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ब्लॉग संख्या :-306
"उजाला/उजास"*5 क्षणिकाएँ*
(1)
तिलमिलाता अन्तःकरण
उजास की चाह लिए
भागता कचहरी में
पर
बंद कमरों में
झरोखे छोटे है
हाँ,
उम्मीद कम ही!
(2)
ये
सूरज,चाँद,
ट्यूबलाइट,तिल्ली
सब बेकार ।
आत्मविश्वास ही
मन का उजास,
थम के चल
लौ ही पर्याप्त!
(3)
कड़वाहट गरल है
अनसुलझे मकड़जाल है
प्रश्नों की दलदली भूमि में
कहाँ बचा उजास है?
क्यों,मात्र
कृष्ण बिगुल की
आस है।।
(4)
गगनचुंबी इमारतें
मटमैले मन
उजास आस लिए
दर ब दर घूमते
स्व मन टटोलना
क्या याद है उन्हें।।
(5)
हाथों में अस्त्र-शस्त्र
दिन में ,
धमाके से ,
अंधकार।
अमन -चैन अदृश्य
अदृश्य में उजास??
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
(1)
तिलमिलाता अन्तःकरण
उजास की चाह लिए
भागता कचहरी में
पर
बंद कमरों में
झरोखे छोटे है
हाँ,
उम्मीद कम ही!
(2)
ये
सूरज,चाँद,
ट्यूबलाइट,तिल्ली
सब बेकार ।
आत्मविश्वास ही
मन का उजास,
थम के चल
लौ ही पर्याप्त!
(3)
कड़वाहट गरल है
अनसुलझे मकड़जाल है
प्रश्नों की दलदली भूमि में
कहाँ बचा उजास है?
क्यों,मात्र
कृष्ण बिगुल की
आस है।।
(4)
गगनचुंबी इमारतें
मटमैले मन
उजास आस लिए
दर ब दर घूमते
स्व मन टटोलना
क्या याद है उन्हें।।
(5)
हाथों में अस्त्र-शस्त्र
दिन में ,
धमाके से ,
अंधकार।
अमन -चैन अदृश्य
अदृश्य में उजास??
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
अंतर्मन की गहन गुफ़ा मे ,
छाया रहता है अँधियारा ।
चलने लगते कई प्रभंजन ,
करना चाहा मन उजियारा ।
बिन गुरु अंजन चक्षु न खुलते ,
सूर हृदय का नहीं चमकता ।
उजास शाश्वत तब ही होता ,
ख़ुद का ही बन दीप दमकता ।
घोर अमा के तमस पार भी ,
दिखता बिन्दु एक प्रकाश का ।
जैसे वन - प्रांतर में बनता ,
जुगनू प्रतीक है उजास का ।
डँस कर इच्छाएँ नागिन सी ,
मानुष को अँधा हैं करती ।
दया धर्म करुणा उजास से ,
केंचुली नयनों की उतरती ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
छाया रहता है अँधियारा ।
चलने लगते कई प्रभंजन ,
करना चाहा मन उजियारा ।
बिन गुरु अंजन चक्षु न खुलते ,
सूर हृदय का नहीं चमकता ।
उजास शाश्वत तब ही होता ,
ख़ुद का ही बन दीप दमकता ।
घोर अमा के तमस पार भी ,
दिखता बिन्दु एक प्रकाश का ।
जैसे वन - प्रांतर में बनता ,
जुगनू प्रतीक है उजास का ।
डँस कर इच्छाएँ नागिन सी ,
मानुष को अँधा हैं करती ।
दया धर्म करुणा उजास से ,
केंचुली नयनों की उतरती ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
भोर उजाला
सुखद अहसास
मन प्रसन्न
मन उजाला
हृदय प्रफुल्लित
सुमन सम
प्रातः उजास
स्वर्णिम आसमान
रवि आगत
सूर्य प्रकाश
जगत उजियारा
स्वर्णिम रश्मि
ज्ञान उजाला
अन्तर्मन प्रकाश
सुखानुभूति
सरिता गर्ग
स्व रचित
सुखद अहसास
मन प्रसन्न
मन उजाला
हृदय प्रफुल्लित
सुमन सम
प्रातः उजास
स्वर्णिम आसमान
रवि आगत
सूर्य प्रकाश
जगत उजियारा
स्वर्णिम रश्मि
ज्ञान उजाला
अन्तर्मन प्रकाश
सुखानुभूति
सरिता गर्ग
स्व रचित
तूफान की दिये से जन्मों की लड़ाई
दिये ने दुनिया को रौशनी दिखाई ।।
क्या यही हश्र है अच्छाई का जग में
यह बात आज तक न समझ आई ।।
नायक खलनायक की भूमिका सदा ही कहाई
कोई नायक कोई ने खलनायक भूमिका निभाई ।।
अंत में जीत नायक की हुई ये सर्वविदित 'शिवम'
फिर भी यह बात खलनायक को समझ न आई ।।
उजालों में है ताकत उजालों में है शान
क्षणिक जिन्दगी पाया गर्वीला तूफान ।।
बुझाकर दीपक क्या जश्न मानया वह
कद्र न मिली उसको जमीं औ आसमान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
दिये ने दुनिया को रौशनी दिखाई ।।
क्या यही हश्र है अच्छाई का जग में
यह बात आज तक न समझ आई ।।
नायक खलनायक की भूमिका सदा ही कहाई
कोई नायक कोई ने खलनायक भूमिका निभाई ।।
अंत में जीत नायक की हुई ये सर्वविदित 'शिवम'
फिर भी यह बात खलनायक को समझ न आई ।।
उजालों में है ताकत उजालों में है शान
क्षणिक जिन्दगी पाया गर्वीला तूफान ।।
बुझाकर दीपक क्या जश्न मानया वह
कद्र न मिली उसको जमीं औ आसमान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
संदेश सभी को देता है
उजाला भरता जीवन राहों में
आलौकित कर देता है...।
आलौकित हम आज हैं
उस दिव्य प्रकाश से
अँधेरे ना रहे मानवता में
जलाओ दीए प्यार से...।
श्रीराम अयोध्या आए थे
होकर वनवास से
मंगल गीत सभी ने गाए थे
शुभकामनाएं बधाई से...।
स्नेह दीप जलाओ फिर
खुशियों भरी दिवाली से
प्रेम भरी हो भाषा सबकी
दीप विश्वास का जलाने से....।
पूरे हो अरमान सभी के
जले दीप भाईचारे से
ज्योति झिलमिल यहाँ करे
हटे तिमिर अब राहों से....।
सुख समृद्धि हर घर आए
चमके घर प्रज्वलित दीपों से
समरसताएं बनी रहे अब
जाले हटे सबके दिलों से...।।
स्वरचित
गोविन्द सिंह चौहान
भागवड़, भीम,राजसमन्द"
पूर्वांचल से रवि रश्मियां
शनै शनै वसुधा उतरे
स्वर्णिम दिव्य किरणों से
धरणि पर उजास भरे
ज्ञान उजास है कर्म उजास हैं
दया ममता स्नेह उजास है
परोपकारी बन जग जीता नर
हर्ष प्रसन्नता और हुलास है
अंधा बनकर जो चलता हो
उसको कँहा उजास मिलेगा
सत्यमेव जयते जीवन है
कीचड़ में भी कमल खिलेगा
आसमान में पंछी उड़ते नित
तिनका तिनका वह् लाते हैं
उनको मिलता सदा उजास है
गीत खुशी के वे नित गाते हैं
नहीं उजास कँही मिलता है
कर्मशील पद वह् झुकता है
संघर्षों से जूझता लड़ता वह्
फिर जग में आगे बढ़ता है
मातृभूमि उजास हेतु ही
सैनिक हँस कुर्बानी देते
रक्तरंजित लथपथ होके
निज मस्तक अर्पण करते
गर उजास तो जग जीवन है
अंधकार में रखा क्या है
स्वर्णिम अक्षर नाम लिखाते
कर्महीनता जीवन क्या है
जीवन मे देना पड़ता है
नित आगे ही लड़ना पड़ता
हर पल उजास ढूंढने वाला
पीछे कभी नहीं आगे बढ़ता
अंगारों से जो खेलें हैं
वे श्रम बिंदु फल खाते
तूफानों से वे लड़ते नर
गीत खुशी हरदम गाते।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शनै शनै वसुधा उतरे
स्वर्णिम दिव्य किरणों से
धरणि पर उजास भरे
ज्ञान उजास है कर्म उजास हैं
दया ममता स्नेह उजास है
परोपकारी बन जग जीता नर
हर्ष प्रसन्नता और हुलास है
अंधा बनकर जो चलता हो
उसको कँहा उजास मिलेगा
सत्यमेव जयते जीवन है
कीचड़ में भी कमल खिलेगा
आसमान में पंछी उड़ते नित
तिनका तिनका वह् लाते हैं
उनको मिलता सदा उजास है
गीत खुशी के वे नित गाते हैं
नहीं उजास कँही मिलता है
कर्मशील पद वह् झुकता है
संघर्षों से जूझता लड़ता वह्
फिर जग में आगे बढ़ता है
मातृभूमि उजास हेतु ही
सैनिक हँस कुर्बानी देते
रक्तरंजित लथपथ होके
निज मस्तक अर्पण करते
गर उजास तो जग जीवन है
अंधकार में रखा क्या है
स्वर्णिम अक्षर नाम लिखाते
कर्महीनता जीवन क्या है
जीवन मे देना पड़ता है
नित आगे ही लड़ना पड़ता
हर पल उजास ढूंढने वाला
पीछे कभी नहीं आगे बढ़ता
अंगारों से जो खेलें हैं
वे श्रम बिंदु फल खाते
तूफानों से वे लड़ते नर
गीत खुशी हरदम गाते।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
जीवन पल पल एक परीक्षा
महाविलय की अग्रिम प्रतिक्षा।
अतृप्त सा मन कस्तुरी मृग सा
भटकता खोजता अलब्ध सा
तिमिराछन्न परिवेश में मूढ मना सा
स्वर्णिम विहान की किरण ढूंढता
छोड घटित अघटित खोजता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा...
महासागर के महा द्वंद्व सा
जलता रहता बङवानल सा
महत्वाकांक्षा की धुंध मे घिरता
खुद से ही कभी न्याय न करता
सृजन में भी संहार ढूंढता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा...
कभी होली भरोसे की जलाता
अगन अबूझ समझ नही पाता
अव्यक्त लौ सा जलता जाता
कभी मन प्रस्फुटित दिवाली मनाता
खुश हो मलय पवन आस्वादन करता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा....
भ्रमित मन की रातें गहरी जितनी
"उजाला" दिन का उतना कमतर
खण्डित आशा अश्रु बन बहती
मानवता क्षत विक्षत चित्कार करती
मन आकांक्षा अपूर्ण अविचल रहती।
जीवन पल पल एक परीक्षा ....
कुसुम कोठारी।
महाविलय की अग्रिम प्रतिक्षा।
अतृप्त सा मन कस्तुरी मृग सा
भटकता खोजता अलब्ध सा
तिमिराछन्न परिवेश में मूढ मना सा
स्वर्णिम विहान की किरण ढूंढता
छोड घटित अघटित खोजता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा...
महासागर के महा द्वंद्व सा
जलता रहता बङवानल सा
महत्वाकांक्षा की धुंध मे घिरता
खुद से ही कभी न्याय न करता
सृजन में भी संहार ढूंढता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा...
कभी होली भरोसे की जलाता
अगन अबूझ समझ नही पाता
अव्यक्त लौ सा जलता जाता
कभी मन प्रस्फुटित दिवाली मनाता
खुश हो मलय पवन आस्वादन करता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा....
भ्रमित मन की रातें गहरी जितनी
"उजाला" दिन का उतना कमतर
खण्डित आशा अश्रु बन बहती
मानवता क्षत विक्षत चित्कार करती
मन आकांक्षा अपूर्ण अविचल रहती।
जीवन पल पल एक परीक्षा ....
कुसुम कोठारी।
मन के जब तम मिटे
मिट जाये सब शूल
उजास भरे जब ह्रदय में
नफरतें हो जाये दूर
ज्यों प्रभात की किरणें
भगायें कालिमा रात
त्यों ज्ञान के प्रकाश
भरे ह्दय उजास
गर अंधियारा रात हो
बस एक प्रयास
एक दिये की लौ से
हो जाय उजास
बदले की आग से
रहे सदा दूर
करें बस सदव्यवहार
दुराचारी भी हो मित्र
उजास भरा हो जीवन मे
रहे चैन आराम
यह न घटे जीवन से
रहे सदा प्रयास
उजास उजास मत करे
यह है सबो के पास
सच्चे मन से खोजिये
यही है वह ,आपके पास।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव
मिट जाये सब शूल
उजास भरे जब ह्रदय में
नफरतें हो जाये दूर
ज्यों प्रभात की किरणें
भगायें कालिमा रात
त्यों ज्ञान के प्रकाश
भरे ह्दय उजास
गर अंधियारा रात हो
बस एक प्रयास
एक दिये की लौ से
हो जाय उजास
बदले की आग से
रहे सदा दूर
करें बस सदव्यवहार
दुराचारी भी हो मित्र
उजास भरा हो जीवन मे
रहे चैन आराम
यह न घटे जीवन से
रहे सदा प्रयास
उजास उजास मत करे
यह है सबो के पास
सच्चे मन से खोजिये
यही है वह ,आपके पास।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव
जीवन में जो छाए अंधेरे,
दुख कितने जीवन को घेरे।
आशा की छोटी सी चिंगारी,
ले आती है जीवन में उजास।
जब कोई हो न साथ तेरे,
जब खाली हो हाथ तेरे।
विश्वास की छोटी सी किरण,
तब ले आती है जीवन में उजास।
जब पथ में कांटे बिछ जाए,
जब राह नजर न कोई आए।
साहस की छोटी सी चिंगारी,
तब ले आती है जीवन में उजास।
जब जीवन सूना-सूना हो,
मन में छाया वीराना हो।
तब प्रेम की छोटी सी किरण,
भर ही देती है जीवन में उजास।
निराशा के बादल छाएं,
खुद को आप अकेला पाएं।
तब जिजीविषा शक्ति बन कर,
भर देती है जीवन में उजास।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक
दुख कितने जीवन को घेरे।
आशा की छोटी सी चिंगारी,
ले आती है जीवन में उजास।
जब कोई हो न साथ तेरे,
जब खाली हो हाथ तेरे।
विश्वास की छोटी सी किरण,
तब ले आती है जीवन में उजास।
जब पथ में कांटे बिछ जाए,
जब राह नजर न कोई आए।
साहस की छोटी सी चिंगारी,
तब ले आती है जीवन में उजास।
जब जीवन सूना-सूना हो,
मन में छाया वीराना हो।
तब प्रेम की छोटी सी किरण,
भर ही देती है जीवन में उजास।
निराशा के बादल छाएं,
खुद को आप अकेला पाएं।
तब जिजीविषा शक्ति बन कर,
भर देती है जीवन में उजास।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक
फिर बहुत देर तलक वाह आज उजाला होगा
सरहद की बस्ती में कल कोई सोया नही होगा
छलकते आँखों में आँसुओ का प्याला होगा
जब कफ़न तिरंगे का शहीदो पर डाला होगा
नाज़ों से ऊन माँओं ने शहीदों को पाला होगा
खबर सुन कर गले में अटका निवाला होगा
"पुलवामा” की धारा पर लहू ख़ूब बिखरा होगा,
"कश्मीर" का असमां धुएँ से काला हुआ होगा
पाक की नापाक जिद में जंग खूनी हो गयी
न जाने कितनी नारियों की मांग सूनी हो गयी
चेतावनी है हमारी , छोड़ आदत आसुरी
न रहेगा बांस फिर , और न बजेगी बांसुरी
..शत् शत् नमन..
..जय हिंद..
राज मालपानी
शोरापुर-कर्नाटक
सरहद की बस्ती में कल कोई सोया नही होगा
छलकते आँखों में आँसुओ का प्याला होगा
जब कफ़न तिरंगे का शहीदो पर डाला होगा
नाज़ों से ऊन माँओं ने शहीदों को पाला होगा
खबर सुन कर गले में अटका निवाला होगा
"पुलवामा” की धारा पर लहू ख़ूब बिखरा होगा,
"कश्मीर" का असमां धुएँ से काला हुआ होगा
पाक की नापाक जिद में जंग खूनी हो गयी
न जाने कितनी नारियों की मांग सूनी हो गयी
चेतावनी है हमारी , छोड़ आदत आसुरी
न रहेगा बांस फिर , और न बजेगी बांसुरी
..शत् शत् नमन..
..जय हिंद..
राज मालपानी
शोरापुर-कर्नाटक
विषय उजाला
रचयिता पूनम गोयल
किसी के अँधियारे जीवन में ,
यदि हम ला पाएँ उजाला ,
तो उससे बेहतर कोई बात नहीं ।
और किसी उदास चेहरे पर ,
हम मुस्कान ला पाएँ ,
तो उससे भी बेहतर ,
कुछ है नहीं ।।
इस दुनिया में ,
हर तरफ़ ग़म ही ग़म हैं ।
जिनके बीच ख़ुशियाँ
बहुत ही कम हैं ।।
ऐसे में , उन ग़मों को
झटका देकर ,
ख़ुशियों को आगे लाएँ ।
और एक नए सिरे से ,
जीवन को बिताएँ ।।
रचयिता पूनम गोयल
किसी के अँधियारे जीवन में ,
यदि हम ला पाएँ उजाला ,
तो उससे बेहतर कोई बात नहीं ।
और किसी उदास चेहरे पर ,
हम मुस्कान ला पाएँ ,
तो उससे भी बेहतर ,
कुछ है नहीं ।।
इस दुनिया में ,
हर तरफ़ ग़म ही ग़म हैं ।
जिनके बीच ख़ुशियाँ
बहुत ही कम हैं ।।
ऐसे में , उन ग़मों को
झटका देकर ,
ख़ुशियों को आगे लाएँ ।
और एक नए सिरे से ,
जीवन को बिताएँ ।।
अंधकार की साज़िशें,...तिमिर भरें आकाश।
साहस जो छोड़े नहीं ,वो कर सके प्रकाश।।
-----------------------------
तिमिर सदा ही मानिये ,ज्ञान नहीं जो पास।
ज्ञान आपके पास तो ,.. पायें सदा उजास।।
----------------------
चहुँ दिसि फैलें जो कभी ,अँधियारों के पाप।
दूर तिमिर को कीजिये ,बनकर जुगुनू आप।।
-----------------------------
जग में ज्ञान प्रकाश है,.. इतना ले तू जान।
बिना ज्ञान अँधियार है,ये जीवन का ज्ञान।।
------------------------------
कितनी लम्बी रात हो ,घना होय अँधियार।
सारे अँधियारे हरा ,.....उजास हो हर बार ।।
-----------------------
माटी के इस दीप से,.. थोड़ी देर उजास ।
मन के दीप जलाइये, हो हर दम उल्लास ।।
-----------------------
पाप और अधरम मिटें,हो हर और उजास ।
दमन होय अज्ञान का,पावै ज्ञान विकास।।
=========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
साहस जो छोड़े नहीं ,वो कर सके प्रकाश।।
-----------------------------
तिमिर सदा ही मानिये ,ज्ञान नहीं जो पास।
ज्ञान आपके पास तो ,.. पायें सदा उजास।।
----------------------
चहुँ दिसि फैलें जो कभी ,अँधियारों के पाप।
दूर तिमिर को कीजिये ,बनकर जुगुनू आप।।
-----------------------------
जग में ज्ञान प्रकाश है,.. इतना ले तू जान।
बिना ज्ञान अँधियार है,ये जीवन का ज्ञान।।
------------------------------
कितनी लम्बी रात हो ,घना होय अँधियार।
सारे अँधियारे हरा ,.....उजास हो हर बार ।।
-----------------------
माटी के इस दीप से,.. थोड़ी देर उजास ।
मन के दीप जलाइये, हो हर दम उल्लास ।।
-----------------------
पाप और अधरम मिटें,हो हर और उजास ।
दमन होय अज्ञान का,पावै ज्ञान विकास।।
=========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
जब धूमिल हुए
जिंदगी के रंग
कैसा फागुन
कैसा बसंत
मन अंधेरे में…
डूबता जाता है
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
जीवन में कोई भी
चाहत नहीं हो
मन परेशानी में…..
घिरा हुआ होता है
अतीत की यादों
डूबता जा रहा हो
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
परिस्थितियां
विपरीत हो चाहें
रास्ते में हों बाधाएं
मन को करार न आए
और दिल घबराए
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
मंज़िल पाने की
चाहत से मन
हताश हो उठता
हार मान कर
रुकने लगता
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
कुछ उजाला
सूरज से लेलो
शीतलता चाँद से
सारे प्रयास सफल
हो जाएंगे तब जब
जीवन में भरोगे उजास
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
जिंदगी के रंग
कैसा फागुन
कैसा बसंत
मन अंधेरे में…
डूबता जाता है
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
जीवन में कोई भी
चाहत नहीं हो
मन परेशानी में…..
घिरा हुआ होता है
अतीत की यादों
डूबता जा रहा हो
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
परिस्थितियां
विपरीत हो चाहें
रास्ते में हों बाधाएं
मन को करार न आए
और दिल घबराए
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
मंज़िल पाने की
चाहत से मन
हताश हो उठता
हार मान कर
रुकने लगता
तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर कदम बढ़ा
कुछ उजाला
सूरज से लेलो
शीतलता चाँद से
सारे प्रयास सफल
हो जाएंगे तब जब
जीवन में भरोगे उजास
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
गम को भुला ने की कोशिश कर,
दिल को हंसाने की कोशिश कर।।१।।
उजाले की तलाश की कोशिश कर,
आग को ढूंढ ने की कोशिश कर।।२।।
मन बोझ से दबी दबी रहती है,
दिल बहलाने की कोशिश कर।।३।।
रोटी आज नहीं तो कल मिलेगी,
भूख को दबाने की कोशिश कर।।४।।
अब अंधेरों में रहना कैसा,
उजाला लाने की कोशिश कर।।५।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।
दिल को हंसाने की कोशिश कर।।१।।
उजाले की तलाश की कोशिश कर,
आग को ढूंढ ने की कोशिश कर।।२।।
मन बोझ से दबी दबी रहती है,
दिल बहलाने की कोशिश कर।।३।।
रोटी आज नहीं तो कल मिलेगी,
भूख को दबाने की कोशिश कर।।४।।
अब अंधेरों में रहना कैसा,
उजाला लाने की कोशिश कर।।५।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।
विधा- हाइकु
१)-
धोखे का वार
धरम हथियार
उजाले पर
२)-
घोर तमस
तीव्र है स्वार्थ प्यास
आस - उजास
३)-
तमस हास
छटपटाता स्वाँस
खोज - उजास
४)-
निस्वार्थ-वास
जीवन का सुहास
खिले उजास
#,,, _
मेधा.
-मेधा नरायण.
१)-
धोखे का वार
धरम हथियार
उजाले पर
२)-
घोर तमस
तीव्र है स्वार्थ प्यास
आस - उजास
३)-
तमस हास
छटपटाता स्वाँस
खोज - उजास
४)-
निस्वार्थ-वास
जीवन का सुहास
खिले उजास
#,,, _
मेधा.
-मेधा नरायण.
मेरे हम सफर के लिए
जो प्रेरणा है मेरी
🌹🌹🌹🌹🌹
कोरा कागज बनकर सजना,
तेरे अंगना आयी हूँ l
रंग बिरंगे अक्षर लेके,
उन्हें शब्द बनाने आयी हूँ ll
दिल मेरा कोरा कागज होगा,
प्रेम तेरा स्याही बनेगा,
भावो की लेखनी से ही,
प्रेम का इतिहास लिखेगा l
तुम ही जीवन की आस हो,
मेरे जीवन का उजास हो,
तेरे प्रेम बिना मेरे साजन,
जीवन केवल आभास है
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
जो प्रेरणा है मेरी
🌹🌹🌹🌹🌹
कोरा कागज बनकर सजना,
तेरे अंगना आयी हूँ l
रंग बिरंगे अक्षर लेके,
उन्हें शब्द बनाने आयी हूँ ll
दिल मेरा कोरा कागज होगा,
प्रेम तेरा स्याही बनेगा,
भावो की लेखनी से ही,
प्रेम का इतिहास लिखेगा l
तुम ही जीवन की आस हो,
मेरे जीवन का उजास हो,
तेरे प्रेम बिना मेरे साजन,
जीवन केवल आभास है
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
लघु कविता
आज भी नई पीढी़ डूबी अज्ञान के अंधकार में ।
सत्य को झूठलाकर आना चाहती उजियार में ।।
जबतक दिल में मेल, अज्ञान का अंधकार होगा ।
हरगिज़ न मानसिक विकास और उपकार होगा ।।
हर रहस्य से पर्दा उठाओ, प्रकाश फैलाओ ।दिग्गभ्रमितों को ज्ञान दो , संदेश तुम सुनाओ ।।
आत्मज्ञान नहीं , वह ढूंढ रहा ईश्वर को बाजार में ।
ज्ञान चक्षु खोल, उसको बताओ ईश हैंं साकार में ।।
दिल का जिस दिन धूल जाएगा मेल सभी काला ।
उस दिन रोम-रोम हर्षित होगा, आजाएगा उजाला ।।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
आज भी नई पीढी़ डूबी अज्ञान के अंधकार में ।
सत्य को झूठलाकर आना चाहती उजियार में ।।
जबतक दिल में मेल, अज्ञान का अंधकार होगा ।
हरगिज़ न मानसिक विकास और उपकार होगा ।।
हर रहस्य से पर्दा उठाओ, प्रकाश फैलाओ ।दिग्गभ्रमितों को ज्ञान दो , संदेश तुम सुनाओ ।।
आत्मज्ञान नहीं , वह ढूंढ रहा ईश्वर को बाजार में ।
ज्ञान चक्षु खोल, उसको बताओ ईश हैंं साकार में ।।
दिल का जिस दिन धूल जाएगा मेल सभी काला ।
उस दिन रोम-रोम हर्षित होगा, आजाएगा उजाला ।।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
लघु कविता
उजाले की आस लिए
गहन अंधेरे में चल रही थी
दिशा का नहीं ज्ञान था
पथ में अँधेरा विराजमान था
आचानक एक कुटिया दिखा
अंदर से आ रहा..........
दीपक का मद्धिम प्रकाश था
दीये की लौ से......
अंधेरों में भी उजास था
झाँककर देखी......
माता के आँचल में
सो रहा नौनिहाल था
आँखों को दे रहा शकुन था
जेहन में उठ रहे ........
हर सवाल का जवाब था
बाहरी चकाचौंध से
कभी ना होता उजाला
अंतर्मन का सद्ज्ञान ही
जीवन का उजास है।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
उजाले की आस लिए
गहन अंधेरे में चल रही थी
दिशा का नहीं ज्ञान था
पथ में अँधेरा विराजमान था
आचानक एक कुटिया दिखा
अंदर से आ रहा..........
दीपक का मद्धिम प्रकाश था
दीये की लौ से......
अंधेरों में भी उजास था
झाँककर देखी......
माता के आँचल में
सो रहा नौनिहाल था
आँखों को दे रहा शकुन था
जेहन में उठ रहे ........
हर सवाल का जवाब था
बाहरी चकाचौंध से
कभी ना होता उजाला
अंतर्मन का सद्ज्ञान ही
जीवन का उजास है।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
इक रोशनी का दरिया आंखो मे है तुम्हारी।
इक ज़िन्दगी का जज़्बा आंखो मे है तुम्हारी।
क्या करें के हमारी अब हटती नहीं नजर है।
खुशियों का एक लम्हा आंखो मे है तुम्हारी।
पलको मे कंपकपी सी ,दिल मे गुदगुदी सी।
मुहब्बत का ये जलवा आंखो मे है तुम्हारी।
कहीं ईमान खो न बैठूं बेईमान हो न जाऊं।
लगता है ऐसा ख़तरा आंखो मे है तुम्हारी।
बेचैन कर रहा है मुझे दिल में उतर रहा है।
एक ऐसा हसीन नग़मा आंखो मे है तुम्हारी।
विपिन सोहल
इक ज़िन्दगी का जज़्बा आंखो मे है तुम्हारी।
क्या करें के हमारी अब हटती नहीं नजर है।
खुशियों का एक लम्हा आंखो मे है तुम्हारी।
पलको मे कंपकपी सी ,दिल मे गुदगुदी सी।
मुहब्बत का ये जलवा आंखो मे है तुम्हारी।
कहीं ईमान खो न बैठूं बेईमान हो न जाऊं।
लगता है ऐसा ख़तरा आंखो मे है तुम्हारी।
बेचैन कर रहा है मुझे दिल में उतर रहा है।
एक ऐसा हसीन नग़मा आंखो मे है तुम्हारी।
विपिन सोहल
जहाँ सत्य का हो उजास ,
परमात्मा करे निवास |
शांति का हो आगमन ,
खिल उठे दिल का चमन |
जब हो उजास की प्यास ,
हो जुगनुओं की बरसात |
हर गली गली शहर शहर ,
चले डगर डगर यही लहर |
बसा है एकता में उजास ,
रहती है मंजिल आसपास |
मुश्किलों का हो विनाश ,
खुशियों का मिल जाये साथ |
हो कोई क्यों हमको मलाल ,
जब हौसलों का हो उजास |
तब हर तरफ फैले प्रकाश ,
होती विकास की ही बात |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
परमात्मा करे निवास |
शांति का हो आगमन ,
खिल उठे दिल का चमन |
जब हो उजास की प्यास ,
हो जुगनुओं की बरसात |
हर गली गली शहर शहर ,
चले डगर डगर यही लहर |
बसा है एकता में उजास ,
रहती है मंजिल आसपास |
मुश्किलों का हो विनाश ,
खुशियों का मिल जाये साथ |
हो कोई क्यों हमको मलाल ,
जब हौसलों का हो उजास |
तब हर तरफ फैले प्रकाश ,
होती विकास की ही बात |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
नैनों के नूर
रहते हैं दूर
मिलने की प्यास
मन है उदास
मांगे #उजास
बातों के तीर
देते दिल चीर
अपने ही खास
कटु अहसास
मन है उदास
मांगे #उजास
बूढ़ों का मन
रहता उन्मन
चाहे सदा
अपने हों पास
देकर दुआएं
गम-तम भगाएं
फंसे मोह-पाश
मांगे #उजास
बेबस कलम
भूली धरम
बनकर शमशीर
बदली तकदीर
शत्रु का नाश
मांगे #उजास
____
#स्वरचित काव्य सृजन
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
रहते हैं दूर
मिलने की प्यास
मन है उदास
मांगे #उजास
बातों के तीर
देते दिल चीर
अपने ही खास
कटु अहसास
मन है उदास
मांगे #उजास
बूढ़ों का मन
रहता उन्मन
चाहे सदा
अपने हों पास
देकर दुआएं
गम-तम भगाएं
फंसे मोह-पाश
मांगे #उजास
बेबस कलम
भूली धरम
बनकर शमशीर
बदली तकदीर
शत्रु का नाश
मांगे #उजास
____
#स्वरचित काव्य सृजन
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
1.
नन्हें बालक
भविष्य का उजाला
राष्ट्र निर्माता
2.
करो उजला
छोड़ ईर्ष्या कपट
अंतर्मन को
3.
दीप ज्ञान का
मिटाता अज्ञानता
उजला होय
4.
बिन श्रम के
होता नहीं उजला
जीवन पथ
5.
हुआ उजाला
महक उठे फूल
उपवन में
6.
हुआ उजाला
प्रथम किरण से
महके फूल
7.
ओंस की बूँद
उजाला चहुँओर
सुंदर दृश्य
8.
ओंस की बूंद
चमकी मोती-सी
उजाला हुआ
9.
ओंस के मोती
बनकर उजाला
घास पे पड़े
10.
दिवाली रात
हारता अंधकार
उजाला हुआ
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
नन्हें बालक
भविष्य का उजाला
राष्ट्र निर्माता
2.
करो उजला
छोड़ ईर्ष्या कपट
अंतर्मन को
3.
दीप ज्ञान का
मिटाता अज्ञानता
उजला होय
4.
बिन श्रम के
होता नहीं उजला
जीवन पथ
5.
हुआ उजाला
महक उठे फूल
उपवन में
6.
हुआ उजाला
प्रथम किरण से
महके फूल
7.
ओंस की बूँद
उजाला चहुँओर
सुंदर दृश्य
8.
ओंस की बूंद
चमकी मोती-सी
उजाला हुआ
9.
ओंस के मोती
बनकर उजाला
घास पे पड़े
10.
दिवाली रात
हारता अंधकार
उजाला हुआ
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
उजास अंध
दोनों में अनुबंध
एक रहेगा।।
उजास फैला
अंध दर किनार
आत्मा की ज्योति।।
फैला कुहासा
छिपा सूर्य मध्याह्न
उजास गुम।।
उजाला ढूंढूं
अंधेरा है क़ायम
फैली उदासी।।
उजाला कहां
अंध है जरायम
अंधी ये दौड़।।
भावुक
दोनों में अनुबंध
एक रहेगा।।
उजास फैला
अंध दर किनार
आत्मा की ज्योति।।
फैला कुहासा
छिपा सूर्य मध्याह्न
उजास गुम।।
उजाला ढूंढूं
अंधेरा है क़ायम
फैली उदासी।।
उजाला कहां
अंध है जरायम
अंधी ये दौड़।।
भावुक
1
उजास हंसा
तम मुंह छुपाए
प्राची मुस्काती
2
उजला रूप
विभावरी हर्षित
विधु पूर्णिमा
3
तम उजास
आंगन में संध्या के
मिलाते हाथ
4
दिव्य उजाला
प्रकाशित जीवन
अध्यात्म ज्योति
5
चंद्र उजास
कुमुदिनी उल्लास
महके ताल
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
उजास हंसा
तम मुंह छुपाए
प्राची मुस्काती
2
उजला रूप
विभावरी हर्षित
विधु पूर्णिमा
3
तम उजास
आंगन में संध्या के
मिलाते हाथ
4
दिव्य उजाला
प्रकाशित जीवन
अध्यात्म ज्योति
5
चंद्र उजास
कुमुदिनी उल्लास
महके ताल
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मन में घोर अंधेरा लेकर
जन्नत की चाह लिए
बारुद हाथ में लिए चंद भटके जिस्म
बेकसूर लोगों की होली
जला कर उजाले तलाशते हैं
अपने ही घर में आग लगा कर
तमाशबीन बन जाते हैं
अपने घर का चिराग बुझा कर
कितने घर के चराग बुझाते हैं
ये अंधभक्ति की पट्टी
आँख पर अपने बाँध कर
ज़हरबुझे शब्दों में अपने को
डुबाते हैं
हदस की चिंगारी में
उजालों को जलाते हैं ।
डा.नीलम.अजमेर
जन्नत की चाह लिए
बारुद हाथ में लिए चंद भटके जिस्म
बेकसूर लोगों की होली
जला कर उजाले तलाशते हैं
अपने ही घर में आग लगा कर
तमाशबीन बन जाते हैं
अपने घर का चिराग बुझा कर
कितने घर के चराग बुझाते हैं
ये अंधभक्ति की पट्टी
आँख पर अपने बाँध कर
ज़हरबुझे शब्दों में अपने को
डुबाते हैं
हदस की चिंगारी में
उजालों को जलाते हैं ।
डा.नीलम.अजमेर
दीप एक फिर से जला है
उजाला फ़ैलाने के लिए
चल पड़े राही पथो पर,
मंजिल को पाने के लिए।
छाया अँधेरा तो क्या,
दीप जब से उर बना
पग में बिखरे शूल है
मार्ग न अनुकूल है।
व्यग्र अभिलाषाएं होती,
लक्ष्य पाने के लिए।
रात आई है घनी सी
आँधियो से है ठनी सी
टूटती हर आस जैसे
मिलता कोई प्रकाश कैसे
किन्तु दुबकी थी किरण एक
मुस्कुराने के लिए।
डेहरी में जलता रहा जो
ज्ञान की ज्योति बना वो
छट गया मन का अँधेरा
प्रेम ने डाला है डेरा
हौसलों की ये किरण
नव दिनकर उगाने के लिए।
दीप एक फिर से जला है
उजाला फ़ैलाने के लिए
दीप एक फिर से जला है
अँधेरा मिटाने के लिए।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उजाला फ़ैलाने के लिए
चल पड़े राही पथो पर,
मंजिल को पाने के लिए।
छाया अँधेरा तो क्या,
दीप जब से उर बना
पग में बिखरे शूल है
मार्ग न अनुकूल है।
व्यग्र अभिलाषाएं होती,
लक्ष्य पाने के लिए।
रात आई है घनी सी
आँधियो से है ठनी सी
टूटती हर आस जैसे
मिलता कोई प्रकाश कैसे
किन्तु दुबकी थी किरण एक
मुस्कुराने के लिए।
डेहरी में जलता रहा जो
ज्ञान की ज्योति बना वो
छट गया मन का अँधेरा
प्रेम ने डाला है डेरा
हौसलों की ये किरण
नव दिनकर उगाने के लिए।
दीप एक फिर से जला है
उजाला फ़ैलाने के लिए
दीप एक फिर से जला है
अँधेरा मिटाने के लिए।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उजाले को चाहो मगर,
अंधेरे से यूं नडरो।
बुरा यहां कोई नहीं,
सोचो जरा गौर करो।।
क्या भरोसा है यहां,
वक्त के थपेड़ो का,
आज जो उठा रहा है,
कल वो ही डूबो देगा।
अपने गैर का फर्क भूल
गम सबसे उधार करो
बुरा यहां कोई नहीं
सोचो जरा गौर करो।
धुप छांव दुनिया है,
गम और खुशीयां है।
नेह का बंधन ही,
हर मर्ज की दवा है।
मर्ज घातक हो जाए
इससे पहले उपचार करो।
बुरा यहां कोई नहीं
सोचो जरा गौर करो।
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
अंधेरे से यूं नडरो।
बुरा यहां कोई नहीं,
सोचो जरा गौर करो।।
क्या भरोसा है यहां,
वक्त के थपेड़ो का,
आज जो उठा रहा है,
कल वो ही डूबो देगा।
अपने गैर का फर्क भूल
गम सबसे उधार करो
बुरा यहां कोई नहीं
सोचो जरा गौर करो।
धुप छांव दुनिया है,
गम और खुशीयां है।
नेह का बंधन ही,
हर मर्ज की दवा है।
मर्ज घातक हो जाए
इससे पहले उपचार करो।
बुरा यहां कोई नहीं
सोचो जरा गौर करो।
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
अमावस के चाँद जैसे...
काल कोठरी में बंद....
मन भागता फिरा....
घर को छोड़...
हताश...निराश...
चांदनी रात का उजाला...
अमावस से भी भयावह....
तभी मद्धम सी....
गुंजन कानों में लहरा गयी....
मन बेतहाशा...बेसुध...
गुंजन से बंधा भागा....
ठिठक गया एक दम...
झाड़ियों के पास पहुँच कर...
उजाला उसे निहार रहा था...
मुख में हाथ...पावों से कलोल करता....
दीपशिखा की किरणों से...
मन में उजास भर गया...
सृष्टि अब ख़त्म नहीं होगी...
अमावस होगी बेशक...पर...
चाँदनी खत्म नहीं होगी...
कभी नहीं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२१.०२.२०१९
काल कोठरी में बंद....
मन भागता फिरा....
घर को छोड़...
हताश...निराश...
चांदनी रात का उजाला...
अमावस से भी भयावह....
तभी मद्धम सी....
गुंजन कानों में लहरा गयी....
मन बेतहाशा...बेसुध...
गुंजन से बंधा भागा....
ठिठक गया एक दम...
झाड़ियों के पास पहुँच कर...
उजाला उसे निहार रहा था...
मुख में हाथ...पावों से कलोल करता....
दीपशिखा की किरणों से...
मन में उजास भर गया...
सृष्टि अब ख़त्म नहीं होगी...
अमावस होगी बेशक...पर...
चाँदनी खत्म नहीं होगी...
कभी नहीं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२१.०२.२०१९
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