Saturday, September 15

"वचन "15सितम्बर2018



वचन है अनमोल
वचन के बिना हमारा
जग मे नही कोई मोल
राम गये वनवास

रखें पिता के वचन
सीता ने लिया था सात वचन
सुख चैन छोड़ चली
अपने पिया के संग

सत्य वचन बोले हम तो
रहे जग मे मान
असत्य वचन से घट
जाये जग मे सम्मान

सत्य वचन का करे हम
बचपन से अभ्यास
तो चरित्र बन उभरे
वो अपने आप

वचन का मान रखना है
हमारा कर्तव्य
वरना वचन के बिना
हम मनु पशु समान

वचन हमारा शुद्ध हो
रहे सतत प्रयास
सत्य वचन बोलने वाले पर
लोग करते एतबार

असत्य वचन वाले नही पाते
जग मे सम्मान
हमसब मिलकर वचन ले हम आज
समाज हित और जग हित मे करें
हम कुछ काम,जिससे हो जग मे
उँचा हमारा नाम।
स्वरचित अप्रकाशित-आरती श्रीवास्तव।

वचन तोड के, प्रीत छोड के,
राधा को तँज श्याम चले ।
धर्म के पथ पे कर्म के रथ ,
मथुरा को श्रीनाथ चले ॥

**
निरखत द्वौ नयनो मे आँसू,
अधरो पर मुस्कान लिए ।
वचन तोड कर श्याम सखी रे,
वृन्दावन को त्याग चले ॥

**
शायद अब मिलना ना होगा,
प्रीत मे रीत का बन्धन होगा।
वचन निभाना होगा गिरधर,
अब से सबकुछ श्याम रहेगा ॥

**
आकर देखा वृन्दावन मे,
श्याम ही श्याम दिखते है।
वचनो मे बँध श्याम प्यारे,
राधा संग श्याम दिखते है॥

**
स्वरचित.. Sher Singh Sarraf

वचन बड़ों के बड़े अनोखे

करो अनुकरण मिलें न धोखे ।।

जीवन तो है एक संग्राम
समझो न इसमें आराम ।।

ऊहापोह सदा ही रहती 
किसकी कहानी क्या कहती ।।

जानिये जो जी कर गये
जहर जिन्दगी के पीकर गये ।।

सदवचनों में सार समाया
उनमें जिसने नेह लगाया ।।

हासिल किया बड़ा मुकाम
और मिले सुखद परिणाम ।।

बेवजह ही वन को गये 
दुख न उन्हे तनिक भये ।।

इतिहास रच गये भगवान राम
बड़ों के वचनों का ये काम ।।

पढ़ो पाठ तुम सदवचनों का
उत्तर ''शिवम" सभी प्रश्नों का ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/09/201



मन वचन कर्म से परमेश्वर,
परमार्थ परोपकार में लगा रहूँ।
जो भी जीवन शेष बचा है,
ईशभक्ति मै जनसेवा में लगा रहूँ।

वचन कभी नहीं जाऐं खाली,
अपने वचनों से नहीं हटूँ।
रघुवंशी मै रघुवंशज हूँ,
श्रीराम के आदर्शों पर ही चलूँ।

प्राण जाऐं पर वचन ना जाऐं,
अपने वचनों का सम्मान करूँ।
नहीं कभी पथभ्रष्ट होऊं प्रभुजी,
मैं नहीं कभी कुछ अभिमान करूँ।

सुअवसर कभी व्यर्थ ना जाऐ,
मातृभूमि की सेवा में लगा रहूँ।
जीवन का पल पल उपयोगी हो,
सदा ही सदकर्मों में लगा रहूँ।

ऐसी शक्ति दें भगवन मुझको,
जो भी वचन दूं मैं निभा सकूँ।
नहीं कभी झूठी बात हो मेरी,
निज वचनों पर ही मै डटा रहूँ।

स्वरचितः ः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

******************
वचन लेने या देने के लिये नहीं 
वचन निभाने होते हैं 
कुछ मूक वचन संग हमारे होते हैं 
इसे समझने होते हैं 
" सृष्टि बंधन "--ईश्वर संग लिया हमारा "वचन "
माया नगरी आकर जीव इसे
भूलते क्यों है !!
"मातृ पितृ ॠण"--जन्मोपरांत माता पिता संग हमारे" वचन "
संतान इसे छोड़ते क्यों हैं!!
"प्रकृति बंधन "--है प्रकृति संग हमारे "वचन" 
फिर इंसान इसे लुटते 
क्यों हैं!!
"विवाह बंधन "--"सात वचन" संग लेते फेरे 
पति पत्नी इसे तोड़ते क्यों हैं!!
"पारिवारिक बंधन "-- सुख दुःख में साथ निभाने के" वचन"
रिश्ते रुठते क्यों हैं !!
"सामाजिक बंधन "--साथ साथ मिलकर रहने का " वचन"
लोग बैर भाव रखते क्यों हैं!!
" मित्रता बंधन "--विश्वास और प्रेम भाव के ये "वचन"
मित्र बनकर धोखा देते क्यों हैं!!
"स्वराष्ट्र बंधन "--मिट्टी की खुशबू संग हमारे "वचन"
कुछ लोग इसे बेचते क्यों हैं!!

स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला

वचन पुष्प सदृशः इनको हिय से तोलो।
भाव
ुकता मे प्रतिशोध मैं कतई मुंह न खोलो।।
कही पुष्प कही पर तीक्ष्ण कटार।
कुटिल जनों समायोग मे तनिक 
न दयाभाव।
द्वेष भाव है और बहोत कुटिलता।
वचन बोलने लिखने पर आऐ मुश्किलें भारी।
वह क्या जाने द्वेषी बन्धु मन मे द्वेष भरा।।
वचन की गरिमा वचन का मान भारतवासी जाने।
पर आक्रन्ताओं के ओज से है उद्वोधित।
सो क्या जाने🌻 वीरः वीरेणः पुज्यतें🌻उक्ति।
----स्वरचित:-अप्रकाशितः
राजेन्द्र कुमार#अमरा#
१५/०९/२०१८@०६:४१.




"सात वचन"
अठरहा साल पहले, एक बंधन में बंधी थी, मैं वचनबद्ध हुई थी प्रियतम संग खुशियाें की सुन्दर घडी थी, सात फेरें जब लिये प्रियतम संग उनको ही बतलाती हूँ,अग्नि को साक्षी मान, पहला वचन मैं कहती हूँ, 
दान, धर्म, तीरथ, हर पुण्य में, 
साथ मुझे रखोगें तुम,है मंजूर अगर तुम्हें तो बाएं अंग आ जाती हूँ|
दूजे वचन में माँग रही हूँ, 
अपने माता-पिता संग, मेरे माता-पिता को भी सम्मान दोगे,स्वीकार करो अगर तुम, तीसरा फेरा लेती हूँ|
तीजे वचन में,अपने कुल का पालन-पोषण, गाय धर्म करोगे संग, विनती स्वीकारो प्रियतम,चौथा फेरा लेती हूँ,
चौथे वचन मे, आय-व्यय का ब्योरा
सांझा मेरे संग करोगे तुम, है मंजूर गर तुम्हें, तो पाँचवा फेरा तुम संग लेती हूँ
इस वचन में, घर के किसी भी कार्य में सलाह मेरी भी लोगे तुम,है मंजूर गर तुम्हें तो, छठवाँ वचन भी कहती हूँ, 
जीवन अपना सौंप रही तुम्हें, मान मेरा रखोगे तुम,स्वीकृति दो जीवन साथी, 
अब अन्तिम सातवाँ फेरा तुम संग लेती हूँ, सातवाँ वचन दे दो ये मुझको
पर नारी का ख्याल कभी भी मन में मत लाना जी, स्वीकार करो ये वचन मेरे, बाएं अंग तुम्हारे आ जाती हूँ|
जीवन साथी ये सातों वचन हम दोनों मिलकर निभायेगें, हाथ थामकर इक-दूजे का नई दुनियां बसाएगें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





(1)
ख़त्म चुनाव

"वचन" रख ताक
नेता फरार


 (2)
आज का तौल 
"वचनों"की कीमत? 

सस्ते हैं बोल


(3)
मृदु "वचन"
हृदय घाव भरे 

संताप हरे


(4)
शब्दों का दम 
अनमोल "वचन" 

बदले मन



विधा :- 'हाइकु'

(१)

वाणी मधुर,
अनमोल वचन,
कहे कबीर, 

( २)

गुरु वचन,
सफल है,विद्यार्थी,
जग सम्मान,

(३)

सत्य वचन ,
राजा युधिष्ठिर,
धर्म विजय,

( ४ )

सत्य अहिंसा,
महान है,भारत,
गाँधी वचन,

(५)

सत्संगत से,
सज्जन की मित्रता ,
प्रिय वचन

इतर

( ६) 

वीर है ,योद्धा,
रणभूमि प्रहार,
प्रण वचन,

"सुनीता पँवार" देवभूमि उत्तराखण्ड (१५.९.२०१८)
स्वरचित



नारी की हैं जुदा कहानी
वचन की डोर से बधीं हैं जिंदगानी .


हर पल अपना वचन निभाये
सबका हर पल साथ निभाये.

कभी घर की बेटी का फर्ज वचन निभाये
कभी लक्ष्मी बनकर सबके के लिए ख्वाब सजाये .

कभी बहन पत्नी बनकर घर का मान बढ़ाये 
हर कदम वचन की डोर को दिल से अपनाये .

जीवन नारी का वचन की डोर 
कभी इस ओर कभी उस ओर.

नारी बनना नहीं हैं आसान 
हर पल रखना पड़ता हैं वचन का ध्यान .

हर पल काँटों में चलकर वचन निभाना हैं 
खुद को डाली से तोड़कर सबको जोड़ना हैं .
स्वरचित :- रीता बिष्ट




विधा-हाइकु
विषय- वचन

1
बदला जग
अनमोल वचन
मिले संस्कार
2
मीठे वचन
संतुष्ट हुआ मन
मिटते बैर
3
योग संसार
वचन पे अमल
दिखाते मार्ग
4
कटु वचन
दिल पर आघात
बढ़ती दूरी
,5
मान वचन
समाज में सम्मान
खाते कसम
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/9/18





उसके सामने अब करबद्ध हूं

जिसके साथ मैं वचनबद्ध हूं
उसे याद नहीं अपने मेरे याद है
हालत देख अपनी स्तब्द्ध हूं

लाख समझाये खुद को, किये कितने जतन
मन ही नहीं छलनी हुआ जख्मी है मेरा तन
भाषा, लिंग,कारक और विशेषण लेकर
एक वचन के बदले मैंने, सुनें है कितने बहु वचन





शीर्षक :- " वचन "

सुनो भैया मेरे !
बहुत अजीब होता है...
लड़कियों का मायके से 
ससुराल चले जाना ......

अपने हाथों में ...
धान, दूब, हल्दी वाले ....
सपनो की पोटली पकड़े 
नैहर की ड्योढ़ी लाँघ जाना .....

पाँच बार अँजुरी में भरकर धान ...
लो भइया ! भर दिया तुम्हारा खलिहान 
अजनबियों में बनाने चली हूँ पहचान 
आसान नहीं है खुद को पराया कर जाना .....

ठीक ऐसे हीँ चलकर आएगी एक दिन ...
किसी बाबुल के बगीचे की फूल 
महसूस करना तुम्हारे घर-आँगन का 
खुशबू से महमहाना .....

जब आएगी भाभी ...
बाबुल से लेकर विदाई
तुम समझना मत उसको पराई
मेरे वीर ! आज तुम यह वचन दुहराना ...

तुम मत करना यह भूल...
स्त्री को न समझना पाँव की धूल
कि बहुत बुरा होता है.....
बाबुल के आँगन की पाजेब का 
बेड़ियों में बदला जाना ....

स्वरचित
"पथिक रचना "





दशरथ फंसे थे युद्ध मे भारी, 
धोखा दे गयीं उनकी सवारी, 
कैकेयी उनको देख रही थी l
अपनी उंगली से रथ को संभालीl

युद्ध हो रहा था भारी, 
दोनों सेना थी नर संहारी, 
साथ दिया था प्रिय रानी ने, 
रक्त से लथपथ हुई वो नारी l

जीत के बाद दशरथ बोले, 
बोलो प्रिय जो दिल बोले, 
मांगले आज तो वर दो, 
वचन दिया तुम मुँह खोलो l

बोली... नाथ कुछ नहीं चाहिए, 
बस आपका स्नेह चाहिए, 
मेरी ये धरोहर है रखलो, 
लुँगी तब, ज़ब मुझे चाहिए l

कालांतर मे मंथरा बहकाई, 
कैकेयी को वचन याद दिलाई, 
भरत लला को राजगद्दी दो, 
वन मे भेजो तुम रघुराई l

दशरथ बोले हुए अकुलाई, 
क्या हो गया राम की माई, 
कोई और वर तुम मांगो, 
यह नहीं हो सकता सहाई l

बोली... देना ये तो येही वर दो
वरना कोप भवन मे जाने दो, 
राम को राज नहीं मिलेगा, 
चौदह बरस वनवास उसे दो l

राम ने पिता के वचन निभाए, 
पुरषोत्तम जग मे कहलाये, 
माता कैकई खुश बहुत थी, 
राम ने उनको शीश नवाये l
कुसुम पंत 
स्वरचित





वचन अनमोल होते है
नफा,नुकसान से कोसो दूर होते है
स्वयं को तपा कर भी
वचनों को निभाना
वचनों की महत्ता का प्रमाण देते है।
वचन ने ही चौदह वर्षों का बनवास दिया
खुशी-खुशी श्री राम ने स्वीकार किया
अनगिनत पीड़ाओं को सहकर भी
वचन को निभा
स्वयं का जीवन न्योछावर किया।
वचन ने,
रिश्तों को बनाएं रखा
स्वयं टूट कर भी
माँ का मान रखा।
वचन,धैर्यशीलता, शांति,
समर्पण माँगता है,
अद्भुत,प्रेम भावना,शक्ति
अपनत्व का मिलन माँगता है।
एक वचन से,
ग्रन्थ,महाकाव्य रच जाते है
युगों-युगों तक 
वचनों की महिमा का मंडन किया जाता है
निःसन्देह,ऐसे वचनों से
अतुलनीय,अनुपम इतिहास रच जाते है।🙏

वीणा शर्मा

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