Wednesday, February 12

"स्वीकार12फरवरी2020

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ब्लॉग संख्या :-654
दिनांक-१२/०२/२०२०
आज का शीर्षक- स्वीकार

विधा-गीतिका
मापनी-२१२२ २१२२ २१२२
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प्रेम करता हूँ स्वयं को हारता हूँ।
आज तेरी चाहना स्वीकारता हूँ।।

कौन रखता है भरम मेरी वफ़ा का,
इसलिए अपशब्द को दुत्कारता हूँ।।

सोच मेरी प्रीति करने में जुटी है,
सुधि तुम्हारी में कलेजा वारता हूँ।।

द्वार तेरा जब से देखा है दृगों ने,
कामना संसार की संहारता हूँ।।

जानता ही कौन है ढींगें समय की,
मैं मनुज हूँ वह कि शेखी मारता हूँ।।
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'अ़क्स' दौनेरिया
विषय - स्वीकार
प्रथम प्रस्तुति


इस तरह घिर गए हैं लोग
अब निज स्वार्थ के घेरे में!
मेरा घर बस जाए महज
देश भले हो अँधेरे में!

उच्च विचारों की तोहीन
संकीर्ण विचारों को बल!
क्या होगा आखिर इससे
होंगे इससे हम दुर्बल!

ये हमारा जो समाज है
आज जो ये आसपास है!
इसे नकारो या फिर करो
इसमें पूर्णतः विश्वास है!

करना ही होगा स्वीकार
ये हमारी मजबूरी है!
नही करो गर 'शिवम' होगी
इससे हमारी दूरी है!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 12/02/2020
विषय स्वीकार
विधा काव्य

12 फरवरी 2020,बुधवार

जग नियन्ता पालन कर्ता
प्रिय नमन स्वीकार करो।
हम अज्ञानी मूरख प्राणी
प्रिय हम पर ध्यान धरो।

पति पिता पुत्र भाई धर्म
मिलकर हम स्वीकार करें।
कर्तव्य पथ हम डट जावें
सद्कर्मों को अंगीकार करें।

मात पिता गुरुजन संस्कार
सदा स्वीकार करें हृदय में।
स्वविवेक से जीवन जीकर
मार्ग प्रशस्त करें जगत में

करें स्वीकार राष्ट्र भक्ति को
मात पिता मन सेवा करलें।
परोपकार के पथ चलकर
दीन हीन को हिय में भरलें।

सत्य अहिंसा परोपकार को
करो स्वीकार सदा जीवन में।
नव पौध लगाओ अनवरत
पुष्प खिलाओ जग उपवन में।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
तिथि -12/2/2028/बुधवार
विषय-*स्वीकार*

विधा -काव्य

बलात्कार, भ्रष्टाचार कदाचार मुझे सब स्वीकार है।
देश जाए रसातल भाड़ में मुझे सब स्वीकार है।
सरेआम चौराहे पर हमें काटो सब स्वीकार है।
कुछ टुकड़े बिजली पानी मुफ्त में देदो सब स्वीकार है।
बहन बेटियों की इज्ज़त लूटो सब स्वीकार है।
कोई भी हमको मारे पीटे स्वीकार है।
चाहे जो कुछ भी कर लो तुम हमको सब स्वीकार है।
हमें पता है अब लुगाई दोगे सब स्वीकार है।
सरेराह चाकू छुरियों से मरना स्वीकार है।
अपने देश के टुकड़े होना स्वीकार है।
मंदिर गुरूद्वारे जितने चाहो तोड़ो स्वीकार है।
बलात्कार बच्ची मारो काटो स्वीकार है।
तुमको इनकी जो कर सकते करदो स्वीकार है।
स्कूलों में मुफ्त पढ़ाना स्वीकार है।
बिजली पानी मुफ्त पिलाना स्वीकार है।
मकान दुकान भी मुफ्त दिलाना स्वीकार है।
मटन मीट भी हमें खिलाना स्वीकार है।
सड़कों पर देश विरोधी नारे भी स्वीकार है।
हर गांव को देश बनाना
हमको स्वीकार है।
हिन्दू मुस्लिम सिख लड़वाना स्वीकार है।
उल्टा सीधा जैसे बोलें स्वीकार है।
अस्त्र शस्त्र धर्म स्थलों में भरना स्वीकार।
खूब मदरसों में हथियार रखना स्वीकार है।
अपने प्रधान को गाली देना स्वीकार है।
पगड़ी चाहे जिसकी उछलाओ स्वीकार है।
तुम्हारा सबकुछ मुफ्त बांटना दिल से स्वीकार है।
जो भी तुम अपने बाप दादाओं का बांट रहे स्वीकार है।
बांटो जबतक बांटो स्वीकार है।
हमें आलसी बनाना स्वीकार है।
हमें ऐसे ही मुफ्तखोर बनना भी स्वीकार है।
पूरे ही भिखमंगे बनना स्वीकार है।
टैक्स कुछ लोगों से स्वीकार है।
भारत को ही तुम्हें लुटाना स्वीकार है।
इस देश को तुम्हें मिटाना स्वीकार है।
कुछ लोगों को तुम्हें हंसाना स्वीकार है।
सारे देश को आगे रूलाना स्वीकार है।
टके सेर भाजी टके सेर खाजा स्वीकार है।
गधे घोड़े एक बनाना स्वीकार है।
अपने हमें धर्म को ही मिटाना स्वीकार है।
अब हर गली मोहल्ले में
ऐसी सरकार स्वीकार है।
तुम कुछ भी कर लो सब स्वीकार है।
पता है तुमको भी नहीं रहना इसलिए सब स्वीकार है।
बहन बेटियां तुम्हारी लुटना सब अंगीकार है।
लिखकर देते करता तुमको स्वीकार है।
हर गांव गली मोहल्ले बिकना स्वीकार है।
अब तो मात्र तुम्हें गृहयुद्ध की दरकार है।
पाकिस्तान तुम्हारी सेवा में तैयार है।
जयचंदो की फौज यहां तैयार है।
आस्तीन के सांप संपोले भी तैयार हैं।
क्योंकि हम सब भारतवासी लिए कटोरे
मुफ्त की पाने तैयार है।
भारत मां की इज्ज़त लुटना शायद तुमको भी स्वीकार है।
ऐसे सब भिखमंगो की
जयजय कार हमें स्वीकार है।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
बिन सरहद के जिंदगी तो जीना ही बेकार है।

दंड कड़ा हो या बड़ा हो,
सब मुझको स्वीकार है।
बिन सरहद के जिंदगी तो,
जीना ही बेकार है।।

हाथों से हथियार छीन लो ,
रखेंगे न मर्जी से ।
रिश्ता गहरा मजहब पहरा ,
तम ,तूफान, सर्दी से ।।
खुदगर्जी में रिश्ता तोड़े ,
तो उसे धिक्कार है ।
बिन सरहद के जिंदगी तो ,
जीना ही बेकार है ।।

अपने सपने व जवानी ,
छोड़ा तब तो पाया ये ।
रिश्ते व फरिश्ते त्यागे,
पर इक नहीं गंवाया ये ।।
जो काम वतन के न आये ,
वह मानव मक्कार है ।
बिन सरहद के जिंदगी तो ,
जीना ही बेकार है ।।

महक -समीर ,नमी -नीर व ,
जख्म -पीर का जो नाता।
कुछ तो लौ में है ,किट जो ,
पागल हो प्राण गवाता ।।
सहास पास होने पर सिंह ,
जो करता न शिकार है ।
बिन सरहद के जिंदगी तो,
जीना ही बेकार है ।।

दुर्घटना , बीमारी , चिंता ,
अत्याधिक फिक्र हुआ ।
वो मारना भी क्या मरना ,
जिसका कहीं न जिक्र हुआ।।
मजहब पर मर कर अमर ,
आज होने का विचार है ।
बिन सरहद के जिंदगी तो ,
जीना ही बेकार है ।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©

दिनांक- 12/01/2020
शीर्षक-"स्वीकार"
िधा- छंदमुक्त कविता
******************
श्रद्धा सुमन लाई हूँ,
दर पर तेरे आई हूँ,
भेंट मेरी स्वीकारो प्रभु,
विनती करने आई हूँ |

मजहब की दीवार न हो,
भ्रष्टाचार और पाप न हो,
मन में दोष, विकार न हो,
कहीं,कोई अत्याचार न हो |

शुद्ध हवा का संचार हो,
सबके मन में प्यार हो,
इंसानियत का विस्तार हो,
मेरी विनती स्वीकार हो |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय- स्वीकार

स्वीकार है मुझे,
ईश्वर चाहे मुझे किसी हाल में रख लेना!
बस डोर तुम्हारे हाथों है,
एक बार तुम ये कह देना!
दुख के कांटे आए जीवन में तो,
मेरा मन डरेगा नहीं!
बस तुम उनके बाद,
सुखों के फूल बिछा देना!
स्वीकार है मुझे,
ईश्वर चाहे मुझे किसी हाल में रख लेना!
ताप जीवन में कितना भी बढ जाये,
मैं अपने सफ़र में रुकूंगी नहीं!
बस तुम मेरी राहों में,
अपने प्रेम की छाया कर देना!
स्वीकार है मुझे,
ईश्वर चाहे मुझे किस हाल में रख लेना!
स्वरचित
एकता शर्मा
दिनांक १२/२/२०
विषय - स्वीकार

विधा - गीत

युगल गीत
********
नायिका

लो आज समर्पण किया मैंने।
चरणों में शीश धर दिया मैने।।

चाहा तुम्हें दिलो जान से,
बिठाया मन में बडे मान से,
लो दिल मंदिर बना दिया मैंने......

चरणों में शीश धर दिया मैने,
लो आज समर्पण किया मैंने......

लाई दो नैना प्यार भरे
अधर गुलाबी कमल अर्पण करे
लो अश्रु से आचमन किया मैंने........

चरणों में शीश धर दिया मैने,
लो आज समर्पण किया मैंने.........

नयनों से प्रेम धारा झरे,
मन में लाई हूँ सपनें भरे,
लो तन न्योछावर किया मैंने.........

चरणों में शीश धर दिया मैने,
लो आज समर्पण किया मैंने.........

अर्धांगनी मैं तुम नाथ बने,
त्याग तपस्या जीवन राह बुने
लो जीवन बलिदान किया मैंने.....

चरणों में शीश धर दिया मैने,
लो आज समर्पण किया मैंने.......

नायक

लो सोलह श्रृंगार दिया मैंने
मेरा दिल उपहार किया मैंने.........

प्रिया सदा प्यार मेरा रहो,
मेरे जीवन का आधार रहो,
लो आज ये वादा किया मैंने........

मेरा दिल उपहार किया मैने,
लो सोलह श्रृंगार दिया मैंने.........

मेरी बगिया की माली बनों,
महकाओ चमन हम राही बनों
लो आज स्वीकार किया मैने........

मेरा दिल उपहार किया मैंने,
लो सोलह श्रृंगार दिया मैंने..........

नायिका
तुम मेरे दिल के मालिक रहो,

नायक
तुम मेरे सपनो की रानी रहो

नायिका
ये बहारें न रुठें हम से कभी......

नायक
प्यार दिलों से न कम हो कभी.....

दोनों
तेरा मेरा साथ न छूटे कभी......
तेरा मेरा साथ न छूटे कभी......
तेरा मेरा साथ न छूटे कभी.......

मीनू@कॉपीराईट
राजकोट

12 /2 //2020
बिषय, स्वीकार

आज प्रणय की बेला में प्यार मेरा स्वीकार कर लो
समर्पणभाव है मन में उसे तुम अंगीकार कर लो
ए न समझो पराई मैं
तेरे नाम की दूं दुहाई मैं
बस तुम्ही में समा जाऊं ऐसा मेरा आकार कर लो
देखा नहीं कभी तुमको
मैंने तो बस चाहा है
तुम्हें पूजा तुम्हें माना
तुम्हें ही बस सराहा है
दुनिया से क्या लेना प्रभु
अपने चरणों में लेकर छोटा
मेरा संसार कर लो
स्वरचित,, सुषमा ,ब्यौहार

🌹 गीतिका 🌹
🌷🌷🌷🌴🌷🌷🌷
🍋 स्वीकार 🍋
🌺🌻 छंद- गीतिका 🌻🌺
मापनी-2122 , 2122 , 2122 , 212
समान्त-आर, पदांत-माँ
***********************
🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵

आज पूजा अर्चना को कीजिए स्वीकार माँ ।
एक ही मुझको सहारा , दीजिए नित प्यार माँ ।।

क्या करें अर्पण तुझे हम, तुच्छ है सब आपको ,
भाव लाये हैं हृदय से अश्रुपूरित धार माँ ।

शक्तिरूपा देवि है तू , खड्गधारी चण्डिका ,
दैत्य आतंकी मिटा ,कर शान्ति का उपकार माँ ।

हो गये हैं आज भी कुछ असुर पैदा देश में ,
पाप , अत्याचार पर बरसाइये तलवार माँ ।

तू महामाया व अम्बे , शारदे कमलासिनी ,
शैलजा है चन्र्दघंटा , वैष्णवी जगतार माँ ।

अन्नपूर्णा नित महालक्ष्मी मही मंशा बनी ,
भारती नव राष्ट्र का भर दो महा भण्डार माँ ।

मात नव झनकार दे , गूँजे स्वरों की रागिनी ,
लेखनी सत पथ बहे , नव गीत हों गुंजार माँ ।।

🌹🍀☀️🌻🌺

🌺🌲** ... रवीन्द्र वर्मा आगरा

विषय- स्वीकार
प्रिय! तुम मुझे प्यार करो या दुत्कार दो

करम करो या सितम, दोनों ही स्वीकार है।
मैंने चाहा है हृदय तल से, फकत तुम्हें ही
हार मिले या जीत, दोनों ही स्वीकार है।
मिलती नहीं सभी को,मंजिलें मुहब्बत में
राह मिल गई प्यार की, इसी से हुआ प्यार है।
हम हैं राही प्यार के, चलना अपना काम है
ना पाने की चाह ना खोने के गम से दिल बेकरार है।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

दिनांक-12-2-2020
विषय-स्वीकार

विधा-दोहे

स्वीकार-दोहे

(1)
जीवन बगिया खिल उठी,
जहाँ फूल औ शूल।
दोनों को स्वीकार लो,
मंत्र यही इक मूल।।
(2)
तिमिर हो या प्रकाश हो,
कर इन्हें स्वीकार।
दोनों से जीवन चले,
दोनों जग आधार।।
(3)
हर वस्तु स्वीकार करें ,
कटु बातों को भूल।
धीरज मन में लाइये,
न दें बात को तूल।।
(4)
गोरे काले रंग हैं,
ईश प्रदत्त उपहार।
समता भाव सदा रखें,
करें सभी स्वीकार।।
(5)
उलझ गए इस जगत में,
भूल सनातन रीत।
विनम्रता स्वीकार करें,
करिए सबसे प्रीत।।
(6)
लेखा जोखा भाग्य का,
समझ सका है कौन।
हर स्थिति स्वीकार कर,
होकर बंदे मौन।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

भावों के मोती💕
विषय-स्वीकार।
्वरचित।

स्वीकार नहीं मुझको
कभी मुफ्त की रोटी है।
मैं मेहनतकश हूं मजदूर हूं,
सबसे बढ़कर कर्मयोगी हूं।।

स्वीकार नहीं मुझको
भीख की कटोरी है।
मैं किसान हूं,स्वाभिमान हूं।
सबसे बढ़कर मैं देश का अभिमान हूं।।

स्वीकार नहीं मुझको,
अकिंचन दया का पात्र बनना।
मैं हठी हूं,कर्म योगी हूं।
और फिर भोगी हूं।।

स्वीकर नहीं मुझको,
लाइन में लगकर
जाति का प्रमाण पत्र लेना।
मैं स्वयं उसकी कृति,
ना कोई कमी या रोगी
मैं कर्म योगी हूं।।

स्वीकार नहीं मुझको,
लोभ-लालच में फंसना।
किसी और की कमाई को ठगना।
किसी के श्रम बिंदुओं पर
बेशर्म हक रखना और लज्जित होना।।

स्वीकर नहीं मुझको,
किसी छूट का प्रावधान
भिक्षा का अवदान
नहीं चाहती देश में हो
भिच्छुक या अजगर...
जो ढंसले देश की उन्नति।
जमा कर लें,भर लें अपनी तिजोरी।
जिनका कर्म है बस कामचोरी।।

मैं चाहती हूं देश में
सिर्फ स्वीकार हों
कर्मठ योगी,तेजस्वी,तपस्वी
मनस्वी और यशस्वी।।
भिक्षुक और अजगरों को
बस सीमित अधिकार हों।
सच्चे अधिकारी वो हों
जिनका देश में योगदान हो।।
*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
12/02/2020

विषय -स्वीकार
दिनांक 12 /2/ 2020


स्वीकार शब्द सर्वत्र व्याप्त,
स्वीकार सभी कर लेते हैं ।
आदर् स्वीकार करें कोई,
अपमान कई सह लेते हैं ।

स्वीकार कोई प्रस्ताव करें,
अभिवादन भी स्वीकार करें।
स्वीकार नहीं जो कर सकता,
उसका ही सब प्रतिकार करें ।

ईश्वर की इच्छा मान हमें,
स्वीकार सब कर लेना है।
अन्यथा रहेंगे एकांकी ,
सुख सुविधा को खो देना है।

स्वरचित, रंजना सिंह

विषय - स्वीकार
दिन - बुधवार

दिनांक - १२,२,२०२०.

स्वीकार नहीं ये हमको होगा ,
कोई आजादी का मोल करे ।
अपशब्द कहे मेरी माता को ,
माटी न जो वतन की शीश धरे।

स्वीकार हमें वो बेटा नहीं होगा ,
सम्मान न जो नारी का करे।
मातृभूमि की सेवा के लिए जो ,
अपना सर्वस्व अर्पण न करे ।

स्वीकार नहीं वो रिश्ता हमको,
नींव घर की जो कमजोर करे।
कर्तव्य निभाना न आये जिसे ,
केवल अधिकारों की बात करे।

स्वीकार हमें हर जुवाँ वो होगी,
भारत माता की जय जो करे ।
स्वीकार हमें हमराही वो होगा ,
जो अपने वतन से प्यार करे।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
विषय --स्वीकार
दिनांक--12.2.2020

विधा -दोहा मुक्तक

1.
विरुद्ध भ्रष्टाचार के, लड़ाई आरपार।
आतंकी को पटकनी, देने में नहिं रार।
सभी देश में सहज हो, राह चुनें सब सोच
जन गण मन सब साथ हैं, क्षणिक कष्ट स्वीकार
2.
दर्द तिमिर को भेदने,मन तरंग है सार ।
नीर बिना अँधियार है, अंकुर है उजियार।
प्रकृति नटी की गोद में ,पसरा है मधुमास-
शुभ बासन्ती पर्व का, हो शुभत्व स्वीकार ।

*****स्वरचित ********
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
विषय : स्वीकार
विधा : कविता

तिथि : 12.2.2020

कैसे करूं स्वीकार!

अभी तो मैं जन्मी भी नहीं,
कैसे करूं हत्या स्वीकार;
न करो मुझ पर अत्याचार-
ये तो नहीं हमारे संस्कार!

कैसे करूं स्वीकार!

भाई संग मैं स्कूल न जाऊं-
सिरे से है मुझे अस्वीकार।
मेरे भविष्य पर अत्याचार?
भेदभाव न हमारा संस्कार!

कैसे करूं स्वीकार!

अभी तो है मेरी बाली उमर-
बनी न अब तक आत्मनिर्भर;
कैसे करूं ब्याह स्वीकार?
क्यों छीनते मेरा अधिकार!

कैसे करूं स्वीकार!

आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता
यही हैं मेरे अनमोल अलंकार
ऐसा ही जीवन पाना है मुझे--
यही मां-पिता का सच्चा प्यार।

इसे मैं सहर्ष करूं स्वीकार।

दो मुझे तुम सार्थक जीवन
मैं भी दूं गी तुम्हें उपहार;
ऐसा नाम और ऐसा जीवन-
दूंगी, हर दिन होगा त्योहार।

मांगोगे रब से बेटियां बारम्बार।
-- रीता ग्रोवर
--स्वरचित
स्वीकार

स्वीकारो
मेरा प्रणय निवेदन
प्रिय
तन मन
बारी जाऊँ

वृन्दावन की
गलियन में
घूमें राधे
सख्यिन संग
किशन है
जग का न्यारा - न्यारा

स्वीकारे न्योता
सब का
बना है
प्यारा- प्यारा

लाज बचाता
भक्तों - नारी की
भक्ति मार्ग
बताता जग को

स्वीकारो
अरज मेरी
हे जग के
पालनहार
हों धर्म संस्कार
अखंड
मेरे भारत के
तुम ही
खेवनहार

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

तिथि -12/2/2020/बुधवार
विषय-*स्वीकार*

विधा-गीत

हम नन्हे के हाथ थाम लें।
अपना आपस में प्यार बांट लें।
कितना सुन्दर उपहार।
हमको सब स्वीकार।
जयजय पालनहार।

जो खिलौना तूने दिया है।
मानो जीवन तूने दिया है।
करते तेरी जय जय कार।
जयजय पालनहार।
हमको सब स्वीकार।

हम-सब आश्रित तेरे ऊपर।
रहती कृपा तेरी हमपर।
जय-जय जगताधार।
जय-जय पालनहार।
हमको सब स्वीकार।

छोटा सा परिवार हमारा
करलें केवल ध्यान तुम्हारा।
निशदिन हम सरकार।
जय जय पालनहार।
हमको सब स्वीकार।

रहें सदा अपनी तिकड़ी।
नहीं फांसे कोई भी मकड़ी।
तू करता है उद्धार।
खुश तुझसे है परिवार।
जय जय पालनहार।
हमको सब स्वीकार।

हमने बचपन पकड़ लिया है।
जो कुछ प्रभु हमें दिया है।
बहुत बड़ा उपकार।
जय-जय पालनहार।
हमको सब स्वीकार।

सुखी स्वस्थ सब रह पाऐं।
हम सब गौरवगाथा गाऐं।
हम भजन करें शतवार।
जय-जय पालनहार।
हमको सब स्वीकार।

शी,भा*स्वीकार* गीत
12/2/2020/

बुधवार 

विषय स्वीकार
विधा कविता

दिनाँक 12.2.2020
दिन बुधवार

स्वीकार
💘💘💘💘

हमें करना होगा यह स्वीकार
कि हम अब तक भी हैं बीमार
ये जातिवाद के झगडो़ं में
ये ऊँच नीच के रगडो़ं में
ये बेकार उलझते लफ़डो़ं में
छोटी बडी़ धोती वाले कपडो़ं में
हमने खो दिया अपना प्रकाश
नहीं मिला हमें फिर मुक्ताकाश
हमने स्वयम् मिटाई अपनी भाग्य लकीर
शत्रुओं ने पहना दी हमको जंजीर।

हमारी स्वतंत्रता हो गई उदास
सदियों तक हम रहे फिर दास
आज भी हम वर्गों में हैं बँटे हुए
एकरसता से पूरे ही कटे हुए
हिन्दु हैं हिन्दु पर गर्व करो
एक नारे से राष्ट्रीय पर्व भरो
वोटों पर ही शक्ति जब है केन्द्रित
तो होते हो क्यों यूँ विकेन्द्रित
राष्ट्रीय पक्ष दुर्बल हो जाता है
फिर न जाने क्या क्या उसमें खो जाता है
हम ही अपना भविष्य बनायेंगे
इस तरह तो धूल में मिल जायेंगे।

अपनी पुरानी भूलों को करो स्वीकार
भारतमाता की भी यही पुकार।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर

आज तुम्हारा प्रणय पाश मैं कैसे स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं


स्निग्ध बड़ा-बड़ा कोमल है आलिंगन तेरा
नयन तेरे मादक श्रोणि का उठता वसन तेरा
कामुकता को प्रेम नाम दूं ह्रदय कैसे संघार करूं
आज तुम्हारा प्रणय पास में कैसे स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं

देख तुम्हारी चंदन सी पर अब वह दहक कहां
किसी और के घर का सुख हो तुम में वह चहक कहां
कैसे अमृत की प्याली में विष इस बार भरूं
आज तुम्हारा प्रणय पास कैसे मैं स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं

विपिन सोहल स्वरचित
दिनाँक-12/01/2020
शीर्षक- स्वीकार

विधा-छंदमुक्त कविता

हे प्रभु!आपके सब वरदान
सहर्ष हमें स्वीकार हैं।
फूल शूल कुछ भी दे दें
सब जीवन के आधार हैं।

इतनी कृपा प्रभु कर देना
मति शुद्ध हमारी रखना।
स्वीकार करें पूजा के फूल
निर्मल भाव मन में भरना।

हम जैसे भी जो भी हैं
नादान तुम्हारे बालक हैं।
स्वीकार प्रार्थना कर लें बस
आप हमारे पालक हैं।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय -स्वीकार
दिनांक-12-2-2020


लती स्वीकारना,कब हुआ आसान।
सच्चाई स्वीकार नहीं,बन रहा नादान।

मृत्यु अटल सत्य,जिससे सब अनजान।
ऊंचाई पर पहुंच मौत से,बेखबर इंसान।

कर रहा नित काम खोटे,बन रहा हैवान।
नहीं किया कोई सत्कर्म,कैसे करे बखान।

शेष जीवन थोड़ा बचा,कर ले कुछ काम।
कोटि-कोटि कंठों गूंजे,सदा तेरा गुणगान।

जरूरत पड़े मातृभूमि हित,दे अपनी जान।
स्वीकार कर हकीकत,बन जा तू महान।

कहती वीणा श्रेष्ठ रचना,नहीं कोई समान।
कर ले कुछ ऐसा,हो जाए तुझे अभिमान।


वीणा वैष्णव
कांकरोली

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