कृष्ण तेरी छवि है न्यारी,
श्यामल रंग तन धारी,
दिल पे मार गई कटारी,
तेरी महिमा जग से न्यारी!
नामों का मैं क्या बखान करूँ,
कभी तु मटकी फोड़ कहलाये,
चित चोर नाम से गोपियां पुकारे,
लल्ला, लल्ला, यशोदा माँ बुलाये!
मोर मुकुट सिर पर साजे,
पीताम्बर तन पर लिपटाये,
टेढी नजरे, लट घुँघराली
बंशी खूब मधुर तु बजाये !
नमन हमारा स्वीकारो प्रभु,
क्षमा करना तुम भूल हमारी,
तुम बिन कौन हमारा जहां में,
जगत के तुम्हीं हो पालनहारी!
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दोहे -
मेरी आज की प्रथम रचना -
१-
हानि धर्म की अत्यधिक, बढ़े व अत्याचार ।
करने को प्रभु संतुलन, लेते तब अवतार ।।
२-
अंतहीन से थे सभी, मथुरा-कष्ट अपार ।
त्राहि-त्राहि थी मच रही, जीवन था दुश्वार ।।
३-
भगिनी को ले जा रहा, कंस स्वयं रथ हाँक ।
जामाता भी संग में, तात-प्रीत को आँक ।।
४-
कंस मगन रथ हाँकता, बड़ा सहेज-सहेज ।
गूँजी वाणी शून्य से, तभी अचानक तेज ।।
५-
आनेवाले समय का, कंस जान ले हाल ।
पुत्र-देवकी आठवाँ, होगा तेरा काल ।।
६-
सुन वाणी आकाश की, होकर क्रोधित कंस ।
पल में रिश्ते भूल सब, कर बैठा विध्वंस ।।
७-
बहन देवकी-संग पति, डाले जेल विशेष ।
कंस निर्दयी ने तनिक, कमी रखी न अशेष ।।
८-
ऐसे में प्रभु विष्णु ने, लिया कृष्ण-अवतार ।
मात-पिता तब जेल में, करते सोच-विचार ।।
९-
प्रकट हुए प्रभुजी तभी, बेड़ी दीं सब खोल ।
उठा लाल पितु तब चले, सुन भगवन के बोल ।।
१०-
यमुना चढ़ी विकट बड़ी, वर्षा अति घनघोर ।
कृष्ण-चरण छूकर तभी, शान्त नदी विभोर ।।
११-
वासुदेव फिर आ गए, गोकुल-कन्या संग ।
पुन: बेड़ियाँ लग गईं, हुआ पुराना ढंग ।।
१२-
बजी बधाई नंद-घर, हुए यशोदा लाल ।
सोहर मँगल गँव रहीं, जन्मे हैं गोपाल ।।
१३-
गोकुल खुशियाँ मन रहीं, दिन-आज नंदगाँव ।
दर्शन कर होते मगन, देख लला के पाँव ।।
१४-
मना रहे उत्सव सभी, क्या बड़े और बाल ।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जै कन्हैयालाल ।।
#
"स्वरचित"
- मेधा नारायण,
क्रम सं -१
३/९/१९, सोमवार.
मेरी आज की दूसरी रचना -
विधा - दोहा छंद
शीर्षक - "कृष्ण"
दोहे -
१-
मैया मिट्टी खा रहा, नन्हा भाई श्याम ।
बोले आकर मात से, दाऊजी बलराम ।।
२-
वो तुतलाकर बोलना, मीठे-मीठे बोल ।
डपट-मातु सुनकर लला, तुरत दिए मुहँ खोल ।।
३-
तीनलोक मुख में दिखे, भ्रमित यशोदा मात ।
उठा लाल ले अंक में, सहलातीं फिर गात ।।
४-
मैया माखनचोर की, पकड़ो अपना लाल ।
चोरी कर मक्खन लिया, संग थे ग्वाल-बाल ।।
५-
माँ ने बोला कृष्ण है, छोटा-छोटेहाथ ।
छींका कैसे छू सके, ग्वाल-बाल के साथ ।।
६-
लला बाँध ओखल दिए, ग्वालन की सुन बात ।
संग-सखा दूजे किशन, देख अचम्भा मात ।।
#
"स्वरचित"
- मेधा नारायण,
(रचना क्रम सं - २)
३/९/१८, सोमवार
"""""""""""""""""
(1)
*
मन साधत है यही साधना,
क्या ऐसा हो जाये।
कृष्ण सा इक नन्हा बालक,
मेरे भी अँगना आये॥
हा..मेरे भी अँगना आये...
**
पग पैजनीया बाँध के मुझको,
मईया कह के बुलाये।
ठुमक-ठुमक कर चाल चले ,
मोरा मन हर्षित हो जाये।
हा..मोरा मन हर्षित हो जाये....
***
साँवला मुख हो लट घुँघराले,
नैना हो कजरारे ।
कमर करधनी हाथ मे बेरवा,
मोर पँख सिर बाँधे॥
हा..मोर पँख सिर बाँधे....
****
पूरे घर को सिर पे उठा ले,
माखन मिश्री खाये।
भारत की हर मात ये सोचे,
काँन्हा मेरे घर भी आये॥
हा..काँन्हा मेरे घर भी आये...
*****
दिव्य रूप हो छंटा निराली,
बरबस ममता जागे।
''शेर'' कहे काँन्हा इस जग के,
अदभुद पुत्र हमारे ॥
हा..अदभुद पुत्र निराले.....
****
***
**
*
स्वरचित..Sher Singh Sarraf
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
प्रेम का सागर लिखूं! या चेतना का चिंतन लिखूं!
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं!
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं!
कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं।
चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।
देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणि का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।
वासुदेव का तनय लिखूं या नंद का गोपाल लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
नदियों-सा बहता लिखूं या सागर-सा गहरा लिखूं।
झरनों-सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
आत्मतत्व चिंतन लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।
स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं! कितना लिखूं!
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!
भारत की बिगड़ी तकदीर बनाओ ।
कितने कंश दुर्योधन हैं
द्रोपदी की लाज बचाओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
कितनी महाभारतें उलझीं
आकर उन्हे सुलझाओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
बहुत काज करने हैं तुमको
तनिक भी देर न लगाओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
कभी अति वृष्टि कभी अल्प वृष्टि
आकर इन्द्र को समझाओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
नही वो दूध दही की नदियाँ
आकर गऊ धन को बढ़ाओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
मित्र सुदामा सी दोस्ती को
फिर से चरितार्थ कराओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
भारत भूमि तुम्हे पुकारे
''शिवम्" दस्तक फिर दे जाओ ।
कान्हा फिर एक बार आओ ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/09/2018
देख नयनन हरषे जात है
ओ कान्हा तेरी मधुर मुरलिया
मेरे मन को मोहे जात है
#जन्माष्टमी का पावन दिवस
यह उमंग नयी लात है
आओ मिलकर खुसियां बांटे
यही संदेश देत जात है
अधर्म पर धर्म के जीत का
राह ये दिखात है
ओ नटखट कान्हा सांवरे मन
तेरी ओर निहारे जात है ।।
03-09-2018
#दीपमाला_पाण्डेय
रायपुर छ.ग.
बाजे नन्द के घर पे बधाई,
आज हैं जन्मे कृष्ण कन्हाई।
चहुँ दिश अजब सी मस्ती छाई
सृष्टि ने माया अजब रचाई
समझ में कंस के कछु नहीं आई
घटा काली काली घिर आई
बाजे नन्द के घर पे बधाई
आज हैं जन्मे कृष्ण कन्हाई।
सकल जग पावन हुइ तर जाई
आरती सब देवन मिल गाई
जमुना जी दर्शन पा हर्षायीं
सगुन सब मंगल देत दिखाई
बाजे नन्द के घर पे बधाई
आज हैं जन्मे कृष्ण कन्हाई।
अनुराग दीक्षित
कृष्ण कन्हाई जगन्नाथ स्वामी।
भूमि भार हरन हरी जनम लिया,
द्वैपायन द्वापर युग नाम दिया।
द्वय मात के मन की विश्रांति
काल कुठार कलित क्रांति
गोकुल,मथुरा,वृंदावन वास,
कान्हा जनम लियो कारावास।
भादौ मास तिथि कृष्ण अष्टमी
घनघोर घटाऐं बादल बिजुरी।
मध्य निशा विभु प्रगट हुए,
जमुना गहरी पथ बद्ध हुए।
प्रागट्य पुनीत मे बंध खुले,
वसु-देवकी उर से तार मिले।
विधि ने जमुना जल पंथ दिया,
किल्लोल धार में शेष छत्र किया।
गोकुल पहुँचाए कृष्ण बनवारी
हर्षित नंदालय यशोदा महतारी।
समुची वसुधा आनंद विभोर
हिय ताप मिटायेगे कृष्ण किशोर।
जसोदा के प्यारे नंद के दुलारे,
धेनु के व्हारे गोप-गोपीयों के प्यारे।
नंद के आनंद, जय कन्हैया लाल की,
गौ गोपी ग्वाल की जय कन्हैया लाल की।
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स्वरचित:-रागिनी शास्त्री 🌿🌿🌿🌿🌿
दाहोद (गुजरात) 🌱🌱
🌱🌱
कान्हा तेरी मुरली का जादू
कान्हा तेरी मुरली का
ये कैसा जादू ??
चाहकर भी कर न पाएं
हम खुद पर क़ाबू।।
तेरी मुरली की मधुरधुन
करे मुझे गुमसुम।
पहले मैं जाऊं.. पहले मैं..
छिड़े गोपियों में जंग।।
भाता है तेरा नटखटी भाव
बतियाने को करे मन।
सब कुछ किया वश में मेरा
तन मन और धन।।
या तो बन्द कर मुरली वादन,
या बनो आँखो के उद्दीपन।
जन्माष्टमी के इस पावन पर
हर लो सब के व्याकुल मन।।
सुखचैन मेहरा # 9460914014
अर्पण तुझको मेरी भावना
सब की बेड़िया काटने वाले
जन्म लिया तूने जेलों मै
इस जग की लीला देखने वाले
लीलाधर बनके लीला करे
मृत्यु को हाथ मै रखने वा ले
पल पल जीवन बचाते चले
कंस तो चाल पर चाल चले
हर चाल पर मात वो देने लगे
कभी पूतना कभी तृणावर्त
बकासुर वध वो करने लगे
गैया चराते कभी गगरी चटकाते
माँ यशोदा के आँगन मै बढ़ने लगे
माखन चुराए कभी चीर चुराए
चितचोर अपनी चोरो मै गिनती लिखाने लगे
अलौकिक जगत के वो प्राण प्रणेता
माँ यशोदा को विराट रूप बताने लगे
कभी बन गए बाल रूप माँ यशोदा की गोदी मै समाने लगे
बकासुर जरासंध कंस को मार
वो प्रयोजन सार्थक करने लगे
रास रचांय गोपियों के संग
विवाह रुक्मणि से करने चले
पर प्रेम को शाश्वत किया राधा ने
वो राधेश्याम कहलाने लगे
विप्र सुदामा की गरीबी मिटाने
भात छीन के खाने लगे
हृदय लगा सब देकर उन्हे
मित्रता का पाठ पढाने लगे
जग को चलाने वाले गोपाला
अर्जुन के रथ के सारथि बने
गीता का ज्ञान सुनाकर वो
मुक्ति का मार्ग बताने चले
नन्ही सी कलम मै ताकत नहीं
जो तुझको समझा पाउ मै
सोलह कलाओ के गिरधर मेरे
हाथ जोड झुक जाऊ मै
हाथ जोड झुक जाऊ मै
स्वरचित मेरे कान्हा
सीमा गुप्ता
अजमेर
31.8.18
धूम मची चहुँ ओर।
गोपियों की मटकी फोड़ने।
आये नंदकिशोर।
चोरी करते माखन,दधि।
ग्वाल,बाल संग में लेके।
घर,घर में सब कहते हैं।
कब आओगे माखनचोर।
भादो की अंधियारी रात थी।
कारगर में था पहरा।
वासुदेव,देवकी कैद वहाँ थे।
आधी रात समय सुनहरा।
जन्मे उसी वक्त थे कृष्ण।
माँ,बापू हर्षाये।
कारागार का ताला खुद टुटा।
वसुदेव कृष्ण को यशोदा घर पहुंचाये।
नन्द,यशोदा के घर देखो।
कृष्ण,कन्हैया आये।
गोकुल की गलियों में सब हर्षाये।
मिलकर सब जश्न मनाये।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
….......................….
फिरसे घटायें छाई कारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।
वर्षे घटायें मतवारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो,
तू जो हंसे है कान्हा,
तो हँसता जग सारा है।
दुख में तेरे ही तो,
रोता जग सारा है।।
ऐसा कुछ कर दो कान्हां...
जीवन रंग भर दो कान्हां....
खुल के हँसे ये सृष्टि सारी....
सुनो न नाथ मुरली बजा दो...
फिरसे घटायें छाई कारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।
वर्षे घटायें मतवारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।।
....
तेरे लिये ही कान्हा,
भोजन बनायी हूँ।
माखन,मिश्री और हलवा,
का भोग लगायी हूँ।।
अब तो तुम आओ कान्हां....
भोजन कर जाओ कान्हां....
छुधा मिटालो अपनी सारी....
सुनो न नाथ मुरली बजा दो...
फिरसे घटायें छाई कारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।
वर्षे घटायें मतवारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।।
....
तेरे लिये ही कान्हां,
मैं सज कर आयी हूँ।
पैर महावर हाथे,
मेहँदी लगायी हूँ।।
तुम मिलने आओ कान्हां....
मुझको हर्षाओ कान्हां.....
है इतनी अरज वनवारी....
सुनो न नाथ मुरली बजा दो...
फिरसे घटायें छाई कारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।
वर्षे घटायें मतवारी,
सुनो न नाथ मुरली बजा दो।।
....
....राकेश
बुलाये संसार रे ,
कर दे तू , हमारा बेड़ापार रे ....
माँ धरती कहती है , कान्हा आजा
हो रहा , अत्याचार रे
तू आजा और , करजा बेड़ा पार रे ...
सुन कान्हा..........
लड़किया कहती है , कान्हा आजा
हो रहे , बलात्कार रे ,
तू आके दिखलाजा चमत्कार रे ।।
सुन कान्हा .........
जनता कहती है , कान्हा आजा
हो रहे , अत्याचार रे
तू आके दिलाजा इंसाफ रे
सुन कान्हा........
माई बाप कहते है कान्हा आजा
हो रहे हम , लाचार रे
तू आके समझा दे हमारा प्यार रे
सुन कान्हा...........
गरीब कहता है कान्हा आजा
हो रहे , बेरोजगार रे
तू आके दिलाजा रोजगार रे
सुन कान्हा ...........
नारी कहती है कान्हा आजा
करो ना , अब विचार रे
तू आके दिलाजा राधासा प्यार रे
सुन कान्हा.............
"जसवंत" कहता है कान्हा आजा
करता सुदामा , जैसी आस रे
तू आके बना दे मुझे यार रे
सुन कान्हा ................
नन्द के घर आये लाल....
सब नाचें बिन सुरताल....
नन्द के घर आये लाल....
सब नाचें बिन सुरताल.....
सांवली सूरत घुंघराले बाल...
देख जग सारा भया निहाल.....
कोई बिहारी कहे कोई गोपाल...
सब नाचें बिन सुरताल.....
कोई कहे इसे पलना झुलाओ....
कोई कहे मेरी बाहों में लाओ....
दरस को हर मन बेहाल....
सब नाचें बिन सुरताल.....
इक सखी ने टीका लगाया....
दूसरी आके चंवर झुलाया....
ममता में सब हैं निढाल....
सब नाचें बिन सुरताल.....
माँ यशोदा जाए बलिहारी....
नन्द भी जैसे सुरति बिसारी....
नाचे बिन ढोलक ताल....
सब नाचें बिन सुरताल.....
जय यशोदा माँ नन्द दुलारे....
तेरी छवि देख सब मन हारे....
मुझको भी तू ले संभाल....
सब नाचें बिन सुरताल.....
'चन्दर' को अपने रंग रंग दो...
स्याम ही रंग में मुझको रंग दो....
आ बसो मन गोपाल....
मैं नाचूँ बिन सुरताल....
मन मेरा भी बेहाल...
आयो नन्द के लाल....
मैं नाचूँ बिन सुरताल....
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
०३.०९.२०१८
तू ही माला, तू ही मंतर, तू ही पूजा, तू ही मनका
का कहूं के, मेरी धड़कन पे गंगाजल सी प्रीत लिखूं।
तू है मधुबन में, तेरे होठों पे मुरलीया, सुन मेरे कान्हा
कैसे मै इन अधरों पर मेरे मधुर बंसी का गीत लिखूं
तू है सृष्टि में,तू है दृष्टि में,तू ही काल कराल वृष्टि में
मैं निपट अकेली इस जग में कैसे विरह की पीर लिखूं।
मन की बंजारन, तन से भी हुई बावरी, ओ मेरे मोहन,
कैसे अपनी भूली सुधियों पे बहते अश्रु का नीर लिखूं ?
तू ही रैन, तू ही मेरा चैन, तू ही मेरा चोर, तू चितचोर,
बहती यमुना सी आकुल हदय की कैसे धीर अधीर लिखूं।
तू ही नंदन, तू ही कानन, तू ही वंदन, सुन मेरे कृष्णा,
कैसे मेरे निर्झर नैनो मे तेरे दर्शन की पीर अधीर लिखूं ?
तू ही सासों में, तू ही रागों मे, तू ही संगीत तू मेरे साजो में,
का कहूं की,मुरलिया सुध बुध बिसरायी मै हार या जीत लिखूं।
छू लूं तेरे चरण,मै तेरी शरण, कर आलिंगन,ओ मेरे श्यामा।
तेरे होठो की बंसी बन बन जाउँ और शाश्वत संगीत लिखूं। ......डा. निशा माथुर –( स्वरचित)
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला
सबको सताए माखन चुराए
फिर भी भाये, ये गोपाला
मिश्री से मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
गोपियाँ नहाती यमुना के तीर
कान्हा चुराए छिप उनके चीर
देदो कान्हा कहे बृजबाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
मुरली मधुर बजाते श्याम
राधे के मन को भाते श्याम
खूब रचाये वो रासलीला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
गोपियाँ देती माँ को उलाहना
गुस्से में,कहे कान्हा छोड़ सताना
मना ले पल में ऐसा मतवाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
सखा संग निकले कर बहाने
जाऊँ मैया में गैया चराने
घूमे वन-वन बन ग्वाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
मोर मुकुट सर पर विराजे
बंसी अधरों पर साजे
है मोहन मोहिनी सुरतवाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
नटखट नटवर गगरी फोड़े
गोपियों पर नित डाले डोरे
गोपियां को भाये वो दिलवाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
मोहन की मीरा भी दीवानी
मोहन प्रीत में दर-दर छानी
पी गई वो विष का प्याला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
बालपन में ही किये कमाल
पूतना मारी,कंस को मारा
काली नाग का वध कर डाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
वासुदेव देवकी का लाला
नंद - यशोदा ने है पाला
सबका दुलारा मुरलीवाला
मिश्री सा मीठा नंदलाला
सबके दिल पर जादू डाला।।
स्वरचित
गीता लकवाल
कविता क्रमांक-01
आज तो मैया यशोदा बाँध ओखल से कृष्ण मुरारी को।
समझा रही चौसठ कलाओं के ज्ञाता मदनमुरारी को।
दिखा उंगली, समझाए मैया कान्हा तू क्यों मोहे इतना सताए।
घर का भंडार भरा माखन से फिर क्यों माखन तू चुराए।
तेरे कारण कान्हा गोपियाँ नित उलहना मोहे देती जाए।
यशोदा अपने लल्ला को माखन क्यों नही खिलाए।
आज तो हद कर दी तूने कान्हा, डपटते हुए कहे मैया।
घर में ही कर दी चोरी सब सखा, संग बलदाऊ भैया।
यशोदा महल में बलदाऊ, सखा छिप सब मैया की डांट सुन रहे।
भोली सूरत बना वो चित्तचोर मईया यशोदा को समझा रहे।
मेरी प्यारी, भोली मैया मैंने माखन नहीं खायो है।
वो तो ग्वालबाल सबने बरबस मुख पर लपटायो है।
रही बात गोपियों की मैया वो तो मोह से बहुत जलती है।
ताके बालकों से मैं दिखूं सुंदर इसलिए झूठी डाँट खिलाती है।
त्रिलोकीनाथ प्रेमवश मैया से यह बंधन स्वीकारत हैं।
देखत हरि की बाल लीला देवगण मन ही मन हर्षावत है।
स्वरचित- रचना क्रमांक-01
©-सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)
इस धरा में आ जाओ
घृणा और व्याभिचार को
प्रेम से सिंचित कर जाओ
हे मुरारी! फिर से एक बार
वंशी की राग छेड़ दो
हवाओं को भी वही
संगीत सुना दो
हे जड़ चेतन के स्वामी
धरती फिर से तुझे पुकार रही
मानवता भी अब शरमा रही
जीवों के मन में प्रीत का
बीजारोपण कर दो
हे कृष्ण! तुम फिर एक बार
इस धरा में आ जाओ
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
*कृष्ण शाम-भोर है।*
*कृष्ण बुद्धि, कृष्ण चित्त,*
*कृष्ण मन विभोर है॥*
🌹
कृष्ण रात्रि, कृष्ण दिवस,
कृष्ण स्वप्न-शयन है ।
कृष्ण काल, कृष्ण कला,
कृष्ण मास-अयन है॥
🌹
*कृष्ण शब्द, कृष्ण अर्थ,*
*कृष्ण ही परमार्थ है।*
*कृष्ण कर्म, कृष्ण भाग्य,*
*कृष्ण ही पुरुषार्थ है॥*
🌹
कृष्ण स्नेह, कृष्ण राग,
कृष्ण ही अनुराग है।
कृष्ण कली, कृष्ण कुसुम,
कृष्ण ही पराग है॥
🌹
*कृष्ण भोग, कृष्ण त्याग,*
*कृष्ण तत्व-ज्ञान है।*
*कृष्ण भक्ति, कृष्ण प्रेम,*
*कृष्ण ही विज्ञान है॥*
🌹
कृष्ण स्वर्ग, कृष्ण मोक्ष,
कृष्ण परम साध्य है।
कृष्ण जीव, कृष्ण ब्रह्म,
कृष्ण ही आराध्य है ॥
🌹
*कृष्ण राम, कृष्ण श्याम,*
*कृष्ण ही सुनीत है।*
*कृष्ण ही, उर में समाए,*
*ये ही प्रेम रीति है।।*
*॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥*
स्व रचित -
आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
मथुरा से गोकुल यात्रा
मथुरा मे अष्टमी आयी,
आज जन्म लियो कन्हाई,
छः बालक कंस पटकाई,
सातवां रोहणी गर्भ समायी l
आठवे में आये कृष्णा,
मिट गयी वसु कीतृष्णा
बंदी गृह के ताले खुल गए,
दोनों खुशी से हिल गये l
अंक उठाये लल्ला को,
चले गोकुल यात्रा को,
जमनाजी उफने भारी,
तब हरी चरण पखारी l
योगनिद्रा में गोकुल भारी,
सो गये सब नर नारी,
पहुँचे वसु नन्द महल मे,
देखी भोली कन्या प्यारी,l
कन्या को अंक उठाया,
लल्ला को पुचकारा,
फिर इश को पुकारा,
दिया उनको आभारा
कुसुम पंतस्वरचित
प्रस्तुति 2
राधे राधे
हुए प्रकट धरती जब रोयी।
आशा की परिभाषा खोयी।।
अपनों ने जब लज्जा धोयी।
बीच सभा में अबला रोयी।।
बचपन कीन्हा माखन चोरी।
पनघट कीन्हा जोरा जोरी।।
मधुर तान मुरली की तोरी।
जैसे खींचे मोटी डोरी।।
नटवर नागर हे गिरिधारी!।
प्राणप्रिया वृषभानु दुलारी।।
गौ सेवक गोवर्धन धारी।
रास रचयिता रासबिहारी।।
योगीश्वर श्रीपति अघनाशी।
पार्थ सारथी हे! विश्वाशी।।
मित्र सुदामा के सुखराशी।
अधमी पापी महाविनाशी।।
प्रेम विवश सारे ब्रजवासी।
सुन्दर रूप दीन्ह इक दासी।।
दर्शन कर अँखियाँ ये प्यासी।
ऋषि मुनि ज्ञानी हुए हुलासी।।
मातु पिता आनन्दित कीन्हा।
सारा ब्रजमंडल सुख लीन्हा।।
वनिता सरिता ललिता चीन्हा।
सबको प्रियवर-सा सुख दीन्हा।।
पाप नियंत्रण तुमने कीन्हा।
युद्ध महाभारत रच दीन्हा।।
सभा बीच चतुराई कीन्हा।
ताना-बाना सब बुन दीन्हा।।
वीर धुरंधर पापी मारे।
धर्म हेतु राक्षस संहारे।।
गीता का उपदेश दिया रे।
कर्मयोग का ज्ञान दिया रे।।
---बृजेश पाण्डेय 'विभात'
"कान्हा"
नमन....
बहुत प्यार करते है कान्हा को हम.......
कसम चाहे ले लो, कसम चाहे ले लो
कान्हा की कसम
बहुत प्यार करते है.....
कान्हा की बातों में महक जितनी
हमको को भी तुमसे मोहब्बत है उतनी
कसम चाहे ले लो कान्हा की कसमम्म..
बहुत प्यार करते......
जब टोली लेकर माखन चुराता
माखन के संग तू दिल भी चुराता
माखन क्या तुझपे जां भी लुटा देंगे हम म
बहुत प्यार......
गोपियों संग जब तू करे अठखेली
हर अदा तेरी लगती अलबेली
गोपियों पे तू क्यों करता सितम म म
बहुत प्यार करते....
स्वरचित----विपिन प्रधान
भीड़ लगी है नंद जी के द्वार,
लम्हा खुशी का आज है आया।
नाचो,गाओ,खुशियाँ मनाओ,
मेरे कान्हा का जन्मदिन आया।
गोपी,ग्वाल,गैया और बृजवासी,
ने...गोकुल को है खूब सजाया।
लड्डू,पेड़े,मिश्री और माखन का,
सब भक्तों ने मिल भोग लगाया।
तिलक करे नंद,यशोदा करे श्रृंगार ,
दाऊ ने भी कान्हा को खूब सजाया।
खिल उठे उपवन वृंदावन के सब
पंछियों ने भी मधुर गीत है गाया।
बधाई हो बधाई हो यशोदा मैया
तुमने बेटे में....भगवान को पाया।
स्वरचित -मनोज नन्दवाना
रोहिणी नक्षत्र
अष्टमी तिथि
जयंती योग
अँधेरी रात में
शून्य काल में
माँ देवकी के गर्भ से
भगवान कृष्ण का जन्म हुआ।
गहन अंधकार था
हाथ को हाथ नहीं सूझता था
भाद्रपद
कृष्ण पक्ष
कारागृह
बंधन था
बंधन में
कृष्ण का जन्म हुआ
सच कहूँ तो जन्म बंधन में लाता है
सच कहूँ तो जन्म सीमा में लाता है
शरीर में आना ही बंधन होता है
कारागृह में आना होता है
आत्मा जब भी जन्म लेती है कारागृह में ही जन्म लेती है
कितना भयावह दृश्य है
जन्म के साथ ही मारे जाने की धमकी है।
सच कहता हूँ मृत्यु जन्म के बाद ही आती है
मरने की कोई योग्यता नहीं होती
पर ये क्या
कृष्ण को जो मारने आता है
वही मर जाता है
सच कहूँ तो मृत्यु की भी मौत हो जाती है
कृष्ण ऐसी जिन्दगी है
जिसके दरवाजे पर मौत कई रूप में आती है पर
हारकर थककर लौट जाती है
कई रूप में कृष्ण को घेरती और हार जाती है
कृष्ण जीवन को हर पल जीतते चले जाते हैं
कृष्ण जिए ही चले जाते हैं
सच कहता हूँ "मौत पर जीवन की जीत है"
कृष्ण अनूठा हैं
कृष्ण हैं अतीत के
पर हैं भविष्य के
जग में कोई नहीं ऐसा
जो कृष्ण का समसामयिक बन सके।
कृष्ण धर्म की परम गहराई हैं
कृष्ण धर्म की परम ऊँचाई हैं
कृष्ण कभी गंभीर नहीं होते हैं
कृष्ण कभी उदास नहीं होते हैं
कृष्ण अकेले नृत्य करते हैं
कृष्ण अकेले हंसते हुए गीत गाते हैं
कृष्ण अकेले हैं
जो समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार करते हैं
इसलिए जग ने कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है।
कृष्ण पूर्ण अंश हैं परमात्मा का
कृष्ण सबकुछ आत्मसात करते हैं
कृष्ण मरूउधान हैं
कृष्ण एक आयाम में नहीं सभी आयाम में सच हैं
कृष्ण जन्म लेते ही हंसे थे
वो हंसती हुई मनुष्यता को स्वीकार किये
कृष्ण कोई साधक नहीं हैं
वह मन की चरम अवस्था हैंं
जीवन की कला का निपुण कलाकार हैंं
कृष्ण का "मैं" अहंकार से मुक्त है
जहाँ बुद्ध महावीर समाप्त होते हैं
कृष्ण वहां से प्रारंभ होते हैं
कृष्ण कहते हैं लड़ो परन्तु परमात्मा के समक्ष पूर्ण समर्पण करके लड़ो।
कृष्ण कहते हैं अहंकार को गिरा दो और परमात्मा पर छोड़ दो।फिर उनकी मर्जी से होने दो।फिर जो कुछ भी हो सब अच्छा है।
कृष्ण एक बुद्ध हैं
एक जागृत आत्मा हैं।
सच कहूँ तो कृष्ण अपरिभाषित हैं
कृष्ण चेतना का चिंतन हैं
प्रेम का सागर हैं
प्रीत की गागर हैं
आत्मा का मंथन हैं।
सच कहूँ तो कृष्ण
ज्ञानियों का मंथन हैं
भक्तों का संरक्षक हैं
निर्लिप्त योगेश्वर हैं
संतृप्त देवेश्वर हैं ।
सच कहूँ तो कृष्ण
देवकी का नंदन हैं
यशोदा का लाल हैं
रुक्मिणी का श्री हैं
राधा का प्रियतम हैं।
सच कहूँ तो कृष्ण
वासुदेव का तनय हैं
नंद का गोपाल हैं
सत्यभामा का श्रीतम हैं
गोपियों का प्रेम हैं।
सच कहूँ तो कृष्ण
सुदामा का सखा हैं
कर्ण का मित्र हैं
बलराम का अनुज हैं
गीता का उपदेश हैं।
सच कहूँ तो कृष्ण
पूर्ण-पुरूषोत्तम हैंं
बुद्ध महावीर जहाँ
समाप्त होते हैंं
कृष्ण वहाँ से प्रारंभ होते हैंं।
@शाको
स्वरचित
श्री कृष्णम शरणम मम:
हे वसुदेव देवकी नंदन हे मनमोहन तुम्हे प्रणाम |
कंस और चारुन निकंदन हे मधुसूदन तुम्हे प्रणाम |
पूर्ण काम हे अनासक्त हे समदर्शी हे पुरुषोत्तम -
हे अविनाशी हे सुखराशी जन मन रंजन तुम्हें प्रणाम |
कृष्ण मेरे नंद लाल मेरे गोपाल मेरे बनवारी रे |
गिरधर नागर नटन मनोहर माधव कुंजबिहारी रे |
व्याकुल धरा पुकार रही है नारी नही सुरक्षितअब -
द्रुपद सुता हित दौड़ पड़े थे फिर आओ गिरधारी रे |
©®मंजूषा श्रीवास्तव (मौलिक)
लखनऊ (यू. पी .)
किसी भी रूप में मोहन
तुम्हें कलयुग में आना है
यहां लुटती जो आबरू
अब तुमको बचाना है
खाने को तेरे मोहन
माखन मिश्री बनाई है
स्वागत में तेरे मैंने
पलकें बिछाई हैं
आजा ओ मेरे मोहन
राधा राह निहार रही
दरश पाने को अब तेरे
मन में अकुलाय रही
इति शिवहरे
मुरलीधर की महिमा सबसे प्यारी
जैसे महकते फूलों की सुगंध प्यारी
कभी ग्वाल न संग गैया चऱायें
कभी नटखट बनकर माखन चुरायें.
मैया यशोदा बाबा नंद के हैं
आँखों के तारे
सारे गोकुल के हैं राज दुलारे
यमुना तीरे बंसी बजैया
अपनी ताल धुन पर सबको नचैया.
मेरे कान्हा की सावंली मोहक छवि अति प्यारी
ब्रज की सारी गोपियाँ कान्हा के रूप पर बलिहारी
कानों में कुंडल सिर पर मोर मुकुट पैरों में नूपुर साजे
अधरों में मोहक मुस्कान संग मुरली बाजे .
कभी नटखट बनकर मैया यशोदा को सताये
कभी नटखट बनकर घर घर जाकर माखन चुराये
कभी मधुबन में राधिका संग रास लीला रचाये
कभी चितचोर बनकर गोपियों का ह्रदय चुराये.
कभी वासुदेव कृष्ण का रूप धरकर पार्थ को
गीता ज्ञान दियो
कभी सारथी बनकर महाभारत की महागाथा
में पार्थ को ज्ञान और ध्यान का पाठ पढायो.
गिरधर की हर महिमा हैं प्यारी
समस्त सृष्टि में हैं न्यारी
कृष्ण में समाई हैं धरा सारी
जय हो गिरधर मुरारी .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
"कृष्णा"
वह कदम्ब का पेड़,
और उसकी शीतल छाया,
वह पुष्पों के पुंज निकुंज,
मन लुभाए उनकी माया,
द्वापर युग जैसा युग,
अब तक ना आया,
बढ़ गए हैं पाप धरा पर,
फिर भी कृष्णा तू ना आया,
बढ़ा जलस्तर धरती पर,
गोवर्धन कहाँ से लाएँ,
त्राही-त्राही है चारों ओर,
अब कौन हमें बचाए।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
3/9/18
सोमवार
तेरे मधुबन में बस पतझड़ का हीं है संसार
इस मर्मर सी वीणा के सब टूटे टूटे से हैं तार ।
प्यासी-प्यासी सारी धरती , दलदल में भी है अँगार
कहाँ गई मुरलीधर !तेरी मुरली में सब सुख का सार ।
हे बनवारी ! स्वर साधो
स्वर साधो , जिसकी ताकत से एक जादू की आवाज़ उठे
स्वर साधो जो इस सृष्टि की वीणा पर मंगल साज उठे ।
हे वंशीधर ! वंशी तेरी , माँझी हर मँझधार का,
धुन तू कोई जगा,जगत के सपनों के आधार का।
ओ यदुनन्दन ! तान सुना,स्वर धार तनिक लहराने दे
इस महातिमिर की बेला में,प्रभात किरण मुस्काने दे ।
मानव मानव की आँखों में , काँटा बन बन कर नहीं खले
अन्याय मिटे , अज्ञान घटे ममता- समता का दीप जले
इस शूल बिंधे से मधुबन में , सुनसान खिले विरान खिले ।
हे माधव ! ऐसी धुन हो
तप रहे रेत के सीने पर,शीतल नदिया का गीत बहे
जो बुझा सके अँगारों को,धरती पर कोमल प्रीत बहे।
"पथिक रचना"
कृष्णमय हो सब प्राणी गए ,
पूर्ण सृष्टि में दिखे उल्लास ।
कृष्ण जन्म उत्सव की लहरें ,
वर्षा के संग करें विलास ।
मंदिर में हैं सजी झाँकियाँ ,
दिखती नहीं अंधेरी रात ।
चारों ओर प्रकाश पुंज है ,
निकला हो ज्यों सूरज प्रभात ।
शिशु गोपाल मुकुट वंशी से ,
स्वर्ण पालने में राजे हैं ।
पुष्प सजी रेशम की डोरी ,
हाथों में अनुपम साजे है ।
स्नान कराते पंचामृत से ,
माखन मिश्री भोग लगाएँ ।
नंद यशुदा को दें बधाई ,
नाचे गाएँ जन्म मनाएँ ।
नव वसनों में रंग बिरंगी ,
सजी टोलियाँ घूम रही हैं
लल्ला की बधाइयाँ गाती,
बाज़ारों में झूम रही हैं ।
स्वरचित:-
ऊषा सेठी सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )
आज कान्हा के भिन्न-भिन्न रूपों के दर्शन कराती हूं
उनकी मैं महिमा बतलाती हूं
उनके रूपों के गुणगान में गाती हूं
उनके नामों के मैं अर्थ बताती हूं
हर रूप की कथा बताती हूं
मैं तो अपने कृष्ण मुरारी की 51
नामों की कथा बतलाती हूं
कृष्णा, सबके मन को आकर्षित कर जाते
कृष्ण हमारे हैं
गोवर्धन, गिरीः,पर्वत, धर, जिसने गोवर्धन पर्वत है उठाया यह तो मेरा गोवर्धन कहलाया
मुरलीधर, मुरली की तान पर नचाने वाले
यह तो है मेरे मुरलीधर
पीताम्बरीधारी, जो पीले वस्त्रों को धारण करता यह तो है पितांबरी
रास रचिया , रास रचाने के कारण
अच्युत, जिसके धाम से कोई वापस ना आए
ये अच्युत कहलाये
नन्दलाला , नंद का पुत्र नंदलाला कहलाए
मधुसुधन , मधु नाम के दानव को मारा यह कहलाए मधुसूदन
गोपाला, गौओ का पृथ्वी का पालन करना वाला यह है मेरा गोपाला
गोविन्द, गौओ की २क्षा कर जाता ये उनका रक्षक कहलाता
आनदं कंद , आनंद की राशि देने वाला आनंदकंद कहलाता
कुज्ज बिहारी , कुंज नाम की गलियों में बिहार करता यह कुंजबिहारी है
श्याम, सांवले रंग से सुशोभित श्यामा प्यारा है
माधव , माया के पति माधव कहलाते है
मुरारी , मुर नाम के दैत्य को जिसने हे मारा
मुरारी प्यारे हैं
असुरारी , असुरों के है यह शत्रु
बनवारी , वनों में बिहार करने वाले यह तो है बनवारी
मुकुंद , जिनके पास निधियां है वह मुकुंदी कहलाते हैं
योगेश्वर , योगियों के ईश्वर या मालिक कहलाते हैं
गोपेश , गोपियों के मालिक गोपेश कहलाते हैं
हरि , दुखों का हरण करने वाले हरि कहलाते हैं
मदन , सूंदर
मनोहर, मन का हरण करते मनोहर कहलाते हैं
मोहन , सम्मोहित करने वाले मोहन कहलाते हैं
जगदीश, जगत के मालिक जगत के पालन कर्ता जगदीश कहलाते है
पालनहार, सबका पालन पोषण करते
कंसारी , कंस के शत्रु कंसारी कहलाते हैं
रुकमणी वल्लभ, रुकमणी के पति कहलाते हैं
केशव , केसी नाम दैत्य को जो मारे, पानी के ऊपर निवास करने वाले, सुंदर बालों वाले केशव कहलाते हैं
वासुदेव , वासुदेव के पुत्र
ऱणछोर, युद्ध से भाग जाने वाले रणछोड़
कहलाते
गुड़ाकेश, निंद्रा को जो जीत गए गुड़ाकेश कहलाते
हषिकेश, इंद्रियों को जो जीत गए
सारथी , अर्जुन का जो रथ चलाया
सारथी कहलाये
देवेश, देवो के भी ईश
परब्रहा , देवताओं के मालिक परब्रहा कहलाये
नाग नथैया , कालिया नाग को जो मारे नाग नथैया कहलाए
वृष्णिपति, इस कुल मे उत्पन्न ह्राेने के कारण
यदुपति,यादवो के कुल के मालिक यमुपति कहलाये
यदुवंशी , यदुवंश में अवतार धारण यदुवंशी कहलाए
द्वारिकाधीश, द्वारिका नगरी के हैं मालिक
नागर ,सुदंर
छलिया ,छ्ल करने वाला छलिया कहलाता
मथुरा गोकुल वासी , इन स्थानों पर निवास करने वाले
रमण, सदा आनंद मैं लीन रहने वाले रमण
दामोंदर, पेट में जिसके रस्सी बांधी दामोदर कहलाए
अधहारी , पापों का जो हरण करें अधहारी कहलाए
सखा , अर्जुन और सुदामा के साथ जो मित्रता निभाई वह सखा कहलाए
यशोदा माई और देवकी माई को खुश कर जाते कैसे हैं यह कन्हाई
स्व रचित, हेमा जोशी
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