Friday, February 7

"चूड़ियां,कंगना"7फरवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-649
विषय चूड़ियां,कंगना
विधा काव्य

07 फरवरी 2020,शुक्रवार

हर देवी का कंगना गहना
कंगना कर की शान बढ़ाता।
स्वर्णिम हीर जड़ा है कंगना
कर में कंगना अति सुहाता।

नील लाल हरी पीत चूड़ियां
खनक खनक हाथों में खनके।
कर कमल की शौभा कंगना
दिव्य प्रभावती हाथ में दमके।

रोज लखारा लाख चूड़ियां
हीरे मोती जड़ता अनवरत।
यह सुहागन का प्रिय गहना
इस हेतु करती है नित व्रत।

कंगना कर श्रृंगार सुहाना
कंगना ऊपर जग दीवाना।
कंगना की हर दुकान पर
जमे जमावड़ा प्रिय जनाना।

हरी हँसावे लाल लजावे
चूड़ियों का हर रंग महत्व है।
रंगबिरंगी चूड़ियां चमके नव
दीवाना हर नारी जगत है।

कंगना रस श्रृंगार सुहाना
बाहु पाश में कंगना भरता।
नारी नर के हर क्लेश को
आगे आकर कंगना हरता।

स्वरचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

चूड़ियाँ

नारी सुहागन,

चूड़ियाँ मनभावन ।
रंगी बिरंगी ,
देखती हैं ।
चुनती हैं पसंद का,
अपने रंग ।
देती हैं मन आनंद ।
समा जाती हैं,
चुड़ियों के रंग में ।
बिंदीया,साडी,पायल ।
एक ही रंग ।
भाती हैं,
प्रिया मन ।
खुशी का एक क्षण ।
चूड़ियाँ बनती,
जब कहानी ।
याद आती,
सदियों पुरानी ।
दी जिसने कुर्बानी ।
सामने उभर आती,
लक्ष्मी,पद्मावती रानी ।
बेजबान हो जाती चूड़ियाँ ।
जब छा जाती,
हैवान पर हैवानी ।
मनभावन चूड़ियाँ,
हो जाती मजबूर ।
टूटकर बिखरती,
टुकडो में दूर दूर ।
सपने हो जाते,
सदा के चूर चूर ।
होती समाहित,
मिट्टी में ।
या सिसकती रहती,
कोने में ।

 प्रदीप सहारे
नमन "भावों के मोती"
दिनांक-०७/०२/२०२०

आज का कार्य- चूड़ियाँ/कंगना

चूड़ियाँ ले लो,चूड़ियाँ....
की आवाज सुनकर
पत्नी बाहर आई
बोली जरा इधर आना चूड़ी वाली
ये चूड़ियाँ क्या भाव देती हो?
ले लो दीदी बहुत सस्ता है
पच्चीस रुपये की बारह
पत्नी न न ये तो बहुत दाम है
न दीदी इस महंगाई में कुछ बचता नहीं
बहुत सारे टूट जाते हैं ,घाटा हो जाता है
चलो कम कम कर देंगे
कौन कौन सी लेनी है
पत्नी ये लाल वाली और ये हरी वाली दो-दो दर्जन
तभी मेरी छुटिया को क्या सूझी
कि अड़ गई मैं भी लूँगी लाल चूड़ी
बच्चों की नाप की नहीं है
पर चूड़ीवाली ने कहा-
हाँ दीदी छोटी चूड़ियाँ है पर इतनी छोटी नहीं
अरे पहना दे,पहने दे
चूड़ीवाली ने उसके हाथों में वो चूड़ियाँ डाल दी
थी तो बड़ी पर जच रही थी
मैं दूर से बैठा सब देख रहा था
मन ही मन हँसा और प्रसन्न हुआ
चूड़ियाँ मनभावनी थी।
नमन भावों के मोती
विषय - चूड़ियाँ

गीत

चूड़ियाँ ये चूड़ियाँ
हरीं हरीं चूड़ियाँ --
बहुत रूलायेंगीं जब
होगी तुमसे दूरियां ---

खन खन खनकाओ न
मेहंदी वाले हाथों में
यूँ दिल लुभाओ न
तुम बातों बातों में
उठती है दिल में
इश्क की अँगडाइयां---

गोरी गोरी बइयाँ हैं
गोरे गोरे गाल हैं
बालों बिच बिंदिया है
चमकता ये भाल है
सोचता हूँ कहीं तुम
बनो न कमजोरियाँ ---

दूर तुमसे पल भर भी
अब रहा नही जाए
गम ये जुदाई का
अब सहा नही जाए
कैसी 'शिवम' बाँकीं
ये नरम कलईयाँ---

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 07/02/2020

विषय, चूड़ियाँ /कंगना
दिनांक, ७,२,२०२० .

वार , शुक्रवार .

करतीं श्रृंगार ये नारी का,
शोभा हाथों की बढ़ातीं हैं।
छन छन खनकें चूड़ीं कंगना,
चूड़ियाँ गीत प्रेम के गातीं हैं।

घर आंगन चहक रहा इनसे ,
दीवारों को घर ये बनातीं हैं।
ये स्नेह प्यार और ममता से,
घर की बगिया को महकातीं हैं।

करतीं चूड़ियाँ इजहारे इश्क,
प्रियवर पर तन मन बारा है।
कंगना ने कहा हर बार यही,
हमें संग सजना का प्यारा है।

कोमल मन सी नाजुक चुड़ियाँ,
बहुत ही नाजों से इन्हें पाला है।
कभी इनको करें शर्मिंदा न हम,
ये हमारे जीवन की मधुशाला है।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

बिषय:-चूड़ियां
विधा:- मुक्त काव्य
💐तू याद आती है माँ 💐
***************

1.
जाड़े की ठिठुरती रातों में तू
ममता के गर्म हाथों से तू
उलट-पुलट जब करती थी माँ
खुद गीले में रहकर भी तू
सूखे में हमें सुलाती थी माँ
फ़टी गुदड़ी और वो ठण्ड
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
2.
रातों रात जागती थी तू
लोरी सुना थपकियों से तू
रोज हमको बहलाती थी माँ
छोटी सी मेरी एक छींक से तू
कितनी वे-चैन हो जाती थी माँ
तेरी " चूड़ियों "की वो खनक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
3.
मांटी की हांडी में पकाती थी तू
कंडों पे सेंकती रुआ-वाटी भी तू
घी-गुड़ का चूरमा बनाती थी माँ
छोले के चटुये से उफनती महेरी ( राबड़ी)
भीनीं महक फैल जाती थी माँ
तेरे आंसू और माथे का पसीना
आज भी याद आता है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
4.
मेरे नन्हे-नन्हे पग बजती पैजनिया
घुंघरुओं की खनक सुन-सुन तू
खिलखिला कर हंस देती थी माँ
दो डग भरूँ जब गिरने को होता
गोदी में मुझे तू उठा लेती थी माँ
तेरी बलैयां और चेहरे की चमक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ

स्वरचित:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)

7 /2/2020
बिषय,, चूड़ियाँ ,,कंगना

नई दुल्हन की चूड़ियों की झंकार
खनक उठता सारा देहरी द्वार
छन छन बोले चूड़ी खन खन करे कंगना
सुनकर खुश होते प्रियतम सजना
अल्हड़ सी नवेली लक्ष्मी बन घर आई
गूज रही आनंद की शहनाई
पूरा हुआ परिवार का सपना
हमारे घर आया कोई एक और अपना
सबके हृदय की रानी बनकर रहना
सुख दुख सभी मिलकर सहना
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय : चूड़ियां / कंगन
विधा : हाईकू

तिथि : 7.2.2020

बजें चूड़ियां
आस पिया मिलन
धड़के जिया।

बोलें कंगन
ठहर धड़कन
सब्र धरन।

रिझाऊं पिया
छम छम चूड़ियां
अलबेलियां।

भरे उमंग
चूड़ी रंग-बिरंग
पिया तरंग।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित

दिनांक-07/02/2020
विषय-चूडिय़ां


चूड़ियों के टूटने से जख्मी होती है कलाइयां ।
बेदर्द बयां करती तन मन की रूसवाईयां।।

एक दर्द निष्प्राण करता मुझे.........

करुण क्रंदन हृदय करता
बेदर्द जख्म तेरा
मेरे प्राणों को हरता
एक कील न जाने क्यों
मेरे तन मन को चुभता
हृदय तार झंकृत हो उठता
सिद्ध चित विकृत हो जाता
कदाचित ऐ काले सूरज........
एक सृष्टि ,दो दृष्टि ना रखता
कानन उपवन से कहता
देख प्रकृति की अनुकंपा
हम दोनों को दिए उसने
एक को दर्द, एक को चंपा
कितना तूने भेद किया
क्यों कहता तु ...........
दोनों का समभाव किया
मेरा तो श्रृंगार किया
हृदयाघात तिरस्कार किया

रो रहा है आंगन
दीवारें चीखती है रात -दिन
खो गए रंगीन सपने
गुम हुई मेरी नादानियां
कील -कील चुभ रही
उड़न परियों की कहानियां
वो हँसी खिलखिलाहट
न जाने कहां गुम हो गई जवानियां
शो केस में दर्द पैदा करती
नादान चूड़ियों की बेचैनियां

हे यौवन पुरुष तुम जान लो ..... मुझे पहचान लो

तुम मधुर -मधुर, हम क्षार क्षार
तुम सुर्ख मिलन ,हम इंतजार
तुम लौ अखंड, हम अंधकार
तुम आनंदवन, हम उजड़े थार
तुम अभयदान, हम तड़ीपार
तुम चैन -ए- अमन, हम बेकरार...

स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद

भावों के मोती
दिनांक 7 /2/2020

दिवस- शुक्रवार
विषय -चूड़ियां /कंगना

चूड़ी बोले कंगना बोले
कानों में मिश्री सी घोले।
घर आंगन गलियारों में गूंजे
मंदिर और शिवालय में गूंजे ।
लाल हरी नीली पीली
है इनके बिना हर सिंगार अधूरा।
तीज और त्योहारों में गूंजे,
युद्ध के मैदानों में गूंजे ।
ये चूड़ी वाले हाथों ने सदियों से,
अपना शौर्य है दिखलाया ।
धरा से लेकर अंतरिक्ष तक में,
है अपना जौहर दिखलाया।
चूड़ी बोले कंगना बोले
कानों में मिश्री सी घोले।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज

7/2/20
विषय-चूड़ियाँ


चूडियों की हल्की खनक
चूडियों की मधुर खनक,
सुनाती एक संगीत लहरी
विदाई का संगीत ,
कहती बाबुल से सोन चिरैया,
खनकाती चूडियाँ ले
तेरे दरख्त से उड
किसीऔर मुँडेर पर
जा बैठूँगी,
आँख से झरते मोती छोड
तेरे आँगन को सूना कर
कहीं ओर जा बसूँगी।।

चूडियों की हल्की खनक
चूडियों की मधुर खनक।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।
विषय -चूड़ियांँ
विधा-लघुकथा

7/2/2020

दमयंती का विवाह एक अच्छे परिवार में निश्चित हो गया था।
विवाह को केवल एक माह बचा था।
और आज मनिहारी काकी उसे चूड़ियाँ पहनाने आई थी।
मैरुन और हरी मीनाकारी करी हुई चूड़ियांँ और उनकी खनखन मन को लुभा रही थी।
दो-दो चूड़ियांँ दमयंती को नेग की पहनाने के बाद शेष डिब्बे दमयंती की मांँ के सुपुर्द कर दिए।
और उन्हें समझाने लगी कि साल भर के त्यौहार, फगुआ सिन्धारे में कैसे-कैसे चूड़ियांँ जाएंगी।
चाय पीने के बाद मनिहारी काकी जाने लगी।
यकायक दमयंती की दृष्टि एक अतिरिक्त डिब्बे पर पड़ी जिनका मोल चुकाया नहीं गया था।
उसने अपनी मांँ को बताया तो मांँ और मनिहारी काकी फफककर रोने लगीं।
काकी ने बताया,"बिटिया, इसमें आशीष की चूड़ियाँ हैं।
कभी हाथ खाली नहीं रखना।
अब तुम परायी हुईं।
किंतु दोनों कुलों का मान इन चूड़ियों की खनखन में सहेज कर रखना।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित


विषय कंगना
**********************************************

इक दूजे से प्रेम करें हम, आओ मिल साथी
तुम दीपक अरु मैं बाती बन, साथ जिएँ साथी

अंधकार को दूर भगा दें, सबके जीवन से
आज प्रीत से जग महका दें,कुंजन पुष्पन से

ग़र किस्मत में मेरी जलना, जलूँ साथ तेरे
हर पग तोड़ बढूँ मैं आगे, उलझन के घेरे

तेरी मेरी प्रीत नवेली,अँगना महकाये
लाज शरम धर धीरे चालूँ,कँगना खनकाये
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
चूड़ियाँ / कंगना

उम्र के
एक दौर पर
आ कर
लगने लगती हैं
अच्छी चूड़ियाँ
रंगबिरंगे हाथ
और रंगीला साथ

संजोये
सतरंगी सपने
करती दहरीज पर
इन्तजार अपने
अपनों का
बार बार सुनती
खनखनाती
चूड़ियों की
झनकार

है सीमा पर
प्यार उसका
सुबह की धड़कन
हर क्षण अड़चन
कैसा है वो
कहाँ होगा वो
गोलियों की गर्जन
मौत में गर्दन
दिलासा देती हैं
चूड़ियाँ
लाया था
जो वो
पिछली बार

आया
एक संदेशा
लुप्त हो गयी
संवेदना
टूट गयी
चूड़ियाँ
हो गये
खाली हाथ
चला गया साथ
नफरत है
उसे अब
चूड़ियों से
नफरत है
उसे अब
रूढ़ियों से
यादों में उसे
बसा कर
पहनती है
अब भी वह
रंग-बिरंगी
चूड़ियाँ
और कंगना भी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
भावों के मोती।
विषय-चूड़ियां/कंगना।
स्वरचित।
कंगना बोले,बोलें चुड़ियां
खनखन पुकार के।
आजा रे परदेशी बालम
नैना निहारते।।

लाल रंग की पहनी चुड़ियां
सजना तेरे प्यार में
भूल गया जा करके तू
गुजरे दिन संग-साथ में।
बीत रहे विरहा के दिन
पीऊ पीऊ,पुकारके।
आजा रे!...

बोलें चुड़ियां कंगना के संग
हम तुम दोनों ही इक साथ
पर देखो दुर्भाग्य नववधु का
सजना से ना हुआ मिलाप
चांदनी रात बड़ा तड़फाये
मुझको इकली जानके।
आजा रे!.....
*****
प्रीति शर्मा" पूर्णि
दिन -शुक्रवार
दिनांक - 07/02/2020

विषय - चूडियाँ

लाल हरी चूडियाँ खनकती है हाथों में
छमछम पायल भी छनकती है पैरों में
लाल गोल बिंदी चमकती है माथे में
नारी के सुहाग का प्रतीक है ये सारे
चूडियाँ तो हरदम हमको लुभाती है
सुहागनों के हाथों में ये सज जाती है
कभी काँच की बनी कभी लाख की बनी
किस्मत ही बाँटती है अलग- अलग चूडियाँ ।
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दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
#स्वरचित

दिनांक-७/२/२०२०
शीर्षक_चूड़िया/कंगना


चूड़ी संग कंगना खनके
टीका शोभे माथ
सोलह श्रृंगार कर ,
गोरी चली ससुराल।

माता पिता के ह्रदय धड़के
भैया हुए बेहाल
कल तक थी जो नन्ही गुड़िया
अब रखेगी दो कुलो की लाज।

स्वाभिमान पर इसके आये ना चोट
सोचे छोटी बहना
बढ़े कदम सदा प्रगति की ओर
रोके ना कभी कंगना।

गृहस्थी की शान बढ़ाये
आये ना आँच कंगना
सदा खुश रहें बहना
और चहके घर अँगना।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
7/1/20
सुन्दर सजीली

भांति भांति की
मन को लुभाती
हाथो को सजाती
खनकती है चूड़ियाँ
कभी चुपचाप
सो जाती है
या खुश होकर
बजती है चूड़ियाँ
नव नवेली दुल्हन
का अदभुद सिंगार
प्रियतम के सुहाग
की निशानी है चूड़ियां
पिया के बिना
ये रुलाती है चूड़ियां
अखंड सौभाग्य
की निशानी है चूड़ियाँ
स्वरचित
मीना तिवारी

विषय -*चूड़ियां/कंगना*
विधा-छंदमुक्त

लज्जा,शर्म,हया
नारी का आभूषण गहना।
घूंघट,आंचल हमारी
सनातन संस्कृति
पुरातन सभ्यता।
चूड़ी, काजल, कंगना।बिंदिया,
कुमकुम,रोली
पग पैजनी, सुहागिन बिछिया।
सभी मनभावन
घूंघटवाली,भाभी
काकी ससुराल में
हमारी सजती बिटिया।
घूंघट केवल आंखों की
पलकों का पर्दा
कहीं खुलेआम
अल्हड प्रर्दशन फिर
कैसा घूंघट बराबर पर्दा बेपर्दा।
हमारी सभ्यता का सुदर्शन।
चूड़ियां गहने सभी सजाऐं
घूंघट में रह कंगना पैजनिया बंधाऐं।
अपने सजन लुभाऐ।
मगर किसी की
नजर में नहीं आऐं।
साड़ी सिर पर सुहाती
घुंघटा डाल
प्रियतम को रिझाती,शरमाती
पग पैजनिया बजाऐ।
अपने अंतर्द्वंद को कामिनी
कुछ ऐसे बताऐं।
बलम कुछ तो
इशारा समझ जाऐं।

क*चूड़ियां/कंगना/घूंघट* छंदमुक्त
7/2/2020/शुक्रवार

विषय चूडी़
विधा कविता

दिनाँक 7.2.2020
दिन शुक्रवार

चूडी़
💘💘💘

बहुत सरल सुन्दर श्रँगार
मुग्ध करती जिसकी झंकार
हर आयु हर वर्ग करता स्वीकार
कीमत नहीं जाती जेब के पार।

कौन चुराये और कौन लूटे
पर भय होता कि ये न टूटे
हाथ हो सकता है घायल
पर फिर भी इसके सब हैं कायल।

यह सुहागिन की है निशानी
हर नारी की यही कहानी
ईश्वर यह सदा खनकती रहे
हाथों में सदा चमकती रहे।

हम कहते हैं इसको चूडी़
इसमें लोक लाज है पूरी
सबसे सस्ता यह आभूषण
नहीं रखता किसी से भी दूरी।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय-चुड़ियाँ
दिनांक ७-२-२०२०
हाथ कंगन ललाट बिंदिया लगा, खुद को सजाया।
चूड़ियों की खन खन ने, पिया को बहुत लुभाया।

सतरंगी चूड़ियों ने, देखो कर सुंदरता को बढ़ाया।
बजाअपनी चूड़ियाँ, होने का एहसास कराया।

पर आजकल तो, कुछ उल्टा ही देखने में आया।
चूड़ियों को बोझ समझ,सबने ही पिंड छुड़ाया।

पढ़ाई में व्यवधान,चुड़ियों की आवाज को बताया।
उतार उन्हें सदा,अलमारी की शोभा को बढ़ाया।

पश्चात संस्कृति अपना,जीवन अपना नर्क बनाया।
बुजुर्गों ने जब देखा उन्हें,नजरों को नीचे झूकाया।

दो टूक कहने वाली बहुओं को, मुँह ना लगाया।
जो मर्जी हो वो करो, कह मान-सम्मान बचाया।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

दिनांक :07/02/2020
विषय : चूड़ियाँ

तुम्हारी चूड़ियाँ...
मीठा अलार्म है
इनकी खनक से
सुबहो शाम है

खिल जाती है
वो त्यौहारों में
ले आती मौसम
अपनी कलाइयों में

हाँ चूड़ियाँ भी...
गुनगुनाती है
तुम्हारे आने का
संदेसा लाती है
रंगों की भाषा से
दिल का हाल बताती है

तुम्हारी चूड़ियाँ....
प्रेम का बंधन है
संस्कृति की पहचान है
इठलाती है हाथों में
नारीत्व की शान है
ये हैं तो घर, घर है..
नहीं तो सुनसान है...

स्वरचित
ऋतुराज दवे
दिनाँक-07/02/2020
शीर्षक-चूड़ियाँ , कंगना

विधा-हाइकु

1.
प्यारी चूड़ियाँ
जीत लेती हैं हिया
निशानी पिया
2.
माँग सिंदूर
सुहाग की निशानी
हाथ कंगना
3.
सजी दुल्हन
पहन के चूड़ियाँ
रंग बिरंगी
4.
शादी प्रतीक
हाथ पीले करना
काँच की चूड़ी
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया

विषय-चूड़ी/कंगना
छंदमुक्त


खनके चूड़ी ,खनके कंगना
तेरे अँगना,मेरे सजना
हरी लाल और नीली-पीली
मन हर लेती अँखियाँ नीली
हृदय तार मन के झनकाती
जब बज कर संगीत सुनाती
उर में तेरे प्रीत जगाती
तेरी चितवन पास बुलाती
बाँहों में तू मुझको भरता
मन तेरा फिर भी न भरता
कंगना मेरा शोर मचाता
पल-पल तुम्हें सजग कर जाता
रातों को जब खनके कंगना
करवट तब-तब बदले सजना
नींद उड़ाता मेरा कंगना
अपने पास बुलाता कंगना
मीठी इसकी खनक सुहानी
खनके मेरी चूड़ी धानी
चूड़ी,कंगना हमें मिलायें
आजा हम मिल प्रीत सजायें

सरिता गर्ग

 चूड़ियाँ 
मापनी- 2122 , 1212 , 22
समान्त -- अन , अपदान्त
🍎🌲 गीतिका 🌲🍎
****************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒

मन सुहाती नहीं घटा सावन ।
मौन हैं चूड़ियाँ बिना साजन ।।

रास आतीं नहीं फुहारें अब ,
चीरता है जिया फिजा गायन ।

कूकती कोयली कभी वट पर ,
चूड़ियाँ लख , जले जिया पावन ।

छा गयी है हरी भरी वादी ,
चूड़ियों की खनक नहीं हाथन ।

जब घुमड़ कर उठें घटा काली ,
दिल तड़प कर रुला गया आँगन ।

रिमझिमी बारिसें बडी़ शातिर ,
पिय , सताती रही , उडा़ था मन ।

पूछतीं चूड़ियाँ , सताते क्यों ,
आप आये नहीं , कहाँ राजन ?

🍓🌲🍓🍒🍑

🌷🍅🌻 *** .... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
शीर्षक -- चूड़ियां/कंगन

पिया
मन के प्राण तुम
माँग की लालिमा तुम
बिंदिया की चमक तुम
नयनों का काजल तुम
अधरों की मुस्कान तुम
मंगलसूत्र के मोती तुम
" चूड़ियों "की खनक तुम
पायल की छन-छन तुम
बिछिया के घुंघरू तुम
आँचल की लाज तुम
जित ओर देखूँ पिया
उत ओर तुम ही तुम
बस तुम ही तुम
आशा पंवार

प्रथम प्रयास है मेरा
मार्गदर्शन अपेक्षित है महानुभावों का 🙏

चूड़ियां...
कितना सरल है ये शब्द
उतना ही उच्च है इनका समीकरण।।
मां के हाथों में खनकती हैं
तो लाड प्यार का दर्पण।
खनके जो बहना के हाथों
तो दिलाती याद उसकी
मार ,उसका दुलार।।
आज देखो भाभी की चूड़ियां भी खनकी,
लगता है भाई को भी
फौज से मिल गई है छुट्टी।।
प्रियतमा पहन आई
अर्धांगिनी बन कर अंगना
लगे रोशनी भी आऐ
उसकी चूड़ियों से छनकर।
है दुआ रहे सलामत ये चूड़ियां
, उनकी खनखन और
इनसे जुड़ा हर सम्बन्ध ।।

शिवानी खुराना ' मानों '




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