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ब्लॉग संख्या :-417
नमन मंच भावोंके मोती
शीर्षक डाल, शाख
विधा लघुकविता
14 जून 2019,शुक्रवार
बीज रूप होता वृक्ष है
जड़ पर ही वह निर्भर है।
पल्लवित पुष्पित फलित
भव्य डाली के ऊपर है।
सम्प्रदाय की कई शाखाएं
परमपिता सबका एक है।
जाति वर्ण भिन्न भिन्न सब
स्नेह दया ममता एक है।
हम गमले में सुमन खिले हैं
अलग अलग सबकी डाली।
यह प्रकृति की नव भव्यता
कब गमला हो जावे खाली?
तना सहारा देता शाखा को
डाली होती वृक्ष की शौभा।
सुमन सरीखे हँसो जीवन मे
जीवन जीता है ज्यो भँवरा।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
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नमन मंच भावों के मोती--
शीर्षक-शाख, डाल
14/6/2019
बेसबब नहीं बैठे थे परिंदे दरख़्तो पर,
कलरव से उनके हरी थी #शाखें।
स्वार्थ की चली ऐसी आंधी,
पहले उड़ गए परिंदे,बदल गये
दरख़्त धीरे धीरे ठूंठों में......।
इन्सान मनाता है जश्न अपने किये पर,
जल्द मनाता है मातम बियाबानों में,
कुदरत बैठी है इस इन्तजार में सूखी,
कब होगी हरियाली, मिलेंगे पेड़-पानी
कब हटेगा पर्दा स्वार्थ का बताओ,
जागो,अब भी वक्त है,चेत जाओ।
पेड़ और परिंदों का नाता गहरा है,
पर शिकारी लगता अंधा-बहरा है।
जिस दिन खुल जायेंगी इन्सान की आंखें,
होगा इन्साफ,हरी हों जायेंगी #शाखें ,
हरी हों जायेंगी शाखें।
स्वरचित
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नमन मंच
भावों के मोती
विषय:- शाख/डाली
विधा:- कविता
हर शाख अब सूखने लगी
जंगल सारे कटने लगे अब
खेत कंक्रीट के भरने लगे
वन पक्षी अब कम होने लगे
सूखे ठूँठ बेजान लगने लगे
डालें सूखकर गिर गई सारी
आबादी के कहर से डरने लगे
प्रकृति की रम्यता छीनने लगे
मतलबपरस्ती में पेड़ काट अब
लोग फिर से हाथ मलने लगे
छाया वाली डालियाँ अब कहाँ
जब शाख को लोग काटने लगे
कदम्ब की डाल पर खेलते हम
अब बातें पुरानी हो गई सभी
अब डाल पर पक्षी का कलरव नहीं
सारे परिंदे इंसानों से डरने लगे
सुरभित डालियाँ झूमते फल कहाँ
गर्म धरा के जिम्मेदार हम बनने लगे
स्वरचित ,मौलिक
कवि राजेश पुरोहित
भवानीमंडी
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*
।। शाख़/डाल ।।
ये सूखे पड़े पेड़ की डाली
कभी किसी का घर था ।
हो रहा इसमें जीवन
किसी का बसर था ।
पर मानव ने किया पशु
पंछी पर अाज कहर था ।
देखा पेड़ की डाल पर पंछी
को बैठा बेशक दोपहर था ।
सूखी डाल पर भी वह
पंछी बैठने को आया ।
गमगीन मन से उसने
चारों ओर नजर घुमाया ।
पर घौंसला क्या एक
पत्ता भी न वहाँ कहाया
मायूस मन से वह वहाँ
हर रोज देखता रहा ।
दस दिन तक उस डाली
पर बैठने आता रहा ।
रोया छटपटाया वह
आँसू अपने बहाता रहा ।
कुछ दिन बाद वो डाली
भी वहाँ से चली गयी ।
ऐसे ''शिवम" मानव द्वारा
किसी की दुनिया छली गयी ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 14/06/2019
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प्रदत्त शीर्षक:शाख/डाली
इठला रही
शाख पर कलिका
बिछुड़ी रौंदी।
ईश्वर वृक्ष
स्मरण शाखा रस
जीवन फूल।
शाख सरस
जीवन संजीवनी
वृक्ष सन्युक्त।
डॉ राजकुमारी वर्मा
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स्वरचित कविता
(छंदमुक्त)
शीर्षक- "डाली बनी हैं शाख"
नन्हा बीज
गीली माटी में
बोया था मैंने
दो पंखों से उड़ा
बना छतनार तरू.
पनपा, पुहुपा
पल्लव लद गए
टहनी मुस्काईं
पाखी पैर टिकाएं उनपर
चहकन भी हो गई शुरू.
टहनी बनी डाल और डाली
लहराई झूमी मतवाली
झूला डला बदन पर उसके
कहलाई फिर शाख
मैं शिष्य बना वो गुरू.
आधार उसी का ही लेकर
सजा लिया पंछी ने नीड़
लटकें खूब सहारा लेकर
बालक और शैतान
शिरोधार्य करूं.
_____
स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
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मंच को नमन
दिनांक- 14/6/2019
विषय-शाख़/डाली
शोभा अरुणोदय की जिनसे बढ़ जाती
निज शृंगार प्रकृति जिसे देख करती
चहचहाहट उनकी कर्णप्रिय लगती
अस्तित्व के दौर में आज व्यथा कहती
पेड़ों की उजड़ी पड़ी हैं ये डालियाँ
छितरी पड़ी घोंसलों की ज़ुबानियाँ
जल के स्रोत सूखे से हुए अति संक्रमित
प्रत्युत्तर में मानव ही एकमात्र अभिमत
दूर क्षितिज को देख -देखकर
पंख विस्तारित,पक्षी उड़ान भरते
उड़ान पर भी इनकी लू के थपेड़े
मानव ने पेड़ काट ,आश्रय उजाड़े
दाना -पानी का बड़ा संकट भारी
मानव की सोच ,अहम् पर दुधारी
डाली डाली पत्ता पत्ता स्वार्थों ने लूटा
जितना चाहा ,उतना लूटा खसोटा
भयावह चीत्कार डालियाँ अब करती
अपने उजड़े चमन को कैसे सह लेती
दुखड़ा अपना किसे ,कैसे सुनाएँ ?
पुष्पित पल्लवित ख़ुद को बनाएँ !
डाली -डाली पर पखेरू फड़फड़ाए
घोंसलों में अपना ज़हान बसाएँ
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, डाल / शाख
दिन, शुक्रवार,
दिनांक, 1 4,6,2019,
दुनियाँ में शजर हमारे जीवन की अटूट डोर होते हैं,
तोड़ा इसे जो झटके से शाख से फूल बिखर जाते हैं ।
शाख से टूट के नहीं फूल कभी खिल पाते हैं ,
सहारा न हो ममता का अगर पौधे मुरझा जाते हैं।
वृक्ष हमारे जीवन में संदेशा संरक्षण का ले आते हैं,
समर्पित करके खुद को वे पोषण जड़ों का चाहते हैं।
परिवार हमारे पेड़ की शाखों के प्रतीक होते हैं ,
कुटुम्ब के पेड़ के हटकर अपने अस्तित्व को खो देते हैं।
भुलाकर के वृक्षों को हम कब तक भला जी सकते हैं,
संचरित प्राणों को करने वाले पेड़ ही तो होते हैं।
पेड़ों को काटने वाले तो अपने ही कातिल होते हैं ,
क्या जड़ों के बिना भी कभी पत्ते हरे रह सकते हैं ।
हमेशा हरे भरे चमन में ही भावों के फूल खिलते हैं।
सूखे हुए दयारों से अक्सर पंछी भी दूर रहते हैं ।
गुलशन महकता रखने को लोग कोशिश हजार करते हैं,
हम भी तो उन्ही में से हैं हम कैसे अलग हो सकते हैं।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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नमन मंच ,,भावों के मोती,,
14/6/ 19/
बिषय,, शाखा,(डाली)
घने घने होते थे जंगल
घनी घनी अमराई
जहाँ रहे जीव जंतुओं का बसेरा
मंद मंद सुगंध चहुँ दिश
शीतलता छाई
डाली डाली फुदक फुदक कर
झूम झूम नाचते थे मोर
चहचहाते पंछियों को लेकर
आती थी नित नव किरणों की भोर
गुम हुए सारे जंगल
खत्म हुईं हरी भरी बादियां
सूख चुके वो झरझर झरने
सूख गई वह बहती नदियां
जिस शाख पे हम बैठे
उसी को हमने काट
स्वयं ही अपना दुर्भाग्य
आपस में बाँट लिया
शुध्द हवा ही नहीं तो
सांस कैसे ले पाऐगें
और बिन पानी के बूंद बूंद
तरस जाऐंगे
अब गहरी नींद से जाग
फिर से वही हरियाली लाऐं
हमने खोया पर भावी पीढ़ी
को कुछ देकर जाऐं
स्वरचित,,, सुषमा ब्यौहार,,
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⛳भावों के मोती⛳
शीर्षक-शाखः/डाली।
भारतीय धरा.पावन संस्कृति।
विविध धर्मों की शाखाएं अद्भुत।
मिलजुल कर हम रहते आऐ सदीयो से।
आज राजनीति की गलियों मे।
थपेडे खाते हम सब भाई बन्धुजन।
कैसी यह है राजनीति नेताजन।
स्वार्थ परायण कुटिल आतातायी।
हमारी नित शाखः काटते रहते ।
सामजस्य सौहार्द्र पर करते प्रहार।
जांति धर्म मे बांट बांट कर चोर लुटरे।
बन बैठे पुरे आतंकवाद समर्थक।
कैसे कैसे बोल बोलकर पुरे आतातायी।
मां के गौरव को न समझे ऐसे कुपूत।
पर जीत सत्य की होगी ही भारत की।
एक दिन कालिख मुंह पुतेगी निश्चय।
सिंधु संगम विजयांभिनंदन उत्सव मे।
हम सब हर्षित प्रफुल्लित होगे।
धन्य धन्य होगी भारत वसुधा।
जब सभी शाखः संयुक्त नवांकुर होगी।
🚩🚩🚩🚩🌳🚩🚩🚩🚩
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
१४/०६/१९@०८:५२
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नमन -भावो के मोती
दिनांक-१४/०६/२०१९
विषय- शाख/डाली
दमक उठी शाखाओं पर कलियाँ
खिल गई डालियो पर पंखुड़ियां....
फैल गयी है नई ताजगी
नए कलियों के आने से।
बहने लगी मस्त बयारे
पुष्प सुगंध के तराने से।
हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।
प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता पुष्पों का दल।
प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठता कमल दल।
ये मदमस्त नजारा लगता है
पंखुड़ियों के खिलने का
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम पराग डोरो का।
खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।
धरती सजने लगी
पुष्पों के सतरंगी रंगों से।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।
एक नन्ही कली भी बाट देख रही
दिनकर के उजाले की...
मन उद्वेलित होता मधुरस
सुगंधित पुष्पों के आने से
मौलिक रचना....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
स्यंदन का अर्थ है.. रथ
दांडिम- अनार
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आज का विषय डाल, गजल,साथियों,
शाख पर बेल लिपटी हुई,
रात भर चाँदनी छिटकीहुई।।1।।
चातकी डाल पर बैठी हुई,
चातक के प्यार में डूबी हुई।।2।।
चाँदनी रात मेंतुम निकली,
रुक गईरात जाती हुई।।3।।
सुनहरी रात भी ढलती रही,
याद में उसके खोई हुई।।4।।
साँवले मेघ उठे हैनभ पर,
धूप छिपकर कही बैठी हुई।।5।।
प्यार का कवँलखिला दिल में,
इन्तजार में पलकें बिछी हुई।।
स्वरचित रचना कार देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।
नमन भावों के मोती
प्रदत्त विषय-शाख/डाली
विधा-मुक्त छंद
14/6/19
...............
इंसानियत अब
कुछ इस तरह
निभाने लगे हैं लोग
कि,
मुरझाते हुए फूलों को
शाख से तोड़ देते हैं
ये कह कर
कि,
ये सोख लेते हैं
उन दरख़्तों का पोषण
जिन्होंने इन्हें
पाला था
संभाला था ..
पीड़ित शाखें
उनका बोझ
सह न पाएंगी...!!
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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दि- 14-6-19
विषय- शाख /डाली
सादर मंच को समर्पित -
🌻 गीतिका 🌻
***********************
🍎 शाख/ डाली 🍎
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
बृक्ष मैं मीत जन का ।
शत्रु हूँ प्रदूषन का ।।
धूप में छाँव देता ,
शाख बढ़ घने जन का ।
सब करें उपयोग नित ,
पत्र, जड़, फूल, तन का ।
ताप , वर्षा झेलता ,
ढाल सम धरा , वन का ।
रोग नाशक दवा दूँ ,
द्रव्य मैं शोधपन का ।
मैं बढ़ाता डालियाँ ,
मित्र जंगल वतन का ।
प्राण वायु सोंप रहा ,
मीत वातावरन का ।
काटते फिर भी मुझे ,
प्रश्न है यह मनन का ।
कुछ न चाहूँ प्यार बस ,
शाख मैं भी चमन का ।।
🍎🍀🌻🍒
🍑🌷🌴**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
मो0- 8532852618
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
सुप्रभात 🌄
नमन "भावों के मोती"🙏
14/05/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"शाख/डाली "
(1)
स्वार्थ की आँधी
सूनी हो गई "शाख"
बिखरे भाव
(2)
चहके पंछी
वर्षा अभिनंदन
लदकी "डाली"
(3)
आशीष छाँव
घर के आँगन में
बुजुर्ग "शाख"
(4)
भारत वृक्ष
विविधता "डालियाँ"
एकता स्वर
(5)
पश्चिमी हवा
आस्थाओं की "शाखाएं"
चरमराती
(6)
वर्षा पिरोये
शाखाओं पे बैठ के
बूँदों के मोती
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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भावों के मोती
सादर प्रणाम
विषय =शाख़ /डाली
विधा=हाइकु
जीवन डाली
सुख दुःख है फूल
करे कुबूल
आसमां डाली
लगे उस पे फूल
चांद सूरज
कर्मों की डाली
पुण्य पाप के फल
कमाते हम
==रचनाकार ==
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
14/06/2019
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भावों के मोती
14/06/19
विषय - "शाख, डाली
ऋतु बसंत
देखो धरा पर कैसी
निर्मल चांदनी छाई है
निर्मेघ गगन से शशि
विभा उतर के आयी है ।
फूलों पर कैसी भीनी
गंध सौरभ लहराई है
मलय मंद मधुर मधुर
मादकता ले आयी है ।
मंजु मुकुर मौन तोड़ने
मन वीणा झनकाई है
प्रकृति सज रूप सलज
सरस सुधा सरसाई है ।
हरित धरा मुखरित "शाखाएं"
कोमल सुषमा बरसाई है
वन उपवन ताल तड़ाग
वल्लरियां मदमाई है।
कुसुम कलिका कल्प की
उतर धरा पर आयी हैं
नंदन कानन उतरा है
लो, बसंत ऋतु आयी है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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नमन् भावों के मोती
दिनांक-14/06/19
विषय -डाली शाखा
विधा-हाइकु
झूलते बच्चे
पेड़ की डाली पर
आम बहार
डाल पे झूला
झूलती महिलाएं
कजरी गाती
यौवन भार
झुक गयी डालियाँ
खिली कलियां
काटता डाल
पर्यावरण नाश
मनुष्य काल
पेड़ डालियाँ
पक्षियों का घोंसला
जीव निर्माण
सूखी डालियाँ
वन्य जीव उदास
संकट क्षण
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
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1*भा.14/6/2019/शुक्रवार
बिषयःः#शाख/डाल#
विधाःः ः काव्यः ः
मैं शाख हूँ प्रभु वटबृक्ष की,
जड मेरी इनके संरक्षण में।
परमेश आसरा मुझे चाहिए
हर डाल जिसके संरक्षण में।
प्रेमभाव के सुमन खिलें सब,
हों प्रफुल्लित घर घर के माली।
कहीं वैरभाव का नाम नहीं हो,
खिलें कुसुम हर घर की डाली।
मनमानस निश्छल हो जाऐ,
है पंचतत्व से निर्मित काया।
भोगविलास में डूबे हम सब,
हम कैसै हुऐ समर्पित माया।
परमेश्वर से नहीं बच पाए कोई
हम डाल डाल वो पात पात है।
यहां हरेक शाख पर उल्लू बैठा,
परमपिता का नहीं पक्षपात है।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा.#शाख/डाल#काव्यः ः
14/6/2019/शुक्रवार
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नमन मंच
दिनांक-१४/६/२०१९"
"शीषर्क-शाख/डाली'
काटकर बेजुबान डाली
तुमने जो की है मनमानी
मेरी छत्रछाया में बैठकर
तुमने की है भूल भारी।
पर हौसला नही मेरा कम होगा
मैं हूँ शाख उस वृक्ष का,
जिसने मुझे पाला पोसा
तूफानों से लड़ना सीखाया।
चाहे तुम कितने भी वार कर लो
हर बार मै बढ़ आऊँगा,
देने को अपने तरु को सहारा
हर तूफान से लड़ जाऊँगा।
मै हूँ शाख उस वृक्ष का,
नही आने दूँगा आँच
मेरी भी कुछ साख है
उस वृक्ष की रहेगी साख।
हरी भरी होगी फिर दुनिया हमारी
हरा भरा होगा डाल
खग कुल लेंगे पुनः बसेरा
पुनः लेंगे सपनों का उड़ान।
निश्चल है ये प्यार हमारा
करेंगे सदा ये प्रयास
थके हारे को छाँव देने
पुनः हम लेंगे विस्तार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक :14 - 6-2019 (शुक्रवार)
विषय :शाखा/ डाली
डालियाँ हिल रही है
हवा ने बताया
बसंत का आ गया है।
शायद,
वर्ष भर के बाद आया है
लेकिन,
मुझे लगता है
बसंत गया ही कब है !
तुमसे ,
दो पल की मुलाकात
भर गई है,
मेरी बाहों में बसंत
बसंत
जो मेरी रग रग में
महकेगी सारी उम्र
यह मेरी स्वरचित है
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
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नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक-14-6-2019
शुक्रवार
विषय-शाख/ डाली/ डाल आदि
*बसंतोत्सव *
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मनहरण घनाक्षरी छंद में, ,,,
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8+8+8+7 =31( वार्णिक छंद)
सीमांत- अंत , पदांत-है
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फूले सतरंगी फूल ,,,धरा है बसंती रुप कली कली खिल गई , छायो रे बसंत है !
पीत रंग की बहार ,,खिले है पलाश लाल ,
चूनर धरा की धानी ,,,,,, लहके दिगंत है !
आम की बौराई #डार,, महकी है बेशुमार,
कोयलिया गीत गाए,,, ,,तान रसवंत है !
पीले कचनार खिले , कमल गुलाब खिले,
पाँखिन- कलरव से,,,, शरद का अंत है !
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🌼🌼🌿🌼🌼🌿🌼🌼🌿🌼🌼
********************************* अलि मकरंद चूसे ,कलियों का प्यार लूटे ,
आइ गए ऋतुराज ,धरणी के कंत हैं !!
ऋतु मधुमास आयो,प्रेम की खुमार लायो ,
पिया संग सजनी के,प्रेम का ना अंत है!!
प्रेम मद मस्त छायो ,, मदन धरा पे आयो ,
दुल्हन सी धरा सजी ,खुशियाँ अनंत हैं!!
झूम रही डाल-डाल,खिले फूल हैं निहाल ,
आ गई बहार आली , ,,,,,बगरौ बसंत है !!
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रचनाकार = ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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II शाख II नमन भावों के मोती.....
विधा : ग़ज़ल - हरिक शाख को मैं खिला चाहता हूँ....
हरिक शाख को मैं खिला चाहता हूँ....
कि बिछड़ों को मैं जोड़ना चाहता हूँ....
कहीं पर किसी का जो दामन है छोटा...
उसी पे सितारे जड़ा चाहता हूँ....
पपीहा पुकारे अगर बूँद को इक....
हरिक दिल का सागर बहा चाहता हूँ....
जहां में न भूखा न हो कोई नंगा...
हरिक घर का आँगन भरा चाहता हूँ.....
बुजुर्गों के आगे सभी सर झुकाएं....
फलें फूलें शाखें दुआ चाहता हूँ....
चलो घर उसी को जहां तुम खिले थे....
उसी में तुम्हारी अना चाहता हूँ....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१४.०६.२०१९
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भावों के मोती
शीर्षक- शाख/ डाली
शाख से टूट कर फूल
कभी खिल नहीं सकते।
मां-बाप से बिछड़ कर
हम खुश रह नहीं सकते।
जिसने हमें दी जिंदगी
करेंगे हम उनकी बंदगी।
तभी हंसेगी आंगन में चांदनी।
अंधेरे दिल में होगी रोशनी।
सांसों के बिना जिस्म का
कोई मोल नहीं होता।
संस्कार के बैगेर शीक्षा का
कोई मतलब नहीं होता।
हम सब लताएं बैगेर सहारे
आगे बढ़ नहीं सकते।
आंखें हैं मां-बाप हमारी
सही राह जो हमें दिखाते।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
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भावों के मोती
14/6/19
द्वितीय प्रस्तुति..
शीर्षक-शाखा/डाली
.............
वृक्ष एक मुखिया की तरह
ही तो होता है
जो सबको अपनी पनाह में
सुरक्षित रखता है
उसकी शाखाएं मानो हैं
विशाल भुजाएं
जो हर मुश्किल से
हमें बचाएं
अंधी,वर्षा, तूफान से
उसकी भुजाओं में
हम शरण पाएं
हरी भरी शाखाएं
कभी सहलाएं
कभी दुलराएं
विभिन्न मीठे फलों से
सबकी क्षुधा मिटाएं
फ़र्ज़ है हमारा कि
हम इन शाखाओं को
फलने, फूलने दें
कुछ उपकार हम
भी तो उन पर करें ..!!
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
14-6-2019
विषय:- डाल / शाख़
विधा :-कुण्डलिया
1
टूटा पत्ता कह रहा , छोड़ चला हूँ डाल ।
मन अवसादित हो गया , हाल हुआ बेहाल ।।
हाल हुआ बेहाल , कहाँ किस्मत ले जाए ।
दुखी शाख़ से टूट , नहीं कोई आदर पाए ।
छोड़े जो परिवार , भाग्य है उसका फूटा ।
मिले नहीं सम्मान , शाख़ निज से जो टूटा ।।
(२)
बाँहें पेड़ों की खुली , लोग कहें हैं डाल ।
झूले डाली डाल के , सावन झूले लाल
।।
सावन झूले लाल , साथ में सजनी झूले ।
उठती हृदय हिलोर , कहें आ नभ को छूलें ।
जिनके पी परदेस , खड़ी भरती हैं आहें ।
कहे आम की डाल , डाल ले मेरी बाँहें ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन🙏भावों के मोती
शुभ संध्या
💔💔💔💔💔💔💔
विषय:-शाखा
शाख से टूट कर पत्ते कहाँ जिया करते हैं
समय की रेत पर दम तोड़ दिया करते हैं
बिखर जाते हैं रिश्ते भी पत्तियों की तरह
खड़े दरख्त से हम सिसकियाँ लिया करते हैं
आज उजाले सूरज के भी चुभने लगे हैं
रोशनी बन के तन को जलाने लगे हैं
खुद ही सम्भलना है गिरके शाखाओं से
लड़खड़ाते कदम अब यही कहने लगे हैं
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
शुभ संध्या
🍂🍁🌳शाख़ से टूटे पत्ते 🌳🍁🍂
द्वितीय प्रस्तुति
शाख़ से टूटे पत्ते भी रोते
कुछेक उसी पेड़ तले होते ।।
कुछ को हवा उड़ा ले जाती
नसीब होते हैं उनके खोटे ।
याद करते वो बीता जमाना
अपनी आखों को भिंगोते ।।
पास के पत्तों को छाया होती
गम नही ज्यादा चैन से सोते ।।
दूर के रोते काश भारी होते
कैसे उड़ाते हवाओं के झोंके ।।
कुछ भी तो न वजूद था 'शिवम'
जरा सी हवा ने दिखाए टोटे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 14/06/2016
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नमन सम्मानित मंच
(शाख़/डाली)
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निस्सारित तरु तने शीर्ष से,
अवयव वक्र स्वरूप नुकीले,
धरती के विस्तृत प्राँगण में,
शाख़ झूमते से लहराये।
किसलय हरित पर्णहरिम से,
अगणित शाख़ों पर बल खायें,
फल, पुष्पों के संग विहंसित,
पवन वेग संग गुन गुन गायें।
शाख़ विटप की परहितकारी,
खंजन जिन पर नीड़ बनाऐं,
क्रीड़ारत कलरव करते नित,
यदा-कदा पंचम स्वर गांऐ।
तरुशाख़ों की सघन छाँव,
श्रान्त पथिक विश्रामस्थल,
लदे शाख़ पर मधुफल भी,
चर जीवों की क्षुधा मिटांय।
मानवप्रजाति बसुधातल पर,
विभाजित शाख़ विभिन्न में,
भिन्न धर्म जाति आधार,
कारणतः स्वयं पराजित शुचि।
चर अचर जीव ब्रह्माँश स्वयं,
अचला के चारु सुतल पर जो,
परमशक्ति शाश्वत अनित्य के,
गुण-धर्मों की शाख़ शुचित।
--स्वरचित--
(अरुण)
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नमन भावों के मोती
विषय- डाली
विधा-गीत
★★★★★★★★★★
फूल खिले हैं डाली-डाली,
सभी ओर फैली हरियाली।
प्रात काल की सूर्य किरण से,
धरती पर छाई उजियाली।
★★★★★★★★★★
रंग बिरंगे फूल खिले हैं,
लगते कितने प्यारे-प्यारे।
धरती से अंबर तक बाँटे,
खुश्बू कितने न्यारे-न्यारे।
बेला, चंपा, और चमेली,
महक लुटाती ये मतवाली।
फूल खिले हैं डाली-डाली....
★★★★★★★★★
बाग-बाग में खिले पुष्प पर,
तितली झूमे नाचे गाए,
मधुर पराग कणों को पीकर,
भवरे उन संग गुनगुनाए।
खग-वृंद सभी चिहुक रहे हैं,
देख सूर्य की अद्भुत लाली।
फूल खिले हैं डाली-डाली...............
★★★★★★★★★★
वेधा सिंह
स्वरचित
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14/6/19
भावों के मोती
विषय-शाख़/डाली
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रिश्तों से लदा हुआ
एक वृक्ष था खड़ा
प्रेम की धूप से था
दिन पर दिन फल रहा
अपनत्व के भाव से
हर कोई था सींच रहा
रिश्तों से लदा हुआ
एक वृक्ष था खड़ा
बह चली अचानक
नफरत की आँधियाँ
आँधियों के जोर से
हर रिश्ता उड़ चला
वृक्ष था हरा भरा
ठूंठ बनकर रह गया
मतलब के मौसम में
रिश्ते सभी बिखर गए
शाख़ से जुदा हो कर
वो न जानें किधर गए
प्रेम की धूप भी अब
बदले की आग बन गई
अपनत्व का भाव भी
अब जुदा होने लगा
वृक्ष था हरा भरा
ठूंठ बनकर रह गया
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
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नमन भावों के मोती
आज का शीर्षक शाख -डाली
छायी है चारों ओर हरियाली।
खिल रहे है फूल डाली डाली।।
चल रही शीतल हवा मतवाली।
हिला रही है वी हवा हर डाली।।
खिली यहाँ पर एक एक कली।
वगिया में फैली महक निराली।।
मंडरा रहे उन पर अनेकों अली।
झूम रही बगिया में डाली डाली।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
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भावों के मोती : शब्द : डाल/शाख़
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वो मुस्कुराते दिन,वो मधुर तराने
कैसे बिसरा दूँ वो दिन सुहाने ?
हरी-हरी दूब पर लोट
खुश होते थे कितना
देख - देख वैभव अपना !
डाल - डाल लटकते झूलों पर
उन्मादित हो विहंगम जैसा
झूल - झूल जाता शैशव अपना !
वो सुंदर सपने , वो गुज़रे जमाने
कैसे बिसरा दूँ वे दिन सुहाने !
पात -पात जब झर जाता
सूखी डालियों को पकड़
कल्पना छू लेते आकाश !
और निस्तब्ध निशा में
जाने किन -किन भावों में ,
भर लाते झिलमिल प्रकाश !
वो फूलों में आशियाँ ,चमन में ठिकाने !
कैसे बिसरा दूँ वो दिन सुहाने ?
गोधूली की बेला में
घनी झाड़ियों में कहीं
पत्तों की सरसराहट!
और आँगन में हौले -हौले
उतर आई स्वप्निल
शाम की आहट !
बातों के , कहानियों के अनमोल ख़ज़ाने
कैसे बिसरा दूँ वो दिन सुहाने !
स्वरचित(c)भार्गवी रविन्द्र .....१४/६/२०१९
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नमनःभावों के मोती
दि.14/6/19.
शीर्षकःडाली/शाख
*
करुणाकर अग-जग-वन माली!तेरी माया अमित निराली!!
ज्वलदंगार उगलता सूरज,मुर्झीं कलियाँ डाली-डाली।
पशु-पक्षी,तृण-तरुवर प्राणी,कलप रहे,कैसी बदहाली।
हे घनश्याम! बरस सरसाओ ,लौटे फिर सोई हरियाली।।
--डा.'शितिकंठ
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शाखा
🎻🎻🎻
शाखा ही देती स्थायित्व
शाखा ही देती है अस्तित्व
शाखा से हम जब जुड़ते हैं
तो प्रगति की ओर मुड़ते हैं।
शाखा में ही सब प्रस्फुटित होते
शाखा में ही पल्लवित होते
शाखा में ही सबका सिंचन होता
शाखा में रहकर ही चिंतन होता।
शाखा वृक्ष का ही एक भाग है
इसमें वृक्ष की जीवन्तता चिराग है
ऐसे ही ढाणी की भी शाखा है
जिसमें परिवारों का बताशा है।
हम सब शाखा हैं परिवार की
उमंग हैं उसके विस्तार की
आज शाखायें कट रहीं हैं
चैन मस्ती से हट रहीं हैं।
शाखा टूटी एकल परिवार हो गये
तन्हाई में लिपटे संसार हो गये
कोई फूल यहाँ गिरा कोई फूल वहाँ गिरा
सब के सब अज़ब बीमार हो गये।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय-शाखा/ड़ाल
१
प्रेम की शाखा
खुशियों के सुमन
मन हर्षाए
२
पिता है वृक्ष
बढ़ता परिवार
औलाद शाखा
३
परिंदे ड़ाल
खुशबू उपवन
रवि मुस्काए
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
14/6/19
शुक्रवार
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सादर नमन
शाख/ ड़ाल
तू कली मेरे चमन की,
खिल आँगन महकाती है,
तेरी तोतली बोली लाड़ो,
मुझको बहुत ही भाती है,
तुम शाख मेरी बनकर,
बन खुशी फैलती हो,
इत्र प्रेम का बनकर,
घर में महकती हो,
मन मेरा तड़प उठता है,
आँसू जब तूम बहाती हो,
रोशन सा हो जाता हृदय,
जब तुम मुस्काती हो,
हर शाखा का खिला फूल,
मुझको जान से प्यारा है,
पाकर लक्ष्य तूने अपना,
बनना चमकता सितारा है।
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
14/6/19
शुक्रवार
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II शाख II नमन भावों के मोती....
विधा : ग़ज़ल - शाख से टूट के कहाँ कोई कली सोती है.....
टुकड़े टुकड़े हुई दीवार कहाँ रोती है....
शाख से टूट के कहाँ कोई कली सोती है.....
जालसाज़ों की शराफत में पिटे हैं सब मुहरे...
झूठ सब कह रहे तकदीर यहां होती हैं....
आँख सूखे नहीं दिल है कि रुलाता जाए ....
कोई ट्विंकल कली जब ख़ाक तलक सोती है....
फूल हर शाख से टूटे कभी मुर्झायें यहां....
आसमाँ चुप है तेरी गात यहां रोती है.....
चल यहां से निकल 'चन्दर' चलें अब और कहीं...
जिस धरा पर गले मिल शाख-कली सोती है....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१४.०६.२०१९
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