अगर प्रतिभा नही होती
इस जग का सार ना होता
कभी उद्गार होता ना
कभी आकार ना होता
सिमट जाते धरा के शीर्ष
उन्नयन राष्ट्र सीमा में
गरीबी चोट करती नित
मुखर आकार ना होता ।।
अशोक सिंह अलक
प्रतिभा की पावन बयार ।
सारे जग को रोशन करती।।
दशों दिशाओं मे यशोकीर्ति।
सूर्य प्रकाश सी प्रदीप्त होती।।
प्रतिभा की इस श्रृखंला में।
आऐ बहोत जबांज है।।
दुश्मन देश के हर कोने में।
खलबली वह मचाए।।
सर्जिकल स्ट्राइक भी।
प्रतिभा की देन है।।
अरूणिमा सिंहा विकल होकर।
ऐवरेस्ट शिखर छु पाई है।।
न मुहताज रही प्रतिभा कभी ।
जिसने लगन लगाई है।।
उसके पास प्रतिभा स्वयं आयी है।
--स्वरचित ः--
राजेन्द्र कुमार#अमरा#
प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती,
वो तो हर किसी में है होती!
बस एक जज्बा होना चाहिए,
वो किसी की गुलाम नहीं होती |
जैसे जवाहरात के ढेर में हीरा,
सबसे ज्यादा चमके, ठीक वैसे
ही प्रतिभावान की प्रतिभा,
सबसे अलग दमके |
संघर्ष से निखरती है प्रतिभा,
तेंदुलकर,वीरू,धोनी आदि ने,
अपनी प्रतिभा के बल पर ही,
मुकाम हासिल किया,
गुलजार साहब की प्रतिभा ने,
शायरी व गजलों में खूब नाम किया |
कल्पना, बछेन्द्री, सुनिता आदि की,
प्रतिभा का क्या बखान करूँ,
अपने अजब कारनामों से इन्होनें
देश को गौरवान्वित किया |
एसे बहुत से महानुभाव हैं,
जो खूब प्रतिभावान रहे,
अपनी प्रतिभा के दम पर,
हासिल जिन्होंने मुकाम किया |
हौंसले अपने बुलंद रखो,
अपनी प्रतिभा को पहचानो,
चोरों के डर के कारण,
घर छोड़ कर मत भागों |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
प्रतिभायें कुण्ठित होकर रो रहीं
देश की तकदीरें कब से सो रहीं ।।
बेहूदा कानूनों की फे़हरिस्त है
काबिल इंसान रोटी को त्रस्त है ।।
प्रतिभाओं का पलायन सतत जारी
यहाँ चुनावी सरगर्मी और तैयारी ।।
पहले थे अँग्रेज प्रतिभा से जलते थे
भारतियों को गुणी देख उबलते थे ।।
हुआ देश आजाद प्रतिभा को न पूछा
राजनीति ने दिखा दिया सबको अँगूठा ।।
हुनरबंदों को बिठा दिया एक कोने में
पकड़ा दिया कुछ लडडू उन्हे दोने में ।।
प्रतिभाओं की भूमि है पर सब बेकार
जाने कब आयेगी''शिवम" अनुकूल बयार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/09/2018
प्रतिभा का कोई मूल्य नहीं यहाँ।
मुर्ख बैठे हैं कुर्सी पर।
मुर्ख खा रहे लड्डू,पेड़े।
वो फांका करते अक्सर।
इसीलिये प्रतिभा निखारना कोई नहीं चाहता।
पढ़ना,लिखना कोई नहीं चाहता।
जब पैसे से हीं खरीदना डिग्री।
तो दिन,रात मेहनत करना कोई नहीं चाहता।।
प्रतिभाबाले सभी विदेश गये।
क्योंकि इज्जत उनकी नही यहाँ।
यहाँ तो मूर्खों का है बोलबाला।
वो सब यहाँ चलते अकेला।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
प्रतिभा की कोई कद्र नही रह गयी
प्रतिभा अब तो पैसों में बह गई
सिफारिशों से पागल भी समझने लगा
अनपढ़ भी पढ़े लिखो पर गरजने लगा
प्रतिभा दबंगो को सलाम ठोकती है
आरक्षण की बेड़िया प्रतिभा को रोकती है
वोट लेते है जाति धर्मो में बांटकर
नोकरिया देते है आरक्षण से छांट कर
आरक्षण विहीन भर्ती पर सवाल करते है
आरक्षण का जिक्र करो तो बवाल करते है
प्रतिभा अब नोटो से मिल जाती है
धुरंधरों की कुर्सी भी हिल जाती है
हिंदुस्तान में प्रतिभा की बात बेईमानी है
बाकी कलम से घिसी पिटी कहानी है।
"""कड़वाहट भरा सच""
प्रभु हमें ऐसी प्रतिभाऐं देना ,
जो परोपकार में जुट जाऐं।
स्वयं स्वार्थ सिद्धि नहीं करें,
कुछ परमार्थी भी बन पाऐं।
नहीं प्रतिभाओं का हो दमन,
मुखरित प्रतिभाऐं हो जाऐं।
नहीं कभी कुंठित हों ये यहाँ,
सदा प्रफुल्लित ही रह पाऐं।
जीवन इनका भी सुखदायक हो,
तरूणाई महिमा मंडित हो जाऐ।
पुरूषार्थ नित नव सृजन करें सब,
यह प्रतिभाऐं कुसुमित हो पाऐं।
जो हो रहा आज हे परमेश्वर,
नहीं कभी भी हो कहीं ऐसा।
जागरूकता फैले जनजन में,
कभी नहीं पलायन हो ऐसा।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जलपाईगुड़ी बांग्ला (पश्चिम बंगाल)
का एक छोटा सा गाँव
घर था उसका
टीन से घिरा एक छाँव
जूते भी ना पहन पाये
ऐसा था पाँव
दोनों पैरों में थे छ:छ:ऊँगलियाँ
बाधा नहीं बना
बना ये बरदान
छोटी उम्र से ही मन में ली थी ठान
खाली पाँव दौड़ लगाती
जीती थी मन में लिए अरमान
एशियन गेम्स के लिए
हुआ उसका चुनाव
बेटी को दौड़ लगाते
देखने की थी माँ की चाव
मिलजुलकर दूरदर्शन का
किया था इंतजाम
दौड़ी थी एक बेटी
लिये दाँतों में दर्द
घोषणा हुई-
सुन बेटी का नाम प्रथम स्थान
माँ पागलों की तरह रो पड़ी थी
बिलख बिलखकर दौड़ी थी
प्रभु के पास
किसी को नहीं थी
इतनी बड़ी उपलब्धि का विश्वास
एथलीट "स्वप्ना बर्मन "है
प्रतिभा का एक नाम
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
कर संघर्ष
निखरती प्रतिभा
ऊँचा मुकाम
2
कला प्रतिभा
अद्भूत चित्रकारी
मन मोहती
3
ये वैज्ञानिक
विलक्षण प्रतिभा
करते खोज
4
घूमता चाक
प्रतिभा कुम्हार की
लेती आकार
5
जग में नाम
पहचान प्रतिभा
मिले सम्मान
6
मेरी प्रतिभा
जरिया है कविता
शब्दों के मोती
स्वरचित-रेखा रविदत्त
प्रतिभा पर चल रही आरी,
आरक्षण बनी बीमारी,
आरक्षण हटा के देखो,
कौन होगा किस पर भारी l
हिंदू से मुस्लिम बांटा,
अब हिन्दू ही हिंदू से छांटा l
वोटो की ये राज निति है,
क्यूँ कोई नहीं समझ ये पाता l
पार्टी बाजी खेल रही है,
जनता दुःख झेल रही है l
नोट दे देकर वोट ले रहें,
क्यूँ ये समझ नहीं रही है l
कब तक चलेगा गन्दा खेल,
अब तो बनालो सब एक रेल l
मष्तिष्क जरा चालू करो तुम,
प्रतिभाशाली से करो हेल मेलl
देश को आगे लाना होगा,
आरक्षण हटाना होगा l
कौन है अब कितने पानी मे,
ये हमें ही बतलाना होगा l
90प्रतिशत धक्के खा रहें,
40प्रतिशत बॉस बन गये l
ना होती आरक्षित सीटे,
कैसे वो अधिकारी बन गये l
करू विनती मै सरकार से,
प्रतिभा ना काटो तलवार से,
आरक्षण ख़त्म करो अब,
विकसित करलोहिंदुस्तान को l
कुसुम पंत
स्वरचित
प्रतिभा की भी
बड़ी लाचारी .
कानून अंधा
जनता गूंगी .
धरे हाथ पे हाथ .
प्रतिभा प्रकट करे लाचारी .
..डिग्री की अब कहा हैं मोल .
अर्थ व्यवस्था डांवाडोल
चारो ओर गड़बड़ घोटाला .
प्रतिभा पे झाडू मार डाला .
..
मीरा पाण्डेय उनमुक्त
प्रतिभा को परिभाषित कर पाऊँ
हर एक मे होती अलग प्रतिभा
किसी में कम किसी में ज्यादा
होती है सबमें कोई न कोई प्रतिभा
जाति-धर्म से ऊपर हैं प्रतिभा
अवसर मिले हर एक प्रतिभा को
हर एक प्रतिभा फूले फले
न हो प्रतिभा किसी की कुंठित
न चढें कोई प्रतिभा राजनीति का भेंट
हर एक मे हो इतनी प्रतिभा
खोज निकाले राह वो अपना
ताकि हर प्रतिभा हो सके प्रस्फूटित
और छू सके आकाश की बुलंदिये को
बेटा बेटी हो या कोई भी जाति धर्म
मिले सबको समान अवसर
प्रतिभाओं की नही हैं कमी
बस देना है हमें एक अवसर।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
"पंडित नहीं फकीर हो जाइए
रूकिए मत निरंतर चलते रहिए"
प्रतिभा गति है,निरंतर गति है
निरंतर सृजन से ही आदमी के भीतर मस्तिष्क, बुद्धि, प्रज्ञा और प्रतिभा पैदा होती है।
इसलिए विश्राम मत कीजिए
प्रतिपल, रोज निरंतर गति करते रहिए
उमंग, उत्साह से
जन देश जग का पथ
आलोकित करते रहिए"
@शाको
स्वरचित
पगधूल भी उनके चमकते,
हर तथ्य का सम्मान है,
पा ही लेते मंजिलें वो,
जो प्रतिभावान है,
...
है जगत सिरमौर वो,
जिनमें अनोखा ज्ञान है,
हर कदम-हर घड़ी,
उस शख्स का सम्मान है,
....
कुछ को बनाया प्रकृति ने,
कुछ स्वं श्रम कर बढ़ चले,
हार कर उनके श्रम से,
आयी योग्यता मिलने गले,
......
है योग्यता की आज हम,
चाँद तारों पर चले,
इन्ही योग्य लोगों से,
विज्ञान है फुले-फले,
......
है प्रतिभा सारस में,
कि उड़ता गगन को पारकर,
नीर और क्षीर को कलकंठ,
करता अलग कुछ जानकर,
.......
है योग्यता चातक में,
पूरे बरस दहता है,
एक बूंद पानी पीकर,
प्यासा बरस भर रहता है,
......
है योग्यता सज्जन को अगर,
तो तेज है अभिमान है,
दुर्जनो की योग्यता तो,
मौत का सामान है,
स्वरचित.....राकेश,
प्रतिभा... प्रभु का दिया अनुपम वरदान
जो आपको भीड़ से अलग करता है
सभी मै कुछ गुण विशेष होता है
गुण को समझ उसको तराशना होता है
प्रेरणा, लक्ष्य ललक जोश निष्ठा समर्पण
इनकी ज्योत जलानी पड़ती है
तब प्रतिभा निखर सामने आती है. जो
अंतरिक्ष मै पहुंच
वहां रिसर्च करते है
समुद्र की गहराइयों मै उतर
खजाने ढूंढ लाते है
जंगलो मै घूम घूम
जानवरों की जिंदगी को समझाते है
शिखर की चोटी पर पहुंच
विजयी पताका फहराते है
सीमा पर पहरा दे
जांबाजी से रक्षा करते है
कला के क्षेत्र मै
अद्भुद सृजन करते है
गायन का जादू बिखेर
सबको मंत्र मुग्ध करते है
खेलों मै इतिहास रच
देश का मान बड़ाते है
ये सभी यूँ ही,परचम नहीं फहराते है
प्रतिभाशाली ही तारे जमीं पे लाते है
प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती
वो कीचड़ मै भी कमल खिला पहचान अपनी देती
'दबंग' जैसी पिक्चरें बनती रहनी चाहिए
प्रतिभा की रश्मिया चमकती रहनी चाहिए
पर.... आरक्षण की सेंद ने
प्रतिभा का गला रेता है
प्रतिभाशाली डिग्री लिए घूमता है
निम्नधारी सोने मै तुलता है
एकता से जुड़ हमें सरकार जगानी चाहिये
नियमों मै संशोधन करा प्रतिभाओं को पल्ल्वित करना चाहिये
स्वरचित सीमा गुप्ता
अजमेर
हर शख्स में है प्रतिभा अपनी, कोई ना कोई
सबकी होती है आभा अपनी, कोई ना कोई
मिले मंच, सहयोग और हो ललक खुद में तो
फिर हस्ताक्षर दिखाता अपनी, कोई ना कोई
मैं कातिल हूं अपनी बेटी की प्रतिभाओं का
मैंने हरदम उसकी उंगली को पकड़ें रखा
मर्यादा की बेड़ियों में जकड़े रखा
चाहा कभी उसने आसमान छूने को
तो पर कतर डाला मैंने
मुखरित हो गर कुछ कहती थी
जुबां पे लगा दिया ताला मैंने
थिरके पांव कभी जो उसके तो
कांटे बिछा डाला मैंने
भावनाएं जब उसने कागज़ पे उतारें तो
पन्ना-पन्ना तक जला डाला मैंने
खुद को सम्हाल ही ना सके वो
इतना बेबस कर डाला मैंने
थी प्रतिभा उसमें कि वो उड़ सके
मुखर वक्ता हो समाज से जुड़ सके
या फिर वो कर सकती थी नृत्य साधना
या शायद फिर साहित्य साधना
आखिर कब मैंने उसे इंसान समझा
रखा तिजोरी में, दूसरे का सामान समझा
मैंने जो किया उसका मुझे रंज है
मेरी बेटी अपनी प्रतिभा के साथ
अपने पति की तिजोरी में बंद है
मेरे इन कृत्यों पे मनन किजिए
निखरे प्रतिभा उनकी जतन किजिए
संस्कृति और सभ्यता की दुहाई देकर
इन बेटियों की प्रतिभा का ना हनन किजिए
स्वरचित- अभिमन्यु कुमार
विधा -"हाइकु"
घर की बेटी,
प्रतिभा की है,कली,
कलम हाथ,
प्रतिभाओं से,
अभावों में खिलती,
जग में छाती
प्रतिभा कक्षा ,
शिक्षक दें ,आकार,
खिलता फूल,
प्रतिभा से ही
नवसृजन करें
खुशियाँ पायें
रंग-बिरगें,
प्रतिभा के फूलों से,
महकें कक्षा,
गुरु -ग्यान में,
उभरती प्रतिभा,
नवसृजन
भष्ट्राचार के,
चुभते शूल तब,
प्रतिभा रोये,
'स्वरचित' "सुनीता पँवार" उत्तराखण्ड , (११/०९/२०१८
विधा-हाइकु
प्रतिभा कैसी
जो सम्मान मिला न
मलिन मन
अपना देश
प्रतिभा तिरस्कार
पलायन हो
परदेश भू
प्रतिभा का सम्मान
उत्कर्ष हुआ
मन वेदना
प्रतिभा स्वदेश की
पर उत्थान
काश! कि मान
स्वभूमि की प्रतिभा
देश उड़ान
स्वरचित आरती ओझा
सबके विचार अलग हैं
इन सोच और विचारों के
भँवर में उलझा है जनजीवन
कोई भी इसको पूर्णतया
संतुष्ट नहीं कर सकता
बस मन बहला सकता
फिर भी
जितना हो सका किया
परिणाम जो भी हो
कुछ लोगों ने..परिवर्तन से
परहेज ना किया
निरंतर परिवर्तन का ही
परिणाम हैं जो हम हैं आज
हम आत्मनिर्भर हैं परिवर्तन से
हम गौरवशाली हैं परिवर्तन से
हम स्वावलंबी हैं परिवर्तन से
बड़ी विडम्बना हैं आज
कि मौका नहीं मिलता
प्रतिभाओं को निखरने का
प्रतिभाएँ तरसती हैं
प्रतिभाएँ कोसती हैं
प्रतिभाएँ रोती भी हैं
क्यों हो रहा है ऐसा
जहाँ प्रतिभा को मौका नहीं
वो घर वो समाज वो राष्ट्र
क्या करेगा विकास
अगर नहीं हुआ परिवर्तन
तो,होगा विनाश ही विनाश
स्वरचित :- मनोज नन्दवाना
ठहरी है न ठहरे गी कहीं ,
करती स्पर्श आसमानों का ।
मत आँको कम क्षमता उसकी ,
देख प्रतिभा के मुहानों को ।
जिसने पहचानी है प्रतिभा ,
होती मंज़िल हासिल उसको ।
करता उन्नति वह अविरल है ,
कौन कह सके गाफ़िल उसको ।
निखरे प्रतिभा उद्यम से है ,
रहता आलस्य कोसों दूर ,
क़दमों को सफलता है चूमे ,
विफलता जाती हो मजबूर ।
प्रतिभा पर काई लगे नहीं ,
मस्तक के पारस घिसने दो ।
निखरे गा रंग प्रतिभा का ,
मेहँदी की भाँति पिसने दो ।
मूर्द्धन्य कुशल ओजस्वी जो ,
देखो उसका इतिहास गवाह ।
आँधी तूफ़ान सहे तन पर ,
तब ऐश्वर्य का विलास बना ।
स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )
ठोठी अफसर खा रहे हलवा
कब तक प्रतिभाओं को मारोगे
एक दिन सब कर देगे बलवा
राजनीतिकों ने जातिवाद से
इन्सानों को बांट दिया
एकता की पूरा संस्कृति को
जड़ो से ही काट दिया
एससी-एसटी ,ओबीसी मे
इन्सानो को छांट दिया
आरक्षण की शिला के निचे
प्रतिभाओं को पाट दिया
स्वरचित
प्रकाश ( p.k.)
प्रिय पुत्री पीहू और जूही के नाम पत्र:-
मेरी प्रिय पीहू और जूही
तुम अपनी प्रतिभा को पहचानो,
करने आई क्या काम!
जगत में यह तुम जानो,
चंचलता और हठ के आगे,
करो न जीवन व्यर्थ।
जिंदगी में जलती बुझती,
दोपहरी की आँच होगी,
साहस-विश्वास बनाये रखना,
सुनना तुम अपनी अंतरात्मा की पुकार,
तुम्हीं तो हो माता-पिता के
सपनों का आधार,
रखना ममत्व तुम जन-जीवन पर,
श्रद्धा गुरुजनों पर,
हो सहानुभूति निर्बलों पर,
प्रकृति के लिए आस्था अपार।
है तुमको आशीर्वाद हमारा,
विकास की रवि-रश्मियों से,
हो भरा हर पथ तुम्हारा।
कोई भी झंझावात हो
या हो तिमिर की बेला
पाँव तुम आगे बढ़ाना
कामना की धूल उमड़े
समझना न खुद को अकेला
साधना की लहरियों पर
प्रेरणा जीवन्त हो
महत्वाकांक्षी मन तुम्हारा
सदा यह करे प्रयास
स्वच्छ हो वातावरण
सारे विचार स्वस्थ हों
बनो न्याय की प्रबल समर्थक
तुम नई प्रेरणा का स्रोत बनो।
"स्वरचित"
पथिक रचना
चंद हाइकु
स्वार्थी दुनिया
मृणशिल्प कारक
रोती प्रतिभा
मन मरता
राजनीतिक स्वार्थ
प्रतिभा हर्ता
किधर खोजूँ
अपरंपार जग
प्रतिभा युक्त
अज्ञानी मन
पत्थर शिल्पकार
प्रतिभा सन
बुझता मन
आरक्षण की मार
खोती प्रतिभा
स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विधा -"हाइकु"
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