्त हुई।
जैसे अब कुछ भी चाह नही।
क्या भूल हुई जो अब तक मैं।
लूट कर भी तुमको पा न सकी।

पाकर भी तुमको पा न सकी।
न समझ सकी समझा न सकी।

मेरा रोम रोम ये चाह रहा।
आ जाओ मेरे जीवन मे।
मेरा हर पल तुमको समर्पित है।
चरणों मे तेरे मैं न सकी।

पाकर भी तुमको पा न सकी।
न समझ सकी समझा न सकी।

नैनो में दर्शन की आशा है।
मेरे प्रेम की यही अभिलाषा है।
व्याकुल मन करता विनती।
तुम आ न सके मैं आ न सकी।

पाकर भी तुमको पा न सकी।
न समझ सकी समझा न सकी।

भावो के मोती चुन कर लाई।
मोती की माला मैं पिरो लाई।
मैं खड़ी हाथ मे लेकर माला।
शब्द जाल से तुम्हे पिन्हा रही।

पाकर भी तुमको पा न सकी।
न समझ सकी समझ न सकी

स्वरचित
मीना तिवारी
22/ 4 /2020
विषय - भावों के मोती


भावों की पावन गंगा अविरल बह चली
प्रत्येक लेखनी सुरभित सुमन सी खिली ।
अनुशासित हुए छंद समूह तटबंध
निखरी जब कल्पना बनी सुंदर अल्पना
नित नए विषय है स्वस्थ प्रतियोगिता ।
भावों के मोती चुन चुन सुगढ़ बनी एक माला
सरस्वती का कंठ हार हर एक बाल बाला ।
जाति पाति का भेद नहीं सबका समान स्थान
होता रचना का आदर गढ़ते है संस्कार
मात शारदे की वीणा वरदानों का भंडार ।
लेखनी में शब्द भरे भाव मोती अमोल
अनगढ़ रत्न समूह सीप में लेते आकार
चहुँ दिशा से आ मिले बना प्यारा परिवार ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )

भावों के मोती।
विषय-"भावों के मोती "

स्वरचित।
आज पृथ्वी दिवस है तो चार लाइन इसपर भी।

विचारों की माला में "भावों के मोती"
हैं ये मेरे मन की छाया।
ऐसे ही बींधूं मैं शब्दों की लड़ियां
इसमें कितना रस समाया।
इसमें कितना रस समाया।।

हो लख बधाईयाँ "भावों के मोती"
साहित्य समूह मन भाया।
यात्रा इसकी अनवरत चलती रहे यूं ही
ऐसा भाव मन में आया।
ऐसा भाव मन में आया।।

मैं तेरी बसुधा तुम मेरे रखवारे
क्यों कर जुलम है ढाया।
मुक्त करो अब पापों से मुझको
क्यों कर है बहुत बढ़ाया।
क्यों कर है बोझ बढ़ाया।।

भर दिया मुझको प्रदूषण से कितने
कितना क्षार बहाया।
सांसे भी ले ना पाती हूं मैं
ऐसा वातावरण बनाया।
ऐसा वातावरण बनाया।।

विचारों की माला में "भावों के मोती"
हैं ये मेरे मन की छाया।....

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
22/04 /2020


सादर नमन 'भावों के मोती'
स्थापना दिवस पर विशेष
2
2/04/2020

विस्तृत कैनवास
हर विधा पाये विश्राम,
लेखनी रहे सर्वदा आतुर
श्रेष्ठ को मिलता सम्मान ;
सदा प्रज्ज्वलित रहे
अंतः चक्षुओं की ज्योति,
शुद्ध साहित्यिक मंच
'भावों के मोती' ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

22/04/2020
विधा - सेदोका

शीर्षक - 'भावों के मोती''

मन सागर
छिपे 'भावों के मोती'
चुन-चुन पिरोती
शब्दों की ढाल
रची अनूठी माल
काव्यांजलि कमाल ।

-- नीता अग्रवाल
स्वरचित
दिनांक - 22,4,2020
दिन - बुधवार

विषय - भावों के मोती

भावों के मोती की गागर ,
जब से थामी हाथों में।
शब्दों के नित हार गुहे हैं ,
बस बातों ही बातों में।

मन ये संग्राहक भावों का ,
दान कलम को करता है।
कागज की थाली में भरकर,
पेश कलम ही करता है।

जन मन के भावों को पढ़कर,
हृदय संकलित करता है।
सामाजिक हित में ही लेखक ,
प्रगट भावना करता है।

सम दर्शी भावों की आँखें ,
परहित में हीं रोतीं हैं।
रहें समानता की पक्षधर ,
प्रिय न्याय की होतीं हैं।

भावों के मोती हैं दुर्लभ ,
मंशा रब की रहती है।
जिन हाथों में हों ये मोती,
उनसे दुनियाँ सजती है।

🌺🌺
धरती पर वृक्षों की हरियाली🌴 और हमारे समूह में शब्दों के भावों की हरियाली,,,,,,📒कितना सुखद संयोग,,,,,,,
समूह शब्द और भाव से हरा भरा लहराता हुआ एक सदन है।
इसी प्रकार पृथ्वी पर मानव हरियाली लहराने का श्रम करें तो श्रेष्ठ होगा।🌱🌿🌳🌴🌴🌺

कुछ पंक्तियां पृथ्वी दिवस पर ,,,,,

चारों ओर हरियाली थी
फसल लहलहाती थी
इंद्र भी मेहरबान थे
कभी ना काल था
मैं धरती हूँ तुम्हारी मां हूँ।

धन के भंडार थे
फलदार तरु लड़ालूंब थे
ताल तलैया सूखे ना थे
मैं वसुधा हूँ तुम्हारी मां हूँ।

काट दिए वृक्ष वुडन डेकोर हेतु
चीर दिया सीना सुंदर फर्श हेतु
मत छिनो मेरे वस्त्र
मुझे जीने दो
मैं धरती हूं तुम्हारी मां हूँ।

खोद दिये गड्डे तेल हेतु
और गहरे अंडरपास हेतु
मैं डरती हूँ घावों से
मै धरती हूँ तुम्हारी मां हूँ

बर्बादी की दस्तक दी है प्रकृति ने
चारों ओर हाहाकार है
व्याधियाँ सिर पर सवार हैं
मैं धरती हूं तुम्हारी मां हूँ

अब समझ मानव
न धर दानव रूप
जो बचा है सहेज
मैं धरती हूं तुम्हारी मां हूँ।

एक वृक्ष एक मानव
कायाकल्प कर तू धरा का
आगम पीढ़ी का
जान है तो जहान है
कर धरती को हरा-भरा
मैं धरती हूं तुम्हारी मां हूँ।

स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
बहुत हैं उमड़ते-घुमड़ते विचार
बनाते इस मस्तिष्क को संसार
कभी डबडबायी आंखे रुलातीं
रुलातीं,रुलातीं हैं सागर समातीं
कभी खिलखिलाहट में भी आँसू लातीं
ठहाके,कहकहे, मुस्कान बनतीं
कभी फिर किसी से विपरीत ठनती
कभी चित्र बनते कभी कविता लिखते
कभी हम हितैषी कभी कुछ है दिखते
कभी चौका-चूल्हा कभी रंग सलोना
कभी फिर जो थकते,तो दिखता बिछौना
के घर को संवारें,कभी लीपें अंगना
कभी मन करे तो पड़ोसी से मंगना
इसी में बड़ों का भी आशीष मिलता
थकन से भरा फिर ये,चेहरा भी खिलता
पिरोए हैं मोती ये,भावों के मैंने
लिखा सब है*भावों के मोती*को देनें

स्वरचित , त्वरित
डॉ. शिखा
साहित्यिक यात्रा भावों के मोती,
हम सब की आँखों की ज्योति,

नित नित नये उत्तम विचार मिलें,
हम सब की कल्पना पंख जुड़े,
हम करते जाते कल्पना विस्तार,
ये देती जाती हमें बृहद आकार,
सपनों को सच करने का अवसर,
हृदयों को देती मधुर आमंत्रण,
हम जुड़ते नित नये साथियों से,
खिलता जैसे हो ताल कमल,
भावों के विविध सोपानों पर,
मित्रों के उत्तमोत्तम भाव मिले,
जैसे माता का लाड़ दुलार मिले,
जैसे प्रियतम का उपहार मिले,
भाई से भाई गलबाहियाँ मिले,
आज वर्षगाँठ की इस बेला पर,
हृदय की उद्गार ये कछ पंक्तियाँ है,
हम टूटी- फूटी भाषा में अपने ये,
पावन महोत्सव आज मनाते है,
ऐसे ही बढ़ता रहे हमारा परिवार,
ईश से वंदन आज ये करते हैं,
सद्भाव-सम्मान रहे, प्रतिबद्ध रहे
कामना यही हम सब करते हैं.

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
.22/4/2020/बुधवार
बिषयःः*मोती/माला*
विधाःःःकाव्यःःः

प्रेमोत्सव है भावों के मोती में।
नहीं वैरभाव भावों के मोती में।
संगीत सुमधुर संगीता से यहां पर,
सुधा संतोष भावों के मोती में।

हैं आकांक्षा अभिलाषा अनुराधा।
न मुन्नी को ऊषा अनिता से बाधा।
गाऐं रागिनी रजनी सरला नीलम,
क्या मै उपमा दूं तुम बृह्माणी राधा।

हैं नीता शिल्पी श्वेतांम्वरी पूर्णिमा।
कुसुम यहां भाव भरी मीना शर्मा।
गंगा तनुजा अंजना हैआरती मेधा ,
ये सब भावों के मोती की महिमा।

ये मंजू सुंदर मंजूषा नीलम मोती।
प्रतिदिन निकलते भावों के मोती।
लोकेश कोष्टी नवल राकेश यहां पे,
प्रहलाद हरीश से अगणित मोती।

मुकेश, मुरारि, शेर ले भाव दहाडते।
बलवीर शुभम देवेन्द्र खूव पछाडते।
शर्मा जी सी.एम.,प्रबोध विपिन जी,
दबे भाव राजेंद्र हरीगोविंद उखाडते।

जय श्रीगोविंद हरी ऋतुराज तुम्हारी।
जय सरिता वीणा अभिलाषा प्यारी।
जय गंगा सरिता मीना तनु वीणा झा,
आप सभीसे भावों की महिमा न्यारी।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

2भा./#मोती /माला# ःकाव्यः ः
22/4/2019/सोमवार


दिनांक 224 2020
विषय भावोंके मोती मंच का द्वितीय स्थापना दिवस एवं पृथ्वी दिवस

विधा :-कविता

वीणा पाणि के स्वरों के भाव ने,
वंदना, आरती के मधुर गान ने,
गीत, संगीतकी मधुर तान ने,
मंच" भावों के मोती" बनाया|
रितुराज जी ने सबने सजाया|
जिसकी महिमा हर रचना ने गाया|

ओज की गर्जना कविता करती यहां,
कोकिला रचना में कूंकती है यहां ,
ज्ञान की कहानी लेखनी लिखती है,
गीत त्योहार के प्यार के है यहाँ|

फूलों के कांटों के भूख के प्यास के ,
आस विश्वास के दिवस के रात्रि के,
सूर्य के चांद के भावना के भाव के,
रोज करती प्रकाशित भावों के मोती यहाँ|

काव्य के पक्षियों का बसेरा है ये,
कलमकारों का एक डेरा है ये,
भावनाओं की अभिव्यक्ति का ,
एक स्वर्णिम सुखद सवेरा है ये|

मात्र चित्रों से ही तो पहचाने जाते हैं हम|
मात्र चित्रों से प्रति दिन ही मिलते हैं हम भावनाओं के संगम पर रुकते हैं हम |
एक दूजे के भाव का विनिमय करते हैं हम| फेस बुक पर रोज एक दूजे से मिलते हैं हम|
"भावों के मोती" रोज चुनते हैं, पढ़ते हैं हम|
काव्य की रोज रचना भेंट करते हैं हम |

शब्दों का शब्दालय है यह|
ज्ञान का एक देवालय है यह |
वीणापाणि का आलय है यह |
भाव के मोतियों का खजाना है |
रचती अभिव्यक्तियों की रंगोली जहाँ ,
ऐसा पावन एक साहित्यालय है यह

यहां समादर है सभी का सम्मान है|
हर फूल की अपनी एक पहचान है| कलाकारों की बगिया है यह|
कलाकारों का डेरा है यह|
तेरा भी है और मेरा भी है यह|
सब के भाव की मूर्ति का संगम है|
एक साहित्यिक सवेरा है यह

आज स्थापना दिवस को मनाएंगे हम |
मंच "भाव के मोती "का सजाएंगे हम |
गीत लिखेंगे और सब मिलके गाएंगे हम |
आज जी भर की खुशियां मनाएंगे हम
धरती माँ कोऔर "धरती दिवस" कोप्रणाम|
आज धरती से गगन तक गुंजाने हो|
" भाव के मोती" का गुणगान हो|
यूं ही सजती रहे सभाएं भाव की ,
यहां रचना का प्रतिपल गुणगान हो|

मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है |
विजयश्रीवास्तव
बस्ती

अनमोल भावों के मोती,
शब्दों में खूब पिरोए हैं।
रचने को इक सुंदर कविता,
बैठे शून्य में खोए हैं।

इन भावों के मोती की,
सुंदर माल पिरोई है।
भावों के मोती ने ही,
यह मेरी माल संँजोई है।

भावों के मोती का सागर ,
यह पावन मंच सुहाना है।
यहां के सब रचनाकारों को,
मैंने तो परिवार ही माना है।

सुंदर सुखद समाँ है प्यारा
,,भावों के मोती का ।
रचनाकार सभी आलोकित मन,
दिव्य प्रकाश यह ज्योति का।

सिलसिला यूं ही चलता रहे ,
बना रहे ये परिवार हमारा ।
हमारे ग्रुप का, भाई बहनों का,
यशमय चमके जीवन सारा ।

पृथ्वी दिवस पर आज मुझे,
बस इतना ही कहना है ।
पर्यावरण सुरक्षित रखें ,
यदि सबको जीवित रहना है।

यदि नहीं चेते हैं अब भी
तो पृथ्वी भार सह न सकेगी।
अनवरत चलेगी काल की मर्जी,
यह लीला अब नहीं रुकेगी।

भावों के मोती के जरिए,
हम संदेश सुनाते हैं।
प्रदूषण रहित अपनी पृथ्वी को
रखने की कसम उठाते हैं।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तत्तरप्रदेश

भावों के मोती
दिनांक- 22/04/ 2020

दिन- बुधवार
विषय-भावों के मोती
**************************
शीर्षक- उम्मीद
विधा-कविता
**************************************
शमा उम्मीद की जलाए रखना
हौसला अपना बनाए रखना
आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी मंजिल
जीवन पथ पर कदम बढ़ाए रखना।
सुख- दुःख तो चक्र है इस जीवन का
संकट में धैर्य तू बनाए रखना
शमा उम्मीद की जलाए रखना।
हर अंधेरी रात के बाद आती है एक नई सुबह
यह बात दिल में तू बिठाए रखना
शमा उम्मीद की जलाए रखना।

स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
तिथि-22/04/2020
पृथ्वी दिवस पर,,,,


हमारी धरा
********

पृथ्वी हमारी धरा है
अपने उर में इसने हमको सीँचा है
प्रकृति,जल,हवा से हमें सँवारा है
इसका सौंदर्य है अनोखा
इसके रुप ने हमारे चित को लूटा
ऊँचे-ऊँचे पेड़ कहीं,पर्वत सागर ने घेरा है
हैं घने जंगल कहीं,कलकल बहती नदियाँ
जीवनदायिनी है हमारी
इससे ही अस्तित्व हमारा
धरा हमारी माता है
पर हम मानव बनकर दानव
करते इसका शोषण और दोहन
कहीं जंगल साफ कर रहे
कहीं पेड़ काट रहे
पर्वतों को काट आपदा बुला रहे
ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएं बना रहे
हम पर्यावरण प्रदूषित कर रहे
खुद हम अपने पैर पर कुल्हाड़ी चला रहे
प्रकृति से ही धरा की शोभा है
मिलता हमें शुद्ध हवा
जब ये नहीं होंगे तब
हम जिएंगे कैसे?
अब तो चेतो,,,
करो पर्यावरण का संरक्षण
मत करो प्रकृति का भक्षण
अपनी पृथ्वी को बचाना है
गर हमें जीवन जीना है!!!

अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
दिनांक-22-4-2020
विषय-


"पृथ्वी दिवस पर भाव मोती समर्पित"

धरा दिवस पर भेंट करते
हम "भावों के मोती"
पुष्प बन प्रज्ज्वलित हो
हृदयों के मन की ज्योति
धरती के आँचल में
गोटा टाँकने आईं हैं
स्वर्णिम रश्मियां
खेतों में आज बिखरी है
कंचन पीत चुनरियां
महक उठा है धरा का
हर इक कोना
आसमान ने ज्यूँ
बरसाया हो सोना
ओढ़ के धानी ओढ़नी
चली सोलह श्रृंगार किये
वसुधा रानी
सुरभित वन उपवन बाग बहार
चंचल चित्त पुलके बारंबार
मन बगिया में सुंदर सुमन महके
हृदय बहाए सुर लहरी
प्रमुदित नाते हैं दिल के
सुर सरगम ने छेड़ी देखो
आज मन की"वीणा"
"ऋतुराज"भी झूम कर
करें किलोल काव्य क्रीड़ा
अनगिन आभासी सखा सखियां
प्रोत्साहित करने और बताते त्रुटियां
अजनबी आज सहयोगी सखा बने हैं
पटल ने सुधि सहृदयी सुमन चुने हैं
समूह की धरा यूँ ही
पुष्पित पल्लवित होती जाए
बरसों तक वर्षगांठ की
शहनाई बजती जाए।
पर्यावरण शुद्ध स्वच्छ रहे
यह कर्तव्य भी तो हमारा है
वसुधैव कुटुम्बकम का अमिट
संस्कार वृहद और न्यारा है
सब जन हैं इस पावन
अवनी का इक हिस्सा
सभी सुनें "मेधा" के भाव
भरे दिल का किस्सा।।

*वंदना सोलंकी"मेधा"*©स्वरचित
नित चमकते रहे,नित दमकते रहे
भावों के मोती,भावों के मोती।

नव राग गाये रोज,
करते रहे नव खोज।
भारती के ताल पर-
पुष्पित करे सरोज।।

जोश भरते रहे,पीर हरते रहे
भावों के मोती,भावों के मोती।

लेखनी यह जब चले,
चेतना के रव खिले।
राह यह बताए तब-
भटकते राही मिले।।

दीप्त खिलते रहे,नया रचते रहे
भावों के मोती,भावों के मोती।


~परमार प्रकाश
आज विश्व धरा दिवस पर....

बिरहन बेचारी

मैं थी इक धरती न्यारी सी,
अपने सूरज की प्यारी सी ।
मुझको प्रियतम का प्रेम मिला,
मेरे आंचल में फूल खिला ।
गोदी महकी फिर क्यारी सी ॥
मैं थी इक धरती न्यारी सी ।

मेरा बेटा मानव आया,
मन, बुद्धि प्रखर सुंदर काया ।
पर उसे आ गया अहंकार,
वह भूल गया सारे उपकार ।
मृगतृष्णा का विस्तार किया,
माँ का ही आँचल तार किया ।
अपने बेटे से हारी सी ॥1॥
मैं थी इक धरती न्यारी सी ।

तब डाल डाल वैजयंती थी,
मैं प्रियतम की रसवंती थी ।
जब पुत्र मेरा मुझसे अकड़ा,
सूरज से हुआ मेरा झगड़ा ।
अब वो भी आँख दिखाता है,
और बाँझ मुझे बनाता है ।
पति-पुत्र प्रेम की मारी सी ॥2॥
मै थी इक धरती न्यारी सी ।

क्यों स्वार्थ भावना जागी है,
मानव की सुबुद्धि भागी है ।
मै पति-पुत्र के बीच फँसी,
निश दिन रोती कुछ रोज़ हँसी ।
चूनर मौसम की अस्त-व्यस्त,
कब थामे प्रियतम प्रेम- हस्त ।
सोचूँ बिरहन बेचारी सी ॥3॥
मै थी इक धरती न्यारी सी ।

मैं थी इक धरती न्यारी सी ।
अपने सूरज की प्यारी सी ॥

अंजुमन आरज़ू ©

पृथ्वी दिवस पर
२२/४/२०

बुधवार
विधा -- पद्य
**********************
वसुंधरा है अब सशंकित देखकर विनाश को,
अस्थियां कितनी समाहित मैं करूं,अपनी ही संतान की!
अपने ही दुराचार से भोग रहे अभिशाप को,

अब तो दिवा स्वप्न है इन्द्र धनुषी अर्श का,
धधक रहा है सारा मंजर,फिक्र नहीं इंसान को!

कराहती है अब धरा,अमानुशता की चाल से,
उसने तो उपवन दिया,हर विघ्न के निदान को,

इस प्रकृति में जहर का कर रहे रिसाव तुम
हे मनुज !अब भी तो चेतो ,रोक लो इस विनाश को

अब फटा जाए कलेजा,इस काल चक्र के प्रभाव से,
हे पिता परमेश्वर!दे दो क्षमा संसार को.............!!
**************************
स्वरचित -- निवेदिता श्रीवास्तव


विषय भावों के मोती
२२/४/२०

बुधवार
****************
कितने हैं अनमोल भाव ,
भावों के मोती में बसे प्राण,
इस समूह ने इन वर्षों में,
बहुत दिए हैं कलमकार!
नभ से ऊंचा हो इसका मान,
रचनाकारों को जहां है मिलता
बड़ा ही मान सम्मान!
सीपो से मोती निकाल कर
गुथा किए नवल हार,
एक सूत्र में बंधकर बने ,
बड़े भाव का हार ।
कभी ना टूटे ,कभी ना छूटे ,
इस रिश्ते का साथ,
एक घर ,परिवार एक है,
यह वसंत विहार।
*******************
स्वरचित --- निवेदिता श्रीवास्तव
भावों के मोती में बिखरी हैं
काव्यधारा की लड़ी प्यारी
हर लड़ी में हैं ख़ुशी बहुत सारी
चलती रहे ऐसे ही ये काव्यधारा प्यारी .

एक वर्ष से दो वर्ष हुये
दो से दस फिर बीस हो जाये
काव्यधारा की महफ़िल सजती रहें
सबकी राहों में ख़ुशी मिलती रहें

ह्रदय में ख़ुशी हो हरदम
खिलती और फूलती रहें सबकी कलम
भावों के मोती का नाम गगन में रहें हरदम
चाहे आज हो या कल .
स्वरचित :- रीता बिष्ट

*********************
जब याद करोगे तुम मुझको, तब ही मै वापस आऊगाँ।

इल्जामो से तप कर तेरे, सोना बन कर दिखलाऊँगा ।
....
मन कितना भी बेचैन करे, मै दर्द नही दिखलाऊँगा।
तेरी चाहत को सीने से , बाहर ना मै ले आऊगाँ ।
....
कोशिश करता हूँ बार कई, पर अब की ना पछताऊँगा।
चाहत और मर्यादा के बीच, सम्मान की लाज बचाऊँगा।
....
अपनी नजरों मे गिर कर के, मै कैसे प्रीत निभाऊँगा।
गर शेर गिरा नजरो से तो, फिर कैसे मै जी पाऊँगा ।
.....
तुम पढो मेरे भावों के मोती, मै खुद ही छलकाऊँगा।
कुछ अपनी बात बताऊँगा, कुछ लिखकर तुम्हे दिखाऊँगा।
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ

पिछले वर्ष भावों के मोती के लिए लिखी गई यह रचना पुनः समर्पित है

िश्तो के मोती

पाक रिश्तो के एहसास के नेह से,
भावनाओं के मोती निखर जाएंगे ।
प्यार की डोर से जब ये मोती बंधें,
बन के माला अनोखी संवर जाएंगे ।

मोतियों की लड़ी सा ये परिवार है,
डोर सा कायदा जिसका आधार है ।
छेद रूपी समर्पण जरूरी यहां,
वरना रिश्तो के मोती बिखर जाएंगे ।

देख मौसम सुहाना ऋतुराज सा,
जिंदगी का ये पतझर है नाराज सा ।
छेड़ कर मन की वीणा के सुर ताल को,
गुनगुनाते रहेंगे जिधर जाएंगे ।

स्वप्न देखा जो हमने वो साकार है,
मोती माला ये स्वागत को तैयार है ।
आज तो बस सफलता की घाटी चढ़ी,
देख लेना अभी हम शिखर जाएंगे ।

-अंजुमन आरज़ू ©

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