जग जननी हूँ, जग पालक हूँ
मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ
निःशेष लोक जन्मा मेरे उर से
फिर भी मैं ही कोख में मारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
!
सम्पूर्ण कर्म में रही अग्रणी
न जानू क्यों देवो की दासी हूँ
वज़्र घात से सहती आघात
पर मतत्व की सर्वदा प्यासी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
!
देव भूमि के हवन कुंड में
अनन्त बार गई वारी हूँ
बिठाया पूजा की वेदी पर
अंतत: व्यसन पर उतारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
!
शिक्षित हुआ समग्र समाज
नही फिर भी ह्रदय धारी हूँ
सिंधुतल से चन्द्रतल तक
नर संग पदचिन्ह उतारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
!
शिकार हूँ कुटिल मानसिकता का
जन मानष के त्रिस्कार की मारी हूँ
मिटा न पाया कोई मेरा अस्तित्व
रही सर्वदा इस सृष्टि पर भारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ
मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ
निःशेष लोक जन्मा मेरे उर से
फिर भी मैं ही कोख में मारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
!
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डी. के. निवातिया।।
मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ
निःशेष लोक जन्मा मेरे उर से
फिर भी मैं ही कोख में मारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
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सम्पूर्ण कर्म में रही अग्रणी
न जानू क्यों देवो की दासी हूँ
वज़्र घात से सहती आघात
पर मतत्व की सर्वदा प्यासी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
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देव भूमि के हवन कुंड में
अनन्त बार गई वारी हूँ
बिठाया पूजा की वेदी पर
अंतत: व्यसन पर उतारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
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शिक्षित हुआ समग्र समाज
नही फिर भी ह्रदय धारी हूँ
सिंधुतल से चन्द्रतल तक
नर संग पदचिन्ह उतारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
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शिकार हूँ कुटिल मानसिकता का
जन मानष के त्रिस्कार की मारी हूँ
मिटा न पाया कोई मेरा अस्तित्व
रही सर्वदा इस सृष्टि पर भारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
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जग जननी हूँ, जग पालक हूँ
मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ
निःशेष लोक जन्मा मेरे उर से
फिर भी मैं ही कोख में मारी हूँ !!
जग जननी हूँ, जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ, न किसी से हारी हूँ !!
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डी. के. निवातिया।।
विशाल वट वृक्ष की छाया
प्रकृति की विमोहिनी माया
करूणा का गहरा सागर
सर पर पल्लू उसपर गागर
अंतरतल है आभ-रसातल
मरकर भी जीति हर पल
उर में विशाल, अधरामृत है
कर पोरों में पंचामृत है
तूली तूहिन क्या भेद सके
नारी कुलीन अभेद्य झुके
नारी सन्नारी सुभगद्वार
महिमा तेरी अपरंपार,,,,,,,,
स्वरचित:-रागिनी शास्त्री
ना किसी शायर की ग़ज़ल हूँ .
ना किसी कवि की कल्पना हूँ .
ना कोई आसमान मे चमकती सितारा हूँ .
.......सुनो मैं एक नारी हूँ .
तुम्हारी हर ख़्वाहिश की पूर्ति करने वाली .
तपती दोपहर मे अंगार मे जलती हूँ .
जब तुम सुकून से जी रहे .
तब मैं अपने सांसो की नरमी देती .
तुम्हारी शीतल छाया हूँ .
....सुनो मैं नारी हूँ .
सफल रिश्तो की परिभाषा हूँ .
जीवन रूपी अग्णिकुण्ड मे तुम्हारी .
खुशी की खातिर जलती ज्वाला हूँ .
.......सुनो मैं नारी हूँ .
कितनी रूप कितने नाम कितनी रूप ग्रंथ हूँ .
कही बेटी कही पत्नी कही जननी हूँ .
.......हा सुनो मैं नारी हूँ .
तुम्हारे लिए अपरिभाषित हूँ .
........
मीरा पाण्डेय उनमुक्त
नारी है आकाश, कोई छोर नहीं है।
नारी एक नदी निर्मल जल सरिता।
नारी जैसा चंचल कोई और नहीं है।
जन्म मनुज का तेरे ही आंचल में।
बिन तेरे सुहानी कोई भोर नहीं है।
अप्रतिम तेरा नेह स्नेह वात्सल्य।
तुझ जैसी करता कोई गौर नहीं है।
प्रेम का अंकुर पनपे तेरे अन्तर से।
प्रेम को तुझ बिन कोई ठौर नहीं है।
तेरी अठखेलियां मन का चैन चुराये।
तुझ जैसी तो कोई चितचोर नहीं है।
तेरे रूप निराले करूँ बखान कहां।
तुझसी कोई घटा घनघोर नहीं है।
विपिन सोहल
कई बार,
बार-बार।।
आलम्ब से गिरी हूँ मैं,,..
कभी तत्काल,
कभी कुछ क्षण ठहरी हूँ मैं,,,,😢
आह री विडम्बना !!!
अपनी नारित्व पर ,
अभिमान करूँ,
या भोग्या का ,
अपमान सहूं।।
जब कोई? ????
पिता तुल्य पुरुष नेत्रों में,
वासना की उन्माद लिए,
दृष्टि डालता है मुझपर,,,
तो लज्जित हो जाती हूँ मैं,,..
....
जब भातृ तुल्य पुरुष,,
झाँकने की चेस्टा करता है,,
मेरे वस्त्रों के अंदर ।।।
तब मेरी स्त्रीत्व तार-तार,,
हो जाती है...
कई बार,
बार-बार,,,,,
प्रतीकों से संकेतो से,
अपमानित होती हूँ मैं,,,
आखिर मेरे शील को,
मेरे मर्यादा को,
मेरे अस्तित्व को,
सरंक्षण देगा कौन,,,
मेरे इस प्रस्न पर
सब क्यों है मौन,,,,,,,.,😢😢
.......राकेश पाण्डेय
नारी सर्व महान।।
सकल जगत उद्धारणी।
सावित्री दुर्गा स्वरूप।।
धर्म ज्ञान की खानि है।
वीर पुरूष की मातृ है।
ध्रुव प्रह्लाद की जननी।
गार्गी अहिल्या लक्ष्मी।
शत शत सूर्य-सदृशः।
सदा नमन है नमन।
सादर वंदनीया नारी।
जाकी रही भावना जैसे ,
नारी दिखी है उसको वैसी ।मात दिखे जब पुत्र बने है,
बहन दिखे तब भाई ॥
..
बेटी दिखे जब बाप बने वो,
त्रिभुवन छोड के आयी ।
नारी दिखे वो काम जगे जब,
वंश वृक्ष बन छाये ॥
नारी प्रभु की उत्तम रचना,
भव संसार समायी ।
''शेर'' कहे जब पाप जगे तब,
नारी लूटी जायी ॥
नारी तुम विश्वास हो।
तुम बहुत हीं खास हो।
तुम्हीं से जीवन पनपता है।
तुम सबके जीवन की आस हो।
नारी तुम अपनी हुनर को पहचानो।
उठो काम पे लग जाओ और सबको जगाओ।
तुम्हीं हो दुर्गा,तुम्हीं हो काली।
तुम्हीं करती सबकी रखवाली।
नारी तुम बच्चों की आस हो।
उनके लिये तुम खास हो।
तुममें कितना धैर्य भरा है।
सबको समेटे घर में पास हो।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
Hari Shankar Chaurasia
नारी को न विसार
नारी श्रष्टि का श्रंगार ।।
नारी से ही नर है
नारी से हँसता संसार ।।
दैवी रूप जान नारी को
हृदये धर सुविचार ।।
भव सागर से तरेगा
उन्नति के खुलेंगे द्वार ।।
नारी कोमल नारी लज्जा
कर उससे सद आचार ।।
बनाये भी गिराये भी
शुभ स्वप्न कर साकार ।।
सच्चाई ही सदा रही
फरेबी रूप निकार ।।
सच्चे मन से पूजिये
मिलेगा प्रभु का प्यार ।।
श्रष्टि की अप्रितम कृति
''शिवम्" सुख का सार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
Eti ShivhareEti and 133 others joined "भावों के मोती" within the last two weeks. Give them a warm welcome to your community!
कौन कहे नारी बेचारी
एक ही है सब पर भारी
देश विदेश में नाम कमाए
लोगों में नई आश जगाए
सुख दुःख में सहभागी है
मुश्किल में नहीं भागी है
जो नारी होकर कर जाए
नहीं कोई वो कर दिखलाए
पति राम तो सीता बन जाए
राधा सा वो वो प्रेम कर जाए
दुश्मन से वो सदा लड़ लेती है
बन काली शीष भी हर लेती है
इति शिवहरे
Vinay Gautam
नारी प्यार है, नारी दिल है।
नारी आत्मसम्मान है।
नारी से आज है, नारी से कल है।
नारी से ये जहान है।।
नारी ही दुर्गा, नारी ही काली।
शक्ति-स्वरूपा समान है।
नारी ही बिटिया, नारी ही संगिनी।
नारी मातृत्व महान है।।
नारी नहीं,तो क्या है जीवन।
अर्थहींन वीरान है।।
ना छाया हैं, ना ही है फल।
जीवन सूखें ब्रक्ष समान है।।
स्वरचित
#नारी_क्या_है।
विनय गौतम....
स्थान - Dubai..
नारी शक्ति अब तुमको चौखट से बाहर आना
अपने हर अधिकार के सम्मान को अब है पाना
पुरुषों समाज के अत्याचारों को अब तोड़कर
लिंग भेद के भ्रम को इस समाज से मरोड़कर
तुम्हारी आत्म शक्तियों को फिर से जगा कर
अबला हो तुम इस सोच को फिरसे बदल कर
ईश्वर ने बराबर का अवकाश दिया है हमको
हर संघर्ष को जमकर निपटा दिखाना सबको
तुम्हारी हर ताक़त को पुरुष अपने नाम करली
सुंदरता में उलझकर मन की हर शक्ति हरली
मीठा देना उन बातों को अबला तुम्हें भाताती
भूले नही संसार कभी मर्दों की भी हम जननी
आँखो से आँसू नही ज्वाला सी अग्नि दिखाना
नारी शक्ति अब तुमको चौखट से बाहर आना
✍🏻..राज मालपाणी
CM SharmaCM and 4 others manage the membership and posts for "भावों के मोती". II नारी II
शिव में प्राण शक्ति हो तुम...
राम की मर्यादा हो तुम ....
ह्रदय में धारण जो सब करे.....
ऐसी निश्छल धरा हो तुम....
विरह प्रेम परकाष्टा हो तुम....
सृष्टि का आधार भी हो तुम...
चर अचर में प्रेम रूप का...
राधा कृष्ण आधार हो तुम....
माँ यशोधा का लाड प्यार तुम...
झांसी बाई देश सम्मान हो तुम...
तुम हो तो प्राण संचार जगत में....
शिव भी शव हैं गर नहीं हो तुम....
(शमशान है सब गर नहीं हो तुम)
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
०१.०९.२०१८
अबला
मैं नारी हूं इस भारत की
माँ भारती का मान हूँ मैं
उपमा अबला की ना तुम दो
इस देश की इक पहचान हूँ मैं।।
मैं शक्ति हूँ माँ चण्डी की
मैं क्रोध में देवी काली हूं
मैं ममता कि अद्भुत मूरत
मैं अमृत की एक प्याली हूं ।।
मैं सक्षम हूं खुद लड़ने को
अपने अधिकार को पाने को
मैं तनिक नहीं तैयार "अलक"
खुद को अबला कहलाने को ।।
तुमको इसका एहसास नही
ये शब्द बड़ा ही निर्मम है
नारी को निर्बल कर देता
अस्तित्व नहीं उसका कम है ।।
अशोक सिंह अलक
दिल्ली
स्वरचित अप्रकाशित
Sumitranandan PantSumitranandan and 4 others manage the membership and posts for "भावों के मोती".
सम्बोधनों का गुलदस्ता, जब मैंने देखा , मैं झूमा,
बार बार चूमा मैंने, बार बार मैंने चूमा।
वह सह न सकी मेरा रोदन,
पिघला माँ का सम्बोधन,
वक्ष से चिपटा, ऐसा करती सम्मोहन,
ऑखों ऑखों में कर देती, मेरी बात का अनुमोदन,
उसके होते कभी नहीं टिके, मेरे आगे अवरोधन,
{ माँ का प्यारा सम्बोधन, नहीं माँगता संशोधन }
मेरी बलायें लेती रहना,
मैं था अपने वंश का गहना,
अच्छे कपड़े पहना पहना,
मेरी कमियाँ कभी न कहना,
भावना में बहते ही रहना ।
{सम्बोधन का, यह था कहना,
यही तो होती , है बस बहना }
बसन्त आया अलबेला,
सजा उमंगों का मेला,
बोला क्यों रहता है अकेला,
दो दिन का है सारा खेला,
भौंरे सा कोई गीत गाले
तू भी अपना मीत बनाले,
केश निराले, वेश निराले
कर दे सब उसके हवाले,
न होगा जीवन रीता रीता,
{सम्बोधन की भेंट हो गई,
एक प्यारी परिणीता }
प्रकृति मेरे पास आई, पर ख़ाली हाथ नहीं आई,
एक कली भी साथ लाई, ज़िन्दगी मेरी मुस्कराई,
यह थी उम्र की अंगड़ाई, मन को बहुत बहुत भाई,
भावनायें साथ उमड़ आईं, और मेरे साथ रहीं लेटी,
{सम्बोधन बोला ले ले, ये तेरी प्यारी बेटी}
नारी तू अबला होती तो कैसे होता यह सम्भव,
तेरे बिना तू बता कैसे होता पौरूष का उदभव,
अरे ! शिव भी तो तेरे कारण शिव है,
वरना क्या है केवल शव।
तू नहीं जानती, तू ही तो , प्रकृति की अदभुत कलरव।
{नारी तेरे ऑचल का जब भी, आकाश सा वृहद विस्तार होगा,
निश्चित ही इस धरती पर जगदम्बे का अवतार होगा}
मैं नारी,सृष्टि की संरचना
अद्भुत सामंजस्य बैठाए
अर्धनारीश्वरी रचना।
मैं,ही तपस्या ,ध्यान
सृष्टि की कर्ता-धर्ता
चलायमान।
मैं,ही तीज-त्यौहार
मंगलो का हार
प्यार से दुलार।।
मैं,ज्ञान का भंडार
अज्ञानता से तारती
सरस्वती भारती।।
मैं,कंचन काया
बंदिशें तोड़ती समाज की
करुणा छाया।।
मैं,ही शक्ति-भक्ति
नवांकुर आधार
ममता अपार।।
मैं,निस्वार्थ भाव
विश्वास पूर्ण कार्यरत
कृतार्थ नारी।।
मैं,पिता का स्वाभिमान
देती नई पहचान
स्वयं पर अभिमान।।
मैं,स्नेह गगरी
अथाह दुख-दर्द सहती
नयनों से झलकी।।
मैं,स्वयं इठलाती सबला
ताक पे रख पुरुष मानसिकता
नही अब अबला।।
वीणा शर्मा
स्वरचित
विषय -नारी
...नारी एक रूप अनेक
माँ...
सर्व प्रथम तुम माँ हो मेरी
लायी हो एक देह अस्तित्व में
दुलार ,स्नेह वात्सल्य
की साक्षात प्रति मुर्ति
पोषित करती एक सभ्यता
ममता का खजाना
भर भर लुटाती
हर दुख से वंचित करती
तेरी महिमा ईश भी ना जान सके
मैं तो केवल ....संतान तेरी
तुम धन्य हो माँ ....
भार्या...
प्रेयसी बन आयी जीवन में
और प्रेरणा बन बैठी
देह,मन,प्रेम ,सर्वस्व कर अर्पण
मेरे मन के भीतर जा बैठी
मान दिया सम्मान दिया
परमेश्वर जैसा स्थान दिया
मैने दंभ दिखाया पौरुष का
पर प्रेम का तुमने वार किया
तुम धैर्य ,त्याग की स्वामिनी
बस कहा नही हर बार किया
मेरी छाया दे गोदी में
हर सुख से मुझे भरपूर किया
कैसे ना संगिनी कहुं तुम्हे
हर स्वाँस स्वाँस में जगह तुम्हें
बहन....
तुम बहन मेरी एक रिश्ता था
हर कदम कदम पर साथ रहा
जाना तुमसे हर भावों को
रक्षाधागों के प्रभावों को
तज कर अपने अधिकार सभी
अपने हिस्से का प्यार दिया
बनकर क्षमा की मूर्ति सदा
मुझे भाई का अधिकार दिया
बेटी...
फिर बेटी बन वो क्षणभी दिया
के तुम पर मैं अभिमान करूं
चलुं सीना तान के जग में मैं
ह्र्दय से लगा आभार करुं
तुम भरो उडान छू लो क्षितिज
मैं द्वार खड़ा सत्कार करुं
नारी हर रूप में पूजित है
नतमस्तक हो सम्मान करो
हर गुण नारी भीतर होता
अवहेलना छोड़ सम्मान करो...!!
रीना गोयल
हरियाणा
नारी
********
नारी तुम युगो से पूजित
तुम्हे पूजे वेद पुराण
मानव स्वार्थ की बलिवेदी पर
हुई शोषित,
बना शोषण तेरा इतिहास
बस ,बहुत हो चूका
तुम पर पशुता का आत्याचार
अब मौन त्याग
खीच म्यान से तलवार
देख जागरण का विगुल बजा
तू महा समर का साज सजा
न कुरीतियो की बलि चढ़े
न दामन छूने गंदे हाथ बढे
देख अतित के पन्ने
चिन्हित तेरी गाथा का गान !
कमर कस
अब कम न हो तेरी आन !
प्रलयंकारिणी !
असुर संहारिणी !
रण चंडी का रूप तू धर
"अबला "नही
"सबला " हो तुम
आज यह सब जाने नर !
स्व रचित - उषा किरण
नारी से नारायण जन्मे नारी गुणों की खान।
नारी जगदंबिका है ये खुद अपनी पहचान।
नारी को अवला ना माने सवला सबने देखी,
सब जानते नारी जन्मे श्री राम भक्त हनुमान।
सज्जित सृष्टि करती है नारी हमें ईश वरदान।
रामकृष्ण इसीने जन्मे किया जगत कल्याण।
माँ बहन बेटी पत्नी सबके इसने रूप धराऐ,
उमा रमा बृह्माणी सबमे इसकी ही पहचान।
नारी प्रीति रीति सब जैसे इसमें सृष्टि समाई।
नारी की महिमा क्या सब जानें लोग लुगाई।
बनिता विश्व रचयिता है ये सारी दुनिया जाने,
कभीनहीं रही अवला अपनी रानीलक्ष्मीबाई।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय मगराना
गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
जब तक नारी ने सहन किया ,
कहलाई वह संस्कारी है ।
आवाज उठाई जब उसने ,
सहनी वह नर को भारी है ।
अब अबला नारी रही नहीं ,
कहलाय नहीं बेचारी है ।
लड़ना सीखी हालातों से ,
सुनना पड़ता व्यभिचारी है ।
दुनिया के सारे क्षेत्रों में ,
बराबर पुरुष के आई है ।
कठिन हुआ नर को सहना ,
कहता उसकी अधमाई है ।
उस दासत्व के औचित्य पर ,
पुरुष क़ौम बलिहारी थी ,
कैसी विडम्बना है नर की ,
वह शक्ति बनी बेचारी थी ।
पुरुषों के मन को भाती थी ,
वह श्रद्धा बनी कामायनी थी ।
अबला सबने स्वीकारी थी ,
जो वास्तव में नारायणो थी ।
वह सर्व मंगला दुर्गा
है ,
वह गार्गी जैसी कुशाग्र है ।
दोहरी भूमिका में आगे ,
प्रभुत्व वर्चस्वी आगर है ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )
कौन सोंचेगा कि नारी बगावत करे
कौन सोंचेगा कि नारी आवाज उठाए
क्यों धर्म कहता है कि "नारी तेरे लिए मोक्ष नहीं है"
क्यों धर्म कहता है कि "नारी नरक का द्वार है"
क्यों धर्म कहता है कि "नारी अपवित्र होती है"
क्यों नारी को मस्जिदों के भीतर जाने नहीं दिया जाता?
क्यों पुरूष साधु संयासी धर्म सभी मिलकर "नारी का शोषण करते हैं"?
क्यों लोग भूल जाते हैं कि नारी ने ही उन्हें जनम दिया
नारी ने ही उसे स्तन पान कराया
नारी की गोद में ही बैठकर आदमी आदमी बना।
शाको कहता है हे नारी! आज तू धर्म से मुक्त हो जाओ
कब तक अपमानित, अनादृत होती रहोगी।
अपने अस्तित्व को पहचानो
तू है तो सृष्टि है
तेरे बिना नहीं कोई संस्कृति है।
हे नारी! कब करोगी तू
अपनी आत्मा, अस्तित्व की घोषणा।
तू जहाँ है वहीं नैतिकता है।
तुझ में है माँ का अस्तित्व
बहन का अस्तित्व
बेटी का अस्तित्व
पत्नी का अस्तित्व
पर नारी का अस्तित्व तुझमें कहाँ है
क्या तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं?
तुम्हारी कोई आत्मा नहीं?
तुम कब करोगे अपने अस्तित्व को स्थापित?
तू कब कहोगे कि
मैं मैं हूँ
मैं किसी पत्नी नहीं
किसी की माँ नहीं
किसी की बहन नहीं
तू अनंत अस्तित्वो के संबंध में एक मधुरम संबंध हो अनुपम अस्तित्व हो।
तुम्हारी आत्मा में प्रेम है
तुम्हारा प्रेम व्यक्तित्व की असली आवाज है।
जीवन की प्रफुल्लता शांति आनंद सब तुम्हारे ही अस्तित्व में है।
तू सृष्टि का केन्द्र हो।
तुम बिन सृष्टि उदास है
मौन है
थका-हारा है।
तू हंसती हो तो सृष्टि प्रफुल्लित होती है
तुम्हारी मुस्कुराहट से ही जग में झंकार है
तू नई सुवास है
तू नया गीत है।
हे नारी! आज तुझे सृजन की मार्ग पर चलना होगा
नूतन निर्माण की दिशा में चलना होगा ।
हे पुरूष! आज तुझे नारी को मान सम्मान प्रतिष्ठा देना होगा।
हे नारी तुझ में है संगीतपूर्ण व्यक्तित्व
नृत्यपूर्ण व्यक्तित्व
तुझ में है अनंत प्रतीक्षा
अनंत क्षमता अनंत शक्ति
हे नारी!
तू मौन भी है
चुप भी है
प्रेम भी है
करूणा भी है ।
तू है तो नई संस्कृति है
तू जहाँ है
वहीं प्रेम सहानुभूति दया आस्था निष्ठा है।
फिर भी नारी का मन क्यों निरंतर दुख से भरे हैं?
हे नारी! बता क्यों तू किसी को तिलक लगाकर युद्ध भूमि में भेजती हो
क्यों रण भूमि में कभी तुम्हारा पुत्र कभी पति कभी प्रेमी मरता है।
कोई जब मरता है तब तेरा ही संबंध मरता है ।
हे नारी इस शब्द को समझो
पुरूष के जाल से बाहर निकलो
इसके हाथों का खिलौना मत बनो
तू महाशक्ति हो
अपनी शक्ति को पहचानो
हे नारी! क्यों तू पुरूषो की खींची रेखाओ को मान लेती हो?
क्या प्रेम की कोई रेखा होती है?
तू जहाँ है वहीं प्रेम है
और प्रेम की ना कोई सीमा ना रेखा होती है ।
हे नारी! तू नई संस्कृति, नया समाज, नई सभ्यता , पुरूष का आधार हो ।
हे नई पीढ़ी की नारी हिम्मत जुटाओ आगे बढ़ो
और स्वतंत्र उन्मुक्त उड़ान भरो, विचरण करो।
हे नारी! आज बदल दे धर्म की किताब को तू
लिख दो अपने अस्तित्व की किताब तू
तू लोपा घोषा विश्वभरा की संतान है
कल्पना चावला सुनीता विलियम्स की उम्मीद है
आज लिख दे स्वर्ण अक्षर में स्वर्ग मोक्ष आत्मा की काव्य तू।
@शाको
स्वरचित
पटना
नीर सिक्त नयन नारी
विपदा की विह्वल दशा!
कहाँ गई प्रकृति कांति
प्रत्यंचा, पुलकित ऋचा!
क्यों सुस्त हुआ है तन?
क्यों हार गई तुम मन।
क्यों कष्टों को पीकर,
परित्याग रही जीवन।।
क्या भूली स्व सामर्थ्य?
या रहा घट वह अर्थ्य?
किंतु,हो जो कुछ भी
न होना तुम्हे असामर्थ्य।।
अब कर ले चित्त जाग्रत
मिटा दे सारे कष्ट दाग।
बिन सजग हुए ,हे नारी!
जग में होगा कैसे राग?
✍परमार प्रकाश
#स्वरचित_सृजन
विपदा की विह्वल दशा!
कहाँ गई प्रकृति कांति
प्रत्यंचा, पुलकित ऋचा!
क्यों सुस्त हुआ है तन?
क्यों हार गई तुम मन।
क्यों कष्टों को पीकर,
परित्याग रही जीवन।।
क्या भूली स्व सामर्थ्य?
या रहा घट वह अर्थ्य?
किंतु,हो जो कुछ भी
न होना तुम्हे असामर्थ्य।।
अब कर ले चित्त जाग्रत
मिटा दे सारे कष्ट दाग।
बिन सजग हुए ,हे नारी!
जग में होगा कैसे राग?
✍परमार प्रकाश
#स्वरचित_सृजन
मैं आज की नारी हूं
मैं नहीं किसी से हारी हूं
मैं अबला नादान नहीं
मैं दबी पहचान नहीं
मैं तो स्वाभिमानी हूं
मैं आज की नारी हू
जो काम पुरुष ना कर पाए
वह काम मैंने करके दिखलाएं
इस पुरुष प्रधान में मैंने अपना लोहा मनवाया
हिमालय की चोटी पर बछेंद्री पाल हूं मैं
हवाओं में उड़ान भरती सरला ठकराल हूं मैं
खेलों की मल्लिका नवजोत कोर में
डॉक्टर बन मैंने दिखलाया मैं आनंदी गोपाल हूं में
वैज्ञानिकों की खोज असीमा चटर्जी हूं मैं
बैंकिंग की व्यापारी हूं मैं अरुंधति भट्टाचार्य हूं मैं
वर्दी का गर्व हूं किरण बेदी हूं मैं
कवित्री यों की महारानी हूं मैं सरोजिनी
बैडमिंटन की हूं मैं रानी सानिया नेहवाल हूं मैं
चांद को छू जाती कल्पना चावला हूं मैं
इस कलयुग में मिलते सम्मान की आभारी हूं मैं
गलत निगाह ना डालो मुझ पर मैं ज्योति नहीं चिंगारी हूं मैं
लक्ष्मी बाई बनकर गर मैदान में डट जाती
विध्वंस कायनात का कर जाती ज्वालामुखी से फट जाती है
मैं मां बहन पुत्री पत्नी हूं मैं मैं भुजबल से जीती जाती
जिस युग में नर नारी कदम मिलाकर चलते हैं
मैं उस भविष्य स्वर्ण युग कि एक आशा की चिंगारी हूं
नारी हूं मैं नारी हूं सर्व शक्तिशाली हूं
स्वरचित हेमा जोशी
नारी की महागाथा करूं मैं क्या गुणगान
नारी की ममता इस सृष्टि में सबसे महान .
कभी माँ बनकर ममता लुटाती
कभी जीवन संगिनी बनकर पति का हर पग साथ निभाती.
कभी बहू कभी बेटी बनकर साथ
निभाती
चाहे तपती धूप हो या गर्म रेतीली
हवा का झोंका पर कभी हिम्मत नहीं हारती .
नारी का जीवन क्या हैं आसान
हथेली पर हर कदम रखनी होती जान .
नारी का जीवन हैं एक त्याग तपस्या
जिसमें हर पल एक नया अनुराग हैं एक नई समस्या .
दिल का उजाला सपने बुननेमें बीत गया
रात्रि संतान को लोरी सुनाने में जिस घर को
मकान से घर बनाया उस घर में मेरे नाम का
जिक्र भी ना था .
हर कदम कुर्बान होती हूँ
हर कदम दुःखों के भवसागर फिर भी कर जाती हूँ .
नारी हूँ जीना चाहती हूँ
किसी मंदिर के देवी की तरह पूजे जाने
की चाह नहीं अपने वजूद आत्मसम्मान
के संग पहचान बनाना चाह हैं मेरी .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
नारी की ममता इस सृष्टि में सबसे महान .
कभी माँ बनकर ममता लुटाती
कभी जीवन संगिनी बनकर पति का हर पग साथ निभाती.
कभी बहू कभी बेटी बनकर साथ
निभाती
चाहे तपती धूप हो या गर्म रेतीली
हवा का झोंका पर कभी हिम्मत नहीं हारती .
नारी का जीवन क्या हैं आसान
हथेली पर हर कदम रखनी होती जान .
नारी का जीवन हैं एक त्याग तपस्या
जिसमें हर पल एक नया अनुराग हैं एक नई समस्या .
दिल का उजाला सपने बुननेमें बीत गया
रात्रि संतान को लोरी सुनाने में जिस घर को
मकान से घर बनाया उस घर में मेरे नाम का
जिक्र भी ना था .
हर कदम कुर्बान होती हूँ
हर कदम दुःखों के भवसागर फिर भी कर जाती हूँ .
नारी हूँ जीना चाहती हूँ
किसी मंदिर के देवी की तरह पूजे जाने
की चाह नहीं अपने वजूद आत्मसम्मान
के संग पहचान बनाना चाह हैं मेरी .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
" नारी"
मैं नारी बीजों की जननी
जगत सृजन सृष्टि हूँ
मैं नारी बीजों की जननी
करती जीवों का अंकुरण हूँ
मैं नारी मृणमयी
सर्वव्यापी शक्ति हूँ
मैं नारी असुर संहारिणी
जीवन शरणदायिणी हूँ
मैं नारी ममता की मूर्ति
तो कहीं चाण्डाली हूँ
मैं नारी वीरों की जननी
शहीदों की आहुति देख
पाषाण हूँ
मैं नारी शांतिदायिणी
युद्धभूमी की ललकार हूँ
मैं नारी धीर स्थिर
सागर की निचोड़ हूँ
मैं नारी ज़ुल्मों को
झेलकर भी सहनशील हूँ
मैं नारी वक्षों को चीर
बुझाती सबकी प्यास हूँ
मैं नारी अदम्य साहस धैर्य
अनंत प्रेम अनुराग हूँ
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
01/09/2018
मैं नारी बीजों की जननी
जगत सृजन सृष्टि हूँ
मैं नारी बीजों की जननी
करती जीवों का अंकुरण हूँ
मैं नारी मृणमयी
सर्वव्यापी शक्ति हूँ
मैं नारी असुर संहारिणी
जीवन शरणदायिणी हूँ
मैं नारी ममता की मूर्ति
तो कहीं चाण्डाली हूँ
मैं नारी वीरों की जननी
शहीदों की आहुति देख
पाषाण हूँ
मैं नारी शांतिदायिणी
युद्धभूमी की ललकार हूँ
मैं नारी धीर स्थिर
सागर की निचोड़ हूँ
मैं नारी ज़ुल्मों को
झेलकर भी सहनशील हूँ
मैं नारी वक्षों को चीर
बुझाती सबकी प्यास हूँ
मैं नारी अदम्य साहस धैर्य
अनंत प्रेम अनुराग हूँ
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
01/09/2018
नारी की कोख से जन्म लेती है नारी ,फिर भी भ्रूण हत्या करवाती है ,
नारी तू दोषी है ।
माँ बेटी बहन बन मान है पाती पर,सास बहू ननद बन सबको नाच नचाती है ,
नारी तू दोषी है ।
कर्तव्यनिष्ठ है बहुत पर ख़्वाहिशों के मायाजाल में फँस जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
दो कुल की लाज है रखती पर दहेज के लेन देन में तुल जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
प्रकृति की अनमोल है कृति पर रूप यौवन के बाज़ार मे बिक जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
अपमान कष्ट पीड़ा सह जाती पर ,चुग़ली निन्दा से बाज़ न आती है ,
नारी तू दोषी है ।
अपनी ही क़ौम की है दुश्मन ,इक को दूसरे की उन्नति खटक जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
कुछ करे या न करे ,हर हाल मे जग को ऊँगली उठाने का हक़ दे देती है ,
नारी तू दोषी है ।
मेनका ,उर्वशी या हो सूर्पनखा ,सुर असुर के विनाश का कारण बन जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
कुन्ना .....
नारी तू दोषी है ।
माँ बेटी बहन बन मान है पाती पर,सास बहू ननद बन सबको नाच नचाती है ,
नारी तू दोषी है ।
कर्तव्यनिष्ठ है बहुत पर ख़्वाहिशों के मायाजाल में फँस जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
दो कुल की लाज है रखती पर दहेज के लेन देन में तुल जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
प्रकृति की अनमोल है कृति पर रूप यौवन के बाज़ार मे बिक जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
अपमान कष्ट पीड़ा सह जाती पर ,चुग़ली निन्दा से बाज़ न आती है ,
नारी तू दोषी है ।
अपनी ही क़ौम की है दुश्मन ,इक को दूसरे की उन्नति खटक जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
कुछ करे या न करे ,हर हाल मे जग को ऊँगली उठाने का हक़ दे देती है ,
नारी तू दोषी है ।
मेनका ,उर्वशी या हो सूर्पनखा ,सुर असुर के विनाश का कारण बन जाती है ,
नारी तू दोषी है ।
कुन्ना .....
नारी तू प्रेम है, श्रद्धा है
त्याग की मूर्ति है ममता है
समर्थ है,नहीं अबला है
कोमल है, तो तू ही दुर्गा है
घर की धुरी है, विश्वास है
जननी है तू,तू ही सूत्रधार है
व्यक्तित्व की गरिमा है,भाव है
नारी तू स्वयं एक सम्मान है
नारी तू मेहँदी है, त्यौहार है
पुरुष की पूरक है गले का हार है
मीरा सी भक्ति है, राधा सा प्यार है
तुझसे ही तप्त जीवन,शीत फुहार है
चपला है चंचला है,सौंदर्य भरा है
वाणी में माधुर्य है,नारीत्व खिला है
नारी तू लाज है रिश्तों का साज है
हे शक्ति स्वरूपा तू सृष्टि का नाज है
ऋतुराज दवे
त्याग की मूर्ति है ममता है
समर्थ है,नहीं अबला है
कोमल है, तो तू ही दुर्गा है
घर की धुरी है, विश्वास है
जननी है तू,तू ही सूत्रधार है
व्यक्तित्व की गरिमा है,भाव है
नारी तू स्वयं एक सम्मान है
नारी तू मेहँदी है, त्यौहार है
पुरुष की पूरक है गले का हार है
मीरा सी भक्ति है, राधा सा प्यार है
तुझसे ही तप्त जीवन,शीत फुहार है
चपला है चंचला है,सौंदर्य भरा है
वाणी में माधुर्य है,नारीत्व खिला है
नारी तू लाज है रिश्तों का साज है
हे शक्ति स्वरूपा तू सृष्टि का नाज है
ऋतुराज दवे
नारी नही तू पानी है,
आँखों के अश्रु की कहानी है,
नारी नही तू पानी है।
जिस बर्तन में रख दूँ तुझको
उसमे ही ढल जानी है,
नारी नही तू पानी है।
जिस रंग मे रंग दूँ तुझको
उसमे ही रंगजानी हैं,
नारी नही तू पानी है।
तुझे याद नही तेरा वज़ूद
तेरी निर्मल कहानी है,
नारी नही तू पानी है।
जीती है औरों के लिए
तू चुनरिया धानी हैं,
नारी नही तू पानी है।
माँ हैं तू या पत्नी हैँ
तू राधा दीवानी हैं,
नारी नही तू पानी है।
पूरा हर कर्तव्य किया
अधिकारों से अनजानी है,
नारी नही तू पानी है।
मोनिका गुप्ता
स्वरचित
नारी"
नारी हैं जग की अधिष्ठात्री
नारी है सम्मान की अधीकारी
नारी है तो सृष्टि है
वरना यहाँ किसकी हस्ती हैं
नारी मे है ममता
नारी करुणा की सागर हैं
नारी ही अन्नपूर्णा है
जिसनें दुनिया सारी संभाली है
नारी है मांँ, नारी है भार्या
नारी है बेटी, नारी हैं बहना
नारी तो है सृष्टि की गहना
नारी है तो नर है वरना कहाँ
कल वह हैं?
शरीर मे जो है नाड़ी का स्थान
वही स्थान समाज में नारी का है
नाड़ी रूक जाये तो जिंदगी थम जाये
नारी रूठे तो जिंदगी रूठ जाये
नारी है दुर्गा, नारी है काली
नारी ही नारायणी है
इसमे पूरी दुनिया समाई है
इसमे पूरी दुनिया समाई है।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
नारी हैं जग की अधिष्ठात्री
नारी है सम्मान की अधीकारी
नारी है तो सृष्टि है
वरना यहाँ किसकी हस्ती हैं
नारी मे है ममता
नारी करुणा की सागर हैं
नारी ही अन्नपूर्णा है
जिसनें दुनिया सारी संभाली है
नारी है मांँ, नारी है भार्या
नारी है बेटी, नारी हैं बहना
नारी तो है सृष्टि की गहना
नारी है तो नर है वरना कहाँ
कल वह हैं?
शरीर मे जो है नाड़ी का स्थान
वही स्थान समाज में नारी का है
नाड़ी रूक जाये तो जिंदगी थम जाये
नारी रूठे तो जिंदगी रूठ जाये
नारी है दुर्गा, नारी है काली
नारी ही नारायणी है
इसमे पूरी दुनिया समाई है
इसमे पूरी दुनिया समाई है।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
* मैँ हूँ समायी *
(1) संस्कृती में , संस्कार में
आचरण और व्यवहार में
प्यार में दुलार में
मैँ हूँ समायी ll
(2) तीज में ,त्योहार में
रूप में ,श्रृंगार में
दो कुलो के द्वार में
मै हूँ समायी ll
(3) राखी की मौली में
रंगो भरी होली में
सजी हुयी डोली में
मैँ हूँ समायी ll
(4)दया में ,ममता में
त्याग की क्षमता में
शांती में ,चंचलता में
मैँ हूँ समायी ll
(5) साथी में ,संगिनी में
सुता में ,भगिनी में
सीता सी तपस्विनी में
मैँ हूँ समायी ll
(6) आदर में ,सत्कार में
हर -एक किरदार में
सर्वस्व संसार में
मैँ हूँ समायी ll
स्वरचित
गीता लकवाल
(1) संस्कृती में , संस्कार में
आचरण और व्यवहार में
प्यार में दुलार में
मैँ हूँ समायी ll
(2) तीज में ,त्योहार में
रूप में ,श्रृंगार में
दो कुलो के द्वार में
मै हूँ समायी ll
(3) राखी की मौली में
रंगो भरी होली में
सजी हुयी डोली में
मैँ हूँ समायी ll
(4)दया में ,ममता में
त्याग की क्षमता में
शांती में ,चंचलता में
मैँ हूँ समायी ll
(5) साथी में ,संगिनी में
सुता में ,भगिनी में
सीता सी तपस्विनी में
मैँ हूँ समायी ll
(6) आदर में ,सत्कार में
हर -एक किरदार में
सर्वस्व संसार में
मैँ हूँ समायी ll
स्वरचित
गीता लकवाल
अडिग है अटल है
अचल है क्यूँ कि
वो नारी है
विखण्डित मत कीजिये
उसकी वर्जनाओं को
समझ क्या सकेंगे आप
उस खुली किताब को
पढ़कर भी पढ़ न सके
जिसकी संवेदनाओं को
चाहते हैं तन ही नहीं
मन भी गंगा जल हो
केवल तन पर ही नहीं
मन पर भी आपका प्रभुत्व हो
दीजिये समानता का हक
सर आँखों पर बिठाएगी
थोड़ा सा सम्मान दो
कभी न भूल पायेगी ।
घर उसका मंदिर है
परिवार उसका गहना
रूप अन्नपूर्णा का है
तो माँ बनना सपना
थोड़े से आसमान की है
उसको भी जरुरत
दे सको तो दे दो
वरना ऐसे भी है खुश...☺
स्वरचित .. ' अर्पना '
=======
नारी आरती है, नारी टंकार
नारी अगर है, पूजे संसार
नारी अन्नपूर्णा, नारी सुगंध
नारी पग घुंघरू, करती प्रबंध
नारी मै पुरुष है, पुरुष से नारी
दोनों सम्पूरक, चलती जिंदगानी
नारी श्रृंगार, नारी है प्रेम
नारी समर्पण, नारी से तेज
नारी है दीपक, नारी त्यौहार
नारी नहीं तो सूना संसार
नारी है शक्ति, नारी आंदोलन
नारी पताका फहराती है हरदम
नारी है उपवन, नारी है मौसम
नारी मिटाती है, जीवन मै सब तम
नारी गर अपना मूल्य गिराती
नहीं कोई शक्ति फिर उसको बचाती
स्वरचित सीमा गुप्ता
अजमेर
1. 9. 18
नारी आरती है, नारी टंकार
नारी अगर है, पूजे संसार
नारी अन्नपूर्णा, नारी सुगंध
नारी पग घुंघरू, करती प्रबंध
नारी मै पुरुष है, पुरुष से नारी
दोनों सम्पूरक, चलती जिंदगानी
नारी श्रृंगार, नारी है प्रेम
नारी समर्पण, नारी से तेज
नारी है दीपक, नारी त्यौहार
नारी नहीं तो सूना संसार
नारी है शक्ति, नारी आंदोलन
नारी पताका फहराती है हरदम
नारी है उपवन, नारी है मौसम
नारी मिटाती है, जीवन मै सब तम
नारी गर अपना मूल्य गिराती
नहीं कोई शक्ति फिर उसको बचाती
स्वरचित सीमा गुप्ता
अजमेर
1. 9. 18
"नारी"
मैं अबला नहीं, स्वाभिमानी हूँ,
रखती अपने अंदर खुद्धारी हूँ,
आनंद दायनी, दुख हरणी,
गर्व है मुझे कि मैं नारी हूँ,
इच्छा शक्ति प्रबल रखती,
जग जननी , संस्कारी हूँ,
दूँ शौम्य स्नेह, शक्ति स्वरूपा हूँ,
बनूँ रणचंड़ी भी, दुश्मन पर भारी हूँ
बन रक्षक सरहद पर,
स्वर्णिम युग की तैयारी हूँ,
करते गर्व सब मुझपर,
सम्मान की मैं अधिकारी हूँ।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/9/18
शनिवार
मैं अबला नहीं, स्वाभिमानी हूँ,
रखती अपने अंदर खुद्धारी हूँ,
आनंद दायनी, दुख हरणी,
गर्व है मुझे कि मैं नारी हूँ,
इच्छा शक्ति प्रबल रखती,
जग जननी , संस्कारी हूँ,
दूँ शौम्य स्नेह, शक्ति स्वरूपा हूँ,
बनूँ रणचंड़ी भी, दुश्मन पर भारी हूँ
बन रक्षक सरहद पर,
स्वर्णिम युग की तैयारी हूँ,
करते गर्व सब मुझपर,
सम्मान की मैं अधिकारी हूँ।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/9/18
शनिवार
1सितंबर 2018
नारी तेरी यही कथा है,
सुनता नहीं कोईतेरी व्यथा है,
आज समझना तुझको होगा,
तोड़नी तुझको कु प्रथा है l
भूल जा अपनी वो कहानी,
आंचल मे है दूध नैनो मे पानी,
काली तुझको बनना होगा,
रक्त बीज की ख़त्म कहानी l
आज तू भाल उठाले,
रक्त रंजीत करदो नाले,
आंख उठा के देख सके न,
अपने को सूरज बना ले l
अब तू कमजोर नहीं है,
अब मर्द का जोर नहीं है
तोड़ दे अब सारे बंधन
तेरे जैसा कोईऔर नहीं है l
कुसुम पंत
स्वरचित
आहत मन से
नारी तेरी यही कथा है,
सुनता नहीं कोईतेरी व्यथा है,
आज समझना तुझको होगा,
तोड़नी तुझको कु प्रथा है l
भूल जा अपनी वो कहानी,
आंचल मे है दूध नैनो मे पानी,
काली तुझको बनना होगा,
रक्त बीज की ख़त्म कहानी l
आज तू भाल उठाले,
रक्त रंजीत करदो नाले,
आंख उठा के देख सके न,
अपने को सूरज बना ले l
अब तू कमजोर नहीं है,
अब मर्द का जोर नहीं है
तोड़ दे अब सारे बंधन
तेरे जैसा कोईऔर नहीं है l
कुसुम पंत
स्वरचित
आहत मन से
नारी,जो ना कभी थकी न हारी
अपना वजूद खो कर जिसने
निभाई बड़ी ईमानदारी से
अपनी हर जिम्मेदारी,
सबसे पहले उतरी इस धरती पर
एक परी,कहलाई किसी की पुत्री
घर में सबसे सयानी सबकी प्यारी
धीरे-धीरे बदला किरदार उसका
आई जिम्मेदारी उठाने की बारी
पिता के नाम से जानी जाती थी वो
अब थी पति से पहचान की बारी
बात यहीं पर खत्म हो जाती तो
और बात थी,कहानी अब थी जारी
निभाने को हर रिश्ता ..... बखूबी
सामने उसके चुनौती थी बड़ी भारी
सबकी इच्छाओं, कामनाओं, अभिलाषाओं
में बँट गईं एक दिन......... वह नारी
खो दिया अपने आपको सबमें फिर भी बोली,
यही तो है असली खुशी हमारी
वाह भारतीय नारी
वाह भारतीय नारी
स्वरचित -मनोज नन्दवाना
कौन कहता है कि अबला नारियाँ,
हर समय रही सबला हैं नारियाँ।
एक ही सिक्के के दो पहलू है,
नारी और पुरुष।
इसीलिए अर्धांगिनी भी ,
कहलाती हैं नारियाँ।
मां ,बहन ,बेटी ,
प्रेयसी और पत्नी,
हर रूप में,
पुरुषों का साथ,
निभातीं हैं नारियां।
नहीं है पीछे,
किसी से भी,
बलिदान का जौहर,
भी दिखातीं हैं नारियां।
झूठ यदि मानो ,
हमारी बात को।
तो इतिहास के पन्नों को,
उठाकर के देख लो।
जब हारा पुरूष, तो
तेग भी उठातीं हैं नारियाँ।
पर हे पुरूष प्रधान समाज,
नारी को क्या दिया तूने।
देव ऋण, ऋषी ऋण, पित्र ऋण,
सभी तो बनाये।
पर क्यों नही नारी ऋण,
बनाया तूने।
विधाता की रचना को,
नौ माह गर्भ में ,
धारण करके।
जिसने जन्म दिया तुझको।
क्या उसका भी,
कभी कोई ऋण,
चुकाया तूने।?
स्वरचित, स्वप्रमाणित
शिवेन्द्र सिंह चौहान (सरल)
ग्वालियर म.प्र.
सत्य स्वरूपा - नारी
============
जीवन एक कठिन डगर
पग पग पर है पहर- पहर
सुंदर स्वच्छंद प्रतिमा बन
घर की शोभा बन उभर- उभर
कन्या तू बाला तू नारी से, स्त्री तू
सर्वस्व छिन, सह कहर -कहर
बहती सरिता ज्यों मिलती सागर
तू प्रवाह बन, पर ,ठहर- ठहर
कही जाती, केवल जगत जननी
कहीं न तेरा सदन-सदन
कहने को,सम्मानित पूजनीय,,,
कविताओं में ,दोहों में ,छंदों में ,
पदों की पंक्तियों में, भावों में विचारों में
नहीं कहीं स्वतंत्र -स्वतंत्र
उन्मुक्त सामीप्य स्वीकार नहीं
बंधन मय जीवन दुभर- दुभर
जीवन एक कठिन डगर,,,,
पग पग पर है पहर,,,, पहर,,,
*******+*******+********
स्वरचित ~आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
अपना वजूद खो कर जिसने
निभाई बड़ी ईमानदारी से
अपनी हर जिम्मेदारी,
सबसे पहले उतरी इस धरती पर
एक परी,कहलाई किसी की पुत्री
घर में सबसे सयानी सबकी प्यारी
धीरे-धीरे बदला किरदार उसका
आई जिम्मेदारी उठाने की बारी
पिता के नाम से जानी जाती थी वो
अब थी पति से पहचान की बारी
बात यहीं पर खत्म हो जाती तो
और बात थी,कहानी अब थी जारी
निभाने को हर रिश्ता ..... बखूबी
सामने उसके चुनौती थी बड़ी भारी
सबकी इच्छाओं, कामनाओं, अभिलाषाओं
में बँट गईं एक दिन......... वह नारी
खो दिया अपने आपको सबमें फिर भी बोली,
यही तो है असली खुशी हमारी
वाह भारतीय नारी
वाह भारतीय नारी
स्वरचित -मनोज नन्दवाना
कौन कहता है कि अबला नारियाँ,
हर समय रही सबला हैं नारियाँ।
एक ही सिक्के के दो पहलू है,
नारी और पुरुष।
इसीलिए अर्धांगिनी भी ,
कहलाती हैं नारियाँ।
मां ,बहन ,बेटी ,
प्रेयसी और पत्नी,
हर रूप में,
पुरुषों का साथ,
निभातीं हैं नारियां।
नहीं है पीछे,
किसी से भी,
बलिदान का जौहर,
भी दिखातीं हैं नारियां।
झूठ यदि मानो ,
हमारी बात को।
तो इतिहास के पन्नों को,
उठाकर के देख लो।
जब हारा पुरूष, तो
तेग भी उठातीं हैं नारियाँ।
पर हे पुरूष प्रधान समाज,
नारी को क्या दिया तूने।
देव ऋण, ऋषी ऋण, पित्र ऋण,
सभी तो बनाये।
पर क्यों नही नारी ऋण,
बनाया तूने।
विधाता की रचना को,
नौ माह गर्भ में ,
धारण करके।
जिसने जन्म दिया तुझको।
क्या उसका भी,
कभी कोई ऋण,
चुकाया तूने।?
स्वरचित, स्वप्रमाणित
शिवेन्द्र सिंह चौहान (सरल)
ग्वालियर म.प्र.
============
जीवन एक कठिन डगर
पग पग पर है पहर- पहर
सुंदर स्वच्छंद प्रतिमा बन
घर की शोभा बन उभर- उभर
कन्या तू बाला तू नारी से, स्त्री तू
सर्वस्व छिन, सह कहर -कहर
बहती सरिता ज्यों मिलती सागर
तू प्रवाह बन, पर ,ठहर- ठहर
कही जाती, केवल जगत जननी
कहीं न तेरा सदन-सदन
कहने को,सम्मानित पूजनीय,,,
कविताओं में ,दोहों में ,छंदों में ,
पदों की पंक्तियों में, भावों में विचारों में
नहीं कहीं स्वतंत्र -स्वतंत्र
उन्मुक्त सामीप्य स्वीकार नहीं
बंधन मय जीवन दुभर- दुभर
जीवन एक कठिन डगर,,,,
पग पग पर है पहर,,,, पहर,,,
*******+*******+********
स्वरचित ~आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
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