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ब्लॉग संख्या :-718
विषय पुस्तक,किताब
विधा काव्य
25 अप्रेल 2020,शनिवार
भोजपत्र पर मोर पंख से
वेद ऋचाएँ शास्त्र लिखे थे।
गङ्गा तट ऋषि मुनि मुख
ज्ञानार्जन से अति खिले थे।
ज्ञानकोष होती है पुस्तक
पुस्तक में संस्कार छिपे हैं।
बिन पुस्तक के जग है सूना
जिसमे अद्भुत मंत्र लिखे हैं।
पुस्तक स्वयं ज्ञान निधि है
जीवन यापन प्रिय विधि है।
ये भक्ति का पावन साधन
इसमें छिपी सुन्दर सिद्धि है।
आश्रम विश्वविद्यालय सफर
पुस्तक की प्रिय पहिचान है।
कर्म धर्म सब पुस्तक निर्भर
भक्ति शक्ति मानव जान है।
युगों युगों की अद्भुत गाथा है
पुस्तक में परमेश्वर का वासा।
जीवनचरित है महामानव का
जग अंतरिक्ष खगोल निवासा।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
25 अप्रेल 2020,शनिवार
भोजपत्र पर मोर पंख से
वेद ऋचाएँ शास्त्र लिखे थे।
गङ्गा तट ऋषि मुनि मुख
ज्ञानार्जन से अति खिले थे।
ज्ञानकोष होती है पुस्तक
पुस्तक में संस्कार छिपे हैं।
बिन पुस्तक के जग है सूना
जिसमे अद्भुत मंत्र लिखे हैं।
पुस्तक स्वयं ज्ञान निधि है
जीवन यापन प्रिय विधि है।
ये भक्ति का पावन साधन
इसमें छिपी सुन्दर सिद्धि है।
आश्रम विश्वविद्यालय सफर
पुस्तक की प्रिय पहिचान है।
कर्म धर्म सब पुस्तक निर्भर
भक्ति शक्ति मानव जान है।
युगों युगों की अद्भुत गाथा है
पुस्तक में परमेश्वर का वासा।
जीवनचरित है महामानव का
जग अंतरिक्ष खगोल निवासा।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक _किताब ।
25-04-2020
""""जिंदगी किताब ही तो है ।
हर रोज पलटकर देखा जब लफ़्जों के
चलचित्र दिखाई देते है ।
कुछ अपनों के जख्म , कुछ गैरो के मरहम,नमक की जलन नजर आते है।
देखते देखते जब नम हो गई आँखें ,
बूदें ओस की पन्नों पर गिरने लगी।
लफ़्ज मिटे नही छप गई
बूंदाबांदी साफ न करने
की एक सजा वजह ,
किताब बन गई।।।
न जाने कब होगी ये किताब पूरी
लिखने और पढने मे दोहरा दोहरा कर
ऐ किताब तेरा शुक्रिया तुझसे बडा दोस्त न मिला।
गुजरे है बहुत अजनबियों से कहने को हमदम थे।
झूठे थे सब रहगुजर में
बस किताब तुझ जैसा दोस्त न मिला।
स्वरचित
पूनम कपरवान
देहरादून।
उततराखणड।
25-04-2020
""""जिंदगी किताब ही तो है ।
हर रोज पलटकर देखा जब लफ़्जों के
चलचित्र दिखाई देते है ।
कुछ अपनों के जख्म , कुछ गैरो के मरहम,नमक की जलन नजर आते है।
देखते देखते जब नम हो गई आँखें ,
बूदें ओस की पन्नों पर गिरने लगी।
लफ़्ज मिटे नही छप गई
बूंदाबांदी साफ न करने
की एक सजा वजह ,
किताब बन गई।।।
न जाने कब होगी ये किताब पूरी
लिखने और पढने मे दोहरा दोहरा कर
ऐ किताब तेरा शुक्रिया तुझसे बडा दोस्त न मिला।
गुजरे है बहुत अजनबियों से कहने को हमदम थे।
झूठे थे सब रहगुजर में
बस किताब तुझ जैसा दोस्त न मिला।
स्वरचित
पूनम कपरवान
देहरादून।
उततराखणड।
विषय-किताब
वर्षों पहले
जिन किताबो को
पढा था
रात रात भर जाग कर
समेट कर रखा था।
सहेज कर रखा।
बड़े जतन से
अलमारियों में
साफ करती रहती हूं।
यदा कदा
नही रहने देती
धूल की परत
कभी कभी
पढ़ भी लेती
मन की संतुष्टि हेतु
उनमें रखे
मोर पंख और
गुलाब की पंखुड़ियों
को सहलाती भी हूं
दोहराती हूं कुछ अनछुए
स्पर्शो को
जो मन को देते
सुखद एहसास
और डरती भी हूं।
कही दीमकों का
निवाला न बन जाय
हमारा इतिहास
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक 25।4।2020 दिन शनिवार
विषय पुस्तक
लॉक डाउन समय में, घर में पड़ा-पड़ा ऊब रहा
विद्यालय बंद, काम कुछ नहीं,
सोचा-चलूँ घर में रखी पुस्तकों की ओर,
बहुत दिवस हो गए पुस्तकों को हाथ लगाए।
अनमना सा आया बुक शेल्फ के पास,
कुछ सोचकर उठाई ही थी एक पुस्तक,कि
पुस्तक सरसराई, फडफडाई,फुसफुसाई-मित्र!
मैंने देखा इधर-उधर, पूछा-कौन?
आवाज़ आई-मैं,तुम्हारे हाथ की पुस्तक,
तुम्हारी दोस्त एकांत समय की।
बहुत दिन हुए,कहाँ थे?मैं तो धन्य हो गई,
परस पाकर तुम्हारे सुकोमल करों का।
कैसे आना हुआ?वक्त कैसे मिल गया आज?
ठीक तो हो?एक साथ इतने प्रश्न,
ताने भी,उलाहने भी।
मैं लज्जित, देख रहा था उसकी भंगिमाएं,
सुन रहा था उसकी करुण कातर फुसफुसाहट।
सचमुच हमने पुस्तकों से कितनी दूरी बना ली है,सोशल मीडिया के जमाने में।
ये मित्र हैं, सहचर हैं, ज्ञानदर्शिका हैं, और बहुत कुछ,
भुला दिया है हमनें इन्हें समय न होने का झूठा हवाला देकर।
आओ लौटें फिर पुस्तकों की दुनिया की ओर,
सैर करें कल्पनालोक की,भूल जाएं भौतिक दुख।
फिर से पुस्तकों को मान दें,पढ़ें और पढाएं,
फिर से पुस्तकों का संसार बनाएं।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
विषय पुस्तक
लॉक डाउन समय में, घर में पड़ा-पड़ा ऊब रहा
विद्यालय बंद, काम कुछ नहीं,
सोचा-चलूँ घर में रखी पुस्तकों की ओर,
बहुत दिवस हो गए पुस्तकों को हाथ लगाए।
अनमना सा आया बुक शेल्फ के पास,
कुछ सोचकर उठाई ही थी एक पुस्तक,कि
पुस्तक सरसराई, फडफडाई,फुसफुसाई-मित्र!
मैंने देखा इधर-उधर, पूछा-कौन?
आवाज़ आई-मैं,तुम्हारे हाथ की पुस्तक,
तुम्हारी दोस्त एकांत समय की।
बहुत दिन हुए,कहाँ थे?मैं तो धन्य हो गई,
परस पाकर तुम्हारे सुकोमल करों का।
कैसे आना हुआ?वक्त कैसे मिल गया आज?
ठीक तो हो?एक साथ इतने प्रश्न,
ताने भी,उलाहने भी।
मैं लज्जित, देख रहा था उसकी भंगिमाएं,
सुन रहा था उसकी करुण कातर फुसफुसाहट।
सचमुच हमने पुस्तकों से कितनी दूरी बना ली है,सोशल मीडिया के जमाने में।
ये मित्र हैं, सहचर हैं, ज्ञानदर्शिका हैं, और बहुत कुछ,
भुला दिया है हमनें इन्हें समय न होने का झूठा हवाला देकर।
आओ लौटें फिर पुस्तकों की दुनिया की ओर,
सैर करें कल्पनालोक की,भूल जाएं भौतिक दुख।
फिर से पुस्तकों को मान दें,पढ़ें और पढाएं,
फिर से पुस्तकों का संसार बनाएं।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
विषय - किताब/पुस्तक
विधा- नज़्म
तुम्हे पढ़ते पढ़ते मैं
किताब पढ़ना गया भूल ।
छूट गया वो साथ भी
औ छूट गया वो स्कूल ।
नही पता था साथ ये
दे जाएगा वो तूल ।
ताज़ीस्त रहेगी कश्मकश
जीना लगेगा फिजूल ।
ओ सपनों की रानी
ओ दिल का मधुर फूल ।
क्या तुझमें नज़ाकत है
औ क्या है तुझमें मूल ।
बता कभी आकर के
जाए न मन का फितूर ।
कभी बजे मन वीणा
तो कभी बजे सन्तूर ।
उम्मीदें सांसें जगाय
रहवे सदा ही सुरूर ।
दे गयी लिखने को तूँ
उनवान मुझे भरपूर ।
किताब ही लिख रहा हूँ
है जिसमें तेरा नूर ।
दूर रहकर के भी जो
रही नही दिल से दूर ।
फ़लसफ़ा अलहदा सा
इक हुस्न 'शिवम' मगरूर ।
इश्क जिस पर मर मिटा
वो थी जन्नत की हूर ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 25/04/2020
विधा- नज़्म
तुम्हे पढ़ते पढ़ते मैं
किताब पढ़ना गया भूल ।
छूट गया वो साथ भी
औ छूट गया वो स्कूल ।
नही पता था साथ ये
दे जाएगा वो तूल ।
ताज़ीस्त रहेगी कश्मकश
जीना लगेगा फिजूल ।
ओ सपनों की रानी
ओ दिल का मधुर फूल ।
क्या तुझमें नज़ाकत है
औ क्या है तुझमें मूल ।
बता कभी आकर के
जाए न मन का फितूर ।
कभी बजे मन वीणा
तो कभी बजे सन्तूर ।
उम्मीदें सांसें जगाय
रहवे सदा ही सुरूर ।
दे गयी लिखने को तूँ
उनवान मुझे भरपूर ।
किताब ही लिख रहा हूँ
है जिसमें तेरा नूर ।
दूर रहकर के भी जो
रही नही दिल से दूर ।
फ़लसफ़ा अलहदा सा
इक हुस्न 'शिवम' मगरूर ।
इश्क जिस पर मर मिटा
वो थी जन्नत की हूर ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 25/04/2020
पुस्तक/किताब
नमन,वन्दन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
यह किताब है हमारी ज्ञानदाता।
यही है भाग्य विधाता।
जो हैं गरीब, फटेहाल।
खाना खाने को नहीं है।
पढ़ लिया अगर अक्षर चार।
महान वही है।
पढ़ लिखकर हम राज करते हैं जहां में।
जो हैं अनपढ़, उसका कोई नहीं दुनियां में।
मारा-मारा फिरता है।
कोई भी नहीं पूछता है।
जब भी मिले कोई पुस्तक।
ज्ञान अर्जित कर लो।
जो भी लिखा मिल जाए इसमें।
उसको अपने जीवन में भर लो।
फिर होंगे खुशहाल।
मिलेगी खुशियां अपार।
बैठोगे ऊची कुर्सी पर।
देखेगा फिर संसार।
वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी
25/4/2020
नमन,वन्दन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
यह किताब है हमारी ज्ञानदाता।
यही है भाग्य विधाता।
जो हैं गरीब, फटेहाल।
खाना खाने को नहीं है।
पढ़ लिया अगर अक्षर चार।
महान वही है।
पढ़ लिखकर हम राज करते हैं जहां में।
जो हैं अनपढ़, उसका कोई नहीं दुनियां में।
मारा-मारा फिरता है।
कोई भी नहीं पूछता है।
जब भी मिले कोई पुस्तक।
ज्ञान अर्जित कर लो।
जो भी लिखा मिल जाए इसमें।
उसको अपने जीवन में भर लो।
फिर होंगे खुशहाल।
मिलेगी खुशियां अपार।
बैठोगे ऊची कुर्सी पर।
देखेगा फिर संसार।
वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी
25/4/2020
अरे पुस्तकें
देती जीवन सार,
पढ़ के देख।
सच्चा है मित्र,
जीवन का दर्पण
वो है पुस्तकें,
सारे जग में
अँधेरे दूर करे
वो है पुस्तकें
सुख - दुःख में
सदा निभाती साथ
वो है पुस्तक !!
बाँटे खुशियाँ,
विश्व उपवन में,
वो है पुस्तक।
मन की बाती,
सदा जलाये रखे,
वो है पुस्तकें।
प्यासे मन की,
बुझा देती है प्यास,
वो है पुस्तकें।
जीवन पथ,
सदा करे रोशन,
वो है पुस्तकें।
झरे है नूर,
शब्द शब्द के फूल,
वो है पुस्तकें।
अरे पुस्तकें,
जीवन का आईना,
दिखाती राह ।
© रामेश्वर बंगअरे पुस्तकें
देती जीवन सार,
पढ़ के देख।
सच्चा है मित्र,
जीवन का दर्पण
वो है पुस्तकें,
सारे जग में
अँधेरे दूर करे
वो है पुस्तकें
सुख - दुःख में
सदा निभाती साथ
वो है पुस्तक !!
बाँटे खुशियाँ,
विश्व उपवन में,
वो है पुस्तक।
मन की बाती,
सदा जलाये रखे,
वो है पुस्तकें।
प्यासे मन की,
बुझा देती है प्यास,
वो है पुस्तकें।
जीवन पथ,
सदा करे रोशन,
वो है पुस्तकें।
झरे है नूर,
शब्द शब्द के फूल,
वो है पुस्तकें।
अरे पुस्तकें,
जीवन का आईना,
दिखाती राह ।
© रामेश्वर बंग
देती जीवन सार,
पढ़ के देख।
सच्चा है मित्र,
जीवन का दर्पण
वो है पुस्तकें,
सारे जग में
अँधेरे दूर करे
वो है पुस्तकें
सुख - दुःख में
सदा निभाती साथ
वो है पुस्तक !!
बाँटे खुशियाँ,
विश्व उपवन में,
वो है पुस्तक।
मन की बाती,
सदा जलाये रखे,
वो है पुस्तकें।
प्यासे मन की,
बुझा देती है प्यास,
वो है पुस्तकें।
जीवन पथ,
सदा करे रोशन,
वो है पुस्तकें।
झरे है नूर,
शब्द शब्द के फूल,
वो है पुस्तकें।
अरे पुस्तकें,
जीवन का आईना,
दिखाती राह ।
© रामेश्वर बंगअरे पुस्तकें
देती जीवन सार,
पढ़ के देख।
सच्चा है मित्र,
जीवन का दर्पण
वो है पुस्तकें,
सारे जग में
अँधेरे दूर करे
वो है पुस्तकें
सुख - दुःख में
सदा निभाती साथ
वो है पुस्तक !!
बाँटे खुशियाँ,
विश्व उपवन में,
वो है पुस्तक।
मन की बाती,
सदा जलाये रखे,
वो है पुस्तकें।
प्यासे मन की,
बुझा देती है प्यास,
वो है पुस्तकें।
जीवन पथ,
सदा करे रोशन,
वो है पुस्तकें।
झरे है नूर,
शब्द शब्द के फूल,
वो है पुस्तकें।
अरे पुस्तकें,
जीवन का आईना,
दिखाती राह ।
© रामेश्वर बंग
दिनाँक-25-4-2020
विषय-पुस्तक/किताब
विधा-गीत
नहीं दोस्त कोई किताबों से अच्छा,
किताबों ने सबको दिया है रस्ता।।
किताबों में तस्वीर होती है कल की।
किताबों से कसरत होती है अकल की।।
किताबों का चस्का,गजब का है चस्का।
किताबें अँधेरे में देतीं उजाला।
किताबों ने गिरते हुए को सँभाला।।
किताबों का सचमुच बड़ा ऊँचा दर्जा।
किताबों को बोझ बनने न देना।
किताबों को बस दोस्त ही रहने देना।।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक'मथुरा।
विषय-पुस्तक/किताब
विधा-गीत
नहीं दोस्त कोई किताबों से अच्छा,
किताबों ने सबको दिया है रस्ता।।
किताबों में तस्वीर होती है कल की।
किताबों से कसरत होती है अकल की।।
किताबों का चस्का,गजब का है चस्का।
किताबें अँधेरे में देतीं उजाला।
किताबों ने गिरते हुए को सँभाला।।
किताबों का सचमुच बड़ा ऊँचा दर्जा।
किताबों को बोझ बनने न देना।
किताबों को बस दोस्त ही रहने देना।।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक'मथुरा।
तिथि 25/04/2020
वार-शनिवार
बिषय - किताब
सूरज, चाँद-सितारे, आईना, गुलाब लिखती हूँ।
वफ़ा-बेवफा, प्यार-तक़रार, नक़ाब लिखती हूँ।
ये जिंदगी भी देखो कैसे-कैसे रंग दिखाती है,
दिल से लिखे अल्फ़ाज़ बेहिसाब लिखती हूँ।
कभी ग़म-कभी खुशी ये जिंदगी का हिस्सा है,
आँखों में अश्क़, ग़म लिए शबाब लिखती हूँ।
जिंदगी की उलझनों में उलझा हुआ है आदमी,
फुर्सत के क्षणों में दिल की किताब लिखती हूँ।
हमारे इस मज़हब में खिल रहे दंगों के फूल,
आतंकवादी का हमला बेनकाब लिखती हूँ।
सरहद के उस पार, शहीद हुए नौजवान,
उन देश के वीर सपूतों को इंक़लाब लिखती हूँ।
कामयाबी का सफ़र, कितना दुश्वार "सुमन"
मैं मंजिलों तक पहुचने का ख्वाब लिखती हूँ।
सुमन अग्रवाल "सागरिका'
आगरा
वार-शनिवार
बिषय - किताब
सूरज, चाँद-सितारे, आईना, गुलाब लिखती हूँ।
वफ़ा-बेवफा, प्यार-तक़रार, नक़ाब लिखती हूँ।
ये जिंदगी भी देखो कैसे-कैसे रंग दिखाती है,
दिल से लिखे अल्फ़ाज़ बेहिसाब लिखती हूँ।
कभी ग़म-कभी खुशी ये जिंदगी का हिस्सा है,
आँखों में अश्क़, ग़म लिए शबाब लिखती हूँ।
जिंदगी की उलझनों में उलझा हुआ है आदमी,
फुर्सत के क्षणों में दिल की किताब लिखती हूँ।
हमारे इस मज़हब में खिल रहे दंगों के फूल,
आतंकवादी का हमला बेनकाब लिखती हूँ।
सरहद के उस पार, शहीद हुए नौजवान,
उन देश के वीर सपूतों को इंक़लाब लिखती हूँ।
कामयाबी का सफ़र, कितना दुश्वार "सुमन"
मैं मंजिलों तक पहुचने का ख्वाब लिखती हूँ।
सुमन अग्रवाल "सागरिका'
आगरा
विषय - किताब
मेरी बचपन की साथी है किताब
मेरी सबसे प्यारी सहेली है कितना
हर मुश्किल का हल सुलझाती है
मेरी प्यारी किताब
शब्दों का भंडार है छुपा है किताब में
ज्ञान का असीम सागर है किताब
मंज़िल तक पहुंचाती है किताब
शून्य से सम्पूर्ण बनाती है
मेरी प्यारी किताब
बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने इसे रचा है
इसमें ही वेद, पुराण छिपा है
रामायण, महाभारत का ज्ञान मिला है
इसमें ही तो भागवत गीता का
सम्पूर्ण ज्ञान विद्यमान है
जीवन का पाठ पढ़ाती है
मेरी प्यारी किताब
अनपढ़ व्यक्ति को पढ़ लिखकर
कामयाब इंसान बनाती है किताब
जितना ज्ञान अर्जित करना चाहोगे
पूरा जीवन ही कम पड़ जाएगा
बचपन से बूढ़े इंसा तक की दोस्त है
मेरी प्यारी किताब
फ़ुरसत जब भी मिले तुम को
ज्ञान तुम सदैव इससे लेते रहना
"भावों के मोती" को अपने तुम
बस ऐसे ही बिखरते रहना
कहती है सबसे यही बात
मेरी प्यारी किताब
जया वैष्णव
जोधपुर, राजस्थान
मेरी बचपन की साथी है किताब
मेरी सबसे प्यारी सहेली है कितना
हर मुश्किल का हल सुलझाती है
मेरी प्यारी किताब
शब्दों का भंडार है छुपा है किताब में
ज्ञान का असीम सागर है किताब
मंज़िल तक पहुंचाती है किताब
शून्य से सम्पूर्ण बनाती है
मेरी प्यारी किताब
बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने इसे रचा है
इसमें ही वेद, पुराण छिपा है
रामायण, महाभारत का ज्ञान मिला है
इसमें ही तो भागवत गीता का
सम्पूर्ण ज्ञान विद्यमान है
जीवन का पाठ पढ़ाती है
मेरी प्यारी किताब
अनपढ़ व्यक्ति को पढ़ लिखकर
कामयाब इंसान बनाती है किताब
जितना ज्ञान अर्जित करना चाहोगे
पूरा जीवन ही कम पड़ जाएगा
बचपन से बूढ़े इंसा तक की दोस्त है
मेरी प्यारी किताब
फ़ुरसत जब भी मिले तुम को
ज्ञान तुम सदैव इससे लेते रहना
"भावों के मोती" को अपने तुम
बस ऐसे ही बिखरते रहना
कहती है सबसे यही बात
मेरी प्यारी किताब
जया वैष्णव
जोधपुर, राजस्थान
“आनन्द के उन्मेष में
जीवन के अंश में
रोते हुए कंठ में
शोक के अंश में
आशा के शोर में
उन्माद के सन्तोष में
आत्मा की ग्लानि में
कर्म के मार्ग में
अधर्म और अन्याय में
बुद्धि के विचार में
अध्ययन और ध्यान में
गुरू और देव में
मैंने तुम्हें ढूंढा हैं
मैंने तुम्हें पूजा हैं
अज्ञानी के ज्ञान में भी
मैंने तुम्हें खोजा हैं
ए मेरी किताब
जीवन का सार तू
ज्ञान और अध्यात्म तू
धन और परिवार तू
प्रेम और प्रकाश तू
द्वन्द्व की अनुभूति में
जीवन का मार्ग तू
ए मेरी किताब।।"
रेशमा त्रिपाठी
मेल आइडी–reshmatripathi005@Gmail.com
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
जीवन के अंश में
रोते हुए कंठ में
शोक के अंश में
आशा के शोर में
उन्माद के सन्तोष में
आत्मा की ग्लानि में
कर्म के मार्ग में
अधर्म और अन्याय में
बुद्धि के विचार में
अध्ययन और ध्यान में
गुरू और देव में
मैंने तुम्हें ढूंढा हैं
मैंने तुम्हें पूजा हैं
अज्ञानी के ज्ञान में भी
मैंने तुम्हें खोजा हैं
ए मेरी किताब
जीवन का सार तू
ज्ञान और अध्यात्म तू
धन और परिवार तू
प्रेम और प्रकाश तू
द्वन्द्व की अनुभूति में
जीवन का मार्ग तू
ए मेरी किताब।।"
रेशमा त्रिपाठी
मेल आइडी–reshmatripathi005@Gmail.com
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
दिनांक-25/04/2020
शीर्षक- किताब
जिसकी जिंदगी हो खुली किताब
काले अक्षरों को पढ़ने को बेताब।
प्रीति के दर्द अश्कों में उभरते
सुर्ख होठों की चाहत में हो ख्वाब।।
दिल का लम्हा- लम्हा बेचैन है
आग के आगोशों में समेटे महताब।
सफेद पन्नों में काले अक्षर
प्रीत के सागर मत हो निराश।।
कर्णधार कल के हमी है युग प्रणेता
हम में छिपे हैं गांधी ,छिपे है नचिकेता।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
शीर्षक- किताब
जिसकी जिंदगी हो खुली किताब
काले अक्षरों को पढ़ने को बेताब।
प्रीति के दर्द अश्कों में उभरते
सुर्ख होठों की चाहत में हो ख्वाब।।
दिल का लम्हा- लम्हा बेचैन है
आग के आगोशों में समेटे महताब।
सफेद पन्नों में काले अक्षर
प्रीत के सागर मत हो निराश।।
कर्णधार कल के हमी है युग प्रणेता
हम में छिपे हैं गांधी ,छिपे है नचिकेता।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
भावों के मोती
दिनांक - 25/04/20
विषय - किताब
***************
जीवन का अनमोल उपहार ,
स्वप्न उड़ान भरने का देती विश्वास ,
है मेरी सच्ची मित्र मेरी हर किताब।।
है कोई भारी तो कोई हल्की भी,
इनमे ही अथाह ज्ञान भरा।।
इतिहास भी हमको मिल सका,,
वों सब किताबों से मुमकिन हुआ ।।
हम करते प्रेम जग मानुस से,
करके देख एक बार किताब से।।
मिल जाएगा जो चाहेगा ,
कभी निराशा साथ न पायेगा।।
कवि की हिम्मत हमें मिले यहा,
रेणु की रचना भी मिली।
महाराणा का अटूट विश्वास दिखा ,
तो मीरा की प्रेम भक्ति मिली।
जीवन का पूरा ज्ञान मिला,
सोलह संस्कार का अध्याय मिला ।
किताब के हर पन्नें में जीवन का आधार मिला,
जिसने चाहा किताब को उसे सुनहरा मौका मिला ।
- रेणु शर्मा
जयपुर ( राजस्थान )
दिनांक - 25/04/20
विषय - किताब
***************
जीवन का अनमोल उपहार ,
स्वप्न उड़ान भरने का देती विश्वास ,
है मेरी सच्ची मित्र मेरी हर किताब।।
है कोई भारी तो कोई हल्की भी,
इनमे ही अथाह ज्ञान भरा।।
इतिहास भी हमको मिल सका,,
वों सब किताबों से मुमकिन हुआ ।।
हम करते प्रेम जग मानुस से,
करके देख एक बार किताब से।।
मिल जाएगा जो चाहेगा ,
कभी निराशा साथ न पायेगा।।
कवि की हिम्मत हमें मिले यहा,
रेणु की रचना भी मिली।
महाराणा का अटूट विश्वास दिखा ,
तो मीरा की प्रेम भक्ति मिली।
जीवन का पूरा ज्ञान मिला,
सोलह संस्कार का अध्याय मिला ।
किताब के हर पन्नें में जीवन का आधार मिला,
जिसने चाहा किताब को उसे सुनहरा मौका मिला ।
- रेणु शर्मा
जयपुर ( राजस्थान )
विषय- किताब
'किताबें'
******
अपने गहरे एकान्त में
बहुत आत्मीय बातें करती हैं
दस्तक देकर आमंत्रित करती हैं
अपने शब्दों के साथ
एक सुदूर लम्बी यात्रा के लिये।
किताबें बातें करती हैं
आज की, कल की
आने वाले कल की
एक एक पल की
खुशियों की,गम की
जीत की, हार की
प्यार की, तक़रार की
जीवन की उपलब्धियों की।
क्या खोया,,,बातें करती हैं
सिखाती है कि गिर गये गर
उठ कर कैसे चलना है।
किताबें जीवन की साथी है
किताब जान से प्यारी है!!
अनिता निधि
जमशेदपुर
'किताबें'
******
अपने गहरे एकान्त में
बहुत आत्मीय बातें करती हैं
दस्तक देकर आमंत्रित करती हैं
अपने शब्दों के साथ
एक सुदूर लम्बी यात्रा के लिये।
किताबें बातें करती हैं
आज की, कल की
आने वाले कल की
एक एक पल की
खुशियों की,गम की
जीत की, हार की
प्यार की, तक़रार की
जीवन की उपलब्धियों की।
क्या खोया,,,बातें करती हैं
सिखाती है कि गिर गये गर
उठ कर कैसे चलना है।
किताबें जीवन की साथी है
किताब जान से प्यारी है!!
अनिता निधि
जमशेदपुर
विषय-किताब/पुस्तकेंविधा-हाइकु
२५-०४-२०२०शनिवार
🌹🌷🌹🌷🌹🌷
दूजा ना कोई
किताबों से इतर
अनन्य मित्र👌
पुस्तकें भातीं
जीवन सफर में
एकांत साथी👍
ज्ञान के गुरु
मात-पितु पश्चात
किताबें शुरू💐
मरुस्थल सा
सारा संसार सूना
किताब बिना✍️
ज्ञान के कोष
पुस्तकों में संस्कार
छिपे अपार🌻
ज्ञान आगार
किताबों के भीतर
पूरा संसार🏆
🥇🎖️🏅🥇🎖️🏅
🏵️श्रीराम साहू अकेला
२५-०४-२०२०शनिवार
🌹🌷🌹🌷🌹🌷
दूजा ना कोई
किताबों से इतर
अनन्य मित्र👌
पुस्तकें भातीं
जीवन सफर में
एकांत साथी👍
ज्ञान के गुरु
मात-पितु पश्चात
किताबें शुरू💐
मरुस्थल सा
सारा संसार सूना
किताब बिना✍️
ज्ञान के कोष
पुस्तकों में संस्कार
छिपे अपार🌻
ज्ञान आगार
किताबों के भीतर
पूरा संसार🏆
🥇🎖️🏅🥇🎖️🏅
🏵️श्रीराम साहू अकेला
25//4/2020/शनिवार
*पुस्तक/किताब*
काव्य
पुस्तक अपनी विधाता।
संस्कार संस्कृति प्रदाता।
जीवन के हर पहलू में,
मानव की सचशुभ दाता।
पठन पाठन शुभ कर्म।
मानव जीवन का धर्म।
पुस्तक ग्रंथ पुराण दर्शन,
मनुजता मानवीय मर्म।
पुस्तक सुन्दर मनमीत।
पढ़ें पढाऐं ये मनजीत।
सबसे बड़ा अपना मित्र
हमें जोड़ बताऐ प्रीत।
हम आत्मावलोकन करें।
गहन अध्ययन मनन करें।
मनमानस में हो उजाला,
ज्ञानपुंज सही सृजन करें।
पंख पखेरू छूट जाऐंगे।
पढे ग्रंथ ही काम आऐंगे।
छोड़ चलें हम ये जग सारा,
वेद पुराण सुकाम आऐंगे।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*पुस्तक/किताब*
काव्य
पुस्तक अपनी विधाता।
संस्कार संस्कृति प्रदाता।
जीवन के हर पहलू में,
मानव की सचशुभ दाता।
पठन पाठन शुभ कर्म।
मानव जीवन का धर्म।
पुस्तक ग्रंथ पुराण दर्शन,
मनुजता मानवीय मर्म।
पुस्तक सुन्दर मनमीत।
पढ़ें पढाऐं ये मनजीत।
सबसे बड़ा अपना मित्र
हमें जोड़ बताऐ प्रीत।
हम आत्मावलोकन करें।
गहन अध्ययन मनन करें।
मनमानस में हो उजाला,
ज्ञानपुंज सही सृजन करें।
पंख पखेरू छूट जाऐंगे।
पढे ग्रंथ ही काम आऐंगे।
छोड़ चलें हम ये जग सारा,
वेद पुराण सुकाम आऐंगे।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
आज का विषय पुस्तक या किताब
एक प्रयास कुछ हटकर समक्ष आपके
***************
तेरा दूर से देखकर मुझको
क़रीब आकर टकराना
सहसा गिरी मेरे हाथ की किताबें
घुटनों के बल तुम और में
क़िताब नज़ाकत से उठाते उठाते
लरज़ते हाथों से मुझे थमाना
एक हसरत भरी निगाह
का टकराना
वो भी ईक दौर हुआ कभी
अक्सर उस दौर को
शामिल करती हूँ सुबह की
खुशनुमा फिज़ाओं में
जहां महकती चाय की प्याली
और तेरी भोली सूरत नाज़नीन सी ,
वो किताब ही तो थी जब कई
रिश्ते बन्धनों में बंध जाते थे
हे न
सहेलियों का राज़ या बातें
किताबें माध्यम होती थी
कुछ राज किताबों में महफ़ूज
होते या कुछ सुर्ख़
महकते सूखे गुलाब
कोई प्रेम प्रदर्शित ख़त भी
महफ़ूज होता था
किसी तस्वीर ने जगह भी
पाई किताबों में ही
कोई जार् जार् मुँह छिपाकर
किताबों में तो कोई
सिने से लगाकर रोया
बड़ी अज़ीब दास्ताँ हे दोस्तों
किताबों की
मगर अब न वो किताबें
न वो पढ़ने वाले
बीते युग की कहानी हो चली
जबसे किताबें क़ैद अलमारियों
में धूल खाने लगी
क्योंकि
मचलती हे उँगलियाँ टाईप राईटर पर या कम्प्यूटर पर
और अकेला अंगूठा ठेंगा दिखाता
प्रतीत होता
उन किताबों को
जो बन्द शीशे की अलमारियों
से झांककर वज़ूद पाना
चाह रही हों
जैसे ।।
माधुरी सोनी *मधुकुंज*
एक प्रयास कुछ हटकर समक्ष आपके
***************
तेरा दूर से देखकर मुझको
क़रीब आकर टकराना
सहसा गिरी मेरे हाथ की किताबें
घुटनों के बल तुम और में
क़िताब नज़ाकत से उठाते उठाते
लरज़ते हाथों से मुझे थमाना
एक हसरत भरी निगाह
का टकराना
वो भी ईक दौर हुआ कभी
अक्सर उस दौर को
शामिल करती हूँ सुबह की
खुशनुमा फिज़ाओं में
जहां महकती चाय की प्याली
और तेरी भोली सूरत नाज़नीन सी ,
वो किताब ही तो थी जब कई
रिश्ते बन्धनों में बंध जाते थे
हे न
सहेलियों का राज़ या बातें
किताबें माध्यम होती थी
कुछ राज किताबों में महफ़ूज
होते या कुछ सुर्ख़
महकते सूखे गुलाब
कोई प्रेम प्रदर्शित ख़त भी
महफ़ूज होता था
किसी तस्वीर ने जगह भी
पाई किताबों में ही
कोई जार् जार् मुँह छिपाकर
किताबों में तो कोई
सिने से लगाकर रोया
बड़ी अज़ीब दास्ताँ हे दोस्तों
किताबों की
मगर अब न वो किताबें
न वो पढ़ने वाले
बीते युग की कहानी हो चली
जबसे किताबें क़ैद अलमारियों
में धूल खाने लगी
क्योंकि
मचलती हे उँगलियाँ टाईप राईटर पर या कम्प्यूटर पर
और अकेला अंगूठा ठेंगा दिखाता
प्रतीत होता
उन किताबों को
जो बन्द शीशे की अलमारियों
से झांककर वज़ूद पाना
चाह रही हों
जैसे ।।
माधुरी सोनी *मधुकुंज*
दिनांक 25-04-2020
विषय- किताब'/ किताबें
किताबें ज्ञान का प्रकाश है
किताबें अज्ञान का नाश है
किताबें सत्य की रक्षक है
किताबें असत्य की भक्षक है ...
किताबें आशा में ज्योति है
किताबें निराशा में मोती है
किताबें सुबुद्धि का कोश है
किताबें दुर्बुद्धि पर रोष है ...
किताबें बहती हुई नदी हैं
किताबें स्वयं में ही सदी है
किताबें विचार अभिव्यक्ति है
किताबें जीवन से अनुरक्ति है ...
किताबें संसार की दृष्टि है
किताबें विचारों की सृष्टि है
किताबें समाज की पहचान है
किताबें संस्कृति की सम्मान है...
किताबें देश का विकास है
किताबें समृद्धि का आकाश है
किताबें खुशहाली का गीत है
किताबें मधुर-मधुर संगीत है .....
किताबें युग का जयघोष है
किताबें सृजन का संतोष है
किताबें अंधकार का मारक है
किताबें जन का सुधारक है..
किताबें दुर्जनों की शत्रु हैदिनांक -25/4/20
विषय- किताब'/ किताबें
किताबें ज्ञान का प्रकाश है
किताबें अज्ञान का नाश है
किताबें सत्य की रक्षक है
किताबें असत्य की भक्षक है ...
किताबें आशा में ज्योति है
किताबें निराशा में मोती है
किताबें सुबुद्धि का कोश है
किताबें दुर्बुद्धि पर रोष है ...
किताबें बहती हुई नदी हैं
किताबें स्वयं में ही सदी है
किताबें विचार अभिव्यक्ति है
किताबें जीवन से अनुरक्ति है ...
किताबें संसार की दृष्टि है
किताबें विचारों की सृष्टि है
किताबें समाज की पहचान है
किताबें संस्कृति की सम्मान है...
किताबें देश का विकास है
किताबें समृद्धि का आकाश है
किताबें खुशहाली का गीत है
किताबें मधुर-मधुर संगीत है .....
किताबें युग का जयघोष है
किताबें सृजन का संतोष है
किताबें अंधकार का मारक है
किताबें जन का सुधारक है..
किताबें दुर्जनों की शत्रु हैदिनांक -25/4/20
विषय-किताब
ज़िंदगी की किताब
पन्ने दर पन्ने पलटती गई ज़िन्दगी ,
पार कर दौर अध्यायों का बढ़ती गई ज़िंदगी।
दौर था वो बचपन का ,
अटखेलियों और लड़कपन का।
सोचा थोड़ा और यहाँ रुक जाऊँ ,
यह रूकती कैसे ? बढ़ती और बढ़ती गई ज़िंदगी।
बचपन के कंधो ने ज्यों भार उठाया ज़िम्मेदारी का ,
सोचा की पलट दूँ बिना पढ़े इस पन्ने को ,
यह पलटता कैसे ?
कुछ सिखा कर , कुछ बना कर ही गई ज़िंदगी।
ज़िंदगी की राह में अब अध्याय आया ज़िंदगी का ,
ज़िंदगी को नई राह दिखा गई ज़िंदगी।
कंचन वर्मा
स्वरचित
नई दिल्ली
किताबें सज्जनों की मित्र है
किताबें असल में ज़िन्दगी है
किताबें ईश्वर की बंदगी है....
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
दिनांक 25 अप्रैल 2020
विषय पुस्तक किताब
किताबों की दुनिया
कितने चित्र कितनी विचित्र
इतिहास का अनोखा संसार
भूगोल के अजब गजब आकार
विज्ञान के कितने चमत्कार
किताबों की दुनिया अपार
सुना है मैने
किताबें अच्छी दोस्त होती है
वो राह दिखाती है
मंजिल को ले जाती हैं
तन्हाई की साथी होती है
जीवन सफर की सहयात्री होती है
किताबों मे
कविता है कहानियां है
नदी नाले झरने परियां है
फूलों से सुगंधित क्यारियां है
किस्मों कहानियों की सदियां है
किताबों का वृहत संसार है
खुश हैं वो जिसे किताबों से प्यार है
जज्बातों का दरियां है यहां
सुकून से जीने का जरिया है यहां
गीत है प्रीत के, जयघोष है जीत के
दास्तान है कई यहां मनमीत के
देखो तो झलक किताबों के संसार की
फलक है यह सुनहरे अहसास की
छोटे जादूगर की जादूगरी यहां
बुंदेले हरबोलो के किस्से यहां
फूलों की अभिलाषा यहां ,
तोडती पत्थर की गाथा यहां
"उसने कहा था" की प्रीत सुहानी
राणा प्रताप ,पन्ना धाय स्वाभिमानी
जज्बातों की बहती धारा है यहां
अहसासों की कोमल गाथा है यहां
कल्पना कोशिश कसक कशिश यहां
इच्छा आशा अभिलाषा गुज़ारिश यहां
चलो चलते हैं कुछ पल इस दुनिया मे
सुकून भरी इस किताबों की दुनियां मे
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय पुस्तक किताब
किताबों की दुनिया
कितने चित्र कितनी विचित्र
इतिहास का अनोखा संसार
भूगोल के अजब गजब आकार
विज्ञान के कितने चमत्कार
किताबों की दुनिया अपार
सुना है मैने
किताबें अच्छी दोस्त होती है
वो राह दिखाती है
मंजिल को ले जाती हैं
तन्हाई की साथी होती है
जीवन सफर की सहयात्री होती है
किताबों मे
कविता है कहानियां है
नदी नाले झरने परियां है
फूलों से सुगंधित क्यारियां है
किस्मों कहानियों की सदियां है
किताबों का वृहत संसार है
खुश हैं वो जिसे किताबों से प्यार है
जज्बातों का दरियां है यहां
सुकून से जीने का जरिया है यहां
गीत है प्रीत के, जयघोष है जीत के
दास्तान है कई यहां मनमीत के
देखो तो झलक किताबों के संसार की
फलक है यह सुनहरे अहसास की
छोटे जादूगर की जादूगरी यहां
बुंदेले हरबोलो के किस्से यहां
फूलों की अभिलाषा यहां ,
तोडती पत्थर की गाथा यहां
"उसने कहा था" की प्रीत सुहानी
राणा प्रताप ,पन्ना धाय स्वाभिमानी
जज्बातों की बहती धारा है यहां
अहसासों की कोमल गाथा है यहां
कल्पना कोशिश कसक कशिश यहां
इच्छा आशा अभिलाषा गुज़ारिश यहां
चलो चलते हैं कुछ पल इस दुनिया मे
सुकून भरी इस किताबों की दुनियां मे
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक 25 अप्रैल 2020
विषय पुस्तक किताब
उपवन मे खिले कुछ फूल उठा लेते हैं
आओ किताबों को अपना बना लेते है।।
ऑनलाइन मे पन्ने पलटे नही जाते
फट रही किताबों पे जिल्द चढा देते हैं ।।
कुछ शीशों मे कैद, कुछ ताक मे रखी
चलो इनको आज गले लगा लेते हैं।।
लिखा होगा किसी ने बडे इत्मीनान से
उन भावनाओं को दिल मे बसा लेते हैं।।
किताबें मुखरित होगी, वो मुस्कराएगी
दिवस इनका अविस्मरणीय बना लेते हैं।।
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय पुस्तक किताब
उपवन मे खिले कुछ फूल उठा लेते हैं
आओ किताबों को अपना बना लेते है।।
ऑनलाइन मे पन्ने पलटे नही जाते
फट रही किताबों पे जिल्द चढा देते हैं ।।
कुछ शीशों मे कैद, कुछ ताक मे रखी
चलो इनको आज गले लगा लेते हैं।।
लिखा होगा किसी ने बडे इत्मीनान से
उन भावनाओं को दिल मे बसा लेते हैं।।
किताबें मुखरित होगी, वो मुस्कराएगी
दिवस इनका अविस्मरणीय बना लेते हैं।।
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
भावों के मोती।
विषय-किताब/पुस्तक
स्वरचित।
मां प्रथम गुरु होती है पर
उस बचपन की उम्र में
हम सुनते कितना है।
सोच तो होती है ये
बड़े तो हमेशा अपना,
बड़प्पन ही झाड़ते हैं।।
तो पुस्तकें ही थी मेरी सच्ची गुरू
चाहे जो कहे कोई।
वह कुछ कहती नहीं थी
वह दिखाती थीं, सुनाती थीं
दुनिया की अजब-गजब कहानियां।।
अध्यापक तो हमारे समय में
पढ़ाई के अलावा कोई और
बात बताते ही नहीं थे
हम उनसे डरते थे या आदर करते थे
पता नहीं दोनों एक साथ गड्ड-मड्ड थे।।
पढ़ने लायक होते ही पढ़ना शुरू किया
कामिक्स, डाकुओं की कहानियां।
उस समय डाकू बहुत होते थे चंबल में,
माधव, मोहर सिंह, फूलन देवी आदि नारियां।
फिर बढ़ते बढ़ते उपन्यासों तक पहुंच गए
जासूसी से सामाजिक साहित्यिक तक बढ़ गए।
इन कहानियों,उपन्यासों की दुनिया ने
वह आसानी से समझा दिया
जो कोई और चाहकर भी न समझा पाता
और ना शायद हम समझ पाते
उस नादां बचपने में।।
प्यार मोहब्बत के धोखे,
रिश्तेदारों,पड़ोसियों की चालाकियां
मां-बाप से बिमुख होने पर
जिंदगी की बर्बादियां
और जीवन की हकीकतें।।
बचपन से ही काफी हद तक
समझदार हो गए थे हम।
दुनिया की धोखेबाजियों से
परिचित हो गए थे हम।
कभी नहीं चले फिर वह डगर
जहां संभावना थी धोखे-मक्कारी की।
रुसवाईयां होती मां-बाप की औ घरवालों की।।
वास्तव में पुस्तकें हमारी सच्ची साथी थीं
गुरु के संग संग सच्ची सलाहकार सहेली भी।
संस्कृति का परिचय कराने वाली
आत्मा को तृप्त करतीं आनंददायिनी भी।।
पुस्तकों ने हमें वह सब दिया जो
अच्छे-अच्छे ज्ञानी-ध्यानी भी
हमें बिन जप-तप दे सकते थे।
जीवन को जीने-समझने का नजरिया
समाज को समझने,जिंदगी पाने का नजरिया।
तो पुस्तके मेरे लिए एक अमूल्य धन है,
जिन्होंने मेरे जीवन को भी मूल्यवान बनाया है।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
विषय-किताब/पुस्तक
स्वरचित।
मां प्रथम गुरु होती है पर
उस बचपन की उम्र में
हम सुनते कितना है।
सोच तो होती है ये
बड़े तो हमेशा अपना,
बड़प्पन ही झाड़ते हैं।।
तो पुस्तकें ही थी मेरी सच्ची गुरू
चाहे जो कहे कोई।
वह कुछ कहती नहीं थी
वह दिखाती थीं, सुनाती थीं
दुनिया की अजब-गजब कहानियां।।
अध्यापक तो हमारे समय में
पढ़ाई के अलावा कोई और
बात बताते ही नहीं थे
हम उनसे डरते थे या आदर करते थे
पता नहीं दोनों एक साथ गड्ड-मड्ड थे।।
पढ़ने लायक होते ही पढ़ना शुरू किया
कामिक्स, डाकुओं की कहानियां।
उस समय डाकू बहुत होते थे चंबल में,
माधव, मोहर सिंह, फूलन देवी आदि नारियां।
फिर बढ़ते बढ़ते उपन्यासों तक पहुंच गए
जासूसी से सामाजिक साहित्यिक तक बढ़ गए।
इन कहानियों,उपन्यासों की दुनिया ने
वह आसानी से समझा दिया
जो कोई और चाहकर भी न समझा पाता
और ना शायद हम समझ पाते
उस नादां बचपने में।।
प्यार मोहब्बत के धोखे,
रिश्तेदारों,पड़ोसियों की चालाकियां
मां-बाप से बिमुख होने पर
जिंदगी की बर्बादियां
और जीवन की हकीकतें।।
बचपन से ही काफी हद तक
समझदार हो गए थे हम।
दुनिया की धोखेबाजियों से
परिचित हो गए थे हम।
कभी नहीं चले फिर वह डगर
जहां संभावना थी धोखे-मक्कारी की।
रुसवाईयां होती मां-बाप की औ घरवालों की।।
वास्तव में पुस्तकें हमारी सच्ची साथी थीं
गुरु के संग संग सच्ची सलाहकार सहेली भी।
संस्कृति का परिचय कराने वाली
आत्मा को तृप्त करतीं आनंददायिनी भी।।
पुस्तकों ने हमें वह सब दिया जो
अच्छे-अच्छे ज्ञानी-ध्यानी भी
हमें बिन जप-तप दे सकते थे।
जीवन को जीने-समझने का नजरिया
समाज को समझने,जिंदगी पाने का नजरिया।
तो पुस्तके मेरे लिए एक अमूल्य धन है,
जिन्होंने मेरे जीवन को भी मूल्यवान बनाया है।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
***********************************
विषय ...... पुस्तक
विधा........ चौपाई
************************************
पुस्तक पाठन कर नर नारी।
साक्षर बन पावें यश सारी।।
जो जन बचपन खेल बितायें।
वो नर अनपढ़ मूढ़ कहायें।।1।।
************************************
पुस्तक महिमा है बड़ भारी।
ज्ञान बुद्धि की उपज पुजारी।।
ग्रन्थ पाठ को जो नर गावें।
सुख संपत्ति अतिशय धन पावें।।2।
************************************
सदाचार का गुण जस भाता।
मानस जग मे वो यश पाता।।
शील ज्ञान पाया अति वीरा।
हरे ताप मानव दुख पीरा।।3।।
************************************
गुण अवगुण का भेद सिखायें।
नीति रीति का पाठ बनायें।।
सफल करें जो कर्म निभायें।
धर्म मार्ग का राह बतायें।।4।।
************************************
पुस्तक वाचन कर लो भाई।
प्रथा सनातन से चली आई।।
ज्ञान मान मानक रघुराई।
प्रीति पुरातन नीति बुझाई।।5।।
************************************
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास 'आस'*
भाटापारा छ.ग.
विषय ...... पुस्तक
विधा........ चौपाई
************************************
पुस्तक पाठन कर नर नारी।
साक्षर बन पावें यश सारी।।
जो जन बचपन खेल बितायें।
वो नर अनपढ़ मूढ़ कहायें।।1।।
************************************
पुस्तक महिमा है बड़ भारी।
ज्ञान बुद्धि की उपज पुजारी।।
ग्रन्थ पाठ को जो नर गावें।
सुख संपत्ति अतिशय धन पावें।।2।
************************************
सदाचार का गुण जस भाता।
मानस जग मे वो यश पाता।।
शील ज्ञान पाया अति वीरा।
हरे ताप मानव दुख पीरा।।3।।
************************************
गुण अवगुण का भेद सिखायें।
नीति रीति का पाठ बनायें।।
सफल करें जो कर्म निभायें।
धर्म मार्ग का राह बतायें।।4।।
************************************
पुस्तक वाचन कर लो भाई।
प्रथा सनातन से चली आई।।
ज्ञान मान मानक रघुराई।
प्रीति पुरातन नीति बुझाई।।5।।
************************************
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास 'आस'*
भाटापारा छ.ग.
25 अप्रैल 2020
शीर्षक किताब
दोहा मुक्तक
1 किताब
अनुशासन है फौज में, जीवन खुली किताब।
हर मौसम की मार में , गोली करे हिसाब।।
दुश्मन से लड़ते रहे, रखी हथेली जान.
रक्षा करते देश की, मिलते तभी खिताब।।
2 किताब
मेधावी बनते तभी, पढ़ना खूब जनाब।
सोचो उत्तर प्रश्न का, देना तभी जवाब।
जिसको जैसा चाहिए, मिलता है संज्ञान
संचित ज्ञान लिखा हुआ , उसका नाम किताब।
स्वरचित
केशरीसिंह रघुवंशी हंस
शीर्षक किताब
दोहा मुक्तक
1 किताब
अनुशासन है फौज में, जीवन खुली किताब।
हर मौसम की मार में , गोली करे हिसाब।।
दुश्मन से लड़ते रहे, रखी हथेली जान.
रक्षा करते देश की, मिलते तभी खिताब।।
2 किताब
मेधावी बनते तभी, पढ़ना खूब जनाब।
सोचो उत्तर प्रश्न का, देना तभी जवाब।
जिसको जैसा चाहिए, मिलता है संज्ञान
संचित ज्ञान लिखा हुआ , उसका नाम किताब।
स्वरचित
केशरीसिंह रघुवंशी हंस
25.4.2020
शनिवार
आज का शीर्षक
“ पुस्तक/किताब
विधा - ग़ज़ल
किताब
मेरी ज़िन्दगी,इक किताब है
मेरे रहगुज़र का ,हिसाब है ।।
इसे आंकना कम, मत कभी
हर सवाल का ,ये जवाब है।।
मेरे रंज़ो-ग़म,मेरे दु:ख-ख़ुशी
मेरी साँस का ही,सवाब है ।।
कभी आस है, कभी प्यास ह
कभी आँसुओं का,सैलाब है।।
मेरा मन जो बढ़ कर,बड़ा हुआ
ये’उदार’ ही, मेरा ख़िताब है । ।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
शनिवार
आज का शीर्षक
“ पुस्तक/किताब
विधा - ग़ज़ल
किताब
मेरी ज़िन्दगी,इक किताब है
मेरे रहगुज़र का ,हिसाब है ।।
इसे आंकना कम, मत कभी
हर सवाल का ,ये जवाब है।।
मेरे रंज़ो-ग़म,मेरे दु:ख-ख़ुशी
मेरी साँस का ही,सवाब है ।।
कभी आस है, कभी प्यास ह
कभी आँसुओं का,सैलाब है।।
मेरा मन जो बढ़ कर,बड़ा हुआ
ये’उदार’ ही, मेरा ख़िताब है । ।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
25/4/2020
बिषय पुस्तक, किताब
मेरे दिल की किताब में बहुत कुछ लिखा है
जो आज तक कभी मुंह से न कहा है
मेरे अंतर्मन में अनकही बातें दफन हैं
जो कि संग मेरे हो जाएंगी दहन हैं
पुस्तक की भांति खोलकर पढ़ लेतीं हूँ
तिजोरी की भांति पुनः बंद कर देती हूँ
उसको ही पढ़ाउंगी जो इन नयनों का नूर है
मेरी अर्चना आराधना उनको मंजूर है
उनके चरणों में बैठ पन्ने खोल खोल दिखाऊंगी
दुख सुख पढ़ पढ़ गीत गुनगुनाऊंगी
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
बिषय पुस्तक, किताब
मेरे दिल की किताब में बहुत कुछ लिखा है
जो आज तक कभी मुंह से न कहा है
मेरे अंतर्मन में अनकही बातें दफन हैं
जो कि संग मेरे हो जाएंगी दहन हैं
पुस्तक की भांति खोलकर पढ़ लेतीं हूँ
तिजोरी की भांति पुनः बंद कर देती हूँ
उसको ही पढ़ाउंगी जो इन नयनों का नूर है
मेरी अर्चना आराधना उनको मंजूर है
उनके चरणों में बैठ पन्ने खोल खोल दिखाऊंगी
दुख सुख पढ़ पढ़ गीत गुनगुनाऊंगी
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
नमन मंच
दिनांक- २५-४-२०
विषय- पुस्तक/किताब
विधा- हाइकु
**************************
दें ज्ञान पुंज
जीवन में रौनक
प्रकाशमान।।
रचनाकार
जीवन सुखमय
करे पाठ जो।।
पुस्तक प्रेमी
नए पुस्तक पढ़ें
सृजन करें।।
ज्ञान भंडार
दें अनेक विचार
पुस्तक हमें।।
जग में दूजा
नहीं सम इसके
परम मित्र।।
लगनशील
गहन अध्ययन
सफल बनें।।
प्रवाहमान
मित्रवत समान
बनें इंसान।।
स्वरचित एवं मौलिक
दिनांक- २५-४-२०
विषय- पुस्तक/किताब
विधा- हाइकु
**************************
दें ज्ञान पुंज
जीवन में रौनक
प्रकाशमान।।
रचनाकार
जीवन सुखमय
करे पाठ जो।।
पुस्तक प्रेमी
नए पुस्तक पढ़ें
सृजन करें।।
ज्ञान भंडार
दें अनेक विचार
पुस्तक हमें।।
जग में दूजा
नहीं सम इसके
परम मित्र।।
लगनशील
गहन अध्ययन
सफल बनें।।
प्रवाहमान
मित्रवत समान
बनें इंसान।।
स्वरचित एवं मौलिक
शीर्षक-किताब
विधा-कविता
किताब
गुरुओं की गुरु है ये,
आचार्यों की है आचार्य।
हर एक को दिया है ज्ञान,
चाहे आर्य हो या अनार्य।
जीवन मार्ग करती है प्रशस्त, टूटता मनोबल करती है सशक्त।
अज्ञान के तम में दीया है,
भ्रांति को यथार्थ से जीया है।
रूढ़ीवादी दासता से दिलाती है मुक्ति,
कैसी भी हो उलझन,देती है युक्ति।
फूलों सी कोमलता,इत्र सा पसराव।
बूझो तो कौन!!!
जीवन की सच्ची साथी किताब😊।
स्वरचित सरिता 'विधुरश्मि'
विधा-कविता
किताब
गुरुओं की गुरु है ये,
आचार्यों की है आचार्य।
हर एक को दिया है ज्ञान,
चाहे आर्य हो या अनार्य।
जीवन मार्ग करती है प्रशस्त, टूटता मनोबल करती है सशक्त।
अज्ञान के तम में दीया है,
भ्रांति को यथार्थ से जीया है।
रूढ़ीवादी दासता से दिलाती है मुक्ति,
कैसी भी हो उलझन,देती है युक्ति।
फूलों सी कोमलता,इत्र सा पसराव।
बूझो तो कौन!!!
जीवन की सच्ची साथी किताब😊।
स्वरचित सरिता 'विधुरश्मि'
दिनांक- 25/04 2020
विषय-पुस्तक/ किताब
————————-
शीर्षक- पुस्तकें
——————-
*जहाँ में मान बढ़ाती हैं पुस्तकें
पियूष ज्ञान का बहाती हैं पुस्तकें
प्रकट हुए थे वेद पुस्तक के रूप में
तभी से ज्ञान स्रोत कहलाती पुस्तकें
*प्यास ज्ञान की बुझाती हैं पुस्तकें
प्रखर बुद्धि हमें बनाती हैं पुस्तकें
किताब सा जहाँ में कोई दोस्त नहीं
कृपा से शारदे की भाती हैं पुस्तकें
*तिमिर अज्ञान का मिटाती हैं पुस्तकें
प्रकाश ज्ञान का जगाती हैं पुस्तकें
अमृत-पयोधि पुस्तकों को कृती नमन
सबक़ सभी हमें सिखाती हैं पुस्तकें
📝 वेदस्मृति ‘कृती’
स्वरचित.
ऐसी पुस्तक हो अनोखी
पुस्तक में ही हों बहुत सी पोथी
पुस्तक ही पुस्तकालय बन जाये
जो भी विषय मन को भाये
वही पुस्तक सामने आ जाये
चलचित्र भी उसमें आ जायें
मनपसंद पृष्ठों से
अपनी पुस्तक स्वयं बनायें
चौबीस घण्टे, सातों दिन
पुस्तकालय खुला रहे
जब चाहे
सभी मित्र एक दूसरे
को बुला रहे
ऐसी पुस्तक वास्तव में आ जाये
तो कितना आनन्द आ जाये
ऐसी पुस्तक अब हो चुकी है आम
बताओ बताओ क्या है उसका नाम
स्वरचित
मीना कुमारी
25/04/2020
पुस्तक में ही हों बहुत सी पोथी
पुस्तक ही पुस्तकालय बन जाये
जो भी विषय मन को भाये
वही पुस्तक सामने आ जाये
चलचित्र भी उसमें आ जायें
मनपसंद पृष्ठों से
अपनी पुस्तक स्वयं बनायें
चौबीस घण्टे, सातों दिन
पुस्तकालय खुला रहे
जब चाहे
सभी मित्र एक दूसरे
को बुला रहे
ऐसी पुस्तक वास्तव में आ जाये
तो कितना आनन्द आ जाये
ऐसी पुस्तक अब हो चुकी है आम
बताओ बताओ क्या है उसका नाम
स्वरचित
मीना कुमारी
25/04/2020
पुस्तक/किताब
विधा मुक्तक
***
किताब
मुक्तक
1)
गुणी जनों ने लिख दिये ,कितने सुंदर तथ्य।
कड़ा परिश्रम जानिये,लिखा हुआ जो कथ्य।
आहुति देते ज्ञान की,बनती एक किताब ,
आत्मसात कर तथ्य का ,करें अनुसरण पथ्य ।।
2)
रही किताबें साथ में ,बन कर उत्तम मित्र।
भरें ज्ञान भंडार ये ,लिये जगत का इत्र ।
इनका महत्व जान के,पढ़िए नैतिक पाठ ,
गीता ,मानस से सजे ,सुंदर जीवन चित्र ।
3)
जीवन ऐसा ही रहा ,जैसे खुली किताब,
प्रश्नों के फिर क्यों नहीं,अब तक मिले जवाब।
अर्पण सब कुछ कर दिया,होती जीवन साँझ,
सुलझ न पायी जिंदगी,ओढ़े रही नकाब।
4)
पुस्तक के ही पृष्ठ में,स्मृतियाँ मीठी शेष ।
प्रेम चिन्ह संचित रखे,विस्मृत नहीँ निमेष ।
वो किताब जब भी पढ़ी,मिलते सुर्ख गुलाब,
खड़े सामने तुम हुए ,रखे पुराना भेष ।।
5)
काल आधुनिक हो गया,बात बड़ी गंभीर ।
कमी समय की हो गयी ,नहीं बचा अब धीर।
पढ़ते अधुना यंत्र से ,छूते नहीं किताब ,
समाधान अब ढूँढिये,मन में उठती पीर ।
अनिता सुधीर आख्या
विधा मुक्तक
***
किताब
मुक्तक
1)
गुणी जनों ने लिख दिये ,कितने सुंदर तथ्य।
कड़ा परिश्रम जानिये,लिखा हुआ जो कथ्य।
आहुति देते ज्ञान की,बनती एक किताब ,
आत्मसात कर तथ्य का ,करें अनुसरण पथ्य ।।
2)
रही किताबें साथ में ,बन कर उत्तम मित्र।
भरें ज्ञान भंडार ये ,लिये जगत का इत्र ।
इनका महत्व जान के,पढ़िए नैतिक पाठ ,
गीता ,मानस से सजे ,सुंदर जीवन चित्र ।
3)
जीवन ऐसा ही रहा ,जैसे खुली किताब,
प्रश्नों के फिर क्यों नहीं,अब तक मिले जवाब।
अर्पण सब कुछ कर दिया,होती जीवन साँझ,
सुलझ न पायी जिंदगी,ओढ़े रही नकाब।
4)
पुस्तक के ही पृष्ठ में,स्मृतियाँ मीठी शेष ।
प्रेम चिन्ह संचित रखे,विस्मृत नहीँ निमेष ।
वो किताब जब भी पढ़ी,मिलते सुर्ख गुलाब,
खड़े सामने तुम हुए ,रखे पुराना भेष ।।
5)
काल आधुनिक हो गया,बात बड़ी गंभीर ।
कमी समय की हो गयी ,नहीं बचा अब धीर।
पढ़ते अधुना यंत्र से ,छूते नहीं किताब ,
समाधान अब ढूँढिये,मन में उठती पीर ।
अनिता सुधीर आख्या
विषय - पुस्तक / किताब
पुस्तक की यारीज्ञान बढ़ाती सारी
मान दिलाती जगत
ज्ञान का भंडार जो सम्भाले
धनवन ख़ुद भोगे
ज्ञान ख़रीद ना पाए
सुख साधन धन संग
पूजे ना जग में कोई
दान ज्ञान करो
पुस्तक प्रचार करो
शिक्षित कर समाज
नए देश निर्माण करो
अज्ञानता बडी ख़राब
अंधकार में जीवन
अर्थ ज्ञान कहा होवे
निज स्वार्थ सब साधे
पुस्तक बना मित्र
सँवारे ले कल
पढ़े लिखे सर्वत्र
मान पाए ख़ूब
स्वरचित- सीमा पासवान
पुस्तक की यारीज्ञान बढ़ाती सारी
मान दिलाती जगत
ज्ञान का भंडार जो सम्भाले
धनवन ख़ुद भोगे
ज्ञान ख़रीद ना पाए
सुख साधन धन संग
पूजे ना जग में कोई
दान ज्ञान करो
पुस्तक प्रचार करो
शिक्षित कर समाज
नए देश निर्माण करो
अज्ञानता बडी ख़राब
अंधकार में जीवन
अर्थ ज्ञान कहा होवे
निज स्वार्थ सब साधे
पुस्तक बना मित्र
सँवारे ले कल
पढ़े लिखे सर्वत्र
मान पाए ख़ूब
स्वरचित- सीमा पासवान
दिनांक 25-4 -2020
विषय:- पुस्तक / किताब
विधा :-कविता
कोरे कागज पर
ज्ञान के अक्षरों से,
मुद्रित शब्दों को ,
प्रकाशित करते हुए,
वाक्य बनाती है|
सब को पढ़ाती है|
सब को समझाती है |
साक्षर बनाती है |
सबको ज्ञान का प्रकाश ,
पहुंचाती है ,
नाना प्रकार के,
विद्वान बनाती है |
जीवन के हर क्षेत्र में,
विद्वता का शिखर है |
सीढ़ी दर सीढ़ी यह किताब ही,
विद्यार्थी को उनकी मंजिलों,
पर पहुचातीहै|
याद कीजिए आपको ,
सबसे पहले ,
किसने किताब दी थी ?
बताया था की यह किताब है|
और आपने जाना ,
कि यह किताब है|
मेरा विश्वास है की निश्चित,
ही वहविभूति मां |
या पिता रहे होंगे |
उन्होंने ने ही बताया होगा|
उन्होंने ने ही समझाया होगा|
किताब हमें धार्मिक बनाती है |
हमारे अंदर आस्था के बीज होती है |
हमें आस्तिक बनाती है |
हमें जीना सिखाती है|
हमें यह बताती है कि ,
हम प्रकृति कीसबसे महत्वपूर्ण ,
संरचना --मानव हैं|
यदि किताब न होती ,
तो इतिहास होता, भूगोल होता,
ज्ञान होता, विज्ञान होता ,
पर बताने वाला कोई नहीं होता,
क्योंकि यह सब बताती है ,
किताब
सिर्फ और सिर्फ
किताब|
मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
विषय:- पुस्तक / किताब
विधा :-कविता
कोरे कागज पर
ज्ञान के अक्षरों से,
मुद्रित शब्दों को ,
प्रकाशित करते हुए,
वाक्य बनाती है|
सब को पढ़ाती है|
सब को समझाती है |
साक्षर बनाती है |
सबको ज्ञान का प्रकाश ,
पहुंचाती है ,
नाना प्रकार के,
विद्वान बनाती है |
जीवन के हर क्षेत्र में,
विद्वता का शिखर है |
सीढ़ी दर सीढ़ी यह किताब ही,
विद्यार्थी को उनकी मंजिलों,
पर पहुचातीहै|
याद कीजिए आपको ,
सबसे पहले ,
किसने किताब दी थी ?
बताया था की यह किताब है|
और आपने जाना ,
कि यह किताब है|
मेरा विश्वास है की निश्चित,
ही वहविभूति मां |
या पिता रहे होंगे |
उन्होंने ने ही बताया होगा|
उन्होंने ने ही समझाया होगा|
किताब हमें धार्मिक बनाती है |
हमारे अंदर आस्था के बीज होती है |
हमें आस्तिक बनाती है |
हमें जीना सिखाती है|
हमें यह बताती है कि ,
हम प्रकृति कीसबसे महत्वपूर्ण ,
संरचना --मानव हैं|
यदि किताब न होती ,
तो इतिहास होता, भूगोल होता,
ज्ञान होता, विज्ञान होता ,
पर बताने वाला कोई नहीं होता,
क्योंकि यह सब बताती है ,
किताब
सिर्फ और सिर्फ
किताब|
मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
विषय - पुस्तक/किताब
25/04/20
शनिवार
कविता
बड़ी मनभावनी है पुस्तकों के ज्ञान की दुनिया ,
दिखाती मौन रहकर भी हमें विज्ञानं की दुनिया।
हमें ये मूक होकर पाठ जीवन का पढ़ाती हैं ,
हमारी हर समस्या का सदा ये हल बताती हैं।
इन्हीं में स्वर्ण -अक्षर से लिखी हैं वीरगाथाएँ,
जो हमको राष्ट्र के गौरव से भी परिचित कराती है।
ये हमको कल्पना के लोक में विचरण कराती हैं ,
कथा -कविता से मन में नव -तरंगों को जगाती हैं।
अगर हम पुस्तकों के अध्ययन में मग्न हो जाएँ ,
तो फिर एकांतऔर कुंठा का अनुभव हो नहीं पाए।
यही सुंदर ,सुसंस्कृत ,शुभ -विचारों को सँजोती हैं ,
यही एकांत में मानव की सच्ची मित्र होती हैं।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
25/04/20
शनिवार
कविता
बड़ी मनभावनी है पुस्तकों के ज्ञान की दुनिया ,
दिखाती मौन रहकर भी हमें विज्ञानं की दुनिया।
हमें ये मूक होकर पाठ जीवन का पढ़ाती हैं ,
हमारी हर समस्या का सदा ये हल बताती हैं।
इन्हीं में स्वर्ण -अक्षर से लिखी हैं वीरगाथाएँ,
जो हमको राष्ट्र के गौरव से भी परिचित कराती है।
ये हमको कल्पना के लोक में विचरण कराती हैं ,
कथा -कविता से मन में नव -तरंगों को जगाती हैं।
अगर हम पुस्तकों के अध्ययन में मग्न हो जाएँ ,
तो फिर एकांतऔर कुंठा का अनुभव हो नहीं पाए।
यही सुंदर ,सुसंस्कृत ,शुभ -विचारों को सँजोती हैं ,
यही एकांत में मानव की सच्ची मित्र होती हैं।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक- 25/4 /2020
विषय- पुस्तक /किताब
वीणा वादिनी मां सरस्वती
बसती है हर पुस्तक में ।
पुस्तक पढ़कर हर मानव
बनता है ज्ञानी जीवन में।
पुस्तक से गीता का ज्ञान ,
मिलता है रामायण का ।
वेद उपनिषदों का ज्ञान ,
मिलता है ज्ञान पुराणों का ।
पुस्तक है सुख-दुख की साथी
साथी है जीवन पथ की ।
ज्ञान का भंडार भरा है ,
इतिहास बताती सदियों की।
अंधकार को दूर भगाकर ,
प्रकाश की किरण फैलाए ।
शून्य से लेकर शिखर तक
पुस्तक ही पहुंचाए .....।
वेद ग्रंथों को पढ़ -पढ़ कर ,
मानव बनता है पांडित्य।
पुस्तक पढ़ने के लिए ही ,
जाता गुरुओं के सानिध्य ।
जीवन में पुस्तक भर उजाला
संसार को प्रकाशित करती है।
पुस्तक ही मानव को,
धरा से अंतरिक्ष पहुंचाती है।
सुप्त संवेदना को जगाती ,
जीवन का सार है पुस्तक।
सूने उपवन को महकाती
मानव को पूर्ण बनाती पुस्तक।।
स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
विषय- पुस्तक /किताब
वीणा वादिनी मां सरस्वती
बसती है हर पुस्तक में ।
पुस्तक पढ़कर हर मानव
बनता है ज्ञानी जीवन में।
पुस्तक से गीता का ज्ञान ,
मिलता है रामायण का ।
वेद उपनिषदों का ज्ञान ,
मिलता है ज्ञान पुराणों का ।
पुस्तक है सुख-दुख की साथी
साथी है जीवन पथ की ।
ज्ञान का भंडार भरा है ,
इतिहास बताती सदियों की।
अंधकार को दूर भगाकर ,
प्रकाश की किरण फैलाए ।
शून्य से लेकर शिखर तक
पुस्तक ही पहुंचाए .....।
वेद ग्रंथों को पढ़ -पढ़ कर ,
मानव बनता है पांडित्य।
पुस्तक पढ़ने के लिए ही ,
जाता गुरुओं के सानिध्य ।
जीवन में पुस्तक भर उजाला
संसार को प्रकाशित करती है।
पुस्तक ही मानव को,
धरा से अंतरिक्ष पहुंचाती है।
सुप्त संवेदना को जगाती ,
जीवन का सार है पुस्तक।
सूने उपवन को महकाती
मानव को पूर्ण बनाती पुस्तक।।
स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
II पुस्तक / किताब II नमन भावों के मोती.....
विधा: मुक्त काव्य...
वो एक टक मुझे मैं उसे....
देख रहा था....
मेरे चहरे पर....
वो अपनी निगाहों से...
कोशिश कर रहा था...
कुछ लिखने की...
मैं...
बिना पन्ने बदले किताब के जैसे...
उसकी स्थिर आँखों को...
पढ़ने की हिम्मत जुटा रहा था...
वक़्त बदल जाता है पल में ही...
और हम २ साल में....
जो एक जान थे कभी...
अब अनजान हो गए....
शायद...
गले...सड़े पुराने पन्नों से निकलती गैस से...
दोनों का दम घुट रहा था...
चहरे की किताब पर...
न आँखों की स्याही ने कुछ लिखा...
न लब के पन्ने ही खुले...
हाँ...वक़्त ने पन्ने अलग कर...
एक किताब के...
दो किताबों के कर दिए...
मैं... तुम...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२५.०४.२०२०
विधा: मुक्त काव्य...
वो एक टक मुझे मैं उसे....
देख रहा था....
मेरे चहरे पर....
वो अपनी निगाहों से...
कोशिश कर रहा था...
कुछ लिखने की...
मैं...
बिना पन्ने बदले किताब के जैसे...
उसकी स्थिर आँखों को...
पढ़ने की हिम्मत जुटा रहा था...
वक़्त बदल जाता है पल में ही...
और हम २ साल में....
जो एक जान थे कभी...
अब अनजान हो गए....
शायद...
गले...सड़े पुराने पन्नों से निकलती गैस से...
दोनों का दम घुट रहा था...
चहरे की किताब पर...
न आँखों की स्याही ने कुछ लिखा...
न लब के पन्ने ही खुले...
हाँ...वक़्त ने पन्ने अलग कर...
एक किताब के...
दो किताबों के कर दिए...
मैं... तुम...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२५.०४.२०२०
II पुस्तक / किताब 2 II नमन भावों के मोती....
विधा: मुक्त काव्य....
दूर दूर तक धूम थी...
उस किताब की....
नाम था...
"खुश रहने का तरीका"...
मेरे दोस्त ने भी खरीदी थी...
और जब से खरीदी थी...
सच में वो बदल गया था...
पहले से खुश था...
मैंने पूछा क्या लिखा उसमें...
कुछ नहीं बस चार पंक्तियाँ...
मुझे यकीन नहीं हुआ...
बहुत गुस्सा आया सोच कर कि..
वो झूट बोल रहा है...
मैंने किताब खरीदी...
लिखा था उसमें...
"ज़िन्दगी में कुछ भी हो जाए...
अपने या दूसरे का बुरा या अच्छा...
अपने पे ग्लानि और दूसरों पे क्रोध...मत करो...
कल था नहीं...आज रहेगा नहीं...कल आएगा नहीं..."
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२५.०४.२०२०
विधा: मुक्त काव्य....
दूर दूर तक धूम थी...
उस किताब की....
नाम था...
"खुश रहने का तरीका"...
मेरे दोस्त ने भी खरीदी थी...
और जब से खरीदी थी...
सच में वो बदल गया था...
पहले से खुश था...
मैंने पूछा क्या लिखा उसमें...
कुछ नहीं बस चार पंक्तियाँ...
मुझे यकीन नहीं हुआ...
बहुत गुस्सा आया सोच कर कि..
वो झूट बोल रहा है...
मैंने किताब खरीदी...
लिखा था उसमें...
"ज़िन्दगी में कुछ भी हो जाए...
अपने या दूसरे का बुरा या अच्छा...
अपने पे ग्लानि और दूसरों पे क्रोध...मत करो...
कल था नहीं...आज रहेगा नहीं...कल आएगा नहीं..."
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२५.०४.२०२०
दिनांक -२५-४-२०२०
विषय - किताबें
किताबें
जिंदगी की राह हैं
मन की पूरी होती चाह हैं ।
किताबें सुंदर पाठशाला हैं
किताबों से ही ज्ञान का उजाला है
दादी माँ की सीख है
अज्ञान की चीख है
पावस पुनीत प्रकाश है
एक विस्तृत आकाश है
अनुपम और सबसे खास है
अंधकार में उजास है
वेदों का ज्ञान है
कवियों में रसखान है
महामंत्र का बीज है
सावन की जैसे तीज है
किताबें भूत है , भविष्य हैं
गुरुओं की गुरु
और आज्ञाकारी शिष्य हैं
किसी का सपना है
जैसे कोई अपना है ।
किताबें गलियारा है
डूबते का सहारा है।
पुनीता भारद्वाज
विषय - किताबें
किताबें
जिंदगी की राह हैं
मन की पूरी होती चाह हैं ।
किताबें सुंदर पाठशाला हैं
किताबों से ही ज्ञान का उजाला है
दादी माँ की सीख है
अज्ञान की चीख है
पावस पुनीत प्रकाश है
एक विस्तृत आकाश है
अनुपम और सबसे खास है
अंधकार में उजास है
वेदों का ज्ञान है
कवियों में रसखान है
महामंत्र का बीज है
सावन की जैसे तीज है
किताबें भूत है , भविष्य हैं
गुरुओं की गुरु
और आज्ञाकारी शिष्य हैं
किसी का सपना है
जैसे कोई अपना है ।
किताबें गलियारा है
डूबते का सहारा है।
पुनीता भारद्वाज
दिनाँक25/42020/
बिषय -पुस्तक/किताब
विधा-मुक्तक काव्य
शीर्षक-पुस्तक उदास है
उदास हैं पुस्तकें आँशू बहा रही हैं
अज्ञान के अन्धकार मिटाने हेतु,
ज्ञान की ज्योति को जला रही है,
सुन्दर आवरण ओढे बुला रहीहैं,
डिजिटल उपकरणों की चकाचौंध में,
पुस्तकीय रोशनी धुधँली हुयी जारही है,
ज्ञान का खजाना पुस्तकालयों में ,वर्षो से,
लॉकडाउन को निभा कर धूल खा रहा है!
आजकल पुस्तकों का चमन खिल रहा है,
दुबका जन -मन पुस्तकों के द्वार खोलता है,
उँगलियों का स्पर्श पुस्तकों को छूये जा रहाहै,
पाठकों की गुदगुदी उनके मन को भा रही है!
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड
बिषय -पुस्तक/किताब
विधा-मुक्तक काव्य
शीर्षक-पुस्तक उदास है
उदास हैं पुस्तकें आँशू बहा रही हैं
अज्ञान के अन्धकार मिटाने हेतु,
ज्ञान की ज्योति को जला रही है,
सुन्दर आवरण ओढे बुला रहीहैं,
डिजिटल उपकरणों की चकाचौंध में,
पुस्तकीय रोशनी धुधँली हुयी जारही है,
ज्ञान का खजाना पुस्तकालयों में ,वर्षो से,
लॉकडाउन को निभा कर धूल खा रहा है!
आजकल पुस्तकों का चमन खिल रहा है,
दुबका जन -मन पुस्तकों के द्वार खोलता है,
उँगलियों का स्पर्श पुस्तकों को छूये जा रहाहै,
पाठकों की गुदगुदी उनके मन को भा रही है!
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड
25 अप्रैल 2020
विषय किताब
किताबों से यारी
है बहुत प्यारी
अकेलेपन में साथ निभाती
पूरी दुनिया की सैर कराती
घर आँगन कैसे मह्काएँ
मिलता ये किताबो से ज्ञान
नए युग का कैसेहो,निर्माण
बताता हमको ये विज्ञान
किस मर्ज़ की,क्या दवा है
कब गर्मी और कब हवा है
मिले सब किताबो से जानकारी
बहुत ही प्यारी है
किताबों से यारी
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
विषय किताब
किताबों से यारी
है बहुत प्यारी
अकेलेपन में साथ निभाती
पूरी दुनिया की सैर कराती
घर आँगन कैसे मह्काएँ
मिलता ये किताबो से ज्ञान
नए युग का कैसेहो,निर्माण
बताता हमको ये विज्ञान
किस मर्ज़ की,क्या दवा है
कब गर्मी और कब हवा है
मिले सब किताबो से जानकारी
बहुत ही प्यारी है
किताबों से यारी
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
२५.४.२०
दिन -- शनिवार
विषय -- पुस्तक
******************
मेरे कमरे के हर दराज में , मेरी मार्ग दर्शिता पुस्तक ,
मेरी राह निहारे हैं,
जब भी फुर्सत मिली ,। थकी काम से निकली ,
जाकर पुस्तक से मिली,
अपनी दिनचर्या से ,
तभी थकन है मिटती!
सदाचार और संस्कार ,
आशा का दीप जलाती,
मंजिल तक हमें ले जाती,
जिंदगी के बहुत से उलझन ,
बड़ी आसानी से यह सुलझाती,
चाहे कितनी आधुनकि हो जाए,
इलेक्ट्रॉनिक जमाना कहलाए,
पुस्तक बिना है ज्ञान अधूरा,
कभी इंटरनेट काम ना आए ,
सर्वर भी डाउन हो जाए,
कलमकार को अपनी प्रतिभा
दिखाने का अवसर हो
पुस्तक ही सब हमें दिलाए
रचना पुस्तक में छपवाना ,
लोकार्पण को समूह में जाना,
गरिमा अपनी पहचान बनाना
पुस्तक से ही संभव पाना,
धारण किया सदैव कर में ,
वीणा वादिनी ने पुस्तक ,
ज्ञान का सागर है यह ,
इसके बिना यह जीवन दुर्बल,
यह गुरु ,यह पूजनीय है,
यह समाज का आइना ,
इससे बड़ा हर मनुज का ,
ना होगा कोई गहना,
अमर हो जाते हैं वो,
लिखा गए नाम जो अपना
*************************
स्वरचित -- निवेदिता श्रीवास्तव
दिन -- शनिवार
विषय -- पुस्तक
******************
मेरे कमरे के हर दराज में , मेरी मार्ग दर्शिता पुस्तक ,
मेरी राह निहारे हैं,
जब भी फुर्सत मिली ,। थकी काम से निकली ,
जाकर पुस्तक से मिली,
अपनी दिनचर्या से ,
तभी थकन है मिटती!
सदाचार और संस्कार ,
आशा का दीप जलाती,
मंजिल तक हमें ले जाती,
जिंदगी के बहुत से उलझन ,
बड़ी आसानी से यह सुलझाती,
चाहे कितनी आधुनकि हो जाए,
इलेक्ट्रॉनिक जमाना कहलाए,
पुस्तक बिना है ज्ञान अधूरा,
कभी इंटरनेट काम ना आए ,
सर्वर भी डाउन हो जाए,
कलमकार को अपनी प्रतिभा
दिखाने का अवसर हो
पुस्तक ही सब हमें दिलाए
रचना पुस्तक में छपवाना ,
लोकार्पण को समूह में जाना,
गरिमा अपनी पहचान बनाना
पुस्तक से ही संभव पाना,
धारण किया सदैव कर में ,
वीणा वादिनी ने पुस्तक ,
ज्ञान का सागर है यह ,
इसके बिना यह जीवन दुर्बल,
यह गुरु ,यह पूजनीय है,
यह समाज का आइना ,
इससे बड़ा हर मनुज का ,
ना होगा कोई गहना,
अमर हो जाते हैं वो,
लिखा गए नाम जो अपना
*************************
स्वरचित -- निवेदिता श्रीवास्तव
25 अप्रैल 2020,शनिवार
विषय-- पुस्तक, किताब
ये
पोथी
संस्कृति
ज्ञानवान
संस्कारवान
नयन-जागृति
है मन प्रफुल्लित ।1।
तू
विज्ञ
लेखक
संगीतज्ञ
रचनाकार
कागज कलम।
समाहित पुस्तक ।2।
मैं
वृद्ध
किताब
जीर्ण शीर्ण
नजरबंद
ज्ञान की खान
संसार है आसार ।3।
ये
लेख
मानस
रामायण
महाभारत
काव्य कहानियां
सहेजे ये पुस्तक ।4।
है
सोणी
पुस्तक
बुद्धिदात्री
संकट साथी
निजी सहायिका
वीर कवितावली ।5।
स्वरचित--आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय-- पुस्तक, किताब
ये
पोथी
संस्कृति
ज्ञानवान
संस्कारवान
नयन-जागृति
है मन प्रफुल्लित ।1।
तू
विज्ञ
लेखक
संगीतज्ञ
रचनाकार
कागज कलम।
समाहित पुस्तक ।2।
मैं
वृद्ध
किताब
जीर्ण शीर्ण
नजरबंद
ज्ञान की खान
संसार है आसार ।3।
ये
लेख
मानस
रामायण
महाभारत
काव्य कहानियां
सहेजे ये पुस्तक ।4।
है
सोणी
पुस्तक
बुद्धिदात्री
संकट साथी
निजी सहायिका
वीर कवितावली ।5।
स्वरचित--आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
25/4/2020
पुस्तक/किताब
जो होती मैं किताब
सहेजी जाती दराजों में
पुरानी होती तो ज़िल्द
भी बदली जाती
फिर नए आवरण
में इतराती मै
अपने अंदर समेटे
हुए होती कुछ राज़
पूरी दुनिया ही होती उसमें
सारे किरदार भी रहते
उनके घर होते
पर कोलाहल ना होता
हलचल तो पढ़ने
वाले के अंदर होती
जैसे ही खुलती मैं
सारे किरदार बोल पड़ते
और पाठक जैसे ही
बन्द कर रखता मुझे
फिर खामोशी का
कफ़न ओढ़,बैठ
जाती मै दराज में
डॉ. शिखा
स्वरचित
पुस्तक/किताब
जो होती मैं किताब
सहेजी जाती दराजों में
पुरानी होती तो ज़िल्द
भी बदली जाती
फिर नए आवरण
में इतराती मै
अपने अंदर समेटे
हुए होती कुछ राज़
पूरी दुनिया ही होती उसमें
सारे किरदार भी रहते
उनके घर होते
पर कोलाहल ना होता
हलचल तो पढ़ने
वाले के अंदर होती
जैसे ही खुलती मैं
सारे किरदार बोल पड़ते
और पाठक जैसे ही
बन्द कर रखता मुझे
फिर खामोशी का
कफ़न ओढ़,बैठ
जाती मै दराज में
डॉ. शिखा
स्वरचित
शनिवार/25अप्रैल/2020
विषय - पुस्तक/ किताब
विधा - कविता
मेरा सबसे अच्छा साथी ,
मेरी पुस्तक मेरी थाती ।
बचपन से किताबों से दोस्ती,
पढ़ते ही नजर आते चेहरे कई ।।
कभी इतिहास कभी भूगोल,
सबसे सुन्दर रिश्ता मेरा ।
धारा प्रवाह निर्मल बहता ,
अनगिनत भाव सरिता सा ।।
जान से भी ज्यादा प्यारी,
इधर-उधर छुपाती फिरती।
आग और पानी से बचाती,
पढ़ती फिर अलमारी में रखती।
तरह तरह की किताबों से,
ज्ञान हमें मिलता .....है ।
सुभद्रा कुमारी चौहान या हों -
रामधनी सिहं दिनकर।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र या हों
मुंसी प्रेमचंद- बड़े -बड़े विद्वान
लेखकों का इतिहास हमें मिलता है।
कितना अच्छा लगता है मन को,
इन पुस्तकों में रत जाऊं .....
पर समय का अभाव है .....
जीवन में और भी काम हैं!!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद -झारखंड
विषय - पुस्तक/ किताब
विधा - कविता
मेरा सबसे अच्छा साथी ,
मेरी पुस्तक मेरी थाती ।
बचपन से किताबों से दोस्ती,
पढ़ते ही नजर आते चेहरे कई ।।
कभी इतिहास कभी भूगोल,
सबसे सुन्दर रिश्ता मेरा ।
धारा प्रवाह निर्मल बहता ,
अनगिनत भाव सरिता सा ।।
जान से भी ज्यादा प्यारी,
इधर-उधर छुपाती फिरती।
आग और पानी से बचाती,
पढ़ती फिर अलमारी में रखती।
तरह तरह की किताबों से,
ज्ञान हमें मिलता .....है ।
सुभद्रा कुमारी चौहान या हों -
रामधनी सिहं दिनकर।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र या हों
मुंसी प्रेमचंद- बड़े -बड़े विद्वान
लेखकों का इतिहास हमें मिलता है।
कितना अच्छा लगता है मन को,
इन पुस्तकों में रत जाऊं .....
पर समय का अभाव है .....
जीवन में और भी काम हैं!!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद -झारखंड
शीर्षक -किताब।पुस्तकें
दिनांक -25.4.2020
विधा ---दोहे
1.
पुस्तक जागृत देव हैं, समझे यदि इंसान।
समस्या समाधान हो, पूजा और अजान ।।
2.
श्रेष्ठ किताबों राह में, श्रेष्ठ व्यक्ति संवाद ।
मन के सारे भ्रम मिटें, मिटें समस्त प्रमाद ।।
3.
मित्र मिलें अच्छे कठिन,पुस्तक सच्ची मीत।
सही डगर दिखाय वही,तथा सिखाय सुरीत।।
4.
राह बतातीं पुस्तकें,पढ़ें यदि मन लगाय।
सही राह पर दौड़कर , जीवन ये मुस्काय।।
5.
अच्छी पुस्तक प्रेरणा, खरे मित्रक काम ।
पुस्तक अश्लील बनती, पतन सना पैगाम ।।
6
महापुरुष जीवन कथा, पढ़ने से आभास।
उनसा बनने के लिए, करता व्यक्ति प्रयास ।।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक -25.4.2020
विधा ---दोहे
1.
पुस्तक जागृत देव हैं, समझे यदि इंसान।
समस्या समाधान हो, पूजा और अजान ।।
2.
श्रेष्ठ किताबों राह में, श्रेष्ठ व्यक्ति संवाद ।
मन के सारे भ्रम मिटें, मिटें समस्त प्रमाद ।।
3.
मित्र मिलें अच्छे कठिन,पुस्तक सच्ची मीत।
सही डगर दिखाय वही,तथा सिखाय सुरीत।।
4.
राह बतातीं पुस्तकें,पढ़ें यदि मन लगाय।
सही राह पर दौड़कर , जीवन ये मुस्काय।।
5.
अच्छी पुस्तक प्रेरणा, खरे मित्रक काम ।
पुस्तक अश्लील बनती, पतन सना पैगाम ।।
6
महापुरुष जीवन कथा, पढ़ने से आभास।
उनसा बनने के लिए, करता व्यक्ति प्रयास ।।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय :- पुस्तक/किताब
ज्ञान का खजाना होती है पुस्तक
लेकिन आज पुस्तक कौन पढ़ता
नेट के युग मे इन्हें कौन खरीदता
लोग अखबार भी नहीं मंगवाते
सब तकनीकी का कमाल है
लोग अमेजन पर बुक खरीदते
तरीका थोड़ा बदल गया है
पहले किताबों को लोग पढ़ते
उपन्यास हाथ मे पकड़े पकड़े
रातों को नींद आ जाती पढ़ते
लेकिन परिवर्तन हुआ ई बुक
बस ई बुक पढ़ना समीक्षा करना
अब घर की टांड खाली है जो
कभी पुस्तकों से भरी रहती थी
बारिश में दीमक लग जाती थी
धूप में सुखाकर घण्टो पढ़ते
दिनकर बच्चन निराला महादेवी
ये किताबें अनमोल बचाकर रखते
पुस्तकें मांगकर लोग ले जाते
लेकिन पढ़कर कभी न देते
इतनी कीमत समझते वो लोग
आज बच्चे कहते क्या जरूरत
नेट पर सर्च करो देश विदेश के
सभी लेखक खूब पढो मुफ्त में
आज पुस्तकों की दुनिया बदली
संस्कार सभ्यता बदली बदली है
धर्मग्रन्थ पर सजाकर नहीं रखते
बल्कि मोबाइल पर पढ़ते है बच्चे
टी वी पर रोज रामायण देखते
चित्रकथा पुस्तक अब नहीं लेते
ज्ञान विज्ञान चरित्र निर्माम करती
ये अनमोल पुस्तकें खूब पढो
महावीर गौतम कौटिल्य बनो
विदुर नीति चाणक्य नीति से
गीता से निष्काम कर्म सीखो
ये सब कौन सिखाता पुस्तकें
डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
भवानीमंडी
ज्ञान का खजाना होती है पुस्तक
लेकिन आज पुस्तक कौन पढ़ता
नेट के युग मे इन्हें कौन खरीदता
लोग अखबार भी नहीं मंगवाते
सब तकनीकी का कमाल है
लोग अमेजन पर बुक खरीदते
तरीका थोड़ा बदल गया है
पहले किताबों को लोग पढ़ते
उपन्यास हाथ मे पकड़े पकड़े
रातों को नींद आ जाती पढ़ते
लेकिन परिवर्तन हुआ ई बुक
बस ई बुक पढ़ना समीक्षा करना
अब घर की टांड खाली है जो
कभी पुस्तकों से भरी रहती थी
बारिश में दीमक लग जाती थी
धूप में सुखाकर घण्टो पढ़ते
दिनकर बच्चन निराला महादेवी
ये किताबें अनमोल बचाकर रखते
पुस्तकें मांगकर लोग ले जाते
लेकिन पढ़कर कभी न देते
इतनी कीमत समझते वो लोग
आज बच्चे कहते क्या जरूरत
नेट पर सर्च करो देश विदेश के
सभी लेखक खूब पढो मुफ्त में
आज पुस्तकों की दुनिया बदली
संस्कार सभ्यता बदली बदली है
धर्मग्रन्थ पर सजाकर नहीं रखते
बल्कि मोबाइल पर पढ़ते है बच्चे
टी वी पर रोज रामायण देखते
चित्रकथा पुस्तक अब नहीं लेते
ज्ञान विज्ञान चरित्र निर्माम करती
ये अनमोल पुस्तकें खूब पढो
महावीर गौतम कौटिल्य बनो
विदुर नीति चाणक्य नीति से
गीता से निष्काम कर्म सीखो
ये सब कौन सिखाता पुस्तकें
डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
भवानीमंडी
दिनांक - २५/०४/२०२०
दिन - शनिवार
विषय - किताबें
--------------------------------
किताबें
ज़िंदगी का आईना हैं
पन्ने दर पन्ने
खुलती जाती है
हर्फ दर हर्फ
पढता रहता हूँ
ज़िंदगी की किताबें
जिसमें
कभी दर्द है,कभी सुकून है
कभी आँसू हैं तो,कभी खुशियां हैं
रोज़ नई कहानी है
नया तिलिस्म है
नई परिभाषा है
किताबें सवाल भी हैं और जवाब भी
रोज ही नया अफसाना है
मीत भी है, हमदम भी हैं
पथप्रदर्शक हैं किताबें
दवा है, मरहम भी हैं
ज़िंदगी किताबें हैं
किताबें ही ज़िंदगी है
ज़िंदगी का सलीका सिखलाती हैं
कभी खुद ज़िंदगी बन जाती हैं ये किताबें।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
दिन - शनिवार
विषय - किताबें
--------------------------------
किताबें
ज़िंदगी का आईना हैं
पन्ने दर पन्ने
खुलती जाती है
हर्फ दर हर्फ
पढता रहता हूँ
ज़िंदगी की किताबें
जिसमें
कभी दर्द है,कभी सुकून है
कभी आँसू हैं तो,कभी खुशियां हैं
रोज़ नई कहानी है
नया तिलिस्म है
नई परिभाषा है
किताबें सवाल भी हैं और जवाब भी
रोज ही नया अफसाना है
मीत भी है, हमदम भी हैं
पथप्रदर्शक हैं किताबें
दवा है, मरहम भी हैं
ज़िंदगी किताबें हैं
किताबें ही ज़िंदगी है
ज़िंदगी का सलीका सिखलाती हैं
कभी खुद ज़िंदगी बन जाती हैं ये किताबें।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
#भावों के #मोती
दिनांक २५/४)२०२०
विषय _पुस्तक
विद्या _कविता
पुस्तक
पुस्तक की दुनियां
बड़ी सुहानी
दादी,नानी, परियों की कहानी,
फूल ,तितली ,हवाएं,
नदियों की कहानी
सब कुछ हमें पुस्तक बतलाती।
ज्ञान, विज्ञान,वेद, ऋचाएं
कितना ज्ञान बढ़ाती है
मोबाइल कंप्यूटर, संचार का
चाहे हो कितना विस्तार,
पुस्तक की महिमा अपरम्पार।
ज्ञान बढ़ाती , संस्कृति ,
शिक्षा संस्कार देती,
पुस्तक है जीवन दायिनी
पुस्तक की दुनियां
बड़ी सुहानी।।
पुस्तक बिना ज्ञान न होगा
बिना ज्ञान नर पिशाच सम होगा ।
पुस्तक कल भी थी
आज भी है कलभीरहेगी
पुस्तक हमेशा रहेगी ।।
माधुरी मिश्र
साहित्यकार कदमा जमशेदपुर झारखंड
दिनांक २५/४)२०२०
विषय _पुस्तक
विद्या _कविता
पुस्तक
पुस्तक की दुनियां
बड़ी सुहानी
दादी,नानी, परियों की कहानी,
फूल ,तितली ,हवाएं,
नदियों की कहानी
सब कुछ हमें पुस्तक बतलाती।
ज्ञान, विज्ञान,वेद, ऋचाएं
कितना ज्ञान बढ़ाती है
मोबाइल कंप्यूटर, संचार का
चाहे हो कितना विस्तार,
पुस्तक की महिमा अपरम्पार।
ज्ञान बढ़ाती , संस्कृति ,
शिक्षा संस्कार देती,
पुस्तक है जीवन दायिनी
पुस्तक की दुनियां
बड़ी सुहानी।।
पुस्तक बिना ज्ञान न होगा
बिना ज्ञान नर पिशाच सम होगा ।
पुस्तक कल भी थी
आज भी है कलभीरहेगी
पुस्तक हमेशा रहेगी ।।
माधुरी मिश्र
साहित्यकार कदमा जमशेदपुर झारखंड
दिनांक-25-04-2020
विषय किताब /पुस्तक
पुस्तक सबसे अच्छी साथी,
सबसे सच्ची, ज्ञान बढ़ाती ।
मित्र इसे बना लें अगर हम,
कमी न ज्ञान में रह जाती ।
पुस्तक अथाह ज्ञान भंडार,
सपनों की उड़ान का संसार ।
गुणवान श्रेष्ठ यह हमें बनाए,
अज्ञानता शत्रु का करे संहार।
एकाकीपन में साथ निभाए,
जीवन की परिभाषा समझाए ।
समृद्ध कोष हर क्षेत्र जगत का,
दिशा प्रशस्त बिन कहे कराए ।
अवसाद तनाव किताब भगाती,
ज्ञान की भूख हम में जगाती ।
मां सरस्वती का निवास इसमें,
तम से प्रकाश ओर ले जाती ।
पाठक बनने का गुण भरती।
दुर्गुण हमारे दूर सब करती ।
सौ मित्रों से बेहतर है पुस्तक,
पीड़ा,वेदना मन की है हरती।
पुस्तक भूत वर्तमान जोड़ती।
अहं मद सबको यह तोड़ती ।
डूबे रहें सदा इसमें ही हम,
अज्ञानता जड़ता रुख मोड़ती।
वेद उपनिषद पुराण बखानती,
समय की यही गति पहचानती ।
साक्षर निरक्षर का भेद बताए,
ज्ञान को सर्वोपरि यह मानती।
सदा पुस्तकों का हम संग्रह करें,
ज्ञान से नहीं भूल से विग्रह करें।
अनभिज्ञ जो पुस्तक महिमा से,
अध्ययन का उनसे आग्रह करें ।
कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय किताब /पुस्तक
पुस्तक सबसे अच्छी साथी,
सबसे सच्ची, ज्ञान बढ़ाती ।
मित्र इसे बना लें अगर हम,
कमी न ज्ञान में रह जाती ।
पुस्तक अथाह ज्ञान भंडार,
सपनों की उड़ान का संसार ।
गुणवान श्रेष्ठ यह हमें बनाए,
अज्ञानता शत्रु का करे संहार।
एकाकीपन में साथ निभाए,
जीवन की परिभाषा समझाए ।
समृद्ध कोष हर क्षेत्र जगत का,
दिशा प्रशस्त बिन कहे कराए ।
अवसाद तनाव किताब भगाती,
ज्ञान की भूख हम में जगाती ।
मां सरस्वती का निवास इसमें,
तम से प्रकाश ओर ले जाती ।
पाठक बनने का गुण भरती।
दुर्गुण हमारे दूर सब करती ।
सौ मित्रों से बेहतर है पुस्तक,
पीड़ा,वेदना मन की है हरती।
पुस्तक भूत वर्तमान जोड़ती।
अहं मद सबको यह तोड़ती ।
डूबे रहें सदा इसमें ही हम,
अज्ञानता जड़ता रुख मोड़ती।
वेद उपनिषद पुराण बखानती,
समय की यही गति पहचानती ।
साक्षर निरक्षर का भेद बताए,
ज्ञान को सर्वोपरि यह मानती।
सदा पुस्तकों का हम संग्रह करें,
ज्ञान से नहीं भूल से विग्रह करें।
अनभिज्ञ जो पुस्तक महिमा से,
अध्ययन का उनसे आग्रह करें ।
कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय : किताब, पुस्तक
विधा : हाइकू
तिथि : 25.4.2020
रच किताब
जीवन इतिहास
हो लाजवाब।
ज्ञान भंडार
पुस्तकों का संसार
खोल किवाड़।
पुस्तकालय
ज्ञान का है आलय
ज्ञान निवाले।
मार्गदर्शक
किताबों का दर्शन
न प्रदर्शन।
पुस्तक मेला
समय अलबेला
ज्ञान का खेला।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विधा : हाइकू
तिथि : 25.4.2020
रच किताब
जीवन इतिहास
हो लाजवाब।
ज्ञान भंडार
पुस्तकों का संसार
खोल किवाड़।
पुस्तकालय
ज्ञान का है आलय
ज्ञान निवाले।
मार्गदर्शक
किताबों का दर्शन
न प्रदर्शन।
पुस्तक मेला
समय अलबेला
ज्ञान का खेला।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विषय- किताब
किताब
सबसे करीब होती है
सही गलत काभेद बताती
मनमीत होती है
महान चरित्र का बखान करती
सद्गुणों का गान करती
सत्य पथ की राह दिखाती
संकट में जब परछाई भी
साथ छोड़ जाती है
किताबें सच्ची मार्ग दर्शक बन
सही राह दिखलाती है |
स्वरचित मौलिक
शिवानी शुक्ला श्रद्धा'
जौनपुर उत्तर प्रदेश
किताब
सबसे करीब होती है
सही गलत काभेद बताती
मनमीत होती है
महान चरित्र का बखान करती
सद्गुणों का गान करती
सत्य पथ की राह दिखाती
संकट में जब परछाई भी
साथ छोड़ जाती है
किताबें सच्ची मार्ग दर्शक बन
सही राह दिखलाती है |
स्वरचित मौलिक
शिवानी शुक्ला श्रद्धा'
जौनपुर उत्तर प्रदेश
विषयःपुस्तक/किताब
*
पुस्तकें शुचि ग्यान का भण्डार होतीं।
श्रेष्ठ - मूल्यों के , मनोहर बीज बोतीं।
स्नेह ,ममता ,दया की,फसलें उगातीं।
एकता,सद्भाव,समता - स्वर जगातीं।
मानवी - संस्कृति - धरोहर निहित इनमें।
चेतना लौकिक-अलौकिक कलित इनमें।
माता-पिता,गुरु,प्रिया ,भाई-बहन इनमें।
मित्र-अरि, प्रतिकूल,कंटक-सुमन इनमें!!
विश्व - वैभव से बड़ा , सुख कल्पना का।
संकल्प,संशय दौर , मन की जल्पना का।
साथ पुस्तक हो , अकेलापन कहाँ है?
देखिए संसार का मेला-झमेला सब,यहाँ है।।
-डा.'शितिकंठ'
*
पुस्तकें शुचि ग्यान का भण्डार होतीं।
श्रेष्ठ - मूल्यों के , मनोहर बीज बोतीं।
स्नेह ,ममता ,दया की,फसलें उगातीं।
एकता,सद्भाव,समता - स्वर जगातीं।
मानवी - संस्कृति - धरोहर निहित इनमें।
चेतना लौकिक-अलौकिक कलित इनमें।
माता-पिता,गुरु,प्रिया ,भाई-बहन इनमें।
मित्र-अरि, प्रतिकूल,कंटक-सुमन इनमें!!
विश्व - वैभव से बड़ा , सुख कल्पना का।
संकल्प,संशय दौर , मन की जल्पना का।
साथ पुस्तक हो , अकेलापन कहाँ है?
देखिए संसार का मेला-झमेला सब,यहाँ है।।
-डा.'शितिकंठ'
२५/४/२०२०
बिषय-पुस्तक/किताब
पुस्तक हमसफ़र हमसाया ,
ज्ञान का अमृत पिलाती,
जीने की राह बतलाती,
कभी वाणी की बन मिठास,
नफ़रत की दीवार गिराती।
स्नेह प्यार के अहसासों को ,
शिद्दत से जीवंत कर जाती।
हर सवालों का जवाब बन ,
समस्याओं का निदान कराती।
सभ्यता का रूप बनी फिर,
संस्कारों की ज्योति जलाती।
गुण दोष परिभाषित कर,
खुद से खुद की पहचान कराती।
सच्ची मार्गदर्शक बनकर ,
मंज़िल तक हमें पहुँचाती।
हर रात के बाद सवेरा,
शाश्वत सत्य हमें बतलाती ।
उज्ज्वल भावों की संगिनी बन,
आशाओं से मेल कराती।
श्रेष्ठ पुस्तकों की मशाल से,
तिमिर मिटा उजास फैलायें ।
रवि किरणों की स्वर्णिम आभा
बन,जग को ज्योतित कर जायें।
,
स्वरचित
चंदा प्रहलादका
बिषय-पुस्तक/किताब
पुस्तक हमसफ़र हमसाया ,
ज्ञान का अमृत पिलाती,
जीने की राह बतलाती,
कभी वाणी की बन मिठास,
नफ़रत की दीवार गिराती।
स्नेह प्यार के अहसासों को ,
शिद्दत से जीवंत कर जाती।
हर सवालों का जवाब बन ,
समस्याओं का निदान कराती।
सभ्यता का रूप बनी फिर,
संस्कारों की ज्योति जलाती।
गुण दोष परिभाषित कर,
खुद से खुद की पहचान कराती।
सच्ची मार्गदर्शक बनकर ,
मंज़िल तक हमें पहुँचाती।
हर रात के बाद सवेरा,
शाश्वत सत्य हमें बतलाती ।
उज्ज्वल भावों की संगिनी बन,
आशाओं से मेल कराती।
श्रेष्ठ पुस्तकों की मशाल से,
तिमिर मिटा उजास फैलायें ।
रवि किरणों की स्वर्णिम आभा
बन,जग को ज्योतित कर जायें।
,
स्वरचित
चंदा प्रहलादका
तिथि-२५/४/२०
वार - शनिवार
विषय-पुस्तक/ किताब
" किताब"
यादों को बना के शब्द,
तुम्हें पास बुलाएँगें,
लिखकर तेरे नाम किताब,
भाव हम बरसाएँगें,
गमों की रोशनाई से,
पंक्तियाँ हम बनाएँगें,
सुख-दुख के इत्र से,
पन्नों को महकाएँगें,
लिखकर किताब अहसासों की,
हम अपनी दूरी मिटाएँगें,
तेरी यादों की उस किताब को,
सिने से अपने लगाएँगें,
है अहसास तेरे पास होने का,
फिर क्यों आँसू हम बहाएँगें,
हृदय में लेकर यादें तेरी,
सदा हम मुस्काएँगें।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
वार - शनिवार
विषय-पुस्तक/ किताब
" किताब"
यादों को बना के शब्द,
तुम्हें पास बुलाएँगें,
लिखकर तेरे नाम किताब,
भाव हम बरसाएँगें,
गमों की रोशनाई से,
पंक्तियाँ हम बनाएँगें,
सुख-दुख के इत्र से,
पन्नों को महकाएँगें,
लिखकर किताब अहसासों की,
हम अपनी दूरी मिटाएँगें,
तेरी यादों की उस किताब को,
सिने से अपने लगाएँगें,
है अहसास तेरे पास होने का,
फिर क्यों आँसू हम बहाएँगें,
हृदय में लेकर यादें तेरी,
सदा हम मुस्काएँगें।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
दिनांक - 25,4,2020
दिन - शनिवार
विषय - पुस्तक, किताब
गुरू, मित्र, हम राही ये,
उजास लाती जीवन में ।
मन आँगन में दुलार से,
पुस्तक प्रकाश भरती है ।
ज्ञान का भंडार पूँजी,
ज्योति यही जिंदगी की ।
पुस्तक रोशनी राह की,
देती हमें ये हर खुशी।
आइना ये आदमी का,
स्वच्छ निर्मल जल धारा।
साफ कर दे मैल मन का,
पुस्तक चमकता सितारा।
हर सहारा झूठ जैसा ,
सही सहारा किताब का।
कदम बढ़ें सही दिशा में,
खुले रास्ता विकास का।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन - शनिवार
विषय - पुस्तक, किताब
गुरू, मित्र, हम राही ये,
उजास लाती जीवन में ।
मन आँगन में दुलार से,
पुस्तक प्रकाश भरती है ।
ज्ञान का भंडार पूँजी,
ज्योति यही जिंदगी की ।
पुस्तक रोशनी राह की,
देती हमें ये हर खुशी।
आइना ये आदमी का,
स्वच्छ निर्मल जल धारा।
साफ कर दे मैल मन का,
पुस्तक चमकता सितारा।
हर सहारा झूठ जैसा ,
सही सहारा किताब का।
कदम बढ़ें सही दिशा में,
खुले रास्ता विकास का।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
विषय पुस्तक/किताब
विधा कविता
दिनाँक 25.4.2020
दिन शनिवार
पुस्तक/किताब
अपने आप ही महकता सदा जो इत्र
आजीवन बने रहता जो परम मित्र
वह ज्ञान का न ढलने वाला आफ़ताब है
जी हाँ उसे ही हम कहते यह किताब है।
पुस्तक हमें अतीत की बात बताती
यह उस समय के दृश्य उपलब्ध कराती
सारा इतिहास हमें इसमें मिलता है
हमारी सँस्कृति का पुष्प इसमें खिलता है।
ज्ञान का सागर इसमें हिलोलें भरता
हमारी उत्सुकतायें सारी पूरी करता
यह चलता फिरता वृहद ज्ञान कोष है
इसमें माँ सरस्वती का अमर उदघोष है।
किताबों में अविरल बहती धारा है
इसने हमारी सँस्कृति को सँवारा है
यह एकाकीपन को फटकने नहीं देती
हमारी ज्ञान क्षुधा को भटकने नहीं देती।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 25.4.2020
दिन शनिवार
पुस्तक/किताब
अपने आप ही महकता सदा जो इत्र
आजीवन बने रहता जो परम मित्र
वह ज्ञान का न ढलने वाला आफ़ताब है
जी हाँ उसे ही हम कहते यह किताब है।
पुस्तक हमें अतीत की बात बताती
यह उस समय के दृश्य उपलब्ध कराती
सारा इतिहास हमें इसमें मिलता है
हमारी सँस्कृति का पुष्प इसमें खिलता है।
ज्ञान का सागर इसमें हिलोलें भरता
हमारी उत्सुकतायें सारी पूरी करता
यह चलता फिरता वृहद ज्ञान कोष है
इसमें माँ सरस्वती का अमर उदघोष है।
किताबों में अविरल बहती धारा है
इसने हमारी सँस्कृति को सँवारा है
यह एकाकीपन को फटकने नहीं देती
हमारी ज्ञान क्षुधा को भटकने नहीं देती।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
वज़्न -2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
इन क़िताबों में निहां है ज़िंदगी का फ़लसफ़ा,
ये ख़मोशी से बयां करतीं सदी का फ़लसफ़ा ।
बनके ज़ीना हर बशर को जीना सिखलातीं क़ुतुब,
इनमें बातिन है बुलंदी की ख़ुशी का फ़लसफ़ा ।
है सियह लेकिन यूँ ही कब रोशनाई नाम है,
ये क़ुतुब पर दिल से लिखती रोशनी का फ़लसफ़ा ।
क्या क़िताबों से बड़ा कोई यहाँ उस्ताद है,
थाम कर उंगली सिखातीं रहबरी का फ़लसफ़ा ।
हमसफ़र बन कर सफ़र आसान करतीं रात का,
हर सफ़े पर है चमकता चांदनी का फ़लसफ़ा ।
इन क़िताबों में हैं गहरे इल्म के दरिया कई,
काश मुझ में हो हमेशा तिश्नगी का फ़लसफ़ा ।
सूफ़ियाना दिल में मेरे अब यही है 'आरज़ू',
ज़िंदगी भर मैं निभाऊं सादगी का फ़लसफ़ा ।
-अंजुमन आरज़ू © ✍
________________
ज़ीना =सीढ़ी
जीना =जीवन
ग़ज़ल
इन क़िताबों में निहां है ज़िंदगी का फ़लसफ़ा,
ये ख़मोशी से बयां करतीं सदी का फ़लसफ़ा ।
बनके ज़ीना हर बशर को जीना सिखलातीं क़ुतुब,
इनमें बातिन है बुलंदी की ख़ुशी का फ़लसफ़ा ।
है सियह लेकिन यूँ ही कब रोशनाई नाम है,
ये क़ुतुब पर दिल से लिखती रोशनी का फ़लसफ़ा ।
क्या क़िताबों से बड़ा कोई यहाँ उस्ताद है,
थाम कर उंगली सिखातीं रहबरी का फ़लसफ़ा ।
हमसफ़र बन कर सफ़र आसान करतीं रात का,
हर सफ़े पर है चमकता चांदनी का फ़लसफ़ा ।
इन क़िताबों में हैं गहरे इल्म के दरिया कई,
काश मुझ में हो हमेशा तिश्नगी का फ़लसफ़ा ।
सूफ़ियाना दिल में मेरे अब यही है 'आरज़ू',
ज़िंदगी भर मैं निभाऊं सादगी का फ़लसफ़ा ।
-अंजुमन आरज़ू © ✍
________________
ज़ीना =सीढ़ी
जीना =जीवन
किताब पुस्तक
है
जन्मजमान्तर से
पुस्तकों का
मानव से नाता
समाया है
इनमें
ज्ञान विज्ञान
है
अ ब स
शब्दों के
बिना जीवन
अधूरा
किताबों से पाया
जीवन पूरा
चारों वेद
गीता
रामायण
महाभारत
हैं
अध्यात्म
ज्ञान के भंडार
करो दोस्ती
पुस्तकों से
एकाकीपन
नहीं आयेगा
होगा जितना
साहित्य सृजन
पुस्तक भंडार
भरता जायेगा
हैं पुस्तकों का
आभार
हैं जीने का
आधार
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
है
जन्मजमान्तर से
पुस्तकों का
मानव से नाता
समाया है
इनमें
ज्ञान विज्ञान
है
अ ब स
शब्दों के
बिना जीवन
अधूरा
किताबों से पाया
जीवन पूरा
चारों वेद
गीता
रामायण
महाभारत
हैं
अध्यात्म
ज्ञान के भंडार
करो दोस्ती
पुस्तकों से
एकाकीपन
नहीं आयेगा
होगा जितना
साहित्य सृजन
पुस्तक भंडार
भरता जायेगा
हैं पुस्तकों का
आभार
हैं जीने का
आधार
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिनांक-25-4-2020
विषय-किताब/पुस्तक
ज़िंदगी एक किताब
की तरह होती है
जब पुरानी होने लगती है
तो उसकी ज़िल्द फटने लगती है
पन्ने बिखरने लगते हैं
लिखावट धुंधली होने लगती है
तब प्यार के गोंद से चिपकाकर
उसे नया कलेवर पहना दीजिये
एक एक पन्ने को सहेज कर चिपका दीजिये
तब वो फिर से नई सी संवर जाएगी
जो पढ़ने में दोगुना मज़ा देगी
कुछ लोग सिर्फ प्रस्तावना या
उपसंहार भर पढ़ते हैं
और फिर ज़िंदगी की पूरी किताब का सार समझने का दम भरते हैं
उनके इस आधे अधूरे ज्ञान के
चक्कर में कितने अध्याय छूट जाते हैं
मज़ा तो तब है
जब आप हरेक अध्याय,
हरेक पन्ना ध्यान से पढ़िये
खुद को सवालों के कटघरे में खड़ा करिए
अपने व्यक्तित्व को ज़िंदगी से बड़ा करिए
प्रतिदिन एक नया सबक लीजिए
.
जरूरी अध्याय,खास वाकियों पर
इम्पोर्टेन्ट के बुकमार्क लगा दीजिये
हर दिन इससे एक नई सीख लीजिए
इसे पढ़िये,गुनिये और आत्मसात कीजिए
गीता की तरह पवित्र ग्रंथ मान
इसे शिद्दत से पढ़ा कीजिये
सिर्फ सजावट की वस्तु समझ
अलमारी के किसी कोने में न सजा दें
बल्कि धरोहर समझ दिल के करीब
सदा रखें
ज़िंदगी को जीने का भरपूर मज़ा लीजिए.
ज़िंदगी की किताब तब ज्यादा दिन चलेगी
क्योंकि ये जिंदगी दोबारा न मिलेगी...।।
**वंदना सोलंकी*मेधा*©स्वरचित
ज़िंदगी एक किताब
की तरह होती है
जब पुरानी होने लगती है
तो उसकी ज़िल्द फटने लगती है
पन्ने बिखरने लगते हैं
लिखावट धुंधली होने लगती है
तब प्यार के गोंद से चिपकाकर
उसे नया कलेवर पहना दीजिये
एक एक पन्ने को सहेज कर चिपका दीजिये
तब वो फिर से नई सी संवर जाएगी
जो पढ़ने में दोगुना मज़ा देगी
कुछ लोग सिर्फ प्रस्तावना या
उपसंहार भर पढ़ते हैं
और फिर ज़िंदगी की पूरी किताब का सार समझने का दम भरते हैं
उनके इस आधे अधूरे ज्ञान के
चक्कर में कितने अध्याय छूट जाते हैं
मज़ा तो तब है
जब आप हरेक अध्याय,
हरेक पन्ना ध्यान से पढ़िये
खुद को सवालों के कटघरे में खड़ा करिए
अपने व्यक्तित्व को ज़िंदगी से बड़ा करिए
प्रतिदिन एक नया सबक लीजिए
.
जरूरी अध्याय,खास वाकियों पर
इम्पोर्टेन्ट के बुकमार्क लगा दीजिये
हर दिन इससे एक नई सीख लीजिए
इसे पढ़िये,गुनिये और आत्मसात कीजिए
गीता की तरह पवित्र ग्रंथ मान
इसे शिद्दत से पढ़ा कीजिये
सिर्फ सजावट की वस्तु समझ
अलमारी के किसी कोने में न सजा दें
बल्कि धरोहर समझ दिल के करीब
सदा रखें
ज़िंदगी को जीने का भरपूर मज़ा लीजिए.
ज़िंदगी की किताब तब ज्यादा दिन चलेगी
क्योंकि ये जिंदगी दोबारा न मिलेगी...।।
**वंदना सोलंकी*मेधा*©स्वरचित
दि0 : 25/04/2020
विधा :पिरामिड
विषय: पुस्तक
है
ज्ञान
पुस्तक
दी दस्तक
लगा मस्तक
पढ़ो तब तक
मनन जब तक ।
है
साथी
किताब
पढा जब
शिक्षित तब
फैली सोच अब
आशीष ढेरो रब।
ज्यो
ज्योति
पहल
हलचल
हर्षित कल
किताब चंचल
संगनी हरपल।
हे
जन
लेखन
दे चेतन
चित्र संकलन
पुस्तक प्रकाशन ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा :पिरामिड
विषय: पुस्तक
है
ज्ञान
पुस्तक
दी दस्तक
लगा मस्तक
पढ़ो तब तक
मनन जब तक ।
है
साथी
किताब
पढा जब
शिक्षित तब
फैली सोच अब
आशीष ढेरो रब।
ज्यो
ज्योति
पहल
हलचल
हर्षित कल
किताब चंचल
संगनी हरपल।
हे
जन
लेखन
दे चेतन
चित्र संकलन
पुस्तक प्रकाशन ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
भावों के मोती
आज का शीर्षक-पुस्तक/ किताब
विधा-हाइकु
**************************************
खुली किताब
है ये जीवन मेरा
पढ़ लो तुम।
*****************
जीवन जीना
सिखाती हैं किताबें
हम सबको।
*****************
जीवन राह
दिखाती हैं किताबें
हम सबको।
*****************
ये किताबें हैं
मेरा जग संसार
ज्ञान अपार।
****************
ज्ञान अपार
पुस्तकों का संसार
राह आसान।
*****************
सच्चा साथी हैं
ये किताबें हमारी
साथ निभाती।
******************
संभल कर
चलना सिखाती हैं
किताबें हमें।
******************
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर- प्रदेश।
आज का शीर्षक-पुस्तक/ किताब
विधा-हाइकु
**************************************
खुली किताब
है ये जीवन मेरा
पढ़ लो तुम।
*****************
जीवन जीना
सिखाती हैं किताबें
हम सबको।
*****************
जीवन राह
दिखाती हैं किताबें
हम सबको।
*****************
ये किताबें हैं
मेरा जग संसार
ज्ञान अपार।
****************
ज्ञान अपार
पुस्तकों का संसार
राह आसान।
*****************
सच्चा साथी हैं
ये किताबें हमारी
साथ निभाती।
******************
संभल कर
चलना सिखाती हैं
किताबें हमें।
******************
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर- प्रदेश।
25/4/2020
किताब ।
किताब मेरी सखी सी है ,
मेरा दिल बहलाती है।
तरह-तरह की बातें उसमे ,
गीत -ग़ज़ल -कविताये नगमे।
ज्ञान- विज्ञान हमे सिखाये ,
अपनी संस्कृति को बताए ।
देश- विदेश की सैर करवाती ,
घर बैठे सब कुछ पढ़ वाती ।
इसका इतिहास बहुत पुराना ,
छाल , ताम्र , से पन्नो पर सजना।
नहीं माँगती हमसे ये कुछ ,
बस कुछ पैसे देकर खरीदो।
डिजिटल में भी पहचान बनी,
लाखो दिलों के दिल में उतरी ।
जब अकेली होती हूँ ,
खोल इसे मैं पढ़ती जाती ।
अनीता मिश्रा 'सिद्धि'
दिल्ली 25 /4/2020
किताब ।
किताब मेरी सखी सी है ,
मेरा दिल बहलाती है।
तरह-तरह की बातें उसमे ,
गीत -ग़ज़ल -कविताये नगमे।
ज्ञान- विज्ञान हमे सिखाये ,
अपनी संस्कृति को बताए ।
देश- विदेश की सैर करवाती ,
घर बैठे सब कुछ पढ़ वाती ।
इसका इतिहास बहुत पुराना ,
छाल , ताम्र , से पन्नो पर सजना।
नहीं माँगती हमसे ये कुछ ,
बस कुछ पैसे देकर खरीदो।
डिजिटल में भी पहचान बनी,
लाखो दिलों के दिल में उतरी ।
जब अकेली होती हूँ ,
खोल इसे मैं पढ़ती जाती ।
अनीता मिश्रा 'सिद्धि'
दिल्ली 25 /4/2020
दिनांक २५/४/२०२०
शीर्षक -किताब।
हाइकु
१)
ज्ञान भंडार
किताब में अपार
अपनाये ये।
२)
किताब गुरु
शिष्य दुनिया सारी
मानते हम।
३)
मिटे अज्ञान
जीवन हो सरस
किताब साथी।
४)
पढ़ें किताब
मिट जाये तन्हाई
एकाकी साथी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक -किताब।
हाइकु
१)
ज्ञान भंडार
किताब में अपार
अपनाये ये।
२)
किताब गुरु
शिष्य दुनिया सारी
मानते हम।
३)
मिटे अज्ञान
जीवन हो सरस
किताब साथी।
४)
पढ़ें किताब
मिट जाये तन्हाई
एकाकी साथी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक -25/04/2020
शीर्षक -किताब
किताबें सबकी प्रिय मित्र होती हैं
वास्तव में वह जीती जागती होती हैं
इसीलिए तो याद रह जाती है,जीवन भर
मुझे याद है अपनी पहली किताब ,
जिससे अभी भी रह गया है याद
वह क से कबूतर , ख से खरगोश
अ से अनार और आ से आम ।
त से तराजू और द से दाम ।
फिर याद आती है वह किताब
वह गिलहरी और कौए की कहानी
जिसे पहली बार सुनाया था मुँहजबानी
वह चंदा की कविता ,वह महलों की रानी
किस तरह घड़े में कौए ने बढा़या था पानी
राम की वीरता , कृष्णा का रास
वह राधा का प्रेम ,वह सीता का त्याग
अशोक की महानता , वह राणा का त्याग
वह चंदामामा-चंपक,वह नंदन -पराग
ईदगाह का हामिद वह गोदान का होरी
कितनी किताबों से पकड़ी गई थी चोरी
किताबों से ही जाने जीवन के राज
जोड़ ,घटाना गुणा हो या भाग ।
जयशंकर जी की ममता ,वह बिहारी का राग
दिनकर की जोशी ,वह मीरा का त्याग ।
जाने कब किताबों ने बड़ा कर डाला
जाने कब सीखी यह जीवन की हाला ।
अब भी जीवन स्वयं किताब बन सिखा देती है
वह ही सच्ची मित्र है ,यह अब भी बता देती है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
शीर्षक -किताब
किताबें सबकी प्रिय मित्र होती हैं
वास्तव में वह जीती जागती होती हैं
इसीलिए तो याद रह जाती है,जीवन भर
मुझे याद है अपनी पहली किताब ,
जिससे अभी भी रह गया है याद
वह क से कबूतर , ख से खरगोश
अ से अनार और आ से आम ।
त से तराजू और द से दाम ।
फिर याद आती है वह किताब
वह गिलहरी और कौए की कहानी
जिसे पहली बार सुनाया था मुँहजबानी
वह चंदा की कविता ,वह महलों की रानी
किस तरह घड़े में कौए ने बढा़या था पानी
राम की वीरता , कृष्णा का रास
वह राधा का प्रेम ,वह सीता का त्याग
अशोक की महानता , वह राणा का त्याग
वह चंदामामा-चंपक,वह नंदन -पराग
ईदगाह का हामिद वह गोदान का होरी
कितनी किताबों से पकड़ी गई थी चोरी
किताबों से ही जाने जीवन के राज
जोड़ ,घटाना गुणा हो या भाग ।
जयशंकर जी की ममता ,वह बिहारी का राग
दिनकर की जोशी ,वह मीरा का त्याग ।
जाने कब किताबों ने बड़ा कर डाला
जाने कब सीखी यह जीवन की हाला ।
अब भी जीवन स्वयं किताब बन सिखा देती है
वह ही सच्ची मित्र है ,यह अब भी बता देती है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
पँख होते तो काश उड़ जाती यह किताबें
समन्दर की तरफ़,जिंदगी की तलाश में
प्यास बुझाती,भीग जाती तन-मन से
और बिखर कर अपना,वजूद छोड़ जाती।
पर तकदीर में कुछ और ही किताबों के
सड़ रही हैं एक समंदर की तलाश में
झाँक रही है बाहर की नीरस दुनिया में
शायद मिल जाए उसे कोई वजूद अपना
शायद मिल जाए उसे कोई सुकून अपना।
~परमार प्रकाश
समन्दर की तरफ़,जिंदगी की तलाश में
प्यास बुझाती,भीग जाती तन-मन से
और बिखर कर अपना,वजूद छोड़ जाती।
पर तकदीर में कुछ और ही किताबों के
सड़ रही हैं एक समंदर की तलाश में
झाँक रही है बाहर की नीरस दुनिया में
शायद मिल जाए उसे कोई वजूद अपना
शायद मिल जाए उसे कोई सुकून अपना।
~परमार प्रकाश
विषय-पुस्तक
पुस्तकें अब धूल, कैसी खा रही हैं।
भाव रद्दी के ,उठाई जा रही हैं।
जर्द चेहरा हो रहा , पुस्तक का अब-
आह !दीमक ही ,किताबें खा रही हैं।।
इस दशा को देख कर दुख हो रहा ।
क्यों भला यह देश सारा सो रहा ।
पुस्तकें क्यों लोग अब पढ़ते नहीं -
क्यों जमाना आज डिजिटल हो रहा।।
ऑन लाइन पढ़ रहे, अब लोग सब।
रात - भर पढ़ते , लगाते रोग सब ।
आज मोबाइल , बना है जिंदगी -
आज टी.वी.ही सिखाता भोग सब।।
पुस्तकों से अब , कोई नाता नहीं ।
पुस्तकालय अब, कोई जाता नहीं ।
हाथ में हरपल , मोबाइल अब रहे -
बिन मोबाइल कौर, अब भाता नहीं।।
सरिता गर्ग
पुस्तकें अब धूल, कैसी खा रही हैं।
भाव रद्दी के ,उठाई जा रही हैं।
जर्द चेहरा हो रहा , पुस्तक का अब-
आह !दीमक ही ,किताबें खा रही हैं।।
इस दशा को देख कर दुख हो रहा ।
क्यों भला यह देश सारा सो रहा ।
पुस्तकें क्यों लोग अब पढ़ते नहीं -
क्यों जमाना आज डिजिटल हो रहा।।
ऑन लाइन पढ़ रहे, अब लोग सब।
रात - भर पढ़ते , लगाते रोग सब ।
आज मोबाइल , बना है जिंदगी -
आज टी.वी.ही सिखाता भोग सब।।
पुस्तकों से अब , कोई नाता नहीं ।
पुस्तकालय अब, कोई जाता नहीं ।
हाथ में हरपल , मोबाइल अब रहे -
बिन मोबाइल कौर, अब भाता नहीं।।
सरिता गर्ग
भावों के मोती
आज का शीर्षक-पुस्तक/किताब
विधा -छंद मुक्त
पाया बहुत ही भेद
जीवन और किताब में
जो पढ़ा विस्तार में
उपहास वो संसार में
कील एक निकाल ली
अब चढ़ा देंगे सूली
समाज के हुक्मेरान सब
चैन न उनको अब
छोटा नहीं ये काम
लब पे एक नाम
मैंने नियम तोड़ दिया
हवा का रुख़ मोड़ दिया
सब्र उनको अब कहाँ
मुझ पर निशाना अब रहा
तन बंधन चिर रही
मन के भी वो प्रहरी
कैसे कोई सपना बुना !
मुझसे पहले क्या चुना ?
नींद से पहले बताओ
फ़िर कोई सपना बुलाओ
पूरी हो मेरी बात
बताओ देखोगे क्या रात
हाय ! बिडम्बना कैसी !
कुछ नहीं मुक्ति जैसी
मन का समुन्दर
भावना की नदी
झील बनी ठहरी
चिर काल से बँधी
तूफ़ान समुन्दर का
बहुत होता बड़ा
बहा ले जाएगा
नियम , किताब
जो राह में पड़ा
ग्लेशियर दिखता नहीं
पिघलता कभी
जब भी पिघला
प्लावित हुए तट सभी
मैं हूँ क्या अब मान लिया
तुमको भी तो पहचान लिया
जीवन मेरा धिक्कार है
जो पाया नहीं अधिकार है
शील , दया , ममता का गहना
नाम पे कब तक सहना
अब हार नहीं मानूँगी
कुछ करने की ठाँनूगी
कारे जल से निर्मल तक
ठहर- ठहर के अविरल तक
प्रकाश पुंज तक जाकर
मिटा अंधकार ज्योति पाकर
जब उथल पुथल हो
बस अपना सबंल हो
इतिहास रचा है क्रांति ने
ख़ुद को मिटाया भ्रांति ने
अपना बल सबल
नहीं अब कोई अबल
लाल , गुलाबी , नीले , पीले गुब्बारे
दे दो अम्मा , चाचा प्यारे
मेरी नींद मेरे सपने
लो हटा पहरे अपने
गर्म हवा से कुछ कही
नई अदा से वो बही
आने वाला है बवंडर
न बचेगा फूस - घर
हवा भी मेरे साथ है
एक के सौ हाथ है
अब बदलो वो कायदा
जिसमें मेरा न फायदा
मुहिम तो एक छिड़ गयी
हाय ! मैं तो भिड़ गयी
अनकही कितनी बातें
कह गयी चुपचाप रातें
टीस मन की कहानी
याद है मुझको जबानी
कड़वे वचन के प्रहार
अब लगे ग्रीवा हार
मन के दाग़ फ़ूल हैं
फ़ूल तो अब शूल हैं
कायदे से अब तक चली
रही सबसे मैं भली
कायदा में होती मिलावट
किताब से होती सजावट
कायदा नियम का हथियार
छीनने न पाये अधिकार
नारी का मन जाग गया
डर भी तो अब भाग गया
रच दिया अपना नियम
बना रहे अपना संयम
भूख , प्यास इच्छा कर्म
सबका हो एक धर्म
गुनाह मैंने कर दिया
नया रंग भर दिया
कल मेरा अंजाम है
सबको मेरा पैग़ाम है
मेरे अज़ीज़ ज़रूर आना
हँगामा देख फ़िर जाना
डर गये हाकिम अगर
समझो हो गया असर
-सुषमा शैली
आज का शीर्षक-पुस्तक/किताब
विधा -छंद मुक्त
पाया बहुत ही भेद
जीवन और किताब में
जो पढ़ा विस्तार में
उपहास वो संसार में
कील एक निकाल ली
अब चढ़ा देंगे सूली
समाज के हुक्मेरान सब
चैन न उनको अब
छोटा नहीं ये काम
लब पे एक नाम
मैंने नियम तोड़ दिया
हवा का रुख़ मोड़ दिया
सब्र उनको अब कहाँ
मुझ पर निशाना अब रहा
तन बंधन चिर रही
मन के भी वो प्रहरी
कैसे कोई सपना बुना !
मुझसे पहले क्या चुना ?
नींद से पहले बताओ
फ़िर कोई सपना बुलाओ
पूरी हो मेरी बात
बताओ देखोगे क्या रात
हाय ! बिडम्बना कैसी !
कुछ नहीं मुक्ति जैसी
मन का समुन्दर
भावना की नदी
झील बनी ठहरी
चिर काल से बँधी
तूफ़ान समुन्दर का
बहुत होता बड़ा
बहा ले जाएगा
नियम , किताब
जो राह में पड़ा
ग्लेशियर दिखता नहीं
पिघलता कभी
जब भी पिघला
प्लावित हुए तट सभी
मैं हूँ क्या अब मान लिया
तुमको भी तो पहचान लिया
जीवन मेरा धिक्कार है
जो पाया नहीं अधिकार है
शील , दया , ममता का गहना
नाम पे कब तक सहना
अब हार नहीं मानूँगी
कुछ करने की ठाँनूगी
कारे जल से निर्मल तक
ठहर- ठहर के अविरल तक
प्रकाश पुंज तक जाकर
मिटा अंधकार ज्योति पाकर
जब उथल पुथल हो
बस अपना सबंल हो
इतिहास रचा है क्रांति ने
ख़ुद को मिटाया भ्रांति ने
अपना बल सबल
नहीं अब कोई अबल
लाल , गुलाबी , नीले , पीले गुब्बारे
दे दो अम्मा , चाचा प्यारे
मेरी नींद मेरे सपने
लो हटा पहरे अपने
गर्म हवा से कुछ कही
नई अदा से वो बही
आने वाला है बवंडर
न बचेगा फूस - घर
हवा भी मेरे साथ है
एक के सौ हाथ है
अब बदलो वो कायदा
जिसमें मेरा न फायदा
मुहिम तो एक छिड़ गयी
हाय ! मैं तो भिड़ गयी
अनकही कितनी बातें
कह गयी चुपचाप रातें
टीस मन की कहानी
याद है मुझको जबानी
कड़वे वचन के प्रहार
अब लगे ग्रीवा हार
मन के दाग़ फ़ूल हैं
फ़ूल तो अब शूल हैं
कायदे से अब तक चली
रही सबसे मैं भली
कायदा में होती मिलावट
किताब से होती सजावट
कायदा नियम का हथियार
छीनने न पाये अधिकार
नारी का मन जाग गया
डर भी तो अब भाग गया
रच दिया अपना नियम
बना रहे अपना संयम
भूख , प्यास इच्छा कर्म
सबका हो एक धर्म
गुनाह मैंने कर दिया
नया रंग भर दिया
कल मेरा अंजाम है
सबको मेरा पैग़ाम है
मेरे अज़ीज़ ज़रूर आना
हँगामा देख फ़िर जाना
डर गये हाकिम अगर
समझो हो गया असर
-सुषमा शैली
भावों के मोती
दिनांक - 25/04/2020
विषय - किताब/पुस्तक
समृद्ध बनाती है जीवन को किताब
कल्पना व तर्क शक्ति का करती है विकास
राष्ट्र प्रेम ,एकता की भावना जागृत करती है किताब,
प्राचीन संस्कृति से अवगत कराती है किताब
देश दुनिया की जानकारी देती है किताब,
दुनिया के अजूबे बताती है किताब,
अतीत की जानकारी देती है किताब,
शब्दावली बेहतर बनाती है किताब,
जीवनयापन के तरीके सिखाती है किताब,
सही गलत का भेद बताती है किताब,
अकेलेपन की सच्ची मित्र हैं किताब,
खुशी और गम में साथ निभाती है किताब,
तनाव से राहत दिलाती है किताब,
मनोरंजन का साधन भी बन जाती है किताब,
सभी का जीवन है एक अपनी ही किताब ।।
स्वरचित मौलिक रचना
"उषा जोशी"
दिनांक - 25/04/2020
विषय - किताब/पुस्तक
समृद्ध बनाती है जीवन को किताब
कल्पना व तर्क शक्ति का करती है विकास
राष्ट्र प्रेम ,एकता की भावना जागृत करती है किताब,
प्राचीन संस्कृति से अवगत कराती है किताब
देश दुनिया की जानकारी देती है किताब,
दुनिया के अजूबे बताती है किताब,
अतीत की जानकारी देती है किताब,
शब्दावली बेहतर बनाती है किताब,
जीवनयापन के तरीके सिखाती है किताब,
सही गलत का भेद बताती है किताब,
अकेलेपन की सच्ची मित्र हैं किताब,
खुशी और गम में साथ निभाती है किताब,
तनाव से राहत दिलाती है किताब,
मनोरंजन का साधन भी बन जाती है किताब,
सभी का जीवन है एक अपनी ही किताब ।।
स्वरचित मौलिक रचना
"उषा जोशी"
विषय-पुस्तक /किताब
विधा-स्वतंत्र
दिनांक-25 /04 /2020
दिल की किताब में
जीवन की कई कहानियों है
बचपन के रंगीन चित्र
जवानी के अफसाने है
फिसली है कहाँ
रेत-सी उम्मीदें
जिक्र उनका बड़ी
शिद्दत से है
कब कोई सितारा
चाहत का टूटा
उसे बड़ा सहेज कर
सूर्ख लाल रंग में
लपेटा है
अपनों के खंजर
मुखौटों में छिपे चेहरों की
दास्तान बयां हूबहू
उन्हीं के लफ्जों में
लिखी हुई है
कर्म के पायदानों पर
उतरते -चढ़ते कदमों के
निशान भी दिल की
किताब में बना रक्खें हैं
सच तो ये है
जिंदगी के फलसफों की
जिल्द में अपने को
ही उतार कर रख दिया है।
डा.नीलम
विधा-स्वतंत्र
दिनांक-25 /04 /2020
दिल की किताब में
जीवन की कई कहानियों है
बचपन के रंगीन चित्र
जवानी के अफसाने है
फिसली है कहाँ
रेत-सी उम्मीदें
जिक्र उनका बड़ी
शिद्दत से है
कब कोई सितारा
चाहत का टूटा
उसे बड़ा सहेज कर
सूर्ख लाल रंग में
लपेटा है
अपनों के खंजर
मुखौटों में छिपे चेहरों की
दास्तान बयां हूबहू
उन्हीं के लफ्जों में
लिखी हुई है
कर्म के पायदानों पर
उतरते -चढ़ते कदमों के
निशान भी दिल की
किताब में बना रक्खें हैं
सच तो ये है
जिंदगी के फलसफों की
जिल्द में अपने को
ही उतार कर रख दिया है।
डा.नीलम
25.04.2020
शीर्षक- पुस्तक
जब मनुष्य के जीवन में
अकस्मात कुछ घटनाएँ
आगमन करतीं हैं,
वे वेदनाएँ हो सकती हैं,
प्रेम,ईष्या,या कोई भी रस
प्रतिक्रियाऐं लेती हैं, जन्म
प्रभावित करतीं हैं, ह्रदय
प्रभावित करती हैं, मस्तिष्क
मस्तिष्क में बसी तंत्रिकाओं
व हृदय के भावों से
जन्म होता है, विचारों का
वे विचार सामान्य नहीं
वे होते हैं, किसी पीड़ा के प्रतीक
वे होते हैं, साक्षात भाव
वे होते हैं, प्रत्यक्ष के गवाह
जिनको किसी सफेद कागज़ पर
पिरो देती है, क़लम
वे कागज़ मिलकर निर्माण करते
भावों की पुस्तक
निरंतर, कुछ इस तरह
मैं, अपने मस्तिष्क में
पुस्तकालय का संग्रह रखती हूँ।
लेखिका
कंचन झारखण्डे
मध्यप्रदेश।।
आज का विषय है- पुस्तक या किताब
ज्ञान प्रदायिनी , धर्म प्रदायिनी
मोक्ष दायिनी किताब
पाठशाला की पहली कक्षा में
क ख ग घ का ज्ञान कराती किताब
जीवन का दर्शन करवाती
जीवन भर साथ निभाती किताब
ऋग वेदअथर्व वेद सामवेद यजुर्वेद
अक्षय ज्ञान का भंडार
ज्ञान के चक्षु खोलती किताब
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग
युगों युगों का
इतिहास बताती किताब
साहित्य समाज का दर्पण
होती है किताब
भावी वर्तमान अतीत के
राज खोलती किताब
हमारी संस्कृति सभ्यता
आचार विचार व्यवहार की
परिचायक किताब
इंजीनियर डॉक्टर वकील
हो चाहे शिक्षक
ऊंचे ऊंचे ओहदों पर
पहुंचाती किताब
आदिकाल से भक्ति काल तक
रीति काल से आज तक
परिचय करवाती किताब
बाल्मीकि ने रची रामायण
वेदव्यास ने महाभारत
तुलसी ने रची रामचरित
सबको अमरत्व प्रदान करती किताब
कलयुग में भागवत गीता
बनी कर्म और मोक्ष का आधार
हिंदू बांचे गीता
मुस्लिम पढ़े कुरान
सिख पढे गुरु ग्रंथ साहिब
चाहे धर्म अलग-अलग हो
ज्ञान कराएं किताब
जीवन का अविभाज्य अंग
जीवन की सुख दुख की साक्षी
जीवन का अवलंब बनी किताब
नेति नेति स्मृति कहे
किताबों की महिमा अपरंपार
यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव रश्मि
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या शाला नरसिंहपुर
ज्ञान प्रदायिनी , धर्म प्रदायिनी
मोक्ष दायिनी किताब
पाठशाला की पहली कक्षा में
क ख ग घ का ज्ञान कराती किताब
जीवन का दर्शन करवाती
जीवन भर साथ निभाती किताब
ऋग वेदअथर्व वेद सामवेद यजुर्वेद
अक्षय ज्ञान का भंडार
ज्ञान के चक्षु खोलती किताब
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग
युगों युगों का
इतिहास बताती किताब
साहित्य समाज का दर्पण
होती है किताब
भावी वर्तमान अतीत के
राज खोलती किताब
हमारी संस्कृति सभ्यता
आचार विचार व्यवहार की
परिचायक किताब
इंजीनियर डॉक्टर वकील
हो चाहे शिक्षक
ऊंचे ऊंचे ओहदों पर
पहुंचाती किताब
आदिकाल से भक्ति काल तक
रीति काल से आज तक
परिचय करवाती किताब
बाल्मीकि ने रची रामायण
वेदव्यास ने महाभारत
तुलसी ने रची रामचरित
सबको अमरत्व प्रदान करती किताब
कलयुग में भागवत गीता
बनी कर्म और मोक्ष का आधार
हिंदू बांचे गीता
मुस्लिम पढ़े कुरान
सिख पढे गुरु ग्रंथ साहिब
चाहे धर्म अलग-अलग हो
ज्ञान कराएं किताब
जीवन का अविभाज्य अंग
जीवन की सुख दुख की साक्षी
जीवन का अवलंब बनी किताब
नेति नेति स्मृति कहे
किताबों की महिमा अपरंपार
यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव रश्मि
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या शाला नरसिंहपुर
25/4/20
पुस्तक
किताबें भी अब किस्सों की बात हो जायेंगी....
जैसे खूबसूरती से तराशे गये वो पत्र अब नहीं लिखे जाते....
जिनमें कितने अहसास धड़क जाते थे न...
अब ये किताबे डाटा बन किसी सॉफ्टवेयर में समा जायेंगी....
क्लिक और ओपन के समुन्दर में
खो जायेंगी....
इनकी वो नजाकत और इनके अस्तित्व की महिमा...
इतिहास में समा जाएगी....
आने वाली पीढ़ी बस्ते और कॉपी को शायद चित्र में देखेंगे...
उसकी खुशबू को कहाँ समझेंगे...
शायद जुहू की तरह पुस्कालय भी दिखाए जायेंगे....
और वो दाँतो तले ऊँगली दवा ये सोचेंगे...
की कैसे ये बोझ ढोते होंगे हम...
हमारी बेचारगी पर उनको अचरज होगा...
लेकिन ये कितनी अमूल्य हैं क्या इसका अहसास होगा....
मेरे लिये पुस्तकें मेरी अजीज मित्र हैं...
मेरे मानसिक संतुलन के लिये ओषधि...
और मेरे जीवन को दिशा देने वाली
ज्योत है...
ये शब्दों का खजाना मेरे लिये सबसे अपना है...
सच कहूँ तो किताबों से मेरा गहरा नाता है....
ओ किताब तुम अपने अस्तित्व को मत खोना....
इस डिजिटल दुनिया की भीड़ में मत खोना
पूजा नबीरा काटोल
पुस्तक
किताबें भी अब किस्सों की बात हो जायेंगी....
जैसे खूबसूरती से तराशे गये वो पत्र अब नहीं लिखे जाते....
जिनमें कितने अहसास धड़क जाते थे न...
अब ये किताबे डाटा बन किसी सॉफ्टवेयर में समा जायेंगी....
क्लिक और ओपन के समुन्दर में
खो जायेंगी....
इनकी वो नजाकत और इनके अस्तित्व की महिमा...
इतिहास में समा जाएगी....
आने वाली पीढ़ी बस्ते और कॉपी को शायद चित्र में देखेंगे...
उसकी खुशबू को कहाँ समझेंगे...
शायद जुहू की तरह पुस्कालय भी दिखाए जायेंगे....
और वो दाँतो तले ऊँगली दवा ये सोचेंगे...
की कैसे ये बोझ ढोते होंगे हम...
हमारी बेचारगी पर उनको अचरज होगा...
लेकिन ये कितनी अमूल्य हैं क्या इसका अहसास होगा....
मेरे लिये पुस्तकें मेरी अजीज मित्र हैं...
मेरे मानसिक संतुलन के लिये ओषधि...
और मेरे जीवन को दिशा देने वाली
ज्योत है...
ये शब्दों का खजाना मेरे लिये सबसे अपना है...
सच कहूँ तो किताबों से मेरा गहरा नाता है....
ओ किताब तुम अपने अस्तित्व को मत खोना....
इस डिजिटल दुनिया की भीड़ में मत खोना
पूजा नबीरा काटोल
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