Tuesday, February 25

"भोर/प्रभात/सवेरा"25फ़रवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-667
दिनांक-25/02/2020
विषय-भोर/प्रभात/सवेरा


फैल रही है नई ताजगी
नए भोर के आने से।

बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।

हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।

प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।

मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।

फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।

शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।

प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठा है कमल दल।

ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।

तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।

खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।

धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।

इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।

सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।

एक नन्ही कली भी बाट देख रही
दिनकर के उजाले की...

मन उद्वेलित होता मधुरस
प्रभाकिरन के आने से

स्वरचित

सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

विषय भोर,सवेरा,प्रभात
विधा काव्य

25 फरवरी 2020,मंगलवार

हुआ सवेरा नभ डूबे तारे
स्वर्ण रश्मियां धरा उतरी।
खग कुल कलरव कर रहे
खग पंक्ति गगन उड़ रही।

रथ आरूढ़ आये भास्कर
जग खुशियों को वे लाये।
घण्टिया बज रही देवालय
मंगलाचरण के दर्शन पाएँ।

हुआ सवेरा कृषक जा रहे
खेतों पर खुशहाली लाने।
छोटे बालक अब चल पड़े
विद्यालय में शिक्षा पाने।

सीमा पर बंदूके तान कर
खड़ा हुआ भारत सैनिक।
रक्षा करता सदा वतन की
मुस्तेदी से डटा है दैनिक।

प्रातःकाल है छटा निराली
गगन मध्य छा रही लाली।
ढोल नगाड़े बज रहे मन्दिर
भक्त बजाते कर से ताली।

देते अर्ध्य भगवान भास्कर
खड़े हुए हैं सरयू जल में।
साफ़ सफ़ाई लीन हैं बहिने
मल फेंक रही हैं वे पल में।

प्रातःकाल अद्भुत समय है
टहल रहे हैं सब उपवन में।
प्राणवायु ले रहे मिल सब
यह आवश्यक है जीवन में।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय-भोर/सबेरा/प्रभात
____________________
आई सुंदर भोर नवेली,
निकली घर से सखी-सहेली।
सूरज सिर पर लगा चमकने,
सरोवर में कमल दल हँसने।।

खिल आई पूरब में लाली,
कलियाँ खिलती डाली डाली।
चली बसंती हवा हर प्रहर,
सुखद अनुभूति से भरी लहर।।

सजी अलौकिक सुंदर आभा,
अंशु फैलाए जग में प्रभा।
मृदु माली बन जीवन सेता,
धरती पे यह जीवन देता ।।

सुबह-सवेरे उठकर आता,
जग में उजियारा फैलाता।
भरे लालिमा निखरती भोर,
पक्षी कलरव का हुआ शोर।।

***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विधा -हाइकु
विषय-भोर,सुबह,प्रभात


1
उजली भोर
प्रकाश चहुँ ओर
करे विभोर
2
सुबह शाम
दोपहरिया घाम
जपती नाम
3
उगती भोर
पँख फैलाता मोर
है चितचोर
4
खास वजह
अलसाई सुबह
उनींदी आँखें
5
मिली सौगात
विहंगम प्रभात
थिरके गात

सरिता गर्ग
विषय - भोर / सुवह
प्रथम प्रस्तुति


फिर से ये सुवह होगी
यकीं कर खुद पर यारा!
बजाले मन का तूँ ये
सुरीला सा इकतारा!

कोई तो राग बजेगा
होगा मन उजियारा!
खुद अँधेरे में बैठा
क्यों नही ये विचारा!

किसका न चमका इकदिन
यहाँ पर भाग्य सितारा!
फेंक तम की चादर को
हँसे तुझ पर जग सारा!

कब किस रूप में आए
'शिवम' वो पालनहारा!
खोल जरा तूँ आँख फिर
भोर ने डेरा डारा!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 25/0252020
दिनांक- 25/02/2020
शीर्षक- भोर
वि
धा- कविता
***********
रात रानी ढ़ल गई है,
भोर सुहानी हो गई है,
आसमान में लाली छाई,
सूरज ने किरणें बिखराई |

चिडियां चहक रहीं हैं प्यारी,
फूल खिल रहे डाली-डाली,
भोर की छवि बड़ी निराली,
मन को बड़ा लुभाने वाली |

भोर का उजाला सबको मिले,
दु:ख की कालिमा नित ढ़ले,
आलस छोड़ सब उठ जाओ,
नित के कामों में लग जाओ |

स्वरचित- संगीता कुकरेती
25//2//2020
बिषय,, भोर,,सवेरा,, प्रभात

लो आ गई है भोर की किरण
रश्मियों से चमक उठा आंगन
तन मन को भाए गुलाबी सबेरा
पंछियों ने छोड़ दिया बसेरा
आल्हादित हुआ सूर्यमुखी का फूल
सूर्योदय है इसके अनुकूल
कलियां खिलीं ज्यों हुआ प्रभात
स्वर्णिम किरणों का झंझावात
दिनकर ने डाला अपना डेरा
उद्वेलित हुआ मधुमास का सबेरा
चलो संभालें अपने अपने काम
फिर आएगी सुबह की शाम
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
शीर्षक- भोर
सादर मंच को समर्पित -


🏵 गीतिका 🏵
**************************
🌻🌹 भोर 🌹🌻
मापनी - 1222 , 1222 , 1222
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

अरे देखो प्रकृति शोभा खिलाई है ।
मनोहर चित्र सुन्दरता रचाई है ।।

सजा चित्रण सुहानी भोर है आई ,
खिली कलियाँ सुरभि सोंधी सुहाई है।

गुलों पर ओस मोती सी सजी चमके ,
वहीं नव लालिमा वादी समाई है ।

हवा शीतल बही प्यारी लुभाये मन ,
लरज आवाज मोरों ने सुनाई है ।

उड़े हैं झुण्ड ,पंछी मिल करें कलरव,
लतायें झूल कर शोभा बढ़ाई है ।

चले हैं ग्वाल गायों को लिए जंगल,
कुँओं से खींच कर जल की भराई है ।

कृषक भी खेत पर जाते हुए दिखते ,
बड़े उत्साह से खेती उगाई है ।

सुहाना गाँव का जीवन लगे न्यारा ,
प्रकृति गोदी निगोड़ी प्रीति छाई है ।
विषय, भोर, सबेरा, प्रभात
दिनांक, २५,२,२०२०

दिन , मंगलवार

जीवन का संदेशा भोर ले आई है ,
सूरज के संग मन सबका जागा है ।

जब प्रथम किरण ने आभा बिखेरी है ,
तब आशा उम्मीद की दुनियाँ चहकी है ।

सब चल पड़े राही मंजिल की ओर हैं ,
बस चलते रहना यही चहुँ दिश शोर है ।

चाहे गंतव्य यहाँ सबके अलग अलग हैं,
लेकिन हरदम लक्ष्य पाने को सब तत्पर है।

निराशाओं की कहीं भी धुंध न रह जाए,
मंजिल अपनी अपनी सबको मिल जाये।

भोर सुहानी घर- घर में दस्तक दे जाये ,
जर्रे - जर्रे में खुशियों की धूप खिल जाये।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .


दिनांक -25/02/2020
विषय - सवेरा

विधा - छंद मुक्त काव्य

घोपा हो दिल में जब विषधर खंजर
फिर नहीं दिखती सूर्य की लालिमा
फैला हो जब तिमिर चहुदिश
तो पाषाण सा लगता गिरिधर की प्रतिमा।।

खौफ मुक्त हो जाता जब अन्याय
बेकसूर ही कुचले जाते हैं।
न्याय के इंतजार मे बंद हो जाती आँखे
फाइलें भी दिम्मक खा जाते हैं।

क्यों नहीं बनता ऐसा कानून
जो बहते आँसू पोछ दे
ईट का जबाब पत्थर हो
तात्क्षणिक उसे भी मौत दे।

कबतक बने हुड़दंगियों का शिकार
कबतक हम चुड़ियाँ तोड़तें रहे
क्यों न मरोड़ दे फन उन गद्दारों का
जिससे देश हमारा महफूज रहे।

होगा कब ऐसा सवेरा
जब सब संतुलित हो जाएगा
मुक्त होंगे हम अपनों के षड्यंत्र से
तभी यह देश आगे बढ़ पाएगा।

स्वरचित : - मुन्नी कामत।
विधा-दोहा
विषय-भोर


१.
रावण हत रण में हुआ , मिली नई सौगात।
बादल दुख के हट गए,सुखमय हुआ प्रभात।

२.
नभचर कलरव कर रहे,होने को है भोर।
कुक्कुट बांग सुना रहा,कुक्कुर करते शोर।

३.
घंटी मंदिर की सुनी,खड़ा हुआ है तात।
खेती करने चल पड़ा , होता देख प्रभात।

४.
गगन लालिमा छा रही,राकापति अब दूर।
भोर प्रकट होगी अभी , हर्ष मिले भरपूर।


पापी पुतले जल गए ,थी दशमी की रात।
हर्षित जनता अब दिखे , देखे उदय प्रभात।

६.
उल्लू के सर ताज है , काग मचाए शोर।
कोकिल कंठ रुंद गए,हुई न सुख की भोर।

राकेकुमार जैनबंधु
विषय-भोर/सबेरास्वरचित।
उदित हो रहा सुबह सवेरे का सूरज।
भोर हो रही धीरे-धीरे।।
किरणों का हो रहा बसुधा पर बसेरा ।
भोर हो रही धीरे-धीरे।।
पंछियों का चहचहाना शुरू हो गया।
भोर हो रही धीरे-धीरे।।
फूल विकसित तपन से ही हो चले हैं।
भोर हो रही धीरे-धीरे।।
अंखियन में ख्वाबों का पहरा गहरा।
भोर हो रही धीरे-धीरे।।

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
25/02/2020
विधा :-महाशृङ्गार छन्द सृजन

विषय :- भोर
25-2-2020

छटीं है धुंध चन्द्रमा अस्त,स्वर्णिम किरणों का उजियार ।
तिमिर के अश्व हुए हैं पस्त ,उठो अब जागो कृष्ण मुरार।।
बरसती प्रेम सुधा चहुँ ओर ,नवल ऊर्जा का हृद संचार ।
उदित दिनकर की मधुरिम भोर ,सरित की धवल बही रस धार ।।

क्षितिज में प्राची का अरुणाभ,लालिमा बिखर रही हर छोर ।
विभा का सकल धुला विमलाभ,तरुणता बधीं प्रीत की डोर ।।
प्रकृति के अधरों पर मुस्कान ,धरा के आंचल में आनन्द ।
शाख पर विहग करें मृदु गान ,पवन भी सुरभित बहती मन्द ।।
रीना गोयल ( सरस्वतीनगर)
हरियाणा
विषय -भोर/सबेरा/प्रभात
दिनांक -25.2.2020

विधा - दोहा मुक्तक

1
पतझड़ भी सन्देश है , विकसित हों नव पात।
रजनी जब भी बीतती,तब हो नवल प्रभात ।
नीड़ विध्वंश हो तभी, बनता है नव नीड़-
ये आत्मा भी जीव की ,मरे पाय नव गात ।
2.
जीवन का है नहीं ठिकाना, ईश हाथ है डोर।
जन हितकारी भाव बढ़े तो मिले खुशी की भोर
सबका हित हो सबकी सुविधा, तब चलता संसार-
जीवन में जब शांति भरी हो,नृत्य करे मन मोर ।

*******स्वरचित*************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी (म .प्र .)451551
तिथि- 25/02/2020
विषय - भोर / सबेरा/ प्रभात

विधा - हाइकु

करते हम
रोज़ अभिनंदन
नव प्रभात

शुभ सवेरा
नूतन इतिहास
रचता रोज

भोर सुहानी
अति मनभावन
शोभा सिंदूरी

मंदिर घंटा
मनमोहक धुन
मंगलमय

शाखों से पत्ते
मिलन का बेला है
भौंरा अकेला

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वा सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
25/02/2020
**भोर**

शंकर छंद (16,10 पर यति, अंत- वाचिक भार--गुरु-लघु)
चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण समतुकांत

आँखों से कजरा जो छलके
ढुलक जाये लोर।
बैरन रजनी चली मचल के,
भयो भव में भोर॥

कोल कपोल पर पड़ी बूंदें,
ढुल-ढुल ढुलक ओस।
छँटिहे बदरी व्यथा-बोध के,
सँजोये उर-तोष॥

सिंदूरी आभा है छिटकी,
मृदु मंद पवमान।
नव संदेशा लाए जैसे,
दिवापति दिनमान।

कूँज-गूँज के कहे परेवा,
जाग्रत गतिमान।
भावों के जीने मरने से,
चंचल जीवमान॥
-©नवल किशोर सिंह
25-02-2020
स्वरचित

विषय-भोर-वंदन
विधा-स्वतंत्र

दिनांक-25/02/2020

रात भर आसमां से
प्रेम गगरिया छलकती रही
सदियों की प्रीत की प्यासी
धरा पे टूटकर बरसती रही

मृत प्रायः थी धरा जो
बीती रात से घन-घट से
छलकती मदिरा का पान कर
जीवन्मृत पा हरी-भरी हो रही

भोर फिर दुंदुभी -नाद
करती आ गयी
रातभर गश्त लगाती
जलद-कश्तियां धीरे से
प्रस्थान कर गईं

तैर कर स्याह अँधेरे
का समुंदर भोर क्या आ गई
प्रकृति खिलखिला विहस दी
रोम छिद्र धरा के सारे खुल गये
फूलपात,जीवजंतु संग
परिंदों के पंख खुल गये
मौन धरा से आ घनश्याम
मिल गये
प्रिया वसुंधरा के तन-मन
पुलकित हो गये।

डा.नीलम

विषय - भोर/सवेरा
द्वितीय प्रस्तुति


कब होगी इंसान में
इंसानियत की भोर!

हर जगह तम ही तम
वैमनस्यता का शोर!

इंसा इंसा से डरे
कैसा विकास हर ओर!

झूठा दिखावा सारा
जिसकी पकड़े हर डोर!

सच्चाई अब घुट रही
बुराई बिके ताबड़तोड़!

अंधकार हर गली में
बची नही कोई खोर!

निज खुशी में नाचे हर
ज्यों नाचे वन में मोर!

सभ्यता की सीढ़ी भूल
है असभ्यता की दौड़!

जाने कब जागे इंसा
'शिवम' कहीं नही ठौर

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 25/02/2020

विषय - भोर/सवेरा/ प्रभात
25/02/20

मंगलवार
मुक्तक

भोर हुई शबनम की बूँदें मोती बनकर चमक उठीं।
मृदुल पल्लवों की काया में हरित रक्त सी दमक उठीं।
रवि की स्वर्णिम किरणों से अनुपम आभामय रूप सजा-
और इसी शबनम से कलियाँ नम होकर झट महक उठीं।

नित प्रभात में पुलक तितलियाँ फूलों पर मंडराती हैं ।
अपने रंगों की सुंदरता उपवन में बिखराती हैं।
उनके सतरंगी पंखों को देख हृदय हर्षित होता-
चंचलता के मधुर भाव से मन प्रमुदित कर जाती हैं।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

दिनांक २५/२/२०२०
शीर्षक_भोर/प्रभात/सबेरा


लेकर कालिमा
भागी यामिनी
हो गई भोर
खोलो भी डोर
आये नभ रवि
खिले सर अंबुज
महक गई धरा
बिखर गई सुषमा
हो गई भोर
छ़ोड़ कर आलस
चलो कर्मपथ
कर्म ही पूजा
अर्चना ना दूजा
नवप्रभात का
करो आगाज
हो गई भोर
खोलो भी डोर।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

दिनांक-२५-२-२०२०
शीर्षक -भोर/सवेरा /प्रभात


सुबह सुबह सूरज मुस्काये
जग में उजियारा फैलाये
धरती पर किरणें जब आयी
अंधकार को दूर भगायी।

पक्षी चहक उठे पेड़ों पर
विचरण करने लगे गगन पर
शीतल ठंडी उन्मुक्त हवायें
गेहूं की बालियों को हिलाये।

नई अरुणिमा गात लिये
जीवन की सौगात लिये
भोर गुलाबी आयी है
जीवन का संदेशा लायी है।।

स्वरचित मौलिक रचना
रंजना सिंह

विषय- भोर /सबेरा

स्वर्णिम प्राची हो गई,उदित हुआ है भानु।
नभ अरुणिम है भोर में , जैसे रूप कृशानु।।

डूबा तारा भोर का, बिहँसी मोहक धूप।
रवि की हैं अठखेलियाँ,बाल मृदुल सा रूप।।

खिले जलज तड़ाग में, हुए मुक्त अब भृङ्ग।।
की प्रतीक्षा भोर की,अब फूलों के संग।।

टूटीं लड़ियाँ ओस की,ज्यों मोती की माल।
मदिर पवन मृदु भोर की,चलती अद्भुत चाल।।

मधुरिम कड़ियाँ गीत की,रस से भरा विहान।
उठो सवेरा हो गया, जगा रहे खग-गान।।

शुभ संदेशा दे रहा,जग को नवल प्रभात।
देता सदा प्रकाश ही,अंधकार को मात।।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

विषय-सवेरा
दिनांक २५-२-२०२०


मत हो उदास जीवन में,देख नया सवेरा आएगा।
सब कुछ होगा तेरे पास, तू खुलकर जी पाएगा।

थोड़ी सी हिम्मत रख,कठिन समय गुजर जाएगा।
उठ जाग प्रयास कर थोड़ा,तू सफल हो जाएगा।

मंजिल उन्हें नहीं मिली,जो हार कर रहा बैठ गए।
कदम से कदम मिला आगे बढ,तू लक्ष्य पाएगा।

नया जहां बनाना है तो,कदम तुझे बढ़ाना ही होगा।
मंजर एक दिन स्वत: बदलेगा,नया सवेरा आएगा।

टांग खींचने वालों से बच,वह राह तुझे भटकाएगा।
कहती वीणा प्रभु आशीष,तू सफलता को पाएगा।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
तिथि -25/2/2020/मंगलवार
विषय-*भोर/सबेरा/प्रभात*

काव्य

जब जागो तभी सबेरा।
यदि सोते रहो अंधेरा।
हमतो सो रहे अभी तक
मान लो आगे घनेरा।

लगी आग नहीं बुझ रही।
भोर कहीं नहीं दिख रही।
चिंगारी जब हवाओं में,
प्रभात किरण कब दिख रही।

भोर कोई चाहता कहां।
कोई सुखी रहता यहां।
अंधेरा जिन्हें सुहाए सदा,
उन्हें प्रभात चुभता यहां।

अंधेरा अब हो रहा बहुत।
सूरज की नहीं लगती जुगत।
रोशनी दिलों में दब गई,
जब फैलाया तूही भुगत।

संभल जाओ अभी वक्त है।
भोर की वेला अनुरक्त है।
लालिमा ये प्रीत की नहीं,
सच मानिए तुम्हारा रक्त है।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

विषय - भोर/प्रभात/सबेरा

नई उषा नित नई किरण संग,
आती जग को रौशन करने।
धूमिल तिमिर को दूर भगाकर,
नव प्रभात से जीवन रचने।

कलरव करते पंछी जगकर,
पुष्प कोपल सब खिल जाते।
खेतों के बाली झुम झुमकर,
मस्त हवा संग खेला करते।
दूर पहाड़ों के पत्थर भी,
रश्मि को हिय में लगे समेटे।
बांसों के झुरमुट से छनकर,
लाली की नव चादर लपेटे।
जीवन सब जग जाते हैं जब,
अरुण आता रजनी को हरने।
नई उषा नित नई किरण संग,
आती जग को रौशन करने।

खग विहग सब छोड़ नीड़,
चले ढूंढने दाना पानी।
मांझी सागर की छाती पर,
चला नाव ले करने मनमानी।
खेतों में नव सृजन करने,
रचनाकार किसान चला है।
गो-बैलों के खुर से उड़कर,
धूल गगन को छूने चला है।
सबने अब तो राह पकड़ ली,
प्रकृति संग कुछ रचने बसने।
नई उषा नित नई किरण संग,
आती जग को रौशन करने।

दूर शिवालय से आती है,
घंटी की आवाज सुहावन।
पनघट से चलकर है आती,
गोरी के पायल की रुनझुन।
खनकती चुड़ी संग चरखे की,
आवाज रसीली लगती है।
रेहट की आवाज भी लगती,
ज्यों शहनाई बजती है।
कामगार सब निकल पड़े हैं,
अपना अपना काम है करने।
नई उषा नित नई किरण संग,
आती जग को रौशन करने।

स्वरचित
मनोज बरनवाल
धनबाद, झारखंड
विषय : भोर, सवेरा
विधा : वर्ण पिरामिड

तिथि : 25.2.2020

1

शं
भोर
संदेश,
हो जाग्रत
ऊर्जा आगत
कर सुस्वागत
हर मन चाहत।

2

द्यु
अहा
सवेरा
ऊर्जा डेरा
कर्म आरंभ
आनंद प्रारंभ
प्रभात शुभारंभ।

-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित

विषय भोर
दिनांक। 25/2/2020


*सुंदर ये सावन की भोर*

हर ओर घटा गहरी छाई,
झूले पड़े सजी अमराई ,
वन में कोयल कूक रही,
पीउ पीउ का होता शोर,
सुंदर यह सावन की भोर।।

ले आई अपना ही राग,
मन में हाय लगाई आग,
बसे पिया नैन हमारे,
चलता नहीं जी पर ज़ोर।
सुंदर ये सावन की भोर।।

मेघ ले कर आए संदेश,
पिया लौट रहे अब देश,
आस का पंछी जाग उठा,
नाच रहा है मन का मोर।
सुंदर यह सावन की भोर।।

***
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

मंच.........भावो के मोती💎💎

*विषय..........सवेरा*
िधा...........दोहा छंद
************************************
उठ प्रभात कर आरती,शिव मंदिर घर द्वार।
मंगल हो शुभ कामना,निश दिन औ नित वार।।
********
देख सवेरा कोकिला , करें कुहू आवाज।
विहग वृंद उड़ने लगे,नवल घोष आगाज।।
********
समय सवेरे का हुआ , शीतल सुघर बयार।
काक पीक खग वाटिका, नाद करें मनुहार।।
********
नवल सवेरा खिल रहा,खिला नलिन पय ताल।
गुंजित अलि से बाग है,सुरभि पुष्प है लाल।
*********
लिये सवेरा लालिमा,अखिल जगत उजियार।
स्वर्णिम आभा पड़ रही,पत दल फैल पसार।।
************************************
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा

दिनांक-25-02-2020
विषय-भोर/ प्रभात


आज भोर के एक सपने ने
अन्तर्मन को मेरे बोर दिया
जब नींद खुली तो देखा कि
उलझन ने झकझोर दिया...
मन में चुभती एक टीस उठी
उफ! कैसी सुन्दर सूरत थी
नयनों में बसने लायक वह
मनमोहक, अद्वितीय मूरत थी,
दुःख हुआ बहुत ही इसका
मेरी निद्रा क्यों टूट गई?
वह मनमोहक मुस्कान लिए
आ रही पास थी, छूट गई ....
फिर कोशिश की मैंने शायद
निद्रा मुझको फिर आ जाए
मैं देख सकूं फिर से उसको
आ बगल खड़ी हो मुस्काये....
लेकिन यह संभव हुआ नहीं
स्मृति भी थी कुछ खास नहीं
फिर सोचा स्वप्न मनोरम था
यद्यपि वह थी अब पास नहीं...

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही

25/2/20
भोर / सबेरा


निश्चितता में
नया सबेरा
शांति सुख
की कामना

करें हर भोर
ईश वंदना
पाये आशीष
अनेक

चिड़िया की
मधुर ध्वनी
खेत खलिहानों
में बैलों की घंटी
देती सुनाई
गाँवों में
हर प्रभात

तन मन धन
न्योछावर है
मेरे देश पर
लाता जहाँ
हर भोर संदेशा
भाईचारे का

घर घर हो
समृद्धि
सुख शांति
यही रहती
इच्छा हर
भारतीय की
हर सबेरे


स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

110. भोर
भोर भई अब सो मत प्यारे, उठकर काम पर लग जा प्यारे।
सूरज जागा तारें भागे, साथ साथ अँधियारे भागे।

चँदा की अब खैर नहीं है, बातें करते खग गण जाते।
भोर की किरण सुनहरी होती, मन मानस में स्फूर्ति है भरती।
हंस ताल में तिरने लग गए, बाग की सारी कलियाँ खिल गई।
भाग्यविधाता खेतों में जाते, साथी संगी जग गये सारे।
तुम भी अब तो जग जा प्यारे, भोर हो गई ना सो प्यारे।
सोता है सो खोता है प्यारे, जगता है सो पाता है प्यारे।

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार 841239

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"अंदाज"05मई2020

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