शहर की नारी
भूल गयी मर्यादा सारी
सूनी मांग तरसती है
कुमकुम उदास रहती है,
सुहागन होकर भी
नारी लगती कुवांरी है,
ईश्वर ने पूछा कुमकुम से
क्यू उदास हो गुमसुम से,
प्रभु आपने मान दिया
सम्मान दिया
नारी के सिर का
ताज दिया,
फिर क्यू मै
वक्त की मारी हूं
मिटा दिया माथे से
उसे जो थी नारी की शान,
यही है मेरी अभिलाषा
नारियो से है ये आशा
मत करे इसका अपमान
कुमकुम से है हमारी पहचान....
स्व
गीतांजलि
देख श्रंगार माता सीता का बोले थे हनुमान
सर पे ये क्या सजाया माँ क्या इसका विधान ।।
देख उत्सुकता हनुमान की माँ मन में मुस्काईं
हनुमान की हठ जान अर्थ उन्हे वो समझाईं ।।
नारी का सौभाग्य है , ये नारी का गहना है
स्वामी की रक्षा इसमें इसलिये सजाये रहना है ।।
सेवक स्वामी का रिश्ता ऐसा ही बतलाता है
जिसमें भला स्वामी का सेवक धर्म कहलाता है ।।
प्रभु के परम भक्त ने इसमें जरा देर न की
पूरे ही शरीर में उन्होने सिन्दूर सजा ली ।।
ऐसे ''शिवम" हनुमान ऐसा सिन्दूर से नाता
सुहागनियों का सौभाग्य सिन्दूर से बढ़ जाता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
कुमकुम शीर्षक पर विवाह समय पिता -पुत्री संवाद।::
पिता:
तू मेरी सुकुमारी कन्या
पतिव्रता धर्म निभाना है
सौभाग्य अब ये कुमकुम है
इसी में घुल मिल जाना है।।
नही,लाल ,सिंदूरी रंग है ये
जीवन अनमोल रत्न है ये
मान-सम्मान का सूचक है
कर्म पथ सदा दिखलाता ये।।
कुमकुम सा लावण्य सदा देना
सीता सा स्नेह दिखला देना
कुमकुम की लाज सदा रखना
नयनतारा प्रिय की बन जाना।।
पुत्री::
मान सदा रखूँगी पिता का
आंच नही आने दूँगी
वचन सुने जो मैंने अभी
जन्मों तक उन्हें निभा दूँगी।।
है कुमकुम भाग्य विधाता ही
उसको सम्मान सदा दूँगी
मैं ,कन्या पिता तेरी ही हूँ
गठबंधन सदा निभा दूँगी।।
देह मेरी जो छूट भी जाए
कुमकुम पे आंच न आने दूँ
सदा सावित्री सी ढाल बनूँ
वो कुमकुम माथे पर लग जाए।
वीणा शर्मा
स्वरचित
(2)
20-6-2018
कुमकुम
कुमकुम सौंदर्य नारी का
भाग्य विधाता है नारी का
नारी स्वयं पर इठलाती है
जब साथ मिलता साथी का।।
कुमकुम नारी जीवन की बहार है
खिलता इसी से जीवन साज है
बिन इसके है जीवन सूना सा
सुमधुम संगीत की ये बहार है।।
ओढ़ ले लाल चुनर कितनी
बिन इसके न मांग है सजती
यही दाम्पत्य की सुगढ़ता
बिन इसके न नारी रमती।।
वीणा शर्मा
दैनिक लेखन
शीर्षक - कुमकुम
कुमकुम
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कुमकुम ब्याहता का श्रृंगार
कुमकुम खुशियों का अंबार
कुमकुम मात पिता की सीख
कुमकुम बड़ों का आशीष
कुमकुम गौरा का वरदान
कुमकुम भाग्य की पहचान
कुमकुम एक मिलन का गीत
कुमकुम नवजीवन संगीत
कुमकुम सपनों का सावन
कुमकुम प्रीत की रुनझुन
कुमकुम साजन जी का साथ
कुमकुम प्रणय मिलन की रात
कुमकुम जीवन का आधार
कुमकुम एक नया परिवार
कुमकुम खुशियों का अंबार
कुमकुम ब्याहता का श्रृंगार ।
सपना सक्सेना
स्वरचित
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करने जीवन का श्रृंगार
हँसते हुए जो चल दिये
रणभूमि में
लेकर दिल में विजय की आस
ऐ भारत ! इन वीरों को बारी बारी से कुमकुम लगा ।
सिरफिरी हवा भी
बुझा नहीं पाती है
जलाये चराग जो हमने,
बुझ गये जिस दिन चराग हमारे
टपकते नहीं फिरभी अश्रु- कण हमारे
ऐ भारत! इन चरागो को बारी बारी से कुमकुम लगा ।
सजा जब माथे पे कुमकुम
तीनो लोको में प्रकाश होने लगा
चमक देखो इनकी
शत्रुओं में सहमा-सहमी होने लगी
माँ वसुंधरा जग करता है जिसका अभिषेक
उसका मुझे भी अभिषेक करो
ऐ भारत! भारत के लाल को बारी बारी से कुमकुम लगा ।
हारा अपनो का मारा
क्या बताये
अपना सौभाग्य बेचारा
सब नि:स्व,निर्जीव, निस्पंद है
सबकी चेतना जड़, अंध, मौन है
ऐ भारत! अपनो से हारे हुए को
बारी बारी से कुमकुम लगा ।
@शाको
स्वरचित
कुमकुम
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गेरू रंग में ही रंग दे पिया
महका दे मेरे जीवन की बगिया
गोधुली में किरणें घुलती जैसे
घुल जाऊँ मैं भी तेरे रंग में
तुझ संग वो रसिया
माथे पर सजती रहे कुमकुम
बन जाऊँ मैं भी
अखंड सौभाग्य की मलिका
उज्जवल धवल चाँदनी में भी
चम चम चमके मेरी बिंदिया
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
मांग भरती कुमकुम सधवा की,
सजे पांव पैजनी कंचन कामनी।
कंगन हाथों हिना माथे पै बिंदिया,
लिए लावण्यमयी ये गात गामनी।
प्रथम श्रंगार कुमकुम से करती।
मांग सदा यह कुमकुम से भरती।
स्वर्णाभूषण तभी सुहाऐ इसको,
जब सदा सुहागिन रहती सजनी।
कुमकुम सजा रहे माथे पर इनके,
सदैव सुहागिन रहो सधवा तुम।
रहो श्रंगारित पिया सरहद पर,
निश्चित नहीं रहोगी विधवा तुम।
भरी मांग कुमकुम से इसकी,
माथ पर बिंदियां सजी रहे।
खनकें सदैव हाथों में चूडी,
पग बिछिया पायल बंधी रहे।
ईश करें सदा सुसज्जित रहे तू,
अपने प्रिमतम की सुंन्दर सजनी।
कुमकुम पायलिया चूडी चमकें,
इनसे श्रंगारित हो चमके रजनी।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
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