ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-457
शीर्षक पथिक
विधा लघुकविता
25 जुलाई 2019,गुरुवार
सोचो समझो बढ़ो तुम आगे
पथिक राह नित चलते रहना।
भूले भटके राहगीर मिंले तो
उंगली थाम पर्वत पर चढ़ना।
कंकर पत्थर कंटक होंगे
ऊंची नीची पगडंडी पर।
झील नदी सागर भी होंगे
दुष्कर भयावह पथ पर।
अपने भी पहिचान न पावेंगे
कभी दुःखी मत होना मन में।
मंजिल पाना लक्ष्य रखना तू
श्वास चले जब तक ये तन में।
भौतिक दैहिक दैविक दुःख
चलता रहता है आना जाना।
पथिक राह भूल मत जाना
धर्म ध्वजा मंजिल फहराना।
स्व0 रचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा लघुकविता
25 जुलाई 2019,गुरुवार
सोचो समझो बढ़ो तुम आगे
पथिक राह नित चलते रहना।
भूले भटके राहगीर मिंले तो
उंगली थाम पर्वत पर चढ़ना।
कंकर पत्थर कंटक होंगे
ऊंची नीची पगडंडी पर।
झील नदी सागर भी होंगे
दुष्कर भयावह पथ पर।
अपने भी पहिचान न पावेंगे
कभी दुःखी मत होना मन में।
मंजिल पाना लक्ष्य रखना तू
श्वास चले जब तक ये तन में।
भौतिक दैहिक दैविक दुःख
चलता रहता है आना जाना।
पथिक राह भूल मत जाना
धर्म ध्वजा मंजिल फहराना।
स्व0 रचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक-- पथिक
प्रथम प्रस्तुति
पथरीला है पथ यहाँ
और पैदल का रास्ता ।।
मगर नही छोड़ो कभी
पथ से अपना वास्ता ।।
हीरा यूँ न चमकता है
जौहरी उसको तरास्ता ।।
हर राहों में काँटे हैं
फूल भी है पलाश का ।।
मगर फिकर न कर फल
सबको मिला प्रयास का ।।
बेशक आज बादल कल
छटेगा बादल संताप का ।।
आज नही तो कल जरूर
निकलेगा सूरज आस का ।।
पथिक ही तो हम 'शिवम'
मत सोच तूँ परिहास का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/07/2019
प्रथम प्रस्तुति
पथरीला है पथ यहाँ
और पैदल का रास्ता ।।
मगर नही छोड़ो कभी
पथ से अपना वास्ता ।।
हीरा यूँ न चमकता है
जौहरी उसको तरास्ता ।।
हर राहों में काँटे हैं
फूल भी है पलाश का ।।
मगर फिकर न कर फल
सबको मिला प्रयास का ।।
बेशक आज बादल कल
छटेगा बादल संताप का ।।
आज नही तो कल जरूर
निकलेगा सूरज आस का ।।
पथिक ही तो हम 'शिवम'
मत सोच तूँ परिहास का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/07/2019
कविता- पथिक
**************
कैसे चल दूँ!साथ तेरे,
है पथिक अनजान तू।
लाख कर मेरी चिरौरी,
लाख रख मेरा मान तू।।
ना पता तेरा नाम 'बटोही'
ना पता तेरा धाम रे।
योग करता है फिरे,
योग तेरा काम रे।।
ठग रहा है, तू है कोई ठग,
मैं गई पहचान रे.....
तू कलाओं का है ज्ञाता,
मैं गयी हूँ ,मान रे।।
ऐ सखी, जरा रहना परे तुम,
इसके मोह जाल से,,,
तुमको भी घायल कर देगा,
नेह के जंजाल से।।
मौन ही रहना सदा तुम,
इस कुचक्री वाचाल से....
ये उलझा देगा तुम्हे भी,
अभिनय औ नटसाल से।।
है ययावर बांवरा ये,
भौंरा गुंजान ये।
रस लेकर उड़ चलेगा,
ले फूल का अभिमान ये।।
प्रेम में मैं गवां दूँ,
कर कलंकित कुल मान को,,
आशक्त से बढ़कर समझती,
पित्र के सम्मान को।।
तू है छलिया छल है जाने,
प्रेम को ना सकेगा जान तू.......
कैसे चल दूँ!साथ तेरे,
है पथिक अनजान तू।
लाख कर मेरी चिरौरी,
लाख रख मेरा मान तू।।
राकेश...
**************
कैसे चल दूँ!साथ तेरे,
है पथिक अनजान तू।
लाख कर मेरी चिरौरी,
लाख रख मेरा मान तू।।
ना पता तेरा नाम 'बटोही'
ना पता तेरा धाम रे।
योग करता है फिरे,
योग तेरा काम रे।।
ठग रहा है, तू है कोई ठग,
मैं गई पहचान रे.....
तू कलाओं का है ज्ञाता,
मैं गयी हूँ ,मान रे।।
ऐ सखी, जरा रहना परे तुम,
इसके मोह जाल से,,,
तुमको भी घायल कर देगा,
नेह के जंजाल से।।
मौन ही रहना सदा तुम,
इस कुचक्री वाचाल से....
ये उलझा देगा तुम्हे भी,
अभिनय औ नटसाल से।।
है ययावर बांवरा ये,
भौंरा गुंजान ये।
रस लेकर उड़ चलेगा,
ले फूल का अभिमान ये।।
प्रेम में मैं गवां दूँ,
कर कलंकित कुल मान को,,
आशक्त से बढ़कर समझती,
पित्र के सम्मान को।।
तू है छलिया छल है जाने,
प्रेम को ना सकेगा जान तू.......
कैसे चल दूँ!साथ तेरे,
है पथिक अनजान तू।
लाख कर मेरी चिरौरी,
लाख रख मेरा मान तू।।
राकेश...
नमन मंच।
सुप्रभात गुरूजनों, मित्रों।
💐💐🙏🙏💐💐
पथिक
💐💐💐
चाहे हो राहों में कांटे,
चाहे पानी का दरिया।
काम है पथिक का चलना,
राहें चाहे घटिया हो या बढ़ियां।
देखता है पथिक हमेशा,
अपनी मंजिल की ओर।
बैठता नहीं है वह कभी भी,
लेता नहीं कहीं ठौर।
बढ़ता जाता है आगे हीं आगे,
थकता नहीं,ना कभी रूकता।
जिंदगी है छोटी बहुत,
इसलिए वह चलता हीं रहता।
💐💐💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
सुप्रभात गुरूजनों, मित्रों।
💐💐🙏🙏💐💐
पथिक
💐💐💐
चाहे हो राहों में कांटे,
चाहे पानी का दरिया।
काम है पथिक का चलना,
राहें चाहे घटिया हो या बढ़ियां।
देखता है पथिक हमेशा,
अपनी मंजिल की ओर।
बैठता नहीं है वह कभी भी,
लेता नहीं कहीं ठौर।
बढ़ता जाता है आगे हीं आगे,
थकता नहीं,ना कभी रूकता।
जिंदगी है छोटी बहुत,
इसलिए वह चलता हीं रहता।
💐💐💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन भावों के मोती💐
कार्य:- शब्दलेखन
बिषय:- पथिकविधा:- काव्य
बिछुड़ गये तुम बिलखाकर,
पापी मन न रो पाया।
बहते आँसू को देख रहा,
कैसी चिरमय बेला थी।
चंचल-चंचल बूंदों जैसी,
कभी आंगन में बरसा करती।
चंचल चन्दा की किरणों जैसी,
तुम आंगन में चमका करती।
अब अंधेरा कैसा छाया,
सावन के आने में देरी है।
तुम जाने कब लौटोगी,
जग जोगी वाला फेरा है।
कभी झरोखे से झांका करती,
या वातायन से हंस देती।
घूंघट से वह प्रथम मिलन था,
विरह-वियोग का कैसा क्षण था।
घूंघट से जब देखा तुमने,
सुखद स्वप्न क्यों भंग हुआ।
चन्द्रमुखी वह चंचल मुखड़ा,
बस दो आँखों में बसा रहा।
मन आज अकेला हुआ सर्वदा,
बीती यादें भी बिसर रहीं।
तुम्हें विदा करके यूं लगता,
प्राण तन से निकल रहा।
तुम रहना खुशहाल सदा,
डरना विश्वाघातों से।
हम तो चलते पथिक मात्र हैं,
बस,पथ प्रदर्शित करते हैं।
मौलिक:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
कार्य:- शब्दलेखन
बिषय:- पथिकविधा:- काव्य
बिछुड़ गये तुम बिलखाकर,
पापी मन न रो पाया।
बहते आँसू को देख रहा,
कैसी चिरमय बेला थी।
चंचल-चंचल बूंदों जैसी,
कभी आंगन में बरसा करती।
चंचल चन्दा की किरणों जैसी,
तुम आंगन में चमका करती।
अब अंधेरा कैसा छाया,
सावन के आने में देरी है।
तुम जाने कब लौटोगी,
जग जोगी वाला फेरा है।
कभी झरोखे से झांका करती,
या वातायन से हंस देती।
घूंघट से वह प्रथम मिलन था,
विरह-वियोग का कैसा क्षण था।
घूंघट से जब देखा तुमने,
सुखद स्वप्न क्यों भंग हुआ।
चन्द्रमुखी वह चंचल मुखड़ा,
बस दो आँखों में बसा रहा।
मन आज अकेला हुआ सर्वदा,
बीती यादें भी बिसर रहीं।
तुम्हें विदा करके यूं लगता,
प्राण तन से निकल रहा।
तुम रहना खुशहाल सदा,
डरना विश्वाघातों से।
हम तो चलते पथिक मात्र हैं,
बस,पथ प्रदर्शित करते हैं।
मौलिक:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
नमन-भावों के मोती
दिनांक-25/07/2019
विषय-पथिक
मयखाने की एक शाम हे पथिक तेरे नाम.........
पथ पर चला पंथी अकेला
लेकर संग रश्मियों का मेला
पथ का राही कितना अलबेला
अडिग रहा अपने पथ पर अकेला
ढल चुका है सूरज
पथिक है घर को चले।
मत करना इंतजार
हो चली है शाम धीरे- धीरे।।
सौ बार मरना चाहा
तेरी निगाहों में डूब कर।
तू निगाहें झुका लेती है
हमें मरने नहीं देती।।
तू भी कभी देखेगी मेरे खुशी
का इंतकाम धीरे-धीरे।।
मारुतो संग जो हमने
भेजे थे खत तुझे
न जाने कब मिलेगा
तुम्हारा पैगाम धीरे-धीरे।।
महफिले सजेगी
तो सब राज खुलेंगे
सुना है हो रहा है
आशियाने में तेरे इंतजाम धीरे-धीरे।।
वह दौर आएगा तब
हम बताएंगे तुझको
चलती रहेंगी बातें
जलती रहेगी शमा की रातें।।
नूर तेरे दर से बरसेगा
तब चलते रहेंगे जाम धीरे-धीरे।।
सुनकर मेरी दलीलें ना मुंह मोड़ लेना
हम देखेंगे क्या होता है
इस महफिल का अंजाम धीरे-धीरे।।
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
दिनांक-25/07/2019
विषय-पथिक
मयखाने की एक शाम हे पथिक तेरे नाम.........
पथ पर चला पंथी अकेला
लेकर संग रश्मियों का मेला
पथ का राही कितना अलबेला
अडिग रहा अपने पथ पर अकेला
ढल चुका है सूरज
पथिक है घर को चले।
मत करना इंतजार
हो चली है शाम धीरे- धीरे।।
सौ बार मरना चाहा
तेरी निगाहों में डूब कर।
तू निगाहें झुका लेती है
हमें मरने नहीं देती।।
तू भी कभी देखेगी मेरे खुशी
का इंतकाम धीरे-धीरे।।
मारुतो संग जो हमने
भेजे थे खत तुझे
न जाने कब मिलेगा
तुम्हारा पैगाम धीरे-धीरे।।
महफिले सजेगी
तो सब राज खुलेंगे
सुना है हो रहा है
आशियाने में तेरे इंतजाम धीरे-धीरे।।
वह दौर आएगा तब
हम बताएंगे तुझको
चलती रहेंगी बातें
जलती रहेगी शमा की रातें।।
नूर तेरे दर से बरसेगा
तब चलते रहेंगे जाम धीरे-धीरे।।
सुनकर मेरी दलीलें ना मुंह मोड़ लेना
हम देखेंगे क्या होता है
इस महफिल का अंजाम धीरे-धीरे।।
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
नमन मंच
दिनांक-२५/७/२०१९
शीर्षक -"पथिक"
देखकर राह का कटंक
पथिक न रूक जाना तू
कभी फुर्ती, कभी सुस्ती
पर कदम कभी ना रोकना तुम।
हो अंधेरा राह गर
हौसले बुलंद हो
हटे घटा घमंड का
राहगीर भी पथ- प्रर्दशक हो।
झंडा जरूर लहरायेगा
मंजिल पर पहुंच जाना तू
तिथियाँ,रीतियाँ बदलती रहें
पर कभी न बदल जाना तू।
जीवन का सफर लंबा है राही
पर शर्ट -कट ना अपनाना तू
बचपन जवानी, बुढ़ापा का
सीढ़ी चढ़ इठलाना तू।
मंजिल एक दिन मिल जायेगी
बस सही राह अपनाना तू
अंश हो तुम ईश्वर का
इसे ना भूल जाना तू।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दिनांक-२५/७/२०१९
शीर्षक -"पथिक"
देखकर राह का कटंक
पथिक न रूक जाना तू
कभी फुर्ती, कभी सुस्ती
पर कदम कभी ना रोकना तुम।
हो अंधेरा राह गर
हौसले बुलंद हो
हटे घटा घमंड का
राहगीर भी पथ- प्रर्दशक हो।
झंडा जरूर लहरायेगा
मंजिल पर पहुंच जाना तू
तिथियाँ,रीतियाँ बदलती रहें
पर कभी न बदल जाना तू।
जीवन का सफर लंबा है राही
पर शर्ट -कट ना अपनाना तू
बचपन जवानी, बुढ़ापा का
सीढ़ी चढ़ इठलाना तू।
मंजिल एक दिन मिल जायेगी
बस सही राह अपनाना तू
अंश हो तुम ईश्वर का
इसे ना भूल जाना तू।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
नमन मंच
भावों के मोती
25/7/2019::वीरवार
आज का विषय--हाइकु
विषय-पथिक, राही, राहगीर
1--
भटका राही
तपती दुपहरी
जलते पाँव
2--
भीषण गर्मी
अनजान पथिक
चले अकेला
3--
न परवाह
दिवाना राहगीर
प्यार की राह
4---
मौत का राही
ढूँढता स्वर्ग- नर्क
धरती पर
5--
प्रेम पथिक
देखे दिवा स्वप्न
रहे खामोश
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
भावों के मोती
25/7/2019::वीरवार
आज का विषय--हाइकु
विषय-पथिक, राही, राहगीर
1--
भटका राही
तपती दुपहरी
जलते पाँव
2--
भीषण गर्मी
अनजान पथिक
चले अकेला
3--
न परवाह
दिवाना राहगीर
प्यार की राह
4---
मौत का राही
ढूँढता स्वर्ग- नर्क
धरती पर
5--
प्रेम पथिक
देखे दिवा स्वप्न
रहे खामोश
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
नमन सुधीजन🙏
25/7/2019
विषय-पथिक
छंदमुक्त कविता
...............
माना जीवन में कष्ट
अधिक हैं
दुख की रातें लम्बी
सुख के पल
क्षणिक हैं
तू शिथिल न होना राही
कदम बढ़ाते जाना यूँ ही
इस जग संग्राम का
तू एक वीर सैनिक है
पथ के कांटों से
व्यथित न होना
आगे छाँव भरी
वीथी है
धीरज न खोना
मंजिल दूर नहीं अब
तू एक साहसी
पथिक है।
जीवन के अथाह सागर में
उद्दात उद्वेलित उठती लहरें
प्रतिकूल परिस्थितियों में
कुशलता से पार कर ले
तू एक धीरजशाली नाविक है..!!
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
25/7/2019
विषय-पथिक
छंदमुक्त कविता
...............
माना जीवन में कष्ट
अधिक हैं
दुख की रातें लम्बी
सुख के पल
क्षणिक हैं
तू शिथिल न होना राही
कदम बढ़ाते जाना यूँ ही
इस जग संग्राम का
तू एक वीर सैनिक है
पथ के कांटों से
व्यथित न होना
आगे छाँव भरी
वीथी है
धीरज न खोना
मंजिल दूर नहीं अब
तू एक साहसी
पथिक है।
जीवन के अथाह सागर में
उद्दात उद्वेलित उठती लहरें
प्रतिकूल परिस्थितियों में
कुशलता से पार कर ले
तू एक धीरजशाली नाविक है..!!
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
भावों के मोती
25/07/19
विषय-पथिक
कल रात एक झीनी सी बरखा फिर आसमान साफ था
पूर्णिमा का चाँद था
मन "पथिक "पुरे दिन के सफर से क्लांत ,बारचे में खडा था विश्राम की तलाश में..........
हल्की सी एक बदरी बरसी
देखो रात नहाई ,
तारों की चुनरी ओढे
सज चाँदनी से आई,
देख के ऐसा रूप रजत
मन वीणा झंकाई,
ऐसा समा फिर कब होगा?
ना जाने कोई,
चाँद सितारों को पाने की
चाहत नही करती हूं ,
इस दृश्य को हृदय कपाट
पर अंकित कर लूं ,
जब जब भी जी चाहे
नयन बंद कर इसे निरखलूं ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
25/07/19
विषय-पथिक
कल रात एक झीनी सी बरखा फिर आसमान साफ था
पूर्णिमा का चाँद था
मन "पथिक "पुरे दिन के सफर से क्लांत ,बारचे में खडा था विश्राम की तलाश में..........
हल्की सी एक बदरी बरसी
देखो रात नहाई ,
तारों की चुनरी ओढे
सज चाँदनी से आई,
देख के ऐसा रूप रजत
मन वीणा झंकाई,
ऐसा समा फिर कब होगा?
ना जाने कोई,
चाँद सितारों को पाने की
चाहत नही करती हूं ,
इस दृश्य को हृदय कपाट
पर अंकित कर लूं ,
जब जब भी जी चाहे
नयन बंद कर इसे निरखलूं ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
1भा.सादर नमन साथियों
तिथिःः25/7/2019/गुरूवार
बिषयःः# पथिक#
विधाःः काव्यःः
मै पथिक चल रहा निरंतर,
मंजिल कहीं मिलती नहीं।
कभी भटकता राह अपनी,
ये सुखशांति मिलती नहीं।
बहुत खोजा उन्हें मगर वो
मुझे आजतक मिले नहीं।
चिर समस्याऐं बनी शायद
कोई निदान फिर भी नहीं।
अकेला चला चल रहा हूँ।
अपना मंथन कर रहा हूँ।
मै पथिक परमेश गृह का
ये स्वार्थ मंचन कर रहा हूँ।
बुहार लूँ गर कंटक पथों के,
रास्ता सुगम होए सभी को।
प्रेम पांखुरी बिछाऊँ यहाँ मैं
बडे पथिक -प्रीति कभी तो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
तिथिःः25/7/2019/गुरूवार
बिषयःः# पथिक#
विधाःः काव्यःः
मै पथिक चल रहा निरंतर,
मंजिल कहीं मिलती नहीं।
कभी भटकता राह अपनी,
ये सुखशांति मिलती नहीं।
बहुत खोजा उन्हें मगर वो
मुझे आजतक मिले नहीं।
चिर समस्याऐं बनी शायद
कोई निदान फिर भी नहीं।
अकेला चला चल रहा हूँ।
अपना मंथन कर रहा हूँ।
मै पथिक परमेश गृह का
ये स्वार्थ मंचन कर रहा हूँ।
बुहार लूँ गर कंटक पथों के,
रास्ता सुगम होए सभी को।
प्रेम पांखुरी बिछाऊँ यहाँ मैं
बडे पथिक -प्रीति कभी तो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विषय- पथिक
सादर मंच को समर्पित --
🍑🌻 गीतिका 🌻🍑
****************************
🌹 पथिक 🌹
मापनी-- 2122 , 1212 , 22
समान्त -- आना , पदान्त -- है
***************************
🍃🍃☀🌼🌼☀🍃🍃
जिन्दगी को सरल बनाना है ।
साथ हिल-मिल हमें निभाना है ।।
भोर की किरण कह रहीं कि जगें ,
पथिक फिर हौसला बढा़ना है ।
राह में जो मिलें सबक उनको ,
मनन कर के हिये बिठाना है ।
लक्ष्य पर बढ़ चलें लगन से हम ,
मंजिलों को करीब लाना है ।
मानवी भावना मिटी हैं अब ,
प्यार से प्यार को जगाना है ।
स्वार्थ में जी रहे उडा़नें भर ,
साथ सब को हमें मिलाना है ।
जो खुशी मिल रही पथिक बाँटें ,
कल रहें हम ? नहीं ठिकाना है ।।
🌹🌻🍀🌼🍃🍑
🌹🌻🍀***..रवीन्द्र वर्मा, आगरा
सादर मंच को समर्पित --
🍑🌻 गीतिका 🌻🍑
****************************
🌹 पथिक 🌹
मापनी-- 2122 , 1212 , 22
समान्त -- आना , पदान्त -- है
***************************
🍃🍃☀🌼🌼☀🍃🍃
जिन्दगी को सरल बनाना है ।
साथ हिल-मिल हमें निभाना है ।।
भोर की किरण कह रहीं कि जगें ,
पथिक फिर हौसला बढा़ना है ।
राह में जो मिलें सबक उनको ,
मनन कर के हिये बिठाना है ।
लक्ष्य पर बढ़ चलें लगन से हम ,
मंजिलों को करीब लाना है ।
मानवी भावना मिटी हैं अब ,
प्यार से प्यार को जगाना है ।
स्वार्थ में जी रहे उडा़नें भर ,
साथ सब को हमें मिलाना है ।
जो खुशी मिल रही पथिक बाँटें ,
कल रहें हम ? नहीं ठिकाना है ।।
🌹🌻🍀🌼🍃🍑
🌹🌻🍀***..रवीन्द्र वर्मा, आगरा
नमन मंच भावों के मोती
25/7/2019
बिषय,, पथिक,,
रुक जाना नहीं ओ पथिक बीच राह में
बस चलते ही रहना मंजिल पाने की चाह में
अंबर सी उचाइयां तुझको पुकारती
सागर की गहराई तेरी बाट निहारती
इनको नापने की मन में रखना तमन्ना
जमाने को पता लगे कैसी है तेरी साधना
तेरे लिए तो अब चलना ही नियति है
संघर्षों से को झेलना ही उन्नति है
मन की दृढ़ आकांक्षा ने.बहुत कुछ सिखा दिया.
खतरों के खेलकर राह स्वयं
बना लिया
स्वरिचत,, सुषमा बयौहार
25/7/2019
बिषय,, पथिक,,
रुक जाना नहीं ओ पथिक बीच राह में
बस चलते ही रहना मंजिल पाने की चाह में
अंबर सी उचाइयां तुझको पुकारती
सागर की गहराई तेरी बाट निहारती
इनको नापने की मन में रखना तमन्ना
जमाने को पता लगे कैसी है तेरी साधना
तेरे लिए तो अब चलना ही नियति है
संघर्षों से को झेलना ही उन्नति है
मन की दृढ़ आकांक्षा ने.बहुत कुछ सिखा दिया.
खतरों के खेलकर राह स्वयं
बना लिया
स्वरिचत,, सुषमा बयौहार
नमन भावों के मोती
दिनांक : - 25/6/019
विषय : - पथिक
एक पल जरा ठहरो पथिक
कर लो विश्राम
मेरे पत्तों के स्नेहील बयार
लेकर तेरी हर परेशानी
तुम्हें देंगे मनमोहक मुस्कान,
थके तेरे मन मस्तिष्क को
मिलेगा यहाँ आराम।
आओ फेफड़ा में भरलो
ताजी साँसे, अभी
कल जब तुम लौटोगे
तो यहाँ मुझे ना पाओगे,
घबराओ मत
रिक्त नहीं ये जमी होगी
बस मेरी जगह कोई और होंगे।
होगा खड़ा हँसता
एक भव्य गगनचुंबी इमारत
जो तुझे ना बिठाए अपने पास पर
यकीनन कई बेघर के सिर पर छत
और पूर्ण घर का सपना होगा।
इन घोसलों को मत निहारो पथिक
ना ही इन चिड़ियों का
तुम परवाह करो
खुशनसीब है ये जो
पत्थरों के जंगल से
पलायन कर वे जाएँगे
फिर तिनका - तिनका चुनकर
दूर देश में अपना
आशियाना बनाएँगे।
काश मैं भी इन पंक्षियों
के संग उड़ पाता
बचा लेता अपनी
बेकसूर शाखाओं को
होने से क्षत- विक्षत
जाकर बहुत दूर
अपनी हरियाली बिखेरता रहता।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
दिनांक : - 25/6/019
विषय : - पथिक
एक पल जरा ठहरो पथिक
कर लो विश्राम
मेरे पत्तों के स्नेहील बयार
लेकर तेरी हर परेशानी
तुम्हें देंगे मनमोहक मुस्कान,
थके तेरे मन मस्तिष्क को
मिलेगा यहाँ आराम।
आओ फेफड़ा में भरलो
ताजी साँसे, अभी
कल जब तुम लौटोगे
तो यहाँ मुझे ना पाओगे,
घबराओ मत
रिक्त नहीं ये जमी होगी
बस मेरी जगह कोई और होंगे।
होगा खड़ा हँसता
एक भव्य गगनचुंबी इमारत
जो तुझे ना बिठाए अपने पास पर
यकीनन कई बेघर के सिर पर छत
और पूर्ण घर का सपना होगा।
इन घोसलों को मत निहारो पथिक
ना ही इन चिड़ियों का
तुम परवाह करो
खुशनसीब है ये जो
पत्थरों के जंगल से
पलायन कर वे जाएँगे
फिर तिनका - तिनका चुनकर
दूर देश में अपना
आशियाना बनाएँगे।
काश मैं भी इन पंक्षियों
के संग उड़ पाता
बचा लेता अपनी
बेकसूर शाखाओं को
होने से क्षत- विक्षत
जाकर बहुत दूर
अपनी हरियाली बिखेरता रहता।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
तिथि - 25/7/19
विधा - छंद मुक्त
विषय - पथिक
जिंदगी एक
कठिन डगर है
कभी लम्बी है
तो कभी छोटी
कभी उदास और गमगीन
कभी छलकते पैमाने सी
कभी उमंगों की बरसात सी
कभी दर्द के सैलाब सी
मैं पथिक हूँ
इस डगर का
टूटा सा मुसाफिर
थके नंगे पांवों से
सहरा की तपती रेत पर
चलता राही
सूखा कंठ लिए
मिचमिचाती आंखों को
जबरन खोलने की
कोशिश करता
क्या कभी खत्म होगी
यह मृगतृष्णा
पा सकूँगा कभी
हरित पगडंडी
जीवन की
मैं भटका हूँ
मगर असहाय नहीं
पुरजोर कोशिश है
एक पथिक की
नई भोर होगी
छँट जाएंगे अंधेरे
छू लूँगा अपना सूरज
सहरा में बरसेंगे बादल
छिले तलवों के नीचे
होंगी नरम कलियाँ
और फिर
सुहाने सफर का
मै भी बन जाऊंगा
अदम्य साहस से भरा
एक पथिक
विधा - छंद मुक्त
विषय - पथिक
जिंदगी एक
कठिन डगर है
कभी लम्बी है
तो कभी छोटी
कभी उदास और गमगीन
कभी छलकते पैमाने सी
कभी उमंगों की बरसात सी
कभी दर्द के सैलाब सी
मैं पथिक हूँ
इस डगर का
टूटा सा मुसाफिर
थके नंगे पांवों से
सहरा की तपती रेत पर
चलता राही
सूखा कंठ लिए
मिचमिचाती आंखों को
जबरन खोलने की
कोशिश करता
क्या कभी खत्म होगी
यह मृगतृष्णा
पा सकूँगा कभी
हरित पगडंडी
जीवन की
मैं भटका हूँ
मगर असहाय नहीं
पुरजोर कोशिश है
एक पथिक की
नई भोर होगी
छँट जाएंगे अंधेरे
छू लूँगा अपना सूरज
सहरा में बरसेंगे बादल
छिले तलवों के नीचे
होंगी नरम कलियाँ
और फिर
सुहाने सफर का
मै भी बन जाऊंगा
अदम्य साहस से भरा
एक पथिक
नमन भावों के मोती
आज का विषय, पथिक
दिन, गुरुवार
दिनांक, 25,7,2019.
पथिक हूँ इस सृष्टि का मैं ,
युगों युगों से चल रहा हूँ ।
मिल जायेगी मंजिल कभी तो,
सोचकर ये बढ़ रहा हूँ ।
जब चाँद तारे हैं सलामत ,
उस सूर्य को मैं देखता हूँ ।
कायदा प्रकृति का लख कर,
हो गया मै आसक्त हूँ ।
जल धाराएं कितनी समर्पित ,
बहती नदियों को जब देखता हूँ।
परमार्थ इनका देख के मैं ,
दंडवत इन्हें कर रहा हूँ ।
झुक रहा हूँ इन वृक्षों के आगे ,
फल से लदा जब देखता हूँ ।
मैं विनय इनकी देखकर के ,
शर्म से पानी पानी हो रहा हूँ ।
बिखरे पड़े हैं सद्गुण यहाँ पर,
क्या ग्रहण मैं कुछ कर सका हूँ।
मैं पथिक हूँ नाम का या फिर ,
चरितार्थ खुद को कर रहा हूँ ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश .
आज का विषय, पथिक
दिन, गुरुवार
दिनांक, 25,7,2019.
पथिक हूँ इस सृष्टि का मैं ,
युगों युगों से चल रहा हूँ ।
मिल जायेगी मंजिल कभी तो,
सोचकर ये बढ़ रहा हूँ ।
जब चाँद तारे हैं सलामत ,
उस सूर्य को मैं देखता हूँ ।
कायदा प्रकृति का लख कर,
हो गया मै आसक्त हूँ ।
जल धाराएं कितनी समर्पित ,
बहती नदियों को जब देखता हूँ।
परमार्थ इनका देख के मैं ,
दंडवत इन्हें कर रहा हूँ ।
झुक रहा हूँ इन वृक्षों के आगे ,
फल से लदा जब देखता हूँ ।
मैं विनय इनकी देखकर के ,
शर्म से पानी पानी हो रहा हूँ ।
बिखरे पड़े हैं सद्गुण यहाँ पर,
क्या ग्रहण मैं कुछ कर सका हूँ।
मैं पथिक हूँ नाम का या फिर ,
चरितार्थ खुद को कर रहा हूँ ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश .
नमन "भावो के मोती"
25/07/2019
"पथिक"
################
अनजान पथ पर........
चल पड़ी थी.....
मालूम न था....
राहें थी पथरीली....
पाँव पत्थरों से टकराते रहे..
कदम-कदम पे ....
लहूलुहान होते रहे...
दर्द सह लेती....
आगे बढ़ती जाती...
तलाश न थी कुछ पाने की..
अपना सा था ...साथ कोई..
दुखती रगों में...
मरहम था लगा..
ऐसी थी ..बातें उसकी..
वक्त का तकाजा था....
अब ...ना कोई सहारा है..
ना कोई अपना है.....
पथ के दीपक भी बुझ गए हैं
कदम भी थम से गए हैं...
राह चल न पाती...
रह गई मैं अकेली.....
मैं हूँ-----हारी हुई
"पथिक"
######
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
25/07/2019
"पथिक"
################
अनजान पथ पर........
चल पड़ी थी.....
मालूम न था....
राहें थी पथरीली....
पाँव पत्थरों से टकराते रहे..
कदम-कदम पे ....
लहूलुहान होते रहे...
दर्द सह लेती....
आगे बढ़ती जाती...
तलाश न थी कुछ पाने की..
अपना सा था ...साथ कोई..
दुखती रगों में...
मरहम था लगा..
ऐसी थी ..बातें उसकी..
वक्त का तकाजा था....
अब ...ना कोई सहारा है..
ना कोई अपना है.....
पथ के दीपक भी बुझ गए हैं
कदम भी थम से गए हैं...
राह चल न पाती...
रह गई मैं अकेली.....
मैं हूँ-----हारी हुई
"पथिक"
######
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन मंच
पथिक
पथिक हूँ, पथगामी से सदा सीखता हूँ
मन के भावों को यदाकदा लिखता हूँ
गतिशील चरण, शनैःशनैः चल रहा है
हर कदम पर, मंज़िल को छल रहा है
वक़्त का घाव, दुर्भाव, अभी भरा नहीं
जमीर भी जाहिल है, अभी मरा नहीं
जिन्दगी जंग-सी, नित जद्दोजहद है
पराग हीन मधुछत्ते में शुष्क शहद है
कथ्य नेपथ्य में बाध्य कोलाहल लिये
पग-पग रग अभग छल हलाहल पिये
अंतः-क्लेश, पलकें निर्निमेष, चीखता है
भय-विष्मय निर्बोध विवश विलखता है
हाशिये पर लगे चिन्ह सा, कद गौण है
वाणी अज्ञानी, घिघियानी भ्रमद मौन है
शब्द-समिधा-शेष संग कभी दिखता हूँ
कलम हाथ में है, यदाकदा लिखता हूँ
-©नवल किशोर सिंह
25-07-2019
स्वरचित
पथिक
पथिक हूँ, पथगामी से सदा सीखता हूँ
मन के भावों को यदाकदा लिखता हूँ
गतिशील चरण, शनैःशनैः चल रहा है
हर कदम पर, मंज़िल को छल रहा है
वक़्त का घाव, दुर्भाव, अभी भरा नहीं
जमीर भी जाहिल है, अभी मरा नहीं
जिन्दगी जंग-सी, नित जद्दोजहद है
पराग हीन मधुछत्ते में शुष्क शहद है
कथ्य नेपथ्य में बाध्य कोलाहल लिये
पग-पग रग अभग छल हलाहल पिये
अंतः-क्लेश, पलकें निर्निमेष, चीखता है
भय-विष्मय निर्बोध विवश विलखता है
हाशिये पर लगे चिन्ह सा, कद गौण है
वाणी अज्ञानी, घिघियानी भ्रमद मौन है
शब्द-समिधा-शेष संग कभी दिखता हूँ
कलम हाथ में है, यदाकदा लिखता हूँ
-©नवल किशोर सिंह
25-07-2019
स्वरचित
नमन मंच को
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 24/07/2019
शीर्षक :- पथिक
हौसले हैं साथी इस सफर में..
हूँ पथिक सफर ए अनजान का...
एहसास हैं कुछ कड़वे,मीठे..
छोड़ा न कभी दामन मुस्कान का..
उलझन भरी ये पगडंडियाँ...
थामती हाथ वो तन्हाइयाँ..
रूठती कभी, मनाती कभी...
मिली जिंदगी में कहीं रुसवाइयाँ...
थका नहीं,रुका नहीं...
बाधाओं के आगे झुका नहीं...
लड़खड़ाती रही पल-पल..
कशमकश भरी ये जिंदगी..
उलझाती रही हर राह मुझे...
जिम्मेदारियों की भूल भुलैया में...
लीलती रही चैनो सुकून..
लिपटी रही जिंदगी बस,
चंद सांसों की छैया में...
ठौर न कोई मिला जिंदगी को...
गमों ने ही पाला जिंदगी को..
चलना सीखा साथ जब इनके...
तब इन्होंने ही संवारा जिंदगी को...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 24/07/2019
शीर्षक :- पथिक
हौसले हैं साथी इस सफर में..
हूँ पथिक सफर ए अनजान का...
एहसास हैं कुछ कड़वे,मीठे..
छोड़ा न कभी दामन मुस्कान का..
उलझन भरी ये पगडंडियाँ...
थामती हाथ वो तन्हाइयाँ..
रूठती कभी, मनाती कभी...
मिली जिंदगी में कहीं रुसवाइयाँ...
थका नहीं,रुका नहीं...
बाधाओं के आगे झुका नहीं...
लड़खड़ाती रही पल-पल..
कशमकश भरी ये जिंदगी..
उलझाती रही हर राह मुझे...
जिम्मेदारियों की भूल भुलैया में...
लीलती रही चैनो सुकून..
लिपटी रही जिंदगी बस,
चंद सांसों की छैया में...
ठौर न कोई मिला जिंदगी को...
गमों ने ही पाला जिंदगी को..
चलना सीखा साथ जब इनके...
तब इन्होंने ही संवारा जिंदगी को...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन "भावों के मोती"🙏
25/07/2019
चंद "हाइकु"
विषय:-"पथिक "
(1)
समयबद्ध
कर्म राह अटल
रवि पथिक
(2)
बुलाते गाँव
पथिक की सराय
पीपल छाँव
(3)
तन क्षणिक
जीवन एक यात्रा
आत्मा पथिक
(4)
शीतल साथ
रात की राहों पर
पथिक चाँद
(5)
जीवन भर
मन पथिक ऐसा
टिका न घर
स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
25/07/2019
चंद "हाइकु"
विषय:-"पथिक "
(1)
समयबद्ध
कर्म राह अटल
रवि पथिक
(2)
बुलाते गाँव
पथिक की सराय
पीपल छाँव
(3)
तन क्षणिक
जीवन एक यात्रा
आत्मा पथिक
(4)
शीतल साथ
रात की राहों पर
पथिक चाँद
(5)
जीवन भर
मन पथिक ऐसा
टिका न घर
स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
#विधा"काव्य"
#रचनाकार" दुर्गा सिलगीवाला सोनी"
"""**""" जीने की राह """***"""
जब रास्ता नहीं था जीने का,
तब जीने की राह कुछ आसान थी,
डर तब भी था जीवन पथ पर,
अब मौत खड़ी है पग पग पर,
क्या अब हम चलना ही छोड़ दें,
घुटनों पर चल अपना मुख मोड़ ले,
हम चलकर ही अर्जित विश्वास करें,
बढ़ चले और सत्यार्थ प्रकाश करें,
चलते चलते ही मौत का वरण करें,
बढ़ते ही जाए और यह प्रण करें,
पथ पर जो पद चिन्ह हमारे बने,
पथिक ना भ्रमित हों यथार्थ चुने,
जब सब कुछ पहले से ही तय है,
जीवन अपना तो सांसों की लय है,
निश्चित है डगर निश्चित वय है,
पथभ्रष्ट ना बन क्या तुझे भय है,
#रचनाकार" दुर्गा सिलगीवाला सोनी"
"""**""" जीने की राह """***"""
जब रास्ता नहीं था जीने का,
तब जीने की राह कुछ आसान थी,
डर तब भी था जीवन पथ पर,
अब मौत खड़ी है पग पग पर,
क्या अब हम चलना ही छोड़ दें,
घुटनों पर चल अपना मुख मोड़ ले,
हम चलकर ही अर्जित विश्वास करें,
बढ़ चले और सत्यार्थ प्रकाश करें,
चलते चलते ही मौत का वरण करें,
बढ़ते ही जाए और यह प्रण करें,
पथ पर जो पद चिन्ह हमारे बने,
पथिक ना भ्रमित हों यथार्थ चुने,
जब सब कुछ पहले से ही तय है,
जीवन अपना तो सांसों की लय है,
निश्चित है डगर निश्चित वय है,
पथभ्रष्ट ना बन क्या तुझे भय है,
भावों के मोती
बिषय- पथिक
चलना ही तेरा काम,मेरे प्यारे पथिक!
देख राहों के कांटे,क्यूं हो रहा व्यथित।
अपनी मुस्कान से,कांटों को फूल बना
आशा के दीप से,मन में उजाला फैला,
सही राह पर चलना,मत होना भ्रमित।
ये पेड़-पौधे,नदी-पर्वत,खेत-खलिहान
तेरे साथ साथ चल रहा, सारा जहान
निर्भीक रह, चलते चल होकर हर्षित।
स्वरचित-निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- पथिक
चलना ही तेरा काम,मेरे प्यारे पथिक!
देख राहों के कांटे,क्यूं हो रहा व्यथित।
अपनी मुस्कान से,कांटों को फूल बना
आशा के दीप से,मन में उजाला फैला,
सही राह पर चलना,मत होना भ्रमित।
ये पेड़-पौधे,नदी-पर्वत,खेत-खलिहान
तेरे साथ साथ चल रहा, सारा जहान
निर्भीक रह, चलते चल होकर हर्षित।
स्वरचित-निलम अग्रवाल, खड़कपुर
दिनांक : - 25/6/019
विषय : - पथिक
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
पथिक हूँ मैं उन रास्तों का ,
चलता रहा हूँ मैं खुद ही अकेला।
तन श्रांत था मन होसलों का
फिर भी मैं बढता रहा हूँ अकेला ।
बहारों ने ओढें हुए जब उजाले,
मैं अंधेरों में भटकता रहा अकेला
पथिक हूँ है चलना काम मेरा,
मिटे चाहे हस्ती डटा हूँ अकेला ।
बढ़ा हूँ सफर में लिए पाँव अपने
जब सब साथ में हैं तब क्यों हूँ अकेला
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विषय : - पथिक
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
पथिक हूँ मैं उन रास्तों का ,
चलता रहा हूँ मैं खुद ही अकेला।
तन श्रांत था मन होसलों का
फिर भी मैं बढता रहा हूँ अकेला ।
बहारों ने ओढें हुए जब उजाले,
मैं अंधेरों में भटकता रहा अकेला
पथिक हूँ है चलना काम मेरा,
मिटे चाहे हस्ती डटा हूँ अकेला ।
बढ़ा हूँ सफर में लिए पाँव अपने
जब सब साथ में हैं तब क्यों हूँ अकेला
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
नमन "भावों के मोती"🙏
25/07/2019
द्वितीय प्रस्तुति..
विषय:-"पथिक "
राह पुष्प मिले या शूल
मंज़िल मत जाना तू भूल
पथ पे बढ़ते जाना रे...
पथिक चलते जाना रे..
फ़िक्रों की उड़ाके धूल
दे मत बातों को यूँ तूल
रोकर, हँसते जाना रे..
पथिक चलते जाना रे..
जीवन एक बुलबुला
क्यों अहम् रहे पला
कर्म करते जाना रे...
पथिक चलते जाना रे..
सजा रिश्तों की रंगोली
बांट स्नेह की मीठी बोली
प्रेम रंग भरते जाना रे...
पथिक चलते जाना रे..
मरीचिका होगी राहों में
यादें खींचेगी बाँहों में
भ्रमित मत हो जाना रे..
पथिक चलते जाना रे..
स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
25/07/2019
द्वितीय प्रस्तुति..
विषय:-"पथिक "
राह पुष्प मिले या शूल
मंज़िल मत जाना तू भूल
पथ पे बढ़ते जाना रे...
पथिक चलते जाना रे..
फ़िक्रों की उड़ाके धूल
दे मत बातों को यूँ तूल
रोकर, हँसते जाना रे..
पथिक चलते जाना रे..
जीवन एक बुलबुला
क्यों अहम् रहे पला
कर्म करते जाना रे...
पथिक चलते जाना रे..
सजा रिश्तों की रंगोली
बांट स्नेह की मीठी बोली
प्रेम रंग भरते जाना रे...
पथिक चलते जाना रे..
मरीचिका होगी राहों में
यादें खींचेगी बाँहों में
भ्रमित मत हो जाना रे..
पथिक चलते जाना रे..
स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
विषय- पथिक
_________________
पथ में बिछे हो शूल अगर,
पथिक तुम डर मत जाना।
अपनी मेहनत के दम पर,
पथ पर आगे बढ़ते जाना।
हौसलों का दामन थामकर,
हिम्मत की गठरी बाँधकर।
मुश्किल कोई राह न रोके,
पथ पर आगे बढ़ते जाना।
कदम-कदम पर मिलेंगे धोखे ,
भ्रमित करेंगें, राहें रोकेंगे।
विश्वास का दीप जलाए रखना,
पथ पर आगे बढ़ते जाना।
चमकेगा किस्मत का तारा,
जीवन में होगा उजियारा।
मिलेगी एक दिन मंज़िल,
पथ पर आगे बढ़ते जाना
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
_________________
पथ में बिछे हो शूल अगर,
पथिक तुम डर मत जाना।
अपनी मेहनत के दम पर,
पथ पर आगे बढ़ते जाना।
हौसलों का दामन थामकर,
हिम्मत की गठरी बाँधकर।
मुश्किल कोई राह न रोके,
पथ पर आगे बढ़ते जाना।
कदम-कदम पर मिलेंगे धोखे ,
भ्रमित करेंगें, राहें रोकेंगे।
विश्वास का दीप जलाए रखना,
पथ पर आगे बढ़ते जाना।
चमकेगा किस्मत का तारा,
जीवन में होगा उजियारा।
मिलेगी एक दिन मंज़िल,
पथ पर आगे बढ़ते जाना
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
वार - गुरुवार
विषय - पथिक
काव्य रचना :-
"पथिक"
ऐ,पथिक तू युवा और नौजवान है चला चल -अनवरत
अपनी राह तू ,
मत भटक मंजिल से अपनी
क्योंकि ....,
तू -भरा हुआ है जोश और ऊर्जा से
तुझमें है ,अदम्य साहस बाधाओं से पार पाने की
कुछ कर गुजरने की ,
चुनो तुम राह सदा वही जीवन में
जिस राह पर कोई गया न हो कभी
क्योंकि तुम एक युवा पथिक हो
विचलित कभी भी मत होना
उस राह पर ,बाधायें आयेंगी अनेक
मिलेंगे राही भी
कुछ चलेंगे --कुछ छूटेंगे
कुछ तोड़ेंगे --कुछ जोड़ेंगे
तुम्हारे मनोबल को
पर तुम कभी न टूटना
क्योंकि ,मंजिल पास तुम्हारे है
क्योंकि,तुम हो युवा पथिक
इस पथरीले पथ के ......||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
विषय - पथिक
काव्य रचना :-
"पथिक"
ऐ,पथिक तू युवा और नौजवान है चला चल -अनवरत
अपनी राह तू ,
मत भटक मंजिल से अपनी
क्योंकि ....,
तू -भरा हुआ है जोश और ऊर्जा से
तुझमें है ,अदम्य साहस बाधाओं से पार पाने की
कुछ कर गुजरने की ,
चुनो तुम राह सदा वही जीवन में
जिस राह पर कोई गया न हो कभी
क्योंकि तुम एक युवा पथिक हो
विचलित कभी भी मत होना
उस राह पर ,बाधायें आयेंगी अनेक
मिलेंगे राही भी
कुछ चलेंगे --कुछ छूटेंगे
कुछ तोड़ेंगे --कुछ जोड़ेंगे
तुम्हारे मनोबल को
पर तुम कभी न टूटना
क्योंकि ,मंजिल पास तुम्हारे है
क्योंकि,तुम हो युवा पथिक
इस पथरीले पथ के ......||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
पथिक
राही
न थक तू
बढता चल
अविरल
हैं राहें लम्बी
मुश्किल हैं
डगर
अनजान हैं
पगडंडियाँ
पहचान बनाते
चल तू
रूका, होंगी
मंजिल दूर
एक एक कदम
दूर करते हैं
फासले
मुकाम होते
जाते पास
सोच मत
दिन है कि
रात
फहरायेगी जब
विजय पताका
मंजिल पर
तब होगा
तू पथिक अजय
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
राही
न थक तू
बढता चल
अविरल
हैं राहें लम्बी
मुश्किल हैं
डगर
अनजान हैं
पगडंडियाँ
पहचान बनाते
चल तू
रूका, होंगी
मंजिल दूर
एक एक कदम
दूर करते हैं
फासले
मुकाम होते
जाते पास
सोच मत
दिन है कि
रात
फहरायेगी जब
विजय पताका
मंजिल पर
तब होगा
तू पथिक अजय
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
द्वितीय प्रस्तुति
विषय पथिक
प्रिय पथिक प्रीत अनौखी
असंभव संभव बन जाए।
द्वेष कपट सदा भुलाकर
स्नेह सुधा जीवन भर पाएं।
सभी पथिक हैं राह भिन्न है
लक्ष्य एक पर गति अलग है।
साधन तो सबको मिल जाते
मन कर्म बुद्धि सभी विलग है।
संघर्षों से जूझ जूझ कर
नव मार्ग बनाते हैं जग में।
सदा बहाते खून पसीना
फूल बरसते उनके डग में।
जग सराय भी सत्य नहीं है
रिक्त इसे सबको करना है।
पी ले राम रस तू रसना में
करनी फल मिल चखना है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय पथिक
प्रिय पथिक प्रीत अनौखी
असंभव संभव बन जाए।
द्वेष कपट सदा भुलाकर
स्नेह सुधा जीवन भर पाएं।
सभी पथिक हैं राह भिन्न है
लक्ष्य एक पर गति अलग है।
साधन तो सबको मिल जाते
मन कर्म बुद्धि सभी विलग है।
संघर्षों से जूझ जूझ कर
नव मार्ग बनाते हैं जग में।
सदा बहाते खून पसीना
फूल बरसते उनके डग में।
जग सराय भी सत्य नहीं है
रिक्त इसे सबको करना है।
पी ले राम रस तू रसना में
करनी फल मिल चखना है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय-पथिक
पथिक सूरज
मधुर सौरभ यूं
बिखरा मलय गिरी से,
उदित होने लगा
बाल पंतग इठलाके ,
चल पड़ कर्तव्य पथ का
"पथिक "अनुरागी ,
प्रकृति सज उठी है
ले नये श्रृंगार मधुरागी,
पुष्प सुरभित,
दिशाएँ रंर भरी,
क्षितिज व्याकुल,
धरा अधीर ।
किरणों की रेशमी
डोर थामे पादप हंसे,
पंछी विहंसे,
विहंगम कमल दल,
शोभित सर हृदी,
आई भोर सुहानी
मन भाई।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
पथिक सूरज
मधुर सौरभ यूं
बिखरा मलय गिरी से,
उदित होने लगा
बाल पंतग इठलाके ,
चल पड़ कर्तव्य पथ का
"पथिक "अनुरागी ,
प्रकृति सज उठी है
ले नये श्रृंगार मधुरागी,
पुष्प सुरभित,
दिशाएँ रंर भरी,
क्षितिज व्याकुल,
धरा अधीर ।
किरणों की रेशमी
डोर थामे पादप हंसे,
पंछी विहंसे,
विहंगम कमल दल,
शोभित सर हृदी,
आई भोर सुहानी
मन भाई।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
नमन मंच
शीर्षक-- पथिक
द्वितीय प्रस्तुति
सत्य सदा ही देता साथ
सत्य से बने बिगड़ी बात ।।
झूठ फ़रेब होता लुभावन
कराता एक दिन फ़साद ।।
पथ में पथिक भूलना न
सैकड़ों आऐं झंझावात ।।
हार कर नही बैठ मगर
जीवन ये अमोल सौगात ।।
चलते रहने से एक दिन
स्वतः कटती गम की रात ।।
सूरज तो निकलता ही है
रख 'शिवम' मन में विश्वास ।।
खुद बदलने की कोशिश से
होता सुख का सुप्रभात ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/07/2019
शीर्षक-- पथिक
द्वितीय प्रस्तुति
सत्य सदा ही देता साथ
सत्य से बने बिगड़ी बात ।।
झूठ फ़रेब होता लुभावन
कराता एक दिन फ़साद ।।
पथ में पथिक भूलना न
सैकड़ों आऐं झंझावात ।।
हार कर नही बैठ मगर
जीवन ये अमोल सौगात ।।
चलते रहने से एक दिन
स्वतः कटती गम की रात ।।
सूरज तो निकलता ही है
रख 'शिवम' मन में विश्वास ।।
खुद बदलने की कोशिश से
होता सुख का सुप्रभात ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/07/2019
नमन मंच भावों के मोती
तिथि। 25/07/19
विषय। पथिक
विधा। हाइकु
**
पथिक मन
कल्पनाओं का रथ
नव सृजन
निशा डगर
चाँद तारे पथिक
भोर पड़ाव
तन पथिक
जीवन अग्नि पथ
मृत्यु मंजिल
सच्चाई पथ
बाधाएं झंझावात
चल पथिक
स्वरचित
अनिता सुधीर
तिथि। 25/07/19
विषय। पथिक
विधा। हाइकु
**
पथिक मन
कल्पनाओं का रथ
नव सृजन
निशा डगर
चाँद तारे पथिक
भोर पड़ाव
तन पथिक
जीवन अग्नि पथ
मृत्यु मंजिल
सच्चाई पथ
बाधाएं झंझावात
चल पथिक
स्वरचित
अनिता सुधीर
#विधा-------तांका
#दिनांक-----25/07/19
इंसा #पथिक
चलता चले नित
कर्म के पथ
जीवन है सफर
आयु बने पड़ाव
#पथिक काल
सतत निरंतर
घूमता चक्र
सुख दुःख की गिन्नी
जीवन रूप
#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन "#धरा"
#रायगढ़ (#छत्तीसगढ़)
#दिनांक-----25/07/19
इंसा #पथिक
चलता चले नित
कर्म के पथ
जीवन है सफर
आयु बने पड़ाव
#पथिक काल
सतत निरंतर
घूमता चक्र
सुख दुःख की गिन्नी
जीवन रूप
#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन "#धरा"
#रायगढ़ (#छत्तीसगढ़)
भावों के मोती मंच को नमन
वार :-गुरूवार।25/7/2019
विषय :-पथिक
विधा :-कविता
पथ मत जाना
भूल पथिक तुम
राह न बिसराना ।
जिन राहों पर
चलकर जाना
है वह डगर कठिन ।
नही है असंमव
कभी कहीं कुछ
मन में ठानी है जो ।
आशा कभी नही
बुझती है जबतक
श्वास निःश्वास चले ।
पथिक कभी नही
राह में रुकते जब
तक मंजिल न मिले ।
दृढ़ संकल्प साथ
लेकर ही पहुँचे
सब मंजिल तक ।
उषासक्सेना :-स्वरचित
वार :-गुरूवार।25/7/2019
विषय :-पथिक
विधा :-कविता
पथ मत जाना
भूल पथिक तुम
राह न बिसराना ।
जिन राहों पर
चलकर जाना
है वह डगर कठिन ।
नही है असंमव
कभी कहीं कुछ
मन में ठानी है जो ।
आशा कभी नही
बुझती है जबतक
श्वास निःश्वास चले ।
पथिक कभी नही
राह में रुकते जब
तक मंजिल न मिले ।
दृढ़ संकल्प साथ
लेकर ही पहुँचे
सब मंजिल तक ।
उषासक्सेना :-स्वरचित
नमन् भावों के मोती
दिनांक:25/07/19
विषय:पथिक
विधा:हाइकु
1
अंजानी राहें
कठिन परिश्रम
पथिक लक्ष्य
2
भटका लक्ष्य
कुसङ्गति असर
पथिक भ्रम
3
लू के थपेड़े
पथिक असहाय
बाग़ आसरा
4
पथिक जीव
विश्व भवसागर
सत्य सहारा
5
जीवन चक्र
जन्म और मरण
पथिक आत्मा
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
दिनांक:25/07/19
विषय:पथिक
विधा:हाइकु
1
अंजानी राहें
कठिन परिश्रम
पथिक लक्ष्य
2
भटका लक्ष्य
कुसङ्गति असर
पथिक भ्रम
3
लू के थपेड़े
पथिक असहाय
बाग़ आसरा
4
पथिक जीव
विश्व भवसागर
सत्य सहारा
5
जीवन चक्र
जन्म और मरण
पथिक आत्मा
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विषय :#पथिक
#पथिक
# चल चला चल
🙏🙏
पथिक हूँ मै अपने पथ का
चल रहा निरंतर सत पथ पर।
कभी मन की चाल से तो
कभी सहज कदम की चाल से।
मन की चाल है वायु सी तेज
कभी कहे मै सैनिक बन कर
देश के लिये मिसाल बनू।
कभी कहे मै डाक्टर बन कर
हर दू पीडा जन जन की ।
पथिक हूँ मै ञान की राहों का
कभी विद्यालय, कभी न्यायालय जा।
नित नई नई तकनीकें खोज
निर्माण करू एक सुदृढ़ पथ।
जिन पर चल कर हजारो पथिक
पा ले अपनी अपनी मंजिल ।
🧚♂️🧚♀️🧚♂️🧚♀️🚶♂️🚶♀️🏃♂️🏃♀️
🕺🕺🚴♂️🏍🤸♂️👣👣
#स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
#पथिक
# चल चला चल
🙏🙏
पथिक हूँ मै अपने पथ का
चल रहा निरंतर सत पथ पर।
कभी मन की चाल से तो
कभी सहज कदम की चाल से।
मन की चाल है वायु सी तेज
कभी कहे मै सैनिक बन कर
देश के लिये मिसाल बनू।
कभी कहे मै डाक्टर बन कर
हर दू पीडा जन जन की ।
पथिक हूँ मै ञान की राहों का
कभी विद्यालय, कभी न्यायालय जा।
नित नई नई तकनीकें खोज
निर्माण करू एक सुदृढ़ पथ।
जिन पर चल कर हजारो पथिक
पा ले अपनी अपनी मंजिल ।
🧚♂️🧚♀️🧚♂️🧚♀️🚶♂️🚶♀️🏃♂️🏃♀️
🕺🕺🚴♂️🏍🤸♂️👣👣
#स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment