श्री राम नाम का कर लें गुणगान।
शुभ आदर्श जिनके भले महान।
पालन किया सदा मर्यादाओं का,
निज आदर्शों पर चले श्रीसुजान।
हमें उदाहरण सद ग्रंथरामायण।
श्री रामचंद्र जी के आदर्शों की।
नहीं ऐसा पात्र इस ग्रंथ में कोई,
सबकी छवि है शुभ आदर्शों की।
हम श्री राम के आदर्शों को देखें।
सीता जी की मर्यादाओं को देखें।
लखन ,शत्रुघन ,श्रीभरत सुलक्षण,
लिपटे सभी भ्राता आदर्शों में देखें।
नहीं कोई पात्र अछूता आदर्शों से,
सबने स्वनामधन्य चरितार्थ किऐ हैं।
जय धन्य धन्य श्री राम रघुनंन्दन,
तुमने सभी धर्मकर्म परमार्थ किऐ हैं।
जब तक यह सब संसार रहेगा।
श्रीराम नाम सदा भवतार रहेगा।
मर्यादापुरूषोत्तम आदर्श राम के,
ग्रंथ रामायण जगताधार रहेगा।
स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
हर एक परिस्थतियों में ढलना ।
अपने आदर्श को नही भूलना ।
सम्हालना और खुद सम्हलना ।
हुये रामायण में राम थे ।
जिनके अनोखे काम थे ।
किये हासिल वो मुकाम थे ।
अमर आज भी उनके नाम थे ।
आदर्शों में मान है ।
जीवन की शान है ।
मानव कल्यान है ।
समाज का उत्थान है ।
पढ़ो पाठ आदर्शों का ।
ऋषियों के परामर्शों का ।
यह सत्य ''शिवम" उत्कर्षों का ।
जीवन नाम संघर्षों का ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/09/2018
चंचलता, अल्हड़पन मे , होती बदनाम जवानी है ।।
-1-
जिसने लक्ष्मण रेखा समझी, निज कुल का सम्मान रखा ।
रूप सादगी मे भी उसके, चन्दा जैसा रूप बसा ।।
मान और सम्मान सदा, गाता उनकी कुरबानी है ।
चंचलता, अल्हड़पन मे , होती बदनाम जवानी है ।।
-2-
पंख पसारे जिस बाला ने, पूरे नभ को चहा नाँपना ।
कुछ खोके कुछ पाया उसने , मुश्किल से है घाँव झाँकना ।।
संगम है ये संस्कार का , ख्वाहिश बनी कहानी है ।
चंचलता, अल्हड़पन मे, होती बदनाम जवानी है ।।
-3-
सीधापन और अल्हड़पन ये, कभी नही अति से ज्यादा हो ।
जितनी जिसकी जहाँ जरूरत, बस प्रयोग करना आता हो ।।
सीख लिया जिसने अद्भुत गुण, वो ही दिखे सयानी है ।
चंचलता, अल्हड़पन मे, होती बदनाम जवानी है ।।
राकेश तिवारी " राही "
मेरी नस नस में समाए हो
परमात्मा हो आप मेरे
जो मात-पिता बन
मेरे जीवन में आए हो
जो मिले संस्कार
सब आपकी ही देन है
करूं ज्ञान का प्रकाश में
किसी के अंधियारे जीवन में
दु:ख मिटा कर भर दूं
खुशियां सबके मन में
देदो आशीर्वाद मुझे भी
कर्म कुछ अच्छे कर जाऊं
ज्यादा नहीं तो थोड़ा सही
बच्चों के लिए में भी
आदर्श बन जाऊं
अनुराधा चौहान (स्वरचित)
हाइकु
1
आदर्श नारी
रखे मर्यादा मान
नहीं बेचारी
2
आदर्श "राम"
पत्नी का परित्याग
प्रजा का मान
3
आदर्श पथ
बाधायें तोड़कर
हों अग्रसर
4
मान सम्मान
आदर्श परिवार
महत्वाकांक्षी
5
आदर्श राष्ट्र
सु सामाजिक स्तर
उच्च विचार
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
🍁
आदर्शो को ताक पे रख,
देते रहे बयान।
सैनिक के शव देख भी उनको,
आती नही है लाज॥
🍁
नेताओ तुम शर्म करो,
रखो देश का मान।
सेना से तुम ना करो,
घठिया रोज सवाल॥
🍁
दुश्मन ले जाते थे देश के,
सैनिक का सर काट।
तब तो तुम चुप बैठे थे अब,
माँग रहे हो जवाब॥
🍁
आज देश का पुण्य दिवस है,
करो भगत सिंह को याद।
हुई सर्जिकल स्ट्राइक भी ,
दिन है बडा महान ॥
🍁
आजादी के बाद देशो को,
नेता ने लूटा है।
आदर्शो को ताक पे रखक,
जनता को लूटा है॥
🍁
शेर कहे आदर्श वही,
जो रामराज्य हो जाता।
फिर मेरा देश पुनः यह,
विश्व गुरू कहलाता ॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
मां
पिता
निःस्वार्थ
सुख दुख
जीवन दर्श
आदर्श स्वरूप
पूजनीय चरण
ये
स्वच्छ
निर्मल
कल कल
आदर्श रूप
जीवन संघर्ष
अनुशासित सरि
हे
सीधी
सुघड़
पीपीलिका
क्षणिक जान
भोजन तलाश
आदर्श प्रतिरूप
स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
बच्चों से कहानी दूर हुई
न होती आदर्शों की बातें
न सुनते अब अच्छी बातें
नेता अभिनेता दो चेहरे
अब बच्चों को दिखते हैं
किन आदर्शों की बात करें
जो कहीं नहीं अब दिखते हैं
जो घटता सबके समक्ष
अनुसरण उसी का होता है
बदल गई है सोच सभी की
बदल रहे संस्कार तभी
आदर्शों की बातें करना
बीते कल की बात हुई
भरा हुआ इतिहास हमारा
कितने अनुपम आदर्शों से
वर्तमान में कौन प्रभावित
होता है इन आदर्शों से
बातें करते सब बडी़ बड़ी
सबको अपने सुख की पडी
अब कोई नहीं उन आदर्शों पर
कहां खरा उतरता है ?
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
छूत अछूत के पाखंडो से,
जात धर्मों के झगड़ों से,
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,
रोज हो रहे बलात्कारों से,
हो रहे नारी पर घरेलू हिंसाओं से,
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,
रोज बिलखती भ्रूणों की चित्कारों से,
दहेज की आग में जलती चिताओं के अंगारों से,
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,
घर परिवार के झगड़ो से,
हो रहे भाई भाई के बंटवारों से,
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
हो लक्ष्मण जैसा भाई
ऐसा तो सिर्फ सतयुग में संभव
कलियुग में नही रघुराई
आज हमें दो ऐसा जीवन
विवेक न खोये हम अपना
अर्थ को अनर्थ न लगाये
हो आचार सुन्दर अपना
अनादर न करे हम किसी का
दो प्रभु तुम ऐसी काया
आस्था रखें हम सभी धर्मो पर
उपहास न उड़ाये हम किसी का
उदारता से भरा हो अपना जीवन
अनुचित व्यवहार न करे हम किसी के साथ
अज्ञान का तम हट जाये हमारा
इस नश्वर जगत में
कुछ भी नही हमारा
पूर्ण नही है कोई मानव
पर मानवता न भूल जाये हम
सहयोगी बने हम एक दूसरे का
वैमनस्य न हो आपस में हमारा
कृतज्ञ रहेंगे प्रभु हम तुम्हारा
ऐसा आर्दश जीवन करो हमारा।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
मै अपनाना चाहती हूँ,
उसके जैसे ही देश हित में,
फांसी पर लटकना चाहती हूँl
पर सोचती हूँ की क्या होगा फांसीचढ़ कर,
करार देंगे मुझे भी देश द्रोही,
क्युकि सच्चे लोग देश द्रोही करार दिए जाते हैँ,
बिना वजह ही फांसी चढ़ाए
जाते है,
नमन करू मै वीर शहीदों को,
दिया था सीना अपने हिंद को
पर शायद कुछ हम ना दे पाए,
जो न्योछावर हुवे अपने हिंद को l
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित
देहरादून
उत्तराखंड
स्थिति प्रकाश की यथा तिमिर में,
तथा सृष्टि में शुचितम आदर्श,
दिव्य गुणों के पराकाष्ठा-गत,
दृश्य भव्य चारु प्रतिमान।
सारतत्व चैतन्य सृष्टि का,
सृष्टि विराट के सर्वभूत
अभिव्यक्ति चेतनता एवम,
शुचितामय आदर्श विचार की।
आदर्श अभौतिक आत्मिक शुचि,
निकट धर्म की जड़-सूत्रों के,
जनक दिव्यता के मानव में,
अनुकरणीय बनाते उसको।
आदर्श मूल्य नैतिकता के,
संस्कार कर्तव्य समाहित,
सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य चारु,
आदर्श बनाते दिव्य मनुज को।
--स्वरचित--
(अरुण)
विधा-हाइकु
१
गुम आदर्श
लड़खड़ाते पग
भटके राह
२
फैले खुशियाँ
मानवता आदर्श
मिलती सीख
३
आदर्श प्रेम
है वासना रहित
निश्छल भाव
४
गुरू आदर्श
दूर अज्ञानता
मिलती राह
५
आदर्श बहू
बाँधती परिवार
मिलता मान
स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/9/18
शुक्रवार
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