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ब्लॉग संख्या :-427
मन के भाव जो शब्द बने फिर,
अन्तर्मन की तपिश कम हुई।
सूखे से मन के मरूवन पर मेरे,
बारिश आज झमाझम हुई।
.....
पत्ता-पत्ता खिला आज है,
उपवन का हर रंग खिला है।
अमवा पर बैठी कोयलीयाँ,
गाए आज तपिश कुछ कम है।
.....
धन्य भाग्य मेरी धरती का,
प्यास मिटा वह तृप्त हुई।
ईश्वर तुम बरसाना पानी,
कोई धरती ना सुप्त रहे।
...
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।। तपिश ।।
यह बढ़ती हुई गर्मी
तपिश कुछ कह रही ।।
मानव की ज्यादायती
सारी सृष्टि सह रही है ।।
कौन जीव न हेरां कई के
बजूद की इमारत ढह रही ।।
कितनी प्रजाति विलुप्त
उनकी पीढ़ी न दिख रही ।।
सजगता सिर्फ सरकारी
फाइलों में ही लिख रही ।।
वनों की अवैध तरीके से
कटाई कहाँ रूक रही ।।
घरों में A C सड़कों पर
वाहन तादाद बढ़ रही ।।
मानव की सोच आज
अपने तक सिमट रही ।।
दानवता नित बढ़ रही
मानवता अब घट रही ।।
तापक्रम की सुई 'शिवम'
प्रत्येक वर्ष उछल रही ।।
बड़े AC में ऐश कर रहे
छोटों की दम निकल रही ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 24/06/2019
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विषय - तपिश
तिथि - 24/6/19
दुनिया ने तपिश ....देखी तेरी
मुझे ठंडी फुहार सा लगता है
बादलों सा कभी..गरजता था
वो हमें मौसमें बहार लगता है
तप रही हूं ...अगन में तेरी मैं
प्यार दिल बेहिसाब करता है
सूर्य सा तू जले है ,इस दिल में
अब अंधेरा भी तुझसे डरता है
तपिश तेरी.... हमें सुहाती है
जब तू तन पे मेरे बिखरता है
तू मिले न मिले ..कभी हमसे
प्यार दिल ..बेशुमार करता है
सरिता गर्ग
स्व रचित
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, तपिश
दिन, सोमवार ,
दिनांक, 24, 6, 2019,
आग स्वार्थ की लगी चारों तरफ़
गायब हो गए पेड़ सरोवर
बाढ़ कंक्रीट के जंगलों की आई
पर्यावरण की हुई तबाही
तपिश ग्लेशियर ने भी महसूस की
पिघल कर की तबाही
प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप
बढ़ रहा दिन व दिन
पहचान मौसम की न रही
ऋतुओं का अस्तित्व कम हो रहा
नशा स्वार्थ का न कम हो रहा
है समय कर लें जतन हम
संसार के प्राण का
करें संतुलन वायु जल अग्नि का
शमन करें आकाश की तपिश का
करें सुरक्षित भविष्य धरती का
शीतल सुखद संसार हो
कोई शिकार न हो तपिश का ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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तपिश
तपिश में,
खेत में हल ,
चलाते हुए ।
किसान देखता हैं ।
एक नज़र,
हाथ का परदा,
करते हुए ।
सूरज की ओर ।
ना जाने,
क्या कहता !
सूरज को ?
फिर मैले गमछे से,
पोंछता पसीना ।
बैठता हैं बांध पर,
छोटे से पेड़ की छाँव तलें ।
छिड़ककर कुछ ,
पानी की बूंदें ।
अपने चेहरे पर ।
फिर एक बार देखता,
तपते हुए सूरज की ओर ।
रुखी सुखी रोटी,
खाता हैं,
एक एक कोर ।
मुंह को लगाता,
सूराही का छोर ।
गट गट की आवाज ,
घूँट घूँट पानी पीने की ।
धूप में,
एक बार देखता,
सूरज की ओर ।
फिर निकलता,
हल की ओर ।
लेकर एक,
उम्मिद की कहानी ,
अपने संग ।
✍प्रदीप सहारे
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नमन मंच 🙏
सुप्रभात मित्रों व गुरूजनों 🙏💐💐
दिनांक- 24/6/2019
शीर्षक-"तपिश"
विधा- कविता
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ये तेरे इश्क़ की ही तपिश है कि,
ये पत्थर दिल मेरा यूँ पिघल गया,
वरना प्यार का ये समंदर शांत था,
और आज लहर बन उछलने लगा |
कभी गमों की तपिश घेरे थी हमें,
कैद वो जिंदगी से अब हटने लगी,
हम,तुममे कुछ ऐसे शामिल हुए कि,
शरीर का आत्मा से मिलन हो गया |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच भावों के मोती
24/6/2019/
बिषय (तपिश)
ओ काले काले मेघा
घनघोर तो छा जाते हो
पर मेरे आंगना में बिन
लौट जाते हो
तन मन में सुलगती अग्नि को
और क्यों जलाते हो
या किसी बिरहन की
बिरहाग्नि को बढ़ाते हो
क्या किसी के पीहर का
संदेशा लेकर जाते हो
या फिर वीर सपूतों का
पैगाम लेकर आते हो
यही गुजारिश है तुमसे
बिन बरषे अब मत जाना
बहुत दिनों की प्यासी ए धरा
सराबोर तुम कर जाना
पशु पक्षी भी इकटक तेरी
ओर निहारते
रूठना छोड़ झमाझम बरषो
बस तुमको ही पुकारते
स्वागत में सब खड़े हुए
पृथ्वी आंगन द्वार है
क्यों देरी करते तुम्हारा
इंतजार है
स्वरचित,,, मौलिक,,
सुषमा ब्यौहार
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नमन मंच ,भावों के मोती
विषय तपिश
विधा लघुकविता
24 जून 2019,सोमवार
धरा धधकती है गर्मी से
नभ से शौले बरस रहे हैं।
पानी की हर बूँद के पीछे
बिलख रहे नर तरस रहे हैं।
बहे पसीना उमस बढ़ रही
पवन का न झौंखा चलता।
लू थपेड़े अनवरत बहते
अति जीवन को है खतरा।
शीश पकड़े कृषक निहारे
अब तो बरसो है घन श्याम।
भूमि सूखी पड़ी हुई सब
मच जाएगा जग कोहराम।
उमड़ घुमड़ आओ बदरा
अति गर्मी है चारों ओर।
जीव जंतु सभी बिलखते
हाहाकार दयनीय है शौर।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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नमन-भावो के मोती
दिनांक-२४/०६/२०१९
विषय-तपिश
बड़ी तपिश है इस तपन में
भाव यही है मेरे मन में
पल में तम, पल मे दमन
प्रश्न यही है मेरे जहन में।।
पवन बहते अग्नि के अंगारे
तपते सूरज के प्रलोभन में।।
रंध्र में भरती गई एक
अलौकिक गंध
अग्नि जलन के आलंबन में।।
सुख से नदियां सोती कहां
सूरज के उपवन में।।
सूरज आहिस्ता आहिस्ता
थका माँदा चल रहा
ग्रीष्म काल की चाल चलन में।।
पथ का राही त्रस्त था
व्याकुलता से मस्त था
गर्मी के गरम से ग्रस्त था
कथा यही है सूरज की
जो प्रकृति से प्रदत था......
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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भावों के मोती
24 06 19
विषय - तपिश
तपता हुवा चांद उतर आया
विरहन की आंखों में
चांदनी जला रही है तन-मन,
झरोखे में उतर उतर
कैसी "तपिश" है ये
अंतर तक दहक गया
जेठ की तपती दोपहरी जैसे
सन्नाटे उतर आये मन में
यादों के गर्म थपेड़े
मन झुलसाए
मुरझाये फूलों सा
रूप कुम्हलाए
नैनो का नीर गालों की
गर्मी में समा कर सूख जाए
ज्यों धरा के तपते गात पर
तन्वंगी होता नदीयों का पानी
लताओं जैसे निस्तेज
घुंघराले उलझे केश
मलीन चीर की सिलवटें ऐसे जैसे
धरती का सूख कर सिकुड जाना
प्यासे पंछियों सा भटकता मन
उड़ता तृषा, शांति की तलाश में
हां चांद भी तपता है.....
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
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आज काविषय तपिश,
मानव को जीवन से संतोष नहो तो दिल मे तपिश होती है।।
कभी फुरसत मिले तो आ जाना,
इस दिल की तपिश को बुझा जाना।।1।।
जिस पल मिलने को दिल चाहे,
आ के मीठे बोल सुना जाना।।2।।
बैचेन है दिल ,मौसम है उदास,
मुरझाये दिल को हँसा जाना।।3।।
सपने जीवन के टूटते रहे,
जीने के चाह जगा जाना।।4।।
आँखों को सावन की झड़ी लगी,,
अश्क् आँखों की सूखा जाना।।5।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना।।
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1भा.24/6/2019सोमवार
बिषयःः ः#तपिश#
विधाःःकाव्यःः
तपिश तपस्या से आती तो,
सुकूँ तपस्वी को मिलता है।
तपन उपासना से आती तो,
ज्ञान यशस्वी सा मिलता है।
प्रभु भक्ति में मन नहीं लगता,
नहीं भगवान भजन हम करते।
भोगविलासी जीवन जिऐं फिर,
क्या कभी कठोर परिश्रम करते।
तप कर काया कुंदन बनती है।
यह नित नवीन सपने बुनती है।
रवि तपिश खलनायक लगती,
सचमुच यह कांटे सी चुभती है।
फिरभी तपन हमें आवश्यक है।
यह सच्ची सबको फलदायक है।
सच तपिश हमें बरसात बुलाती,
जो सारे जग को ही वरदायक है।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
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1*भा.#तपिश #काव्यः ः
24/6/2019/रविवार
नमन " भावों के मोती " पटल
वार : सोमवार
दिनांक : 24.06.2019
आज का विषय : तपिश
विधा : काव्य
गीत
आग बरसती बड़ी तपिश है ,
चमकी से चमके हैं लोग !!
खड़े कुपोषण और गरीबी ,
भाषण से कुछ ना होगा !
स्वास्थ, चिकित्सा , शिक्षा सस्ती ,
यह तो बस करना होगा !
भूखे पेट जो सोये बच्चे ,
दस्तक देते खड़े हैं रोग !!
कमतर सुविधाएं पाई हैं ,
अस्पताल हैं भरें पड़े !
जब अभाव से जूझ रहे वे ,
सूख गये सब नोट हरे !
निर्झरणी से , माँ के आँसू ,
कौनसी चौखट देवे धोग !!
खूब फरेबी आश्वासन हैं ,
बरसों से पाते आये !
कमर झुकी श्रम करते करते ,
सदा मिले ढलते साये !
आँखों में विश्वास जगे फिर ,
वही चाहते सफल संयोग !!
नयी सदी है नयी आस है ,
पावस को ताके हैं हम !
कहाँ खुशी झोली में सबकी ,
ज्यादा के हिस्से में ग़म !
रूखी सूखी मिल जाये बस ,
किस्मत में कहाँ छप्पन भोग !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
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🙏🌹नमन मंच🌹🙏
24/6/2019
विषय-तपिश
💐🌿🎋🌻🌺💐
उफ़्फ़ ये गर्मी
ये घाम, ये ताप
हे सूरज !
क्यों दिखा रहे हो
अपना प्रताप ?
तुम्हें देख जेठ की
दुपहरी भी निर्लज्ज हो उठी
तुम्हारे प्रचंड तेज को
वो सह न सकी
हरित धरा के लिए तो
अपनी तपिश को
मद्धिम कम कर लेना
विनती करती हूँ तुमसे
तनिक तुम्हीं ओट कर लेना
भयातुर है सकल जगत
कहीं तपिश से
ये धरा सूख न जाए
आकुल पशु पंछियों का
गर्मी से दम निकल न जाए
जो हम सूर्य नमस्कार करें
तो तुम सखा हमारे बन जाओ
श्रमजल विपुल बहाऊँ तो
सिद्ध संसारी तुम बन जाओ
नभ के स्वामी हे सूर्यदेव !
प्रतीक्षा रत हैं अब इंद्रदेव
उचित समय है
अब तो उनको आ जाने दो
आकर नेह सुधा बरसाने दो
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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नमन भावों के मोती
विषय तपिश
विधा कविता
दिनांक 24,6,2019
दिन सोमवार
तपिश
🍁🍁🍁🍁
तेरी स्मृति आज भी छाँह देती है
वो आज भी मख़मली निगाह देती है
ग़मों की बेचैन गरम हवाओं में
आज भी एक अलग पनाह देती है।
तुझे आज भी मैं शब्दों में उतारता हूँ
अलंकारों में तुझे सँवारता हूँ
तेरे गौर वर्ण को उपमा देता हूँ
चाँदनी की गरिमा देता हूँ
केशों में घटायें निखारता हूँ
मेरी हर पंक्ति तुझ पर वारता हूँ
तेरी स्मृति आज भी मेरी मुस्कान है
आज भी तू मेरी कविता की शान है।
वक्त की ही थी वो तपिश
जहाँ भाव मेरे गये थे पिस
उस तपिश की है आज भी जलन
मौन मौन निकलता है एक रुदन।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
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नमन "भावो के मोती"
24/06/2019
"तपिश"
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फूलों से भरा था आशियां जो हमारा,
घृणा की तपिश नें नीम-जाँ बना दिया।
तेरी अदाओं का कायल हुआ है ये दिल,
ऐसी लगी अगन तुझे हमनवां बना दिया।
रूह में समा गए हो ..........इस कदर,
साँसों की तपिश ने आशियाँ बना दिया।
कैसी है ये दिल की लगी..समझाए कौन,
ईश्क की तपन ने शामदाँ बना दिया।
उड़ता फिरता रहता था सदा जो मेरा मन,
तेरी यादों की तपिश ने पासबां बना दिया।
चंचलता और शोखियाँ न जाने कहाँ गुम हुई,
दर्द में तप-तपकर ना-तवां बना दिया।
दिल की जमीं पर लगी है जो अगन,
मुझे राख..और तुझे आसमां बना दिया।
नजरों से ओझल हुए हो ....जबसे तुम,
जुदाई की तपिश ने उस्तुखाँ बना दिया।
जमाने के दस्तुर से घायल हुई" बॉबी",
सितम के तपन से बेजूबां बना दिया।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
नीम-जाँ---अधमरा
पासबां ---चौकीदार
उस्तुखाँ---हड्डियाँ
शामदाँ---प्रसन्न
ना-तवां---कमजोर
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भावों के मोती दिनांक 24/6/19
तपिश
विधा - हाइकु
हर तरफ
परेशान इन्सान
घोर तपिश
तपिश अंत
बरसे बरसात
सुखी जीवन
नाराज सूर्य
बरसती है आग
तपिश कैसी
हो सब सुखी
न हो वहाँ तपिश
प्रेम हो जहाँ
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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भावों के मोती
शीर्षक- तपिश
तकलीफों की तपिश से
काया कुन्दन बनती है।
इम्तहान से इन्सान की
प्रतिभा और निखरती है।।
मत घबराना देखकर तुम
राह में आते अवरोधों को,
कांटों कंकरों से होकर ही
नदियां सागर से मिलती है।।
स्वरचित
निलम अग्रवाल,खड़कपुर
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नमन मंच
दिनांक .. 24/6/2019
विषय .. तपिश
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भावी भाविक है मेरा,
ये है मेरा आज।
जिसमे छवि दिखती मेरी,
कल का है आगाज॥
......
तपिश नही यह तेज है,
किरणों की बरसात।
छलक रही रस मंजरी,
जिसकी किरणे सात॥
......
देवभूमि पर है गिरी,
पहली जो जलधार।
तपिश मिटी अन्तर्मन फिर,
आये मस्त बहार।
......
आँखो मे आ देख ले,
सुरभित नैना चार।
शेर हृदय पुलकित सदा,
ये है मेरा प्यार॥
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
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नमन मंच ' भावों के मोती '
24/06/19
' तपिश '
**************
1/
बढ़ी तपिश
बेहाल थे आदमी
आई बारिश ।
2/
विरहा अग्नि
तपिश इतनी थी
झुलसे प्रेमी ।
3 /
उदर की तपिश
कैसे हो शांति
मिटे गरीबी ।
********************
स्वरचित --- 'विमल'
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24/6/19
भावों के मोती
विषय-तपिश
_______________
"आस का पँछी"इत-उत डोले
आसमां में मेघ टटोले
"नीला आकाश"दिखे सूना
"आखिर क्यों"सतावे बदरा
"दिल"को क्यों तरसावे बदरा
आ जाओ अब छा जाओ
मेघों पानी बरसा जाओ
हो"तेरी मेहरबानियाँ"अब
"बारिश"जम कर हो जाने दो
रिमझिम फुहारों के संग झूमकर
प्रभू"सावन को आने दो"
तन-मन को भीग जाने दो
मेघ मल्हार गाए झूमकर
टापुर टुपुर टपके बूँदे
सुन लो"धरती कहे पुकार के"
अब बरखा बहार आ जाओ
थक गई"आँखें" राह निहारे
"बादल"आएँ घिर-घिर जाएँ
"दामिनी" तड़के "दिल"घबराए
"आशा"की ज्योति मन में जगी
बैरी पवन फिर छलने लगी
"आँख-मिचौली"बहुत हुई अब
हो"बरसात"तो तपिश मिटे अब
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
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24-6-2019
विषय:-तपिश
विधा :-कुण्डलिया
हठधर्मी सूरज बना , दिखा रहा आतंक ।
तपिश सहन होती नहीं , वृक्ष ढूँढते अंक ।।
वृक्ष ढूँढते अंक , गए मुरझा सब पत्ते ।
करे नहीं मधु पान , छुपी मक्खी है छत्ते ।
सूख गए सब ताल , नहीं कोई जल कर्मी ।
सुनिए देव पुकार , नहीं बनिए हठधर्मी ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन मंच २४/०६/२०१९
विषय--तपिश
क्षणिका
१,गर्मी की तपिश से राहत हेतु
वर्षा को रहे पुकार सभी।
वर्षा की अधिकता से
बेघर हो गए हैं कई।
२
वर्षा से मिटे
केवल तन की ही तपिश
करें कर्म कुछ ऐसा
जिससे मिटे मन की तपिश
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
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🌹🙏 शुभ संध्या🙏🌹
🙏नमन प्रियजन🙏
24/6/2019
विषय-तपिश
'द्वितीय प्रस्तुति
****************
🌿🎋🌿🎋🌿🎋
जैसे कोई पौधा
पेड़ बनने की चाह में
थोड़ी सी तपिश,थोड़ा जल
थोड़ी परवाह,
स्वच्छ समीर,अथाह प्यार
पाकर खिल उठता है
वैसे ही
दुनियावी संबंधों में भी
थोड़ी सी ऊष्मा
थोड़ा स्नेह,बहुत विश्वास
व ईमानदारी
जरूरी है
तभी तो दिल की
कली खिल उठती है
मन की बगिया लहलहा उठती है
एक प्रवाह आ जाता है
जीवन में
थोड़ा प्रयास करके
संभवतः बच जाएं
बिखरने से पहले
संबंध ज़िंदगी में
ठंडे रिश्तों में आ जाए
फिर से तपिश अपनों के
प्यार की।
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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नमन भावों के मोती
एक लंबे अंतराल के बाद आज आप सभी गुणीजनों का मेरा सादर नमन 🙏🙏
दिनांक : - 24/6/019
विषय : - तपिश
विधा : - काव्य
' तपिश '
तपिश भानु , तपिश धरा
तपिश मासूमों का बदन था
उबल रहा था जिसमें
ममता बेबस माँओं का
बहता सीने से श्वेत - धार था।
बच्चों की भीड़ थी
पर खो गया बचपन था
सिसक रहा था वह सफेद चादर
जिस पर जिगर का टुकड़ा
मौन पड़ा था।
गुँज रहा था हर तरफ क्रंदन
समय भी थम सा गया था
झकझोर रहा था वह अग्नि जो
छोटी - छोटी चिताओं को
धधका रहा था।
न जाने ताण्डव यहाँ कैसा है छाया
बनकर बुखार वह
कितनी लाशें है बिछाया,
कह रहे थें डॉक्टर
सारे बच्चे कुपोषण का शिकार था
या समझ से पड़े कोई
लाईलाज बिमारी का वार था।
अन्न के अंबारो के बीच
पोषित सिर्फ दीमक हुआ
जो खा गया मानवता यहाँ,
बेनकाब हर भरोसा हुआ।
हाँ, कह दो गरीब के घर न लगे बाग
कली आते ही, ऐसे ही सूख जाएँगे
नहीं दे सकते उसे हम खाद- पानी
हम तो घर- घर बुलेट ट्रेन दौड़ाएँगें।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
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#नमन भावों के मोती:::::
#वार सोमवार::::::
#दिनांक २४,६,२०१९::::
#विषय तपिश,ताप, तपन:::
#रचनाकार दुर्गा सिलगीवाला सोनी
""*"""*""" ताप """*"""*""
तप रही धरती तप रहा अम्बर,
ताप वातावरण का सहा ना जाए,
कृत्रिम संसाधन एसी कूलर बिन,
एक पल अब तो रहा ना जाए,
तीव्र तपन है मानव को चेतावनी,
दुष्कर होगा अब धरती पर जीवन,
जल की अगर कमी ना समझे तो,
पर्वत ही बचेंगे और ना बचेंगे वन,
जिस तेज गति से ताप बढ़ेगा,
ग्लेशियर भी पिघलते जाएंगे,
निश्चित ही मरेंगे हम जलजले से,
सुनामी लेकर समन्दर भी आएंगे,
धरती के बढ़ते ताप के असर से,
ओजोन परत में बन गया है होल,
अंतरिक्ष भी नहीं सुरक्षित अब तो,
सक्रिय हो चुका है ब्लैक होल,
जल संग्रह का प्रयास करो"दुर्गा"
वर्ना एक दिन ऐसा भी आएगा,
ये धरती बनेगी आग का दरिया,
ज्वाला मुखी ये जगत बन जाएगा,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
क्षमा करे आदरणीय आज इस विषय पर मै अपनी एक पुरानी रचना पोस्ट कर रहा हूँ...
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शेर की कविताएं...
विषय .. तपन/तपिश
विधा .. लघु कविता
*********************
🍁
नरक सी थी तपन, इस जीवन से नाही मोह था।
विरह से उत्पन्न थी, संताप मन मे रोष था ॥
🍁
उष्णता मे जल रही, प्रिय नायिका दुष्यंत की।
काम मन की भावना से, तप रही हर अंग थी ॥
🍁
पुछती वो हे सखी, क्या नाम है इस रोग का।
लरजते अधरों से शंकु, ना कह सकी मन भोग का॥
🍁
प्रीत संग उत्पन्न होती, तपन प्रिय मन हिय मे।
शेर की कविता पढो, रम जायेगी मन प्रीती मे॥
🍁
स्वरचित.. शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन-मंच: भावों के मोती।
विषय: तपिश : 24-6-2019.
जीवन के हैं रंग अनेक,
जिसमें उलझा मानव मन।
सुख-दुख के काल-चक्र में,
भंवर सा नाचता ये जीवन।।
सुख की शीतलता पल दो पल की,
दुःख की तपिश से है बोझिल मन।
यही अग्नि-परीक्षा है भव सागर की,
जो पार हुआ उसका होता तारण।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
सादर नमन
"तपिश"
कभी बेबसी कभी तन्हाई,
कभी तड़प तो कभी इंतजार,
ना जाने कब बरसेगी,
तेरे प्यार की बौछार,
निगाहों से मेरी दूर है वो,
आने का उसके इंतजार है,
तपिश उसकी जुदाई की,
ढूँढती उसका प्यार है,
तेरे दूर रहने की
तपिश क्या कम थी,
जला देती हैं हसरतों को,
खामोशी तेरे लब की।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
24/6/19
सोमवारि
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 24/06/2019
शीर्षक :- तपिश
सूरज की तपिश,
से लड़ने की चाह।
मन में ले कई उमंग,
आसमां में उड़ने की चाह।
आंधियों तुफानों से,
डंटकर लड़ने की चाह।
हौसले परिंदो के,
तपन नहीं देखते।
उड़ते आसमां की चाह में,
फिर जमीं नहीं देखते।
तिनको से महल बनाते,
परिश्रम की थकान नहीं देखते।
चाह हो गर आसमानों की,
फिर किंचित अवरोध नहीं देखते।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शुभ संध्या
शीर्षक--।। तपिश ।।
द्वितीय प्रस्तुति
यूँ तो तपिश जरूरी है सबने जाना ।
तपकर ही उगे धरती से अन्न दाना ।
मुर्गी अपने अण्डे को भी सेती है ।
अपने बदन से उचित ताप देती है ।
शरीर का भी उचित ताप होता है ।
जरा सा घटा बड़ा कि इंसा रोता है ।
वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ रहा ।
मानव का बजूद खतरे में पड़ रहा ।
ओजोन परत से सारे परिचित हैं ।
फिर भी फिकर न हमें किंचित है ।
वायुमण्डलीय गैस का घेरा घुल रहा ।
खतरनाक किरणों का पथ खुल रहा ।
तापक्रम तो बढ़ना ही बढ़ना है ।
जाने कितने संघर्षों से लड़ना है ।
गलती पर गलती 'शिवम' कर रहे ।
हमारे संग और भी जीव मर रहे ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/06/2019
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नमन भावों के मोती
दिनाँक -24/06/2019
शीर्षक-तपिश
विधा-हाइकु
1.
बढ़ी तपिश
प्रचण्ड हुए सूर्य
पेड़ सहारा
2.
ज्येष्ठ महीना
बढ़ गई तपिश
बेहाल काया
3.
तपिश शांत
रिमझिम बारिश
सावन मास
4.
बढ़ी तपिश
बेहाल हुए पेड़
आई बारिश
5.
शीतल जल
काबू करे तपिश
जिंदगी तर
6.
सूखे तालाब
तपिश हुई तेज
झुलसे पेड़
7.
बढ़ी तपिश
मुरझा गए पेड़
लू का प्रकोप
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स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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नमन🙏मंच
शुभ संध्या 🌹🍂🌹🍂🌹.🌹
विषय:-तपिश
विधा:-छंद मुक्त कविता
तपिश जो बढ़ रही है !आज,
मेरे अंतस्थल की मरु भूमि
दिन व दिन खुस्क होकर,
तिरक रही है कहीं आज ।
मन के कोने को फुहारों से,
भिगोती थी जो बातें कभी,
मन के दरीचे में अब उन
के द्वंद उमडते घुमड़ते हैं।
मन की तपिश जो कम नहीं
होती, न चाह कर भी यादों में
आ जाते हो। फिर भीग जाती हैं
आँखें आँसुओं की बरसात में ।
जड़ होती जा रही हूँ मैं अब,
एक बबूल की तरह फैलते
जा रहे हो तुम ,मेरे अंतस में
तपिश बन कर तुम बेसबब ।
स्वरचित
नीलम शर्मा# नीलू
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नमन भावों के मोती
दिनांक२४/६/२०१९"
शीषर्क-तपिश"
कर्म सबके अलग अलग
पर तपिश सबमें एक है
जीवन के ये राह बनाये
अलग एक पहचान दिलाये।
अपने अंदर के तपिश को
बस सही राह दिखाये
अज्ञानी भी ज्ञानी बन जाये
जब तपिश सही राह पर जाये।
तपिश बढी़ है आज धरा पर
बारिश ही अब हमें बचाये
तपिश कम करने को धरा की
हम सब अब एक पेड़ लगायें।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन मंच--भावों के मोती
विषय--तपिश
24/6/2019::सोमवार
मुहब्बत को तेरी तरसती रहूँ मैं
ये तस्वीर तेरी ही तकती रहूँ मैं
तपिश है तुम्हारे ख्यालों की इतनी
बिना आग के ही झुलसती रहूँ मैं
झलक इक तुम्हारी पाने की ख़ातिर
दर्पण में खुद को निरखती रहूँ मैं
रखी हो कन्हैया के होंठों पे जैसे
उसी बाँसुरी सी ही बजती रहूँ मैं
बिना फ़ाग के फ़ाग खेले ये मनवा
पुकारूँ तुझे और हँसती रहूँ मैं
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
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नमन भावों के मोती
24 जून 2019
विषय तपिश
विधा हाइकु
प्रचंड गर्मी
सूरज की तपिश
न मिले छांव
तेज तपिश
हुई न बरसात
दादुर मौन
झुलसे लोग
फसलें बरबाद
रवि तपिश
तपिश तेज
मजदूर की आह
मिल मालिक
दवाई घर
बुखार की तपिश
बीमारी लाये
स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
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नमन "भावों के मोती"
विषय :- तपिश
ताप तेरी मौजूदगी का दिल आज भी सहता है
लौट आओ वापिस दिल बार बार कहता है
तुम्हारे ही ख्यालो में दिल दिन रात रहता है
फिर भी तुम्हे नहीं लगी मेरी कोई महत्ता है
आओगी तुम लोटकर बस यह एहसास होता रहता है
तुम्हारी जुदाई के गम में आँखों से ख़ामोशी से पानी बहता है
बस ओर नहीं ,मेरे एहसासों को समझो तुम
खुदा से भी ज्यादा चाहता हूँ तुम्हे दिल चिल्लाकर यह कहता है
तुम्हारे अलावा न ही किसी को देखु मैं
बस तुम्हारा ही चेहरा आँखों में रहता है
बस आकर तुम मलहम लगा दो इस जले हुए दिल पर
जो तम्हारी जुदाई में दिन रात जलता रहता है
कभी कोई आंच न आने दूंगा तुम पर यह वादा है तुमसे मेरा
तुम्हे हमेशा अपना बनाकर रखूँगा यह तुम्हारे सम्मान में मेरा दिल कहता है
क्या बताऊ तुम्हारे जाने के बाद मेरे दिल की हालत
तुम्हारे बिना मेरा मन भीड़ में भी अकेला रहता है
स्वरचित :- जनार्धन भारद्वाज
श्री गंगानगर (राजस्थान )
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नमन मंच
तपिश
गगन के उन्मुक्त वितान पर
भूल जाये युद्ध के रक्तिम पल
तू मधुर आस जगा दे हर घट
लगी आग बुझा दे बादल
तपिश आज मिटा दे बादल
हर वल्लरी सज उठे पात पात
कोमल आशाओं का खिले गात
हो दिवस शुभ , सुहानी रात
खोया प्यार मिला दे बादल
तपिश आज मिटा दे बादल
स्पंदित हो रुधिर शिरा शिरा
मन उल्लासित भावों से हो घिरा
विवादों का मिल जाये उलझा सिरा
उलझी बात सुलझा दे बादल
तपिश आज मिटा दे बादल
रचे आशाओं के नवल प्रतिमान
सच को न ढूंढना पड़़े प्रमान
सच्चे जीवन का बस हो बखान
झूठों की साख गिरा दे बादल
तपिश आज मिटा दे बादल
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
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नमन मंच भावों के मोती को
दिनांक- 24/06/2019
शीर्षक -तपिश
सूरज की तपिश ने किया है बेहाल जग को
वारिश की फुहारों की आशा है सभी को ।
सभी करजोर विनती है रहे कर
हे देव अपनी तपिश को तनिक तो कम कर ।
वेदना की तपिश भी कोई कम तो नहीं होती ,
सांत्वनाओं की फुहारों की आशा किसे नहीं होती ।
संबंधों की भी तपिश किसको नहीं जलाती,
वही तपिश जब स्वाभाविक ऊष्मा हो तो किसे नहीं भाती ?
काश यह तपिश रिमझिम फुहारें बन जाएं
जीवन का संघर्ष प्यारी उपलब्धियों में बदल जाए ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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नमन भावों के मोती
विषय - तपिश
ये किस राह पर लोग चल रहे हैं
मजहबी तपिश में क्यों जल रहे हैं
ये कैसी खलिश आँखों में
मासूमों की मुस्कान क्यों चुभती है ?
दिलों पर नफरतों की
ये कैसी दबिश है
खुदा की बंदगी भी
मजहबी ठेकेदारों को खलती है ।
रह रह कर ये कैसी
विषैली हवा चलती है
कि अपना एक हाथ ही
दूसरे हाथ को छल रहा है ।
ये किस राह पर लोग चल रहें हैं
मजहबी तपिश में क्यों जल रहे हैं ?
प्रेम की फुहार पड़ते ही
आग का दरिया बन ,उबल रहें हैं
कोई तो जुंबिश हो दिलों में
कि आंखे देख सकें
इंसानियत कितनी नफ़ीस है ।
ये कैसी तमाज़त है
ये कैसी खलिश है
कि थम गई आदमियत की जुंबिश है ।
ये कैसी तपिश है
ये कैसी तपिश है ?
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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तपता तन
कामातुर है मन
युवा जीवन।।
तपिश बढ़ी
वातावरण क्रुद्ध
लोग विकल।।
तपते रिश्ते
मन मे थी खटास
बढ़ा विवाद।।
कैसी तपन
चलता है जीवन
शरीर गर्म।।
अंत समय
बर्फ हुआ शरीर
खत्म जीवन।।
गंगा भावुक
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