Monday, June 17

"भट्टी"15जून 2019

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ब्लॉग संख्या :-418

नमन मंच,भावों के मोती
शीर्षक     भट्ठी
विधा        लघुकविता
15 जून 2019,शनिवार

अनल देव पावन देवालय
जिसको हम भट्ठी कहते हैं।
सुबह शाम उदर भरती नित
जीवन में सुखमय रहते हैं।

भट्ठी रूप है देवी स्वरूपा
जो सबको भोजन देती है।
पूछो अपने अन्तर्मन  में
वह बदले में क्या लेती है?

जन्म हुआ तब यजन हुआ
जीवन अग्नि पर है निर्भर।
मृत्यु पर पार्थिव शरीर को
लेटा देते हैं मिल भट्ठी पर।

अग्नि जग के स्वयं देवता
भट्ठी स्वयम इससे चलती।
है जगत समूचा आधारित
जठराग्नि शान्त ये करती।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम्
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भावों के मोती
शीर्षक-भट्टी
विधा-दोहे
दिनांक-15/6/2019

दिनकर रथ पर हैं अडिग, करें तेज रफ्तार।
धरणी तपती जा रही, ज्यों #भट्टी साकार।।

भास्कर का पारा बढ़ा, बिगड़े सब आकार।
 हाथ जोड़कर भू कहे ,बहुत हुआ सरकार।।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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नमन मंच भावों के मोती
15/6 /2019/
बिषय ,,""भट्टी""
बर्षा ऋतु का हो गया है आगमन,,
"भट्टी" सा तप रहा था घर आंगन
लाई संदेश झकझोरती बयार
सौंधी सौंधी सुगंध की छा गई बहार
झूम झम कह रही कुहुक रही 
कोयल डाली डाली
मेरे अंगना में छा बदरिया 
काली काली
धरती तैयार है बनने को दुल्हन
सब मिल करते बर्षा का 
अभिनन्दन
स्वरचित,""सुषमा ब्यौहार""
द्वितीय रचना,,

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भावों के मोती
शीर्षक-भट्टी
विधा-लघुकविता
15 जून 2019
दिन-शनिवार....

स्वर्ण रथ पर सवार होकर,
धधक रहा है तू दिनकर..
जलती सारी धरा भट्टी सी,
सांसे उखड़ रही भू मिट्टी की!
तपती लपट धरणी उगल रही,
मानो सारी सृष्टि अब जल रही!
पिघल गई धरती जला अम्बर!
धधक रहा है तू दिनकर......

गर्म तूफान आफत ले आया,
भीष्म तपन से तन मन नहाया!
गर्म भट्टी अब धरा बनी अब ,
भून सी गई सारी धरणी अब
उगल रहा है ज्वाला भयंकर !
धधक रहा है तू दिनकर.....

है मेघालय तुम कृपा करो,
कुछ काले गुच्छ नभ छा दो!
बरसो अब तुम सरस धार बन,
गुलजार हो जाये ये उजड़े वन!
तृप्त करो सूखे कंठ और अधर!!
धधक रहा है तू दिनकर......

रचनाकार-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )

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भावो के मोती 
सादर नमन 
15/6/19
भट्टी 
हाइकु 
########
1)
भट्टी  में आग
पके ईंट ,बचा है 
पेड़ की राख।।
2)
युध्द  भट्टी में 
मानवता जलती 
नाश मुट्ठी में ।।
3)
पकती रोटी 
जनता जलती है 
तन्त्र की भट्टी।
##########
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ,ग,
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आज का विषय भट्टी,
सेदोका मेरे,
1/मौन धेनु सी,
हाँफती दोपहरी,
तपती हवा चले,
भट्टी सी जले,
सारा भू मण्डल भी,
ठंडी हवा न बहे।।1।।
2/ नही देखता,
धधकती धरती,
तपते पाषणों को,
पीड़ित धरा,
भट्टी सी जलती है,
मेघ भी आता नही।।
स्वरचित सेदोका कार देवेन्द्रनारायण दास बसनाछ, ग,।।

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पेट की भट्ठी
आग कभी न बुझी
सब हज़म।।

सेंकते रोटी
मजहब की भट्ठी
देश के नेता।।

जीवन भट्ठी
हम झोकते कर्म
मिलता फल।।

कर्म की भट्ठी
जलता पाप पुण्य
लेखा न जोखा।।

चिंता की भट्ठी
जलता है मानव
चिता समान।।

चिता की भट्ठी
जलता है शरीर
पूर्ण विलीन।।

गंगा भावुक

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भावों के मोती
शीर्षक- भट्टी
तपकर जुल्म की भट्टी में
गर सोना होगा इश्क 
तो निखर जाएगा।

चाहे लाख बुझाना चाहे
वक्त के तुफां इसे
ये चिराग न बुझ पाएगा।

अय दुनिया तु आजमा ले
हर आजमाइश से
ये हंसकर गुजर जाएगा।

एक दरिया है जज्बात का
राह के हर पत्थर से लड़ कर
मंज़िल तक पहुंच जाएगा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

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जय माँ शारदे ।
विषय ---भट्टी ।
दिनकर के पास चले दो भाई ।
जटायु संग संपाति ः
अगन थी भट्टी से भारी ।
जटायच आये लौट ।
संपाति अहम के कारण लौट न पाया ।
जले पंख गिरा धरा पर सागर तीर ।
सूर्य की तपन से जल रहे तरू ।
सूखे ताल तलैया अग्नि उपर नीचे की ।
सब जुलस रहे इस भट्टी मे। 
धरा वासी सब जड चेतन करे पुकार ।
हे श्यामा श्याम तपन भट्टी से कर जतन उबारो सबको ।
मेघों को करो इशारा बर्षा कर तर करो धरा को ।

स्वरचित --दमयन्ती मिश्रा 
गरोठ मध्यप्रदेश ।

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सादर नमन मंच
शीर्षक-भट्टी
15/6/19
................

बाहर मौसम भट्टी सा 
    धधक रहा है
अंदर मन में शोला जैसे 
    दहक रहा है

तन की ज्वाला
बदलते मौसम संग
एक दिन मद्धिम हो जाएगी

मन की अगन मगर
निज प्रयास से ही 
शीतल हो पाएगी

उदर की भट्टी भी
जलनी बहुत जरूरी है
भोजन तभी पचता है
जब जठराग्नि होती पूरी है

हिय की मशाल जलती रहे
तभी वो दुश्मन मार भगाएगी

धरा की भट्टी बुझाने को
भरसक प्रयत्न करना होगा
तभी प्राणियों की प्रजाति
इस धरती पर बच पाएगी

आँखो के शोले जलने दो
अभी और उबाल आने दो
तभी तो दुष्टों की कुदृष्टि 
जल कर भस्म हो पाएगी ।।

  @वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, भट्ठी
दिन, शनिवार
दिनांक, 15,6,2019,
विधा, छंद मुक्त

सारा जग एक जलती भट्ठी,
अलग अलग सबने रोटियाँ सेंकीं
भूख किसी को थी दौलत की
रच ली उसने ठगने की भट्ठी
दीन ईमान सभी बेचकर
बना डाली माया की नगरी 
किसी को सताये भूख ज्ञान की
मन मष्तिष्क को बनाया है भट्ठी
धूल फांकते रहे गुरु चरणनन की
हुई प्रकाशित ज्योति ज्ञान की 
लौ ईश्वर से मिलने की जानी
दहका भट्ठी सा मन अनुरागी
माया तृष्णा सब खाक हो गयी
परमानन्द हुआ जीव मायावी
भट्ठी पेट की कभी नहीं बुझती
मरते दम तक नहीं इससे मुक्ति
भूले पाप पुण्य की हर परिभाषा
जब जब ये तन को रहे जलाती
सोने को जब पिघलाती भट्ठी
कुन्दन का नया रूप दिलाती
इस जग की है ये रीत पुरानी
मेहनत की भट्ठी में तपकर के
सोना बन जाता है प्राणी ।

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भावों के मोती
15/06/19
विषय - भट्ठी (भट्टी) 

सूरज की जलन भट्टी सा अहसास
जैसे सब झूलस जायेगा
कल बरखा की बौछार
उस दहकती अगन को शांत शीतल कर देगी
पर उस आग का क्या
जो धधकती रहती हर मौसम अंदर कहीं गहरे झुलसते रहते जज्बात
बेबसी,बेकसी और भुखे पेट की भट्टी 
गर्मीयों में सूरज सी जलाती भट्टी 
धधक धधक खदबदाती
बरसात में सिलन लिये धुंवा धुंवा भट्टी 
बाहर बरसता सावन, अंदर सुलगती भट्टी 
पतझर में आशाओं के झरते पत्ते
उडा ले जाती हवा  कहीं उजडती अमराइयों में
सर्दी में छलावे सी गहरे तक दहकती भट्टी ।

स्वरचित 

                 कुसुम कोठारी।


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शुभ दोपहर  🌄
नमन "भावों के मोती"🙏
15/05/2019
हाइकु (5/7/5)   
विषय:-"भट्टी " 

(1)
जीवन भट्टी 
दर्द सह,खा चोट  
बना गहना
(2)
भावों की राख़ 
कलयुग की भट्टी 
स्वाहा सँस्कार 
(3)
सिकती हवा
सूरज की भट्टी पे  
धरती तवा 
(4)
हवस भट्टी
झुलसते मासूम 
सुलगे प्रश्न 
(5)
ईंधन पाप 
आतंक की भट्टी में 
निर्दोष राख
(6)
खेत की भट्टी 
किसान झोंके तन 
दमके अन्न 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

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नमन् भावों केमोती
दिनांक 15जून19
विषय भट्टी
विधा हाइकु

पिसे श्रमिक
धधकती भट्टी में
पेट की ज्वाला

कुंदन बने
मेहनत की भट्टी
सफल व्यक्ति

पकें रोटियां
होटल की भट्टियां
भूखा भिखारी

सर्दी जीवन-
दहकती भट्टियां
सेंकते हाथ

ऊर्जा का स्रोत
संलयन क्रियाएं
सूरज भट्टी

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- भट्ठी
हाथ औजार
मेहनत की भट्टी
देते आकार
सूरज आग
झूलसता इंसान
धरती भट्टी
भटके राह
अपमान की भट्टी
झूकते नैन
ईर्ष्या की भट्टी
कटु वाणी ईंधन
जलते रिश्ते
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/6/19
शनिवार
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15/6/19
          भट्ठी
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, मित्रों।

सूरज तप रहा है इन दिनों,
भट्ठी के आग जैसा।

सुबह से शाम तक,
 जलता रहता हीं है ऐसा।

घर में बन्द रहते हैं सब,
शाम से पहले कोई निकलता 
नहीं है अब।

इस तपिश में,
 झुलस रहे पेड़, पौधे।

नदियां, तालाब सूखे,
पानी की किल्लत हुई अब।

पानी बरसता नहीं,
सूखी पड़ी धरती।

कैसे उपजेगा अनाज,
कैसे करें किसान खेती।

बेचैन है धरा,
वर्षा होती नहीं है।

मर रहे पशु,पक्षी,
पानी बिना सूनी जिन्दगी है।

स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

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हाईकू.:-भट्टी
जलती भट्टी
बुझा पेट की आग
सेंकती रोटी ।
(2)
आग का गोला
सूरज की भट्टी है
जले संसार ।
(3)
कौन बुझाये 
दहकते जंगल 
जलती भट्टी ।
स्वरचित :-उषासक्सैना

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दि- 15-6-19
शीर्षक-  भट्टी
सादर मंच को समर्पित -

          🌹🍀   मुक्तक    🍀🌹
        ***********************
                 🌻    भट्टी    🌻
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भट्टी में  तप कर ही कुन्दन
                     सच्चा  निखार  पाता है ।

चोटों को सह कर ही लोहा 
                     सुन्दर  प्रकार  पाता  है ।

मानव भी पीड़ा में तप के 
                     गढ़ता  जाता  है क्षमता --

जीवन यों झंझावातों में
                     बढ़ कर  प्रसार  पाता है ।।

                  🌹🌻🍀🌺🍊

☀💧**....  रवीन्द्र वर्मा आगरा 
                   मो0- 8532852618
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नमन "भावो के मोती"
15/06/2019
     "भट्ठी"
################
ये दूनिया  भट्ठी सा जल रहा,
नफरत की मिल रही है हवा।

क्रोध  का  पारा चढ़ रहा,
शांति ठिठुरती खड़ी रही।

अरमान सबके जलते रहे,
प्रेम इसमें  झुलसता रहा।

शीतलता की आस न दिख रही,
रिश्तों से अपनापन स्वाहा हो रहा।

घृणा की हवा मिलती रही,
मन की शांति राख हो रही।

काश!नेह की फुहार बरस जाए,
जग को शीतल कर जाए।

ऐसे में ऐ!खुदा!अब तू ही बता,
जिए इंसान तो कैसे भला।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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नमन -मंच
दिनांक-१५/६/२०१९"
"शीषर्क-भट्ठी"
जला दो प्रभु भक्ति की भट्ठी 
सुन  लो मेरी पुकार
मैं तेरे चरणों की धूल
कर दो मेरा उद्धार।

मुझ अल्पज्ञ को,नीतिज्ञ बना दो
तुम मुझमें ज्ञान की भट्ठी जला दो
सूर्य भट्ठी बन जब हमें सताये
बारिश बन तुम हमें बचाओ।

घर घर की भट्ठी तुम बन जाओ
पेट का भट्ठी सबका बुझाओ
स्वार्थ के भट्ठी मे रोटी सेंके ना कोई
ऐसा सबक सीखाओ तुम।

भट्टी मे तप सोना ज्यों कुंदन बने
कोयला भट्ठी मे तप ज्यों कोहनूर बने
वैसे ही मुझे कोयला से कोहनूर बनाओ तुम।
आज भक्ति की भट्टी जलाओ तुम
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

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सादर नमन भावों के मोती
15/6/19
शीर्षक - भट्ठी

1-
ग्रीष्म आतप, 
जग भट्ठी सा तपे,
विकल प्राणी ।

2-
क्रोध की भट्ठी, 
नफरत की घुट्टी, 
रिश्ते जर्जर । 

3-
जिंदगी भट्ठी, 
तपता है इंसान, 
स्वर्ण व्यक्तित्व । 

      --  नीता अग्रवाल
           #स्वरचित
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शुभ संध्या
विषय-- ।। भट्टी ।।
द्वितीय प्रस्तुति

भट्टी न हो अगर तो खाना न पके 
राग न हो अगर तो गाना न गवे ।।
हर एक शय का स्थान है यहाँ पर
जाने क्यों ये बात दिमाग में न रूके ।।

कुछ हालात भट्टी का काम करते
जीवन में हरदम ऊर्जा को भरते ।।
ऊर्जा कभी खत्म नही होती यह
ऐसे वाक्यात सबके साथ गुजरते ।।

आँसू मिले हों ''शिवम"" जहाँ से 
तोड़ो न संबंध कभी भी वहाँ से ।।
वही आग वही चुभन दे कामयाबी
गुलाब भी कहे यह गुलिस्तां से ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/06/2019

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नमन मंच,भावों के मोती
15-06-19 शनिवार
विषय-भट्ठी
विधा-हाइकु
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(१)
ईर्ष्या की आग
राग-द्वेष की भट्ठी
जले शैतान👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
ग्रीष्म आतंक
धरा,भट्ठी सा गर्म
व्याकुल जन👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
सभ्यता लाल
आधुनिक भट्ठी में
संस्कृति भष्म🎂
💐💐💐💐💐💐
(४)
दारु की भट्ठी
बेघर-परिवार
फूटे हैं भाग💐
💐💐💐💐💐💐
(५)
पेट की भट्ठी
सब कुछ हजम
बुझे न आग☺️
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐

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भावों के मोती 
सादर प्रणाम 
विषय =भट्टी 
विधा =हाइकु 
💥💥💥💥💥

दिमाग भट्टी 
पकते है विचार 
शुभ अशुभ 

दूजे का सुख
देख इर्ष्या की भट्टी 
जलता खुद 

भट्टी पे चढ़ी 
पकोड़े की कढ़ाई
महक आई

टपके पक्षी
तप रही है ऐसी
सूरज भट्टी

क्रोध की भट्टी 
डकारती जीवन 
खाया ज़हर 

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
15/06/2019

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नमन मंच
" भावों के मोती '
 दिनांक -15/06/19
विषय -  " भट्ठी '
1"
जलती भट्ठी
      भरता  पेट ,,तभी
              होता ,,,,भजन ।
2"
  तपती धरा 
      धधकती भट्ठी सा ,,
                  पेड़ लगाएँ,,,।
3" 
  भट्ठी में तपा
         कुन्दन है बनता 
                 हम भी तपें ,,,।
***********************
स्वरचित ---" विमल '
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नमन सम्मानित मंच
        (भट्टी)
         *****
अज़ब  ग़जब रंगों  की   चारु,
  परिधान  हरित   वाली  धरती,
    कहीं  सुलगती मय  की  भट्टी,
      भट्टी में कहीं   पिघलता लौह।

प्रेम मदान्ध  की  भट्टी में नित,
  प्रेमी   जलें    पतंगे    मानिन्द,
    भौतिकता की   भट्टी मे मानव,
      आहुत करता   मानवता चिन्ह।

संघर्षों  की  भट्टी  में  तप  कर,
  मानव महान  बनता  क्षितितल,
    दिव्य गुणों से  हो  भूषित शुचि,
      कर्तव्य   निर्वहन    करे  विमल।

जीवन   के  अवसान  पलों  में,
  एकाकीपन   की       भट्टी   में,
    तृष्णाऐ  जलती     कुढ़ती  सी,
      वृद्धों   की   जीवन-यापन    में।

परमशक्ति की  भक्ति  की यदि,
  भट्टी   मे   तप    जाये   मानव,
    स्वर्ण  समान   निखर  जाएगा,
      प्राप्त परमपद       कर पाएगा।
                               --स्वरचित--
                                   (अरुण)

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द्वतीय प्रयास
विधा:/हाइकु
🍂🍁🍂🍁🍂
विषय:-भट्टी
1))
सूर्य की भट्टी
विकल जनता है
बढता ताप
2))
धरती प्यासी
तकती आसमान
सूरज भट्टी
3)))
क्रोध की भट्टी
रिश्ते खत्म होते है
दम तोडते
4)))
पेट की भट्टी
गरीबी मुसीबत
जन हैरान

स्वरचित
नीलम शर्मा"#नीलू

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नमन भावों के मोती नमन आ0 वीना शर्मा वशिष्ठ जी
शीर्षकः- भट्टी 

संसार को प्यारे तू मान ले एक भट्टी।
जलना पड़ता सबको किसी नहीं चलती।।

इस भट्टीं मे सबको ही जलना पड़ता ।
हर प्राणी को जल कर तपना  पड़ता ।।

तप कर कोई सोने से कुन्दन है बनता।
हीरे को  जल कर है राख बनना पड़ता।।

मानव बन कुन्दन प्रभु के पास पहँचता।
आगम निगम के चक्कर से मुक्ति पाता।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”

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नमन मंच को
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 15/06/2019
शीर्षक :- भट्टी

श्रम की भट्टी पर तपता वो..
बनकर कर्मवीर निखरता वो.. 
फिर भी रहता सदा उपेक्षित..
स्वेद से रोज-रोज नहाता वो..
करता अथक परिश्रम वो..
लगता फिर भी न थका वो..
चलता सतत् अनवरत वह..
बाधाओं पर भी न रुका वो..
टपकता आसमां सा घर उसका..
करता फिर भी वर्षा की आस..
चीरता वह धरती का सीना..
नहीं मोती माणिक की आस..
मिल जाए रोटी दो वक्त की..
रखता बस इतनी सी आस..
भूखा जगे वह भूखा सोए न..
प्रभु तुझसे है इतनी अरदास...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

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नमन भावों के मोती
विषय_भट्ठी

१. दग्ध हृदय
संबंध हुए राख
क्रोध की भट्ठी

२. वासना भट्ठी
मानवता की मृत्यु
क्रूरता जन्म
३. सूर्य का ताप
वसुधा तप्त भट्ठी
प्राणी बेहाल
४. स्वप्न पकते
बन जाते मकान
भट्ठी में ईंट

५. श्रम की भट्ठी
तपता जो जीवन
कुंदन बना

६. तप की भट्ठी
निखरता साधक
दिव्य दर्शन

७. दक्ष विध्यार्थी
गुरुकुल प्रणाली
भट्ठी सा तपे

८. सागर तपा 
भानु की गर्म भट्ठी
टपकी बूंदें

स्वरचित-  सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग)

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भट्टी में जो तपता वही निखरता है 
रखे हौसला धैर्य का फल मिलता है 

क्रोध की भट्टी से हमेशा दूर रहें 
वरना खुद ही खाक होना पड़ता है   

तपना है तो परिश्रम भट्टी में तपो
शिखर का रास्ता यही  से सुगम होता है 

ज्ञान की भट्टी जो एकांत में जलाता
ऋषि मुनियों सा वही  सम्मान पाता है 

पेट की जब-जब भट्टी जलती है 
अच्छे-अच्छे को ज्ञान हो जाता है 

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश

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1*भा.15/6/2019/शनिवार
बिषयः ः #भट्टी#
विधाःःकाव्य

अग्नि देव की पूजा करते,
  हर घर में तब भट्टी जलती।
     भूखा पेट जब होता अपना,
          तभी उदर में भट्टी जलती।

नफरत की भट्टी न जल पाऐ,
   जहाँ सुलगे तब सभी बुझाऐं।
      प्रेम प्यार से मिल कर रह लें ,
         नहीं रागद्वेष की आग लगाऐं।

क्यों जठराग्नि भट्टी सी जलती ,
  ये सचमुच कारण समझ न पाऐ।
     क्यों भूख प्यास से पेट पिघलते,
         कोई तो वास्तविक बात बताऐ।

प्रभु ही पेट उदरपूर्ति करते।
  भगवान सभी की पूर्ति करते।
     भूला मानव मानवता लेकिन,
         तभी वैमनस्यता में ही जलते।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

1*भा#भट्टी#काव्यः ः
15/6/2019/शनिवार

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भट्टी
🎻🎻🎻

जीवन भट्टी है तनावों की
जीवन भट्टी है बहकावों की
जीवन भट्टी है दहकावों की
जीवन भट्टी है झूठे झूठे दावों की। 

लोग इस भट्टी में अपने हाथ सेकते
लोग अहंकार में अपनी ऊँची फैंकते
लोग अपनी स्वार्थ गद्दी किसी तरह टेकते
लेकिन उनके पग यथार्थ में धीरे धीरे रैंगते।

हम न आये कोई बहकावों में
हम न आयें किसी के दावों में
हम न उलझे किसी के भुलावों में
हम न फँसें बेकार बुलावों में। 

आज की भट्टी में कई बातें पक रही
कहीं 35A की बात ही धधक रही
कहीं कश्मीरी पंडितों की ध्वनि खूब कड़क रही
कहीं बेरोज़गारों की भावना भड़क रही।

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भावों के मोती दिनांक 15/6/19
भट्ठी

हाइकु

1

भट्ठी सी धरा
इन्सान परेशान
हो बरसात

2

गुस्से की भट्ठी
जलता है इन्सान
बढा ब्लड प्रेशर

3

लुहार भट्ठी
चलती  है धौंकनी
पिघला लोहा

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव  भोपाल

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नमन मंच
दिनांक .. 15/6/2019
विषय ... भठ्ठी
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सुलग रहा मस्तक है मेरा,
भठ्ठी जलती आग।
हे देवो मे इन्द्रदेव अब तो,
सुन लो मेरे राग।
...
सूख चुकी है धरती अब तो,
आने लगी दरार।
कितना तडपाओगे प्रभु तुम,
क्या हमसे है रार।
....
वर्षा दो पानी की बूँदे,
दिल को मिले करार।
सुलग रहा मस्तक ये शेर का, 
जिससे गिर गया बात।

स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
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भावों के मोती
15/6/2019::शनिवार
विषय भट्टी
विधा--कुण्डलिया

जलती भट्टी सम लगे ,सड़क चली जो गाँव
पेड़ सभी वो कट गए, जो देते थे छाँव
जो देते थे छाँव, ठाँव पा लेता राही
दो पल पाता चैन, रोक कर आवा जाही
छाया थी वरदान, नहीं दूरी भी खलती
पगडंडी अब नग्न, लगे भट्टी सी जलती
         रजनी रामदेव
           न्यू दिल्ली
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