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ब्लॉग संख्या :-436
दिनांक- 3/7/2019
शीर्षक-"सावन"
विधा- गीत
************
सावन की छाई रे बदरिया,
नाचूँ मैं ओढ़ के चुनरिया |
सोलह सिंगार मैंने किया है,
सावन में मन मेरा हुआ बांवरा,
बारिश में भीगे अंग-अंग पिया,
लग जाये न किसी की नजरिया,
नाचूँ ओढ़ के चुनरिया,
सावन की ................
झूला सजन मोहे एेसे झूलाना,
सखियां जरा तुम पेंग बढ़ाना,
सावन के गीतों को सुनना, सुनाना
हाथों में चमके रे मुदरियां,
नाचूँ ओढ़ के चुनरिया,
सावन की................
मोर,पपीहा नाचे और गायें,
तीज की सुन्दर बेला आ जाये,
मायके से मेरे संदेशा आये,
हरी-भरी सौगातें मन को भाये,
बादल में चमके रे बिजुरिया,
नाचूँ मैं ओढ़ के चुनरिया,
सावन की................
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
शीर्षक-"सावन"
विधा- गीत
************
सावन की छाई रे बदरिया,
नाचूँ मैं ओढ़ के चुनरिया |
सोलह सिंगार मैंने किया है,
सावन में मन मेरा हुआ बांवरा,
बारिश में भीगे अंग-अंग पिया,
लग जाये न किसी की नजरिया,
नाचूँ ओढ़ के चुनरिया,
सावन की ................
झूला सजन मोहे एेसे झूलाना,
सखियां जरा तुम पेंग बढ़ाना,
सावन के गीतों को सुनना, सुनाना
हाथों में चमके रे मुदरियां,
नाचूँ ओढ़ के चुनरिया,
सावन की................
मोर,पपीहा नाचे और गायें,
तीज की सुन्दर बेला आ जाये,
मायके से मेरे संदेशा आये,
हरी-भरी सौगातें मन को भाये,
बादल में चमके रे बिजुरिया,
नाचूँ मैं ओढ़ के चुनरिया,
सावन की................
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
3/7/2019/
बिषय,, सावन,,
सावन आया रे भन भाया
रिमझिम उड़त फुहार
झूला डालूं कदम की डार
छाई बदरिया रज मतवाली
जामुन जैसी काली काली
मंद मंद सुगंध पवन की धीमी
चलत बयार
बसुंधरा भी बनी रे दुल्हनिया
हरियाली की ओढ़ चुनरिया
हरे हरे पत्तों और बृक्षों से कर लिया श्रंगार
परदेश से संदेशा भेजे बहना
मेरे भैया से यह कहना
रक्षाबंधन पर जल्दी आना
खड़ी रहूं मै द्वार
नवबधु के भर आवें नयना
कब जाउं बाबुल के अंगना
पीहर में जा झूला झूलूं
गा गाकर मल्हार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, सावन,,
सावन आया रे भन भाया
रिमझिम उड़त फुहार
झूला डालूं कदम की डार
छाई बदरिया रज मतवाली
जामुन जैसी काली काली
मंद मंद सुगंध पवन की धीमी
चलत बयार
बसुंधरा भी बनी रे दुल्हनिया
हरियाली की ओढ़ चुनरिया
हरे हरे पत्तों और बृक्षों से कर लिया श्रंगार
परदेश से संदेशा भेजे बहना
मेरे भैया से यह कहना
रक्षाबंधन पर जल्दी आना
खड़ी रहूं मै द्वार
नवबधु के भर आवें नयना
कब जाउं बाबुल के अंगना
पीहर में जा झूला झूलूं
गा गाकर मल्हार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
जो धर्म को अपने ना जाना,
वो धर्मी कभी ना रह पाया।
इतिहास से जो ना सीख लिया,
इतिहास बना वो ना पाया॥
.....
सतयुग की एक कहानी है,
जहाँ '' नल '' राजा अरू रानी है।
सौभाग्य श्री दमयन्ती की,
यह सुन्दर बहुत कहानी है॥
.....
यह भाव लीन दो प्रेमी थे,
जिसका वर्णन है ग्रंथो मे।
यह कथा सुनो और इसे सुनाओ,
अपने वंशज अरू संतति में॥
.....
सावन का इसमे है वर्णन,
है मेघ मल्हारो का गर्जन।
ऐश्वर्य दमकता है इसमे,
निर्धनता का भी है क्रदंन॥
.....
यह कथा शेर के मन मे है,
जो बचपन मे था सुना कही।
ये कथा आपको अर्पित है,
भारत सा सुन्दर राष्ट्र नही॥
.......
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
वो धर्मी कभी ना रह पाया।
इतिहास से जो ना सीख लिया,
इतिहास बना वो ना पाया॥
.....
सतयुग की एक कहानी है,
जहाँ '' नल '' राजा अरू रानी है।
सौभाग्य श्री दमयन्ती की,
यह सुन्दर बहुत कहानी है॥
.....
यह भाव लीन दो प्रेमी थे,
जिसका वर्णन है ग्रंथो मे।
यह कथा सुनो और इसे सुनाओ,
अपने वंशज अरू संतति में॥
.....
सावन का इसमे है वर्णन,
है मेघ मल्हारो का गर्जन।
ऐश्वर्य दमकता है इसमे,
निर्धनता का भी है क्रदंन॥
.....
यह कथा शेर के मन मे है,
जो बचपन मे था सुना कही।
ये कथा आपको अर्पित है,
भारत सा सुन्दर राष्ट्र नही॥
.......
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
बुन्देलखंडी लोकगीत
रिमझिम बूँदों की फुहार ...
बेदर्दी सावन तड़फाये ...
कैसे गाऊँ मेघ मल्हार ....
मोरे पिया विदिसवा धाये ....
झूला झूलें सखियाँ सारीं
है किस्मत की बलिहारीं
मोरी किस्मत जिया दुखाये
मोरे पिया न अब तक आए ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ....
है धरा की चूनर धानी
दादुर की टर-टर बानी
भीगा तनमन सब हैं गाये
मोहे काहू न धीर बँधाये ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ....
मेला जावें सखी सयानी
शोभा बरनि न जाए बखानी
मोहे सज धज एक न भाये
टप-टप नैनन नीर बहाये ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ...
एकऊ खत न 'शिवम'खबरिया
मोहे भूले हैं साँवरिया
जाने किन शौतन भरमाये
जी का दर्द कहा न जाए ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ...
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/07/2019
रिमझिम बूँदों की फुहार ...
बेदर्दी सावन तड़फाये ...
कैसे गाऊँ मेघ मल्हार ....
मोरे पिया विदिसवा धाये ....
झूला झूलें सखियाँ सारीं
है किस्मत की बलिहारीं
मोरी किस्मत जिया दुखाये
मोरे पिया न अब तक आए ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ....
है धरा की चूनर धानी
दादुर की टर-टर बानी
भीगा तनमन सब हैं गाये
मोहे काहू न धीर बँधाये ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ....
मेला जावें सखी सयानी
शोभा बरनि न जाए बखानी
मोहे सज धज एक न भाये
टप-टप नैनन नीर बहाये ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ...
एकऊ खत न 'शिवम'खबरिया
मोहे भूले हैं साँवरिया
जाने किन शौतन भरमाये
जी का दर्द कहा न जाए ...
रिमझिम बूँदों की फुहार
बेदर्दी सावन तड़फाये ...
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/07/2019
छाते नभ कजरारे बदरा
रिमझिम नभ से पानी बरसे।
स्वाति नक्षत्र एक बूंद को
चातक पक्षी शाख पर तरसे।
उड़े लहरिया हरा भरा सा
ललना झूले ऊपर लचके।
बोले दादुर मोर पपीहे
मन मानस सभी का हरखे।
नदी नाले नीर सरोवर
सबको आकर्षित करते ।
वन भ्रमण में गाते हँसते
खिले सुमन मन को हरते ।
सावन मन भावन होता
वसुधा पर छाई हरियाली।
त्योहारों का पावन मौसम
झूम रही हर डाली डाली।
ढोलक झांझ मजीरे बाजे
देवालय में करते नर्तन।
व्रत अर्चन करे सावन में
बेलपत्र शिवजी को अर्पण।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
रिमझिम नभ से पानी बरसे।
स्वाति नक्षत्र एक बूंद को
चातक पक्षी शाख पर तरसे।
उड़े लहरिया हरा भरा सा
ललना झूले ऊपर लचके।
बोले दादुर मोर पपीहे
मन मानस सभी का हरखे।
नदी नाले नीर सरोवर
सबको आकर्षित करते ।
वन भ्रमण में गाते हँसते
खिले सुमन मन को हरते ।
सावन मन भावन होता
वसुधा पर छाई हरियाली।
त्योहारों का पावन मौसम
झूम रही हर डाली डाली।
ढोलक झांझ मजीरे बाजे
देवालय में करते नर्तन।
व्रत अर्चन करे सावन में
बेलपत्र शिवजी को अर्पण।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
कारी कारी कजरारी घटा छाई घनघोर ।कह गये आवन की मन भावन की ।
आये नही संवारे सलोने चितचोर ।
दधी बिलो माखन काढ़ छीके धरा ।
पंथ निहारू निशी दिन आँखें थकित भई ।
अब तो आज सावन के झूलेझूलो युगल ।
मोर.पपीहा बोले सुन मन मीत डोले ।
क्यो सावन मै तरसाओ यह मिलनबेला चितचोर ।
माना तेरे कोटिशः चाहने वाले क्षणिक डाल दो ।
आओ आओ मुरलीधर बंशी जरा बजाऔ ।
जड चेतन आँखे पसारे पंथ तके ।रिमझिम बरसत बदरवा देख मन डूबा जाऐ ।
करो आस पूरी मन की ,सावन बीत न जाय ।
स्वरचित
दमयन्ती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेश ।
आये नही संवारे सलोने चितचोर ।
दधी बिलो माखन काढ़ छीके धरा ।
पंथ निहारू निशी दिन आँखें थकित भई ।
अब तो आज सावन के झूलेझूलो युगल ।
मोर.पपीहा बोले सुन मन मीत डोले ।
क्यो सावन मै तरसाओ यह मिलनबेला चितचोर ।
माना तेरे कोटिशः चाहने वाले क्षणिक डाल दो ।
आओ आओ मुरलीधर बंशी जरा बजाऔ ।
जड चेतन आँखे पसारे पंथ तके ।रिमझिम बरसत बदरवा देख मन डूबा जाऐ ।
करो आस पूरी मन की ,सावन बीत न जाय ।
स्वरचित
दमयन्ती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेश ।
रिमझिम बादल, बरस रहे,
इक झलक को,नैना तरस रहे!
सौदामिनी बैरन दिल धड़काये,
तन-मन में #सावन आग लगाये !!
काले-काले मेघ भी नभ से,
घुमड़-घुमड़ कर गरज रहे!
रिमझिम बदरा बरस रहे.......
गिरि, सानु और कुंज सुहाने
मोर ,पपीहा भी लगे है गाने!
उठी लहर सरिता तट पर भी,
तृण पर बूँद लगे इठलाने!!
मेरे सजन पर तु नही आया,
#सावन में उमंगे झुलस रहे!
रिमझिम बादल बरस रहे.......
मेघा ओट शशि सुंदर है,
यह हस्ताक्षर सूखकर है,
प्रेम की भाषा प्रियवर तेरी,
सारे जहां से सुंदर है !!
मेरे कानों में हरदम,
#सावन की कविता सरस रहे
रिमझिम बादल बरस रहे......
रचनाकार-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )
इक झलक को,नैना तरस रहे!
सौदामिनी बैरन दिल धड़काये,
तन-मन में #सावन आग लगाये !!
काले-काले मेघ भी नभ से,
घुमड़-घुमड़ कर गरज रहे!
रिमझिम बदरा बरस रहे.......
गिरि, सानु और कुंज सुहाने
मोर ,पपीहा भी लगे है गाने!
उठी लहर सरिता तट पर भी,
तृण पर बूँद लगे इठलाने!!
मेरे सजन पर तु नही आया,
#सावन में उमंगे झुलस रहे!
रिमझिम बादल बरस रहे.......
मेघा ओट शशि सुंदर है,
यह हस्ताक्षर सूखकर है,
प्रेम की भाषा प्रियवर तेरी,
सारे जहां से सुंदर है !!
मेरे कानों में हरदम,
#सावन की कविता सरस रहे
रिमझिम बादल बरस रहे......
रचनाकार-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )
"सावन का सत्कार करेंगे"
इस समंदर के उस पार
जो कायनात है,
उधर से हर साल
सावन आता है।
मैं देखता हूँ,
इसके आने की आहट से
पेड़-पौधे, जीव-प्राणी
खिलने शुरू हो जाते हैं,
जीने शुरू हो जाते है ।
पहाड़ों से झरनें निकलते हैं
झीलों में लहरें उठती है
नदियों की लहरें मचल जाती है
किनारे सीमाएं तोड़ देते हैं
नाविक रस्ते मोड़ देते हैं।
सावन जब आता है तो
पनिहारियां पानी नहीं भरती
और हरिया जाती है धरती
पर झोंपड़ियों पर
कहर टूट पड़ता है,
पुराना शहर तो
लगभग रो पड़ता है,
सड़कें अंधी हो जाती है
रौशनी अंधेरों में खो जाती है,
गाँव तो गाँव-मय हो जाते हैं
सुरीले से लोकगीत गाते हैं,
पिया प्यार में पागल और
सजनी को रिझाते हैं।
ये सावन जब आता है तो,
मैं अक्सर सोचता हूँ !
प्रकर्ति के इन मेलों ने
हमें कितना कुछ सिखाया है,
हर साल हमें आलस से जगाने
घिर-घिर सावन आया है।
इस बार फिर
समंदर के उस पार से
धुंवां सा उठ रहा है
शायद सावन आ रहा है,
फिर से धरती इठलाएगी
सजनी प्रेम गीत गायेगी,
मैं भी खिलूंगा, तुम भी खिलोगे
मन का हर पोर खिलेगा,
शाम खिलेगी, भोर् खिलेगी,
जी भर के जीवन जीयेंगे
सावन का सत्कार करेंगे
सावन का सत्कार करेंगे।
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूर 9482888215)
इस समंदर के उस पार
जो कायनात है,
उधर से हर साल
सावन आता है।
मैं देखता हूँ,
इसके आने की आहट से
पेड़-पौधे, जीव-प्राणी
खिलने शुरू हो जाते हैं,
जीने शुरू हो जाते है ।
पहाड़ों से झरनें निकलते हैं
झीलों में लहरें उठती है
नदियों की लहरें मचल जाती है
किनारे सीमाएं तोड़ देते हैं
नाविक रस्ते मोड़ देते हैं।
सावन जब आता है तो
पनिहारियां पानी नहीं भरती
और हरिया जाती है धरती
पर झोंपड़ियों पर
कहर टूट पड़ता है,
पुराना शहर तो
लगभग रो पड़ता है,
सड़कें अंधी हो जाती है
रौशनी अंधेरों में खो जाती है,
गाँव तो गाँव-मय हो जाते हैं
सुरीले से लोकगीत गाते हैं,
पिया प्यार में पागल और
सजनी को रिझाते हैं।
ये सावन जब आता है तो,
मैं अक्सर सोचता हूँ !
प्रकर्ति के इन मेलों ने
हमें कितना कुछ सिखाया है,
हर साल हमें आलस से जगाने
घिर-घिर सावन आया है।
इस बार फिर
समंदर के उस पार से
धुंवां सा उठ रहा है
शायद सावन आ रहा है,
फिर से धरती इठलाएगी
सजनी प्रेम गीत गायेगी,
मैं भी खिलूंगा, तुम भी खिलोगे
मन का हर पोर खिलेगा,
शाम खिलेगी, भोर् खिलेगी,
जी भर के जीवन जीयेंगे
सावन का सत्कार करेंगे
सावन का सत्कार करेंगे।
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूर 9482888215)
🍅🍃 गीत 🍃🍅
************************
💧 सावन 💧
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
बहारें आ गयीं देखो ,
गुलों का हार छाया है ।
घटायें छा गयी नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है ।।
कभी रिमझिम फुहारें हैं ,
कभी बरसात जोरों की ।
कड़क बिजली तड़पती है ,
लरज आवाज मोरों की ।।
बगीचों में पडे़ झूले ,
सखी मिल गा रही गाने ।
पवन भी बह रही प्यारी ,
खुशी तन-मन लगी छाने ।।
सुहाना सावनी मौसम ,
पिया की याद लाया है ।
घटायें छा गयी नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है।।
सखी सब खेलतीं मिल के ,
सतातीं पूछके पिय की ।
विरह की बात क्या बोलूँ ,
कहानी हूकते जिय की ।।
कहाँ तक रोक लूँ मन को ,
कभी सहती रही ताने ।
बहुत समझा लिया दिल को
मगर अब ये नहीं माने ।।
कहाँ पिय छुप गये बैरी ,
नहीं संदेश पाया है ।
घटायें छा गयी नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है ।।
घुमड़ते हैं घने बादल ,
धड़कता है हिया पिय को ।
नयन सावन छलकता है ,
रुलायें बीथियाँ जिय को।।
बिताये दिन तड़प करके ,
न रातों का बहाना है ।
उडी़ है नींद आँखों से ,
न वादों का ठिकाना है ।।
अरे मितवा चले आओ ,
अभी दिल को बचाया है ।
घटायें छा गयीं नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है ।।
🍑🌲🍓🌿🍊🍃🍎
🌷🍑 *****
रवीन्द्र वर्मा , आगरा
************************
💧 सावन 💧
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
बहारें आ गयीं देखो ,
गुलों का हार छाया है ।
घटायें छा गयी नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है ।।
कभी रिमझिम फुहारें हैं ,
कभी बरसात जोरों की ।
कड़क बिजली तड़पती है ,
लरज आवाज मोरों की ।।
बगीचों में पडे़ झूले ,
सखी मिल गा रही गाने ।
पवन भी बह रही प्यारी ,
खुशी तन-मन लगी छाने ।।
सुहाना सावनी मौसम ,
पिया की याद लाया है ।
घटायें छा गयी नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है।।
सखी सब खेलतीं मिल के ,
सतातीं पूछके पिय की ।
विरह की बात क्या बोलूँ ,
कहानी हूकते जिय की ।।
कहाँ तक रोक लूँ मन को ,
कभी सहती रही ताने ।
बहुत समझा लिया दिल को
मगर अब ये नहीं माने ।।
कहाँ पिय छुप गये बैरी ,
नहीं संदेश पाया है ।
घटायें छा गयी नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है ।।
घुमड़ते हैं घने बादल ,
धड़कता है हिया पिय को ।
नयन सावन छलकता है ,
रुलायें बीथियाँ जिय को।।
बिताये दिन तड़प करके ,
न रातों का बहाना है ।
उडी़ है नींद आँखों से ,
न वादों का ठिकाना है ।।
अरे मितवा चले आओ ,
अभी दिल को बचाया है ।
घटायें छा गयीं नभ में ,
उमड़ कर प्यार आया है ।।
🍑🌲🍓🌿🍊🍃🍎
🌷🍑 *****
रवीन्द्र वर्मा , आगरा
दीप जला दो,
--------------------
दीप जला दो गीत लिखूंगा,
मीत मेरे सुनो गीत लिखूंगा,
दर्द उबल रहा है थम न जाए,
कहना मानो गीत लिखूंगा।।
गीतों में देखा है तुमको,
जीवन कहा ही गीत लिखूंगा,
ये दुनियाँ झूठी लगती है,
मन भावन सा गीत लिखूंगा।।2।।
बादल धरा के अधरों पर,
रिमझिम के गीत लिख रहा,
बाहें बुला रही आओ प्रिये,
अधरों पर गीत लिखूंगा।।3।।
बरसाती मौसम है सजनी,
सावन सा ही गीत लिखूंगा,
दीप जला दो बैठो पास मेरे,
फुरसत कहाँ है गीत लिखूंगा।।4।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।
--------------------
दीप जला दो गीत लिखूंगा,
मीत मेरे सुनो गीत लिखूंगा,
दर्द उबल रहा है थम न जाए,
कहना मानो गीत लिखूंगा।।
गीतों में देखा है तुमको,
जीवन कहा ही गीत लिखूंगा,
ये दुनियाँ झूठी लगती है,
मन भावन सा गीत लिखूंगा।।2।।
बादल धरा के अधरों पर,
रिमझिम के गीत लिख रहा,
बाहें बुला रही आओ प्रिये,
अधरों पर गीत लिखूंगा।।3।।
बरसाती मौसम है सजनी,
सावन सा ही गीत लिखूंगा,
दीप जला दो बैठो पास मेरे,
फुरसत कहाँ है गीत लिखूंगा।।4।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।
आई है ऋतु सावन की
चमन में फूल खिलाओ, आज मौसम सुहाना है।
खुशबू से बाग महकाओ, आज मौसम सुहाना है।
रंगीन फिजायें, सर्द हवाएं मौसम बहार आया है,
परिन्दें पंख फैलाओ, आज मौसम सुहाना है।
घटायें बहारों की बर्षा आई है ऋतु सावन की,
मेघ पानी बरसाओ, आज मौसम सुहाना है।
सितारों की महफ़िल सजी, गीत गुनगुनाते रहो,
खुशी से जश्ऩ मनाओ, आज मौसम सुहाना है।
नज़रे हर तरफ मेरी क्यों झुकी-झुकी सी रहती,
मन के ख्वाब सजाओ, आज मौसम सुहाना है।
घटा काली छाई हर तरफ तम को दूर करूं कैसे,
आशा के दीप जलाओ, आज मौसम सुहाना है।
सात शेर बँधे हो जिसमें, हम शब्दों के शिल्पी,
सुंदर सी ग़ज़ल सुनाओ, आज मौसम सुहाना है।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
स्वरचित
चमन में फूल खिलाओ, आज मौसम सुहाना है।
खुशबू से बाग महकाओ, आज मौसम सुहाना है।
रंगीन फिजायें, सर्द हवाएं मौसम बहार आया है,
परिन्दें पंख फैलाओ, आज मौसम सुहाना है।
घटायें बहारों की बर्षा आई है ऋतु सावन की,
मेघ पानी बरसाओ, आज मौसम सुहाना है।
सितारों की महफ़िल सजी, गीत गुनगुनाते रहो,
खुशी से जश्ऩ मनाओ, आज मौसम सुहाना है।
नज़रे हर तरफ मेरी क्यों झुकी-झुकी सी रहती,
मन के ख्वाब सजाओ, आज मौसम सुहाना है।
घटा काली छाई हर तरफ तम को दूर करूं कैसे,
आशा के दीप जलाओ, आज मौसम सुहाना है।
सात शेर बँधे हो जिसमें, हम शब्दों के शिल्पी,
सुंदर सी ग़ज़ल सुनाओ, आज मौसम सुहाना है।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
स्वरचित
अबकी सावन ऐसा बरसा
कि प्रकृति पर छाया अनोखा खुमार है...
शिशु की किलकारी में
माँ की धोती की किनारी में
मन की फुलवारी में
हरियाली की सवारी में
दिखते कुदरत के रंग हजार हैं...
मोर के मोहक नृत्य में
कण कण के कृत्य में
सृष्टि के सानिध्य ने
कवि के साहित्य में
कविता की कली झलकने को बेक़रार है...
बिरहन के हिया में
पिया के जिया में
कोकिल के गान में
मेघों के वितान में
रवि आंखमिचौली खेले सङ्ग शीतल बयार है....
आओ इसमें घुलमिल जाएं
एकाकार हो भेद मिटाएं
रंग रंगीले सपने सजाएं
अपनी धरा को हरित बनाएं
प्रकृति सा सहज सरल अपना चलन व्यवहार है....
@वंदना सोलंकी©️ स्वरचित
कि प्रकृति पर छाया अनोखा खुमार है...
शिशु की किलकारी में
माँ की धोती की किनारी में
मन की फुलवारी में
हरियाली की सवारी में
दिखते कुदरत के रंग हजार हैं...
मोर के मोहक नृत्य में
कण कण के कृत्य में
सृष्टि के सानिध्य ने
कवि के साहित्य में
कविता की कली झलकने को बेक़रार है...
बिरहन के हिया में
पिया के जिया में
कोकिल के गान में
मेघों के वितान में
रवि आंखमिचौली खेले सङ्ग शीतल बयार है....
आओ इसमें घुलमिल जाएं
एकाकार हो भेद मिटाएं
रंग रंगीले सपने सजाएं
अपनी धरा को हरित बनाएं
प्रकृति सा सहज सरल अपना चलन व्यवहार है....
@वंदना सोलंकी©️ स्वरचित
विषय सावन
विधा कविता
दिनांक 3,7,2019
दिन बुधवार
सावन
🍁🍁🍁
जैसे रुठा है सावन
वैसे रुठे मन भावन
मन के रहे सूने झूले
कोई मेरे भावों को छूले।
नहीं आई गन्ध सौन्धी मिट्टी की
नहीं आई ख़बर कोई चिठ्ठी की
थक चुकी थी मेरी सारी आशा
काला आँचल लहराती निराशा।
धरती का पूरा वक्ष था सूखा
मेरे भाग्य का पक्ष था रुखा
रुठे सावन से दोनों हम तड़पे
दोनों का अन्तरमन था भूखा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा कविता
दिनांक 3,7,2019
दिन बुधवार
सावन
🍁🍁🍁
जैसे रुठा है सावन
वैसे रुठे मन भावन
मन के रहे सूने झूले
कोई मेरे भावों को छूले।
नहीं आई गन्ध सौन्धी मिट्टी की
नहीं आई ख़बर कोई चिठ्ठी की
थक चुकी थी मेरी सारी आशा
काला आँचल लहराती निराशा।
धरती का पूरा वक्ष था सूखा
मेरे भाग्य का पक्ष था रुखा
रुठे सावन से दोनों हम तड़पे
दोनों का अन्तरमन था भूखा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
#विषय:सावन:::::
#रचनाकार: दुर्गा सिलगीवाला सोनी::
:!::!::: सावन की बिरहन::!::!:
तोरी राह निहारत भोर भई,
अब आन मिलो बालम हरजाई,
अंखियन रैन बिताई साजन,
एक पल भी ना पलकें झपकाई,
तकती थी तोरी मोहनी मूरत,
मोरी सूरतिया श्यामल मुरझाई,
मैं प्यासी सावन की बिरहन,
नैनन सौ दोई दोई नीर बहाई,
दरस दिखा दे अब तो नटखट,
जले तन बदन जब ये चले पुरवाई,
पुलकित मन में बस जा कन्हैया
बरसे नित सावन की बदरिया छाई,
खुद को भूली छलिया मनमोहन,
कभी बन ना सकी मैं तेरी परछाई,
ताकुं मन ही मन तोरी सुरतिया,
खुद से गिरधर मैं खुद ही शरमाई,
#रचनाकार: दुर्गा सिलगीवाला सोनी::
:!::!::: सावन की बिरहन::!::!:
तोरी राह निहारत भोर भई,
अब आन मिलो बालम हरजाई,
अंखियन रैन बिताई साजन,
एक पल भी ना पलकें झपकाई,
तकती थी तोरी मोहनी मूरत,
मोरी सूरतिया श्यामल मुरझाई,
मैं प्यासी सावन की बिरहन,
नैनन सौ दोई दोई नीर बहाई,
दरस दिखा दे अब तो नटखट,
जले तन बदन जब ये चले पुरवाई,
पुलकित मन में बस जा कन्हैया
बरसे नित सावन की बदरिया छाई,
खुद को भूली छलिया मनमोहन,
कभी बन ना सकी मैं तेरी परछाई,
ताकुं मन ही मन तोरी सुरतिया,
खुद से गिरधर मैं खुद ही शरमाई,
सावन
बदल गया है
आज सावन भी
कहीं बाढ़
तो कहीं सूखे में
बदल गया है सावन
भाई बहन के
रिश्तों में
आ गयी है
दौलत की
देहरी
राधा भी
रूठी है
सावन में
किशन
भूला
गोपियन में
वृन्दावन
बेगाना हो गया
सावन में
मत करो
रिश्ते
बदनाम
बच्चियों
बहनों
की हो रक्षा
हर बार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
बदल गया है
आज सावन भी
कहीं बाढ़
तो कहीं सूखे में
बदल गया है सावन
भाई बहन के
रिश्तों में
आ गयी है
दौलत की
देहरी
राधा भी
रूठी है
सावन में
किशन
भूला
गोपियन में
वृन्दावन
बेगाना हो गया
सावन में
मत करो
रिश्ते
बदनाम
बच्चियों
बहनों
की हो रक्षा
हर बार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
दिनांक-३/७/२०१९
विषय- सावन
विधा-तांका
१ विविध रंगी
अपने रिश्ते देखे
पराये लोग
बदलता #सावन
सिनेमा सा हो जैसे।।
२ ओ मेरे मीत
अनसुलझी प्रीत
आँसू अंगार
जल गया संगीत
खाली गया #सावन।।
***स्वरचित✍
सीमा आचार्य(म.प्र.)
दिनांक-३/७/२०१९
विषय- सावन
विधा-तांका
१ विविध रंगी
अपने रिश्ते देखे
पराये लोग
बदलता #सावन
सिनेमा सा हो जैसे।।
२ ओ मेरे मीत
अनसुलझी प्रीत
आँसू अंगार
जल गया संगीत
खाली गया #सावन।।
***स्वरचित✍
सीमा आचार्य(म.प्र.)
विषय-"सावन"
#स्वरचित गीत
रूनझुन बूंदें बरस रहीं हैं-
सावन की आ गई बहार..
सबके द्वार..
नाचे मोर,पपीहा बोले-
गोरी का मनवा भी डोले,
फैल रही अंगना में आली-
माटी की सोंधी महकार.
इससे उससे कहे पुकार..
रूनझुन बूंदें बरस रहीं हैं..
सावन की आ गई बहार...
सबके द्वार..
दादुर टर्राएं बगियन में-
खूब नहाएं हैं बूंदियन में,
अमुवा की डाली पर बैठी-
कोकिल छेड़े राग-मल्हार.
भावे सुर-संसार..
रूनझुन बूंदें बरस रही हैं-
सावन की आ गई बहार-
सबके द्वार..
तुहिन-कणों का बरसे प्यार-
भू का सुख है अपरम्पार,
अंबर झुककर मुस्काया है-
करे प्रेम का ही इजहार,
मस्त हुए नर-नार.
रूनझुन बूंदें बरस रही हैं-
सावन की आ गई बहार,
सबके द्वार...
________
# स्वरचित
डा अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
#स्वरचित गीत
रूनझुन बूंदें बरस रहीं हैं-
सावन की आ गई बहार..
सबके द्वार..
नाचे मोर,पपीहा बोले-
गोरी का मनवा भी डोले,
फैल रही अंगना में आली-
माटी की सोंधी महकार.
इससे उससे कहे पुकार..
रूनझुन बूंदें बरस रहीं हैं..
सावन की आ गई बहार...
सबके द्वार..
दादुर टर्राएं बगियन में-
खूब नहाएं हैं बूंदियन में,
अमुवा की डाली पर बैठी-
कोकिल छेड़े राग-मल्हार.
भावे सुर-संसार..
रूनझुन बूंदें बरस रही हैं-
सावन की आ गई बहार-
सबके द्वार..
तुहिन-कणों का बरसे प्यार-
भू का सुख है अपरम्पार,
अंबर झुककर मुस्काया है-
करे प्रेम का ही इजहार,
मस्त हुए नर-नार.
रूनझुन बूंदें बरस रही हैं-
सावन की आ गई बहार,
सबके द्वार...
________
# स्वरचित
डा अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
सावन आया सावन आया
झूम झूम कर नाचो रे।
कोयल मोर पपीहा गाऐं
मेघ मल्हार तुम गाओ रे।
सावन आया..............।....
ताल तडाग सभी फूले हैं।
सरिता झीलें सब रूले हैं।
मनमोही परिदृश्य हुआ है,
दिखते हर जगह झूले हैं।
अब मिलजुल पेंग बढाओ रे।
सावन आया.................
चहुंओर हरयाली छाई।
खुशी हुए हैं लोग लुगाई।
कूप, बाबडी सूख गये थे,
उनके अंदर प्रीत जगाई।
अब मिलकर सब हर्षाओ रे।
सावन आया......................
ऋतु रानी सी बरखा रानी।
सबको लगती बहुत सुहानी
हमें मेह नेह के ये बरसाती,
मनमानस को खूब लुभानी।
अब झूला पेंग बढाओ रे।
सावन आया........
कृषक हुए सभी प्रफुल्लित।
मनमयूर हैं सबके पुलकित।
लगता अमृत धार वही है
मनमंन्दिर हैं सब के हर्षित।
अबतो सूखे कंठ बुझाओ रे।
सावन आया सावन आया
झूम झूमकर नाचो रे।
कोयल मोर पपीहा गाऐं
मेघ मल्हार तुम गाओ रे।
सावन आया सावन आया...............
स्वरचितःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा.#सावन#गीतःः
3/7/2019/बुधवार
झूम झूम कर नाचो रे।
कोयल मोर पपीहा गाऐं
मेघ मल्हार तुम गाओ रे।
सावन आया..............।....
ताल तडाग सभी फूले हैं।
सरिता झीलें सब रूले हैं।
मनमोही परिदृश्य हुआ है,
दिखते हर जगह झूले हैं।
अब मिलजुल पेंग बढाओ रे।
सावन आया.................
चहुंओर हरयाली छाई।
खुशी हुए हैं लोग लुगाई।
कूप, बाबडी सूख गये थे,
उनके अंदर प्रीत जगाई।
अब मिलकर सब हर्षाओ रे।
सावन आया......................
ऋतु रानी सी बरखा रानी।
सबको लगती बहुत सुहानी
हमें मेह नेह के ये बरसाती,
मनमानस को खूब लुभानी।
अब झूला पेंग बढाओ रे।
सावन आया........
कृषक हुए सभी प्रफुल्लित।
मनमयूर हैं सबके पुलकित।
लगता अमृत धार वही है
मनमंन्दिर हैं सब के हर्षित।
अबतो सूखे कंठ बुझाओ रे।
सावन आया सावन आया
झूम झूमकर नाचो रे।
कोयल मोर पपीहा गाऐं
मेघ मल्हार तुम गाओ रे।
सावन आया सावन आया...............
स्वरचितःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा.#सावन#गीतःः
3/7/2019/बुधवार
विषय _सावन
विधा _लघुकथा (गुणीजनों से निवेदन है अगर ये चित्र के हिसाब से सार्थक है तो बताएँ, नहीं तो डिलीट कर दूँगी)
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
कुछ दिल से #
"मेरे साँसों में मेघ उतरने लगे हैं ,
आकाश पलकों पर झुक आया है ,
क्षितिज मेरी भुजाओं से ....
"मेघदूतम " की इन पंक्तियों के साथ मैं भी तुम्हें इस वर्षा में महसूस करना चाहती हूँ । .....कहाँ हो तुम ...! आओ ना , जीते हैं इस बारिश में यादों से सराबोर लम्हों को । ...कहाँ हो तुम ।
मैंने अपना आदर्श मान कर जाने अनजाने ही तुम्हें अपना बना लिया था । ...मेरे जीवन में सब कुछ होते हुए भी मन का एक कोना रिक्त ही रहा । ...तुम्हारी प्यार भरी बातों ने मेरी मानसिक रिक्तता को सहला दिया था । ...मेरे मन के अंदर तुम्हारे प्रेम का अलाव जलने लगा था । तुमसे बातचीत ठंडे पानी की छींटे की तरह मुझे सूकून देती । मैं तुम्हारे जीवन में हमेशा बने रहना चाहती थी ।...मैंने मन से कभी तुम्हें अपने से दूर नहीं होने दिया क्योंकि अपने को अपने में न देखकर तुममें देखा करती । ...कभी सोचती थी तुम्हें प्यार न करूँ पर मजबूर हो जाती थी । ...हर एक दिन मेरी आँखें तुम्हें ढूँढती हैं । काश ...! इस समय तुम मेरी आँखे देख पाते । ...मेरी आँखें इसलिए गीली हैं कि तुम मेरी बात नहीं समझ रहे ।..तुम समझ रहे हो ना ..! मैं क्या कहना चाहती हूँ । दुनिया का सबसे खूबसूरत प्यार हमारा है ।
बिना बताए ही कहाँ चले गयेतुम ।...किसी बहुमूल्य वस्तु के खो जाने जैसा आभास , मेरे मन को उद्वेलित करता है ।...बहुत समय हो गये तुमसे बात नहीं हो पा रही है । ...इंतजार करते करते मैं थक चुकी हूँ । जाने से पहले तुमने मुझसे मिलना जरूरी नहीं समझा ।
मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ । चाहती हूँ अपने प्यार के इन अहसासों के साथ ही पूरी जिंदगी बिता दूँ । ....कोशिश बहुत करती हूँ तुम्हें भूलने की लेकिन क्या करूँ काफी कोशिशों के बाद भी तुम्हें भूल नहीं पाती हूँ ।
सुनो ...! तुम आओगे तो उसी तरह मेघ घिरे होंगे। ...वैसा ही अँधेरा सा दिन होगा ।...एक बार फिर तुम्हारे साथ वर्षा में भीगूँगी , जैसे पहले भीगा करती थी । ...चाहती हूँ तुम आओ तो अपने में भरलूँ तुम्हें और आँखें मूँद लूँ । ...कहाँ हो तुम ...?
भूल नहीं पाती हूँ तुम्हें ।....कैसे भूलूँ ....कभी हो तो.बता देना . .इंतजार करूँगी मैं ....
तनुजा दत्ता (स्वरचित)
विधा _लघुकथा (गुणीजनों से निवेदन है अगर ये चित्र के हिसाब से सार्थक है तो बताएँ, नहीं तो डिलीट कर दूँगी)
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
कुछ दिल से #
"मेरे साँसों में मेघ उतरने लगे हैं ,
आकाश पलकों पर झुक आया है ,
क्षितिज मेरी भुजाओं से ....
"मेघदूतम " की इन पंक्तियों के साथ मैं भी तुम्हें इस वर्षा में महसूस करना चाहती हूँ । .....कहाँ हो तुम ...! आओ ना , जीते हैं इस बारिश में यादों से सराबोर लम्हों को । ...कहाँ हो तुम ।
मैंने अपना आदर्श मान कर जाने अनजाने ही तुम्हें अपना बना लिया था । ...मेरे जीवन में सब कुछ होते हुए भी मन का एक कोना रिक्त ही रहा । ...तुम्हारी प्यार भरी बातों ने मेरी मानसिक रिक्तता को सहला दिया था । ...मेरे मन के अंदर तुम्हारे प्रेम का अलाव जलने लगा था । तुमसे बातचीत ठंडे पानी की छींटे की तरह मुझे सूकून देती । मैं तुम्हारे जीवन में हमेशा बने रहना चाहती थी ।...मैंने मन से कभी तुम्हें अपने से दूर नहीं होने दिया क्योंकि अपने को अपने में न देखकर तुममें देखा करती । ...कभी सोचती थी तुम्हें प्यार न करूँ पर मजबूर हो जाती थी । ...हर एक दिन मेरी आँखें तुम्हें ढूँढती हैं । काश ...! इस समय तुम मेरी आँखे देख पाते । ...मेरी आँखें इसलिए गीली हैं कि तुम मेरी बात नहीं समझ रहे ।..तुम समझ रहे हो ना ..! मैं क्या कहना चाहती हूँ । दुनिया का सबसे खूबसूरत प्यार हमारा है ।
बिना बताए ही कहाँ चले गयेतुम ।...किसी बहुमूल्य वस्तु के खो जाने जैसा आभास , मेरे मन को उद्वेलित करता है ।...बहुत समय हो गये तुमसे बात नहीं हो पा रही है । ...इंतजार करते करते मैं थक चुकी हूँ । जाने से पहले तुमने मुझसे मिलना जरूरी नहीं समझा ।
मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ । चाहती हूँ अपने प्यार के इन अहसासों के साथ ही पूरी जिंदगी बिता दूँ । ....कोशिश बहुत करती हूँ तुम्हें भूलने की लेकिन क्या करूँ काफी कोशिशों के बाद भी तुम्हें भूल नहीं पाती हूँ ।
सुनो ...! तुम आओगे तो उसी तरह मेघ घिरे होंगे। ...वैसा ही अँधेरा सा दिन होगा ।...एक बार फिर तुम्हारे साथ वर्षा में भीगूँगी , जैसे पहले भीगा करती थी । ...चाहती हूँ तुम आओ तो अपने में भरलूँ तुम्हें और आँखें मूँद लूँ । ...कहाँ हो तुम ...?
भूल नहीं पाती हूँ तुम्हें ।....कैसे भूलूँ ....कभी हो तो.बता देना . .इंतजार करूँगी मैं ....
तनुजा दत्ता (स्वरचित)
03/07/2019
"सावन"
1
राग मल्हार
सावन की फुहार
मन भी भीगा
2
झूले की रीत
हरियाली ये तीज
सावन गीत
3
नभ पे छाए
घनघोर घटाएँ
सावन रोये
4
सावन आया
काला मेघ है छाया
मोर नाचता
5
साजन बिना
लगता सूना-सूना
सावन झूला
6
भीगे नयन
बिन सावन वर्षा
कजरा धुला
7
नाचती धरा
सावन की बौछारें
जीवन खिला
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
"सावन"
1
राग मल्हार
सावन की फुहार
मन भी भीगा
2
झूले की रीत
हरियाली ये तीज
सावन गीत
3
नभ पे छाए
घनघोर घटाएँ
सावन रोये
4
सावन आया
काला मेघ है छाया
मोर नाचता
5
साजन बिना
लगता सूना-सूना
सावन झूला
6
भीगे नयन
बिन सावन वर्षा
कजरा धुला
7
नाचती धरा
सावन की बौछारें
जीवन खिला
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
बुधवार
विषय -सावन
दोहे
आया सावन झूमकर , ले मधुरस सौगात।
वृक्षों पर सजने लगे , हरित मखमली पात।।1
सावन आते ही घिरे , नभ में काले मेह।
रिमझिम बूँदें बरसकर, छलकाती हैं नेह।।2
पिहू-पिहू पपिहा करें , नाचे वन में मोर।
घुमड़-घुमड़कर मेघ भी, बरस रहे घनघोर।।3
काले बादल झूमकर , करते हैं बरसात।
शीतल मृदुल फुहार से, पुलकित होते गात।।4
हरित वसन पहने धरा , भरती मन में रंग।
प्रकृति-नटी को देखकर, उठती मृदुल तरंग।।5
सावन में घर-घर लगें, शिव जी की जयकार।
बेल -पत्र से हो यहाँ, भोले का श्रृंगार।।6
बागों में झूले पड़ें , झूलें बालक- वृंद।
धरती पर चारों तरफ़, बिखरा रूप अमंद।।7
हाथों में मेहंदी लगा , कर सोलह श्रृंगार।
हरी चुनरिया ओढ़कर ,झूलें सखियाँ चार।।8
बहते जल में तैरती ,जब काग़ज की नाव।
बच्चों के मुख पर दिखें,अतुल जोश के भाव।।9
भारत की इस भूमि पर , सावन है त्यौहार।
इस ऋतु मे सौन्दर्य की , महिमा अपरंपार ।।10
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय -सावन
दोहे
आया सावन झूमकर , ले मधुरस सौगात।
वृक्षों पर सजने लगे , हरित मखमली पात।।1
सावन आते ही घिरे , नभ में काले मेह।
रिमझिम बूँदें बरसकर, छलकाती हैं नेह।।2
पिहू-पिहू पपिहा करें , नाचे वन में मोर।
घुमड़-घुमड़कर मेघ भी, बरस रहे घनघोर।।3
काले बादल झूमकर , करते हैं बरसात।
शीतल मृदुल फुहार से, पुलकित होते गात।।4
हरित वसन पहने धरा , भरती मन में रंग।
प्रकृति-नटी को देखकर, उठती मृदुल तरंग।।5
सावन में घर-घर लगें, शिव जी की जयकार।
बेल -पत्र से हो यहाँ, भोले का श्रृंगार।।6
बागों में झूले पड़ें , झूलें बालक- वृंद।
धरती पर चारों तरफ़, बिखरा रूप अमंद।।7
हाथों में मेहंदी लगा , कर सोलह श्रृंगार।
हरी चुनरिया ओढ़कर ,झूलें सखियाँ चार।।8
बहते जल में तैरती ,जब काग़ज की नाव।
बच्चों के मुख पर दिखें,अतुल जोश के भाव।।9
भारत की इस भूमि पर , सावन है त्यौहार।
इस ऋतु मे सौन्दर्य की , महिमा अपरंपार ।।10
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
3 07 19
विषय - सावन
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे ।
भूले किस्से यादों के मेले
इंद्रधनुषी आसमान
बरसती बुंदों की
गुनगुनाती बधाईयां
थिरकता झुमता तन मन
अपनों से चहकता आंगन
सौरभ से महकती बगिया
मिट्टी की सौंधी सुगंध ।
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे।
नव विवाहिताओं को
पिया के साथ पहली
फुहार का आनंद
मायके आने का चाव
मन को रिझाती बुलाती
झूले की कतारें
चाहतों की बरसती रिमझिम ।
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे।
खेती को जीवन प्राण
किसानो को अनुपम उपहार
जीवन की आस
झरनों को राग
नदियों को कल-कल बहाव
सकल संसार को सरस सुधा ।
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
विषय - सावन
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे ।
भूले किस्से यादों के मेले
इंद्रधनुषी आसमान
बरसती बुंदों की
गुनगुनाती बधाईयां
थिरकता झुमता तन मन
अपनों से चहकता आंगन
सौरभ से महकती बगिया
मिट्टी की सौंधी सुगंध ।
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे।
नव विवाहिताओं को
पिया के साथ पहली
फुहार का आनंद
मायके आने का चाव
मन को रिझाती बुलाती
झूले की कतारें
चाहतों की बरसती रिमझिम ।
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे।
खेती को जीवन प्राण
किसानो को अनुपम उपहार
जीवन की आस
झरनों को राग
नदियों को कल-कल बहाव
सकल संसार को सरस सुधा ।
सावन की गठरी में
कितने अनमोल रत्न भरे।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
रिमझिम रिमझिम बारिश होती,
सावन के महीने में।
विरहन की आंखें बेबश हो रोती,
सावन के महीने में।
कोई खुशी से झूम रहा है,
यादों में कोई गुम हुआ है,
तन्हा बैठे पीरो रहा अश्कों के मोती,
सावन के महीने में।
अम्बर काले मेघों से भर जाता
धरती का आँचल हरा हो जाता
स्वप्न सतरंगी इन्द्रधनु से मैं ले लेती,
सावन के महीने में।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
सावन के महीने में।
विरहन की आंखें बेबश हो रोती,
सावन के महीने में।
कोई खुशी से झूम रहा है,
यादों में कोई गुम हुआ है,
तन्हा बैठे पीरो रहा अश्कों के मोती,
सावन के महीने में।
अम्बर काले मेघों से भर जाता
धरती का आँचल हरा हो जाता
स्वप्न सतरंगी इन्द्रधनु से मैं ले लेती,
सावन के महीने में।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय "सावन"
**********************
हाइकु रचना
1..
मेघ सरूर
टूटा नभ ग़रूर
सावनी नूर....
2..
सावन झूले
आसमान को छूलें
सखियाँ झूलें....
3..
सावनी तीज़
हो अंकुरित बीज
गई भू रींझ....
4...
झूमे सावन
हर्षित तनमन
मनभावन.....
5..
साजन साथ
मेहंदी रचे हाथ
सावन गात....
6...
नाचत मोर
घटायें घनघोर
श्रावण भोर.....
7...
पर्व पावन
लाये प्यारा सावन
रक्षाबंधन....
8..
सखियों सँग
सावन की तरँग
महके अँग.....
9..
करूँ श्रृंगार
सावन की फुहार
पी मनुहार....
10..
बरसे घन
श्रावण में सघन
मिटे तपन......
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
**********************
हाइकु रचना
1..
मेघ सरूर
टूटा नभ ग़रूर
सावनी नूर....
2..
सावन झूले
आसमान को छूलें
सखियाँ झूलें....
3..
सावनी तीज़
हो अंकुरित बीज
गई भू रींझ....
4...
झूमे सावन
हर्षित तनमन
मनभावन.....
5..
साजन साथ
मेहंदी रचे हाथ
सावन गात....
6...
नाचत मोर
घटायें घनघोर
श्रावण भोर.....
7...
पर्व पावन
लाये प्यारा सावन
रक्षाबंधन....
8..
सखियों सँग
सावन की तरँग
महके अँग.....
9..
करूँ श्रृंगार
सावन की फुहार
पी मनुहार....
10..
बरसे घन
श्रावण में सघन
मिटे तपन......
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विषय : - सावन
बरसात कर देता वह
आँखों से
गर, बुझा पाता
धरती की प्यास,
यूँ झुलसने न देता
उन पौधों को
जिसके संग बढ़े थें
उनके अरमानों के आस।
धरती के हर कोने में
सावन झुलस रहा है
छीन गई हरियाली यहाँ की
सूखी टहनी झूला ढ़ूंढ़ रहा है।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
बरसात कर देता वह
आँखों से
गर, बुझा पाता
धरती की प्यास,
यूँ झुलसने न देता
उन पौधों को
जिसके संग बढ़े थें
उनके अरमानों के आस।
धरती के हर कोने में
सावन झुलस रहा है
छीन गई हरियाली यहाँ की
सूखी टहनी झूला ढ़ूंढ़ रहा है।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
दिनांक : 03.07.2019
आज का विषय : सावन
विधा : काव्य
छटपटाते बादलों ने गीत गाया ,
दिल में जो दुखड़ा छुपा था ,
कह सुनाया !!
दामिनी दमकी अदा से खो गयी ,
यादों में गुमसुम मौसम ,
नज़र आया !!
बरखा ने सुनी दस्तक हौले हौले ,
बेवफा सावन कहीं ,
मुस्कराया !!
पछुआ हवाओं ने कोई ,
खींचा था आँचल ,
सरसराया !!
मस्त घटा गुनगुनाती छा गई ,
और बरसी तो कहीं ,
मन भींग आया !!
धरती अम्बर भीगे भीगे ,
कह सुन रहे कुछ ,
नशा छाया !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
आज का विषय : सावन
विधा : काव्य
छटपटाते बादलों ने गीत गाया ,
दिल में जो दुखड़ा छुपा था ,
कह सुनाया !!
दामिनी दमकी अदा से खो गयी ,
यादों में गुमसुम मौसम ,
नज़र आया !!
बरखा ने सुनी दस्तक हौले हौले ,
बेवफा सावन कहीं ,
मुस्कराया !!
पछुआ हवाओं ने कोई ,
खींचा था आँचल ,
सरसराया !!
मस्त घटा गुनगुनाती छा गई ,
और बरसी तो कहीं ,
मन भींग आया !!
धरती अम्बर भीगे भीगे ,
कह सुन रहे कुछ ,
नशा छाया !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
आ० मीना शर्मा जी
===========================
"सावन "
'''''''''''''''
प्रेम न होता,...... .. . और प्रेमगीत न होता,
सावन न होता,... . जगत में संगीत न होता।
विरह में फुहार,........ . जलाती है बदन को,
सावन न होता,... . तो ये विरहगीत न होता।
पहली फुहार,....... याद दिला देती मीत की,
क्या गीत लिखे जाते?.... अग़र मीत न होता।
बुझती न प्यास ग़िज़ा भी मिलती न किसीको,
सावन बिना,.. जीवन तो गया रीत ही होता।
============================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
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"सावन "
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प्रेम न होता,...... .. . और प्रेमगीत न होता,
सावन न होता,... . जगत में संगीत न होता।
विरह में फुहार,........ . जलाती है बदन को,
सावन न होता,... . तो ये विरहगीत न होता।
पहली फुहार,....... याद दिला देती मीत की,
क्या गीत लिखे जाते?.... अग़र मीत न होता।
बुझती न प्यास ग़िज़ा भी मिलती न किसीको,
सावन बिना,.. जीवन तो गया रीत ही होता।
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"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
II छंद - चौपाई II
कारे कारे बादल आये, मन मेरे को नाच नचाये....
मेघा गरजे बिजली चमके, डर कर मेरा मनवा दुबके...
देखूं राह मैं चढ़ अटरिया, कब आएंगे पिया नगरिया...
घूमूं पागल सी इधर उधर, पायल भी मेरी गयी बिखर....
आग लगे काले सावन को, बैरी बरसे है जम जम जो...
साजन कैसे घर को आये, भर भर नदिया नाले आये...
कौन सुने हैं मुझ बिरहन की, पीर कहूँ किसको मैं मन की...
अपना चहरा मुझे न भाता, देख मुझे दर्पण भय खाता...
झूम झूम कर गायें सखियाँ, मन बहका भर आयी अँखियाँ..
पर मैं गाऊँ संग ही तेरे, झूला झुलाये पि तू मेरे...
हँसतीं हैं सब सखी सहेली, अपनी भी मैं बनी पहेली...
कोई मुझको कहे बावरी, प्रीत लगा मैं हुई साँवरी...
यूं तो मौसम आते जाते, हर पल तेरी याद दिलाते....
जब भी फूल खिलें आँगन में, हँसते दिखते हो तुम उनमें
मन भंवरा समझाऊँ कैसे, सावन आग लगाए ऐसे ...
जलता है मेरा सब तन मन, आ भी जाओ अब तुम साजन...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०३.०७.२०१९
कारे कारे बादल आये, मन मेरे को नाच नचाये....
मेघा गरजे बिजली चमके, डर कर मेरा मनवा दुबके...
देखूं राह मैं चढ़ अटरिया, कब आएंगे पिया नगरिया...
घूमूं पागल सी इधर उधर, पायल भी मेरी गयी बिखर....
आग लगे काले सावन को, बैरी बरसे है जम जम जो...
साजन कैसे घर को आये, भर भर नदिया नाले आये...
कौन सुने हैं मुझ बिरहन की, पीर कहूँ किसको मैं मन की...
अपना चहरा मुझे न भाता, देख मुझे दर्पण भय खाता...
झूम झूम कर गायें सखियाँ, मन बहका भर आयी अँखियाँ..
पर मैं गाऊँ संग ही तेरे, झूला झुलाये पि तू मेरे...
हँसतीं हैं सब सखी सहेली, अपनी भी मैं बनी पहेली...
कोई मुझको कहे बावरी, प्रीत लगा मैं हुई साँवरी...
यूं तो मौसम आते जाते, हर पल तेरी याद दिलाते....
जब भी फूल खिलें आँगन में, हँसते दिखते हो तुम उनमें
मन भंवरा समझाऊँ कैसे, सावन आग लगाए ऐसे ...
जलता है मेरा सब तन मन, आ भी जाओ अब तुम साजन...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०३.०७.२०१९
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