Saturday, February 22

"हस्त,हाथ,भुज"19फ़रवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-662
विषय हस्त,हाथ,भुज
विधा काव्य

20फरवरी 2020,गुरुवार

बीस भुजायें थी दशानन के
अहंकार अति भरा हुआ था।
यज्ञ विनाश किया संतो का
वह असत्य था अतः मरा था।

चक्रवती बने भुजबल से ही
शूरवीर कहलाये रणकौशल।
असंभव को संभव कर दिया
भुजबल से किया विश्व रोशन।

सागर तल से मोती खोज लिये
दुर्गम गिरि पर मार्ग सजा दिये।
अपनी लंबी भुजा से मानव ने
नभ में प्रक्षेपास्त्र स्थापित किये।

फौलादी हाथों के बल पर ही
सदा सफ़लता पाई मानव ने।
अदम्य साहस भरकर सीने में
विजय प्राप्त की नित दानव से।

हल्दीघाटी समर भूमि मेवाड़ी
कथा कह रही महाराणा की।
भुजबल के रण कौशल बल से
जय जयकार हुई थी राणा की।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय -हाथ/हस्त
प्रथम प्रस्तुति


किन कामों से लाभ होगा
और किन कामों से हानी!
बैठ गणित लगाते रहे
कितने नही यहाँ ज्ञानी!

हाथों की रेखाओं की
तस्वीर कौन ने जानी!
स्वेद बहाया तब पाया
हो बाबुई या किसानी!

पूछो जाकर किसान से
हस्ती यूँ न कहायी शानी!
गर्मी शीत कभी न देखी
गँवायी खेत में जवानी!

वही हाथ ईश्वर तक पहुँचे
जिनकी शुद्ध पवित्र कहानी!
वरना दौलत शुहरत भी
कहायी यहाँ अकुलानी!

'शिवम' हाथ है कर्म प्रतीक
बनाओ निज नेक रवानी!
खाली हाथ ही आए सभी
है खाली हाथ ही जानी!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 20/02/3020
बूंदों में बरसातो मे इन काली ठंडी रातों में।
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।


सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।

जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।

वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।

नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।

विपिन सोहल। स्वरचित
िषय-हस्त/हाथ/भुज
विधा-हाइकु।

1 वरद हस्त
प्रफुल्लित माँ पिता
डोली विदाई।।🙌

2 हाथों में हाथ
साक्षी भोर का तारा
दुल्हा-दुल्हन।।🤝

3 नव यौवना
चंचल चितवन
कंगन हाथ।।📿

4 शौर्य भुज का
इतिहास अमर
झांसी की रानी।।🏇🏿

स्वरचित✍🏻
सीमा आचार्य
दिनांक-20/02/2020
विषय- हस्त /हाथ


हाथो के मौन निमंत्रण.......को

अनचाहे मन, चाहे तो पढ़ लेना।
हाथो के मौन निमंत्रण को।।
हर धड़कन पर नाम तुम्हारा।
खुले अधरों के आमंत्रण को।।
कनक मंजरी कर्ण के।
नछत्र तुम्हारे नित्य-निरंतर।।
अधर चांदनी पी रहे।
उम्मीदों के नव अभ्यंतर को।।
स्मृतियों की बाहों में।
यामिनी व्याकुल खड़ी सी,
चांदनी सेज सजा रही,।
वेदना कसकती इतनी भयंकर।।
अंग अंग नव छंद आज।
देख पुकार उठी धड़कन,
रुधिर में बढी रक्त की लालिमा
सांसो का क्रम हुआ इतना परिवर्तन।।
कष्टों की कलमुँही रात में।
आधी रात की काली सच ने
वेदनाओं ने रचे नए-नए स्वयंवर।।
खुलेआम जालिम दुनिया ने।
हंसते हंसते आंसू लड़ियों को लुटे।
अगणित बूंदे गिरी पृष्ठ पर
भावनाओं के कोरे झरने फूटे।।
नहीं मिला कोई भी अब तक अपना प्रियवर।
साक्षी रहे कलयुग के अवनी और अंबर।।
जब तक रहेगा हाथो का साथ तुम्हारा।
प्यार के सरहद पर खड़ी रहूंगी
जलते दीपक की तरह तत्पर।।

स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
विषय-हाथ/हस्त/भुजा

जैसे पेट दिया ईश्वर ने
ऐसे ही दो हाथ दिए है
कर्मठ बन कर तुम जीना
मेहनत की अपनी खाना
रिश्ते कभी बनाओ जग में
सदा हाथ तुम पकड़ो
प्यार से अपने सींचो इनको
कभी न इनसे झगड़ो
दुख के सागर में डूबे कोई
हाथ थाम कर पार लगाओ
उसकी टूटी नैया के तुम
खुद नाविक बन जाओ
प्रेम गली से जब गुजरो
हाथों की कीमत जानो
बाहें डाल गले में प्रिय के
रिश्तों को सहला दो
नील गगन में उड़ जाओ
एक पंछी बन कर घूमो
पकड़ो चाँद सितारे नभ के
आसमान को छू लो
हाथ दिए हैं ईश्वर ने प्रिय
देने को हाथ उठाना
रूखी -सूखी तुम खा लेना
हाथ नहीं फैलाना
दीनों को कभी आगे बढ़कर
अपने गले लगाना
लाठी उनकी बनकर तुम
फिर मददगार बन जाना
अपने भुजबल ही तुम
इस देश की रक्षा करना
वीर सपूत देश के सच्चे
माँ का कर्ज चुकाना।।

सरिता गर्ग
दिनांक 20/02 /2020
विषय- हस्त/ हाथ


वेदना, व्यथा ,पीड़ा मानस की,
बार-बार अंतर्मन को तड़पाती है।
लेखनी हाथ में आकर के,
स्वयं विवश हो जाती है।।

चाह रहा मन ,मिल जाए कोई
जिससे अंतर्मन की कथा कहूं।
बिकते है कैसे पुरस्कार ,
इनकी थोड़ी कथा कहूं।।

अपना समाज अपमानित हो ,
मेरा ऐसा भी उद्देश्य नहीं ।
लेकिन हाथ में हाथ धरे ,
बैठे रहना मेरा ध्येय नहीं।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

विषय : हाथ, हस्त
विधा : कविता

तिथि : 20.2 2020

जब हाथों में हो हाथ
और सजना का हो साथ
दुनिया सारी जैसे मुट्ठी में
हर्षित समस्त कायनात।

करती हूं दुआ दिन रात
भाग्य का लगे नहीं घात
रब -जी न देना विछोड़ा
रहूं पिया संगजन्म सात।

सुनो रे फूलो,सुनो रे पात
महकना तुम सारी रात
ऊपर चंदा और नीचे धरा
अंथेरों को लगाना लात।

जब हाथों में हो हाथ
और सजना का हो साथ
दुनिया सारी जैसे मुट्ठी में
हर्षित समस्त कायनात।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
तिथि -20/2/2020/गुरुवार
विषय-*कर/ हाथ/हस्त/*

काव्य

आप हाथ जगन्नाथ
मस्तिष्क एक हाथ दो
अच्छा उपयोग करें
नहीं हाथ पर हाथ धरें
खाली हाथ कर्मों बैठें।
जन्म लिया है हमने
जिस धरा पर
उसपर बोझ नहीं बनें।
अपने हाथ की रेखाऐं
स्वयं अपने हाथों से
हम-तुम ऐसी बनाऐं कि
हस्तरेखा विशेषज्ञ
देखकर दंग रह जाऐं।
कर कमल हमें दो दो
प्रभु ने दिये हैं।
अपने वरदहस्त हमारे सिर पर
सदा से रखें हैं
फिर भी पता नहीं क्यों
हम तुम डरें हुऐ रहैं।
चलो आगे कदम बढ़ाएं
सुमार्ग पर चल हम
अपनी और समृद्ध देश की
किश्मत बनाऐं।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
20 /2/2020
बिषय,, कर ,,हाथ,, हस्त

हाथ तो मिलते पर मन नहीं मिलते
कलियां मुरझा गईं पुष्प नहीं खिलते
मधुर संबंधों में वो बात ही नहीं है
अब वो पहले जैसी मुलाकात नहीं है
हस्त भी बदली रिश्ते नातों के संग संग
आपसी तालमेल का हो चुका है मोह भंग
आज तो उखड़े उखड़े से सरकार नजर आते हैं
बदले हुए आसार नजर आते हैं
किसी की मौत का नहीं होता गम
मेहमान नवाजी भी हो गई कम
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक, २०,२,२०२०.
दिन, गुरुवार.

विषय, हस्त, हाथ, भुज

होता शर्मसार वही,
जो फैलाये हाथ ।
इज्जत पाने के लिए ,
खुद्दारी हो साथ ।।

काम काज करते नहीं,
कोस रहे दिन रात।
हाथों का सब खेल है,
किस्मत झूठी बात।।

हाथ बढ़ा कर दीजिए ,
सहायता असहाय ।
जीवन जीने का यही,
सबसे सरल उपाय।।

हाथ मिले किस काज हैं,
सोच समझ ये बात ।
निर्बल की रक्षा करें,
दुश्मन को दें मात ।।

हाथ जोड़ विनती यही,
सुन लें जो भगवान।
लेखन अपना सफल हो,
मिले दया का दान ।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

तिथि _20_2_2020
वार _गुरुवार

विषय _हाथ

हाथ खाली हैं
मगर जब उठते हैं
दुआओं के लिए
तो सुकून भर देते हैं मन मे
हाथ खाली हैं
मगर जब देने पे आते हैं
किसी गरीब को
तो झोली भर देते हैं
खुशियों से
हाथ खाली हैं
मगर जब थाम लेते हैं
हाथ किसी बेसहारे का
तो आसान हो जाती हैं
सभी राहें
हाथ खाली हैं
मगर जब उठा लेते हैं अस्त्र
तो दुश्मन भी लग जाते हैं गले

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी

भावों के मोती।
शीर्षक-हाथ।
स्वरचित।


हाथ हैं सृजन के,
जो चाहे सो गढ़ लें।
पशु बनायें चाहे देव
-ईश्वर भी गढ़ लें।।

ये हैं कुंभकार जिनकी
माटी ही है रोजी-रोटी।
ईश कृपा से रोज बनाते
बर्तन,गमला या भिस्ती।।

दीवाली के दिये बनाते
लक्ष्मी गणेश की मूर्ति।
नवरात्रों में मां दुर्गा की
बड़ी धूमधाम है रहती।।

एक सृजनहारा है ऊपर
हम सबको जो रचता।
जैसा जी चाहा रच डाला
मोटा-पतला या छोटा।।

सबकी किस्मत उसके हाथों
जो चाहे सो रच दे।
पर पहले तुम ये भी सोचो
करम तुम्हारे कैसे?

जैसे कर्म किये थे तुमने
भोगोगे अवश्य तुम वैसा।
नहीं हमें कुछ भी देता ईश्वर
अपने ही मन से लेखा।।

तब फिर मतलब क्या
आखिर में इस सबका?
हमारे अपने ही हाथों में है
सबकी किस्मत की रेखा।।
*****

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
20/02/2020

20/2/20

तुम्हारे जाने से पहले
कितनी बाते करनी थी।
कितना कुछ जानना था।
मैं बोलने में असमर्थ थी।
वर्षोसाथ जीने की तमन्ना थी।
पर ईश्वरको कुछ और मंजूर था।
बताना चाहती थी कुछ तुमसे
पर खो चुकी थी शायद सामर्थ
पता नही को न मैं या तुम
तुम प्रतिदिन आस्वासन दे चले गए।
तुम्हारे सिर पर हाथ फेरते वक्त देखा।
तुम छिपा रहे थे कुछ मुझसे
जीना चाहते थे जीने की ललक थी।
मेरे हाथों में आज भी उन हाथो की गर्माहट
अपरचितो के समक्ष कुछ कह न सके
अकेले अश्रु कणों के अविरल प्रवाहो सङ्ग
तुम्हारी तैरती समृतियो मे हर पल मरती हूं।
तुम्हारे सङ्ग मेरा सन्सार चला गया
बस एक ही कसक काश कह कर जाते।
किसी के बिना जिया कैसे जाता
ओर गये तो लौटो गे कब तक

स्वरचित मीना तिवारी

विषय-हाथ
विधा- मुक्त

दिनांक-20/02/2020

हाथ मिला कर, गले लगाया
गले लगा खंजर घोंप दिया
मेरे देश में इंसान ने इंसान के
दिलों में भर खौफ दिया

हँसता है इंसान चेहरे पे मुखौटे लगा-लगा
दुश्मनी हाथों ने तो हृदय का
लहू तक निचोड़ लिया

हाथ युवाओं के संवारते गेसू कहाँ अब
अब तो सरेआम चीरहरण द्रुपदाओं के करने लगे हैं।

डा.नीलम

तिथि- 20/02/2020
विषय- हाथ /हस्त/भुजा


आज फिर आ गयी माँ की याद।
दस्तक देने लगा हृदय में माँ का प्यार। ।

बहुत याद आने लगा वो मिट्टी का चूल्हा।
लकड़ियाँ जला कर माँ जिसपर सेंकती थीं रोटियाँ। ।

नर्म मुलायम हाथों की स्वाद भरी रोटी।
अब कहाँ नसीब माँ के हाथ की रोटी। ।

बाजरा, मक्का, ज्वार वाली रोटी!
माँ की हथेलियों की थाप वाली रोटी। ।

तरसता है मन खाने को वो प्यार भरी रोटी।
आज याद आ रही है माँ के हाथ की रोटी। ।

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
विषय..हाथ/हस्त

हाथो मे हाथ हो।
प्रिय तेरा साथ हो।

हरदम संग रहे हम,
ना कभी विरह हो।

जोड़े मालिक के आगे
अपने दोनो हाथ हम।

जीवन मे हर मोड़ पर
खुशी मिलेगी तब।

जब हम दुआ लेगे,
देकर अपने हाथ से
किसी गरीब को धन।।
स्वरचित
रीतू गुलाटी..ऋतंभरा
आज का विषयः-हस्त हाथ भुज

पकड़ाया था आपकी माताजी ने मेरे हाथ मैं आपका हाथ।
फरमाया उन्होंने है तुम दोनों का जन्म -जन्म का साथ।।

छोड़ना नहीं कभी दोनों में एक भी कभी दूसरे का हाथ।
सुख दुख दोनो में सदा ही देना एक दूसरे का ही साथ।।

करेंगे जीवन में बहुत से शत्रु छुड़वाने का तुम्हारा हाथ।
करना नहीं भूल तुम कभी मानने की उनकी कोई बात।।

कस कर पकड़े रहोगे तुम दोनो अगर एक दूसरे का हाथ।
जीवन में तुम्हारे ऊँची रहेगी सदा तुम दोनों की ही बात।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
हाथ / हस्त

नहीं झूकता
शीश गर हैं
हाथ मजबूत

लोह हस्त
तोड़ सकते हैं
पहाड़ भी

नमन करते
हाथ
ईश को
पाते आशीर्वाद
रहते खुश

न हों
इतने मजबूर
फैले नही
हाथ माँगने
बने सक्षम
भरे झोली
सब की

देते ईश्वर
इतना सब को
लें खुले हाथ से
भरे आंचल अपना


स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

दिनांक 20-02-2020
विषय-हाथ/ हस्त


भाग्य उकेरता है हाथों से ,
मानव तू स्वयं दिन रात ।
कर्मठ हाथों के बल पर ही,
मिले सफलता की सौगात।

मेहनत के बल पर ही नित,
हस्त लकीर बदलती है।
पुरुषार्थ ही सर्वोपरि सदा,
हाथों से किस्मत बनती है।

सिर्फ हाथों की लकीरों में,
नहीं छिपी होती तकदीर ।
कर्मशील मनुष्य के हाथ में,
सदा सफलता की प्राचीर ।

अभ्यास लगन परिश्रम से,
विजय नहीं कभी थमती है।
अपना हाथ हो जगन्नाथ तो,
सरसों हथेली पर जमती है ।

दुआओं में ही उठें यह हाथ,
ऐसे हम सब बन पाएँ ।
लेना नहीं सिर्फ देना जानें,
उपकारी हस्त बन जाएँ ।

इतिहास है साक्षी हाथों से,
तकदीर की राह संवरती है।
बिन हाथों के पुरुषार्थ से ,
भंवर में ही नाव ठहरती है।

हाथ बढ़ाओ मदद में सदा ,
एकता की बनती है मिसाल।
लाभ सदा ही मेलजोल में ,
हल होते हैं कठिन सवाल ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली

दिनांक - 20/02/2020
विधा - दोहे

शरीर के हर भाग का, होता अपना काम।
लेकिन हाथ विशेष है, करता सबका काम।

कर्म करे कोई मगर, बिना हाथ ना होय।
चाहे हो सत्कर्म या, पाप कर्म ही कोय।

हाथ जोड़ विनती करे, जल भी देते ढार।
दुराचार को देख के, करे मुष्ट प्रहार।

करतब कोई ना कर सके, बिना कर के होए।
आशिष स्नेह के वास्ते, माथे हस्त होए।

स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
दिनांक 20-02-2020
विषय-हाथ


हाथ में लिखा होता है
सबका ही तकदीर
जो है पढ़ना जानते
पढ़ लेते वह लकीर.. 1

हाथ मिलाकर जो चलते
बनता उनका सब काम
लिखा अगर तकदीर में
बढ़ता जाता फिर नाम. 2

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
दिनांक -20/2/2020
विषय - हाथ / हस्त


तेरे दोनों हाथ वरदान है
पुरुषार्थ तेरा अभिमान है
इनसे ही तेरी पहचान है
सफलता का भी गान है ।

क़दम तेरा लड़खड़ाए नहीं
हौंसला तेरा डगमगाए नहीं
मुसीबतों से तू घबराए नहीं
याचना में तू गिड़गिड़ाए नहीं ।

ताकत इन हाथों की पहचान
जो वीराने में ला देगी तूफ़ान
पत्थर से भी बना देगी भगवान
हरदम है करता जिसका ध्यान ।

तेरे हाथों में कला प्रतिमान
प्रतिभा का होता है सम्मान
श्रम की बूँदों का अभिमान
भाग्य-रेख का है जयगान ।

एक भाग में लक्ष्मी जी बसती
सरस्वती भी संग- संग रहती
ब्रह्मा जी की यहाँ उपस्थिति
वरदानों की गरिमा-सी जँचती ।

दोनों हाथों से हो ऐसी वंदना
किसी से भी ना करो वंचना
भूलवश ना करो आलोचना
सुख-दुख सत्य समालोचना ।

अपने हाथों से श्रम करना है
भाग्य स्वयं का तुझे लिखना है
बल का मान जग में बढ़ाना है
भाल पर टीका तुझे सजाना है ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
दिनाँक-21/02/2020
विषय:-हाथ
िधा-छंदमुक्त कविता

ये हाथ...
सिर्फ हाथ ही नहीं,
श्रम की पहचान है,
आँसू पोंछते हैं किसी के,
तो बताते हैं कि कर्म महान है...l
ये हाथ...
बातें भी करते हैं,
प्रेम का सहारा भी बनते हैं,
जब खनकते हैं चूड़ियों से,
पमन का ईशारा भी करते हैं l
ये हाथ.....
बचपन को खिलाते हैं,
भरोसे की अंगुली थामते हैं,
लुटाते हैं अनुभव आशीष,
कलम को पकड़ना सिखाते हैं l
ये हाथ.....
सोच का व्यवहार है,
फूल-पत्थर का चुनाव है,
कहीं करे सृजन,
तो कहीं करे विनाश हैl
ये हाथ.....
ममता की छाँव है,
पिता की मीठी डाँट है,
रक्षा कवच है बहिन का,
तो भाई का दुगुना साथ है l
ये हाथ.....
सिर्फ हाथ ही नहीं,
भावनाओं का संसार है,
इसके स्पर्श में भी ऊर्जा है,
जो भरते रिश्तों में प्यार है l
ये हाथ....

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद

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