Sunday, February 23

"नाराज,खफा"22फ़रवरी2020

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ब्लॉग संख्या :-664
104. नाराज
जिंदगी तू नाराज क्यूँ है मुझसे, ये बता क्या चाहिए तुझको मुझसे।
क्या बात है जो इतनी तेज चल रही है, ये बता क्यूँ खफ़ा है मुझसे।

जिंदगी तू कभी खुशी देती है तो सारा दामन खुशियों से भर देती हैं।
गर नाराज होती है तो जीवन नाशाद कर देती है बर्बाद कर देती है।
जिंदगी तेरी कहानी भी अजब और गज़ब है, बड़ी दर्दनाक भी है।
जिंदगी तू कभी अपनी लगती है तो कभी पराई है तो कभी सौदाई है।
जिंदगी तेरे दामन में कितने किस्से दफन है, आँखे कई शबनम है।
जिंदगी अगर तू ढलता सूरज है तो निकलता हुआ उजाला भी है।
जिंदगी तू अगर क्रूर, मगरूर है तो बहती गंगा की तरह पवित्र भी है।
जिंदगी तेरे सतरंगी अंदाज के हम दिवाने है
तेरे ही संसार में फसाने हैं।

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार 841239

विषय नाराज,खफा
विधा काव्य

22 फरवरी 2020,शनिवार

जीवन एक अद्भुत तोहफा
सद्कर्मों की श्रेष्ठतम पूंजी।
पथ कर्तव्य डग चलो निरंतर
रहस्यमयी यह अद्भुत कुंजी।

तालमेल विचार होता नहीं
तब नाराजी आती मन में।
सदा स्नेह सरिता तैर कर
भरो सद्भाव पराये मन मे।

नाराजी मन नित नित रोता
तन बदन झुलस रख देता।
जग मेले में घूमें मिलजुल
जिसका लेना उसका देना।

खफ़ा नहीं होना जग जीवन
यह कर्मो का ही परिणाम है।
जिसने जीया जीवन परहित
उसका उतना महान दाम है।

स्नेह डोर से रिश्ते बांध लो
अंध विश्वास कभी न करना।
खफ़ा न होना इस जीवन में
बुरे कर्मो से अनवरत बचना।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शेर की कविताए....
***************


मधुघट का प्याला लिए, शेर चला जिस राह।
शायद अपना हो मिलन, दिल से निकले आह।
जाने कैसी टिस जो मेरे मन से निकलत नाहि।
काहे है नाराज सजनियाँ क्या उसकी है चाह।
***
सावन भी सूखा मेरा, भादों नयना नीर।
फागुन मास की पुरवाई से लागे मन मे तीर।
शेर हृदय भावों का तडपन समझो मेरे मीत,
जो न तुम समझोगे तो बस समझेगे रघुवीर।
***
मन चंचल है रात से मिलन की जागे आस।
शायद उसके भी हृदय जागी है कुछ प्यास।
कागज और ले लेखनी लिख दी मन की बात।
शेर हृदय बेकल लगे अरू घटती बढती सांस।
***

शेर सिंह सर्राफ

शेर सिंह सर्राफ
विषय - नाराज़/ख़फ़ा
प्रथम प्रस्तुति


वो वक्त था जब वो पास थी
तो ये जिन्दगी नाराज़ थी।।
आज ये जिन्दगी पास है
तो वो मुझसे नाराज़ है।।

फ़लसफ़ा समझ नही आए
कितना विचित्र कितना खास है।।
राहतें कहीं से नहीं हैं
कहीं से कोई न आस है।।

बस जी रहा हूँ क्यों कि वो
खुश है तो दिल खुशमिज़ाज है।।
उसे दुखी नही देख सकता
वही तो दिल का मधुमास है।।

यकीं अब भी न होय कि वहाँ
नाराज़गी सा ख्यालात है।।
हो जो रब जाने 'शिवम' पर
मुझे वो रब की सौगात है।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 22/02/2020
।। मै भी हूँ ।।

नाराज़ क्यूं हो इस जहाँ से

हैरान, परेशान तो मै भी हूँ
न जाने तन्हाई पीछा छोड़ेगी कब
बदकिस्मती से ख़फ़ा तो मै भी हूँ
मै उनसे कहता हूँ जो मुझको कहते रहते
मोह-माया छोड़ के देखो साथ तो मै भी हूँ
मीरा संग चलने को तैयार हो जाओ
कृष्ण-भक्ति में लीन तो मै भी हूँ
कृष्ण प्रीत का रंग लगा के
मुक्ति धाम में तो मै भी हूँ।

भाविक भावी
हमीं से खफा हो गए हैं
सनम बेवफा हो गए हैं


मुझे शर्म आने लगी है
वो यूं बेहया हो गए हैं

इक - दूजे में अटके हुए
कहने को जुदा हो गए हैं

है मर्ज आप मरने लगा
दर्द खुद दवा हो गए हैं

जो सीखे सबक आप से
मेरा कायदा हो गए हैं

आईने को शिकायत है
हम क्या थे क्या हो गए हैं

हैं वही अश्क अब देखिए
मेरा हौसला हो गए हैं

गुमां आसमां से भी ऊंचा
अजी क्या खुदा हो गए हैं

भूला बैठे तहज़ीब है
बडे बे - हूदा हो गए हैं

बिन पिए होश आता नहीं
वो ऐसा नशा हो गए हैं

विपिन सोहल। स्वरचित

विषय- नाराज/खफा
नाराज किसी से नहीं

खुद से ही मैं खफा हूं।
कल जो ख्वाब देखे
आज इसपे शर्मिन्दा हूं।।

क्यूं कभी किसी को
मनचाही चीज नहीं मिलती।
किस्मत का देखकर खेल
मैं गमगीन हूं, परेशां हूं।।

कोई और होता तो शायद
रूखसत जहां से हो जाता।
ऐसी राहों पर चलने का
कभी हौसला ना कर पाता।।

मैंने हर हाल में जीने का
खुद से वादा किया है।
न टूटने दूंगी कभी हौसला
पक्का इरादा किया है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
🙏🌹🙏🌹🙏
विषय-न
ाराज़/ख़फ़ा
दिनांक-22/02/2020

होना ना #नाराज़ बलम तुम
तन-मन तुझपे वारुँगी
पड़ी रहूंगी तेरी चौखट
कभी न हिम्मत हारूँगी।।

पर इक चिठिया मेरी
मायके तक पहुंचा देना
माँ से कहना कभी न रोना
तेरी बिटिया तो मेरे घर का गहना

सात जनम तक लूँगा फेरे
हर जन्म में साथ निभाऊँगा
निभा न सका जो मैं वादा
तेरी चौखट फिर न आऊँगा।।

जी लेगी कुछ दिन माँ भी
इक मेरी चिठिया देखकर
फिर चाहे तुम जला ही देना
सारे रिस्ते खेत पर।।

जब पिता बनोगे बेटी के
तब बात समझ जाओगे
मौत के पहले क्यों मरते
माँ बाप समझ जाओगे।।

स्वरचित✍🏻
सीमा आचार्य(म.प्र.)

दिनांक-22/02/2020
शीर्षक- नाराज/खफा
वि
धा- छंदमुक्त कविता
******************

खामोशी से वो बात हमारी मान गये,
ऐसी अदा से नाराजगी दिखा गये,
शब्दों को करके मौन खफा हो गये,
नाराज होकर कुछ तो दूर हो गये |

मिलते हैं राह में वो कभी-कभी,
परवाह नहीं करते पहले जैसी अभी,
शायद मोहब्बत खत्म उन्हें होने लगी,
मजबूरी की शिकायत होने लगी |

क्या करें ये खता तो हमसे ही हुई,
बोल पड़े वो,जो था बोलना नहीं,
नाराजगी ये दूर अब कैसे होगी?
गम-ए-इश्क़ में हम बन गये जोगी |

खता हुई जो माफ करना सनम,
मोहब्बत का हममे रहने दो भरम,
तुम बिन जीना मुश्किल है हमारा,
नाराज न हो,ये दिल है सिर्फ तुम्हारा |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय-नाराज
दिनांक 20-2-2020


मौसम की तरह ही,देखो इंसान कितना बदल गया।
बात-बेबात नाराज होना,आजकल रिवाज हो गया।

कभी रूठना अच्छा, कभी वो सूल सा चूभ गया।
रूठना मनाना मान जाना,कितना सुखद हो गया।

रहती जब तक नाराजगी,एक अपनी ही सीमा में।
एक नई सीख दे सबको,वो मिलन सुकून दे गया।

अपनेपन नकाब था,ज्यादा दिन छिप रह न पाया।
मुस्कुराकर सामने पहुंची,किस्सा खत्म ही हो गया।

बेवकूफ,जिंदगी कहानी समझ बाहर आ न पाया।
परदा गिरने के इंतजार में,नादां खुद तन्हा हो गया।

मुसाफिर है,बिन सहारे वो सफर तय कर न पाया।
नाराज होने की आदत ने,अपनों को गैर बना गया।

रहना संग सदा,फिर नाराजगी को क्यों अपनाया।
तेरा कुछ पल साथ,उसे जन्नत एहसास करा गया।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

22 /2 /2020
बिषय,, नाराज,, खफा

आज जाने क्यों वो खफा खफा नजर आए
खबर ही नहीं ली बेखबर नजर आए
कल तक तो की थी मोहब्बत की बात
सोई नहीं मैं भी सारी रात
द्वार पर खड़ी कर रही इंतजार
गले बैंयां डाल करेंगे मुझे प्यार
मैं ताकती रही बिन देखे चले गए
हम भी तो अपने आप से छले गए
जाने क्या बात है जो नाराज हो गए
अंर्तर्मन में गम का बीज बो गए
अब तो क्षमा कर दो हे कृष्णमुरारी
सुना दे अपनी बांसुरिया प्यारी
फिर से तू संग मेरे रास रचा ले
हे कन्हैया मुझे अपने पास बुला ले
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

विषय-नाराजज़
विधा- मुक्त

दिनांक-22/02/2020

नहीं नाराज़ नहीं हूँ
तुझसे ए ज़िंदगी
बस ज़रा सी मायूस हूँ मैं
बहुत कुछ दिया है तूने
मगर हाथ से
अंगुल की एक पोर की
दूरी रख कर
सफीना मेरा सदा लौट आया
साहिल से टकराकर
नहीं नाराज़ नहीं हूँ
दिया तो तूने झोली भरकर
मगर झोली में थे
छेद अनेक
छप्पर फाड़ भी दिया तूने तो
मगर दामन नहीं था मेरा
कि समेट लेती वो सब कुछ
नहीं नाराज़ नहीं हूँ मैंं।

डा.नीलम

विषय-नाराज़/खफ़ा

नाराजगी/खफ़ा

जितनी सुख सुविधाएं, उतनी ही
धन लालसा बढ़ती है
निर्धन की संख्या फुटपाथों पर
कटती है
फिर भी धनिक की शिकायतों में
कोई कमी नहीं
इनकी नाराज़गी तो कभी खत्म होती नहीं।।

गरीब सड़क,फुटपाथ पर रहने को मजबूर है
नेता,सेठ,साहूकार की चाटुकारिता तो
जगत में मशहूर है
इनके वैभव, ऐश्वर्य में कोई कमी नहीं
फिर भी ये खफ़ा हैं कि
'ये गरीब की जात'कम होती नहीं।

सब सब से नाहक हीनाराज हैं
एक दूसरे से न जाने क्यों खफा हैं
कारण जानने की क्या जरूरत है
समाधान कौन करे जब सभी बेवफा हैं
सुरसा सी बढ़ रही है अराजकता
कुछ लोगों की आरामतलबी में कोई कमी नहीं।
फिर भी सारे जहाँ से नाराजगी इनकी जाती नहीं।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय : नाराज़
विधा : कविता

तिथि : 22.2.2020

हां नाराज़ पिया को मनाना है
बनाना कुछ न कुछ बहाना है।
बीता जा रहा है सुहाना- सावन
मुझे गीत पिया संग गाना ही है।

सजना प्यार तो निभाना है
रूठना तो समय गंवाना है
बुला रहा है मौसम सुहाना-
भला न प्यार में सताना है।

आओ न रास-रंग रचाना है
रूठे को तो मैने न पठाना है
ऐसा भी क्या रूठना पिया
प्रेम-पाठ पढ़ना व पढा़ना है।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित

विषय -खफा

मोहब्बत के वादे कहाँ खो गए है
वो जाने क्यों हमसे खफा हो गए हैं

तरसते हैं सूरत नहीं दिखती उनकी
किसी और पर वो मेहरबां हो गए हैं

वजह क्या हुई है , खफा क्यों हुए हैं
बहुत बेमुर्र्वत जानेजां हो गए हैं

कई ख्वाब देखे थे दोनों ने मिलकर
न जाने कहाँ वो सपन सो गए हैं

ढूँढते ही रहे हैं उन्हें हर सफर र्में
न जाने कहाँ वो फ़ना हो गए हैं

मोहब्बत सजा तो नहीं मेरे यारा
क्योंकर वो हमसे जुदा हो गए हैं

नाराजगी अपनी हमसे छुपा कर
हम पर मेहरबां सनम हो गए हैं

गलियों में ढूंढा , सहरा में ढूंढा
पता न चला वो किधर के हुए हैं

आंखों से मेरी छलकते हैं मोती
वो जाने कहाँ किस जहां के हुए हैं

सरिता गर्ग

विषय, नाराज, खफा
दिनांक, २२,२,२०२०.

वार , शनिवार

ईश्वर ने क्या नहीं दिया , रहते क्यों नाराज,
बैठे बैठे चाहते हम सब सुख सुविधा आज।

बड़ा नहीं हमसे कोई मन में हरदम भाव,
बिना बात के आ रहा बात बात में ताव।

टोका टाकी मत करो नहीं सुनना आवाज,
आजादी के मायने बदल गये हैं आज।

छोटी - छोटी बात में हो जाते हैं नाराज़,
बेटा बेटी जान की धमकी देते हैं आज।

होना है नाराज़ तो उनसे रूठो सरकार,
जो छोड़े संस्कृति, सभ्यता और संस्कार।

जिन्हें देश से प्रेम नहीं जो बने हुए हैं गद्दार,
धर्म जाति के नाम पे जो करते हैं दुर्व्यवहार।

भेदभाव के बीज को जो बोते रहते हर बार,
नाराजी जाहिर करो तुम उन पर करो प्रहार।

ये बिना बात की हाय हाय होती है बेकार,
गलत बात पर चुप रहे मतलब मानी हार।

हिम्मत जब तुम में नहीं होते क्यों नाराज,
करने वाले कर रहे सब अपने पूरे काज।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

विषय -नाराज /खफास्वरचित।
उम्मीद ना थी उनसे
इस तरह बेव़फाई की।
वह तो इंत़हाई की
हद से गुजर गए।।

ना किया ख़्याल हमारी
ख्वा़हिशों हस़रतों का।
और जमाने में भी
रुसवाई कर गए।।

दिल तो तोड़ा ही
साथ रिश्तों का
भरम भी मिटा दिया।
नाराजगी थी या थे
खफा किसी बात पर
वह कुछ भी तो नहीं
जता कर हमें गए।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
22/02/2020
विषय--नाराज

चांद जोश में था मैं आगोश में था
तू तो नाराज थी
पर मैं खामोश था
सुर्ख नम हो रहे थे
यह अलग बात थी
शरद चांदनी की
अमावस रात थी।।
प्यार का गुल खिला
जाम मैं पी गया।
हुस्न दीदार हुआ
नजर मेरी भाँप गई।।
जख्म सारे भर गए
शर्म से झुक गई नजर
मस्तियां छा गई
आंख से जब पिलाई
तो खुशियां आ गई

नजाकत बिक गई आदाब से......
जल उठी प्यार की लौ शबाब से.....
मुस्कुराई खड़ी थी चांदनी
जब नजर मिली तो जग गए हम ख्वाब से।

मेरी आबरू बच गई
कब्र तक प्यार की
कब दीदार हुस्न होगा
प्रीति यार की
कब्र पर पुष्प चढ़ा गयी
मीठी मुस्कान रार की
अब मिलन होगा खुदा के घर
जहर नफरत का पिला गई
तेरी गमगीन यादें मेरी रगों में समा गई......

स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह इलाहाबाद
तिथि -22.02. 2020
विषय - नाराज / ख़फा

आँगन में मट्टी के कटोरे में रखा पानी ,
याद आ जाती है गौरैया रानी !

सुबह होते ही आ जाती थी जगाने ,
चिं चूं करते प्यार की लोरी सुनाने!

मेरी बचपन की सहेली न जाने हमसे नाराज़ हो कर कहाँ चली गयी है ....अब आती नहीं आँगन
हमारे!!

मेरे आँगन में अब सूनापन पसरा है ,
दाना पानी सब बेकार पड़ा है!

रोज़ खिलाकर खाने की आदत ,
नहीं बदला है वो आदत !

मैं कहती हूँ एक बार आजा फिरसे.
जो गलती हुई है मुझसे सुधार लूंगी!

पर, गौरैया अब दिखती नहीं!
नाराज़ हो कर न जाने कहाँ चली गई है!!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड

22/2/20

ये जिंदगी
तू कितनी खफा खफा सी
कुछ थमी थमी सी
पलके नमी नमी सी
करीब है पर अजनबी सी
साथ है पर नही सी
साँसे भी रुकी रुकी सी
चलती रही अभी तक
परछाइया बनकर
हमदर्द थी हमारी
हमसाया भी सफर की
खुशियों से था नहलाया
हर दर्द में सहलाया
आजा करीब मेरे
मेरे गुनाह तो बात दे
नाराजगी हटा दे
मुझे सीने से लगा ले
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय _ नाराज़ खफा
तिथि _22_2_2020

वार _शनिवार

नाराज़ तो नही थी
मैं तुमसे मगर
हाँ उदास ज़रुर था मन
तुम्हारे जाने से
एक आस भी थी
कि कल फिर होगा मिलन
तो उदासियो को हावी नहीं होने दिया
मगर जब इन्तज़ार मे
गुज़र गई शामो सहर
मिलन की कोई गुंजाईश
आई नहीं नज़र
तो अनायास ही कह रहा
बार बार मेरा मन
कि नाराज़ हूँ मैं तुमसे
हाँ बहुत नाराज़ हूँ

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी

दिनांक 22/02/2020
शीर्षक नाराज/ खफा


गलत किसी को कहना क्यूं
नाराज किसी से रहना क्यूं

पीठ मे लगा जाते है छुरियां
विश्वास किसी पे करना क्यूं

तौर तरीके सबके अपने है
दूसरो के जैसे ढलना क्यूं

बात किसी की दिल को चुभे
बात ऐसी दिल मे रखना क्यूं

चाह के भला,बात खरी कही
अपनो से भला दूर रहना क्यूं

सीखे हम सब धीरज धरना
बात बात पे गुस्सा करना क्यूं

प्यार मिटाए दिलों की दूरियां
दिलों मे नफरत को भरना क्यूं

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

22/02/2020शनिवार
विषय-खफा/नाराज

विधा-हाइकु
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
(1)
इस डर से
तुम खफा न होओ
सच ना कहूँ...?🌷
(2)
सच कहता
नाराज नहीं होना
कड़वी बात🏵️
(3)
बनाके बात
करना नहीं आता
खफा न होना🌺
(4)
बात न जानूँ
मीठी लगे तुमको
ऐसी जो बात🌹
(5)
नीम कड़वा
मिठलबरा भाई
सुन ले कभी🍁
🍂☘️🌼🌳🌷🍀
श्रीराम साहू अकेला
विषय - नाराज/ खफा
दिनांक -22/02/2020


आज वह नाराज था,
मन व्यथित हो रहा था।
वह मुझसे दूर था ,
मैं उसके पास थी ।

वह भाग रहा था ,
मैं पीछे दौड़ रही थी।
वो मान नहीं रहा था
मैं उसे मना रही थी ।

मैं व्यथित हो रही थी,
तभी वो मुस्कुरा दिया,
जहां कदमों में आ गया
मैं मां थी वह बेटा था।।

स्वरचित, रंजना सिंह

22-2-2020
आज के विषय पर मेरा प्रयास

खफ़ा/नाराज
****&&**&&&
न जाने क्यूँ नाराज सी रहती है जिंदगी,
जिधर देखूँ सन्नाटा है,मौत की आगोश में है जिंदगी।
बचपन के साथ खेलती रही,
चाह में अपनों के साथ की खफा हो गयी जिंदगी।
चाह में मनाने तुझे लक्ष्मी,नाराज हो गयी जिंदगी।
भागम भाग में जिंदगी की,
शकुन खो गया,मुस्कान नाराज हो गयी,
देख बुढ़ापा अपनों को मनाती है जिंदगी।
न जाने क्यूँ नाराज सी रहती है जिंदगी।
अर्थ,माया ,मोह के चक्कर में जीवन बीत रहा,
नाराज हो दूर निकल गयी जिंदगी।
गीतांजली वार्ष्णेय
नाराज
खफा होकर भी मैं भूल न पाउँगा

करुँ क्या तुमसे दूर न हो पाउँगा
ये बस में नहीं मेरे कि....
दूर कर दूँ तुमको खुद से...
तेरी लाख गलतियों को भी
ख़ारिज कर के...
फिर से देख आया हूँ...
सोचा इस बार बहुत....
हुई इंतेहा अब बहुत....
अब लौट कर न जाऊँगा....
लेकिन रुके नहीं फिर भी कदम..
हाँ तुम को दूर से देख लौट जाउँगा...
खफा नहीं हो पाउँगा...
अब बस नहीं सामने आउँगा
पर जेहन में मेरे आओगी...
नहीं किस्मत की लकीरों में तुम...
मै पाने का हक़दार नहीं...
फिर भी खफा नहीं हो पाउँगा
तुमको बेबफ़ा न कह पाउँगा...
मैं आऊँगा.....
तुमको पाने नहीं....
अपने सकून के लिये आउँगा...
मैं तुम्हें भूल नहीं पाउँगा
लाखों सितम सर आँखों पर लिये
मैं जिंदगी गुजार जाऊँगा
पूजा नबीरा काटोल नागपुर
दिनांक -22/2/2020
विषय - नाराज़ /ख़फ़ा

उसके मौन को क्या तुम तोड़ पाओगे ?
दिल के दर्द को भला कैसे जान पाओगे ?
हमदर्दी जताना अब तो बस बंद कीजिए
उसे उसके हालात पर ज़िंदा रहने दीजिए
वह जीती रही अब तलक आगे भी जी लेगी
कभी तन्हाई तो कभी घुटन भी सह लेगी
ज़िंदगी सुख-दुःख की पहेली सभी ने माना
दुख की अंधेरी छाया को क्यों देते हैं ताना ?
भाग्य की रेखाओं पर उसे विश्वास हो चला
देकर उन्हें चुनौती तू उसका दिल मत जला ।
तू था ही नहीं उसका तो फिर शिकायत कैसी
उजड़े हुए चमन से सँवरने की हिदायत कैसी ।
तेरे सारे अधिकार उसने ताले में
कर दिए
गहरे -से समुद्र में चाबी के छल्ले फेंक दिए ।
तू यह ना समझना कि वह तुझ से है नाराज़
बदल दिए उसने अपने जीने के सारे अन्दाज़ ।
यूँ शब्दों में उस से नाराज़गी का इज़हार ना होगा
इस ज़िंदगी में भूल से भी तुझ से इकरार ना होगा ।
कोशिश करना लाख चाहे तुम अब मनाने की
मगर उसको आदत नही है बार बार जताने की ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘






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"अंदाज"05मई2020

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