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ब्लॉग संख्या :-451
18 जुलाई 2019,गुरुवार
तिमिरता तो विश्व व्याप्त है
आओ सब चिराग जलाओ।
भेदभाव की तोड़ो जंजीरें
मिल परस्पर गले लगाओ।
छल कपट दम्भ भरा दिल
मायावी जग में उलझे सब।
सद्कर्म ही पथ बने सहारा
ज्ञान चिराग सुलगालो अब।
भक्तिभाव ह्रदय में भरलो
परहित जीवन स्वयं बनाओ।
भूले भटके दीन दुःखियों को
कर चिराग ले राह दिखाओ।
जन्म मृत्यु मध्य जीवन यह
परमपिता का अर्चन करलें।
पुंज चिराग प्रज्ज्वलन कर
भक्ति भाव मानस में भरले।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-18/07/2019
विषय-चिराग
जलते हुए चिराग से पूछा, तू कौन है ?
प्रत्युत्तर में रहा शेष बाकी सब मौन है।।
दिल के फफोले जल उठे सीने की दाग से।
घर में ही लगी आग घर के चिराग से।।
गुल हुआ किसके हस्ती का चिराग।
किसके घर जला घृत का चिराग।।
क्यों गिरता पंखुड़ियों से पराग।
क्यों जलती चिराग की आग।।
नफरत के तम फिर भी न छँटते
अमीरों की दहलीजे सजती
गरीबों की चौखट खाली
कैसे खिल सकती है
खुशहाली की फुलवारी
कैसे मिल सकती है
वैभव की हरियाली
दीपक भी जा बैठे आज
बहु मंजिली इमारत पर
वहीं झिलमिलाती उनकी रोशनीयां
बिखर जायेगा एक दिन टूट कर
शीश महल का ख्वाब।।
किरणे तब चूभने लगेंगी
शीश महल को मिलेगा दर्द एक नायाब।।
कैसी अजब विडंबना
दीपक निकला इतना क्रूर।।
तिमिर जैसा घाव चिराग का
बन गया इतना नासूर।।
अधियारों के सामने
दिया खोलें पुर्नविजय के द्वार।।
दीया ही जगमग करें
हर दहलीजो का करे श्रृंगार।।
आज सजेगी दीयों की बारात।
तिमिर भूलेगा अपनी औकात।
सप्तरंग की लड़ियां सजेगी।
धूम-धड़ाके की होगी रात।
हर देहरी पर दीप जले।
अंधकार से युद्ध चले।
हारे अधियारे की घोर कालिमा।
जीते उजियारे की स्वर्ण लालिमा।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विषय-चिराग
जलते हुए चिराग से पूछा, तू कौन है ?
प्रत्युत्तर में रहा शेष बाकी सब मौन है।।
दिल के फफोले जल उठे सीने की दाग से।
घर में ही लगी आग घर के चिराग से।।
गुल हुआ किसके हस्ती का चिराग।
किसके घर जला घृत का चिराग।।
क्यों गिरता पंखुड़ियों से पराग।
क्यों जलती चिराग की आग।।
नफरत के तम फिर भी न छँटते
अमीरों की दहलीजे सजती
गरीबों की चौखट खाली
कैसे खिल सकती है
खुशहाली की फुलवारी
कैसे मिल सकती है
वैभव की हरियाली
दीपक भी जा बैठे आज
बहु मंजिली इमारत पर
वहीं झिलमिलाती उनकी रोशनीयां
बिखर जायेगा एक दिन टूट कर
शीश महल का ख्वाब।।
किरणे तब चूभने लगेंगी
शीश महल को मिलेगा दर्द एक नायाब।।
कैसी अजब विडंबना
दीपक निकला इतना क्रूर।।
तिमिर जैसा घाव चिराग का
बन गया इतना नासूर।।
अधियारों के सामने
दिया खोलें पुर्नविजय के द्वार।।
दीया ही जगमग करें
हर दहलीजो का करे श्रृंगार।।
आज सजेगी दीयों की बारात।
तिमिर भूलेगा अपनी औकात।
सप्तरंग की लड़ियां सजेगी।
धूम-धड़ाके की होगी रात।
हर देहरी पर दीप जले।
अंधकार से युद्ध चले।
हारे अधियारे की घोर कालिमा।
जीते उजियारे की स्वर्ण लालिमा।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
थम प्रस्तुति
चिराग को आदत है जलने की
आँधी तूफान में संभलने की ।।
फितरत है यह अपनी अपनी
रेत को आदत है फिसलने की ।।
काँटों को आदत है चुभने की
फूलों को आदत है मँहकने की ।।
आदतें सर्वविदित नही जातीं
क्या जरूरत रोने मचलने की ।।
शिकायतें छोड़ो न करो वक्त
बरबाद सोचो सदा चलने की ।।
चिराग को धैर्य है ''शिवम उसे
खबर है सूरज के निकलने की ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/07/20193..
चिराग को आदत है जलने की
आँधी तूफान में संभलने की ।।
फितरत है यह अपनी अपनी
रेत को आदत है फिसलने की ।।
काँटों को आदत है चुभने की
फूलों को आदत है मँहकने की ।।
आदतें सर्वविदित नही जातीं
क्या जरूरत रोने मचलने की ।।
शिकायतें छोड़ो न करो वक्त
बरबाद सोचो सदा चलने की ।।
चिराग को धैर्य है ''शिवम उसे
खबर है सूरज के निकलने की ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/07/20193..
Meenakumari Shukla नमन भावों के मोती मंच
शीर्षक चिराग
दिनांक 18/07/19
×××××××××××××××
जब मन का चिराग जलता हो।
अपना सा कोई लगता हो।
तब तुम बसना दिल के अंदर,
जब मन प्रेम सुधा सजता हो।।
नयनों सपना सा जगता हो।
ख्वाबों में कोई हंसता हो।
तब तुम रहना नयन समंदर,
जब नयन से प्रेम छलकता हो।।
जब मन प्रेम को मचलता हो।
संग तुम्हारे लरजता हो।
रहना तुम साथ मेरे, जब दिल
तुम्हारे लिये धड़कता हो।।
नयन से नयन जब मिलते हो।
दिल से जज्बात निकलते हो।
दिल को अपने संभालना तुम,
जब हमसे नहीं संभलते हो।।
आधी सी रहूंगी मैं तुम में।
आधे से रहना तुम मुझ में।
दुनियाँ देखे समझ न पाये,
कौन बसा है कितना किस में।।
स्वरचित
मीनू "रागिनी
18/07/19
शीर्षक चिराग
दिनांक 18/07/19
×××××××××××××××
जब मन का चिराग जलता हो।
अपना सा कोई लगता हो।
तब तुम बसना दिल के अंदर,
जब मन प्रेम सुधा सजता हो।।
नयनों सपना सा जगता हो।
ख्वाबों में कोई हंसता हो।
तब तुम रहना नयन समंदर,
जब नयन से प्रेम छलकता हो।।
जब मन प्रेम को मचलता हो।
संग तुम्हारे लरजता हो।
रहना तुम साथ मेरे, जब दिल
तुम्हारे लिये धड़कता हो।।
नयन से नयन जब मिलते हो।
दिल से जज्बात निकलते हो।
दिल को अपने संभालना तुम,
जब हमसे नहीं संभलते हो।।
आधी सी रहूंगी मैं तुम में।
आधे से रहना तुम मुझ में।
दुनियाँ देखे समझ न पाये,
कौन बसा है कितना किस में।।
स्वरचित
मीनू "रागिनी
18/07/19
शीर्षक चिराग
दिनांक 18/07/19
×××××××××××××××
जब मन का चिराग जलता हो।
अपना सा कोई लगता हो।
तब तुम बसना दिल के अंदर,
जब मन प्रेम सुधा सजता हो।।
नयनों सपना सा जगता हो।
ख्वाबों में कोई हंसता हो।
तब तुम रहना नयन समंदर,
जब नयन से प्रेम छलकता हो।।
जब मन प्रेम को मचलता हो।
संग तुम्हारे लरजता हो।
रहना तुम साथ मेरे, जब दिल
तुम्हारे लिये धड़कता हो।।
नयन से नयन जब मिलते हो।
दिल से जज्बात निकलते हो।
दिल को अपने संभालना तुम,
जब हमसे नहीं संभलते हो।।
आधी सी रहूंगी मैं तुम में।
आधे से रहना तुम मुझ में।
दुनियाँ देखे समझ न पाये,
कौन बसा है कितना किस में।।
स्वरचित
मीनू "रागिनी
18/07/19
शीर्षक चिराग
दिनांक 18/07/19
×××××××××××××××
जब मन का चिराग जलता हो।
अपना सा कोई लगता हो।
तब तुम बसना दिल के अंदर,
जब मन प्रेम सुधा सजता हो।।
नयनों सपना सा जगता हो।
ख्वाबों में कोई हंसता हो।
तब तुम रहना नयन समंदर,
जब नयन से प्रेम छलकता हो।।
जब मन प्रेम को मचलता हो।
संग तुम्हारे लरजता हो।
रहना तुम साथ मेरे, जब दिल
तुम्हारे लिये धड़कता हो।।
नयन से नयन जब मिलते हो।
दिल से जज्बात निकलते हो।
दिल को अपने संभालना तुम,
जब हमसे नहीं संभलते हो।।
आधी सी रहूंगी मैं तुम में।
आधे से रहना तुम मुझ में।
दुनियाँ देखे समझ न पाये,
कौन बसा है कितना किस में।।
स्वरचित
मीनू "रागिनी
18/07/19
सुना हैं कहानी में,
पढ़ा हैं किताब में ।
होता था एक चिराग ।
मालिक उसका अल्लादीन ।
जीसके पास वह होता ।
वह होता भाग्यनेता ।
जो काम किसे न अाता ।
वह चुटकी में कर देता ।
सब उसके गुण गाता ।
अब वह अल्लादीन ।
बन गया खुद दीन ।
क्योंकि,
चिराग बन गया नेता ।
जो हैं,
अब भाग्यविधाता ।
सब ग्यान का ज्ञाता ।
अब जो देता नेता,
दीन अल्लादीन,
हीन होकर लेता ।
झुकी नज़रों से करता,
याद वह दिन ।
मैं भी था कभी अल्लादीन ।
X प्रदीप सहारे
पढ़ा हैं किताब में ।
होता था एक चिराग ।
मालिक उसका अल्लादीन ।
जीसके पास वह होता ।
वह होता भाग्यनेता ।
जो काम किसे न अाता ।
वह चुटकी में कर देता ।
सब उसके गुण गाता ।
अब वह अल्लादीन ।
बन गया खुद दीन ।
क्योंकि,
चिराग बन गया नेता ।
जो हैं,
अब भाग्यविधाता ।
सब ग्यान का ज्ञाता ।
अब जो देता नेता,
दीन अल्लादीन,
हीन होकर लेता ।
झुकी नज़रों से करता,
याद वह दिन ।
मैं भी था कभी अल्लादीन ।
X प्रदीप सहारे
विषय- चिराग
विधा- मुक्तछंद कविता
💐💐💐💐💐💐
जब
जलता है
पेट
भूख से
तो...
चिरागों की
रौशनी
बेकार लगती है
चिराग सभी
बुझा देने चाहिए
अब, क्योंकि......
जलता है
मन...
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
विधा- मुक्तछंद कविता
💐💐💐💐💐💐
जब
जलता है
पेट
भूख से
तो...
चिरागों की
रौशनी
बेकार लगती है
चिराग सभी
बुझा देने चाहिए
अब, क्योंकि......
जलता है
मन...
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
दिनांक--18-7-19
विधा --दोहे
1.
अंधेरा चिराग तले,सभी जानते लोग।
गुणों बीच जब दोष हो,लगे न अच्छा योग।।
2.
साथ नेह व चिराग का,हो बाती का संग।
घर बाहर उजियार से,अंधकार बदरंग।।
3.
जलकर चिराग रात भर, दूर करे अँधियार।
जन हित का उत्सव बने, ऐसा हो किरदार ।।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विधा --दोहे
1.
अंधेरा चिराग तले,सभी जानते लोग।
गुणों बीच जब दोष हो,लगे न अच्छा योग।।
2.
साथ नेह व चिराग का,हो बाती का संग।
घर बाहर उजियार से,अंधकार बदरंग।।
3.
जलकर चिराग रात भर, दूर करे अँधियार।
जन हित का उत्सव बने, ऐसा हो किरदार ।।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय =चिराग
विधा=हाइकु
🚥🚥🚥
करे प्रकाश
होता वह चिराग
जिसमें आग
स्वर्ण अक्षर
रचेगा इतिहास
मेरा चिराग
बुझे चिराग
कोचिंग लगी आग
हुवे अनाथ
घर के द्वार
प्रकाशित चिराग
शुभ दिवाली
कई चिराग
रोशनी से आबाद
नेत्र का केम्प
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
18/07/2019
विधा=हाइकु
🚥🚥🚥
करे प्रकाश
होता वह चिराग
जिसमें आग
स्वर्ण अक्षर
रचेगा इतिहास
मेरा चिराग
बुझे चिराग
कोचिंग लगी आग
हुवे अनाथ
घर के द्वार
प्रकाशित चिराग
शुभ दिवाली
कई चिराग
रोशनी से आबाद
नेत्र का केम्प
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
18/07/2019
🌿🌹🌿🌹🌿
मत मायूस हो जाना इतना गम के अंधेरों से
खुश होने को उम्मीद का चिराग ही काफी है...
अंधेरे को कोसने से वो दूर नहीं होगा
उसे भगाने को एक जलता चिराग ही काफी है...
हमें तो फ़क़त रोशनी से मतलब है यारो
मकसद पूरा करने को एक चिराग ही काफी है...
ये नाउम्मीदी क्यों,बिला वजह का वहम क्यों
तेरे परवरिश की मिसाल ,घर का चिराग ही काफी है...
माज़ी के साये में घिर के मुस्तक़बिल क्यों बर्बाद करते हो
एक आज ही अपना है बस इतना समझना ही काफी है...
आफ़ताब तो नियम कायदे से मजबूर है
रातें रोशन करने को एक अदना सा चिराग काफी है...
मन के मेले को रोशन करना है जो 'वन्दू'
तो सिर्फ अपने मन के वुजूद का चिराग ही काफी है...
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
मत मायूस हो जाना इतना गम के अंधेरों से
खुश होने को उम्मीद का चिराग ही काफी है...
अंधेरे को कोसने से वो दूर नहीं होगा
उसे भगाने को एक जलता चिराग ही काफी है...
हमें तो फ़क़त रोशनी से मतलब है यारो
मकसद पूरा करने को एक चिराग ही काफी है...
ये नाउम्मीदी क्यों,बिला वजह का वहम क्यों
तेरे परवरिश की मिसाल ,घर का चिराग ही काफी है...
माज़ी के साये में घिर के मुस्तक़बिल क्यों बर्बाद करते हो
एक आज ही अपना है बस इतना समझना ही काफी है...
आफ़ताब तो नियम कायदे से मजबूर है
रातें रोशन करने को एक अदना सा चिराग काफी है...
मन के मेले को रोशन करना है जो 'वन्दू'
तो सिर्फ अपने मन के वुजूद का चिराग ही काफी है...
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
18/7/2019/गुरूवार
************************************
शुभ मध्याह्न , सभी गुणीजन🙏🌹
भावों के मोती
मंच को सादर नमन🙏🌹
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 18.7.2019
दिन वीरवार
विषय चिराग़
रचयिता पूनम गोयल
संध्या वेला हो गयी
कोई अन्धेरे घर में
चिराग़ जला दो ।
एवं उसकी रोशनी से
अंधकार को
दूर भगा दो ।।
इस चिराग़ के जैसा
इस घर का भी
एक चिराग़ है ।
उसे देकर अच्छे संस्कार
एक बेहतर इंसान बना दो ।
ताकि चमके उसकी रोशनी से
यह घर-परिवार , समाज
देश व संसार सारा ।
और उज्जवल हो नाम सबका
करे सम्पूर्ण जग उजियारा ।।
जब हो घना अँधेरा
तो पर्याप्त है
रोशनी एक चिराग़ की ।
इसी तरह पूरे विश्व
की उन्नति हेतु
आवश्यकता है
एक संस्कारी व्यक्ति की ।।
सो चिराग़ बनके चलो तुम
रोशनी बाँटते चलो तुम ।
सर्वत्र फैलाकर अपने गुणों की महक
अपना नाम रोशन
करो तुम ।।
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