Friday, April 24

"उदय"21अप्रैल 2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें 
ब्लॉग संख्या :-714
विषय -🌞 उदय 🌞
प्रथम प्रस्तुति
सूरज का उदय होना और
अस्त होना एक सतत क्रम है।
फिर भी रोता है इंसान
करे आँख वो अपनी नम है।

जाने क्यों जाने न इंसान
इतना सा ये एक मरम है।
बड़े बड़े बुद्धिजीवियों में
देखा हमने इक अहम है।

इंसा क्या है यहाँ कुछ नही
कर्म करना उसका धरम है।
सूरज समय से निकलता है
समय से बदलता मौसम है।

कहूँ मैं खुद से ये कथन या
कहूँ यह औरों से 'शिवम' है।
किया प्रयास मैंने भी मगर
वक्त पर मिला रब का रहम है।

यूँ तो कमी नही अलम की
जहाँ देखो तहाँ अलम है।
मगर आशा से आसमान है
मत सोचो सोगवार हम है।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 21/04/2020
विषय उदय
विधा काव्य

21 अप्रेल 2020,मंगलवार

हर्ष उदय हो अब जीवन में
काली कालिमा अब नष्ट हो।
सजा मिले ऐसे दुर्जन को
जो जीवन में कर्म भ्रष्ट हो।

स्वर्ण रश्मि उतरे अवनी पर
द्वेष क्लेश संताप नाश हो।
सदविचार विज्ञान उदय हो
कर्मवीर कभी न निराश हो।

रोग शौक विपदाएँ नहीं हो
स्नेह सौहार्द सदा उदय हो।
अमङ्गल में अब मङ्गल हो
सुगन्धा सी पवन मलय हो।

दीवारे नफरत की नहीं हो
प्रेम परस्पर दया उदित हो।
मानव में नित मानवता हो
राष्ट्रस्नेह कभी न खंडित हो।

प्यारा भारत सदा महान हो
सदा उदय ज्ञानमय ज्योति।
विश्व गुरु है, इस धरती का
शांति मय भावों के मोती।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय उदय

""""""नाम था उसका उदय ।
भाग्योदय न हुआ ।
लेकर डिग्री हाथों में
दर दर भटकता रहा।
थका हरा बैठा था जीवन से ।
सिर पर हाथ लगाऐ भाग्य , को
कोसता था ।
बैठा था सडक किनारे।
एक कार वाला गाड़ी, का दरवाज़े
को खोल बाहर आया ।
सीने पर हाथ धरा था ,
थर थर काँप रहा था
उदय दौडकर उस नर तक पहुंचा
धरती पर वो नर गिर पडा था ।
देखा उदित ने पल भर भी न चैन लिया
कर दूरभाष ऐम्बूलैस को
झट अस्पताल पहुँचाया।
साथ न छोडा पल भर भी उस नर का।
हृदयगति का पहला प्रहार था ।
नर ने पास बुलाया धन्यवाद देकर पता
पूछ लिया ।
अहसान जीवनदान दिया नर को
नर ने उदित को दिया सम्मान
उदित का किया मान
दे दी उसको एक पहचान ।
उदित का भाग्योदय हुआ
मैनेजर का पद और सम्मान मिला।
निराशा न रखना मन में
आशा ही आधारग्रंथ है ।
उदय होता भाग्य का एक दिन
कर्म ही प्रधान है ।
स्वरचित ।
पूनम कपरवान ।
देहरादून ।
उत्तराखंड ।
उदय,

सूरज के उदय संग,

होता हैं उजाला,
यही हैं जीवन किरण ।
चलते हैं सूरज के संग ।
जीव्न काम पर,
जीवन को चलित करना ।
जीवन को गतिमान करना ।
इस जगत को चलाना ।
उजाला लेकर अाता,
जीवन की किरण ।
चलते हम दिनभर,
उसके संग संग ।
करते हैं अर्थाजन ।
भोजन,नियोजन ।
धिरे धिरे ढ़लती,
सूरज की किरण ।
छाने लगता अंधेरा ।
सब जीवन निकलता,
वापस अपने घर ।
यही हैं,उदय सार,
चल रहा हैं संसार ।

स्वरचित-प्रदीप सहारे
21/4/2020/मंगलवार
*उदय*

काव्य

भाग्योदय हो हम सबका ही,
ऐसा मंगल कीजिए।
जो भी आई हैं विपदाऐं,
उनको प्रभु हर लीजिए।

प्रेम पूर्णवातावरण होए,
ऐसी सन्मति दीजिए।
मंगल भवन अमंगल हारी,
ऐसा हनुमत कीजिए।

बजरंगी बजरंगबली तुम,
प्रमोदय ही कीजिए।
धीर वीर गंभीर बनें हम,
ऐसा वर ही दीजिए।

ज्ञानोदय हो जन मानस में,
शिक्षित मानव कीजिए।
संकट हरें सभी की पीरा,
हमको साहस दीजिए।

चंद्रोदय हो शीतलता का ,
शीतल मनसा कीजिए।
शुभी उदय हो घर आंगन में,
सुख कर मनवा कीजिए।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

*उदय*काव्य
21/4/2020/मंगलवार

विषय उदय

""""""नाम था उसका उदय ।
भाग्योदय न हुआ ।
लेकर डिग्री हाथों में
दर दर भटकता रहा।
थका हरा बैठा था जीवन से ।
सिर पर हाथ लगाऐ भाग्य , को
कोसता था ।
बैठा था सडक किनारे।
एक कार वाला गाड़ी, का दरवाज़े
को खोल बाहर आया ।
सीने पर हाथ धरा था ,
थर थर काँप रहा था
उदय दौडकर उस नर तक पहुंचा
धरती पर वो नर गिर पडा था ।
देखा उदित ने पल भर भी न चैन लिया
कर दूरभाष ऐम्बूलैस को
झट अस्पताल पहुँचाया।
साथ न छोडा पल भर भी उस नर का।
हृदयगति का पहला प्रहार था ।
नर ने पास बुलाया धन्यवाद देकर पता
पूछ लिया ।
अहसान जीवनदान दिया नर को
नर ने उदित को दिया सम्मान
उदित का किया मान
दे दी उसको एक पहचान ।
उदित का भाग्योदय हुआ
मैनेजर का पद और सम्मान मिला।
निराशा न रखना मन में
आशा ही आधारग्रंथ है ।
उदय होता भाग्य का एक दिन
कर्म ही प्रधान है ।
स्वरचित ।
पूनम कपरवान ।
देहरादून ।
उत्तराखंड ।
उदय,

सूरज के उदय संग,

होता हैं उजाला,
यही हैं जीवन किरण ।
चलते हैं सूरज के संग ।
जीव्न काम पर,
जीवन को चलित करना ।
जीवन को गतिमान करना ।
इस जगत को चलाना ।
उजाला लेकर अाता,
जीवन की किरण ।
चलते हम दिनभर,
उसके संग संग ।
करते हैं अर्थाजन ।
भोजन,नियोजन ।
धिरे धिरे ढ़लती,
सूरज की किरण ।
छाने लगता अंधेरा ।
सब जीवन निकलता,
वापस अपने घर ।
यही हैं,उदय सार,
चल रहा हैं संसार ।

स्वरचित-प्रदीप सहारे
दिनांक - 21,4,2020
दिन - मंगलवार

विषय - उदय

कर्तव्य पथ पर बढ़े चलो ,
प्रतीक्षा कैसी भाग्योदय की।
सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, तारों ने,
एकत्रित की पूँजी शुभ कर्मों की ।

लकीरों के सहारे मत बैठो ,
हाथों को अपने पहचानो ।
सूर्योदय तो हो के रहेगा,
रात की कीमत भी जानो।

जो सम्मुख है उसको समझें ,
जो अदृश्य है उसको न ढूँढ़े।
जो कर्म की चलें न कुदालें ,
उदय नीर का हम कैसे पा लें ।

उदय नव युग, नव चेतना का ,
नव सृजन, नव दृष्टि से होता।
उदय सत्य का विश्व है चाहता,
बनेगा कर्म ही इसका प्रणेता।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .
21/4/20

सूर्य उदित हो रहा।
गगन सुनहरा हो रहा।
फैल रही रश्मियां।
हिम सुनहरा हो चला।
खग विहग उड़ चले।
गीत प्रातः गा रहे।
कली कली खिल रहीं।
अठखेलियाँ कर रही।
वन उपवन महक उठा।
सोया जग खिल उठा।
शंख घड़ियाल बज उठे।
मधुर गीत हो चले।
बज रहे मृदंग भी।
प्रातः बंदन हो चले।
मन मयूर नृत्य से।
जन आनंदित।
हो ने लगे।

स्वरचित
दिनाँक-21-4-2020
दिन-मंगलवार

विषय-उदय
विधा-गीत
चलो चलें कुछ कदम बढ़ाये,नव इतिहास रचाने को।
ज्ञान ज्योति का सूर्य उदय हो,तम का मान घटाने को।।
यहीं अवतरित हो कान्हा ने,गीता ज्ञान कराया था।
यहीं राम ने मर्यादा का अनुपम पाठ पढ़ाया था।।
आओ फिर से चलें व्यास,तुलसी बन अलख जगाने को।
ज्ञान ज्योति का सूर्य उदय हो, तम का मान घटाने को।।
यहीं भगीरथ ने निज तप से,गंगा को प्रकटाया था।
यहीं रन्ति औ शिवि,दधीचि ने परहित को समझाया था।।
आओ अपनी अस्थि गलाऐं फिर से बज्र बनाने को।
ज्ञान ज्योति का सूर्य उदय हो,तम का मान घटाने को।।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक'मथुरा।
दिनांक-21/04/2020
विषय-उदय


फैल रही है नई ताजगी
सूर्योदय के होने से।
बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।
हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।
प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।
प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठा है कमल दल।।

ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।।
खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।।
एक नन्ही कली भी
बाट देख रही है दिनकर की।।
मन उद्वेलित होता मधुरस
में प्रभाकर के अरुणोदय की।।

स्वर्णिम में सूर्य उदय
होने लगता मस्त पहाड़ों पे।।
और गुनगुनाने लगे भंवरे
प्रभाकिरन के आने से।।

स्वरचित .....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
भावों के मोती।
विषय-उदय।

स्वरचित।




उदय हो रहा था अभी कि
पहले भाग ली किरणें।

सन्देश देने कि
तिमिर अब तू भाग जा।।
****

आ रहा रथ सूर्य का कि
निशा अब बाकी नहीं है।

मंद-मंद गति किरन कि
पीछे झांकता सा उदित भानू।।
****

लाल-लाल, गोल-गोल
मन मोहता,बिखेरता उजाला ।

कुहुक उठती कोकिला मस्त
गौरैया का शुरू चहचहाना।।
****

ओस की बूंदें चमकती
खिल उठे स्पर्श पाकर सुमन भी।

स्त्रोत है अक्षय ऊर्जा का
प्रकाश का है पुंज अनंत।।
****

धुरी है जीवन की सृष्टि में ,
जीव-जंतु हो या वनस्पतियां।

दिन होता और रात जाती
परिवर्तन प्रकृति की नियति।।
****

संध्या,छाया पत्नी दोनों
सन्तान यम और यमुना।

घूमती धरा भी चहूं ओर इसकी प्रीति में
चन्द्रमा भी हुआ रोशन इसकी प्रतीति में।।

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
दिनांक-21-4-2020
विषय-उदय


भाग्य उदय होता उसी का
जो सतत कर्म में रत हो।
उदयाचल से रवि झांकता
जो कदापि न अवनत हो।।

आगे चाहे उच्च शिखर हों
या हो सघन विटप भारी।
मार्ग स्वयं का बना बिखेरे
निज प्रकाश ले रश्मियां सारी।।

ये भी एक कड़वा सच है
कि उदित सूर्य को सभी पूजते।
इस दुनिया की रीत यही है
सिंहासीन को नमन सभी हैं करते।।

दिनकर कभी व्यथित न होता
कल फिर से वह प्रकाशित होगा।

ढलता सूरज यही सिखाता
आशावान सदा आलोकित होगा।।

संकट की घड़ी में जो धीरज रखे
सच्चा मानव वही कहलाये।
फल की चिंता छोड़ प्रभु पर
सुकर्म सदा जो करता जाए।।

*वंदना सोलंकी"मेधा"*©स्वरचित

विषय उदय
विधा कविता

दिनाँक 21.4.2020
दिन मंगलवार

उदय
💘💘💘💘

छा रहा सब ओर प्रलय
कोरोना कितना है निर्दय
फैल रहा है अजी़ब भय
नहीं हो पाता कुछ निश्चय
उछल कूद मचाता क्षय
काम में हों कैसे तन्मय
कोई सूर्य का हो उदय
जो शक्ति का कर दे सँचय।

अब तो हर श्वास हो उदीयमान
मानवीय श्रँखला के हों कीर्तिमान
सबके होठों पर आये खिली मुस्कान
और यही बने युग की अब पहचान
प्रकृति झाँके हरे आँचल को तान
सब ओर गूँजे पक्षियों के गान।

पूरी मानवता हो प्रकृतिमय
ऐसे भावों का सबमें हो उदय
बँध जाये प्रकृति से ऐसी लय
कि रहें प्रसन्नचित्त और निर्भय।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
सादर नमन
विषय =उदय

21/04/2020
🌹🌹🌹🌹
उदय बिना अंधकार
मिले ना हमें संस्कार
हुआ जो आज उदय
ईश्वर का मानों आभार
🌹🌹🌹🌹
उदय का मतलब जन्म लेना
जन्म लेकर सही कर्म कर लेना
यह अपने विवेक पर है निर्भर
लालच में मुसीबत को मत लेना

स्वरचित
मुकेश भद्रावले
दिनांक -21/04/ 2020
विषय- उदय।


प्राची में भास्कर का हुआ उदय,
निशा ने समेटी अंधकार की चादर।
पक्षियों ने नया स्वर सजाया,
नदियों ने ओढ़ी सुनहरी चादर।

हिमालय की उतुंग शिखरें,
चमक उठी सूर्य की किरणों से ।
मंद हवाएं चलने लगी ,
नभ मंडल के तरानों से ।

झंकृत हो उठे वीणा के तार,
प्रभाकर के उदित होने से ।
नदियां की लहरे लगी खेलने,
दिवाकर की सतरंगी किरणों से।

वन- उपवन महक उठे ,
भ्रमरों ने गुंजार किया ।
धरा ने ओढ़ी धानी चूनर ,
प्रकृति ने श्रृंगार किया।

स्वरचित ,
रंजना सिंह
प्रयागराज

21 अप्रैल 2020
विषय-उदय

है
तम
निराशा
प्रतिक्रिया
भानु उदय
विचार मन्थन
जागृत हुई आशा

ये
स्वप्न
रजनी
अंतर्मन
गगन स्पर्श
उदित भास्कर
छूमन्तर ये ख्वाब।

क्यों
दुख
परीक्षा
असफल
उदित आशा
वर्ष दर जांच
प्रतिफल जीवन।

स्वरचित-आशा पालीवाल पुरोहित राजसमन्द
21 अप्रैल 2020

" उदय "

जो उदय होता है वही तो अस्त भी होता है

जो अभी विजयी बन है चिंघाड़ता वही पस्त भी होता है

अभी समय है महामारी " कोरोना " का सफलता के नित नये नये कीर्तिमान रचती है

न जाने कितनी जिंदगियाँ हैं संक्रमित न जाने कितनी रोज मरती हैं

विश्व अब लड़ रहा इससे पूरे जी जान के साथ

भर उठें है अस्पताल और व्यस्त हैं सभी मेडिकल पुलिस और सफाई के इन्तिज़ामात

लॉक डाउन है घोषित सभी घरों में आज बंद रहने को मज़बूर हो गये हैं

हम सब ही तो सिपाही हैं इस जंग में और अपने सेनापति के साथ जंग में शामिल हो गये हैं

विश्वास हमारा है दृढ़ कि यदि उदय हुआ है " कोरोना " का तो इसका अस्त भी शीघ्र ही होगा

और हमारा राष्ट्र होगा विजयी पूरे विश्व के साथ " कोरोना " पराजित भी होगा

बस हम सब पूरी ईमानदारी और प्रण के साथ लॉक डाउन और अन्य सब निर्देशों का पालन करते चलें

वोह समय अब ज्यादा दूर नहीं है जब हम कोरोना मुक्त विश्व मे अपने अपनो से फिर से गले मिलें

शुभकामना सहित

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

विषय - उदय
दिनांक - 21/4/2020

वार-मंगलवार

आसमाँ पर छाई लालिमा
स्याह रात का अंधियारा
चमकती तारों की रोशनी
गगन पर चाँद चमकेगा
नई सुबह नई किरणें लेकर
कल भी सूरज उगेगा।

सूर्य की ये रश्मियाँ
करती है अठखेलियाँ
सब के मन में आशा का
नया भाव जरूर जगेगा
कल भी सूरज उगेगा।

बागों में छाई हरियाली
महक रही है डाली-डाली
कली खिल रही पौधों में
खुशबू से उपवन महकेगा
कल भी सूरज उगेगा।

झील-नदी, तालाब-तलैया
छप-छप करती ता-ता थैया
लहलहाती जल की लहरें
कमल का फूल खिलेगा
कल भी सूरज उगेगा।

पूर्ण लगन मेहनत तुम करना
कभी नही किसी से डरना
कामयाबी मिलेगी तुम्हें
किस्मत का द्वार खुलेगा
कल भी सूरज उगेगा।

जीवन में संघर्ष बहुत है
तुम कभी नही घबराना
भाग्य उदय होगा जरूर
तुम्हें हौसला जरूर बढ़ेगा
कल भी सूरज उगेगा।

 सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
21/04/20
विषय - उदय

**************
तन मन धूमिल हो जाएगा,,
गर कर्म कुछ कर न पाएगा ।।
जीवन को अन्धकार में पायेगा,,
कर ले अच्छे कर्म उदय हो जाएगा,,
पूरे जग को प्रकाशित कर जाएगा।।
नींव रख मजबूत कर अच्छा - अच्छा ,,
गर जीना है खुद को तो प्रकाश बना।।
मेहनत संग किस्मत को साथ लेकर चलना ,,
आ जाए बांधा तो सहज स्वीकार करना,,
उदय तन हो उदय मन हो जग भी उदय हो जाएगा।।
21/4/20
विषय-उदय


समय चक्र में उदय सुबह हो,
शाम अस्त भी होता है ।
सारे जग को रौशन करने वाला भानु ,
सांझ ढले सोता है ।
नव आशा का उन्माद लिये ,
फिर नई सुबह आ जाता है।
अपनी रक्ताभित लालिमा से ,
विश्व दुल्हन सजाता है ।
सहस्त्र किरणों की डोर लिये,
धरती को छूने आता है।
फिर शाम के फैले आंचल में,
थककर के सो जाता है।
स्वरचित।

कुसुम कोठारी।
विषय-उदय
विधा-स्वतंत्र

दिनांक--21 /04 /2020

उषा आई सिंदूर लिए
उदय हो रवि ने कपाल
पर बिखेर दिया
मुख प्राची का लाज से सिंदूरी-सिंदूरी हो गया
रविकिरणों की गरिमा ने
भरझोली उजास चारों ओर फैला दिया
देख कर स्वर्ग सरिता का
बहाव,रजनी ने आँचल
समेट लिया
उदय होता देख रवि को
धरती ने भी ली अंगड़ाई
पंछियों ने छेड़े सुर
प्रातः वंदन के
सोए धर्म के स्थान भी
जाग ,करने लगे ईश वंदना
सड़कें,पटरी,पगडंडी
दो राहे,चौराहे भी गतिशील
हुए
पेड़-पौधे,सरिताएं भी
जाग्रति का देने संदेश लगीं।

डा.नीलम
दिनांक 21 अप्रैल 2020
विषय उदय


मुरझाता जीवन सदैव
अंधकार तले ही सोता है
जब आस जगे जीवन में
मानो उदय तभी होता है

पतझड के जाने के बाद
नई पत्तियां खिल आती है
कलियां बन जाती प्रसून
गंध चहुंओर बिखराती है
विश्वास भर देती प्रकृति
चलने को तत्पर होता है
जब आस जगे जीवन में
मानो उदय तभी होता है

तूफानों के जाने के बाद
बस विनाश ही दिखता है
कर्मवीर कब तक बैठता
तस्वीर नई वह रचता है
मेहनत व लगनवाला वो
स्वप्न नये फिर संजोता है
जब आस जगे जीवन में
मानो उदय तभी होता है

बंजर पथरीली जमीन मे
मेहनत की बूंदो से सिंचन
सतत प्रयास से करता है
चट्टानों मे भी नवअंकुरण
लहराती फसलें पाकर के
तब चैन सुकून से सोता है
जब आस जगे जीवन में
मानो उदय तभी होता है

विपदा मे जो ना घबराए
प्रयत्न सतत करता जाए
हार जीत की परवाह नही
वह निरंतर लडता जाए
अपने जीवन मे विजय के
मानो बीज तभी बोता है
जब आस जगे जीवन में
मानो उदय तभी होता है

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
बिषय -उदय ।-
बिधा -हाइकु

होता जभी -
उदय भाग्य हो
मिले पूण्य फल।

हरित पात -
हो कल्प बृक्ष के
जो भाग उदय पर ॥

सुख शान्ति -
जीबन में उदय
होबे किस्मती ॥

सूर्य उदय -
पर जीबन चालन ,
जीब जगत प्राण ॥

उदय भानु -
सिशोभित छटा ,
फैलती किरणे ॥

स्वरचित -मौलिक रचना ।

मदनगोपाल शाक्य ''प्रकाश''
पान्चाली कम्पिल ।फर्रूखाबादी ।उ .प्र ॥

दिनांक 21-4-2020
विषय :-उदय


शौर्य साहस अभय है,
स्वाभिमान है|
हर्ष का उल्लास का ,
प्रतिमान है|

मन में आशा का सदा ,
संचार भरता |
उदय ही उत्थान ,
की पहचान है |

सूर्य के साथ जब जुड़ता ,
सूर्य का उदय हो जाता |
सूर्य की कीर्ति है बढ़ती,
सूर्य का सुयश बढ़ जाता |

सूर्य की किरणें तब जग में ,
कर्म का आह्वान है करती|
समूचा जगत अपने कर्म ,
में तब है जुट जाता|

भाग्य के जब साथ जुड़ता,
तो भाग्योदय कराता है |
कर्तव्यरत कर्मठी को ,
कर्मफल दिलवाता है |

भाग्योदय जब है होता,
खुशी के फूल हैं खिलते |
दिवाली रातें हो जाती ,
दशहरा हर दिवस हो जाता|

जिस किसी के साथ ,
उदय है जुड़ जाता|
समझ लो उसका निश्चित ,
अभ्युदय है हो जाता|

मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
बस्ती

21/4/2020
बिषय उदय

अंधकार में देश मेरा जाने सुबह कब आएगी
हॅसता हुआ रवि कब उदय होगा
स्याह रैन निकल जाएगी
फिर वही गहमागहमी चहलपहल कब आएगी
नौनिहाल खेलेंगे आंगन
संकट की काली बदली छट जाएगी
नहीं होगा कोई दुखी न कोई हो बीमार
यदि प्रभु की कृपा हो फिर खुशियों का होगा संचार
हे करुणा के सागर विनय मेरी सुन लीजिये
लोगों में सद्बुद्धि का ज्ञान भंडार भर दीजिये
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
जीवन क्षितिज के पार कदाचित
कभी सूर्योदय हो जाए।
तम तिरोहित हो जाए

और ज्ञानोदय हो जाए
कबसे भ्रमित पथ भटक रहा मन
दिग्दर्शन अब हो जाए
सुप्त चेतना जग जाए
मन उल्लासित हो जाए
स्नेह उदय हों शुचि भाव उदय हों
अनुरागी हम हो जाएं
सतपथ गामी हो जाएं
हम अंतर्यामी हो जाएं
दिल से दिल की थाह मिले और
महामना हम हो जाएं
वैरी भाव निसर जाए
अपनापन ही रह जाए
दीप से दीप जले हो जग उजियारा
दीपोत्सव फिर हो जाए
अन्य भाव ही मिट जाए
किसी आहत के आंगन में आओ हम
नया उजाला ले आएं
एक निवाला ले आएं
रंगों की माला ले आएं
अंतर्मन के चिदाकाश में सूर्य उदय हो समरसता हम ले आएं
मैं और तुम हम बन जाएं
संग संग कदम बढ़ा पाएं
------------------------------------
गोविंद व्यास रेलमगरा

तिथि-21/04/2020
विषय- उदय


"उदय हुआ रवि"

उदय हुआ रवि
प्राची के भाल पर
फैला सिन्दूरी रंग
प्राची के गाल पर।

बागों में कलियाँ चटकी
तितलियों ने भी अपने
रंग की छटा बिखेरी
भौरों का गुनगुन गुंजन
पत्ते भी डोले हवा के संग ।

चला किसान लेकर साथ
अपने बैल और हल खेतों पर
गोरी पनिया भरन को करती
रूनझुन चली पनघट पर।

सूरज ने बिखराया
अपना प्रकाश धरा पर
जीवन जीवंत हुआ
चिड़ियों के चहचहाट में।

सफर पूरा कर चला सूरज
धीरे धीरे पश्चिम की ओर
हो रहा ओझल आंखों से
आ रही संध्या लेकर नीली चादर की ओट।

कल फिर आना दिनकर
उदित होना प्राची के भाल पर
बिखेरना अपनी स्वर्ण रश्मियाँ धरा पर
मानव मन में आशा का प्रकाश फैलाना।

अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
दिनांक-21/04/20
विषय-उदय


उदय हुआ सूरज गगन में
कर्म की ओर मन हुआ प्रेरित
संसाधनों की उन्मुखता से
जग हुआ तेजी से और जगित।

विभीषिका भोर में जगा चुकी भाव
पक्षी कलरव की भी कर चुकी नाद
कोई ज्यादा तो कोई कम में सीमित
जग हुआ तेजी से और जगित।

निशा निशाचर लेके अब खो गई
मानव तन की जिज्ञासा अब हुई
हुआ सोता प्रहर अब है जीवित
जग हुआ तेजी से और जगित।

नभ में फैले ज्यो उजियारा
खेल में मस्त होता जग सारा
दिखा रहा सूरज कर्म नियति
जग हुआ तेजी से और जगित।

प्यारा सा है उपवन झूमा
तितलियों का भी मन झूमा
गुंजित जग का प्राणी मनमीत
जग हुआ तेजी से और जगित।।
उमाकान्त यादव उमंग
प्रयागराज
विषय : उदय
विधा : कविता

तिथि : 21.4.2020

उदय
--------

तुम्हें देख कर ऐसे ऐसे भावों का होता है उदय
जैसे तेरे-मेरे जीवन की परस्पर जुड़ गई है लय।

जब जब परस्पर नैनों से नैन मिलते
दिल मे सरगम के मधुर सुर बजते
बन जाता हर पल ऐसा कवितामय
मदहोशी का जैसे आ जाता प्रलय।

तुम्हें देख कर ऐसे ऐसे भावों का होता है उदय
जैसे तेरे-मेरे जीवन की परस्पर जुड़ गई है लय।

झिझकी झिझकी सी तेरी मुस्कान
मन न भरता नैनों का कर रसपान
वातावरण होता मधुर-मधुर प्रिय
एक.भी ऐसा पल न होने दूं क्षय।

तुम्हें देख कर ऐसे ऐसे भावों का होता है उदय
जैसे तेरे-मेरे जीवन की परस्पर जुड़ गई है लय।

प्रेम की बेल परवान चड़ी है अभी
दूर होने की बात तो न करना कभी
मिलन की मंज़िल पर पानी है विजय
जुदाई होगी कातिल,होंगे प्राण विलय।

तुम्हें देख कर ऐसे ऐसे भावों का होता है उदय
जैसे तेरे-मेरे जीवन की परस्पर जुड़ गई है लय।

-रीता ग्रोवर
-21.4.2020
भावों के मोती
विषय उदय

दिनांक 21/42020

उदय

युगों-युगों के बाद होता है युगांतर
सूर्य उदय का भान कराती
प्राची की लाली।
पंछी का कलरव,
शांत सरोवर का मृदु जल,
मंद मंद समीर का बहना।
मलयानिल का लिये सुगंध
करते सब सूर्य का स्वागत।
कलि कलि फूल हर्षित आनंद है
भौंरा के गुंजन से उपवन सुशोभित है।
भास्कर के उदय से वसुधा आनंदित है।
बैलों की घंटी बजी
बच्चें ,बड़े , बूढ़े सबके मन में
ताजगी ,स्फूर्ति भरपूर है।
भास्कर के उदय से
नव विहान आया है।
नदियों के जलस्तर पर की सूर्य किरणें बिखरीं हैं।
असंख्य स्वर्ण किरणों का करती निर्माण है।
पानी के झिलमिल कों,
बांस की पत्तियां है चूमतीं ।
गांव गांव नगर नगर भास्कर का
प्रकाश है।
भास्कर के उदय से दुनियां विराजमान ।।
माधुरी मिश्र
वरिष्ठ साहित्यकार
कदमा जमशेदपुर।
दिनांक 21/04/2020
विषय:उदय

विधा :हाइकु
🌄🌄🌄
भानु उदय
गुलाबी चुनरिया
पर्वत ओढे।
🌙🌙🌙
चन्द्र उदय
मेघाच्छादित कर
चांदनी संग।
🏜🏜🏜
उदय अस्त
प्राकृतिक धुरी पर
जीवन चक्र।
🏩🏩🏩
भाग्य उदय
संभ्रांत परिवार
खुशियो संग
🧎‍♀️🧎‍♀️🧎‍♀️
शक्ति उदय
वशीकरण ऊर्जा
ध्यान केंद्रित।
🛕🛕🛕
उदयातिथि
मंदिर मे अर्चना
शुभ मुहूर्त।
💥💥💥
पंचाग ज्ञान
शुभ मंगल कार्य
उदयातिथि।
🙏🙏🙏
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

विषय - उदय
विधा - अतुकांत कविता

दिनांक- 21अप्रैल/2020/
दिन -मंगलवार

जीवन संघर्ष
उदय स्पर्श
भाव सम॔पण
चंदन धूप
लेकर आया
सूरज प्यारा !!

ऊंची हस्ती
दिल वालों की बस्ती
उदय नहीं तो
सारा जग अंधियार!
सूरज प्यारा !!

आँगन धरती
स्वर्ण छटा
बिछाता
निश दिन
सूरज प्यारा!!

यौवन श्रृंगार
प्रकृति बेहाल
फूल फूल हर्षित
भौंरा लुभाया
डाल डाल
पात पात
उदित किरणें
करती पुकार
भई भिनसार !!


रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद- झारखंड
विषय-उदय
विधा-मुक्त छंद


फूटी किस्मत है सबकी
राहें आज कठिन हैं
साथ सभी हैं छोड़ गए
फैली काली अंधेरी रात है
बिकता इमान बाजार में
गुंडों की जय-जयकार है
कैसा उलटा वक्त आ गया
सब ओर वक्त की मारममार है
देश दुनिया सब उलट-पुलट है
बदलेगा चाल समय कभी
होगा प्रेम-मिलन सब ओर
चैन का उदय होगा तभी

राकेशकुमार जैनबन्धु

दि021/4/2020
बिषय-उदय


उदय होगा सुखों का सूरज,
भाग जायेगा दुखितअंधकार,
खुल जायेगे बन्द हुये ,किवाड,
फिर से चलेगा जीवन धरा का,

उदितऊषाकी किरणों का प्रकाश,
धरा मे उजाला फैलेगा ओंस की बूँद,
चमकने लगेगी चाँदी की थाल दीपों से,
बहने लगेगी हवाऐं मन भावना सनसन,

उदय को परिभाषित करेगा पूष्प कुँज,
हिम ताज चमकेगा भारत की भूधरा पर,
सागर लहरा लहरा कर सुख का गीतगायेगा,
कि भारत की धरा फिर मुसकरायेगी उदय से,
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तराखण्ड
दिनांक- 21-4-2020
विषय - उदय


अभी अस्त हूँ
इसलिए परस्त हूँ
फिर भी मैं आश्वस्त हूँ ।
क्योंकि.........
तिमिर को मिटना होगा
दिनकर को उगना होगा
रश्मियों को बिखरना होगा ।
क्योंकि..........
मेरे वन- उपवन सब महकेंगे
सुर कोयल के संग चहकेंगे
भ्रमर मकरंद पीकर बहकेंगे ।
क्योंकि...........
प्रेरणा भाव जब उदित होता
तब लक्ष्य पथ भी मुदित होता
मन विश्वास आह्लादित होता ।
क्योंकि...........
आशा का गुणगान होता
हौंसलों का जयगान होता
समाज में यशोगान होता ।
क्योंकि.............
जो हवा चली उसे बहने दो
बात फ़िज़ा की उसे कहने दो
समालोचनाओं को सहने दो ।
क्योंकि ..............
परत धुँधली पर उदित हुआ
दूर क्षितिज में घटित हुआ
ज़मीन आसमाँ चकित हुआ ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
दिनांक :- 21/04/2020
दिन :- मंगलवार

शीर्षक :- उदय

छटेगा तिमिर हर...
उज्ज्वल होगा कोना-कोना...
जन संकल्प की शक्ति...
भाग उठेगा कोरोना...
छाएगा आरोग्य चहूंओर..
आएगी फिर नूतन भोर...
आएगी फिर खुशहाली...
लौट आएगी शहरों की लाली...
लौटेगी रौनक बाजारों की..
खुलेंगे सब प्रतिष्ठान फिर...
नव ऊर्जा ले..
आएगा नवल विहान फिर..
विकास की रेलगाड़ी...
दौड़ेगी फिर पटरी पर...
नव पर्यावरण सँग...
होगी शुद्ध प्राणवायु...
लिखा जा रहा अब...
पृष्ठ नव इबारत का..
होगा उदय अब...
फिर नव_भारत का...
होगा उदय अब...
फिर नव_भारत का...

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

असफलता से मैं निराश नहीं होता।
वहीं तिमिर,जहाँ प्रकाश नहीं होता।


भूलों के शूलों से बिंध विदीर्ण मन।
करता है नि:शक्त और जीर्ण तन।
आशंकाओं में प्रयास नहीं खोता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।

घोर शीत रात्रि का पट जैसे खुलता।
प्रहर, वीर-धीरो का स्वतः बदलता।
किस निशापरान्त प्रभास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता

बरबस होता वह जो अकल्पनीय है।
मानव नरश्रेष्ठ बना क्यूं दयनीय है।
दैवयोग क्या अनायास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।

भीरू मन भय से लज्जित कब तक।
मुक्ति अवश्यमभावी किन्तु जब तक।
स्वयं से स्वयं का उपहास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।

विपिन सोहल
उदित
उदित होगा रवि फिर...
फिर से होगा भयरहित ये संसार...

मिलेंगे हम फिर लेकर खुशियाँ हजार...
रवि रश्मि बिखरा कर सुनहली आशा धूप....
फिर करेंगी हमें भय मुक्त...
बस एक यही आया है खयाल...
आस्था और विश्वास ही रखवाला है...
अस्त न हो कभी मेरे मन की आस..
कायम रहे सदा मेरा अमिट विश्वास...
उदित रहे रवि का प्रकाश...
पूजा नबीरा काटोल नागपुर
महाराष्ट्र

दिनांक २१/४/२०२०
शीर्षक-उदय


चाहे हो घनघोर अंधेरा
मनुज ना हो उदास
तम छट जायेगा
सूर्य उदय होगा आकाश।

भाग्य भरोसे बैठ कर
करे क्यो विचार
कर्म सुधारें अपना
भाग्य उदय का हो आगाज।

कंटिला हो राह गर
उदासी छाये ना भाल
कर्म पथ पर चलते रहे
अभ्यूदय हो तत्काल।

ज्ञान का जब उदय हो
सुधर जाये परलोक
करे प्रयास सदैव यही
सत्संग मिले हर इहलोक।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

21/04/2020

विषय;उदय
विधा; हाइकु

उदय हुआ
प्राची में दिवाकर~
भोर प्रहर।

चलता जब
सत्कर्म का पहिया~
उदय भाग्य।

नव उदय~
विश्व क्षितिज पर
चमका देश।

रात्रि प्रहर~
नील गगन पर
उदित तारे।

मनीष श्री
विषय-उदय
विधा-दोहा



उदय भाव उत्थान का, सबको इसकी चाह।
सभी अस्त से भागते, छोड़ें इसकी राह।।

उदय होते सूर्य को,पूजे सब संसार।
कोई डूबे भानु का,करे नहीं दीदार।

उदय हुआ सूरज अभी, बिखरा है आलोक।
तुहिन- कणों के बिंदु से,सजी तृणों की नोक।

निरख धवल आलोक को,उदय हुआ आह्लाद।
उड़ते भँवरे भी करें, फूलों से संवाद।।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
तिथि-21/4/20
विषय- उदय

***
नित नई इच्छाएँ,
होती उदय हृदय से,
बाँधना है इस संसार को,
स्नेह और निश्च्छल परिणय से,
अपने स्वच्छ विचारों को,
ना डूबने देना भय से,
प्रेम रस घोलना,
ना घबराना विलय से,
करो आगाज़ आज,
तुम अपने ही आलय से,
प्रकाश जीत का पाओगे,
अपने हौंसलों के उदय से ।
***
स्वरचित- रेखा रविदत्त


No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...