ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-307
करते नहीं वार निहत्थों पर..
यही है हिंदुस्तान के संस्कार..
कितना रहम किया प्रताप ने..
पढ़ लो अकबर नामा एक बार...
इतिहास डूबो दिया चंद गद्दारों ने..
माँ भारती को लहू से भिगोया है सरदारों ने..
देखो गुरु गोविंद सिंह का बलिदान...
धर्म के नाम पर कर दिए बालक कुर्बान..
करते रहे वही अंग्रेजों की गुलामी..
जिनका मर चूका था जमीर..
सहे प्रहार भगत,बिस्मिल ने भी..
पर त्यागा नहीं कभी अपना जमीर...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
यही है हिंदुस्तान के संस्कार..
कितना रहम किया प्रताप ने..
पढ़ लो अकबर नामा एक बार...
इतिहास डूबो दिया चंद गद्दारों ने..
माँ भारती को लहू से भिगोया है सरदारों ने..
देखो गुरु गोविंद सिंह का बलिदान...
धर्म के नाम पर कर दिए बालक कुर्बान..
करते रहे वही अंग्रेजों की गुलामी..
जिनका मर चूका था जमीर..
सहे प्रहार भगत,बिस्मिल ने भी..
पर त्यागा नहीं कभी अपना जमीर...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
चोट वार प्रहार न करते हम
सत्य अहिंसा के पथ चलते
सर्व सुखाय हो जगति जन
परोपकार पथ पर हम बढ़ते
कायराना कोई वार करे तो
फिर आँखो में शोला बरसे
नापाक धरती ऊपर हर जन
बूँद बूँद पानी नित तरसे
वार चोट हमले नित करते
खण्ड खण्ड तुम्हे किया है
हमने तुमको दूध पिलाया
तेने सदा जहर उगला है
पीठ पीछे कभी न लड़ते
सदा प्रहार आगे बढ़ करते
वीर भूमि भारत की धरती
हम जग के संताप ही हरते
उल्टी गिनती शुरू हो गई
चोट वार प्रहार बाकी है
अरे सपोलों शर्म डूब मरो
मौत नाच रही रब साक्षी है
वार किया था जब हमने तो
मुण्ड मुण्ड पर मुण्ड कटे थे
शोणित धार बही पाक थी
रुंड प्रचंड बन वँहा खड़े थे
दन दना दन गोली बरसी थी
वार किया था भारत माता ने
चोट चोट पर चोट निराली
सर कलम कर दिये दाता ने
खून का बदला खून ही होता
वार कभी खाली नहीं जाता
वार प्रहार चोट सब देंगे अब
सुन्दर सुखमय भारत माता।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
सत्य अहिंसा के पथ चलते
सर्व सुखाय हो जगति जन
परोपकार पथ पर हम बढ़ते
कायराना कोई वार करे तो
फिर आँखो में शोला बरसे
नापाक धरती ऊपर हर जन
बूँद बूँद पानी नित तरसे
वार चोट हमले नित करते
खण्ड खण्ड तुम्हे किया है
हमने तुमको दूध पिलाया
तेने सदा जहर उगला है
पीठ पीछे कभी न लड़ते
सदा प्रहार आगे बढ़ करते
वीर भूमि भारत की धरती
हम जग के संताप ही हरते
उल्टी गिनती शुरू हो गई
चोट वार प्रहार बाकी है
अरे सपोलों शर्म डूब मरो
मौत नाच रही रब साक्षी है
वार किया था जब हमने तो
मुण्ड मुण्ड पर मुण्ड कटे थे
शोणित धार बही पाक थी
रुंड प्रचंड बन वँहा खड़े थे
दन दना दन गोली बरसी थी
वार किया था भारत माता ने
चोट चोट पर चोट निराली
सर कलम कर दिये दाता ने
खून का बदला खून ही होता
वार कभी खाली नहीं जाता
वार प्रहार चोट सब देंगे अब
सुन्दर सुखमय भारत माता।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
***************
प्रहार खुद पर कर रहे हो क्यों मनु अब तुम भला
धर्म ही बस नष्ट होगा मान लो तुम सब यहाँ
प्रेम भूले,नेह भूले,दया,मधुरता भूल बैठे
हिय हरीतिमा स्पंदित होगा,भला इनके बिना?
कटुता,अस्त्र-शस्त्रों के वार क्यों न त्याग दो
मिलता नहीं कुछ भी इनसे मर्म तुम यह जान लो
मति भ्रष्ट -त्रस्त अब तक बहुत तुम हो कर चुके
छोड़ इन कुकृत्यों को मानवता का उपहार दो।।
व्यस्त रखो स्वयं को सुसंस्कृत साहित्य में सदा
पाश्चात्य, धन,वासना को,त्याग देना सर्वदा
मूल यही कर रहा भ्रष्ट हमारे तंत्र को
संभलो समय है,प्रहार रोको,बाग कर दो फिर हरा।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक
प्रहार खुद पर कर रहे हो क्यों मनु अब तुम भला
धर्म ही बस नष्ट होगा मान लो तुम सब यहाँ
प्रेम भूले,नेह भूले,दया,मधुरता भूल बैठे
हिय हरीतिमा स्पंदित होगा,भला इनके बिना?
कटुता,अस्त्र-शस्त्रों के वार क्यों न त्याग दो
मिलता नहीं कुछ भी इनसे मर्म तुम यह जान लो
मति भ्रष्ट -त्रस्त अब तक बहुत तुम हो कर चुके
छोड़ इन कुकृत्यों को मानवता का उपहार दो।।
व्यस्त रखो स्वयं को सुसंस्कृत साहित्य में सदा
पाश्चात्य, धन,वासना को,त्याग देना सर्वदा
मूल यही कर रहा भ्रष्ट हमारे तंत्र को
संभलो समय है,प्रहार रोको,बाग कर दो फिर हरा।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक
‘आख़री इज़हार‘
दिल चीर कर मेरा देखो तुम कितना अघाड है प्यार
दूरियाँ मुझसे बढ़ाकर किया तुमने दिल पर मेरे ‘वार’
हर जीवन मैं जीउ तेरे प्यार में था मेरा एक अरमान
हर जीवन ना सही इस जीवन रखले प्यार का मान
प्यार मेरा इतना हल्का नही था कभी मानो मेरे यार
क्या हुई खाता हमसे, दिल में मत रखना कोई भार
हटालेना तेरे दिल से मेरे लिए भरी अपनी ये खटास
अखरी बार ही सही चखकर देख प्यार की मिठास
अखरी इज़हार तुमसे, मेरा प्रेम भी है अखरी तुमसे
मत जाना दूर तुम मुझसे क्या तकलीफ़ हुई हमसे
एक साथ जियेंगे मिलकर के फिर हम दोनो आज
लेखन की दुनिया में ‘स्वर्ण’ सा चमकेगा ये ‘राज’
✍🏻 राज मालपाणी
शोरापुर - कर्नाटक
दिल चीर कर मेरा देखो तुम कितना अघाड है प्यार
दूरियाँ मुझसे बढ़ाकर किया तुमने दिल पर मेरे ‘वार’
हर जीवन मैं जीउ तेरे प्यार में था मेरा एक अरमान
हर जीवन ना सही इस जीवन रखले प्यार का मान
प्यार मेरा इतना हल्का नही था कभी मानो मेरे यार
क्या हुई खाता हमसे, दिल में मत रखना कोई भार
हटालेना तेरे दिल से मेरे लिए भरी अपनी ये खटास
अखरी बार ही सही चखकर देख प्यार की मिठास
अखरी इज़हार तुमसे, मेरा प्रेम भी है अखरी तुमसे
मत जाना दूर तुम मुझसे क्या तकलीफ़ हुई हमसे
एक साथ जियेंगे मिलकर के फिर हम दोनो आज
लेखन की दुनिया में ‘स्वर्ण’ सा चमकेगा ये ‘राज’
✍🏻 राज मालपाणी
शोरापुर - कर्नाटक
बार बार प्रहार से ही फौलाद तलवार हुआ ,
वक्त के प्रहार से ही मासूम समझादार हुआ ,
लौह के प्रहार से जब जब काँप उठी है धरा ,
नये नये शस्त्रो का विश्व में अविष्कार हुआ |
बेवजह ही जब कभी प्रहार मानवता पर हुआ ,
उजड़ गये बसे हुये चमन घायल विश्वास हुआ ,
यहाँ पर भूलकर दया धर्म प्रहार जब होता रहा,
शांति के लिऐ ही तो तब संधि का चलन हुआ |
बल का प्रमाद जब किसी तरह न कम हुआ ,
सुरक्षा के लिऐ वार फिर आतंकियों पर हुआ ,
हमेशा दंड पापियों को इसी तरह मिलता रहा ,
यूँ ही विश्व बंधुत्व धरा पर अंततः कायम हुआ |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश,
वक्त के प्रहार से ही मासूम समझादार हुआ ,
लौह के प्रहार से जब जब काँप उठी है धरा ,
नये नये शस्त्रो का विश्व में अविष्कार हुआ |
बेवजह ही जब कभी प्रहार मानवता पर हुआ ,
उजड़ गये बसे हुये चमन घायल विश्वास हुआ ,
यहाँ पर भूलकर दया धर्म प्रहार जब होता रहा,
शांति के लिऐ ही तो तब संधि का चलन हुआ |
बल का प्रमाद जब किसी तरह न कम हुआ ,
सुरक्षा के लिऐ वार फिर आतंकियों पर हुआ ,
हमेशा दंड पापियों को इसी तरह मिलता रहा ,
यूँ ही विश्व बंधुत्व धरा पर अंततः कायम हुआ |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश,
पीठ पीछे वार करनेवाले
कभी सामने आओ तुम
है जिगर तो अपना मुँह खोलो
पीठ पीछे न कटु शब्द बोलो
मनुज नही दनुज हो तुम
भीरू,बुजदिल संभलो तुम
हो तुम जड़ मूढ़ अज्ञानी
हम है सनातन धर्म धारी
विभाजित नही पूरा संसार हमारा
सभी से है संबंध न्यारा
ध्वज सदा ऊँचा रहे हमारा
धन ओ जन न्योछावर हर पल
ब्याल ,फन स्वयं हम कुचलेंगे
हम है केशरी, जीत के रहेंगे
अन्याय नही अब हम सहेंगे
ऋषि मुनियों का देश हमारा
अधर्म हम नही करेंगे
पर स्वाभिमान है सबसे आगे
तुरुप चाल हम नही सहेंगे
अब शांत न हम बैठेंगे।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव।
कभी सामने आओ तुम
है जिगर तो अपना मुँह खोलो
पीठ पीछे न कटु शब्द बोलो
मनुज नही दनुज हो तुम
भीरू,बुजदिल संभलो तुम
हो तुम जड़ मूढ़ अज्ञानी
हम है सनातन धर्म धारी
विभाजित नही पूरा संसार हमारा
सभी से है संबंध न्यारा
ध्वज सदा ऊँचा रहे हमारा
धन ओ जन न्योछावर हर पल
ब्याल ,फन स्वयं हम कुचलेंगे
हम है केशरी, जीत के रहेंगे
अन्याय नही अब हम सहेंगे
ऋषि मुनियों का देश हमारा
अधर्म हम नही करेंगे
पर स्वाभिमान है सबसे आगे
तुरुप चाल हम नही सहेंगे
अब शांत न हम बैठेंगे।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव।
कितनी चोटें दिल है सहता ,
अश्रु पोंछ के ज़िंदा रहता ।
घूँट जहर के पीता रहता ,
ख़ुद से ही शर्मिंदा रहता ।
व्यंग बाण संधान करें जब ,
दिल पर होते घाव गम्भीर ।
शब्दों के नख निकले रहते ,
मानों लगे नावक के तीर ।
जब भी चोट खाई पत्थर से ,
पीड़ा केवल तन ने भोगी ।
असह प्रहार बने शब्दों के ,
मन अंतस तक बनता रोगी ।
चोटें ग़ैरों से दिल खाकर ,
ठान लेता मन में प्रतिशोध ।
गरल पान सम्बन्धों का करते ,
अंकित नहीं होने दे क्रोध ।
कुछ चोटों के घाव पुष्प बन ,
दिल में सदा महकते रहते ।
छुप कर रहता सुख पीडा मे ,
याद के पंछी चहकते रहते ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
अश्रु पोंछ के ज़िंदा रहता ।
घूँट जहर के पीता रहता ,
ख़ुद से ही शर्मिंदा रहता ।
व्यंग बाण संधान करें जब ,
दिल पर होते घाव गम्भीर ।
शब्दों के नख निकले रहते ,
मानों लगे नावक के तीर ।
जब भी चोट खाई पत्थर से ,
पीड़ा केवल तन ने भोगी ।
असह प्रहार बने शब्दों के ,
मन अंतस तक बनता रोगी ।
चोटें ग़ैरों से दिल खाकर ,
ठान लेता मन में प्रतिशोध ।
गरल पान सम्बन्धों का करते ,
अंकित नहीं होने दे क्रोध ।
कुछ चोटों के घाव पुष्प बन ,
दिल में सदा महकते रहते ।
छुप कर रहता सुख पीडा मे ,
याद के पंछी चहकते रहते ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
गीत,
जीवन के,
दुखों को भुलाते,
चलिऐ,
समय के साथ,
हंसते हंसाते,
चलिए।।
अ पने एकाकी पन,
महकाने,
मन के धूप को,
जलाते चलिए।।
नित्य नये रुपों में,
ढलने को,
अपने सांसों को,
गलाते चलिए।
मन में,
जाग जाए,
सुप्त चोट कभी,
थपकियां दे के,
सुलाते चहिए,
हर तरफ,
रोशनी महकती,
दिल का दीया,
जलाते चलिए।।
जीवन में,
सूनापन न डसे,
अंधेरों पर गीत,
सजाते चलिए।।
जीवन के,
दुखों को भुलाते,
चलिऐ,
समय के साथ,
हंसते हंसाते,
चलिए।।
अ पने एकाकी पन,
महकाने,
मन के धूप को,
जलाते चलिए।।
नित्य नये रुपों में,
ढलने को,
अपने सांसों को,
गलाते चलिए।
मन में,
जाग जाए,
सुप्त चोट कभी,
थपकियां दे के,
सुलाते चहिए,
हर तरफ,
रोशनी महकती,
दिल का दीया,
जलाते चलिए।।
जीवन में,
सूनापन न डसे,
अंधेरों पर गीत,
सजाते चलिए।।
१.
डरा डरा दुश्मन उधर,
इधर सैन्य तैयार।
देश समर्थन दे रहा, सही समय दरकार।
अस्त्र शस्त्र से लैस हैं, भारत वीर जवान -
बहुत हुई चेतावनी, अब हो युद्ध प्रहार ।
२.
आय तिरंगे में लिपट,
भारत माँ के वीर।
रक्षा में निज राष्ट्र की,
हुआ शहीद शरीर।
कृतज्ञ राष्ट्र युँ दे रहा,
इज्जत जय जयकार-
आतंकी टोली दिखे, कर प्रहार दें चीर।
***********************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी ' बड़वानी(म.प्र)451551
डरा डरा दुश्मन उधर,
इधर सैन्य तैयार।
देश समर्थन दे रहा, सही समय दरकार।
अस्त्र शस्त्र से लैस हैं, भारत वीर जवान -
बहुत हुई चेतावनी, अब हो युद्ध प्रहार ।
२.
आय तिरंगे में लिपट,
भारत माँ के वीर।
रक्षा में निज राष्ट्र की,
हुआ शहीद शरीर।
कृतज्ञ राष्ट्र युँ दे रहा,
इज्जत जय जयकार-
आतंकी टोली दिखे, कर प्रहार दें चीर।
***********************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी ' बड़वानी(म.प्र)451551
***************
दिल पर लगी चोट बड़ी गहरी,
जिसे हम बता भी नहीं सकते,
घाव जो अपनें ही दे रहे हैं ,
उन्हें हम दिखा भी नहीं सकते |
वफा हम करते ही जा रहे,
वेवफाई तो वो ही दिखा रहे,
कमजोरी समझकर वो इसे हमारी,
पीठ पर वार करते ही जा रहे |
कायर हम नहीं समझ ले तू गद्दार,
जो चोट देगा अब करेंगे तेरा संहार,
खून की एक-एक बूँद का लेंगे हिसाब,
बस अब मिलेगा तुझे करारा जवाब |
जय हिंद !
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दिल पर लगी चोट बड़ी गहरी,
जिसे हम बता भी नहीं सकते,
घाव जो अपनें ही दे रहे हैं ,
उन्हें हम दिखा भी नहीं सकते |
वफा हम करते ही जा रहे,
वेवफाई तो वो ही दिखा रहे,
कमजोरी समझकर वो इसे हमारी,
पीठ पर वार करते ही जा रहे |
कायर हम नहीं समझ ले तू गद्दार,
जो चोट देगा अब करेंगे तेरा संहार,
खून की एक-एक बूँद का लेंगे हिसाब,
बस अब मिलेगा तुझे करारा जवाब |
जय हिंद !
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
चोट खाइये
हां संभल जाइये
पछताइये।।
वोट की चोट
लोकतंत्र रक्षक
बिकते लोग।।
घाव गहरा
माता पिता उपेक्षा
सदमा लगा।
असह्य पीड़ा
बृद्धाश्रम बसेरा
दिल पे चोट।।
किया प्रहार
खेत रहा विरोधी
गुरिल्ला युद्ध।।
भावुक
21.02.2019
हां संभल जाइये
पछताइये।।
वोट की चोट
लोकतंत्र रक्षक
बिकते लोग।।
घाव गहरा
माता पिता उपेक्षा
सदमा लगा।
असह्य पीड़ा
बृद्धाश्रम बसेरा
दिल पे चोट।।
किया प्रहार
खेत रहा विरोधी
गुरिल्ला युद्ध।।
भावुक
21.02.2019
कोई प्रहार सहूं मैं लेकिन
वार पीठ पर नहीं ले पाऊँ।
नीच समझता हूं उनको मै,
जबाव अगर नहीं दे पाऊँ।
हृदय विदीर्ण होता है मेरा
चोट कहीं दिल पर लगती है।
आघात सभी सामने झेलूं,
मगर बात सीने में खलती है।
नहीं चाहता स्वयं कभी मै
पीठ पीछे से वार करूँ।
यह स्वाभाव नहीं है मेरा,
निहत्थे पर प्रहार करूँ।
अस्त्र शस्त्र की बात ही छोडें,
वाणी ही हथियार बडा है।
इसके आगे सभी हुए भोंथरे,
इस वाणी का प्रहार बला है।
कटुता कभी न आऐ मन में,
मै चोट करूं तो मीठी बोली से।
इतनी सहिष्णुता देना भगवन,
बिचलित न हो पाऊं गोली से।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
वार पीठ पर नहीं ले पाऊँ।
नीच समझता हूं उनको मै,
जबाव अगर नहीं दे पाऊँ।
हृदय विदीर्ण होता है मेरा
चोट कहीं दिल पर लगती है।
आघात सभी सामने झेलूं,
मगर बात सीने में खलती है।
नहीं चाहता स्वयं कभी मै
पीठ पीछे से वार करूँ।
यह स्वाभाव नहीं है मेरा,
निहत्थे पर प्रहार करूँ।
अस्त्र शस्त्र की बात ही छोडें,
वाणी ही हथियार बडा है।
इसके आगे सभी हुए भोंथरे,
इस वाणी का प्रहार बला है।
कटुता कभी न आऐ मन में,
मै चोट करूं तो मीठी बोली से।
इतनी सहिष्णुता देना भगवन,
बिचलित न हो पाऊं गोली से।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
हर दर्द सहने की अब एक आदत सी हो गई।
चोट को भी इस दिल से मोहब्बत सी हो गई।।
इस गमज़दा जिंदगी में जख्म ही मिलते रहे।
हर गम के घूँट पीने की अब आदत सी हो गई।।
ख्यालों में उसका अब मिलना हुआ मुश्किल।
यादों से उसकी अब एक अदावत सी हो गई।।
सोचा था मलहम बना लेंगे यादों को उनकी।
पर यादों को भी आए एक मुद्दत सी हो गई।।
चोट थी ऐसी गहरी जख्म से नासूर बन गई।
अब ये चोट ही उनकी अमानत सी हो गई।।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
चोट को भी इस दिल से मोहब्बत सी हो गई।।
इस गमज़दा जिंदगी में जख्म ही मिलते रहे।
हर गम के घूँट पीने की अब आदत सी हो गई।।
ख्यालों में उसका अब मिलना हुआ मुश्किल।
यादों से उसकी अब एक अदावत सी हो गई।।
सोचा था मलहम बना लेंगे यादों को उनकी।
पर यादों को भी आए एक मुद्दत सी हो गई।।
चोट थी ऐसी गहरी जख्म से नासूर बन गई।
अब ये चोट ही उनकी अमानत सी हो गई।।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिल पे जब लगती है चोट,
रुह भी तड़प उठती है।
जज्बातों पर प्रहार क्यों
लोग बार-बार करते हैं।
चोट से मन में टीस उठती है जब
आँखों से आँसू छलक जाते हैं।
घृणा से ना कुछ हासिल हुआ,
फिर भी ये दीवारें खड़ी करते हैं।
प्रेम का एहसास करने वाले
पलटवार कभी ना करते हैं।
नफरत की आग में देखो,
घृणा करने वाले ही जलते हैं।
शिकवे गिले भूलाकर हम ..
शांति का पैगाम लिए चलते हैं
बार-बार जज्बाती चोट खाकेभी
अपने संस्कारों से झुक जाते है।
गुलाब काँटों के संग रहके भी
सुगंध अपना नहीं खोते हैं।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
रुह भी तड़प उठती है।
जज्बातों पर प्रहार क्यों
लोग बार-बार करते हैं।
चोट से मन में टीस उठती है जब
आँखों से आँसू छलक जाते हैं।
घृणा से ना कुछ हासिल हुआ,
फिर भी ये दीवारें खड़ी करते हैं।
प्रेम का एहसास करने वाले
पलटवार कभी ना करते हैं।
नफरत की आग में देखो,
घृणा करने वाले ही जलते हैं।
शिकवे गिले भूलाकर हम ..
शांति का पैगाम लिए चलते हैं
बार-बार जज्बाती चोट खाकेभी
अपने संस्कारों से झुक जाते है।
गुलाब काँटों के संग रहके भी
सुगंध अपना नहीं खोते हैं।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
वार करे कोई सीने पर वह तो हम सह सकते हैं,
वार पीठ पर स्वीकार नहीं ! मौत से भी
लड़ सकते हैं।
चोट जो दुश्मन देता हैं वह तो गले उतरता हैं ,
पर चोट करे जब कोई अपना वह बहुत खटकता हैं।
छोटी-छोटी बातों में लडा़ई झगडे़ जब हो जाते हैं,
बस वहीं एक बडा़ रूप ले एक-दूजे को मार गिराते हैं ।
खून खराबा कर निर्दोषों का ये तनिक नहीं लज्जाते हैं,
चंद पैसों में बिक गद्धारी कर देश का
नाम डूबोते हैं।
वार सह लेते खुशी-खुशी क्योंकि वह तो भर जाता हैं,
पर कटू वाणी का जो प्रहार होता वह नहीं भरपाता हैं।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
वार पीठ पर स्वीकार नहीं ! मौत से भी
लड़ सकते हैं।
चोट जो दुश्मन देता हैं वह तो गले उतरता हैं ,
पर चोट करे जब कोई अपना वह बहुत खटकता हैं।
छोटी-छोटी बातों में लडा़ई झगडे़ जब हो जाते हैं,
बस वहीं एक बडा़ रूप ले एक-दूजे को मार गिराते हैं ।
खून खराबा कर निर्दोषों का ये तनिक नहीं लज्जाते हैं,
चंद पैसों में बिक गद्धारी कर देश का
नाम डूबोते हैं।
वार सह लेते खुशी-खुशी क्योंकि वह तो भर जाता हैं,
पर कटू वाणी का जो प्रहार होता वह नहीं भरपाता हैं।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
लहर और किनारे
लहरों क्यों यूं बेकल हो
किनारों से टकराती हो
मुक्ति के लिए
ज्यों छटपटाती हो
किनारों को देखो
पहरी सा बांधे रहते है तुम्हें
तुम फिर भी जोर आजमाती
बार बार चोट पहुंचाती
वो चोट सह कर भी
धैर्य से अडिग रहता
पर तुम जानती हो
वो एक दिन टूटेगा
वो टूटता है कमजोर हो एक दिन
और तुम आजाद हो बाहर आती
मचलती लहराती
तुम तो मुक्त हो इठलाती
पर नही जानती कितनी
तबाही लाती सब बरबाद कर जाती ।
लहरों क्यों बेकल ......
कुसुम कोठारी
लहरों क्यों यूं बेकल हो
किनारों से टकराती हो
मुक्ति के लिए
ज्यों छटपटाती हो
किनारों को देखो
पहरी सा बांधे रहते है तुम्हें
तुम फिर भी जोर आजमाती
बार बार चोट पहुंचाती
वो चोट सह कर भी
धैर्य से अडिग रहता
पर तुम जानती हो
वो एक दिन टूटेगा
वो टूटता है कमजोर हो एक दिन
और तुम आजाद हो बाहर आती
मचलती लहराती
तुम तो मुक्त हो इठलाती
पर नही जानती कितनी
तबाही लाती सब बरबाद कर जाती ।
लहरों क्यों बेकल ......
कुसुम कोठारी
हमारे विश्वास पर ,करता रहा चोट
धोखे से कर दिया, पाक ने विस्फोट
पत्थरबाजों में दिखा, सारा उनका खोट
धारा 370 के ,बिखर गये अखरोट।
पाक पर अब करो, भीषण बडे़ प्रहार
आतंकियों पर भी पड़ेगी ,यहीं से तगडी़ मार
इनकी आतंकी गतिविधियों पर ,है इन्हें धिक्कार
अब तो लड़ाई हो शुरु, और होवे आरम्पार।
जारी रहे इन निकृष्ठों पर ,प्रहारों का क्रम
ये सारे आतंकी ही, हैं बड़े निर्मम
अब है अवसर तोड़ दो ,इनका सारा भ्रम
जम कर करो प्रहार, निकले इनका दम।
धोखे से कर दिया, पाक ने विस्फोट
पत्थरबाजों में दिखा, सारा उनका खोट
धारा 370 के ,बिखर गये अखरोट।
पाक पर अब करो, भीषण बडे़ प्रहार
आतंकियों पर भी पड़ेगी ,यहीं से तगडी़ मार
इनकी आतंकी गतिविधियों पर ,है इन्हें धिक्कार
अब तो लड़ाई हो शुरु, और होवे आरम्पार।
जारी रहे इन निकृष्ठों पर ,प्रहारों का क्रम
ये सारे आतंकी ही, हैं बड़े निर्मम
अब है अवसर तोड़ दो ,इनका सारा भ्रम
जम कर करो प्रहार, निकले इनका दम।
चोट
मैं
चला जा रहा था
राह पर
ठोकर लगी
चोट गहरी थी
अंगूठे में
मैने सड़क पर पड़े
पत्थर की उलाहना की
और आगे बढ़ गया
एक कांटें ने चुभ कर
फिर मेरे पैर को
चोट पहुँचाई
असहनीय पीड़ा को
सहते हुए भी
मैं
आगे बढता रहा
उस ठोकर लगाने वाले
पत्थर को ना हटा कर
और
उस पैर में चुभने वाले
कांटे को ना हटा कर
मेरे पीछे और भी
आ रहे है साथी
मैंने जो पीड़ा भोगी है
वह दूसरे नही भोगें
यह मैंने नही सोचा
जबकि मुझे ऐसा सोचना था
अगर ऐसा सोचता तो
मैं राह की दिक्कतों को
दूर करता जाता
जिससे सुगम होते रास्ते
मेरे अजनबी
मेरे अनजान
दोस्तों के वास्ते
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
मैं
चला जा रहा था
राह पर
ठोकर लगी
चोट गहरी थी
अंगूठे में
मैने सड़क पर पड़े
पत्थर की उलाहना की
और आगे बढ़ गया
एक कांटें ने चुभ कर
फिर मेरे पैर को
चोट पहुँचाई
असहनीय पीड़ा को
सहते हुए भी
मैं
आगे बढता रहा
उस ठोकर लगाने वाले
पत्थर को ना हटा कर
और
उस पैर में चुभने वाले
कांटे को ना हटा कर
मेरे पीछे और भी
आ रहे है साथी
मैंने जो पीड़ा भोगी है
वह दूसरे नही भोगें
यह मैंने नही सोचा
जबकि मुझे ऐसा सोचना था
अगर ऐसा सोचता तो
मैं राह की दिक्कतों को
दूर करता जाता
जिससे सुगम होते रास्ते
मेरे अजनबी
मेरे अनजान
दोस्तों के वास्ते
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
चोट लगती
जब हम गिरते
आँखों में नीर
मन डरता
दिल चोट खाता
प्रीति की डोर
चोट की पीड़ा
हमें नहीं डराती
फौजी जवान
नीयति खोट
गहरी होती चोट
उदास मन
देश की रक्षा
सीमा पर जवान
सह प्रहार
जिस्मानी चोट
जल्दी भर जाती
शरीर कष्ट
दिल की चोट
घाव देती ताउम्र
प्यार की राह
मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
जब हम गिरते
आँखों में नीर
मन डरता
दिल चोट खाता
प्रीति की डोर
चोट की पीड़ा
हमें नहीं डराती
फौजी जवान
नीयति खोट
गहरी होती चोट
उदास मन
देश की रक्षा
सीमा पर जवान
सह प्रहार
जिस्मानी चोट
जल्दी भर जाती
शरीर कष्ट
दिल की चोट
घाव देती ताउम्र
प्यार की राह
मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
चोट
*****************"
कलाकार के सुघड़ हाथ
अनगढ़ पत्थर पर
करते हल्की-हल्की चोट
निखरता पाषाण-रूप
साकार प्रतिमा
बोल पड़ेगी जैसे अभी।
प्रहार
*******************
बार-बार किया प्रहार
झुका पर्वत
पर्वत के समक्ष
बना रास्ता लिया दम
हो गए अमर
दशरथ मांझी।
वार
*****************
तीर-तलवार से
पैनी धार
करे ऐसा वार
दिल पर लगे
आंखें रोए
बने नासूर
वाणी के वार।
******************
अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक
*****************"
कलाकार के सुघड़ हाथ
अनगढ़ पत्थर पर
करते हल्की-हल्की चोट
निखरता पाषाण-रूप
साकार प्रतिमा
बोल पड़ेगी जैसे अभी।
प्रहार
*******************
बार-बार किया प्रहार
झुका पर्वत
पर्वत के समक्ष
बना रास्ता लिया दम
हो गए अमर
दशरथ मांझी।
वार
*****************
तीर-तलवार से
पैनी धार
करे ऐसा वार
दिल पर लगे
आंखें रोए
बने नासूर
वाणी के वार।
******************
अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक
कई प्रहार जवान सरहद पे सहते।
सीना तान सभी डटकर ये लडते।
सदैव ऋणी रहेंगे अपने वीरों के,
जबकि वार जवान सरहद पे सहते।
सरहद पे जवान डटा है अपनी
क्यों कर हमें चिंता कुछ करना।
चाहे कैसा मौसम ऋतु आऐं जाऐं,
सदा सावधान सैनिक को रहना।
इनके रहने से हम सुरक्षित रहते,
चैन की नींद भारतवासी सोते।
सैनिक सीमा पर कष्ट झेल कर
कभी ये वलिदान राष्ट्रहित होते।
अपना भी हम कुछ फर्ज निभाऐं।
हम साथ जवानों के हो दिखलाऐं।
होसला अफजाई करें सब इनका,
हम भी साथ आपके इन्हें बतलाऐं।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
सीना तान सभी डटकर ये लडते।
सदैव ऋणी रहेंगे अपने वीरों के,
जबकि वार जवान सरहद पे सहते।
सरहद पे जवान डटा है अपनी
क्यों कर हमें चिंता कुछ करना।
चाहे कैसा मौसम ऋतु आऐं जाऐं,
सदा सावधान सैनिक को रहना।
इनके रहने से हम सुरक्षित रहते,
चैन की नींद भारतवासी सोते।
सैनिक सीमा पर कष्ट झेल कर
कभी ये वलिदान राष्ट्रहित होते।
अपना भी हम कुछ फर्ज निभाऐं।
हम साथ जवानों के हो दिखलाऐं।
होसला अफजाई करें सब इनका,
हम भी साथ आपके इन्हें बतलाऐं।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधा-हाइकु
1.
खतरनाक
परमाणु प्रहार
प्रलयंकारी
2.
पुरानी चोट
बढ़ाती परेशानी
मन में खोट
3.
सिर में चोट
गम्भीर दुर्घटना
यादास्त खोयी
4.
लूट खसोट
दूषित समाज में
गहरी चोट
5.
दिल की चोट
सालती उम्र भर
प्यार खो कर
6.
अंतिम वार
अनुशासनहीन
शांति पे भारी
7.
आतंकवाद
खिलवाड़ देश पे
गम्भीर चोट
------
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
1.
खतरनाक
परमाणु प्रहार
प्रलयंकारी
2.
पुरानी चोट
बढ़ाती परेशानी
मन में खोट
3.
सिर में चोट
गम्भीर दुर्घटना
यादास्त खोयी
4.
लूट खसोट
दूषित समाज में
गहरी चोट
5.
दिल की चोट
सालती उम्र भर
प्यार खो कर
6.
अंतिम वार
अनुशासनहीन
शांति पे भारी
7.
आतंकवाद
खिलवाड़ देश पे
गम्भीर चोट
------
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
खिलौना समझ कर तुम
जो चोट कर गई दिल पर
मैं अचंभित-सा खड़ा मौन
सुनता रहा तुम्हारे कटु वचनों
बींध दिया अंतर्मन मेरा
तेरे तीष्ण प्रहारों ने
रौंद डाले मेरे स्वप्नों को
अपने कदमों तले
लौट गईं तुम तो वापस
अपनी चकाचौंध भरी दुनियाँ में
मैं समेटता् रहा खुद को
तिनका-तिनका बिखरने से
यादों में डूबते-उतराते
खड़ा हुआ अपने कदमों पर
संभला भी नहीं कि तुम लौट आईं
अतंस में प्रेम की लौ जगाती
फिर वही कोमल अहसास ले
यह कोई छल है या सत्य
या फिर वार करने का प्रयास कोई
गूंजती है कानों में आज भी
वो दिल तोड़ती बातें
अनगिनत जख्म दे गईं थीं तुम
वक़्त के मरहम से संभला हूँ
फिर तुम्हें देख अचंभित हूँ
पर मृगतृष्णाओं के पीछे
भागना छोड़ दिया मैंने
प्रेम लताएं अब सूख चुकी है
समझ गया हूँ मैं यह खूब
रेगिस्तान में कोंपले नहीं खिलती
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
जो चोट कर गई दिल पर
मैं अचंभित-सा खड़ा मौन
सुनता रहा तुम्हारे कटु वचनों
बींध दिया अंतर्मन मेरा
तेरे तीष्ण प्रहारों ने
रौंद डाले मेरे स्वप्नों को
अपने कदमों तले
लौट गईं तुम तो वापस
अपनी चकाचौंध भरी दुनियाँ में
मैं समेटता् रहा खुद को
तिनका-तिनका बिखरने से
यादों में डूबते-उतराते
खड़ा हुआ अपने कदमों पर
संभला भी नहीं कि तुम लौट आईं
अतंस में प्रेम की लौ जगाती
फिर वही कोमल अहसास ले
यह कोई छल है या सत्य
या फिर वार करने का प्रयास कोई
गूंजती है कानों में आज भी
वो दिल तोड़ती बातें
अनगिनत जख्म दे गईं थीं तुम
वक़्त के मरहम से संभला हूँ
फिर तुम्हें देख अचंभित हूँ
पर मृगतृष्णाओं के पीछे
भागना छोड़ दिया मैंने
प्रेम लताएं अब सूख चुकी है
समझ गया हूँ मैं यह खूब
रेगिस्तान में कोंपले नहीं खिलती
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
हर रिश्ता हम कुछ इस तरह से निभाते रहे
दिल पर गहरी चोट खाकर भी मुस्कराते रहे
अब नहीं सुननी हैं दिल की बात
दिल की बात सुनकर हर रिश्ते में खा ली हैं मात.
जिंदगी के इस सफर में कई सबक सीखने बाकी हैं
ठोकरे खाकर ही जिंदगी जीने का अंदाज बाकी हैं
कुछ जिंदगी का दर्द सीखना अभी बाकी हैं
दिल में एक और चोट खानी बाकी हैं .
जिनके दिल में चोट गहरी लगती हैं
वो दिल से रोते हैं
मेरे हालातों ने मुझे सिखाया हैं
सपने टूटकर बिखर जाते हैं पर पूरे नहीं होते हैं .
स्वरचित,,:- रीता बिष्ट
दिल पर गहरी चोट खाकर भी मुस्कराते रहे
अब नहीं सुननी हैं दिल की बात
दिल की बात सुनकर हर रिश्ते में खा ली हैं मात.
जिंदगी के इस सफर में कई सबक सीखने बाकी हैं
ठोकरे खाकर ही जिंदगी जीने का अंदाज बाकी हैं
कुछ जिंदगी का दर्द सीखना अभी बाकी हैं
दिल में एक और चोट खानी बाकी हैं .
जिनके दिल में चोट गहरी लगती हैं
वो दिल से रोते हैं
मेरे हालातों ने मुझे सिखाया हैं
सपने टूटकर बिखर जाते हैं पर पूरे नहीं होते हैं .
स्वरचित,,:- रीता बिष्ट
तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,
झेलता वह मासूम।
सुबकता,सिसकता,
आंसू पौंछता।
खोजता अपने अपराध,
शनै-शनै मरता बचपन!
आक्रोश का ज्वालामुखी,
उसके अंदर लेता आकार।
शरीर पर चोटों की मार,
बनाती उसे पत्थर!
पनपता एक विष-वृक्ष
जलती प्रतिशोध की ज्वाला!
पी जाती उसकी मासूमियत।
वक्त से पहले ही होता बड़ा,
समझता शत्रु समाज को,
चल पड़ता पाप की राह।
कहलाता अपराधी!
यही तो होता है,
अक्सर मासूमों के साथ,
नहीं होती जिनकी मां!
होता जिनका अपहरण,
वे बेरहम वक्त की चोट से,
बन जाते पाषाण!
समाज लगता शत्रु सम,
लेते प्रतिकार,
बस करते जाते वार!
बिना सोचे बिना समझे,
अंदर की आग!
जलाती उन्हें पल-पल,
जिसमें जल जाता ,
कल आज और कल!!
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
झेलता वह मासूम।
सुबकता,सिसकता,
आंसू पौंछता।
खोजता अपने अपराध,
शनै-शनै मरता बचपन!
आक्रोश का ज्वालामुखी,
उसके अंदर लेता आकार।
शरीर पर चोटों की मार,
बनाती उसे पत्थर!
पनपता एक विष-वृक्ष
जलती प्रतिशोध की ज्वाला!
पी जाती उसकी मासूमियत।
वक्त से पहले ही होता बड़ा,
समझता शत्रु समाज को,
चल पड़ता पाप की राह।
कहलाता अपराधी!
यही तो होता है,
अक्सर मासूमों के साथ,
नहीं होती जिनकी मां!
होता जिनका अपहरण,
वे बेरहम वक्त की चोट से,
बन जाते पाषाण!
समाज लगता शत्रु सम,
लेते प्रतिकार,
बस करते जाते वार!
बिना सोचे बिना समझे,
अंदर की आग!
जलाती उन्हें पल-पल,
जिसमें जल जाता ,
कल आज और कल!!
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
सरहद पर जब भी ये दुश्मन, देश पर वार करते हैं,
ये भारत मांँ का दिल छलनी,करुण लाचार करते हैं ।
हैं सो गए चवालिस जवान , अब मौत के आगोश में,
पुलवामा में लाशें बिछी, हैवानी फरामोश में,
आज करोड़ों की जुबान पर, उनका है बस नाम लिखा ,
बस इक चाहत उनकी खातिर ,मान और सम्मान दिखा।
देकर आहुति निज प्राणों की, रक्षा हर बार करते हैं ,
ये भारत मांँ का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं।
कितनी नई नवेली दुल्हन, विधवा हो वीरान हुई,
बूढ़े मात-पिता की सारी, सब खुशियांँ कुर्बान हुई ।
बहनों की राखियांँ कह रही, अभी मौन का त्याग करो ,
किसने यहांँ क्या-क्या खोया, सभी का गुणा भाग करो।
अनाथ हुए बच्चों के सभी, स्वप्न बीमार करते हैं,
ये भारत मां का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं ।
शहीदों की इस शहादत से, गांँव गांँव है गूंँज रहा,
कैसे यहांँ गोदियाँ उजड़ी, सारा राष्ट्र पूछ रहा।
भारत मांँ के बहते लहु से, सारी धरती लाल हुई,
छद्म पाक की इन चालों से, बदतर औ बेहाल हुई ।
आओ हम सब मिलकर अब, नई सेना तैयार करते हैं ।
ये भारत मांँ का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं ।
सरहद पर जब भी दुश्मन, वीरों पर वार करते हैं,
ये भारत मांँ का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं।
चंचल पाहुजा
दिल्ली
ये भारत मांँ का दिल छलनी,करुण लाचार करते हैं ।
हैं सो गए चवालिस जवान , अब मौत के आगोश में,
पुलवामा में लाशें बिछी, हैवानी फरामोश में,
आज करोड़ों की जुबान पर, उनका है बस नाम लिखा ,
बस इक चाहत उनकी खातिर ,मान और सम्मान दिखा।
देकर आहुति निज प्राणों की, रक्षा हर बार करते हैं ,
ये भारत मांँ का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं।
कितनी नई नवेली दुल्हन, विधवा हो वीरान हुई,
बूढ़े मात-पिता की सारी, सब खुशियांँ कुर्बान हुई ।
बहनों की राखियांँ कह रही, अभी मौन का त्याग करो ,
किसने यहांँ क्या-क्या खोया, सभी का गुणा भाग करो।
अनाथ हुए बच्चों के सभी, स्वप्न बीमार करते हैं,
ये भारत मां का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं ।
शहीदों की इस शहादत से, गांँव गांँव है गूंँज रहा,
कैसे यहांँ गोदियाँ उजड़ी, सारा राष्ट्र पूछ रहा।
भारत मांँ के बहते लहु से, सारी धरती लाल हुई,
छद्म पाक की इन चालों से, बदतर औ बेहाल हुई ।
आओ हम सब मिलकर अब, नई सेना तैयार करते हैं ।
ये भारत मांँ का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं ।
सरहद पर जब भी दुश्मन, वीरों पर वार करते हैं,
ये भारत मांँ का दिल छलनी , करुण लाचार करते हैं।
चंचल पाहुजा
दिल्ली
चोट दिल की हम रहे छुपाये
गम दिल का हम रहे दबाये ।।
सोचा दवा ले लेंगे पता न था
वो आशियां अब दूर हैं बनाये ।।
जब पता चला दर्द और बढ़ा
क्या करें नसीब खोटे कहाये ।।
कहीं और भी तो नही वह दवा
रोज ही दिल रोये आँसू बहाये ।।
कुछ चोटों का भी अजीब हाल
जो चोट दे वही वह दवा दे पाये ।।
दिल भी क्या बनाया रब ने 'शिवम'
अक्सर दुनिया में चोट ही खाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
गम दिल का हम रहे दबाये ।।
सोचा दवा ले लेंगे पता न था
वो आशियां अब दूर हैं बनाये ।।
जब पता चला दर्द और बढ़ा
क्या करें नसीब खोटे कहाये ।।
कहीं और भी तो नही वह दवा
रोज ही दिल रोये आँसू बहाये ।।
कुछ चोटों का भी अजीब हाल
जो चोट दे वही वह दवा दे पाये ।।
दिल भी क्या बनाया रब ने 'शिवम'
अक्सर दुनिया में चोट ही खाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मातृभूमि के प्रहरी बनकर
उठा रहे रक्षा का भार
आँख दिखाता बैरी जब भी
करते है पुरजोर प्रहार।
धूल चटाते दुश्मन को है
करते है वार पर वार
आगे जब बढ़ती है सेना
रिपु करता है हाहाकार।
सरहद पर जवान खड़े जो
भारत माँ के लाल है
देश हित को पहन तिरंगा
हो जाते बलिदान है।
पूर्ण समर्पण एक ध्येय है
न रोक सकें कोई तूफान
त्याग की अमर कहानी है
शूरवीरता का प्रतिमान।
चोटों की परवाह न करते
माँ भारती की सन्तान
आँख उठा पाये न दुश्मन
जब तक है तन में जान।
जोश भर है कूट कूट कर
रहे सुरक्षित हिन्दुस्तान
लड़ते रहते सदा देश हित
लिए हथेली पर है जान
है देश के सच्चे सेवक
सीमा पर है ये भगवान
धन्य है जननी जन्मभूमि वो
जिसमें जन्में वीर महान।
गर्व है इस मिट्टी पर मुझको
सरहद पर है डटे जवान
'जयहिन्द' के बोल है प्यारे
हो भारत का तुम अभिमान।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उठा रहे रक्षा का भार
आँख दिखाता बैरी जब भी
करते है पुरजोर प्रहार।
धूल चटाते दुश्मन को है
करते है वार पर वार
आगे जब बढ़ती है सेना
रिपु करता है हाहाकार।
सरहद पर जवान खड़े जो
भारत माँ के लाल है
देश हित को पहन तिरंगा
हो जाते बलिदान है।
पूर्ण समर्पण एक ध्येय है
न रोक सकें कोई तूफान
त्याग की अमर कहानी है
शूरवीरता का प्रतिमान।
चोटों की परवाह न करते
माँ भारती की सन्तान
आँख उठा पाये न दुश्मन
जब तक है तन में जान।
जोश भर है कूट कूट कर
रहे सुरक्षित हिन्दुस्तान
लड़ते रहते सदा देश हित
लिए हथेली पर है जान
है देश के सच्चे सेवक
सीमा पर है ये भगवान
धन्य है जननी जन्मभूमि वो
जिसमें जन्में वीर महान।
गर्व है इस मिट्टी पर मुझको
सरहद पर है डटे जवान
'जयहिन्द' के बोल है प्यारे
हो भारत का तुम अभिमान।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
कर देती ठीक औषधि
तन पर लगी चोट
मन के घाव मिटाना की
नहीं कोई विधि ।
अध्यात्म के भंडार में
आत्मिकता की अनमोल निधि ।
प्रेम शांति के मेल से
बाहर निकलो कुंठाओं की जेल से ।
भ्रष्ट नेताओं से एक निवेदन
ना फैलाओ दुर्गंध देश में
निष्ठा के पुष्प महकने दो ।
सड़न से बचाओ
मन के घावों को ।
नासूर ना बनने दो
राजनीति के पांवों में ।
बाज़ आओ गद्दारों
गंदे राजनैतिक खेल से ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
तन पर लगी चोट
मन के घाव मिटाना की
नहीं कोई विधि ।
अध्यात्म के भंडार में
आत्मिकता की अनमोल निधि ।
प्रेम शांति के मेल से
बाहर निकलो कुंठाओं की जेल से ।
भ्रष्ट नेताओं से एक निवेदन
ना फैलाओ दुर्गंध देश में
निष्ठा के पुष्प महकने दो ।
सड़न से बचाओ
मन के घावों को ।
नासूर ना बनने दो
राजनीति के पांवों में ।
बाज़ आओ गद्दारों
गंदे राजनैतिक खेल से ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
No comments:
Post a Comment