Sunday, June 17

"स्वतंत्र लेखन "17जून2018



पिता 💐
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1. पिता - 
िता नहीं
कोरे कागज पर लिखा
एक पता है ।
पिता-पिता नहीं.....
2.पिता-
पिता ब्रह्मा है
पिता विष्णु
पिता महादेव है।
सम्पूर्ण सृष्टि में
पिता ही केवल -एक है।
पिता-पिता नहीं.........
3.पिता-
अपने बंश बीजों को
मात्र मृदा में गाड़ कर
उन्हें बोता है ,
स्वेद से सींचता है,
कर्म से अंकुरित करता है
और-
फलों के लद जाने पर
स्वयं नहीं खाता।
पिता-पिता है........…
4. बिना मातृ शक्ति के
यह पिता भी अधूरा है
जिसे-
आने बाला समय
एक पुत्र ही
पूरा करता है।
पिता-पिता नहीं.........
( स्वरचित: फादर्स डे पर समर्पित )


 भा.18/6/2018(रविवार )शीर्षक ःपिताःः
विधाःःकविता ः(सभी पिताओं को सादर समर्पित)
एक पिता का मूल्य

माता से कम नहीं होता है।
माँ नौ माह कोख में रखती,
समझदार होने तक बोझ उठाती
बाप तो सारी जिंंन्दगी ही बच्चों को
अपने कांधों पर ढोता है।
पहले इनके पालन पोषण की चिंता
फिर शिक्षा दीक्षा की सोचता है।
शिक्षा के साथ भविष्य निर्माण
इन्हें नौकरी व्यवसाय खोजता है।
पिता का कर्तव्य मरते दम तक
कभी कम नहीं होता।
बेटा सपूत है तो ठीक वरना
कपूत निकला तो जिंंन्दगी भर रोता।
बच्चों की संस्कृति संस्कार
पिता के साथ जुडे हैं।
अच्छे बुरे जो भी दिखे लोग कहें
इसे अपने बाप से मिले हैं।
बच्चों की पढाई लिखाई के बाद
धंधा ,शादी व्याह की फिक्र
सुंन्दर सुशील वधु ढूँढने की
समाज में यथा समय जिक्र।
शादी के पश्चात यदि
वहू अच्छी मिली तो सब कुछ अच्छा
वरना फर वही जिंंन्दगी भर का रोना।
बेटे बहू बूढे माँबाप को छोडकर
अपना अलग आशियाना बसा लेते है।
और अपने मातापिता को यह
भगवान भरोसे छोड देते हैं।
कुछ बेटे विदेश मे आसरा ढूँढते हैं
कुछ यहाँ रहते हुऐ भी इन्हें
बृद्धावस्था मे अनाथालय अथवा
किसी बृद्धाश्रम में छोड देते हैं।
बच्चे कहीं भी रहें परंतु पिता को
उनकी चिंता सदैव सताती है।
खुद ने रोटी भले नही खाई ।
लेकिन लाडलों की भूख
इन्हें हमेशा ही दिखाई।
जीव पर्यंन्त पिता बच्चों को
मानसिक रूप से ढोता है
फिर भी अभागा अपनों के
थोडे से प्यासे सम्मान पाने के लिए
आजीवन छटपटाता रोता है।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।
Ma

💐भावों के मोती💐

पिता ही सर्वोच्च
भी परमपिता कहलाए
हर पल दे हौसला
पल पल है आगे बढ़ाए।
जीवन है नैया
पतवार स्वयं बन जाए
डगमगाए हो कश्ती कभी
स्वयं ही पार लगाए।
अंतस हो गहन पीड़ा
नही किसी को वो दिखलाए
सदा मुस्कान चेहरे पर लिए
संध्या समय वो घर आए।
मेरे परमपिता
तुम ही मेरा अभिमान हो
दुनिया मे न तेरे जैसा
हौसलों का कोई जहां हो।
हाथ जोड़ नतमस्तक रही
सदा तेरे ही चरणों मे
इस जन्म तो क्या,
न सातों जन्म मांगू,
मैं तो मांगू,
लाखों जन्म तेरा साथ।
सदा रखना 
शीश पर मेरे अपना हाथ।
निःशब्द हूँ, मैं मौन हूँ
नही शब्दकोष है मेरे पास
मेरे जन्मदाता पिता
तू ही मेरा मान अभिमान।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
वीणा वशिष्ठ शर्मा


पापा तुम कहां हो
तुम मेरा आसमान हो
घर की छत टपक रही है
इस बात से क्यूं अनजान हो

ऊंगली पकड़कर चलना सिखाया
पथरीली राहों से लड़ना सिखाया
कड़ी धूप में छांव बने तुम
पापा तुमने मुझे जीना सिखाया

मैं तुम्हारा चूंचूं का मुरब्बा
मुझे हंसाते पहन के झब्बा
प्यासी आंखें नेह गोद को ढूंढे
पापा तुम मेरा खिलता जहान हो

याद तुम्हारी मीठी मीठी
अंगूर का डब्बा सीताफल की टोकरी
ज़रा सी चोट से हिल जाते थे
पापा तुम बन जाते थे प्रहरी

दर्द तुम्हारा समझ न पाई
जरूरत तुम्हारी देख न पाई
आत्मा मेरी विह्वल है दर्द से
ये पीड़ा में बताऊं कैसे

आओ पापा संग खेले कूदें
बैठ साइकिल दुनिया घूमें
पेट पर सो कर नींद मैं ले लूं
मेरा बचपन फिर से जी लूं

पापा तुम धड़कन हो मेरी
दिल का उजाला शान हो मेरी
फिर से बेटी बनूं तुम्हारी
तुम ही तो मेरे भगवान हो 

स्वरचित : मिलन जैन


****** पिता ******

पिता ने हमको जग दिखलाया
वरना आत्म रूप थे हम 
माता के कष्टों को सुनकर
आँखें हो जाती नम 
पिता से है पहचान हमारी
पिता को करो सदा नमन
सुख दुख अपना कभी न देखे 
करदे ये जीवन अर्पन 
बेटा हमसे ऊँचा जाये 
ऐसा केवल पिता का मन
शिकवा करो न कभी पिता से
''शिवम्" उन्हीं का ये जीवन

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



चंद हाइकु -पिता को समर्पित 
(1)
माँ गर धुरी
"पिता" परिधी पर
चलाता घर
(2)
घिसता रोज
"पिता" जादू चिराग.
ख़ुशी दे बाँट 
(3)
दौड़ता रोज
"पिता" के काँधे पर
घर की सोच
(4)
अर्पित जान
"पिता" की खामोशी भी
घर की शान
(5)
स्वप्न सवार
परिवार की नैया
"पिता" खिवैया
(6)
सहिष्णु बड़ा 
बिटिया की विदाई 
फटता पिता 
(7)
जीवन धूप
पिता का समर्पण
छाते का रूप

ऋतुराज दवे

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