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ब्लॉग संख्या :-452
दिनांक- 18/7/2019
शीर्षक- "भाषा"
*************
दुनियां में बहुत हैं भाषा,
अपनी तो भाषा है हिन्दी,
संस्कृत है जननी इसकी,
माँ भारती के माथे की बिंदी |
बड़ी सरल हैं हिन्दी भाषा,
ये हमारे जीवन की आशा,
शान इसकी बढ़ाते जाना,
बोले हिन्दी सारा जमाना |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- "भाषा"
*************
दुनियां में बहुत हैं भाषा,
अपनी तो भाषा है हिन्दी,
संस्कृत है जननी इसकी,
माँ भारती के माथे की बिंदी |
बड़ी सरल हैं हिन्दी भाषा,
ये हमारे जीवन की आशा,
शान इसकी बढ़ाते जाना,
बोले हिन्दी सारा जमाना |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
विषय - भाषा
भाषा संस्कारों का करती वंदन
भाषा से हम करते अभिवादन
भाषा से होता गुणों का संवर्धन
सुभाषी बनकर करेंगे अभिनंदन ।
भाषा भावों का सुंदर गान
भाषा से बढ़ता जग में मान
जग के मान का बढ़ाएँ सम्मान
सुभाषी बनकर करेंगे जयगान ।
भाषा भावों की सात्विक रीत
भावों को होती भाषा से प्रीत
भाषा में निहित रसीला संगीत
सुभाषी बनकर गाएँगे सुरीला गीत ।
भाषा होती है व्यवहार साधना
इसकी साधना सुखद कामना
सदाचार की एक मनोकामना
सुभाषी बनकर करेंगे आराधना ।
भाषा है सभी रसों की खान
शब्दों की रचना बड़ी ऊर्जावान
भाषा में बसता प्रेरणा-ज़हान
सुभाषी बनकर चलाएँगे अभियान।
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
मौलिक एवं स्वरचित
भाषा संस्कारों का करती वंदन
भाषा से हम करते अभिवादन
भाषा से होता गुणों का संवर्धन
सुभाषी बनकर करेंगे अभिनंदन ।
भाषा भावों का सुंदर गान
भाषा से बढ़ता जग में मान
जग के मान का बढ़ाएँ सम्मान
सुभाषी बनकर करेंगे जयगान ।
भाषा भावों की सात्विक रीत
भावों को होती भाषा से प्रीत
भाषा में निहित रसीला संगीत
सुभाषी बनकर गाएँगे सुरीला गीत ।
भाषा होती है व्यवहार साधना
इसकी साधना सुखद कामना
सदाचार की एक मनोकामना
सुभाषी बनकर करेंगे आराधना ।
भाषा है सभी रसों की खान
शब्दों की रचना बड़ी ऊर्जावान
भाषा में बसता प्रेरणा-ज़हान
सुभाषी बनकर चलाएँगे अभियान।
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
मौलिक एवं स्वरचित
विधा लघुकविता
19 जुलाई 2019 ,शुक्रवार
भाषा अद्भुत चमत्कार है
मानव को मिलता आकार।
सदभाषा से बढ़ता आगे
करता नित स्वप्न साकार ।
अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा
करती पूर्ण मानस की आशा।
मधुर सत्य विश्वासमयी भाषा
नहीं आती फिर कभी निराशा।
भाषा मानव की पहिचान है
आन मान रसना की शान है।
सोचो समझो शब्द निकालो
बढ़ता सदा मान सम्मान है।
सुधामयी मधुरम हो भाषा
जीवन में विश्वास दिलाती।
भक्ति की शक्ति बल से ही
गुण मानव देवत्व सजाती।
19 जुलाई 2019 ,शुक्रवार
भाषा अद्भुत चमत्कार है
मानव को मिलता आकार।
सदभाषा से बढ़ता आगे
करता नित स्वप्न साकार ।
अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा
करती पूर्ण मानस की आशा।
मधुर सत्य विश्वासमयी भाषा
नहीं आती फिर कभी निराशा।
भाषा मानव की पहिचान है
आन मान रसना की शान है।
सोचो समझो शब्द निकालो
बढ़ता सदा मान सम्मान है।
सुधामयी मधुरम हो भाषा
जीवन में विश्वास दिलाती।
भक्ति की शक्ति बल से ही
गुण मानव देवत्व सजाती।
प्रथम प्रस्तुति
एक भाषा हमें जन्म से मिलती है
उस के प्रति हमारा कुछ उसूल है ।।
अपनी मातृ भाषा की उपेक्षा या
उसको भूलना सबसे बड़ी भूल है ।।
क्यों नही करता हर भारतवासी
यह बड़ी से बड़ी भूल कुबूल है ।।
हमें अपनी भाषा पर गर्व होना
चाहिये यह धरोहर रूपी फूल है ।।
जो आज मुरझा रहा है 'शिवम'
कर रहे हम उसे नष्ट समूल है ।।
मनाने को मनायें हिन्दी दिवस
मगर यह दिखावा है फिजूल है ।।
अंकुश अनिवार्य उस सोच पर जो
निज भाषा संस्कृति के प्रतिकूल है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/07/2019
एक भाषा हमें जन्म से मिलती है
उस के प्रति हमारा कुछ उसूल है ।।
अपनी मातृ भाषा की उपेक्षा या
उसको भूलना सबसे बड़ी भूल है ।।
क्यों नही करता हर भारतवासी
यह बड़ी से बड़ी भूल कुबूल है ।।
हमें अपनी भाषा पर गर्व होना
चाहिये यह धरोहर रूपी फूल है ।।
जो आज मुरझा रहा है 'शिवम'
कर रहे हम उसे नष्ट समूल है ।।
मनाने को मनायें हिन्दी दिवस
मगर यह दिखावा है फिजूल है ।।
अंकुश अनिवार्य उस सोच पर जो
निज भाषा संस्कृति के प्रतिकूल है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/07/2019
भाषा
सहज सरल,
संवाद का माध्यम ।
एक एक शब्द संगम ।
विविधता से भरी ।
लेकिन खरी ।
होती हमारी भाषा ।
हमारी भाषा,
दूजा समझे,
होती हमारी अाशा ।
ना समझे,
तो होती थोडी निराशा ।
कोशिश होती,
बात समझाने की ।
जो होती ईशारों की भाषा ।
भाषा में ना होता,
कोई छल,ना कपट ।
जुबा पर अाते ही,
बोलते होठो से ,
समझने वाला,
समझता दिल से ।
जल,चराचर,निशाचर ।
सबको समझना आसान ।
भाषा ही हैं,
जीवन की शान ।
अगर यह भाषा ना होती ।
सारी सभ्यता,
गूंगी हो जाती ।
ना हम किसी से ,
कुछ कहते,ना सुनते ।
बस् जड़वत बनते ।
भाषा ही हैं,
जीवन की शान ।
करों उसका सम्मान ।
✍प्रदीप सहारे
सहज सरल,
संवाद का माध्यम ।
एक एक शब्द संगम ।
विविधता से भरी ।
लेकिन खरी ।
होती हमारी भाषा ।
हमारी भाषा,
दूजा समझे,
होती हमारी अाशा ।
ना समझे,
तो होती थोडी निराशा ।
कोशिश होती,
बात समझाने की ।
जो होती ईशारों की भाषा ।
भाषा में ना होता,
कोई छल,ना कपट ।
जुबा पर अाते ही,
बोलते होठो से ,
समझने वाला,
समझता दिल से ।
जल,चराचर,निशाचर ।
सबको समझना आसान ।
भाषा ही हैं,
जीवन की शान ।
अगर यह भाषा ना होती ।
सारी सभ्यता,
गूंगी हो जाती ।
ना हम किसी से ,
कुछ कहते,ना सुनते ।
बस् जड़वत बनते ।
भाषा ही हैं,
जीवन की शान ।
करों उसका सम्मान ।
✍प्रदीप सहारे
नमन
19/7/19
विषय- भाषा
विधा-हाइकु
-----------------
1)
भाषा की डोरी
कल्पना के पतंग
नभ में उड़ी।।
2)
मन के द्वार
भावना है अमूर्त
भाषा से मूर्त ।।
3)
हिन्द की भाषा
सशक्त है सहारा
कवि की आशा ।।
4)
भाषा वो कड़ी
मन हीय को जोड़ी
जड़ता तोड़ी ।।
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद, छ0ग0
19/7/19
विषय- भाषा
विधा-हाइकु
-----------------
1)
भाषा की डोरी
कल्पना के पतंग
नभ में उड़ी।।
2)
मन के द्वार
भावना है अमूर्त
भाषा से मूर्त ।।
3)
हिन्द की भाषा
सशक्त है सहारा
कवि की आशा ।।
4)
भाषा वो कड़ी
मन हीय को जोड़ी
जड़ता तोड़ी ।।
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद, छ0ग0
सादर मंच को समर्पित --
🌹 प्रेम की भाषा प्यारी -- हिन्दी 🌹
********************************
🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀
इस संसार में एक दूसरे से व्यवहार , बातचीत की मूल कड़ी हमारी भाषा है । सृष्टि में श्रेष्ठ गुणवान मानव में सोचने , समझने और मन में प्रकटित भाव को दूसरों को व्यक्त करने के लिए एकमात्र साधन भाषा ही है । विभिन्न ध्वनि बोध और उस आधार पर वर्ण , शब्द निर्माण व आवाज द्वारा सम्प्रेषण की प्रक्रिया ही भाषा को सशक्त बनाती है ।
हमारी प्राचीन मूल भाषा संस्कृत से हिन्दी का उद्गगम और विकास क्रमशः प्राचीन से लौकिक, फिर पाली , नागर अपभ्रंश से पश्चिमी व पूर्वी हिन्दी से अब वर्तमान हिन्दी लगभग12वीं शती से शनैः-शनैः अब तक इन युगों में धर्म काल , यथा बल्लभ संप्रदाय ,अष्टछाप के सूरदास, सतयुगी हिन्दी कविता में तुलसीदास, केशवदास के बाद आधुनिक हिन्दी के विकास में राजा ललक्ष्मण सिंह,भारतेन्दु हरीश चन्द , महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिओध , मैथिली शरण गुप्त ,सुमित्रा नन्दन पंत , राम धारी सिंह दिनकर , जय शंकर प्रसाद , महादेवी वर्मा आदि अनेकों हिन्दी साहित्य पुरोधाओं ने हिन्दी को अनवरत सुधार , निखार व शिल्पगत सौंदर्य प्रदान कर परमार्जित व पल्लवित किया है ।
हिन्दी के सुधार की प्रक्रिया में उच्चारण व शब्दों के सुधार, अपभ्रंश से तत्सम शब्द तक व्याकरण के सटीक नियमों व बदलती सामाजिक परम्पराओं ,व्यवस्था के अनुरूप सांस्कृतिक चेतना व जागरण हेतु 'वसुधैव कुटुम्भकम ' योगदान करती हुई यह पुनीत भाषा विश्व भर में , सशक्त भाषा की श्रेणी में उचित स्थान पाती हुई व्यापक शब्दकोश ,नवीन विशाल शब्द भण्डार तथा सशक्त व्याकरण के कारण ही धर्म शास्त्र ,नीति शास्त्र ,सनातनी वेद
शास्त्रों , ग्रंथों के संस्कृत से अनुवाद , नये साहित्यिक व सामाजिक चेतना हेतु शास्त्रों, शिक्षा व शोध के क्षेत्र में नवीन पाठ्यक्रमों, शासकीय अभिलेखों , अपितु न्यायालय की प्रक्रिया तक में बेहतर रूप से चलन में आने का गौरव हमारी हिन्दी ने अर्जित किया है । नवीन वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा में भी आधुनिक परिमार्जित हिन्दी ने सशक्त शब्दकोष से अपनी सहज पहचान बना कर अँग्रेजी भाषा का मिथक तोड़ने में सफल भूमिका निभाई है ।
हिन्दी भाषा का वर्तमान स्वरूप वर्ण ,शब्दों के व्यवस्थित समूह को " देव नागरी वर्णमाला " कहा जाता है
जो ध्वनि आधारित शुद्ध उच्चारण ,स्वर - व्यंजन भेद से अनुस्वार ,विराम चिन्ह ,योजकों से व्याकरण की श्रेष्ठता
प्रदान करता है । इसी क्रम में मुहावरों ,रस , अलंकार , छंद विधान व अन्य भाषायी सौंदर्य से निखर कर हिन्दी कम्प्यूटर ग्राही व आधुनिक आवश्यकता हेतु सहज व सुलभ हो चुकी है । हम प्रणियों में सदियों से चली आ रही कोमल हृदय में उपजी भाव सँजोती प्रणय बाँसुरी की झनकार के आदान-प्रदान का सहज सुलभ माध्यम हम हिन्द देश की जीवन पद्धिति व साँसों में बसी हमारी मातृभाषा -प्रेम की प्यारी भाषा - हिन्दी ही है जो राष्ट्र भाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता प्राप्त करने की अधिकारिणी है ,जिसके लिये हम को सहृदय प्रयास करना चाहिए । निम्न पक्तियाँ इस संदर्भ में सटीक बैठती हैं --
हम भूल रहे अंधानुकरण में ,
पहचान हम सब की हिन्दी है ।
माध्यम सशक्त, व्याकरण विशुद्ध,
अभिव्यिक्त की जान हिन्दी है ।
हो रहे विदेशी स्वयं आकर्षित ,
पा रहे ज्ञान सहज हिन्दी से --
गौरव इतिहास पुरातन से अब
साहित्य सुधा शुद्ध हिन्दी है ।।
🌹🌻🌺🌸🍀🌹
🌴🍋**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
🌹 प्रेम की भाषा प्यारी -- हिन्दी 🌹
********************************
🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀🌻🍀
इस संसार में एक दूसरे से व्यवहार , बातचीत की मूल कड़ी हमारी भाषा है । सृष्टि में श्रेष्ठ गुणवान मानव में सोचने , समझने और मन में प्रकटित भाव को दूसरों को व्यक्त करने के लिए एकमात्र साधन भाषा ही है । विभिन्न ध्वनि बोध और उस आधार पर वर्ण , शब्द निर्माण व आवाज द्वारा सम्प्रेषण की प्रक्रिया ही भाषा को सशक्त बनाती है ।
हमारी प्राचीन मूल भाषा संस्कृत से हिन्दी का उद्गगम और विकास क्रमशः प्राचीन से लौकिक, फिर पाली , नागर अपभ्रंश से पश्चिमी व पूर्वी हिन्दी से अब वर्तमान हिन्दी लगभग12वीं शती से शनैः-शनैः अब तक इन युगों में धर्म काल , यथा बल्लभ संप्रदाय ,अष्टछाप के सूरदास, सतयुगी हिन्दी कविता में तुलसीदास, केशवदास के बाद आधुनिक हिन्दी के विकास में राजा ललक्ष्मण सिंह,भारतेन्दु हरीश चन्द , महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिओध , मैथिली शरण गुप्त ,सुमित्रा नन्दन पंत , राम धारी सिंह दिनकर , जय शंकर प्रसाद , महादेवी वर्मा आदि अनेकों हिन्दी साहित्य पुरोधाओं ने हिन्दी को अनवरत सुधार , निखार व शिल्पगत सौंदर्य प्रदान कर परमार्जित व पल्लवित किया है ।
हिन्दी के सुधार की प्रक्रिया में उच्चारण व शब्दों के सुधार, अपभ्रंश से तत्सम शब्द तक व्याकरण के सटीक नियमों व बदलती सामाजिक परम्पराओं ,व्यवस्था के अनुरूप सांस्कृतिक चेतना व जागरण हेतु 'वसुधैव कुटुम्भकम ' योगदान करती हुई यह पुनीत भाषा विश्व भर में , सशक्त भाषा की श्रेणी में उचित स्थान पाती हुई व्यापक शब्दकोश ,नवीन विशाल शब्द भण्डार तथा सशक्त व्याकरण के कारण ही धर्म शास्त्र ,नीति शास्त्र ,सनातनी वेद
शास्त्रों , ग्रंथों के संस्कृत से अनुवाद , नये साहित्यिक व सामाजिक चेतना हेतु शास्त्रों, शिक्षा व शोध के क्षेत्र में नवीन पाठ्यक्रमों, शासकीय अभिलेखों , अपितु न्यायालय की प्रक्रिया तक में बेहतर रूप से चलन में आने का गौरव हमारी हिन्दी ने अर्जित किया है । नवीन वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा में भी आधुनिक परिमार्जित हिन्दी ने सशक्त शब्दकोष से अपनी सहज पहचान बना कर अँग्रेजी भाषा का मिथक तोड़ने में सफल भूमिका निभाई है ।
हिन्दी भाषा का वर्तमान स्वरूप वर्ण ,शब्दों के व्यवस्थित समूह को " देव नागरी वर्णमाला " कहा जाता है
जो ध्वनि आधारित शुद्ध उच्चारण ,स्वर - व्यंजन भेद से अनुस्वार ,विराम चिन्ह ,योजकों से व्याकरण की श्रेष्ठता
प्रदान करता है । इसी क्रम में मुहावरों ,रस , अलंकार , छंद विधान व अन्य भाषायी सौंदर्य से निखर कर हिन्दी कम्प्यूटर ग्राही व आधुनिक आवश्यकता हेतु सहज व सुलभ हो चुकी है । हम प्रणियों में सदियों से चली आ रही कोमल हृदय में उपजी भाव सँजोती प्रणय बाँसुरी की झनकार के आदान-प्रदान का सहज सुलभ माध्यम हम हिन्द देश की जीवन पद्धिति व साँसों में बसी हमारी मातृभाषा -प्रेम की प्यारी भाषा - हिन्दी ही है जो राष्ट्र भाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता प्राप्त करने की अधिकारिणी है ,जिसके लिये हम को सहृदय प्रयास करना चाहिए । निम्न पक्तियाँ इस संदर्भ में सटीक बैठती हैं --
हम भूल रहे अंधानुकरण में ,
पहचान हम सब की हिन्दी है ।
माध्यम सशक्त, व्याकरण विशुद्ध,
अभिव्यिक्त की जान हिन्दी है ।
हो रहे विदेशी स्वयं आकर्षित ,
पा रहे ज्ञान सहज हिन्दी से --
गौरव इतिहास पुरातन से अब
साहित्य सुधा शुद्ध हिन्दी है ।।
🌹🌻🌺🌸🍀🌹
🌴🍋**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
बिषय भाषा
भारत में बिभिन्नताओं का समावेश
पृथक पृथक परिधान परिवेश
भाषा में भले ही विपरीत प्रतिकूलता
पर इशारों बिचारों में पाई जाते अनुकूलता
हावभाव समझाते भाषा की मिठास
नाराजगी हो या हास परिहास
सामंजस्य स्थापित कर लेते परस्पर
इशारों का अनुसरण करते हैं अक्सर
एक भाषा वह जो माधुर्य रस घोलती
शब्दों को मन के तराजू में तौलती
सुनते ही हृदय शीतल हो जाता
वही कटुभाषा से तीर सा चुभ जाता
दुनिया में भाषा का ही मोल
इसलिए तो कहते
तोल मोल के बोल
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
भारत में बिभिन्नताओं का समावेश
पृथक पृथक परिधान परिवेश
भाषा में भले ही विपरीत प्रतिकूलता
पर इशारों बिचारों में पाई जाते अनुकूलता
हावभाव समझाते भाषा की मिठास
नाराजगी हो या हास परिहास
सामंजस्य स्थापित कर लेते परस्पर
इशारों का अनुसरण करते हैं अक्सर
एक भाषा वह जो माधुर्य रस घोलती
शब्दों को मन के तराजू में तौलती
सुनते ही हृदय शीतल हो जाता
वही कटुभाषा से तीर सा चुभ जाता
दुनिया में भाषा का ही मोल
इसलिए तो कहते
तोल मोल के बोल
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
नमन-भावो के मोती
दिनांक-19/07/2029
विषय-भाषा
मीठी बोली अद्भुत वाणी
यह है प्रेम पिपासा।
भाषा ही उत्थान की जिज्ञासा
राष्ट्र की स्वर्णिम आशा।।
राष्ट्रभाषा है अनमोल
नहीं है आज तक कोई इसका तौल।।
भाषा है माथे की बिंदिया
राष्ट्र प्राण की अमूल्य नीधियां।।
भाषा की भी होती है एक सीमा
दर्द कलम की जब कराहती।
स्वर गले का रूद्ध हो जाता
मेरा इतना क्यों धीमा।।
मन पे चली जब घनघोर हवाएं
भाषा के श्रृंगार से।
प्रवासी स्वर बुला रहे
सात समुंदर पार से।।
मन के कोरे कागज पर
जब चली लेखनी विचारों की।
मन से ही क्यों पूछ रहे हो
दर्द कलम के उद्गारो की।।
प्रगति पथ पर देश चला
भाषा है स्तब्ध।
मृदुल प्रकाश के इंदु में
भाषा ही है प्रारब्ध।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
दिनांक-19/07/2029
विषय-भाषा
मीठी बोली अद्भुत वाणी
यह है प्रेम पिपासा।
भाषा ही उत्थान की जिज्ञासा
राष्ट्र की स्वर्णिम आशा।।
राष्ट्रभाषा है अनमोल
नहीं है आज तक कोई इसका तौल।।
भाषा है माथे की बिंदिया
राष्ट्र प्राण की अमूल्य नीधियां।।
भाषा की भी होती है एक सीमा
दर्द कलम की जब कराहती।
स्वर गले का रूद्ध हो जाता
मेरा इतना क्यों धीमा।।
मन पे चली जब घनघोर हवाएं
भाषा के श्रृंगार से।
प्रवासी स्वर बुला रहे
सात समुंदर पार से।।
मन के कोरे कागज पर
जब चली लेखनी विचारों की।
मन से ही क्यों पूछ रहे हो
दर्द कलम के उद्गारो की।।
प्रगति पथ पर देश चला
भाषा है स्तब्ध।
मृदुल प्रकाश के इंदु में
भाषा ही है प्रारब्ध।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
🙏नमन मंच🙏
19/7/2019
विषय -भाषा
**************
हमारे नैनों की भाषा तुम समझ न पाते हो
प्यार की भाषा को भी तुम ठुकराते हो
संकेत की भाषा की अनदेखी कर जाते हो
आखिर अपनी बात
तुम्हें हम किस भाषा में समझाएं...?
एक तुम हो जो अभद्र,अश्लील भाषा का
प्रयोग दिन ब दिन किये जाते हो
हमारी सहनशीलता का नाज़ायज़ फायदा उठाये चले जाते हो
आखिर अपनी बात
तुम्हें हम किस भाषा में समझाएं..?
अब तक हम ही समझौते करते आए हैं
क्यों तुम्हें समझ न आता है कि हम एक माँ के जाए हैं
माना,, अब हम अलग हुए हैं एक दूजे के पड़ोसी हुए हैं
क्यों तुम नफरत की खाई को और बढ़ाते जाते हो
आखिर अपनी बात
तुम्हें हम किस भाषा में समझाएं..?
जैसे हम भाई भाई थे पहले
हिंदी-उर्दू भाषा के रंग हैं रुपहले
कितनी मीठी ज़ुबान है उर्दू,फ़ारसी,अरबी की
नम्रता से ओतप्रोत सरल सहज प्रकृति है भाषा हिंदी की
इससे अधिक स्पष्ट भाषा में
आखिर कैसे अपनी बात तुम्हें समझाएं..?
सब्र का बांध टूटने लगा है अब
कठोर लहज़े को अपनाना होगा हमें अब
हम हैं हिन्द देश के वासी
कहलाए जाते हैं मृदु भाषी
पर देश की आन पर जब बन आती,, तो
चीर के रख देंगे दुश्मन की छाती को
तो लो अब तुम्हारी ही भाषा में
अब तुमको हम समझाएं...!!
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
19/7/2019
विषय -भाषा
**************
हमारे नैनों की भाषा तुम समझ न पाते हो
प्यार की भाषा को भी तुम ठुकराते हो
संकेत की भाषा की अनदेखी कर जाते हो
आखिर अपनी बात
तुम्हें हम किस भाषा में समझाएं...?
एक तुम हो जो अभद्र,अश्लील भाषा का
प्रयोग दिन ब दिन किये जाते हो
हमारी सहनशीलता का नाज़ायज़ फायदा उठाये चले जाते हो
आखिर अपनी बात
तुम्हें हम किस भाषा में समझाएं..?
अब तक हम ही समझौते करते आए हैं
क्यों तुम्हें समझ न आता है कि हम एक माँ के जाए हैं
माना,, अब हम अलग हुए हैं एक दूजे के पड़ोसी हुए हैं
क्यों तुम नफरत की खाई को और बढ़ाते जाते हो
आखिर अपनी बात
तुम्हें हम किस भाषा में समझाएं..?
जैसे हम भाई भाई थे पहले
हिंदी-उर्दू भाषा के रंग हैं रुपहले
कितनी मीठी ज़ुबान है उर्दू,फ़ारसी,अरबी की
नम्रता से ओतप्रोत सरल सहज प्रकृति है भाषा हिंदी की
इससे अधिक स्पष्ट भाषा में
आखिर कैसे अपनी बात तुम्हें समझाएं..?
सब्र का बांध टूटने लगा है अब
कठोर लहज़े को अपनाना होगा हमें अब
हम हैं हिन्द देश के वासी
कहलाए जाते हैं मृदु भाषी
पर देश की आन पर जब बन आती,, तो
चीर के रख देंगे दुश्मन की छाती को
तो लो अब तुम्हारी ही भाषा में
अब तुमको हम समझाएं...!!
-वंदना सोलंकी©️स्वरचित
दिनांक :- 19/07/2019
शीर्षक :- भाषा
भाषा है संवाहक भावों की...
भाषा है परिचायक संस्कारों की...
भाषा प्रतिपादित करती व्यवहार...
भाषा है संरक्षक विचारों की..
भाषा होती गर मर्यादित...
दिलाती सम्मान वांछित..
भाषा के है प्रारूप कई..
भाषा होती सारगर्भित..
भाषा है माध्यम संवाद का..
संयमित भाषा है हल विवाद का..
भाषा है हस्ताक्षर सरस्वती का...
बनती है परिचायक मति का..
भाषा है आधार संस्कृति का...
करती है संहार विपत्ति का..
भाषा की शालीनता..
सिखलाती विनम्रता..
है जिह्वा का आभूषण भाषा...
जगाती स्नेह आकर्षण भाषा...
भाषा गूँथती माला शब्दों की...
कहती व्यक्तित्व की परिभाषा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शीर्षक :- भाषा
भाषा है संवाहक भावों की...
भाषा है परिचायक संस्कारों की...
भाषा प्रतिपादित करती व्यवहार...
भाषा है संरक्षक विचारों की..
भाषा होती गर मर्यादित...
दिलाती सम्मान वांछित..
भाषा के है प्रारूप कई..
भाषा होती सारगर्भित..
भाषा है माध्यम संवाद का..
संयमित भाषा है हल विवाद का..
भाषा है हस्ताक्षर सरस्वती का...
बनती है परिचायक मति का..
भाषा है आधार संस्कृति का...
करती है संहार विपत्ति का..
भाषा की शालीनता..
सिखलाती विनम्रता..
है जिह्वा का आभूषण भाषा...
जगाती स्नेह आकर्षण भाषा...
भाषा गूँथती माला शब्दों की...
कहती व्यक्तित्व की परिभाषा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक 19-07-19
विषय - भाषा
विधा - छंदमुक्त
भाषा ही है पहचान हमारी,
हृदय भावों का आदान प्रदान l
अस्तित्व भाषा से ही मनुज का,
भाषा ही कल्पना की उड़ान l
प्रत्येक राज्य प्रान्त क्षेत्र की
भिन्न भिन्न है बोली भाषा l
भारतीयता की एक पहचान,
शिरोमणि श्रेष्ठ हिंदी है आशा l
गर्वित होते हम भाषा पर,
अपनत्व भाव से इतराते l.
देश विदेश कहीं भी जाएँ,
भाषा पर अपनी इठलाते l
माता, मातृभूमि, मातृभाषा,
हमारी प्रतिष्ठा सम्मान है l
अगाध प्रेम आदर इनका है
यही हमारी आन बान है l
मातृभाषा हम सबकी हिन्दी,
कोमल, सरस, सरल, सुरीली l
आदर सम्मान की द्योतक है
राष्ट्र शिरोमणि अजब छबीली l
सागर के सम भाव हैं इसमें,
माधुर्य भी शहद समान है l
एकता के सूत्र में है पिरोती,
छंद रस तो अमृत पान है l
परस्पर हमें जोड़ती भाषा,
सौहार्द्र मेलजोल है बढ़ाती l
भ्रातृत्व भाव समदर्शिता से,
भेदभाव दिलों के मिटाती l
कई भाषाओं का संगम यहाँ,
हिन्दी एकता ज्योति जलाती l
मृदु,कोमल भावों की लड़ी से,
हिन्दुस्तान को है महकाती l
परम सौभाग्य यही है मेरा ,
हिन्दी भाषा की शिक्षा देती l
गौरवान्वित होती भाषा पर,
भाषा ही मुझको रोटी देती l
वाणी का गहना भाषा ही,
उद्गार,अभिव्यक्ति का साधनl
हिन्दी भाषा से गुरु कहलाती,
साष्टांग,नतमस्तक अभिवादन l
कुसुम लता पुन्डोरा
आर के पुरम नई दिल्ली
विषय - भाषा
विधा - छंदमुक्त
भाषा ही है पहचान हमारी,
हृदय भावों का आदान प्रदान l
अस्तित्व भाषा से ही मनुज का,
भाषा ही कल्पना की उड़ान l
प्रत्येक राज्य प्रान्त क्षेत्र की
भिन्न भिन्न है बोली भाषा l
भारतीयता की एक पहचान,
शिरोमणि श्रेष्ठ हिंदी है आशा l
गर्वित होते हम भाषा पर,
अपनत्व भाव से इतराते l.
देश विदेश कहीं भी जाएँ,
भाषा पर अपनी इठलाते l
माता, मातृभूमि, मातृभाषा,
हमारी प्रतिष्ठा सम्मान है l
अगाध प्रेम आदर इनका है
यही हमारी आन बान है l
मातृभाषा हम सबकी हिन्दी,
कोमल, सरस, सरल, सुरीली l
आदर सम्मान की द्योतक है
राष्ट्र शिरोमणि अजब छबीली l
सागर के सम भाव हैं इसमें,
माधुर्य भी शहद समान है l
एकता के सूत्र में है पिरोती,
छंद रस तो अमृत पान है l
परस्पर हमें जोड़ती भाषा,
सौहार्द्र मेलजोल है बढ़ाती l
भ्रातृत्व भाव समदर्शिता से,
भेदभाव दिलों के मिटाती l
कई भाषाओं का संगम यहाँ,
हिन्दी एकता ज्योति जलाती l
मृदु,कोमल भावों की लड़ी से,
हिन्दुस्तान को है महकाती l
परम सौभाग्य यही है मेरा ,
हिन्दी भाषा की शिक्षा देती l
गौरवान्वित होती भाषा पर,
भाषा ही मुझको रोटी देती l
वाणी का गहना भाषा ही,
उद्गार,अभिव्यक्ति का साधनl
हिन्दी भाषा से गुरु कहलाती,
साष्टांग,नतमस्तक अभिवादन l
कुसुम लता पुन्डोरा
आर के पुरम नई दिल्ली
भाषा
अधरों के तटबँध में
जो खामोश रहते हैं
उफनते हुए से
जज्बातों के वे समंदर
अक्सर ही उन्हें
कर देती है मुखरित
जो करती है व्यक्त
तेरे मौन की परिभाषा को
तेरे नैनों की भाषा...... ।
पलती हुई कहीं
ख्वाहिशों की सीपी में
कुछ अनछुए से जज्बात
कहाँ छुपा पाते हो तुम
लाख बहानों में
तेरी चुगली करती है हरदम
करती है व्यक्त
तेरे मौन की परिभाषा को
तेरे नैनों की भाषा..... ।
स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार
अधरों के तटबँध में
जो खामोश रहते हैं
उफनते हुए से
जज्बातों के वे समंदर
अक्सर ही उन्हें
कर देती है मुखरित
जो करती है व्यक्त
तेरे मौन की परिभाषा को
तेरे नैनों की भाषा...... ।
पलती हुई कहीं
ख्वाहिशों की सीपी में
कुछ अनछुए से जज्बात
कहाँ छुपा पाते हो तुम
लाख बहानों में
तेरी चुगली करती है हरदम
करती है व्यक्त
तेरे मौन की परिभाषा को
तेरे नैनों की भाषा..... ।
स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार
"भाषा"
मुक्तक
################
तन्हाई में जब लब खामोश हो जाते,
बातें मन की दो नैनों में उतर आते,
सच्चे मन को भाषा का ना भी हो ज्ञान,
मन की भाषा को नजरों से पढ़ लेते।
2
रुसवाई ने थामा तन्हाई का हाथ,
दिल खोलकर कह दो अब अपने दिल की बात,
कोई भी भाषा चुनलो इजहार के लिए,
प्रेम की भाषा समझ लेते हैं जज्बात।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
मुक्तक
################
तन्हाई में जब लब खामोश हो जाते,
बातें मन की दो नैनों में उतर आते,
सच्चे मन को भाषा का ना भी हो ज्ञान,
मन की भाषा को नजरों से पढ़ लेते।
2
रुसवाई ने थामा तन्हाई का हाथ,
दिल खोलकर कह दो अब अपने दिल की बात,
कोई भी भाषा चुनलो इजहार के लिए,
प्रेम की भाषा समझ लेते हैं जज्बात।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
बिषयःः# भाषा#
विधाःः काव्यःः
हम व्यक्त विचार भाषा से करते हैं।
संवाद सभी हम भाषा से करते हैं।
मातृभाषा जब हिंदी भाषा है अपनी,
फिर क्यों न इसे राष्ट्र भाषा करते हैं।
मै स्वयं भाषा की परिभाषा क्या दूं,
नहीं ज्ञानी हूँ मै इतना मानता साथी।
लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ कि,
भाषा पशु सीख जान मानता हाथी।
संस्कृत है सभी भाषाओं की जननी,
लेकिन हमें सबसे प्यारी भाषा हिंदी।
यह अभिव्यक्ति में भी अच्छी लगती ,
सच ये सद्साहित्य के माथे की बिंदी।
अगर सौम्यचित्त हो सौम्य विचार हो।
हो मधुरम् भाष्य नहीं कोई विकार हो।
सचमुच यह जीवन सुखद शांत रहेगा,
मन में सदाचार और सद्व्यवहार हो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधाःः काव्यःः
हम व्यक्त विचार भाषा से करते हैं।
संवाद सभी हम भाषा से करते हैं।
मातृभाषा जब हिंदी भाषा है अपनी,
फिर क्यों न इसे राष्ट्र भाषा करते हैं।
मै स्वयं भाषा की परिभाषा क्या दूं,
नहीं ज्ञानी हूँ मै इतना मानता साथी।
लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ कि,
भाषा पशु सीख जान मानता हाथी।
संस्कृत है सभी भाषाओं की जननी,
लेकिन हमें सबसे प्यारी भाषा हिंदी।
यह अभिव्यक्ति में भी अच्छी लगती ,
सच ये सद्साहित्य के माथे की बिंदी।
अगर सौम्यचित्त हो सौम्य विचार हो।
हो मधुरम् भाष्य नहीं कोई विकार हो।
सचमुच यह जीवन सुखद शांत रहेगा,
मन में सदाचार और सद्व्यवहार हो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
भाषा
***
भावों का सम्प्रेषण होता
हर जीव में निराला,
मनुज में अद्भुत शक्ति
वो बोल के करता प्यारा।
भाषा….......मनुष्य को
ईश्वर का अनुपम उपहार
वाणी ही........ है जग मे
जीवन का अद्भुत आधार।
मात्र शब्द उच्चारण नही ये
भाव देते प्राण इसे
दिव्यता से बोले बोल,करें
समस्त में चेतना का संचार ।
मीठी वाणी और सदभाव
से बनते जग के सारे काम
अहंकार ,दुर्भाव से बोले बोल
जहर बुझे नश्तर के समान।
शब्दों का पड़ता गहन प्रभाव
जिस रूप मे दो वैसा पाओ
भाषा सुर भाषा संगीत
भाषा से ही मन की प्रीत ।
भाषा जग में संबंधों की डोर
भाषा से व्यक्ति का सम्मान
यही बताये शिक्षा दीक्षा
यही बताती कुल की पहचान।
स्वरचित
अनिता सुधीर
***
भावों का सम्प्रेषण होता
हर जीव में निराला,
मनुज में अद्भुत शक्ति
वो बोल के करता प्यारा।
भाषा….......मनुष्य को
ईश्वर का अनुपम उपहार
वाणी ही........ है जग मे
जीवन का अद्भुत आधार।
मात्र शब्द उच्चारण नही ये
भाव देते प्राण इसे
दिव्यता से बोले बोल,करें
समस्त में चेतना का संचार ।
मीठी वाणी और सदभाव
से बनते जग के सारे काम
अहंकार ,दुर्भाव से बोले बोल
जहर बुझे नश्तर के समान।
शब्दों का पड़ता गहन प्रभाव
जिस रूप मे दो वैसा पाओ
भाषा सुर भाषा संगीत
भाषा से ही मन की प्रीत ।
भाषा जग में संबंधों की डोर
भाषा से व्यक्ति का सम्मान
यही बताये शिक्षा दीक्षा
यही बताती कुल की पहचान।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दिनांक 19.7.2019
दिन शुक्रवार
भाषा
🍁🍁🍁🍁
हम प्रयुक्त करते हैं जब अपनी भाषा
वह बतलाती सँस्कारों के हमारे तोला माशा
वह निचोड़ होता हमारे कार्यकलापों का
हमारे चलते रहते वार्तालापों का।
भाषा की अपनी गरिमा है भाषा का अपना श्रँगार
भाषा भी करवा देती अन्दर के मन का दीदार
भाषा से हो सकता है बिगडी़ बातों का सँवार
भाषा से ही हो जाता है एक प्रबल अनपेक्षित वार।
भाषा की कोमलता में खिल जाते प्रेम प्रसून
भाषा की फूहड़ता में जीवन पथ हो जाते सून
भाषा से पड़ते हैं मन के भीतर गहरे घाव
भाषा से ही होने लगते सँबन्धों के दुखभरे रिसाव।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिन शुक्रवार
भाषा
🍁🍁🍁🍁
हम प्रयुक्त करते हैं जब अपनी भाषा
वह बतलाती सँस्कारों के हमारे तोला माशा
वह निचोड़ होता हमारे कार्यकलापों का
हमारे चलते रहते वार्तालापों का।
भाषा की अपनी गरिमा है भाषा का अपना श्रँगार
भाषा भी करवा देती अन्दर के मन का दीदार
भाषा से हो सकता है बिगडी़ बातों का सँवार
भाषा से ही हो जाता है एक प्रबल अनपेक्षित वार।
भाषा की कोमलता में खिल जाते प्रेम प्रसून
भाषा की फूहड़ता में जीवन पथ हो जाते सून
भाषा से पड़ते हैं मन के भीतर गहरे घाव
भाषा से ही होने लगते सँबन्धों के दुखभरे रिसाव।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
#विषय*भाषा*
#विधा*काव्य*
#रचनाकार*दुर्गा सिलगीवाला सोनी*
"""*"***"*""" भाषा """*"***"*"""
व्यक्ति को ही अभिव्यक्ति मिली है,
प्रकृति से मिला यह अनूठा वरदान,
भाषा से होती है अनुभूति की पहचान,
दुख बांटे दुख सुख बांटे मिले मुस्कान,
हर्ष विषाद और चाहत नफरत की,
भाषा ही तो माध्यम सदियों से बनी ,
कड़वी भाषा और मीठी बोली ने,
कभी सहयोग चुना या असहमति चुनी,
भाषा स्वत:स्फूर्त सम्मान दिलाती है,
बोली अभद्रता की भी पहचान करे
यशस्वी बनाती तेरी भाषा भाव भंगिमा,
समूची दुनिया में तेरा गुणगान करे,
युद्ध और शांति की जननी है भाषा,
भाषा कारण भी बनी विश्व विनाश की,
उत्पात जगत के सभी रोके जाते रहे,
सौहार्द की भाषा जने राह विकास की,
प्रकृति के अनुकूल मातृ भाषा हमारी,
देवनागरी समृद्ध संस्कृत की बेटी हिंदी है,
अनंत काल से इसने किया गौरव हासिल,
मां भारती के माथे की यही बिंदी है,
#विधा*काव्य*
#रचनाकार*दुर्गा सिलगीवाला सोनी*
"""*"***"*""" भाषा """*"***"*"""
व्यक्ति को ही अभिव्यक्ति मिली है,
प्रकृति से मिला यह अनूठा वरदान,
भाषा से होती है अनुभूति की पहचान,
दुख बांटे दुख सुख बांटे मिले मुस्कान,
हर्ष विषाद और चाहत नफरत की,
भाषा ही तो माध्यम सदियों से बनी ,
कड़वी भाषा और मीठी बोली ने,
कभी सहयोग चुना या असहमति चुनी,
भाषा स्वत:स्फूर्त सम्मान दिलाती है,
बोली अभद्रता की भी पहचान करे
यशस्वी बनाती तेरी भाषा भाव भंगिमा,
समूची दुनिया में तेरा गुणगान करे,
युद्ध और शांति की जननी है भाषा,
भाषा कारण भी बनी विश्व विनाश की,
उत्पात जगत के सभी रोके जाते रहे,
सौहार्द की भाषा जने राह विकास की,
प्रकृति के अनुकूल मातृ भाषा हमारी,
देवनागरी समृद्ध संस्कृत की बेटी हिंदी है,
अनंत काल से इसने किया गौरव हासिल,
मां भारती के माथे की यही बिंदी है,
नमन"भावो के मोती"
19/07/2019
"भाषा"
1
विभिन्नताएँ
राज्य के अनुरूप
भाषा स्वरुप
2
भिन्न है भाषा
भारतीय संस्कृति
मन स्वीकृति
3
सर्वप्रथम
मातृभाषा का ज्ञान
माता का दान
4
भाषा का ज्ञान
अंतराष्ट्रीय रिश्ता
प्रेम ,सद्भाव
5
प्रेम की भाषा
बोलते हैं जज्बात
आँखों के द्वार
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
19/07/2019
"भाषा"
1
विभिन्नताएँ
राज्य के अनुरूप
भाषा स्वरुप
2
भिन्न है भाषा
भारतीय संस्कृति
मन स्वीकृति
3
सर्वप्रथम
मातृभाषा का ज्ञान
माता का दान
4
भाषा का ज्ञान
अंतराष्ट्रीय रिश्ता
प्रेम ,सद्भाव
5
प्रेम की भाषा
बोलते हैं जज्बात
आँखों के द्वार
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
नमन मंच
भाषा
चंचल चितवन खिले खिले
होंठ मूक पर सिले सिले
नयनों में भरे प्रीत कमान
सखि, वे भाषा के विद्वान
मीत मिलन की मदिर चाह
तड़पत उर भर रहा आह
अधरों पर मदिर मुस्कान
सखि, वे भाषा के विद्वान
चाह कर भी कह न पाई
विरह मन में सह न पाई
धड़कन का अवाक अहवान
सखि, वे भाषा के विद्वान
दशा देख ही गए ताड़ वो
पहनाकर बाहों का हार वो
तड़पन का मृदुल समाधान
सखि, वे भाषा के विद्वान
-©नवल किशोर सिंह
19-07-2019
स्वरचित
भाषा
चंचल चितवन खिले खिले
होंठ मूक पर सिले सिले
नयनों में भरे प्रीत कमान
सखि, वे भाषा के विद्वान
मीत मिलन की मदिर चाह
तड़पत उर भर रहा आह
अधरों पर मदिर मुस्कान
सखि, वे भाषा के विद्वान
चाह कर भी कह न पाई
विरह मन में सह न पाई
धड़कन का अवाक अहवान
सखि, वे भाषा के विद्वान
दशा देख ही गए ताड़ वो
पहनाकर बाहों का हार वो
तड़पन का मृदुल समाधान
सखि, वे भाषा के विद्वान
-©नवल किशोर सिंह
19-07-2019
स्वरचित
दिंनाक१९/७/२०१९
शीर्षक-"भाषा"
संस्मरण
भाषा शीर्षक से मुझे दस साल पहले की घटना याद आ गई। मेरे पड़ोस में एक नई फैमली रहने को आई, परिवार में पति-पत्नी और दो बच्चों के अलावा बच्चों की दादी भी थी,उस समय उनकी उम्र करीब पचहत्तर वर्ष की रही होगी। मुझे बुर्जुगों से बात करने में काफी अच्छा लगता है क्योंकि मुझे लगता है कि इस उम्र में उन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। मैं उनसे रोज बातें करती थी, मैं हिन्दी में बाते करती और वे अपनी भाषा (मगही) में।
एक दिनकी बात है मई की उमस भरी रात थी,रात के करीब ९बज रहे थे,पावर भी कट था, मैं किचन से निकल कर छत की खुली हवा में गई, जैसा कि फ्लैट में छत सबका साझा होता है, पड़ोसी परिवार पहले से वहां बैठे हुए थे, मुझे देखते ही वह बुर्जुग महिला मुझसे बोलने लगी"मार कर तेरा मुंह तोड़ दूँगी, सीढ़ी से तूझे धक्का दे दूँगी।
इतना सुनते ही मैं हड़बड़ा गई,और मुझे कुछ भी समझ में नही आ रहा था, एक तो गर्मी से हाल बेहाल था और मैं सुबह से उनसे मिली भी नही थी, फिर पता नहीं किस बात से मुझसे नाराज़ हैं, चुकी उनकी बहू भी वही थी, मैंने उनसे पूछा की ये क्या बोल रही है,तभी उनकी बहू मुझसे बोली उनका पोता (जो उस समय चार साल का था और बहुत ही नटखट था)अपनी दादी को ये सब बातें बोला,और वे अपनी पोता का शिकायत आपसे लगा रही है,अब जाकर मुझे माजरा समझ में आया,और मेरी जान में जान आई। चुकी वे सब अपनी भाषा में बोली तो मुझे बाकी के शब्द समझ में नही आये।
इसके माध्यम से बस मैं यह कहना चाहती हूँ कि भाषा कभी दो परिवारों या दो दिल को जोड़ने में दीवार नही है,वे आज तक मुझसे अपनी भाषा में बात करती हैं और मैं अपनी मातृभाषा हिंदी में, भाषा चाहे कोई भी हो बस मधुर संप्रेषण होना चाहिए।और सबकी भाषा का सम्मान करना चाहिए।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
शीर्षक-"भाषा"
संस्मरण
भाषा शीर्षक से मुझे दस साल पहले की घटना याद आ गई। मेरे पड़ोस में एक नई फैमली रहने को आई, परिवार में पति-पत्नी और दो बच्चों के अलावा बच्चों की दादी भी थी,उस समय उनकी उम्र करीब पचहत्तर वर्ष की रही होगी। मुझे बुर्जुगों से बात करने में काफी अच्छा लगता है क्योंकि मुझे लगता है कि इस उम्र में उन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। मैं उनसे रोज बातें करती थी, मैं हिन्दी में बाते करती और वे अपनी भाषा (मगही) में।
एक दिनकी बात है मई की उमस भरी रात थी,रात के करीब ९बज रहे थे,पावर भी कट था, मैं किचन से निकल कर छत की खुली हवा में गई, जैसा कि फ्लैट में छत सबका साझा होता है, पड़ोसी परिवार पहले से वहां बैठे हुए थे, मुझे देखते ही वह बुर्जुग महिला मुझसे बोलने लगी"मार कर तेरा मुंह तोड़ दूँगी, सीढ़ी से तूझे धक्का दे दूँगी।
इतना सुनते ही मैं हड़बड़ा गई,और मुझे कुछ भी समझ में नही आ रहा था, एक तो गर्मी से हाल बेहाल था और मैं सुबह से उनसे मिली भी नही थी, फिर पता नहीं किस बात से मुझसे नाराज़ हैं, चुकी उनकी बहू भी वही थी, मैंने उनसे पूछा की ये क्या बोल रही है,तभी उनकी बहू मुझसे बोली उनका पोता (जो उस समय चार साल का था और बहुत ही नटखट था)अपनी दादी को ये सब बातें बोला,और वे अपनी पोता का शिकायत आपसे लगा रही है,अब जाकर मुझे माजरा समझ में आया,और मेरी जान में जान आई। चुकी वे सब अपनी भाषा में बोली तो मुझे बाकी के शब्द समझ में नही आये।
इसके माध्यम से बस मैं यह कहना चाहती हूँ कि भाषा कभी दो परिवारों या दो दिल को जोड़ने में दीवार नही है,वे आज तक मुझसे अपनी भाषा में बात करती हैं और मैं अपनी मातृभाषा हिंदी में, भाषा चाहे कोई भी हो बस मधुर संप्रेषण होना चाहिए।और सबकी भाषा का सम्मान करना चाहिए।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
आज का विषय, भाषा
दिन, शुक्रवार
दिनांक, 19,7,2019.
भाषा एक माध्यम है ,
विचार विमर्श का ।
हमारे संस्कारों को ,
दर्शाने का ।
कटुता या मित्रता का ,
बीज बोने का ।
आँख से गिरने या दिल में ,
उतरने का ।
भाषा बड़ी अनमोल पर,
पैसा नहीं लगता ।
घटाना जोड़ना सब कुछ,
आपकी मर्जी पर ।
बना लो अपना या बेगाना,
आपके शब्दों पर ।
सम्मान भाषा का ,
इज्जत आपकी ।
सभ्यता संस्कृति विकास,
साहित्यिक समृद्धि ।
मेल मिलाप प्रेम बिस्तार,
सम्मान राष्ट्र, देश विदेश ।
यही उद्देश्य यही संदेश.
मानवता का विकास ।......
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
दिन, शुक्रवार
दिनांक, 19,7,2019.
भाषा एक माध्यम है ,
विचार विमर्श का ।
हमारे संस्कारों को ,
दर्शाने का ।
कटुता या मित्रता का ,
बीज बोने का ।
आँख से गिरने या दिल में ,
उतरने का ।
भाषा बड़ी अनमोल पर,
पैसा नहीं लगता ।
घटाना जोड़ना सब कुछ,
आपकी मर्जी पर ।
बना लो अपना या बेगाना,
आपके शब्दों पर ।
सम्मान भाषा का ,
इज्जत आपकी ।
सभ्यता संस्कृति विकास,
साहित्यिक समृद्धि ।
मेल मिलाप प्रेम बिस्तार,
सम्मान राष्ट्र, देश विदेश ।
यही उद्देश्य यही संदेश.
मानवता का विकास ।......
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नमन भावों के मोती
विषय - भाषा
19/07/19
शुक्रवार
कविता
अगर भाषा मिली होती तो मन का दर्द कह देते ,
बिछड़ने की कठिन पीड़ा जुबां से व्यक्त कर देते ।
भरी थी जो उड़ाने पंख फैलाकर खुले नभ में ,
उसी अलमस्त जीवन को बयां कुछ तुम से कर लेते।
जमाने के सितम हम पक्षियों पर इस कदर बरपे,
उजड़ते जंगलों में भूख से हम कैसे जी लेते ।
अनेकों मूक प्राणी आज बेघर हो भटकते हैं,
काश वे अपनी यह जीवन कहानी खुद ही कह सकते।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय - भाषा
19/07/19
शुक्रवार
कविता
अगर भाषा मिली होती तो मन का दर्द कह देते ,
बिछड़ने की कठिन पीड़ा जुबां से व्यक्त कर देते ।
भरी थी जो उड़ाने पंख फैलाकर खुले नभ में ,
उसी अलमस्त जीवन को बयां कुछ तुम से कर लेते।
जमाने के सितम हम पक्षियों पर इस कदर बरपे,
उजड़ते जंगलों में भूख से हम कैसे जी लेते ।
अनेकों मूक प्राणी आज बेघर हो भटकते हैं,
काश वे अपनी यह जीवन कहानी खुद ही कह सकते।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
🌹भावों के मोती🌹
19/7/2019
"भाषा"
************
भाषा ,प्रेम सौहार्द की परमार्थ की संस्कार की
चेतना,अभिव्यक्ति, स्व व्यक्तित्व निखार की
सरस उत्तम शब्द गूंथे श्रेष्ठतम अवतंस को
लेखनी संवरी सजी है भाषा के उपहार की।
अनगिनत भाषाओं में नैन भाषा मुख्य है
बोले बिन मइया समझती बाल की तकलीफ़ है
हृदय उपजी है यही मौन की भाषा भली
भाव उर के जो है पढ़ती वो मेरी जननी ही है।
क्रमश:......
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
19/7/2019
"भाषा"
************
भाषा ,प्रेम सौहार्द की परमार्थ की संस्कार की
चेतना,अभिव्यक्ति, स्व व्यक्तित्व निखार की
सरस उत्तम शब्द गूंथे श्रेष्ठतम अवतंस को
लेखनी संवरी सजी है भाषा के उपहार की।
अनगिनत भाषाओं में नैन भाषा मुख्य है
बोले बिन मइया समझती बाल की तकलीफ़ है
हृदय उपजी है यही मौन की भाषा भली
भाव उर के जो है पढ़ती वो मेरी जननी ही है।
क्रमश:......
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
शुभ संध्या
नमन मंच
शीर्षक-- भाषा
द्वितीय प्रस्तुति
कोई कहता है कि आपने ये
तीन तीन भाषायें क्यों पढ़ीं ।।
हिन्दी इंगलिश और रशियन
ऐसी क्या जरूरतें थी पड़ीं ।।
मैंने कहा तीन नही यार चार
नैनों की भाषा भी है बर्खुरदार ।।
शायर ऐसे ही थोड़ी न मैं बना
सोलहवें बसंत से रहा हूँ ठना ।।
भाषा पढ़ना जन्मसिद्ध अधिकार
या यूँ कहें मैं इस तरह का बीमार ।।
मुझे चाहिए कहीं मन खपाना
बुने रहा हूँ मैं यह ताना बाना ।।
पका रखा दिमाग का एक हिस्सा
तभी तो लिखता हूँ मैं ये किस्सा ।।
सर कहते थे भाषा पढ़ना कसरत है
जरूर पढ़ें जिसको कुछ फुरसत है ।।
मैं पढ़ता गया भाषा सतत ''शिवम"
क्या करूँ करना थे कुछ गम कम ।।
यही एक मात्र रास्ता मुझको दिखा
क्या कहूँ मैं इन भाषाओं में बिका ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/07/2019
नमन मंच
शीर्षक-- भाषा
द्वितीय प्रस्तुति
कोई कहता है कि आपने ये
तीन तीन भाषायें क्यों पढ़ीं ।।
हिन्दी इंगलिश और रशियन
ऐसी क्या जरूरतें थी पड़ीं ।।
मैंने कहा तीन नही यार चार
नैनों की भाषा भी है बर्खुरदार ।।
शायर ऐसे ही थोड़ी न मैं बना
सोलहवें बसंत से रहा हूँ ठना ।।
भाषा पढ़ना जन्मसिद्ध अधिकार
या यूँ कहें मैं इस तरह का बीमार ।।
मुझे चाहिए कहीं मन खपाना
बुने रहा हूँ मैं यह ताना बाना ।।
पका रखा दिमाग का एक हिस्सा
तभी तो लिखता हूँ मैं ये किस्सा ।।
सर कहते थे भाषा पढ़ना कसरत है
जरूर पढ़ें जिसको कुछ फुरसत है ।।
मैं पढ़ता गया भाषा सतत ''शिवम"
क्या करूँ करना थे कुछ गम कम ।।
यही एक मात्र रास्ता मुझको दिखा
क्या कहूँ मैं इन भाषाओं में बिका ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/07/2019
भाषा
हाइकु
-----------------------
1)
भाषा हिलोरे
अधरों के किनारे
गुंजित स्वर ।।
2)
आंखो की भाषा
सुख दुःख की गाथा
आँसु से कहे।।
3)
भाषा निर्बल
भाव बड़े प्रबल
मौन हो कहा ।।
-----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना, महासमुंद, छ0ग0
हाइकु
-----------------------
1)
भाषा हिलोरे
अधरों के किनारे
गुंजित स्वर ।।
2)
आंखो की भाषा
सुख दुःख की गाथा
आँसु से कहे।।
3)
भाषा निर्बल
भाव बड़े प्रबल
मौन हो कहा ।।
-----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना, महासमुंद, छ0ग0
विषय-भाषा
हंसते चेहरे वाली आंखे कितना रो चुकी
कोई क्या जाने
चुप होठों में कितने फसाने हैं
कोई क्या जाने
सब अपने आस पास है
पर दिल में पसरे विराने
कोई क्या जाने
लफ्जों की "भाषा "सब सुने
नयनो की जुबां
कोई क्या जाने ।
..............कसुम कोठारी ।
हंसते चेहरे वाली आंखे कितना रो चुकी
कोई क्या जाने
चुप होठों में कितने फसाने हैं
कोई क्या जाने
सब अपने आस पास है
पर दिल में पसरे विराने
कोई क्या जाने
लफ्जों की "भाषा "सब सुने
नयनो की जुबां
कोई क्या जाने ।
..............कसुम कोठारी ।
नमन
भावों के मोती
१९/७/२०१९
विषय -भाषा
विधा-दोहा
भावों के उद्गार में,भाषा है वरदान।
मन की गांठें खोल दे,रिश्तों की है जान।
---------------------------------
भली-बुरी हर बात में,भाषा है आधार।
मधुर वाणी बने सदा,मनुज गले का हार।
---------------------------------
भाषा इस संसार में,सब उन्नति को मूल।
सुंदर भावों से भरी, जैसे सुरभित फूल।
---------------------------------
भाषा से ही भावना,पाती है संस्कार।
उत्तम भाषा से सदा,सुंदर बने विचार।
---------------------------------
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
भावों के मोती
१९/७/२०१९
विषय -भाषा
विधा-दोहा
भावों के उद्गार में,भाषा है वरदान।
मन की गांठें खोल दे,रिश्तों की है जान।
---------------------------------
भली-बुरी हर बात में,भाषा है आधार।
मधुर वाणी बने सदा,मनुज गले का हार।
---------------------------------
भाषा इस संसार में,सब उन्नति को मूल।
सुंदर भावों से भरी, जैसे सुरभित फूल।
---------------------------------
भाषा से ही भावना,पाती है संस्कार।
उत्तम भाषा से सदा,सुंदर बने विचार।
---------------------------------
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बोलियां भाषा
तोड़ने की साजिश
हिंदी के हाथ पैर।।
हिंदी न टूटे
भाषायी राजनीति
पतित नेता।।
ये भोजपुरी
हिंदी की मजबूती
है अपभ्रंश।।
भावुक
तोड़ने की साजिश
हिंदी के हाथ पैर।।
हिंदी न टूटे
भाषायी राजनीति
पतित नेता।।
ये भोजपुरी
हिंदी की मजबूती
है अपभ्रंश।।
भावुक
भावों के मोती दिनांक 19/7/19
भाषा
भाषा जोड़ती है
दिलों को
भाषा है
अभिव्यक्ति का
साधन
हिन्दी है
राजभाषा हमारी
सबसे प्यारी
सबसे निराली
सहज सरल और
मृदुभाषा
करों सब
भाषाओँ का
सम्मान
तिरंगा है
सबका मान
माँ
सिखाती है
चलना ऊँगली
पकड़ कर
तूतलाती भाषा
होती मनोहर
भाषा बिन
जीवन अधूरा
मूक है
जग सारा
बगिया है
हमारा संसार
भाषा करती है
उसका संचार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
भाषा
भाषा जोड़ती है
दिलों को
भाषा है
अभिव्यक्ति का
साधन
हिन्दी है
राजभाषा हमारी
सबसे प्यारी
सबसे निराली
सहज सरल और
मृदुभाषा
करों सब
भाषाओँ का
सम्मान
तिरंगा है
सबका मान
माँ
सिखाती है
चलना ऊँगली
पकड़ कर
तूतलाती भाषा
होती मनोहर
भाषा बिन
जीवन अधूरा
मूक है
जग सारा
बगिया है
हमारा संसार
भाषा करती है
उसका संचार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
सादर नमन
" भाषा"
नैनों की भाषा से,
मोहब्बत का आगाज़ है,
दिलवालों की दास्ताँ का,
अनोखा ये अंदाज है,
प्रेम की भाषा समझने को,
दिल लफजों का मोहताज नहीं,
रह जाए छिपा दिल में,
ऐसा कोई राज नही,
भाषाओं के तार में,
प्रेम के मोती पिरो दिए,
गिराकर मजहबों की दीवारें,
चिराग मोहब्बत के जला दिए।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
19/7/19
शुक्रवार
" भाषा"
नैनों की भाषा से,
मोहब्बत का आगाज़ है,
दिलवालों की दास्ताँ का,
अनोखा ये अंदाज है,
प्रेम की भाषा समझने को,
दिल लफजों का मोहताज नहीं,
रह जाए छिपा दिल में,
ऐसा कोई राज नही,
भाषाओं के तार में,
प्रेम के मोती पिरो दिए,
गिराकर मजहबों की दीवारें,
चिराग मोहब्बत के जला दिए।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
19/7/19
शुक्रवार
नमन भावों के मोती
19 जुलाई 19 शुक्रवार
विषय- भाषा
विधा- हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
आदमी तो क्या
पशु भी पहचाने
प्रेम की भाषा👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
भाषा के सङ्ग
कल्पना की उड़ान
भावों के रङ्ग👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
भावाभिव्यक्ति
भाषा की जरूरत
हरेक जानें💐
💐💐💐💐💐💐
(४)
भाषाएँ भिन्न
संस्कृति भिन्न-भिन्न
तथापि एका🎂
💐💐💐💐💐💐
(५)
आँखों की भाषा
सुख-दुख की कथा
आँसू बताए💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐
19 जुलाई 19 शुक्रवार
विषय- भाषा
विधा- हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
आदमी तो क्या
पशु भी पहचाने
प्रेम की भाषा👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
भाषा के सङ्ग
कल्पना की उड़ान
भावों के रङ्ग👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
भावाभिव्यक्ति
भाषा की जरूरत
हरेक जानें💐
💐💐💐💐💐💐
(४)
भाषाएँ भिन्न
संस्कृति भिन्न-भिन्न
तथापि एका🎂
💐💐💐💐💐💐
(५)
आँखों की भाषा
सुख-दुख की कथा
आँसू बताए💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐
💐💐💐💐💐
नमन "भावों के मोती"🙏🏻
दिनांक-19/7/2019
विधा-हाइकु
विषय :-"भाषा"
(1)
प्रयोजनार्थ
भाषा ने बना दिए
सेतु संवाद
(2)
ढूँढे दिलासा
गरीब समझाये
पेट की भाषा
(3)
ख़ुशी,निराशा
नयनों ने समझी
मौन की भाषा
(4)
सद्भाव खाद
विविध भाषा फूल
भारत बाग
(5)
जीभ लगाम
भाषा ने बिगाड़े हैं
बनते काम
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद,राजस्थान
दिनांक-19/7/2019
विधा-हाइकु
विषय :-"भाषा"
(1)
प्रयोजनार्थ
भाषा ने बना दिए
सेतु संवाद
(2)
ढूँढे दिलासा
गरीब समझाये
पेट की भाषा
(3)
ख़ुशी,निराशा
नयनों ने समझी
मौन की भाषा
(4)
सद्भाव खाद
विविध भाषा फूल
भारत बाग
(5)
जीभ लगाम
भाषा ने बिगाड़े हैं
बनते काम
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद,राजस्थान
दिनांक : 19/07/2019
विधा : छंदमुक्त कविता
भाषा
मन जीत ले भाषा अगर,
वाणी में मधुर मिठास हो,
मृदु बोल का गुण हर मानव,
के मन सदा अन्तास हो । ।
कोशिश रहे वाणी से कभी ,
किसी का नहिं उपहास हो ।
मन सदा रहे प्रसन्न मगन ,
स्वंय पर गर विश्वास हो ।
सदा स्वंय को भी शीतल करें ,
सब मधुर रस आस पास हो ।
कोयल सा रंग काला भले हो ,
पर जिह्वा पर मीठा साज हो ।
रंग भेद हों चाहे मगर दिल ,
दिल का ही मोहताज हो ।
स्पर्धाओं में जीत भले ना हो,
दिल जीतने का रिवाज हो ।
भगवान गर मिल पाएं ना पर ,
इंसान इंसान के पास हो ।
इंसान इंसान के पास हो ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विधा : छंदमुक्त कविता
भाषा
मन जीत ले भाषा अगर,
वाणी में मधुर मिठास हो,
मृदु बोल का गुण हर मानव,
के मन सदा अन्तास हो । ।
कोशिश रहे वाणी से कभी ,
किसी का नहिं उपहास हो ।
मन सदा रहे प्रसन्न मगन ,
स्वंय पर गर विश्वास हो ।
सदा स्वंय को भी शीतल करें ,
सब मधुर रस आस पास हो ।
कोयल सा रंग काला भले हो ,
पर जिह्वा पर मीठा साज हो ।
रंग भेद हों चाहे मगर दिल ,
दिल का ही मोहताज हो ।
स्पर्धाओं में जीत भले ना हो,
दिल जीतने का रिवाज हो ।
भगवान गर मिल पाएं ना पर ,
इंसान इंसान के पास हो ।
इंसान इंसान के पास हो ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विषय -भाषा
(राष्ट्रभाषा हिंदी )
🌹🙏🙏🌹
तमाम भाषाओं की जननी संस्कृत,
हजारों बोलियों की बड़ी बहन है हिंदी।
अपनों से उपेक्षित होकर भी,
देखो फिजी की आधिकारिक भाषा हिंदी। अपनी सोच का विस्तार करो,
विश्व के भाल पर चमकती सुनहरी बिंदी,
गर्व करो देशवासियों बड़ी समृद्ध अपनी हिंदी।
अंग्रेजी को बनाते हो तो भले बनाओ अपनी सहेली,
प्रिय संगिनी तो फिर भी बनेगी अपनी हिंदी।
माधुर्य में सनी, गुणों से धनी है हिंदी,
सभी बोलियां रानी है
बड़ी प्यारी गर्विली
भारत की महारानी हिंदी।
सुलोचना सिंह (स्वरचित )
भिलाई (दुर्ग )
(राष्ट्रभाषा हिंदी )
🌹🙏🙏🌹
तमाम भाषाओं की जननी संस्कृत,
हजारों बोलियों की बड़ी बहन है हिंदी।
अपनों से उपेक्षित होकर भी,
देखो फिजी की आधिकारिक भाषा हिंदी। अपनी सोच का विस्तार करो,
विश्व के भाल पर चमकती सुनहरी बिंदी,
गर्व करो देशवासियों बड़ी समृद्ध अपनी हिंदी।
अंग्रेजी को बनाते हो तो भले बनाओ अपनी सहेली,
प्रिय संगिनी तो फिर भी बनेगी अपनी हिंदी।
माधुर्य में सनी, गुणों से धनी है हिंदी,
सभी बोलियां रानी है
बड़ी प्यारी गर्विली
भारत की महारानी हिंदी।
सुलोचना सिंह (स्वरचित )
भिलाई (दुर्ग )
नमन मंच को
दिनांक 19/7/2019
विषय भाषा
हाइकु
1
देश की भाषा
अब हुई निराशा
नहीं है आशा
2
हिन्द की भाषा
खो रही है अस्तित्व
कैसी निराशा
3
आंग्ल की भाषा
बढ़ता हुआ चलन
हिन्द निराशा
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
दिनांक 19/7/2019
विषय भाषा
हाइकु
1
देश की भाषा
अब हुई निराशा
नहीं है आशा
2
हिन्द की भाषा
खो रही है अस्तित्व
कैसी निराशा
3
आंग्ल की भाषा
बढ़ता हुआ चलन
हिन्द निराशा
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
नमन मंच
🌹🙏🌹
नैनो की भाषा
समझे सब कोई
मधुर बोली
भावों की भाषा
जागी मन की आशा
नयन बोले
संस्कृत भाषा
एक मूल उत्पत्ति
देव नागरी
सर्व प्रथम
मातृभाषा का ज्ञान
दूर अज्ञान
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
🌹🙏🌹
नैनो की भाषा
समझे सब कोई
मधुर बोली
भावों की भाषा
जागी मन की आशा
नयन बोले
संस्कृत भाषा
एक मूल उत्पत्ति
देव नागरी
सर्व प्रथम
मातृभाषा का ज्ञान
दूर अज्ञान
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
नमन भावों के मंच को
दिनांक -19/7/2019
शीर्षक- भाषा
भाषा है हमारे विचारों की
हमारी अभिव्यक्ति की ,
हमारे संस्कारों की पहचान ।
भाषा ही तो माध्यम बनती है
हमारे भावों की ,विभावों की
हमारी संस्कृति व आचारों की ।
भाषा ही सजाती है सुर साधना
लोक गीतों से लेकर मंगल गीतों तक बनाती है कल्पना ।
भाषा ही दिखाती है सपने,
उपजाती है विचार, लाती है संस्कार।
भाषा ही तो हमारे सभ्य और असभ्य का परिचायक है ।
भाषा ही तो हमारे जन गण मन की अधिनायक है ।
भाषा ही तो सिखाती ज्ञान विज्ञान है ,
भाषा से ही तो भेज पाए अंतरिक्ष में विमान है ।
भाषा ही तो हमें बनाती है सृष्टि का सबसे अद्भुद जीव ।
भाषा ही तो बनाती है अपने प्रियतम पीव ।
भाषा निज संस्कारों का गहना है ,
भाषा से ही तो हमें आगे बढ़ना है ।
जितनी हमारी भाषा संस्कारवान होगी ,
उतनी ही हमारी पीढ़ी प्रगतिवान होगी
अपनी भाषा से जितनी प्रीति जगाओगे ,
जीवन में उतने ही ज्ञानवान बन पाओगे ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
दिनांक -19/7/2019
शीर्षक- भाषा
भाषा है हमारे विचारों की
हमारी अभिव्यक्ति की ,
हमारे संस्कारों की पहचान ।
भाषा ही तो माध्यम बनती है
हमारे भावों की ,विभावों की
हमारी संस्कृति व आचारों की ।
भाषा ही सजाती है सुर साधना
लोक गीतों से लेकर मंगल गीतों तक बनाती है कल्पना ।
भाषा ही दिखाती है सपने,
उपजाती है विचार, लाती है संस्कार।
भाषा ही तो हमारे सभ्य और असभ्य का परिचायक है ।
भाषा ही तो हमारे जन गण मन की अधिनायक है ।
भाषा ही तो सिखाती ज्ञान विज्ञान है ,
भाषा से ही तो भेज पाए अंतरिक्ष में विमान है ।
भाषा ही तो हमें बनाती है सृष्टि का सबसे अद्भुद जीव ।
भाषा ही तो बनाती है अपने प्रियतम पीव ।
भाषा निज संस्कारों का गहना है ,
भाषा से ही तो हमें आगे बढ़ना है ।
जितनी हमारी भाषा संस्कारवान होगी ,
उतनी ही हमारी पीढ़ी प्रगतिवान होगी
अपनी भाषा से जितनी प्रीति जगाओगे ,
जीवन में उतने ही ज्ञानवान बन पाओगे ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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