II कवि II
कवि के हैं रूप अनेक...
देह एक पर भेस अनेक....
कभी उद्यंड कभी शालीन...
उमड़े सागर कभी भाव विहीन...
कवि निर्माण कवि बिध्वंस...
कवि के मन उपजे हर अंश...
करे उपजाऊ मन बंजर कभी तो...
तहस नहस करे सब मंज़र वो...
प्रियतम कवि कल्पना में..
चाँद दिखे मन मंदिर में...
सूरज की अग्नि से ज्यादा...
ताप रखता अपने दिल में...
कभी दूत वो भावों का सबके...
कभी विष उगले अपने मनके...
आतताईओं का यमदूत कभी वो...
अत्याचार करे कभी आँख मूँद वो...
कवि रूप है बहुत ही महान...
गर कर ले कवि कोई ये भान...
सूरज निकले नहीं निकले पर...
कवि कल्पना उपजे हर पल...
आसमाँ धरा पर आ जाए वहीँ पे...
प्रेम विशाल ह्रदय कवि रहे जहाँ पे...
शत शत नमन उन कविओं को है..
साहित्य वसुंधरा जीवित जिनसे है...
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
कवि के हैं रूप अनेक...
देह एक पर भेस अनेक....
कभी उद्यंड कभी शालीन...
उमड़े सागर कभी भाव विहीन...
कवि निर्माण कवि बिध्वंस...
कवि के मन उपजे हर अंश...
करे उपजाऊ मन बंजर कभी तो...
तहस नहस करे सब मंज़र वो...
प्रियतम कवि कल्पना में..
चाँद दिखे मन मंदिर में...
सूरज की अग्नि से ज्यादा...
ताप रखता अपने दिल में...
कभी दूत वो भावों का सबके...
कभी विष उगले अपने मनके...
आतताईओं का यमदूत कभी वो...
अत्याचार करे कभी आँख मूँद वो...
कवि रूप है बहुत ही महान...
गर कर ले कवि कोई ये भान...
सूरज निकले नहीं निकले पर...
कवि कल्पना उपजे हर पल...
आसमाँ धरा पर आ जाए वहीँ पे...
प्रेम विशाल ह्रदय कवि रहे जहाँ पे...
शत शत नमन उन कविओं को है..
साहित्य वसुंधरा जीवित जिनसे है...
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
भ्रमर मन,
भंवरे जैसा ।
घुमता सारी,
सृष्टि एक क्षण ।
टटोलता,
समाज मन ।
ढुंडता पराग,
शब्द के ।
प्रकृति की गोद से ।
पीकर उसे,
स्वच्छंद मन से ।
करता गुंफित,
मिठे,खट्टे शब्द में ।
बनती शब्दमाला ।
कभी,
शकुंतला ।
कभी,
मधुशाला ।
करते हैं हम,
गुण गान ।
इन शब्दों की माला का।
करते हैं हम रसपान ।
आदी,अनादी,
अनंत तक ।
✍प्रदीप सहारे
इस धरती पर पहले,
करुण राग किसने गया।
बोलो पहले कविता आयी,
या फिर पहले कवि आया।।
मन में फैले अंधियारे को,
जिसने पथ दिखलाया,
महाकवि थे कवीर जी,
जिसने सच को फैलाया,,
बोलो पहले कविता आयी,
या फिर पहले कवि आया...
एक कवि थी मीरा बाई,
जिसने प्रेम लिखा-पढ़ा-गाया,
प्रियतम से भक्ति करना,
हम सब को है सिखलाया,,
बोलो पहले कविता आयी,
या फिर पहले कवि आया,
एक कवि महाप्राण निराला,
भिक्षुक बन जीवन जाया,
राम को शक्ति पूजा कराकर,
लंका विजय करा आया,,
बोलो पहले कविता आयी,
या फिर पहले कवि आया....
एक थे स्वामी तुलसीदास,
आजीवन भक्ति रहा भाया,
मानस की अनुपम रचना से,
जीवन मोल चुका आया..
बोलो पहले कविता आयी,
या फिर पहले कवि आया...
हिन्दी की अमर साहित्य में,
लाखों सूर्य चमकते है..
उनमे से कुछ ज्योति का,
पुंज है मैंने बतलाया...
बोलो पहले कविता आयी,
या फिर पहिले कवि आया....
.....राकेश
कवि की कविताई को
सागर की गहराई को
बोलो माप सका है कौन
बोले लेखनी, सब हैं मौन
किसने नापा नभ अपार
पहुंचा कौन क्षितिज के पार
बिना पंख के उड़ता कौन
बोले लेखनी, सब हैं मौन
लहर लहर में तरंग तरंग
निर्जन घट में नेह उमंग
संग हवा के बहता कौन
बोले लेखनी, सब हैं मौन
स्याही में इतिहास घुले
तुला में धन कुबेर तुले
सत्य सूली पर चढ़ता कौन
बोले लेखनी, सब हैं मौन।
सपना सक्सेना
स्वरचित
ईश्वर सृष्टा है
कवि दूर दृष्टा है
यह समाज को चेताता है
उसमें कमीं बताता है।
पध्य के माध्यम से
गद्य के माध्यम से
व्यंग के माध्यम से
तंज के माध्यम से।
कवि से तुलसीदास संत हो गये
सूर्य के पद दिग दिगन्त हो गये
चंदबरदाई पर आज भी नाज़ है
भूषण कवि में वीर रस की आवाज़ है।
कवि एक उत्तरदायित्व है
कवि एक स्थायित्व है
कवि हस्ताक्षर साहित्य का
कवि हस्ताक्षर सृजन के कृत्य का।
कवि का मन्त्र मन में जब गूंजता
वो भी जगता जो सदा ही ऊॅघता
कवि की कविता में जो होती धार
वह हर स्थिति को लेती है संवार।
"कवि'
कवि तो है हमारे समाज के प्रहरी।
उनकी कविताएं हमारे समाज को
देती है संदेश जागरूक रहे हम सदा।
कवि कभी होते नही तन्हा।
या फिर कवि भीड़ में भी होते है अकेले।
कवि तो इन दोनों गुणों से होते है लैस।
वे हर वक्त खोये रहते है,अपनी दुनिया में।घर में रहे या राशन के लाईन मे।
कविता तो बस उनके दिमाग मे चलती रहती हैं।
कवि तो होते है सच्चाई के दर्पण।
वे सिर्फ कवि कहलाने के लिए नही
रचते कविता।
वे समाज को एक अच्छी सोच व एक
अच्छी संदेश देने को रहते हैं प्रयासरत।
कवि की प्रतिष्ठा है दुनिया में भारी।
बिना अस्त्र शस्त्र के भी ये झूका दे
दुनिया सारी।
जहा बड़े बड़े दिग्गज है हारे।
वहा जीते है कलम के सिपाही।
कवि और रवि की तुलना है न्यारी
इनसे रौशन हैं दुनिया हमारी।
"भावों के मोती"
कल्पनाओं के सागर में जाकर
छोटे- छोटे मोतीयों को लाकर
उन मोतियों को शब्दों से अपने
जीवंत करके, जो चमकाता है,
वही तो एक कवि कहलाता हैं।।
सुनकर पीड़ाओं की बातों को
सहकर अपनी बद हालातों को
अपनी उन बद हालातों को हरने
जीवं शब्दों से, जो भर जाता है
वही तो एक कवि कहलाता है।।
एक साहित्य के बाग में रहकर
उसमें शब्दों रूपी जल दे देकर
नया उल्लास, मन मोहित करने
कविता का फूल,जो खिलाता है,
वही तो एक कवि कहलाता है।।
कही हरे-भरे पेड़ो की भूमि से
लाता है बीज सुनहरे अमि से
ख़ुश्क मरुथल की भूमि को भरने
सोमरस के बीज ,जो उगाता है,
वही तो एक कवि कहलाता है।।
✍परमार प्रकाश
मैं कवि हूँ
स्वयं की भावनाओं ,उमंगों को निखारती
शब्दों से तराशती
अजंता सी बारीकियाँ लिए
कलम से हूँ संवारती।।
मैं कवि हूँ
शब्दों में ओज को भर
मरणासन्न देह में
श्वासों को संभालती
नव जीवन का अहसास कराती।
मैं कवि हूँ
शब्दों में पायल की रुनझुन पिरोती
मानसिक सुक्षुप्त लोगों में
अलख जगा कर
अंधेरे दिलों में उजाला हूँ करती।
मैं कवि हूँ
दूर बैठे पिया को
स्नेह भावों में रमा कर
कलम से पास होने का
अहसास दिलाती।
मैं कवि हूँ,
समस्त जगत को
भिन्न सुर,लय, ताल में बांध
गीत मंडली बनाने का कार्य कराती।
वीणा शर्मा
स्वरचित
भा.22/6/2018(शुक्रवार )शीर्षकःकवि ः
कवि के शब्दों में छिपी तलवार होती है।
कवि की वाणी ही अप्रत्यक्ष वार होती है।
देख लें पलटकर इतिहास के पन्ने अगर,
कवि की हुंकार वीरों का प्रहार होती है।
कविता ही कवि का आभूषण होती है।
रचना कवि का सुंन्दर भूषण होती है।
अश्लील रचनाओं से नाम नहीं होता,
फूहडपन की रचनाऐं प्रदूषण होती हैं।
नहीं पहुंचता तन वहाँ कवि पहुंच जाता है।
कवि पाताल में से भी खजाना ढूँढ लाता है।
रचनाकारों से कोई कुछ छिपा नहीं सकता,
कवि आसमान में से भी तारे तोड लाता है।
कवि की आँख में दुरवीन लगा रहता।
इसी सहारे मसाला ढूँढने लगा रहता।
साहित्यकारों को त्रिनेत्र शिव से मिला,
इसीलिये साहित्य सृजन में जुटा रहता।
स्वरचितः ं
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म।प्र.
शुभसंध्या, जय जय श्री राम राम जी
शीर्षक : कवि
हूँ कवि मैं काव्य विधाता
शब्दों का हार पिरोता हूँ
कलम है मेरी भाग्य विधाता
अर्न्तमन पिघलाता हूँ
दर्द प्रीत खुशी वेदना
चुपके से कह जाता हूँ
मन के उद्भावों को लिखता
सृजनशील कहलाता हूँ
न कोई धर्म कवि का
ना जात पात दिखलाता हूँ
कल्पना में खोया मैं तो
अल्पना सजाता हूँ
छंद चौपाई गज़ल काव्य की
सांस मैं बन जाता हूँ
हास्य व्यंग का मैं प्रणेता
मसखरा कहलाता हूँ
भूत भविष्य वर्तमान की सारी
पर्ते खोल जाता हूँ
देश समाज का दर्पण हूँ मैं
सत्य प्रकाश फैलाता हूँ
सोए हुए निष्क्रिय लोगों में
उत्साह जोश भर जाता हूँ
शमशीरों की रणभेरी से
इतिहास रच जाता हूँ
हर विधा का जादू मुझमें
साहित्य की शान कहलाता हूँ
हूँ कलम का जादूगर मैं
शब्दों का तिलस्म फैलाता हूँ
स्वरचित : मिलन जैन
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