तेरी धारा बन के जीवन
जन के पेट को पालती
जय माँ गंगा भारती.....
लहराती बल खाती
जल से घाट संवारती
हिमालय की गोदी से उतर
सागर चरण पखारती
जय माँ गंगा भारती....
पवित्र तू कहलाती
मन का क्लेश उतारती
पाप को धोये जग तुझमे
तू उनको स्नेह दुलारती
जय माँ गंगा भारती....
कृतज्ञ हम सब तेरे जन
एकत्रित हो कर पूजे सम
भावों की संध्या आरती
जय जय माँ गंगा भारती..
ऋतुराज दवे
पतित पावन गंगा की धार ।
महिमा इसकी अपरम्पार ।
भागीरथ स्वर्ग से लाय उतार ।
पापियों को ये देती है तार ।
सबसे न्यारा इसका जल ।
वर्षों वर्षों तक रहे निर्मल ।
प्यास बुझाये उगाये फसल ।
भागीरथ की भक्ति का फल ।
पौराणिक महत्व है न्यारा ।
मोक्ष देता इसका किनारा ।
विज्ञान को अचरज में डारा ।
''शिवम्" इसी से है उजियारा ।
जो न होता इसका सहारा ।
कैसे खिलता गुलिस्तां हमारा ।
नाम है इससे जग में न्यारा ।
इसका महत्व जग ने स्वीकारा ।
स्वरचित 06/09/2018
गंगा मैया तेरी महिमा का।
कितना करूँ बखान।
जितना भी करूँ कम होगा।
तेरा जल इतना महान।
इस जल को चाहे प्राणी ।
जितना दिन रखे,पवित्र है रहता।
गंगाजल माथे पे छिड़ककर।
मानव शरीर पवित्र हो जाता।
जब भी लगे कुम्भ।
गंगा में सब स्नान करता।
साधु, महात्मा हैं जितने।
कुम्भ में स्नान करके धन्य हो जाता।
गंगा मैया तेरी जय हो।
अनवरत सदा यूँहीं बहती रहना।
मानवों को सदा तूँ यूँहीं।
तन,मन पवित्र करती रहना।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
त्रिपथ गामिनी, माँ गंगा को,
सादर करू प्रणाम ।
मात्र नही जल धारा कोई,
इनमे जीवन प्राण ।
°°
स्वर्ण से उतरी थी धरती पर,
सुर सरिता उदमाद ।
शिव की जटा ने बाँध लिया जब,
छोडा बस इक धार॥
°°
नाम भागीरथी दिया प्रभु ने,
सागर पुत्र उद्धार ।
नाम ही बस काफी है तर दे,
हर-हर गंगे नाम ॥
°°
अमृत इनकी जल धारा है,
मोक्ष मिले हर बार।
भारत की पहचान यही है,
गंगा गाय अरू राम॥
°°
स्वरचित..
आर्याव्रत का खण्ड ये भारत,
पावन ना कहलाता।
पतित पावनी माँ गंगा का,
नाम अगर ना आता॥
°
कल-कल छल-छल निर्मल धारा,
गोमुख से निकली है।
मंदाकिनी और अलकनन्दा के,
योग से गंगा बनी है॥
°
जा कर देखो ऋषिकेश मे,
निर्मल सी जल धारा।
हरिद्वार की हरि पौढी पर,
अदभुद आरती गाता॥
°
गोमुख से गंगा सागर तक,
माँ की छवि अलबेली ।
पर मानव के स्वार्थ के कारण,
कितने ही विपदा झेली॥
°
गंदे नाले के कचडो से,
पाट दिया जल धारा।
सागर से मिलने से पहले,
गंदा कर ही डाला ॥
°
चली गयी है छोड के धरती,
मानव ने क्या कर डाला।
आज दिखे है जो माँ गंगा,
रूग्ण सी वो जल धारा॥
°
स्वरचित
मैं सुरसरि बहती कल-कल थी
इस उथल-पुथल में विकल हुई
गोमुख से हर-हर निकली थी
मैदानों को भी सींचा था
उपजाऊ किए किनारों पर
जीवन का खाका खींचा था
हँसती थी तुम्हें देखकर मैं
पर अब ये आँखें सजल हुई
मैं सुरसरि बहती कल-कल थी
माता कहते थे तुम मुझको
आँचल में लेकर जीती थी
अपने बच्चों के पालन को
उनका भेजा विष पीती थी
क्या कमी रह गयी थी इसमें
क्यूँ मेरी ममता विफल हुई
मैं सुरसरि बहती कल-कल थी
जग हित में था मेरा जीवन
अद्भुत वो पुरुष-प्रकृति दर्शन
कल-कल से मेरे होता था
विज्ञान-धर्म में स्पंदन
होता अब आच्छादित प्रवाह
कैसे जिजीविषा गरल हुई
मैं सुरसरि बहती कल-कल थी
अधमरी हो गयी हूँ मैं
अब माँ के लिए पुकार करो
अस्तित्व न मेरा मिट जाए
अविरल गंगा हुंकार भरो
निस्वार्थ भरा जीवन मेरा
थम जाएगा यदि भूल हुई
मैं सुरसरि बहती कल-कल थी
इस उथल-पुथल में विकल हुई।
मुकेश राठौड़
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
सुनो सुनो कुछ बात सुनाती
गंगा का इतिहास बताती
===
भागीरथ तप किन्होभारी
ब्रह्म कुमंडल प्रवाहित वारी
वेग प्रचंड रूप है मह धारी
शिव की जटा में माही समायी
मंद वेग धर धरा पे आई
मंदाकिनी जग में कहलाई
उत्तर भारत नस नस बहती
शिरोमणी पियूष कहलाती
पानी से जग सिंचित करती
खुशहाली सब के घर भरती
उत्तर वाहिनी जग में कहलाती
निर्मल पावन है मेरी धारा
प्रा०ा प्रतिक मैंने जगतारा
शीश चर०ा जो मेरे झुक जाता
पवित्रता का वरदान है पाता
शिवाया नाम मेरा कहलाता
मेरी आरती की छटा है न्यारी
स्वर्णिम रश्मि चहुँ बिखरे सारी
पुष्प दीपों का आलिंगन करती
मन में भक्तिभाव जगाकर
जगजीवन बडमागी करती
भागीरथी जग में कहलाती
मैं फलदायिनी, मोक्षप्रदायनी
मै सुधा रस की धार प्रवाहिनी
गंगा मैया मै वरदायनी
सब कुछ अर्पण
मेरा सब तुमको
पर तुम क्या दे रहे
वापस मुझको
पावन आँचल मेरा दूषित करते
कचरे से तुम मुझको भरते
सियासत राजनीती पर चलते
मलिन वस्त्रो से श्रृंगार है करते
सुन लो मेरी करुण पुकार
अस्तित्व अगर मेरा रखना है
सबको मिलकर के जगना है
कचरा ढ़ेर मुझपे मत रखना
गंदगी प्रवाहित मुझमे मत करना
माँ की भक्ति मै फिर तुमको
इतिहास नया सुन्दर रचना है
स्वरचित सीमा गुप्ता
अजमेर
6.9.18
दर्शन करने मैं आई हूँ
भगीरथ प्रयास से तु धरती पे आई
हम सबको तारने माई
पाप हर लो गंगा मईया
डूबकी लगाऊं ,मैं आरती ऊँतारू
आशिर्वाद जी भर कर दो मईया
अहं छोड़ मैं शरण में आई
पाप हरनी, जग तारनी
जय माँ गंगे मंदाकिनी
तुम्हारा निर्मल जल कल कल बहे
मैल करें नीर हम तेरा
धर्य ना खोना मईया मोरी
हम अवश्य सुधर जायेंगे
रहेगी तेरी निर्मल धारा
हम सब फिर स्वच्छ बनायेंगे।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
उत्तरपूर्व गंगोत्री गोमुख से निकल -निकल,
गंगाजल सबका जीवन करता पावन,निर्मल,
घुंघराले बालों की अलकनन्दा नंदा के आँचल में,
हिमगिरी शिखरों से गिरती कल-कल विष्णुगंगा,
ग्यान की देवी सरस्वती,बद्रीधाम निकट देवताल में,
कितना सुन्दर ,कितना निर्मल,कितना पावन गंगाजल,
अलकनंदा संग छल-छल करती बहती विष्णुगंगा,
केशव प्रयाग में बहती अलकनन्दा संग ऋषिगंगा,
धौलागिरी से बहती निकल -निकल धौलीगंगा,
तुंगनाथश्रेणी से निकल-निकल बहती गरुड़गंगा,
बागेश्वर पिण्डर हिमशिखर से बहती है कर्णगंगा,
नन्दाकिनी, मन्दाकिनी संग बहती है ,निर्मल गंगा,
कितना सुन्दर ,कितना निर्मल,कितना पावन गंगाजल,
हिमालय की मन्दरांचल से, मन्दाकिनी में मधुगंगा,
अलकनंदा संग संग ,कल-कल बहती है ,अमृतगंगा,
केदारगंगा संग बहती भैरोघाटी संगम में जाह्नवीगंगा,
भिलंगना में लहराती धर्मगंगा,बालगंगा और रुद्रगंगा,
भागीरथी और भिलंगना के आँचल में स्थित टिहरी बांध,
देवप्रयाग में सास -बहु कहलायी अलकनन्दा,और गंगा,
केदार पुराण कहता,हरिद्वार गंगाद्वार से कहलायी गंगा,
कितना सुन्दर ,कितना निर्मल,कितना पावन गंगाजल,
स्वरचित
'सुनीता पँवार', गंगा नगर,ऋषिकेश,'उत्तराखण्ड
शीर्षक:"गंगा "
हाइकु
1
निर्मल गंगा
कलकल है धारा
हरि के द्वार
2
आकाशगंगा
रहस्यमय ज्ञान
खगोल शास्त्र
3
गंगा के घाट
जगमगाते रात्रि
देव दीवाली
4
गंगा भारती
मन को मिली शांति
संध्या आरती
5
शांत है गंगा
सागर मिलकर
बंग की खाड़ी
6
नमामि गंगे
स्वच्छ गंगा योजना
ठोस कदम
स्वरचित पूर्णिमा साह बांग्ला
गंगा
गंगा आज बहुत उदास है
मानव से बेहद निराश है
तोड़ी जो उसकी आस है
पावन जल बचा न पास है
दिन -रात मैली हो रही
अस्तित्व अपना खो रही
दूषित हो कर तड़प रही
कलयुग का दुख भोग रही
परहित खातिर जो धरा पर आयी
जाने कितनी धरा उपजाऊ बनायी
इंसान ने क्यों दुर्गति उसकी बनाई
कहे गंगा, मैं तो यहाँ आ पछतायी
कभी भेदभाव जिसने न जाना
सबको सदा जिसने अपना माना
सबका संगम कर साथ निभाना
फिर भी दुखी कर रहा जमाना
कोई नहीं करता इसकी परवाह
कोई नहीं सुनता इसकी आह
पूरी करते बस सबअपनी चाह
कोई नहीं लेता इसकी थाह
गंगा ने किया सबका उद्धार
पर आज वो लगाती गुहार
मत करो मुझपर अत्याचार
गंदगी से करो मेरा उद्दार
स्वरचित
गीता लकवाल
*ओ अमर गंगे*
लहर -लहर लहराती लहरिया
लेकर ललित- लहरों की लड़ियाँ
चिर -चिरतम है पावन सलिला
तन -मन विमल करती निर्मला
पग -पायलें कटिबंध कंकणिया
यौवन बंध चीर- चीर चुनरिया
भाग रही वह सरपट बावरिया
सिंधु- सजन मिलने को सजनिया
पर्वत- कानन उछलती हिरणिया
कुलाँचे भरती डगर- डगरिया
सरसाती नित- सम्यक सलिला
जोश- जवानी भरी उमरिया
छम-छम नर्तन करती पत्तियाँ
चंचल चारू चपला सी उर्मियाँ
झरझर- झरती लहरें- झरझरी
नदी -राग सुनाती निर्झरा
भँवरजाल बनातीआकुल बहियाँ
जलतरंग बजाती मधुर ध्वनियाँ
कहीं मचलती कहीं थिरकती
करतीं हैं कभी रौद्र गर्जनिया
अंतर कुंड में बाँधे बेड़ियाँ
लपेटती- मुक्त करती उर्मियाँ
करे पति को को दुलार कर
वह जीवन मृत्यु अठखेलियाँ
भाव भरती वारुणी वत्सला
छलकी भर- भर नेह गगरिया
अतुल वेग से गमन करती
ओ गंगे !!नूतन पथ सर्जनिया।
स्वरचित व मौलिक
सुधा शर्मा
6-9-2018
शीर्षक - गंगा
1-
गोमुखी गंगा,
निर्मल जलधारा,
सर्व सहारा ।
2-
गंगा लहरें,
कई चाँद समेटे,
छटा पूनम ।
3-
पावन गंगा,
आज हुई क्यों मैली,
धर्म आलाप ।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
गर मैं अपनी सोचों को बिसरा दूं तो,
जिन्दगी ठहर ठहर सी जाती है,
उनको साथ लेकर संध्या औ सहर तक,
अंतर्मन की लौं प्रज्जवलित हो जाती हैं।
मेरी सोचें हैं उस गंगा की धारा तक,
जो अविरल बहती जा रही है।
साथ में अपने प्रेम और विश्वास,
के सीपी कण बहा ले जा रही है।
जिसमें निष्चल प्यार व्यवहार की,
रेतीली मिटटी घुलती जाती है।
जिसमें अव्यक्त सरल सादगी के
कई, गुलाबी कमल खिलते जाते हैं।
जिसमे मन हदय के पवित्र पावन,
मंदिर में दीप जल जाते है।
जिसमे शाम ढले क्षितिज के,
मिलन का दृष्य उभरता हैं।
जिसके तट पर मृत्युपंरात,
काया को मोक्ष मिल जाता है।
और मेरी सोचों की गंगाऐं...........
जिन्दगी के साथ बहती जा रही हैं
उदगम स्थल से संगम को मिलाकर,
सागर में यूं मिल जाना चाहती है।
मेरे नाम को, वजूद, मेरे अस्तित्व को,
मेरे काम से रोशन कर जाना चाहती है।
और एक ढुबकी मेरे मन के विश्वास की,
इस भवसागर से तर जाना चाहती है।
मेरे तनमन को आशीर्वादों की गंगा में,
नहला कर गंगामय कर जाना चाहती है।
----डा. निशा माथुर/8952874359
शुभ्र अमृतधारा गंगा
शीव शंकर जटा विराजीनी
विश्व शालिनी गंगा
भागीरत द्वारा धरा पधारिनी
पाताल सुशोभित करनी गंगा
हेेैे मंदाकिनी भीष्म जननी
हृदय विशालिनी गंगा
सुख दायिनी रोग विनाशिनी मुक्ति दायिनी गंगा
पतित पावनी ऋषियों मुनियों की मानिनी
मोक्ष दायिनी गंगा
है बहु आयामी जीवन दायिनी शुभकारिनी गंगा
उसमें न अब फैलानी गंदगी
यह बात होगी सबको जाननी
वो तो माँ हैं उस मां को तकलीफ न देनी होंगी।
*****************
प्रीति राठी
स्वरचित
मैं पतित पावनी गंगा हूँ ,
मैली क्यों कह बुलाते हो ?
नहीं नाम बिगाड़ो तुम मेरा ,
क्यों पीड़ा मुझे पहुँचाते हो ।
सदियों से भार है वहन किया ,
ख़ुशियाँ बाँटी दुख सहन किया ।
मल जो भी आँचल में डाला ,
उस सब को मैंने ग्रहण किया ।
गोमुख से जब मैं निकली थी ,
हृदय बहुत संकीर्ण था ।
जब देखी ज़रूरत संतति की ,
दिल को किया विस्तीर्ण था ।
गंगा मैली की प्रत्यंचा जब,
खिंच जाती है वक्ष मेरे ।
लहूलुहान रूह होती है ,
होते प्रश्न मौन समक्ष मेरे ।
संगम पर पहुँचने से पहले ,
उज्ज्वल कर शृंगार करो ।
'मैला' शब्द लगे दुखदायी ,
निर्मला कह मनुहार करो ।
राह में न रुकी ठिठकी ठहरी ,
सिंधु पर ही जा रुकती हूँ ।
करती हूँ समर्पण मैं उसको ,
बिंदु असीम पर झुकती हूँ ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
" गंगा"
कर पाप इंसान,
चैन से है वो सोता,
जाकर गंगा पर फिर,
पाप है वो धोता,
हो जाता है वो आश्वस्त,
लगा डुबकी गंगा में,
दुष्कर्मों का फल ,
ना धुल पाता गंगा में,
खुद नहाएँ तो नहाएँ,
कचरा भी बहा आते हैं,
फिर बैठाते पंचायत,
गंगा में प्रलय क्यों आते हैं?
बोलते माँ तुम गंगा को,
उसको ही फिर गंदा करते हो,
धन -दौलत की खातिर,
गैर कानूनी धंधा करते हो,
जाकर गंगा मैया पर,
दान फिर करते हो,
आकर घर फिर,
गरीबों का लहू चूसते हो।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
6/9/18
वीरवार
-------
फैली हुई है गंदगी बन रहा मुर्दाघाट
दूषित हो रही है धार आने लगा दुर्गंध
कोई मुझे बता दे क्या पाप धुल रहा है?
तट पे लाश जलाकर क्यों मनु हँस रहा है?
गंगा पुकारे कोई मेरी निर्मलता को बचा दे
सिमटती हुई धार को कोई सुधा पिला दे
जन जन का हो हित सत्यकर्म माँगता हूँ
थमी हुई है हर जगह धारा बेचैन हैं लहरें
कोई नहीं बताता पापी का पाप कैसे धुला है
वेग है धार है ना पास है कोई अमृत धारा?
यह पाप हो रहा या पाप का तर्पण हो रहा है?
वसुधा पर रेत से बहती धार मेरा लिख दे
मानव इस घरौंदा को बहा ना जाए किनारा
पावन जल का आज अवतरण माँगता हूँ
भागीरथ के परमार्थ का हिसाब माँगता हूँ।
हिमालय से निकलकर गंगा रूकी हुई है
माँ गंगा का आँचल आज क्यों गंदा हुआ है?
हिमालय की पुत्री चुपके-चुपके रो रही है
रो रहा गगन वसुधा रो रही है
मौन है मंदिर स्वर्ग डरा हुआ है
पाप का घड़ा हर जगह भरा हुआ है
कर वंदन मनुज! गंगा का धार संवर्धन माँगता हूँ
माँ गंगा का कल-कल का श्रृंगार माँगता हूँ।
आनंदित गंगा सुख को त्याग रही है
अतुल वेग था गंगा का कहीं ठहर रहा है
कैद होकर गंगा आज बह रही है
विचलित गंगा भागीरथ को पुकार रही है
मुझमें कहीं से पुण्य सलिल धार ला दे
तेज वेग धार का तरंग माँगता हूँ
प्रवाह माँगता हूँ राह माँगता हूँ
रूकी है धार जहाँ से मुक्ति माँगता हूँ
मेरी आहुति को देख आज उपकृत कर दे
फिर मुझे गहरा सा सागर कर दे
निर्मल गंगा को आज उफान दे दे
आँसू पीते मलबा ढ़ोते गंगा को
आज हे मनुज! महिमा का अजान दे दे
मुक्ति देती है गंगा इसकी गरिमा माँगता हूँ
पूजित गंगा की आज गौरव माँगता हूँ।
@शाको
स्वरचित
पटना
स्नेह नीर से सदा फुलते रहे सुमन ll
जन्मसिद्ध भावना स्वधर्म क बिचार हो
रोम रोम मे रमा स्वधर्म संस्कार हो
आरती उतारते प्राणदीप हो मगन,
स्नेह नीर से सदा फुलते रहे सुमन ll
हार के सुसुत्र मे मोतियोंकी पंक्तियाँ
नगर नगर ग्राम से संग्रहित शक्तीयाँ
लक्ष लक्ष रुपसे गंगा हो बिराट तन
स्नेह नीर से सदा फुलते रहे सुमन ll
ऎक्य शक्ति हिन्द की प्रगति मे समर्थ हो
धर्म आसरा लिये मोक्ष काम अर्थ हो
पूण्यभुमी आज फिर ज्ञान का बने सदन
स्नेह नीर से सदा फुलते रहे सुमन ll
गंगा भुमि गान से गुजँता रहे गगन
स्नेह नीर से सदा फुलते रहे सुमन ll....
संरचित ..मीरा पाण्डेय उनमुक्त
माँ गंगा
6अगस्त 2018
शिवजी मुझको जटा मे ध्यायेl
भगीरथ मेरे पिता कहायेll
सत्य व्रत की भार्या हूँ मै l
भीष्म मेरे पुत्र कहाये ll
पिता मुझे पृथ्वी पे लायेl
तब अपने पूर्वज तरवायेll
आर्यव्रत धन्य होगया l
ज़ब ज़ब वो मुझमे नहायेll
गौमुख से अवतरण हुवाl
पवित्रता से आगमन हुवाll
हर्षित होगया मन मेराl
नयी दुनिया मे आगमनहुवाll
पर अब मन खिन्न हो रहा l
इंसान सिर्फ पाप धोरहाl
मैला कर कर के मुझको l
मेरी शक्ति वो खो रहा ll
सुन लो मेरी करुण पुकार l
नहीं कर सकती मै उद्धारll
मैला मुझको कर रहे हो l
अब तो गयी मै बिलकुलहारll
कुसुम पंत
स्वरचित
रहने दो गंगा को स्वच्छ,
सौरभ से सना समीर बहे,
धरती पर अमृत का घट हो,
शीतल नदिया का नीर बहे ।
ओ मानव! तुम कुछ शर्म करो,
वरना धरती मिट जाएगी,
इतना कचरा फैलाओ मत,
वरना गंगा जल जाएगी
है छूट तुम्हें निर्मल कर लो,
तुम पाप मिटा लो तन मन का,
पर पतितपावन गंगा की ,
मत लहरों में अंगार भरो ।
मरघट मत बनने दो पनघट,
घर दुनिया का आबाद रहे,
धरती को प्यास बुझाने दो,
हरियाली जिंदाबाद रहे ।
नदियों के जल जब निर्मल होंगे
गंगाजल अमृत बन जाएगा
पॉलिथीन और नारियल जैसी चीजें ना कोई
बहाऐगा
तब गंगा हमारी अमृत बन जाएगी
मुर्दाघर जब अलग होंगे
कोई मुर्दा नहीं बहाऐगा
तब गंगा हमारी अमृत बन जाएगी
मेरे भारतवासी तक एक बात यह पहुंचाओ
गंदगी ना कोई ना फैलाओ अपनी गंगा को बचाओ
जब गंगा ना दूषित हो पाएगी
सब जल मे दीप जलाएंगे
अपनी गंगा मां के मधुर गीत यु गुनगुनायेगे
गंगा को बचाने की कोशिश की लाखों बार
गंगा बचाओ गंगा बचाओ का नारा लगा कई बार
शुरू हुआ यह कारोबार
चलता रहा बस यू ही ये व्यापार
सबके मन में अलख जगानी होगी
गंगा को दूषित होने से बचाना होगा
आज लेते हैं यह संकल्प गंगा को दूषित ना होने देंगे
मैं अविरल हूं निर्मल हूँ बहती एक धारा हू
मेरा धरती पर अवतरण मोक्ष के लिए हुआ
कुछ नहीं तो सम्मान हूं
बहने दो बस बहने दो यही एक मांग है
स्वरचित हेमा जोशी
कितना सुखद एहसास है
इस धरा पर तेरा उतरना
जैसे देवलोक से शीतल
झरने का धरती पर गिरना
मन में शीतलता भर देता है
आज भी तेरा नाम ही गंगा
मानते हैं सब तुम्हें पावन
पाप विनाशिनी सरिता भी
पाप हुए है जाने अनजाने
बहुत...तुम पावन कर देना
मैं जब आऊँ तट पर तेरे
तुम मुझे निर्मलता का वर देना
स्वरचित :-मनोज नन्दवाना
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