Monday, February 3

"शगुन "03फरवरी 2020

ब्लॉग की रचनाएँसर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-645
3/02/2020
"शगुन"
*
*********
झूम रही कांधे पर मेरे,कदम-चाल अभी बाकी है।
नन्ही-मुन्नी राजदुलारी,शगुन अभी तो बाकी है।।

पग-पग जब चल जाएगी
खुशियाँ मन-भर आएंगी
भोर-दोपहरी,साँझ-रात्रि
मटक-मटक इठलाएगी।

समय गया ये जल्दी बीत,राजदुलारी बनी कुमारी।
चिंता बाबा की नई हुई,शगुन अभी तो बाकी है।।

चंचल चितवन भोली-भाली
लाड प्यार में थी वो पाली
समय हाथ पीले का आया
शर्म,हया,मुख में थी लाली।
क्रमशः

विषय शगुन
विधा काव्य

03 फरवरी 2020,सोमवार

जग नियन्ता पालनकर्ता
यह जीवन भी एक शगुन।
पर सेवा उपकार करें सब
मन में मिलता अति शकुन।

पर्वो का यह देश निराला
शगुन मनाते हँसते हैं गाते।
क्षमा कर देते हम शत्रु को
आलिंगन भर गले लगाते।

राखी होली और दीवाली
राष्ट्र दिवस मिल नाचे गाते।
भारत की स्वर्णिम मिट्टी पर
हरियाली से मुल्क सजाते।

ये जीवन अति बड़ा शगुन है
मिलकर जिम्मेदारी निभाते।
जीवन काँटो की छैया पर
सुवासित हम पुष्प ख़िलाते।

आदान प्रदान शगुन जग
हँसते गाते इसे व्यतीत करो।
सुन्दर पावन इस जीवन में
प्रगति के पथ चरण धरो।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-03/02/2020
विषय-शगुन


सुनकर शगुन की शहनाई
झनक उठी झाझर की तरुणाई।
इन कोमल हाथों में मेरे।
मेहंदी का रंग उभरकर कर आई।।
स्वप्न शगुन हो जाते मेरे
मस्तक सहलकर मुझसे बोली पुरवाई।।
आज कहीं बज रही है
शगुन प्रणय की शहनाई।।
सुनकर शगुन की शहनाई

मेरी आंखें भर आई।।
अंबर बीच ठहर चंद्रमा लगा मुझे समझाने।
उसी छड़ टूटा नभ से एक तारा
तब मेरी तबीयत घबराई।।
मंदिम मंदिम व्यथित रागिनी
अश्रु की अविरल धारा बह आई।।
खलबली मची है एकांत निशा में
कैद हुई शगुन की शहनाई।
चंद बूंदें छलक उठती मोतियों से
इन नैनो अभ्र भाल .........

स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

शीर्षक- शगुन
प्रथम प्रस्तुति


शुभ कार्य करने से पहले
गणपति को मैं मनाता हूँ।
बनते बनते काम बिगड़े
हकीकत मैं तुम्हे बताता हूँ।

रिद्धि सिद्धि प्रदायक गजानन
को दस बार मैं ध्याता हूँ।
कोई कमी नही रह जाए
बड़ों को शीष झुकाता हूँ।

विघ्न विनाशक शुभ फलदायक
गौरी सुत कलश सजाता हूँ।
रूठी किस्मत के हर तार को
कोशिश भर मैं मिलाता हूँ।

यूँ तो डिग्री बहुत बटोरी
नौकरी से बंचित कहाता हूँ।
आत्मावलोकन की आदत
अब खुद में मैं पाता हूँ।

शगुन अपशगुन को भी 'शिवम'
मैं जीवन में अजमाता हूँ।
अपनी किस्मत से लड़ा हूँ
आज भी लड़ता जाता हूँ।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 03/02/2020

शगुन

है भारतीय संस्कृति में
शगुन शुभ उपहार
होता है छोटा
करता बड़ा उपकार

छोटे-बड़े
हर काम में
शगुन रखता
बहुत महत्व
होने वाले
सब काम को
देता अस्तित्व

देता है
शादी का
शगुन
रोमांच
होता हर काम
शुभ मुहूर्त में
आगे बढ़ती जाती
गृहस्थी
शुभ शगुन में

देते भावों के मोती
पाठक की
रचना पर शगुन
कर देते
टिप्पणी या पसंद
हो जाती
रचना अपनी धन्य

करों जिन्दगी में
हर शगुन का मान
मत तोलो इसे
रुपयों पैसों से
देता समाज में
ये सम्मान

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विधा-छंद मुक्त कविता
विषय-शगुन

जब धरा पर जन्म लिया
छठी पूजन पहला शगुन
कुछ थोड़ी जब बड़ी हुई मैं
अन्नप्राशन का हुआ शगुन
अपनों का हर काम बने
माँ दही-चीनी से करे शगुन
छोटी-छोटी बातों पर भी
वो करती हर बार शगुन
जन्म के साथ संस्कारों में
मेरे ह्रदय में बस गए शगुन
इनके साथ ही मैं बड़ी हुई
विवाह हुआ मिला शगुन
जो मुझे मिला वही बाँटा
हर बार किया मैंने शगुन
परंपरा चली आई सदा से
हर घर में सब करते शगुन
शुभेच्छा-कामना निहित
मंगल-ध्वनि स्वरूप शगुन
आशीर्वाद बड़ों का और
ईश्वर से मिलता है शगुन
©Anita Singh"Anitya"
Damyanti Damyanti 
विषय_शगुन |
होते सब कार्य शुभ दिन शुभ शगुन से |
ये है वैदिक संस्कृति संस्कार |

जन्म से अंतिम क्षण तक सजता
मानव जीवन कई शगुन संस्कारों से |आते जाते मौसम देते शगुन बहुतेरे
सजता अबंर चांद ग्रह नक्षत्र सितारौ से |
हरियाली से सजे धरा शगुन खूब मनाते |
बेटी हो या बेटा हर पल शगुन दे करते विदा |
चाहे जाये शिक्षा लेने या व्यापार
दही गुड खिलाते है
पहले मनाते विघ्नहर्ता को पीछे अन्य |
आई बेला शादी करते कार्य शगुन दे
रोली चंदन चांवल से करते भाल तिलक पर
देते केलीफल हाथ,त्योहार पर भी यही होते शगुन |
आदिकाल चली आई प्रथा शुभ ये |
है सुखद ये मिलता संतोष अपार |
मंगल ध्वनि हो ,हो मंगल गीत से
ले गुरुजन बडे सब से आषीश लेते
होते सब सफल यही शगुन संदेश |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
विषय : शगुन
विधा : कविता

तिथि : 3.2.20

शब्द अपार हमारे पास।
क्युं न चुनते हम, दिल छूने वाले शब्द-
शब्दों से सब का दिल छूने का अपनाएं गुण
आओ आज ऐसा करें शगुन।

उद्गार अनेक हमारे पास-
कटु-तिक्त मिश्री रहित।
उदगारों में मधुरता लाने का,अपनाना है गुण
आओ आज ऐसा करें शगुन।

हृदय समाया स्नेह अपार-
पर क्यों है ताले में बंद?
ताला तोड़, बंधन खोल, अतुलनीय है ये गुण।
आओ आज ऐसा करें शगुन।

ज्ञान अपार है हमारे पास
क्यों तर्क में हैं करते व्यर्थ?
एक-मन, एक-मत,करें सार्थक इसका उपयोग-
आओ आज ऐसा करें शगुन।

धर्म अनेक हमारे पास
क्यो दंगों से फैलाते अधर्म?
धर्मों की मूल भावना को,समझ कर एकता बुन।
आओ आज ऐसा करें शगुन।

गुण अनेक फैले हैं पास
क्यों न लेता इनको चुन!
हर अध्याय से अच्छे गुण, चुन-चुन जीवन बुन-
आओ आज ऐसा करें शगुन।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विषय-शगुन।
विधा-काव्य। स्वरचित।
शगुन की बजी बधाई ।
कि शुभ घड़ी आई,हो ..हो...हो शुभ घड़ी आई।
बाजे ढोल बजे शहनाई।
कि शुभ घड़ी आई,हो...हो...हो शुभ घड़ी आई।।
लगता चंदन, चढ़ती हल्दी
हाथों में रचती पिया नाम की मेंहदी
गोरी जायेगी परदेश।
कि शुभ...

मन से मन के तार जुड़ेंगे
घर से घर परिवार मिलेंगे
दो दिल होंगे एक।
कि शुभ.......

बरसों से जो देखे सपने
सब सच होगें मां के अंगने
पिया मिलन का आया संदेश।
कि शुभ .…...

प्रीति शर्मा"
पूर्णिमा"
विषय , शगुन
दिनांक, ३,१,२०२० .

वार, सोमवार

शुरूआत किसी अच्छे काम की, अच्छे माहौल में हो जाये,
शगुन उसे ही कहते हैं हम, जब आशीष बड़ों का मिल जाये ।

जीवन पथ पग पग पर बाधित, मन संशय में घिरता जाये,
हिम्मत और धीरज ही ज्यादातर कर्म साधना में काम आये ।

शगुन परम्परा हम भारतीयों की, शुभकामनाएं इन्हें कहा जाये ,
सदियों से प्यार और स्नेह हमेशा, विभिन्न रूपों में बाँटा जाये।

मिष्ठान नारियल फल आभूषण, कई रूपों में प्रगट हों कामनाएँ,
उज्ज्वल भविष्य बेहतर जीवन के लिए, होतीं हैं ये मंगल कामनाएं।

खुश रहना शगुन है जीवन का, हम हर हाल में खुश जब रह पायें,
कुदृष्टि अपशकुन सब गायब हों, हम चैन सुकून तब ही पायें।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
तिथि _3_2_2020
वार_सोमवार

विषय _शगुन

शुभ घड़ी आई देखो शुभ घड़ी आई
शगुन की मेहंदी से
हाथ रचे
नैनो मे सपने हज़ार बसे
देख दर्पण गोरी शर्माई
शुभ घड़ी आई देखो शुभ घड़ी आई
पहन शगुन का जोड़ा दुल्हनिया
करती सोलह श्रृंगार
देख कर बेटी का रूप
माँ जाए बलिहार
घूँघट में मन ही मन
गोरी लजाई
शुभ घड़ी आई देखो शुभ घड़ी आई
गूँज रही शहनाई शगुन की
खुशियाँ छाई चहुँ ओर
समेट कर आशीर्वाद सभी का
हुई बेटी की विदाई
शुभ घड़ी आई देखो शुभ घड़ी आई

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी

3.2.2020
सोमवार

शीर्षक -“ शगुन”
विधा - मुक्तक

शगुन

(1)
बेटी का आना जीवन में,
उन्वान् ख़ुशी का होता है
बेटी से ही अपने घर में, अरमान ख़ुशी का होता है
बेटी हर दर्द समझती है,बेटी हर पीड़ा बाँटती है
है #शगुन सदृश दे दी जाती
अभिमान ख़ुशी का होता है।।

(2)
शगुन है बेटियों का जन्मना
करें हम बेटियों की कामना
न मारें बेटियाँ,न मन को अपने
रहें ख़ुश, ख़ुशियों की ही भावना ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार

विषय शगुन
विधा कविता

दिनाँक 3.2.2020
दिन सोमवार

शगुन
💘💘💘

मैं निकलता हूँ घर से ,दोनों नन्हीं मुस्कराती हैं
मुख्य दरवाजे़ पर आकर, मस्ती में हाथ हिलाती हैं
निश्छल उमंगों की धारा,मन को तर कर जाती हैं
सच बोलूँ तो इसमें वो,नया शगुन कर जाती हैं।

प्रबिसी नगर कीजे सब काजा में,यह भी जोड़ लेता हूँ
और काम की सफलता को, मैं राम पर छोड़ देता हूँ
अपनी अपनी बात है,अपना अपना विश्वास है
शगुन होता राम से,और उसी में बसती श्वास है।

शगुन! जब बच्चा खुश हो, हाथ हिला दे
शगुन! माँ जाते समय ,दही चीनी खिला दे
शगुन!जब नव यौवना, देख कर खिलखिला दे
शगुन! जब कोई स्मृति मन को,झिलमिला दे।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि
तिथि-3/2/2020/सोमवार
विषय-*शगुन*

विधा-गीत (28)

मंगल गान करें हम सब ही, होते शगुन शुभ द्वार।
श्री गणेश सुखदेव मनाऐं, आऐं सभी हरिद्वार।

कलश रखें मंगल सब घर पर, रिद्धिसिद्धि बुलवाऐं।
करें अप्सरा नृत्य यहां पर, मंगल थाल सजाऐं।
आपस में ‌करें मधु व्यवहार सब सुखी सुखद विचार।
होते शगुन शुभ द्वार---------

मेंहदी रची सखी सहेली, गीत शगुन के गातीं।
नाचें कूदें सभी सहेली, अंग ‌ अंग लचकातीं।
आज सजनिया की शादी है, करती सभी मनुहार।
होते शगुन शुभ द्वार-----------

धेनु पिलाऐं दूध बछिया को, शंख नाद सब होते।
परिणय होता जब बिटिया का,मातपिता खुश होते।
बरात बराती आए द्वारे , करें कोलाहल यार।
होते शगुन शुभ द्वार---------

पड़ी भांवरी सियाराम की, शगुन हुऐ सब सुन्दर।
हुऐ प्रफुल्लित नर नारी सब, हुई लगन सब अन्दर।
हुई बिदाई की जब वेला, बहती अंसुअन धार।
होते शगुन शुभ द्वार-----------

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
विषय-शगुन
दिनांक ३-२-२०२०


शगुन ले जो चोरी कर,तो तू जेल ही जाएगा।
बिन शगुन कर भला,सब अच्छा हो जाएगा।

मात पिता आशीष ले,और संस्कारवान बन।
तू एक दिन,देख निश्चय ही मंजिल पाएगा।

जैसा बोया वैसा काटा,जग यह रीत पुरानी।
कर्मानुसार ही जग में,मनु सदा फल पाएगा।

देख तुझे,उदास चेहरा कभी जो खिल गया।
तो समझ मिला शगुन, तेरा काम हो जाएगा।

शगुन के भरोसे रहा,वो न कुछ कर पाएगा।
बुजुर्ग घर हँसते मिले,घर जन्नत बन जाएगा।

आज तू जो भी है,माँ आशीष शगुन समझ।
तेरी यशो गाथा,कभी कोई ना बिसराएगा।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-३/२०२०
शीर्षक"शगुन"


शगुन के साथ शुभ काम का आगाज
होते सदा कल्याणकारी
"राहुकाल" को दे त्याज्य
फिर करे शुभ काम भारी।

शगुन के उपहार होते खास
इसे रखे सदा संभाल
माँ का दिया आशीर्वाद
शगुन के रूप में देते साथ।

अपना शगुन के लिए
क्यों करे दूजे का नुक़सान?
आराधना करे जो शुद्ध मन से
होंगे पूरे अधूरे काम।

हर अंचल का अलग शगुन
सर्वमंगल करे एक शगुन
हो सकारात्मक सोच
और हो बोली में मिठास।

लोभ क्रोध से दूर रहे तो
बनेंगे सदा बिगड़े काम
बेईमानी, धोखाधड़ी से
कभी नही होते पूरे काम।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय-शगुन
विधा-मुक्त

दिनांक--03 /02 /2020

जब भी गुजरती हूँ कभी
उस बूढ़ी दीवारों वाले मकां
के सामने से
इक हाथ ज़रा सी मिट्टी से
तिलक लगा शगुन में
आशीर्वाद देता है

वो दीवारें कभी थीं जवां
हर जात-पात के नाम से
अनजान सांझा- आँगन
साँझे चूल्हे वाला ,सबका साँझा

कौन सलमा,कौन कमला
किसे अब्बू कहें,कौन है बाबा किसका
नहीं चलता पता किसको कि,
किस घर में किसका अभाव है

दीवारें होकर भी नहीं के
समान थी
हर घर की मानों एक आँख,
एक ही जुबान थी

ना जाने कहाँ से विष जाति का घुल गया था
दीवारों में दरार थी आ गई
चूल्हे बंटे,आँगन भी थे बंट गये

वक्त के साथ ज़हर का दरिया
नसों में भरता गया
बच्चों के नाम और कपड़ों में
वैमनस्य बढ़ता गया

माँ बनी अम्मी,अम्मी माँ बन गई थी
आज दोनों ही हत् प्रभ सी फिर अपने रुप में आ गईं

मगर वो अकेली आँख आज भी दीवार में है अटकी हुई
आशीश की वाणी मिट्टी में
है घुली हुई

जात-पांत में जबसे घर बँट गया
एक आँसू आँख में अटक गया
ढूँढनें वही आँसू लौटती हूँ मैं
शगुन में आशीर्वाद देती है
बूढ़ी दीवार की मिट्टी।

डा.नीलम

दिनांक -3/2/2020
विषय- शगुन


अवसर चाहे उत्सव का हो
या हो किसी भी संस्कार का
निज भाल पर तिलक लगाना
शगुन नाम एक पुण्य कार का।

असीम मंगल कामनाएँ छिपी
इस शगुन के अनंत विस्तार में
सकारात्मक ऊर्जा संग दमकती
पूर्णता रंग उज्ज्वल संसार में।

भाव आस्था और श्रद्धा का
सदा इसमें समाहित रहता है
निज देश की संस्कृति का
फ़लक इसमें चमकता हैं ।

पल -पल जीवन ढलता जाए
आओ मिलकर इसे सँवार लें
मानव -धर्म का शगुन करके
अमानवता को आज बुहार लें ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘

3/2/20

तेरे शगुन की
वो थाली
माँ कितनी थी
शक्तिशाली
वो रीति रिवाज़े
मन को है भाये
तू बहुत याद आये
परीक्षा हो
या हो नौकरी की
तलाश
दही का चटाना
ढेरो शगुन कराना
तिलक लगाना
वो थी तेरी ममता
या थी तेरी शुभता
पर माँ तेरी
अनुपस्थिति
आज भी शगुन
के रूप में
उपस्थित है
मेरे ह्रदय में

स्वरचित
मीना तिवारी

3.2.2020
दिन -सोमवार

शीर्षक-शगुन
**********************
बाल्यावस्था से देखा था शगुन करती माता को ,
घर से जब भी बाहर पापा जाते,
शगुन का टीका ,दही चीनी से मुह मीठा करती माँ,
दरवाजे के बाहर पानी से भरी बाल्टी माँ रखवाती ,
शगुन तौर पे जतरा पत्रा पापा भी थे दिखलाते ,
मन तसल्ली से भर जाता था पापा सकुशल आ जाएंगे,
माँ के साथ हमें भी रहता पापा कब घर आएंगे ,
देखकर पापा का घर वापस आना कितने खुश सभी हो जाते थे ।
यही परम्परा ,यही संस्कृति हमारे देश की शक्ति है,
शादी ,और त्योहारों में भी चूक न कोई हो जाए ,
शगुन के सारे रिवाजों को हम उसी श्रद्धा से निभाते हैं।
फिर भी हमें अंधविश्वासों में पड़ना नहीं यह गौर करें,
कभी जरूरत पड़ने पर हम ,नई सोच से आगे बढ़ें,
चाहें बिल्ली रास्ता काटे ,और यात्रा हो अनिवार्य,
राहें स्वयं प्रशश्त करें ,आत्मविश्वास हो मन में सदा ,
दृढ़ संकल्प हो ,सच्ची लगन हो ,ईश्वर करे सदा भला।
***********************
स्वरचित-- निवेदिता श्रीवास्तव
जमशेदपुर ,झारखण्ड

दिनांक-3/2/2020
विषय-शगुन

कहाँ गए वे दिन?
शगुन मनाते थे, मंगल गीत गाते थे।
ढोलक बजा-बजाकर उत्सव मनाते थे ।
लोक गीतों की धुन पर झूम-झूम नाचते थे ।
कहाँ गए वे शगुन गीत ?
कजरी ,सोहर, बन्ना-बधाई
गाओ बहना ये शुभ घड़ी आई।
कहाँ गए वे शगुन विचार ?
घर की देहली पर पानी का घड़ा रखना ,शुभ यात्रा का शगुन मनाना।
नजर उतारना ,दही चीनी खिलाना
कितना संबल मिलता था इन शगुन संकेतो से ?
अब तो ये सब पिछडे़पन का प्रतीक बन गए है ।
हमारे स्तर के विपरीत हो गए हैं।
लगता है प्रगतिशील हो गए हैं हम ,
दुनिया की भीड़ में कहीं खो गए हैं हम ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...