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ब्लॉग संख्या :-650
विषय जन्मभूमि
विधा काव्य
08 फरवरी,2020,शनिवार
ताज हिमालय रजत किरिट
सागर नित माँ पाँव पखारे।
वसुंधरा पावन कण कण में
सौरभता की नित उड़े बहारें।
शस्यश्यामला के आँचल पर
गङ्गा यमुना सरिता बहती।
सुधानीर पाकर के वनस्पति
जनजन की विपदाएँ हरती।
महक रही केसर क्यारियां
रंगबिरंगे कुसुम खिल रहे।
नव रंग औषधियां सज रही
मलय सुवासित समीर बहे।
जन्मभूमि देती जन सब कुछ
वह बदले में कुछ नहीं लेती।
वसन अन्न पय प्राणवायु देती
धरती पुत्र करते हैं नित खेती।
स्वर्ग से बढ़कर जन्मभूमि है
माँ जनजीवन भाग्य विधाता।
ऋण उऋण कैसे हो सकते?
जयति जय प्रिय भारत माता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
08 फरवरी,2020,शनिवार
ताज हिमालय रजत किरिट
सागर नित माँ पाँव पखारे।
वसुंधरा पावन कण कण में
सौरभता की नित उड़े बहारें।
शस्यश्यामला के आँचल पर
गङ्गा यमुना सरिता बहती।
सुधानीर पाकर के वनस्पति
जनजन की विपदाएँ हरती।
महक रही केसर क्यारियां
रंगबिरंगे कुसुम खिल रहे।
नव रंग औषधियां सज रही
मलय सुवासित समीर बहे।
जन्मभूमि देती जन सब कुछ
वह बदले में कुछ नहीं लेती।
वसन अन्न पय प्राणवायु देती
धरती पुत्र करते हैं नित खेती।
स्वर्ग से बढ़कर जन्मभूमि है
माँ जनजीवन भाग्य विधाता।
ऋण उऋण कैसे हो सकते?
जयति जय प्रिय भारत माता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - जन्मभूमि
मुझको मेरा गाँव पुकारे
कब आओगे मेरे प्यारे।।
वो सुभा से लेकर शाम तक
रहा करे थे खुले किवारे।।
सांझ माँ की राह निहारना
बैठकी से निकल कर द्वारे।।
जहाँ चले हम घुटने के बल
वो गली खोर सांझ सकारे।।
पापी पेट शिरोधार्य कर
छोड़ दिए वो रिश्ते सारे।।
वो जन्म भूमि ये कर्म भूमि
बने फासले आज ये न्यारे।।
जन्मभूमि की महिमा को हर
हर्फ लगे कमतर बेचारे।।
'शिवम' स्वर्ग से बढ़कर के भी
लगे हमें वो गाँव चौबारे।।
हरि शंकर चौरसिया '
मुझको मेरा गाँव पुकारे
कब आओगे मेरे प्यारे।।
वो सुभा से लेकर शाम तक
रहा करे थे खुले किवारे।।
सांझ माँ की राह निहारना
बैठकी से निकल कर द्वारे।।
जहाँ चले हम घुटने के बल
वो गली खोर सांझ सकारे।।
पापी पेट शिरोधार्य कर
छोड़ दिए वो रिश्ते सारे।।
वो जन्म भूमि ये कर्म भूमि
बने फासले आज ये न्यारे।।
जन्मभूमि की महिमा को हर
हर्फ लगे कमतर बेचारे।।
'शिवम' स्वर्ग से बढ़कर के भी
लगे हमें वो गाँव चौबारे।।
हरि शंकर चौरसिया '
विषय-जन्मभूमि
विधा-काव्य
दिनांक-८/२/२०२०
किलकारी जहाँ गुंजी थी कभी
माँ ने भी लोरियां सुनाई थी
खिलखिलाया था जहां बचपन
जवानी में पिता की डाँट भी खाई थी
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
सोने सी हरी भरी गेंहूँ की बालियाँ
बहता पानी नदिया का
कलरव करते पंछी जहां
पनिहारिन सुनाती जहां कहानियाँ
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
खेला बचपन संगी साथी संग
मंदिर में दीप जलाये हैं
मनाई थी जहां होली गुलाल की
मस्ती में राग भी गाये हैं
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
छोड़ के आ गयी अपना घर-आँगन
लीपा था जहां तुलसी का बिरवा कभी
झूली थी जहां बरगद की बाहों में
छूट गया वहाँ सब पिया के आगमन पर
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
स्वरचित-अर्पणा अग्रवाल
विधा-काव्य
दिनांक-८/२/२०२०
किलकारी जहाँ गुंजी थी कभी
माँ ने भी लोरियां सुनाई थी
खिलखिलाया था जहां बचपन
जवानी में पिता की डाँट भी खाई थी
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
सोने सी हरी भरी गेंहूँ की बालियाँ
बहता पानी नदिया का
कलरव करते पंछी जहां
पनिहारिन सुनाती जहां कहानियाँ
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
खेला बचपन संगी साथी संग
मंदिर में दीप जलाये हैं
मनाई थी जहां होली गुलाल की
मस्ती में राग भी गाये हैं
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
छोड़ के आ गयी अपना घर-आँगन
लीपा था जहां तुलसी का बिरवा कभी
झूली थी जहां बरगद की बाहों में
छूट गया वहाँ सब पिया के आगमन पर
वो जन्मभूमि मेरी,वो मेरी माँ है।
स्वरचित-अर्पणा अग्रवाल
विषय, जन्म भूमि
दिनांक, ८,२,२०२०.
दिन , शनिवार
है जन्म से अपना वादा,
बना रहेगा साथ हमारा।
जैसे नभ में सूरज चंदा,
ऐसे तुझ में प्राण हमारा।
जिस भूमि से तन ये पाया,
उसी हेतु सर्वस्य लुटाना।
धानी चुनर रंग मन भाये,
श्रम बिंदु इसमें छलकाना।
नहीं दासता मन ये सहेगा,
खुली हवा में ही दम लेगा।
माना शांति लगे मन प्यारी,
पर गद्दारी को दफन करेगा।
रहे फर्ज हमारा याद हमेशा,
मैं बन के रहूँ माटी का बेटा।
एकता अखंडता धर्म हमारा,
मातृ भूमि का बोले जयकारा।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक, ८,२,२०२०.
दिन , शनिवार
है जन्म से अपना वादा,
बना रहेगा साथ हमारा।
जैसे नभ में सूरज चंदा,
ऐसे तुझ में प्राण हमारा।
जिस भूमि से तन ये पाया,
उसी हेतु सर्वस्य लुटाना।
धानी चुनर रंग मन भाये,
श्रम बिंदु इसमें छलकाना।
नहीं दासता मन ये सहेगा,
खुली हवा में ही दम लेगा।
माना शांति लगे मन प्यारी,
पर गद्दारी को दफन करेगा।
रहे फर्ज हमारा याद हमेशा,
मैं बन के रहूँ माटी का बेटा।
एकता अखंडता धर्म हमारा,
मातृ भूमि का बोले जयकारा।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
8/2/2020
बिषय,, जन्मभूमि
मेरी जन्मभूमि है मेरा गांव
जिसमें मिलती है मुझे शीतल सी छांव
अपनी सी लगती भोर की किरण
स्वछंद बिचार न कोई आवरण
गांव का हर शख्स लगता अपना सा
लेकिन अब वह हो सपना सा
हिलमिल कर खेलना मस्ती में रहना
उछलकूद करते सब भाई बहना
बड़ा मनमोहक था गांव का नजारा
काश वो फिर लौटकर आए दोबारा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, जन्मभूमि
मेरी जन्मभूमि है मेरा गांव
जिसमें मिलती है मुझे शीतल सी छांव
अपनी सी लगती भोर की किरण
स्वछंद बिचार न कोई आवरण
गांव का हर शख्स लगता अपना सा
लेकिन अब वह हो सपना सा
हिलमिल कर खेलना मस्ती में रहना
उछलकूद करते सब भाई बहना
बड़ा मनमोहक था गांव का नजारा
काश वो फिर लौटकर आए दोबारा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
तिथि-8/2/2020/ शनिवार
विषय-*जन्मभूमि*
विधा-काव्य
जय जयति जय हो मां भारती।
तेरा वंदन करें आरती।
जन्मभूमि मां हम सबकी है,
मां भारत को तू संवारती।
मुकुट हिमालय मस्तक तेरा।
नहीं हो सकता भक्षक तेरा।
तुझ पर गर्व करें हम माता,
हर भारतवीर रक्षक तेरा।
गंगाजल मां सिरपर धारे।
सागर तेरे चरण पखारे।
हरित हरी है तेरी साड़ी,
हम दर्शन से हुऐ सुखारे।
धन्य हुऐ हम इस जननी से।
मातृभूमि मां इस धरनीं से।
जन्मभूमि मां शत-शत वंदन,
सुखी सभी इस शुभ करनी से।
पहने रंगबिरंगे आभूषण।
है आच्छादित मां सारा तन।
मनमनोरंजन सबका करती,
मातृभूमि की माटी है चंदन।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
विषय-*जन्मभूमि*
विधा-काव्य
जय जयति जय हो मां भारती।
तेरा वंदन करें आरती।
जन्मभूमि मां हम सबकी है,
मां भारत को तू संवारती।
मुकुट हिमालय मस्तक तेरा।
नहीं हो सकता भक्षक तेरा।
तुझ पर गर्व करें हम माता,
हर भारतवीर रक्षक तेरा।
गंगाजल मां सिरपर धारे।
सागर तेरे चरण पखारे।
हरित हरी है तेरी साड़ी,
हम दर्शन से हुऐ सुखारे।
धन्य हुऐ हम इस जननी से।
मातृभूमि मां इस धरनीं से।
जन्मभूमि मां शत-शत वंदन,
सुखी सभी इस शुभ करनी से।
पहने रंगबिरंगे आभूषण।
है आच्छादित मां सारा तन।
मनमनोरंजन सबका करती,
मातृभूमि की माटी है चंदन।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
जब याद गाँव की आती है
एकांत रात में सरहद पर,
जब याद गाँव की आती है।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत कर जाती है।।
कहती है वो याद गाँव की ,
अपनी ही सादी बोली में ।
क्या सीमा से समय मिलेगा,
तुम आ पाओगे होली में ।।
सुना है कि घुस्पैठियों संग,
व्यस्त हो आँख मिचोली में।
क्या तब भी न आ पाओगे,
जब बैठे बहना डोली में ।।
परम्परा या फर्ज निभाऊँ ,
ये ही तो चिंता खाती है ।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत करजाती है।।
शेर गाँव का सीना ताने ,
आज बर्फ के बीच खड़ा है।
नहीं हटूँगा कभी हटाया ,
दृढ़संकल्पी बना अड़ा है ।।
पता चला न कभी भी उसको,
किसके आगे कौन बड़ा है ?
देश कहे कि गाँव बड़ा है,
गाँव कहे की देश बड़ा है ।।
मकड़जाल में फँसा पड़ा मन,
वह बना बड़ा जज्बाती है।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत करजाती है।।
रिश्ता गाँवों की मिट्टी का ,
निंभा कोई नहीं पाता है ।
काबिल होने पर उठा बैग,
सब दौड़ शहर को जाता है।।
पर सरहद से औढ तिरंगा,
गाँव कभी कोई आता है ।
गर्व के मारे दिल भर जाता,
सीना चौड़ा हो जाता है ।।
है सरहद से गाँवों का नाता ,
मिली वहीं से ख्याति है ।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत करजाती है।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
एकांत रात में सरहद पर,
जब याद गाँव की आती है।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत कर जाती है।।
कहती है वो याद गाँव की ,
अपनी ही सादी बोली में ।
क्या सीमा से समय मिलेगा,
तुम आ पाओगे होली में ।।
सुना है कि घुस्पैठियों संग,
व्यस्त हो आँख मिचोली में।
क्या तब भी न आ पाओगे,
जब बैठे बहना डोली में ।।
परम्परा या फर्ज निभाऊँ ,
ये ही तो चिंता खाती है ।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत करजाती है।।
शेर गाँव का सीना ताने ,
आज बर्फ के बीच खड़ा है।
नहीं हटूँगा कभी हटाया ,
दृढ़संकल्पी बना अड़ा है ।।
पता चला न कभी भी उसको,
किसके आगे कौन बड़ा है ?
देश कहे कि गाँव बड़ा है,
गाँव कहे की देश बड़ा है ।।
मकड़जाल में फँसा पड़ा मन,
वह बना बड़ा जज्बाती है।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत करजाती है।।
रिश्ता गाँवों की मिट्टी का ,
निंभा कोई नहीं पाता है ।
काबिल होने पर उठा बैग,
सब दौड़ शहर को जाता है।।
पर सरहद से औढ तिरंगा,
गाँव कभी कोई आता है ।
गर्व के मारे दिल भर जाता,
सीना चौड़ा हो जाता है ।।
है सरहद से गाँवों का नाता ,
मिली वहीं से ख्याति है ।
सिसकी से खिसकीआँखों से,
सरिता स्वागत करजाती है।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
विषय -जन्म भूमि
मेरी प्रिय पुस्तक वृज चौरासी कोस की परिक्रमा से-
अमर अजर अक्षर ब्रह्म जो व्यापक एक निराकार है।
परे मन वाक तर्क अनुमान से सुगीता का ये सार है।
किन्तु भक्त हेतु ले अवतार हुआ साकार जिस वृज में,
उस वृज की महिमा अलौकिक व अनन्त अगाध अपार है।
इस वृज चौरासी कोस के हर मन्दिर में कृष्न व राधे।
हो खड़े या सरक पेट से कहो उनकी यौं परिक्रमा दे।
कि राधे राधे श्याम मिलादे
एक दूजे बिन आधे आधे।
मथुरा नगर चलैं जन्मे जहां श्री कृष्ण,
शौश जिनके पग में जग ने झुकाया है।
अब गाते इतिहास के पन्नों ने वृन्दावन,
मथुरा का यशगान मृदुल सुनाया है।
त्रेतायुग सूर्य वंश क्षत्री कुल रामानुज,
शत्रुघन ने आदेश राम का निभाया है।
लवण को मार कर राम राज स्थापित,
जमुना तट नगर मथुरा बसाया है।
फिर द्वापुर में प्रभु ने मां देवकी गर्भ से।
भक्त हेतु अवतार मथुरा में लीया था।
जहां मन्दिर निर्माण कृष्ण वंश वज्रनाभ ने
ईसा से पूर्व सन अस्सी मे ही कीया था।
परन्तु कालान्तर में ध्वंश कीया मलेक्षौं ने,
हूआ निर्माण पुनि जहां वही कीया था।
चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य ने सन चार सौ में बनबाया था।
पर एक हजार सत्तर सन में दुष्ट गजनवी ने ढाया था।
फिर विजय देव नृप ने इसको ग्यारह सौ में बनबाया था।
फिर सोलहवीं सदी में इसको तुर्क सिकन्दर ने तुड़वाया था।
फिर वीर ओरछा बुन्देला नृप इसका निर्माण कराता है।
फिर नीच तुर्क औरंगजेब भी इसको पुनि गिराता है।
तब जुगल किशोर बिरला मां भारत का सुत निकल आता है।
उसने ही बनबाया ये मन्दिर जो अब *जन्म भूमि* कहलाता है...।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
मेरी प्रिय पुस्तक वृज चौरासी कोस की परिक्रमा से-
अमर अजर अक्षर ब्रह्म जो व्यापक एक निराकार है।
परे मन वाक तर्क अनुमान से सुगीता का ये सार है।
किन्तु भक्त हेतु ले अवतार हुआ साकार जिस वृज में,
उस वृज की महिमा अलौकिक व अनन्त अगाध अपार है।
इस वृज चौरासी कोस के हर मन्दिर में कृष्न व राधे।
हो खड़े या सरक पेट से कहो उनकी यौं परिक्रमा दे।
कि राधे राधे श्याम मिलादे
एक दूजे बिन आधे आधे।
मथुरा नगर चलैं जन्मे जहां श्री कृष्ण,
शौश जिनके पग में जग ने झुकाया है।
अब गाते इतिहास के पन्नों ने वृन्दावन,
मथुरा का यशगान मृदुल सुनाया है।
त्रेतायुग सूर्य वंश क्षत्री कुल रामानुज,
शत्रुघन ने आदेश राम का निभाया है।
लवण को मार कर राम राज स्थापित,
जमुना तट नगर मथुरा बसाया है।
फिर द्वापुर में प्रभु ने मां देवकी गर्भ से।
भक्त हेतु अवतार मथुरा में लीया था।
जहां मन्दिर निर्माण कृष्ण वंश वज्रनाभ ने
ईसा से पूर्व सन अस्सी मे ही कीया था।
परन्तु कालान्तर में ध्वंश कीया मलेक्षौं ने,
हूआ निर्माण पुनि जहां वही कीया था।
चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य ने सन चार सौ में बनबाया था।
पर एक हजार सत्तर सन में दुष्ट गजनवी ने ढाया था।
फिर विजय देव नृप ने इसको ग्यारह सौ में बनबाया था।
फिर सोलहवीं सदी में इसको तुर्क सिकन्दर ने तुड़वाया था।
फिर वीर ओरछा बुन्देला नृप इसका निर्माण कराता है।
फिर नीच तुर्क औरंगजेब भी इसको पुनि गिराता है।
तब जुगल किशोर बिरला मां भारत का सुत निकल आता है।
उसने ही बनबाया ये मन्दिर जो अब *जन्म भूमि* कहलाता है...।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
8 फरवरी 2020
" जन्मभूमि "
जन्मभूमि मातृभूमि भी तो कहलाती है
यह भूमि स्वर्ग से भी सुंदर रूप बतायी जाती है
जो भी इसके लिये ही जीता और मरता है
वोह देशभक्त कहला के देश का नाम करता है
देश की मिट्टी में पल बढ़कर जो बड़ा होता है
यहाँ के अन्न जल को ग्रहण करके यहीं साँस लेता है
हर एक उस व्यक्ति पर लाज़िम है कि वोह देश भक्त बने
इसी जन्मभूमि के लिये जिये और यदि मर भी जाये
अपनी जननी जन्मभूमि मातृभूमि को कर गर्वान्वित
अपना नाम सदा सदा के लिये अमर कर जाये..
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
भावों के मोती👏
विषय-जन्मभूमि।
जन्मभूमि से बढ़कर कुछ नहीं मेरे लिए।
मां है मेरी यह,इसकी मिट्टी से मैं हूं।
जिसने जन्म दिया वह भी मां है
पर बनी वह भी इस मिट्टी से।
मां का कर्ज चुकाने को और
मातृभूमि मां का फर्ज निभाने को
हूं तैयार में तन से,मन से और धन से।
जन्मभूमि से बढ़कर किसको मानूं मैं!
जिसने दिया जन्म उसी में मिल जाऊं मैं।।
मेरी मिट्टी मुझको प्यारी
पर हो गई मैं उससे दूर ।
जहां के लेखे लिखे राम ने
वहां रहने को मैं हूं मजबूर।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
08/02/2020
विषय-जन्मभूमि।
जन्मभूमि से बढ़कर कुछ नहीं मेरे लिए।
मां है मेरी यह,इसकी मिट्टी से मैं हूं।
जिसने जन्म दिया वह भी मां है
पर बनी वह भी इस मिट्टी से।
मां का कर्ज चुकाने को और
मातृभूमि मां का फर्ज निभाने को
हूं तैयार में तन से,मन से और धन से।
जन्मभूमि से बढ़कर किसको मानूं मैं!
जिसने दिया जन्म उसी में मिल जाऊं मैं।।
मेरी मिट्टी मुझको प्यारी
पर हो गई मैं उससे दूर ।
जहां के लेखे लिखे राम ने
वहां रहने को मैं हूं मजबूर।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
08/02/2020
विषय-जन्मभूमि
जन्मभूमि
हैं धन्य हम भारतवासी
जन्म लिया हमने यहाँ
चरण धूलि में में जो सुख
वो हम पाएंगे कहो कहाँ
भाव हैं अर्पित,प्राण समर्पित
जीवन अर्पण जन्मभूमि को
धन्य धन्य हम निज सुत तेरे
तुझ से श्रेष्ठ भला कौन हो
उच्च भाव,सद्भावना सद्भाव
देशभक्ति की अलख जगाई
वसुधैव की शाश्वत परंपरा
वेद पुराण की ज्योति जलाई
राम-कृष्ण की पावन नगरी
जिसकी रज में वो पले बढ़े
कवि मनीषी यहीं थे जन्मे
नाम हैं उनके कितने बड़े
जननी जन्मभूमि अति प्यारी
मान सम्मान सब यहाँ मिले
ज़मीं से जुड़ीं हैं जड़ें सबकी
ममता की छांव यहाँ मिले।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
जन्मभूमि
हैं धन्य हम भारतवासी
जन्म लिया हमने यहाँ
चरण धूलि में में जो सुख
वो हम पाएंगे कहो कहाँ
भाव हैं अर्पित,प्राण समर्पित
जीवन अर्पण जन्मभूमि को
धन्य धन्य हम निज सुत तेरे
तुझ से श्रेष्ठ भला कौन हो
उच्च भाव,सद्भावना सद्भाव
देशभक्ति की अलख जगाई
वसुधैव की शाश्वत परंपरा
वेद पुराण की ज्योति जलाई
राम-कृष्ण की पावन नगरी
जिसकी रज में वो पले बढ़े
कवि मनीषी यहीं थे जन्मे
नाम हैं उनके कितने बड़े
जननी जन्मभूमि अति प्यारी
मान सम्मान सब यहाँ मिले
ज़मीं से जुड़ीं हैं जड़ें सबकी
ममता की छांव यहाँ मिले।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय -जन्म भूमि
विधा--दोहे
दिनांक-8.2.2020
1.
उच्च शिखर को छू रहे,जन्मभूमि आबाद।
जन्मभूमि उन्नति करे, सदा रखा ये याद ।।
2.
पाय अकेले ही जनम, मृत्यु अकेले आय।
अच्छे व बुरे कर्म से, जन्म भूमि हर्षाय।।
3.
जन्मभूमि के सैव्य हित, तन मन धन कुर्बान।
जन्मभूमि है स्वर्ग सी, देती नव मुस्कान।।
4.
यार लंगोटिया सहित, जन्मभूमि से नेह।
राग द्वेष को भूलकर, समझो इसको गेह।।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विधा--दोहे
दिनांक-8.2.2020
1.
उच्च शिखर को छू रहे,जन्मभूमि आबाद।
जन्मभूमि उन्नति करे, सदा रखा ये याद ।।
2.
पाय अकेले ही जनम, मृत्यु अकेले आय।
अच्छे व बुरे कर्म से, जन्म भूमि हर्षाय।।
3.
जन्मभूमि के सैव्य हित, तन मन धन कुर्बान।
जन्मभूमि है स्वर्ग सी, देती नव मुस्कान।।
4.
यार लंगोटिया सहित, जन्मभूमि से नेह।
राग द्वेष को भूलकर, समझो इसको गेह।।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
8.2.2020
शनिवार
विषय -जन्मभूमि
विधा - देशभक्ति गीत
जन्मभूमि
जन्मभूमि यह भारत भूमि,है महान भूमि अपनी
हम इसकी संतान हैं ,प्यारी मातृभूमि अपनी ।।
दिशा -दिशा आलोकित करती,है संस्कृति भारत की
है प्राचीन सभ्यता,है सुलझी सुसंस्कृति अपनी ।।
मानवता का मूलमंत्र यह मानव को सिखलाती है
सत्य, अहिंसा,त्याग,समर्पण
सिखलाती धरती अपनी।।
हर भारतवासी के मन में ,
देश भक्ति के भाव जगे
देश पे मरना -मिटना ही सिखलाती धरती अपनी ।।
देश सुरक्षित रहे हमेशा ,यही भावना भरती है
मातृभूमि माता से बढ़कर,नेह लुटाती है अपनी ।।
कर्तव्यों की कर्मभूमि पर आओ अपना कर्म करो
भारत भूमि स्वर्ग से सुन्दर, है
‘उदार ‘ जननी अपनी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
शनिवार
विषय -जन्मभूमि
विधा - देशभक्ति गीत
जन्मभूमि
जन्मभूमि यह भारत भूमि,है महान भूमि अपनी
हम इसकी संतान हैं ,प्यारी मातृभूमि अपनी ।।
दिशा -दिशा आलोकित करती,है संस्कृति भारत की
है प्राचीन सभ्यता,है सुलझी सुसंस्कृति अपनी ।।
मानवता का मूलमंत्र यह मानव को सिखलाती है
सत्य, अहिंसा,त्याग,समर्पण
सिखलाती धरती अपनी।।
हर भारतवासी के मन में ,
देश भक्ति के भाव जगे
देश पे मरना -मिटना ही सिखलाती धरती अपनी ।।
देश सुरक्षित रहे हमेशा ,यही भावना भरती है
मातृभूमि माता से बढ़कर,नेह लुटाती है अपनी ।।
कर्तव्यों की कर्मभूमि पर आओ अपना कर्म करो
भारत भूमि स्वर्ग से सुन्दर, है
‘उदार ‘ जननी अपनी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
शीर्षक-जन्मभूमि।
जन्म लिये है जिस धरती पर
वह जान से प्यारा है हमको,
दूषित करें जो हमारी जन्मभूमि को
उसका विरोध करेंगे हम।
कुपुत्र नही सुपुत्र है हम
जन्मभूमि से नाता ना तोड़ेंगे
अभिमान है हमें अपनी भूमि पर
ईश्वर समान उन्हें पूजते है।
कुटिल चाल हो दुश्मन की तो
फण उसका हम कुचलेंगे
संकल्प हमारा है यही
आँच न कभी आने देंगे।
उपासक है हम अपनी भूमि का
आमरण रक्षा हम करेंगे
अपनी जन्मभूमि की आन के लिए
शीश भी अपना कटा लेंगे।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।‘
विषय : जन्मभूमि
विधा : कविता
तिथि : 8.2.2020
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान।
जितना भी गर्व करूं है कम
मिले गर्व में उन्नति का सम,
भारत पर करे विश्वअभिमान
ब्रह्मांड भी करे गर्व समान।
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान।
किस राह से पाएं सफ़लता
आओ करें मिल के समीक्षा,
योजना तो सफ़ल बनानी है
जग में बढ़ानी ,भारत शान।
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान।
हमें देनी है कठिन परीक्षा-
निर्धनता का मिटाना है गम,
हटाना है दूर अज्ञान का तम,
कसौटी पर अटकी है आन।
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 8.2.2020
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान।
जितना भी गर्व करूं है कम
मिले गर्व में उन्नति का सम,
भारत पर करे विश्वअभिमान
ब्रह्मांड भी करे गर्व समान।
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान।
किस राह से पाएं सफ़लता
आओ करें मिल के समीक्षा,
योजना तो सफ़ल बनानी है
जग में बढ़ानी ,भारत शान।
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान।
हमें देनी है कठिन परीक्षा-
निर्धनता का मिटाना है गम,
हटाना है दूर अज्ञान का तम,
कसौटी पर अटकी है आन।
भारत मेरी जन्मभूमि, बसते इसमें मेरे प्राण
यही है मेरी कर्म-भूमि,बनाना है इसे महान
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
शीर्षक- जन्मभूमि
याद आती है अक्सर मुझे
मेरी सबसे प्रिय जन्मभूमि।
आना पड़ा छोड़ कर जिसे
मजबूरी थी कुछ ऐसी ही।।
बैचेन हो उठता है ये मन
जब भी सोचती हूं वो बातें।
जाने गई कहां लोरियों भरी
वो बचपन की हसी रातें।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
याद आती है अक्सर मुझे
मेरी सबसे प्रिय जन्मभूमि।
आना पड़ा छोड़ कर जिसे
मजबूरी थी कुछ ऐसी ही।।
बैचेन हो उठता है ये मन
जब भी सोचती हूं वो बातें।
जाने गई कहां लोरियों भरी
वो बचपन की हसी रातें।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
जन्मभूमि
होती प्यारी
होती प्यारी
जन्मदात्री माँ
प्यारी है
जन्मभूमि
माँ
के आंचल में
है ममत्व
दी है पहचान
जन्मभूमि ने
खेलते खाते
बड़े होते
जन्मभूमि पर
वंदनीय
पूज्यनीय
हैं
माँ और
जन्मभूमि
नहीं
उतार सकता
कर्ज
जन्मदात्री और
जन्मभूमि का
है हर भारतीय
की अभिलाषा
बनें
राम जन्मभूमि पर
मंदिर विशाल
वन्देमातरम
जय हिंद का
करों उदघोष
जननी
जन्मभूमि को
करो सदैव
नमन
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
प्यारी है
जन्मभूमि
माँ
के आंचल में
है ममत्व
दी है पहचान
जन्मभूमि ने
खेलते खाते
बड़े होते
जन्मभूमि पर
वंदनीय
पूज्यनीय
हैं
माँ और
जन्मभूमि
नहीं
उतार सकता
कर्ज
जन्मदात्री और
जन्मभूमि का
है हर भारतीय
की अभिलाषा
बनें
राम जन्मभूमि पर
मंदिर विशाल
वन्देमातरम
जय हिंद का
करों उदघोष
जननी
जन्मभूमि को
करो सदैव
नमन
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
जन्मभूमि वन्दना
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
8/2/20
हे जन्म भूमि मेरी
हे कर्म भूमि मेरी।
करते है नमन तुमको
हे मातृभूमि मेरी।
तुम जग से निराली हो
अदभुत और मतवाली हो।
हिम का ताज पहने हो।
पहने नदियों की माला हो।
वीरो की जननी हो।
हे भारत भूमि मेरी।
हम सम्मान करें तेरा
तुम जीवन दाती हो
स्वरचित
मीना तिवारी
हे जन्म भूमि मेरी
हे कर्म भूमि मेरी।
करते है नमन तुमको
हे मातृभूमि मेरी।
तुम जग से निराली हो
अदभुत और मतवाली हो।
हिम का ताज पहने हो।
पहने नदियों की माला हो।
वीरो की जननी हो।
हे भारत भूमि मेरी।
हम सम्मान करें तेरा
तुम जीवन दाती हो
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय जन्मभूमि
विधा कविता
दिनाँक 8.2.20
दिन शनिवार
जन्मभूमि
💘💘💘💘
याद कर के अपनी जन्मभूमि
जिसकी तबीयत ही नहीं झूमी
तो सब कुछ ही बेकार है
वह आदमी बहुत बीमार है।
समझ नहीं आता लोग कैसे हैं
जो देखते रहते बस पैसे हैं
जन्मभूमि विरोधी नारे लगाते हैं
और सम्पत्ती भी खूब जलाते हैं।
जन्मभूमि से हमें सब मिलता है
हमारे उपवन का पुष्प खिलता है
जन्मभूमि स्वर्ग से भी सुन्दर है
इसका हमारे ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है।
इसके कण कण से झुकाव ज़रुरी है
इसके कण कण से जुडा़व ज़रुरी है
चाहे सात समन्दर पार रह लो
पर इसकी ओर मुडा़व ज़रुरी है।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा कविता
दिनाँक 8.2.20
दिन शनिवार
जन्मभूमि
💘💘💘💘
याद कर के अपनी जन्मभूमि
जिसकी तबीयत ही नहीं झूमी
तो सब कुछ ही बेकार है
वह आदमी बहुत बीमार है।
समझ नहीं आता लोग कैसे हैं
जो देखते रहते बस पैसे हैं
जन्मभूमि विरोधी नारे लगाते हैं
और सम्पत्ती भी खूब जलाते हैं।
जन्मभूमि से हमें सब मिलता है
हमारे उपवन का पुष्प खिलता है
जन्मभूमि स्वर्ग से भी सुन्दर है
इसका हमारे ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है।
इसके कण कण से झुकाव ज़रुरी है
इसके कण कण से जुडा़व ज़रुरी है
चाहे सात समन्दर पार रह लो
पर इसकी ओर मुडा़व ज़रुरी है।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय - जन्मभूमि
08/02/20
शुक्रवार
कविता
देशभक्ति का राग वही सच्चा सपूत गा पाता है,
जिसको अपनी जन्मभूमि का कर्ज चुकाना आता है।
सदा राष्ट्र की आन- बान व शान उसे बस भाती है,
जिसकी ख़ातिर जान हथेली पर रखकर वह जाता है।
ऐसे वीर सपूतों ने ही आजादी दिलवाई थी ,
इसीलिए यह देश गीत वीरों के यश के गाता है।
अमर जवान ज्योति साक्षी है उनके दृढ कर्तव्यों की,
जिसका प्रबल प्रकाश राष्ट्र को ज्योतिर्मय कर देता है।
है इतिहास गवाह राष्ट्र के भक्तों ने संघर्ष किया ,
तभी देश के आँगन में स्वतंत्रता-दीपक जलता है।
देश सदा ऐसे सपूत पर गौरव अनुभव करता है,
बार-बार उनके समक्ष सिर श्रद्धा से ही झुकता है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
08/02/20
शुक्रवार
कविता
देशभक्ति का राग वही सच्चा सपूत गा पाता है,
जिसको अपनी जन्मभूमि का कर्ज चुकाना आता है।
सदा राष्ट्र की आन- बान व शान उसे बस भाती है,
जिसकी ख़ातिर जान हथेली पर रखकर वह जाता है।
ऐसे वीर सपूतों ने ही आजादी दिलवाई थी ,
इसीलिए यह देश गीत वीरों के यश के गाता है।
अमर जवान ज्योति साक्षी है उनके दृढ कर्तव्यों की,
जिसका प्रबल प्रकाश राष्ट्र को ज्योतिर्मय कर देता है।
है इतिहास गवाह राष्ट्र के भक्तों ने संघर्ष किया ,
तभी देश के आँगन में स्वतंत्रता-दीपक जलता है।
देश सदा ऐसे सपूत पर गौरव अनुभव करता है,
बार-बार उनके समक्ष सिर श्रद्धा से ही झुकता है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय_ जन्मभूमि
जन्मभूमि के लिऐ देदेगे जान
आच न आने देगे तिरंगा लहराये
आसमान मे देखे संसार सारा |
बने जयंचद मिट्टी मे मिला देगे |
गुप्त संदेश न बाहर जाने देगे |
जल स्त्रोतो को स्वच्छ निर्मल पावन रखेगे |
बंजर भूमि पर लायेगे हरित क्राति |
लह लहा उठे धरा पेड जंगल से |
जहर न डालेगे फसलो मे व मिलावट से बचायेगे |
जल वायु अन्न हो शुद्ध न भय बिमारी का |
हो जन जन अनुशासित मर्यादित |
देश का होगा विकास बने स्वर्णिम |
स्वरचित_ दमय मिश्रा
जन्मभूमि के लिऐ देदेगे जान
आच न आने देगे तिरंगा लहराये
आसमान मे देखे संसार सारा |
बने जयंचद मिट्टी मे मिला देगे |
गुप्त संदेश न बाहर जाने देगे |
जल स्त्रोतो को स्वच्छ निर्मल पावन रखेगे |
बंजर भूमि पर लायेगे हरित क्राति |
लह लहा उठे धरा पेड जंगल से |
जहर न डालेगे फसलो मे व मिलावट से बचायेगे |
जल वायु अन्न हो शुद्ध न भय बिमारी का |
हो जन जन अनुशासित मर्यादित |
देश का होगा विकास बने स्वर्णिम |
स्वरचित_ दमय मिश्रा
8/2/2020
विषय-जन्मभूमि
कुछ याद उन्हें भी करलें
जन्मभूमि की बलिवेदी पर
शीश लिये हाथ जो चलते थे ,
हाथों में अंगारे ले के
ज्वाला में जो जलते थे ,
अग्नि ही पथ था जिनका
अलख जगाये चलते थे,
जंजीरों में जकड़ी मां को
आजाद कराना था ,
शिकार खोजते रहते थे
जब सारी दुनिया सोती थी ,
जिनकी हर सुबहो
भाल तिलक रक्त से होती थी ,
आजादी का शंख नाद
जो बिना शंख ही करते थे ,
जब तक मां का आंचल
कांटो से मुक्त ना कर देगें,
तब तक चैन नही लेंगे
सौ-सौ बार शीश कटा लेंगे,
दन-दन बंदूकों के आगे
सीना ताने चलते थे
जुनून मां की आजादी का
दिल में लिये जो चलते थे,
ना घर की चिंता ना परवाह
मात-पिता,भाई-बहन ना पत्नी की,
कोई रिश्ता ना बांध सका
जिनकी मौत प्रेयसी थी ,
ऐसे देशभक्त हुतात्मायों पर
हर देशवासी को है अभिमान,
नमन करें उनको
जो आजादी की नीव का पत्थर बने,
एक विशाल भवन के निर्माण
हेतु हुवे बलिदान ।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-जन्मभूमि
कुछ याद उन्हें भी करलें
जन्मभूमि की बलिवेदी पर
शीश लिये हाथ जो चलते थे ,
हाथों में अंगारे ले के
ज्वाला में जो जलते थे ,
अग्नि ही पथ था जिनका
अलख जगाये चलते थे,
जंजीरों में जकड़ी मां को
आजाद कराना था ,
शिकार खोजते रहते थे
जब सारी दुनिया सोती थी ,
जिनकी हर सुबहो
भाल तिलक रक्त से होती थी ,
आजादी का शंख नाद
जो बिना शंख ही करते थे ,
जब तक मां का आंचल
कांटो से मुक्त ना कर देगें,
तब तक चैन नही लेंगे
सौ-सौ बार शीश कटा लेंगे,
दन-दन बंदूकों के आगे
सीना ताने चलते थे
जुनून मां की आजादी का
दिल में लिये जो चलते थे,
ना घर की चिंता ना परवाह
मात-पिता,भाई-बहन ना पत्नी की,
कोई रिश्ता ना बांध सका
जिनकी मौत प्रेयसी थी ,
ऐसे देशभक्त हुतात्मायों पर
हर देशवासी को है अभिमान,
नमन करें उनको
जो आजादी की नीव का पत्थर बने,
एक विशाल भवन के निर्माण
हेतु हुवे बलिदान ।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
भावों के मोती
दिनांक ८/०२/ २०२०
दिवस -. शनिवार
विषय- जन्मभूमि
यह जन्मभूमि मेरी ,
मुझको प्राणों से भी है, प्यारी
इस धारा को नमन
एक नहीं सौ बार नमन।
जिसकी मिट्टी में हम,
पले - बड़े खेले -कूदे
गली मुहल्लों में दौड़े
उस धरती को बारंबार नमन।
देश-विदेश जहां भी जाएं ,
हे ,जन्मभूमि तुझे भूल न पाए
तुम पर तन मन धन कुर्बान
जीवन का हर पल कुर्बान।
स्वरचित मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
दिनांक ८/०२/ २०२०
दिवस -. शनिवार
विषय- जन्मभूमि
यह जन्मभूमि मेरी ,
मुझको प्राणों से भी है, प्यारी
इस धारा को नमन
एक नहीं सौ बार नमन।
जिसकी मिट्टी में हम,
पले - बड़े खेले -कूदे
गली मुहल्लों में दौड़े
उस धरती को बारंबार नमन।
देश-विदेश जहां भी जाएं ,
हे ,जन्मभूमि तुझे भूल न पाए
तुम पर तन मन धन कुर्बान
जीवन का हर पल कुर्बान।
स्वरचित मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
विषय -जन्मभूमि
*****************
जन्मभूमि की याद जब आती
विह्वल हो उठता अपना मन
पल पल बढ़ता फिर तेजी से
रुकता नही फिर रोके कदम
जन्मभूमि की खुशबु तब
मिलो से ही क्यूँ आती है
बेबस मन के अंदर अंदर
अनायास खुशियों छाती है
जन्मभूमि का कष्ट न पूछो
जन्मभूमि में जो रहता हो
जन्मभूमि से दूर कहि जो
निज सपने में माँ माँ कहता हो
जन्म भूमि की सारी यादे
पलकों पर ही तो रहती है
दूर भले हो कोई अपना
याद संग में ही रहती है
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
*****************
जन्मभूमि की याद जब आती
विह्वल हो उठता अपना मन
पल पल बढ़ता फिर तेजी से
रुकता नही फिर रोके कदम
जन्मभूमि की खुशबु तब
मिलो से ही क्यूँ आती है
बेबस मन के अंदर अंदर
अनायास खुशियों छाती है
जन्मभूमि का कष्ट न पूछो
जन्मभूमि में जो रहता हो
जन्मभूमि से दूर कहि जो
निज सपने में माँ माँ कहता हो
जन्म भूमि की सारी यादे
पलकों पर ही तो रहती है
दूर भले हो कोई अपना
याद संग में ही रहती है
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
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