Wednesday, February 13

"दाग"13फरवरी 2019

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             ब्लॉग संख्या :-298



विधा- कविता
************
दाग तो दाग होता है, 
वसन पर हो या चरित्र पर, 
बेचैन कर देता है, 
सवाल खड़े कर देता है |

वसन पर लगा हो दाग तो, 
दोबारा हम न पहनेंगे गर, 
चरित्र पर लग जाये दाग, 
तो उसे कैसे धुलेंगे? 

जब तक अबोध थे हम, 
चाँद को मामा समझते थे, 
जरा सा शिक्षित क्या हुये, 
चाँद पर दाग हम देखने लगे |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


विषय - दाग

दाग चरित्र
कलुषित जीवन
निंदित व्यक्ति

उच्च चरित्र
व्यवस्थित जीवन
प्रशंसनीय

दाग शशांक
कलुषित सौंदर्य
शोभा विहीन

माथे कलंक
उपेक्षित जीवन
अवमानना

दाग दामन
असहनीय पीड़ा
हार्दिक कष्ट

सरिता गर्ग
स्व रचित

अपनी पाक मुहब्बत का पाठ पढ़ाऊंगा 
रब से कैसे मिलते राह नई दिखाऊंगा ।।

दाग दामन में अपने लगने नही दिया
भूल से गर लगे कोई उसे मिटाऊंगा ।।

रूहानी खुशी क्या होती है पहचानी
उसका अन्दाज सबको सिखाऊंगा ।।

दौलत शोहरत कमाने में भी दाग हैं 
इश्क बेवजह बदनाम शान बढ़ाऊंगा ।।

फिसलन कम नही है इस दुनिया में
कमल का फ़लसफ़ा पढ़ा दोहराऊंगा ।।

बचने वाले काजल की कोठरी में बचे 
उनकी हिम्मत को 'शिवम' दाद दिलाऊंगा ।।

बुलन्द इरादा दूर की खुशी अजीब शय 
इसकी कीमत पहचानी पहचान कराऊंगा ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/02/2019

अज्ञान मिथ्या अंहकार
दागों की बुनियाद होती
भावातिरेक बद कर्मो से
जीवन भर ये आँखे रोती
गहरे हल्के दाग बहुत् हैं
हल्के दागों को धो लेते
बद कर्मी गहरे दागों को
हम जीवन भर ही सहते
शक संदेह चौराहे पर
हर पल नारी दाग लगे हैं
सीता जैसी पावन नारी ने
हर पद पद चल संकट सहे हैं
क्या दाग था नार अहिल्या
बन पाषाण जीवन जीया
बेदाग थी जग पांचाली
फिर भी चीर हरण किया
छल कपट द्वेष दाग हैं
तेरा मेरा एक दाग है
दाग सदा दाग होता है
मूल सदा एक राग है
झूँठ साँच के इन दागों से
भारत का इतिहास भरा है
जयचन्द बद कर्म कारण ही
कण कण मांहि विष घुला है
दागदार का पल्लु छोड़ो
सन्मार्ग पर चले चलो
जीवन जीना एक कला 
परमार्थ पथ सदा बढ़ो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा ,राजस्थान।

दाग

इन्सान की जिंदगी 
भरी दाग से
निकला जो बच कर 
वह बेदाग हो गया 
वरना दाग से तो
देवता भी बच नही पाए 

दाग चुनरी पर 
बैचैन सुन्दरी
दाग चरित्र पर
बदनाम जमाना

धुल जाते है दाग
जमाने में
बस यादें छोड़ 
जाते है दिल के 
कोने में 

सब मांगो दुआ
मौला से इतनी
गुजर जाऐ
फकीर की जिन्दगी 
बिना दागों के

और क्या लिखूं 
दाग , तुम्हारे बारे में 
हँसते खेलते चमन
उजड़ जाते है 
एक आंधी से तम्हारे
महफ़ूज रहे
इस दुनियाँ में 
गर हर कोई 
पाक-साफ रखे
दामन 
इन दागों से

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव 
भोपाल

विधा - सेदोका (षटपदी)

_______________________

#दाग

01

दाग तो बस,
कलंक ही होता है...।
न काला ना उजला ।
यदि सफेद,
सुहावना ही होता ,
भाता ल्यूकोडर्मा भी ।

02

एक सतित्व...
बाधक बन गया ।
क्या दोष था उसका?
छली गई न...
वृंदा हुई तुलसी,
पर दाग तो है न...।

03

इंद्र के कर्म ।
अहिल्या से छलावा ।
है कुकर्म के दाग।
देव होते भी,
दैवत्व की उच्चता,
नहीं बची उसमें ।

04

एकलव्य से,
गुरु दक्षिणा मांग,
कलंक लगा लिया ।
द्रोणाचार्य का,
गुरुत्व कम हुआ....।
उन्हें दाग ने छुआ ।

05

जब भी कोई,
अधिक मीठा बोले,
कानों में मिश्री घोले ।
उस मन के...
छलक उठे सारे,
दाग विष बनके...।

रचना स्वरचित एवं मौलिक है 
-सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' 
छिंदवाड़ा मप्र

हे श्री गणेश आशीष दें मुझको
कभी दागदार नहीं हो पाऊँ मै।
सचरित्र प्रभु सद्ज्ञान दें मुझको,
भले शानदार नहीं कहलाऊँ मै।

संयमित जीवन जिऊँ सदा ही,
निश्छल निर्मल हृदय हो मेरा।
ना कपट कभी अंदर घुस पाऐ 
उर सहिष्णु शुभ पुण्य हो डेरा।

धब्बे दाग अगर कहीं लग जाऐं
कभी धुलते नहीं छूटते मन से।
कितना भी प्रयास करें धोने का,
नहीं हट पाते कभी अंतर्मन से।

आत्मा स्वयं कचोटती मुझको
यदि दुष्चरित्र का दाग लगा हो।
मन मलीन खुद रहता अपना,
अगर दुराचार का दाग लगा हो।

संयम और विवेक से जी पाऊं,
जितना संभव मर्यादित रहकर।
सत्यनिष्ठ सत्कर्मी बनूं गणेशा,
नहीं रहूँ कहीं विवादित बनकर।

स्वरचितःःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



विधा=हाइकु 
=======
कोई हो नेता 
राजनिती में आज
लगता दाग 
🌹🌹🌹
करवा चौथ 
फिर भी पूजा जाता 
चाँद में दाग 
🌹🌹🌹
धो ही डालते 
कुविचार के दाग
शुभ विचार 
🌹🌹🌹
सदा प्रयास 
चरित्र की चादर
रहे बेदाग
🌹🌹🌹
करे न आप
वर्षों रहता याद 
कलंक दाग
🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 

आज का विषय है दाग याने कलंक,
चेहरे पर दाग-धब्बे लिए,
चांद,

आसमान में 
राज कर रहा
इन्द्र का सिंहासन पर,
आज की हवा,
दागी हो गई,
इसीलिए
आज सियासत पर,
चांद के वंशज,
बैठे हुए है,
कंस, दुर्योधन के वंशज,
आज भी राजनीति,
छाए हुए हैं,
सत्य का चश्मा लगा के,
देश के तरफ देखो,
दाग दार चांद के वंशज,
सियासत में दिखेंगे,
कई शताब्दी पहले,
हस्तिनापुर में,
दाग दार चंद्र वंशियों का,
राज था।
उन्हीं नस्ल, संस्कार से आई,
आज भी सियासत में,
दागी चांद बैठे हुए है।।
स्वरचित कविता देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।

उसके चेहरे का दाग
खोलते है कई राज
कभी रहा होगा ये नूर
किसी की आँखों का

आज बेनूर है उसकी जिंदगी
लोग करे जब उपहास
समझनी होगी एक ही बात
चेहरे के दाग नही रखते मतलब खास

दिल बस होनी चाहिए बेदाग
देखकर उसके चेहरे का दाग
मानवता बस होती शर्मसार
जिसने दिया है दाग वह आज

देखकर अपने कुकृत्य को
कर लो अपनी बस भूल सुधार
एक भूल सुधारने को
दुनिया दे रही है अवसर बस आज

करके अपनी भूल सुधार
अवसाद से बच सकते हो आज
और आत्मा पर लगे दाग को 
तुम बस लो सुधार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।


शीर्षक-*दाग*
विधा- दोहे

कलयुग की माया प्रबल,दाग लगे गंभीर
धारें भेष फकीर का , घोप रहे शमशीर।

दाग दाग दामन भरा,नहि मन पश्चाताप
डसने को तैयार हैं , देखो कितने साँप।

कर्म किये काले सभी,कुछ नहि आया हाथ
तार तार चूनर हुई , दाग न छूटा माथ।

दाग लगा हो वसन पे,साबुन से धुल जाय
पर कलंक का दाग तो,दाग संग ही जाय।

~प्रभात

स्वरचित






दाग गहरे
दुर्व्यवहारी बेटा
घाव हैं हरे।।


दागी दामन
छिपाये नही छिपे
लाख जतन।।

दागी चुनरी
बिटिया कबूतरी
लज्जा में मरी।।

दिल के दाग
बेटा उड़ाये हंसी
पिता अवाक।।

भावुक


विधा- लघु कविता

हम कहाँ जा रहे हैं
दाग को ही अपना जीवन बना रहे हैं
पुरानी सभ्यता की थाती भूल जा रहे हैं
आधुनिकता केरंग में नैतिकता को छोड़ जारहे हैं
विभिन्न दाग़ों के साथ हम जी रहे हैं
अस्वच्छता का दाग आज भी धो रहे हैं
भ्रष्टाचार का दाग हम मिटा नही पा रहे हैं
सब के दामन में दाग ही दाग दिख रहे हैं
सत्कर्म की बातें अब अतीत बन रहीं हैं
दुष्कर्म की घटनाएं अब आम बन रहीं हैं
फिजाएं अब जहरीली हो रहीं हैं
प्रदूषण के दाग से दुनिया कराह रही है
झूठ की हर तरफ बाजार सज रही है
सत्य की बातें किताबों में आंसू बहा रही हैं
चित्त व विचारों में शुद्धता अब अपनी सांसें गिन रहीं हैं
हर तरफ बस दाग़ों की बस्ती दिख रही हैं
आज फिर से जरूरत नैतिकता की दिख रही है
समाज में सत्य,विश्वास,निष्ठा व शुद्धता की जरूरत दिख रही है
हम कहाँ जा रहें हैं
दाग को ही अपना जीवन बना रहे हैं

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली


लघु कविता
सच्चाई के पथ पर
चलकर भी.....
लग जाते हैं अक्सर
कलंक का टीका....

कलंकिनी बनकर ....
दूभर हो जाता है जीना
फिर देनी पड़ती है...
अग्नि परीक्षा......

कभी सीता और कभी
चांडाली बनकर...
धोनी पड़ती है..
कलंक का टीका..

इस दुनिया में रहके ही
करनी पड़ेगी तूझे.......
अपने स्वाभिमान की रक्षा

जग का ये दस्तूर है
हे नारी!नारी ही देती
अक्सर तेरे माथे .....
कलंक का टीका.।

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

जिंदगी कुछ और ही होती अगर।
वक्त न तकदीर जो खोती अगर।


कुछ सुकूं मुझको भी आ जाता।
बोझ यूं सांसे न जो ढोती अगर।

हो गया होता मुकम्मल ये सफर।
ये मंजिलें कांटे नही बोती अगर।

हाथ उसके भी पाक थे ईमान से। 
दाग़ वो बेदाग़ जो ना धोती अगर। 

जागता हूँ नींद में और ख्वाब में। 
लगती भले आंखें मेरी सोती अगर।

मैं फरिश्ता हो गया होता "सोहल"।
अकीदत तुम्हे इश्क में होती अगर।

विपिन सोहल



दिल दाग-दार

जो फूलों सी जिंदगी जीते कांटे हजार लिये बैठे हैं
दिल में दगा होठों पर झूठी मुस्कान लिये बैठे हैं। 

खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानो का ताजमहल लिये बैठें हैं। 

सफेद दामन वाले भी दिल दाग - दार लिये बैठे हैं
क्या लें दर्द किसी का अपने हजार लिये बैठें हैं। 

हंसते हुए चेहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
एक भी जवाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं। 

टुटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार लिये बैठे हैं
डूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठे हैं।
कुसुम कोठारी।

लगा दाग तो फिर न छूटे,
मेरी आत्मा मुझसे रूठे।
बिना विचारे करे ऐसे काम
जाने कितने दिल हैं टूटे।
भाव-भक्ति में मन न रमाया,
छल-छंदों में समय बिताया।
हरि का नाम भुलाया तूने,
माया में खुद को लिपटाया।
कोरी चादर पहन कर आया,
मन में तेरे मैल समाया।
चादर होती गई मैली-मैली,
लगे दाग तू कहां शरमाया?
अहंकारी,क्रोधी,बना कामी,
बन बैठा तू अंतर्यामी।
खुद को मान देवता बैठा,
सबका बन बैठा है स्वामी।
तन भी मैला ,मन भी मैला,
जीवन भर तूने पाला झमेला।
भूल गया कर्तव्य सारे,
अंत समय जाएगा अकेला।
कैसे दाग छुटा पाएगा,
मन ही मन पछताएगा।
मैली चादर साथ में लेकर,
कैसे प्रभु दर जा पाएगा!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

विषय - दाग, कलंक
विधा-हाइकु

1.
ये भ्रूण हत्या
कन्या बलि का हत्था
बुरा कलंक
2.
आतंक नाग
कलंकित करता
देश विदेश
3.
मन में आग
चरित्र पर दाग
सबसे बुरा
4.
ये भ्रष्टाचार
दाग सादगी पर
मिटाए कौन
5.
काला कोयला
धोये न धुलता
चरित्र दाग
6.
बाल विवाह
कलंक समाज में
आज भी व्याप्त
7.
दहेज प्रथा
बन गई कुप्रथा
नीच प्रवृत्ति
8.
दहेज प्रथा
कलंक समाज का
बनी कुप्रथा
9.
पानी में आग
चरित्र पर दाग
हानिकारक
10.
ये भ्रष्टाचार
दाग मानवता पे
क्या समाधान
11.
गहरी धूल
प्रदूषण के दाग
बारिश धोती
12.
छिपते नहीं
कलंक चरित्र के
छिपाएं कहाँ
13.
गहरा गया
भ्रष्टाचार का दाग
समाधान क्या
**********

अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

















गजल कोशिश 
बे बह 
रदीफ़.. नहीं होता 
काफिया.. अार
13/2/2019
जो छिप कर किया जाये वो प्यार नहीं होता, 
बोलकर जो कभी इजहार नहीं होता, 
समझ सकते नहीं जो मौन की भाषा, 
चुप रहने का मतलब इंकार नहीं होता ll

दाग गर दामन में लग जाएं, 
छूटने का आसार नहीं होता l

सहते रहे शामो सहर दर्दे दिल, 
उसको सहने का कोई आकार नहीं होता l

धड़कनो की आवाज बन गए हो तुम, 
खून की बूंदो का अब संचार नहीं होता l

नहीं हो पायेगी इजहारे मोहब्बत "उत्साही "
चुप नहीं रहते गर प्यार नहीं होता l
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून

विषय-दाग
****************
धरती के बिछौने पर
आसमांँ की चादर ओढ़े
थर-थर काँंपता
बचपन फुटपाथ पर
भूख से तड़पता
दो रोटी की आस में
अमीरों के शहर में
उन्हें दिखते यह दाग से
कूड़े के ढेर पर
ढूंढते रोटी के टुकड़े
इस संसार का
एक यह भी जीवन है
जर्जर काया लिए
अभाव में तरसते
झेलते ज़िंदगी का दर्द
रोजी-रोटी को तलाशते
सांझ को निढाल हो
फिर भूख को ओढ़कर
करवटें बदलते हुए
गरीबी जिंदगी का
बदनुमा दाग बन
लील जाती ज़िंदगियांँ
न खाने को भोजन
न इलाज की सुविधा
एक दिन वहीं सड़क पर
लाश बनकर पड़े रह जाते
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना



दाग/धब्बा/कलंक/
(
1)
चाँद 
दूर गगन से
समझा रहा
दाग,धब्बे
महत्वहीन होते है
अंततः उजाला
मैं भी देता हूँ।।

(2)

ये जो
काला 
धब्बा है न
काश!
मुझमे भी होता
मैं भी चाँद सा
सबके मन भाता।।

(3)
चाँद देखा
बार बार देखा
उजास देखा
धब्बा,कलंक
कहीं छुप गया
हाँ, मन की नजर से
कमाल देखा।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित



हाइकु 
विषय:-"दाग" 
(1)
दाग कालिमा 
साहित्य श्वेत वस्त्र 
चुरी रचना 
(2)
लगाओ दाग़ 
कीचड़ फेंको खेल 
जीवन आज 
(3)
मीरजाफर 
भारत माँ आँचल 
गद्दारी दाग 
(4)
आतंकी दाग 
शहीद कफ़न पे 
वीरता गाथा 
(5)
हुए न साफ़ 
हृदय पे अंकित 
दुष्कर्म दाग 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

विधा :-महाशृंगार छंद
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

दाग जब देह पर लग जाते ,
छीन कर ले जाते मुस्कान ।
यही जब रूह पर लग जाते 
खींच कर ले जाते हैं प्राण ।

नहीं धुल पाते मृत्यु से
राख हो जाय है परेशान ।
भले ही बीतें कई सदियाँ 
दाग ही करते लहू लुहान ।

साँप जब आस्तीन के बनते ,
मित्र ही दिखते हैं शैतान ।
दाग लग जाते मित्रता पर ,
दृष्टि से गिर जाते इंसान ।

भूल कर बातें भेद भाव की , 
मनुज बन जाता है इंसान ।
दाग बिन देख देह प्राण को , 
मुक्ति दे देते हैं भगवान ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा 

स्वरचित लघु कविता
दिनांक 13.2.2019
दिन बुधवार
विषय दाग़
रचयिता पूनम गोयल

दाग़ कपड़ों पर
लग जाए ,
तो धुल जाए
फिर भी ।
चरित्र पर लगा दाग़ ,
न धो पाए कोई ।।
पूँजी है रुपया-पैसा ,
भौतिक जीवन की ।
और चरित्र पूँजी है ,
व्यक्ति के व्यक्तित्व की ।।
इसलिए रक्षा करें हम ,
इस चरित्र की सदा ।
और बचाएँ दाग़ लगने से ,
इसको सदा ।।
क्योंकि गयी धन-दौलत ,
फिर भी लौट आती है ।
पर दौलत चरित्र की ,
पलट के , कभी नहीं
आती है ।।
फिर कितने भी
करें यत्न ,
इसको फिर से
पाने के ।
पर तब तो बन जाते हैं ,
ढेरों फसाने ।।
बेदाग़ चरित्र तो
होता ,
ताज सिर का ,
है इसी से शान हमारी ।
इसके होते हुए ,
बाल भी न बाँका कर पाए ,
यह दुनिया सारी ।।

" दाग"
दामन के दाग को,
आँसूओं से धो रही हूँ,
कोसती हूँ उन लम्हों को,
दिन-रात रो रही हूँ,
लोक-लाज के दर्द पर,
कोख की विशेषताएँ,
आगे जब देखती हूँ,
अंधकार ही दिखाए,
लोगों के ताने सुन- सुन,
दिन-रात खो रही हूँ,
उसका अता पता नहीं,
रहा न ठिकाना,
सोचती हूँ आगे,
क्या कहेगा जमाना,
ख्वाबों को अपने गम संग,
पल -पल कोसती हूँ,
चिंता से घटा शरीर है,
सूख गई है काया,
समझ ना सकी कुदरत,
कैसी है तेरी माया,
बुझ ना पाए दीप मेरा,
बला को रोकती हूँ,
चाहूँ देखना तुझे,
नैन जब भी खोलती हूँ।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
13/2/19
बुधवार



दाग तेरे दामन के छुपा लिए होते हमने,
कुछ कदम तो चलते साथ,
पलकों तले ख्वाब सजा लिए होते हमने।।

डोर विश्वास की थामें रहते,
कांटे चुन फूल बिछा दिए होते हमने 

यकीनन किस्सा इन दागों का नही,
होते हैं सभी के दामन में,
कुछ हल्के कुछ गहरे 
कुछ पर्दा कुछ बेपर्दा !
मोहलत थोड़ी वक्त से मांगी होती 
अधरों से चूम शिकवे मिटा दिए होते हमने 

गिला तेरी जल्दबाजी से हरगिज़ नहीं ।
शिकवा मुझे हालातों से है,
थोड़ा ठहरती,
पतझड़ को तेरी वसंत बना दिया होता हमने 

बे सुकून बेबस सी रूह रह गई नीलम,
काश उम्मीदों के चिराग पहले जला दिए होते हमने।।

नीलम तोलानी

स्वरचित।

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