Sunday, February 24

" पानी/जल/नीर "23फरवरी 2019

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             ब्लॉग संख्या :-308
विधा - हाइकु
विषय - जल


जल रक्षण
सुरक्षित भविष्य
सुख आधार

जल जीवन
सींचता तन मन
जीवनाधार

नीर विहीन
जीवन असम्भव
जग सहरा

पावन नीर
ईश्वर उपहार
तृप्त संसार

अश्रु सलिल
उद्वेलित हृदय
दुख संकेत

सांसें समाप्त
जल विहीन मीन
जीवन अंत

जल संकट
सूखते जल स्त्रोत
धरा विनाश

सरिता गर्ग
स्व रचित


जल की महत्ता जानिये
जल की कीमत पहचानिये ।।
जल नही तो कल नही है
यह पक्का यकीन मानिये ।।

जल की गर आज बरबादी
कल की वो कहाय बरबादी ।।
जल संकट से बड़ा न संकट
यही मुद्दा अब युद्ध का भावी ।।

आखिर कहाँ से जल हम लायेंगे
धरा के सजीव सारे मर जायेंगे ।।
निश्प्राण यह प्रथ्वी रह जायेगी 
हम सजीव संहारक कहलायेंगे ।।

समझो 'शिवम' कुछ करो यतन 
कल नही करो आज यह मनन ।।
बना नही सकते तो बचा सकते
श्रष्टि आज कर रही है रूदन ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"




संरक्षित कर लो जल बरना जग जाएगा जल ।
सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥

झीलों की आंखों में आंसू घोर उदासी है ।
अल्लह्ड़ता छोड़ी नदियों ने और रुआंसी है ।
सूखे होंठ कुओं के भी तो और प्यासे हैं तल ॥
आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥

आज अगर हम पानी यूँ बर्बाद करेंगे ।
कल की पीढ़ी पर न हम इंसाफ करेंगे ॥
इतिहास न हमको माफ करेगा गर घोला ये गरल ॥
आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥

संरक्षित कर लो जल बरना जग जाएगा जल ।
आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥

रचना स्वरचित एवं मौलिक है ।
©®🙏
-सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
छिंदवाड़ा मप्र


 जल/ नीर* पर कुछ विशिष्ट तांके,,,,,
***********

----माता धरणी
----हृदय में धारण
----अमूल्य निधि
----वन , नीर सजल
----गंगा पावन जल //
**********************
----धरा महकी
----ऋतुराज आ गए
----दूल्हन बनी
----पुष्पों का वनमाल
----डालती जयमाल //
***********************
----धरा सहती
----कष्टों के झंझावात
----अमृत देती
----नीर,मेघ सजल
----जग पोषक जल//
***********************
----जल-जीवन
----पोषक तन मन
----धरा -चमन
----कर लें संरक्षण
----जन-जीवन-धन // ***********************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार



विधा .. लघु कविता 
*********************
🍁

जल तरंग सा उठे हृदय मे,
याद तेरी जब आये ।
आँखो से पानी की बूँदे,
बरखा जल बन जाये।
🍁

तडप रही अस जल बिन मछली,
तडपन किसे दिखाए।
भावों के मोती भी झलके,
शेर को बहुत रूलाए।
🍁

कहते हो तो लिख देता हूँ,
तपते मन की बातें।
भाप बने जल उड-उड जाए,
उष्ण बनी है राते।
🍁

कौन कहे है आग बुझाए,
पानी की बौछारे।
मेरे तन मे आग लगाए,
शीतल जल या खारे।
🍁

कह देना तुम श्याम सखी से,
राधा नीर बहाए।
आन मिलो तुम एक बार जो,
जनम सफल हो जाए।

🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf


जलमग्न है सब कुछ ही तो
जल मध्य कुछ द्वीप बने
उन द्वीपो में जनजन बसता
भव्य जीवन वितान तने
आसमान से बातें करता
हिमाच्छादित प्रिय हिमालय
झर झर सरिता बहती नित
पावन सुन्दर भव्य जलाशय
खारा कडुवा मधुर कसैला
भिन्न भिन्न स्वादों से मिश्रित
जल का अपना बहुत् महत्व
जन करता पावन दिव्य हित
जल जीवन है सभी जानते
जल बिन जीवन सारा सूना
काले बदरा गरजे बरसे तब
धरतीपुत्र सुख बनता दूना
प्रकृति के हर कण कण में
नीर समाहित ही होता है
आशा और विश्वास सहारे
नव बीज धरा पर बोता है
जल है तो उत्कृष्ट राष्ट्र है
वनस्पतियों का आगारा
विश्व विकास जल निर्भर
है जीवन का मात्र सहारा
जल स्वच्छ तो तन स्वच्छ है
प्रदूषण से नीर बचालो
अति अमूल्य है यह जीवन
सद्कर्म से इसे सजालो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान


पानी को कायम रखें, रखिऐ अपनी शान |
इसके बिन कैसे जियें, अपना ये अभिमान ||

जल ही जीवन है बना , होता इसका मान |
जीना ऐसा है मना , जहाँ न स्वामिमान ||

दूषित जो जन कर रहे ,पावन अपना नीर |
उनसे हम जाकर कहें ,समझें इसकी पीर ||

जल बिन जीवन है नहीं , समझ सकें ये लोग |
उपयोग संरक्षण सही , करें सभी सहयोग ||

उनसे कीमत पूछिऐ , जहाँ नहीं है नीर |
उनके जीवन के लिऐ , ये रांझे की हीर ||

जल संसाधन के लिऐ , करते जो जन काम |
काम सदा अच्छा किऐ , उनका जग में नाम ||

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,

नीर की अपनी जागीर
नीर की अपनी तासीर
माना नीर बेरंग कहलाता
पर जीवन में रंग भर देता
नदी, नाले , झरने, तालाब
समुद्र में अथाह जल सैलाब
नीर के हैं ये वंशज अनेक
जग में करते हैं काम नेक
बादलों में जो नीर समाता
बारिश बन धरती पर गिरता
तपन धरती की शांत करता
खेत खलिहानों को भर देता
अन्नपूर्णा धरा साबित करता
वन्य जीवों की प्यास बुझाता
मानव जीवन की बुनियाद कहलाता
समुद्रीय तट लहरों से सजाता
सैलानियों को बड़ा रिझाता
झरना बन ऊँचाई से गिरता
मोती की लड़ियों-सा दिखता
प्राकृतिक सौंदर्य नाद सुनाता
पवित्र नदियों में लोग स्नान करते
पुण्य कर्म से वे अति हर्षित होते
नीर प्रकृति का उपयोगी उपहार
उपादेयता का यह अमोल भंडार
सीमित साधन आओ करें विचार
इसकी बूँद बूँद से करना प्यार
सतही तौर पर हम बनते नज़ीर
वास्तव में कब जानी नीर की पीर

संतोष कुमारी’ संप्रीति’
स्वरचित


🌹🌹🌹
(1)जल का अर्ध्य
धरा पे रहा चढ़ा
मेघों का झुंड
(2)पानी बादल
धरती को सींचने
इंद्र ले आये
(3)पी वर्षा पानी
छाई है हरियाली
महकी फ़िजा
(4)धरा के गर्भ
इंद्र बो रहा आज
पानी का बीज
(5)गर्मी इतनी
बिन पानी नहाया
बिजली बंद
(6)करे तबाह
ले बाढ़ अवतार
जल प्रवाह
(7)बहती नदी
स्वच्छ जल की धारा
जीवन ज्योति
(8)शादी में पैसा
बहता पानी जैसा
रोके भी कैसा
(9)बहे ना नीर
पथराए नयन
बेटा शहीद
(10)ज्ञान का जल
बहता झर झर
सत्संग चल

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश 


चोखा जापानी गीत,

पानी लिखती,

वसुधा की कहानी,
हंसते प्राणी,
हर पल लिखती,
जीवन गीत
पानी से खुश हाली,
गाते हैं प्राणी,
जल प्राणों की रानी,
निर्मल जल
जीवन का प्रतीक,
प्राण सरसे,
वसुंधरा हरसे,
मेघ बरसे,
नभ में विचरते,
बादल बन,
जल मोती भरते,
मेघ देवता,
प्यासी धरती मांगे,
शुष्क अधर,
रसमय कर दो,
मेघा पानी दो,
घमंडी सूरज का,
तोड़ दो प्रिय,
उसका अहंकार,
ऐसे बरसों,
अंग अंग सींच दो,
हंसे प्रकृति,
ताल तलैया हंसे,
मैं हंसू,जग मुआ हंसे।।
चोखा कार देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।


महत्व समझो जल का
जो जीवन का आधार है
घट रहा दिन प्रतिदिन
यह हमारी
गलती का परिणाम है
प्रकृति का निरंतर दोहन
कर रहा भूमि बंजर
दूषित हो रहा
नदियों का जल
स्वच्छ जल होता ज़हर
गिरता निरंतर जलस्तर
क्या पिएगा आने वाला कल
टूटे नल बहता पानी
होती पानी की बरबादी
व्यर्थ न इसे बहने दो
हर बूँद की कीमत समझो
जल ही जीवन है
यह जीवन अमृत है
जल बिन जीना मुश्किल है
जल संग्रहण का प्रयास हो
वर्षाजल बर्बाद ना हो
अब पहल हमें ही करना है
हो हमें जितनी जरूरत
पानी हो उतना ही संचित
व्यर्थ जमा कर पानी
नाली में ना बहने दो
बूँद-बूँद की कीमत को
वो ही अच्छे से समझते हैं
जो इसके लिए तरसते हैं
एक एक घड़े पानी के लिए
वो मीलों तक पैदल चलते हैं
हम फिजूल पानी बहाकर
सिर्फ गाड़ी को चमकाते है
घर बैठे पानी मिलता है
पानी के मोल को समझें
जल अनमोल धरोहर जीवन की
प्रकृति के खिलते यौवन की
कुछ तो फिकर करो सब
अपने आने वाले कल की
अगर यह सिलसिला नहीं रूका
तो धरती से फिर जीवन रूठा
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित


हरी-भरी वसुंधरा रहती
पानी से अभिसिंचित होती
खेतों में फसलें लहलहाती
पानी से ही जीवन पाती
जिन्दगी की साँस है चलती
जल जीवन की रेखा होती
पर्वत से जल-धारा निकलती
नदियांं हैं लहराकर बहती
सागर में समा नदियां हैं जाती
जल बूंदें मेघमय आवरण बनाती
बारिस कर जीवन हैं लातीं
धरती पर हरियाली छाती
पानी से ही वन सुरक्षा होती
प्राणवायु का उदगम करतीं
जिन्दगी की धारा जल से बहती
कलरव जीवन नाद सुनाती
प्रकृति की अनुपम यह थाती
जल आभाव जिन्दगी न भाती

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली


निर्मल नीर सा हृदय मेरा
हो जाऐ कहीं अगर प्रभु।
नहीं बुराईयां मुझे दिखेगी,
होए मन यदि सुखद प्रभु।

नीरक्षीर सा मन हो जाऐ।
पाप सभी बाहर आ जाऐ।
नहीं रहे कलुषित मन मेरा,
पावनता गंगा सी हो जाऐ।

प्रेमपात्र सबका बन जाऊँ।
सच्चा पानी सा बन जाऊँ।
विवेक संयम रखूं मैअपना,
स्वविवेक से ही बह पाऊँ।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


(1)
जल अमृत
गिरि हिम निस्सृत
जीवन-घृत
(2)
जल पसारा
विश्व-हितार्थ सारा
पावन धारा
(3)
स्वप्न कल के
जीव-जंतु जल के
लें नहीं हल्के

(4)
वक्त है सख्त
हो जल-संरक्षण
लेवें शपथ
(5)

प्याऊ ना दीखें
बिकती हैं बोतल
बेबस झीखें
___
#स्वरचित
रचयिता
डा.अंजु लता सिंह नई दिल्ली


विधा :-दोहा 

नीर बिना इस जगत में , चहुँदिशि होती पीर ।
मिले नहीं दो बूँद जल , प्राणी होय अधीर ।।१।।

पानी पानी है नदी , तन में लिपटी रेत ।
शुष्क वक्ष को देख कर , जाओ लोगों चेत ।।२।।

पानी उतरा देख के , बहा नयन से नीर ।
रंग रही निज रंग में पश्चिम चली समीर 
।।३।।

उर यमुना से प्रेम का , झरा बूँद भर नीर ।
देख कन्हैया आ गए , यमुना जी के तीर ।।४।।

नयनों से है उमड़ता , यादों का तूफ़ान ।
प्रेम नीर सिंचन करे , शुष्क हृदय में प्रान।।५।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


निर्मल अविरल सी धारा है,
इसे सहेजना कर्तव्य हमारा है।

जल ही जीवन जल ही आधार,
जल ही अब संसार हमारा है।

बूंद बूंद अमृत सी प्राण सुधा,
संरक्षित करना ध्येय हमारा है।

उत्कल गंगा व पावन नर्मदा,
सकल जीवन का सहारा है।

न करो प्रदूषित इस जल को,
ये जल ही अस्तित्व हमारा है।

निर्मल निश्चल है स्वभाव इसका,
खुद बैरंग सही पर हर रंग प्यारा है।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


निस्तब्ध निशा
**********
निविड़ अंधकार में ,
ख़ामोश आधी रात को,
चुपचाप सोता है-
जब जहाँ ,
निस्तब्ध निशा के प्रांगण में !
अनकहे , अधूरे सपनों के
मायाजाल में
भटकता सा-
कहीं कोई आहट नहीं ,
सब शांत !
सब चुप !!
और,
नीलाभ का सूनापन
जब झाँकता,
सूनी आँखों की कोरों से,
तब,जाने कहाँ से
भर आता आँखों में पानी
और, रह रहकर -
ढुलक जाता है गालों पर !
उधर,
नभ पर से एक सितारा टूट,
विलीन हो जाता है
जाने कहाँ ?
इस अथाह साग़र में -
आँखों के
अश्रुनीर सा !!

स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र
सर्वाधिकार सुरक्षित


बहता नीर हूं मैं !
हृदय की पीर हूं मैं !
कभी बन सरिता,
बहा बन पावन निर्मल।
करता सिंचित जीवन,
कभी बना मैं निर्झर,
करूं धरा को उर्वर।
जीवन का अमृत !
सृष्टि की जान !
प्रकृति की मुस्कान !
गाता मेघ मल्हार,
मुझसे ही मेघों का श्रृंगार,
नवजीवन का सृजनकार,
वसुधा का पालनहार,
बहता नीर हूं मैं !!
कभी बना मैं सागर,
कर समाहित,
संसार की समस्त पीड़ा !
खो गई मेरी मिठास,
पीड़ा के अतिरेक से,
अश्रुओं के वेग से,
घुल गया मुझमें छार ।
खो रही निर्मलता मेरी,
कलुषित होती ,
मेरी हर बूंद।
नयनों से बहता नीर,
नीर की बढ़ी है पीर,
प्रदूषित हो गया हूं मैं!
बहते-बहते चुक गया हूं मैं!
खत्म हो रही जिजीविषा।।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित, मौलिक


पानी को यूँ ही व्यर्थ न बहाओ,
जितनी जरूरत हो उतना बहाओ, 
जीवन की है मूलभूत आवश्यकता 
पानी बिना जीवन कैसे होगा जीना |

जब तक धरा में पानी होगा, 
रूप धरा का हरा-भरा होगा,
करोगे हे मनु ! गर तुम मनमानी,
खत्म हो जायेगी तुम्हारी कहानी |

महत्व पानी का तुम जान लो, 
प्रकृति का है अनुपम ये उपहार, 
जल ही जीवन का है आधार ,
संरक्षण की शपथ सब लें आज |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



पानी पानी सब करें
पानी संचय न कोय,
पानी बिन पीढ़ी मरे
जग अंधियारा होय।।

तनी बूंद बूंद पनिया बचावा मितवा,
पनिया कै कीमत समझावा मितवा।

पनिया न मिलिहैं तो कौन करम होइ,
तनी बावरन क इ है समझावा मितवा।

घरे घरे मिलि गड़हा खोदावा मितवा,
सब बारिस कै पनिया बचावा मितवा।

वर्षा कै पनिया जगहा जगहा रोका,
समंदर म मिलि बनी खारा मितवा।

इहै बतिया सबके समझावा मितवा,
तनी धरती कै प्यास बुझावा मितवा।

ई धरती कै पनिया दुहत लोग ज्यादा,
जल - स्तर तेजी से घटत बाय राजा।

तनी धरती क पनिया पियावा मितवा,
यही पनिया कै संरक्षण बढ़ावा मितवा।

आज पनिया कै संकट बढ़त जात बाटै,
लोगवा तौ पियासा मरत जात बाटेन।

अगला विश्व युद्ध पनिया के होइ मितवा,
सगरो इहे अलखिया जगावा मितवा।

सब जन मिलि पनिया बचावा मितवा,
जल संकट से दुनिया के बचावा मितवा।

भावुक


नीर

न गंध है ,न रंग है
न रस है,न शरीर है
बस नीर है !

धरा पर आधिपत्य है ,
व्योम पर घनत्व है,
नयनों में संकुल है,
शुष्क है मनु ,फिर भी..
बात तो गंभीर है!
बस नीर है!

निर्मल इतना कि ,
पाप तक धुल जाएं
घुलनशील ऐसा कि ,
ठोस मन तक घुल जाएं
ऐसी जादुई तासीर है !
बस नीर है !

प्रलय का प्रारूप है ,
अंनत का स्वरूप है ,
अखंड ही स्वीकार्य,
तभी तो अनिवार्य,
रक्षा की प्राचीर है !
बस नीर है !

मेरे व्याकुल मन का ,
नैऋत्य कोण ,रीता है ,
नवीन कुछ ,रचा नहीं,
शेष कुछ ,बचा नहीं,
नैना यूँ अधीर हैं !
बस नीर है !

बस नीर है !

स्वरचित
संध्या बक्शी
जयपुर।



(पिरामिड)प्रयास मात्र

है
नीर
निर्मल
अनमोल
प्रकृति-सार
जीवन -आधार
ईश‌ का वरदान।

है
पानी
पवित्र
सुधा-तुल्य
जग-जीवन
कृषक-उल्लास
गाता मेघ मल्हार।

हो
जल
निर्मल
संरक्षित
कुएं-पोखर
सरोवर-नदी
प्रदूषण रहित।


1 झुलसी धरा
मुरझाई लताऐं
बिना जल के ।

2 प्यासी नदिया
कृषकाय झरने
पानी की आस ।

3 सूने चौबारे
पशु हैं कलपते
नीर की कमी।

4 पानी के बिन
गर्मी में झुलसता
कर्फ्यू सा गांव।

5 फटी है धरा
किसान लाचार से
जल ही नही।

6 क्षरित वृक्ष
रेत आंखो में झोंके
आजा रे पानी।

7 प्यासे हो कुवे
फ्रिज ए सी के ठाठ
बिकता पानी।

स्वरचित।
कुसुम कोठारी



"नीर/जल/पानी"
हाइकु
1
तू ले संकल्प
जल का संरक्षण
नहीं विकल्प
2
जल व आग
प्रकृति है अलग
रहे ना संग
3
पिया की याद
सावन की है रात
पानी में आग
4
चाँदनी रात
बिन जल नहाई
क्यों हरजाई
5
निशा सजनी
लेके आई चाँदनी
नीर या पीर
6
कोई ना शक
बिन जल मछली
जी नहीं पाती
7
सुख व दुःख
अश्रु जल छलका
रोके ना रुका
8
नैनों से नीर
लेके काजल साथ
बहते पीर
9
अश्रु जल से
शहिदों को आहूति
भीगा आँचल
10
सृष्टि आधार
"जल ही जीवन है"
तृप्त संसार

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल



मंच को नमन
दिनांक-23/2/2019
विधा- हाइकु

विषय- नीर

(१)
आँखों का नीर
परिभाषित पीर
मरा ज़मीर
(२)
जीवनाधार
प्रकृति का शृंगार
बनता नीर
(३)
सार्थक नीर
घृणास्पद कर्दम
खिला कमल
(४)
विरह पीर
नैनों में समाकर
बहाती नीर

संतोष कुमारी ‘संप्रीति’
(स्वरचित)


मैं वहां परिंदा नहीं...,
जल सूखा और
तालाब छोड़ दूं !
मैं वह मीन हूं ...,
जल सूखा और
तड़पकर मर जाऊं !!

पानी रे पानी तेरा
रूप कई प्रकार !
तुम ही जीवन तू ही
जीवन का आधार !!

आंखों से जो बह गए
अश्क़ बन गए ...,
गंगा से बह चले नीर !
अपनी दिल की दर्द समझ ,
औरों का महसूस कर पीर !!

स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह मानस
सुदर्शन पार्क
मोती नगर नई दिल्ली


(1)💦
स्वार्थ तपन
सूखे नयन "नीर"
दिखे न पीर
(2)💦
बिकता "पानी"
समय की दुकान
सस्ता आदमी
(3)💦
चिंतित कल
अविवेक दोहन
सिमटा "जल"
(4)💦
अभ्यास जोर
"जल" का श्रम करे
पत्थर गोल
(5)💦
जल है भला
व्यवहारकुशल
आकार ढ़ला

स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)


हाइकु
1💧💧
जल बचाओ
धरती को हर्षाओ
प्राण दिलाओ
2💧💧
जल जीवन
अमोल उपहार
छोडो प्रहार
3💧💧
हरित भूमि
बिन पानी के सून
इसे बचाओ
4💧💧
बैंक बैलेंस
भविष्य उज्जवल
वर्षा का जल
5💧💧
मानव ज्योति
अनमोल है मोती
जल से होता
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून



जल जीवन आधार है
जाने सकल जहान
जल से न मनमानी करे
कहे चतुर सुजान

पानी रखे आँखों मे
वही है मान सम्मान
घर आये मेहमान जो
गुड़ जल दे उन्हें
करे उनका सम्मान

जल रहे गात मे
सहज सरल संसार
जल कम हो जो गात मे
सहज पड़े बिमार

जल के बिना अन्न का
नही कोई उपयोग
जैसे जीव बिन देह का
नही है कोई मोल

जल,वायु मिल बने
जलवायु हो नाम
पूरा व्यक्तित्व प्रभावित करे
जाने सकल जहां

जल है तो कल है
सभी जाने है आज
संचित करें हम स्वयं
पीछे सकल जहां



1

आँखों का पानी
मर्यादा की कहानी
सूखे ना कभी

2

मानव तन
घट पानी से भरा
करो सत्कर्म

3

सुधा सरिता
जीवन दायिनी माँ
खोयी है कहां

4

मृत जीवन
शरीर के भीतर
पानी जो सूखा

5

भीगी पलकें
शहीद हुआ वीर
छलका नीर

6

सुलगा पानी
आग हो जाए ठंडी
पाक घमंडी

7
मृदा क्षरण
संग्रह संरक्षण
जल जीवन

8

बनी मशीन
बुझायेगी ये प्यास
हवा की नमी

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )


जिस देश में जल के भण्डार रहें हो
जहाँ जल को भी पूजा जाता हो

जिस धरा पर दूध/दही बेचना हों पाप
होता उसी धरा पर जल का मोल भाव

चोंच भर पानी मिल जाए नल में काश
प्यास बुज़ा जातें हम पंछी आकाश

धरती से अंबर भटक रहें हम
बूँद बूंद को तरस रहें हम

छतों पर होते पानी के बर्तन
मीलते अक्सर वह भी खाली

हम पानी भरना भी भूल जाते
व्यर्थ में ही उनकी आस बंधाते

प्यासा मन पानी को तरसे
पानी की खातिर दर-दर भटके

पानी छत पर रखना "राज"
चोंच भर पानी मिल जाए
_____________________________
राज मालपानी
शोरापुर-कर्नाटक

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