Wednesday, September 12

"साँसें "12सितम्बर2018

तन मिला है तुझे धर्म शाला, 
साँसें मिली मनको की माला, 
जिस दिन मनके बिखर जायेंगे, 
लग जायेगा दिल पर ताला l

जीवन है साँसों की माला, 
ईश ने अब तक इन्हे संभाला, 
काहे दम्भ करे मानव तू, 
ना जाने कब जाये निकाला l

साँसों पर है प्रभु का ताला, 
छोटे बड़े मोती की माला, 
तू सोचे है श्वाँसे तेरी, 
यूँ ही तुमने जीवन गवां डाला l

संग तेरे कुछ ना जायेगा, 
खाली हाथ पड़ा रह जायेगा, 
काहे जोड़ी इतनी धन माया, 
ज़ब साँसों का संग छुट जायेगा l

साँसें तेरी शाश्वत नहीं हैँ, 
मृत्यु तेरी अटल सत्य है, 
क्यों नहीं रोक पाते साँसें, 
जो कहते हैं ईश्वर मृत है l

जिस दिन तेरा जन्म हुवा है, 
मरना भी निश्चित हुवा है, 
मृत्यु केवल सच्ची मित्र है, 
बाकी सब मोह -माया है l

अंत समय ज़ब आता है 
हा हा कार मच जाता है, 
विज्ञान कहे भगवान नहीं है, 
क्यूँ एक साँस भी नहीं दे पाता है l
कुसुम पंत 
स्वरचित 


मां शारदे वर दे ।
ज्ञान ज्योति का 
दीप जला कर 

पथ प्रशस्त कर दे 
माँ शारदे .।..
विषय /सांसें ः
सांसे है तो आसें 
आशा के दम पर 
यह जीवन है 
हर पल सांसों 
को पीता है 
मैने जीवन को 
ही जीता है 
सांसों के आने
जाने में 
जीवन की सारी
गीता है ।
स्वरचित /उषासक्सेना

चंद सांसे बख्शी जो खुदा ने, 
जी लो इसमें सब जी भर के, 
भरोसा नहीं इन सांसों का, 
कब ये अचानक फुर्र हो जायें |
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
मत पालो ये है बेकार झमेला, 
मौत भी ज्यादा क्या ले जायेगी, 
चंद सांसे ,वो ही तो लेकर जायेगी|
जब तक ये सांसे चलती है ,
जग में सब अपना सा लगे, 
जब सांसे थम जाये तब, 
सब कुछ सपना जैसा लगे |
जब तक सांसे चलती हैं ,
तब तक शरीर भी साथ है, 
जब सांसों से टूटे रिश्ता फिर, 
ये बस मिट्टी और राख है |
हर एक सांस का हिसाब वहाँ है, 
अच्छे कर्म कर कुछ पुण्य कमायें,
पूँजी यही अन्त में साथ जायेगी, 
इन सांसों का मूल्य चुकायें |
स्वरचित *संगीता कुकरेती *



सांसे जबतक रहेगी तन में।
हम निरंतर चलते रहेगें।।
भी न पीछे मुडकर देखे।
आंधी और तूफानों में।।
आगे बढ कर पथ को चूमे।
लाहौर मे भी लहराऐ तिरंगे।।
कुटिल और द्वेष नीत से।
हमको भले खुब हरा दो।।
हमतो बाप रहे सदैव ।
बच्चों की हठ को मानते है।।
वीर जबांज हमारे बन्धु ।
हरदम आन शान मान रखतें।।
अंतिम सांसे भी तक कभी।
कतई न परवाह करते।
धन्य हो धन्य हो वीर सैनिकों।।
निरंतर पथ पर बढते रहना।
जब सांसे हो तन मे ।
भारत का मान रखते रहना।।
---स्वरचित:-
राजेन्द्र कुमार#अमरा#
१२/०९/२०१८@०९:००



गर्म है कुछ हवा कोई तूफान है।
सासं बेचैन है दिल भी हैरान हैं।


सियासत से उम्मीद कैसी करूँ। 
यहां रहनुमा तक तो बे-ईमान है। 

घुट रही जान हैं जल रहा है बदन। 
आग का धुएं का सारा सामान हैं। 

बुतों से है कुछ सियासत को डर। 
गिराके है देखते क्या बची जान हैं। 

बदल रहे हैं किस कदर हैरत बडी। 
ये वही है जमीं ये वही आसमान है। 

विपिन सोहल


सांसें पर हाइकु,
१/ हवा का खेल,
सांसों का अनुभव,
कर हिसाब।।
२/शब्दों में प्राण,
सांसों की वसीयत,
जो कर सके।।
३/सांसों की मीरा
जीवन भर गाई,
गीत पनीले।।
4।
जीवन दीप,
तिल तिल जलता,
सां सों की बाती।।
5/जीवन घाटी,
सांसे ढोती है पीडा़,
जीवन गीला।।

स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना6266278791


सांसो के मध्य संवेदना का सेतु ढहते हुए देखा,
एक वट वृक्ष को गिरते हुए देखा,
जिसकी थे हम टहनी ,शाखा,
अपनी आंखों से दहते हुए देखा,
सांसो के मध्य संवेदना का सेतु ढहते हुए देखा,
जिस वृक्ष की छांव मे हम खेले कूदे बड़े हुए,
उस वृक्ष को सांसो से जूझते हुए देखा,
सांसो के मध्य संवेदना का सेतु ढहते हुए देखा....

पिता को समर्पित एक छोटी सी कोशिश.......
स्वरचित:- मुकेश राठौड़


 गीत...सांसें,
...................
जब कभी अकेले में,

तेरी याद आती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
....
सोये-सोये तारों को,
दिल के छेड़ जाती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
.....
तू जो संग मेरे है,
तनहा ही मेला हूँ,
याद में तेरे तो,
मेले में अकेला हूँ,
...
जिंदगी के दांव पर,
बाजी दिल की खेला हूँ,
ख्वाहिशें है तेरी-मेरी,
चाहतों का रेला हूँ...

चाहतों की लब पे मेरे,
प्यास बढ़ जाती है...

एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
.....
बिन तुम्हारे जाने-जाना,
जिंदगी अधूरी है,
मिलना तेरा-मेरा अब,
प्यार में जरूरी है,
...
तुमको प्यार मुझसे है,
फिर ये कैसी दूरी है,
अब मिलन में जाने-जाना,
कैसी मजबूरी है.....

याद तेरी पल-पल,
आंखों को रुलाती है,

एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
.....
हम तुम दीवानों का,
एक शहर बसायेंगे,
जग के दीवाने सारे,
ढूंढ-ढूंढ लायेंगे,
....
प्रेम का ही घर होगा,
प्रेम का विछौना,
प्रेम से ही महकेगा,
घर का कोना-कोना....

वही अब हमारे होंगे,
जिसको जग सताती है....

एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....

जब कभी अकेले में,
तेरी याद आती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....

...स्वरचित.....राकेश पांडेय,




सांसें मिली हमें प्रभु से उपहार में,

हम इनसे कुछ तो अच्छा कर लें।
जीवन ज्योति मिली अखिलेश्वर से,
हम क्यों नहीं इसे मंगलमय कर लें।

पता नहीं कब डोर टूटे सांसो की,
परमार्थ परोपकार भी कुछ करलें।
जिस देश समाज में जन्म लिया है,
उसके हित में कुछ तो सेवा कर लें।

जन्म दिया मातपिता ने हम सबको,
सुसंस्कृति उत्तम संस्कार दिऐ हैं।
गुरूजनों ने शिक्षित किया है हमको,
सामाजिक प्राणी हमें बना दिऐ हैं।

ऋणी रहेंगी यह सांसे सब अपनी,
जब तक ये अंतिम सांस चलेगी।
भारतमाता की सेवाओं में ही मेरी,
ये आजीवन जीवन ज्योति जलेगी।
स्वरचितः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



विषय--- "साँसे"
मुक्तक--1

मुझे बक्शी है जो साँसे वही उपकार तेरा है।
धड़कता दिल है सीने में वही आधार तेरा है।।
करूँ में वंदना तेरी तू ही भगवन निराला है।
कभी क्या में चुका पाऊँ चढ़ा ये भार तेरा है।।
**********************
2
अजब सी तेरी रहमत है मुझे साँसे जो बख्शी है
वही मेरी खुशी है अब मिली रहमत जो तेरी है
इसी दुनियाँ में रहकर के किसी के काम आ जाऊं।
किसी के काम आ जाऊं यही रहमत भतेरी है।।
3
अगर साँसे नही मिलती भला जीवन ही क्या होता।
सभी रिश्ते सभी नाते पिता- माता ही ना होते।।
भरी दुनियाँ कहाँ मिलती अपनी पहचान क्या होती।
मुझे दुनियाँ में भेजा वो तेरे उपकार ना होते।।
कुसुम शर्मा नीमच


साँस लेने का कोई 
उपाय ना था 
फिरभी जिए 
ऐ मेरे दोस्त बता! 
तुम कैसे जिए? 

नौ महीने माँ के
गर्भ में तुम थे 
ऐ मेरे दोस्त बता!
तुम कैसे जिए?

जब माँ के गर्भ से 
बाहर आया 
तत्क्षण तुमने साँस ली 
इससे पहले तुमने
कभी साँस नहीं ली थी 
ऐ मेरे दोस्त बता!
तुम कैसे जिए?

"माँ की साँस से ही 
काम चलाया तुमने "

ऐ मेरे दोस्त बता!
किसने तुझे 
साँस लेना सिखाया ?

ना किसी गुरु के पास गया 
ना किसी पाठशाला में गया 
ऐ मेरे दोस्त!
फिरभी तुमने साँस लिया।

ऐ मनुज! 
जब तुमने साँस लिया 
तब क्या कर दिया? 

उजड़े हैं वसुधा के उपवन 
घायल है आकाशगंगा 
उदास हवाएं बह रही है 
बिखरा है जगत का आशियाना 

ऐ मेरे दोस्त बता!
तुम किस तरह से साँस लेते हो ?

यहाँ तो सब 
मृत्यु की पंक्ति में खड़े हैं 
जाने कब साँस रूक जाए 
फिरभी जाने क्यों 
तुम साँस फेंकते हो ?

मौत आती है 
साँस रूक जाती है 
ऐ मेरे दोस्त !
साँस का रूकना निश्चित है
जब का साँस का रूकना निश्चित है 
तब साँस फेंकते क्यों हो?

छोड़ो साँस लेने का ख्याल 
तुझसे पूछता हूँ 
इस शरीर में साँस कब तक ठहरती है ?

"साँस थम जाना तो जीवन का स्वभाव है"

हवा में दुर्गंध है 
फूल से चुभन------देखता जा 
है चारो ओर साँस रूकी 
ऐ जीवन वाले------------ देखता जा

मोक्ष, निर्वाण, सत्य, यथार्थ को 
साँसों की गर्मी से जला दी--------आज के मनुज ने 

उदास हैं आसमां के तारे------- साँस फेंकने वाले------ देखता जा 

एक पुराना मद्रफ़न जिसमें दफ्न हैं -----------कई साँसें 

मुर्दा - मुर्दा आदमी -ऐ मनुज साँस लेता जा 

एक तेरी ही साँस ---------नहीं है रूकी 
हांफते हुए भी ---------साँस लेता जा 
नभ अलग----- वसुधा अलग - सबका दम ------देखता जा ।

@शाको 
स्वरचित



साँसे पिछली साँसों के
पल पल का हिसाब मांगती 
हैं/अच्छे थे या बुरे बस यादों
में रमना चाहती हैं

कुछ साँसे बचपन की यारों के संग गुजारी थीं 
आते ही याद यारों की बल्लियों सा दिल उछलता है
और साँसे हल्के से मुस्करा जाती हैं

वो मौहल्ले की बंद खिड़कियों की हल्की सी झिरी से झाँकते नयनों से
नजर मिलाने को दिल की धड़कन थाम कर घंटो टकटकी लगाये रखने की
आहट जब सुन जाती है
साँसे फिर गजब कर जाती
मानो अभी निकल कर दिल से हाथों में आ जायेंगी

अब साँसे कुछ कुछ थमने 
सी लगी हैं 
दिल की गलियों में कुछ उम्र की झुर्रियाँ सिमटने लगी हैं
अब साँसों को थामना पढ़ता है
बार बार सहारे तलाशने पढ़ते है

आगे चलती जरुर हैं
पर भागती पीछे हैं

डाःनीलम कौर



ांसों से जीवन चलता
सांसों बिन जीवन थमता
साॅसें ही जीवन प्रमाण 
सांसों में ही बसते प्राण। 

सांसों की तीव्रता, रक्त दवाब
सांसों की तीव्रता, ढहते ख़्वाब 
सांसों का धैर्य, ही केवल
हर बात का सुन्दर ज़वाब। 

सांसों के लिए ही तो, करते योग
सांसों में ही बसता, भयंकर रोग
साॅस तन्त्र ही यदि, बिगाड़ जाये 
तो रह जाते हैं सारे भोग।


1
ये चंद सांसें
दिखाती सपना
हैं मूल्यवान
2
साँस छूटती
शरीर है बेजान
बनता राख
3
सांसें हैं सेतु
जीवन है सागर
मिले साहिल
4
अंतिम सांस
बुझे जीवन ज्योत
सब उदास
5
थमती सांसें
शहीद है जवान
तिरंगा ऊँचा
स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/9/18





उनिंदी पलकों में तेरा मुस्कुराना
है सांसों की सरगम को छेड़ जाना

महकती फिजाओ में है 
तेरे सांसों का एहसास 

हौले हौले से आकर बहकाना
बात तो कुछ है कोई खास

छुप छुप कर मुझे ना भरमाना
तेरे सांसों से बंधी है मेरी सांस 

स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला


टुकड़ो में बंट गई जिंदगी,अरमानों का हो गया फैसला।
तुमको पिया की सेज मिली,समझो सबेरा हो गया।।


हम थे मुसाफिर बस यहाँ, तुमको ठिकाना मिल गया।
खुशियाँ भी मेरी बीन लो,दिल आज दुआ ये दे रहा।।

तारे न टूटो अब यहाँ ,दामन ये जर्जर हो गया।
तुम तो छुपे थे सीने में,पर्दा ये क्यों अब उठ रहा।।

सुबहा को ढूंढे हम कहाँ, दिल-ए-खाक अंधेरा हो गया।
सांसें मुकम्मल बच गईं,सीना ये क्यों अब फट रहा।।
( मेरे कविता संग्रह अनुगूँज की कविता "जिंदगी ")



"साँस साँस चंदन हो गयी"

मैं ! नीर भरी कुंज लतिका सी 
साँस साँस महकी चंदन हो गयी
छुई अनछुई नवेली कृतिका सी
पिय से लिपटन भुजंग हो गयी!

अंगनाई पुरवाई महके मल्हार सी 
रूप रूप दर्पण मधुबन हो गयी
प्रियतम प्रेम में अथाह अम्बर सी
मन राधा सी वृंदावन हो गयी!

गात वल्लरी हिल हिल हर्षित सी
तरूवर तन मन पुलकन हो गयी
मैं माधवी मधुर राग कल्पित सी
मोहनी मूरत सी मगन हो गयी!

अनहद नाद के उर की यमुना सी
मन तृष्णा विरहनी अगन हो गयी
भीगी अलकों की संध्या यौवना सी
दृग नीर भरे नैनन खंजन हो गयी!

मैं! विस्मित मौन विभा के फूल सी
बूंद बूंद घन पाहुन सारंग हो गयी
बिंदिया खो गयी मेरी सूने कपोल 
साँसों से महकी अंग अंग हो गयी!

---डा. निशा माथुर (स्वरचित)



साँसो का हिसाब रखता है ईश्वर 
उसने ही तो गिनकर दी है साँसे 

प्रकृति को सहजने हेतु, 
मानवता का बनाये रखे सेतु, 
किन्तु हम इन्हे फिजूल ख़र्च करते 
है निंदा मे , 
स्वयं के आकलन से डरते है, 
इसलिए साँसो को व्यर्थ बहाया करते है 
इतनी शायद सांसे न होंगी 
जितनी मनुष्य को आसे होंगी 
वो भी सदा दूसरो से,
कि वो कसौटी पर खड़ा उतरा 
है या नहीं, 
इन्ही
आस स्वयं से हो स्वयं 
तभी साँसो का मूल्य चुकाया 
जा सकेगा... 
स्वरचित 
शिल्पी पचौरी




यह दुनिया सांसो की मेला
प्रतिदिन यह चले अकेला
ये चले तो हम चले
ये रूठे तो जग छूटे

जब ये धीरे चले
फलक तक डर सताये
सांसो का आना जाना ही है
जीवन मेला का झमेला

चलते रहे हमारा सांस
हम रखें स्वास्थ्य का ध्यान
फास्ट फूड से करें परहेज
बस खाये घर की थाली

मिलते रहे हमें शुद्ध सांस
हम करें कुछ प्रयत्न
पेड़ के बदले पेड़ लगाये
तभी मिले हमें शुद्ध सांसे

काम कुछ ऐसा कर जाये
बच्चे बुढ़े रखे याद
सांस रहे या जाये हमारा
कभी ना करे हम प्रतिघात

सब कुछ मिले बाजार में
बस नही मिलते सांस उधार
जो मिले हैं चार दिन का मोहलत
क्यों उसे ब्यर्थ गँवाये हम।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।




जीवन के इस रंगमंच मै 
साँसे जीवन खेल रही है 
खेल खिलौने झूले मेले 
मस्ती से ये जीवन ठेले 
उल्लासित सी इस दुनिया की 
खिलती साँसे, झूम रही है 
प्यार दीवाने कलरव करते 
एक दूजे की साँस वो बनते 
प्रियतम से इस मिलन घड़ी की 
मदहोश सी साँसे, झूम रही है 
घोर अँधेरा, पसरी रातें 
निर्दोष मासूम सी कन्याएं 
करहाती, कुम्हलाती फिजायें 
जीवन मै कुछ पाने के सपने पर 
थमती साँसें, चीत्कार रही है 
खतरनाक मोड़ों पर जाते 
डरावनी ज़ब मूवी देखते 
कौतुहलता के इस मंजर मै 
अवाक सी साँसे घूम रही है
बूढ़ी साँसे सहारा चाहतीं 
माँ भारती निज गौरव चाहती 
उम्मीदों के इस चितवन की 
हाँफती साँसे, पुकार रही है 
पेड़ हमारे जीवन दाता 
पेड़ से ही साँसों की सरगम 
हरियाली की आस मै इनकी 
घुटती साँसे, चीख रही है 
ज़ब तक चलती साँस जिंदगी 
नहीं पूछता कोई कभी भी 
दो पल प्रेम की चाहत मै 
बेजान ये साँसे घूम रही हैं 
ज़ब तक साँस है जिलो जिंदगी 
हरपल खुशियाँ बटोरो जिंदगी 
सतकर्मो के पथ पर चलते 
आलोकित साँसे फैल रही है 
मुक्ति बोध को आगे रख कर 
प्रभु से साँसे जोड़ो हर पल 
तारतम्यता के इस मंजर मै 
समाहित साँसे गूँज रही है 
स्वरचित सीमा गुप्ता 
अजमेर 




मैं तेरे दिल में रहता हूं, तू मेरे दिल में रहती है

तेरे बिन जी न पाऊंगा, मेरी धड़कन ये कहती है
बिना तेरे मेरे हमदम मेरा जीवन अधूरा है
तेरा ही नाम ले -लेकर मेरी सांसें ये चलती है

कैसे मिले सकूं, है बिस्तर पर कांटे मेरी
बुझ रहें हैं दिन, सुलग रही है रातें मेरी
मुद्दत हुई बिछड़े अब लौट भी आओ
अब तो गिनती की बची है सांसें मेरी

हर तरफ देखो तो ढ़ेर लगा है लाशों का
मुर्दा जिस्म घूम रहे बोझ लिए सांसों का

मैं भी खड़ा हूं इस भीड़ में अपने विश्वास लेकर
जहां तुम खड़े हो अपने खूबसूरतअहसास लेकर
कभी फुर्सत मिले तो बाहर आकर देखना ज़रा
कितने बैठे हैं दर पर फटी पुरानी सांस लेकर

भर नजर देखा तूने तो निखरती चली गई
तेरे छूने से अपने-आप में सिमटती चली गई
क्या तपिश थी तेरे आगोश में ऐ साजन मेरे
गर्म हुई सांसें और मैं पिघलती चली गई

स्वरचित- अभिमन्यु कुमार




ना सोच जिन्दगी के बारे में इतना 
जिन्दगी सहज हैं ...
कभी खुशी कभी गम का तराना 
चार दिन का महज है...
जी लो जी भर के इस जीवन को तुम
कभी उदास ना हो
अभी वक्त है तो गुजार लो प्यार से
ये वक्त कल हो ना हो
निरंतर चलने का नाम है जिन्दगी 
रूकना तो मौत है
ना जाने कितनी साँसें है बाकी इसमें
कहना मुश्किल बहुत हैं
जो मिली चंद साँसें उपहार में रब से
हँस कर गुज़ार ले
यूँ ही हँसते- खेलते बीते दिन चार यार
अपना जीवन सँवार ले
जिन्दगी जीना कहाँ आसाँ यह बात 
समझना सहज हैं
एक-एक साँस खरीदते चलिये यहाँ
यही मसला महज हैं

स्वरचित :-मनोज नन्दवाना


प्रेम का रंग
"साँसों की धड़कन,
बैचेन मन,


विरह चित,
घुटन में है ,साँसे 
झुलसे तन,


तड़फे दिल,
पलायन में यादें,
धड़के साँसे,


रोता दिल,
क्षणिक मिलन को , 
साँसें पुकारे,


छोडे़ हाथों से, 
मिलन की आस में,
चलती साँसे,

दर्द में साँसे,
तस्वीरों को निहारे
बहते आँसू,


दिल तोड़ते,
स्मृतिमय सागर,
साँसे झुलसे, 

"सुनीता पँवार" 'देवभूमि उत्तराखण्ड' 



ईश्वर ने दिया अनमोल उपहार
यह सांसों का चोला जीवन हार
टिक टिक करता यह चलता है
जीवन का भान कराता है
सांसो का झमेला घर का तबेला 
जीवन एक घड़ी है 
सहेजें इसे अमोला
सांसो की टिक टिक
जैसे घड़ी की टिक टिक
तरु पर निर्भर जीवन का मेला 
ना मारो इस पर तेज हथौड़ा
सांसो हेतु लगाओ वृक्ष
होते ये प्राणवायु प्रदाता 
नहीं यह जीवन हरता 
चारों ओर हरियाली करता
असंख्य जीव निर्भर इस पर 
मत काटो वृक्षों को प्रतिपल
साजो-सामान बिना संभव जीवन
पर सांसो बिना असंभव जीवन

स्वरचित - आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद




एक साँसें ही तो हैं जो
जन्म से साथ चलती हैं
बिना रुके बिना थके
और जब तक जीवन है 
तब तक चलती रहती हैं।

इनसे ही तो गतिमान है
प्राणियों में जीवन सृष्टि में
एक क्षण भी ठहर जाएं
बेचैनी कसमसा उठती है

जब हम पर कोई दबाव हो
तब ये और उफनती हैं
अपमान हमारा होता है
लेकिन गर्म ये हो जाती हैं।

प्रायः ये शीतल होकर
हमारे अंतस्तल को शीतलता
और शान्ति दे जाती हैं।

इन साँसों का तार टूटने से
सब कुछ टूट जाता है
साथ कोई नहीं होता और
जग से नाता छूट जाता है।

जिसने सुख में दुःख में
दामन मेरा कभी न छोड़ा
उनको कैसे छोड़ दूँ मेरा
जमीर गवाही नहीं देता
मेरा सर्वस्व ले लो परन्तु
मेरी साँसों को यम लौटा दो।

---बृजेश पाण्डेय 'विभात'
स्वरचित



मेरे भारतवर्ष में बेटियो का 
हर कदम पर उपहास क्यों बनाते है

किसी बहु की कोख में बेटी की साँस रोकने वाली को
किसी की सास क्यों बताते है
ऐसा कर्म करने वाले नर और नारी से हर रिश्ता तोड़ना चाहिए
इतने घटिया लोगो से हर किसी को मुंह मोड़ लेना चाहिए
जब कोई इंसान बेटी को जन्म लेने से पहले ही मार देता है
समझलो समाज उस दरिंदे को दिल से ही उतार देता

स्वरचित -विपिन प्रधान


******
थकी सी जिंदगी, दम तोड़ती सी साँस...
वृद्धाश्रम में माता-पिता सँजोये बैठे हैं आस...
होठों के छोर पर समेटे हुए करुण मुस्कान...
हैं नयन के कोर भींगे बिल्कुल विरान...
हर घड़ी है स्वर बदलती जिंदगी...
हर डगर है अब हुई सुनसान ...
बहुत गुबार लिए है मन,दुखों का बबंडर है...
पूछती है निगाह, हर मिलनेवाले से
कहाँ ठहरें...?
कभी हम छाँव थे उनका...!
हमारी राह में क्यों धूप जलती है...?
बची है साँस जो अब,
आँसुओं में वह पिघलती है...
बनाया बीज से था वृक्ष, 
माता -पिता वह माली है...
फले जब तुम...! 
उन्हें क्यों छोड़ आये हो जले वन में...?
बहुत धीरज समेटे बैठे हैं, 
वो लाचार निर्जन में...
क्या आता नहीं एक पल को भी, विचार तेरे मन में ...?
अभी तक बाँह फैली है, 
हृदय में साध बाकी है...
न जाने क्यों और कैसे...! 
इतना निठुर हो जाता है इंसान...
आखिर कहाँ खो जाता है उसका ईमान...?
न जाने क्यों युवा अपने बुढ़ापे से,
हुए अनजान बैठे है...
गलत है फिर तो...! 
जो अपने बच्चों को अपना मान बैठे हैं...?
स्वरचित
"पथिक रचना"




विधा -हाइकु
विषय -"साँस"
(1)
योग विज्ञान 
"साँसों" की साधना से
सिंचते प्राण
(2)
रोता विकास
प्रदूषण के हाथों
घुटती "साँस"
(3)
तन के घर
"साँस" मिट्टी का घड़ा
आखिर फूटा
(4)
क्षणिक साथ
"साँसों" की लहर पे
प्राण सवार
(5)
क्रोध का वेग
टूटा विवेक बाँध
उफनी "साँस"
स्वरचित
ऋतुराज दवे





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