Tuesday, September 18

"आशीर्वाद/आशीष "18सितम्बर2018



गुरु के ज्ञान प्रकाश से
निखरती कितनी प्रतिभायें,
हुनर सभी में होता है 

साथ किसी का मिल जाये ।
सर पर हो हाथ बड़ों का
मुश्किल बदले आसानी में,
हौंसला देता हिम्मत सबको 
भरे जोश दिलों की रवानी में ।
संवरे व्यक्तित्व हर किसी का
आशीष गुरू का मिल जाये,
उड़ान भरे उन्मुक्त गगन में 
अल्हड़ सा बचपन संवर जाये ।

-- नीता अग्रवाल 
स्वरचित
#सर्वाधिकार_सुरक्षित



दुआओं से भरलो दामन ये बड़ी पूँजी है
दुआओं से बढ़ कर न दवा कोई दूजी है ।।

दुआ मिले नेकी पथ पर नेकी न विसार
सबने ही जाना है दुआओं का चमत्कार ।।

पत्थर में फूल खिले पतझड़ में बहार मिले
लिखे हुये नसीब भी दुआओं से हैं टले ।।

सती सावित्री यम से भी लड़ कर आई
नेकी औ तप बल से पति की जान बचाई ।।

दुआ बड़ी सस्ती है कहाँ नही ये रहती है
हमने ही न जाना ये दौलत सबमें बहती है ।।

कब लुटादे तुम पर कोई ये दौलत दिल की
जानो सीखो आसान होगी राह मंजिल की ।।



दिल में सबके जगह बनाओ ये वहीं से आये
वीरानियों में भी ''शिवम" यह गुल खिलाये ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/09/2018



आशीर्वाद एक माँ का ....
रुके ना तू झुके ना तू
पथ पर तेरे प्रकाश हो 

भोर की किरण हो तू 
साँझ का नक्षत्र हो
हर्ष और उल्लास की
सदैव तू पहचान हो
वेदना,विषाद और
संताप से तू सदा ही दूर हो
संस्कार का मेरे तू
उज्जवल सा प्रतीक हो
सदा ही तेरे शीश पे बड़ो का
आशीष हो ,बड़ो का आशीष हो......
.......
स्वरचित..मनु मिश्रा ..उत्तराखंड




आशीर्वाद लेन देन हृदयपट से
सुखी संस्कृति हमारी बिरासत।
संस्कार मिले सनातन प्रथा से
हमें सर्वोत्तम हमारी बिरासत।

श्रद्धा से सब कुछ मिलता है।
निष्ठाओं से संवल मिलता है।
आशीर्वचन खरीदे नहीं जाते,
आशीष सदभावों मिलता है।

आशीष मिले शारदा माता का।
आशीर्वाद मिले बुद्धि दाता का।
आशीर्वचन खाली नहींजाता जो
हमें मिलें गुरू पिता माता का।

शुभाशीषों से प्रज्ञावान होते हैं।
आशीर्वादों से बलवान होते हैं।
शुद्धात्माऐं यदि हमें दुआऐं देतीं,
निश्चित हमसब गुणवान होते हैं।

सुभाशीष अभिशाप नहीं होता है।
आशीर्वाद कभी पाप नहीं ढोता है।
आशीष पाऐं बडे बूढों का श्रद्धा से,
इससे बडा कोई जाप नहीं होता है।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



"माता पिता तुम हो मेरे भगवन
तुमसे है संसार मेरा
तुम्हारी थोड़ी सी सेवा से ही
भर जाता हर भण्डार मेरा
पढ़ लिखकर भी बड़ा नही
मैं बन पाया
हर दिन तुम्हारे पैर दबाकर
मैंने सुखमय जीवन पाया
दुनियां मेरी तुममे बसती
तुम्हारे आशीष से बन जाऊं हस्ती
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान के आगे
दुनिया की हर चीज है सस्ती
अपना पेट काटकर मुझको
बड़ी आशा से मुझको पढ़ाया है
तुम्हारे श्री चरणों मे रहकर ही
देश विदेश को पाया है
हर कोई मुझको टोकता हर कोई
मुझको ताना मारे
पर तुम दोनों हमेशा खुश रहते और
आशा से मुझको निहारे
विदेशों के ऑफर आये पर 
माँ बाप को छोड़ जाऊ कैसे
निर्णय किया आप दोनों के साथ रहना
ही होगी मेरी कमाई मेरे पैसे
ऐसी दौलत का क्या करना
जिसमे माँ बाप का हो मरना
दूसरे की क्यों ऐड़ी चुमू
जब सुबह शाम आपके चरणों मे है माथा धरना
पैसे कमाऊंगा तुमसे दूर चला जाऊंगा
पोते पोती भी दादा दादी को नही जानेंगे
मेरी पहचान पैसा होगी मुझे कुल से लोग न जानेंगे
अपनी कमाई दौलत से हर चीज खरीद सकता हूँ
तुम्हारे चरण पकड़ता हु तो कभी नही मैं थकता हूँ"
बात जब बच्चो की हैसियत की हो तो
तुम्हारी साँस थम जाती है
जब बात हो माँ बाप की सेवा की तो
सबकी नजरे आकर तुम पर जम जाती है
एक दौलत की वो शर्म, जो एक पल में 
आप दोनों को उदास कर गयी
अगले ही पल बेटे पोते पोती के साथ 
की बात सारी चिंता ह्रास कर गई
स्वरचित-विपिन प्रधान.....
"माँ-बाप के श्री चरणों मे समर्पितं"


माँ!
तेरे आशीष के बिना
आज तक शुष्क है
जीवन की धरा
आसपास नहीं है तू
कि उठते
मन के बवंडर को
अपने आँचल में
समेट लेती
तेरे स्नेह की फुहार से
तृप्त हो पाता अंतर. ...
आँखों में नमी है
पर मन प्यासा है
आज भी
मैं अक्सर खो जाती हूँ
धूल भरी आँधियों के बीच
कुछ सूझता नहीं जब
बेचैन सा मन
याद करता है
उन पलों को
जब तुम
हाथ रख सिर पर
अक्सर कहती थीं
सब ठीक हो जाएगा.... 
पर माँ
आज भी अवश्य ही
सब ठीक होता
जब तुम होती
मेरे माथे पर
तेरा हाथ होता
और तेरा आशीष होता..... ।
स्व रचित
उषा किरण
18/09/2018




एक राही की तमन्ना 
भूखे को रोटी खिलाऊँ 
उसकी भूख मिटाकर 
आशीष उससे पाऊँ।

लेकिन ढूंढ रहा है एक
साफ सुथरा भूखग्रस्त 
साथ में कैमरा है हाथ में
सेल्फी लेने की चाह बस।

काफी निर्धन नजरअंदाज
हो गए है उनकी और देखते हुए।
पर साफ सुथरा भूखग्रस्त कहाँ मिले
राही ने आशीष भी जरूर लेनी है।
एक फोटो लेते हुए।

एक सामने आ ही गया 
एक बालक, बाबू जी भूख लगी है। 
कपड़े फ़टे है साफ भी नही।
नजरें अभी भी सुथरा ढूंढने में लगी है।

आँखो में देख निर्धनता के
उतरा भूत स्वार्थ पन का
मोबाईल जेब में रह गया।
और आशीष की अभिलाषा 
भी नहीं रही।

स्वरचित 

सुखचैन मेहरा


जीवन पथ चलना संभव ना होता
अगर ना मिलता माता पिता का
आशीर्वाद 
जीवन में मुस्कान है आशीर्वाद 
माता पिता संग बड़ों का भी
अगर मिल जाये आशीर्वाद 
हमारी बगिया खिलकर महक
जाती है
उनके आशीर्वाद के बिना 
फूल सुगन्ध बिखराये बगैर ही 
मुरझा जाती है
हमारे मधुबन की आस है
आशीर्वाद 
सेवा निष्ठा की सांस है आशीर्वाद 
बड़ों संग हमारा व्यवहार 
उनकी खुशी से ही मिलता हमें 
"आशीर्वाद "
अप्रकाशित एवं स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला



हे ईश दो आशीर्वाद
नमन तुम्हें बारम्बार
राग द्वेष से भरा मेरा जीवन
निर्मल निश्चल हो जाये

करूँ आराधना मैं तेरी
अवरोध हट जाये जीवन की मेरी
मत उपेक्षा करो प्रभु मेरा
दो ऐसा आशीर्वाद

कुत्सित बुद्धि हट जाये सभी का
सदभावना बढ़ जाये
बुद्धि विकास हो चहूँ ओर
दो ऐसा आशीर्वाद

धन धान्य से भरा हो देश मेरा
ज्ञानाभाव न हो कभी किसी मे
सिन्दूरी सूर्य की लाली सी
फैले ज्ञान-प्रकाश चहूँ ओर

मक्खन मिठाई भले मिले न सभी को
बस मिले दो वक्त की रोटी रोज
उलझने न हो जीवन मे किसी का
ऊषा काल से निशा काल तक

बस सोचें उत्थान की ओर
हर एक का आलय हो अपना 
शांति शकुन भरा जीवन हो सबका
दो ऐसा आशीर्वाद भगवान
दो ऐसा आशीर्वाद।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।




पुत्रो पोत्रो में संचित होता है
पूर्वज का ओज तेज 
उनके वाणी के कण कण 
आशीष बरसता निर्विशेश

आशीष वचन ये पूर्वज का
अम्बर तक जा टकराता है 
ग्रह नक्षत्रों से भी जाकर 
आशीष मांग लेे आता है 

इसलिए कभी वाणी सें तुम 
इनका अपमान नहीं करना 
जितना सम्मान इन्हे अपने 
जीवन में दे पाओ देना 

मत गर्व करो इतना अपने 
ऊपर ये शक्ति कहां की है 
सोचो तो ये ही पाओगे 
ये संरक्षण की थाती है 

स्वरचित ,,,,रेखा तिवारी



प्रस्फुटित ज़ब हुआ मात मैं, ज्योति जल गयी गर्भ गृह में 
मुझको रक्षित करने में तुम, कवच ढाल बन जाते थे 

वो माँ बाप ही होते हैं जो राहों मै आशीर्वाद के दीये जलाते हैं 
मेरा लालन पालन, शिक्षा में, वो चार चाँद लगाते हैं 
सामर्थ्य से ऊपर कर वो, जुगनू मुझे बनाते हैं 
वो माँ बाप ही होते हैं जो राहों में, आशीर्वाद के दीये जलाते हैं 
भटकते कदमों को थाम कर वो, सुमार्ग दिशा दिखाते हैं 
छोटी छोटी खुशियों से भर,वो अपनी ख़ुशी लुटाते हैं 
वो माँ बाप ही होते हैं जो राहों में आशीर्वाद के दीये जलाते हैं 
निराशा में घिरता ज़ब जीवन, वरद हस्त सिर रखते हैं 
कंपते हाथ से ले मेरी वीणा, सरगम मधुर बजाते हैं 
वो माँ बाप ही होते हैं जो राहों में, आशीर्वाद के दीये जलाते हैं 
मेरी डूबती साँसों में वो, खुद मांझी बन जाते हैं 
भगवान से भी वो लड़कर के, मेरा जीवन पुँज चमकाते हैं 
वो माँ बाप ही होते हैं जो राहों में, आशीर्वाद के दीये जलाते हैं 
जिस घर में माँ बाप है बसते, वहां रक्षा कवच बन जाता है 
आशीर्वाद की झड़ी लगा वो, सात पीडियों तक को महकाते हैं 
वो माँ बाप ही होते हैं जो राहों में आशीर्वाद के दीये जलाते हैं 
इनकी आशीष ना जाये खाली, ये बात ध्यान में सब रख लो 
मान सम्मान और प्यार लौटा तुम, थमती साँसों में खुशियाँ भर दो........ फिर 
घर को काशी घर को मथुरा घर को ही तुम संगम कर दो. 
स्वरचित सीमा गुप्ता 
अजमेर 




माता-पिता के आशीष से
फल-फूल रहा है ..जीवन 

रहे हाथ वो सदा.. सर पर
जिनमें खेला मेरा बचपन

आशीष की छाँव में उनकी
परिवार लगता है.. मधुबन

खुद दुःख सहकर जिन्होंने
सँवार दिया.... मेरा जीवन 

उनके एक आशीष पर...तो
मेरे हजार जीवन..है अर्पण

नहीं देखा दुनिया में...कहीं 
माता-पिता सा....समर्पण 

स्वरचित :-
मनोज नन्दवाना



तर्ज चौपाई 
मात पिता का हो सिर पर हाथा, 
न चाहूँ फिर कोई विधाता ll
सेवा करो इनकी दिन राताl
इनके सिवा नकुछ मैं चाहताll

मात धरा है पिता अकाशाl
इतना रखो इन पर विश्वाशा ll
इनकी सेवा जो कर जाता l
तीन जहाँ का आशीष पाता l

क्या काशी है क्या है काबाl
माँ पिता के चरण में जावा ll
यहीं तेरा स्वर्ग है मनवा l
बस इनमे ही मोक्ष तू पावा ll

ना तुम बंदे काशी जाओl, 
ना तुम इनका श्राद्ध मनाओll
बस जीते जी इनके हो जाओ 
आज ही श्रवण इनके बन जाओ ll

बस आशीष इनका पा जाऊँ l
अपना जन्म सफल करजाऊँ l
इनकी छत्र छाया जो पाऊँ l
जनम सफल अपना कर जाऊँll
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित 



ये आशीष हमारा है
मेरे रीपुन्जय तुझे मेरी भी उम्र लग जाये
बुरा वक्त तुझ पर कभी ना आये
तेरा जीवन सुखद हो जाये
हर दिन तेरी होय दिवाली
हर दिन मौज मनाये
खुशियों के उस संगीत में
यूं ही तु गुनगुनाये
सौ साल की उम्र हो तेरी
जग मैं खूब नाम कमाये
ईश्वर की कृपा तुझ पर बरसे
सत मार्ग पर तुझे चलाये
नेक इंसान बने तु दया भावना तुझ में समाये
उपकार लक्ष्य हो तेरा
जग तेरा बन जाये
भक्ति रस में डूबे रहो तुम
अंजनी के लाल का आशीर्वाद भी तुम्हें मिल जाये
एक ज्ञानी व्यास बनो तुम मेरी दुआ तुम्हें लग
जाये
इस जग में ज्ञान का प्रकाश तुम फैलाओ
अंधियारा मिट जाये 
असहाय लोगों की मदद करो तुम
और उनका आशीर्वाद भी तुम्हें मिल जाये
ये ही आशीष देती है तेरी माँ
नेक इंसान तुम बन जाओ
स्वरचित हेमा जोशी



विधा- हाइकु
१-
सदा आशीष
जीत लेंगे जग को
रहे जो शीश
२-
हो सदा शीश
बना रहे आशीष
हटे न निमिष
३-
रहे अशेष
बड़ों का आशीर्वाद
हमारे शीश
#
"स्वरचित"
- मेधा नारायण,
१८/९/१८,


1
नवाएँ शीश
बुजुर्गों का सत्कार
मिले आशीष
2
है परम्परा
करते कन्यादान
देते आशीष
3
माँ का आशीष 
विपदाएँ टलती
बढ़े कदम
4
भाव मधुर
दिखाए सत मार्ग
गुरू आशीष
5
फूल आशीष
महकाए जीवन
प्रेम आशीष
स्वरचित-रेखा रविदत्त
18/9/18






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