Wednesday, September 5

"शिक्षा/शिक्षक"05सितम्बर2018




निःशब्द हूँ शिक्षक मेरे,
गुणगान कैसे करू ।
ना वो शब्द है ना वो योग्यता,
मै बखान कैसे करू ॥
*
मै जो भी हूँ जैसा भी हूँ,
शिक्षा है गुरू मेरे आपका ।
मेरे ज्ञान और विज्ञान का,
दर्शन है गुरू मेरे आपका ॥
*
शिक्षा के हर इक सूक्ष्म का,
विस्तार गुरू मेरे आप हो ।
कविता मै जो भी लिख रहा,
हर शब्द उसके आप हो ॥
*
शब्दो मे विप्लव भर मेरे,
अज्ञान का तर्पण किया ।
ऐसा जगाया जोश की ,
नव ''शेर'' का उदभव किया॥
*
तुमने बनाया जैसा मुझको,
मै हूँ तुमरे सामने ।
तुम श्रेष्ठ हो अति श्रेष्ठ हो,
हे गुरू मेरे तुम सुर्य हो॥
*

----------------------------------------
मैं गुरु हूँ दीपक सा

मैं गुरु हूँ दीपक सा 
चाहे खुद मैं जलता रहूँ।
पर जिंदगी की कठिनाइयों में
तुझे आंच तक न आने दूँ।।

मैं मानुस हूँ सुलझा सा
ना तुझे उलझाना चाहूं।
सब तेरे फायदा का होगा
चाहे तुझे डपटकर पढ़ाऊँ।।

कुछ ऐसा मत करना तुंम
कि लोग मुझे भी बुरा कहे।
कुछ ऐसा मत करना बेटा
सम्मान तेरा भी ना रहे।।

गुरु-दक्षिणा यही होगी मेरी
तेरी प्रसिद्धि का समाज धरूँ।
तुंम करना कुछ ऐसा बेटा कि
तुझे शिष्य बताकर मैंनाज करूं।।

मैं गुरु हूँ दीपक सा 
चाहे खुद मैं जलता रहूँ ।
पर संघर्ष भरी जिंदगी में 
तुझे आंच तक न आने दूँ।।

सुखचैन मेहरा # 9460914014




शिक्षक.....

शब्द-शब्द से निर्मित जग है
मानव है सृँगार यहाँ
गुरु अमृत है इस बगिया का
ज्ञान दीप अभिसार यहाँ ।।

जन्म क्षितिज पर हुआ अगर
प्रथम गुरु भगवान यहाँ
द्वितीय गुरु हैं मात-पिता 
नित उनका कर सम्मान यहाँ ।।

तृतीय गुरू हैं ज्ञान चक्षु 
जो नित-नित ज्ञान जगाते हैं
इस जग में रहना है कैसे
इसका पाठ पढ़ाते हैं ।।

चतुर्थ गुरू है यह भूमंडल
जीवन जीना सिखलाता है
हमको पत्थर से हीरा कर
विश्व में मान दिलाता है ।।

नमन है मेरा इस अवनि को
जिसने मुझको उपजाया है
नमन है मेरा सकल गुरू को
जिसने, हीरा मुझे बनाया है ।।
अशोक सिंह अलक




खुद जले और औरों को जो दिशा दिखाये

उन पावन चरणों में शीष स्वतः झुक जाये ।।

चलों चलें उन चरणों की हम वन्दन करते 
ऐसे अवसर पर उनका अभिनन्दन करते ।।

जिस प्रकार।कारीगर कोई भवन बानाता है
ठीक वैसे ही शिक्षक का समाज से नाता है ।।

कोई शिक्षक कलम पकड़ना सिखाता है
तो कोई जीवन में चलना हमें बताता है ।।

कोई कमाने के काबिल हमें बनाता है
कोई भँवर में फँसे को पतवार कहलाता है।।

आज जो दुनिया तरक्की के चरम पर है
जरूर यह एक शिक्षक के दम खम पर है ।।

शिक्षक तो पैदाइश होते हैं हाथ बंँटाओ
पद न मिला तो क्या ''शिवम" गम न फरमाओ ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 05/09(2018




शिक्षक
 तो राष्टृ निर्माता होता है,
कमज़ोर बच्चों के लिये त्राता होता है,
शिष्यों के लिये छोटा विधाता होता है,
उनकी उलझनों का ज्ञाता होता है।

अच्छे शिक्षकों का मान होना चाहिये,
सदा उनका गुणगान होना चाहिये,
वर्ष में एक दिन से काम नहीं चलता,
हर बार इनका सम्मान होन चाहिये।





ज्ञान की लौ जब उठती है
अबोध भी मंजिल पा लेता है
नत्मस्तक हो जाता है जग
जब यह अलौकिक प्रकाश फैलता है ।

कभी माँ, कभी मित्र, कभी गुरू बन
आपने हमें राह दिखाया है
अ से अक्षर-और ज्ञ से ज्ञानी
गुरू आपने ही हमें बनाया है ।

भेद-भाव सब मिटाकर
आप समान सबको सींचते है
आप वह मोमबत्ती है जो
स्वंय जलकर दुसरों को उजाला देतें हैं ।

पूज्यनीय हैं आप मेरे
यह कहने का आज अवसर पाया है
आपका आशीष रहे सदा हमपर
हमने शीश झुकाया है ।

- स्वरचित मुन्नी कामत ।




यह आप बीती है.... मैं बचपन में बहुत बीमार रहा करता था... इम्यून सिस्टम मेरा बहुत ही नाज़ुक था... बुखार अक्सर हो जाता था... शरीर में पानी की कमी हो जाती अक्सर ...और एक और प्रॉब्लम थी कि किसी ख़ास मौसम के आते ही मेरी टाँगे टेढ़ी हो जाती थी
.... अजीब सी प्रॉब्लम थी... मैं ३-४ माह ही स्कूल जा पाता था... .मेरी टीचर को यह पता था बुखार हो जाता है पर टाँगे टेढ़ी हो जाती नहीं पता था... एक बार मैं बिमारी के बाद स्कूल गया तो मेरी माँ छोड़ने गयी... मेरी माँ ने टीचर को मेरी इस बिमारी का बताया ... और जैसे माँ की चिंता होती है...अध्यापिका को मेरा ध्यान रखने को बोला... मेरी अध्यापिका ने बातों में दवा का पूछा... दवा के साथ मेरी टांगो की गाय के घी से मालिश भी की जाती थी... यह सब माँ ने उनको बताया.... मेरी अध्यापिका मुझे घर ले जा कर पिछ्ला सभी काम कराती थी... मुझे पढ़ाती थी बिना पैसे के ताकि मैं बाकी बच्चों के साथ चल सकूं... यह तो हर बार करती थी वो पर जब से उनको पता लगा टांगों की बीमारी का...उन्होंने क्लास में गाय के घी का डिब्बा ला कर रख लिया और रोज़ हाफ टाइम में मेरी टांगों की मालिश करती थीं....आप अंदाजा लगा सकते हैं उनकी महानता का.... मैं अगर ज़िन्दगी में पढ़ा हूँ और आज जो भी हूँ उस महान शिक्षक की ही वजह से हूँ... अगर उस शिक्षक ने मुझे न पढ़ाया होता तो मैं सच में नहीं पढ़ पाता... मैं आप से भावनाएं शेयर कर रहा हूँ तो भी रोम रोम मेरा पुलकित है...दुआ देता है... स्कूल छोड़ने के तकरीबन २० साल बाद इत्तफाक से मेरी आखिरी मुलाक़ात उनसे एक बैंक में हुई थी...और उन्होंने मुझे एक दम से पहचान लिया जब मैं चरण वंदन किया मुझे उन्होंने गले लगाया था.... बस उसके बाद नहीं पता मुझे वो कहाँ गयी थी...फ़ोन तब होते नहीं थे.... जब भी कोई मौका मिलता है मैं उनकी बात सबसे शेयर करता हूँ.... उनकी महानता की उनकी सच्चे शिक्षक होने की.... यहां कहीं हैं मेरी भगवान् से प्रार्थना है उनको हर ख़ुशी मिले...सेहतमंद रहे वो... वैसे ऐसे लोग भगवान् के बहुत करीब होते हैं... भगवान् अंग संग रहते हैं ऐसी पवित्र आत्माओं के... जय हो....ऐसे शिक्षकों की...

II स्वकथन - सी.एम्.शर्मा II



"सच्चा शिक्षक "

जो मन के तम को हटाये, 
विद्या का दीपक जलाये, 
मार्ग -दर्शक बन जाये, 
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

अनुशासन का महत्व बताये, 
वाणी में संयम बनवाये, 
सत्य से परिचय करवायें, 
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

मानवता का पाठ पढाये,
भेद -भाव से दूर ले जाये, 
राष्ट्र के प्रति प्रेम जगाये,
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

त्रुटियों में सुधार करवाये, 
उत्साहवर्धन जो कराये, 
नैतिकता को बतलाये,
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


पहली गुरु माता मेरी , तुमको करु प्रणाम |
उठना चलना बोलना अनुपम ज्ञान तमाम |

दिया प्राथमिक ज्ञान जब, पायी शक्ति अपार |
फिर दूजे गुरु ने दिया , पूर्ण ज्ञान भंडार ||

गुरू कृपा से ही मिले, जन को ऐसा ज्ञान |
जीवन का हर रास्ता , होजाता आसान ||

मन का तमस मिटा दिया जला ज्ञान का दीप |
नाता गुरु और शिष्य का ,ज्यों मोती और सीप ||

जीवन जीने की कला,दे जो सच्चा ज्ञान |
वो गुरु ही सच्चा गुरू ,कर उनका गुणगान |

शिक्षक वह स्तंभ है ,शिक्षक है अवलंब | 
शिक्षक गर यह ठान ले ,युग बदले अविलंब ||

संदीपनी गुरु पाय के, कृष्ण बहुत हर्षाय |
द्रोणाचार्य बनाए गुरु ,एकलव्या यश पाय ||

गुरु चाणक्य मिले जिसे , बन जायें सब काम |
मिटे सकल आतंक जग ,होवे जग में नाम ||
©®मंजूषा श्रीवास्तव 'मृदुल '



विषय शिक्षा/ शिक्षक 

विधा माहिया छंद 
दिनांक 5/ 9/18

दे दो सबको शिक्षा
पढ़ लिख जाए जग 
ज्ञानी कर दो भिक्षा।

दान न शिक्षा जैसा
कौन खरीद सका
ज्ञान को भरा पैसा।

महान होते दानी
बांटते फिर रहे
शिक्षा देते ज्ञानी।

अमूल्य होता शिक्षा
विराट है बनता
शिक्षा का ले दिक्षा।

ज्ञान नही पाया है
बिना गुरू के "यश"
अँधेरा छाया है ।

यशवंत"यश"सूर्यवंशी 
भिलाई दुर्ग छग



"शिक्षक"
गूरू की महिमा है अपरम्पार

जो समझे उसका हो बेड़ा-पार
हाथ पकड़ कर लिखना सिखाया
कठिन डगर पर चलना सिखाया

गुरू के चरणों में जो शीश झुकाते
वे अति उत्तम कर्मफल पाते
पहली गुरू माँ को नमन
जो दुनिया की हर रीत सीखाई

जीवन के क्षेत्र में है गुरू अनेक
हर क्षेत्र की जानकारी दे
वे शिक्षक है विशेष
जीवन के झंझावात से जो लड़ना सीखाया

जीवन पथ पर आगे बढ़ना सिखाया
गुरू की महिमा से जो हैं अन्जान 
उनका जीवन है अंधकार
जिस गुरू ने हमारा जीवन सँवारा

उनको हैं मेरा बारम्बार नमस्कार
बच्चे भी तो है आखिर गुरू समान
डिजिटल दुनिया को हमें समझाया
मोबाइल पकड़ कर चलाना सिखाया

जो एक घड़ी भी हमारे जीवन को आसान बनायें
वो भी तो शिक्षक कहलाये
शिक्षक तो है सबसे सम्मानित जग मे
उनके ऋण से कौन उऋण हुआ है जग मे

शिक्षक है हमारे जीवन में खास
नमन करूँ मैं प्रत्येक शिक्षक को आज।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।




प्रथम गुरु है माता पिता
कराए जग से पहचान,
अपने स्नेह प्यार से
सिखाए रिश्तों का ज्ञान।

गुरु की महिमा अपरम्पार
बिना गुरु नहीं जीवन सफल,
गुरु के रास्ते चलाए जो चले 
होय ना किसी परिस्थिति में विफल।

जग में दो पहले गुरु को सम्मान
गुरु इष्ट गुरु है जग में ब्रह्मा समान,
गुरु की उंगली पकड़ चलोगे
तो मिलेगा जग में पद और उच्च स्थान।

गलत सही का जो भेद सिखाए
डॉट फटकार कर सही दिशा बताए,
अक्षर ज्ञान, वाक्य जिसने सिखाया
वो मेरी कुसुम पंत दीदी कहलाए।

शिक्षक देते अपने छात्र को
शिक्षा के ज्ञान का भंडार,
ठोक पीट कर प्यार और चुनौती से 
बनाना चाहे उसको एकलव्य महान।

देवता भी इष्ट सभी मानते
देते गुरु को सर्वप्रथम स्थान,
गुरु की शिक्षा से मिल जाए
सुख - समृद्धि जीवन में अपार ।

स्वरचित 
छवि शर्मा ।
05-09-2018


शिक्षक

मैं और मेरी लेखनी ,
कहना चाहती है 
गुरु की कहानी,
जो सिखलाता सच्ची मानवता वो जो ज्ञान का दीपक जलाता
अच्छे- बुरे का पाठ पढ़ाता
वही सच्चा गुरु कहलाता 
गुरु की महत्वता का क्या करे बखान
कम है जितना भी करे, उसका गुणगान
मगर आज इसपर पर भी चलते है, बहुत बाण
गुरु को जितना मिलता था,
कल तक सम्मान
आज नहीं है सच, उनका इतना मान
कल तक जिनकी हर बात पर होता था अभिमान
आज वो ख़त्म हो गया उनपर करना गुमान
होने लगा उनका भी अपमान
भय नहीं आज मुझे और मेरी लेखनी को कहने में...
कुछ गुरु आज भी ज्ञान से भरपूर और कुछ ज्ञान से बहुत दूर 
मानते है शिष्य को नहीं आता आज करना गुरु का सम्मान
पर कुछ,गुरु में.भी तो वो बात नहीं
जो पाए पूरा मान
बदल गयी है अब बिलकुल गुरु की परिभाषा
कुछ आज भी पूर्ण सम्मान के लायक..
कुछ से नहीं रही अब कोई आशा..!!

स्वरचित
गीता लकवाल

विधा -दोहा छंद

दोहे -
१-
शिक्षक प्रवर प्रकाश है, अतिशय तिमिर अज्ञान ।
इनके बिन जीवन -डगर, दिशाहीन - अन्जान ।।

२-
शिक्षा से बढ़कर नहीं, होता कुछ भी और ।
जीवन में शिक्षक सदा, नायक हैं सिरमौर ।।

३-
जग में शिक्षक सा नहीं, दूजा और महान ।
इनकी शिक्षा से मिले, दुनिया में पहचान ।।

४-
बिन शिक्षा के व्यक्ति है, निरा पशु - समान ।
शिक्षा ही आधार है, जीवन - सुखद महान ।।

५-
शिक्षक ही देते हमें, उचित दिशा का भान ।
शिक्षा से होता सदा, जीवन है आसान ।।

६-
शिक्षक का जग में सदा, सर्वोपरि है नाम ।
इनका जीवन में बहुत, है अमूल्य स्थान ।।

७-
शिक्षा से मिलती हमें, सभ्य - शिष्ट पहचान ।
शिक्षक जीवन का सदा, है अमूल्य वरदान ।।
#
"स्वरचित"
- मेधा नारायण,




1-
वक्त शिक्षक , 
सीख बिन पगार, 
स्तुत्य आभार ।

2-
माँ, पिता, गुरु 
ईश्वर प्रतिरूप,
ज्ञान चिराग ।

3-
गुरु शरण,
श्रेष्ठ मार्गदर्शन,
स्तुत्य नमन । 

4-
जिंदगी पृष्ठ, 
संवारते शिक्षक, 
ज्ञान भंडार ।

-- नीता अग्रवाल 
#स्वरचित




शिक्षक 
वो दीपक 
जलता रहा 
जो निरंतर
बाधाओं मे भी 
और दिखाया पथ
जो बढता रहा 
विकट हालातों मे 
विपरीत परिस्थितियों मे 
अनुकुल बनाता सबको 
कभी डांटा 
कभी समझाया
और आगे बढाया 
वो डांटकर भी 
पीडित हुआ खुद 
जो जगा हमेशा 
दूसरो के पथ को 
सुगम बनाने के लिए 
जो चलता रहा सतत
जो चलता रहा सतत 

कमलेश जोशी कांकरोली 
#स्वरचित




जब दुनियाँ में 
खोली आँखे 
तो माँ को ही जाना

माँ को ही माना
उसे ही पहला
गुरु माना
कुछ आगे बढ़ी
तो गुरु के रूप
में पिता को जान
जिसने थाम
उँगली पकड़ के
चलना सिखाया
और कुछ बड़ी हुई
तो गई स्कूल
तो शिक्षको
ने शुरू किया
जानने और मानने
का सिलसिला
शिक्षक जो भी बताते
वो जानती गई
मानते गई
इंसान बनने की
कोशिश करते गई
फिर कॉलेज गई
तो कॉलेज में 
मेरी दोस्ती 
किताबो से हुई
उनमे भी मुझे
गुरु नजर आने लगा
जिसने मुझे लिखना
सिखया
मेरे एहसासों को
अल्फाजो का दामन उढ़ाया
फिर पहुँची जिंदगी
के धरातल पर
तो हर दिन
कुछ न कुछ 
सीखती रही
गिरती रही
सँभलती रही
आगे बढ़ती रही
बस ऐसी ही 
जिंदगी गुजरती रही



जी चाहता चाहे रहु धरा पे, आसमान को छू जाऊ 
जो मूड से गूढ बनाते मुझको, उन गुरुओ का मै वंदन करू 
कृष्ण बने ज़ब गुरु अर्जुन के, गीता ज्ञान सुना डाला 

कर्म का बीज सींच के जग मै, जीवन का मर्म समझा डाला 
मात पिता वो प्रथम गुरु है, हर पथ मै राह दिखाते है 
छोटी छोटी सीख सीखावो, ज्ञान कवच पहनाते है 
खेल जगत मै स्वर्णिम आभा, गुरु सृजन परिणाम है 
अंतरिक्ष की गहराई नापना, शिक्षा का ही कमाल है 
अच्छा गुरु कुम्हार बन जाता, आपकी आपसे पहचान कराता 
हीरा सम तराश के तुमको, हार मै भी जीत का पाठ पढ़ाता 
शिक्षा रटन का काम नहीं, व्यवहारिक ज्ञान जरूरी है 
नैतिक मूल्य विकसित कर, अपने कद को आलोकित कर जाओ 
पर आज 
शिक्षित सवर्णो पर, आरक्षण ने सेंध लगाई है 
लोहा तुले सोने के भाव, प्रतिभा को धूल चटाई है 
जातिवाद वोट बैंक है, यह बहुत बड़ी बीमारी है 
इसकी फैली जड़े हटाना, विवशता की एक कहानी है 
शिक्षा से विश्वास ना डोले, हमें ऐसा कदम बढ़ाना है 
मिलजुल करके शिक्षा से, आरक्षण खत्म करना है 
सद्गुण संचरण सुहासित होगा, शिक्षा से उपवन सिंचित होगा 
विकासशील भारत फिर अपना, दुनिया मै सिरमौर बनेगा 
स्वरचित सीमा गुप्ता 
अजमेर 


जय श्री गणेश श्री देवाधिदेव।

शिक्षा देंय हम सबको भरपूर।
अशिक्षा से फैला जो अंधकार,
प्रभु इस जगत से करें उसे दूर।

शिक्षित प्रशिक्षित होंय सभीजन,
इस वसुधा पर नित मंगल होय।
चहुँओर फैले खुशियों की खुशबू,
मात शारदे जनजन शिक्षित होय।

संकल्प लेंय सभी हम मिलजुलकर,
अशिक्षित किसी को नहीं रहने देंगे।
जन जाग्रति लाऐंगे भारत भूमि पर,
सबको शिक्षित करके ही दम लेंगे।

शिक्षा तो हर मनुष्य का गहना है।
इसके बिना हमें अधूरा रहना है।
नहीं रहे शिक्षित दुनिया में तो फिर,
मानें मात्र यहाँ रहना ही रहना है।

यदि प्रगतिशील बनना है हमको,
निश्चित शिक्षित होना ही होगा।
संस्कृति से परिचित होना है तो,
हमें यहाँ शिक्षित रहना ही होगा।

स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.




गर्भ -काल में सुनते रहते, 
माँ की नीतियाँ और विचार 
शीश झुका कर करो वंदना ,
मानो हृदय से अति आभार ।

उठना चलना खाना पीना ,
सब बातें माँ ने सिखलाई ,
उँगली पकड कर मैया ने ही , 
विद्यालय की राह दिखाई ।

श्याम पट पर श्वेत चॉक से ,
वर्ण लकीरों से बनवाए ।
नमस्कार उस गुरु शिक्षक को ,
जो विद्या के पथ पर लाए ।

दुर्गम पथ आते जीवन में ,
रखना जीवन में चतुराई ।
टल जाते तूफ़ान बड़े भी ,
झुकने की तदबीर बताई ।

सखी गुरु बन गई जीवन की , 
मूल मंत्र बनी उसकी बात ।
सबसे मिली खूब सराहना ,
भोगी ख़ुशियों की बरसात ।

गुरु अनेक बनें चराचर में,
वंदन करती हूँ मैं आज ।
समझूँ जीवन धन्य मैं अपना , 
सिखाए जिन्हें ने जो भी काज ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055( हरियाणा )





जिन्दगी की टेढ़ी-मेढ़ी राहों पर,
चलना नहीं आसान होता हैं,
जो सही राह दिखाए, 
अच्छे-बुरे की पहचान कराए,
वही सच्चा शिक्षक होता हैं,
वो एक शिक्षक ही होता हैं, 
जो बचपन रूपी मिट्टी में,
उज्ज्वल जवानी का वृक्ष बोता है
गुरु,माता,पिता और मित्र जैसा बन
वो,किसी का भी जीवन सँवार देता हैं..

स्वरचित -मनोज नन्दवाना




जो दूर ना हुआ स्वार्थ से, लोभ से, धन से, घमंड से शिक्षक नहीं वो भक्षक है 

वही शिक्षक हैं! जो लीन होकर चिन्तन में दूर करे जग से तम तिमिर अंधकार 

जो प्रेम में डूबकर भुवन को प्रेम रंग में रंग दें

जो दिल से प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा परीक्षा को निकाल दे

वही शिक्षक हैं ! जो गरिमा धारण कर प्रेम दीप जला दें ।

तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशीला, उदंतपुरी से तू ज्ञान दीप जला चुके 

फिर भी ऐ शिक्षा! ईष्या-द्वेष, जलन मानव के दिल से निकाल ना सके 

आज इस अंधकार का भुवन छोड़ चलो शिक्षक प्रेम ज्योति की ओर

चलो वहाँ जिस जगह पर प्रेम, मानवता, करूणा, दया मुस्कुराते हैं

घृणा को भूलकर आगे निकलने का दौड़ छोड़ जाते हैं।

कितने विनीत बने झूठे संसार में जन मन का दु:ख अपार

चले कितने बेसहारों को आँसू पोंछने कितने द्रोणाचार्य 

गुरुदक्षिणा में ऐ शिक्षक! माँग लूँगा एकलव्य का अंगूठा विजय श्री अर्जुन कुमार?

कैसा शिक्षक, कैसी शिक्षा ,प्रेम छोड़ प्रतिस्पर्धा कराऊँगा

सत्य छोड़ असत्य का विजय कराऊँगा 

तुम भिक्षुको को प्रेम गीत सिखाओ मैं चला महलो का रूख

शिक्षक चला अहा! प्रकाश ज्योति अंधकार का कुंज हटा

किताबों की गठरी उठाये विद्यार्थी आ रहे दिल में भरकर अहंकार 

ऐ शिक्षक बता! अंधकार तो दूर हो जाएगा 
अहंकार को दूर भला कैसे करोगे?

जहाँ घर घर में अपमानित है अबला नारी
उस घर को कैसे मंदिर बनाओगे?

आज विद्यालय में बैठ शिक्षक पुकारते हैं कहाँ हो मेरे आरूणी कुमार?

खेतों के बाँध टूट रहे हैं प्रबल है हमसब में अहंकार।

आदमी है कैसा हर आदमी एक-दूसरे आदमी को खींच रहा 

बनूँगा मैं शिक्षक! इसकी माँग कलम काॅपी किताब स्याही और विद्यार्थी

बन सरस्वती के वरदपुत्र लिये गरिमा की महक 

गुरुकुल की मधुर ध्वनि युग-युग से दे रही प्रेम संदेश 

दूर कानन में जाकर जुगनूओ के प्रकाश में पढ़ते थे आदर्शवादी

राजमहल के आँगन में बैठकर माँ करती थी प्रतीक्षा अपने पुत्र की 

राजमाता कहती थी जरा बुला दो दूर कानन से मेरे लाल को

घर का कोना कोना उदास है बिन मेरे लाल का 

सुरभित यश जब दूर कानन से आएगा अपने आँचल से लगाऊँगी

पर भूलकर कर्मो की बात यश अभी भी है अहंकारी 

रहते नाज तुझपर भी कर लो आत्ममंथन दुर्योधन द्रोणाचार्य जी 

दया-करूणा की प्रवाह, प्रेम की धारा हिन्द की प्रभा 

स्वर मधुर गीत की निर्झर झरनो की संगीत 

उलझे उलझे और उलझते हैं शाश्वत रचना का स्वर 

आकाशगंगा का सरगम धड़क रहा उलझे उलझे शब्द 

शिक्षा का बन प्रेम पुजारी, रंग दे सबको प्रेम रंग में ।

ऐ शिक्षक!अज्ञान के हठीले अंधकार में , वीरानो में जाने दे 

प्रेम आनंद की नव ज्योति से प्रेम दीप जलाने दे 

बेबसो के कांपते हृदय में उत्सव गीत भरने दे।
@शाको
स्वरचित
पटना


*हाइकु *

शिक्षक करे 
ज्ञान का पल्लवन --
बीजारोपण 

मिटाये तम 
शिक्षक दे उजास--
सुर्यप्रकाश

गढ़े आकार
दिशा बोध मस्तिष्क--
वह कुम्हार 

नींव गढ़ता 
जीवन का सोपान --
गुरू महान 

देव से बड़ा 
हर पथ है खड़ा --
राष्ट्रनिर्माता 

नवनिहाल
बनाते हैं विशाल--
स्वप्न शिखर

विद्या का दान 
है महा पुण्य कर्म-- 
दधिची बनें 

शिक्षक हंस
सदगुणों से ज्ञान
मोती चुगाते

ज्ञान भंडार 
अनुपम क्षमता--
प्रश्न -उत्तर 

गुरू प्राँगण 
शील संयम तप--
साधना पथ

गुरू सारथी 
सुख दुख के पथ 
जीवन रथ

शिक्षक महा 
ज्ञान कला विज्ञान--
अनुसंधान 

सप्तम सुर
विराजते हैं कंठ--
वीणावादिनी 

सर्व शिक्षक
बहती है निर्झरा 

भृकुटी मध्य

जय माँ ओम --
श्री सरसत्यै नमः
विराजो कंठ

स्वरचित व मौलिक 
सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़ 
5-9-2018



गुरु के चरण छूके, धूल सभी फूल हुए, 
गुरु इस जगत में, सबसे महान हैं। 

शीष जो है रख देता, गुरु के शरण में वो, 
शीष सदा चमका है, भानु के समान है। 

जीवन का ज्ञान दिए, जीवन भी दान दिए, 
कहते ही रहे सदा, बनना इंसान है। 

अन्तस में आके मेरे, जब से बसे हैं गुरु, 
बढ़ गया मेरे उर, का भी देखो मान है। 
*****************************
सभी गुरुजनों को मेरा सादर प्रणाम 

✍️ मिथिलेश क़ायनात












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