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ब्लॉग संख्या :-459
विषय यौवन ,जवानी
विधा कविता
27 जुलाई 2019,शनिवार
यौवन जीवन मधुमास नव
जो खिलकर सौरभता देता।
पर हित पथ पर चरण बढ़ाता
सारी विपदाएँ खुद सह लेता।
यौवन जीवन मादकता है
निज कर्तव्य भूल जाता है।
यौवन के उन्माद में बहकर
पाता नहीं ,रहता रीता है।
यौवन उत्साह स्फूर्ति तन की
तुम इसको बेकार न करना।
परोपकार पुण्य परहित में
रंगबिरंगे जीवन रंग भरना।
यौवन आता और जाता है
गौरव गर्व कभी न करना।
चार दिनों की जिंदगानी है
सबको गले लगाकर चलना।
चकाचौध पागल कर देती
यौवन मस्ती उन्माद भरा है।
सावधान होकर तुम चलना
कर्म जीवन सिर का सेहरा है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा कविता
27 जुलाई 2019,शनिवार
यौवन जीवन मधुमास नव
जो खिलकर सौरभता देता।
पर हित पथ पर चरण बढ़ाता
सारी विपदाएँ खुद सह लेता।
यौवन जीवन मादकता है
निज कर्तव्य भूल जाता है।
यौवन के उन्माद में बहकर
पाता नहीं ,रहता रीता है।
यौवन उत्साह स्फूर्ति तन की
तुम इसको बेकार न करना।
परोपकार पुण्य परहित में
रंगबिरंगे जीवन रंग भरना।
यौवन आता और जाता है
गौरव गर्व कभी न करना।
चार दिनों की जिंदगानी है
सबको गले लगाकर चलना।
चकाचौध पागल कर देती
यौवन मस्ती उन्माद भरा है।
सावधान होकर तुम चलना
कर्म जीवन सिर का सेहरा है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
जवानी
चेहरा नूरानी,
सर पर काले बाल ।
गठीला बदन,
मदमस्त चाल ।
मदमस्त चाल पर,
एक हो गई फिदा ।
ना वक्त गवा किया,
हमने ज्यादा ।
दुल्हन बन घर अायी ।
चाल पर फिदा हुई ,
घर में छा गई ।
कुछ दिन गुजरे,
हसीन सपनों में ।
फिर तकरार लगी होने,
अपने अपनो में ।
बढने लगी चिंता ।
दुखने लगा सर ।
चेहरे की झूर्रीयां,
मचाने लगी शोर ।
काले बालो ने,
छोड दिया साथ ।
खत्म हुई,
जवानी की हलचल ।
अब बोलते सब,
वह जा रहें..
अंकल ।
@प्रदीप सहारे
चेहरा नूरानी,
सर पर काले बाल ।
गठीला बदन,
मदमस्त चाल ।
मदमस्त चाल पर,
एक हो गई फिदा ।
ना वक्त गवा किया,
हमने ज्यादा ।
दुल्हन बन घर अायी ।
चाल पर फिदा हुई ,
घर में छा गई ।
कुछ दिन गुजरे,
हसीन सपनों में ।
फिर तकरार लगी होने,
अपने अपनो में ।
बढने लगी चिंता ।
दुखने लगा सर ।
चेहरे की झूर्रीयां,
मचाने लगी शोर ।
काले बालो ने,
छोड दिया साथ ।
खत्म हुई,
जवानी की हलचल ।
अब बोलते सब,
वह जा रहें..
अंकल ।
@प्रदीप सहारे
शीर्षक-- यौवन/जवानी
प्रथम प्रस्तुति
जवानी जोश है जुनून है जानिये
हर लम्हा अमोल मोती पहचानिये ।।
हर लम्हों की कद्रदानी करता जा
भाग्य विधाता खुद को सनमानिये ।।
हर जवानी खातिर कुछ निहित है
निरूदेश्य न कभी किसी को मानिये ।।
मकसद खुद का खुद जान जाएगा
हर पल जीता जा गुणगान बखानिए ।।
ऊर्जा हो बौद्धिक या हो कायिक
लक्ष्य पर इसको लगाना ठानिये ।।
हो अगर प्रतिकूलतायें मत घबरा
प्रतिकूलतायें सच्चीं मित्र अनुमानिए ।।
जवानी है आग बनाये या बिगाड़े
सकारात्मक रूप 'शिवम'गुणगानिये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/07/2019
प्रथम प्रस्तुति
जवानी जोश है जुनून है जानिये
हर लम्हा अमोल मोती पहचानिये ।।
हर लम्हों की कद्रदानी करता जा
भाग्य विधाता खुद को सनमानिये ।।
हर जवानी खातिर कुछ निहित है
निरूदेश्य न कभी किसी को मानिये ।।
मकसद खुद का खुद जान जाएगा
हर पल जीता जा गुणगान बखानिए ।।
ऊर्जा हो बौद्धिक या हो कायिक
लक्ष्य पर इसको लगाना ठानिये ।।
हो अगर प्रतिकूलतायें मत घबरा
प्रतिकूलतायें सच्चीं मित्र अनुमानिए ।।
जवानी है आग बनाये या बिगाड़े
सकारात्मक रूप 'शिवम'गुणगानिये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/07/2019
नमन मंच भावों के मोती
विषय- जवानी
27/7/2019
हिंद के फौजी तेरा कोई न सानी है,
देश हित अर्पित सदा तेरी जवानी है।
मातृभूमि की धड़कनों में रवानी है,
नाक में दुश्मन के नाथ लगानी है।
हिंद के फौजी आत्म बलिदानी हैं,
गाए समूचा देश मंगल कि बानी है।
देश कल्याण निमित्त रण भवानी है,
रज हिंद की भाल पर अब लगानी है।
लालसा शत्रु क्षेत्र में धूल चटानी है,
दुनिया के मानचित्र में धूम मचानी है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय- जवानी
27/7/2019
हिंद के फौजी तेरा कोई न सानी है,
देश हित अर्पित सदा तेरी जवानी है।
मातृभूमि की धड़कनों में रवानी है,
नाक में दुश्मन के नाथ लगानी है।
हिंद के फौजी आत्म बलिदानी हैं,
गाए समूचा देश मंगल कि बानी है।
देश कल्याण निमित्त रण भवानी है,
रज हिंद की भाल पर अब लगानी है।
लालसा शत्रु क्षेत्र में धूल चटानी है,
दुनिया के मानचित्र में धूम मचानी है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
यौवन/जवानी
💐💐💐💐
चार दिनों की है ये जवानी,
इसपर घमंड मत करना।
बचपन, जवानी, बुढ़ापा,
इन तीनों को है आना।
समय रहते कुछ तैयारी कर लो,
परहित में कुछ काम कर लो।
देश की खातिर जान लुटा दो,
नाम शहीदों में लिखा लो।
अमर रहोगे दुनियां में,
जवानी में कुछ ऐसा काम करो।
बेकार में हीं अपनी जवानी को,
बैठे, बैठे नहीं बर्बाद करो।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐💐💐
चार दिनों की है ये जवानी,
इसपर घमंड मत करना।
बचपन, जवानी, बुढ़ापा,
इन तीनों को है आना।
समय रहते कुछ तैयारी कर लो,
परहित में कुछ काम कर लो।
देश की खातिर जान लुटा दो,
नाम शहीदों में लिखा लो।
अमर रहोगे दुनियां में,
जवानी में कुछ ऐसा काम करो।
बेकार में हीं अपनी जवानी को,
बैठे, बैठे नहीं बर्बाद करो।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
दिनांक ... 27/7/'2019
विषय .. यौवन/ जवानी
**********************
तरूवर की तरूणायी देखी, यौवन मस्त जवानी देखी,
बैठ अकेला सोच रहा मन, किसमे क्या अच्छाई देखी।
खुद ही रस्ता चुना कर्म का,धन भरपूर चढाई देखी,
रिश्तों को तहजीब ना दी थी,शोहरत की अंगडाई देखी॥
यौवन अब ढलने को आया, भरी जवानी अब है छाया,
सोच रहा चुपचाप अकेला, क्या खोया अरू क्या-क्या पाया।
दौलत की उम्मीद लिए मै, गाँव को अपने त्याग दिया,
रिश्ते-नाते संगी- साथी, सपनों पे अपने वार दिया।
गाडी बंगला दौलत रूपया, अब ना कोई आस बचा,
ये सब तो भरपूर मिला पर, साथी कोई नही बचा।
संतति मेरी मेरे धन पर, मस्त जवानी खेल रही,
पर मै अब चुपचाप अकेला, जीवन अपना झेल रहा।
भौतिकवादी अब ये युग है, जो देगा वो पाएगा,
धन-दौलत तो यही रहेगा, कर्म अकेला जाएगा।
फिर कैसा अभिमान शेर क्यो, हाय पैसा करता है,
बचा जवानी हरि कर्मो मे, काहे ना तू रमता है॥
स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
विषय .. यौवन/ जवानी
**********************
तरूवर की तरूणायी देखी, यौवन मस्त जवानी देखी,
बैठ अकेला सोच रहा मन, किसमे क्या अच्छाई देखी।
खुद ही रस्ता चुना कर्म का,धन भरपूर चढाई देखी,
रिश्तों को तहजीब ना दी थी,शोहरत की अंगडाई देखी॥
यौवन अब ढलने को आया, भरी जवानी अब है छाया,
सोच रहा चुपचाप अकेला, क्या खोया अरू क्या-क्या पाया।
दौलत की उम्मीद लिए मै, गाँव को अपने त्याग दिया,
रिश्ते-नाते संगी- साथी, सपनों पे अपने वार दिया।
गाडी बंगला दौलत रूपया, अब ना कोई आस बचा,
ये सब तो भरपूर मिला पर, साथी कोई नही बचा।
संतति मेरी मेरे धन पर, मस्त जवानी खेल रही,
पर मै अब चुपचाप अकेला, जीवन अपना झेल रहा।
भौतिकवादी अब ये युग है, जो देगा वो पाएगा,
धन-दौलत तो यही रहेगा, कर्म अकेला जाएगा।
फिर कैसा अभिमान शेर क्यो, हाय पैसा करता है,
बचा जवानी हरि कर्मो मे, काहे ना तू रमता है॥
स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
27/7/2019
विषय-यौवन/जवानी
🌻🌹🌻🌹🌻🌹
उठ जाग रे नौजवान
सफल बना ले अपनी जवानी !
माना यौवन नाम है
भोगविलास,हास परिहास का
यही समय है भविष्य निर्माण
और व्यक्तित्व विकास का
चल रहीं नदियाँ, सूरज चाँद सितारे
अनवरत चल रही है श्वास
तू न थक, न रुक यौवन प्यारे
जिगर में प्राण जगा दे वो जवानी !
पहन ले देशप्रेम का चोला
जगा अंतर में धधकती ज्वाला
पहन कर वर्दी सेना की देशहित में
कुर्बान कर दे तू अपनी जवानी
प्राण तेरे साथ हैं,,उठ री जवानी!
दृढ़ इरादों से नग का सीना चीर दे
कुत्सित दृष्टि को निज हाथों से मसल दे
माँ, बहन बेटियों और भारत माँ को
सताने वाले सिरों को फोड़,भर दे पानी !
यदि नहीं है उबाल न ज्वार न ही रवानी
जिस यौवन का लहू बन गया पानी
अन्याय देख मुँह फेर ले वो कैसी जवानी
निज सीस अर्पण कर दे वो है ,जवानी !
रक्तिम चेहरा दमके तब तू लाल है
किसी माता का
लाल लहू में गर जो गुबार न उठे
वो दमकता भाल किस पिता का?
तेरी गौरव गाथा
इतिहास युगों तक सुनाए अपनी जुबानी
सकल विश्व माने,तो अमर है,,,जवानी !
**वंदना सोलंकी©️स्वरचित
विषय-यौवन/जवानी
🌻🌹🌻🌹🌻🌹
उठ जाग रे नौजवान
सफल बना ले अपनी जवानी !
माना यौवन नाम है
भोगविलास,हास परिहास का
यही समय है भविष्य निर्माण
और व्यक्तित्व विकास का
चल रहीं नदियाँ, सूरज चाँद सितारे
अनवरत चल रही है श्वास
तू न थक, न रुक यौवन प्यारे
जिगर में प्राण जगा दे वो जवानी !
पहन ले देशप्रेम का चोला
जगा अंतर में धधकती ज्वाला
पहन कर वर्दी सेना की देशहित में
कुर्बान कर दे तू अपनी जवानी
प्राण तेरे साथ हैं,,उठ री जवानी!
दृढ़ इरादों से नग का सीना चीर दे
कुत्सित दृष्टि को निज हाथों से मसल दे
माँ, बहन बेटियों और भारत माँ को
सताने वाले सिरों को फोड़,भर दे पानी !
यदि नहीं है उबाल न ज्वार न ही रवानी
जिस यौवन का लहू बन गया पानी
अन्याय देख मुँह फेर ले वो कैसी जवानी
निज सीस अर्पण कर दे वो है ,जवानी !
रक्तिम चेहरा दमके तब तू लाल है
किसी माता का
लाल लहू में गर जो गुबार न उठे
वो दमकता भाल किस पिता का?
तेरी गौरव गाथा
इतिहास युगों तक सुनाए अपनी जुबानी
सकल विश्व माने,तो अमर है,,,जवानी !
**वंदना सोलंकी©️स्वरचित
बिषयःः# यौवन /जवानी#
विधाःः काव्यःः
निकल गयी अगर यौवनावस्था,
फिर वापिस लौट नहीं पाती है।
करें परोपकार उन्मुक्त हृदय से ,
सत्य सद्कर्म साथ ले जाती है।
मदहोशी हर यौवन में छाती है।
यह सबसे बडी जीवन घाती है।
रखें कदम फूंक फूंककर वरना,
छोड बुराईयां ये सारी जाती है।
जो कठोर परिश्रम करें यौवन में,
फिर बृद्वावस्था में नहीं कर पाते।
कभी नहीं छोडें स्वछंद जवानी,
यदि कुछ गलत हुआ पछताते हैं।
यौवन लगे परिवार समाज हित।
येजीवन काम आऐ स्वदेश हित।
हम चढ पाऐं प्रगति शिखरों पर,
लगे सबसे सुंदर जीवन परहित।
भूल जाऐ यौवन की मादकता।
हम भूल जाऐं सारी भावुकता।
बनें चरित्रवान आदर्श संस्कारी,
हो प्रमुख संस्कृति भारतीयता।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा. #यौवन जवानी# काव्यःः
27/7/2019/शनिवार
विधाःः काव्यःः
निकल गयी अगर यौवनावस्था,
फिर वापिस लौट नहीं पाती है।
करें परोपकार उन्मुक्त हृदय से ,
सत्य सद्कर्म साथ ले जाती है।
मदहोशी हर यौवन में छाती है।
यह सबसे बडी जीवन घाती है।
रखें कदम फूंक फूंककर वरना,
छोड बुराईयां ये सारी जाती है।
जो कठोर परिश्रम करें यौवन में,
फिर बृद्वावस्था में नहीं कर पाते।
कभी नहीं छोडें स्वछंद जवानी,
यदि कुछ गलत हुआ पछताते हैं।
यौवन लगे परिवार समाज हित।
येजीवन काम आऐ स्वदेश हित।
हम चढ पाऐं प्रगति शिखरों पर,
लगे सबसे सुंदर जीवन परहित।
भूल जाऐ यौवन की मादकता।
हम भूल जाऐं सारी भावुकता।
बनें चरित्रवान आदर्श संस्कारी,
हो प्रमुख संस्कृति भारतीयता।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा. #यौवन जवानी# काव्यःः
27/7/2019/शनिवार
भावों के मोती
26/07/19
विषय-यौवन
सीप की वेदना
हृदय में लिये बैठी थी
एक आस का मोती,
सींचा अपने वजूद से,
दिन रात हिफाजत की
सागर की गहराईयों में,
जहाँ की नजरों से दूर,
हल्के-हल्के लहरों के
हिण्डोले में झूलाती,
सांसो की लय पर
मधुरम लोरी सुनाती,
पोषती रही सीप
अपने हृदी को प्यार से,
मोती धीरे धीरे
शैशव से निकल
किशोर होता गया,
सीप से अमृत पान
करता रहा तृप्त भाव से,
अब "यौवन" मुखरित था
सौन्दर्य चरम पर था,
आभा ऐसी की जैसे
दूध में चंदन दिया घोल,
एक दिन सीप
एक खोजी के हाथ में
कुनमुना रही थी,
अपने और अपने अंदर के
अपूर्व को बचाने,
पर हार गई उसे
छेदन भेदन की पीडा मिली,
साथ छूटा प्रिय हृदी का ,
मोती खुश था बहुत खुश
जैसे कैद से आजाद,
जाने किस उच्चतम
शीर्ष की शोभा बनेगा,
उस के रूप पर
लोग होंगे मोहित,
प्रशंसा मिलेगी,
हर देखने वाले से ,
उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
दो टुकड़ों में
कराहती सी रेत पर असंज्ञ सी,
अपना सब लुटा कर,
वेदना और भी बढ़ गई
जब जाते-जाते
मोती ने एक बार भी
उसको देखा तक नही,
बस अपने अभिमान में
फूला चला गया,
सीप रो भी नही पाई,
मोती के कारण जान गमाई,
कभी इसी मोती के कारण
दूसरी सीपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया,
हाय क्यों मैंने
स्वाति का पान किया।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
26/07/19
विषय-यौवन
सीप की वेदना
हृदय में लिये बैठी थी
एक आस का मोती,
सींचा अपने वजूद से,
दिन रात हिफाजत की
सागर की गहराईयों में,
जहाँ की नजरों से दूर,
हल्के-हल्के लहरों के
हिण्डोले में झूलाती,
सांसो की लय पर
मधुरम लोरी सुनाती,
पोषती रही सीप
अपने हृदी को प्यार से,
मोती धीरे धीरे
शैशव से निकल
किशोर होता गया,
सीप से अमृत पान
करता रहा तृप्त भाव से,
अब "यौवन" मुखरित था
सौन्दर्य चरम पर था,
आभा ऐसी की जैसे
दूध में चंदन दिया घोल,
एक दिन सीप
एक खोजी के हाथ में
कुनमुना रही थी,
अपने और अपने अंदर के
अपूर्व को बचाने,
पर हार गई उसे
छेदन भेदन की पीडा मिली,
साथ छूटा प्रिय हृदी का ,
मोती खुश था बहुत खुश
जैसे कैद से आजाद,
जाने किस उच्चतम
शीर्ष की शोभा बनेगा,
उस के रूप पर
लोग होंगे मोहित,
प्रशंसा मिलेगी,
हर देखने वाले से ,
उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
दो टुकड़ों में
कराहती सी रेत पर असंज्ञ सी,
अपना सब लुटा कर,
वेदना और भी बढ़ गई
जब जाते-जाते
मोती ने एक बार भी
उसको देखा तक नही,
बस अपने अभिमान में
फूला चला गया,
सीप रो भी नही पाई,
मोती के कारण जान गमाई,
कभी इसी मोती के कारण
दूसरी सीपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया,
हाय क्यों मैंने
स्वाति का पान किया।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
#विषय:यौवन"जवानी:
#विधा: काव्य"
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
#भ्रमर और #तितली:
प्रति क्षण प्रति पल गुंजार करूं,
रसपान करूं मैं तेरे यौवन का,
मधु के कण कण का रसिक हूं मैं,
मैं भ्रमर हूं तेरे इस मधुवन का,
मनमोहक हैं तेरी हर एक कलियां,
रस माधुर्य की मादक पंखुड़ियां,
बगियन बगियन बागूं में रसिया,
मैं भ्रमर तेरा उपवन मन बसिया,
लय पर पवन की खिंचा आता हूं,
मन्द मन्द डोलूं बाग और क्यारी,
प्रीत सतत ही निभाई है तुमने,
मैं करूं जवानी तुम पर ही सारी,
रंग बिरंगी मन मोहक तितलियां,
उड़ उड़ कर बगियन में सोहें
चाहत पराग के सूक्ष्म कणों की,
खुद भी फूलों के मन को मोहें,
रेश्मी पंखों की अजब फुलवारी,
जैसे हो अल्हड़ नवयौवना नारी,
पिया मिलन को व्याकुल सजनी,
करने को न्योछावर मस्त जवानी,
#विधा: काव्य"
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
#भ्रमर और #तितली:
प्रति क्षण प्रति पल गुंजार करूं,
रसपान करूं मैं तेरे यौवन का,
मधु के कण कण का रसिक हूं मैं,
मैं भ्रमर हूं तेरे इस मधुवन का,
मनमोहक हैं तेरी हर एक कलियां,
रस माधुर्य की मादक पंखुड़ियां,
बगियन बगियन बागूं में रसिया,
मैं भ्रमर तेरा उपवन मन बसिया,
लय पर पवन की खिंचा आता हूं,
मन्द मन्द डोलूं बाग और क्यारी,
प्रीत सतत ही निभाई है तुमने,
मैं करूं जवानी तुम पर ही सारी,
रंग बिरंगी मन मोहक तितलियां,
उड़ उड़ कर बगियन में सोहें
चाहत पराग के सूक्ष्म कणों की,
खुद भी फूलों के मन को मोहें,
रेश्मी पंखों की अजब फुलवारी,
जैसे हो अल्हड़ नवयौवना नारी,
पिया मिलन को व्याकुल सजनी,
करने को न्योछावर मस्त जवानी,
विषय यौवन
विधा कविता
दिनांक 27.7.2019
दिन शनिवार
यौवन का सुनहरा पृष्ठ
🔏🔏🔏🔏🔏🔏🔏
मन में भर जाती उमंग, पुलकित होता अंग अंग
अनायास ही उड़ती तरंग, बन जाये कोई अन्तरंग
इतनी बड़ी दुनियां फिर भी, पसन्द नहीं हरेक संग
अनुकूल लगता बस एक ही, प्रेम का मीठा प्रसंग।
जीवन का यह ऐसा भाग, निकलती बस एक राग
भ्रमर गूञन बावली कली और झांकते मधुर पराग
दिल हो जाता बाग बाग, खुशी के जलते हैं चिराग
दूर होते एकाकीपन के,फुफकारते विषैले नाग।
अर्पण आकर्षण के बनते चित्र
भावों में बिखरा रखता इत्र
अभिलाषा होती आये अब कोई अभिन्न मित्र
कल्पनाएं भी दौड़ती रहतीं विचित्र।
मंजुल सपनों का आलिंगन, और अंग अंग में स्पन्दन
अद्भुत अद्भुत आकर्षण, हर्षित कर देता हर क्षण
प्रकृति का अनुपम यह दर्शन, श्रेष्ठ है अर्पण और समर्पण
मीठी मीठी जीवन तड़पन, उल्लास भी होता है तत्क्षण।
न रहो अकेले बोली वय, कर लो तुम अब यह निश्चय
कहने लगा मस्त ह्दय, इस बेला में होते परिणय
भ्रमर मिलाता अपनी लय, कलियों में होता तन्मय
गूॅञ गूँज कहता देखो, जीवन का यही असली परिचय।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनांक 27.7.2019
दिन शनिवार
यौवन का सुनहरा पृष्ठ
🔏🔏🔏🔏🔏🔏🔏
मन में भर जाती उमंग, पुलकित होता अंग अंग
अनायास ही उड़ती तरंग, बन जाये कोई अन्तरंग
इतनी बड़ी दुनियां फिर भी, पसन्द नहीं हरेक संग
अनुकूल लगता बस एक ही, प्रेम का मीठा प्रसंग।
जीवन का यह ऐसा भाग, निकलती बस एक राग
भ्रमर गूञन बावली कली और झांकते मधुर पराग
दिल हो जाता बाग बाग, खुशी के जलते हैं चिराग
दूर होते एकाकीपन के,फुफकारते विषैले नाग।
अर्पण आकर्षण के बनते चित्र
भावों में बिखरा रखता इत्र
अभिलाषा होती आये अब कोई अभिन्न मित्र
कल्पनाएं भी दौड़ती रहतीं विचित्र।
मंजुल सपनों का आलिंगन, और अंग अंग में स्पन्दन
अद्भुत अद्भुत आकर्षण, हर्षित कर देता हर क्षण
प्रकृति का अनुपम यह दर्शन, श्रेष्ठ है अर्पण और समर्पण
मीठी मीठी जीवन तड़पन, उल्लास भी होता है तत्क्षण।
न रहो अकेले बोली वय, कर लो तुम अब यह निश्चय
कहने लगा मस्त ह्दय, इस बेला में होते परिणय
भ्रमर मिलाता अपनी लय, कलियों में होता तन्मय
गूॅञ गूँज कहता देखो, जीवन का यही असली परिचय।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
तिथिःः27/7/2019/शनिवार
बिषयः#यौवन/जवानी#
विधाःः काव्यःः
संस्कारवान बन चमकें तारे से।
करते फिरें आंगन उजियारे से।
चाहें तो जुगनूं बन सकते हम,
क्यों घूमें हम कहीं दुखियारे से।
इस धरती का आंगन अपना।
मातृभूमि का आंचल सपना।
लुटाऐं इसी पर यौवन हमसब,
मात दुलार आशीष है अपना।
उतार चढाव जीवन में आते हैं।
सुखदुख विचार मन में आते हैं।
हो संयम विवेक यौवन में अपने,
हम सर्वोच्च शिखर चढ जाते हैं।
तुम जवान कुछभी कर सकते हो।
पानी में तक आग लगा सकते हो।
कशम जवानी नभ तारे से चमकें,
चाहो शत्रु को धूल चटा सकते हो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म. प्र.
बिषयः#यौवन/जवानी#
विधाःः काव्यःः
संस्कारवान बन चमकें तारे से।
करते फिरें आंगन उजियारे से।
चाहें तो जुगनूं बन सकते हम,
क्यों घूमें हम कहीं दुखियारे से।
इस धरती का आंगन अपना।
मातृभूमि का आंचल सपना।
लुटाऐं इसी पर यौवन हमसब,
मात दुलार आशीष है अपना।
उतार चढाव जीवन में आते हैं।
सुखदुख विचार मन में आते हैं।
हो संयम विवेक यौवन में अपने,
हम सर्वोच्च शिखर चढ जाते हैं।
तुम जवान कुछभी कर सकते हो।
पानी में तक आग लगा सकते हो।
कशम जवानी नभ तारे से चमकें,
चाहो शत्रु को धूल चटा सकते हो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म. प्र.
27/07/2019
"यौवन/जवानी"
################
यौवन में होते उफनते भाव
खो ना देना होशो-हवास
ईमान धर्म को लेके साथ
सही राह की कर पहचान।
जवानी की होती मस्तानी चाल,
माया नगरी में न हो भटकाव
बुद्धि विवेक से लेना काम
ईश्वर पर रखना विश्वास।
जवानी के किस्से कहते अखबार,
यश-अपयश दोनों की भरमार
आशा किरण लेकर साथ
जीवन अपना स्वयं सँवार।
जवानी होते बड़े नादान
मन में उठते हैं तूफान
दहलीज कभी न करना पार
शांत रखना अपना स्वभाव।
जवानी को रखना संभाल
माता-पिता की रखना लाज
जीना न हो जाए दुश्वार
भूल न जाना अपने संस्कार।
जवानी है जीवन का चढ़ाव
इसके बाद बुढ़ापा से नाता
समय न रुकता किसी के पास,
जन्म मृत्यु के चक्र को जान।
सुकर्मों से यौवन तू सँवार
मानव जन्म की महत्ता जान
याद रहे धर्म औ संस्कार
श्रीकृष्ण की दासता स्वीकार।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
"यौवन/जवानी"
################
यौवन में होते उफनते भाव
खो ना देना होशो-हवास
ईमान धर्म को लेके साथ
सही राह की कर पहचान।
जवानी की होती मस्तानी चाल,
माया नगरी में न हो भटकाव
बुद्धि विवेक से लेना काम
ईश्वर पर रखना विश्वास।
जवानी के किस्से कहते अखबार,
यश-अपयश दोनों की भरमार
आशा किरण लेकर साथ
जीवन अपना स्वयं सँवार।
जवानी होते बड़े नादान
मन में उठते हैं तूफान
दहलीज कभी न करना पार
शांत रखना अपना स्वभाव।
जवानी को रखना संभाल
माता-पिता की रखना लाज
जीना न हो जाए दुश्वार
भूल न जाना अपने संस्कार।
जवानी है जीवन का चढ़ाव
इसके बाद बुढ़ापा से नाता
समय न रुकता किसी के पास,
जन्म मृत्यु के चक्र को जान।
सुकर्मों से यौवन तू सँवार
मानव जन्म की महत्ता जान
याद रहे धर्म औ संस्कार
श्रीकृष्ण की दासता स्वीकार।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
27/7/2019
बिषय ,,यौवन,, जवानी
जवानी वही जो देश के काम आए
हर शख्स की जुवां पर तेरा ही नाम आए
कुछ कर दिखाने का अगर जज्बा मन में हो
निस्वार्थ भाव सेवा तेरे समर्पण में हो
परोपकार की भावना से जिऐ उसी को कहते हैं जीवन
अकारथ जो गवां देते उसका बेकार है यौवन
निज हितों के लिए जिया तो क्या जिया
खुद के लिए धन दौलत एकत्र किया तो क्या किया
कुछ दिन की मेहमान
जवानी आई है चली जाएगी
आए हो जो पृथ्वी पर कर्ज उसका चुका देना
नाम तेरा हो जाए ऐसा कर दिखा देना
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय ,,यौवन,, जवानी
जवानी वही जो देश के काम आए
हर शख्स की जुवां पर तेरा ही नाम आए
कुछ कर दिखाने का अगर जज्बा मन में हो
निस्वार्थ भाव सेवा तेरे समर्पण में हो
परोपकार की भावना से जिऐ उसी को कहते हैं जीवन
अकारथ जो गवां देते उसका बेकार है यौवन
निज हितों के लिए जिया तो क्या जिया
खुद के लिए धन दौलत एकत्र किया तो क्या किया
कुछ दिन की मेहमान
जवानी आई है चली जाएगी
आए हो जो पृथ्वी पर कर्ज उसका चुका देना
नाम तेरा हो जाए ऐसा कर दिखा देना
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
मंच भावों के मोती को नमन
दिन :-शनिवार ।ताः-27/7/2019
विषय :-यौवन /जवानी
विधा.:-कविता
बचपन के दिन
खेल बिताये
आई जवानी
करत दीवानी
यौवन की
रंग रेलियां है ।
गई जवानी
रीते घट सा
तन मन दोनों
खाली खाली ।
अरे बुढ़ापा ही
जोर मारता
लाठी टेक
चले सब हार ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
दिन :-शनिवार ।ताः-27/7/2019
विषय :-यौवन /जवानी
विधा.:-कविता
बचपन के दिन
खेल बिताये
आई जवानी
करत दीवानी
यौवन की
रंग रेलियां है ।
गई जवानी
रीते घट सा
तन मन दोनों
खाली खाली ।
अरे बुढ़ापा ही
जोर मारता
लाठी टेक
चले सब हार ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
नमन मंच
दिनांक २७/७/२०१९
शीर्षक-यौवन जवानी
जवानी है जीवन का वरदान
बचपन बीते खेल खेल में
बुढ़ापा में रोग हजार
जवानी है जीवन का वरदान।
परिवार का भरण-पोषण
सब हैं जवानी के नाम
श्रेष्ठ कर्म में बीते जवानी
तभी रहे यह खरा सोना सा।
वीर रस से भरा हो यौवन
जो आये देश के काम
अनादर न करें बुर्जुगों का
जवानी नही सदा बहार।
हर गतिविधि हो सधे कदम सा
मनिषियों देते हमें यही सलाह
सिंचित करें धन व सुकर्म
जो आये बुढ़ापा में काम।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक २७/७/२०१९
शीर्षक-यौवन जवानी
जवानी है जीवन का वरदान
बचपन बीते खेल खेल में
बुढ़ापा में रोग हजार
जवानी है जीवन का वरदान।
परिवार का भरण-पोषण
सब हैं जवानी के नाम
श्रेष्ठ कर्म में बीते जवानी
तभी रहे यह खरा सोना सा।
वीर रस से भरा हो यौवन
जो आये देश के काम
अनादर न करें बुर्जुगों का
जवानी नही सदा बहार।
हर गतिविधि हो सधे कदम सा
मनिषियों देते हमें यही सलाह
सिंचित करें धन व सुकर्म
जो आये बुढ़ापा में काम।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
नमन-भावो के मोती
विषय-यौवन
दिनांक-27/07/2019
यौवन के पहले शैशव
कुछ अजब शरारत सूझी रही।।
मेरे मन की अभिलाषा
मुझसे प्रश्न क्यों पूछ रही है।।
श्रृंगार करने को तन है भूखा
पांव कहे पायल लाओ
कौन आकर्षित करता मुझको
उसकी सूरत हमें दिखाओ।।
कमर करधनी के बिन व्याकुल
नथिया गंधो को सूँघ रही है
मेरे मन की अभिलाषा
मुझसे प्रश्न क्यों पूछ रही है।।
देख के लोग अचंभित होते हैं
सुंदर कोमल तन की काया को।।
मै बाबरी समझ ना पाई
चढ़ते यौवन की माया को।।
नयन मेरे मयखाने
होंठ मेरे मय के प्याले
मदहोश हुआ मीना का दीवाना।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विषय-यौवन
दिनांक-27/07/2019
यौवन के पहले शैशव
कुछ अजब शरारत सूझी रही।।
मेरे मन की अभिलाषा
मुझसे प्रश्न क्यों पूछ रही है।।
श्रृंगार करने को तन है भूखा
पांव कहे पायल लाओ
कौन आकर्षित करता मुझको
उसकी सूरत हमें दिखाओ।।
कमर करधनी के बिन व्याकुल
नथिया गंधो को सूँघ रही है
मेरे मन की अभिलाषा
मुझसे प्रश्न क्यों पूछ रही है।।
देख के लोग अचंभित होते हैं
सुंदर कोमल तन की काया को।।
मै बाबरी समझ ना पाई
चढ़ते यौवन की माया को।।
नयन मेरे मयखाने
होंठ मेरे मय के प्याले
मदहोश हुआ मीना का दीवाना।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
द्वितीय प्रस्तुति
नमन -भावो के मोती
जवानी...का आगाज
किसके सम्मोहन में पागल धरती
मदहोश जवानी आजाद है।।
जीवन संघर्षों के पृष्ठभूमि में
आज ओशो का संन्यास है।।
अंतर्द्वंद के निश्चलता में
चंचल मन एक मधुमास है।।
भूख की धूप सलोनी हो
मधुर -मधुर मकरंद आगाज है।।
आंखों में है सुर्ख शोले
तड़प मन का सहवास है।।
कागज का दर्द किससे कहै
स्याही भी आज उदास है।।
ब्रह्म का दर्शन कब मिले
वेदांत शंकर का अंतर्नाद है।।
ध्यान के धुन को मन में बसाये
जमीं की जन्नत बर्बाद है।।
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित@#
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
नमन -भावो के मोती
जवानी...का आगाज
किसके सम्मोहन में पागल धरती
मदहोश जवानी आजाद है।।
जीवन संघर्षों के पृष्ठभूमि में
आज ओशो का संन्यास है।।
अंतर्द्वंद के निश्चलता में
चंचल मन एक मधुमास है।।
भूख की धूप सलोनी हो
मधुर -मधुर मकरंद आगाज है।।
आंखों में है सुर्ख शोले
तड़प मन का सहवास है।।
कागज का दर्द किससे कहै
स्याही भी आज उदास है।।
ब्रह्म का दर्शन कब मिले
वेदांत शंकर का अंतर्नाद है।।
ध्यान के धुन को मन में बसाये
जमीं की जन्नत बर्बाद है।।
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित@#
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
वों के मोती
बिषय- यौवन
बचपन की दहलीज लांघ कर
ठुमक ठुमक कर आता यौवन।
रखना कदम सोच-समझकर
हर पल गिरने का इसमें डर है।
हर कदम उठाने से पहले तुम
अंजाम का अंदाजा लगा लेना।
याद रखना,एक गलत कदम
तुम्हारी तमाम उम्र तबाह कर देगा।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- यौवन
बचपन की दहलीज लांघ कर
ठुमक ठुमक कर आता यौवन।
रखना कदम सोच-समझकर
हर पल गिरने का इसमें डर है।
हर कदम उठाने से पहले तुम
अंजाम का अंदाजा लगा लेना।
याद रखना,एक गलत कदम
तुम्हारी तमाम उम्र तबाह कर देगा।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
भावों के मोती दिनांक 27/7/19
जवानी / यौवन
है जवानी
एक धोखा
मत होओ
मदहोश इसमें
कर्म ही
पहचान है
गर रहे संयमित
जवानी में
नहीं होगी
बदनामी
जीवन में
यौवन है
पानी सा
बुलबुला
उड़ जाऐगा
एक दिन
गर रहे
अपने अपनों के
ये
जीवन में
यादें छोड़
जाऐगा
न कर घमंड
न उड़ आसमां में
इन्सा
कर इज्जत
बुजुर्गों की
न जवानी रहेगी
न यौवन रहेगा
है सब भ्रम
मन का
आशीर्वाद ही
साथ रह पाऐगा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
जवानी / यौवन
है जवानी
एक धोखा
मत होओ
मदहोश इसमें
कर्म ही
पहचान है
गर रहे संयमित
जवानी में
नहीं होगी
बदनामी
जीवन में
यौवन है
पानी सा
बुलबुला
उड़ जाऐगा
एक दिन
गर रहे
अपने अपनों के
ये
जीवन में
यादें छोड़
जाऐगा
न कर घमंड
न उड़ आसमां में
इन्सा
कर इज्जत
बुजुर्गों की
न जवानी रहेगी
न यौवन रहेगा
है सब भ्रम
मन का
आशीर्वाद ही
साथ रह पाऐगा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन भावों के मोती
27/07/2019
***यौवन***
तुम युवा हो!
नहीं शोभता तुम्हारा
नशे में यूँ डगमगाना
यौवन को तन में नहीं
मन में सदा बिठाना
सद्मति की खिड़की का
दरवाजों का खुल जाना...
तुम युवा हो!
निडर रहो, साहसी बनो
कि मुट्ठी में हो जमाना
पर ठहर जरा!
यह बात समझते जाना
निज-अनुशासन से सज्जित
संयमित आचार अपनाना...
तुम युवा हो!
मत ढूँढो न करने का
हरदम नया बहाना
एक बार जो ठान लिया
वह पूरा कर दम पाना
तुम्हें शोभता ढूंँढ-ढूंँढ कर
चुनौतियों से जा टकराना...
तुम युवा हो!
नहीं बाँधती तुमको निर्मित राहें
है तुम्हें शोभता नूतन राह बनाना
खुद निर्मित कर नई चुनौती
उसमें हीं सुख पाना
युग प्रवर्तन के वाहक को
दुनिया कहती रहे दीवाना...
तुम युवा हो!
बाधाओं को चीरकर
चुनौतियों से जा टकराना
बनी-बनाई लिकें टूटें
चाहिए नए सवाल उठाना
बदलाव बिना न चली प्रकृति
न हीं बदल सका जमाना...
तुम युवा हो!
खलनायक के चेहरे वाली
हर तस्वीर मिटाना
तुम्हें शोभता देश का हित
उस पर सर्वस्व लुटाना
तेरे कांधे पर सिर रख कर
धरा चाहती है मुस्काना...
स्वरचित "पथिक रचना"
27/07/2019
***यौवन***
तुम युवा हो!
नहीं शोभता तुम्हारा
नशे में यूँ डगमगाना
यौवन को तन में नहीं
मन में सदा बिठाना
सद्मति की खिड़की का
दरवाजों का खुल जाना...
तुम युवा हो!
निडर रहो, साहसी बनो
कि मुट्ठी में हो जमाना
पर ठहर जरा!
यह बात समझते जाना
निज-अनुशासन से सज्जित
संयमित आचार अपनाना...
तुम युवा हो!
मत ढूँढो न करने का
हरदम नया बहाना
एक बार जो ठान लिया
वह पूरा कर दम पाना
तुम्हें शोभता ढूंँढ-ढूंँढ कर
चुनौतियों से जा टकराना...
तुम युवा हो!
नहीं बाँधती तुमको निर्मित राहें
है तुम्हें शोभता नूतन राह बनाना
खुद निर्मित कर नई चुनौती
उसमें हीं सुख पाना
युग प्रवर्तन के वाहक को
दुनिया कहती रहे दीवाना...
तुम युवा हो!
बाधाओं को चीरकर
चुनौतियों से जा टकराना
बनी-बनाई लिकें टूटें
चाहिए नए सवाल उठाना
बदलाव बिना न चली प्रकृति
न हीं बदल सका जमाना...
तुम युवा हो!
खलनायक के चेहरे वाली
हर तस्वीर मिटाना
तुम्हें शोभता देश का हित
उस पर सर्वस्व लुटाना
तेरे कांधे पर सिर रख कर
धरा चाहती है मुस्काना...
स्वरचित "पथिक रचना"
" भावों के मोती "
पटल
वार : शनिवार
दिनांक : 27.07.2019
आज का शीर्षक :
यौवन / जवानी
विधा : काव्य
गीत
मदहोशी का नशा चढ़ा तो ,
कहते इसे जवानी हैं !
लहरों का उन्माद यहाँ है ,
सिर पे चढ़ता पानी है !!
जब किशोर से हुए जवां तो ,
दुनिया लगे निराली है !
दर्पण रोज निखारे छवियाँ ,
जब भी नज़रें डाली है !
खुशबू जैसे डोला करते ,
खूब करें मनमानी हैं !!
सदा लक्ष्य हम यहाँ साधते ,
मंजिल आसां करने को !
पल पल भी अवसर देता है ,
बहुधा यहाँ सँवरने को !
नई नई ऊंचाई छूते ,
गढ़ते नई कहानी है !!
नशा चढ़े है हाला जैसा ,
सदा झलकता आँखों से !
उँची नित्य उड़ानें भरते ,
रोज मखमली पाँखों से !
बहुतेरे ग़ाफ़िल हो जाते ,
समय बड़ा तूफानी है !!
जैसे ढली जवानी जानो ,
हाथों एक पिटारा है !
यादों का गुलदस्ता संग है ,
नभ में ढलता तारा है !
रंग सिमटते से लगते हैं ,
दुनिया लगती फानी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
पटल
वार : शनिवार
दिनांक : 27.07.2019
आज का शीर्षक :
यौवन / जवानी
विधा : काव्य
गीत
मदहोशी का नशा चढ़ा तो ,
कहते इसे जवानी हैं !
लहरों का उन्माद यहाँ है ,
सिर पे चढ़ता पानी है !!
जब किशोर से हुए जवां तो ,
दुनिया लगे निराली है !
दर्पण रोज निखारे छवियाँ ,
जब भी नज़रें डाली है !
खुशबू जैसे डोला करते ,
खूब करें मनमानी हैं !!
सदा लक्ष्य हम यहाँ साधते ,
मंजिल आसां करने को !
पल पल भी अवसर देता है ,
बहुधा यहाँ सँवरने को !
नई नई ऊंचाई छूते ,
गढ़ते नई कहानी है !!
नशा चढ़े है हाला जैसा ,
सदा झलकता आँखों से !
उँची नित्य उड़ानें भरते ,
रोज मखमली पाँखों से !
बहुतेरे ग़ाफ़िल हो जाते ,
समय बड़ा तूफानी है !!
जैसे ढली जवानी जानो ,
हाथों एक पिटारा है !
यादों का गुलदस्ता संग है ,
नभ में ढलता तारा है !
रंग सिमटते से लगते हैं ,
दुनिया लगती फानी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
भावों के मोती
सादर संध्या वंदन
विषय=यौवन/जवानी
विधा=हाइकु
=========
(1)झलक रहा
जवानी में बुढापा
नशे की लत
(3)देती दस्तक
यौवन दहलीज
मन मोहिनी
(3)छाई जवानी
नदियों पर आज
बाढ़ जो आई
(4)भलाई कर्म
जवानी का है धर्म
समझो मर्म
(5)इश्क जगाएं
यौवन जब आएं
भाग्य मुस्काये
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
27/07/2019
सादर संध्या वंदन
विषय=यौवन/जवानी
विधा=हाइकु
=========
(1)झलक रहा
जवानी में बुढापा
नशे की लत
(3)देती दस्तक
यौवन दहलीज
मन मोहिनी
(3)छाई जवानी
नदियों पर आज
बाढ़ जो आई
(4)भलाई कर्म
जवानी का है धर्म
समझो मर्म
(5)इश्क जगाएं
यौवन जब आएं
भाग्य मुस्काये
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
27/07/2019
विषय यौवन,जवानी
विधा लघुकविता
द्वितीय प्रस्तुति
जवानी दीवानी होती है
रवानी तन पर छा जाती।
अल्हड़ता के वश हो जाते
सुंदरता मन को भा जाती।
सुंदरता की चकाचौंध
पुत्र पुत्रियां बने पराया ।
प्यार वफ़ा के चक्कर मे
मात पिता मन घबराया।
यौवन आता और जाता
जीवन न बर्बाद करो।
तरुणाई सृजन सृजित हो
पर हित डग चरण धरो।
यौवन जीवन भोग नहीं है
यौवन है मधुमास सुहाना।
मलय पवन के शीतल झौखे
जीवन को सरसब्ज बनाना।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा लघुकविता
द्वितीय प्रस्तुति
जवानी दीवानी होती है
रवानी तन पर छा जाती।
अल्हड़ता के वश हो जाते
सुंदरता मन को भा जाती।
सुंदरता की चकाचौंध
पुत्र पुत्रियां बने पराया ।
प्यार वफ़ा के चक्कर मे
मात पिता मन घबराया।
यौवन आता और जाता
जीवन न बर्बाद करो।
तरुणाई सृजन सृजित हो
पर हित डग चरण धरो।
यौवन जीवन भोग नहीं है
यौवन है मधुमास सुहाना।
मलय पवन के शीतल झौखे
जीवन को सरसब्ज बनाना।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
हमें डर है न लग जाए कहीं आग पानी में।
जरा रखना कदम बाहोश चढती जवानी में।
मुहब्बत रंग लाती थी कभी एक जमाने में।
थकावट है बुढापे सी ये कैसी नौजवानी में।
मुहब्बत एक वादा था मेरा इस जिन्दगी से।
यकीं करता नहीं कोई अब इस कहानी में।
जमाने में बहुत से रंग देखे बेरंग बेनूर होते।
नहीं लगता है अब दिल दुनिया ए फानी मे।
बहुत मुश्किल से जां में जां है आई, सोहल।
मुझे लगता बड़ा डर है उनकी मेहरबानी में।
विपिन सोहल स्वरचित
जरा रखना कदम बाहोश चढती जवानी में।
मुहब्बत रंग लाती थी कभी एक जमाने में।
थकावट है बुढापे सी ये कैसी नौजवानी में।
मुहब्बत एक वादा था मेरा इस जिन्दगी से।
यकीं करता नहीं कोई अब इस कहानी में।
जमाने में बहुत से रंग देखे बेरंग बेनूर होते।
नहीं लगता है अब दिल दुनिया ए फानी मे।
बहुत मुश्किल से जां में जां है आई, सोहल।
मुझे लगता बड़ा डर है उनकी मेहरबानी में।
विपिन सोहल स्वरचित
नमन भावों के मोती
आज का विषय, जवानी, यौवन,
दिनांक, 2 7,7,2019.
मौका मिलता है सबको,
जीवन में एक बार ।
प्रदर्शित करे साहस को,
मुश्किलों से करे दो हाथ ।
यौवन है नाम हिम्मत का ,
कर लें काम कुछ शौर्य का ।
निर्माण नवीन चाहें कर लें ,
मुस्कान रोतों की लौटा दें ।
चाहें तो करें दफन बुराई को,
सहारा दें दीन दुखियों को ।
भटकों को राह दिखायें हम ,
कर दें बर्बाद सब दुश्मनों को।
जवानी है नाम मेहनत का,
चाँद ला सकते हैं फलक का।
दिल में हो अगर जो तमन्ना,
आसां है गहरे में मोती चुनना।
लाज मानव तू अपनी रखना,
यौवन को व्यर्थ ही न खोना ।
सिर पे कफन बाँध के रखना ,
धरा का तो कर्ज अदा करना ।
मोहब्बत करेगी खूब ये दुनियाँ,
तुम नफरतें जग से मिटा देना।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
आज का विषय, जवानी, यौवन,
दिनांक, 2 7,7,2019.
मौका मिलता है सबको,
जीवन में एक बार ।
प्रदर्शित करे साहस को,
मुश्किलों से करे दो हाथ ।
यौवन है नाम हिम्मत का ,
कर लें काम कुछ शौर्य का ।
निर्माण नवीन चाहें कर लें ,
मुस्कान रोतों की लौटा दें ।
चाहें तो करें दफन बुराई को,
सहारा दें दीन दुखियों को ।
भटकों को राह दिखायें हम ,
कर दें बर्बाद सब दुश्मनों को।
जवानी है नाम मेहनत का,
चाँद ला सकते हैं फलक का।
दिल में हो अगर जो तमन्ना,
आसां है गहरे में मोती चुनना।
लाज मानव तू अपनी रखना,
यौवन को व्यर्थ ही न खोना ।
सिर पे कफन बाँध के रखना ,
धरा का तो कर्ज अदा करना ।
मोहब्बत करेगी खूब ये दुनियाँ,
तुम नफरतें जग से मिटा देना।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
नमन भावों के मोती
शीर्षक -- यौवन/जवानी
द्वितीय प्रस्तुति
जवानी में तुम न मिले अच्छा रहा
भूल भी हो जाती दिल बच्चा रहा ।।
खुदा की ही यह कारस्तानी जानी
अब न कहूँ किस्मत का दच्चा रहा ।।
वाह विधाता क्या न समझाये तूँ
जिन्दगी भर में यह समझता रहा ।।
वदी को भी कभी विचारा कीजिये
जो विचारा गम में वह हँसता रहा ।।
निकल आया जवानी की भँवर से
आग ही जाना समझा बचता रहा ।।
जवानी है जिम्मेदारी जो न हो ये
क्या हो 'शिवम' यह सोचता रहा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/07/2019
शीर्षक -- यौवन/जवानी
द्वितीय प्रस्तुति
जवानी में तुम न मिले अच्छा रहा
भूल भी हो जाती दिल बच्चा रहा ।।
खुदा की ही यह कारस्तानी जानी
अब न कहूँ किस्मत का दच्चा रहा ।।
वाह विधाता क्या न समझाये तूँ
जिन्दगी भर में यह समझता रहा ।।
वदी को भी कभी विचारा कीजिये
जो विचारा गम में वह हँसता रहा ।।
निकल आया जवानी की भँवर से
आग ही जाना समझा बचता रहा ।।
जवानी है जिम्मेदारी जो न हो ये
क्या हो 'शिवम' यह सोचता रहा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/07/2019
27/07/2019
"जवानी/यौवन"
1
प्रेम कहानी
मदमस्त जवानी
आँखों में पानी
2
खोयी तमीज
यौवन दहलीज
कर्म भी नीच
3
रंग में भंग
जवानी के उमंग
मूढ़ता संग
4
रात मस्तानी
तड़पत जवानी
पी की दीवानी
5
माया नगरी
भटकती जवानी
करे नादानी
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
"जवानी/यौवन"
1
प्रेम कहानी
मदमस्त जवानी
आँखों में पानी
2
खोयी तमीज
यौवन दहलीज
कर्म भी नीच
3
रंग में भंग
जवानी के उमंग
मूढ़ता संग
4
रात मस्तानी
तड़पत जवानी
पी की दीवानी
5
माया नगरी
भटकती जवानी
करे नादानी
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
शीर्षक यौवन /जवानी
27/7 /2019
1
यौवन आया
जीवन भरमाया
समझ आया
2
धरा श्रृंगार
यौवन उपहार
वर्षा बहार
3
आयी जवानी
मरा आँखों का पानी
की मनमानी
4
यौवन माया
युवा है भरमाया
अँधेरा छाया
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
27/7 /2019
1
यौवन आया
जीवन भरमाया
समझ आया
2
धरा श्रृंगार
यौवन उपहार
वर्षा बहार
3
आयी जवानी
मरा आँखों का पानी
की मनमानी
4
यौवन माया
युवा है भरमाया
अँधेरा छाया
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
शुभ साँझ मित्रो
💐💐💐💐💐💐💐💐
विषय:-यौवन/जवानी
विधा:-मुक्तक आधारित कविता
आओ चलो साथ हम भी होले,
वंदेमातरम के नारे को बोले ,
आये जवानी कुछ देश हित में
ऐसा लहु अपने रगरग में घोलें।
सारे जहाँ में बढ़े सम्मान अपना
आयें काम सबके करें काम इतना
दी है सपूतों ने जब जान अपनी
जब बढाया दुश्मन ने हाथ अपना
रखना कदम तुम भी ऐसे जवानी में
दुश्मन भी हार जाए तेरी कहानी में
उडने लगो तुम होसलों की उडाने
लहु तब भी गर्म रहे तेरी रवानगी में
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
💐💐💐💐💐💐💐💐
विषय:-यौवन/जवानी
विधा:-मुक्तक आधारित कविता
आओ चलो साथ हम भी होले,
वंदेमातरम के नारे को बोले ,
आये जवानी कुछ देश हित में
ऐसा लहु अपने रगरग में घोलें।
सारे जहाँ में बढ़े सम्मान अपना
आयें काम सबके करें काम इतना
दी है सपूतों ने जब जान अपनी
जब बढाया दुश्मन ने हाथ अपना
रखना कदम तुम भी ऐसे जवानी में
दुश्मन भी हार जाए तेरी कहानी में
उडने लगो तुम होसलों की उडाने
लहु तब भी गर्म रहे तेरी रवानगी में
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
27/7/19
जवानी
हाइकु
--------
1)
जीवन संग
बचपन बुढ़ापा
जवानी रंग ।।
2)
ऋतु बसंत
जीवन में जवानी
दिखा जीवंत ।।
3)
खुदा ने दिया
जीवन में जवानी
लिखो कहानी ।।
4)
देश पुकारे
इतिहास पुरानी
तोड़े जवानी ।।
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
जवानी
हाइकु
--------
1)
जीवन संग
बचपन बुढ़ापा
जवानी रंग ।।
2)
ऋतु बसंत
जीवन में जवानी
दिखा जीवंत ।।
3)
खुदा ने दिया
जीवन में जवानी
लिखो कहानी ।।
4)
देश पुकारे
इतिहास पुरानी
तोड़े जवानी ।।
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
27जुलाई19
विधा : हाइकु
विषय: यौवन /जवानी
चढ़ी जवानी
विद्रोह की निशानी
क्रांति सदन
किशोर मन
यौवन दहलीज़
ऊँची उड़ान
शोख़ आदाएं
यौवन की फुहार
प्यार बहार
भरी जवानी
अल्हड़ता निशानी
मुग्धा नायिका
धारा प्रवाह
यौवन का उफ़ान
लक्ष्य सन्धान
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा : हाइकु
विषय: यौवन /जवानी
चढ़ी जवानी
विद्रोह की निशानी
क्रांति सदन
किशोर मन
यौवन दहलीज़
ऊँची उड़ान
शोख़ आदाएं
यौवन की फुहार
प्यार बहार
भरी जवानी
अल्हड़ता निशानी
मुग्धा नायिका
धारा प्रवाह
यौवन का उफ़ान
लक्ष्य सन्धान
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
कविता
विषय "यौवन"
मादकता की गंध बसी
और कसा हुआ है तन
केशों में छाये हैं बदरा
यूँ बरस रहा यौवन...
साँसों की भूल भूलैया
और भटक रहा है मन
होठों पे प्रेम प्यास लिए
यूँ तरस रहा यौवन...
तेरी सोहबत का असर
और बदल गया जीवन
तुझे ही आईना बनाकर
यूँ सँवर रहा यौवन....
हाथों में लिए हाथ है
और स्वप्न चूम रहे गगन
समय की प्रीत के झूले
यूँ झूम रहा यौवन....
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
विषय "यौवन"
मादकता की गंध बसी
और कसा हुआ है तन
केशों में छाये हैं बदरा
यूँ बरस रहा यौवन...
साँसों की भूल भूलैया
और भटक रहा है मन
होठों पे प्रेम प्यास लिए
यूँ तरस रहा यौवन...
तेरी सोहबत का असर
और बदल गया जीवन
तुझे ही आईना बनाकर
यूँ सँवर रहा यौवन....
हाथों में लिए हाथ है
और स्वप्न चूम रहे गगन
समय की प्रीत के झूले
यूँ झूम रहा यौवन....
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
भावों के मोती
विषय -जवानी/ यौवन
____________________
मत गुरूर कर इतना
अपने खून की रवानी पर
चार दिन की जवानी है
एक दिन ढल जाएगी
बुढ़ापे की दस्तक
फिर गलतियाँ गिनाएगी
बेपरवाही से जीना
सुनहरे पलों को खोना
वर्तमान की गलतियों से
भविष्य का बिगाड़ना
माता-पिता की अवहेलना
गलतियों पर गलतियाँ
जवानी के जोश में
करते रहे नादानियाँ
बीत गया यौवन
फिर मिली तन्हाईयाँ
खेल-कूद के यार दोस्त
समझने लगते फिर बोझ
तब समझ आती है
ज़िंदगी की असल सच्चाई
क्यों अपनी जवानी मौज में बिताई
इसलिए रखो होश
किस्मत को मत दो दोष
निकल पड़ो मंज़िल की ओर
रचो रोज नए कीर्तिमान
ऊँचा करो देश का नाम
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
विषय -जवानी/ यौवन
____________________
मत गुरूर कर इतना
अपने खून की रवानी पर
चार दिन की जवानी है
एक दिन ढल जाएगी
बुढ़ापे की दस्तक
फिर गलतियाँ गिनाएगी
बेपरवाही से जीना
सुनहरे पलों को खोना
वर्तमान की गलतियों से
भविष्य का बिगाड़ना
माता-पिता की अवहेलना
गलतियों पर गलतियाँ
जवानी के जोश में
करते रहे नादानियाँ
बीत गया यौवन
फिर मिली तन्हाईयाँ
खेल-कूद के यार दोस्त
समझने लगते फिर बोझ
तब समझ आती है
ज़िंदगी की असल सच्चाई
क्यों अपनी जवानी मौज में बिताई
इसलिए रखो होश
किस्मत को मत दो दोष
निकल पड़ो मंज़िल की ओर
रचो रोज नए कीर्तिमान
ऊँचा करो देश का नाम
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
हाइकु
यौवन भार
कामाग्नि जली तन
मचले मन।।
पिया विदेश
तन मन तड़पे
आया संदेश।।
मेरे सजन
तेरे बिन जोगन
छेड़े पवन।।
तन पावन
सोलहवां सावन
यौवन ज्वार।।
भावुक
यौवन भार
कामाग्नि जली तन
मचले मन।।
पिया विदेश
तन मन तड़पे
आया संदेश।।
मेरे सजन
तेरे बिन जोगन
छेड़े पवन।।
तन पावन
सोलहवां सावन
यौवन ज्वार।।
भावुक
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