Thursday, July 11

"गुमराह "11 जुलाई 2019

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ब्लॉग संख्या :-444

विषय-गुमराह

गुमराह मैं हो गया

पर रास्ता आसान था।

रेगिस्तान के बरखान मे भटक गया

सामने तूफान था।।

रास्ते को खोज रहा मैं

रात-दिन हैरान था।।

बागवाँ के भरोसे चमन छोड आया

गर्दिशो के धूलो मे परेशान था।।

ऐ रास्ता इशारा न कर

विदीर्ण होता आसमान था।।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज


हम गुमराह कभी नहीं ह्नों
इसीलिये सत्संग में रहते।
चैराहे पर खड़े सभी हम
स्वविवेक नित आगे बढते।

मायाजाल फैला है जग में
हो जाते गुमराह स्वार्थ में।
सोचो समझो बढ़ो सदा ही
सुख शांति फैले भारत में।

जीवन में गुमराह कौन नहीं
सब अधिकार चाहते अपना।
कर्त्तव्यों से विमुख रहते सब
देखें सदा मिथ्या मिल सपना।

गुमराह को सु राह दिखाना
बिछड़े हुये को पुनः मिलाना।
ये जीवन अति अद्भुत मित्रों
मिलनाज़ुलना आकर जाना।

स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

मत करो हमको गुमराह
हम तो वैसे भी भटके हैं ।।

इस जनम से ही नही हैं
हम कई जन्म से अटके हैं ।।

वादा कर आए थे मुक्ति का
देखे न उस ओर पलटके हैं ।।

तेरा मेरा रट रही सटकने-
को मालायें भी सटके हैं ।।

भला बुरा भी जान गये हैं
पर पूर्व जनम के झटके हैं ।।

अनायास ही कब आ जाऐं
बने रहें हरदम वो खटके हैं ।।

माया नगरी बड़ी विकट है
इसमें कौन नही अटके हैं ।।

बड़े बड़े ज्ञानी गुमराह हुए
जिन्होने तप किये डटके हैं ।।

सीख सीख सीखे ''शिवम"
पर जहर बहुत से गटके हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 110/07/2019


दिनांक -11 /7 / 2019
गुरूवार ।विषय -गुमराह
विधा - हाईकू
(1)
बात बेबात
राहों में गुमराह
क्यों करते हो ?
(2)
आज के बाद 
हम नही मिलेंगे 
हैं गुमराह ।
(3)
लक्ष्य से हटे
पथ भ्रष्ट हुये जो 
गुमराही हैं ।
(4)
व्यर्थ की बात 
अनर्थ कर देती 
गमराही का ।
स्वरचित -उषासक्सेना

बिषय ,,गुमराह,,
पाश्चात्य सभ्यता के वशीभूत
स्वयं को खोते जा रहे
पश्चिमी संस्कृति में
गुमराह,, होते जा रहे
सारी दुनिया में विदित भारतीय
संस्कार
वहीं बिदेशी अपना रहे
हमारे आचार विचार
प्रणेता सर्वश्रेष्ठ भारत का आचरण
युगों युगों से रहा समस्त विश्व का
आकर्षण
हम क्यों लादते विपरीत प्रणाली
बैठे जिस पर काटते वही डाली
अनुचित कृत्यों से क्यों करें समझौता
स्वयं ही दे रहे विनाश का न्यौता
नींव हमारी जब पहाड़ बन जाऐंगे
बीज जो बोए झाड़ बन जाऐंगे
जब नौनिहाल हाय हलो कहकर
बुलाऐंगे
पैर छूने के बदले हाथ वो हिलाऐंगे
अपने ही आपनों को पहचान नहीं 
पाऐंगे 
फिर पछतावा क्या हाथ मलते 
रह जाऐंगे

स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार 
सर्वाधिकार सुरक्षित,,

विषय गुमराह
×××××××××××××

न करो इस तरह गुमराह मुझे,
प्यार की राहों से सदा दे कर।

संभलना बहुत ही मुश्किल है,
दर्दे दिल सनम का साथ दे कर।

करो प्रीत सभी से सुना था,
कर ली तो मिले दर्द ले-दे कर।

चाहे रहें तन्हा, वफ़ा रहे जिन्दा,
चलो चलें हम नेक रास्ते पर।।

स्वरचित 
मीनू"रागिनी"
11/07/10

दिनांक , 11, 7, 2019.

काँटों भरा जिंदगी का सफर है,
गुमराह यहाँ आदमी हो रहा है ।

एहसास रिश्तों का मखमली है,
भरोसा फिसलता ही जा रहा है ।

चाँदनी की ही चाहत है यहाँ पर ,
सूरज तो बस यूँ ही तप रहा है ।

खूबसूरत नजारे बहुत हैं जहाँ में,
माया में ही मन उलझा जा रहा है।

दुःख दर्द हर तरफ है दुनियाँ में ,
गम हमें अपना नजर आ रहा है।

कहने को बहुत कुछ है यहाँ पे ,
पर गुणगान अपना ही हो रहा है।

कमी तो नहीं यहाँ आशिकों की ,
जनाजा वफा का चला जा रहा है

गुमराह है हर कोई मगर फिर भी,
सामने उँगलियाँ उठाये जा रहा है।

जिसकी अमानत है ये जिदंगानी,
दामन उसी से बचाये जा रहा है।

राह जीवन की दिखायेगा वो ही ,
समझदार चरणों में रम रहा है ।

सहारा मिला है जिसको वफा का,
मंजिल पे अपनी वो चला जा रहा है।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश.

***************************
🍋 गुमराह 🍋
🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚

जीवन जीना एक कला है ।
हर मुश्किल का हल निकला है ।।

कर्म करें कर्तव्य निभायें ,
सफल वही जो कष्ट पला है ।

चूक गये गुमराह हुए तो ,
वक्त कभी रुकता न, खला है ।

खोज करें हम सत्य सदा ही ,
ज्ञान , विवेक प्रयोग भला है ।

भ्रमित न हों, मिल जीवन जीयें ,
प्यार दिलों में अमर पला है ।

धर्म ध्वजा जग में फहरायें ,
अन्त समय में भान फला है ।

साँस मिली हैं गिनती की तन , 
जाने कब उन पर हमला है ।।

🐚🍎🌴🌹🍃🌸

🐚🌱 ***.... रवीन्द्र वर्मा , आगरा


काफिया, अर की बंदिशः ः
एक प्रयास ः

गुमराह जानबूझकर ही करता है
क्यों बेशरम बन कर ढाता कहर।/1/

नगर नगर गुमराह हुऐ अब नादाँ,
निशदिन घोल रहा दिलों में जहर।/2/

बस्ती उजड गई इस गुलशन की,
गुमराहों की हो चली जब से डगर।/3/

करले जितना जी चाहे गुमराह हमें,
नहीं रहेगा कहीं भी तू अजर अमर।/4/

लडना चाहे हमसे तू कहीं अगर,
आजा दम ठोककर किसी शहर।/5/

करें सदा एक तीर से कई शिकार,
रखना बात याद तू ये सभी पहर।/6/

गुमराही से फर्क हमें नहीं पडता,
हम आऐं सदैव यहीं पर लौटकर।/7/

स्वरचित ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


"गुमराह"
################
पाश्चात्य संस्कृति का आकर्षण,
युवा पीढ़ी को गुमराह कर रहे,
सामाजिक दायरा का लंघन कर....
विवाह से पहले "लीभ टुगेदर"स्वीकार कर रहे।

हमारी पहचान जिस भूमि से रही है,
उसे पाश्चात्य भी अब अनुसरण कर रहे,
और हम ही अपनी संस्कृति को भूल रहे
हम अभिभावक ही कुछ गलतियां कर रहे।

अपनी संस्कृति की रक्षा हमें ही करनी है,
समय रहते युवाओं को संभालना है,
उनके भविष्य को निखारना है.........
सही दिशा प्रदान कर गुमराह होने से बचाना है।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।


विधा लघु कविता

समाज, सरकार मनुष्य सभी का यह कर्तव्य है को नूतन पीढ़ी को गुमराह होने से बचाए
इसी भाव के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत है मेरा यह लघु प्रयास

गुमराह नहीं होने देंगें
--------------------------

हर मंजिल आसान करेंगे,
जीवन लक्ष्य महान करेंगे।
नशा नही करने देंगें,
गुमराह नहीं होने देंगें।

निष्कण्टक मार्ग प्रशस्त करेंगे
समुचित शिक्षा का प्रबंध करेंगे
रोजगार का सृजन करेंगे
गुमराह नहीं होने देंगें

नैतिक बोध का भाव भरेंगे
सत्य अहिंसा का बीज रोपेंगें
विश्व विजय उदघोष करेंगे
गुमराह नही होने देंगें

सही राह पर चलने देंगें
प्यार भावना सम्बल देंगें
कर्तव्य ज्ञान जीवन देंगें
गुमराह नही होने देंगें

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली


#दिनांक:११"७"२०१९:
#विषय:गुमराह:

#विधा:काव्य लेखन:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:

***""*** गुमराह ***""***

पदचिन्हों को एक आदर्श मानकर,
अनुशरण कर ऋषियों मुनियों का,
तिलांजली देकर पाश्चात्य संस्कृति,
अंधानुकरण ना कर तू दुर्गुणियों का,

गुमराह हुवे हैं जो तामसी बनकर,
निशाचरी योनि का प्रतिनिधत्व करें,
तू मोक्ष प्राप्त कर सात्विक बनकर,
जग में दुर्जन ही दुष्टों की मौत मरें,

गौरवशाली पूर्वजों के हम हैं वंशज,
वैभवशाली सभी हमारी परमपराएं,
धर्म सनातन हम नतमस्तक तुम पर,
पूज्यनीय हैं हमारी गंगा और गायें,

अनंतकाल से ही मिली गुरुकुल शिक्षा,
सतयुग त्रेता द्वापर के स्पष्ट प्रमाण हैं,
हम ब्रह्माण्ड के रहस्यों के भी ज्ञाता हैं
औरों के लिए ये युग आखेट पाषाण है

तिथि .. 11-07-2019
विषय .. "गुमराह "

एक रचना विषय आधारित ...
कल हम क्या थे 
आज हम क्या हैं ?
कौन कर रहा है 
गुमराह हमें यहां ,
और क्यों ...,
क्या है,स्वार्थ उसका 
या है स्वार्थ हमारा 
गुमराह होने में ....,
क्या हम अपनी 
चेतना को खोते जा रहे हैं 
या जान कर अनजान हैं,हम 
या ज्ञानचक्षु ने छीन ली है 
सोचने ..समझने की शक्ति 
और हम किसी के कहने से 
नहीं हुए गुमराह ,बल्कि 
हमें गुमराह किया 
हमारी ज्ञान चेतना ने ....|

शशि कांत श्रीवास्तव 
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब 
स्वरचित रचना ...

बिषय- गुमराह
जो गुमराह करते बच्चों को

ऐसे लोगों से राम बचाए।
भविष्य देश का ये बच्चे हैं,
कोई जरा उनको बतलाए।।

एक बार जो भटक गए मासूम
फिर राह पर लाना मुश्किल हो।
मन पर लिखी इबारत को
हो सके मिटाना नामुमकिन हो।।

असली सम्पदा हैं अपनी ये बच्चे
इनका रखना होगा पूरा ख़याल।
वरना पछताना होगा हमें ताउम्र
अनुत्तरित रहेगा मन का हर सवाल।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

गुरुवार 

कविता 

आज जीवन साधनों की लालसा में लिप्त होकर,
व्यक्ति अपने पैर चादर से अधिक फैला रहा है। 

कितनी ही हो जेब खाली खर्च पर रुकते नहीं है,
इसलिए षडयंत्र और फरेब उसको भा रहा है।

धन कमाने के लिए अब तोड़कर सब श्रृंखलाएं
वह जघन्य अपराध करके जेब भरता जा रहा है।

क्यों मनुज सुख-साधनों में इस कदर उलझा हुआ है,
जिससे मर्यादा का न प्रतिमान मन में आ रहा है।

आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण यही है,
क्यों सभी को लोभ यूँ गुमराह करता जा रहा है। 

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर


विषय- गुमराह।

फूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
पत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।

रुमानियत की बातें न कर ए जमाने
अज़ाब ए गिर्दाब में "गुमराह" है जिंदगी भी। 

संगदिलों से कैसी परस्ती ए दिल
वफा न मिलेगी जख्म ए ज़बीं पा कर भी। 

चाँद तारों की तमन्ना करने वाले सुन
जल्वा ए माहताब को चाहिये फलक भी। 

"शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।

तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
स्वरचित 

कुसुम कोठारी।
(अज़ाब =दर्द, गिर्दाब =भंवर, ज़बीं =माथा, सर)

गुमराह

हो रहे नशे के गर्त में 
गुमराह बच्चे 
उन्हें सही राह दिखाना है 
हाथ पकड़ कर चलना है
बन कर उनके साथी सच्चे

इन्सान आज
खुद ही है गुमराह 
भ्रष्टाचार के जाल में 
जब निकलेगी
अंतरात्मा से आवाज
ईमानदारी की
भ्रष्ट मुक्त होगा
देश समाज अपना 

गुमराह करने को
बहुत है दुनियाँ में 
रहेगे जागरूक 
तो नहीं फंसेगे जंजाल में 

ईश्वर है सही राह
दिखाने वाला
विश्वास रखो उस पर 
फिर न रहेगी गुंजाइश कोई
गुमराह होने की

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

आज का कार्य गुमराह

पड़ा जो भी लालच में भूला वह ही राह।
भूल कर सत्य की राह हो गया गुमराह।।

शीघ्र धन पाने के चक्कर में भूलता राह।
नहीं किसी दीन का पकड़ता नर्क की राह।।

लगा कर जिहाद का नारा करते गुमराह।
कट्टर पंथी करते मौज भोला मानव आह।।

बन्दों को मार कर पाता नहीं स्वर्ग की राह।
स्वार्थ के लिये करो मत किसी को गुमराह।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

" गुमराह"
प्रेम तृष्णा की लालसा में,

ये रूह फनाह हो गई,
तेरे प्रेम की पगड़ंड़ी पर,
जिंदगी ये गुमराह हो गई,
झूठी वासनाओं की जंजीरों में,
ईच्छाएँ सारी जकड़ गई,
झंझोर दिया जब विपदाओं ने,
दिवानों की सारी अकड़ निकल गई,
राह की तलाश में जब हमने,
संभल कर फिर नजर घुमाई,
कोई नहीं था साथ यहाँ,
फिर अपनों की बात समझ आई,
गुमराह हो गए थे आके गैरों की बातों में,
प्रकाश कुंज सी तेरी बातों ने राह दिखाई,
भूल गए थे जीना हम,
प्रेम ने तेरे राह दिखाई।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/7/19
वीरवार


विषय- "गुमराह "
विधा- कविता

*************
चुनावी दौर जब होता शुरू, 
नेता बनते तब भाषण गुरू, 
झूठे वादे कितने ये करते, 
जनता को गुमराह करते |

पाँच साल कुर्सी पर जमते,
अपनी ही झोली ये भरते, 
फ़ितरत इनकी जानें जनता, 
फर्क इनको कुछ नहीं पड़ता |

चिकनी-चुपड़ी बातें इनकी, 
गुमराह सबको करती हैं, 
पद इनको तो मिल जाता, 
भोली जनता तरसती है |

लोकतंत्र है ताकत अपनी, 
जनता इसको पहचानो, 
मत अपना उसी को देना, 
भली-भाँति जिसको जानों |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

विषय.. गुमराह
लघु कविता


हो गया युवा गुमराह यदि
राहें हो जाती हैं मुश्किल।
लाख करे फिर जतन कोई
उसका भटकाव सुनिश्चित है।
यदि चाह रोकने की है दिल में
उससे उसका बचपन न छीनो।
हर पल करें हिफाजत उसकी
जब भी मन में हो बेचैनी उसके।
आओ हम भी करें सुनिश्चित
गुमराह न होगा बचपन कोई।
आएं कितनी भी बाधाएं
हम करें सुनिश्चित बचपन उसका।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर

आज का विषय : गुमराह
विधा : काव्य 

गीत 

कौंन यहाँ गुमराह नहीं है ,
भटकाती ही राह है !!
मंजिल पाना लक्ष्य सभी का ,
सबकी एक ही चाह है !!

धन अर्जन की धुरी बुरी है ,
बहुतेरे से भेद हैं !
अच्छे अच्छे राह भटकते ,
इस छलनी में छेद हैं !
शिक्षा दीक्षा अगर सही है ,
पा जाते हम थाह हैं !!

नशा उम्र का अगर चढ़े तो ,
करता यह गुमराह है !
जो गुनाह ना करना जाने ,
वो भी भरता आह है !
नीली छतरी तनी हुई पर ,
फिर भी मिले न छाँह है !!

रूप रंग की गागर छलके ,
महकी लगे बहार है !
अंखियों के गहरे सागर में ,
डूबे कई हजार हैं !
कितने ही मझधार फंसे हैं ,
लगे डूबती नाव है !!

आज नशीला धुंआ खींचता ,
जाने कितने प्राण हैं !
जाने कितने भटक गये हैं ,
खोया धन औ मान है !
जीवन से भी हार मान ली ,
थके थके से पाँव हैं !!

नशा धर्म का बड़ा बुरा है ,
फैलाता उन्माद है !
अपनों से ही बैर कराता ,
देता बस अवसाद है !
मिले गुनाह की धूप घनेरी ,
यहाँ नहीं बस ठाँव है !!

आदत अगर नशा बन जाये ,
मानो चढ़ा खुमार है !
राह अगर सच्ची पकड़ी तो ,
अपने हाथ बहार है !
जीत कभी है हार यहाँ तो ,
अपने अपने दाँव हैं !!

स्वरचित / रचियता : 
बृज व्यास 
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

विधा कविता
दिनांक 10.7.2019
दिन गुरुवार

गुमराह
🍁🍁🍁🍁

जब पूरी नहीं हो पाती चाह
बढ़ती रहती है जब आह
असंतोष करता मन में दाह
प्रभुत्व बढा़ती अपनी डाह
आशायें पड़तीं काली स्याह
धूमिल होती हर पनाह
संकटमय होती है राह
युवा होता है गुमराह।

गुमराह होते को लोग भड़काते
सब अपनी अपनी दाल गलाते
आग लगा पीछे हट जाते
बेवज़ह फिर हँसी उडा़ते।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
Damyanti Damyanti 

विषय,,गुमराह ।
क्यो हो रहे गुमराह ।

मन की भावानाऐ 
आचार विचार हीन मानव
चंचल प्रवृत्तियों मे रहे गुम ।
नेता चम्मचों की देखी मनमानी ।
अस्तित्व व व्यक्तित्व हीन करते मनमानी ।
डर नही ईश्वर का हो रहे स्वेच्छा चारी ।
गुमराह हो करते शिकार कच्ची कोमल कलियों कि ।
नेता देश के युवाओं को कर गुमराह 
फैलाऐ आतंक भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी ।
दो उनको कर्तव्य निष्ठा ज्ञान ।आचरण हो शुद्ध चले सत्य राहो पर ।
दिशाहीन अगर भकते रहे कैसा होगा भविष्य ।
स्वरचित ,,दमयन्ती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेश ।

विषय ....# गुमराह #
**********
1/., संभलो मित्रों 
चेहरा किताब है।
गुमराह क्यों ?
**********************
2/.,माया की चाह 
मत हो ' गुमराह '
संतोषी बनो ।
**********************
3/,,आज के बाबा
करते ' गुमराह '
फंसते लोग।
**********************
....................................
स्वरचित ....' विमल '

दिनांक-११/७/२०१९
"शीर्षक-गुमराह"

जिनका नहीं कोई पथ प्रर्दशक
वहीं होते हैं गुमराह
क्षणिक सुख के लालच में
लोग हो जाते है बर्बाद।

अपनी गलती छुपाने को
लोग करते दूसरों को गुमराह
दूजे गुमराह हो ना हो
कर्म उनका होता खराब।

जिसे नहीं है जीने का लक्ष्य
वे अक्सर होते गुमराह
जो चल पड़े लक्ष्य साधकर
वे नही होते गुमराह।

हो भरोसा अपने कर्म पर
और सदा हो दायित्व का भान
गुमराह नहीं वे अपने पथ से
सदा उनको लक्ष्य पर ध्यान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

आज के विषय पर चंद पंक्तियाँ.. विषय:-"गुमराह" 

उनके वादों के सब्जबाग 
देख फ़िदा हम हो गए
टकराई हकीकत टूटे स्वप्न 
और गुमराह हम हो गए.... 

किताब वाले हाथों में 
घृणा के पत्थर हो गए 
खरीद ली गई देशभक्ति 
और गुमराह हम हो गए... 

झूठों की इस महफिल में 
सब सच अकेले हो गए 
पाप पुण्य को समझ न पाए 
और गुमराह हम हो गए.. 

अंधों की बताई राह पे चल 
अपनी दृष्टि को खो गए 
नशा,आतंकवाद की पकड़ी अंगुली 
और गुमराह हम हो गए.. 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

विषय- गुमराह
________________
क्यों सहें कब तक सहें
इन छल भरी बातों में लिपटे रहें
गुमराह करती यह रातों को
छलनी करती जज़्बातों को
दिल लगाने की यह कैसी सजा
बढ़ रही दूरी हम दोनों में बेवजह
अब न कोई मौका,न कोई धोखा
झूठेे वादों ने इस दिल को तोड़ा
कब तक सहेंगे यह दर्द दिल का
भ्रम का आईना टूटकर बिखरा
मेरी वफ़ा पर यह तेरी बेवफ़ाई
सहनी ही थी एक दिन ये जुदाई
कब तक सहें और क्यूँ सहें हम
तन्हाइयों में घुट-घुट कर मरे हम
गमों को हमारे इस कदर बढ़ाकर
दिल तोड़कर तुम मुस्कुरा रहे हो
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित

विषय-- गुमराह 
विधा---मुक्त 

------------------------------
गुलों की वादी में 
महकती गुलाब की
क्यारियों में 
गंध बारुद की आने
लगी है

पुस्तकें जिन हाथों में 
सजनी थी
उनमें पत्थर और बंदूक 
नज़र आई हैं

फूलों से मुस्कराते चेहरे
पत्थर नजर आने लगे हैं 
देश के भावी जवान 
गुमराह होने लगे हैं 

चंद कागज के टुकड़ों में 
जवानी बेच रहे हैं 
अपने ही देश में रहकर
देश से गद्दारी कर रहे हैं 

गुमराह होते ये बच्चे 
माँ-बाबा का दर्द भूल रहे
है देश के प्रति भी कोई फर्ज
स्वार्थ में अपने भूल रहे हैं। 

डा. नीलम

#दिनांक------11/07/19

कर लेना मन की हर चाह पूरी ।
थामना सदा ही तुम सच्ची राह।।
बुराई का दामन न कभी धरना ।
जीवन पथ पर न हो कभी गुमराह।।

रहते हैं चित्त में स्वप्न अथाह ।
रखते हैं हम जिसे दे कर पनाह ।।
जब न हो पाये आशा पूरी तो ।
दे जाते हैं मन को दर्द कराह ।।

#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन #धरा
#रायगढ़#छत्तीसगढ़

विषय गुमराह
***
आध्यात्मिक गुरु के 
प्रवचन का माहौल था ।
मोक्ष ,मुक्ति जैसे गूढ़ विषयों 
पर चर्चाओं का दौर था ।
जीवन में आनंद के 
कुछ गुर सिखा रहे थे ।
संभ्रांत लोगों का जमावड़ा
माहौल को गंभीर बना रहा था ।
तयशुदा लोग तयशुदा प्रश्न
पूछ रहे थे ।
उनके गूढ़ जवाब 
कुछ समझ आ रहे थे
कुछ समझ से परे थे ।
हमने भी
....…एक सरल सा प्रश्न उनसे पूछा
अगर ये आपका पाठ और विधि 
इतनी महान है
तो इस पर इतना भारी शुल्क क्यों?
क्या इसी से देश विदेश मे 
आश्रम बनवाते हैं
या जनता को# गुमराह 
किया करते हैं
...ऐसे प्रश्न की उम्मीद नही होगी 
माहौल मे सन्नाटा छा गया
सब मुझको ताक रहे थे
प्रश्न बहुत सीधा था,
जवाब उनके लिए टेढ़ा था
शायद चुभता प्रश्न था 
तीर निशाने पे लगा था 
बुलेटप्रूफ गाड़ियों में चल 
आलीशान जीवन जीने वाले 
मोक्ष मुक्ति का मार्ग बताये !
वो तो गुमराह कर 
अपना उल्लू सीधा करते हैं 
जनता भोली क्यों छली जाती है 
वो अपनी राह न चल पाती है
चेतना होगा बुद्धि कौशल से 
गुमराह होने से बचना होगा ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

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