Monday, February 17

राह/मार्ग "17फ़रवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-659
दिनाँक-१७/२/२०२०

विषय-राह
विधा-नज़्म(काव्य)

मैं जहाँ राह भूल जाती हूँ
वहीं मैं खुदा को पाती हूँ।

वो दिखाता हैं मुझे सही राह
जब मैं उसकी शरण में जाती हूँ ।

किसी धर्म की नही मुझे परवाह
मानवता को ही मैं अपनाती हूँ।

कोई समझे कि मैं पागल हूँ
मैं मन को अपने समझाती हूँ।

मंदिर मस्जिद से सरोकार नही मुझे
उसके सामने ही सिर झुकाती हूँ।

महसूस होती हैं गर तनहाइयाँ
मैं खुद को खुदा में पाती हूँ।

स्वरचित-अर्पणा अग्रवाल

विषय राह,मार्ग
विधा काव्य

17 फरवरी 2020 सोमवार

हम राही मंजिल पर जा रहे
राह अति आसान नहीं है।
कंटक पत्थर कंकर बिखरे
आत्मविश्वास कमी नहीं है।

लाख मुसीबत आवे तन पे
नित संघर्षो से जूझ रहे हम।
लिये संकल्प बढ़ते हैं आगे
लगा रहे हम सारा दम खम।

माना राह आसान नहीं जग
चलते रहो निरन्तर पथ पर।
क्या तूफानों से क्या घबराना
बाँधो मुठ्ठी बढ़लो नभ पर।

कभी हारना सीखा नहीं है
हम मानव नित आगे बढ़ते।
हम सागर सतह पर जाकर
झौली मोती माणक भरते।

गिरिमाल उत्तुंग शिखर पर
हम बर्फ़ीली चोटी पर चढ़ते।
राह कोई दुष्कर नहीं होती
कर्मवीर पद आगे ही बढ़ते।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय राह/मार्ग
प्रथम प्रस्तुति


राहें वो जुदा जुदा हुईं
घड़ियाँ वो ख़फा ख़फा हुईं।।

उन घड़ियों की यादें सारीं
ताजीस्त राहनुमा हुईं।।

जितना लिखूँ कम कहलाए
ऐसीं घड़ीं मेहरबां हुईं।।

थी सिर्फ वो नजरें कातिल
ऐसीं दिल में वो जमा हुईं ।।

पूँजी ही बन गयीं वो मिरी
हर गम कीं घड़ीं हवा हुईं।।

बातें ऊँची मंजिल की थीं
हम दोनों के दरमियां हुईं।।

उनकीं राहें सीधी थीं वो
मेरी वो राहें मना हुईं।।

तकदीर के पैगाम जाने
स्वीकार किया जो अता हुईं।।

बेशक तकदीर कि खता ये
पर उनकी न 'शिवम' खता हुईं।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 17/02/2020

#राह

#राह जरा मुश्किल है - आजकल
हर राह पर खड़ा है भिखारी
पर वो गरीब नहीं
जिसपर विश्वास किया जाए
जिस पर ऐसान किया जाए
साजिश के फंदे में
फाँसने वाले ये लोग
हमारे बच्चे-बच्चियों को
जवान युवतियों को
अपनी तिकड़म में फाँसकर
उनके जीवन को नर्क बना डालते हैं
ये बाबा भारती के घोड़े को
छल से प्राप्त करनेवाले
भिखारी के वेश में खड़्गसिंह जैसे डाकू से ज्यादा खतरनाक हैं- ये
जिनके जीवन में सुधार की
कोई गुंजाइश ही नहीं है
कदापि होगा भी नहीं
क्योंकि ये दरिंदे हैं
इनका कोई ईमान ही नहीं है।
इसलिए सतर्क रहें
ऐसे खतरनाक भिखारियों से
जो राह चले लोगों को
#राह से भटकाकर
कहीं दूसरी राहों पर ले जाते हैं।
दिनांक-17/2/2020
विषय-राह/मार्ग

विधा-कविता

कोई बाधा रोक सके न
वो राह पे अपनी चलते हैं
यौवन के साहस के आगे
व्यवधान भी न टिकते हैं

जब मुश्किल घड़ी आ जाती है
तब युवा शक्ति आंधी बन जाती है
लक्ष्यनिष्ठ जीवन जीकर ही वो
जीवन को सफल बनाती है

हर युग में मचला था यौवन
त्रेता द्वापर हो या कलियुग
विकृतियों का ध्वंस करने
नेतृत्व करता बन प्रचंड

जब विकृतियां बढ़ जाती हैं
धर्म समाज बन जाता प्रतिगामी
तब युवाओं ने आगे बढ़कर
समाज की बागडोर है थामी

सदमार्ग जो मिल जाये इनको
देश की दशा बदल ही देंगे
राहों की विभीषिकाओं को
बल,बुद्धि,साहस से दूर करेंगे

आज पुनःदेश,संस्कृति पर
संकट के बादल छाए हैं
भ्रष्टाचार,अनय आतंकी
विक्षिप्त और बौखलाए हैं

आओ युवा!आवाज़ दे रही भारती
युवा राष्ट्र की तरुणाई को
सुभाष, भगत,नरेंद्र से बन कर
दूर करो पनपती सभी बुराई को।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
नई दिल्ली
17//2 //2020
बिषय,, राह मार्ग

आज राह में उनसे मुलाकात हो गई
मुख से कुछ कह न पाए आँखों से बात हो गई
कहने को बहुत कुछ था पर कह न सके हम
वगैर उनके अब तक रह न सके हम
मिलने मिलाने की फिर शुरुआत हो गई
फिर मिलेंगे तो गले मिलेंगे. हम
कुछ उनकी सुनेंगे कुछ अपनी कहेंगे हम
प्यार की बौछार से रिमझिम वरसात हो गई
मैं उनकी दीवानी वो मेरे दीवाने हैं
बड़े मजबूत ए रिश्ते पुराने हैं
मेरे लिए तो बड़ी करामात हो गई
वो मनमोहन प्यारे सावरिया हैं
जिनके अधरों पे मुरली कांधे कमरिया है
चरणों में शीश उनके दिन से रात हो गई
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक-17/02/2020
विषय-राह/ मार्ग


मेरे अनजानी राहो मे एक आहट आई.............
तब मेरा मन व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई.....

एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन एक तो था एकाकीपन

राहों मे यह कैसा परिचय?
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
है कैसा ए तेरा जलवा

राहों में एक सन्नाटा में आया......
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे

राहों में एक एकांत में आया......
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो

राहो में तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे

स्वरचित....

सत्य प्रकाश सिंह इलाहाबाद
तिथि 17/2/2020/सोमवार
विषय-

*राह/मार्ग*
काव्य

राहें नहीं आसान हमारी,
बीच बहुत व्यवधान आऐंगे।
कुछ अपने अनसुलझे सवाल,
कुछ संविधान आडे आऐंगे।

चाहे जितना डिग्रियां लेलें।
जितनी चाहिऐ शिक्षा ले लें।
राह तुम्हारी भरी कंटकों से,
क्या रोडे जरा परिचय कर लें।

दमन प्रतिभाओं का हो रहा।
ज्ञानी नोकरियों को रो रहा।
बास बना है गधा कोई का,
कहीं सड़े विधान को रो रहा।

अब संघर्षों से आगे बढ़ना।
तभी शिखरों पर तुमको चढ़ना।
मिलजुल कांटे सभी हटाओ,
मार्ग प्रशस्त यदि हमें करना।

गरीब भले अमीर बन बैठे,
फिर भी नहीं आरक्षण छोड़ें।
जात पात में नेता बांटते,
ये हम सबका संरक्षण छोड़ें।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म.प.
जयजय श्रीराम रामजी

*राह/मार्ग*काव्य
17/2/2020/सोमवार
विषय - राह/मार्ग

मुश्किल राहों पर चलकर ही
लक्ष्य साध कोई सकता है।
कंटक पथ पर पांव धरे बिन
कहाँ फ़तह मंजिल होता है।

जीवन की पहचान यही है,
बस केवल चलते रहना।
तन से हो या हो फिर मन से,
नहीं एक पल भी रुकना।
रुक जाता जो राह में थककर,
हाथ ही मलता रहता है।
मुश्किल राहों पर चलकर ही
लक्ष्य साध कोई सकता है।

जीवन पथ पर कई बार तो,
राह अनेकों आ जाते हैं।
धैर्य, बुद्धि, विवेक साथ तो,
मार्ग सही वो चुन पाते हैं।
गलत मार्ग जीवन में हरदम
तड़पाता है भटकाता है।
मुश्किल राहों पर चलकर ही
लक्ष्य साध कोई सकता है।

हिम्मत जिगर में हो जिवित
उर में हो विश्वास भरा।
तीखे मोड़ हो जीवन पथ के
या खाई और पहाड़ खड़ा।
कर्मवीर होता जो पथपर
आगे बढ़ता रहता है।
मुश्किल राहों पर चलकर ही
साध लक्ष्य कोई सकता है।

स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड

विषय-राह
दिनांक 17-2-2020




ऐसा कोई सपना नहीं,जो कभी पुरा ना होता।
पूरा करने की जिद हो,तो रास्ता स्वत:बनता।

मन से सदा जीवन में,जो भी संघर्ष करता।
उसका सपना अधूरा,कभी भी नहीं रहता।

सपने पूरे कर छोडूंगा,लक्ष्य जो वो रखता।
अथक परिश्रम कर,सपना पूरा वो करता।

टकराता वह चट्टानों से,और राह भी बनाता।
भगीरथ की तरह ही,वह गंगा को धरा लाता।

सीने में दर्द बहुत, दर्द को छिपा वह रहता।
सब्र फल मीठा,बस वो बारी इंतजार करता।

जब तक ना हो सपना पूरा,चैन नहीं पड़ता।
अरमानों का गला घोंट,आगे कदम बढ़ाता।

कर मेहनत नया पन्ना, इतिहास वो जोड़ता।
कहती वीणा सपना सच,वो बिरला करता।


वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय राह
विधा कविता

दिनाँक 17.2.2020
दिन सोमवार

राह
💘💘💘

मन में करवटें लेती रहतीं चाह
तो क्यों न उलझेगी जीवन राह
मन की खोली भी कैसी विधाता देता
बिना प्रयास ही पनपती इच्छा और डाह।

भगवान भी कहते मन को कर ले तू नियन्त्रित
लेकिन यहाँ तो इच्छाये स्वतः ही होतीं सिंचित
और यहीं पर भटक जातीं जीवन राहें
सुखद शान्ति से व्यक्ति हो जाता वंचित।

सारा परिप्रेक्ष्य ही मन में उलझा युगों से
समय ने देखा है सब अपने दृगों से
युद्धों की विभिषिका ने राहें उजाडी़ं
कौन मुक्त हो सका मन में उत्पाती ठगों से।

सरल होते हुए भी कठिन है यह डगर
मन हावी रहता जब तक न व्यक्ति जाता मर
कितने लोग इस मन को नियन्त्रित कर पाये
कितने लोग जीवन राह में शान्ति भर पाये।

मन से ही निर्धारित होती राह
मन से ही आश्रित होती राह
मन ही खोलता अध्यात्म की राह
सबको मिले परमात्म की राह।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
17/2/2020
विषय राह मार्ग

जीवन मार्ग नहीं आसान
दूर तक बिखरे कंटक
रखना पग देख भाल....
कहीं ऊँचे कहीं नींचे
मार्ग में गड्ढे खुदे...
लक्ष्य पर रख नज़र
पर हर कदम रख सम्हल
कितने ही देंगे धोका तुम्हें
कितने ही खीचेंगे तुम्हारे कदम चलना होगा दृढ़ इरादे..
चाहे हो
धूप या फिर छाँव...
छलके पसीना या हो घाव
रुकना नहीं मार्ग में तुम
जितने मिलेंगे कठिन मार्ग
पग उठेंगे उतने ही तीव्र
मंजिल है पलकें बिछा...
बस चल न किसी से डर...
अपने बाजुओं में रख..
हौसलों का वज़ूद...
पूजा नबीरा
काटोल नागपुर
दिनांक- 17/02/2020
शीर्षक- राह/मार्ग
वि
धा- कविता
**************

तकती हैं ये बूढ़ी आँखे,
रोज राह अपने बेटे की,
कब आओगे मेरे सूरज,
आँखे बस अब थक सी गई |

दिन वो बहुत अच्छे थे,
जब तुम छोटे से बच्चे थे,
राह में खूब जिद्द करते थे,
उगुँली थाम कर चलते थे |

राह जो हमने तुम्हें दिखाई,
तुमने भी तो वही अपनाई,
कभी खुशी थी कभी गम,
तब साथ थे तुम और हम |

विदेश जाकर तुम खो गये,
खुली आँखें कर हम सो गये,
कब होगा अब तुम्हारा आना,
उस मार्ग से अब न जाना |

स्वदेश लौट आओ बेटा,
कमाई का मार्ग यहीं बनाओ,
हमारे जीवन का भरोसा नहीं,
बंद हो जायें न आँखें कहीं |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
राह / मार्ग
17/02/20

**
शब्द युग्म ' का प्रयास

चलते चलते
उबड़ खाबड़ रस्ते,
ख्वाहिशों के अंतहीन सफर
में दूर बहुत दूर चले आये,
खुद ही नहीं खबर
क्या चाहते हैं
राह से राह बदलते
चाहों के भंवर जाल में
उलझते गिरते पड़ते
कहाँ चले जा रहे हम?

कभी कभी
मेरे पाँवों के छाले
तड़प तड़प पूछ लिया करते हैं
चाहतों का सफर
अभी कितना है बाकी
मेरे पाँव अब थकने लगे है
मेरे घाव अब रिसने लगे है
आहिस्ता आहिस्ता ,रुक रुक चलो
थोड़ा थोड़ा मजा लेते चलो।

हँसते हँसते
बोले हम अपनी चाहों से
कम कम ,ज्यादा ज्यादा
जो जो भी पाया है
सहेज समेट लेते है
चाहों की चाहत को
अब हम विराम देते है
सिर्फ ये चाह बची है कि
अब कोई चाह न हो ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय : राह, मार्ग
विधा : कविता

तिथि : 17.2.2020

तेरा मान करुं, मनुहार करुं
किस विध तुझे प्यार करूं?

तुझे देख देख कर मुस्कांऊ
या इतरा कर तुझे भरमाऊं;
तुझे अपने गले लगाऊं, या
खुद ही तेरे गले का हार बनूं?

तेरा मान करुं, मनुहार करुं
किस विध तुझे प्यार करूं?

इज़हार करू, स्वीकार करूं,
शर्मा निगाहों के वार करूं!
तेरी बेरुखी , दुश्मन है बनी
झेलूं या फिर मैं ढाल बनूं?

तेरा मान करुं, मनुहार करुं
किस विध तुझे प्यार करूं?

कठिन बड़ी है प्यार की राह
नेमत बन गई प्यार की चाह
किस विध जीवन बने वाह
मर मर जिऊं,याजी जी मरूं?

तेरा मान करुं, मनुहार करुं
किस विध तुझे प्यार करूं?
-रीता ग्रोवर
- स्वरचित
भावों के मोती।
विषय- राह /मार्ग।
विधा-ग़जल़।
शौकीन मिजाज़ थे हम,आ़दत बनी रही।
बस ता़उम्र अपनी, ये फ़ितरत बनी रही।।

समझौता करना ना कभी अपना उ़सूल था।
चलते रहे बेख़ौफ़ ,राह मुह़ब्बत बनी रही।।

डर जायें अदाव़तों से,अपना शग़ल नहीं।
बदला ज़माना अपनी अदा़वत ठनी रही।।

गौर फ़रमाइए जना़ब ज़माना ही हमसे है।
ज़माने से'प्रीति'नहीं, ये ब़गावत बनी रही।।

‌‌ *****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

विषय- राह/ मार्ग
17/02/20

सोमवार
कविता

कर्म को पूजा समझकर लक्ष्य-पथ पर चल रही,
मार्ग के झंझावतों में भी सदा अविचल रही।

कौन अब रोकेगा मुझको इस तपस्या-मार्ग से,
मेरी तो यह कर्मभूमि अर्चना में ढल रही।

स्वार्थप्रेरित मैं नहीं, जीती हूँ औरों के लिए ,
दूसरों की हर खुशी मेरे हृदय में पल रही।

मुझको न शिकवा किसी से,न किसी से बैर है,
सुख व दुख दोनों परिस्थितियों में मै अविचल रही।

साधना का पथ मुझे देता है जीवन की खुशी ,
इसलिए इस कर्म पथ से मुझको मंजिल मिल रही।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
17/2/20
विषय राह


ख्वाबो की सुंदर राहों में
कुछ ख्वाब हमारे छूट गये।

कुछ अपने साथी छूट गए
कुछ अपने रिश्ते टूट गए।

कुछ मीठे जख्म दे गए
कुछ दर्द बेहताशा दे गए।

वो शहर बेगाने हो गए
वो गाँव हमारे खो गए।

अपनेपन के धागे टूट गए
कुछ बात अधूरी से रह गए।

वो धूप छाप भी खो गए
ममता की आँचल छूट गये।

बरगद की छाया छूट गई
हम शहर बेगाने हो गए।

अनजान परिंदे हो गए
अनजान शहर में खो गए।

बारिश की बूंदे बन गए
न जाने कहाँ मिल गए।

कागज की नाव बन गए
पानी मे हम कही खो गए।

अरमानो का पीछा करते करते
हम खुद ही खुद में खो गए।

स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक, १७,२,२०२० .
वार, सोमवार .

विषय, राह /मार्ग
विधा, कुंडलिया

(१)

जीवन पथ अनजान है, करना सोच विचार।
चाहे जैसी राह हो , नहीं मानना हार ।।
नहीं मानना हार , पास में साहस रखना।
फूल मिलें या खार , हमेशा बढ़ते रहना।।
यश अपयश की सोच, राह को रखना पावन।
पथ है ये अनमोल, नहीं फिर मिलता जीवन।।

(२)

चलना राह सही सदा , करना सच पर वाह।
बाधाएं आतीं रहें , चाह संग है राह।।
चाह संग है राह , याद ये हरदम रखना।
चूकी जहाँ निगाह , पडेगा हमें भुगतना।।
धर्म नीति की बात , बड़ों का सुनना कहना।
यश की हो बरसात,मिले सुख सच पर चलना।।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
17/02/2020
दिन- सोमवार

विषय - "राह/ मार्ग
विधा - कविता

सबकी राह आसान कर दो,
हे मालिक हर बगिया के।
खुशियों से सबकी झोली भर दो ,
हे मालिक हर बगिया के। ।

बहुत बोझ है सांसो पर ,
परेशान जिंदगी है ।
हर तरफ़ एहसान फरामोशो की,
लंबी कतार लगी है ।।
सबकी राह आसान कर दो,
हे मालिक हर बगिया के ।।


बीत रही है धीरे धीरे ,
जीवन की अनमोल घड़ी।
गरीबों की बस्ती में ,
तेरा प्यार कम न हो कभी।
सबकी राह आसान कर दो,
हे मालिक हर बगिया के। ।

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड
17/02/2020सोमवार
विषय-राह/मार्ग

विधा-अतुकान्त कविता
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
कवि पाश कहते हैं
"बीच का रास्ता तो होता ही नहीं है"
लोग कहते हैं
जब और कोई
विकल्प ही ना बचे तो...?
यही एक मार्ग ही
महफूज लगता है👌
रास्ते तो कई हैं
पर,कोई भी राह
एकदम सुगम-सरल
निष्कंटक-निरापद
व सुरक्षित,कतई
कहाँ होता है भाइयों👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"

विषय- राह/ मार्ग
दिनांक 17 /02/2020।


रास्ते अपने शहर के,
दिख रहे अनजान से
ऐसा मानो लग रहा,
बच रहे पहचान से ।

अजनबी अपने ही घर में,
जो नहीं पहचान कोई ।
याद कुछ आ रही हां ,
ये मम्मी की रसोई ।

सब वही तो लोग लेकिन ,
मूक बन क्यों मौन है
घर मेरा खुद पूछता,
तू अजनबी कौन है ।

अब मुझे एहसास होता,
काश मैं भूला ना होता।
जर ,जोरू ,जमीन त्रम में,
आकंठ तक डूबा ना होता।

प्रेम की बगिया रसीली,
कब थार रेगिस्तान सी।
मैंने क्यों बिसरा दिया
बातें वफा ईमान की
रास्ते अपने शहर...…...

स्वरचित , रंजना सिंह
शीर्षक-राह
सादर मंच को समर्पित -


☀️🍀 गीतिका 🍀☀️
**************************
🌹 राह 🌹
आधार छंद - ताटंक
मात्रा भार = ( 16 + 14 ) ,
चरणांत तीन गुरु
समांत- आनी , पदांत-है
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

जीवन है अनबूझ पहेली ,
राह बड़ी अनजानी है ।
चलते रहना है पथिक को ,
बढ़ कर मंजिल पानी है ।।

बड़े भाग्य मानव तन पाया ,
बुद्धि, विवेक श्रेष्ठ सब से ,
आये क्यों हैं हम इस जग में ,
क्या करने की ठानी है ?

मन मन्दिर में झाँक चलें रे ,
कितने हम सत्कर्म किये ,
मनन करें दिल शान्त बैठ कर ,
सच्चाई खुल आनी है ।

अविचल सूरज दमके प्रतिदिन ,
चन्द्र , धरा गतिमान रहें ,
चलना ही पहचान पथिक की,
सच्ची यही कहानी है ।

और न कोई आयेगा अब ,
दूर अँधेरा करने को ,
नयी भोर का स्वागत करने ,
साहस ज्योति जलानी है ।

पीड़ा से बढ़ती है क्षमता ,
तप कर ही कुन्दन निखरे ,
संघर्षों में धैर्य , कर्म से ,
मिलती विजय सुहानी है ।

बन्धन मुक्त कहाँ है प्राणी ,
ज्ञान चक्षु लख है बढ़ना ,
खोज करें हम राह सत्य की ,
सत-पथ अमिट निशानी है ।।

🌺🌻☀️🍀🌹

🌴🏵**..... रवीन्द्र वर्मा आगरा
विधा-मुक्त छंद
विषय-राह/मार्ग

दिनांक-17 फरवरी 2020

"राह सही दिखा देना"

ऐ वक्त! तू हो
अच्छा या बुरा
मेरे चेहरे को
हँसना सीखा देना।

किए होंगे पाप अनेकों
जाने अनजाने में
वो दृश
मुझे दिखा देना।

जान सकूँ मैं खुद को
मेरा भविष्य क्या होगा
हूँ मैं गरीब हितेषी या स्वार्थी
तू आईना मुझे दिखा देना।

क्या,जान सका मैं पीर-पराई
किसी दुखियारे की
क्या पौंछे हैं रोते आँसू कभी मैंने
तू ज्ञान मुझे करा देना।

हेसियत क्या है मेरी दुनिया में
ये तो आनी-जानी है
हो भविष्य उज्ज्वल मेरा
ऐ वक्त! राह सही दिखा देना।

✍️
राकेशकुमार जैनबन्धु
गाँव-रिसालिया खेड़ा,सिरसा
हरियाणा,125103
दिनांक 17-02-2020
विषय - राह


राह रोकेगा भला कैसे अंधेरा!..

दृढ़ रहे विश्वास होगा ही सवेरा
राह रोकेगा भला कैसे अंधेरा!..

दृश्य यह जो हो रहे उन्मत्त घेरे
अवगुणों के लग रहे नित्य फेरे
हो रहा है ध्वंस पर जो उल्लास
कर रहे हैं सदगुणों पर परिहास
यह महज चंद दिन का बसेरा
राह रोकेगा भला कैसे अंधेरा!.....

यह क्षितिज सी विस्तृत निराशा
भ्रान्ति ही है पूर्ण न होगी आशा
बढ़ निरन्तर ध्येय पथ पर अटल
कौन कहता है नहीं आयेगा कल
दूर होगा विघ्न का बादल घनेरा
राह रोकेगा भला कैसे अंधेरा!....

चीर देती है निशा को अरुणिमा
फिर दिवस आती लिए मधुरिमा
छिन्न होगा ही यहाँ पर जो असत्
बस! रहेगा एक ही जो शाश्वत
व्यर्थ का प्रपंच छोड़ो सब अनेरा
राह रोकेगा भला कैसे अंधेरा!....

दृढ़ रहे विश्वास होगा ही सवेरा
राह रोकेगा भला कैसे अंधेरा!..

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'

विषय-मार्ग/पथ

जीवन की कितनी कठिन डगर
आगे बढ़ता चल , तनिक न डर

कभी सुख की जीवन में छइयां
कभी दुख की जीवन में खाइयां

कई मोड़ अचानक पथ आते
कित जायें हम समझ नहीं पाते

हौंसले कभी ना हम खोयें
पथ में कंटक हम न बोयें

हिम्मत बटोर पथ चुनें शूल
हमसे ना हो फिर कोई भूल

सन्मार्ग चलें,जगत पीड़ा हर लें
नत-मस्तक सबका सम्मान करें

उड़ जायें फलक फिर छूने को
उत्तम रस्ता अपनायें जीने को

उर में कोई कसक नहीं होगी
फूलों की शैया जीवन में होगी

मन हो विशाल , नूतन-पथ पर
चलने में नहीं दिक्कत होगी

टेढ़ी-मेढ़ी कोई डगर नहीं होंगी
मंजिल फिर सरल सुगम होगी।।

सरिता गर्ग

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"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...