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ब्लॉग संख्या :-446
विषय-किलकारी
महके के अंगना की फुलवारी
हर घर में दीप सजे।
घर हो खुशहाली की फुलवारी।।
वैभव की हरियाली
मोर अंगना गूजे किलकारी...
रक्षाबंधन का त्यौहार मनै
मोर बिटिया प्यारी न्यारी
मोर अंगना गूजे किलकारी....
ठुमक ठुमक कर चले
पैजनिया खनके हर अंगना
मोर अंगना गुजे किलकारी...
उजियारे की स्वर्ण लालिमा
दहलीजो का श्रृंगार
सजेगी किलकारी की बारात
मोर अंगना गूंजे किलकारी...
आह्लालादित लालिमा
विजय गर्व का
सुख साम्राज्य के
पर्व की मतवाली
मोर अंगना गूंजे किलकारी.....
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
महके के अंगना की फुलवारी
हर घर में दीप सजे।
घर हो खुशहाली की फुलवारी।।
वैभव की हरियाली
मोर अंगना गूजे किलकारी...
रक्षाबंधन का त्यौहार मनै
मोर बिटिया प्यारी न्यारी
मोर अंगना गूजे किलकारी....
ठुमक ठुमक कर चले
पैजनिया खनके हर अंगना
मोर अंगना गुजे किलकारी...
उजियारे की स्वर्ण लालिमा
दहलीजो का श्रृंगार
सजेगी किलकारी की बारात
मोर अंगना गूंजे किलकारी...
आह्लालादित लालिमा
विजय गर्व का
सुख साम्राज्य के
पर्व की मतवाली
मोर अंगना गूंजे किलकारी.....
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विधा लघुकविता
13 जुलाई 2019,शनिवार
शिशु बनकर हम सब आये
असहाय थे माँ आँचल में।
अद्भुत थे हम सब सुकोमल
धरती के पावन आँगन में।
सूने घर गूँजे किलकारियां
पावन स्वर्गीम होता वह घर।
शिशु गोद ले सब हँसते हैं
हँसी खुशी गौरवान्वित नर।
महतारी ममता की मूरत है
करुणा दया वात्सल्य देती।
शिशु स्नेह बन वह बावरी
हर विपदा हँस के सह लेती।
राम कृष्ण शिशु बन आये
कौशल्या यशोदा के नंदन।
करनी ऐसी करी दीन हित
निशदिन सब करते हैं वंदन।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
13 जुलाई 2019,शनिवार
शिशु बनकर हम सब आये
असहाय थे माँ आँचल में।
अद्भुत थे हम सब सुकोमल
धरती के पावन आँगन में।
सूने घर गूँजे किलकारियां
पावन स्वर्गीम होता वह घर।
शिशु गोद ले सब हँसते हैं
हँसी खुशी गौरवान्वित नर।
महतारी ममता की मूरत है
करुणा दया वात्सल्य देती।
शिशु स्नेह बन वह बावरी
हर विपदा हँस के सह लेती।
राम कृष्ण शिशु बन आये
कौशल्या यशोदा के नंदन।
करनी ऐसी करी दीन हित
निशदिन सब करते हैं वंदन।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा: कविता
शीर्षक:शिशु
शिशु से ही आशय सारे
शिशु से ही दुनिया सारी
हर पल खेल रहें मां के
आँचल में छाव ढूंढ रहें
रोते हुए मां की गोद में
चुप हो जाते हैं,
लोरी की धुन में मग्न हो
जाते हैं मां से ही आस
मां से ही प्यास मां से ही
सब कुछ शिशु का नाम!!
जो ज़िन्दगी में कहीं न कहीं
मिल जाता हैं मासूम शिशु के
साथ दिन फिर खिल जाता हैं।।
ज़िन्दगी में ऐसा पल जिस पल में ख़ुशियाँ न हों तो,बेकार में ही सही कहीं न कहीं ख़ुशियाँ मिल ही जाती हैं....
मुस्कुराना न आये तो बेकार में ही सही बच्चों से सीखें मुस्कुराना, हर लम्हा मुस्कुराना कहीं न कहीं से सीख जाओगे!!!
😊😊😊😊😊😊
🌹*गुड मॉर्निंग*🌹
🙏🌹 *शुभ प्रभात*🌹🙏
"हार्दिक महाजन"
शीर्षक:शिशु
शिशु से ही आशय सारे
शिशु से ही दुनिया सारी
हर पल खेल रहें मां के
आँचल में छाव ढूंढ रहें
रोते हुए मां की गोद में
चुप हो जाते हैं,
लोरी की धुन में मग्न हो
जाते हैं मां से ही आस
मां से ही प्यास मां से ही
सब कुछ शिशु का नाम!!
जो ज़िन्दगी में कहीं न कहीं
मिल जाता हैं मासूम शिशु के
साथ दिन फिर खिल जाता हैं।।
ज़िन्दगी में ऐसा पल जिस पल में ख़ुशियाँ न हों तो,बेकार में ही सही कहीं न कहीं ख़ुशियाँ मिल ही जाती हैं....
मुस्कुराना न आये तो बेकार में ही सही बच्चों से सीखें मुस्कुराना, हर लम्हा मुस्कुराना कहीं न कहीं से सीख जाओगे!!!
😊😊😊😊😊😊
🌹*गुड मॉर्निंग*🌹
🙏🌹 *शुभ प्रभात*🌹🙏
"हार्दिक महाजन"
विधा कविता
दिनांक 13.7.2019
दिन शनिवार
किलकारी
🔏🔏🔏🔏
बच्चों की दुनियां को समर्पित
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
बच्चे की किलकारी होती, सच में ही एक अनुपम मन्त्र,
इसमें सम्मिलित होता क्योंकि, प्रकृति का ये सारा तन्त्र,
मन्दिर की घण्टी ध्वनि जैसी, मधुर मधुर,
अच्छे अच्छे भजन लिये, ज्यों गठे हों सुर,
सुन्दर सी कोई किरन जैसे, हल्के हल्के मुस्कराये,
फिर एकदम मन के आँगन में, अनायास ही उतर आये।
घर के हर कोने से लेकर, कोना ये सूने मन का,
अलौकिक आनन्द में नहला देता, भोलापन ये बचपन का,
आनन्द गहरा हो जाता, जब उत्साह थिरकता पचपन का,
कितना सुनहरा होता है, अन्दाज़ दिल की धड़कन का,
लयताल स्वत: ही बनती रहती, उमंगें दौड़ती रहती हैं,
साधुवाद प्रकृति तुम्हारा, ऐसे सुन्दर संयोजन का।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनांक 13.7.2019
दिन शनिवार
किलकारी
🔏🔏🔏🔏
बच्चों की दुनियां को समर्पित
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
बच्चे की किलकारी होती, सच में ही एक अनुपम मन्त्र,
इसमें सम्मिलित होता क्योंकि, प्रकृति का ये सारा तन्त्र,
मन्दिर की घण्टी ध्वनि जैसी, मधुर मधुर,
अच्छे अच्छे भजन लिये, ज्यों गठे हों सुर,
सुन्दर सी कोई किरन जैसे, हल्के हल्के मुस्कराये,
फिर एकदम मन के आँगन में, अनायास ही उतर आये।
घर के हर कोने से लेकर, कोना ये सूने मन का,
अलौकिक आनन्द में नहला देता, भोलापन ये बचपन का,
आनन्द गहरा हो जाता, जब उत्साह थिरकता पचपन का,
कितना सुनहरा होता है, अन्दाज़ दिल की धड़कन का,
लयताल स्वत: ही बनती रहती, उमंगें दौड़ती रहती हैं,
साधुवाद प्रकृति तुम्हारा, ऐसे सुन्दर संयोजन का।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
शीर्षक-- शिशु/किलकारी
प्रथम प्रस्तुति
माँ की पीर मिटाए सारी
शिशु की एक किलकारी ।।
शिशु में खुद की छवि देखे
माँ जिसने हर खुशी वारी ।।
वो मंद मंद जब मुस्काये
दूर जाए हर एक दुश्वारी ।।
पहाड़ से दुख दर्द भुलाये
ईश्वर की भयी बलिहारी ।।
सूनी गोद कोई नही पूछे
हो सासों माँ या महतारी ।।
माँ बनने का स्वप्न 'शिवम'
कौन नही सजाये नारी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्''
स्वरचित 13/07/2019
प्रथम प्रस्तुति
माँ की पीर मिटाए सारी
शिशु की एक किलकारी ।।
शिशु में खुद की छवि देखे
माँ जिसने हर खुशी वारी ।।
वो मंद मंद जब मुस्काये
दूर जाए हर एक दुश्वारी ।।
पहाड़ से दुख दर्द भुलाये
ईश्वर की भयी बलिहारी ।।
सूनी गोद कोई नही पूछे
हो सासों माँ या महतारी ।।
माँ बनने का स्वप्न 'शिवम'
कौन नही सजाये नारी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्''
स्वरचित 13/07/2019
दिन, शनिवार
दिनांक, 13,7,2019,
सौदंर्य शिशु लगता है अति मन भावन ,
नन्द नन्दन जैसे जब खेलते आँगन ।
देख देख छबि सब जाते हैं बलिहारी,
बढ़ रहा अति अनुराग आनंद मुदित मन ।
पल भर में ही बदला मात पिता का जीवन ,
चलता रहता शिशु भविष्य का हरदम चिंतन ।
योजनाओं की नही कोई रहती गिनती ,
सागर ममता का हिलोरता है अंर्तमन ।
पोषक आहार हो सही पालन पोषण ,
संस्कार रोपित करना है शिशु के मन ।
संरक्षण किस तरह हो सकता है शिशु का ,
सोच रहे हैं यही अभिभावक रात दिन ।
होगा कल माँ बाबा का वही सहारा,
शिशु ही घर आँगन जीवन का उजियारा ।
नोनिहाल ही होगा संरक्षक देश का ,
कोशिश हरदम हो महके फूल हमारा ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
दिनांक, 13,7,2019,
सौदंर्य शिशु लगता है अति मन भावन ,
नन्द नन्दन जैसे जब खेलते आँगन ।
देख देख छबि सब जाते हैं बलिहारी,
बढ़ रहा अति अनुराग आनंद मुदित मन ।
पल भर में ही बदला मात पिता का जीवन ,
चलता रहता शिशु भविष्य का हरदम चिंतन ।
योजनाओं की नही कोई रहती गिनती ,
सागर ममता का हिलोरता है अंर्तमन ।
पोषक आहार हो सही पालन पोषण ,
संस्कार रोपित करना है शिशु के मन ।
संरक्षण किस तरह हो सकता है शिशु का ,
सोच रहे हैं यही अभिभावक रात दिन ।
होगा कल माँ बाबा का वही सहारा,
शिशु ही घर आँगन जीवन का उजियारा ।
नोनिहाल ही होगा संरक्षक देश का ,
कोशिश हरदम हो महके फूल हमारा ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
🌻शुभ प्रभात🌻
13/7/2019
विषय-शिशु/किलकारी
विधा-हाइकु
🌹🌻🌹🌻🌹🌻
शिशु हँसता
किलकारी मारता
खुश माँ पिता
😂🌹😂
अबोध शिशु
छवि मानो हो ईशु
जन्नत मिली
😂🌹😂
खुशियाँ मिली
शिशु की किलकारी
बगिया खिली
😂🌹😂
शिशु की हँसी
उसकी किलकारी
मैं जाऊँ वारी
😂🌹😂
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
13/7/2019
विषय-शिशु/किलकारी
विधा-हाइकु
🌹🌻🌹🌻🌹🌻
शिशु हँसता
किलकारी मारता
खुश माँ पिता
😂🌹😂
अबोध शिशु
छवि मानो हो ईशु
जन्नत मिली
😂🌹😂
खुशियाँ मिली
शिशु की किलकारी
बगिया खिली
😂🌹😂
शिशु की हँसी
उसकी किलकारी
मैं जाऊँ वारी
😂🌹😂
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
शीर्षक-शिशु/किलकारी
शिशु की किलकारी से
महक उठी मेरी फुलवारी।
सूना आंगन आबाद हुआ
पूरी हो गई आस हमारी।
खेलेगा अब चाँद जमीं पर
रोशन हो गई दुनिया सारी।
हे प्रभु! इस नाचीज़ पर रहे
हमेशा यूँ ही कृपा तुम्हारी।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
शिशु की किलकारी से
महक उठी मेरी फुलवारी।
सूना आंगन आबाद हुआ
पूरी हो गई आस हमारी।
खेलेगा अब चाँद जमीं पर
रोशन हो गई दुनिया सारी।
हे प्रभु! इस नाचीज़ पर रहे
हमेशा यूँ ही कृपा तुम्हारी।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
दिनांक :- 13/07/2019
शीर्षक :- शिशु/कालकारी
किलकारी!भरती ऊर्जा रोम-रोम में...
किलकारी!जगाती ममत्व रोम-रोम में..
किलकारी!देती साहस दर्द में मुस्कुराने का..
किलकारी!देती साहस हर गम भुलाने का..
किलकारी!स्वतः छलकाती अमृत आँचल में..
किलकारी!खिलाती सुंदर पुष्प सूने आँगन में...
किलकारी!शबनम की चमकती बूँद सी...
किलकारी!मधुर मधु रस के घूँट सी..
किलकारी!सुखद भोर की लालिमा सी...
किलकारी!पूर्णमासी की चंद्रिका सी..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शीर्षक :- शिशु/कालकारी
किलकारी!भरती ऊर्जा रोम-रोम में...
किलकारी!जगाती ममत्व रोम-रोम में..
किलकारी!देती साहस दर्द में मुस्कुराने का..
किलकारी!देती साहस हर गम भुलाने का..
किलकारी!स्वतः छलकाती अमृत आँचल में..
किलकारी!खिलाती सुंदर पुष्प सूने आँगन में...
किलकारी!शबनम की चमकती बूँद सी...
किलकारी!मधुर मधु रस के घूँट सी..
किलकारी!सुखद भोर की लालिमा सी...
किलकारी!पूर्णमासी की चंद्रिका सी..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
विषय - किलकारी/ शिशु
किलकारी की गूंज से ,आँगन महका जाय ।
नये शिशु की आगत से , मन मेरा हरषाय।।
किलकारी लगती भली , मन शीतल हो जाय ।
अधरों पर खिलती हँसी ,अँखियाँ चमकत जाय ।।
शिशु धारे मुस्कान जब, आता मेरे पास
मन अंधियारा दूर कर , मन में भरे उजास ।।
किलकारी की गूँज से, मन हुलसे पुरजोर ।
मन मेरा भी नाचता , ज्यों सावन में मोर ।।
सरिता गर्ग
किलकारी की गूंज से ,आँगन महका जाय ।
नये शिशु की आगत से , मन मेरा हरषाय।।
किलकारी लगती भली , मन शीतल हो जाय ।
अधरों पर खिलती हँसी ,अँखियाँ चमकत जाय ।।
शिशु धारे मुस्कान जब, आता मेरे पास
मन अंधियारा दूर कर , मन में भरे उजास ।।
किलकारी की गूँज से, मन हुलसे पुरजोर ।
मन मेरा भी नाचता , ज्यों सावन में मोर ।।
सरिता गर्ग
13 07 19
विषय- शिशु
ममता का स्पर्श शिशु से ज्यादा कोमल।
सबसे कोमल स्पर्श जगत में
नवजात "शिशु" का होता है
फूलों से नाजुक सुकोमल
रेशम से भी मुलायम ,
पर कभी जाना इस से
कोमल क्या होता है ?
जब कष्ट में हो बच्चा,
सर पर माँ के हाथ की छुवन
औऱ कहना उन का
सब ठीक होगा चिंता न कर
लगता स्वयं विधाता
साक्षात सांत्वना देता
ममता भरा स्पर्श माँ का
जग में सब से कोमल होता
जग मे सब से कोमल होता ।
स्वरचित
विषय- शिशु
ममता का स्पर्श शिशु से ज्यादा कोमल।
सबसे कोमल स्पर्श जगत में
नवजात "शिशु" का होता है
फूलों से नाजुक सुकोमल
रेशम से भी मुलायम ,
पर कभी जाना इस से
कोमल क्या होता है ?
जब कष्ट में हो बच्चा,
सर पर माँ के हाथ की छुवन
औऱ कहना उन का
सब ठीक होगा चिंता न कर
लगता स्वयं विधाता
साक्षात सांत्वना देता
ममता भरा स्पर्श माँ का
जग में सब से कोमल होता
जग मे सब से कोमल होता ।
स्वरचित
"शिशु/किलकारी"
छंदमुक्त
################
पहली बार जब माँ बनी थी..
सुनते ही..शिशु रुदन.....
अचेतनावस्था में भी....
चेतना हुई थी झंकृत...
जाग उठी थी ममता मेरी..
साँसों ने फिर ली थी अँगड़ाई
उसका तन वदन .....
छुने को हुई थी लालायित..
पहली बार छुआ था मैंनें...
कमल की पँखूँड़ियों सी...
कोमलांगी बिटिया...
थी अब मन के पास..
तृप्त हुआ था....
मातृत्व एहसास....
फिर गूंज उठी थी....
किलकारियां....
घर आँगन में...
बगीया मेरी महक उठी थी...
रुनझुन-रुनझुन पाजेबों की ..
झंकार से झंकृत हुआ था..
घर का कोना-कोना...
संग-संग गा रहा था...
मेरा मन सलोना.....।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
13/07/2019
"शिशु/किलकारी"
1
घर-आँगन
गुँजन किलकारी
जाँऊ मैं वारी
2
शिशु पालना
हिलाए-दुलराए
माँ की ममता
3
शिशु वदन
चादर मखमली
कुसुम कलि
4
शिशु रुदन
आँचल को आतुर
बाँहें पसार
5
किलकारियाँ
प्रेममय संगीत
वात्सल्य गीत
स्वरचित पूर्णिमा साह(भ
छंदमुक्त
################
पहली बार जब माँ बनी थी..
सुनते ही..शिशु रुदन.....
अचेतनावस्था में भी....
चेतना हुई थी झंकृत...
जाग उठी थी ममता मेरी..
साँसों ने फिर ली थी अँगड़ाई
उसका तन वदन .....
छुने को हुई थी लालायित..
पहली बार छुआ था मैंनें...
कमल की पँखूँड़ियों सी...
कोमलांगी बिटिया...
थी अब मन के पास..
तृप्त हुआ था....
मातृत्व एहसास....
फिर गूंज उठी थी....
किलकारियां....
घर आँगन में...
बगीया मेरी महक उठी थी...
रुनझुन-रुनझुन पाजेबों की ..
झंकार से झंकृत हुआ था..
घर का कोना-कोना...
संग-संग गा रहा था...
मेरा मन सलोना.....।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
13/07/2019
"शिशु/किलकारी"
1
घर-आँगन
गुँजन किलकारी
जाँऊ मैं वारी
2
शिशु पालना
हिलाए-दुलराए
माँ की ममता
3
शिशु वदन
चादर मखमली
कुसुम कलि
4
शिशु रुदन
आँचल को आतुर
बाँहें पसार
5
किलकारियाँ
प्रेममय संगीत
वात्सल्य गीत
स्वरचित पूर्णिमा साह(भ
किलकारी
अभिसार सार सिंगार सुखकारी
जीवनदान की एकल अधिकारी
ममता मोह के खोह में रक्षित
धारिणी नित तिसपर बलिहारी
असह पीर प्रसव की अति भारी
गोद आमोद किलक किलकारी
लख निश्छल कौतुक निज अंश
हृदय हिलोर मुख चूम महतारी
लक्ष अलक्ष भंगिम भरे भाल
टंकित दृग सकल ज्यों इंद्रजाल
निरख परख हुलस शिशु केलि
म्लान मुख निमिष में निहाल
-©नवल किशोर सिंह
13-07-2019
स्वरचित
अभिसार सार सिंगार सुखकारी
जीवनदान की एकल अधिकारी
ममता मोह के खोह में रक्षित
धारिणी नित तिसपर बलिहारी
असह पीर प्रसव की अति भारी
गोद आमोद किलक किलकारी
लख निश्छल कौतुक निज अंश
हृदय हिलोर मुख चूम महतारी
लक्ष अलक्ष भंगिम भरे भाल
टंकित दृग सकल ज्यों इंद्रजाल
निरख परख हुलस शिशु केलि
म्लान मुख निमिष में निहाल
-©नवल किशोर सिंह
13-07-2019
स्वरचित
शनिवार
विषय - किलकारी
छंदमुक्त कविता
गूँज उठती है किलकारी जब आँगन में बेटी की ,
सारा आँगन खुशियों से झूम उठता है |
उसका चाँद सा मुस्काता हुआ चेहरा
सबके जीवन में मधुरस घोलने लगता है |
माँ को अहसास अपने मधुर जीवन का होने लगता है ,
तो पिता के कंधों से जैसे बोझ ही उतरने लगता है |
क्योंकि आज के युग की सच्चाई यही है ,
आज किसीभी रूप में बेटियाँ बेटों से कम नहीं हैं |
माँ के चेहरे को वे ही पढ़ पाती है
पिता का संबल वे ही बनकर दिखाती हैं |
इसीलिए तो उम्र से पहलेवे सयानी हो जाती हैं |
यदि घर के चिराग हैं बेटे तो दिव्य -दीप्ति हैं बेटियाँ ,
यदि बेटे अभिमान हैं तो घरकी शान हैं बेटियाँ |
वे एक नहीं, दो परिवारो के रिश्ते निभाती हैं ,
बेटे माता -पिता को भले ही भूल जाएँ ,
पर वे उन्हें कभी भुला नहीं पाती हैं |
बेटियाँ ही घर की शोभा ,जीवन का उपहार हैं ,
वे लक्ष्मी ,दुर्गा और सरस्वती का अवतार हैं |
इसलिए बेटियों को बचाना ही हमारा सर्वप्रथम काम है
क्योंकि उन्हीं से परिवार ,समाज और देश का सम्मान है ||
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय - किलकारी
छंदमुक्त कविता
गूँज उठती है किलकारी जब आँगन में बेटी की ,
सारा आँगन खुशियों से झूम उठता है |
उसका चाँद सा मुस्काता हुआ चेहरा
सबके जीवन में मधुरस घोलने लगता है |
माँ को अहसास अपने मधुर जीवन का होने लगता है ,
तो पिता के कंधों से जैसे बोझ ही उतरने लगता है |
क्योंकि आज के युग की सच्चाई यही है ,
आज किसीभी रूप में बेटियाँ बेटों से कम नहीं हैं |
माँ के चेहरे को वे ही पढ़ पाती है
पिता का संबल वे ही बनकर दिखाती हैं |
इसीलिए तो उम्र से पहलेवे सयानी हो जाती हैं |
यदि घर के चिराग हैं बेटे तो दिव्य -दीप्ति हैं बेटियाँ ,
यदि बेटे अभिमान हैं तो घरकी शान हैं बेटियाँ |
वे एक नहीं, दो परिवारो के रिश्ते निभाती हैं ,
बेटे माता -पिता को भले ही भूल जाएँ ,
पर वे उन्हें कभी भुला नहीं पाती हैं |
बेटियाँ ही घर की शोभा ,जीवन का उपहार हैं ,
वे लक्ष्मी ,दुर्गा और सरस्वती का अवतार हैं |
इसलिए बेटियों को बचाना ही हमारा सर्वप्रथम काम है
क्योंकि उन्हीं से परिवार ,समाज और देश का सम्मान है ||
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
वार : शनिवार
दिनांक : 13.07.2019
आज का शीर्षक :
शिशु / किलकारी
विधा : काव्य
गीत
घर - आंगन हैं सूने - सूने ,
अगर न गूँजे किलकारी !!
मन को मोह लिया करती है ,
शिशु की मोहक छवि प्यारी !!
संस्कारों की मिली विरासत ,
यह उपहार सरीखा है !
पाणिग्रहण के बाद में पायें ,
फल जो मीठा - मीठा है !
बढ़ता गर परिवार , मिलेगी ,
खुशियों की भी रंगदारी !!
नये - नये सपने , रंग भरते ,
हमराही भी नया - नया !
अपनों से होती है बिदाई ,
मिलता इक संसार नया !
बिन मातृत्व , न सरसे जीवन ,
नारी की है बलिहारी !!
प्रीत ,प्यार औ सजना - धजना ,
यह भी एक जरूरत है !
इसके आगे गोद में खुशियाँ ,
इस पर भी सब इक मत हैं !
सूनी गोद न भाये मन को ,
जैसे सूनी फुलवारी !!
किलकारी पर वारी जाये ,
मात - पिता , परिवार है !
आँचल में जो ममता पलती ,
उस पर जग निस्सार है !
अंगना में पलना , सब चाहें ,
अपने घर बारी - बारी !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
दिनांक : 13.07.2019
आज का शीर्षक :
शिशु / किलकारी
विधा : काव्य
गीत
घर - आंगन हैं सूने - सूने ,
अगर न गूँजे किलकारी !!
मन को मोह लिया करती है ,
शिशु की मोहक छवि प्यारी !!
संस्कारों की मिली विरासत ,
यह उपहार सरीखा है !
पाणिग्रहण के बाद में पायें ,
फल जो मीठा - मीठा है !
बढ़ता गर परिवार , मिलेगी ,
खुशियों की भी रंगदारी !!
नये - नये सपने , रंग भरते ,
हमराही भी नया - नया !
अपनों से होती है बिदाई ,
मिलता इक संसार नया !
बिन मातृत्व , न सरसे जीवन ,
नारी की है बलिहारी !!
प्रीत ,प्यार औ सजना - धजना ,
यह भी एक जरूरत है !
इसके आगे गोद में खुशियाँ ,
इस पर भी सब इक मत हैं !
सूनी गोद न भाये मन को ,
जैसे सूनी फुलवारी !!
किलकारी पर वारी जाये ,
मात - पिता , परिवार है !
आँचल में जो ममता पलती ,
उस पर जग निस्सार है !
अंगना में पलना , सब चाहें ,
अपने घर बारी - बारी !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
13/7/2019
प्रदत्त विषय-शिशु / किलकारी
द्वितीय प्रस्तुति
*********************
कितने व्यस्त रहने लगे हैं हम
कि छोटी छोटी खुशियां कब हाथ से फिसल गईं कि
पता ही नहीं चला....
अबोध शिशु की किलकारी देखने से वंचित रह गए
डगमग करते कदमों से
उसे चलता देखने से चूक गए
कब वह शिशु से बालक बन गया
पता ही नहीं चला....
उसकी तोतली बोली,खिलखिलाता बचपन
किशोरावस्था फिर आया यौवन
उसे अच्छी ज़िंदगी देने की कोशिश में
कब हम बच्चों संग जीना ही भूल गए
पता ही नहीं चला...
सेवा निवृत्त होकर घर आए
खाली समय कट न पाए
अब बच्चे के शिशु की किलकारी में
उसकी हँसी ढूंढते हैं
कब पिता से दादा बन गए
पता ही नहीं चला...!!
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
प्रदत्त विषय-शिशु / किलकारी
द्वितीय प्रस्तुति
*********************
कितने व्यस्त रहने लगे हैं हम
कि छोटी छोटी खुशियां कब हाथ से फिसल गईं कि
पता ही नहीं चला....
अबोध शिशु की किलकारी देखने से वंचित रह गए
डगमग करते कदमों से
उसे चलता देखने से चूक गए
कब वह शिशु से बालक बन गया
पता ही नहीं चला....
उसकी तोतली बोली,खिलखिलाता बचपन
किशोरावस्था फिर आया यौवन
उसे अच्छी ज़िंदगी देने की कोशिश में
कब हम बच्चों संग जीना ही भूल गए
पता ही नहीं चला...
सेवा निवृत्त होकर घर आए
खाली समय कट न पाए
अब बच्चे के शिशु की किलकारी में
उसकी हँसी ढूंढते हैं
कब पिता से दादा बन गए
पता ही नहीं चला...!!
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
दिनांक : 13/07/2019
विधा : कविता
किलकारी
बिन बच्चों के सूना जीवन ,
रहे काटता नित सूनापन ।
आशाओं के दीये बुझ गए ,
कर कर मिन्नतें मैं तो हारी ,
बच्चों का वर दे दो भगवन,
अंगना में गूंजे किलकारी ।
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
कैसे कहूँ और किससे कहती ,
कितने ताने नित हूँ सहती ।
बसा मेरा घरबार ना टूटे ,
इस चिंता में हर पल रहती ।
मुझ पर ही सब दोष लगाते,
कोई ना समझे मेरी लाचारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
दे दे वर क्या लगता मोल ,
मैं भी सुनूँ वो तोतले बोल ।
बच्चों बिना अभागिन हो गई ,
मेरे भी अब भाग्य खोल ।
कोई तो हो यहां मेरा अपना,
दे भी दो एक बिटिया प्यारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
अपने भी हो गए बेगाने ,
बाँझ कह कर देते ताने ।
उम्र बीत गई सहते सहते ,
कह दे माँ मुझे किसी बहाने ।
सूनी गोद भर जाए जो मेरी ,
सारी उम्र जाऊं बलिहारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
रंज रहे ना जीवन में अब ,
पीछा छूटे दुर्भाग्य से कब ।
पूरी कर दो मनोकामना ,
तब मानूं मैं तुम को रब्ब ।
और ना मेरी कोई अभिलाषा ,
मैं भी कहलाऊँ पूर्ण नारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
बच्चों का वर दे दो भगवन,
अंगना में गूंजे किलकारी ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विधा : कविता
किलकारी
बिन बच्चों के सूना जीवन ,
रहे काटता नित सूनापन ।
आशाओं के दीये बुझ गए ,
कर कर मिन्नतें मैं तो हारी ,
बच्चों का वर दे दो भगवन,
अंगना में गूंजे किलकारी ।
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
कैसे कहूँ और किससे कहती ,
कितने ताने नित हूँ सहती ।
बसा मेरा घरबार ना टूटे ,
इस चिंता में हर पल रहती ।
मुझ पर ही सब दोष लगाते,
कोई ना समझे मेरी लाचारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
दे दे वर क्या लगता मोल ,
मैं भी सुनूँ वो तोतले बोल ।
बच्चों बिना अभागिन हो गई ,
मेरे भी अब भाग्य खोल ।
कोई तो हो यहां मेरा अपना,
दे भी दो एक बिटिया प्यारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
अपने भी हो गए बेगाने ,
बाँझ कह कर देते ताने ।
उम्र बीत गई सहते सहते ,
कह दे माँ मुझे किसी बहाने ।
सूनी गोद भर जाए जो मेरी ,
सारी उम्र जाऊं बलिहारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
रंज रहे ना जीवन में अब ,
पीछा छूटे दुर्भाग्य से कब ।
पूरी कर दो मनोकामना ,
तब मानूं मैं तुम को रब्ब ।
और ना मेरी कोई अभिलाषा ,
मैं भी कहलाऊँ पूर्ण नारी ,
बच्चों का _____________,
___________किलकारी ।
बच्चों का वर दे दो भगवन,
अंगना में गूंजे किलकारी ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
"शिशु/किलकारी"
प्रथम प्रस्तुति
***********
द्वेष-भाव की जलन लिए
कच्ची-पक्की दीवारों में
ऊँची रँगीन मीनारों में
आह!ये बचपन दुबक गया है
शिशु मन न जाने कहाँ खो गया है।
लॉन बड़े और हरियाली है
मन-क्यारी फिर भी खाली है
घूम रहे है नौकर-चाकर
आह!ये बचपन दुबक गया है
शिशु मन न जाने कहाँ खो गया है।
उदर की ज्वाला भड़क रही
अश्रु धार नदी उफनती बन रही
रोटी जुगाड़ में नन्हा बड़ा हो गया
आह!ये बचपन दुबक गया है
शिशु मन न जाने कहाँ खो गया है।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
प्रथम प्रस्तुति
***********
द्वेष-भाव की जलन लिए
कच्ची-पक्की दीवारों में
ऊँची रँगीन मीनारों में
आह!ये बचपन दुबक गया है
शिशु मन न जाने कहाँ खो गया है।
लॉन बड़े और हरियाली है
मन-क्यारी फिर भी खाली है
घूम रहे है नौकर-चाकर
आह!ये बचपन दुबक गया है
शिशु मन न जाने कहाँ खो गया है।
उदर की ज्वाला भड़क रही
अश्रु धार नदी उफनती बन रही
रोटी जुगाड़ में नन्हा बड़ा हो गया
आह!ये बचपन दुबक गया है
शिशु मन न जाने कहाँ खो गया है।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
विषय - शिशु/किलकारी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लघु गीतिका
---------------
कृपा करो हे गिरिवरधारी,
गूँजे मेरे घर किलकारी ।
भूल हुई तो माफ करो जी,
समझो मेरी भी लाचारी ।
बिन बच्चे के कैसा घर -बर,
सिसक रही पत्नी बेचारी ।
नहीं जानता वंदन चंदन,
देव तुम्हारी जिम्मेदारी ।
दादी बनने की चाहत में,
अम्मा मेरी है दुखियारी ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लघु गीतिका
---------------
कृपा करो हे गिरिवरधारी,
गूँजे मेरे घर किलकारी ।
भूल हुई तो माफ करो जी,
समझो मेरी भी लाचारी ।
बिन बच्चे के कैसा घर -बर,
सिसक रही पत्नी बेचारी ।
नहीं जानता वंदन चंदन,
देव तुम्हारी जिम्मेदारी ।
दादी बनने की चाहत में,
अम्मा मेरी है दुखियारी ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
१३/७/२०१९
विषय-शिशु/किलकारी
कलियों सी खिलती मुस्कानें,
फूलों सा होता है बचपन।
शिशुओं की किलकारी से,
आनंदित होता मन आंगन।
गोदी-गोदी झूला झूलें,
हाथ बढ़ाकर मन को छूलें।
प्यारी-प्यारी भोली सूरत,
चंदा जैसा प्यारा आनन।
करते नित अठखेली न्यारी,
जिस पर जाए दुनिया वारी।
ममता की क्यारी खिल उठती,
जब शिशु खेले घर-आंगन।
निर्मल मासूम होता बचपन,
जीवन को मिल जाता जीवन।
उनके एक इशारे पर तो,
चांद उतर आता घर आंगन।
शिशु की प्यारी तोतली बातें,
भुला देती हैं जीवन की तापें।
खिल उठती सपनों की फुलवारी,
खुशियों की होती बरसातें।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
विषय-शिशु/किलकारी
कलियों सी खिलती मुस्कानें,
फूलों सा होता है बचपन।
शिशुओं की किलकारी से,
आनंदित होता मन आंगन।
गोदी-गोदी झूला झूलें,
हाथ बढ़ाकर मन को छूलें।
प्यारी-प्यारी भोली सूरत,
चंदा जैसा प्यारा आनन।
करते नित अठखेली न्यारी,
जिस पर जाए दुनिया वारी।
ममता की क्यारी खिल उठती,
जब शिशु खेले घर-आंगन।
निर्मल मासूम होता बचपन,
जीवन को मिल जाता जीवन।
उनके एक इशारे पर तो,
चांद उतर आता घर आंगन।
शिशु की प्यारी तोतली बातें,
भुला देती हैं जीवन की तापें।
खिल उठती सपनों की फुलवारी,
खुशियों की होती बरसातें।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
विषय- शिशु/ किलकारी
छंदमुक्त
शिशु की किलकारी में होता,
सारे जहाँ का सुख अनमोल l
मातृ पितृ सुख का एहसास,
किलकारी में ममता के बोल l
शैशव सबसे सुखद उम्र है,
वात्सल्य का यह पारावार।
नव ममत्व का अंकुरित कोष,
शिशु ही खुशियों का आधार।
शिशु किलकारी सुनने को,
बेताब मात -पिता हैं रहते।
नेह, प्रेम परवाह सभी की ,
सरहद से भी ऊपर रहते।
आहा कितना असीम सुख है,
शिशु की मृदु किलकारी में।
होता है आभास ये जैसा,
फूल खिला हो क्यारी में ।
किलकारी से नन्हे शिशु की,
पावन हो घर का हर कोना।
शिशु में ही खो जाती है माँ,
भुला देती है खाना सोना ।
तीव्र,तरंगित किलकारी से,
गुंजायमान हो घर संसार।
चरमोत्कर्ष हँसी खुशी का ये,
चमन में खिलती मधु बहार।
ईश्वर का है स्वरूप शिशु में,
घर को उदासी छू नहीं पाती।
अद्भुत सुख की पूंजी है ये,
मुश्किलें कभी नज़र न आती।
भाग्य उदय शिशु किलकारी से,
मुदित, प्रसन्न सा लगे जहान ।
मृदु किलकारी कितनी कर्णप्रिय,
शिशु तो है धरती पर भगवान।
स्वरचित
कुसुम लता पुंडोरा
आर के पुरम
नई दिल्ली
छंदमुक्त
शिशु की किलकारी में होता,
सारे जहाँ का सुख अनमोल l
मातृ पितृ सुख का एहसास,
किलकारी में ममता के बोल l
शैशव सबसे सुखद उम्र है,
वात्सल्य का यह पारावार।
नव ममत्व का अंकुरित कोष,
शिशु ही खुशियों का आधार।
शिशु किलकारी सुनने को,
बेताब मात -पिता हैं रहते।
नेह, प्रेम परवाह सभी की ,
सरहद से भी ऊपर रहते।
आहा कितना असीम सुख है,
शिशु की मृदु किलकारी में।
होता है आभास ये जैसा,
फूल खिला हो क्यारी में ।
किलकारी से नन्हे शिशु की,
पावन हो घर का हर कोना।
शिशु में ही खो जाती है माँ,
भुला देती है खाना सोना ।
तीव्र,तरंगित किलकारी से,
गुंजायमान हो घर संसार।
चरमोत्कर्ष हँसी खुशी का ये,
चमन में खिलती मधु बहार।
ईश्वर का है स्वरूप शिशु में,
घर को उदासी छू नहीं पाती।
अद्भुत सुख की पूंजी है ये,
मुश्किलें कभी नज़र न आती।
भाग्य उदय शिशु किलकारी से,
मुदित, प्रसन्न सा लगे जहान ।
मृदु किलकारी कितनी कर्णप्रिय,
शिशु तो है धरती पर भगवान।
स्वरचित
कुसुम लता पुंडोरा
आर के पुरम
नई दिल्ली
दिनाँक-13/7/2019
विषय-शिशु ,किलकारी
विधा-कविता
हर्षित होवै दादा दादी
आँगन में गूँजे किलकारी।
पिता के ह्रदय अति उमंग
माँ की ममता बलिहारी।।
गोदी में शिशु पाकर मैया
हर्षित होकर लेत बलैया
झूला झुलाकर लोरी गाती,
नटवर नागर कृष्ण कन्हैया।।
खुशियाँ छाई सबके मन मे
सोहर गाये नर नारी।
प्रीत बढ़े दिन ,प्रतिदिन
जबसे घर मे गूँजी किलकारी।।
रचनाकार
जयंती सिंह
विषय-शिशु ,किलकारी
विधा-कविता
हर्षित होवै दादा दादी
आँगन में गूँजे किलकारी।
पिता के ह्रदय अति उमंग
माँ की ममता बलिहारी।।
गोदी में शिशु पाकर मैया
हर्षित होकर लेत बलैया
झूला झुलाकर लोरी गाती,
नटवर नागर कृष्ण कन्हैया।।
खुशियाँ छाई सबके मन मे
सोहर गाये नर नारी।
प्रीत बढ़े दिन ,प्रतिदिन
जबसे घर मे गूँजी किलकारी।।
रचनाकार
जयंती सिंह
"शिशु/किलकारी"
हाइकु(2 प्रस्तुति)
*************
1)
थाली पे थाप
शिशु का आगमन
भरे उजास।
2)
शिशु मुस्कान
धरा पे झिलमिल
चंचल चाँद।
3)
ये किलकारी
महकी फुलवारी
माँ बलिहारी।
4)
गर्भ में हत्या
सहमी किलकारी
कन्या बेचारी।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
हाइकु(2 प्रस्तुति)
*************
1)
थाली पे थाप
शिशु का आगमन
भरे उजास।
2)
शिशु मुस्कान
धरा पे झिलमिल
चंचल चाँद।
3)
ये किलकारी
महकी फुलवारी
माँ बलिहारी।
4)
गर्भ में हत्या
सहमी किलकारी
कन्या बेचारी।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
दिनांक -13/07/19
शिशु / किलकारी
1/
शिशु मुस्कान
मां बनी फूलवारी
सुख की खान ।
2/
खुशियों भरा
गुंजित किलकारी
हर्षित माता ।
3/
कैसा आंगन
बगैर किलकारी
सूना जीवन ।
*******************
स्वरचित ' विमल '
शिशु / किलकारी
1/
शिशु मुस्कान
मां बनी फूलवारी
सुख की खान ।
2/
खुशियों भरा
गुंजित किलकारी
हर्षित माता ।
3/
कैसा आंगन
बगैर किलकारी
सूना जीवन ।
*******************
स्वरचित ' विमल '
किलकारी/ शिशु
थी बहुत खुश
वो
फैरती बार बार
हाथ पेट पर
वो
शरारते उसकी
याद कर कर
मुस्कुरा उठती थी
वो
गूंज उठेगी
अब तो
किलकारी
घर में
होगी दुनियां की
सबसे खुशकिस्मत
वो
चोरी छिपे
होते काम
सब
कर दिया
सब धोखे से
अब था
शिशु की
किलकारी
उसका सपना
टूटे गयी थी
तन मन से
वो
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
थी बहुत खुश
वो
फैरती बार बार
हाथ पेट पर
वो
शरारते उसकी
याद कर कर
मुस्कुरा उठती थी
वो
गूंज उठेगी
अब तो
किलकारी
घर में
होगी दुनियां की
सबसे खुशकिस्मत
वो
चोरी छिपे
होते काम
सब
कर दिया
सब धोखे से
अब था
शिशु की
किलकारी
उसका सपना
टूटे गयी थी
तन मन से
वो
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
13/07/2019विषय:-"शिशु/किलकारी "
स्त्री का जैसे पुनर्जन्म
गूंजी किलकारी सुखद मन
अनुभूति हेतु शब्द भी कम
उस क्षण को संजो के रखती है
हां जब नारी की गोद भरती है..
शिशु के तन आंच ना आए
बार बार हिय से चिपटाये
स्नेह सुधा भी उफन के आये
नींदों की आहुति देती है
हां जब नारी की गोद भरती है...
ममता सागर उमड़ के आये
जननी का अर्थ समझ में आये
स्वप्नों ने मन में पँख सजाये
दो घर में खुशियाँ पलती हैं
हां जब नारी की गोद भरती है...
लड़का हो या लड़की आये
ममता में ना भेद समाये
नारीत्व में गरिमा आ जाये
दीवारें भी चहकती है
हां जब नारी की गोद भरती है...
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे
स्त्री का जैसे पुनर्जन्म
गूंजी किलकारी सुखद मन
अनुभूति हेतु शब्द भी कम
उस क्षण को संजो के रखती है
हां जब नारी की गोद भरती है..
शिशु के तन आंच ना आए
बार बार हिय से चिपटाये
स्नेह सुधा भी उफन के आये
नींदों की आहुति देती है
हां जब नारी की गोद भरती है...
ममता सागर उमड़ के आये
जननी का अर्थ समझ में आये
स्वप्नों ने मन में पँख सजाये
दो घर में खुशियाँ पलती हैं
हां जब नारी की गोद भरती है...
लड़का हो या लड़की आये
ममता में ना भेद समाये
नारीत्व में गरिमा आ जाये
दीवारें भी चहकती है
हां जब नारी की गोद भरती है...
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे
दिनांक :13 जुलाई 2019
विषय: शिशु/किलकारी
विधा: कविता
चंचल मन अरु बिह्वल तन
गूंजे किलकारी घर आँगन
बाजे पैजनिया छम छम छम
दौड़े अम्मा हर पल हर दम
ठुमक -ठुमक शिशु का नर्तन
सुख सुकून आनंदित जीवन
खुद की छाया भी भूल सकल
शिशु किलकारी धड़कन प्रति पल
रोम -रोम पुलकित प्रतिक्षण
मातृ सुख की बात विलक्षण
तन-मन हर्षित गात पुलक
नयन नेह विप्लव अपलक
सुंदर भविष्य का दर्पण शिशु
नवजीवन सृष्टि उत्थान विन्दु
ईश्वर का प्रतिबिंब रूप शिशु
किलकारी जीवन हर्ष सिंधु
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विषय: शिशु/किलकारी
विधा: कविता
चंचल मन अरु बिह्वल तन
गूंजे किलकारी घर आँगन
बाजे पैजनिया छम छम छम
दौड़े अम्मा हर पल हर दम
ठुमक -ठुमक शिशु का नर्तन
सुख सुकून आनंदित जीवन
खुद की छाया भी भूल सकल
शिशु किलकारी धड़कन प्रति पल
रोम -रोम पुलकित प्रतिक्षण
मातृ सुख की बात विलक्षण
तन-मन हर्षित गात पुलक
नयन नेह विप्लव अपलक
सुंदर भविष्य का दर्पण शिशु
नवजीवन सृष्टि उत्थान विन्दु
ईश्वर का प्रतिबिंब रूप शिशु
किलकारी जीवन हर्ष सिंधु
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
शिशु
**
महा श्रृंगार छन्द में लिखने का प्रयास।
16 मात्रा ,अंत गुरु लघु
क्षमा सहित ,सुझाव अपेक्षित
**
सुन शिशु रुदन सब जन मुस्काय।
रुप सुता सुंदर मन अति भाय ।।
पीर सह माँ नव जीवन पाय।
अंक में भर बालिहारी जाय ।।
पाँव पैजनिया पहन इतराय ।
ठुमक चलत सुता जो गिरि जाय।।
मातु दौड़ कर तब अँक लगाय।
दुग्ध पिला सुता क्षुधा मिटाय।।
चिहुक चिहुक मातु डरि डरि जाय।
हुलस भर बिटिया को थपकाय ।।
कली अँगना की सदा मुस्काय ।
किलकारियों से घर चहकाय ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
**
महा श्रृंगार छन्द में लिखने का प्रयास।
16 मात्रा ,अंत गुरु लघु
क्षमा सहित ,सुझाव अपेक्षित
**
सुन शिशु रुदन सब जन मुस्काय।
रुप सुता सुंदर मन अति भाय ।।
पीर सह माँ नव जीवन पाय।
अंक में भर बालिहारी जाय ।।
पाँव पैजनिया पहन इतराय ।
ठुमक चलत सुता जो गिरि जाय।।
मातु दौड़ कर तब अँक लगाय।
दुग्ध पिला सुता क्षुधा मिटाय।।
चिहुक चिहुक मातु डरि डरि जाय।
हुलस भर बिटिया को थपकाय ।।
कली अँगना की सदा मुस्काय ।
किलकारियों से घर चहकाय ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
#विधा: काव्य लेखन:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
***""** शिशु किलकारी**""***
नारी तो तभी सम्पूर्ण कही गई,
जब आंगन उसके गूंजे किलकारी,
शिशु को छांव मिले आंचल की,
स्वयं जने पूत और बने महतारी,
जननी प्रथ्विराज की थी जन्मदात्री,
जननी से ही जन्में थे वीर शिवाजी,
जननी अभिमन्यु को भी जनी थी,
जिसे गर्भ ही में मिली थी तीरंदाजी,
शिशु कृष्ण को जन्मा था देवकी ने,
यशोमति ही उनकी पालन हारी थी,
जिनसे प्रकटे स्वयं श्री राम चन्द्र थे,
कौशिल्या ही जिनकी महतारी थी,
नारी अब कोई ऐसो पूत ना जनियो,
जो असुर नराधम हो विघटन कारी,
कंस हिरण्य या रावण ना जनियो,
कर्कश ना हो शिशु की किलकारी,
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
***""** शिशु किलकारी**""***
नारी तो तभी सम्पूर्ण कही गई,
जब आंगन उसके गूंजे किलकारी,
शिशु को छांव मिले आंचल की,
स्वयं जने पूत और बने महतारी,
जननी प्रथ्विराज की थी जन्मदात्री,
जननी से ही जन्में थे वीर शिवाजी,
जननी अभिमन्यु को भी जनी थी,
जिसे गर्भ ही में मिली थी तीरंदाजी,
शिशु कृष्ण को जन्मा था देवकी ने,
यशोमति ही उनकी पालन हारी थी,
जिनसे प्रकटे स्वयं श्री राम चन्द्र थे,
कौशिल्या ही जिनकी महतारी थी,
नारी अब कोई ऐसो पूत ना जनियो,
जो असुर नराधम हो विघटन कारी,
कंस हिरण्य या रावण ना जनियो,
कर्कश ना हो शिशु की किलकारी,
विषय-शिशु/किलकारी
तेरे आने के अहसास से ही,
मन प्रफुल्लित हो गया था,
सोच के तेरा रूप सलौना,
आँखों में एक सपना सजा था,
इंतजार वो नौ माह का,
मैं ही जानूँ कैसे कटा था,
आने की तेरी खुशी में,
बादल दुखों का छँटा था,
तेरी किलकारी का स्वर,
साज संगीत सा लगा था,
सुनकर रूदन वो तेरा पहला,
कानों में रस सा घुला था,
तेरी किलकारी की बौछारों ने,
तपते मन को शीतल किया था,
भूल गई वो दर्द सारा,
खुशियों का तू बनी जरिया था,
लेकर गोद में तुझको,
मुझे सारा संसार मिला था,
महक गया था मेरा आँगन,
जब ये नन्हाँ फूल खिला था।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
13/7/19
शनिवार
तेरे आने के अहसास से ही,
मन प्रफुल्लित हो गया था,
सोच के तेरा रूप सलौना,
आँखों में एक सपना सजा था,
इंतजार वो नौ माह का,
मैं ही जानूँ कैसे कटा था,
आने की तेरी खुशी में,
बादल दुखों का छँटा था,
तेरी किलकारी का स्वर,
साज संगीत सा लगा था,
सुनकर रूदन वो तेरा पहला,
कानों में रस सा घुला था,
तेरी किलकारी की बौछारों ने,
तपते मन को शीतल किया था,
भूल गई वो दर्द सारा,
खुशियों का तू बनी जरिया था,
लेकर गोद में तुझको,
मुझे सारा संसार मिला था,
महक गया था मेरा आँगन,
जब ये नन्हाँ फूल खिला था।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
13/7/19
शनिवार
#विषय-------किलकारी
#विधा--------मुक्तक
#दिनांक-----13/07/19
जिस घर में गूँजे ,बेटी की किलकारी ।
वो अँगना महके हरदम बन फुलवारी ।।
बिटिया तो होती है तुलसी-सी पावन ।
जग को बनाती है सदा ही संस्कारी ।।
आयी नन्हीं परी , उस पर जाऊँ वारी।
करती न्यौछावर ,हो जाऊँ बलिहारी ।।
पीड़ा हरे मेरी उसकी हर मुस्कान ।
बिटिया तुम्हीं ने मेरी दुनिया संँवारी ।।
#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन #धरा
#रायगढ़ छत्तीसगढ़
#विधा--------मुक्तक
#दिनांक-----13/07/19
जिस घर में गूँजे ,बेटी की किलकारी ।
वो अँगना महके हरदम बन फुलवारी ।।
बिटिया तो होती है तुलसी-सी पावन ।
जग को बनाती है सदा ही संस्कारी ।।
आयी नन्हीं परी , उस पर जाऊँ वारी।
करती न्यौछावर ,हो जाऊँ बलिहारी ।।
पीड़ा हरे मेरी उसकी हर मुस्कान ।
बिटिया तुम्हीं ने मेरी दुनिया संँवारी ।।
#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन #धरा
#रायगढ़ छत्तीसगढ़
नमन मंच
विषय-- शिशु /किलकारी
विधा---मुक्त
----------------------------------
करता है वो सपनों में भी
परियों से बाते
जब भी सोता खिलती तब भी
उसकी बांछे
मन ही मन मुस्काना है
नन्हा मुन्ना मेरा शिशु
हँसता -हँसता रोता है
जरा सी गुदगुदी कर दो तो
खिड़की खिड़ किलकारी भरता है
दादा -दादी, नाना -नानी
सबका राजदुलारा है
जब भी उनको सामने देखता
हाथ-पैर पटक कर किलकारी
वो भरता है
सच में नन्हा जादूगर है
रोतों को हँसाता है
कितना भी मन भारी हो
देख के उसकी भोली मुस्कान
खुद ब खुद किलकने लगता है।
डा. नीलम, अजमेर
विषय-- शिशु /किलकारी
विधा---मुक्त
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करता है वो सपनों में भी
परियों से बाते
जब भी सोता खिलती तब भी
उसकी बांछे
मन ही मन मुस्काना है
नन्हा मुन्ना मेरा शिशु
हँसता -हँसता रोता है
जरा सी गुदगुदी कर दो तो
खिड़की खिड़ किलकारी भरता है
दादा -दादी, नाना -नानी
सबका राजदुलारा है
जब भी उनको सामने देखता
हाथ-पैर पटक कर किलकारी
वो भरता है
सच में नन्हा जादूगर है
रोतों को हँसाता है
कितना भी मन भारी हो
देख के उसकी भोली मुस्कान
खुद ब खुद किलकने लगता है।
डा. नीलम, अजमेर
दि. - 13.07.19
विषय - #किलकारी
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
=======================
किलकारी बच्चों की मन को भाती है |
घर आँगन को ये ही तो महकाती है ||
सूना सूना लगता आलम बिन इसके,
घर में रौनक इससे ही तो आती है |
दूर सभी होते तनाव सुनकर इसको,
चेहरे पर मुस्कान इसे सुन आती है |
ये निर्मल निश्छल होती है सुखप्रद भी,
किलकारी दिल को सुकून दे जाती है |
सुनो सरस ये बात सही कहते हैं सब,
किलकारी ही घर को घर बनाती है |
========================
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
विषय - #किलकारी
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
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किलकारी बच्चों की मन को भाती है |
घर आँगन को ये ही तो महकाती है ||
सूना सूना लगता आलम बिन इसके,
घर में रौनक इससे ही तो आती है |
दूर सभी होते तनाव सुनकर इसको,
चेहरे पर मुस्कान इसे सुन आती है |
ये निर्मल निश्छल होती है सुखप्रद भी,
किलकारी दिल को सुकून दे जाती है |
सुनो सरस ये बात सही कहते हैं सब,
किलकारी ही घर को घर बनाती है |
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#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
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