Tuesday, July 2

"वजह"01जुलाई 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-434

ारण कोई रहा हो सदियों से।
अब हालात बदलने चाहिए ।।
जुर्म सहे है शान्त रहे है हमसब।
मानवता का संदेश दिऐ है।
जगजाहिर है हम मानवता मे।
अपनों को है नित गवाते हमसब।
कैसे यह धर्म का परवान है।
एक धर्म का दूसरे धर्म पर अतिक्रमण।
जिहाद करो पर खुब करो हररोज।
गुनाहों का करो आक्रमक रवैया का करो।
मानवता सद्भावना रखों सभी मे।
यही वजह/कारण समझ बैठे तुम।
हम कुछ कहते नही लवजिहाद करो तुम।
यह हमारी सोच नही प्रतिशोध की।
हर परिस्थिति सम रहे न उपद्रव करे।
तुम आतातायी बन अनाचार करो।
कुटैव भला सभी में होते।
पर अव्यस्क अज्ञानी पर इनती पशुता।
कारण क्या वजह क्या ।
इतनी शर्मसार पाशुविकता।
यही पाठ पढे हो मात्र गोद में।
यही शिक्षा विद्यालय मे।
की मानवता पर प्रहार करो।
अतिक्रमण कर जिहाद करो।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा

कोई वजह नहीं जानता
प्रकृति का अद्भुत परिवर्तन।
कठपुतली से घूम रहे हम
प्रभु करवाता है नित नर्तन।

मायाजाल फैला जग में
तेरा मेरा हम नित करते।
कोई वजह नहीं जानता
कैसे जन्मे और क्यो मरते?

सारहीन जीवन पथ पर
उत्तम कर्तव्य पथ होता।
यही वजह है कर्महीन तो
वह जीवन में नित रोता।

ज्ञान भक्ति के अद्भुत बल से
नर जीवन साकारित करता।
इसी वजह के कारण मानव
प्रभु नाम जीवन भर भजता।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

कभी बेवजह ही मिल जाया करो 
जिन्दगी नही बड़ी तरस खाया करो ।।

नादानी में दिल आ गया तुम पर
दिल खातिर नादानी अपनाया करो ।।

दिल न देखे दौलत और शोहरत
कभी कभार यह दूरी मिटाया करो ।।

वजह देखते रहे मिलने की न मिले
भूल हुई यह भूल न दोहराया करो ।।

यादों का गुलदस्ता हमने सजाया है
आकर कभी खूबसूरती बढ़ाया करो ।।

नसीब होते जिन्हे अन्जान में कोई
चाहे ये चाहत कभी अजमाया करो ।।

यह दिल तो आपका घर है ''शिवम"
यहाँ आने की वजह न सुझाया करो ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/07/2019


एक अरसा गुजर गया तुम्हें मुस्कुराये हुये, 
महफ़िल में ख़ामोशी की क्या थी वजह |

मायूसी का लिबास लपेट लिया बदन से ,
ख़ुमारी चढ़ी मन में सादगी की क्या थी वजह |

मुक्क़दर में नहीं हम, बहला कर ठुकरा दिया, 
आज पहलू में बैठने की क्या थी वजह |

तुम मांझी मैं पतवार, ज़िंदगी थी नैया, 
बीच मझधार में छोड़ चले क्या थी वजह |

दफ़न कर दिया यादों के मंज़र को यूँ ही ताबूत में, 
सिसक रहा दिल तरसती आँखों की क्या थी वजह |
स्वरचित -
-अनीता सैनी

ना जाने कौनसी,
खुशनुमा दुनिया में,
जिन्दगी जी रहें है हम,
खुश तो रहते है पर,
घेरकर खड़े रहते हैं गम ၊
चाहत तो होती है,
भीड़ में खोने की ၊
चाहत तो होती है,
अपनों में जाने की ၊
चाहत तो होती है,
दोस्तों संग बतियाने की ၊
चाहत तो होती है,
जी भरकर हंसने की ၊
हंसने के लिए वजह,
ढुंडते हैं हम ၊
ना जाने किस,
संदर्भ में जी रहे हम ၊

प्रदीप सहारे
बिषय ,,वजह,
हमारी करनी की वजह ही हैं 
सुख दुःख
जो भी भोगते कर्म ही है प्रमुख
इस हाथ देंगे तो उस हाथ पाऐंगे
देर अबेर परिणाम समक्ष आऐंगे
दुख की वजह न बनें कभी किसी 
बुरे वक्त पर सहयोगी बने सभी के
सुकर्म ही हो निज का आधार
स्वयं ही बोलेंगे सत्कर्म संस्कार
फूल की महक स्वतः चहुँ ओर
छा जाएगी ज्यों नव किरणों की भोर
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार


🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹
विषय:-वज़ह
विधा:-गज़ल
2122. 2122. 2122
नाम लिख - लिख के मिटाते ही रहोगे 
कब तलक जल राख होते ही रहोगे ..! 

वजह तू ढूँढ किस तरह बर्बाद हुये
देख लेना नजर बंद खुद ही रहोगे ....।

फासले जब बढ गये हैं दरमियाँ जो
कब तलक आँखें बहाते ही रहोगे ...।

सूख जायेगा समंदर आँख से जब
तब खयालों को बहाते ही रहोगे ...।

देख लेना आरजू का हाल तब ये
नींद में तुम बहलाते ही रहोगे ....।

आँख से हम दूर हैं अब बेसबब जो
साथ में हर मोड़ पाते ही रहोगे...।

लाख ढूंढोगेे निगाहें आसमानी
आँख से आँसू बहाते ही रहोगे...।

स्वरचित

नीलम शर्मा #नीलू


आज का विषय, वजह , 
दिन, सोमवार, 

दिनांक, 1, 7, 2019,

वजह छुपी थी मन के अंदर ,
ढूँढ रहे थे वे घर बाहर ।
खिलखिलाना गुम है बच्चों का,
गुमसुम गुमसुम से वृध्द हमारे ।
बैठक घर की बंद पड़ी है ,
सूने सूने से छत और द्वारे ।
मदद नहीं माँगते हैं पड़ोसी ,
हों चाहें वे विपदा के मारे ।
तीर नैनों के मोबाइल में डूबे ,
तरस रहे हैं दिल के मारे ।
राष्ट्र समाज की बात फिजूल है,
यहाँ हैं सब सपनों से हारे ।
बड़ी बड़ी सौगातें लेकर के ,
पहुँच रहे हैं भगवान के द्वारे ।
समय परिवर्तन क्यों और कैसे,
वजह जानते जानने वाले ।
पहले आप का चक्कर चलता,
हम दोषी नहीं हैं बेचारे ।
पर्दा स्वार्थ का हटा के देखो ,
कष्ट निवारण होंगे सारे ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश

क्या कारण कि भोलेभंडारी,
तुम दर्शन दुर्जन को नहीं देते हो।
चापलूसी चाहे जितनी करलें हम
लेकिन फिर भी दर्शन नहीं देते हो।

वजह हमें यही लगती है देवा,
हम सचमुच ही निष्ठुर प्राणी हैं।
इस माया में फंसे जानबूझकर,
जब माया ठग की महारानी है।

हम जीवन दर्शन नहीं जानते।
ये अपनापन क्या नहीं मानते।
गुण दोष ढूंढते रहते अपनों में,
तुम अंन्तर्यामी हो वजह जानते।

क्या कारण सब आप जानते।
क्या निवारण जब स्वयं जानते।
क्यों बेवजह हमें परेशान करते हो,
सब बुद्धिहीन स्वयं महेश जानते।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

***********************

कहो तो मिलते है दोनो, गली के अन्त छोर पे।
वजह ना पूछे पर बतलाऊँगा मै उसी मोर पे॥

निकल लो जल्दी से आता हूँ मै भी उसी ओर से।
न देखे कोई रखना ध्यान वहाँ है बहुत चोर से॥

बडी बेचैनी है मुझको तुम्हारी याद आ रही है।
जिया मे हल्का सा है दर्द जो मुझको सता रही है॥

तुम्ही से दर्द तुम्ही हो दवा शेर के हर जख्मो का।
बताओ पूर्ण है कविता या फिर कोई कमी रही है॥

स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ

वजह क्या थी ?

मिसाल कोई मिलेगी
उजड़ी बहार में भी
उस पत्ते सी
जो पेड़ की शाख में
अपनी हरितिमा लिये डटा है
अब भी।
हवाओं की पुरजोर कोशिश
उसे उड़ा ले चले संग अपने
कहीं खाक में मिला दे
पर वो जुडा था पेड के स्नेह से
डटा रहता हर सितम सह कर
पर यकायक वो वहां से
टूट कर उड़ चला
हवाओं के संग
"वजह" क्या थी ?
क्योंकि पेड़ बोल पड़ा उस दिन
मैने तो प्यार से पाला तुम्हे
क्यों यहां शान से इतराते हो
मेरे उजड़े हालात का उपहास उड़ाते हो
पत्ता कुछ कह न पाया
शर्म से बस अपना बसेरा छोड़ चला
वो अब भी पेड़ के कदमो में लिपटा है
पर अब वो सूखा बेरौनक हो गया
साथ के सूखे पुराने पत्तों जैसा
उदास
पेड की शाख पर वह
कितना रूमानी था।

स्वरचित
कुसुम कोठारी।

विधा- कविता
**********
गर्मी की वजह से निकल रहा पसीना,
अंदर रहें या बाहर दूभर हो रहा जीना,
सूर्य देव को इतना गुस्सा क्यों आ रहा?
तपन का पारा इतना क्यों बढ़ता जा रहा?

देख मनु! प्रकृति का कोई दोष नहीं,
तूने ही कुछ गलत किया पहले तो था सब सही,
आय दिन तू पेड़ों को बस काट ही रहा,
बता क्या ये बढ़ता ताप तेरी करनी का फल नहीं?

वजह कोई ओर नहीं प्रकृति को तेरी नजर लग गई,
जंगल के जंगल तू बेवजह काट रहा,
आज और भविष्य के अमंगल का तुझे डर नहीं,
बस कर अब वरना आसमां के साथ धरती भी तेरी नहीं |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

गर्भवती सीता को
गृह निष्कासब का दंड मिला
वजह ??
ऐसा किया गया था
राज्य की जनता के प्रति
निष्पक्ष न्याय दिलाने हेतु

द्रोपदी का चीर हुआ
महाभारत युद्व हुआ
वजह बताई गई
स्त्री होकर इतना
क्यों बोली थी वचन कटु?

वज्रपात सदा स्त्री पर ही क्यों?
प्रत्येक युद्ध,या हार का कारण
स्त्री ही क्यों ठहराई जाती है...?

आज समाज में
बलात्कार की घटनाएं
दिनोदिन बढ़ती ही जा रही हैं
वजह क्या हैं ये न जानकर
तरह तरह की दलीलें पेश की जा रही हैं

जैसे लड़की के छोटे वस्त्र
रातों को देर तक घूमना सर्वत्र
ऐसे में बेचारे लड़के,पुरुष
क्या करें..?
बहक ही जाते हैं

ऐसी शर्मनाक वजहें बताईं जाती हैं
हर बार स्त्री की कठघरे में क्यों खड़ी पाई जाती है.....?

असली वजह क्या है
कोई जानना नहीं चाहता
अपनी दूषित मानसिकता
तुच्छ 'बुद्धि जीवी' छोड़ना नहीं चाहता है

दोष लड़कियों के कपड़ों
चालचलन, व्यवहार पर
मढ़ दिया जाता है

यदि छोटे कपड़े ही
बलात्कार की वजह हैं तो
दो वर्ष की मासूम बच्ची
या अस्सी बरस की दादी नानी
सरीखी महिला का क्या दोष है ?

ऐसा घिनौना कृत्य करते वक़्त
इसकी अंतरात्मा भी न धिक्कारती है .?

तो भाइयों !बहनों!बंधुओ !
समाज सुधारक शुभचिन्तको!
कारण नहीं समाधान ढूंढ़ना होगा
ओछी मानसिकता से उबरना होगा

समाज को सुदृढ यदि बनाना है
तो आधी जनता को ससम्मान
अपना ही हिस्सा बनाना है

क्योंकि एक स्त्री द्वारा ही एक नन्ही सी जान इस दुनियाँ में लाई जाती है..!!

-वंदना सोलंकी©️स्वरचित

वजह कविता,
सत्ता कांक्षी,
नेता,
सत्ता के लिये
देश के भीतर,
कौमी चिंगारी,
जलाकर,
अपनी रोटी सेकते है,
देश की एकता,
अखंडता, सम्प्रुभता पर,
मानवता की बगिया मे,
कौमी चिंगारी सुलगाकर,
आग लगा देते,
कौमी चिंगारी के वजह से,
हमारा लोकतंत्र,
दलतंत्र का शिकार हो,
आज फूट फूट कर रो रहा,
कौमी चिंगारी की वजह से,
राष्ट्र के भीतर,
द्वि राष्ट्र सिध्दांत का जन्म हुआ
आज उसका दुष्परिणाम हम,
भुगत रहे,
भारत बंट गया
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान मे,
आजं कौमी चिगांरी के कारण,
काश्मीर भी अशांत है,
अवसर वादी नेता,
देश के लोकतंत्र को प्रदूषित करतेहै।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।

"वजह"
छंदमुक्त
################
अनजान थी राहें ....
अनजान थे हम.....
अनजान था डगर...
अनजान थी नजर...
आ पहूँची अनजान शहर...
गुजारती रही पहर-पहर..
सपनों सा था ये जहां...
लगने लगा था अपना....
भाव मन के जगने लगे..
गीतों में सजने लगे...
मन में बज रहा था एक धुन..
इसे छोड़़ दुनिया लगने लगा
बेगाना सा....
हो गई मैं बावरी सी...
आया तूफानों का कहर...
उजड़ रहा था शहर..
अरमान सारे बिखर रहे थे..
अपनों का साथ छूट रहा था..
वजह तो कोई बता दे..
उजड़ा वो आशियां बसा दे।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।

आज का विषय - वजह/कारण

क्यों आपस में लड़ रहा इंसान
क्यों बड़ों का घट रहा सम्मान
क्यों नारी का हो रहा अपमान
क्यों नहीं बेटा बेटी एक समान
कोई तो कारण होगा

क्यों फैल रहा हैं भ्रष्टाचार
क्यों घाटी में जवान लाचार
क्यों बढ़ रहा हैं पापाचार
क्यों खो गया आदर सत्कार
कोई तो कारण होगा

क्यों शिष्य पथ से भटके
क्यों गुरू जी पैसे में अटके
क्यों युवा आज नशे में लटके
क्यों रिश्तों की दीवार चटके
कोई तो कारण होगा

क्यों बढ़ रही हैं बेरोजगारी
क्यों गरीबी बनी महामारी
क्यों स्वार्थी हुई दुनियादारी
क्यों सच्चाई झूठ से हारी
कोई तो कारण होगा

स्वरचित 
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)

"कोई तो कारण होगा"

नैतिक ज्ञान लुट गया
बीच बाजार
मचा हुआ है हाहाकार
तन के कपड़े
फटे हुए हैं
सब फेशन में जमे हुए हैं
कोई तो कारण होगा?
हर गली-चौराहे
बैठा रावण
खतरे में है सीता का दामन
बदली हवा को देखा तूने
युवा खो रहा जवानी
नशा ज्यों करें तूफानी
कोई तो कारण होगा?
ममता पड़ी हुई है घायल
माँ-अब्बा की
रो रही निशानी रब्बा की
रो रहा न्याय भी आज
बंट गया जात-पात
धर्म भी आज
कोई कारण तो होगा?
कैसी हवा है ये
उजड़ रहे वन-बियाबान
उजड़ रहे हैं आज किसान
भ्रष्ट हुआ है तंत्र आज
भ्रष्ट हुए हैं नेता आज
दबी सी है जनता की आवाज
कोई तो कारण होगा?
देखे होंगे धर्म के ठेकेदार
हो रही सबकी जय-जयकार
झूठ-मूठ का है सब व्यापार
बदले हुए हैं
सब योगी-भोगी
बने हुए हैं आज सब ढोंगी-पोंगी
कोई तो कारण होगा?

राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा

***"""***वजह***"""***

उनकी तलाश तो बेवजह ना थी
उनकी वजह से भटकते रहे,
निगाहों में शायद वो ही एक थी,
और दिल यहां धड़कते रहे,

यही अंदाजे वफ़ा भी है उनका,
हम पर सितम करते रहे,
उन्हें तो लुत्फ मिला चाहत का,
और हम यहां तड़पते रहे,

सजाए रखी थी दिल में हमने,
तस्वीर उनकी यादों की,
उनको ना ही कुछ ख़बर थी,
और हम यहां तरसते रहे,

ना तो दर्द ही कोई दिल में उनके,
आंखो से भी ना छलका पानी,
उनको सावन की झरी मुबारक,
और हम यहां बरसते रहे,


भावों के मोती
1/7/2019

विषय-वजह

तप्त रेगिस्तान में,
या गहन अंधकार में,
जिंदगी के जंगल में,
निराशा के कूप में,
बेवफाई के जाल में,
धोखे के मकड़जाल में,
अविश्वास के खेल में,
नफरतों के ढेर में,
किसी जाल में फंसे पक्षी सा;
फड़फड़ाता जीवन...
मृत्यु को मान प्रियतमा,
कर देना चाहता अंत ,
जीवन की समस्याओं का;
तब चमकती एक चिंगारी
अंतस में कर देती उजास
जो होती जिजीविषा..!
खींच लेती मनुष्य को,
समस्त मायाजाल से,
बनकर जीने की वजह;
हां, तभी तो कट जाते,
नश्तर से चुभते वो पल,
हार जाता वक्त भी,
उस जिजीविषा के समक्,ष
जो बन कर प्रेरणा,
बन जाती जीने की वजह।

©अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

प्रिय वाट निहारू मै तुमरी,
सच बोलो ना कब आओगे।
क्या राधा के तुम श्याम पिया से,
मुझको तो छोड ना जाओगे॥

कोई तो वजह बता दो ना,
क्या तुमरी कुछ मजबूरी है।
या मन मे तेरे और कोई ,
जिससे की इतनी दूरी है॥

सावन भी आकर द्वार खडा,
सखियों ने पीहर राह धरा।
मै बिलख रही हूँ मन ही मन,
प्रिय मेरा नाही पास खडा॥

मै राधा ना बनना चाहूँ,
तुम कृष्ण भी मेरे ना बनना।
मै जानकी बनके रहूँगी संग,
तुम राघव बनकर ही रहना॥

यह विरह वेदना मे लिपटी,
इक नारी की दुख गाथा है।
यह शब्द शेर के है लेकिन,
जीवन मे दुख भी आता है॥

स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ

विधा कविता
दिनांक 1जुलाई 2019

वज़ह
🍁🍁🍁

लोग मिलने की वज़ह तलाशते हैं
तारीफ़ के पुलों से बखूबी तराशते हैं
साहब आप तो बहुत काम करते हैं
बिल्कुल भी नहीं आराम करते हैं।

कोई कहता है आप न होंगे तो कारखाना बन्द होवेगा
इसका मालिक फिर अपनी किस्मत को रोवेगा
कोई कहता है आप में बहुमुखी प्रतिभा है
कोई कहता आपमें एक से एक सुन्दर विधा है।

वज़ह ढूँढते हैं अलँकृत करने की
मेरे मन की वीणा को झंकृत करने की
मैं जानता हूँ बिना वज़ह कोई नहीं आता
बिना मतलब कोई किसी के गुण नहीं गाता।

मेरे घर के सामने एक सज्जन अवकाश प्राप्त हैं
उनके चेहरे पर अवसादों की लकीरें व्याप्त हैं
बेचारे थक जाते हैं अपनी सुनाते सुनाते
उनसे मिलने की वज़ह अब सारी समाप्त हैं।

ये वज़हें तो बडी़ बेवफा़ हैं
वे अपने आपसे ही ख़फा हैं
वे मानने को तैय्यार नहीं
अब वे नहीं कहीं के ख़लीफा़ हैं।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर


गीत

वजह , सबब सब कारण बनते ,
कैसे गति को टालें !

महल दरकते सपनों के जब ,
चोंट कहीं लगती है !
उम्मीदें परवान चढ़ें औ ,
कभी वही ठगती हैं !
खुशियाँ भी रूठी लगती हैं ,
पड़ जाते हैं लाले !!

घटनाक्रम कुछ कारण बनते ,
कुछ कारण खुद हम हैं !
उँची दीवारें समाज की ,
नहीं वजह से कम हैं !
कभी पैर के जूतों से ही ,
पड़ जाते हैं छाले !!

वजह , बेवजह हिल जाती हैं ,
रिश्तों की बुनियादें !
कभी साधने से ना सधती ,
अपने मन की साधें !
अनचाहे गर गीत सजे लब ,
खुशियाँ हम छलका लें !!

कभी सबब ऐसे बनते हैं ,
रूठे हैं हम रब से !
कभी बेससब रूठे रूठे ,
लगे कहीं हम जग से !
कभी समय ने की रुसवाई ,
बैठे परदा डाले !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )


शीर्षक-वजह"
नही चाहिए कोई वजह 
हँसने या मुस्कुराने को,
बेवजह भी खुश रहिए
दुनिया को दिखाने को।

कौन अपना कौन पराया
ये जग ही है जब बेगाना
छोटी खुशी भी काफी है
हजारों गम भुलाने को।

दूसरों को दोषी क्यों ठहराये
अपना दोष छिपाने को
हम सब है ईश अंश का
इसे नही भुलाने को।

एक मुस्कान ही काफी है
सबको साथ मिलाने को
नही चाहिए कोई वजह
हँसने या मुस्कुराने को।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।


दिन :- सोमवार
दिनांक :- 01/07 2019

शीर्षक :- वजह

मुहब्बत ही सनम तुमसे बेशुमार थी
जीने की हर वजह में तुम शुमार थी..
वो छनकती तेरी पायल..
करती थी दिल मेरा घायल..
हर आह में होता था नाम तेरा..
हर झोका देता था पैगाम तेरा..
वो वजह भी क्या वजह थी...
दिल में सिर्फ तेरी जगह थी...
तू ही थी हर उम्मीद मेरी..
जीने की थी हर ख्वाहिश मेरी..
खैर वो वजह तो बता देती..
जिस वजह से साथ छोड़ा..
क्या थी मजबूरी ऐसी तेरी..
बिच सफर में साथ छोड़ा..
इन तरसती आँखों में आज भी तेरी तस्वीर है..
तू न मिली मुझे शायद यही मेरी तकदीर है..
कसमे वादे सब तेरे अपने थे..
पर हमने भी देखे कुछ सपने थे..
उन सपनों के महल यूँ ढहाए गए..
मुहब्बत में तेरी यूँ सताए गए..
कुछ भी वजह रही हो..
सनम तेरी बेवफाई की..
पर सही न जाए मुझसे...
अब ये दूरी तेरी जुदाई की...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

सूर्योदय भी नहीं हुआ
सोता रहा घर-परिवार
खनक उठी चूड़ियाँ
छनक उठी पायल
लगी बुहारने आँगन-डयोढ़ी
उपले-कंडे लीपापोती
रंगोली से रंगी ड्योढ़ी
ऊषा की लालिमा छाई
रसोई से बघार की खुशबू आई
लगी जगाने सबको आकर
सिरहाने रख-रख चाय
चकरघिन्नी बनी फिरे
कभी इधर तो कभी उधर
किसी को खाना किसी को कपड़े
निपटाती बच्चों के लफड़े
सास की मालिश ससुर की सेवा
बदले में कुछ मिले न मेवा
दिन बीता रात आई
पर चेहरे पर सिकन न आई
बैठी थी बस भोजन लेकर
तभी कामचोर की मिली उपाधी
भर आँखों में बड़े-बड़े आँसू
ढूँढती रही वजह
मिलने वाले रोज़ नये नामों की
अपनी मेहनत के बदले
मिलने वाली इन तानों की
कामचोरी का तमगा हासिल कर
करने लगी सोने की तैयारी
फिर सुबह जल्दी उठकर
सबकी सेवा में हाजिर होकर
अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करने
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित

 डॉक्टर्स डे है आज,
वो जो शारीरिक
व्याधि को दूर करे,

बीमारियों को निर्मूल करे,
नमन है उन्हें जो अपने
धर्म का निर्वाह हैं करते,
पीड़ितों का कष्ट हैं हरते,
कलयुग के हैं साक्षात भगवान,
बचाते है पीड़ितों की जान,
अफ़सोस आज बहुतेरे
डॉक्टर के नाम पर हैं कलंक,
हर विधि मरीजों को
लूटने का करते हैं प्रयत्न,
उनके लिए धन ही है
उनका ध्येय,
मरीज मरे या जिये
वो हैं धन के साक्षात प्रेत,
बने हैं मानवता के दुश्मन,
अमूल्य है मानव जीवन,
पर जो कर रहे हैं मरीजो
के जीवन से खिलवाड़
उनके जीवन को है
धिक्कार,
धन्य है वो जिन्होंने
अपने पेशे से नही किया
समझौता,
उन्ही की वजह से है
मानवता जिंदा,
उनका दिल से वंदन नमन,
पथ भ्रष्टों का आओ करें
शमन।।।।

भावुक

कुछ तो वजह है ,
वरना नाराज नही होते,
वक्त रुक जाता यदि,
दूर हमसे आज नही होते!

तुम्हारी खामोशी ने चुप ,
करा ही दिया मुझे,
वरना सीने में दफन ,
इतने राज नही होते!

उठता तूफान भी ,
कहता है आसमान से,
सच्ची मुहब्बत के,
परिंदे दगाबाज नही होते!

छोड़ भी दो अपना ये ,
रूखापन अब तो,
तुम नही होते तो,
ये गजल ये अल्फाज नही होते!

इन "नील"आंखों में सपने
सिरहाने के सहारे है,
ये हालात बिखरती,
चांदनी के मोहताज नही होते!

राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )

"वजह"
नजर जो तुझसे मिल गई है,
वजह जीने की मिल गई है,
पाकर तेरा साथ हमदम
जिंदगी ये मेरी महक गई हैै,
*
मिलने के तुमसे बहाने,
ढूँढते हैं ओ दिवानें,
तेरी बेरूखी की वजह से,
शमा पर जलते हैं परवाने,
*
मुस्कुराने की तुम वजह बन गए हो,
मेरे शरीर की तुम रूह बन गए हो,
जीवन के इस सफर में हमदम,
तुम तो मेरी तकदीर बन गए हो,
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/7/19
सोमवार


सूरत हादसे की वजह

हादसा!!!!!
हादसे तो वो हुआ करते हैं जो अचानक और तमाम सुरक्षा उपायों के बाद भी घटित होते हैं। पर ये तो सरासर लापरवाही और नियम कानून की अनदेखी की "#वजह"से हुआ।

कितने घरों के चिराग तो सिर्फ़ इसलिए बुझ गए कि उन्हें आँधियों से लड़ना नहीं सिखाया गया।ये हमारे देश की एक बहुत बड़ी विडंबना ही है कि हम किताबी ज्ञान को अर्जित करने और कराने में जी तोड़ मेहनत करते हैं पर जागरूकता अभियान को नजरअंदाज कर देते हैं।यहाँ भी यही हुआ ...किसी भी बच्चे को यह शिक्षा नहीं मिली थी कि विपत्ति-काल में उसे धीरज रख अपने आप को कैसे सुरक्षित करना है वरना स्थिति इतनी भयावह तो शायद नहीं होती।

सभी बच्चे अपने घरों से जब निकले होंगे तो मन मे कितने सपने होंगे भविष्य के....माता पिता ने भी उनकी ऊँची परवाज़ों को देखने के लिए मुस्कुराते हुए विदा न न "#अलविदा"किया होगा....अनहोनी से बिल्कुल अनजान माएँ भी बच्चों का पसन्दीदा भोजन बनाने में जुट गई होंगी।उन्हें तो अहसास भी नहीं होगा कि आज उन्होंने अपनें बेटे, बेटियों को काल के गाल में समाने भेज दिया।

सरकारी तंत्र तो हमेशा की तरह मदमस्त हाथी सा रहा यहाँ भी। बिना किसी सुरक्षा उपकरणों और साधनों के संस्थान को एन. ओ. सी. मिलना भ्र्ष्टाचार की ही देन था।और ग़ज़ब तो ये की अग्निशमन दस्तों के पास न उनके पास सीढ़ी का इंतजाम था और न ही छलाँग लगाते बच्चों को बचाने हेतु कोई और उपकरण। सिर्फ़ पानी की बौछारों से इतना बड़ा दावानल बुझाने आ गये।

पिछले हादसों की तरह इस हादसे में भी कुछ लोगों को निलंबित किया जाएगा और इतिश्री...... फिर कुछ दिन बाद भुला दिया जाएगा और सभी संस्थान अपने ढर्रे पर चलने लगेंगे।

अब तो सरकार को अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना ही होगा...हादसों से पहले देश में सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाने होंगे और इन्हें सफलता पूर्वक चलाने के लिए शिक्षा पद्धति में शामिल करना ही होगा।
तभी हमारे नौनिहालों का भविष्य सुरक्षित रह सकता है।जब उनके खुद के हौसले मजबूत होंगे और विपत्तियों के समय उनको समझाए गए उपायों का प्रयोग धीरज धर कर सकेंगे

"जब जागो तभी सवेरा"
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली


विधा-नई कविता,मुक्तछंद
💐💐💐💐💐💐
मैं खुश हूँ
तुम्हारे अनुसार
यह मेरा वहम है👌
हाँ...
मेरा यह
वहम ही सही
मैं तो
सारी कायनात को
सदा खुश ही
देखना चाहता हूँ👌
वजह...
और कुछ नहीं
बस...
आप भला तो
जग भला👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

लघु कविता

मेरे जीने की वजह तुम हो,
मेरे आने की वजह तुम हो।
कैसे समझाऊं अब तुमको,
अब तो इन सांसों की वजह तुम हो।

कैसे मैं भुला दूं यादों को,
कैसे मैं भुला दूं वादों को।
धिक्कारेगा यह दिल भी मुझे,
जो मजबूत न किया इरादों को।

हर ख्वाब सजा है अब तुमसे,
यह जीवन भी सफल होगा तुमसे।
कास समझ सको दिल से सब तुम,
इस जीवन का हर तार बंध गया है तुमसे।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर

वजह

रूठ जाने की
कोई तो वजह होगी
बेवजह 
अपने तो पराये 
हुआ नहीं करते

पूछी थी वजह 
कृष्ण ने राधा से
रूठ जाने की 
सुर लहरियां 
बांसुरी की
बजाई न थी
कृष्ण ने 

बच्चों से 
पूछी थी 
वजह नाराज
होने की 
माँ बाप ने
नहीं दिया 
मकान पैसा
बेटे ने कहा था

वजह नहीं होती
कोई नाराजगी की
स्वार्थ बनता है
कारण नाराजगी का
खुले दिलो दिमाग से
जियें जिन्दगी 
वजह बन जाऐगी
प्यार मोहब्बत की

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


विषय :-वजह

कितने हीं घर उजड़ने की वजह है शराब...

आज मेरी कलम, शराब और सिसकियों के बीच हीं उलझी है। आज दिन-भर के इंतजार के बाद शाम में,मेरी गृह-कार्य सहायिका की दो पुत्रियाँ उम्र क्रमश: 10/12 मेरे घर आईं। उन्होंने बताया कि मांँ को पापा ने मारा है। हाथ में चोट लगी है। यह उसके लिए कोई नई बात नहीं थी, न हीं मेरे लिए यह सुनना।

विगत 10 वर्षों से मेरे गृह-कार्य में वह मुझे अपना सहयोग देती रही है और इस बीच न जाने कितनी बार मैं उसे ऐसी चोटें खाते हुए देखती आई हूंँ। 
घर में अन्न हो न हो पर शराबियों के पेट में दारु तो जानी ही चाहिए।

तो मेरी सहायिका के पति महोदय उन्हीं में से एक हैं जो पत्नी और बच्चे के कमाए हुए पैसे माँग या छीन लेते हैं या न मिलने की स्थिति में घर का सामान बेचकर पी जाते हैं। 

जब भी सुबह अखबार हाथ में लेती हूंँ, शराब की वजह से होने वाली बर्बादियों की कई खबरें होती हैं। कितनी हीं मौतों की वजह होती है शराब। शराब का लती सस्ती और जहरीली शराब से भी परहेज नहीं करता और कई प्रकार के अपराध भी कर गुजरता है।

कभी-कभी तो एक ही परिवार के एक के बाद एक सभी पुरुष इस आदत के शिकार होते हैं।बेचारी औरत घर में बेटियों के पैदा होने पर खुश होती है कि कम से कम वह शराब तो नहीं पिएगी... 

किंतु दुर्भाग्य... कि वहीं बेटी,कम उम्र में ही अपने शराबी बाप के द्वारा, शराबी पति के घर ब्याह दी जाती है और फिर यही दुस्सह जिंदगी यहाँ भी उसका अभिनंदनकरती है। सुखी हैं वो सुरा रसपान से मदमस्त लोग... जो खुद को ब्रह्मा से ज्यादा समझते हैं, सड़क किनारे या किसी गंदे नाले या कूड़े के ढेर में पड़े हुए होते हैं।
दुखी औरतें अपना परिवार खत्म होते हुए देखने को विवश होती हैं।

जिस भी राज्य में शराब बंदी लागू हुई वहाँ तस्करी बढ़ गई,उपलब्धता बरकरार...
आखिर सरकार की नीतियांँ प्रतिबंध के बजाय उपलब्धता पर नियंत्रण क्यों नहीं करती हैं।
मेरा और मेरी सहायिका जैसे दुख के मारे परिवारों का वश चले तो हम
शराब की दुकान व कारखानों को हीं बंद करा दें... 
पर जब शराब से सरकारें मालामाल है तो उन्हें घर -परिवार का बेहाल होना क्यों कर दिखे !!!

स्वरचित 'पथिक रचना'

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...