Saturday, September 22

"कल्पना "20सितम्बर2018



आजादी की आशा लेकर,
वीरों ने दे दी कुर्बानी।
स्वर्णिम दिन की कल्पना लिए,
हो गए अमर वह बलिदानी।
पर भारत के लोगों का है,
मरा आज आँखों का पानी।
शहर-शहर है दहशत फैली,
बस्ती बस्ती आग लगी है।
अपने पुत्रों की करनी पर,
भारत माँ स्तब्ध ठगी है।
घोर विषमता की बेला है,
हर इंसा का मन मैला है।
मानवता की जलती होली,
कैसा सन्नाटा फैला है।
आये फिर से हंसी ठिठोली,
कल्पना यही करती मैं भोली।
द्वारे वन्दनवार सजाये,
लिए आरती मेरी आश।
फिर से मानवता लौटेगी,
जोह रही पथ 'पथिक' उदास।

स्वरचित 'पथिक रचना'
******************
सुखद विचारों से भरा संसार हो
श्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठता का विचार हो
किंकर्तव्यविमूढ़ न हो बैठो कभी
कल्पनाओं को साकार करता व्यवहार हो।

कल्पनाओं बिना जीवन अधूरा है
इनसे ही सजता ,सँवरता जीवन है
हाथ पर हाथ रख क्या सोचना
कल्पना साकार हेतु कर्म जरूरी है।।

कल्पना हो गर विश्व गुरु बनने की
उर में ठानों एकता बंधन की
नही ऐसा की अकेले न कुछ कर पाओगे
परन्तु सबका साथ सबका विकास भी जरूरी।।

कल्पना हो सकारात्मक तो
जन मानस गंगामय हो जाए
सज्जनता पग पग ओर दिखे
मन कुटिल दफन भी हो जाए।

सुखद शांतमय जग हो ये जब
कल्पनाएं संस्कृतिपूर्ण रहें
हर आँगन यशोदा मैया हो
हर द्वार पर श्री गणेश रहे।।

सूखे-रूठे से चहरों पर
मुस्कान दुदुम्भी बजा देना
कल्पना सुखद दिखा कर सब
हिय उत्साहित कर देना।

जारी.....

वीणा शर्मा
स्वरचित




सुखद थी जिन्दगी जब मैं 
कल्पनाओं में डूबी रहती थी, 
हर बात सकारात्मक लगती थी, 
मन में उत्सुकता भरी रहती थी |

अपनी ये धरती हरी-भरी दिखती थी, 
भाईचारे की खुशबू महकती थी, 
सब में सम्पन्नता दिखती थी, 
बेटियाँ भी सुरक्षित होती थी |

मैं कल्पना के समंदर में, 
बेपनाह गोते लगा रही थी ,
एक दिन वास्तविकता से, 
मेरी मुलाकात हो गई... 

मेरे सपनों की जैसे मौत हो गई, 
धरती यूँ बंजर सी दिखने लगी, 
हवाओं में गन्दगी शामिल मिली, 
भाईचारा गायब हो गया था |

मैं ये मंजर देख न सकी, 
मन को विचलित होने से, 
कहाँ मैं रोक सकी? 
बस कल्पना में ही थी मैं सुखी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





हे माँ शारदे , प्रार्थना बस यही तुमसे 
मेरी कल्पना साकार हो , 
किसी की किसी से ना रार हो , 
मित्रवत सारा संसार हो ।
अज्ञान का तम हर लो माँ , 
चहुँओर ज्ञान का प्रकाश हो ,
दूख दारिद्र का जग से नाश हो ,
थोड़ा धन थोड़ा मान सबके पास हो , 
मेरा भारत फिर विश्व गुरु के सिंहासन पर विराजमान हो।
चाहिए यही वरदान माँ 
मेरी यह कल्पना साकार हो 
(स्वरचित )सुलोचना सिंह




कल्पना वरदान है , कीजिये कदर ।
ये वर सिर्फ इंसान को , इंसान बेखबर ।
दुख भरे दिन में यह बने रह गुजर ।
यूँ न शुरू हुआ वायुयान का सफर ।

कल्पनाओं में उड़े कितनी बार गिरे ।
ऐडीशन को अविष्कार ख्वाब में दिखे ।
ताजमहल पहले कल्पनाओं में गढ़े ।
कल्पनाओं के अनूठे इतिहास हैं पड़े ।

कल्पना को कूची से देकर आकार ।
चित्रकार कलमकार करे चमत्कार ।
सुन्दर सी कल्पना में खो जाओ यार ।
मेहनत लगन से करो उसको साकार ।

असफलतायें डिगायें मगर डिगना नही ।
होंगे साकार स्वप्न यह करना यकीं ।
गम का ये सफर ''शिवम" होगा हंसीं ।
कल्पना नही तो वीरान ये जिन्दगीं ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/09/2018


"कल्पना " एक कवि की 
सबसे खास होती है, 
विचारों की अनमोल शक्ति 
उसी के पास होती है |

पूछता है सूर्य से वह 
कहां से करता है उजाला, 
फैलती है कहां से जग में
तेरी सुन्दर किरणों की माला |

मनमोहक सुगंधित खुशबू 
आती कहां से है फूलों के पास, 
भंवरा जैसे बैठता इन पर
मैं भी बैठ पाता काश |

सरिता कैसे तेरा ये जल
होता है पावन निर्मल, 
मधुर ध्वनि के साथ बहती 
कल_कल,छल_छल |

पंख फैलाकर उड़ती चिड़िया
जैसे दूर आकाश, 
मैं भी उड़ता साथ इनके 
होते पंख अगर मेरे पास |
स्वरचित ****
सुनील दत्त बडथ्वाल 
20/09/2018





" कल्पना "

कल्पना आपको परियों के लोक में ले जा सकती है

कल्पना आपको हर जगह की सैर करा सकती है

शर्त ये है कि आप हों भावुक कल्पनाशील और स्वप्नदर्शी

तब तो यह आपको आपका हर मनचाहा भी दिला सकती है

अतः कल्पना ही मूल बनती है हर सफ़लता की

अग़र उसमें रंगत हो आपकी कोशिशों और मेहनत की

कौन सी चीज़ या सफ़लता ये कल्पना आपको नहीं दिला सकती है..

कल्पना को कभी भी न त्यागिये हो के निराश आपमें फ़िर ये नई उम्मीद जगा सकती है

( स्वरचित )

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव



सपना है मेरा बस यही
अपना भारत स्वच्छ बनाना होगा
इन कल्पनाओ को मुझे
हकीकत में लाना होगा
कूड़ा करकट गन्दगी से मुझे
अपना देश बचाना होगा
डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों से
अपना देश बचाना होगा
पॉलीथिन का करके त्याग
कपड़े का झोला अपनाना होगा
बस इस गन्दगी से मुझे अपना देश बचाना होगा
इधर उधर ना फैक के कूड़ा
कूड़ेदान में हमें पहुँचाना होगा
हमें अपना भारत स्वच्छ बनाना होगा
गन्दगी से मुक्ति दिला कर
वातावरण को भी तो हमको
प्रदूषण मुक्त बनाना होगा
मेरी कल्पनाये कहती हैं कि
आस पास स्वच्छता होगी
तो मन भी सबका पावन होगा
पुष्प खिलेंगे अंतर्मन में
हरा भरा हर आँगन होगा
यही सन्देश मुझे अपने
भारतवासियों तक पहुँचाना होगा
स्वरचित , हेमा जोशी



सुन्दर सी इक कल्पना ,
मोहिनी जस मुस्कान।
कमल पुष्प से नेत्र है,
भृकुटि लगे कमान ॥

**
मोहक सी गजगामिनी,
कटि फूलो की डाल ।
स्वर्ग की कोई अप्सरा,
स्वर्ण भस्म सी ताप ॥

**
शेर हृदय की कल्पना ,
उर्वशी इक नाम ।
रंम्भा हो या मेनका,
रति है स्वर्ग विलास॥

**
स्वरचित -- Sher Singh Sarraf



परिकल्पनाओं की उडा़न भरता मानव,
अनन्त अभिलाषाओं के,दीपक जलाता,
समस्याओं के निदान में,कपोल कल्पना रचता,
वसुधा से क्षतिज तक प्रकृति गीत गाता,
रक्तरंजित रविधवल किरण का स्पर्श करता,
मनोभावों से कभी तपती धूप,कभी छाव में,
जिन्दगी के प्रवाह में सुख-दुख के गीत गाता,
सूर्य रश्मियों सा जीवन में प्रकाश भरता मानव,
फीके उपमानों में, मन की आशाओं से रस भरता,
उज्जवल शशि किरण सी वाणी में शीतलता,
आसंमा में उड़ते पंक्षी सा मानव कल्पना रचता,
श्वेत क्रांति से युक्त कागज़ पर काव्य कलरव करता,
भावो के धवल मोती में रस,छन्द,अलंकार से रंग चढाता,
नदियों की कल-कल निनाद,और कोयल गीत ध्वनि,
अनन्त सुमधुर संगीत में ,नित काव्य गीत गुनगुनाता,
शिरिष फूल सा दृढसंकल्पित,श्रमकर्म लेखनी से करता,
हिमतरंगनी के सौन्दर्य से उड़ान भरता शिखर,
लहरों से टकराती नौका जैसे ,पार लगाती,
यथार्थ अतीत में कल्पना बेड़ापार कराती,
कल्पनाओं से होती है,नित-नित नवखोजें,
ऐसी ही एक भारत बेटी थी, कल्पना,
मन की आशाओं से अन्तरिक्ष की सैर ठानी थी,
जग में हो भारत का गौरव गान ,
शशिकिरणों संग नक्षत्रलोक में हुयी विलीन,
देश के खातिर शहीद हुयी कल्पना चावला
यह भारत की बेटी कल्पना से ही जग में छायी,
स्वरचित :- सुनीता पँवार,उत्तराखण्ड, २०.९.२०१८




कल्पना नहीं हकीकत थी वो

वो थी भारत की बेटी
चाह थी आसमानों की
भेंट दी अरमानों की
अनवरत चलती रही
चाह मे आसमानों की
अपने अथक प्रयासों से
राह विदेशों की ठानी
बनकर पहली उड़न परी
देश का गर्व बनी
कल्पना नहीं हकीकत थी वो
हर बेटी को एक स्वप्न दिया
दिया मातृभूमि को मान
आज जिसकी अल्पता से देश हुआ विरान
वो है आज तारामंडल की शान
कल्पना नहीं हकीकत थी वो
आज भी दूर गगन से 
जन्मभूमि को निहारती 
आज भी देश की हर बेटी को
खुद पर गर्व करने का संदेश देती
यह कोई और नहीं 
देश की बेटी थी 
कल्पना नहीं हकीकत थी
कल्पना चावला थी।

स्वरचित:- मुकेश राठौड़



हम सब मिलकर करें एक सुन्दर कल्पना
तभी कर सकेंगे विकास हम अपना
जो भी हुए है नये अविष्कार
सभी पाते है कल्पनाओं मे विस्तार

पहले करे हम एक सुन्दर सी कल्पना
फिर करें उसे मूर्त रूप देने का प्रयास
हम करें एक सुंदर भारत की कल्पना
जिससे होगा एक सुखद एहसास

करें हम कल्पना ऐसा
साधु चरित्र होय सभी कोई
ओजस्वी हो पुत्र हमारे
कुत्सित बुद्धि न हो किसी का

मुक्त हस्त सब प्यार लुटाये
बिश्व बंधुत्व का भाव जगायें
अनिल बहे मंद मंद धरनी पर
वागीश्वरी निर्मल स्वच्छ हो जाये

सुन आली,मेरी सुन्दर कल्पना
जब पूरा होगा मेरा सपना
सब मिलकर हम उत्सव मनाये
कितना सुखद,सहज,सुन्दर
होगा जीवन अपना।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।



इंसानों की कल्पना में खोई 
हकीकत में निराशा मिली है 

आशाओं के कल्पना में खोई 
हकीकत में भाग्य मिला है 

ईमान की कल्पना में खोई 
हकीकत में बेईमानी मिली है 

राहत की कल्पना में खोई 
हकीकत में बेचैनी मिली है 

मुस्कुराने की कल्पना में खोई 
हकीकत में रुसवाई मिली है 

कल्पनाओं के समंदर मे खोई 
हकीकत में रेतों का सागर मिला है 

खुशबू की कल्पना में खोई 
हकीकत में काँटे मिले हैं 

सहिष्णुता की कल्पना में खोई 
हकीकत में स्वार्थान्धता मिली है 

सुख की कल्पना में खोई 
हकीकत में लाचारी मिली है

भविष्य की कल्पना में खोई 
हकीकत में वर्तमान मिला है 

आसमानों की कल्पना में खोई 
हकीकत में जमीन मिली है 

सपनों की कल्पना में खोई 
हकीकत में कर्म मिले हैं 

अप्रकाशित एवं स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला


सुख प्रेम चला गया, दरख्तों की शाक से 
दया मन की लुट गयी, मीना बाजार में 
हैवानियत का नृत्य, चल रहा हर राग में 
बेटियों के पंखों को, झुलसा दिया आग में 
नववधुएं सुलग रहीं,दहेज के व्यापार में 
सरकार रोटी सेक रही, भ्र्ष्टाचार की आग मे 
धर्म को बाँट दिया, गीता और कुरान में 
शहीद दीये बुझ रहे, सरहदों के तूफान में 
प्रतिभाएं सिसक रही,आरक्षण की चाल में 
मर्यादाएं टूट गयी, सभ्यता के अंधकार में 
मातृ भूभि पुकार रही, बेड़ियों के जंजाल में 
देख कर ये हलचल.......
मेरा, कल्पना का सागर, गोता लगा रहा है 
एक ख्वाब है सुनहरा,हकीकत को चाह रहा है 
चहुँ प्रेम की गली हो 
और भोर हो सुहानी 
सावन हरा भरा हो 
पतझड़ का ना निंशा हो 
सुख चैन की बांसुरी 
लहराय सब जहाँ में 
चांदनी धवल सी 
गुनगुनाय हर फिज़ा में 
ख्वाब सबके पूरे 
उड़े आसमां में 
भारत का नाम ऊँचा हो 
सारे इस ज़हाँ में 
स्वरचित सीमा गुप्ता 
अजमेर 




प्रत्यक्षानात्मक अनुभवों की ये कुँजी है 

बिंबों और सृजन विचारों की ये पूँजी है 
विचारणात्मक स्तर की रचनात्मकता 
'कल्पना' नियोजन पक्ष की है रोचकता !!

दिवास्वप्न व मानसिक उड़ानें का प्रसार 
साहित्यिक, कलात्मक वैज्ञानिक आधार 
मानसिक, रचनाकार्य को देती है प्रारूप 
'कल्पना' सृजनात्मक प्रतिभा का स्वरूप !! 

भौतिक जीवन विलासिता की ये जननी है
भविष्य कर्म फल विकास की ये तरणी है 
सुरम्य तरंगों और सरसता का आलोक है 
बनावट व बुनावट का ये मार्मिक लोक है 

कल्पना एक शक्ति है और इसका उपयोग करो 
सकारात्मक भावो के सृजन से भरपूर भोग करो 
निरभ्र गगन में उन्मुक्त हो रोमंचक उड़ान भरो 
मन सरोवर की तरंगों में इंद्रधनुषी रूप प्राण भरो !!
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!
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स्वरचित : - डी के निवातिया


कभी कल्पना की चिड़िया बन कर, 
उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती हूँ, 
नन्हे नन्हे शब्दों के पंखो से, 
आसमां पर नाम अंकित करना चाहती हूँ l

नहीं चाहती कोई अच्छा बोले, 
बस त्रुटि निकालिए मेरी, 
गहन अध्ययन करके फिर 
मजबूत जिससे.. हो कलम मेरी, 

जीवन भी कोरा कागज है, 
अनुभव इसके अक्षर है, 
छोटे छोटे मोती अनुभव के, 
लेकर.. जीवन पुस्तक लिखना है l

कुछ कल्पना लिखना चाहती हूँ, 
कुछ कल्पना देना चाहती हूँ, 
कल्पना चावला जैसी बनकर, 
कुछ जग को देना चाहती हूँ l
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित



विषय कल्पना

कल्पना मन का रूप है,
कभी छाया कभी धूप है।
अनगिनत होती है ये,
न जाने कितने स्वरूप है ।।

कभी सुंदर से भी सुन्दर 
कभी होते ये कुरूप है ।
कभी सूर्य बन रोशनी देती 
कभी होते अंधेरे कूप है ।।

कभी झरना जैसे कल कल है
कभी सागर गहरा चुप है।
कभी छुपते है दोषी बनके
कभी नायक के अनुरूप है ।।

स्वरचित 
यशवंत"यश"सूर्यवंशी 
भिलाई दुर्ग छग


कल्पना की कलम से दिल में ख्याल आया 
उनको कलम की स्याही से कागज में लिख उतार दिया .


कभी मन की कल्पना को बयां कर दिया 
कभी कल्पना की उड़ान से एक नई कहानी लिख दी .

कुछ दिल के अहसास लिख दिये
कुछ मन में उठे कल्पना और ख्याल लिख दिये.

सब कहते हैं मैंने तो कल्पना से दिल 
भरे जज्बात लिख दिये
कुछ कहते हैं मैंने जिंदगी के कुछ ख़ास लम्हें
लिख दिये.

मैंने तो बस मन की कल्पना से कुछ अरमान लिखे 
सबने जिसे सराहा मन से 
दिल में मेरी कल्पना को एक नया आयाम दिया 
सबने अपने सच्चे मन से .
स्वरचित:- रीता बिष्ट




चलता जाता हूँ
एक-एक कदम धीरे धीरे 
कभी-कभी लगता है
ये दुनिया हकीकत है 
या कल्पना.जो भी है
बहुत खूबसूरत है
उपरवाले के इस 
नायाब हुनर को सराहता
जाता हूँ ..धीरे -धीरे
चलता जाता हूँ 
हर एक सृजन 
कुछ कहता है 
सुनता जाता हूँ 
जीवन पथ की 
अनजानी राहों पर 
फूल और काँटे 
चुनता जाता हूँ 
धीरे-धीरे चलता जाता हूँ 
वास्तविकता कैसी है
अच्छी भी है,बुरी भी 
कल्पना से ही अपनी उसे 
खूबसूरत बना देता हूँ 
कहते हैं वो निराकार हैं 
मैं,उसकी कल्पना में 
उसे देखता चलता हूँ 
जीवन पथ पर धीरे-धीरे 
चलता जाता हूँ..

स्वरचित 
मनोज नन्दवाना



" कल्पना"कल अपना है जाना मैंनें,
इसे पाने की ठानी मैंनें,
हर परिस्थिती से किया संघर्ष,
कल्पना में देखूँ मैं पूरे जीवन का हर्ष,
निकल कल्पनाओं से बाहर,
बनना है कुछ अगर,
बढ़ा कदम अपने पथ पर,
उम्मीद किरणों के रथ पर,
कल्पनाओं में जो हैं पाएँ,
आलस से हम क्यों गवाएँ,
कल्पनाओं में थे जो पंख लगाए,
आओ उनको हकीकत बनाएँ।

स्वरचित-रेखा रविदत्त




हकीकत मगरूर होकर, अपनी निशानी लिखती रही

मेरी कल्पना भी हौसले से, अपनी कहानी लिखती रही
झुकी न कलम कभी मेरी,झूठ के खुदा के आगे
वो आग को आग और पानी को पानी लिखती रही

ये दुनिया तब बहुत शर्मशार होती है
कल्पना जब कोई साकार होती है
देखकर लोग फिर ताली बजाते हैं
लिपटी हकीकत में जब सरेबाजार होती है

सत्य के मरूस्थल में, हुऐ धूल ही धूल
बंजर सी आंखों में जो, खिले स्वप्न के फूल

दिन वो बेचैनी के आज फिर याद आने लगे
कैसे हम 
मुस्कान बन के वो किसी चेहरे की मुस्काने लगे

सच्ची न सही, झूठी ही ढूंढ लेंगे
छुपी है कहां आखिर, हंसी ढूंढ लेंगे
हकीकत की नजर से बचाकर तुम्हें
कल्पना में ही सही, खुशी ढूंढ लेंगे

सर्द मौसम में गुनगुनी धूप हो तुम
मेरी कल्पनाओं का मूर्त रूप हो तुम

ऐ जिन्दगी अब जिन्दगी से जंग कर दे
कोरी है कल्पनाएं मेरी कुछ रंग भर दे
सजा खुशियां हकीकत की कूंची लेकर
बना वो चित्र जो जिन्दगी को दंग कर दे

स्वरचित-अभिमन्यु कुमार



इक उड़ान परिंदे की
इक कल्पना की उड़ान
दोनों में फर्क बस इतना सा
इक आसमान तक
इक आसमां से ऊपर

पर पंछी के दिखते हैं
पर कल्पना पंखहीन
एक हकीकत की धुन पर
एक मजाजी मंजिल तर

एक उड़े अपने दम पर
दूजा है बस आस ख्वाब पर।।

डा.नीलम ,अजमेर

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