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ब्लॉग संख्या :-432
जन्म मृत्यु में बड़े फासले
धरा गगन में बड़े फासले।
शोषक नित करता शोषण
बोलो,कैसे मिटे ये फासले?
स्नेह द्वेष में अति फासले
सुख दुःख में होते फासले।
सत्यवादी असत्य बोलता
बोलो,कैसे मिटे ये फासले?
धूप छाँव में बड़े फासले
बदबू खुश्बू अति फासले।
शासक ही शोषण करता हो
बोलो,कैसे मिटे ये फासले ?
धर्म अधर्म में बड़े फासले
दानव मानव अति फासले।
साधू ही जब स्वादु बनता
बोलो,कैसे मिटे ये फासले?
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
धरा गगन में बड़े फासले।
शोषक नित करता शोषण
बोलो,कैसे मिटे ये फासले?
स्नेह द्वेष में अति फासले
सुख दुःख में होते फासले।
सत्यवादी असत्य बोलता
बोलो,कैसे मिटे ये फासले?
धूप छाँव में बड़े फासले
बदबू खुश्बू अति फासले।
शासक ही शोषण करता हो
बोलो,कैसे मिटे ये फासले ?
धर्म अधर्म में बड़े फासले
दानव मानव अति फासले।
साधू ही जब स्वादु बनता
बोलो,कैसे मिटे ये फासले?
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा--ग़ज़ल
तकदीर ने दिये फासले जिसे सह रहा हूँ
अपनी यह ग़ज़ल आज यूँ न कह रहा हूँ ।।
चाही जहाँ नजदीकियाँ मिली वहाँ दूरियाँ
तभी आज एक टूटी मंजिल सा ढह रहा हूँ ।।
अपनी तकदीर के सितम कैसे तुम्हे बताऊँ
सांसें ही दबा रखी गुमसुम सा अब रह रहा हूँ ।।
जिन्दगी ही बिता दी मैंने इन्तज़ार में किसी के
जाने क्यों आज भी मैं उसी धुन में बह रहा हूँ ।।
मैं क्या हूँ यह मैं खुद ही न जान पाया आज तक
आज से नही शुरू से मैं दुनिया को संशय रहा हूँ ।।
सोचा करता था पहले मैं कि एक डाक्टर बनूँगा
मगर आज मैं एक शायर का किरदार ले रहा हूँ ।।
फासले खुद के खुद से भी होते हैं ये जाना
पर कैसे मिलते खुद से 'शिवम' सदा मैं रहा
हूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/06/2019
तकदीर ने दिये फासले जिसे सह रहा हूँ
अपनी यह ग़ज़ल आज यूँ न कह रहा हूँ ।।
चाही जहाँ नजदीकियाँ मिली वहाँ दूरियाँ
तभी आज एक टूटी मंजिल सा ढह रहा हूँ ।।
अपनी तकदीर के सितम कैसे तुम्हे बताऊँ
सांसें ही दबा रखी गुमसुम सा अब रह रहा हूँ ।।
जिन्दगी ही बिता दी मैंने इन्तज़ार में किसी के
जाने क्यों आज भी मैं उसी धुन में बह रहा हूँ ।।
मैं क्या हूँ यह मैं खुद ही न जान पाया आज तक
आज से नही शुरू से मैं दुनिया को संशय रहा हूँ ।।
सोचा करता था पहले मैं कि एक डाक्टर बनूँगा
मगर आज मैं एक शायर का किरदार ले रहा हूँ ।।
फासले खुद के खुद से भी होते हैं ये जाना
पर कैसे मिलते खुद से 'शिवम' सदा मैं रहा
हूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/06/2019
साथियों, नमस्कार,
झूठ को सीने से हम लगा बैठे है,
सच के जलते दीये हम बुझा बैठे है।।1।।
भू पर अमीर गरीब जातियाँ दो ही है,
फासलें क्यों दिलों में हम बना बैठे है।।2।।
मानवता की बगिया में तुम देखो,
कौमी चिंगारी नेता जला बैठे है।।3।।
हिंसा, घृणा, के बीज हम ही बोते रहे है,
सत्य, निष्ठा, प्रेम, को हम जला बैठे है।।4।।
जनसेवक कहाँ है,झूठे वादों से,
दल के नेता सत्ता चला बैठे है।।5।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दास बसनाछ, ग,।।
झूठ को सीने से हम लगा बैठे है,
सच के जलते दीये हम बुझा बैठे है।।1।।
भू पर अमीर गरीब जातियाँ दो ही है,
फासलें क्यों दिलों में हम बना बैठे है।।2।।
मानवता की बगिया में तुम देखो,
कौमी चिंगारी नेता जला बैठे है।।3।।
हिंसा, घृणा, के बीज हम ही बोते रहे है,
सत्य, निष्ठा, प्रेम, को हम जला बैठे है।।4।।
जनसेवक कहाँ है,झूठे वादों से,
दल के नेता सत्ता चला बैठे है।।5।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दास बसनाछ, ग,।।
मुँह से निकली,
जो बात ।
छह इंच दूर ,
कान में पहुंची ।
कोशिश ना की ।
कान सी सूनी को,
चार इंच दूर,
आँख से देखने की ।
आँख से दूर ,
चार इंच मस्तीक ने ,
कुछ सोचने की
उतर गयी दस इंच,
दूर बैठे हुए दिल में ।
हो गए क्रोधित,
इन बातो के खेल में ।
खेल में अायी,
हार जीत की पारी ।
जीत के चक्कर में,
कमियां दिखने लगी,
एक दूजे सारी ।
उम्र गुजर गयी सारी
फिर भी ना कम हुई ।
इनके बीच की दूरी
सूनी सुनाई बातों की
किमया सारी ।
X प्रदीप सहारे
जो बात ।
छह इंच दूर ,
कान में पहुंची ।
कोशिश ना की ।
कान सी सूनी को,
चार इंच दूर,
आँख से देखने की ।
आँख से दूर ,
चार इंच मस्तीक ने ,
कुछ सोचने की
उतर गयी दस इंच,
दूर बैठे हुए दिल में ।
हो गए क्रोधित,
इन बातो के खेल में ।
खेल में अायी,
हार जीत की पारी ।
जीत के चक्कर में,
कमियां दिखने लगी,
एक दूजे सारी ।
उम्र गुजर गयी सारी
फिर भी ना कम हुई ।
इनके बीच की दूरी
सूनी सुनाई बातों की
किमया सारी ।
X प्रदीप सहारे
विषय- फासला/दूरी
मैंने जिंदगी और मौत को
बहुत नजदीक से देखा है दोस्त.........
एक रोटी की आस में इंसान को
हैवान बनते देखा है दोस्त............
मानते थे हम जिसे हमदर्द अपना
उस परछाई का भी #फासला देखा है दोस्त
जिसके लिए गए थे जग छोड़ के सारा
उसकी बेवफाई को बहुत बहुत देखा है दोस्त....
लाखों को जीवन जिसने दी हो सौगात
उस नौका को भी दरिया में डूबते देखा है दोस्त...
हर दर्द में हमदर्द बना फिरता था जो
उस कलम को भी आज विवश देखा है दोस्त.....
मैंने जिंदगी और मौत को बहुत नजदीक से देखा है दोस्त.............।।
***स्वरचित✍
सीमा आचार्य(म.प्र.)
मैंने जिंदगी और मौत को
बहुत नजदीक से देखा है दोस्त.........
एक रोटी की आस में इंसान को
हैवान बनते देखा है दोस्त............
मानते थे हम जिसे हमदर्द अपना
उस परछाई का भी #फासला देखा है दोस्त
जिसके लिए गए थे जग छोड़ के सारा
उसकी बेवफाई को बहुत बहुत देखा है दोस्त....
लाखों को जीवन जिसने दी हो सौगात
उस नौका को भी दरिया में डूबते देखा है दोस्त...
हर दर्द में हमदर्द बना फिरता था जो
उस कलम को भी आज विवश देखा है दोस्त.....
मैंने जिंदगी और मौत को बहुत नजदीक से देखा है दोस्त.............।।
***स्वरचित✍
सीमा आचार्य(म.प्र.)
फिर मोहब्बत में #फ़ासले क्यों है
जेहन में उठते वसवसे ...क्यों है।
चमन के मुसाफिर थके क्यों हैं
हयात के होश उड़े...... क्यों हैं।
आएगा कल इतना सोचते क्यों है
नसीब से ज्यादा चाहते ..क्यों है।
फिर मुसीबत में घोसलें ..क्यों है
अहले वफा में जलजले क्यों है।
नसीब में निवालें बचे खुचे क्यों हैं
फसलों में खरपतवार उगे क्यों है।
पता नहीं घर से निकलते क्यों है
जफ़ाओं के आदी पिघलते क्यों है।
आतिशे जीस्त सुर्ख चेहरे क्यों है
हयात में इतने मसले.... क्यों हैं।
सोहबत की इतनी तलबें क्यों है
जुस्तजू में उसकी मलबें क्यों है।
सरहदों के इतने बंटवारे क्यों हैं
समुंदरों में पानी खारे... क्यों है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
जेहन में उठते वसवसे ...क्यों है।
चमन के मुसाफिर थके क्यों हैं
हयात के होश उड़े...... क्यों हैं।
आएगा कल इतना सोचते क्यों है
नसीब से ज्यादा चाहते ..क्यों है।
फिर मुसीबत में घोसलें ..क्यों है
अहले वफा में जलजले क्यों है।
नसीब में निवालें बचे खुचे क्यों हैं
फसलों में खरपतवार उगे क्यों है।
पता नहीं घर से निकलते क्यों है
जफ़ाओं के आदी पिघलते क्यों है।
आतिशे जीस्त सुर्ख चेहरे क्यों है
हयात में इतने मसले.... क्यों हैं।
सोहबत की इतनी तलबें क्यों है
जुस्तजू में उसकी मलबें क्यों है।
सरहदों के इतने बंटवारे क्यों हैं
समुंदरों में पानी खारे... क्यों है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय ....फासले
यूँ बिगड़ रही हैं
आदतें आजकल
ऊँगलियों से रिश्तें
निभ रहें हैं आजकल
बस मोबाइल में
सिमटी हुई हैं दुनिया
मैसेज से हालचाल
मिल रहें हैं आजकल
फासलें हो दरमियान
कोई फिक्र नहीं
दूरियाँ पास से भी
दिख रहीं हैं आजकल
@ सुमनजीत कौर
फासले क्यों दिलों में बढ रहे हैं।
सभी क्यों जातियों में बंट रहे हैं।
किसने बढाईं समाज में दूरियां,
सोचें क्यों दुश्मनों में छंट रहे हैं।
एक ईश ने हम सबको बनाया।
नहीं वैरभाव हमें उसने बताया।
क्यों बढाऐं आपसी दूरियां हम,
प्रेमप्रीत प्रभु ने सबको जताया।
प्यार की दहलीज पर पग बढाऐं।
जो दूरियां आपसी हम सब घटाऐं।
जिंन्दगी मौत के बीच दूरी नहीं अब,
जो भी संभव हो प्रेम सरिता बहाऐं।
मृत्यु चुपचाप कदम बढाती है।
फासले तय करे नहीं जताती है।
मौत के आगोश में समा जाऐं कब
अपनी इच्छा हमें ये नहीं बताती है।
न रहें दिलों की दूरियां समेट लें,
बुलाऐं प्रेम की कसक पूरी करें।
अगर बडी खाईयां हृदय बीच में,
प्रीत की प्याली की दमक पूरी करें।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
सभी क्यों जातियों में बंट रहे हैं।
किसने बढाईं समाज में दूरियां,
सोचें क्यों दुश्मनों में छंट रहे हैं।
एक ईश ने हम सबको बनाया।
नहीं वैरभाव हमें उसने बताया।
क्यों बढाऐं आपसी दूरियां हम,
प्रेमप्रीत प्रभु ने सबको जताया।
प्यार की दहलीज पर पग बढाऐं।
जो दूरियां आपसी हम सब घटाऐं।
जिंन्दगी मौत के बीच दूरी नहीं अब,
जो भी संभव हो प्रेम सरिता बहाऐं।
मृत्यु चुपचाप कदम बढाती है।
फासले तय करे नहीं जताती है।
मौत के आगोश में समा जाऐं कब
अपनी इच्छा हमें ये नहीं बताती है।
न रहें दिलों की दूरियां समेट लें,
बुलाऐं प्रेम की कसक पूरी करें।
अगर बडी खाईयां हृदय बीच में,
प्रीत की प्याली की दमक पूरी करें।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
बिषय फासले, दूरी,,
चाहे कितने भी हों प्रगाढ़ नाते
जरा सी चूक से फासले हो जाते
कुछ रिश्ते बनते कुछ बनाए जाते
कुछ मजबूरीवश बोझा से ढोए जाते
बनाए रिश्तों में करना पड़ती मशक्कत
तो कुछ रिश्ते चाहते करते रहें
हिमाकत
अंतिम सांस लेते हैं नाते ढोए हुए
स्वयं जुड़े नाते ज्यों माला पिरोए हुए
कितनी भी हो दूरी महकती खुशबू
आल्हादित मन से होती है गुफ्तगू
बड़े ही नाजुक रिश्तों के बंधन
नासमझी से बंट जाता भाई भाई
का आंगन
खत्म होता बचपन का प्रेम प्रवाह
इक दुजे के सुख दुख की नहीं परवाह
गर हो त्याग संयम सहनशीलता
मिटाऐं परस्पर मन की मलिनता
आपस में मिल बैठ करें संबाद
हों हृदय निर्मल दूर हों बिवाद
स्वरचित,,, सुषमा, ब्यौहार
चाहे कितने भी हों प्रगाढ़ नाते
जरा सी चूक से फासले हो जाते
कुछ रिश्ते बनते कुछ बनाए जाते
कुछ मजबूरीवश बोझा से ढोए जाते
बनाए रिश्तों में करना पड़ती मशक्कत
तो कुछ रिश्ते चाहते करते रहें
हिमाकत
अंतिम सांस लेते हैं नाते ढोए हुए
स्वयं जुड़े नाते ज्यों माला पिरोए हुए
कितनी भी हो दूरी महकती खुशबू
आल्हादित मन से होती है गुफ्तगू
बड़े ही नाजुक रिश्तों के बंधन
नासमझी से बंट जाता भाई भाई
का आंगन
खत्म होता बचपन का प्रेम प्रवाह
इक दुजे के सुख दुख की नहीं परवाह
गर हो त्याग संयम सहनशीलता
मिटाऐं परस्पर मन की मलिनता
आपस में मिल बैठ करें संबाद
हों हृदय निर्मल दूर हों बिवाद
स्वरचित,,, सुषमा, ब्यौहार
ग़ज़ल - राख लोटे में जैसे भरी रह गयी...
शमअ तन्हा जली तो जली रह गयी...
ज़िन्दगी बिन तुम्हारे थमी रह गयी...
चाँद तपता रहा नभ की अमराई में..
बन सँवरके ठगी चाँदनी रह गयी...
कुछ न पूछा उसे कुछ बताया नहीं....
फासले की दिवार बनी रह गयी....
उम्र भर इम्तिहाँ में रही ज़िन्दगी....
फैसले की घडी ही रुकी रह गयी....
दर्द का पैरहन आंसुओं की झड़ी...
जां सुलगती सुलगती बुझी रह गयी...
उम्र भर नींद मुझसे खफा ही रही...
अब लगी आँख तो बस लगी रह गयी...
संगज़ाँ ज़िंदगी तेरी आमद नहीं...
राख लोटे में जैसे भरी रह गयी...
संगज़ाँ = जान मुश्किल से निकलना
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२९.०६.२०१९
शमअ तन्हा जली तो जली रह गयी...
ज़िन्दगी बिन तुम्हारे थमी रह गयी...
चाँद तपता रहा नभ की अमराई में..
बन सँवरके ठगी चाँदनी रह गयी...
कुछ न पूछा उसे कुछ बताया नहीं....
फासले की दिवार बनी रह गयी....
उम्र भर इम्तिहाँ में रही ज़िन्दगी....
फैसले की घडी ही रुकी रह गयी....
दर्द का पैरहन आंसुओं की झड़ी...
जां सुलगती सुलगती बुझी रह गयी...
उम्र भर नींद मुझसे खफा ही रही...
अब लगी आँख तो बस लगी रह गयी...
संगज़ाँ ज़िंदगी तेरी आमद नहीं...
राख लोटे में जैसे भरी रह गयी...
संगज़ाँ = जान मुश्किल से निकलना
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२९.०६.२०१९
विषय-फासले/दूरी
🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹
सबके लिए दिल में
बेइंतहा प्यार लिए हूँ
सबको याद करती हूँ
भले ही उनसे दूर हूँ
फासले दिल में मैंने आने न दिए
भले फासलों से मजबूर हूँ
परवाह करती हूँ सबकी
पर बताना छोड़ दिया है
ये मत समझना दोस्तो !
कि मैं दंभी या मगरूर हूँ...
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹
सबके लिए दिल में
बेइंतहा प्यार लिए हूँ
सबको याद करती हूँ
भले ही उनसे दूर हूँ
फासले दिल में मैंने आने न दिए
भले फासलों से मजबूर हूँ
परवाह करती हूँ सबकी
पर बताना छोड़ दिया है
ये मत समझना दोस्तो !
कि मैं दंभी या मगरूर हूँ...
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
आज का विषय, फासले, दूरी
दिन, शनिवार
दिनांक, 29,6,2019,
नजदीक हैं हम कितने,
पर एहसास की है दूरी ।
कुछ तेरी भी मजबूरी,
कुछ मेरी भी मजबूरी ।
दुनियाँ है जो मेरे ख्वाबों की,
तेरे ख्वाबों को नहीं भाती ।
जल जायेगी चाहे रस्सी,
रहेगी फितरत से मगर अकड़ी ।
तबियत इंसान की कुछ ऐसी ,
नहीं मिटती है अंहम की हस्ती ।
रिश्तों में खींचीं हैं लकीरें इतनी,
दिल की जमीं दिखे है धुंधली ।
यूँ तो साथ चलें आकाश धरती,
पर मिलने की तदवीर नहीं होती ।
दिल और दिमाग में रही दूरी,
ख्वाहिश दिल की रही अधूरी ।
जो आत्मा परमात्मा की मिटे दूरी,
मिट जायेगी हमारे बीच की हर दूरी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
दिन, शनिवार
दिनांक, 29,6,2019,
नजदीक हैं हम कितने,
पर एहसास की है दूरी ।
कुछ तेरी भी मजबूरी,
कुछ मेरी भी मजबूरी ।
दुनियाँ है जो मेरे ख्वाबों की,
तेरे ख्वाबों को नहीं भाती ।
जल जायेगी चाहे रस्सी,
रहेगी फितरत से मगर अकड़ी ।
तबियत इंसान की कुछ ऐसी ,
नहीं मिटती है अंहम की हस्ती ।
रिश्तों में खींचीं हैं लकीरें इतनी,
दिल की जमीं दिखे है धुंधली ।
यूँ तो साथ चलें आकाश धरती,
पर मिलने की तदवीर नहीं होती ।
दिल और दिमाग में रही दूरी,
ख्वाहिश दिल की रही अधूरी ।
जो आत्मा परमात्मा की मिटे दूरी,
मिट जायेगी हमारे बीच की हर दूरी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
जीवन है एक डगर ।
मिलते अपने पराऐ सब ।
कही कही कोई हो क्षणिक चूक ।
बडती देखी दूरियां ।
जब तक आपस मे न सुलझाये बात ।
बडते हे फासले इतने की खाईयां बन जाती आपस मे ।
चाहते हे सबरहे मिलकर तो न पडे फेर मे ।
सही को समझने समझानेकी कोशिश जरूरी ।
फासले बडते हे शब्दों व वाणी से।
बोलने से पहले तोल मोल ले ।
न टूटने दे नेह की डोर को ।
फासले न बडने दे रखे विश्वास एक दूजे पर ।
न होगी कोई दूरियाँ फासले बस मन बुद्धि से काम ले
मिलते अपने पराऐ सब ।
कही कही कोई हो क्षणिक चूक ।
बडती देखी दूरियां ।
जब तक आपस मे न सुलझाये बात ।
बडते हे फासले इतने की खाईयां बन जाती आपस मे ।
चाहते हे सबरहे मिलकर तो न पडे फेर मे ।
सही को समझने समझानेकी कोशिश जरूरी ।
फासले बडते हे शब्दों व वाणी से।
बोलने से पहले तोल मोल ले ।
न टूटने दे नेह की डोर को ।
फासले न बडने दे रखे विश्वास एक दूजे पर ।
न होगी कोई दूरियाँ फासले बस मन बुद्धि से काम ले
"फासले/दूरी"
################
मिला मुझे तोहफा प्यारा सा
आँखें सबकी खुली ही रह गई
फिर जग से ऐसी सजा मिली
मिलती सौगातें ही दूर हो गई।
बसाया है जबसे इस दिल ने.
तेरी सूरत को बनाकर खुदा
जाने क्या हमसे भूल हुई
खुदा ही मुझसे दूर हो गया।
सहके सितम वफा करती रही
तेरे दिए दर्द को सहलाती रही
फिर -----दरमियां हमारे
फासले क्यों बढ़ रहे ।
अपनी दुआओं में हरदम
साथ तेरा ही माँगा जो मैंनें
खुदा के दर पर कुबूल होते-होते.
तुम ही मुझसे दूर हो गए।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
################
मिला मुझे तोहफा प्यारा सा
आँखें सबकी खुली ही रह गई
फिर जग से ऐसी सजा मिली
मिलती सौगातें ही दूर हो गई।
बसाया है जबसे इस दिल ने.
तेरी सूरत को बनाकर खुदा
जाने क्या हमसे भूल हुई
खुदा ही मुझसे दूर हो गया।
सहके सितम वफा करती रही
तेरे दिए दर्द को सहलाती रही
फिर -----दरमियां हमारे
फासले क्यों बढ़ रहे ।
अपनी दुआओं में हरदम
साथ तेरा ही माँगा जो मैंनें
खुदा के दर पर कुबूल होते-होते.
तुम ही मुझसे दूर हो गए।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
ग़ज़ल - तू जो मुझ में समायी तू ही रह गयी....
मौत कब है बँटी ज़िन्दगी रह गयी....
हर किसी में अना की अमी रह गयी...
धूप में छाँव के आँचल की तरह...
मेरी साँसों में खुशबू तेरी रह गयी....
मिट गया हर निशाँ-ओ-वजूद इस तरह...
तू जो मुझ में समायी तू ही रह गयी....
फासले किस तरह से मिटाते हैं घर....
अब मकाँ रेत पत्थर ज़मी रह गयी...
सांस चलती रही मैं पिघलती रही...
धौंकनी याद से मैं जली रह गयी....
घूम आओ सभी धाम बेशक जहां...
माँ न पूजी तो पूजा धरी रह गयी...
दूरियाँ दरमियाँ यूं बसी हैं 'चन्दर'...
ज़िन्दगी ज़ह्र की इक नदी रह गयी...
अमी = मीठा लगना, अमृत जैसा
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२९.०६.२०१९
मौत कब है बँटी ज़िन्दगी रह गयी....
हर किसी में अना की अमी रह गयी...
धूप में छाँव के आँचल की तरह...
मेरी साँसों में खुशबू तेरी रह गयी....
मिट गया हर निशाँ-ओ-वजूद इस तरह...
तू जो मुझ में समायी तू ही रह गयी....
फासले किस तरह से मिटाते हैं घर....
अब मकाँ रेत पत्थर ज़मी रह गयी...
सांस चलती रही मैं पिघलती रही...
धौंकनी याद से मैं जली रह गयी....
घूम आओ सभी धाम बेशक जहां...
माँ न पूजी तो पूजा धरी रह गयी...
दूरियाँ दरमियाँ यूं बसी हैं 'चन्दर'...
ज़िन्दगी ज़ह्र की इक नदी रह गयी...
अमी = मीठा लगना, अमृत जैसा
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२९.०६.२०१९
चार लघु विधा का सृजन
1हाइकु
दिल ना मिले
दुरी है दरमियाँ
बढे फासले।
~
2ताँका
फासले अब
दरमियाँ ना रहे
सिमटने दो
ख्वाबों की अंखियों में
सुहानी यादें जगी ।
~
3सेदोका
मौसम बैरी
बरसे झिरमिर
साजन दूर तेरे
आंखें द्वार पे
राह बिछे नयन
तड़पे विरहन।
~
4वर्ण पिरामिड
रे
मिटा
फासला
मन मिला
प्रेम से रह
जीवन सफल
हो न जाए निष्फल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
1हाइकु
दिल ना मिले
दुरी है दरमियाँ
बढे फासले।
~
2ताँका
फासले अब
दरमियाँ ना रहे
सिमटने दो
ख्वाबों की अंखियों में
सुहानी यादें जगी ।
~
3सेदोका
मौसम बैरी
बरसे झिरमिर
साजन दूर तेरे
आंखें द्वार पे
राह बिछे नयन
तड़पे विरहन।
~
4वर्ण पिरामिड
रे
मिटा
फासला
मन मिला
प्रेम से रह
जीवन सफल
हो न जाए निष्फल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय- फासले
फासले इतने हो गये,
तेरे मेरे दरमियां,
जिसे मिटा पाना
होगा नहीं आसां।
तुम भी वही हो
मैं भी वहीं हूं
फिर भी कुछ तो
बदल गया है यहां।
चाहतों के चाँद को
लग मया ग्रहण
जज्बातों की तपिश
हो गई धुंआ धुंआ।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
फासले इतने हो गये,
तेरे मेरे दरमियां,
जिसे मिटा पाना
होगा नहीं आसां।
तुम भी वही हो
मैं भी वहीं हूं
फिर भी कुछ तो
बदल गया है यहां।
चाहतों के चाँद को
लग मया ग्रहण
जज्बातों की तपिश
हो गई धुंआ धुंआ।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय ,,, फासले /दूरी
*****************
1/
बढ़े फासले
आओ संभालते हैं ।
टूटते रिश्ते ।
2/
बढ़ती दूरी
अपनो के बीच की ।
संभालो भाई ।
3/
दूरी बनाली
चापलूस थी बड़ी।
खतरा टली ।
स्वरचित --' विमल '
*****************
1/
बढ़े फासले
आओ संभालते हैं ।
टूटते रिश्ते ।
2/
बढ़ती दूरी
अपनो के बीच की ।
संभालो भाई ।
3/
दूरी बनाली
चापलूस थी बड़ी।
खतरा टली ।
स्वरचित --' विमल '
शीर्षक-"फासले /दूरी"
विधा- कविता
***********
ये खामोशियां,फासले बना गई,
नजदीक रहकर भी दूरियां बन गई,
तुम भी कुछ न बोले हम भी चुप रहे,
न बोलने की सजा हम दोनों को मिल गई |
काश कि थोड़ा नरम हम हो जाते,
साथ में बिताये पल याद कर जाते,
आड़े अगर अहंम दोनों का न आता,
आज तुम हमारे और हम तुम्हारे हो जाते |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
विधा- कविता
***********
ये खामोशियां,फासले बना गई,
नजदीक रहकर भी दूरियां बन गई,
तुम भी कुछ न बोले हम भी चुप रहे,
न बोलने की सजा हम दोनों को मिल गई |
काश कि थोड़ा नरम हम हो जाते,
साथ में बिताये पल याद कर जाते,
आड़े अगर अहंम दोनों का न आता,
आज तुम हमारे और हम तुम्हारे हो जाते |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दिन शनिवार
दूरी
🍁🍁🍁
चाहे कोई कितना भी दूर हो
चाहे कितना कोई मज़बूर हो
एक बात है बहुत ज़रुरी
दिल से वो बिल्कुल न दूर हो।
सबसे लम्बी दूरी होती मन की
यहीं से बात है शुरु तड़पन की
मन का सामीप्य निराला होता
यही है कुंञी अपरिमित धन की।
दूरीयों में ग़लतफ़हमी प्रधान है
यहीं पर जलते बुझते प्रान हैं
अधिकतर लोग यहीं देते कान हैं
ग़लतफ़हमियों के नहीं कोई निदान हैं।
दूरी कम होगी यदि मिलाप होंगे
दूरी कम होगी यदि वार्तालाप होंगे
दूरी कम न हुई और बढ़ती रही तो
एक दिन केवल बस पश्चाताप होंगे।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दूरी
🍁🍁🍁
चाहे कोई कितना भी दूर हो
चाहे कितना कोई मज़बूर हो
एक बात है बहुत ज़रुरी
दिल से वो बिल्कुल न दूर हो।
सबसे लम्बी दूरी होती मन की
यहीं से बात है शुरु तड़पन की
मन का सामीप्य निराला होता
यही है कुंञी अपरिमित धन की।
दूरीयों में ग़लतफ़हमी प्रधान है
यहीं पर जलते बुझते प्रान हैं
अधिकतर लोग यहीं देते कान हैं
ग़लतफ़हमियों के नहीं कोई निदान हैं।
दूरी कम होगी यदि मिलाप होंगे
दूरी कम होगी यदि वार्तालाप होंगे
दूरी कम न हुई और बढ़ती रही तो
एक दिन केवल बस पश्चाताप होंगे।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
🌺🌻 गीतिका 🌻🌺
*******************************
💧 दूरी / फासले 💧
छंद - गीतिका
मापनी - 2122 , 2122 , 2122 , 212
समांत - आते , पदांत - तुम रहे
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
प्यार की आशा जगा कर आजमाते तुम रहे ।
पास आये ही नहीं , आँखें चुराते तुम रहे ।।
क्या हमारी थी खता जो आप को चाहा किये ,
बात ऐसी क्या हुई दूरी बनाते तुम रहे ।
प्यार को किस्से-कहानी सा बना कर चल दिये ,
हम यहाँ थे पथ निहारे , पर सताते तुम रहे ।
जो बिताये साथ हमने वे हसीं लम्हे धुले ,
फासले ऐसे हुए , हमको रुलाते तुम रहे ।
आ रहा मधुमास भी जाये नहीं सूना कहीं ,
ख्वाब देखी थीं बहारें पर भुलाते तुम रहे ।।
🏵🍀🌷🌻🌺
🌴🌹**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
मो0- 8532852618ध
*******************************
💧 दूरी / फासले 💧
छंद - गीतिका
मापनी - 2122 , 2122 , 2122 , 212
समांत - आते , पदांत - तुम रहे
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
प्यार की आशा जगा कर आजमाते तुम रहे ।
पास आये ही नहीं , आँखें चुराते तुम रहे ।।
क्या हमारी थी खता जो आप को चाहा किये ,
बात ऐसी क्या हुई दूरी बनाते तुम रहे ।
प्यार को किस्से-कहानी सा बना कर चल दिये ,
हम यहाँ थे पथ निहारे , पर सताते तुम रहे ।
जो बिताये साथ हमने वे हसीं लम्हे धुले ,
फासले ऐसे हुए , हमको रुलाते तुम रहे ।
आ रहा मधुमास भी जाये नहीं सूना कहीं ,
ख्वाब देखी थीं बहारें पर भुलाते तुम रहे ।।
🏵🍀🌷🌻🌺
🌴🌹**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
मो0- 8532852618ध
दिनांक ... 29/6/2019
विषय ... फासले/दूरी
*********************
हर भूखे की भूख मिटे अरू प्यासे को दे पानी।
अमरनाथ मै भी आऊँगा, ओ बाबा बर्फानी॥
नही फासला हम मे कोई, ना है कोई दूरी।
सावन मे बाबा से मिलना, अब है बहुत जरूरी॥
*
भावों के इस मंच पे आके, शेर ने दी मंजूरी ।
किसको-किसको चलना है, बतलाना बहुत जरूरी॥
श्वास रोग से जो पीडित है, उनकी तो मजबूरी॥
चंगे है जो हुष्ट- पुष्ट वो, चलना उन्हे जरूरी॥
*
वैसे तो हर जल है गंगा, कण-कण है त्रिपुरारी।
बहुत दिनो से दिल करता है दर्शन दे बर्फानी॥
दूरी नही बहुत ज्यादा है भोले है भण्डारी।
झोला ले के चला शेर, जय हो बाबा बर्फानी ॥
*
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
विषय ... फासले/दूरी
*********************
हर भूखे की भूख मिटे अरू प्यासे को दे पानी।
अमरनाथ मै भी आऊँगा, ओ बाबा बर्फानी॥
नही फासला हम मे कोई, ना है कोई दूरी।
सावन मे बाबा से मिलना, अब है बहुत जरूरी॥
*
भावों के इस मंच पे आके, शेर ने दी मंजूरी ।
किसको-किसको चलना है, बतलाना बहुत जरूरी॥
श्वास रोग से जो पीडित है, उनकी तो मजबूरी॥
चंगे है जो हुष्ट- पुष्ट वो, चलना उन्हे जरूरी॥
*
वैसे तो हर जल है गंगा, कण-कण है त्रिपुरारी।
बहुत दिनो से दिल करता है दर्शन दे बर्फानी॥
दूरी नही बहुत ज्यादा है भोले है भण्डारी।
झोला ले के चला शेर, जय हो बाबा बर्फानी ॥
*
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
फासले
हमारे दरम्यान जो दूरी है
जान-बूझकर है ?
या, मजबूरी है
चलो, छोड़ो
अब, कुछ नया आजमाते है
बढ़ती खाई को पाटकर
ये दूरी घटाते है
आईने में उभरे
अक्स को चकनाचूर कर दें
आओ, मैं को दूर कर दें
फिर हम पास होंगे
फासले कम जाएंगे
दूर भी खटास होंगे
सर्द रात में
गर्म अंगीठी सी
गरमाहट लिए
रिश्तों के
सुखद अहसास होंगे
-©नवल किशोर सिंह
29-06-2019
स्वरचित
हमारे दरम्यान जो दूरी है
जान-बूझकर है ?
या, मजबूरी है
चलो, छोड़ो
अब, कुछ नया आजमाते है
बढ़ती खाई को पाटकर
ये दूरी घटाते है
आईने में उभरे
अक्स को चकनाचूर कर दें
आओ, मैं को दूर कर दें
फिर हम पास होंगे
फासले कम जाएंगे
दूर भी खटास होंगे
सर्द रात में
गर्म अंगीठी सी
गरमाहट लिए
रिश्तों के
सुखद अहसास होंगे
-©नवल किशोर सिंह
29-06-2019
स्वरचित
"दूरी/फासले"
1
धरा,गगन
फासला है अनंत
प्रेम ना कम
2
समान दूरी
समानांतर रेखा
मंजिल पूरी
3
दिलों के बीच
भेद ना मतभेद
बढ़ी क्यों दूरी
4
दिल जो टूटा
बढ़ रहा फासला
प्रेम था झूठा
5
शून्य भावना
खामोशी का फासला
घाव गहरा
स्वरचित पूर्णिमा साह (भकत)
पश्चिम बंगाल।
1
धरा,गगन
फासला है अनंत
प्रेम ना कम
2
समान दूरी
समानांतर रेखा
मंजिल पूरी
3
दिलों के बीच
भेद ना मतभेद
बढ़ी क्यों दूरी
4
दिल जो टूटा
बढ़ रहा फासला
प्रेम था झूठा
5
शून्य भावना
खामोशी का फासला
घाव गहरा
स्वरचित पूर्णिमा साह (भकत)
पश्चिम बंगाल।
स्वरचित :- फासले
दिनांक :- 29/6/2019
फासले
सोचा ना था के बढ़
जाएंगे कुछ इस कदर
"फासले"तेरे मेरे दरमियाँ।
ना रहेगी करीब आने की
फिर कोई भी वजह।
बढ़ जाएंगी हम दोनों में
दूरी इतनी के रह जाएगी
सिर्फ नफरत ही नफरत
तेरे मेरे दरमियाँ।
कितना प्यार था हम दोनों
के दिलों में एकदूजे के प्रति
ना जाने वो अब कहाँ खो
गया।
ज़रा सी गलतफहमी से
देखो क्या से क्या हो गया,
अब तो बस उन प्यार भरे
लम्हों की यादें ही रह गईं
हैं देख तेरे मेरे दरमियाँ।
कभी ना भरने वाला दिया
है घाव तूने मुझको,जो चाह
के भी ना भुला सकूँगी।
अब तो चाहें भी तो, मिट ना
सकेंगे ये फासले जो हैं तेरे मेरे
दरमियाँ, क्योंकि एक गाँठ सी
लग गई है देख तेरे मेरे रिश्ते
के दरमियाँ।
रौशनी अरोड़ा (रश्मि)
दिनांक :- 29/6/2019
फासले
सोचा ना था के बढ़
जाएंगे कुछ इस कदर
"फासले"तेरे मेरे दरमियाँ।
ना रहेगी करीब आने की
फिर कोई भी वजह।
बढ़ जाएंगी हम दोनों में
दूरी इतनी के रह जाएगी
सिर्फ नफरत ही नफरत
तेरे मेरे दरमियाँ।
कितना प्यार था हम दोनों
के दिलों में एकदूजे के प्रति
ना जाने वो अब कहाँ खो
गया।
ज़रा सी गलतफहमी से
देखो क्या से क्या हो गया,
अब तो बस उन प्यार भरे
लम्हों की यादें ही रह गईं
हैं देख तेरे मेरे दरमियाँ।
कभी ना भरने वाला दिया
है घाव तूने मुझको,जो चाह
के भी ना भुला सकूँगी।
अब तो चाहें भी तो, मिट ना
सकेंगे ये फासले जो हैं तेरे मेरे
दरमियाँ, क्योंकि एक गाँठ सी
लग गई है देख तेरे मेरे रिश्ते
के दरमियाँ।
रौशनी अरोड़ा (रश्मि)
दिनांक-२९/६/२०१९
"शीषर्क-दूरी/फासले
दूरी बना कर देखा रिश्तों में
सहजता नही था जीवन में
रिश्तों को सम्भालना सीखा
जीवन हुआ सुहाना सा।
थोड़ी दूरी लाजिमी है
रिश्तों को समझने में
पर इतनी भी दूरी न हो जाये
रिश्ते हो जाये बेगाने से।
हम सब है यहाँ अतिथि
समझ मे आया जब हमको
हमनें लिया एक फैसला
मिटा देंगें फासला को।
एक कदम हम बढ़े
सबने फिर बढ़ाये कदम
मिट गई दूरियां सारी
रिश्तों में फिर जान आई।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
"शीषर्क-दूरी/फासले
दूरी बना कर देखा रिश्तों में
सहजता नही था जीवन में
रिश्तों को सम्भालना सीखा
जीवन हुआ सुहाना सा।
थोड़ी दूरी लाजिमी है
रिश्तों को समझने में
पर इतनी भी दूरी न हो जाये
रिश्ते हो जाये बेगाने से।
हम सब है यहाँ अतिथि
समझ मे आया जब हमको
हमनें लिया एक फैसला
मिटा देंगें फासला को।
एक कदम हम बढ़े
सबने फिर बढ़ाये कदम
मिट गई दूरियां सारी
रिश्तों में फिर जान आई।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
विषय-फ़ासले
फ़ासला हो अगर दूरियों का
हँसते-हँसाते पाट लेते हैं लोग
बात आती है जब दिलों की
पैर पीछे क्यों खींच लेते है लोग ?
अपने मन की पीड़ा को दबाकर
बाँटने से क्यों कतराते हैं लोग ?
मन की कसक , आहों का ग़रल
चुपचाप क्यों पी जाते हैं लोग ?
कह दो उसे जो तुम्हें अपना सा लगे
कहने में क्यों आनाक़ानी करते हैं लोग ?
लाज़मी है मत मतांतरों का होना
स्वीकारने में क्यों हिचकिचाते है लोग
कभी वहम तो कभी अहम के वास्ते
नफ़रते दिलों में क्यों पालते है लोग ?
फ़ासलों का मिटाना नामुमकिन नही
ना जाने क्यों पहल करने से डरते है लोग ?
मिट जाएँ फ़ासले यदि दिलों के सभी
इंसानियत का ख़ूबसूरत पैग़ाम दे सकते हैं लोग !
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
फ़ासला हो अगर दूरियों का
हँसते-हँसाते पाट लेते हैं लोग
बात आती है जब दिलों की
पैर पीछे क्यों खींच लेते है लोग ?
अपने मन की पीड़ा को दबाकर
बाँटने से क्यों कतराते हैं लोग ?
मन की कसक , आहों का ग़रल
चुपचाप क्यों पी जाते हैं लोग ?
कह दो उसे जो तुम्हें अपना सा लगे
कहने में क्यों आनाक़ानी करते हैं लोग ?
लाज़मी है मत मतांतरों का होना
स्वीकारने में क्यों हिचकिचाते है लोग
कभी वहम तो कभी अहम के वास्ते
नफ़रते दिलों में क्यों पालते है लोग ?
फ़ासलों का मिटाना नामुमकिन नही
ना जाने क्यों पहल करने से डरते है लोग ?
मिट जाएँ फ़ासले यदि दिलों के सभी
इंसानियत का ख़ूबसूरत पैग़ाम दे सकते हैं लोग !
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
विधा :--हाईकू
(1)
यह फासला
दूरी है मजबूरी
इस तरह ।
(2)
दूरियां सदा
तोडती हैं दिलों को
जोड़ती नही ।
(3)
बे सहारों को
दूरियां ही तो सदा
देतीं सहारा ।
स्वरचित :-उषासक्सैना
(1)
यह फासला
दूरी है मजबूरी
इस तरह ।
(2)
दूरियां सदा
तोडती हैं दिलों को
जोड़ती नही ।
(3)
बे सहारों को
दूरियां ही तो सदा
देतीं सहारा ।
स्वरचित :-उषासक्सैना
दिनाँक -29/06/2019
शीर्षक-फासले, दूरी
विधा-हाइकु
1.
बढ़ाती दूरी
गरीबी, मजबूरी
बेरोजगारी
2.
घटती दूरी
बढ़ते संसाधन
विज्ञान धूरी
3.
रिश्तों में दूरी
जर, जोरू, जमीन
मन मुटाव
4.
कम है दूरी
मन मत हारना
मंजिल पाना
5.
विरह काल
अखरते फासले
दिल है रोता
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शीर्षक-फासले, दूरी
विधा-हाइकु
1.
बढ़ाती दूरी
गरीबी, मजबूरी
बेरोजगारी
2.
घटती दूरी
बढ़ते संसाधन
विज्ञान धूरी
3.
रिश्तों में दूरी
जर, जोरू, जमीन
मन मुटाव
4.
कम है दूरी
मन मत हारना
मंजिल पाना
5.
विरह काल
अखरते फासले
दिल है रोता
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शनिवार
ज़माना बड़ा बेवफा हो रहा है ,
दिलों में कहीं फ़ासला हो रहा है |
ग़मे जिंदगी में अकेले सभी हैं ,
नहीं अब किसी का भला हो रहा है |
बड़ा तंगदिल आज इंसां बना है ,
खत्म रिश्तों का सिलसिला हो रहा है |
हर एक शख़्श ख़ुद की ख़ुशी में मगनहै ,
यही फ़ासलों का सिला हो रहा है |
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
ज़माना बड़ा बेवफा हो रहा है ,
दिलों में कहीं फ़ासला हो रहा है |
ग़मे जिंदगी में अकेले सभी हैं ,
नहीं अब किसी का भला हो रहा है |
बड़ा तंगदिल आज इंसां बना है ,
खत्म रिश्तों का सिलसिला हो रहा है |
हर एक शख़्श ख़ुद की ख़ुशी में मगनहै ,
यही फ़ासलों का सिला हो रहा है |
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 29/06/2019
शीर्षक :- फासले/दूरी
ये फासले...ये दूरियां..
वो अनकही बातें...
वो साहिल किनारे....
साँझ ढलती मुलाकातें..
अक्सर याद आ जाती है..
खिलखिला उठता मन मेरा...
घनी धूप में...वो साया देखकर..
खिल उठता चमन भी...
भँवरे की काया देखकर..
यादों के झुरमुट से...
हृदय के चिलमन पर..
अजीब सी खुमारी छा जाती है..
ये फासले...ये दूरियां..
अक्सर याद दिला जाती है..
वो गेसुओं में महकता गजरा तेरा...
वो घुँघट से झाँकता चेहरा तेरा..
वो खिलखिलाती हँसी तेरी...
जिसमें बसी जिंदगी मेरी..
याद दिला जाती है..
यादों पर तो फासलों का असर नहीं...
पर अब यादों के बिना बसर नहीं...
फासले ही सही...पर यादें आबाद रहे..
यादों से ही अब...ये दिल आबाद रहे..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक :- 29/06/2019
शीर्षक :- फासले/दूरी
ये फासले...ये दूरियां..
वो अनकही बातें...
वो साहिल किनारे....
साँझ ढलती मुलाकातें..
अक्सर याद आ जाती है..
खिलखिला उठता मन मेरा...
घनी धूप में...वो साया देखकर..
खिल उठता चमन भी...
भँवरे की काया देखकर..
यादों के झुरमुट से...
हृदय के चिलमन पर..
अजीब सी खुमारी छा जाती है..
ये फासले...ये दूरियां..
अक्सर याद दिला जाती है..
वो गेसुओं में महकता गजरा तेरा...
वो घुँघट से झाँकता चेहरा तेरा..
वो खिलखिलाती हँसी तेरी...
जिसमें बसी जिंदगी मेरी..
याद दिला जाती है..
यादों पर तो फासलों का असर नहीं...
पर अब यादों के बिना बसर नहीं...
फासले ही सही...पर यादें आबाद रहे..
यादों से ही अब...ये दिल आबाद रहे..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक : 29.06.2019
आज का विषय : फासले / दूरी
विधा : काव्य
गीत
कहीं दूरियों में आकर्षण ,
कहीं प्रेम पलता है !
कभी मिटे ना कहीं फासले ,
दिल अकसर जलता है !!
कभी दूरियाँ मिट जाती है ,
संदेशे हम पायें !
कभी दूरियाँ हमें लुभाती ,
नज़रें अगर घुमाएं !
कहीं फासले हितकारी हैं ,
प्रेम यहाँ पलता है !!
मतलब के रिश्ते गर पनपे ,
यही बढ़ाते दूरी !
भले रहे हम साथ साथ पर ,
साथ चले मजबूरी !
दूर पास हैं , पास दूर हैं ,
हमको मन छलता है !!
सरल भाव से घटती दूरी ,
शिशु के जैसा मन हो !
जंगल में हम भटक रहे हैं ,
ढूंढ रहे चंदन को !
मानव जीवन जैसा ढालें ,
वैसा ही ढलता है !!
ध्यान धारणा भक्ति भाव से ,
दूरी मिट जाये है !
जी भर कर संतोष मिले है ,
मन ना अकुलाये है !
योग मिलाये प्रभु से मन को ,
बुरा वक्त टलता है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश
आज का विषय : फासले / दूरी
विधा : काव्य
गीत
कहीं दूरियों में आकर्षण ,
कहीं प्रेम पलता है !
कभी मिटे ना कहीं फासले ,
दिल अकसर जलता है !!
कभी दूरियाँ मिट जाती है ,
संदेशे हम पायें !
कभी दूरियाँ हमें लुभाती ,
नज़रें अगर घुमाएं !
कहीं फासले हितकारी हैं ,
प्रेम यहाँ पलता है !!
मतलब के रिश्ते गर पनपे ,
यही बढ़ाते दूरी !
भले रहे हम साथ साथ पर ,
साथ चले मजबूरी !
दूर पास हैं , पास दूर हैं ,
हमको मन छलता है !!
सरल भाव से घटती दूरी ,
शिशु के जैसा मन हो !
जंगल में हम भटक रहे हैं ,
ढूंढ रहे चंदन को !
मानव जीवन जैसा ढालें ,
वैसा ही ढलता है !!
ध्यान धारणा भक्ति भाव से ,
दूरी मिट जाये है !
जी भर कर संतोष मिले है ,
मन ना अकुलाये है !
योग मिलाये प्रभु से मन को ,
बुरा वक्त टलता है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश
विधा--ग़ज़ल
द्वितीय प्रस्तुति
दूरियाँ नजदीकियाँ बनने लगी
जब से किस्मत मेरी सुनने लगी ।।
हर रिस्तों में यही अहसास पाऊँ
बड़ी बिडंवना मुझे लगने लगी ।।
अपनी बैंक बुक बेटे से भी छुपाऊँ
उन तक खबर कैसे पहुंचने लगी ।।
लगता चेहरे पढ़ते हैं दुनिया वाले
बड़े हुनरमंद हैं बात घर करने लगी ।।
अब नजदीकी की चाह न रही पर
उनकी मानो अति तक बढ़ने लगी ।।
यह क्या तिलिस्मात खुदा मेरे चंद
पैसों के पीछे दुनिया चलने लगी ।।
रिश्तों की कोई कदर नही ''शिवम"
नजदीकी अब पैसों मैं दिखने लगी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/06/2019
द्वितीय प्रस्तुति
दूरियाँ नजदीकियाँ बनने लगी
जब से किस्मत मेरी सुनने लगी ।।
हर रिस्तों में यही अहसास पाऊँ
बड़ी बिडंवना मुझे लगने लगी ।।
अपनी बैंक बुक बेटे से भी छुपाऊँ
उन तक खबर कैसे पहुंचने लगी ।।
लगता चेहरे पढ़ते हैं दुनिया वाले
बड़े हुनरमंद हैं बात घर करने लगी ।।
अब नजदीकी की चाह न रही पर
उनकी मानो अति तक बढ़ने लगी ।।
यह क्या तिलिस्मात खुदा मेरे चंद
पैसों के पीछे दुनिया चलने लगी ।।
रिश्तों की कोई कदर नही ''शिवम"
नजदीकी अब पैसों मैं दिखने लगी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/06/2019
फासले / दूरी
अजब पहेली है
ये जिन्दगी
कभी देती
खुशी तो गम
दिखने लगे हैं
फासले उम्र की
कगार पर
झुर्रिया बताने
लगी हैं
हाले ए मिजाज के
दूरियाँ कुछ
यूँ बढ़ गयी
इन्सान में
नकाब से
चेहरे नजर
आने लगे हैं
ऐ खुदा
मौत दे देना
भले ही
पर फासले
न दे रिश्तों में
मुकाम ने
भले ही बढ़ा
दी हों दूरियाँ
पैर
महफ़ूज हैं
तो काहे के
फासले
अपने
माँ-बाप से
न बढ़ाना
दूरियाँ
मंदिर- मस्जिद
है यहाँ फिर
कबा - काशी
जाना है क्यो
इतनी
मोहब्बत कर
ऐ इन्सान
अपनों से
दूरियाँ
जिन्दगी की
यूँ ही
कट जायेगी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
अजब पहेली है
ये जिन्दगी
कभी देती
खुशी तो गम
दिखने लगे हैं
फासले उम्र की
कगार पर
झुर्रिया बताने
लगी हैं
हाले ए मिजाज के
दूरियाँ कुछ
यूँ बढ़ गयी
इन्सान में
नकाब से
चेहरे नजर
आने लगे हैं
ऐ खुदा
मौत दे देना
भले ही
पर फासले
न दे रिश्तों में
मुकाम ने
भले ही बढ़ा
दी हों दूरियाँ
पैर
महफ़ूज हैं
तो काहे के
फासले
अपने
माँ-बाप से
न बढ़ाना
दूरियाँ
मंदिर- मस्जिद
है यहाँ फिर
कबा - काशी
जाना है क्यो
इतनी
मोहब्बत कर
ऐ इन्सान
अपनों से
दूरियाँ
जिन्दगी की
यूँ ही
कट जायेगी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दूरी/फासले
विश्वास के धागे,
ना उलझने दो,
पड़े ना कोई गाँठ,
बात मन की बता दो,
वक्त रहते समझ जाओ,
दूरियाँ जो बढ़ गई,
जज्बातों की कदर ना होगी वहाँ,
जिद जहाँ अपनों में जो ठन गई,
फासले दिलों के दरमियाँ जो आ जाते हैं,
शब्द ही फिर चिंगारी बन जाते हैं,
शब्दों के उन घावों को फिर,
वैध भी भर नही पाते हैं,
वक्त फिर ऐसा आता है,
फासले अखरते हैं,
समेटना चाहे जितना भी,
रिश्ते फिर बिखरते हैं,
दोस्तों इल्तजा़ बस इतनी करती हूँ,
रिश्तों के दरमियाँ तुम अपने,
अविश्वास का विष ना घुलने दो,
प्रेम की तुम करके वर्षा,
रिश्तों को महकने दो।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/6/19
शनिवार
विश्वास के धागे,
ना उलझने दो,
पड़े ना कोई गाँठ,
बात मन की बता दो,
वक्त रहते समझ जाओ,
दूरियाँ जो बढ़ गई,
जज्बातों की कदर ना होगी वहाँ,
जिद जहाँ अपनों में जो ठन गई,
फासले दिलों के दरमियाँ जो आ जाते हैं,
शब्द ही फिर चिंगारी बन जाते हैं,
शब्दों के उन घावों को फिर,
वैध भी भर नही पाते हैं,
वक्त फिर ऐसा आता है,
फासले अखरते हैं,
समेटना चाहे जितना भी,
रिश्ते फिर बिखरते हैं,
दोस्तों इल्तजा़ बस इतनी करती हूँ,
रिश्तों के दरमियाँ तुम अपने,
अविश्वास का विष ना घुलने दो,
प्रेम की तुम करके वर्षा,
रिश्तों को महकने दो।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/6/19
शनिवार
#वार:::: शनिवार:::::
#विषय::: फासले, दूरी :::::
#विधा::::काव्य लेखन:::::
रचनाकार::: दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
""***"""* दूरी *"""***""
रिश्तों की जो गांठ बंधी है,
कच्ची सी एक डोरी से,
त्याग ही वो पहला लक्षण है,
जो अपनों को बचाता दूरी से,
कुछ हम खोकर भी मुस्काएं,
कुछ तुम पाकर ना इठलाओ,
खोना और पाना है रीत जहां की,
आओ आकर गले लग जाओ,
क्या कुछ मेरा है क्या तेरा है,
ये जग ना किसी का डेरा है,
राजा हो या रंक सभी का,
कुछ एक पल का ही फेरा है,
कुछ फासले सोच से उभरे हैं,
कुछ तो दूरियां भी है विचारों की,
कुछ द्वंद भी पराए पन के हैं,
ये दुनिया तो है दिलदारों की,
झुकने में तेरा ही बड़प्पन है,
अकड़े रहना मुर्दों की निशानी है,
कुछ कदम तू आगे बढ़कर देख,
फिर ये दुनिया तेरी दीवानी है,
#विषय::: फासले, दूरी :::::
#विधा::::काव्य लेखन:::::
रचनाकार::: दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
""***"""* दूरी *"""***""
रिश्तों की जो गांठ बंधी है,
कच्ची सी एक डोरी से,
त्याग ही वो पहला लक्षण है,
जो अपनों को बचाता दूरी से,
कुछ हम खोकर भी मुस्काएं,
कुछ तुम पाकर ना इठलाओ,
खोना और पाना है रीत जहां की,
आओ आकर गले लग जाओ,
क्या कुछ मेरा है क्या तेरा है,
ये जग ना किसी का डेरा है,
राजा हो या रंक सभी का,
कुछ एक पल का ही फेरा है,
कुछ फासले सोच से उभरे हैं,
कुछ तो दूरियां भी है विचारों की,
कुछ द्वंद भी पराए पन के हैं,
ये दुनिया तो है दिलदारों की,
झुकने में तेरा ही बड़प्पन है,
अकड़े रहना मुर्दों की निशानी है,
कुछ कदम तू आगे बढ़कर देख,
फिर ये दुनिया तेरी दीवानी है,
फासले /दूरी
**
संग चलने के सपने देखे थे हमने
उनको यूँ पल मे बदलते देखा है।
जो पलकों पर ख़्वाब मचलते थे कभी
बेबस हो आज उनको मरते देखा है।
जीवन भर खामोशियाँ डराती रही
दरमियाँ अब मौन पसरते देखा है ।
लब से बात जुबा पर आती नही
कोई तूफाँ दिल में पलते देखा है।
कुछ कागज के टुकड़ों खातिर
दरमियां दूरियां बढ़ते देखा है।
लोगों की कलम बिकती है यहाँ
सच को झूठा कर बेचते देखा है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
**
संग चलने के सपने देखे थे हमने
उनको यूँ पल मे बदलते देखा है।
जो पलकों पर ख़्वाब मचलते थे कभी
बेबस हो आज उनको मरते देखा है।
जीवन भर खामोशियाँ डराती रही
दरमियाँ अब मौन पसरते देखा है ।
लब से बात जुबा पर आती नही
कोई तूफाँ दिल में पलते देखा है।
कुछ कागज के टुकड़ों खातिर
दरमियां दूरियां बढ़ते देखा है।
लोगों की कलम बिकती है यहाँ
सच को झूठा कर बेचते देखा है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
हाइकु
--------------
1)
प्रेम की गंगा
फासले डूब गये
रिश्ते निकले।।
2)
तन से दूर
फासला काहे होगा
मन से पास ।।
3)
भावों के मोती
मिटा दिया फासला
लेखक पास ।।
-----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ,ग,
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1)
प्रेम की गंगा
फासले डूब गये
रिश्ते निकले।।
2)
तन से दूर
फासला काहे होगा
मन से पास ।।
3)
भावों के मोती
मिटा दिया फासला
लेखक पास ।।
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क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ,ग,
दि. -29.06.19/शनिवार
विषय - फासले /दूरी
=========================
#फासले दिल के दरम्याँ जो आने लगे |
दूर अपनों से अपने ही जाने लगे ||
दौर कैसा ज़माने में ये चल पड़ा,
लोग खुद से ही नजरें चुराने लगे |
बात ही बात में बात बढ़ने लगी,
ये इशारे सभी को डराने लगे |
कौन किसकी यहाँ सुन रहा आजकल,
अपने दिल को ही अपनी सुनाने लगे |
ज़िंदगी राज तेरे न आये समझ,
गीत क्यों हम तेरे गुनगुनाने लगे |
दर्द हद से गुजरने लगा जब कभी,
दर्द में भी "सरस" मुस्कुराने लगे |
===========================
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
#स्वरचित
विषय - फासले /दूरी
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#फासले दिल के दरम्याँ जो आने लगे |
दूर अपनों से अपने ही जाने लगे ||
दौर कैसा ज़माने में ये चल पड़ा,
लोग खुद से ही नजरें चुराने लगे |
बात ही बात में बात बढ़ने लगी,
ये इशारे सभी को डराने लगे |
कौन किसकी यहाँ सुन रहा आजकल,
अपने दिल को ही अपनी सुनाने लगे |
ज़िंदगी राज तेरे न आये समझ,
गीत क्यों हम तेरे गुनगुनाने लगे |
दर्द हद से गुजरने लगा जब कभी,
दर्द में भी "सरस" मुस्कुराने लगे |
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प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
#स्वरचित
29/6/2019
विषय-फासले/दूरी
बढ़ रहे हैं फासले,
दिलों के दरम्यान।
दूर हो रहें वो ,
जो कभी छिड़कते थे जान।
ये कैसी हवा चल पड़ी,
कि रिश्ते तुलने लगे हैं।
रिश्तों के दाम भी अब
लगने लगे हैं।
बढ़ रही अमीर-गरीब,
कीे बीच की दूरियां।
खत्म हो रही हैं,
धीरे-धीरे नजदीकियां।
खून के रिश्ते भी,
धन की भेंट चढ़ रहें।
मां-बाप भी आज,
जैसे बोझ लग रहे।
ये बढ़ते फासले,
स्वार्थ की ही देन हैं।
आज के समय में,
किसी को कहां चैन है।
आस-पड़ोस गली-मोहल्ले,
बीते कल की बात हैं।
अब तो जैसे सबके,
सिमट गए जज्बात हैं।
घर सिमटे,सिमटे मन भी,
सिमट गए संस्कार है।
रिश्ते-नाते या हो दोस्ती,
सबमें जल्दी पड़ती दरार है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
विषय-फासले/दूरी
बढ़ रहे हैं फासले,
दिलों के दरम्यान।
दूर हो रहें वो ,
जो कभी छिड़कते थे जान।
ये कैसी हवा चल पड़ी,
कि रिश्ते तुलने लगे हैं।
रिश्तों के दाम भी अब
लगने लगे हैं।
बढ़ रही अमीर-गरीब,
कीे बीच की दूरियां।
खत्म हो रही हैं,
धीरे-धीरे नजदीकियां।
खून के रिश्ते भी,
धन की भेंट चढ़ रहें।
मां-बाप भी आज,
जैसे बोझ लग रहे।
ये बढ़ते फासले,
स्वार्थ की ही देन हैं।
आज के समय में,
किसी को कहां चैन है।
आस-पड़ोस गली-मोहल्ले,
बीते कल की बात हैं।
अब तो जैसे सबके,
सिमट गए जज्बात हैं।
घर सिमटे,सिमटे मन भी,
सिमट गए संस्कार है।
रिश्ते-नाते या हो दोस्ती,
सबमें जल्दी पड़ती दरार है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
दिनांक-29/6/2019
शीर्षक -फासले
जो थे बिल्कुल करीब मेरे
क्या हुआ कि यूँ हुए दूर मुझसे ।
नजदीकियां बदल गई फ़ासलों में
ऐसे फ़ासले जो पाटे नहीं पटते ।
ऐसे फ़ासले जो जोड़े नहीं जुड़ते
तनहा दिल ,तनहा दिन काटे नहीं कटते ।
कौन सी खता है मेरी ,यह तो पता नहीं
पर यूँ तुम खपा हो जाओगे ये था पता नहीं ।
पाट देते फासलों की मंजिलों को
तेरे दर के सामने अपना कारवाँ रोक देते ।
मांग लेते रहमतों की आरजू
गर फासलों की यूँ कोई आहट भी होती ।
मैं माँगता हूँ माफीनामा अपनी गुस्ताखियों का ,
इतने फ़ासलों में जिंदगी ,जिंदगी नहीं रहती ।
बख्श दो रहम मुझपर ,पाट दो फ़ासलों को ,
क्योंकि तुम बिन जिंदगी ज़िन्दगी नहीं होती ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
शीर्षक -फासले
जो थे बिल्कुल करीब मेरे
क्या हुआ कि यूँ हुए दूर मुझसे ।
नजदीकियां बदल गई फ़ासलों में
ऐसे फ़ासले जो पाटे नहीं पटते ।
ऐसे फ़ासले जो जोड़े नहीं जुड़ते
तनहा दिल ,तनहा दिन काटे नहीं कटते ।
कौन सी खता है मेरी ,यह तो पता नहीं
पर यूँ तुम खपा हो जाओगे ये था पता नहीं ।
पाट देते फासलों की मंजिलों को
तेरे दर के सामने अपना कारवाँ रोक देते ।
मांग लेते रहमतों की आरजू
गर फासलों की यूँ कोई आहट भी होती ।
मैं माँगता हूँ माफीनामा अपनी गुस्ताखियों का ,
इतने फ़ासलों में जिंदगी ,जिंदगी नहीं रहती ।
बख्श दो रहम मुझपर ,पाट दो फ़ासलों को ,
क्योंकि तुम बिन जिंदगी ज़िन्दगी नहीं होती ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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