यादों की बारिशो में, भींगते रहे रातभर
मुरझाए ख्वाहिशो को, सींचते रहे रातभर
मुद्दतो बाद वो आये थे ख्वाबो के दयार में
आंखों की बांहों में भर, भींचते रहे रातभर
ऐसे तेरी यादों से मेरे घर का,कोना कोना महकता है
जैसे किताब में रखे गुलाब से,पन्ना पन्ना महकता है
मेरे महबूब के मोहब्बत की वो संदली यादें
तह करके रखी है दिले संदूक में मखमली यादें
सुबह आई के शाम ना आई
किस लम्हे तेरी याद ना आई
लाख दुआ,मिन्नत हजार की
कोशिश कोई काम ना आई
मुरझाए ख्वाहिशो को, सींचते रहे रातभर
मुद्दतो बाद वो आये थे ख्वाबो के दयार में
आंखों की बांहों में भर, भींचते रहे रातभर
ऐसे तेरी यादों से मेरे घर का,कोना कोना महकता है
जैसे किताब में रखे गुलाब से,पन्ना पन्ना महकता है
मेरे महबूब के मोहब्बत की वो संदली यादें
तह करके रखी है दिले संदूक में मखमली यादें
सुबह आई के शाम ना आई
किस लम्हे तेरी याद ना आई
लाख दुआ,मिन्नत हजार की
कोशिश कोई काम ना आई
तेरी यादें मुझे अब कहीं जाने नहीं देती।
तड़पाती बहुत पर तुम्हें भुलाने नहीं देती।
भले हो गुजारा फाकाकशी में इन दिनों।
गैरत मगर इन हाथों को फैलाने नहीं देती।
लड़खड़ा के गिर गया होता कभी शायद।
दुआएं मां की ठोकर मुझे खाने नहीं देती।
मै जब लिखता हूँ तो सब ठीक लगता है।
मगर अब हिचकियाँ मुझे गाने नहीं देती।
क्या पूछते हो नाकामी का सबब सोहल।
कोई खोई हसरत है कुछ पाने नहीं देती।
विपिन सोहल
जाती राहें
छोड़ रही हैं यादें,
कुछ सकून से भरी
कुछ टीस देती हुई
बहुत सी यादें l
थोड़ा समय
जीवन कम सा
दर्द सुहाना
पुराने ग़म का
फिर भी प्यास का दौर
नहीं कुछ कम था,
मेरे दौर के दरवाजे
जीवन में खुले आधे-आधे
भोर से सांझ होनें तक
आते रहे, जाते रहे
इर्ष्यित नये-नये प्यादे,
पछताती, अपने मन में
खिसियाती यादें,
काहे रोष जताती यादें l
काश मौसम मेरा होता
ये हवाएं, बरसातें
रूपहले दिन, चांदनीं रातें
ख्वाब देते मुझको सुलाते
जीवन के रंगीन बिस्तर पर
इऩ्द्रधनुषी घटाआें पर
मुझको मनाते,
बचपन की जमीन से
जवानी की तस्वीर बनकर
बुढापे की तहजीब
बन गई हैं यादें,
काली अँधेरी रातों में
आंखों के घरौंदों में
बस गई हैं यादें,
शरीर के आँगन में रमती
थक गई ,घबरा गई
दुनियां से डरकर
सो गई है मेरी यादें,
जाती राहें
छोड़ रही हैं यादें l
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, (मैसूरू)
वो महकती यादें ,
मैंने भावों के मोती की तरह ,
स्मृतिसागर में रखी है !
वो संवाद ,गुजरें पल, .
कभी भूलते बिसरते ही , लौट कर आयेगें,
कुछ शब्द संवाद और भर दूगीं,
महकते स्मृति सागर में,
कभी धूप में, कभी छाव सी ए- जिन्दगी,
उन यादों के सहारे,
राह बदलें ,मन में व्याकूलता देखें,
कुछ पीर लिए ए-दिल,
नयनों के नक्षत्रलोक में घरोंदा बनकर,
यादें आँचल में करती बरसात,
हृदय पलट में स्मृति एहसास,
पल-पल मन कों करता है,बैचेन,
दिल मे भरें ,अफ़सोस,
कभी-लड़ते,झगड़ते, हसंते गातें,
वो यादें चित में मयूर नृत्य रचाती
मन मस्तिष्क में आँखे खो जाती,
हाय ये यादें बहुत तड़फाती है,
अन्तर्मन की स्न्गिध भावों में,
बीते लम्हों के एहसासों से नमीं,
व्यथित हृदय में कसक भरें,
जर्जर हालत चित में छायें सन्नाटा,
तस्वीरों के उन झरोखों मे खोती,
जो मात्र प्रतिबंम्ब से मन छलतें,
कभी उम्मीदों के दीप जलायें,
अनवरत उर निराशा से झकझोरे,
सजोए सपनें क्षणभर काँटो में बिखरें ,
चित में विश्वास,अविश्वास टकरायें,
नयनों के आँसू से, हृदयहार पहनें,
काग़ज़ के चित में यादों की गज़ल,
डायरी में शायरी की बरसात,
व्यथित मन फूलों सा मुरझाये,
ये यादों के सपनें है, हकीकत नहीं,
संचारी भावों की तरह क्षणभंगुर,
कभी नदियों के तट में, बैठे वे पल,
शाश्वत सरिता की कल-कल ध्वनि,
एहसास भरें संवादों की वो बहार,
यादों के झरोखे में लिखूँ एक कथा,
दर्द भरी एहसासों की एक व्यथा,
स्वरचित :- सुनीता पँवार , उत्तराखण्ड
(२१.९.२०१८)
बचपन की खूब याद दिलाती हैं,
माँ-पापा की मैं वो शहजादी थी,
घर में रौनक भी खूब मुझसे थी |
कुछ यादें बहुत याद आती हैं,
वो माँ का आँचल, लोरी सुनाना,
पापा के संग खूब बतियाना,
भाई-बहनों संग की नोंक-झोंक |
वो गुड्डा-गुड्डी का ब्याह रचाना,
कागज की कश्ती को तैराना,
घर-घर, पिट्ठू-फोड खेलना,
खेल-खेल में झूठ बोलना |
कैसे ये समय बीत गया,
कब मैं इतनी बडी हो गयी,
शादी का ढोल मेरा भी बज गया,
गुड्डा-गुड्डी का खेल सच हो गया |
कभी खुली आँखों में तो कभी..
बंद आँखों में सजती हैं अब यादें,
कुछ खट्टी कुछ मीठी हैं ये यादें,
धीरे-धीरे धुँधली हो रहीं हैं ये यादें |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
तेरी याद आती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
....
सोये-सोये तारों को,
दिल के छेड़ जाती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
.....
तू जो संग मेरे है,
तनहा ही मेला हूँ,
याद में तेरे तो,
मेले में अकेला हूँ,
...
जिंदगी के दांव पर,
बाजी दिल की खेला हूँ,
ख्वाहिशें है तेरी-मेरी,
चाहतों का रेला हूँ...
चाहतों की लब पे मेरे,
प्यास बढ़ जाती है...
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
.....
बिन तुम्हारे जाने-जाना,
जिंदगी अधूरी है,
मिलना तेरा-मेरा अब,
प्यार में जरूरी है,
...
तुमको प्यार मुझसे है,
फिर ये कैसी दूरी है,
अब मिलन में जाने-जाना,
कैसी मजबूरी है.....
याद तेरी पल-पल,
आंखों को रुलाती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
.....
हम तुम दीवानों का,
एक शहर बसायेंगे,
जग के दीवाने सारे,
ढूंढ-ढूंढ लायेंगे,
....
प्रेम का ही घर होगा,
प्रेम का विछौना,
प्रेम से ही महकेगा,
घर का कोना-कोना....
वही अब हमारे होंगे,
जिसको जग सतायेगी...
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
जब कभी अकेले में,
तेरी याद आती है,
एहसास तेरे सांसों की,
दीवाना कर जाती है.....
...स्वरचित.....राकेश पांडेय,
ये हवा
ये नजारे, ये बहारें
दुनियां की
मैं
हो जाउंगी विलीन कहीं
तुम भी कहीं ।
रूक जाएगी ये कलम
और
खो जाएगा ये शब्द कहीं
न उठेगी
वेदनाएँ दिल में
न उमरेगी
भावनाएँ कोई ।
जब चले जाएँगें
खामोश यहाँ से
तो मिट जाएगी
हसरतें दिल की
ना आओगे तुम याद
ना आऊँगी मैं याद कभी ।
फिर बहेगी
फिजाएँ
फिर उमरेगीं नयीं
घटाएँ
तब शायद मैं याद आऊँ
उन
बरसती बारिश में
चिलमिलाती धूप में
कटिंली झाड़ी में
पतझर और बहार में
'यादें'
सिर्फ यादें बनकर
हर पल, हर क्षण
हर घड़ी.......।
स्वरचित :- मुन्नी कामत।
*********************
🍁
नही भुलता माँ मुझको,
वो तेरा चेहरा प्यारा ।
तेरे जाने के बाद से ही,
मेरी दुनिया मे अंधियारा॥
🍁
अब ना कोई लोरी गाता,
ना कोई पास सुलाता ।
ना कोई मुझे गोद मे लेकर,
राजा कह कर बुलाता॥
🍁
सूना करके बचपन मेरा,
छोड दिया क्यो अकेला।
यादों मे तू साथ मेरे पर,
मै हूँ एक अकेला॥
🍁
बेबस सी आँखे मेरी अब,
हर ओर तलाशे तुझको।
सबकुछ मिल जाती है पर,
माँ नही मिलती मुझको॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
कुछ पल यादों के जो बसे है ।।
उनकी आँखों ने क्या जादू किया
ये छंद इस कलम से यूँ ही न रचे हैं ।।
वैसे तो दुश्वारियों ने हरदम घेरा
कुछ शब्द भी दुनिया के डसे हैं ।।
मगर उनकी एक नजर से ही
दुनिया के सारे गम दूर दिखे हैं ।।
जुनून ऐसा छाया दिल को ''शिवम"
कि वो हर वक्त दिल में रहे हैं ।।
बजते हैं अब तो तार दिल के
ऐसे संगीत दिल में सजे हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित
शीर्षक:-यादें
वो बचपन के खेल कैसे याद बन गये,
वो रेत के घरौंदे कैसे आज ढह गये,
याद आता है बचपन सुहाना,
वो खेल खेल में दोस्तों से लड़ जाना,
न जाने कहाँ छुट गये वो प्यार के तराने,
बस यादों में छिप गये मेरे बचपन के अफसाने,
नुक्कड़ के झगड़े अब मुस्कान लाते है,
दोस्तों के संग बीते हर पल याद आते है,
कितना मासूम था वो बचपन का जमाना,
दो पल झगड़ा दो पल में मान जाना,
यादें कुछ कह नहीं पाती वो बस दिल पसीज जाती है,
जब भी यादें जवाब मांगती है आंखों को रोता पाती है,
होठों पर मुस्कान आंखों को नम कर देती है,
यादें वो अहसास है जो जिंदगी को थामे रखती है,
स्वरचित:-मुकेश राठौड़
यादें शीर्षक से एक बहुत ही पुरानी यादें ताजा हो गई।बात तीन दशक पुरानी है जब मैं इंटर की छात्रा थी।
दो दिन काँलेज न जाने के कारण मैं अपनी सहपाठिका पुष्पा के घर जा पहूचीँ।मुझे वह अपनी घर के छत पर ही खड़ी दिख गई, जो उसके रसोई घर से सटा हुआ था।उसनें मुझे वही से खड़े खड़े आवाज़ लगाई,"आरती ऊपर आ जाओ मै तुम्हें नोटस दे देती हूँ"।परन्तु मैं तो ठहरी बहुत ही स्वभिमानी।मै करीब दस मिनट खड़ी रही कि या तो वो नीचे आकर मुझे नोटस दे दे,या फिर नीचे आकर मुझे अपने घर चलने को कहे।दस मिनट बाद मैं बिना नोटस लिए ही वापस आ गई, और रास्ते भर यह सोचती रही, कैसी लड़की है जरा भी शिष्टाचार नही है कि नीचे आकर मुझे ऊपर चलने को कहे।
दूसरे दिन से काँलेज मे गर्मी की छूट्टिया शुरू हो गई।डेढ़ माह बाद जब काँलेज खुला मैं उससे मिल कर उसकी गलती का एहसास दिलाना चाहती थी परन्तु वह मुझे कही नजर नही आई और मेरी नजर उसकी पक्की सहेली पर पड़ी,और जब मैंने उसे पूरी बात बताई तो वह बोली"आरती,वह उस समय बहुत ही मजबूर थी,उस समय वह गैस पर दूध उबलने के लिए रखी थी,वह अपने भैया, भाभी के साथ रहती है उसके भैया बहुत बड़े सरकारी अफसर है और भाभी बहुत ही निर्मोही।उसनें उसे सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक दूध उबल न जाये वह वहां से कही नही जा सकती,और उसे इस बात का बहुत ही पछतावा था कि तुमको नोटस देने वह नीचे नही आ सकी ,उसके भैया का इस बीच तबादला हो गया और वह जमशेदपुर छोड़कर कहीं और चली गई।"अब मेरा मन ग्लानि से भर चुका था।बिना उसके विषय में पूरी बात जाने मैं क्या क्या सोचती रही।
आज इतने साल बाद भी यह याद मेरे जेहन में इस तरह ताजा हैं जैसे यह कल की ही बात है, और ईश्वर से बस मेरी यही प्रार्थना है की जीवन मे कभी उसे मुलाकात हो जाये और मैं अपनी गलती के लिए क्षमा माँग सकूँ।
किसी ने बिल्कुल ठीक कहा है-
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो दिल ढ़ूंढ़ा आपना,मुझसे बुरा न कोय।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
यादों के समंदर में तैरती मन की नाव
दरिया का पानी है और पीपल की छांव
उड़ते भावों के बगुले
नेह की गगरिया भरे
अतल में डूबता मन
स्मृतियों के फूल झरे
लहरें उछल- उछल कर डगमगाती नाव
दरिया का पानी है और पीपल की छांव
घुलती सांसों में अमरईया की गंध
मन महुआ हुआ
और मंगिनी मतंग
नयनों में निखर उठा
सुवासित गाँव
दरिया का पानी है और पीपल की छांव।
स्मृतियों के मंदानिल झकोरे
बाँध-बाँध रहे भावों के डोरे
वातायन खोल- खोल
मन विहंग उड़ चले
सूरज सिंदूरी हुआ
उतारने को पाँव
दरिया का पानी है
और पीपल की छांव
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम (छत्तीसगढ़)
दिल क्यूँ दुखाती है
तु दुर क्यूँ जाती है।(स्वप्न में)
पता है कितना रोता हूँ मैं...
जब याद तेरी आती है।।
तेरी शरारतें, नखरे मंजूर
फिर क्यूँ यू खफ़ा होती है
पता है अंदर तक टूट जाता हूँ
मैं, जब याद तेरी आती है...।।
मन का कर ले कुछ भी
जो भी तु करना चाहती है।
तन्हा सा महसूस करता हूँ मैं
जब याद तेरी आती है...।।
परेशान नहीं करूंगा कभी
बस बता दे तु क्या चाहती है।
किये कर्मों को अक़्सर याद करता
हूँ, जब याद तेरी आती है...।।
पता है स्वर्ग में भी तुम
पल पल आँसू बहाती है।
अब कभी मत रोना यारा
ये* ओर भी ज्यादा रुलाती है।।
*तेरे आँसू की बूंद
ले ली एक तस्वीर यादों की
उसी के सहारे जी लूंगा मैं।
और किसी को तेरी जगह मैं
सारी उम्र तक नहीं दूंगा मैं।।
(आँसू बंद और मुस्कराहट चेहरे पर आ गयी उसके शायद मुझे रुलाना सच मैं पसंद नहीं करती आज भी वो)
बस यू ही खुश रह अब तुं
दिल को तसल्ली मिल जाती है।
हां आँसू छुपा लेता हूँ अक्सर
जब याद तेरी आती है ।।
सुखचैन मेहरा
# 9460914014
याद
वट वृक्ष की शीतल छाँव,
छीन ली हमसे गमन के अटल सत्य ने।
स्वतंत्रता संग्राम में था इनका योगदान बड़ा, अनुशासन था स्वयं पर कड़ा।
बहुत याद आता है वात्सल्य का झूला।
वो बांहें वो नेह की गोद प्यारी, जिनमें मेरा बचपन खेला।
याद है अब भी वह नीम का बिरवा,जिसके नीचे समझा जाना था हमने देश।
चीन का युद्ध हो,या हो पाकिस्तान संग लड़ाई
सब तुम्हारी आंखों देखी कहानी,जाना हमने तुम्हारी जुबानी।
याद है नाना नानी और दादा कि सीख सब, संघर्ष को ही जीवन जाना।
प्रण है यही मेरा, आपके दिखाएं पथ पर ही चलते रहना मुझको अब।
जो यादें खूब रुलाती है, वही मुस्कान दे जाती है।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
लाई हूँ मैं यादो का खिलौना,
याद करते है गुजरा ज़माना,
थोड़ा हंसना और हँसाना l
याद आते हैं बचपन के मेले,
खट्टी इमली के वो ठेले,
पत्ते में ले लेते थे छोले,
फिर झूलो के लेते हिंडोले l
माँ ज़ब जब चिल्लाती थी,
भाग वहाँ से जाती थी,
कान खिंच..वो चपत लगाती,
तब जाकर मैं खाना खाती l
गुड़िया बनाते थे कपड़े की,
फिर सजाते उसे दुल्हन सी,
घर घर से फिर अनाज लाकर,
करते थे दावत सबकी l
गोल गप्पे थे मुझको भाते,
एक रुपए में दस थे आते,
कहाँ गया वो सस्ता ज़माना,
देखो.... मुँह मे पानी आया ना l
चिंता नहीं करो मेरे भाई,
गोल गप्पे 'उत्साही 'लाई,
आज दावत है मेरे घर पर,
बजेगी आज यहाँ शहनाई l
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित
तुमसे बिछड़ के मुझ को सब वो यार पुराने याद आये...
हर बात पुरानी याद आयी वो दिन सुहाने याद आये...
जब देखूं हंसों के जोड़े मेरी सब यादें बोलें...
आँख मिली कब दिल धड़का मिलने के बहाने याद आये...
ख़्वाब सुनहरे रात चाँदनी ओ भावों का वो झुरमुट...
तन्हाईओं में साथ तेरे वो वादे निभाने याद आये...
कालिज की कैंटीन पार्क जिसमें दिन गुजरे थे अपने...
चाय संग तुझको मेरे वो गीत सुनाने याद आये...
तेरी वो मदहोश निगाहें ओ ज़ुल्फ़ों के घने साये...
'चन्दर' की तुम ग़ज़ल हो तुमपे शेर बनाने याद आये...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
यादें तेरी आये आकर
मुझे सताये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आयेआकर
फूलों सामहकाये
ये जरुरी तो नही
यादें तेरी आये आकर
खुशबू संग मन छू जाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आयेआकर
काँटों सी चुभन दे जाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
चाँदनी ही बरसाए
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
शमा रौशन कर जाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
गमों के प्याले दे जाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
आशाओं को रुलाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
अमृत सुधा बरसाए
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
जीवन राग ही गाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
भँवरा सा गुनगुनाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
पल पल यूँ तड़पाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
सपनों को सजाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
रातों को जगाये
ये जरुरी तो नहीं
यादें तेरी आये आकर
रुह में समाये
ये जरुरी तो नहीं
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
कुछ बातें कुछ मुलाकातें
कुछ बिन बादल बरसातें
कुछ दिन और रातें .
कभी याद आती हैं बचपन की बातें
कभी दिल को भावुक कर जाती हैं वो प्यारी यादें जिन्हें सुनाते हैं हम खुशी से अपने बच्चों को
उन यादों में होता मासूम बचपन .
बचपन की यादें कितनी प्यारी थी
लगता था मुठ्ठी में जीवन की खुशियाँ सारी थी
वो कल्पना के पंख लगाकर बेखौफ उड़ना
वो दोस्तों के संग हर बात पर खुश होना कभी लड़ना .
यादें होती हैं अनमोल
दिल में रहती हैं हरदम बातें और यादें बनकर
दिल की डोर से होता हैं उनका बंधन
जिंदगी के साथ चलती हैं हर कदम .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
वो कागज की कश्ती बारिश का पानी
लौटा दे मेरी बीती हुई यादें पुरानी
बारिश में मेरा यूँ भीग जाना
फिर मेरी माँ का यूँ आवाज लगाना
बुखार आने पर मेरी माँ का यूँ कड़वी दवा खिलाना
मुझे याद आता है वो गुजरा हुआ जमाना
वो मेरा कन्चो से खेलना, बैट बॉल से खेलना
बाजी ना देने पर यूँ लड़ जाना
लड़ती हुई है हेमा को यू भाई बहन का छुड़ाना
चोरी से रात को वीसीआर पर पिक्चर देखना
फिर से भाई बहनों का माँ की ड़ाँट से बचाना
याद आता है मुझे गुजरा हुआ जमाना
मेहमानों के आते पैसे जो मिलते
उन्हें है छुपाना कहीं भाई बहन माँग ना बैठे
मेरा ये अमूल्य खजाना
मेरी दीदी का यू मेरा बैग टटोलना
और मेरा खजाना यूँ बाहर निकालना
याद आता है मुझे वो गुजरा हुआ जमाना
कॉलेज में जाकर मौज मस्ती याद आती है
बिछड़े हुए दोस्त फिर से याद आते हैं
मेरा और मेरे दोस्तों का फसाना फिर से याद आता है
सभी प्रोफेसरों की नकल उतारकर
यूँ खिलखिलना याद आता है
वो देवप्रयाग का कोलेज वहाँ के खूबसूरत नजारे
पहाड़ी दोस्त हमारे वो दोस्त याद आते हैं
फिर उनकी यादों में यूँ खो जाने का दिल करता है
अर्चना सुरेंद्र सुमन कहाँ खो गये तुम
बस अब तो हमारी यादों में रह गये तुम
फिर से लौटा दे कोई वो गुजरा हुआ जमाना
खट्टी सी बातें हैं मीठा अफसाना
नहीं भूल पायेगे हम वह जमाना
अपनी यादों में बस तुम ही को है बसाना
स्वरचित हेमा जोशी।
आज यादो का शीर्षक देकर
सारी पुरानी यादें ताजा हो आयी
ऐसा लगा की वापस वही पहुँच गये हैं
यादे बड़ी सुहानी होती है
कभी प्यार के लिए
कभी यार के लिए रोती है
लोग तलाशते है fb पर
बचपन के बिछड़े लोगो को
भूल जाते है आज रिश्ते में
पनप रहे खतरनाक रोगों को
अब लोग बेफिक्र फूलने लगे
सभी रिश्तो को भूलने लगे
अब यहां सबकी नियत बदल गयी
रिश्तो की भी अहमियत बदल गयी
जो माँ के बिना रोकर बिलखते थे
माँ बाप को जान से ज्यादा रखते थे
आज वही बेटे इतने बड़े हो गए
माँ बाप को छोड़ छिपकर खडे हो गए
ऐ इंसान खुद को संभाल
अपने बचपन पर निगाह डाल
जो माँ अपनी साड़ी फाड़
तेरा लंगोट बनाती थी
तेरी एक मुस्कान को भी
दिवाली से ज्यादा मनाती थी।
तूने उसको व्रद्धाश्रम में छोड़ दिया
उसके सारे सपनो को तोड़ दिया।
आज भी तेरी एक झलक
पाने को लपकती है
पर तु नही आता कभी हाल पूछने
दिन रात माँ बहुत फफकती है
सर्दी में वो लिहाफ ओढ़ नही पाती है
उसको तेरी चिंता बहुत सताती है
सोचकर बेटा सर्दी में आता जाता होगा
उसको जाड़ा बहुत सताता होगा
वो किसी को कुछ कहती ना सुनती है
अब भी तेरे लिए माँ स्वेटर बुनती है
आज सुबह सलाई माँ की छाती पर
ऊन का गोला फर्श पर पड़ा हुआ था
उस ममतामयी माँ का शव
बिस्तर पर बेफिक्र सा पड़ा हुआ था
मुँह खुला और माँ की अदखुली आंखे
शायद अभी भी बेटे के इंतजार में झांके
तुझसे सम्पर्क किया पर तु नही आया
आज माँ को किसी और ने ही कंधा लगाया
माँ की मौत के तीन साल बाद आज तू आया
जाने किसी ने तुझको माँ की मौत को बताया
मरने से पहले माँ एक पोटली
और उसमे एक लिखा पत्र देकर गयी है
लिखा है बेटा पूछ लेना किसी से
तेरी माँ यहां से खाली हाथ गयी है
मेरे पास जुड़े हुए ये जो पैसे है
मेरे काम के कैसे है
इनमे से मेरी बहु को पोते पोती
को कुछ जरूर दिलाना
बाकी से वापिस जाते हुए रास्ते में
कुछ खा लेना भूखा नही जाना।।
स्वरचित-विपिन प्रधान
मेरे सपनों में आता है कोई,
आँखोँ में सपने सजाता है कोई।
यादों के फूल खिलते है रातोंमें,
सूने घर को महकाता है कोई।।2।।
सागर की लहरों में डूब जाता है कोई,
सागर को पार कर जाता है कोई।।3।।
निराशा की जब जब कालिमा छाती है,
आशा का दीप जलाता है कोई।।4।।
बेरोजगार युवा गाँव का,शहर में ही,
शहरी साँप उसे डसता है कोई।।5।।
जिन्दगी की धार में कहता है कोई,
चाहत की आग को जलाता है कोई।।6।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दास बसना।।
1
दिल उदास
अनबुझी है प्यास
यादें सहारा
2
यादें किताब
जीवन इम्तिहान
हँसते-गाते
3
खेल खिलौने
बचपन की यादें
जीवन प्यास
4
साजन दूर
यादें हैं तड़पाती
बदरी छाई
5
बेटी पराई
सुनसान आँगन
समेटी यादें
स्वरचित-रेखा रविदत्त
याद में तेरी गीत लिखूँ ,
या आँसू हार बनाऊँ...
पास नहीं तुम वीराने में,
क्या त्योहार मनाऊँ...
गीत विरह के गाता है ,
दिल मेरा भर आता है...
सच कहती हूँ रोनेवाला,
बस पागल कहलाता है...
राह तेरी अब नैन बिछाऊँ,
या फूलों द्वार सजाऊँ...
याद में तेरी गीत लिखूँ ,
या आँसू हार बनाऊँ...
देखा आम की टहनी पर,
चिड़ियाँ चहकी फिरती है...
भीग उठता है मन मेरा,
तेरी याद घटा तनती है...
है बरसात प्रतीक्षा की,
मैं कैसे रात बिताऊँ...
याद में तेरी गीत लिखूँ ,
या आँसू हार बनाऊँ ...
सुन लेना इन गीतों को तुम,
आकर रिमझिम बरसातों में...
कुछ भी नहीं गीतों के सिवा,
देने को अब तेरे हाथों में...
यूँ हीं तड़प कर मर जाऊँँ,
या जीकर प्राण जलाऊँ...
याद में तेरी गीत लिखूँ ,
या आँसू हार बनाऊँ...
स्वरचित "पथिक रचना"
ख्वाबों के रंगीन पटल पर
बीते लम्हे ज़ब ज़ब मचलते
यादों का सिरहाना बन वो
कभी पुलकित कर मन को भरते
कभी बैचेन सा कर आँखे नम करते
याद आता ज़ब बचपन का तराना
कागज की कश्तीयाँ पानी में तैराना
मिट्टी के सुन्दर घरौंदे बनाना
चॉकलेट,आईस्क्रीम में तुंरत बिक जाना
गुड्डे गुड्डी संग संसार बसाना
यादों के झरोंखों में,ये लम्हे बड़ा हर्षाते है
साथियो के संग, जो खेले ख़ुशी पल
कभी थी चिरमी,तो कभी गेंद गुट्टे
कभी मार सीतोलिता, कभी हाथ पासे
कभी टांग लंगड़ी, कभी कूदे रस्सी
कभी जाते रूठ, तो कभी पल में मनते
यादों के झरोंखो में, ये लम्हे बड़ा हर्षाते है
तुतली बोली सुन माँ झूम जाती
कंधे बैठा कर पिता मुस्कुराते
अंगुली को थाम मेरा बचपन महकाते
चाँद तारों के संग मेरी खुशियाँ सजाते
यादों के झरोखों में,ये लम्हे बड़ा हर्षाते है
तूफानों मे ज़ब भी घिरी चाहे कितनी
बहनों की बाँहों ने थामा सुरक्षित
आलोकित किया घर परिवार मेरा
बाती बन चाहे, तपती रहीं वो
यादों के झरोखों मे, ये लम्हे बड़ा गर्माते है
ये दिल था शीशे का, ज़ब तोडा गया था
चेहरा फूलों सा, मुरछा भी गया था
गम को हंसी मे, छुपा के चला था
विश्वास पर धोखे, जमाकर चला था
यादों के इडियट बॉक्स मे, ये लम्हे बड़ा सताते है
आज भी कभी यादों के सहारे
कभी हकीकत के नजारों के साथ
जीवन की पहेली,
उलझती
सुलझती
लहराती
खिलखिलाती
खुद को परवान कर रही है...........
स्वरचित सीमा गुप्ता
अजमेर
दिखा निज मोहिनी सूरत को' नींदें भी चुराते हो ।
तुम्हारी याद जब आती ये' आँचल भीग जाता है।
खड़े तुम दूर जाकर के गजब का मुस्कुराते हो ।
दिया है प्यार जो तुमने वो' अब भी याद है मुझको।
मगर मैंने दिया ही क्या जो तुम मुझसे छिपाते हो ।
पिए तुमने कभी थे जो हमारी आँख के आँसू ।
दिलाकर याद उस पल की मुझे अब भी रुलाते हो ।
जो तुमने दर्द झेले थे मुझे अलकों में' लेकर के।
प्राण ! पलकों में बैठे तुम वही सूरत दिखाते हो ।।
पुनीता भारद्वाज
यादें
यादें सुख देती हैं,
कभी बेचैनी देती हैं,
ये पागल कर देती हैं,
और घायल भी करती हैं
पिटारे में जो बन्द होती है
बेतरतीब और बेढंग से
निकल ही आया करती हैं
अंकुर सी बन कर।
रिश्तों को तो जोड़ती हैं
कभी खटास भी घोलती हैं,
घोर अंधेरी रात करती हैं
तो उजालों से भरा विभात करती हैं।
---बृजेश पाण्डेय'विभात'
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