9-6-2018
विद्यार्थी
चलो फिर से विद्यार्थी बनें
नव नित सीखने का जोश भरें
बचपन के दिन याद करके
नए सृजन की ओर बढ़े।।
विद्यार्थी जीवन बेहिचक रखे
न झिझक रखे, न हया रखे
उमंग जोश से परिपूर्ण
सदैव मन को बनाए रखें।।
नया करें देश को आगे करें
भावों,विचारों को उत्तम करें
वेद,पुराणों को आत्मसात कर
सृष्टि का अमूल्य मंथन करें।।
सीखने की कला जीवंत रखे
कर्तव्य,कर्म को समाहित रखे
इंद्रियों को अपने काबू करके
नव नित सृजन की उमंग रखें।।
वीणा शर्मा
कांधे पर टांगकर बस्ता
पाने वह शिक्षा माकूल ।
सपनों को करने साकार
निपुण बनने को व्याकुल ।।
उसकी मंजिल का रास्ता
जाता है बस सीधा स्कूल ।
मिलता जहाँ ज्ञान सागर
सीखते जीवन पाठ मूल ।।
विद्यार्थी काल की सीख
से खिलखिलाते है फूल ।
जब भी हम बैठते-सोचते
तब याद आता है स्कूल ।।
गोपाल कौशल
नागदा जिला धार म.प्र.
99814-67300
©स्वरचित® 09-6-18
बडी सुहानी यादें हैं,
वो "बख्शी-तालाब"की बातें
भोर अँधेरे उठते थे हम,
माँ तो हमसे पहले उठतीं।
डिब्बे में खाना तो देतीं,
संग मे ढेरों सीखें भी देतीं।
अपनी बस थी बडी निराली,
बिल्कुल घर सी लगती थी।
हम सबको संरक्षण देती,
और मंजिल तक पहुँचाती थी।
खिडकी वाली सीट की खातिर,
हम सब रहते थे आतुर।
अपनी मंजिल सबकी होती,
सबकी मंजिल अपनी।
एक का खाना सब खाते,
सबको एक खिलाता था।
जिस दिन कोई एक न आता,
दिन खाली-खाली सा लगता था।
पीड़ा मे यदि कोई होता,
सबके चेहरे मुरझाते थे।
किसी एक की खुशी,
ले आती सबके मन में,
होली और दिवाली।
कुछ पाँच बरस हम साथ रहे,
फिर बिछडे बारी-बारी।
आँखों में आँसू थे,
मन में दुख था भारी।
कुछ खट्टी मीठी बातें,
कुछ अमिट छाप सी यादें।
मन के बस्ते मे ,
रक्खा है मैंने,
आज भी बिल्कुल वैसे।
लगती हैं वो कल की बातें,
अक्सर मन ये करता है,
काश वही पुरानी बस होती,
और होते सारे साथी।।
छीन झपट कर खाना खाते,
चिढते और चिढाते।
किसी एक को ,
छुप छुप कर देखा करते,
और मन ही मन मुस्काते।
काश वो सुबह सुहानी होती,
और शामें अवध की बातें।
©प्रीति
विद्यार्थी सदा करता है मनन।
जीवन सीखने का नाम
विद्यार्थी है यहाॅ तमाम।
सिखलो ईश्वर की उपासना
मात पिता की सेवा भी हो कामना।
जिन्दगी मे हर लम्हा सिखाता है
बचपन से बुढापे तक दिखाता है।
जीवन मे कोई पूर्ण नही हुआ
अंतिम सांस तक सिखना लगा हुआ।
जीवन मे अच्छा है बने रहो विद्यार्थी
जब तक न उठ जाए आपकी अर्थी।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
''विद्यार्थी"
चहुँ मुखी विकास करे जो विद्या है
नही तो विद्या मानो एक अविद्या है ।।
विद्या ग्रहण करके भी हम असहाय दिखें
निश्चित कोई त्रुटि या कुविद्या है ।।
विद्यार्थी क्या समझें वो तो ग्राहक हैं
दोषी तो वो हुये जो इस नीति के संवाहक हैं ।।
कितने खोट निकलेगे इस पद्धति में
किसी ने सोचा ये आज के मुताबिक है।।
मेहनत करके भी युवा रोतें हैं
उसके जुम्मेदार कौन होते हैं ।।
कसूरवार विद्यार्थी नही ''शिवम"
कसूरवार तो मस्ती में खोते हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
विद्यालय विद्यार्थी विद्या विनय विवेक।
शिक्षा संस्कृति संस्कार सीखें स्वविवेक।
पढें पाठ परमार्थ परमेश्वर प्रिय प्रियजनों,
नित नव नूतन सृजन से कर्म करें अनेक।
श्रीगणेश माँ शारदा नित करता जो ध्यान।
वह विद्यार्थी निश्चित ही बनता बडा विद्वान।
पूंजी यह सबसे बडी चाहे जितनी खर्च करें,
जितनी हम बांटेंगे इसे वृद्धि करें श्रीभगवान।
संस्कृति संस्कारों सेपूर्ण सीखें करना सम्मान।
विद्यार्थी विद्या का कभी नहीं करें अभिमान।
विद्या से विनय मिलती फिर पाते हम योग्यता,
पात्रता से धन कमा विद्यार्थी बने नेक सुजान।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।
II दोहे II
पढ़ पोथी पागल भये... समझे न कोई बात....
गिरी सोच फिर भी रही...फँसे धर्म ओ जात...
अर्थी विद्या निकल रही...जोर शोर से आज...
सड़क पे है विधार्थी......अनपढ़ पहने ताज...
गुरु शिष्य की परम्परा...हो गयी है अब चित...
न विवेकानंद ही रहे... रामकृष्ण से न मित...
विद्या तम का नाश करे..कर प्रकाश सब ओर...
विद्यालय व्यापार बने ... .......होगी कैसे भोर...
दुनिया इक विद्यालय है....हम सभी विद्यार्थी...
न करें तबाह हम इसे..... कहे 'चँदर' प्रार्थी...
II मौलिक - चन्दर मोहन शर्मा I
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हर ध्वनि को वर्ण कर दे
शब्दों को वाक्य कर दे
इस तरह से अभिव्यक्त कर मुझको
पाणिनी का अष्टधायी कर दे
मुझसे है प्रेम तो
तू महर्षि कृष्ण द्वैयापन वेद व्यास बन जा
ऋचाएं बना मुझको
और वेद कर दे ।
कोरे कागज पर क्या लिखता रहता है
विद्यार्थी है तो आ
मुझे लिखकर महाकाव्य कर दे ।
विद्यार्थी जिस धरा पर था
वहाँ विद्यार्थी नहीं रहा
रास्ता भटक गया है
मकसद भूल गया है
कल जिसको हमने
हाथ पकड़कर,
लिखना सिखाया था
आज वह अपने
वतन में नहीं रहा।
हम अपने वतन का नाम
कैसे रोशन करेंगे जग में
जब विद्यार्थी के दिल में
आपना वतन नहीं रहा ।
विद्यार्थी का मामला था
एकलव्य के दौर में
इस दौर में विद्यालय है
विद्यार्थी नहीं रहा
कुछ विद्यार्थियों से मैंने सुना है
गरीबी में भी पढ़ना
अब मुश्किल नहीं रहा ।
@शाको
स्वरचित
आशाओं का वो दीप जलता रहा।
अंत जिसका ना बदला हम वो किताब बन कर रह गये,
जिसने चाहा पढा, फाड़ा भी तो,पन्नो को संभाले रक्खा।
तूफानों के ना जाने कितने काफिले, आये और गुजर गये,
सागर संग यारीयां करके अपनी कश्ती को संभाले रक्खा
और! लम्हा लम्हा मेरी आशाओं का वो दीप जलता ही रहा।
अमावस की रात ने चांदनी का अहसास कराया ही नही,
खुद की क्षमताओं ने दीयों पे, मेरा हक बनाये रक्खा।
राधा रूक्मणी अर्जुन सुदामा जैसी कहानी बन ना सकी,
जिसे दर्शन तक ना मिला कृष्ण का, वो मीरा बनाये रक्खा।
और! लम्हा लम्हा मेरी आशाओं का वो दीप जलता ही रहा।
मैने देखा बन के पंछी नील गगन में, फिर उङान भर के,
राह में अपनी परवाज पर घमंड कभी ना बनाये रक्खा।
जो जोत जली मंदिर में, दिवाली में, और मातम में भी,
उस टिमटिमाते लौ पर भी अपना विश्वास बनाये रक्खा।
और! लम्हा लम्हा मेरी आशाओं का वो दीप जलता ही रहा।
पंतगें सी जलना नियति है माना उस प्रजवल्लिन की,
मैने अपनी शहादत पर हर पल अभिमान बनाये रक्खा।
माना ये विषय चितन है और बहता जीवन लघु अवधि का,
बिना तेल बाती, उपलब्धियों पर फिर भरोसा बनाये रक्खा।
और! लम्हा लम्हा मेरी आशाओं का वो दीप जलता ही रहा।
अंधेरी गलियों में मन की भटकन कभी जोश बुझा देती है ,
अधूरी कल्पनाओं पे आरजूओं का संतुलन बनाये रक्खा।
आईने में अपना सा बनके, आंखों से मोती सा झर के,
फूलों के घर रहकर कंटक मे, महक को बरकरार रक्खा।
और! लम्हा लम्हा मेरी आशाओं का वो दीप जलता ही रहा।
-----डा. निशा माथुर
विद्यार्थी जीवन तो है स्वर्णिम काल
पूरे जीवन-काल का ये यादगार।।
मेहनत, लगन और स्वध्याय।
कर देते है उनके सपने साकार।।
वक ध्यान, काक चेष्टा
उनका ये सब है हथियार।।
चलचित्र, दूरदर्शन और प्रमाद
ये सब है उनके दुश्मन आज।।
चाणक्य, स्वामी विवेकानंद को
यदि माने ये अपना आर्दश
तो हर विद्यार्थी गढ़े अपना
स्वर्णिम इतिहास।
स्वस्थ्य शरीर में ही है स्वस्थ्य
मास्तिष्क का निवास समझो
विद्यार्थी इसे स्चची बात।
पढ़ाई के साथ साथ रखें सेहत
का भी ध्यान तभी विद्यार्थी
जीवन हो सरल और सहज हो राह।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
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